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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
30 नवम्बर 2020
हरे कृष्ण किन-किन को हरे कृष्ण सबको आप जहां तहां हो इस समय इस दीक्षा समारोहों में सम्मिलित हुए हो या या तो फिर आप स्वयं दीक्षार्थी हो फिर दर्शनार्थी भी हो सकते हैं।
जैसे यहां भी कुछ दर्शनार्थी है तो कुछ दीक्षार्थी भी हैं कोई तीर्थयात्री है इस्कॉन के मंदिर के तीर्थ यात्री भी सोलापुर में नोएडा में और राधा गोपाल मंदिर में गोगल गांव श्रीरामपुर में राधा कुंज बिहारी फिर पुणे में और बेंगलुरु में ऐसे कई सारे स्थानों पर आप सब एकत्रित हुए हो और फिर सब जब करने वाले भक्तों भी साथ में हैं आशा है कि वह साथ दे रहे हैं और वे तो पूरे भारत देश से और कई देशों से भी भक्त इस जपा चर्चा में जुड़ने वाले वह भी अब तक उपस्थित है तो उनको भी हरे कृष्णा और उन इस हरे कृष्णा के साथ उन सभी का स्वागत भी है और आभार भी है।
आपके उपस्थिति के लिए हम सारी यांत्रिक मशीन का उपयोग करते हुए और सोशल मीडिया को स्प्रिचुअल मीडिया बनाते हुए अभी हम सोशल मीडिया को क्या कर रहे हैं। आध्यात्मिक मीडिया बना रहे हैं यूटिलिटी इज प्रिंसिपल उपयोगिता ही सिद्धांत है ऐसे भी एक सिद्धांत प्रभुपाद जी दिए इस सुविधा को इंटरनेट की व्यवस्था का प्रयोग करते हुए हम एक आधुनिक पद्धति हो रही है वर्क फ्रॉम होम टेक इनीसीयेशन फ्रॉम होम तो यहां सभी कुछ घर से ही हो रहा है दीक्षा भी ऑनलाइन हरि हरि
पद्ममाली प्रभु जी से पूछते हुए सब चीजों का आयोजन हो चुका है क्या तो आप बता सकते हो या फिर अन्य अन्य स्थानों के भक्त बता सकते हैं कि वह सब तैयार है कि नहीं सब सुन रहे हैं संपर्क में है यदि नहीं तो कृपया हमें बताइए जहां कहीं भी यह समस्या आ रही है तो आप पद्ममाली प्रभु जी से संपर्क कर सकते हैं।
फिर वह हम से संपर्क करेंगे श्याम सुंदर प्रभु जी से पूछते हुए ठीक है सब कुछ हा ठीक है।
तो आज कम से कम मैं जहां हूं यह तो पवित्र चली है ही पंढरपुर धाम की जय और फिर आप ही यदि इस्कॉन में हो वह स्थान भी पवित्र ही है या फिर आप घर में हो और घर का यदि आपने मंदिर बनाया है तो आपका घर भी पवित्र स्थान है तो यह दीक्षा समारोह पवित्र स्थान पर संपन्न हो रहा है।
और स्थान भी पवित्र और दिन भी पवित्र पवित्र है कि नहीं आज जय आज कार्तिक मास का समापन का दिवस भी है या रात्रि भी है आज तुलसी शालिग्राम विवाह का दिन भी है। आप सभी को पता था कि नहीं पता होना चाहिए जो कृष्णा भावना भावित होते हैं उन्हें पता ही होना चाहिए या फिर वह पता लगा ही लेते हैं पता लगाना चाहिए तो स्थान भी पवित्र और दिन भी पवित्रा तो ऐसे स्थान पर और ऐसे तीन हम एक पवित्र कार्य करने जा रहे हैं दीक्षा समारोह संपन्न होने जा रहा है।
आप भगवान की ओर मुड़े हो मूड तो गए हैं वैसे दीक्षा का अर्थ ही है कि भगवान की ओर मुड़ना जब हम भगवान की ओर मुड़ जाते हैं तब भगवान के भक्तों से जब हम मिलते हैं संतों को साधुओं को फिर साधु संग साधु संग……
‘साधु-सङ्ग’, ‘साधु-सङ्ग’- सर्व-शास्त्रे कय। लव-मात्र ‘ साधु-सङ्गे सर्व-सिद्धि हय।।
(श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला २२.५४)
अनुवाद:- सारे शास्त्रों का निर्णय है कि शुद्ध भक्त के साथ क्षण भर की संगति से ही मनुष्य सारी सफलता प्राप्त कर सकता है।
ऐसा ही कुछ हो रहा है यहां आप या साधु संग आपको प्राप्त हुआ है।
वैसे श्रील प्रभुपाद कहा करते थे इस्कॉन की स्थापना इसीलिए हुई है ताकि संसार के लोगों को इस्कॉन में आपको सत्संग प्राप्त हुआ और फिर आप बहुत कुछ सीखे और समझे हो और फिर
तस्माद्गुरुं प्रपद्येत जिज्ञासुः श्रेय उत्तमम् । शाब्दे परे च निष्णातं ब्रह्मण्युपशमाश्रयम् ॥२१ ॥
श्रीमद्भागवत 11.3.21.
अनुवाद:- अतएव जो व्यक्ति गम्भीरतापूर्वक असली सुख की इच्छा रखता हो , उसे प्रामाणिक गुरु की खोज करनी चाहिए और दीक्षा द्वारा उसकी शरण ग्रहण करनी चाहिए । प्रामाणिक गुरु की योग्यता यह होती है कि वह विचार – विमर्श द्वारा शास्त्रों के निष्कर्षों से अवगत हो चुका होता है और इन निष्कर्षों के विषय में अन्यों को आश्वस्त करने में सक्षम होता है । ऐसे महापुरुष , जिन्होंने भौतिक धारणाओं को त्याग कर भगवान् की शरण ग्रहण कर ली है , उन्हें प्रामाणिक गुरु मानना चाहिए ।
इसको भी इन शब्दों में नहीं सुने होंगे इस मनुष्य जीवन में तस्माद गुरु मतलब आप अभी मनुष्य बने हो तो क्या करना चाहिए गुरु के आश्रम में जाना चाहिए यह भी आपके सुनने में आया होगा आया ही है तो फिर आप।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः || ३४ ||”
अनुवाद:-
तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है
यह कर रहे हो जैसे भगवान ने कहा वैसे आप कर रहे हो क्या फिर भगवान ने कहा या फिर वही बात आपको साधुओं ने संतों ने कसी तो फिर आप ऐसा ही कर रहे हो जैसे संत बता रहे हैं साधु बता रहे हैं वैसे ही आप कर रहे हो मतलब ही हुआ कि भगवान ने ऐसा कहा होगा इसलिए संतो ने वैसा ही कहां भगवत गीता यथारूप उन्होंने सुनाएं क्या अंतर हैं फिर श्रील प्रभुपाद कहा करते थे।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||”
अनुवाद:-
समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत
और साधु संत भी कहते हैं कि भगवान की शरण में जाओ भगवान ने कहा कि मेरी शरण में आओ और गुरु ने कहा कि भगवान की शरण में जाओ उसमें कोई फर्क है कोई अंतर है तो यह यथारूप है।
एक तो भगवान है है कि नहीं हो सकते हैं या है वहां से शुरुआत होती है होनी चाहिए भगवान है भगवान है कहने वाले को फिर आस्तिक कहते हैं आस्तिक अस्ति भगवान अस्ति भगवान है भगवान नहीं है कहने वाले नास्तिक न अस्तिक ऐसे छोटे छोटे शब्द हैं न अस्तिकन तो नही अस्ति मतलब है नही क कहने वाला कैसे समझ वाले को नास्तिक कहते हैं।
तो ठीक है अभी आम दीक्षा के लिए तैयार हो मतलब आप आस्तिक हो आप को यह पता है कि भगवान है और इस बात को आप स्वीकार करते हो तो भगवान है और उनका नाम भी है क्या नाम है कृष्ण जिनका नाम है उनका नाम है तो और क्या क्या है उनका धाम भी है उनका गांव भी होना चाहिए कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका गांव है और उनका नाम है तो उनका नामकरण भी हुआ होगा और गांव है तो उस गांव में वो जन्मे होंगे।
अजन्मा होते हुए भी भगवान जन्म लेते हैं।
कोई भक्त हैं उन्हें जन्म देते हैं कुछ भक्तों को भगवान अपना माता-पिता बनाते हैं और फिर वात्सल्य रस का आस्वादन करते हैं यह तो बहुत लंबी बात हो जाएगी यदि मैं इसे कहु तो…
और भगवान है
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः । तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥१
अनुवाद:-
॥ हे प्रभु , हे वसुदेव – पुत्र श्रीकृष्ण , हे सर्वव्यापी भगवान् , मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ । मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति , पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं । वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं , क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं । उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया । उन्हीं के कारण बड़े – बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं , जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है । उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रह्माण्ड , जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं , वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं । अतः मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं । मैं उनका ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे ही परम सत्य हैं
वेदांत सूत्र में कहां है या श्रीमदभागवतम की शुरुआत ऐसे ही होती है जन्माद्यस्य यतो भगवान है और वह कैसे हैं जन्म सृष्टि स्थिति प्रलय जैसे होता है जिनके कारण होता हैं वह है भगवान और उनके नाम है कृष्ण और भी कई सारे नाम है तो जो भी है सजीव निर्जीव पहले तुम भगवान का सारी सृष्टि है भगवान का साम्राज्य कहते हैं उसमें भी दो प्रकार बताए गए हैं एक होता है त्रिपाद विभूति और दूसरी होती है एक पाद विभूति विभूति मतलब साम्राज्य भगवान का साम्राज्य तो सहारा दिव्य धाम है वैकुंठ लोक हैं और जो अधिक जानते हैं जैसे गौरी अवस्थाओं को अधिक ज्ञान हैं वह गोलोक को भी जानते हैं सभी नहीं जानते लेकिन गोलोक है साकेत हैं वैकुंठ है सदाशिव लोके भी है ।
श्लोक ४३ गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु । ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।४३ ।।
जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुण्ठलोक ( हरिधाम ) , महेशलोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों के विभिन्न स्वामियों को यथायोग्य अधिकार प्रदान किया है , उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ
तो एक तो वैकुंठ धाम हैं आध्यात्मिक जगत हैं और फिर वह एक प्रकार का साम्राज्य और दूसरा है जिसको देवी धाम भगवान ने कहा या ब्रह्मा कहे वैसे कौन सा धाम है कौन सा जगत है।
गुरु महाराज सोने वाले भक्तों के लिए कह रहे हैं जो सोएगा वो खोएगा। आप खोना चाहते हो या पाना चाहते हैं यह तो दीक्षार्थी बनकर बैठे हो तो आप किसे प्राप्त करना चाहते हैं भगवान को कृष्ण प्राप्ति जहां….
तो फिर यह देवी धाम है और अनंत कोटी ब्रह्मांड नायक भगवान भगवान कैसे हैं अनंतकोटी ब्रम्हांड नायक तो कोटि कोटि ब्रह्मांड हैं उसमें से एक ब्रह्मांड में हम हैं फिर हर ब्रह्मांड में स्वर्ग है मृत्युलोक हैं और पाताल लोक हैं तो दुर्दैव से कुछ जीव और उसको समझना थोड़ा कठिन है उस दिव्य धाम से उसको वहां बहिष्कार करते हुए बहिर्मुखी होकर चैतन्य महाप्रभु ने कहा है…
जीव क्या होता है बहिरमुख होता हैं
बहिरमुख जीव भोग वांछा करे
उसके मन में जागृत होता है और फिर वह इस मायावी जगत में पहुंच जाता है और यहां यहां की माया आध्यात्मिक जगत में कृष्णा का डायरेक्ट सीधा कंट्रोल रहता है और इस जगत में जीव पर कंट्रोल है माया का जो भगवान की ही है माया….
माया-मुग्ध जीवेर नाहि स्वतः कृष्ण-ज्ञान।
जीवेरे कृपाय कैला कृष्ण वेद-पुराण ॥ 122॥
अनुवाद:-
बद्धजीव अपने खुद के प्रयत्न से अपनी कृष्णभावना को जाग्रत नहीं कर सकता।
किन्तु भगवान् कृष्ण ने अहैतुकी कृपावश वैदिक साहित्य तथा इसके पूरक पुराणों का सूजन किया।
तो कुछ जीव ज्यादा नहीं वैसे सभी देशों में जो स्वतंत्र नागरिक होते हैं उसमे कैदी अधिक होते हैं या स्वतंत्र नागरिक अधिक होते हैं स्वतंत्र नागरिक की तुलना में कैदी कितने होते हैं एक परसेंट भी नहीं वैसा ही कुछ है तो इन ब्रह्मांड को इस देवी धाम को कारागार भी कहा गया है और बहुत कुछ कहा गया है कारागार तो कहा ही गया है तो हम यहां कारागार में बंद है और मुक्त आत्मा भगवत धाम में जो आत्मा है वह कैसे हैं मुक्त आत्मा है यहां के जीव बद्ध है माया बद्ध है तो फिर लेकिन यह सभी जीव तो भगवान के ही है फिर वो दिव्य जगत के मुक्त आत्मा हैं या इस मायावी जगत के बद्ध आत्मा हैं पर हम हैं किसके हम भगवान के हैं यह भी संबंध भी जरूरी है यही नहीं कि भगवान है हां भगवान तो है ही पर हम भी तो हैं ना भगवान भी हैं और हम भी हैं और हम हम शरीर नहीं हैं हम जीवात्मा है….
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः |
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || ७ ||”
अनुवाद:-
इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है
तो हम जीव है लेकिन यह जीव भगवान का अंश है।
भगवान सच्चिदानंद है तो हम भी सच्चिदानंद गर्व से कहो सच्चिदानंद है पूरे विश्वास से कहो और श्रद्धा से कहो हम भी सच्चिदानंद है पर हम आंशिक रूप में हैं इसलिए कहा है कि अचिंत्य भेदा भेद हम भगवान जैसे हैं लेकिन हमारा सच्चिदानंद है वह आंशिक है तो फिर हम भगवान के हो गए हम स्वतंत्र नहीं हैं हम किसके हैं हम भगवान के हैं और हम भगवान के कुछ लगते हैं तो हमारे संबंध है भगवान के साथ इसे संबंध प्रयोजन अभीदेय कहते हैं।
यह सब ज्ञान के स्तर हैं शुरुआत तो यहीं से होती हैं हम भगवान के हैं भगवान के साथ हमारा संबंध है सदा के लिए तो फिर भगवान जो दयालु हैं हम तो यह आ गए हमारा चल रहा है भोग वांछा का प्रयास चल रहा है नाना योनियों में अमन कर रहे हैं हम….
श्रीभगवानुवाच कर्मणा दैवनेत्रेण जन्तुर्देहोपपत्तये । स्त्रियाः प्रविष्ट उदरं पुंसो रेतःकणाश्रयः ॥१ ॥
भगवान् ने कहा : परमेश्वर की अध्यक्षता में तथा अपने कर्मफल के अनुसार विशेष प्रकार का शरीर धारण करने के लिए जीव ( आत्मा ) को पुरुष के वीर्यकण के रूप में स्त्री के गर्भ में प्रवेश करना होता है ।
कर्मणा दैवनेत्रेण जन्तुर्देहोपपत्तये ये हो रहा है कभी स्वर्ग में तो कभी नाक में कभी यहां कभी उस योनि में और फिर स्वाभाविक परिवर्तन भी होता हैं और फिर भगवान हमें यह मनुष्य शरीर देते हैं।
कैसा शरीर देते हैं मनुष्य शरीर और फिर शास्त्र में इसका वर्णन भी हैं।
जलजा नव लक्षानी
स्थावरा लक्ष वीमसती
कर्मयो रुद्र सनखाय
पक्षिणाम दस लक्षणाम
त्रिमसाल लक्षानी पासवाह
चतुर लक्षानी मनुष्य
पद्म पुराण
ज मतलब जल में जन्म लेने वाले
क्रिमया उसमे कोरोना वायरस भी आ गया वो ग्यारह लाख हैं तो इस प्रकार 400000 प्रकार के मनुष्य बताएं गए है।
” बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते |
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः || १९ ||”
अनुवाद:-
अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है
कुछ मनुष्य बहुत जन्मों के उपरांत मनुष्य जन्म पर मनुष्य जन्म भगवान ऐसा अवसर देते हैं और फिर एक जन्म में पता चलता है हम जब संतों के भक्तों के संपर्क में आ जाते हैं साधु संग जब होता है और तब पता चलता है कि वासुदेवः सर्वमिति वासुदेव ही भगवान हैं और वोही सबकुछ हैं और मैं उनका हू।
उन्होंने प्रयास कर के देखा आप मे से प्रयास किसी ने प्रयास नहीं किया आप भूल गए होंगे लेकिन…… वेसे भगवान अर्जुन से कहें कि ही अर्जुन तुम्हारे कई सारे जन्म हो चुके है लेकिन समस्या क्या है उन जन्मों को मैं जानता हो ना तुम नहीं जानते तुम भूल चुके हों तुम्हारे कई सारे जन्म हो चुके है जन्म होता है तो मृत्यु भी होती है हों उसको टालने का प्रयास हो होता है.. ने प्रयास मिटा की नहीं उसने सोचा कि अपना वर मांग ले ऐसे नहीं मारो वेसे नहीं मारो वेसे नहीं मारो तो अंत मे हुआ क्या क्या हुआ मृत्यु तो हो गया उन्होंने प्रयास कर के देखा आप मे से कोई और प्रयास करना चाहता है? इसमे यश मिलने वाला नहीं है नहीं है इसलिए अच्छाई है है हम भगवानों की शरण के जाए तब भगवानों को आती है दया हम जब यहा आ गए और यहा सारा कष्ट भोग रहे हाऊ हो वह भगवानों का ह्रदय तेषां भगवान का ह्रदय.. भगवान है और भगवान का हृदय भी है और उनके भाव भी है भगवान को आती है दया और वे दया मे भगवान फिर इस संसार मे आ जाते है
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे*
मे प्रकट होता हू और क्या कर्ता हू धर्मा की स्थापना कर्ता हू धर्म ही है कृष्णा भावना कृष्णा भावना मतलब क्या है धर्म अंतरराष्ट्रीय कृष्णा भावना संघ कृष्णा consiuous होता मतलब ही धर्म है धर्म बनता है हमने कृष्णा consiuous तो भगवान धर्म की स्थापना करते है भगवान सारे शास्त्र देते हाऊ शास्त्रों को भगवान ही दिए कई विद्वान कहते है कि भगवान शास्त्र देते है भगवान धर्म देते है भागवत गीता भी क्या है धर्म शास्त्र है जो भगवान ने दिया तो गीता का पहला शब्द कौनसा है धर्म और अंतिम शब्द भागवत गीता का कितने अध्यय है उतरने पता होता चाहिए काइट अध्याय है 18 वे अध्याय मे कितने श्लोक है? 78 तो 78th श्लोक जो है अंतिम शब्द वी क्या है?
म म इसको साथ मे कहेंगे तो धर्म म म या म म धर्म ऐसा भी सकते हो सारी जो भागवत गीता है वो क्या है मेंने दिया हुआ धर्म भगवान ने दिए हुए नियम भागवत गीता मे सारे नियम दिए है नियमावली है तो भगवान प्रकट होते है भगवान धर्म देते है भगवान धर्म शास्त्र देते है और साथ ही साथ भगवान अपने भक्तों की भी स्थापना करते है उनको भेजते है समय समय पर फिर भगवान ने ही ये कहा है कि 4 संप्रदा है 4 वैष्णव सृष्टि है संप्रदाय तो या जिसको हम परंपरा कहे मे जो अभी ग्यान दे रहा हू अर्जुन तुमको ये भविष्य मे लोक केसे समझेंगे परंपरा मे समझेंगे तो परम्परा के आचार्य ये भगवान की व्यवस्था है भगवान ने दिया शास्त्र और फिर आचार्य गुरुजन क्या krte है उसको पढ़ते है हम क्या बन जाते है विद्यार्थि बन जाते है गीता के विद्यार्थि धर्म के विद्यार्थि या भगवान के विद्यार्थि भगवान को समझने के लिए हमरा सारा जीवन विद्या अर्थी जो विद्या को प्राप्त करना छाते है प्राप्त कर रहा उनको क्या कहेंगे विद्यार्थि जेसे अभी दीक्षाअर्थी बने है फिर शुरुआत होती है हम छोटे ही है फिर हमको धर्म की जेसी व्यवस्था है भगवान ने दिया तो आप बालक हो तो गुरुकुल जाओ स्वयं भगवान भी गए मथुरा मे थे वहा दे उज्जैन गए अवंति पूर्व गए और गुरुकुल जॉइन किया उन्हों ने बलराम को भी साथ मे ले आए और सुदामा भी आए थे सुदामपूरी से पोरबंदर से और कई सारे विद्यार्थि पढते थे तो भगवान भी पढ़ रहे थे ब्रम्हचारी बनके और क्या कर रहे थे विद्या अर्जन कर रहे थे भगवान आते है भागवत गीता सुनते है और शास्त्र भी सुनते उन्होंने सारे शास्त्र को अपौरुषेय कहा है य़ह किसी पुरुष की सृष्टि नहीं है शास्त्र भगवान से शास्त्र निश्चित होते है
हरे कृष्ण
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
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*जप चर्चा*
*पंढरपुर धाम सें*
*29 नवंबर 2020*
*हरे कृष्णा*
*जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्रीं अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि* *गोर भक्त वृंद की जय!*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे* *हरे*
672 स्थानों से भक्त जप चर्चा के लिए जुड़ गए हैं।
जो प्रतिदिन इस कॉन्फ्रेंस में जुड़कर हमारे साथ जप कर रहे हैं,उनका तो स्वागत हैं ही लेकिन मुख्यत: आज जो अधिक दीक्षार्थी भक्त हैं, जिनका दीक्षा से मतलब हैं,या जो दीक्षा लेना चाहते हैं,या जो दीक्षा को अर्थ पूर्ण समझते हैं और दीक्षा को प्राप्त करना चाहते हैं,उनको दीक्षार्थी कहते हैं।उन सभी दीक्षार्थीयो का विशेष स्वागत हैं और उनका अभिनंदन भी हैं।जैसा पद्मावली प्रभु ने बताया कि दीक्षार्थी भी अब इस कॉन्फ्रेंस को ज्वाइन कर सकते हैं।आज भी आपका स्वागत हैं और कल परसों जब भी आप जॉइन करोगे आपका हमेशा स्वागत होगा।प्रात काल: में ही जप करना हैं और फिर मेरी जप चर्चा में दीक्षार्थीयो के लिए उपदेशामृत भी होगा और कभी-कभी तो यह कटु भी हो सकता हैं। सत्य कभी-कभी कटु होता हैं। कहा जाता है कि प्रातः काल में जप करो, अगर ऐसा उपदेश दिया जाता हैं तो यह कटु लग सकता हैं क्योंकि प्रातकाल: की जो मीठी नींद का समय हैं वह त्याग और ठुकरा कर जप करना या जप करने के लिए उठना भी एक कटु सत्य हो सकता हैं। हरि हरि। आपको बहुत कुछ सीखना और समझना होगा। आपके जीवन में क्रांति की आवश्यकता हैं। आपको बहिर्मुखी से अंतर्मुख होना हैं। भोगी की बजाय आपको योगी बनना हैं।आपसे कई सारे परिवर्तन अपेक्षित हैं और आप के कार्यकलापों में परिवर्तन होगा।आपकी जो मित्र मंडली हैं जिनके साथ आप अधिक संबंध रखते थे हो सकता है कि वह बदमाश हो,लेकिन आपको अभी तक यह समझ ना आया हो इसलिए उनका संग त्याग करना हैं।
*asat-saṅga-tyāga,—ei vaiṣṇava-ācāra*
*strī-saṅgī’—eka asādhu, ‘kṛṣṇābhakta’ āra*
*(चैतन्य चरित्रामृत मध्य लीला 22.87)*
भगवान ने कहा है कि बदमाशों के संग को त्यागो। आप भी पहले बदमाश रहे होंगे लेकिन अब आप सुधर रहे हो और ज्यादा सुधरने के लिए आपको ध्यान रखना है कि किन के साथ संबंध रखना है किनके साथ नहीं रखना हैं, किन की संगति करनी हैं और आपको अपने खान-पान मैं भी परिवर्तन करना हैं, जिसे हम कहते हैं कि अब और ज्यादा मांस चिकन नहीं खाना।अगर आप ऐसा कुछ अपक्षय भक्षण करते भी होंगे तो आपने तो यह कई सालों से छोड़ दिया होगा। अब उस सब को ना खाने के अभ्यस्त हो चुके होंगे तभी तो आपकी दीक्षा के लिए सिफारिश हुई हैं, तभी आप दीक्षार्थी बने हो विशेष रूप से अपनी भावना में परिवर्तन और क्रांति करनी हैं। एक छोटे वाक्य में कहा जा सकता है कि कैसी क्रांति करनी हैं? आप के भावों में क्रांति करनी हैं, जिसे कहते हैं रिवॉल्यूशन इन कॉन्शसनेस। यह भाव आत्मा का ही लक्षण हैं। हरि हरि। पहले हम भोगी और रोगी थे, फिर अब योगी और त्यागी बनना हैं। भाव में परिवर्तन करने से सब परिवर्तित हो जाता हैं। भक्ति भाव होने से हमारे सारे कार्यकलाप भक्ति पूर्ण और भगवान को प्रसन्न करने वाले होंगे।मैंने जैसे कल ही कहा था कि इस संसार के भाव को छोड़कर भक्ति भाव को अपनाना हैं। एक चांदी का व्यापारी व्यापार करते-करते बूढ़ा हो गया और बीमार भी था उसे बुखार हुआ था तो डॉक्टर आए और डॉक्टर ने टेंपरेचर लिया और कहा कि शरीर का 105 तापमान हैं।वह बेचारा लेटा हुआ था, लेकिन जब उसने 105 सुना तो वह प्रसन्न हो गया। उसने यह नहीं सुना कि 105 तापमान हैं, उसकी खोपड़ी में तो बाजार भाव घुसा हुआ था। तो उसने सोचा कि मैंने जो सोना चांदी खरीदा था तब ₹90 तोला खरीदा था, अब अगर 105 उसका मूल्य आ रहा हैं,तो इसमें फायदा हैं, तो उसने चिल्ला चिल्ला कर कहा कि हां हां बेच दो,बेच दो। आप समझ रहे हैं कि मैं क्या समझाना चाह रहा हूं? शायद मैंने ठीक से समझाया नहीं। हमारी भी खोपड़ी में ऐसा बाजार भाव घुसा रहता हैं। इस में परिवर्तन करना होगा और क्योंकि यह भाव महत्वपूर्ण हैं, अंत में हमारे जीवन की परीक्षा में यही भाव महत्वपूर्ण हैं। कुछ दिन पहले मैं कह रहा था कि हम आर्ट ऑफ लिविंग सीखते हैं,कभी-कभी हमारी जीवन शैली पर ही चर्चा होती रहती हैं *लाइफस्टाइल* *लाइफस्टाइल* करते रहते हैं और आज अगर आप कहीं मॉल वगैरह में जाओगे तो वहां लिखा रहता हैं *स्टाइल* *लाइफस्टाइल* *लाइफस्टाइल* डेथ स्टाइल भी होती हैं, हम में से कुछ लोग जीने की कला सीखते होंगे उसे सिखाने के लिए कुछ संस्थान भी हैं, जैसे आर्ट ऑफ लिविंग और भगवान ने भी कहा है कि
*बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |*
*तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् |*
*(भगवद्गीता 2.50)*
*अनुवाद- भक्ति में सलंग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे* *कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता बुरे अतः योग के लिए प्रयतन करो* *क्योंकि सारा कार्य कौशल यही हैं।*
सही या गलत जो भी हैं, लोग उस लाइफस्टाइल को सीखने का प्रयास करते हैं।लाइफस्टाइल यानी जीवन शैली यानी जीने की कला। लोग जीने की कला तो सीखते हैं,लेकिन मरने की कला भी तो हैं। मरने की कला या मरने का शास्त्र भी हैं। मरण का शास्त्र हैं। हो सकता है कि जीने की कला आसान हो। सीखना हैं,तो मरने की कला सीखो।यह सीखो की मरे कैसे? मरने की कला का भी शास्त्र हैं। इस अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ में हम आपको मरने की कला सिखाएंगे। धर्म भी यही सिखाता हैं कि कैसे मरे।
*इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले, गोविंद नाम लेकर* *तब प्राण तन से निकले!*
आप हरे कृष्णा आंदोलन में भर्ती हो रहे हो और दीक्षार्थी बने हो तो शिक्षा भी आपको दी जाएगी। कहा जा सकता है कि आपको प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि आप यह मरने की कला को सीख सकें। इसका मतलब यह नहीं है कि आप आत्महत्या करो वह तो मूर्खता हैं हरि हरि। आत्महत्या करने से जीवन के लक्ष्य को हम प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन ऐसा मरो कि मरते समय भगवान का ध्यान रहे। भगवान ने स्वयं कहा है कि मरते समय मुझे याद करो। हरि हरि। भगवान ने गीता में कहा हैं
*यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।*
*तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः।।*
*(भगवद्गीता 8.6)*
*अनुवाद-हे कुंती पुत्र शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस जिस भाव का* *स्मरण करता है वह उस उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता हैं।*
जिस प्रकार का भाव हमारा मृत्यु के समय होगा उसी प्रकार का शरीर हमें प्राप्त होगा या फिर हम सद् योनि प्राप्त करेंगे या असद योनि या हम स्वर्ग जाएंगे या नर्क जाएंगे,बैकुंठ लोक जाएंगे या गोलोक जाएंगे यह सारा निर्भर करता हैं कि हम मृत्यू के समय क्या सोच रहे हैं।
*पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।*
*भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।*
*(भज गोविंदम)*
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं चलता रहता हैं, परंतु हमारा भविष्य क्या होगा, किस योनि में या किस स्थान पर हम जाएंगे, हमें भगवत प्राप्ति होगी भी या नहीं? यह सारा इस पर निर्भर करता है कि हमारे मृत्यु के समय पर क्या भाव या विचार हैं। हरि हरि। भागवत धर्म हमको जीने की कला भी सिखाता हैं और मरने की कला भी सिखाता हैं। हमें मरने का शास्त्र भी सिखाता हैं ताकि हमें पुनर्जन्म ना लेना पड़े।*हरे कृष्ण* *हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरि* *हरि*
मुझे और भी बहुत कुछ कहना था लेकिन एक मुख के साथ क्या-क्या कह सकते हैं? इसीलिए भक्त कभी-कभी प्रार्थना करते हैं किं
*tunde tandavini ratim vitanute tundavali-labdhaye*
मेरे अगर कई सारे मुख होते तो मैं कई सारी बातें एक ही साथ करता। भगवान के इतने सारे गुण हैं, उनके गुणों का वर्णन करता।उनके रूप का वर्णन करता। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे* *राम राम राम हरे हरे* का जप भी करता और एक मुख से प्रसाद ग्रहण करता,एक मुख से भगवान के गुण का र्कीतन करता,एक मुख से भगवान की लीला का वर्णन करता और एक मुख से भगवान की धाम या कीर्ति का वर्णन करता। भगवान के 1000 मुख हैं। 1000 मुख से अलग-अलग चर्चा होती हैं।शिवजी के पास पांच मुख हैं,ब्रह्मा के पास चार मुख हैं या पांच मुखी हैं। हमारे ब्रह्मांड वाले ब्रह्मा के पास चार मुख हैं लेकिन ओर ब्रह्मांड में 8 मुख वाले ब्रह्मा भी हैं, कुछ ब्रह्मांड में 16 मुख वाले भी हैं,11 मुख वाले भी हैं, 12 भी हैं, 13 भी हैं,32 भी 64 भी, हजारों लाखों मुख वाले ब्रह्मा भी हैं। शिवजी भी पंचाग मुखी हैं। वह लोग अपने जितने भी मुख हैं, उन मुखो से भगवान के नाम, रूप,गुण, लीला का कीर्तन करते रहते हैं। जीवन में ऐसी भी स्थिति आ जाती हैं कि मैं कितना बोलूं? मैं यह भी कहना चाहता हूं वह भी कहना चाहता हूं। भगवान के संबंध में भक्त बहुत कुछ बोलना चाहता हैं, क्योंकि भगवान अनंत हैं और उनकी लीलाएं भी अनंत हैं
*advaitam acyutam anādim ananta-rūpamādyaṁ* *purāṇa-puruṣaṁ nava-yauvanaṁ cavedeṣu* *durlabham adurlabham ātma-bhaktau*
भगवान के अनंत रूप हैं, अनंत गुण हैं, अनंत धाम हैं। हरि हरि। मेरा तो बहुत कुछ कहने का विचार था लेकिन हमारा शरीर एक ही मुख वाला हैं और समय भी बहुत सीमित हैं, यहां तक कि मरने के लिए समय नहीं हैं। यहां कई सारे दीक्षार्थी इकट्ठे हुए हो, इसीलिए यह कक्षा बीच में छोड़कर नामकरण की ओर बढना पड़ रहा हैं। हरि हरि। लेकिन लीला कथा सुनते रहिए। हम भी सुनाएंगे और भी भक्त आपको सुनाएंगे
*मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् |*
*कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च |*
बोधयन्त: परस्परम् ही हमारा जीवन हैं।श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ पढिये। श्रील प्रभुपाद ने गोरवाणी का प्रचार किया हैं। आपने यह मंत्र कहा या नहीं? *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम* *राम हरे हरे*
यह तो केवल मैंने ही कहा हैं, आप तो चुप करके ही बैठे हो। इतने समय से तो आप ने कुछ नहीं कहा।चलो कहा नहीं सुना तो वह भी अच्छा हैं। एक बात तो यह हैं कि एक तो *कीर्तनीया सदा हरि* करना हैं, कब कब करना हैं? सदा और दूसरी बात हैं *नित्यम भागवत* *सेवया* यह दो बातें तो सदैव ही करनी हैं और भी कई सारी बातें हैं। प्रसाद सदैव नहीं लेना हैं। युक्त आहार विहारसय या उसके लिए अलग नियम हैं। बैलेंस डाइट होनी चाहिए। लेकिन कम से कम यह दो तो सदैव करना ही हैं। एक तो *कीर्तनया सदा हरि*, दूसरा *नित्यम भागवत सेवया*
आपको यह करते रहना हैं, ताकि आपके जीवन में क्रांति हो। आप के भावों में विचारों में क्रांति हो। अभी यहां रुकेंगे। क्या आप प्रसन्न हैं? भगवान प्रसन्न हैं, तो हम भी प्रसन्न हैं और अगर हम प्रसन्न हैं तो भगवान भी प्रसन्न हैं। आप अब भगवान की ओर मूड रहे हो। भगवान को जानना और भगवान को प्राप्त करना चाहते हो या आप अंतरमुखी हो रहे हो। भगवान की ओर मूड़ रहे हो,इसलिए भगवान प्रसन्न हैं। यह देखकर हम भी प्रसन्न हैं और जो भक्त यहां उपस्थित हैं, वह भी प्रसन्न हैं। *निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल*
*हरे कृष्ण*
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जप चर्चा
दिनांक २८ नवम्बर २०२०
हरे कृष्ण!
(जय) राधा माधव (जय) कुंजबिहारी।(जय) गोपीजन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी॥ (जय) यशोदा नंदन (जय) ब्रजजनरंजन। (जय) यमुनातीर वनचारी।।
अर्थ:-वृन्दावन के कुंजों में क्रीड़ा करने वाले राधामाधव की जय! कृष्ण गोपियों के प्रियतम हैं तथा गोवर्धन गिरि को धारण करने वाले हैं। कृष्ण यशोदा के पुत्र तथा समस्त व्रजवासियों के प्रिय हैं और वे यमुना तट पर स्थित वनों में विचरण करते हैं।
हरि! हरि!
आज 650 स्थानों से भक्त उपस्थित हैं। आप सब का स्वागत है। हरिबोल!
नियमित रूप से जपा टॉक में सम्मिलित होने वाले भक्तों एवं साथ साथ यहाँ उपस्थित दीक्षार्थियों का भी स्वागत है।
हरि! हरि!
वैसे आप का स्वागत गोकुल धाम में हो रहा है।
गोकुल धाम की जय!
यह प्रार्थना और आशा है और साथ ही आपके प्रयास भी हैं, एक दिन आपकी आत्मा गोकुल अथवा वृंदावन में पहुंच जाए और वहां पर आप का स्वागत हो। हरि! हरि!
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।
( श्री मद् भगवतगीता ४.९)
अनुवाद:-हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है।
एक दिन ऐसा ही आपका स्वागत हो,उसी की तैयारी है। जिससे हम एक दिन भगवान को प्राप्त करें, हमें उनका दर्शन हो और हम उनके धाम पहुंच जाए। क्या आप ऐसा कुछ चाहते हो या नही! या फिर सोलापुर ही अच्छा है? पंढरपुर तो अच्छा है ही। लेकिन मौड अच्छा नहीं है।
जीना यहाँ, मरना यहाँ, सोलापुर,मोड़, सांगला छोड़कर जाना कहाँ? ऐसी बात नहीं होनी चाहिए। आप समझ रहे हो या आपने अनुभव किया है या आप परेशान हो या अभी उतनी परेशानी नहीं है। वैसे आप समझें नहीं हैं। आपको भी उस बात के साक्षात्कार की जरूरत है। भगवान ने संसार को दुःखालयमशाश्वतम् कहा ही है। यह संसार दुःखालयमशाश्वतम् है। यह संसार दुःख का आलय है।
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् । नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥
( श्री मद् भगवतगीता ८.१५)
अनुवाद:- मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्तियोगी हैं, कभी भी दुखों से पूर्ण इस अनित्य जगत् में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है।
संसार को सुख दुःख का मेला भी कहते हैं,यह संसार अशाश्वतम् है! हरि! हरि! हमें इस बात के अनुभव अथवा साक्षात्कार की आवश्यकता है, तभी हम भगवान की ओर मुड़ेंगें या हमें भगवान की याद आएगी।
दुःख में सुमरिन सब करे,
सुख में करें न कोई।
यह समस्या है। हम दुख में भगवान को याद करते हैं। यदि आपने दुख का अनुभव किया है तो आपको भगवान याद आने चाहिए। इसलिए भी आप अब तैयार हो रहे हो। मैं सुखालय चाहता हूं लेकिन यह स्थान दुःखालय है। चलो इस दुःखालय को सुखालय बनाते हैं। ऐसे प्रयास भी सृष्टि के आरंभ से हुए हैं। नेता, वैज्ञानिको अपितु सारे संसार ने प्रयास किया है परंतु कोई सफल नही हुआ। सभी असफल ही हुए हैं। भगवान् ने सृष्टि को दुःखालय के रुप में बनाया है अथवा दुःख देने के लिए बनाया है। सुख चाहिए तो स्वर्ग जाते हैं।
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति | एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते।।
( श्री मद् भगवतगीता ९.२१)
अनुवाद:- इस प्रकार जब वे (उपासक) विस्तृत स्वर्गिक इन्द्रियसुख को भोग लेते हैं और उनके पुण्यकर्मों के फल क्षीण हो जाते हैं तो वे मृत्युलोक में पुनः लौट आते हैं | इस प्रकार जो तीनों वेदों के सिद्धान्तों में दृढ रहकर इन्द्रियसुख की गवेषणा करते हैं, उन्हें जन्म-मृत्यु का चक्र ही मिल पाता है |
लेकिन पहले पुण्य कमाना होगा, पुण्य कमाया तो स्वर्ग जाएंगे लेकिन वहाँ सदा के लिए नहीं रह सकते। भगवान बताते हैं कि
‘क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति’ अर्थात पुण्य क्षीण होते ही इस मृत्यु लोक में पुनः आ जाओ और मरते रहो। हरि! हरि!
अत्यंत दुख निवृति का मार्ग भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग है। श्रील प्रभुपाद की जय!
यह श्रील प्रभुपाद या महाजनों द्वारा दिखाया हुआ पथ/मार्ग है।
तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नासावृषिर्यस्य मतं न भिन्नम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्धाः॥
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १७.१८६)
अनुवाद:-श्री चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, “शुष्क तर्क में निर्णय का अभाव होता है। जिस महापुरुष का मत अन्यो से भिन्न नहीं होता, उसे महान् ऋषि नहीं माना जाता। केवल विभिन्न वेदों के अध्ययन से कोई सही मार्ग पर नहीं आ सकता, जिससे धार्मिक सिद्धान्तों को समझा
जाता है। धार्मिक सिद्धान्तों का ठोस सत्य शुद्ध स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के हृदय में छिपा रहता है।
फलस्वरूप, जैसाकि सारे शास्त्र पुष्टि करते हैं, मनुष्य को महाजनों द्वारा बतलाये गये
प्रगतिशील पथ पर ही चलना चाहिए।”
बोले तैसा चालै शची वन्दा ही पाउली।
जैसा वो बोले, वैसा वह चले भी। हमें भी ऐसे महाजनों, भक्तों, संतो, आचार्यों के चरणों का अनुगमन करना है।
आप भी ऐसा अनुगमन करने के लिए तैयार हो रहे हो। आप का स्वागत है। भगवान ने आप पर कृपा की है।
ब्रह्मांड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु- कृष्ण- प्रसादे पाय भक्ति लता बीज।।
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १९.१५१)
अनुवाद:- सारे जीव अपने अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्मांड में घूम रहे हैं। इनमें से कोई कुछ ग्रह मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह मंडलों को। ऐसे करोड़ों भटक रहे जीवों में से कोई एक अत्यंत भाग्यशाली होता है, जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है। कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है।
भगवान ने आपको भाग्यवान बनाकर अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ तक पहुंचाया है। इस अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ में आपको साधु सङ्ग प्राप्त हो रहा है। संघ के कुछ सदस्य आपके पथ प्रदर्शक गुरु तथा कुछ शिक्षा गुरु बन रहे हैं और आप दीक्षा के लिए भी तैयार हो रहे हो। तत्पश्चात दीक्षा गुरु के साथ भी आपका मिलन हो रहा है। ऐसा मिलन अथवा मुलाकात दुर्लभ होती है।
भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन, अभय चरणारविन्द रे। दुर्लभ मानव-जनम सत्संगे, तरह ए भव सिन्धु रे॥1॥
( वैष्णव गीत)
अनुवाद:- हे मन, तुम केवल नन्दनंदन के अभयप्रदानकारी चरणारविंद का भजन करो। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर संत जनों के संग द्वारा भवसागर तर जाओ!
मनुष्य जीवन भी दुर्लभ है तथा इस सत्संग का लाभ होना भी दुर्लभ है। यह भी कहा गया है कि हर जन्म में माता पिता मिलते ही रहते हैं अर्थात हर जन्म में माता- पिता होते ही हैं फिर चाहे वह मनुष्य जीवन हो या कुत्ते- बिल्ली का जीवन। हर जन्म में माता- पिता होते ही हैं लेकिन गुरु केवल एक ही बार मिलते हैं या एक ही जन्म में मिलते हैं। माता- पिता हर जन्म में मिलते हैं किन्तु गुरु एक ही जन्म में मिलते हैं। गुरु भगवान का प्रतिनिधि होता है। गुरुओं की अपनी एक् टीम है। गुरुवृंद में जब कोई पथ प्रदर्शक गुरु या शिक्षा गुरु बनते हैं तब ये हमारी मुलाकात दीक्षा गुरु से करवाते हैं। तत्पश्चात बात बनती है और हम आगे बढ़ सकते हैं।
यदि आपकी कोई समस्या व उलझन है,आप उन्हें बता सकते हो। वैसे वे आपके बताने से पहले ही जानते हैं कि आप की क्या समस्या है। भगवान ने उन्हें बताया हैं क्योंकि वे भगवान का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्। आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः।। इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहंकार एव च ।जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् ।।असक्तिरनभिष्वङगः पुत्रदारगृहादिषु। नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु। मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी।विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् ।एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा।।
( श्रीमद् भगवतगीता १३.८-१२)
अनुवाद:- विनम्रता, दम्भहीनता, अहिंसा, सहिष्णुता, सरलता, प्रामाणिक गुरु के पास जाना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मसंयम, इन्द्रियतृप्ति के विषयों का परित्याग, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति, वैराग्य, सन्तान, स्त्री, घर तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति, अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव, मेरे प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा, जन समूह से विलगाव, आत्म-साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना, तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज – इन सबको मैं ज्ञान घोषित करता हूँ और इनके अतिरिक्त जो भी है, वह सब अज्ञान है।
यदि आपको पूरा समझ में भी नहीं आया तब गुरु आपको बताते हैं कि जन्म,मृत्यु, जरा, व्याधि यह समस्याएं है। वैसे समस्या यह है कि हमें यह ही पता नहीं चलता कि क्या समस्या है।
श्रील प्रभुपाद समझाते हैं आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नाणाम्। धर्मो हि तेषामदिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानः।।
( हितोउपदेश)
अनुवाद:- मानव व पशु दोनों ही खाना, सोना, मैथुन करना व भय से रक्षा करना इन किय्राओं को करते हैं परंतु मनुष्यों का विशेष गुण यह है कि मनुष्य आध्यात्मिक जीवन का पालन कर सकते हैं। इसलिए, आध्यात्मिक जीवन के बिना, मानव पशुओं के स्तर पर है।
दुनिया आहार, निद्रा, भय, मैथुन को समस्या समझती है और इसके उपाय ढूंढती है कि किस प्रकार आहार की प्राप्ति होगी या निद्रा की कैसी अवस्था होगी या इस भय या उस भय से हम कैसे बचेंगे या मैथुन की व्यवस्था कैसे होगी। इसे पशुवृत्ति कहा जाता है अर्थात यह पशुओं की वृत्ति है। पशु का विचार या पशु का स्वभाव सीमित होता है। पशु बस इतना हु सोचते हैं कि आहारनिद्राभयमैथुनं …. समाप्त।
आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नाणाम्।
पशुओं तथा नरों में आहारनिद्राभयमैथुन सामान्य है। वैसे यदि हम सिद्ध करना चाहते हैं कि हां, मैं मनुष्य हूं या मैं मनुष्य बन गया हूँ लेकिन जब तक आपकी सारी प्रवृत्ति अथवा सारे प्रयास आहार, निद्रा, भय, मैथुन में ही लगे हैं तब तक आप मनुष्य नहीं हो। शास्त्र कहता है कि आप द्विपाद पशु हो। वैसे पशु चतुष्पाद होते हैं। पशुओं के चार पैर होते हैं लेकिन हम दो पैर वाले द्विपाद पशु हैं। हरि! हरि!
वह मनुष्य कहलायेगा जो कि मनु से उत्पन्न होता है। मनु से मनुष्य बनते हैं।
मनु ने हमें मनु संहिता भी दी है एवं धर्म के नियम भी दिए हैं।
‘धर्मेण हीनाः पशुभिः समानः’
यदि हम धर्म हीन हैं तो हम पशु के समान हैं।’धर्मो हि तेषामदिको विशेषो’
वैसे मनुष्य की पहचान है कि वह धर्म का अवलंबन करता है। आहार, निद्रा, भय, मैथुन यह चलता ही रहता है लेकिन एक अतिरिक्त बात धर्म अथवा कृष्ण भावना अथवा भक्ति है जिसे वह अपनाता है और फिर मनुष्य बन जाता है। धर्मो हि तेषामदिको विशेषो।
जो दीक्षार्थी हैं या जो पहले ही दीक्षा ले चुके हैं या अन्य भक्त जो तैयारी कर रहे हैं या जिन्होंने अभी विचार नहीं किया है अथवा जिनकी तैयारी हो चुकी है और जिन्होंने निर्णय लिया है कि “बस अब मैं इस दुखालय से मुक्त होना चाहता हूं, मुझे सुखालय चाहिए। मैं समस्या समझना चाहता हूं जोकि मुझे अभी तक पता नहीं चली थी कि समस्या क्या-कौन सी है’ लेकिन अब समझ में आ रहा है कि यह जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि ही समस्या है। यही उलझन है, तब सुलझन क्या है?
भगवान भगवत गीता में कहते हैं।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ॥
( श्री मद् भगवतगीता ४.३४)
अनुवाद:- तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है।।
इसलिए अब मैं तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन कर रहा हूँ भगवान कह रहे हैं कि आप जो कर रहे हैं या करना चाहिए वैसे आप उसकी शुरुआत कर ही रहे हो। भगवान् कहते हैं – समझो, समझो, आपको समझना चाहिए। प्रणिपातेन- शरण में जाओ, आश्रय लो, आश्रय ले कर उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः अर्थात आगे बढ़ो। जो तत्वदर्शी अथवा तत्ववेत्ता अथवा गुरुजन अथवा परम्परा में आने वाले आचार्य, गुरुजन अथवा दीक्षा गुरु हैं। उनके पास जाओ और परिप्रश्नेन अर्थात उनसे प्रश्न पूछो।
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु:।स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ।।
( श्रीमद् भगवतगीता ४.२)
अनुवाद:- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा। किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है।
गुरुजन से परंपरा में आने वाले आचार्य अथवा गुरु के पास पहुंच कर प्रश्न पूछो।
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा:।
( वेदान्त सूत्र१.१.१)
अनुवाद:- अतः अभी ब्रह्म ( पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान्) के विषय में प्रश्न पूछने चाहिए।
बाजार भाव की चर्चा और प्रश्न तो बहुत हो गए। क्या भाव है? अब कुछ ब्रह्म जिज्ञासा करो।
वेदांत सूत्र भी ब्रह्म जिज्ञासु बनने को कहता है। अब भक्ति तथा भगवान के संबंध में प्रश्न पूछो या स्वयं के सम्बंध में प्रश्न पूछो।
के आमि, ‘केने आमाय जारे ताप-त्रय’। इहा नाहि जानि-केमने हित हय’।।
( श्री चैतन्य चरितामृत २०.१०२)
अनुवाद:- मैं कौन हूँ? तीनों ताप मुझे निरन्तर कष्ट क्यों देते हैं? यदि मैं यह नहीं जानता, तो फिर मैं किस प्रकार लाभान्वित हो सकता हूँ?
मैं कौन हूँ? केने आमाय जारे ताप-त्रय’ – हम यह कष्ट क्यों भोग रहे हैं। कैसे राहत मिल सकती है। इस प्रकार परिप्रश्नेन और साथ ही साथ सेवा तथा विनय भाव से प्रश्न पूछो। आप जिससे प्रश्न पूछ रहे हो, वह आपको उपदेक्ष्यन्ति ते अर्थात उपदेश देंगे। भाष्य में कहीं कहीं पर उपदेक्ष्यन्ति ते को दीक्षा भी कहा अथवा समझाया गया है। वह आपको उपदेश करेंगे अथवा आपको दीक्षा देंगे। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानम। ज्ञान का उपदेश करेंगे, ज्ञान देंगे। हरि! हरि! आप सभी दीक्षार्थियों का स्वागत / अभिनंदन है। बधाई! आपने ऐसा निर्णय ले ही लिया। अब तक आपको यह संसार गुमराह कर रहा था लेकिन अब भगवान आपको सद्बुद्धि दे रहे हैं।
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ||
( श्रीमद् भगवतगीता १०.१० )
अनुवाद:- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं।
भगवान ने आपको सद्बुद्धि दी है। जिससे आप भगवान के और अधिक निकट पहुँचोगे।
आप सब के लिए ऐसी भी प्रार्थना और आशीर्वाद है कि वे आगे भी ऐसी सद्बुद्धि आपको देते रहे।
बुद्धि ही संचालक है। बुद्धि ही ड्राइवर है। हमारा जो प्रवास अर्थात यात्रा इस संसार में चल रही है उसे कृष्णभावना भावित होना और भगवतधाम लौटना और भगवत प्राप्ति करना यह बुद्धिमान व्यक्ति का कार्य है, बुद्धू का नही है। भगवान् बुद्धि देंगे तो आप बुद्धिमान बन जाओगे। भगवान् ने कुछ तो बुद्धि दी है और जिन्होंने बुद्धि दी है, उनको भी आप शुक्रिया अदा करो। उनका आभार मानो। भगवान के प्रतिनिधि बन कर ही भक्त, साधु, संत, शिक्षा गुरु, दीक्षा गुरु हमें बुद्धि देते हैं। हरि! हरि!
वैसे भगवान् भी हमें देना चाहते हैं और देते ही रहते हैं लेकिन हमें सुनाई ही नहीं देता या हम ध्यान नहीं देते। इसलिए भगवान गुरु के रूप में हमारे समक्ष आ जाते हैं। जब हम उनको सुनते हैं, तब हमें समझना चाहिए कि हम भगवान् को ही सुन रहे हैं। या भगवान ही हमें बुद्धि दे रहे हैं अथवा दिमाग दे रहे हैं या हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
ठीक है, आज तो केवल दीक्षार्थियों का नामकरण ही है। यह प्रक्रिया कई दिनों से चल रही है। जैसा कि आप घोषणा सुन रहे हो तो 30 तारीख को यज्ञ होगा और यह दीक्षा की विधि संपूर्ण होगी। आज तो थोड़ा सा मार्गदर्शन और आपका परिचय होगा।हम भी कुछ परिचयात्मक बातें कह रहे हैं। तत्पश्चात आपका नामकरण आज होने जा रहा है। सभी भक्त जुड़े रहिए और जप करते रहिए। आप भी साक्षी बनिए और अपनी शुभकामनाएं व्यक्त कीजिए। जो भक्त आज दीक्षा ले रहे हैं, उनको भी आपका आशीर्वाद और प्रोत्साहन चाहिए। ठीक है। ओके!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
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जप चर्चा,
पंढरपुर धाम,
27 नवंबर 2020.
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
आप सभी का स्वागत है। जप चर्चा में दीक्षार्थी भक्तों का भी स्वागत है। आज तो कुछ शहरों दीक्षार्थी भक्त यहां उपस्थित होंगे। आप जप सत्र ज्वाइन नहीं करते थे। आप भी प्रयास करो कि हमारे साथ प्रतिदिन जप कर सको।
हरिनाम दीक्षा की तैयारी हो रही है। आपको सदा के लिए जप करना है। अंतिम सांस तक हमें यह जप करना है। यदि भक्त कहता है तो यह सही है, सही है। यह जप हम जीवन से मुक्त होने तक, और जीवन से मुक्त होकर भी करेंगे जब हम भगवत धाम लौटेंगे, तो वहां भी हम जब कीर्तन करने वाले हैं। हरिकिर्तन, नामजप, साधन तथा साह्य भी है। हरे कृष्ण नाम की सहायता से मतलब हरे कृष्ण अर्थात राधा कृष्ण सहायता कर रहे हैं। हरे कृष्ण भगवान का नाम ही है साध्य भी भगवान की प्राप्ति भगवान का दर्शन यह साध्य है हरे कृष्ण हरे कृष्ण की मदद से, राधा कृष्ण, राधा कृष्ण की मदद से, राधा कृष्ण का दर्शन करना चाह रहे है।
कृष्ण प्राप्ति हय जहाँ हयते कृष्ण प्राप्ति राधा कृष्ण प्राप्ति करना चाहते हैं यह लक्षण है यह साध्य है और जो साध्य हुए राधा कृष्ण प्राप्त हुए राधा कृष्ण या उनका गोलोक धाम तो फिर वहां पर भी हम लोग हरे कृष्णा हरे कृष्णा करते ही रहेंगे यहां हरे कृष्ण हरे कृष्ण कीर्तन सदा के लिए है वैसे कह बैठा था यहां सदा के लिए है इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप सदा के लिए है सदा के लिए सदा के लिए मतलब इस जीवन के अंत तक ही नहीं सदा के लिए हरि हरि जब हम किसी भी मंत्र का जप करते हैं तो उन मंत्रों का यह हर मंत्र का देवता होता है और उस मंत्र का उच्चारण करते हुए हम उस देवता को उस मंत्र के देवता को प्रसन्न करते हैं और वह मंत्र देवता जब प्रसन्न होते हैं तो फिर वह देवता वह देव जहां भी उनका निवास है जिसको हम धाम कहते हैं उस धाम में हम पहुंच सकते हैं उस धाम में हमें वह बुला लेंगे त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति ऐसा भगवान कृष्ण ने कहा है
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||
अनुवाद
हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है |
आपने जप किया कीर्तन किया, जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। कृष्ण के जन्म को उनकी लीला को, नाम को, धाम को तत्वतः आप समझे ।तो समझने का फल क्या है? यह श्रुतिफल क्या है? हरे कृष्ण हरे कृष्ण महामंत्र का श्रुतिफल क्या है? भगवान के और कीर्ति का गान। श्रृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधवः सब समय साधु क्या करते रहते हैं? श्रृण्वन्ति गृणन्ति गायन्ति श्रवण कीर्तन करते रहते हैं। तो श्रवण फल यह है और दो बातें सुन रहे हो। समझ रहे हो तत्वतः तो त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति धाम में पहुंच जाओगे। तो यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र के जप का, महामंत्र के श्रवण का फल भगवत प्राप्ति है। भगवत धाम प्राप्ति हैं। हमारे हरेे कृष्ण महामंत्र के मंत्र देवता है। राधाकृष्ण हरे कृष्ण मतलब राधाकृष्ण हरे है राधा। वैसे है हरा जो हरती हैं। भगवान केे मन को भी हर लेती हैं। भगवान की मन को भी मोहित करती हैं, जो व्यक्ति वह है हरा। वह है राधा।
राधा को मदनमोहनमोहिनी भी कहते हैं। कृष्ण का नाम है मदनमोहन क्योंकि वे मदन को भी मोहित करते हैं। कामदेव को मोहित करने वाले भगवान को मदनमोहन कहते हैं। किंतु ऐसे मदनमोहन को मोहित करती है राधारानी। इसलिए राधारानी को कहते हैं मदनमोहनमोहिनी। कृष्ण का नाम है मदनमोहन की मोहिनी इसीलिए उनको हरा भी कहते हैं,कृष्ण का मन हर लेती हैं मनोहरा कहते हैं। कृष्ण मनोहर है तो राधा रानी मनोहरा है। वैसे दोनों भी एक दूसरे के मन को हर लेते हैं, चित्त की चोरी करते हैं। कृष्ण भी चितचोर है राधा केे चित्त की चोरी करते हैं। मेरी हालत भी वही है द्वारकाधीश ने कहा था, वह ब्राम्हण कुंडीनपुर से रुक्मिणी का प्रेम पत्र लेकर द्वारका पहुंचे और पढ़कर सुना रहेेेेेेे थे रुक्मिणी का पत्र। रुक्मिणी ने लिखा था आप मेरे चित्त को चुरा लेते हो। मैं सदैव आपका ही चिंतन करती रहती हूं। आपके बिना यह जगत सारा मुझे शुुन्य लगता है। शुुुन्यायितम् जगत सर्व गोविंद विरहेन मे यह सब सुना द्वारकाधीश ने द्वारका में कहां ओह मेरा भी हाल वही है। रात्रि के समय मुझे भी नींद नहीं आती है। निद्रा न लभते द्वारका में सब तो है, सारा ऐशो आराम है, सब आनंद है, यह है वह है। लेकिन जब मैं लेट जाता हूं तब मुझे नींद नहीं आती है,क्यों? बस रुक्मिणीने मेरे चित्त को हर लिया हैै। हरि हरि। तो इस प्रकार वह दोनों भी एक दूसरे के चित्त को हर लेते हैं। तो एक है मनोहर और दूसरी हैं मनोहरा। और फिर वह हमारेे चित्त हर लेते हैं। स्वमाधुर्येन मम चित्त आकर्षय ऐसी प्रार्थना भी करते हैं।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
क्या कर रहे हैं और प्रार्थना भी कर रहे हैं। हे प्रभु आपका जो माधुर्य है, जो सौंदर्य है आपका जो प्रेम माधुर्य या है वेणु माधुर्य के है मेरे चित्त को आकर्षित करें मम चित्त आकर्षय जो सभी के चित्त को आकृष्ट करने वाले हे भगवान इसीलिए उनका नाम है कृष्ण। यकर्षति स कृष्ण राधारानी को भी आकृष्ट करते हैं अपनी ओर। और राधारानी भी कृष्ण को आकृष्ट करती है अपनी ओर। और फिर मैं दोनों हम सभी को आकृष्ट करते हैं। इसीलिए उनका नाम है कृष्ण। कृष्णा कृष्णा राधारानी को आप कृष्णा कह सकते हो। जमुना को भी कहते हैं कृष्णा। या द्रोपदी को भी कहते हैं। कृष्णा राधारानी को भी कृष्णा कहा जा सकता है स्त्रीलिंग बनाके। कृष्ण पुरुष है। राधारानी सब के चित्त को हरने वाली आकृष्ट करने वाली तो वे कृष्ण। कृ कृ मतलब सब को जो आकृष्ट करें।
कृष्ण वर्णद्वै आपका जो यह नाम है, कैसा है? यह नाम वर्णद्वै इसमें दो वर्ण है। ना जाने कितना अमृत भरा हुआ है। किसमे इस कृष्ण दो अक्षर वाला जो नाम है वह मधुर है। एक तो कृ कृ वर्ण से भगवान आकृष्ट करते हैं सबको अपनी ओर। और जो आधा पार्ट है ष्ण ष्ण वर्ण इससे आनंद देते हैं भगवान सबको। हरि हरि। और वैसे राय रामानंद और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का तो संवाद हुआ। वहां पर राय रामानंद जी ने कहा एक विशेष सिद्धांत की बात कि। राधा रानी कृष्ण को भी आनंद देती है इसीलिए ल्हादिनी शक्ति। भगवान की ल्हादिनी शक्ति राधारानी कहलाती है।
कृष्ण को अल्हाद देने वाली लेकिन वह केवल कृष्ण को ही अल्हाद नहीं देती जीवो को भी अल्हाद देती है राधारानी। रामानंद राय ने कहा कृष्ण जो नाम है कृष्ण ने हमें आकृष्ट किय अपने ओर। राधा ने हमको आनंद दिया। ऐसा उनका संघ है। संघ का कार्य। कृष्ण हम को आकृष्ट करते हैं और राधा रानी हमको आनंद देती हैं। राधाकृष्ण प्राण मोर युगल किशोर ऐसे ही हमारे प्राण हैं। राधाकृष्ण प्राण मोर युगल किशोर कृष्ण हमारे प्राण हैं और राधा रानी हमारी प्राण है। यह दोनों मिलकर हमारे प्राण है। दो प्राणन्ति इसीलिए जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जप जब करते हैं तो हमारे जान में जान आ जाती है। प्राणन्ति हमारे प्राण आ जाते हैं। हम कुछ जीवित हो जाते। वैसे मृृृत ही थे पहले लेकिन हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते-करते हम पुनः जीवित हो जाते हैं प्राणन्ति गृणन्ति शुभन्ति हम शुद्ध हो जाते हैं, पवित्र हो जाते हैं, शुभन्ति हम शोभायमान हो जाते हैं।
्हरि हरि। तो ऐसी व्यवस्था भगवान ने की है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने 500 वर्षों पूर्व 1486 मेे जब वे ब्रह्मांड में प्रवेश किए और नवद्वीप में प्रकट हुए तब वे अपने नाम को लेकर आए जिसको कहते हैं गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन गोलोक धाम से वहां का धन लेकर आए। गोलोक का धन। समृद्ध है गोलोक धाम, समृद्धि हैै वहां तो कौन सा धन? कौन सी समृद्धि* जैसा यहां कहां है गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन महाप्रभु ने उस धन का वितरण प्रारंभ किया उनके आविर्भाव के दिन से ही। या फिर यह भी कहां है कि भगवान कैसे दो रूपों में प्रकट हुए। गौर पूर्णिमा के दिन सायंकाल को चंद्रोदय होने वाला था। निमाई गौरांग प्रकट होने वाले थे वह भी है लेकिन दिन में एक दूसरे स्वरूप में दूसरा कहना भी गलत नहीं है। और वह है
कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार।
नाम हइते हय सर्व जगत निस्तार ।।
(चैतन्य चरितामृत 1.17.22)
भगवान अवतार लेते हैं कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। इस कलिकाल में भगवान अवतार लेते हैं कलि काले नाम रूपे नामरूप एक है निमाई *सचि गर्भभसुधा दुग्धधसिंंधु एक तो सची माता के गर्भ से प्रकट हुए वह एक रूप साथ ही साथ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। यह दूसरा स्वरूप अवतार यहां दो रूप वैसे एक ही है अभिन्न है यह एक रूप है और उसका वितरण श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु प्रारंभ किए उसी दिन से। जन्मदिन तो उनका हो रहा था तो लोगों को कुछ जन्मदिन पर उपहार लेकर आना चाहिए था। और लेकर आए भी, लेकिन साथ ही साथ चैतन्य महाप्रभु स्वयं ही सभी को उपहार दे रहे हैंँ, और वह उपहार है नाम संकीर्तन। हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट भगवान ने इस ब्रह्मांड में फंसे हुए बद्ध जीवो को देना प्रारंभ किया। और उन्होंने ही जैसे कहां है
ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव।
गुरु- कृष्ण- प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज।।
( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १९.१५१ )
अनुवाद:- सारे जीव अपने- अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह-मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह- मंडलों को।
भगवान ही हमको, हम बद्ध जीवो को, भूले भटके जीवो को भाग्यवान बनाते हैं। और उनकी ओर से भगवान की ओर से भगवान ने लाई हुई जो भेंट है अब उन्होंने वह भेंट दि हैं परंपरा के आचार्यो के पास। और उनको आदेश दिया है जारे दाखो तारे कहो कृष्ण उपदेश क्या करो? विशेष रूप से यह हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट आप देते रहो औरों को। तो आप जो दीक्षार्थी, दीक्षा के अर्थी दीक्षा प्राप्ति के जो शुद्ध भक्त हैं तो भगवान ने आपको भाग्यवान बनाया है और आपको अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ के सानिध्य में लाया है।
इस हरे कृष्ण आंदोलन के भक्तों के संपर्क में आप आए हो। फिर इस हरे कृष्ण आंदोलन के भक्त आपको और पूरे संसार को भेट दे रहे हैं, हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट चैतन्य महाप्रभु की ओर से। चैतन्य महाप्रभु की ओर से यह भेंट ले लो। यह दीक्षा समारोह में मुख्य बात तो यही होती है या दीक्षा समारोह में आपको गुरुजन जिनका आपने चयन किया है तो वह गुरु या सभी गुरु इस्कॉन में या गौड़िय वैष्णव गुरु क्या करते हैं? एक ही भेंट देते हैं हरे कृष्ण महामंत्र ही देते हैं और ऐसी भेंट दी जाती है।
आप को समझना चाहिए था अब तक, हरे कृष्ण महामंत्र भी दिया जाता है इसीलिए इसको हरि नाम दीक्षा भी कहते हैं। हरे कृष्ण महामंत्र भी आता है, हरे कृष्ण महामंत्र की भेंट दी जाती है, जब कहा जाता है, तब आप को समझना चाहिए। वास्तव मे क्या देते हैं यह समझना चाहिए ना, हरे कृष्ण महामंत्र देना मतलब कृष्ण को ही देते हैं। कृष्ण को ले लो किस रूप में कलि काले नाम रुपे कृष्ण अवतार यह नाम स्वरूप है भगवान का, यह अवतार है भगवान का इसको स्वीकार करो।
हरि हरि। वैसे आप में से कुछ भक्तों का आज नामकरण होगा आपको भी नाम दिया जाएगा। आपको हरे कृष्ण महामंत्र भी दिया जाएगा और साथ में आपको भी नाम दिया जाएगा आपका नाम करण होगा। परिवर्तन होगा कई सारी क्रांति ही होने वाली है आपके जीवन में। तो कई सारे परिवर्तनों में आपका नाम भी परिवर्तन किया जाएगा। वैसे औपचारिक पद्धति से आपको हरे कृष्ण महामंत्र जिस दिन दीक्षा होगी उस दिन दिया जाएगा, आज तो केवल आप का नामकरण होगा।
हरे कृष्ण ।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम से,
26 नवंबर 2020
आज 784 अभिभावक उपस्थित हैं। दिक्षार्थी भी आज होने चाहिये थें। उनको संबोधित करना था। आज उनका परिचय लेना था। उसके पहले जप चर्चा तथा परिक्रमा चर्चा भी करना चाहता था।
हरी हरी! गौरांग! जय राधे!
आज है एकादशी। उत्थान एकादशी महोत्सव की जय…!
वैसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। इस नाम से आप समझ सकते हो कि देव के साथ कुछ हो रहा है यहां सारे देव की बात नहीं हैं। आदि देव भगवान आज के दिन उठे उत्थान उठे हरि हरि! देवशयनी एकादशी होती हैं। चार महीने पहले भगवान ध्यान किए।
गोपी मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्।
हृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7॥
(अधरं मधुरं श्री वल्लभाचार्य विरचित)
अनुवाद:-उनकी गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीलाएँ मधुर हैं, उनका संयोजन या सम्मिलन मधुर है, उनका भोजन मधुर हैं, उनकी प्रसन्नता मधुर है उनकी शिष्टता (या शिष्ट वयवहार) मधुर है- मधुरता के सम्राट के विषय में सभी वस्तुएँ मधुर हैं।
भगवान उत्तम भोक्ता हैं।
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्र्वरम् |
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ||
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय5,श्लोक29 )
अनुवाद: -मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परम भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्र्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शान्ति लाभ-करता हैं |
भगवान योगिता के रूप में भोग मधुर हैं।के रूप में मधुरम मधुरं सुक्तं मधुरं उनका शयन भी मधुर हैं। भगवान का शयन यह एक भगवान की लीला हैं। श्रीरंगम में जाओगे तो भगवान वहा विश्राम कर रहे हैं।हरि हरि! भगवान की निद्रा साधारण नहीं है योग निद्रा भी कहते हैं भगवान के निद्रा को। भगवान शयन रहे हैं तो उसका भी दर्शन करते है,भगवान के भक्त। हम जब सोए रहते हैं तो कोई देखने नहीं आता क्या है उसमें देखने की चीज? संसार जब सोता हैं। आहार निद्रा में सोता हैं।भगवान का विश्राम भी या शयन भी विशेष है दिव्य हैं। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विश्राम किये। वैसे यहां पंढरपुर में जहासे मैं आपके साथ बात कर रहा हूँ ओर कुछ स्थानों में भी होता होगा परंतु यहां पंढरपुर में भगवान के विश्राम की तैयारी करते हैं देवशयनी एकादशी को लाखों लोग दस-बीस लाख लोग आ जाते हैं। क्यूँ? भगवान सोने जा रहे हैं। उनका विश्राम प्रारंभ होगा। आज शयनी एकादशी हैं लाखों लोग यहां भगवान के दर्शन के लिए आ जाते हैं या उनका भी विचार हो जाता है कि भगवान के विश्राम करने के पहले दर्शन कर लेते हैं। हरि हरि!
यही चतुर्मास्य का काल हैं। चार महीने भगवान पूरा विश्राम करेंगे। वैसे हमारे चार महीने हैं। भगवान के तो चार घंटे या चार सेकंड भी हो सकते हैं।
अच्छा विचार हैं।भगवान सोते हैं चलो मैं भी सोना चाहूंगा भगवान के पदचिह्नों का अनुकरण करुंगा। ऐसा नहीं करना! भगवान के लिए और हमारे लिए नियम अलग हैं। हम अलग हैं।वे बृहु आत्मा है हम अनु आत्मा हैं। भगवान भगवान है हम हम हैं। हम भगवान कि नकल नहीं कर सकते। हरि हरि! आप गोवर्धन पहाड़ नहीं उठा सकते हो और कई सारी बातें हम नहीं कर सकते जो भगवान करते हैं। इस चातुर्मास कि कालावधि में कई सारे उनके भक्तों तीर्थ स्थलों में जाकर निवास करते हैं। वैसे ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की प्रकट लीला के समय कितने सारे बंगाल, ओडिशा और कुलीन प्रांत से शांतिपुर से नदिया से यहां तहा से भक्त आते आप जानते हो कि वह चातुर्मास के प्रारंभ में आकर चार महीने जगन्नाथ पुरी में रहते हैं। ऐसे ही और धामों में रहते हैं। हरी हरी!
और उस कालावधी में भक्त, साधक और अधिक तीव्र साधना करते हैं।अधिक तपस्या करते हैं। अधिक श्रवण, कीर्तन करते है और फिर आज के दिन दिन गणना के अनुसार चातुर्मास का समापन है क्योंकि आज भगवान उठ रहे हैं जग रहे हैं तो फिर दुर्भाग्यवश कोरोना वायरस के वजह से वारकरी नहीं पहुंच पाए। यहां के भक्तों को(महाराष्ट्र के) वारकरी कहते हैं। महाराष्ट्र के पंढरीनाथ के पांडुरंग! पांडुरंग! पांडुरंग के भक्त आज नहीं पहुंच पाए। तालेबंदी, संचार बंदी क्या क्या चल रहा हैं? यहां नहीं पहुंच सके उस दिन भगवान विश्राम करने जा रहे थे इस दिन भगवान जागेंगे। भगवान जगते ही हम दर्शन करेंगे भगवान का इस भाव के साथ दर्शनार्थी पहुंच जाते हैं आज नहीं पहुंचे हैं। यह महान दिन है विशेष दिन है देवोत्थान एकादशी महोत्सव। आज का दिन वैसे भी माधव तिथि है एकादशी और आप इसे मनाइए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
का किर्तन जप को बढ़ाइए श्रवण कीर्तन बढ़ाइए और आज उपवास का दिन भी हैं। वास का दिन हैं। उपवास भगवान के अधिक निकट, निकटतर,निकटतम पहुंचने का दिन हैं। यह श्रवण-कीर्तन से ही होता है और वैसे आज के दिन से बचे हुए कार्तिक के पाच दिन है पूर्णिमा तक भीष्म पंचक नामक एक विशेष पर्व भी संपन्न होता हैं। हरि हरि! जो इच्छुक है तयार है वे भीष्म पंचक को भी मना सकते हो। हरि हरि! चतुर्मास समय कहिए या चातुर्मास में कार्तिक मास में हम वृंदावन पहुंच रहे थे परिक्रमा में संमिलित हो रहे थें। हमारी साधना हो रही थी हम दामोदर अष्टकम गा रहे थें। दामोदर लीला का स्मरण कर रहे थें। दीपदान कर रहे थें दीपदान औरों से करवा रहे थें और यह करते समय हमारा चल रहा था। उपवास या भगवान के अधिक निकट पहुंच रहे थें। हर दिन निकट अधिक निकट पहुंचने का ही तो अवसर हैं। हम को ओर एक दिन प्राप्त हुआ हैं। भगवान की कृपा हैं। आज भी हम जीवित हैं मृत नहीं हैं। आज हम इसका हम लाभ उठा सकते हैं।फायदा उठा सकते हैं। गुड मॉर्निंग सुबह शुभ दिन बना सकते हैं। हरि हरि!
परिक्रमा आज मानसरोवर से लोहवन जा रही हैं। छोटा सा अंतर हैं। आज मानसरोवर जहां कल रात्रि का पडा़व रहा मानसरोवर। सरोवर तो वहां है इसलिए सरोवर।मानसरोवर राधा रानी की कुछ मान लीला यहां संपन्न हुई हैं। राधा रानी कभी-कभी मान करती हैं मानिनी बन जाती हैं। मान करने वाली। मानिनी राधा! जय श्री राधे…! मान भी एक मन कि या भाव की अवस्था हैं। मान भी एक प्रेम का प्रकार है कहिए। प्रेम जब और गाढ़ा होता है या प्रेम गाढतर होता है पहुंच गए श्रद्धा से प्रेम तक ऐसे हम कहते रहते हैं। श्रद्धा से अलग अलग सोपान हैं। उसपर चढ़ते है और वो मंजिल हासिल करते हैं। श्रध्दा से प्रेम का स्तर श्रद्धा से प्रेम लेकिन वहां से भी और और ऊंचे स्तर है सिढीया है सोपान है भाव की स्थितियां हैं। प्रेम से अधिक ऊंचा है स्नेह। प्रेम जब गाढ़ा होता है तो उसे स्नेह कहा गया है ओर गाढा़ होता है तो प्रणय कहा गया हैं।
राधा कृष्ण – प्रणय – विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह – भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं राधा – भाव – द्युति – सुवलितं नौमि कृष्ण – स्वरूपम्।।
(चैतन्य चरितामृत आदि लीला अध्याय 1 श्लोक 5)
अनुवाद:-श्री राधा तथा कृष्ण की माधुर्य लीलाएँ भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अभिन्न हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको अनादि काल से पृथक् कर रखा है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में मिलकर एक हो गये हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , जो साक्षात् कृष्ण होते हुए भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति के साथ प्रकट हुए हैं ।
राधा कृष्ण के मध्य का प्रेम एक प्रकार है स्नेह,प्रणय, मान। मान की एक स्थिति हैं। भाव भक्ति हैं। भाव तो और भी उँचा हैं। तकनीकी रूप से कहो भाव से ऊंचा है प्रेम। प्रेम से ऊंचा है स्नेह। स्नेह से ऊंचा हैं।प्रणय से ऊंचा है मान। यहां पर राधा रानी की मान लीला और फिर कृष्ण को उनको मनाना पड़ता हैं कि यह मान जाएगी समझ जाएगी और थोड़ी सहज हो जाएगी और कृष्ण के साथ कुछ वार्तालाप करेगी या कृष्ण के साथ प्रेम का आदान-प्रदान होगा। लीलाएं संपन्न होगी। रासलीला होगी। भगवान के साथ तो बोलने के लिए भी तैयार नहीं थी।रूठ़ जाती हैं। मान करके बैठी हैं। ऐसे मानिनी को मनाने के लिए कृष्ण को क्या-क्या नहीं करना पड़ता। कई सारी युक्तियां तर्क वितर्क कई सारे उपाय कृष्ण ढूंढते हैं। अपनाते हैं ताकि राधा रानी मान जाएगी। यहां तक कि कृष्ण को राधा रानी के चरण पकड़ने पढ़ते हैं।
राधारानी की क्षमा याचना मांगते है, मांगना पड़ता हैं। कृष्ण को यह संबंध की चर्चा। ये मान लीला और उन को मनाना पड़ता हैं राधा को मनाते हैं यह वर्णन जय देव गोस्वामी अपने गीत गोविंद नामक महाकाव्य में किए हैं। उनको यह लिखने का समय आया राधा रानी से निवेदन करते हैं “हे राधे…मैं तुम्हारे चरण छूता हूंँ या तुम्हारे चरणों की धूल मै अपने मस्तक पर उठाता हूंँ। आपके चरण मेरे सिर पर धारण करो। हे राधे..” ऐसा लिखने का समय आ चुका था। उनके गीत गोविंद नामक ग्रंथ में तो जय देव गोस्वामी भी सोच रहे थे कि ,सचमुच ऐसा होता है क्या? ऐसा कृष्ण को कहना पड़ता है? और वह मुझे लिखना चाहिए! नहीं नहीं नहीं!मैं सोचता हूंँ लिखने के पहले। मैं सोचता हूंँ,विचार करता हूंँ। इस गीत गोविंद ग्रंथ की रचना नवद्वीप में गंगा के तट पर हो रही थी और जहां जय देव गोस्वामी अपनी धर्मपत्नी पद्मावती के साथ कुटिया में रहा करते थे। यह सब लिखने का समय आ चुका था लेकिन वह लिखने में सोच रहे थे। लिखूं कि नहीं लिखूं। इस बात पर उन्होंने विचार किया।
चलो मैं गंगा स्नान करके आता हूंँ और फिर विचार करता हूँ लौटने पर लिखना है कि नहीं लिखूंगा । जय देव गोस्वामी स्नान के लिए प्रस्थान किए और कुछ समय के उपरांत बेल(घंटी) बजी वैसे कुटिया में रहते तो बेल(घंटी) नहीं होगी।आवाज किए होंगे। धर्मपत्नी पद्मावती ने द्वार खोला और वह कहते हैं। “क्या मेरा भोजन तैयार है”। देखकर पद्मावती को आश्चर्य लगा कि आप तो कुछ समय पहले आए थे स्नान से लौटे और मैंने आप को भोजन खिलाया। इतना ही नहीं आपने भोजन के उपरांत आप अपने ग्रंथ में कुछ लिख भी लिया और अब कह रहे हो कि मुझे पुनः भोजन खिलावो।यह बात सुनकर जयदेव गोस्वामी को आश्चर्य हुआ क्या कह रही हो, मैं तो अभी अभी, अभी तो आया हूंँ। इसके पहले तो नहीं आया था। सारा जो वर्णन पद्मावती से सुने आप जैसे ही दिखने वाले। मैंने तो सोचा आप ही आए हो। आपको ही मैंने भोजन खिलाया था। आपने ही तो अपने ग्रंथ में कुछ लिखा। जयदेव गोस्वामी यह सारी बातें सुने तो उनको पता चला विशेष रूप से जब उन्होंने ग्रंथों को खोलकर देखा तो दो पंक्तियां जो पंक्तियां मै लिखू के नहीं लिखू सोच रहा था। उन्होंने देखा कि किसी ने वह बात यह इस ग्रंथ में लिखी हुई हैं।
स्मर-गरल-खण्डनं मम शिरसि मण्डनं देहि पद-पल्लवमुदारम्।
ज्वलति मयि दारुणो मदन-कदनानलो हरतु तदुपाहितविकारम् ॥
प्रिये चारुशीले…. ॥
(गीत गोविन्द जयदेव विरचित 10.8)
अनुवाद-हे प्रिये! अपने मनोहर चरण किसलयको मेरे
मस्तकपर आभूषण-स्वरूप अर्पण कराओ। जिससे मुझे
जर्जरित करनेवाला यह अनङ्गरूप गरल प्रशमित हो जाय,
मदन यातना रूप निदारुण जो अनल मुझे संतप्त कर रहा
है, उससे वह दाहजन्य उत्पन्न विकार भी शान्त हो जाय।
स्मर-गरल-खण्डनं मम शिरसि मण्डनं देहि पद-पल्लवमुदारम्।
हे राधे तुम अपने उदार बनो और क्या करो तुम्हारा चरण कमल मेरे सिर पर रखो।ऐसा वचन जयदेव गोस्वामी ने देखा कि वह लिखा हुआ है तो फिर क्या कहना। वह समझ गए लिखने वाले स्वयं भगवान थें। हां यह बात सही है कई बार ऐसा करना ही तो पड़ता हैं। मैं करता हूंँ प्रार्थना करता हूंँ राधा रानी से मैं क्या-क्या नहीं करता। तुम को मनाने के लिए मेरी नीत्य लीला में होता ही रहता हैं।हरि हरि!
यह असाधारण बात हैं। यह बातें तो गोपनीय और रहस्यमयी हैं मैं भगवान को जानता हूंँ। मैं भगवान को जानता हूंँ। मुझे पता है यह बातें भगवान की ही हैं। राधा और कृष्ण,किशोर-किशोरी के मध्य प्रेम का आदान-प्रदान या अलग-अलग लीला, अलग-अलग भाव, अलग-अलग प्रेम के स्तर और प्रेमवैचीत्र ये भी एक नाम हैं। स्नेह, प्रणय , मान और भी हैं। भाव। महा भाव, राग अनुराग, राग भी एक प्रेम की स्थिति हैं। प्रेम का प्रकार है राग फिर अनुराग फिर भाव और महाभाव। महाभावा राधा ठकुरानी इस महाभाव को केवल राधा रानी ही प्रदर्शित कर सकती हैं। वैसे जगन्नाथपुरी में सार्वभौम भट्टाचार्य जब चैतन्य महाप्रभु सर्वप्रथम जगन्नाथ के दर्शन के लिए आए और फिर भाव विभोर हुए और सार्वभौम भट्टाचार्य उन्हें अपने निवास स्थान लेकर गए और परीक्षा कर रहे थे कि यह भाव या भक्ति का विकार का जो प्रदर्शन हो रहा हैं।भक्ती के अष्टक विकार यह असली है या नकली हैं। एक तो उन्होंने निश्चित किया कि यह केवल असली ही नहीं यह भाव क्या भाव भक्ति की पराकाष्ठा हैं और यह भाव तो महा भाव है और केवल राधारानी ही ऐसा भाव व्यक्त कर सकती हैं। प्रकट कर सकती हैं।
श्री कृष्णचैतन्य राधा कृष्ण नहे अन्य (चैतन्य भागवत)
अनुवाद:- भगवान चैतन्य महाप्रभु अन्य कोई नहीं वरन् श्री श्री राधा और कृष्ण के संयुक्त रूप हैं।
चैतन्य महाप्रभु जब जगन्नाथ का दर्शन कर रहे थे तो जगन्नाथ हैं कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु हैं वो राधा रानी हैं। उस राधा रानी ने अपना भाव प्रकट किया हैं। सार्वभौम भट्टाचार्य ने कहा ही यह भाव महाभाव हैं। यह राधा रानी का भाव हैं।गोपी का भी नही। गोपीयो से भी उंची भक्ति राधा रानी कि हैं।औरों कीभी भक्ति हैं। वास्यल्य रस में या साख्य रस में या दास्य रस में या अन्य रसो में इन सभी रसों में सर्वोपरि हैं। माधुर्य रस और माधुर्य भाव और उस भाव को प्रकट करने वाली पूर्ण विकसित भाव राधा रानी में ही प्रकट होता हैं। ऐसे भाव, ऐसा प्रेम, ऐसा मान या मानसरोवर तट पर संत्पन्न हुआ। हरि हरि!
मानसरोवर की जय…!
किशोर-किशोरी की जय…!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल…!
और भी बातें हैं। परिक्रमा की जिसको आप आज के परिक्रमा वीडियो में देखिए, सुनिए और उसके बाद ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ में पढ़िए और भी प्रोसेस हैं। भागवत को पढ़िए। श्रील प्रभुपाद का कृष्ण बुक पढ़िए।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल…!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
दिनांक २५ नवम्बर २०२०
हरे कृष्ण!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! आज 728 स्थानों से प्रतिभागी जप कर रहे हैं। हरि बोल!
आप कहाँ हो? घर में बैठे हो या परिक्रमा में पहुंच गए। परिक्रमा तो प्रारंभ हो गयी है। हरि! हरि! ब्रज मण्डल की जय! आजकल जपा टॉक में हमारे यही टॉपिक( विषय) चल रहे हैं। ब्रज मंडल परिक्रमा या ब्रज मंडल विषय या राधा कृष्ण विषय या राधा कृष्ण के नाम का विषय कहो या रूप अथवा गुण अथवा लीला का विषय कहो। धाम का विषय तो है ही। ब्रज मंडल वृंदावन धाम की जय! हरि! हरि!
हम परिक्रमा में ज्वाइन भी करते हैं ताकि हम इन टॉपिक्स के विषय में सुन सके।
श्रीराधिका-माधवयोर्अपार- माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम् प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥5॥
( श्री श्री गुर्वाष्टक)
अर्थ:- श्रीगुरुदेव श्रीराधा-माधव के अनन्त गुण, रूप तथा मधुर लीलाओं के विषय में श्रवण व कीर्तन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसास्वादन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसास्वादन करने की आकांक्षा करते हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
हमारे पूर्ववर्ती आचार्य भी ऐसा करते रहे हैं इसीलिए वे प्रसिद्ध हैं।
श्रीराधिका-माधवयोर्अपार- श्री राधा माधव की माधुर्य, अपार, अनन्त लीला। वह भी माधुर्य लीला है। श्रीराधिका-माधवयोर्अपार –
श्री वृंदावन में केवल सिर्फ माधुर्य लीला ही संपन्न होती है या माधुर्य लीला का प्राधान्य है। माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम् अर्थात माधुर्य-लीला के गुणों का वर्णन, सौंदर्य का वर्णन प्रसिद्ध है। कोई तुलना ही नहीं है। श्रीराम भी, श्री कृष्ण की बराबरी नहीं कर सकते हैं। हम उनके सौंदर्य की बात करते हैं। ‘गुण-रूप-नाम्नाम्’ – नाम तो है ही।
कृष्ण जिनका नाम है,
गोकुल जिनका धाम है।
तुण्डे ताण्डविनी रतिं वितनुते तुण्डावली – लब्धये कर्ण – क्रोड – कड़म्बिनी घटयते कर्णार्बुदेभ्यः स्पृहाम् । चेत : -प्राङ्गण – सङ्गिनी विजयते सर्वेन्द्रियाणां कृति नो जाने जनिता कियद्भिरमृतैः कृष्णेति वर्ण – द्वयी ॥९९ ॥
अनुवाद ” मैं नहीं जानता हूँ कि कृष् – ण ‘ के दो अक्षरों ने कितना अमृत उत्पन्न किया है । जब कृष्ण के पवित्र नाम का उच्चारण किया जाता है , तो यह मुख के भीतर नृत्य करता प्रतीत होता है । तब हमें अनेकानेक मुखों की इच्छा होने लगती है। जब वही नाम कानों के छिद्रों में प्रविष्ट होता है , तो हमारी इच्छा करोड़ों कानों के लिए होने लगती है। और जब यह नाम हृदय के आँगन में नृत्य करता है , तब यह मन की गतिविधियों को जीत लेता है , जिससे सारी इन्द्रियाँ जड़ हो जाती हैं । “
रूप गोस्वामी कहते हैं नो जाने जनिता कियद्भिरमृतैः कृष्णेति वर्ण – द्वयी अर्थात यह नाम ना जाने कितना सारे अमृत से युक्त है। वर्ण – द्वयी कृष् एक वर्ण हुआ और ण् दूसरा वर्ण हुआ। कृष्णेति वर्ण – द्वयी।
हरि! हरि!
ब्रज मंडल परिक्रमा में यही चर्चाएं होती हैं। हम इस चर्चा के श्रवण के लिए ही परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा का मुख्य उद्देश्य यही है कि हम यहां पहुंच गए, वहां पहुंच गए, वहां पहुंच गए,… वहां भगवान् की लीला कथा का श्रवण करो। भगवान ने वहाँ कुछ विशेष गुणों का दर्शन प्रदर्शन किया है, उसको सुनो।
‘केशी घाट’ पर नहीं जाना। यदि गए तो वहां कृष्ण का दर्शन नहीं करना। वैसे आपकी मर्जी है, आप कर सकते हो लेकिन यदि कृष्ण का दर्शन करोगे तो फिर सारा संसार आपके लिए समाप्त हो जाएगा। सारे संसार को खो बैठोगे। आप परिक्रमा में आए हो लेकिन यदि आपने कृष्ण का दर्शन केशी घाट पर किया या यहां किया या वहां किया, तब आप दिल्ली नहीं लौट पाओगे और ना ही नागपुर लौटने या कहीं आने जाने अथवा लौटने का विचार नहीं होगा। यदि ऐसा विचार चाहते हो तब आप ब्रज मंडल में जरूर जाओ और भगवान का दर्शन जी भर कर करो।
परिक्रमा का उद्देश्य श्रवण कीर्तन है। श्रवण कीर्तन का उद्देश्य विष्णु स्मरण है।
श्रीप्रह्लाद उवाच श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥२३ ॥ इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥२४ ॥
अनुवाद:-
प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज – सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना , उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना , भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना , भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा , कर्मणा उनकी सेवा करना ) -शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है ।
केवल स्मरण ही नहीं अपितु भगवान का दर्शन करना भी उद्देश्य है। हम परिक्रमा में जा रहे हैं क्योंकि हम भगवान से मिलना चाहते हैं। भगवान का दर्शन करना चाहते हैं। कहां मिलेंगे? कहां मिलेंगे? हम इस उद्देश्य और इस आशा के साथ वनात वनम अर्थात एक वन से दूसरे वन, दूसरे वन से तीसरे वन… जैसे गोपियां खोज रही थी, उसी भाव के साथ हम रागानुग भक्ति करते हैं। हम रागानुग भक्ति का अवलंबन करते हैं। जब हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं और श्रवण करते हैं। तब हम श्रवण के साथ स्मरण और दर्शन करना चाहते हैं, तब यही रागानुग भक्ति भी है। हम कल माट में थे। कल रात्रि पड़ाव का स्थान माट था। जहां पर मिट्टी के पात्र बनाए जाते हैं। वह स्थान माट कहलाता है। भांडीरवन में माट है। वहां बने हुए मिट्टी के पात्रों को सारे ब्रज में एक्सपोर्ट या बिक्री अथवा वितरण करते होंगे अथवा फैलाते होंगे।
ब्रजवासी का जीवन बड़ा सादा जीवन नैसर्गिक जीवन होता है। नैसर्गिक जो उत्पादन है अर्थात पात्र अथवा बर्तन अथवा घड़े हैं, उसका बहुत उपयोग होता है। बृजवासी उसका बहुत उपयोग करते थे और आज भी उसका प्रयोग नित्य लीला में करते हैं। हम भी जब गांव में जन्मे थे। हमनें भी गांव में मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया। मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकता था। मिट्टी के बर्तनों में बने भोजन की तुलना अन्य पात्रों में बने हुए भोजन से नहीं की जा सकती। जगन्नाथ पुरी में जगन्नाथ जी का भोजन इतना सारा बनता है, वह मिट्टी के बर्तनों में ही बनता है। इस प्रकार ब्रज वासियों का सिंपल लिविंग, नेचुरल लिविंग प्रकृति पर निर्भर रहा करते थे। इसलिए उनका जीवन स्वस्थ भी रहता था।
यदि हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जा रहे हैं, हमें यह भी सीखना होगा। ब्रज वासियों का स्वभाविक नैसर्गिक जीवन है, वे सीधे सादे भोले भाले ब्रजवासी हैं। हम तो चालू लोग हैं। हम कब भोले भाले बनेगें। गोपियां भोली भाली व सरल हैं। वहां के गुणों से प्रभावित होकर भक्तों के स्वभाव के संबंध में सुनकर हम प्रभावित होना होगा। हमें संकल्प लेना चाहिए कि मैं यह करूंगा, यह नहीं करूंगा, मेरा स्पेशली सिंपल लिविंग होगा हाई थिंकिंग होगा। माट में सादा जीवन की भी कुछ शिक्षा मिलती है। ओके। हमने वह पाठ पढ़ लिया, सीख लिया। आशा है कि आप कुछ सीखे अथवा समझे हो। कोई संकल्प भी किया होगा। आगे बढ़ते हैं,आज प्रातः काल माट से परिक्रमा प्रारंभ हुई। आज वैसे परिक्रमा माट से मानसरोवर तक जाएगी। रास्ते में हम रुकेंगे या मान लो कि हम पहुंच गए हैं।
हम लगभग 7:00 बजे दूसरे स्थान बेलवन पहुंच ही जाते हैं। हमनें एक नए वन में भी प्रवेश किया। हम भांडीरवन अथवा भद्र वन में थे। यमुना को पार किया।भद्र बन में थे, भद्र वन से भांडीरवन में हम पहुंचे और आज प्रातः काल बेलवन में आ गए। यह दसवां वन है। इस वन को श्रीवन भी कहते हैं। वैसे कठिन भी होता है। एक वन समाप्त हुआ, दूसरा वन प्रारंभ हुआ। विधि के अनुसार हम नए वन में प्रवेश करते समय पिछले वन को प्रणाम करते हैं और फिर विनम्र भाव के साथ नए वन में प्रवेश करते हैं।
मायापुर में, नवद्वीप के रुद्रद्वीप में एक बेलपुकुर नाम का स्थान है।
पुकुर मतलब सरोवर या तालाब। पुकुर एक बंगला शब्द है। पुकुर कई सारे पुकुर होते हैं। वहाँ बेलपुकुर नाम का स्थान है। वह बेलपुकुर वृंदावन का बेलवन है क्योंकि वृंदावन और मायापुर दो अलग धाम नहीं है। यह एक ही है, इन दोनों धामों में काफी समानता है। वृंदावन का बेलवन मायापुर , नवद्वीप का बेलपुकुर। अन्य भी कई सारे संबंध है। यह वृंदावन की स्थली और वृंदावन का गोकुल, मायापुर का योगपीठ है। मथुरा, वृंदावन की नवद्वीप में चांद कांजी की समाधी जहाँ है। हरि! हरि!
बेलपुकुर अथवा बेलवन में भगवान् बेल के फल के साथ खेलते भी थे। वे बेल को ही गेंद बनाते और अपने मित्रों के साथ खेलते थे। हरि! हरि! वे बेल को खाते भी होंगे। बेल जूस बड़ा लाभदायक होता है। हरि हरि! बेल के पत्तों का उपयोग शिवजी की अर्चना में होता है। जैसे तुलसी, कृष्ण या विष्णुतत्वों के चरणों में अर्पित की जाती है। वैसे ही बेल को शिवजी के चरणों या शिवजी की सेवा अथवा अर्चना में अर्पित करते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात इस बेलवन की है। इस बेलवन को श्रीवन भी कहते हैं अर्थात बेलवन का दूसरा नाम श्रीवन भी है। यह श्री अथवा लक्ष्मी का वन है। यहाँ लक्ष्मी बहुत समय से तपस्या
कर रही है। हम 34 वर्षों से परिक्रमा आ-जा ही रहे हैं, तब से हम देख ही रहे हैं इतना ही नहीं जब ५०० वर्ष पूर्व चैतन्य महाप्रभु परिक्रमा में गए तब परिक्रमा करने के पहले ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस बेलवन की लीला कथा वैंकट भट्ट के साथ कर रहे थे। वैंकट भट्ट, जो गोपाल भट्ट गोस्वामी के पिताश्री थे, उनके साथ श्री चैतन्य महाप्रभु श्रीवन की चर्चा कर रहे थे। लक्ष्मी नित्य ही इस वन में इस आशा में उनकी तपस्या कर रही हैं कि उनका भी माधुर्य लीला अथवा रास क्रीड़ा में प्रवेश हो लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही हैं। श्री रंगम में चैतन्य महाप्रभु ने वैंकट भट्ट के साथ इसकी चर्चा की।
आप चैतन्य चरितामृत में पढ़िएगा, यह बड़ा मधुर संवाद है और इसमें गहरा तत्व भी छिपा हुआ है। यदि आप उसको पढ़ोगे, उस गोपनीय तत्व के रहस्य का उदघाटन होगा। संक्षिप्त में हम इतना ही कह सकते हैं, यह आपके लिए होमवर्क है। आप इसे चैतन्य चरितामृत की मध्य लीला के 7 या 8 वें अध्याय में पढ़ सकते हो। चैतन्य महाप्रभु की दक्षिण भारत की यात्रा नामक एक बड़ा अध्याय है। चैतन्य महाप्रभु जब श्रीरंगम में थे, वहाँ का वर्णन आप पढ़िएगा। आप नोट करो और उसे पढ़ो, इन बातों को थोड़ा समझो। हमें केवल तत्वों को समझना है। लीला तो सुन ली
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || (श्रीमद भगवद्गीता 4.9)
अनुवाद: हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है।
भगवान् कहते हैं कि मेरे जन्म की लीला, कर्म और लीलाओं को तत्त्वत: जानना चाहिए। तत्त्वत: जानने वाले ही लीला को तत्त्वत: जानना है। फिर उसका फल है
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन अर्थात भगवद्धाम लौटेंगे। भगवत प्राप्ति होगी। यही हमारे आचार्य सिखाते हैं वे तत्व, सिद्धान्त ,भक्ति सिद्धान्त या भक्ति वेदान्त सिखाते हैं। संक्षिप्त में सबक, सीख अथवा तत्व यह है। लक्ष्मी तपस्या तो कर रही हैं किंतु उनको कृष्ण प्राप्ति नहीं हो रही है। उनको भगवान की माधुर्य लीलाओं में रास क्रीड़ा में प्रवेश प्राप्त नहीं हो रहा है। लक्ष्मी क्या गलती कर रही हैं? अर्थात उनका क्या कसूर है? उनकी साधना अथवा तपस्या में क्या त्रुटि रह रही है?
चैतन्य महाप्रभु और वैंकट भट्ट के संवाद में आप पढ़ोगे, चैतन्य महाप्रभु समझाते हैं कि वह सेवा नही करती। हे राधाकृष्ण, मुझे
सेवा अधिकारी दीजिये और मुझे अपनी सेविका बनाएं।
एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर। सेवा-अधिकार दिये कर निज दासी।।
( तुलसी वंदना)
अर्थ:-आपके चरणों में मेरा यही निवेदन है कि मुझे किसी ब्रजगोपी की अनुचरी बना दीजिए तथा सेवा का अधिकार देकर मुझे आपकी निज दासी बनने का अवसर दीजिए।
जब हम प्रतिदिन तुलसी आरती गाते हैं, आप गाते हो या नहीं? गाना चाहिए। तुलसी की आरती करनी चाहिए।
श्रील प्रभुपाद ने गौड़ीय वैष्णव परम्परा में हमें यह सिखाया की तुलसी की आराधना अथवा अर्चना अनिवार्य है। जब हम तुलसी की आरती गाते हैं तब हम कहते हैं कि ‘एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर’ अर्थात हे तुलसी महारानी, यह मेरा निवेदन है कि मुझे राधा रानी, सखियों, गोपियों , मंजिरियों का अनुगतय प्राप्त हो।
वैसे और भाव वाले भी भक्त हैं, उनका अनुगतय भी है, वो भी बातें हैं ही। हरि! हरि! अनुगत अर्थात किसी का अनुसरण करना। उसको ही अनुगतय कहते हैं। अनु मतलब पीछे जाना अथवा अनुसरण करना। किसी का अनुसरण करना, अनुगतय कहलाता है। लक्ष्मी ऐसा अनुगतय स्वीकार नही करती है। हरि! हरि!
यदि वृंदावन में आराधना करनी है तो ब्रजेन्द्रनंदन की आराधना या फिर राधा कृष्ण की आराधना करनी होगी। इस रासक्रीड़ा में प्रवेश के लिए दो बातों की आवश्यकता है।
राधा कृष्ण – प्रणय – विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह – भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं राधा- भाव – द्युति – सुवलितं नौमि कृष्ण – स्वरूपम् ॥
( श्री चैतन्य चरितामृत आदि लीला श्लोक १.५)
अनुवाद ” श्री राधा और कृष्ण के प्रेम – व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है। अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं।”
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी राधा भाव को जानना चाहते थे, इसलिए भगवान प्रकट हुए थे। कई सारी बातें कही जा रही हैं। सभी सम्बंधित हैं, इसलिए भी कही जा रही हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, राधा भाव अर्थात राधा को जानना चाह रहे थे। वे राधा का अनुगतय चाहते थे इसलिए भगवान ने राधाभाव को अपनाया। उन्होंने केवल राधाभाव ही नहीं, राधा की कांति अथवा रुप को भी अपनाया। पूरे रूप को तो नहीं, कांति को अपनाया इसलिए चैतन्य महाप्रभु, गौरांग बन गए, गौरांगी राधा की अंग की कांति को अपनाया, लक्ष्मी यह नहीं कर रही हैं। वह राधाभाव अथवा गोपी भाव को नहीं अपना रही हैं।
अपना ही लक्ष्मी का रूप, सौन्दर्य, आभूषण अथवा वैभव है, वह उसको भी त्यागना नहीं चाह रही है। जैसे गोपियां भोली भाली होती हैं। हरि! हरि! उनके भावों का क्या कहना, जब वे मुरली की नाद् को सुनती हैं तब सब ठप्प हो जाता है।यदि वस्त्र पहनने हैं, तब वो भी उल्टे सुलटे पहनती हैं क्योंकि उन्हें कृष्ण के पास जाना है, वह दौड़ना प्रारंभ करती हैं, लेकिन लक्ष्मी ऐसा नहीं करती। यदि भगवान् मुरली बजा रहे हैं, बजाने दो, अभी मैं तैयार नहीं हूं। मेरा पूरा श्रृंगार नहीं हुआ है। आइने के सामने बैठी रहेगी। साज श्रृंगार चल रहा है, मैं तैयार नहीं हूं।’ भाव में अंतर है। दो बातों की आवश्यकता है, एक भाव और रुप भी। गोपी जैसा रुप भी, आज ही हम आगे बढ़ेगें। आज का पड़ाव वैसे मान सरोवर में हैं। वहाँ पर शिवजी पहुंचे। वे भी कृष्ण की रासलीला में प्रवेश करना चाह रहे थे। तब उन्हें, जहाँ रास क्रीड़ा सम्पन्न हो रही थी, के द्वार पर रोका गया था। गोपियां- कहाँ जा रहे हो? शिव जी बोले- रास क्रीड़ा में। गोपियां बोली- ऐसी वेषभूषा के साथ, आप मुंड माला पहने हो, कानों में बिच्छु लटक रहे हैं और गले में सर्प है, ऐसे रास क्रीड़ा में जाओगे?
नहीं! सम्भव नहीं है। यदि आपका रुप गोपी जैसा है, तभी सम्भव है। गोपियों ने उनको वहाँ एक सरोवर दिखाया। मान सरोवर- यहाँ स्नान करो, तब आप गोपी जैसे रुप को प्राप्त करोगे। फिर आ जाना, आपको अनुमति है, तब शिवजी ने वैसा ही किया। मानसरोवर में डुबकी लगाई, तब सु-स्वागतम । तब शिवजी गोपेश्वर महादेव बने, उनका नाम गोपेश्वर हुआ। वे भी अन्य गोपियों के संग कृष्ण के साथ रास क्रीड़ा खेलें। गोपी जैसा भाव और गोपी जैसा रुप आवश्यक अथवा अनिवार्य है। यह सीखो और समझो। हमारी परंपरा और भक्ति का जो प्रकार है अर्थात हम जो भक्ति करते हैं, उस भक्ति का नाम ही रागानुग भक्ति साधन है। एक वैधी भक्ति होती है – विधि विधानों वाली। दूसरी यह रागानुग- किसी भक्त को अपना आदर्श मान कर समझ कर, उनके चरण कमलों का अनुसरण करते हुए भक्ति करना अर्थात भाव भक्ति करना। वह भाव सख्य भाव या वात्सल्य भाव या माधुर्य भाव भी हो सकता है।
यह भाव कहो या रस कहो। एक ही बात है। माधुर्य रस या वात्सल्य रस या सांख्य रस या भक्ति कहो। माधुर्य भक्ति या वात्सल्य भक्ति या सांख्य भक्ति। वैसे गौड़ीय वैष्णव परम्परा की जो शिक्षाएं है, उससे वृंदावन में प्रवेश है, गोलोक में प्रवेश है। कई सारे वैकुंठ धाम पड़े हैं वहाँ। वहाँ भी जा सकते हो और जाते हैं किन्तु हम गौड़ीय वैष्णव, ब्रज मंडल की परिक्रमा कर रहे हैं। कई सारे धार्मिक लोग या साधक या अन्य परम्परा वाले या श्री परम्परा वाले उनको ब्रजमंडल से ज़्यादा प्रेम नहीं है। वे वैसे भागवत को स्वीकार तो करते हैं लेकिन भागवत पुराण के बजाय विष्णु पुराण ही पढ़ते रहेंगे। वैंकट भट्ट जिनके साथ चैतन्य महाप्रभु का संवाद हुआ था, वे भी लक्ष्मी नारायण के भक्त थे। इसलिए भी चैतन्य महाप्रभु ने उनसे कहा- तुम्हारी लक्ष्मी, हमारे कृष्ण का संग चाहती है। यह उचित नही है, अपने पति नारायण को छोड़कर वह कृष्ण का संग चाहती है। कृष्ण को चाहती है, क्या यह सही है? इसमें पतिव्रत्य तो नही रहा। इस प्रकार हास्य विनोद् की भाषा में दोषारोपण हो रहा था। हरि! हरि!
समय तो हो गया। आप ब्रज मंडल दर्शन को पढ़ लो। आपके पास ब्रज मंडल दर्शन है? कितने हैं? दो हैं, दोनों के पास एक एक है, एक ही पर्याप्त है। जिनके पास नही है , वो प्राप्त करो। ब्रज मंडल दर्शन पुस्तक अब हिंदी में उपलब्ध है लेकिन मराठी में अभी तक नहीं बना है लेकिन रशियन भाषा में प्रिन्ट होने जा रहा है। बंगाली मे स्क्रिप्ट तैयार है और नेपाली भाषा में भाषान्तर हो रहा है। स्पेनिश और हिब्रू ऐसे ही कुछ ६-७ भाषाओं में ब्रजमण्डल दर्शन का अनुवाद हो रहा है या हो चुका है या प्रिंटिंग होने जा रहा है। उस ग्रंथ को यदि नहीं है, तो स्वीकार करो अथवा प्राप्त करो।
मान सरोवर का नाम मान सरोवर क्यों पड़ा? यह भी आप उस ग्रंथ को पढ़ कर पता लगवा सकते हो।
वैसे श्रील गौर किशोर दास बाबा जी महाराज का तिरोभाव तिथि महोत्सव भी आज ही है।
नमो गौरकिशोराय साक्षाद्वैराग्यमूर्तये । विप्रलम्भरसाम्बोधे पादाम्बुजाय ते नमः ।।
(श्रील गौरकिशोरदास बाबाजी प्रणति मंत्र)
अर्थ:- मैं श्रील गौर किशोर दास बाबा जी महाराज के चरणकमलों को सादर प्रणाम करता हूँ, जो साक्षात त्याग- स्वरूप हैं। वे हमेशा कृष्ण के वियोग तथा गहन प्रेम में तल्लीन रहते हैं।
हम उनके चरणों में ऐसी प्रार्थना करते हैं।गौरकिशोरदास बाबाजी महाराज वैराग्य की मूर्ति थे। वे वैराग्यवान थे।
नमो गौरकिशोराय साक्षाद्वैराग्यमूर्तये – वे साक्षात वैराग्य की मूर्ति थे।विप्रलम्भरसाम्बोधे-विप्रलम्भ नाम की एक स्थिति है, जो कि सर्वोच्च स्थिति है। वे ऐसी स्थिति अथवा भावों को प्राप्त थे अथवा अनुभव किया करते थे। वह विरह की अवस्था में भगवान् के विरह का अनुभव किया करते थे। वैसे हम गौडीय वैष्णव विप्रलम्भ अवस्था – विरह तीव्र अर्थात
जब विरह भाव की तीव्रता का अनुभव करते हैं उसे विप्रलम्भ कहते हैं। योग( मिलन) और वियोग या संभोग या फिर कोई विप्रलम्भ।
संभोग- जब हम भगवान के साथ मिलते हैं अथवा मिलन होता है, तब आलिंगन भी हो सकता है, जब भगवान का अंग संग प्राप्त हो रहा है वह भी एक स्थिति है उसको हम संभोग कहो या मिलन या मिलन का आनंद कहा जाए।
इतीद्दक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्। तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥3॥
अर्थ:- जो ऐसी बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनन्द-सरोवरों में डुबोते रहते हैं, और अपने ऐश्वर्य-ज्ञान में मग्न अपने भावों के प्रति यह तथ्य प्रकाशित करते हैं कि उन्हें भय-आदर की धारणाओं से मुक्त अंतरंग प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता है, उन भगवान् दामोदर को मं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ।
लीलाओं के श्रवण से या कृष्ण के साथ मिलन से आनंद के कुंड भर जाते हैं। उससे भी उच्च स्तर अवस्था है-भावों की अवस्था। वह विप्रलम्भ अवस्था कहलाती है जिसका अनुभव भक्त वियोग में करते हैं। हमारे आचार्य गौर किशोर दास बाबाजी महाराज भी ऐसी विप्रलम्भ मन की स्थिति में ही तल्लीन रहा करते थे। यह अवस्था कृष्ण चेतना की उच्च अवस्था स्थिति है भाव भक्ति है। विप्रलम्भरसाम्बोधे अर्थात रस का सागर अथवा प्रेम के सागर में गोते लगाया करते थे। पादाम्बुजाय ते नमः ऐसे श्रील गौर किशोर दास बाबा जी महाराज के चरण कमल पादाम्बुज चरणारविन्द में हमारा नमस्कार प्रणाम।
जे आनिल प्रेमधन करुणा प्रचुर। हेन प्रभु कोथा गेला गौर किशोर ठाकुर॥1॥
अर्थ:- अहो! जो अप्राकृत प्रेम का धन लेकर आये थे तथा जो करुणा के भंडार थे ऐसे आचार्य ठाकुर (श्रीनिवासआचार्य) कहाँ चले गये?
गौर किशोर ठाकुर ने आज के ही दिन प्रस्थान किया था। आज का दिन उनका तिरोभाव दिवस है। वैसे उनकी समाधि मायापुर में है। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर उनके शिष्य थे। गौड़ीय मठ के संस्थापक श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के मुख्यालय जो कि इस्कॉन मंदिर से कुछ ही दूरी पर है योगपीठ से आधा किलोमीटर दूर होगा, वहां अपने गुरुदेव गौर किशोर बाबा जी महाराज को समाधिस्त किया अर्थात वहां उनका समाधि मंदिर बनवाया और उनकी समाधि स्थापित की। वैसे तो उनकी वपू मायापुर समाधि में स्थापित हुई है लेकिन गौर किशोर दास बाबा जी महाराज की पुष्प समाधि राधा कुंड के तट पर है, जहां श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर गौड़ीय मठों में से एक मठ की स्थापना की। उन्होंने 64 मठ स्थापित किए। उनमें से एक मठ भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने राधा कुंड के तट पर स्थापित किया था । उस राधा कुंड पर स्थापित गौड़ीय मठ में श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज ने गौर किशोर दास बाबाजी महाराज की पुष्प समाधि भी की। गौर किशोर महाराज बृजवासी बने। वह साधन भक्ति कर रहे थे किंतु फिर वे वृंदावन से मायापुर नवद्वीप गए और नवद्वीप में ही रहे। दोनों धाम ब्रज धाम और नवद्वीप धाम के साथ गौर किशोर दास बाबा जी महाराज का संबंध रहा। वे इन दोनों धामों में रहे। इसलिए भी हम कह सकते हैं कि श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने अपने गुरु महाराज की समाधि नवद्वीप में भी और ब्रज मंडल में भी स्थापित की है। ठीक है।
हम यहां वाणी को विराम देते हैं।
गौर किशोर दास बाबाजी महाराज की जय!
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
24 नवम्बर 2020
पंढरपूर धाम..
श्री श्री गुरू गौरांग जयत: ..
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
701 स्थानो से आज जप हो रहा है ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
जय जय राधे जय जय श्याम ।
जय जय श्री वृंदावन धाम ।।
जय जय राधे जय जय श्याम ।
जय जय हो वृंदावन धाम ।।
जय राधे । लिलाप्रिया गा रही है और कोई तो गाता हुआ नहीं दिख रहा है । हरि हरि ।
जय जय राधे गाओ अभी । जप में तल्लीन है अच्छा हैं , जप चर्चा मे तल्लीन होना चाहिए । कार्तिक मास है , ब्रजमंडल परिक्रमा हो रही है और आप भी कर रहे हैं । आप भी जुड़े हो । हो कि नहीं ? परिक्रमा में हो कि नहीं ? हरि हरि । चौरासी कोस की परिक्रमा है । चौरासी कोस परिक्रमा करने से 86 लाख जो योनिया है उसमें पुन्हा भ्रमण नहीं करना पड़ता है । पहले ही भ्रमण हो चुका है , कितने भ्रमण हो चुके है ? एक तो हो ही चुका है । किंतु अगर हम चाहते हैं कि पुन्ना पुन्ना ना हो ।
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं ।
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ।।
(- शंकराचार्यजी द्वारा रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21)
अनुवाद : हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।
ऐसा ना हो और भ्रमांड भ्रमिते , भ्रमांड भ्रमन , इस संसार का चक्र , हरी हरी ।
जन्म मृत्यु जरा व्याधि फिर ऐसा नहीं भोगना पड़े । हम नहीं चाहते हैं ऐसे दुख पुनः आये और भगवान ने ऐसी व्यवस्था की है अपना धाम भी वह लेकर आए हैं । गोलोक धाम हो , ब्रह्मांड में स्थापित किया है । हरि हरि । उस गोलोक की , वृंदावन की यात्रा और परिक्रमा हम कर सकते हैं , चौरासी कोस में भी वैसे यह अधिक ही है कुछ लोग अधिक भी परिक्रमा करते हैं , कर चुके हैं । गोवर्धन परिक्रमा , और भी परिक्रमा । हरि हरि । औपचारिक रूप से तो चौरासी कोस के नाम से ही यह परिक्रमा जानी जाती है । भगवान की कृपा से यह कैसे हैं , साधु शास्त्र आचार्य और कर्म की व्यवस्था , शास्त्र की व्यवस्था भगवान ने ही की है । भगवान ने शास्त्र दिए हैं , भगवान ने कर्म दिया है और भगवान ने ही परंपरा की स्थापना इस संसार में की हुई है और परंपरा के आचार्य गुरुवृंद भी हमको शास्त्र पढ़ाते हैं , सुनाते है और कुछ धार्मिक कृत्य करवाते हैं । वैसे ब्रज मंडल परिक्रमा करना ,
स वै पुंसां परो धर्मों यतो भक्तिरधोक्षजे ।
अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति ॥
(श्रीमद भागवत 1.2.6)
अनुवाद : सम्पूर्ण मानवता के लिए परम वृत्ति (धर्म) वही है, जिसके द्वारा सारे मनुष्य दिव्य भगवान् की प्रेमा-भक्ति प्राप्त कर सकें। ऐसी भक्ति अकारण तथा अखण्ड होनी चाहिए
जिससे आत्मा पूर्ण रूप से तुष्ट हो सके।
परो धर्म है । हम क्या कर रहे हैं ? भगवान कर रहे हैं भगवान करवा रहे हैं ।मराठी में बोलते हैं करता करविता कर रहे हैं , करवा रहे हैं हमसे यह परिक्रमा भी वही करवा रहे हैं । हमने परिक्रमा करनी चाहिए इसलिए ऐसा भगवान के मुख से निकल रहा है और ऐसा करने से यह 84 लाख योनिया जो है 84 लाख और कई योनियों से बच सकते हैं । पुनर्जन्म नयती । पुनर्जन्म नहीं , पुनर्जन्म नहीं । ऐसा संभव है जब हम इस ब्रजमंडल जैसी परिक्रमा की व्यवस्था का लाभ उठाते हैं । हम भी जुड़ जाते हैं और (हंसते हुए) इस वर्ष तो भगवान ने और भी कृपा करि है कहो , हम घर पर बैठे-बैठे परिक्रमा से जुड़ रहे हैं । ठीक है । यह तो बहुत ही सुलभ हो चुका है । कुछ ज्यादा जरूरत नहीं थी ।हरि हरि ।
परिक्रमा का पड़ाव भांडीरवन में हुआ । हम भांडीरवन में है , भांडीरवन की जय । भांडीरवन भी एक विशेष वन है जहां कई सारी विशेष विशेष विशेष लीलाएं संपन्न हुई है और राधा कृष्ण का विवाह इसी वन में संपन्न हुआ है । नंद महाराज एक दिन कन्हैया को बाल कृष्ण को साथ लेकर गाय चराने के लिए इस वन में पहुंचे । गाय चर ही रही थी भांडीरवन में नंद बाबा स्वयं रखवाली कर रहे थे , नंद गोधन रखवाला तभी तो कृष्ण कन्हैया थे जन्मे थे , छोटे ही थे आगे भविष्य में स्वयं संभालेंगे , कृष्ण ग्वाले बनेंगे और गायों को चरायेंगे , गोचारण लीला करेंगे लेकिन तब तो कृष्ण छोटे ही थे । एक समय नंद महाराज कृष्ण को यहां लेकर आए और प्रेम कर रहे थे , तुमको एक दिन ग्वाल बाल बनना है ।
ब्रज-जन-पालन, असूर-कुल-नाशन,
नन्द-गोधन-रखवाला।
गोविन्द माधव, नवनीत-तस्कर, सुन्दर नन्द-गोपाला॥
अनुवाद: कृष्ण व्रजवासियों के पालन कर्त्ता तथा सम्पूर्ण असुर वंश का नाश करने वाले हैं, कृष्ण नन्द महाराज की गायों की रखवाली करने वाले तथा लक्ष्मी-पति हैं, माखन-चोर हैं, तथा नन्द महाराज के सुन्दर, आकर्षक गोपाल हैं।
मेरे गाय रूपी धन का रखवाला तुमको बनना है । ऐसा भाव , कुछ विचार हो सकता है । जब वह भांडीरवन में थे तो अचानक कुछ आंधी , तूफान शुरू हुई और वर्षा भी होने लगी , गायों को भी संभालना था और साथ में कन्हैया भी था । नंद महाराज सोच रहे थे कि मेरे कन्हैया को कोई संभाल सकता है क्या ? इस स्थिती मे , ऐसा वह सोच ही रहे थे तो उन्होंने एक तेजस्वी बालिका को आती हुई देखा , नीली साड़ी पहनी हुई थी और वह भी बालिका ही थी और सुवर्ण वर्ण की थी , ओर सौंदर्य का क्या कहना ? जब वह पास में पहुंची तो नंद महाराज पहचान गए यह राधा रानी है । नंद महाराज ने कहा , ” इस को संभालो , इस को संभालो , मैं गायों को देखता हूं या संभालता हूं ।” नंद बाबा ने राधा रानी को कृष्णा को दे दिया । अभी नंद बाबा वहा से गए गायों को देखने , संभालने तब वहां के दृश्य में भी परिवर्तन हुआ , एक तो दोनों भी शिशु ही थे बाल राधिका और बालकृष्ण थे , वह स्वयं वहां पर किशोर और किशोरी बन गए । किशोरावस्था को प्राप्त कर लिया और इस वन की सारी शोभा में परिवर्तन हुआ , शोभा और बढ़ गई । हरि हरि । श्री कृष्णा चैतन्य ।
अभी वैसे यहां मानो विवाह मंडप ही बन गया ऐसा भी कह सकते है ।एक वटवृक्ष के नीचे किशोर और किशोरी पहूच गये । वह वटवृक्ष आज भी है , हम भांडीरवन में दर्शन करते हैं । ब्रह्मा जी वहा पहुंच जाते हैं और ब्रह्मा इस विवाह को संपन्न करते हैं , वरमाला एक दूसरे को पहनाते हैं कृष्ण राधा को और राधा कृष्ण को , ब्रह्मा ब्राह्मण है । स्वयं ब्रह्मा जी पुरोहित बनकर वहा पहुच जाते हैं । ऐसा सौभाग्य प्राप्त होता है या ऐसी एक सेवा करने की उनकी खूब मनोकामना थी , ऐसा अवसर प्राप्त हो इस अभिलाषा के साथ ब्रह्मा ने खूब तपस्या की थी । सूनहरा ग्राम नाम का ग्राम है बरसाने के पास ही सुनहरा ग्राम है । जो सुदेवी और नंद देवी का भी गांव है , वहां पर तपस्या ब्रह्मा ने की थी की राधा कृष्ण की सेवा करें और वही विशेष सेवा उनको आज प्राप्त हुई है पुरोहित होने की , उन्होंने भांडीरवन में वृक्ष के नीचे किशोर किशोरी का विवाह संपन्न कराया । ऐसा यह स्थल है और भी वर्णन है विवाह का लेकिन इतना ही कह सकते हैं , इस लीला के साक्षी कहिए या लिला का स्मरण दिलाने के लिए वही भांडीरवन में ही उसी वृक्षों के बगल में , पास में राधा अनंत बिहारी का दर्शन है ।
बोलो राधा आनंद बिहारी की जय ।
हम प्रतिवर्ष दर्शन करते रहते हैं परिक्रमा में और उसका फोटो भी हमने छपाया है ब्रजमंडल परिक्रमा किताब में , कृष्णाराधा रानी को कुमकुम पहना रहे हैं ऐसा दृश्य , ऐसा दर्शन है , विशेष दर्शन है । ऐसा दर्शन केवल और केवल भांडीरवन में ही है और कहीं नहीं ।
भांडीरवन की जय ।
श्री श्री किशोर किशोरी की जय ।
यह किशोर किशोरी की जोड़ी वैसे शाश्वत है , लीला में तो राधा रानी का विवाह अभिमन्यू के साथ होता है , अन्य गोपीयो का विवाह भी और और गोपो के साथ होता है , ऐसी रचना की है ताकि राधा रानी और गोपियों का संबंध परकीय भाव का संबंध हो । परकीय भाव मे जहां और अधिक आस्वादन होता है , रसीला होता है ।
जय जयोज्ज्वल-रस-सर्व रससार।
परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार॥
अनुवाद : समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो, भगवान् कृष्ण ने परकीय-भाव में जिसका प्रचार ब्रज में किया।
वैसे नाम मात्र के लिए अभिमन्यु है और गोवर्धन है ऐसे कई सारे गोपों को बीच में खड़ा किया है , दिखाया गया है किंतु वैसे यह गोपीया और राधा रानी अभिमन्यु और गोपको छूती भी नहीं और ना ही अभिमन्यु जैसे अन्य गोपियो को छुते हैं । यह नाटक है यह लीला है उनके साथ उनका विवाह हुआ ऐसा दर्शाया गया है । राधा कृष्ण , वल्लभ वल्लभी , राधा वल्लभ , कृष्णा वल्लभी यह जो रिश्ता नाता है , यह माधुर्य रस है यह तो शाश्वत है । भगवान ने उसको भी दर्शाया है । भगवान ने अपना विवाह राधा रानी के साथ संपन्न किया है । हरि हरि ।
निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।
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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
23 नवम्बर 2020
ब्रजमंडल परिक्रमा की जय……
आप सब परिक्रमा कर रहे हो तो परिक्रमा में रहो आप सुनते जाओगे तो रहोगे भी ब्रज में या ब्रज में रमोंगे भी रम जाओगे रहमान होंगे वैसे जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं। तो एक प्रार्थना हमारी यह भी होती है होनी भी चाहिए आपको पता है कि नहीं समझाया तो है हम कहते हैं की मैया सह रमस्व हे कृष्ण हे राधे मेरे साथ भी रमिये मेरे साथ रमीये मैं आपके साथ रमता हूं।
परिक्रमा के लीलाओं का श्रवण करेंगे या श्रवण ही नही भगवान की लीलाओं का नाम रूप गुण लीलाओं का श्रवण ब्रज में करते हैं तो फिर हम ब्रज के मूड में आ जाते हैं वृंदावन के मूड में आ जाते हैं हम धीरे-धीरे बृजवासी बन जाते हैं जो ब्रज में वास करें ब्रज में निवास करें उनको ब्रजवासी कहते हैं। वह केवल निवास शरीर को तो रखा है ब्रज में लेकिन यादें तो दिल्ली नागपुर यहां वहां की आ रही है मन तो इधर उधर दौड़ रहा है।
वृंदावन में कभी तो कभी अपने घर पर तब उनको ब्रजवासी नहीं कहा जाएगा वैसे श्रीराम जब वनवासी हुए तब वो केवल वन में रहते थे दंडकारण्य मे रहते थे इसीलिए उनको वनवासी नहीं कहा वैसे वनवास मन में वनवासी जैसे रहते थे अन्य वनवासी जैसे रहते हैं वैसे ही प्रभु श्रीराम रहते थे वही जीवन की शैली कहो वह किसी घर में नहीं रहे वन में रहे एक कुटी बनाकर वहां रह जाते वैसे वन में वो कंदमूल ही ग्रहण करते पकाया हुआ भोजन नहीं करते और वह एक दर्जी एक टेलर के पास नहीं गए 14 साल अपने वस्त्र सिलाने के लिए वह सचमुच बनवासी बने तो ऐसे ही श्री राम वनवासी राम एक समय थे अयोध्यावासी राम फिर वनवासी बने तो हमको भी ब्रज मंडल परिक्रमा में ऐसा अनुभव प्राप्त होता है। हम भी वनवास या फिर वहां के वास का अवसर प्राप्त होता है वैसे हमारे शरीर तो वृंदावन में नहीं है मानसिक परिक्रमा कर रहे हैं पर हमारा मन वृंदावन में है हमारा ध्यान वृंदावन में हैं।
तो परिक्रमा कल चीर घाट मे पड़ाव रहा आज चीर घाट से माट जायेंगी और बीच में यमुना आयेगी फिर हम यमुना को पार करोगे आप तो इसी के साथ आप वृंदावन केवल द्वादश वनों में एक वन है वृंदावन उस वृंदावन से आज आप भद्र वन में प्रवेश करोगे और फिर कुछ समय कि वहां की परिक्रमा के उपरांत आप भांडीरवन में प्रवेश करोगे और माट भांडीरवन में ही है तो यही आपका आज का पड़ाव रहेगा मैं आपको थोड़ा चीर घाट के संबंध में अधिक कुछ कहना चाहता हूं।
चीर घाट यह खाट है तो झठ से समझ में आना चाहिए कि ये किसी नदी का तट होगा तभी तो चीरघाट या घाट होता है। चीर घाट यमुना के तट पर ही है तो इस घाट को चीर घाट इसलिए कहा कि चीर मतलब वस्त्र इसलिए इसे अच्छी घाट कहां गया है यहां वस्त्र का हरण किया गया तो वस्त्रों का हरण कौन करेंगे कृष्ण में ही यहां गोपियों के वस्त्रों को साड़ियों को चोरी किए हरण किए और पेड़ पर जा कर बैठे यह वस्त्र चोर भी है माखन चोर ही नहीं है वैसे वह चित चोर तो है ही तो कृष्ण जी और राधा के प्रकट लीला में 1 वर्ष कार्तिक मास के उपरांत अगला मास मार्गशीर्ष कार्तिक मार्गशीर्ष पौष माग फ़ाल्गुन तो इस मार्गशीर्ष मास में माह मार्गशीर्ष है और ऋतू है हेमंत रितु यह भागवत में शुकदेव गोस्वामी कहते हैं।
श्रीशुक उवाच हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकमारिकाः । चेहविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ॥१ ॥
श्रीमद्भागवत 10.22.1
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हेमन्त ऋतु के पहले मास में गोकुल की अविवाहिता लड़कियों ने कात्यायनी देवी का पूजा – व्रत रखा । पूरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई
हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकमारिकाः
हेमंत ऋतु के प्रथम मास में हर ऋतु में 2 मास रहते हैं महीने रहते हैं महीने 12 है और ऋतु 6 है मार्गशीर्ष और पौष ये हेमंत ऋतू में आता हैं।
तो इस मास में गोपिया प्रति दिन प्रात काल यहां जिसका अब नाम हुआ है चीर घाट यहां पहुंच कर वह स्नान किया करती थी और कात्यायनी की पूजा करती थी पूरे मास वह किया करती थी और पूजा करते समय वह प्रार्थना करती रहती थी हे महामाया
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः । इति मन्त्रं जपन्त्यस्ताः पूजां चक्रुः कमारिकाः ॥४ ॥
श्रीमद्भागवत 10.22.4
अनुवाद:- प्रत्येक अविवाहिता लड़की ने निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी पूजा की : ” हे देवी कात्यायनी , हे महामाया , हे महायोगिनी , हे अधीश्वरी , आप महाराज नन्द के पुत्र को मेरा पति बना दें । मैं आपको नमस्कार करती हूँ
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः
नंद महाराज का पुत्र हमें पति रूप में प्राप्त हो हमारा तुम्हारे चरणों में बारंबार प्रणाम है हम माथा टेक कर पुनः पुनः प्रार्थना कर रहे हैं। हमें कृष्ण प्राप्त हो पति रूप में प्राप्त हो तो प्रार्थना कर ही रही थी प्रतिदिन तो फिर भगवान ने या कृष्णा ने कृष्ण भगवान है।
एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥
श्रीमद्भागवत 1.3.28
अनुवाद :- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं
कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् और कृष्ण ही है नंद गोप कुमार नंद गोप कौनसे गोप गोप और नंद गोप कुमार उनका गोप कृष्णा तो वह पहुंच गए पूर्णिमा के दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन पहुंच कर उन्होंने गोपियों के वस्त्रों का हरण किया और पेड़ के शाखाओं पर बैठ गए वस्त्रों के साथ गोपियों ने स्नान समाप्त होने के उपरांत जब तक पर आ गई घाट पर आ गए तो वस्त्र नहीं थे तो उन्होंने प्रार्थना की है कृष्ण को वस्त्र लौटाने के लिए निजांगदान ये गोपी भाव राधा भाव वाली जो भक्ति हैं निजांगदान पूर्ण समर्पण कायेन मनसा वाचा अपने अंग का भी दान सर्वस्व समर्पण के लिए प्रसिद्ध है विख्यात है गोपिया हरि हरी तो श्रील प्रभुपाद जी समझाते हैं या एक तो भगवान ने उनके प्रार्थना को सुना और उनका स्वप्न कहो साकार हुआ जब कृष्ण आए और उनको भी विवस्त्र हो कर वैसे वो विवस्त्र थी ही जब स्नान कर रही थी तब तो उन्हें बिना वस्त्र के आगे बढ़ना पड़ा घाट पर पहुचना पड़ा सारी लजा त्याग कर ऐसा भी किया उन्होने
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज *अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||
अनुवाद:-समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ऐसा भी किया उन्होंने और कृष्ण की शरण में आई श्रील प्रभुपाद लिखते हैं कि संसार जानता ही हैं अपने पति के सानिध्य में ही स्त्री विवस्त्र रहती हैं बिना वस्त्र की और किसी के सानिध्य में नहीं यह संभव भी नहीं है यह तो अधर्म होगा तो यह उचित है पति के संग में सानिध्य में स्त्री बिना वस्त्र के आ सकती है रह सकती हैं तो फिर वैसे ही हुआ इस पूर्णिमा के दिन चिर घाट पर भगवान ने दर्शाया कि प्रार्थना कर रही थी
पतिं मे कुरु ते नमः मैं आपका पति हूं तो आ जाओ तो फिर वह आ ही ही गई तो फिर ग़ौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल
तो फिर भगवान ने वस्त्र लौटाये और फिर गोपियां अपने अपने ग्राम या नगर में लौट गई फिर उन्होंने हमारे वस्तु की चोरी की लेकिन आप हम अनुभव कर रहे हैं कि और कृष्ण कन्हैया ने हमारी चित की भी चोरी की हमारा मन उनकी ओर दौड़ रहा है।
या हमारे चित्त की चोरी करके वह चले गए वस्त्र तो दे दिया यह साड़ी ले लो यह चोली ले लो यह ले लो वस्त्र लेलो किन्तु उनका विरह सता रहा है या उनका स्मरण हो रहा है हम भूलना चाहते हैं तो भी भूल नहीं सकती हैं उस कन्हैया को उस नंदनंदन को और उसके लिए गोपिया प्रसिद्ध भी है भगवान को कभी नहीं भूलना और भगवान का सदैव स्मरण करें तो उसे ही दिन और थोड़ा आगे बढ़ते हैं भगवान जब वृंदावन से मथुरा से फिर द्वारिका पहुंचे हैं और फिर वहां पर द्वारकाधीश बने हैं। फिर उन्होंने आश्रम भी बदल दिया वह गृहस्थ बने हैं।
उनके इस 16108 विवाह हो चुके हैं यही ब्रज की गोपियां ही द्वारका की द्वारकाधीश की रानियां बन जाती है पत्नियां बन जाती हैं वह गोपीया वृंदावन में रहती है गोपी भाव में गोपी बनकर और साथ ही साथ उनका विस्तार होता है गोपियों से रानियां बन जाती है द्वारका की रानियां बन जाती है।
साथ ही राधा रानी भी द्वारका की सत्यभामा बन जाती है और चंद्रावली रुक्मिणी बन जाती है। यहां की यमुना कालिंदी बन जाती है। इस प्रकार यह गोपिया द्वारका पहुंच जाती है और विवाहित हो जाती है तो कात्यायनी ने उनके प्रार्थना सुन ली वैसे प्रार्थना तो सुनने वाले कृष्ण ही हैं और इस सचमुच अक्षर जहां गोपियां कृष्ण की पत्नियां बन जाती है कृष्ण को अपने पति रूप में पा लेती है।
इन गोपियों को मिलते है और उसी के साथ उसी दिन गोपियां अपने अपने घर लौटी और कृष्णा बड़े तार के भोर में ही वहा पहुंचे चिर घाट पर इस लीला को सम्पन्न करने के लिए वस्त्र हरण करने के लिए और उनके मित्र भी साथ मे आए थे उस चिर घाट मे लीला हो रही थी उस समय कृष्ण ही थे और उनके मित्र अन्य स्थान पर थे किंतु इस लीला के उपरांत कृष्णा अपने गायों के साथ और अपने मित्रों के साथ आगे बढ़ते हैं और जमुना के तट पर चिर घाट पर वे थे और आगे बढ़ते हुए वे अक्रुर घाट पर वे पहुंचे आप जानते हो या मथुरा या वृंदावन आज कल का वृंदावन जिसे आप कहते हो पंचकोश वाला वृंदावन कीशी घाट जहा है राधा मदन मोहन मंदिर जहा है
गोस्वामीजी द्वारा स्थापित विशेष सात मंदिर जहा है कृष्णा बलराम मंदिर है वो वृंदावन और मथुरा के बीच मे अक्रुर घाट और अक्रुर घाट के पास वो वन अशोक वन उसका नाम है बन के अंदर बन के अंदर बन ऐसा होता है ऐसा आपको बटाया गया है अधि वन उपवन ऐसे वनो के चार प्रकार बताये गये हैनारायण भट्ट गोस्वामी अपने ब्रज भक्ति विलास नामक अपने ग्रंथ में ये सब वर्णन आता है अलग अलग वनो के बनो के प्रकार तो द्वादस बारा वनो के अलावा कई सारे बन के अंदर बन के अंदर बन है तो एक अशोक बन मे वे गाय चराते हुए पहुंचे है और अब मध्यान्ह का समय हुआ है लेकिन आज के दिन वह साथ मे लंच नहीं ला पाए थे क्योंकि बना नहीं था वेसे प्रति दिन तो वहा 8.30 प्रस्थान करते है 8 बजे कहो 8 बजे गो चारण के लिए 8 बजे प्रस्थान प्रति दिन करते थे लेकिन आज तो वे प्रातः काल ब्रम्हा मुहूर्त मे उठे और चल पड़े और किसी भी बालक के माताओ ने उन के लिए भोजन नहीं बनाया था तभी भोजन का जो पैकेट है शीदोरि जिसे कहते हैं वे बन मे आए थे तो मध्यान्ह का समय हुआ तो सबको भूक लगी तो तब उस दिन भगवान ने कहा था पास मे ही कुछ यज्ञ हो रहा है वहा जाके कुछ मांग ली भिक्षा मांग लो या कहो कि कृष्णा बलराम यहा पास मे ही कुछ गायों को चारा चरा रहे है उनके लिया कुछ भोजन दीजिए कुछ खाद्य की सामाग्री दीजिए और वो जरूर देंगे आपन जाओ हो वहा कुछ बालक गए लेकिन ये यज्ञनित ब्राम्हण सामर्थ ब्राम्हण या कर्मकांडी ब्राम्हण ने ध्यान नहीं दिया बाल्को की ओर उनका तो चल रहा था स्वाहा स्वाहा.. अरे कृष्णा पास मे ही है कुछ खाने के लिए दीजिए.. स्वाहा स्वाहा स्वाहा दे आर बिजी ई भगवान के मंत्र या शायद वो समाज नहीं रहे थे यज्ञरारतात यज्ञ वेसे यज्ञ पुरुष के लिए यज्ञ होता है वेसे यज्ञ!भगवान का नाम है और भगवान के प्रसन्नता के लिए ही यज्ञ होता है लेकिन ये जो यज्ञनित ब्राम्हण है उसको कोई परवाह नहीं तो कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वह कर्मकांडी थे किसी भी कर्म का फल हम ही भोगेंगे उनको हम कर्मी भी कह ते है तो कर्मकांडी कर्मकांड जो है उसका उद्देश यही होता है हम हम भोगे गे लेकिन भगवान ने तो कहा है
कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि
अनुवाद:- तुम्हें अपने कर्म (कर्तव्य) करने का अधिकार है, किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो | तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ
यह कर्म का सिधांत है या कर्मा की शैली या उसका उद्देश्य भाव भगवान कहे है कर्म कर सकते हो पर मा फलेषु कदाचन.. लेकिन ये कर्मकांडी ब्राम्हण जो थे वेसे वे देवताओ के प्रसन्नता के लिए यज्ञ कर रहे थे ताकि देवता खुश होकर उन्हें कुछ फल दे दे उन्हें.. तो उन ब्राम्हण ने ध्यान नहीं दिया यज्ञkr रहे थे तो भगवान के मित्र निराश को कर वहा से उन्होंने कुछ नहीं दिया कुछ भी नहीं दिया हमारी तरफ ध्यान भी नहीं दिया हमारे कहने पन उनका ध्यान नहीं था उन्होंने कोई परवाह नहीं की हो कृष्ण कहे उन ब्राम्हण की पत्नियों जो है वो बड़ी भक्त है उनके पास जाओ हो कृष्ण के कुछ मित्र वहा गए और जिसे ही मांग की और बटाया की कृष्ण और बलराम पास मे ही बन मे गाय चरा रहे हैं और उन्हें लगी है भूक कुछ तो दीजिये खाने के लिए ऐसा सुनते ही उन्होंने सारी सामाग्री एकत्रित की सारी टोकरियों भर दी थालियां भर दी और वो ग्वाल बालकों को भी नहीं दे रही थी ये टोकरियों थाली भर भर के हम स्वयम जा ते पहुंचा देगी और खिलाएंगी भी कृष्ण बलराम को और उनके मित्रों को भी तो फिर ये यज्ञ पत्नियाँ भी पहुंच जाती है जहा कृष्णा बलराम थे और कृष्णा बलराम अपने कई मित्रों के मध्य मे थे तो भी ईन पत्नियों ने उन्होंने कभी कृष्णा बलराम को देखा नहीं था फिर नहीं उन्होंने उन्हें ढूंढ निकाला कोण कोण है
कृष्ण यहा हज़ारों लाखो ग्वाल बालक थे और कृष भी बालक ही है तो वह पत्नियों ये नहीं ये नहीं ये भी नहीं और यह है कृष्णा यहा वर्णन भी है कैसे थे किस प्राक्तन खड़े थे किसी के कंधे पर अपना हाथ रखे थे उनके हाथ मे कमाल का फूल था उसको घुमा रहे थे और सवर्ण मुख अरविंद नेत्र तो उनको केसे पता चाला की ये कृष्णा है यही कृष्ण है तो आचार्य बीरन उन्हें समझाते है ईन यज्ञ पत्नियों ने भागवत की कथा सुनी हुई थी भागवत पढ़ा था कृष्णा के रूप माधुरी का वर्णन सुना था पीताम्बर वस्त्र पहनते है murli धारण करते है मुकुट मे मोर पंख होता है और उनके अंग की कांति घनशाम क्योंकि उन्होंने सुना था कृष्णा के इसे दिखते है कइसा दिखता है सोंदर्य क्या वैशिष्ट्य है उनके रूह माधुरी का और वो सौंदर्य केसे भिन्न है अद्वितीय है और किसी की तुलना कृष्णा की सोंदर्य के साथ नहीं हो सकती अधिक जो गुण है
चौसठ गुण मेसे ये कृष्णा का वैशिष्ट्य है उनकी रूप माधुरी उनकी लीला माधुरी उनका प्रेम माधुर्य उनका वेणु माधुर्य ये सारा सुनी थी वे पाढ़ी थी भागवत मे तो वे परिचित थी कृष्ण से तब बड़ी आसानी के साथ उन्हें कृष्ण को इतनी भीड़ मे ढूंढ़ और सीधे पहुंच गई और कृष्णा बलराम को और सारे मित्रों को भोजन खिलाई संभावना है कि भात की मात्रा या कई सारे भात के व्यंजन दूध भात या दही भात या मसाला भात या साउथ इन्डिया मे कई सारे भात बनते है तो इसीलिए सम्भव है कि जहा यज्ञ पत्नियों कृष्णा बलराम और उनके मित्रों को भोजन खिलाए उस स्थान का नाम बना है भातरोंड और फिर वहा दर्शन भी है भातरोंड बिहारी कहते है और हम परिक्रमा प्रारंभ करते है पहले दिन वृंदावन से कृष्णा बलराम मंदिर से मथुरा की ओर जाते है तो पहला स्थान जहा परिक्रमा पहुंचती है रुकती है कथा का श्रवण होता है
तब भातरोंड जहा भात और भी व्यंजन चतुर्वेधों श्रीभागवत प्रसाद खिलाए वो स्थान तो वहा लीला भी भातरोंड मे भोजन यज्ञ पत्नियों ने कराया कृष्णा बलराम और उनके मित्रों को तो वहा लीला भी उसी दिन संपन्न हुई जिस दिन चिर घाट मे कृष्ण ने गोपियों के वस्त्र का हरण किया था अभी आपन सुन तो लिए हो उसको भूलना नहीं तो नहीं भूलने के लिए क्या करना होगा फिर जो सुना है या सुनते समय आपने लिख भी लिया होगा जिसे आप पूना पढ़ सकते हो और उसका चिंतन करो उसका मनन करो कहानी याद रहेगी उसका मतलब आपको कृष्ण कृष्णा की याद बनी रहेंगी और कृष्णा कहते है मेरा स्मरण करो तो भगवान का समान करने की यह विधि है श्रावण करने से स्मरण होता है और स्मरण की हुई बातों को औरों को सुनाए तो और स्मरण होगा क्योंकि कीर्तन करने के लिए हमने स्वयं हो स्मरण करना होता है या याद करते करते हम कहते है और याद रहता है|
हरे कृष्ण
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जप चर्चा
22 नवंबर 2020
पंढरपुर धाम
641 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। कैसे हो, अच्छे ही होंगे। जप जो कर रहे हो। परिक्रमा भी कर रहे हो। शेरघट से चिरघाट जा रही है। रस्ते में हैं तैयार रहिए और संयम की बात भी है। आज गोपाष्टमी है, गोपाष्टमी महोत्सव की जय। गोपाष्टमी महोत्सव बड़ी धूम-धाम के साथ पूरे ब्रज में मनाया जाता है। गोपाष्टमी के दिन हम वन की यात्रा कर रहे हैं। सभी वनों में कृष्ण की गौ चारण लीला संपन्न हुई ही है। यह वन और आज की यात्रा विशेष स्थली है। यहां गायो के साथ गोपाल का बड़ा ही प्रेममय आदान-प्रदान हुआ है। आज हम परिक्रमा में जा रहे हैं तो पहले तो रामघाट आता है जगह-जगह रामघाट रोहिणी नंदन। इस घाट या जमुना नदी के तट पर श्री बलराम की रास क्रीड़ा संपन्न हुई। वहां से जैसे हम आगे बढ़ते हैं तो हम विहार वन में प्रवेश करते हैं। वहां विशेष कुंड भी है, इस कुंड में कन्हैया की गाय जलपान किया करती थी और यहां रुक कर हम कथा भी करते हैं। इसी स्थान पर बहुत बड़ी गौशाला है। इस स्थान को खेलनवन भी कहते हैं। जब गौ चारण हो रहा है गायों का, गाय चर रही है।
यहां कृष्ण की विचरण करते हैं विहार करते है खेलते हैं। गायों का दर्शन भी होता है आज इस विहार वन में और फिर हम गायों की सेवा करते हैं उन्हें खिलाते हैं।गायों की परिक्रमा करते हैं हम देखते हैं कि कैसे पूरे व्रज में संस्कृति है। गायों को खूब सजाते हैं। उनके सींग पर चित्र बनाते हैं उनके गले में माला और घुंगरू पहनाते हैं। हरि हरि। कृष्ण आज के दिन कार्तिक मास में गोप बने थे। पहले वत्स्पाल थे, बछड़ों की सेवा करते थे। बछड़ों को चराने ले जाते थे। तभी तो एक असुर आया था, वत्स बन के,वत्सासुर। भद्र वन में जहां हम कल जाएंगे उस समय कृष्ण छोटे थे। छोटी छोटी गईया छोटे छोटे ग्वाल, ग्वाले और कृष्ण छोटे थे कुमार थे बालक थे। बछड़े चराते थे तो आज के दिन कृष्ण पोगंड अवस्था को प्राप्त किए। वे वात्स्पाल के गोपाल हो गए। गोपाल कृष्ण भगवान की जय। कैसे हैं भगवान, भगवान तो कहते हैं, भगवान क्या करते हैं, गाय चराते हैं। विदेश में लोग पूछते हैं कि आपके भगवान क्या करते हैं फिर हमको बताना होता है जो भी सच है। सच के अलावा हम कुछ कहते ही नहीं। हमारे भगवान गाय चराते हैं। लोग समझ नहीं पाते कि आपके भगवान गाय चराते हैं? इसीलिए उनका नाम गोपाल है।गायों से इतना प्रेम करते हैं गाय भी इनसे इतना सारा प्रेम करती है। गायों के साथ जो संबंध है कृष्ण का उसको वात्सल्यभाव कहते हैं। गायों के लिए कृष्ण वत्स है बछड़ा है। जैसे गाय अपने बछड़ों से प्रेम करती है वैसे ही गाय कृष्ण से भी प्रेम करती है।
बछड़ों का जो अपनी गौ माता के प्रति उनका मातृभाव। मातृ देवो भव: माता उनके लिए मानो देवता है महान है या सब कुछ है। वैसे कृष्ण भी इसी वात्सल्यभाव प्रेम करते हैं मां के रूप में। गाय मेरी मां है , गौ माता की जय। जैसे कृष्ण गाय को माता मानते हैं इसलिए हम भी गाय को माता मानते हैं। वैसे हम मनुष्यों की अलग-अलग 7 माता होती है ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है। उसमें गाय भी एक माता है। तो कृष्ण भी गाय के साथ अपनी मैया, यशोदा मैया और अब गौ मैया गौ माता वैसा ही प्रेम करते हैं। और सिर्फ प्रेम ही नहीं करते हैं उनकी सेवा भी करते हैं। पूरे दिनभर गाय की सेवा करने के लिए निकल जाते हैं। गौ चारण लीला क्या है गाय की सेवा करते हैं। गायों को चराते हैं गायों को फिर जल पिलाते हैं। हरि हरि। यहां तक कि गायों का मनोरंजन करते हैं। अपनी मुरली बजा कर गायों को इकट्ठा करते हैं। पेड़ की किसी शाखा पर बैठकर मुरली बजाते हैं, गायों की प्रसंता के लिए। आज के दिन ही हम परिक्रमा में अक्षयवठ जाएंगे। एक विशेष वट वृक्ष है अब तो छोटा ही है लेकिन एक समय कृष्ण की प्रकट लीला में एक विशेष वृक्ष विशाल और ऊंचा उसकी शाखा कई मीलो तक लंबी है।
गाय जो चर रही थी कृष्ण उनको बुला लेते हैं। मुरली बजाते हैं इसी के साथ बुलाते हैं आ जाओ आ जाओ आ जाओ। बुलावा भेजते हैं या मुरली के नाद के माध्यम से ही वे गायों के अलग-अलग नाम पुकारते हैं। उन्होंने अपने गायों के नाम रखें हैं। कितना निजी और घनिष्ठ संबंध है। वे गाय नहीं कहते हैं वह मृदंगमुखी कहते हैं। ये धवली, पिवली, चित्रा ऐसे बड़े प्यारे नाम रखे हैं उन्होंने अपने गायों के। गायों का नामकरण होता हैं और वे नाम से पुकारते हैं और सभी गायों के नाम कृष्ण को याद हैं। उनके पास एक जप माला हैं। तो सभी गाए पहुंची कि नहीं ये पता लगवाने के लिए वे एक एक गाए का नाम पुकारते है। जैसे ही नाम पुकारा जाता है,किसी गाय का, मृदंगमुखी का उसका मुख मृदंग जैसा है। अलग अलग रंग, अलग अलग कुछ आकार भी थोड़े भिन्न हैं। तो उसके अनुसार भी नाम रखे हैं। जैसे ही किसी गाय का नाम पुकारा जाता है तो गाय इतनी प्रसन्न हो जाती है। कृष्ण ध्यान रखते हैं कि सारी गाये पहुंच गई है। कोई बिछुड़ तो नहीं गई उसका पता लगवाने के लिए कृष्ण एक एक गाय का नाम पुकारते है। मानो उनका जप चल रहा हैं। हम तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते है। कृष्ण का नाम राधा का नाम पुकारते है। कृष्ण गायों के नाम पुकारते है। अपने भक्तो का नाम उच्चारण करते हैं। गाय जो उनकी भक्त है या वे उनके भक्त है। कृष्ण गाय के भक्त है।
नमो ब्रह्मण्य-देवाय गो-ब्राह्मण-हिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय गोबिन्दाय नमो नमः ॥77॥
अनुवाद
मैं उन भगवान् कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ, जो समस्त ब्राह्मणों के आराध्य देव हैं, जो गायों तथा ब्राह्मणों के शुभचिन्तक हैं तथा जो सदैव सारे जगत् को लाभ पहुँचाते हैं। मैं कृष्ण तथा गोविन्द के नाम से विख्यात भगवान् को बारम्बार नमस्कार करता है।
हम यहां आए हैं इस वन में आज यात्रा परिक्रमा हो रही है। कल हम जमुना को पार करेंगे। कृष्ण भी जमुना को पार किया करते थे। कैसे और फिर गायों को भी पार करना है। वे मुरली बजाते हैं गायों की सेवा में मुरली बजाई तो जमुना का जल जो द्रव्य है, द्रविभूत है अभिभूत हो जाता है। वो कठिन बर्फ बनता हैं। कृष्ण की मुरली की नाद के साथ और फिर गाय चलती है। वहां पानी नहीं है, पानी का बर्फ बन गया। तो आसानी के साथ गाय जमुना को पार करती हैं। तो इस तरह भिन्न भिन्न तरीके से कृष्ण गायों की सेवा करते हैं, गायों की रखवाली करते हैं। गायों से प्रेम करते हैं इसलिए वे प्रसिद्ध है गोपाल। आज के दिन वो गोपाल बने इसीलिए इस तिथि का नाम हुआ है या हम मनाते हैं इस तिथि का नाम हुआ है गोपाष्टमी के रूप में। आप इतना ही याद रखिए या इन बातों का स्मरण ,चिंतन या विचारो का मंथन कीजिएगा। अभी कथा होने वाली है। इसकी सूचना सुनोगे अब आप।
जय गुरुदेव।
जय श्रील प्रभुपाद।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
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जप चर्चा
२१ नवम्बर २०२०
हरे कृष्ण!
आज 688 स्थानों से प्रतिभागी जप कर रहे हैं।
जय श्री राधे श्याम!
श्याम… श्याम… श्याम..
राधे.. श्याम… श्याम… श्याम…!
हम धाम में पहुंचे हैं, ब्रजमंडल परिक्रमा कर रहे हैं। साथ में श्याम श्याम गा रहे हैं। हम
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
साथ में गाते रहते हैं। परिक्रमा के भक्त यह हरे कृष्ण महामंत्र कीर्तन किए बिना एक पग भी आगे नहीं रखते हैं। वैसे अन्य गीत भी गाते हैं, कीर्तन और नृत्य भी करते हैं। वृंदावन में भक्ति देवी नृत्य करती है।
वृन्दावनस्य संयोगात् पुनस्तवं तरुणी नवा।
धन्यं वृंदावनं तेन भक्तिर्नृत्यति यत्र च।।
( पदम् पुराण, भागवत माहात्म्य(१.६१)
अर्थ:- श्री नारद जी कहते हैं,” हे भक्ति, धन्य है ऐसे वृंदावन को, जहाँ पहुंचने पर आपको नव तारुण्य प्राप्त हुआ एवं जहाँ गली गली घर घर और प्रत्येक प्राणी के हृदय में ही नहीं, प्रत्येक लता पता की डाल और पत्रों पर आप नृत्य कर रही हैं।
वृंदावन धाम वह स्थान है, जहां भक्ति देवी नृत्य करती है। हरि! हरि! जब भक्ति देवी अस्वस्थ हुई और उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य उनसे और भी अस्वस्थ हुए। यह गुजरात में हुआ था। (नहीं कहेंगे आपको…) हरि! हरि!
वहीं भक्ति देवी, जब वृंदावन पहुंची तब पुनः उनकी जान में जान आ गई और वह नृत्य करने लगी। वृंदावन धाम की जय!
ब्रेक द न्यूज़ कहो। हम एक गोपनीय बात अथवा रहस्य को प्रकट करना चाह रहे थे। वर्चुअल परिक्रमा तो हो ही रही है लेकिन साथ ही साथ वास्तविक (रियल) परिक्रमा भी हो रही है। आपसे जानबूझकर यह समाचार छिपाया था। परिक्रमा को अखंड बनाए रखने के लिए यह 34वीं परिक्रमा भी कुछ गिने-चुने भक्तों ने की। उसमें हमारे परिक्रमा के जो प्रधान अथवा नेता परम पूजनीय राधारमण स्वामी महाराज हैं, उन्हीं के नेतृत्व में हो रही है। परम पूजनीय राधारमण स्वामी महाराज की जय! वे स्वयं परिक्रमा में जा रहे हैं। साथ में परिक्रमा परिक्रमा कमांडर इष्टदेव प्रभु और दशरथ प्रभु भी जा रहे हैं, जो साउंड पार्टी और टेंट सेटअप हर साल करते रहते हैं व अन्य भी एक-दो भक्त हैं। ब्रजभूमि प्रभु भी हर साल की भांति पदयात्रियों राधारमण स्वामी महाराज और अन्य भक्त जो परिक्रमा कर रहे हैं, को अपना कोआर्डिनेशन (सहयोग) कर रहे हैं, उनकी गणना उंगलियों पर हो सकती है। उनकी सेवा में ब्रज भूमि प्रभु भी व्यस्त हैं। इस वर्ष रियल( वास्तविक) परिक्रमा ब्रज में संपन्न हो रही है। यह आपके लिए शुभ समाचार है लेकिन वे कहां तक पहुंचे हैं इत्यादि इत्यादि, हम यह नहीं बताएंगे क्योंकि हम संख्या नहीं बढ़ाना चाहते हैं। इसीलिए हमनें इस बात को छिपा कर रखा था। आप इस वर्चुअल परिक्रमा में सम्मलित हुए हो। आपने वर्चुअल परिक्रमा करने का जो संकल्प लिया है, उसी को पूरा करो और आगे बढ़ो। आप यह परिक्रमा करते करते शेषशायी पहुंचे हो। आज परिक्रमा शेषशायी से शेरगढ़ जाएगी। वैसे यह परिक्रमा प्रातः काल में लगभग 6: बजे प्रारंभ होती है। शेषशायी से परिक्रमा ने प्रस्थान किया है और आज उनका गंतव्य स्थान शेरगढ़ है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी वहां (शेषशायी) पहुंचे हैं निताई गौर सुंदर के रूप में अर्थात ऑल इंडिया पदयात्रा के विग्रह, परिक्रमा के विग्रह बनते हैं वह हमारे साथ नहीं चलते बल्कि हम उनके साथ चलते हैं। वैसे भी परिक्रमा का नेतृत्व स्वयं भगवान श्री श्री निताई गौर सुंदर ही किया करते हैं। हम तो केवल साथ में जाते हैं। किन्तु मैं आपको स्मरण दिला रहा था कि ५०० वर्ष पूर्व श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी मथुरा वृंदावन आए थे और उन्होंने भी वृंदावन की परिक्रमा की थी। वे वृंदावन धाम के प्रेमी थे। वैसे उन्होंने कहा है और चैतन्य महाप्रभु का मत फाइनल( अंतिम) ही होता है। संसार भर में मत मतान्तर होते ही रहते हैं। उन मतों की क्या कीमत है।
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं
रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता ।
श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्
श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादशे नः परः ।।
(चैतन्य मंज्जुषा)
अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है। व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी , वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्दप्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है – यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है। यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है ।
चैतन्य महाप्रभु के मत के अनुसार बृजेशतनय कृष्ण कन्हैया लाल की आराधना हो और साथ ही साथ हम तद् धाम वृंदावनं अर्थात उनके धाम वृंदावन की भी आराधना करें। चैतन्य महाप्रभु ने ऐसा विधान दिया अथवा किया है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं ही वृंदावन के प्रेमी थे। वैसे कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत के मध्यलीला के दो अध्यायों में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो ब्रजमंडल परिक्रमा की है, उस परिक्रमा की कथा का वर्णन किया है। वहां वे लिखते हैं कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जहाँ कहीं पर भी होते हैं लेकिन वृंदावन की गौरव गाथा सुनते ही उनके अंदर ऐसा भक्ति भाव उदित अथवा प्रकट होता है जो कि उनके साधारणतया भावों की स्थिति से 100 गुणा अधिक होता है अर्थात वृंदावन के संबंध में कहीं पर भी सुनते ही (चाहे यहां हो या वहां हो या दक्षिण भारत की यात्रा में हो) उनके अंदर उच्च भाव, विचार ‘हाई थिंकिंग’, इमोशन की लहरें तरंगे सौ गुना अधिक बढ़ जाती हैं।
कृष्ण दास कविराज गोस्वामी आगे लिखते हैं कि जब वे वृंदावन के रास्ते में थे अर्थात जगन्नाथपुरी से वृंदावन आ रहे थे तब उनके भाव भक्ति, तरंगे सब आंदोलित हो रहे थे। वह तरंगे 1000 गुना अधिक हो गई थी। जैसे जैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु में मथुरा वृंदावन के निकट आ ही गए तब तो उनके भाव दस हजार गुना अधिक हो गए। साधारणतया जो उनके भावों तरंगों आंदोलन की स्थिति या उँचाई रहा करती थी,लेकिन जब वे ब्रजमंडल की परिक्रमा कर ही रहे थे तब10000 गुणा अधिक वह भाव बढ़ गए। अब वृंदावन पहुंचे हैं। हरि! हरि! वृंदावन में वे स्वयं ही कीर्तन कर रहे हैं। कीर्तन और नृत्य के साथ ब्रज का भ्रमण अथवा यात्रा हो रही है। तब उनके भावों का क्या कहना? 1000 गुणा अधिक या 1000*1000 कहो। ऐसे भाव उदित होने लगे। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृंदावन की परिक्रमा कर रहे थे तब उनके हृदय प्रांगण में खलबली मच गई। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु परिक्रमा कर रहे थे तब पूरे वृंदावन में ही खलबली मच गई। गौर सुंदर आए थे किन्तु मथुरा और वृंदावन के वासियों व भक्तों ने समझा अथवा उनका ऐसा साक्षात्कार हुआ कि हमारे श्याम सुंदर ही लौटे हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, जब कृष्ण जन्म स्थान पर स्थित केशव देव के मंदिर पर दर्शन के लिए गए। वहाँ महाप्रभु ने कीर्तन और उदण्ड नृत्य किया। यह देखने के लिए सारे मथुरा मंडल या वृंदावन के निवासी वहाँ पहुंच गए। ऐसा सौंदर्य भी कहो या ऐसा नृत्य या ऐसी भाव- भंगिमा भी देखकर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारे श्याम सुंदर यहाँ हैं।
श्याम सुंदर की जय!
श्याम सुंदर की जय!
उन्होंने पैदल परिक्रमा की। मधुवन से तालवन फिर कुमदवन, बहूलावन, वृंदावन इस तरह से महाप्रभु जाते जा रहे हैं। मार्ग में उनका स्वागत हो रहा है।
गाएँ भी जब महाप्रभु को वहां से जाते हुए देखती हैं, गाय दौड़ पड़ती हैं, उनको घेर लेती हैं जैसा कि कल गोपाष्टमी है, गाय और गोपाल के मध्य का जो आदान-प्रदान है, जैसा कि कृष्ण की प्रकट लीला में प्रेमपूर्वक आदान प्रदान (लविंग डीलिंग एक्सचेंज) हुआ करता था, वैसा ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब ब्रज मंडल परिक्रमा कर रहे थे, हुआ।
गाय दौड़ पड़ती और महाप्रभु को घेर लेती और उनके अंगों को चाटने लगती। महाप्रभु उनको अपने हाथों से खुजलाते, सहलाते। महाप्रभु आगे बढ़ना चाहते हैं, गाय उनका पीछा नहीं छोड़ना चाहती। गाय के रखवाले ( ग्वाले) गायों को अपनी पूरी शक्ति के साथ रोकने का प्रयास कर रहे हैं किंतु महाप्रभु अब उन गायों के लिए उनके श्याम सुंदर ही हैं। जो एक चुम्बक (मैग्नेट) की तरह सभी गायों को खींच रहे हैं। इस प्रकार कौन गायों को रोक सकता है। ग्वाले कैसे रोक पाएंगे? गायों को रोकना मुश्किल होता जा रहा था। महाप्रभु आगे बहुला वन इत्यादि वनों से जा रहे हैं। कई सारे पशु पक्षी आकाश में यहां तक कि भ्रमर भी वहां पहुंच कर अपनी गुंजाइश कर रहे हैं, पक्षियों का कलरव हो रहा है, वे गान कर रहे हैं। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी कहते हैं – पंचम गान सा…रे…गा…मा….पा… इसे पंचम स्वर या गान कहते हैं। पक्षियों का गान थोड़ा हाई (उच्च) होता है। वे सब गायन कर रहे हैं। मोर महाप्रभु के समक्ष है। उनके मुख महाप्रभु की ओर हैं। महाप्रभु जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, मयूर नृत्य करते हुए मानो रिवर्स गियर में जा रहे हैं। मयूर अपना हर्ष उल्लास व्यक्त कर रहे हैं। मानो रिसेप्शन पार्टी में मयूरों तथा अन्य पशुओं के द्वारा भगवान का स्वागत हो रहा हो। महाप्रभु के सानिध्य में वृक्ष भी कुछ पीछे नहीं हैं। गौर सुंदर, जिनको वे श्याम सुंदर मान रहे हैं। हरि! हरि! कृष्ण दास कविराज लिखते हैं कि कई वृक्षों से शहद के बिंदु गिर रहे हैं। उनके पत्तों से कुछ आद्र अथवा जल के कुछ बिंदु गिर रहे हैं मानो थोड़े हवा के झोंके के साथ वे सब गिर रहे हैं मानो वृक्ष आंसू बहा रहे हैं। वृक्षों के पास जो भी है फूल अथवा लताबेल, वे सब अपनी शाखाओं को गिरा रहे हैं। वृक्षों की शाखाओं जैसे वृक्षों के हाथी हैं, जो कि चम्पक, गुलाब, चमेली या परिजात के पुष्पों की वृष्टि कर रहे हैं। महाप्रभु भिन्न भिन्न वृक्षों के नीचे से जब नृत्य करते हुए आगे बढ़ रहे हैं तब उनका पुष्प अभिषेक हो रहा है। जब हम मंदिर में पुष्प अभिषेक करते हैं अथवा मायापुर में पञ्चतत्व का अभिषेक होता है। तब हम उसके लिए फूल कहां-कहां से मंगवाते हैं। कभी सिंगापुर कभी हवाई यहां से, वहां से,..तब खूब पुष्प वृष्टि होती है। लेकिन यहां तो ना तो कोई शॉपिंग कर रहा है, ना ही कोई… वृक्ष स्वयं ही फूलों की वृष्टि महाप्रभु के ऊपर कर रहे हैं। कैसा दृश्य होगा, हम उसको बता ही रहे हैं। कल्पना करने की आवश्यकता भी नहीं है। मैं सोच रहा था कि जब कृष्ण दास गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु की वृंदावन की परिक्रमा का वर्णन करते हैं। उस समय चैतन्य चरितामृत भी शास्त्रचक्षुषा ही है। हम उन शास्त्रों की आंखों से देखते हैं कि भगवान, गोलोक वृंदावन में कैसे चलते हैं? उनका हर कदम एक नृत्य है, महाप्रभु का डांस चल रहा है, नृत्य चल रहा है और वृंदावन के चर अचर सभी सजीव हैं, सभी भक्त हैं। कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत में भक्ति दिखाई है।
गायों की भक्ति देखिए, पक्षियों की भक्ति देखिए, वृक्षों की भक्ति देखिए, मानो हम देख रहे हैं। साधारणतया गोलोक में कैसा वातावरण होता है। भगवान और भक्तों के बीच में कैसा आदान-प्रदान होता है। एक छोटी सी झलक अथवा नमूना कहो, ऐसा होता है, वैसा होता है या ऐसा ब्रज मंडल है। एक बंधु दूसरे बंधु को कुछ भेंट देना चाहता है। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी लिखते हैं जिनके पास जिन वृक्षों के पास फल है, वे फल दे रहे हैं, पूरी भक्ति के साथ फल गिर रहे हैं। यही है।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्तयुपहृतमश्र्नामि प्रयतात्मनः।।
( श्रीमद् भगवतगीता ९.२६)
अनुवाद: यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ ।
पत्रम, तुलसी पत्ते भी हैं अर्थात उस वृंदावन में तुलसी के पत्र भी हैं जो कि स्वयं को भगवान के चरणों में अर्पित कर रहे हैं। हरि! हरि!
या पत्रं, पुष्पं … पुष्पं वृष्टि हो रही है। फलं तोयं जोकि जलबिंदु है, देख लीजिए, पत्रं पुष्पं फलम तोयम… जिसका उल्लेख भगवान भगवत गीता के 9 अध्याय के 26 वें श्लोक में करते हैं। बड़ा प्रसिद्ध श्लोक है। मुझे पत्रं पुष्पं फलं तोयं अर्पित करो। ये सब वृक्षों से प्राप्त होते हैं। पत्रम वृक्षों से प्राप्त होता है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं … कुछ जल वृक्षों से प्राप्त होता है। हरि! हरि!
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की यात्रा हो रही है। एक बार चैतन्य महाप्रभु ने देखा कि एक वृक्ष की शाखा पर शुक और शारिका बैठे हैं। महाप्रभु यह देख रहे थे लेकिन सुन नहीं पा रहे थे कि उनका क्या संवाद हो रहा है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि ये क्या बोलते होंगे? क्या चर्चा हो रही है ? मैं सुनना चाहता हूं। उनके मन में ऐसा विचार आते ही शुक और शारिका वहां से उड़ान भरते हैं और चैतन्य महाप्रभु की ओर आते हैं। जब चैतन्य महाप्रभु ने अपने हाथों को आगे बढ़ाया तब शुक उनके दाहिने हाथ में बैठ गया और शारिका उनके बाएं हाथ पर बैठ गयी। उनमें वार्ता अथवा डायलॉग होने लगा। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी इसका बहुत सुंदर वर्णन करते हैं। वह भी श्रवणीय है, पठनीय है। आप उसे पढ़िएगा। इस प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की यात्रा ब्रजमंडल की यात्रा हो रही है। वे स्वयं यात्री या भक्त के रूप में यात्रा कर रहे हैं अथवा करना चाहते हैं किंतु उनकी भगवत्ता को छिपाया नहीं जा सकता। क्या सूर्य के प्रकाश को कोई छिपा सकता है। संभव नहीं है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कृष्ण सूर्य सम हैं।
कृष्ण सूर्य सम; माया हय अंधकार।याहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार।।
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक२२. ३१)
अनुवाद:- कृष्ण सूर्य के समान हैं और माया अंधकार के समान है। जहाँ कहीं सूर्य- प्रकाश है, वहाँ अंधकार नहीं हो सकता। ज्यों ही भक्त कृष्णभावनामृत अपनाता है, त्यों ही माया का अंधकार ( बहिरंगा शक्ति का प्रभाव) तुरंत नष्ट हो जाता है। वे कोटि सूर्य सम प्रभावी हैं। उनकी भगवत्ता का प्रदर्शन हो रहा है और सारा ब्रज प्रभावित हो रहा है। जब महाप्रभु शेषशायी पहुंचे और उन्होंने शेषशायी का दर्शन किया। अनंत शेष की शैया पर भगवान लेटे हुए हैं, विश्राम कर रहे हैं। जब महाप्रभु ने वह दर्शन किया तब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन या हृदय में माधुर्य रस उदित हुआ और वे गोपी गीत गाने लगे और विशेषकर गोपी गीत का जो अंतिम श्लोक है, चैतन्य महाप्रभु उसका उच्चारण करने लगे जिसे गोपियों ने कहा है। इसमें राधा रानी भी हैं, भूलिए नहीं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जो यात्रा कर रहे हैं, वह केवल कृष्ण ही नहीं हैं, वे राधा भी हैं।
श्रीकृष्णचैतन्य राधाकृष्ण नहे अन्य
( चैतन्य भागवत)
अर्थ:- भगवान चैतन्य महाप्रभु अन्य कोई नहीं वरन श्री श्री राधा और कृष्ण के संयुक्त रूप हैं।
चैतन्य महाप्रभु, शेषशायी में गोपी गीत के अंतिम वचन का गान करने लगे। हमें समझना चाहिए चैतन्य महाप्रभु, जो राधा रानी हैं राधाकृष्ण नहे अन्य, अर्थात राधारानी ही गोपीगीत गा रही हैं। राधा के साथ में अन्य गोपियां मिलकर गा रही थी। शेषशायी में महाप्रभु पहुंचे हैं। चैतन्य चरितामृत मध्य लीला में अन्य स्थान पर वर्णन आता है कि चैतन्य महाप्रभु, जब अद्वैत आचार्य के साथ बंगाल में थे। उन्होंने वृंदावन में शेषशायी में जो लीला संपन्न हुई, जहाँ कि परिक्रमा पहुंची हैं, वहाँ की लीला चैतन्य महाप्रभु ने अद्वैत आचार्य के साथ खेली। वहाँ और भी भक्त थे, जो इस दृश्य को देख रहे थे। चैतन्य महाप्रभु ने अद्वैत आचार्य को कहा कि आप लेट जाइए। वे लेटे गए अर्थात अद्वैत आचार्य, अनंत शैया बन जाते हैं। वैसे अद्वैत आचार्य महाविष्णु हैं। संकर्षण से महाविष्णु होते हैं। महाविष्णु से अद्वैत आचार्य होते हैं। संकर्षण मतलब वास्तविक बलराम। संकर्षण से ही तो अनंत शेष बनते हैं। अद्वैत आचार्य अनंत शेष की भूमिका निभाते हैं। यह लीला बंगाल या नवद्वीप या शांतिपुर में कहीं हुई थी। अनन्त शैय्या तैयार हो गयी, चैतन्य महाप्रभु के लेटने, बैठने व आराम करने का स्थान बन गया। चैतन्य महाप्रभु स्वयं चतुर्भुज रूप धारण करके बैठे हैं, आनंद ले रहे हैं। लक्ष्मी भी पहुंच जाती है जो उनके चरणों की सेवा कर रही है। चैतन्य महाप्रभु ने ऐसी लीला भी पहले ही खेली थी और पुनः शेषशायी वृंदावन में पहुंचते हैं तब यहां पर उनको स्मरण हो रहा है। वह राधा रानी के भाव में गोपी गीत का जो अंतिम वचन है, वे उसका गान कर रहे हैं, स्मरण कर रहे हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु वहां से भी आगे बढ़ते हैं। हरि! हरि! ओके! समय बीत चुका है। दिन में जब भी आपके ऐप में आज की तारीख में यह परिक्रमा रिलीज होगी। आप उसे देखने सुनने और ज्वाइन करने के लिए अवश्य सम्मिलित होइयेगा।, देखिए, सुनिए व दूसरों को भी प्रेरित कीजिए। दामोदर मास और दामोदर व्रत या दामोदर का दीपदान करते रहिए व औरों से करवाते रहिए। हरि! हरि! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
कोई प्रश्न या टीका टिप्पणी है तो आप लिख सकते हैं। आज का टॉक सुनकर आपका क्या अनुभव रहा, कैसे लगा, कुछ समझे या नहीं समझे। आप लिख सकते हो।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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20 नवंबर 2020
पंढरपुर धाम
हरे कृष्ण, 690 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। हरि हरि, कार्तिक व्रत की जय! कुछ ही दिन शेष है कार्तिक मास के। 10 दिन और 10 दिन बाकी है। उसी के साथ यह चातुर्मास भी और कार्तिक मास का भी समापन होगा। पूर्ण होगा। कुछ ही दिनों में इस कार्तिक मास को दृढ़ता से पूर्ण करो। अधिक जप करने का अपने संकल्प लिया होगा या और भी परिक्रमा करने का संकल्प लिया होगा आपने। परिक्रमा से जुड़ते रहिए प्रतिदिन और दीपदान भी आपको ही करना होगा औरों से करवाना है। दामोदर मास की जय! परिक्रमा करते करते एक दिन आप गोकुल पहुंचने वाले हो। इस गोकुल में ही तो दिवाली के दिन जब कार्तिक में आती है। दिवाली अभी हम लोगों ने मनाई है। दिवाली का दिन था दिवाली का किंतु स्थान था गोकुल। गोकुल में वह लीला संपन्न हुई। दामोदर लीला, उखल बंधन लीला। परिक्रमा करते करते आपको एक दिन उखल बंधन लीला जहां संपन्न हुई उस स्थान पर पहुंचाया जाएगा। हरि हरि, उस स्थान का भी दर्शन आप करोगे, जय दामोदर! जहां श्रीकृष्ण बन गए दामोदर। वैसे आज ही समाचार आया कि हमारी ऑल इंडिया पदयात्रा या श्रील प्रभुपाद पदयात्रा कहो। जो पदयात्रा करने का आदेश मुझे श्रील प्रभुपाद ने दिया था।
पदयात्रा या बैलगाड़ी पर संकीर्तन करने के लिए आदेश दिया था तो वह पदयात्रा बैलगाड़ी का संकीर्तन आज तक चल ही रहा है और आज हमारी पदयात्रा ऑल इंडिया पदयात्रा जो गुजरात में है। गुजरात में बहुत समय से है। वह सोमनाथ आज पहुंच रहे हैं। सोमनाथ बहुत बड़ा धाम है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से मुझे ऐसे लगता है संभावना है कि वह भी एक ज्योतिर्लिंग है। तो वहां आज हमारे आचार्य दास प्रभु पदयात्रा का नेतृत्व करते हुए सोमनाथ पहुंच रहे हैं। वैसे वहां पास में ही बिल्कुल पास में ही रावल नाम का स्थान भी है। यहां हमारे प्राणनाथ श्रीकृष्ण अंतर्धान हो गए। मथुरा में जन्म लिया। लीला तो खेली है कई स्थानों में। गोकुल में लीला उनकी फिर वृंदावन में लीला मथुरा में लीला और फिर द्वारिका में लीला द्वारिका से फिर यह रावल जो सरस्वती के तट पर वहां पहुंचे थे। तो फिर उसका बहुत सारा वर्णन श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध में आप पढ़ सकते हो। और यहां तक की वहां कैसे बैठे हैं और फिर शिकारी आया फिर उस ने बाण चलाया। भगवान के चरणों के दर्शन उसने सोचा कि यहां कोई हिरण है, वह लीला यहां संपन्न हुई। और फिर भगवान जहां से प्रस्थान किए। कुछ ही समय पहले बलराम ने प्रस्थान किया और फिर श्रीकृष्ण भी प्रस्थान किए।
अंतर्धान हुए। श्याम त्व्यक्त्वा स्वपदं गतः इस पृथ्वी को त्याग कर, जिस धरातल पर अपनी लीला खेल रहे थे, उसको पीछे छोड़ कर स्वपदं गतः अपने धाम लौटे जहां से। वहां स्थान अभी-अभी हमारे पदयात्री वही थे, या कल भी थे। तो वह लीला स्थली हम भी गए थे। वहां बहुत साल पहले बात है। यह पदयात्रा करनेे का, बेल गाड़ी चलानेे का आदेश हमें श्रील प्रभुपाद ने दिया है। उस आदेश का पालन आज भी हो रहा है। किसके माध्यम से? धीरे-धीरे हमने पदयात्रा श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी जब मनाई जा रही थी। संभावना है कि, या तो आप उस समय जन्म में भी नहीं होगे। यहां 90 की बात है। 1996 में श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी मनाई गई थी। जन्मशताब्दी 1०० जन्म वर्षगांठ। उस समय श्रील प्रभुपाद के प्रसन्नता के लिए पदयात्रा मिनिस्ट्री ने जिसका मैं मिनिस्टर हूँ, पदयात्रा मिनिस्टर तो हमने श्रील प्रभुपाद के संसार भर के अनुयायियों और शिष्यों और फिर पर शिष्यो उनकेे मदद से योगदान से एक सौ देशों में पदयात्रा का आयोजन हुआ। एक सौ देशों में पदयात्रा और यह पदयात्रा आप तक कुछ 300000 किलोमीटर चली हैैै। श्रील प्रभुपाद कि पदयात्रा, श्रील प्रभुपाद के पदयात्री, श्रील प्रभुपाद के और से उनका प्रतिनिधित्व करते हुए। यह भी श्रील प्रभुपाद की महानता है। महिमा है, श्रील प्रभुपाद का उन्होंने ऐसी योजना बनाई। इस योजना का उद्देश्य था, की चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो। कैसी भविष्यवाणी?
पृथ्वीते आछे जत नगराादिग्राम।
सर्वत्र प्रचार होईबो मोर नाम।।
मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। सारी पृथ्वी पर होगा। पृथ्वीते आछे जत आप कृपया ध्यान दें। चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान श्रीकृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य, वह क्या कह रहे हैं? मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। होगा, कहां पर पृथ्वी पर। पृथ्वी के सारे नगरों मेंं, ग्रामों में मेरे नाम का प्रचार होगा। इस्कॉन की स्थापना और फिर भविष्य में इस पदयात्रा की बैलगाड़ी पर संकीर्तन पार्टी की योजना। यह बैलगाड़ी संकीर्तन हो गया या फिर पदयात्रा के भी संस्थापक श्रील प्रभुपाद ही हैं। और जारे दाखों तारे कहो हरे कृष्ण उपदेश भी हमनेे कहा था जो श्रीला प्रभुपाद हमसे कहे थे। क्या करो? जारे दाखों तारे कहो हरे कृष्ण उपदेश और हरे कृष्ण का उपदेश करो। 100 देशों में पदयात्रा का आयोजन हुआ। तो कल्पना कर सकते हो की, हरिनाम को कहां कहां तक फैलाएं है यह पदयात्री। एक पदयात्रा तो ग्लास्गो जो इंग्लैंड में है। ग्लास्गो सेेे मास्को तक 5 वर्ष अखंड हररोज हररोज इस पदयात्रा का नाम उन्हें उन्होंने ऑल यूरोप पदयात्रा यूरोपियन पदयात्रा ऐसा नाम तो था। यूरोप के कई देशों की पदयात्रा करते हुए यह पदयात्री ग्लास्गो में या उसके पहले आयरलैंड से इंग्लैंड से फिर हॉलैंड से इसी तरह फ्रांस स्पेन और सभी यूरोपियन देश ज्यादातर यूरोपियन देश इन सभी के उपरांत पदयात्रा मास्को में पहुंच गई। 1996 में 1992 में शुरू हुई पदयात्रा 1996 में मास्को पहुंच गई। मैं भी था उस वक्त वहां पर। मैं समय-समय पर जुड़ता रहा उस पदयात्रा से। और फिर 1996 में जब मास्को पहुंच गई पदयात्रा, फिर उनका स्वागत और अभिनंदन करने के लिए मैं पहुंचा था वहां मास्को में। तो कितनेे नगरों में ग्रामों में हमारे पदयात्री हरिनाम का प्रचार केवल नगरों में और ग्रामों में ही नहीं करते थे, तो बीच-बीच में यह हमारेे पदयात्रा की खासियत है। हरिनाम का प्रचार। पदयात्रा केवल एक नगर या ग्राम में नहीं करती। एक नगर से दूसरे नगर जाते समय रास्ते में भी हरिनाम का प्रचार करते हैं। रास्ते में कई सारे लोग मिलते हैं।
यह पदयात्रा अमेरिकन पदयात्रा, ऑस्ट्रेलियन पदयात्रा, न्यूजीलैंड पदयात्रा। न्यूजीलैंंड एक मोल देश है, लेकिन वहां हमारे यशोदा दुलाल प्रभु वहां इंचार्ज थे। तो जिन जिन नगरों से पदयात्रा गुजरती थी वहां के मेयर स्वागत किया करते थे। कुछ 50 शहर ग्रामों से मेयर नगराध्यक्ष 50 नगराध्यक्ष से मेयर से न्यूजीलैंड के पद यात्रा का स्वागत हो रहा था। वह नगराध्यक्ष जब पदयात्रा गुजर रही थी तो सबसे आगे रहते थे, उस पदयात्रा में। मैं वहां भी था न्यूजीलैंड में तो हमने भी ऐसे कई सारे मेेेयर का अभिनंदन किया। उनको उपहार दिए। प्रभुपाद के ग्रंथ दिए। वे भी इस पदयात्रियों का स्वागत किया करते थे। और श्रीला प्रभुपाद के चरण चिह्न भी थे, गौर निताई भी थे उनके दर्शन किया करते थे। तो कितनों के पास हरिनाम को पहुंचायाा है इस पदयात्रा ने। मैं भी एक ग्रामस्थ था या गांव में मेरा जन्म हुआ था। तो श्रील प्रभुपाद समझ गए ऐसे ही जहां महाराष्ट्र के गांव में पदयात्रा एक सहज बात है। पदयात्रा जैसे दिंडी महाराष्ट्रीयन जब तीर्थ यात्रा में जाते हैं। और यहां का महान तीर्थ महाराष्ट्र की आध्यात्मिक राजधानी पंढरपुर है। तो यहां जब वह चलकर आतेेे हैं उसको डिंडी कहते हैं।
पदयात्राा करते हुए आते हैं। मेरेे पिताश्री भी आया करते थे 100 किलोमीटर चलते हुए। विट्ठठल भगवान की जय! विट्ठल भगवान के दर्शन के लिए। दर्शन के उपरांत फिर 100 किलोमीटर चलते हुए गांव लौटते थे। फिर कई लोग 200 किलोमीटर 500 किलोमीटर की यात्रा करतेेेेे हुए पंढरपुर आते रहे और आजकल भी रहे हैं। तो ऐसे स्थान का मैं महाराष्ट्र के गांव का जन्मा। न जाने कैसे प्रभुपाद इस बात को जाने समझे। और फिर जो सोच रहे हैं की पदयात्रा शुरू करनी है भारत में। तो फिर उन्होंने मेरा स्मरण किया दिल्ली में। 1976, 1 सप्टेंबर 1976 के दिन दिल्ली में राधा पार्थसारथी के मंदिर में वह भी राधा अष्टमी का दिन था। श्रील प्रभुपाद ने मुझे यह पदयात्रा प्रारंभ करने का या बैलगाड़ी पर संकीर्तन पार्टी स्थापन करने का आदेश दिए। ऐसा आदेश देनेेे के लिए ऐसी सेवा देने के लिए मैं श्रील प्रभुपाद का सदैव ऋणी हूँ। ऐसी सेवा मुझे दिए चैतन्य महाप्रभु के सेवा में या चैतन्य महाप्रभु के प्रसन्नता के लिए। चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच करने के लिए। तो ऐसे श्रील प्रभुपाद की जय! ठीक है फिर, मैंने भी कुछ कहे वचन श्रील प्रभुपाद के गुणगान में। ठीक है।
फिर कल जो बचे थे वहां शुरू कर सकते हैं, शब्दांजली।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण!
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम से,
19 नोव्हेंबर 2020
गोर प्रेमानंदे हरि हरि बोल…!
आज 742 अभिभावक उपस्थित हैं। सहस्त्रशह हजार विषय होते हैं लोगों के पास, दुनिया वालों के पास। लोगों के पास हजारों विषय होते विश्राम नहीं है। अंतर तो इतना ही होता है कोई ग्रामकथा वाले होते हैं और हम कृष्ण कथा वाले हैं। जमीन आसमान का अंतर है एक माया और एक कृष्णा अंतर है कि नहीं? दुनिया के अधिकतर लोग माया में है इसलिए माया की बात करते हैं ग्राम कथा करते हैं दूसरी सस्ती बातें करते हैं ठीक-ठाक राजनीतिक वगैरह हरि हरि! किंतु हम हरे कृष्ण वाले कीर्तनीय सदा हरी, नित्यम भागवत सेवया करते हैं। आज मैं इसलिये कह रहा हूं कि आज आप देख रहे हो मेरे अगल बगल में स्क्रीन (परदे) पे श्री द्वारकाधीश की जय…! हम उनका 20 वा स्थापना महोत्सव मना रहे हैं। वे बहुत सुंदर हैं। अनंतशेष है या अदवेदाचार्य घोषणा तो करो हरि हरि! पद्ममाली?
श्रीमान पद्ममाली प्रभु जी ने कहा “जी गुरु महाराज अनंतशेष प्रभु को- होस्ट हैं। क्या आप बात करेंगे?”
श्रीमान अनंत अशेष प्रभु जी ने कहा ” हां” प.पू.लोकनाथ महाराज जी ने कहा “घोषणा करो।क्या हो रहा है आज अमरावती में?”
श्रीमान अनंत अशेष प्रभु जी ने कहा “गुरु महाराज के चरणों में सादर दंडवत प्रणाम। अन्य भक्तों के भी चरणों में विशेष प्रणाम हैं। आज हमें आपको बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि इस्कॉन अमरावती के श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश के हम 20 वी वर्षगांठ मना रहे हैं।20 वा वर्धापन दिन जीसे कहा जाता हैं।ठीक 20 वर्ष पूर्व 19 नवंबर 2000 को श्री श्री रुक्मिणी व्दारकाधीश का अमरावती में महाराज श्री के कर कमलों से उनका प्राण प्रतिष्ठा उत्सव मनाया गया था इस वर्ष हमारा बहुत भव्य उत्सव मनाने का सोच रहे थे लेकिन वर्तमान परिस्थिति के अनुसार वह संभव नहीं हो सका लेकिन फिर भी महाराज जी के प्रसन्नता के लिए आज उत्सव मनाया जा रहा हैं। आप सभी भक्त इस कार्यक्रम में सम्मिलित हो सकते हैं। क इस्कॉन अमरावती यूट्यूब चैनल पर संध्याकालीन उत्सव रहेगा जिसमें रुक्मिणी द्वारकाधीश का पुष्पा उत्सव और दीप उत्सव रहेगा आप सब देख सकते हैं।”
प.पू. लोकनाथ महाराज जी ने कहा “टाइमिंग बताओ!”
श्रीमान अनंतशेष प्रभु जी ने कहा “शाम को 6: 00 से 9:00 बजे तक रहेगा महाराज इसमें श्री श्री रुक्मिणी व्दारकाधीश के छोटे विग्रह काअभिषेक रहेगा फिर पुष्प अभिषेक बाद में दिपोत्सव भी रहेगा। आप सभी भक्त अवश्य श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश कि कृपा प्राप्त करें।अच्छा होता कि गुरु महाराज हमारे साथ यहां पर होते किंतु महाराज जी के चरणों में यही निवेदन है कि अपना आशीर्वाद बनाएं रखें ताकि हम श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश कि सेवा कर सके और उन्हें प्रसन्न कर सके।”
प. पू. लोकनाथ महाराज जी ने आगे कहा… हरि हरि!
रुक्मिणी द्वारकाधीश कि जय…!
आप जानते हो ना अमरावती कहा हैं। वैसे ये नाम तो इंद्र के राजधानी का नाम है अमरावतीऔर एक अमरावती पृथ्वी पर विदर्भ में है और विदर्भ में ही है राजा भीष्मक राज करते थे उसेकौंडीन्यपुर कहते हैं। उनकी राजधानी कौंडीन्यपुर वरदायिनी पवित्र नदी के तट पर स्थित यह कौंडीन्यपुर में ही जन्म हुआ रुक्मिणी मैया की जय…! इसके लिए कौंडीन्यपुर के बगल में ही आप समझ रहे हैं ना जस्ट लोकेशन यह पृथ्वी पर कहां है अमरावती यह भी समझना होगा। महाराष्ट्र में है फिर नागपुर जानते होंगे नागपुर से कुछ 150 किलोमीटर दूर अमरावती अमरावती भी प्रसिद्ध नगर है और अमरावती ये कौडीन्यपुर के सानिध्य में निकट है और यहां के विग्रह रुक्मिणी द्वारकाधीश का नाम रुक्मिणी द्वारकाधीश इसलिए रखा है कि व्दारका से द्वारकाधीश आए और कहां आये वे कौडीन्यपुर में आए और रुक्मणी का हरण हुआ। रुक्मणी हरण की लीला आप सब भागवत में पढ़ते हो वह स्थली कौंडीन्यपुर हैं। वहां से रुक्मिणी हरण करके वहां से जब द्वारका के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो अमरावती होते हुए आगे बढ़े। बहुत प्रसिद्ध लीला है यह रुक्मिणी हरण लीला। हरि हरि!
वृंदावन से मथुरा, मथुरा से भगवान द्वारिका आए तो सर्वप्रथम रुक्मिणी हरण की लीला का वर्णन शुकदेव गोस्वामी जी सुनाते है किंतु जब तक रुक्मिणी द्वारका नहीं पहुंच ती और वह पटरानी नहीं बनती तो नहीं वहां की लीला यदि आगे नहीं संपन्न हो सकती हो सकती थी इसलिए द्वारका की लीलाओं का वर्णन सुनाने में ही शुरुआत में रुक्मिणी हरण लीला शुकदेव गोस्वामी ने कई अध्यायों में सुनाई हैं। इस प्रकार रूक्मिणी और द्वारकाधीश का सर्वप्रथम मिलन विदर्भ में हुआ कौंडीन्यपुर में हुआ और हरि हरि! वैसे ही कुछ मान्यता तो है कौंडीन्यपुर से या रूक्मिणी आयीं अमरावती में।अमरावती में रन हुआ हैं।
अमरावती में ही रुक्मणी देवी की आराधना कर रहे थे ऐसे भी कथाएँ है ऐसी भी लीलाएंँ सुनाते हैं।लेकिन हमारी समझ तो यह है कि यह सब रुक्मिणी ने पूजा वैसे कौंडीन्यपुर में ही की और भगवान श्री कृष्ण भी कौंडीन्यपुर में हि पहुंचे पीछे से बलराम भी आए और रुक्मणी हरण जहां हुआ वहां वैसे हमारा दावा है इस्कॉन वाले कहते हैं इस्कॉन का प्रोजेक्ट(परियोजना) कौंडीन्यपुर में भी हैं। कौंडीन्यपुर धाम कि..और इस्कॉन कौंडीन्यपुर कि जय…! इस्कॉन अमरावती की जय…! यह दोनों का घनिष्ठ संबंध हैं। यह दो इस्कॉन। कौंडीन्यपुर इस्कॉन का और अमरावती इस्कॉन का। जिस स्थान से हरण हुआ वह स्थान अब इस्कॉन के पास हैं। हमारी 5 एकड़ भूमि है कानपुर में। रुक्मिणी जब पूजा के उपरांत पुन्हा: अपने महल पहुंच रही थी तो प्रतीक्षा स्थल जो रुक्मिणी ने कहा था पत्र में, प्रेम पत्र जो भेजा था उसमें लिखा था कि हम कहां पर मिलेंगे। वह मिलन का स्थान कौन सा होगा? इस्कॉन की जो जमीन है कौडीन्यपुर में वहा कई सारे कदम के वृक्ष भी है यहा हमारे अक्रूर प्रभु का कहना है समझ लो उनका कोई साक्षात्कार है। भगवान ने पहने हुए कदम के पुष्प वहा कुछ गिरे तो वह भूमि में कई सारे कदम के वृक्ष भी पैदा हो गये में आज भी है।
रुक्मिणी द्वारकाधीश नाम भी हुआ और इसलिए हमने इस्कान के विग्रह का नाम… हम कौन होते हैं नामकरण करने वाले लेकिन कुछ करना ही पड़ता है तो हमने यही सब लीला का स्मरण करते हुये हमने रुक्मिणी द्वारकाधीश की प्राण प्रतिष्ठा की आज के दिन हो रही थीं। आज विशेष दिन हैं। शुभ दिन है और हमारी वैदर्भी माताजी वर्मा परिवार इनके प्रयास से इस्कॉन को उन्होंने कुछ भूमि भी दिलवायी थी। पहले ही उनकी पूजा हो चुकी थी फिर आज के दिन मंदिर का निर्माण नांँट फाइनल लेकिन टेंपरेरी बन गया और फिर आज के दिन रुक्मणी द्वारकाधीश कि प्राण प्रतिष्ठा हुई।इस प्रकार विशेष उत्सव संपन्न हुआ। वह उत्सव अविस्मरणीय हैं। यह श्रील प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए इस्कॉन की अमरावती में स्थापना हुई प्रभुपाद की प्रसन्नता के लिए ही अमरावती में रुक्मिणी द्वारकाधीश कि प्राण प्रतिष्ठा हुई और यह मंदिर का लोकार्पण हुआ और फिर सबका कल्याण हो!भगवान के दर्शन का, सेवा का अवसर प्राप्त हो! हरि हरि!
श्रील प्रभुपाद स्वयं भी कई सारे अपने जीवन में यह बालक 108 मंदिरों का निर्माण करेगा ऐसी भविष्यवाणी हुई थी जब प्रभुपाद जन्मे थे। कुंडली पडीं तो, श्रील प्रभुपाद ने संकल्प पूरा किया। सौ से भी अधिक मंदिरों का निर्माण किये। लक्ष्य तो प्रभुपाद का था
पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम।
सर्वत्र प्रचार हैइबे मोर नाम।।
(चैतन्य भागवत अंत अध्याय 4 श्लोक 126)
अनुवाद: – पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गांव है उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।
हमको भी उपदेश दिए प्रभुपाद।महाराष्ट्र में धर्म का प्रचार करो! महाराष्ट्र के लोगों का उन्हें कृष्ण भावना भावित करो! आजकल के नेता राजनेता बिगाड़ रहे हैं। यह तुकाराम का देश हैं। हरि हरि! जब हम ने महाराष्ट्र में प्रचार शुरू किया और अलग-अलग स्थानों पर इस्कॉन की स्थापना हो रही तो सर्व प्रथम उनमें से अमरावती एक हैं। अब तो कई सारे मंदिर बन रहे हैं। या प्रचार बढ़ रहा हैं। तब कम था 20 साल पूर्व प्राण प्रतिष्ठा हुई तो उसके कई साल पहले अमरावती में प्रचार शुरू किए थे।इस प्रकार अमरावती में द्वारकाधीश पधारे। सुवर्णा मंजरी जाति को मंदिर में कई सारे गौडीय वैष्णव। हिंदू तो थे ही अमरावती में अब गौडीय वैष्णव अमरावती में है और गौडीय वैष्णव बनके फिर विग्रह की आराधना करते हैं। इस्कॉन में विग्रह आराधना ही सर्वोपरि है। गौडीय वैष्णव के जो भाव है वे जैसे विग्रह को समझते हैं।
श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना।
श्रृंगार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ।
युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥
(श्री गुर्वाष्टक श्रील विश्वनाथ ठाकूर विरचित श्लोक 3)
अनुवाद:-श्रीगुरुदेव मन्दिर में श्रीश्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में रत रहते हैं तथा वे अपने शिष्यों को भी ऐसी पूजा में संलग्न करते हैं। वे सुन्दर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषणों से श्रीविग्रहों का श्रृंगार करते हैं, उनके मन्दिर का मार्जन करते हैं तथा इसी प्रकार श्रीकृष्ण की अन्य अर्चनाएँ भी करते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
ऐसे आचार्य के चरणों की वंदना करते हैं। क्या करते हैं वैसे? युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वैसे विग्रह
आराधना आचार्य की सेवा होती हैं। विग्रह आराधना कैसे करते है आचार्य? युक्तस्य भक्तांश्च भक्तों से शिष्यो से अनुयायियों से युक्त हो के उनके साथ या उनको दे देते है या लगा देते हैं। विग्रहों की आराधना में। श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना। श्रृंगार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ।
भगवान प्रकट होते हैं विग्रह के रूप में यह दर्शन का ही नहीं।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय18 श्लोक65)
अनुवाद: -सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो |
यह सब संभव होता है जब भगवान विग्रह के रूप में प्रकट होते हैं फिर हम ग्रुप में नहीं द्वारकाधीश के भक्त बनते हैं उनकी आराधना करते हैं उनकी आरती उतारते हैं तब पुजारी आरती नहीं करता जो उपस्थित है वे सभी आरती कर रहे हैं उपस्थित भक्तों की ओर से एक व्यक्ति आरती करता है आरती अधूरी रहेगी अगर साथ में कीर्तन नृत्य नहीं हो रहा है
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
भगवान भक्तों को यह सब कहते हैं करने के लिए भगवत गीता में। सब आसान प्रैक्टिकल(व्यवहारिक) हो जाता हैं। जब भगवान विग्रह के रूप में प्रकट होते हैं। जब से प्रागट्य हुवा है श्री श्री रुक्मिणी व्दारकाधीश का तब से आराधना हो रही हैं। श्रृंगार हो रहा हैं। स्मरण कर सकते हैं हम रुक्मिणी द्वारकाधीश के भक्त बनते हैं हम उनकी आराधना करते हैं आरती उतारते हैं तो पुजारी आरती नहीं करता गुरु गुरु आरती करते हैं सब भक्तों की ओर से एक व्यक्ति आरती करता है आरती अधूरी रहेगी अगर साथ में गिरते नहीं हो रहा है मन मना भव भक्तों श्लोक जब भगवान करने के लिए कहते हैं भगवत गीता में यह सब आसान हो जाता है और प्रैक्टिकल हो जाता है जब भगवान के विग्रह प्रकट होते हैं उनका प्राकृतिक हुआ श्री द्वारकाधीश का और वे चल रहा है आराधना हो रही है श्रृंगार हो रहा हैं।
मन्दिर-मार्जन भी हो रहा हैं। आवश्यक है वे भी हो रहा है और बहुत कुछ अमरावती में हो रहा है अनंतशेष के नेतृत्व में तो हम आभारी हैं। इसके कारण बने कारनीभूत हुए इसके कारण बने भूमि दान हुआ। विग्रह की स्थापना हुई। धनराशि लगाई और फिर एक प्रकार की प्रचार प्रसार और उत्सव मनाए जा रहे हैं। अमरावती कि जनता
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।
नारायणयेति समर्पयामि ॥
अनुवाद: -काया, वाचा, मनसा, इन्द्रिय, बुद्धि या आत्मा की प्रवृत्ति से अथवा स्वभाव के अनुसार जो कुछ हम किया करते हैं, वह सब परात्पर नारायण को समर्पण कर दिये जायँ। यही भक्ति की वास्तविक भूमि है।
कायेन वाचा मनसा द्वारकाधीश की सेवा कर रहे हैं। ऐसे ही करते रहिए। बढ़ाइए और सेवा को और अपना जीवन बनाइए। वैसे मैं आपको कल मैंने कहा था कि बोलने के कहीं विषय हैं। उनमे से रुक्मिणी द्वारकाधीश एक विषय हैं। परिक्रमा भी एक विषय हैं। हम क्या करते हैं यह भी एक विषय हैं। परिक्रमा को आप ज्वाइन कीजिए। परिक्रमा को देखिए, सुनिए। वर्चुअल परिक्रमा।
श्रील प्रभुपाद तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय…! कल हम ने श्रील प्रभुपाद तिरोभाव महोत्सव मनाया और उनमें से कई सारे भक्त श्रील प्रभुपाद की गुण गान करना चाहते थे कईयों ने किया भी कुछ बचे भी थे कंटिन्यू करो।
हरे कृष्ण…!
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जप चर्चा
18 नवम्बर 2020
हरे कृष्ण!
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अनुवाद:- मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से मेरी आँखें खोल दी। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ।
आज का दिन भी विशेष दिन है। पता है ना आपको? पद्मजा जानती हो? जगन्नाथ स्वामी, जानते हो? आज का दिन विशेष, महान है। हरि! हरि!
आज श्रील प्रभुपाद का तिरोभाव तिथि महोत्सव है। श्रील प्रभुपाद की जय!
जब श्रील प्रभुपाद ने प्रस्थान किया तब वैसे मैं श्रील प्रभुपाद के क्वार्टर अथवा बगल में ही था । वे, हमें पीछे छोड़ कर, आगे बढ़े। तब हमारे पास क्रन्दन करने के अतिरिक्त कुछ नहीं था।श्रील प्रभुपाद का क्वार्टर उनके विश्व भर के भक्तों व शिष्यों की उपस्थिति से पूरा भरा हुआ था। सभी तो नहीं थे लेकिन काफी उपस्थित थे। हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।। कह अथवा गा रहे थे। हम सभी साथ में गा रहे थे। वहाँ कोई एक भक्त लीड कर रहा है और दूसरे कोर्स में पीछे गा रहे हैं, ऐसा नही हो रहा था। सभी एक सुर में रो रहे थे और वो रोना भी गायन था और कृष्ण का नाम ही पुकार रहे थे। हरि! हरि!
वैसे शिष्य के जीवन में गुरु जैसा कोई और व्यक्तित्व नहीं हो सकता। इस संसार में हम कई लोगों के सम्पर्क में आते हैं और उनसे मिलते हैं, उनके साथ रहते हैं, उनसे सुनते हैं, यह संसार चलता रहता है। संसार करोड़ो लोगों से भरा पड़ा है। ‘मिलियन्स और बिलियन्स ऑफ ह्यूमन बीइंगस।’
मेरा अनुभव रहा कि उनमें एक व्यक्ति अर्थात मेरे जीवन में श्रील प्रभुपाद ने जितना मुझे प्रभावित किया। श्रील प्रभुपाद जितना मेरे जीवन में बदलाव, परिवर्तन अथवा क्रांति लाए, ऐसा और किसी ने नहीं किया। हरि! हरि!
भाई थे, बहनें थी, निश्चित ही माता- पिता थे, बंधू थे, पड़ोसी थे, सहपाठी थे, ये थे, वे थे अर्थात दुनिया भर के लोग थे लेकिन एक व्यक्ति अर्थात श्रील प्रभुपाद ने मुझे प्रभावित किया। श्रील प्रभुपाद की जय!
श्रील प्रभुपाद सेनापति भक्त थे। वे गौरांग महाप्रभु के प्रतिनिधि थे। श्रील प्रभुपाद के पास मेरे लिए गौरांग महाप्रभु या श्री कृष्ण का संदेश था। श्रील प्रभुपाद ने मुझसे भी कहा, जब वे सभी को सम्बोधित कर रहे थे तब मुझे समझ में आया कि यह बात तो मेरे लिए ही कही जा रही है। श्रील प्रभुपाद ने वैसे कुछ अन्य विशेष बातें अथवा आदेश- उपदेश मेरे लिए ही कहे। प्रभुपाद ने मुझसे कहा कि “तुम तो पहले से ही सन्यासी हो, लेकिन क्या औपचारिकता को पूर्ण करना चाहते हो।” मैंने कहा- “हाँ, हाँ श्रील प्रभुपाद।” प्रभुपाद ने कहा- “ठीक है। वृंदावन जाओ। मैं वहाँ तुम्हें सन्यास दूंगा।” यह एक संवाद हुआ। वैसे मैंने पूरा ग्रंथ ही लिखा हैं- इन कन्वर्सेशन विद् श्रील प्रभुपाद।’ जिसका हिंदी में
‘गुरुमुख पद्म वाक्य’ शीर्षक है। श्रील प्रभुपाद के साथ व्यक्तिगत रुप या कभी कुछ भक्तों के सङ्ग में संवाद अथवा प्रश्न उत्तर या आदेश उपदेश हमें सैकड़ों बार प्राप्त हुए।
हरि हरि!
श्रील प्रभुपाद ने वो सब बातें कही कि भगवान् की बात गुरुमुख पद्म वाक्य कही।
गुरुमुख पद्म वाक्य, चितेते करिया ऐक्य, आर न करिह मने आशा। श्रीगुरुचरणे रति, एइ से उत्तम-गति, ये प्रसादे पूरे सर्व आशा॥2॥
अर्थ:-
मेरी एकमात्र इच्छा है कि उनके मुखकमल से निकले हुए शब्दों द्वारा अपनी चेतना को शुद्ध करूँ। उनके चरणकमलों में अनुराग ऐसी सिद्धि है जो समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है।
श्रील प्रभुपाद की जय!
गुरु के मुखारविंद से निश्चित ही जो वचन थे, चितेते करिया ऐक्य, उसने मेरी चेतना अथवा विचारों को कुछ ऐक्य ( एकता) अथवा केन्द्रित किया। भगवान भी भगवत गीता में कहते हैं-
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।
( श्री मद् भगवतगीता २.४१)
अनुवाद:- जो इस मार्ग पर (चलते) हैं वे प्रयोजन में दृढ़ रहते हैं और उनका लक्ष्य भी एक होता है | हे कुरुनन्दन! जो दृढ़प्रतिज्ञ नहीं है उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है।
हम यह सोचते है, वह सोचते है। सब खींचातानी चलती रहती है। मन की दुविधा कि यह करें, यह ना करें चलता रहता है। ऐसे मन की स्थिति के विषय में श्रील प्रभुपाद या आचार्य गुरुवृन्द क्या करते हैं- चितेते करिया ऐक्य आर न करिह मने आशा। यही बात श्रील प्रभुपाद ने मुझ से भी कही थी। मैं, श्रील प्रभुपाद के साथ अकेला ही था। सन 1977 मुंबई में श्रील प्रभुपाद ने कहा- ‘आर न करिह मने आशा।’
हम गुरु पूजा के समय जो गीत गाते हैं जिसे नरोत्तम दास ठाकुर ने लिखा हैं। श्रील प्रभुपाद ने उसे ही मुझे दोहराया और मुझे समझाया कि ‘आर न करिह मने आशा।’ हरि! हरि!
यार देख , तारे कह ‘ कृष्ण ‘ – उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हजा तार ‘ एइ देश ॥
( श्री चैतन्य चरितामृत ७.१२७)
अनुवाद ” हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । “
श्रील प्रभुपाद ने मुझे सन्यास भी दिया और एक विशेष प्रकार का आदेश किया कि तुम पदयात्रा करो। बैल गाड़ी संकीर्तन करो। तुम वृंदावन से मायापुर जाओ। यह हो सकता है या सम्भावना है अथवा तुलना की जा सकती है। जब जीव गोस्वामी वृंदावन में थे तब तीन आचार्यों (श्याम नंद पंडित, नरोत्तम दास ठाकुर, श्रीनिवास) अर्थात जिनको हम आचार्य त्रयः भी कहते हैं, को कहा कि तुम बंगाल जाओ, मायापुर की ओर जाओ। नवद्वीप जाओ। उनको भी बैल गाड़ी से जाना था। बैल गाड़ी की क्या जरूरत थी? हमारे जो गौड़ीय वैष्णव ग्रंथ है, उन सारे ग्रंथो को गाड़ी में लोड करके गौड़ीय वैष्णव समाचार/ संदेश के रूप में गौड़ बंगाल या गौड़ देश में पहुंचाओ।जीव गोस्वामी ने ऐसा आदेश उन आचार्य त्रयः को दिया। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि श्रील प्रभुपाद ने भी मुझे जो आदेश दिया, वह आदेश भी ऐसा ही था। जिस मार्ग पर वे आचार्य त्रयः (श्याम नंद, श्रील नरोत्तम दास ठाकुर और श्रीनिवास आचार्य) चले थे, उसी मार्ग पर हमें बैल गाड़ी से आगे बढ़ना था। उस कार्यक्रम अथवा उपक्रम का शुभारंभ श्रील प्रभुपाद की उपस्थिति में श्रील प्रभुपाद के क्वाटर वृंदावन में ही हुआ था। हम श्रील प्रभुपाद के चरणों में बैठे थे तब घण्टे भर के लिए उनसे कई सारी बातें हुईं। श्रील प्रभुपाद हमें और स्फूर्ति दे रहे थे अर्थात हमारा मार्गदर्शन कर रहे थे। अंत में उन्होंने फाइनल आदेश कहा- उन्होंने मुझे कहा यारे देख, तारे कह ‘हरे कृष्ण ‘ – उपदेश । चैतन्य महाप्रभु ने कूर्म ब्राह्मण को कहा था- ‘यारे देख , तारे कह ‘ कृष्ण ‘ – उपदेश’ लेकिन श्रील प्रभुपाद ने थोड़ा परिवर्तन करके मुझे कहा- ‘यार देख , तारे कह ‘हरे कृष्ण ‘ – उपदेश।’ कुछ भेद है और नही भी है, ऐसा कह सकते हैं।
मैंने समझा कि यारे देख, तारे कह ‘हरे कृष्ण ‘ – उपदेश करो- हरे कृष्ण महामंत्र के प्रचार व प्रसार करो। श्रील प्रभुपाद ने ऐसा आदेश मुझे दिया। क्यों? प्रश्न पूछा जा सकता है ।
नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी प्रचारिणे
निर्विशेष – शून्यवादी-पाश्चात्य- देश- तारिणे।
श्रील प्रभुपाद जब स्वयं ही गौरवाणी का प्रचार कर रहे थे। उनका गौरवाणी का प्रचार करने का उद्देश्य क्या था?
पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम।सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।।
( चैतन्य भागवत)
अर्थ:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गांव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।
श्रील प्रभुपाद इस भविष्यवाणी को सच करके दिखाना चाहते थे। तत्पश्चात उद्देश्य रहा- बैलगाड़ी से हमें यात्रा और प्रचार करना है या पदयात्रा करनी है। करना क्या है? श्रील प्रभुपाद कहते थे- यारे देख, तारे कह ‘हरे कृष्ण’ – उपदेश। जिससे अधिक से अधिक गांव व नगरों में हरि नाम का प्रचार बढे़। श्रील प्रभुपाद ने ऐसा प्रचार करने का आदेश- उपदेश भी मुझे किया। हरि! हरि! अन्य भी कई सारे उपदेश- आदेश दिए। आप उस ग्रंथ को पढ़िएगा। ‘ इन कन्वर्सेशन विद् श्रील प्रभुपाद या हिंदी में गुरु मुख पदम् वाक्य। अब अन्य कई भाषाओं में इस ग्रंथ को छापा जा रहा है। अन्य कई ग्रंथ भी हैं कि जब ग्रंथ की बात चल रही है, आप श्रील प्रभुपाद की गौरवगाथा सुनना चाहते ही हो। मैनें श्रील प्रभुपाद की गौरव गाथा और भी कई अन्य ग्रंथों में भी लिखी है। ‘मायापुर वृंदावन फेस्टिवल’ नाम का एक और ग्रंथ है। श्रील प्रभुपाद के समय वाले अर्थात श्रील प्रभुपाद जिन उत्सवों के केंद्र में रहते थे और उन उत्सवों में श्रील प्रभुपाद, हम सभी को स्फूर्ति प्रदान करते थे। वे उत्सव इस्कॉन अथवा हरे कृष्ण आंदोलन का बहुत बड़ा अंग रहे। मैंने एक मायापुर वृंदावन उत्सव ग्रंथ नामक लिखा है- आप उसको भी पढ़िएगा। मेरे प्रभुपाद अथवा मांझे प्रभुपाद नाम का भी एक ग्रंथ है जिसमें अधिकतर मेरी श्रद्धांजलियां जो व्यास पूजा के समय लिखी जाती है। वो उसमें प्रकाशित हुई हैं। अन्य भी कुछ गौरव गाथा कथा उसमें लिखी हैं।
मेरे प्रभुपाद में- प्रभुपाद द्वारा मुझे लिखे हुए कुछ पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। एक और विशेष ग्रंथ कहूंगा- जो मुंबई के सम्बंध में है- बॉम्बे इज माई आफिस। प्रभुपाद कहा करते थे- बॉम्बे मेरा आफिस है, मायापुर मेरा तीर्थ है और वृंदावन मेरा घर है। बॉम्बे इज माई आफिस- जब मैनें इस्कॉन को जॉइन किया तब हमनें, श्रील प्रभुपाद के बॉम्बे ऑफिस को जॉइन किया। हम श्रील प्रभुपाद के ऑफिस के नौकर चाकर बने। उन्होंने हमें नौकरी दी। हम एक स्टाफ के रुप में आए। हम मुंबई में श्रील प्रभुपाद के सानिध्य में रहे और हम बम्बई के भक्तों व ब्रह्मचारियों को प्रभुपाद का बहुत संग मिला क्योंकि श्रील प्रभुपाद या हर व्यक्ति दफ्तर में अधिक समय व्यतीत करता है। श्रील प्रभुपाद भी मुम्बई में बहुत सारा समय बिताया करते थे। मैंने एक ग्रंथ लिखा है- उस ग्रंथ का नाम ही ‘बॉम्बे इज माई आफिस’ ( मुंबई मेरा ऑफिस) है। वह भी पढ़ने योग्य ग्रंथ है जिसमें आपकी प्रभुपाद के साथ मुलाकात या आपका अधिक परिचय प्रभुपाद से होगा। मैंने, श्रील प्रभुपाद को किस प्रकार समझा। प्रभुपाद का सानिध्य या प्रभुपाद का मार्गदर्शन किस प्रकार मुंबई में प्राप्त हुआ या प्रभुपाद की दिनचर्या अर्थात वे प्रात:काल से सायं काल तक कैसे दिन बिताया करते थे। उनको मुंबई में हरे कृष्ण भूमि के लिए कितना अधिक संघर्ष करना पड़ा। एक दृष्टि से वह कुरुक्षेत्र का मैदान हुआ। वहाँ महाभारत जैसा युद्ध चल रहा था। वहाँ जिस मालिक ने, प्रभुपाद को जमीन की भूमि बेची थी।….
वह सब संघर्ष की बात है। ये इस्कॉन के प्रारंभिक दिन थे। प्रभुपाद व उनके शिष्यों या उनके अनुयायियों को भारतवासी नही समझ रहे थे और ना ही समझना चाहते थे। यह सब बातें आप बॉम्बे इज माई ऑफिस में पढ़ सकते हो। ठीक है, मैं यहां रुक जाता हूँ। वैसे मैं दिन में भी शब्दांजलि मंदिर में संस्मरण या गौरवगाथा कहूंगा। उस समय भी मैं कहने वाला हूँ। इसलिए मैनें सोचा था कि हम आप से भी सुन सकते हैं व औरों को सुना सकते हैं।
आप में से कोई भक्त, वैसे तो आप सभी भी प्रभुपाद से प्रभावित हुए ही हो। यदि प्रभुपाद नही होते तो क्या होता। कल्पना भी नही कर सकते। प्रभुपाद ने कैसे आपका जीवन में प्रभाव डाला है या आप कैसे लाभान्वित हुए हैं इत्यादि-इत्यादि। आप में से कुछ भक्त एक या दो मिनटों में शब्दांजलि कर सकते हैं। चलिए प्रारंभ करते हैं।
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हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
17 नवंबर 2020
आज हमारे साथ 655 भक्त जप कर रहे है। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। आप सभी का स्वागत है। कईयों का स्वागत नहीं हो रहा,क्योंकि वे सेशन ज्वाइन नहीं कर रहे है। ना जाने क्यों क्या हुआ है। जरा पता लगाओ हमारे टीम में से कई लोग अब जपा टॉक सुन नहीं रहे है। तो आप मिलकर विचार करो। तो आप विचार कर सकते हो कि कौन आजकल नहीआ रहा? क्या हुआ है? क्यों ज्वाइन नहीं कर रहे है? यह बड़ा विशेष मास है कार्तिक मास है! कार्तिक व्रत संपन्न हो रहा है। हमें व्रती बनना है, जो व्रती होता है वह जो व्रत का पालन करता है। उसे व्रती कहते हैं। जो कथा श्रवण का व्रत लेता है उसे वृत्ति कहते हैं।जो मैं कथा सुन लूंगा ऐसा व्रत लेता है उसे वृद्धि कहते हैं। ऐसे ही यह कार्तिक व्रत के आप सभी वृत्ति हो या और उन्हें भी व्रत लिया था। लेकिन आप इस सेशन में दिख तो नहीं रहे हैं। पर मालीपुर कुछ विचार करो हमारा टारगेट था कि स्टेशन को हाउसफुल करना है। इस जूम कॉन्फ्रेंस की कैपेसिटी 1000 की है तो रिक्त स्थानों की पूर्ति करो! रिकामी जागा भरा ऐसा मराठी में कहते हैं तो जो रिक्त स्थान है उसे भरने की बातें चल रही थी किंतु रिक्त स्थानों की संख्या बढ़ गई है, घटने की वजह बढ़ गई है। और यह गंभीर मामला है इस पर आप विचार करो ठीक है।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
तो आप परिक्रमा देख रहे हो सुन रहे हो? सबको प्रेरित करते रहिएगा, ज्वाइन करते रहिएगा। कल परिक्रमा बरसाने में ही थी। तो परिक्रमा बरसाने में हे और आज उसका नंदग्राम में प्रस्थान हुआ है आपने गोवर्धन पूजा जरूर की होगी और कल परिक्रमा भी हुई तो गिरिराज गोवर्धन की जय! गोवर्धन पूजा महोत्सव की जय! हरि हरि। तो कृष्ण ने कहा था नंद बाबा और ब्रज वासियों को की गोवर्धन की पूजा करो! तो उस आदेश का आपने भी पालन किया अगर आपने कल गोवर्धन पूजा की है और गोवर्धन पूजा में सम्मिलित हुए हो, वैसे यहां भी पंढरपुर में गोवर्धन पूजा किए कई सारे भक्त! लेकिन हमारे अलावा, इस्कॉन भक्तों के अलावा और कोई गोवर्धन पूजा नहीं मना रहा था। भारत भर में ना गोवर्धन पूजा होती है ना तो गोवर्धन को जानते हैं! ना उसकी पूजा करते है! वे गणेश पूजन, दुर्गा पूजन करते हैं यह पूजन प्रसिद्ध है। जो लोग काम ही होते हैं वह आपने यह कामना की पूर्ति के लिए अन्य देवता या अन्य देवों के पास पहुंचते हैं उनकी पूजा करते हैं। यह बात भगवान को पसंद नहीं है जब हम गोवर्धन की पूजा करते हैं तो भगवान प्रसन्न होते हैं हरि हरि! स्वयं महादेव भोले शंकर, पार्वती से कहे राधा कृष्ण की आराधना और वृंदावन धाम की आराधना करनी चाहिए लेकिन जो अन्य देवता के उपासक हैं, वह गोवर्धन पूजा ना जानते हैं ना करते हैं। यह दुर्दैव है। मुझे इस संबंध में ज्यादा नहीं कहना और जो मायावादी या निराकारवादी है उनका विश्वास तो भगवतधाम में नही है। वह बस मानते हैं कि, ब्रह्माज्योति है। हरि हरि। बस उन्हें ब्रह्म में लीन होना है।
उनका लक्ष्य यह नहीं होता कि भगवत धाम में प्रवेश करना है, और भगवान से मिलना है, या भगवान से खेलना है ऐसा लक्ष्य मायावादी का नहीं होता। और इनकी बहुत बड़ी संख्या है। हिंदू या मुसलमान भी मायावती है। राधा कृष्ण एक समय कैसे वहां मुश्किल से उनका मिलन हुआ , कई सारे विघ्न आते हैं । जब वह बैठे थे एक दूसरे से मिल रहे थे , गले लगा रहे थे एक दूसरे को अपने दिल की बात *गृह्यम आख्याति पृश्चती* कह रहे थे , इतने में एक बभ्रमर उनके ऊपर ही मंडरा रहा था , तब मधुमंगल आए लाठी लेकर उन्होंने इस भ्रमर को भगाया और जब वह जा रहे थे तब कहा , मधु को मैंने भगाया! यह सुनते ही राधा रानी ने सोचा कि बड़े मुश्किल से हम मिल रहे थे किंतु इस बदमाश मधुमंगल ने , मधु को मेने भ्रमर कोे भगाया ऐसे कहा था लेकिन राधारानी ने सोचा कि मेरे मधुसूदन को उसने भगाया और फिर पुन्हा में अकेली रह गई ऐसा सोचती हुई राधा रानी बहुत दुखी थी , उसको दुख हुआ जब कृष्ण पून्ह उनको छोड़कर चले गए तो राधा रानी रोने लगी , कंदन करने लगी , आंसू बहाने लगी , अश्रु की धाराएं बहने लगी । हरि हरि । हे राधे ! क्या हुआ तुमको ? मैं तो यही हूं , क्यों दुखी हो ?क्यों रो रही हो ? ऐसा सारा प्रयास कर रहे हैं कृष्ण उसको स्मरण दिलाने का की मैं यही हूं , तुम्हारे साथ हूं , तुम्हारे साथ ही हूं । लेकिन राधा रानी ना तो सुन रही है , ना तो मान रही है , ना ही स्विकार कर रही है कि कृष्ण वहीं पर है । वह तो सोच रही थी कि कृष्ण चले गए हैं मुझे अकेली को छोड़ कर ।
यह राधा का भाव है , यह राधा की भक्ति है , ऐसी राधा की विप्रलम्ब स्थिती जब हो जाती है , वीरह की व्यथा का राधा रानी जब अनुभव कर रही थी तो उसका दर्शन करते हुए , उसका अनुभव करते हुए श्री कृष्ण अब अश्रु बहाने लगे । अश्रु धारा उनके नेत्र कमलों से बहने लगी और फिर राधा रानी के अश्रु की धाराएं और कृष्ण के नेत्रों से उत्पन्न अश्रू धाराएं वहां तो तालाब बन गया । जहां जल अश्रु बिंदू ,अश्रू धाराये एकत्रित हुई या मिश्रित हुई राधा की अश्रू धाराये और कृष्ण की अश्रू धाराये इनका मिलन हो रहा है और वैसे ही सरोवर बन गया और यही है प्रेम सरोवर । यही है प्रेम की कहानी , यह प्रेम सरोवर आज भी हमें लीला का स्मरण दिलाता है । हरि हरि । आगे बढ़ते हैं एक संकेत नाम का स्थान है , संकेत बिहारी मंदिर भी है । यहां पर वैसे गोपाल भट्ट गोस्वामी का भजन कुटीर भी है और इस भजन कुटीर को आप देखोगे तो हैरान हो जाओगे , इतना छोटा सा भजन कुटीर है । भजन कुटीर मतलब तपस्या की स्थली , ऐशो आराम का महल नहीं है
*कृष्णोत्कीर्तन- गान-नर्तन-परौ प्रेमामृताम्भो-निधी धीराधीर-जन-प्रियौ प्रिय-करौ निर्मत्सरौ पूजितौ श्री-चैतन्य-कृपा-भरौ भुवि भुवो भारावहंतारकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ नाना-शास्त्र-विचारणैक-निपुणौ सद्-धर्म संस्थापकौ लोकानां हित-कारिणौ त्रि-भुवने मान्यौ शरण्याकरौ राधा-कृष्ण-पदारविंद-भजनानंदेन मत्तालिकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ श्री-गौरांग-गुणानुवर्णन-विधौ श्रद्धा-समृद्धि अन्वितौ पापोत्ताप- निकृंतनौ तनु-भृतां गोविंद-गानामृतैः आनंदाम्बुधि-वर्धनैक-निपुणौ कैवल्य-निस्तारकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ *त्यक्त्वा तूर्णम् अशेष -मंडल-पति-श्रेणें सदा तुच्छ-वत् भूत्वा दीन* […]
वहां , *तत्व तृण महेश्वस मंडल पदी* *श्रेणीम सदा तुच्छवत* षट गोस्वामी वृंदोने ऐशो आराम और धन दौलत और अपने-अपने बड़ी पदवी या स्थिती यह सब त्याग कर षट गोस्वामी वृंद वृंदावन में *संख्या पूर्वक नाम गाननतीही* संख्या पूर्वक नाम गान साधना कर रहे थे । *नतीही* पुन: पुन: धाम को भगवान को प्रणाम करते हुए , भजन कुटीर छोटी सी तो है लेकिन अधिकतर उनका भजन तो वृक्षो के नीचे ही होता रहा है । और फिर एक वृक्ष के नीचे अधिक समय बिताते भी नहीं , ज्यादा से ज्यादा 3 दिन , बहुत ही अच्छा स्थान है , छाया है या बिछाना है , हरियाली है , अच्छी घास है यहां मुझे लेटने के लिए , ऐसा सोच कर शायद वह उस स्थान से आसक्त होंगे ,इस विचार से वह फिर आगे प्रस्थान करते हैं । हम लोग तो ऐशो आराम बढ़ाते रहते हैं । हरि हरि । उसका विस्तार करते रहते हैं । हरि हरि । यह षट गोस्वामी वृंद ऐसे महात्मा थे । उनको तो कृष्ण चाहिए थे और कृष्ण मिलेंगे तभी आराम मिलेगा और यह बात ही सत्य है । हरि हरि । *कोपीन कंथाश्रीतो* बस कम से कम वस्त्र पहनते थे , कोपीन पहनते थे , थोड़े ही वस्त्र पहनते थे और कंबल है एक बस समाप्त । और जप माला है , कमंडलु है उनकी सारी सामग्री , संपत्ति , सुख सुविधा बस इतनी है । यह हमारे आचार्य है और उनमें से रूप गोस्वामी प्रधान है और हम रूपानुग कहलाते हैं । अनुग , उनके चरण कमलों का अनुगमन करते हुए हमें आगे बढ़ना है । परिक्रमा जब करते हैं तो यहां स्थान स्थान पर षट गोस्वामी वृंद की भजन कुटीर या विशेष लीला स्थली या फिर उनके समाधि मंदिर भी मिलते हैं , जो हमें स्मरण दिलाते हैं । वैसे हमें यह कृष्ण का ही स्मरण दिलाते हैं कि उनका जीवन कृष्ण प्राप्ति के लिए है । यहां संकेत नामक स्थान है , यहां राधा कृष्ण मिलते हैं । पहले मिले थे रावल गांव में ही जहां राधा रानी जन्मी थी । राधा रानी के जन्म दिवस पर राधा और कृष्णा मिले थे । पुनः अब जब बड़े हुए हैं और रावल गांव के निवासी बरसाना रहने के लिए आए हैं और नंदगोकुल के सारे गोकुल वासी अब नंदग्राम में रहने लगे हैं तो यह सारा अदल बदल होने के उपरांत अब जब मिलन होने जा रहा है राधा कृष्ण का तो वह मिलन स्थली है यह संकेत और वैसे इसी स्थान पर आकर वैसे मिलते नहीं , दूर से ही संकेत के साथ कुछ इशारों के साथ , कुछ मुद्राओं के साथ यह निर्धारित करते हैं कि आज का मिलन कहां ? भांडीरवन ? नहीं , नहीं , नहीं ! भांडीरवन नहीं । उसके बगल में ? वहां मिलेंगे । लक्ष्मी के वन में , बेलवन मे मिलेंगे । ठीक है । ठीक है ।
उनके अपने अपने संकेत के साथ संकेत होता है और निर्धारित किया जाता है कि आज की लीला इस वन में , आज की लीला उस वन में तो वही संकेत स्थली है । और कई सारी स्थलीया है । उद्धव बैठक भी है तो यही याद रखना होगा, परिक्रमा में यही बातें समझ में आती है कि जब हम पढ़ते हैं भागवतम में , श्रील प्रभुपाद की कृष्ण बुक में की उद्धव वृंदावन गए । उद्धव वृंदावन गए और वहां नंद बाबा , यशोदा को मिले और गोपियों में से भी मिले वहीं उद्धव बैठक है हमें यह समझना होगा की उद्धव वृंदावन गए मतलब कौन से वृंदावन गए ? नंदग्राम गए ऐसा समझना होगा । हमारे दिमाग में तो वृंदावन मतलब जो पंचकोशी वृंदावन है जहां केशी घाट है , जहां राधा मदन मोहन मंदिर है , कृष्ण बलराम मंदिर है श्रील प्रभुपाद ने बनाया है तो वह भी वृंदावन है जहा लोई बाजार है लेकिन भागवत में जब उल्लेख होता है वृंदावन जाने का , उद्धव आये वृंदावन गए फिर अक्रूर भी जाने वाले हैं कृष्ण बलराम को मथुरा लाने के लिए , वह भी गये रथ में बैठकर गए , वृंदावन गए तो कहां गए ? कौन से वृंदावन गए ? यह नंदग्राम वृंदावन गये यह समझना होगा । यहां पर उद्धव संदेश देते हैं , कृष्ण का संदेश है उसको उद्धव कहते हैं । लेकिन कृष्ण का संदेश है जो उन्होंने गोपियों को सुनाया उस स्थान पर जहा उद्धव बैठक नंदग्राम के पास ही है और यही वह भ्रमर भी आया तो उसको देखकर राधा ने भ्रमरगीत गाया । श्रीमद्भागवत के दशम स्कंद मे कई प्रसिद्ध गीत है । जैसे गोपी गीत है , वेणू गीत है या युगल गीत है उसी में एक भ्रमरगीत भी प्रसिद्ध है ।
भ्रमर को संबोधित करते हुए राधा ने जो गाया है वह भ्रमरगीत जहां राधा रानी ने गाया वह स्थली यह उद्धव बैठक है । ठीक है । अभी समय समाप्त हो रहा है , और फिर कई स्थलिओ का दर्शन करते हुए और फिर उप्पर बीच आप नंदग्राम का जो पहाड़ है यहां पर वैसे सारे गांव तो पहाड़ के ऊपर ही थे , सुरक्षित थे । वहां पर भी दर्शन है , नंदग्राम का वही मुख्य दर्शन है और पावन सरोवर भी है । आज का पड़ाव नंदग्राम मे ही होगा । फिर कल श्रील प्रभुपाद तिरोभाव महोत्सव जो है वह नंदग्राम में भी भक्त बनाएंगे आप भी मनाओगे । ठीक है ।
ब्रज मंडल परिक्रमा सभी भक्तों की जय!
नंद ग्राम की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*
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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
16नवम्बर 2020
गिरिगोवर्धन जय गिरीगोवर्धन जय गिरीगोवर्धन
गिरीगोवर्धन की जय……
मतलब यह तो गोवर्धन पर्वत या पहाड़ की जय हो गिरी गोवर्धन की जय हो लेकिन गिरिधारी की भी जय हो गिरधारी की जय हो एक है गोवर्धन और दूसरे हैं गिरिधारी गिरिधारी ही गोवर्धन को धारण किया इसलिए गिरिधारी कहते हैं।
गिरिराज को धारण करने वाले या फिर मुरलीधर भी है साथ ही वह गोवर्धन भी है जब मैं ऐसे कह रहा हूं तो ऐसा नहीं समझना कि आज धारण नहीं किया गिरिधारी गिरिराज को आज नहीं धारण किया आज नहीं उठाया आज तो केवल पूजा का दिन है। गोवर्धन पूजा महोत्सव की जय…..
यह हमें समझना चाहिए आज फिर से पूजा होनी तो थी हर साल की भांति इंद्र की पूजा होनी थी लेकिन कन्हैया ने जब वह 7 साल के थे और इसी उम्र में उन्होंने नंद बाबा को उपदेश किया इसे उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को उपदेश किया था तब उस समय भगवान 100 साल के थे पर अभी तो उनकी उम्र केवल 7 साल की है कुमार अवस्था में है भगवान आज के दिन कृष्ण ने उपदेश किया प्रचार किया और समझाया बुझाया।
कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः |
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया || भगवद्गीता ७.२०
अनुवाद:-
जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं |
वैसे इन शब्दों में तो नहीं कहा यह तो गीता के शब्द है उन्होंने कहा बाबा बाबा हम इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन की पूजा हमें करनी चाहिए हरि हरि गोवर्धन क्या करता है गोवर्धन हमें हमारी उपजीविका का पोषन करते हैं।
हमारी जो गाय हैं हम उन पर निर्भर है गाय से बैल भी उत्पन्न होते हैं और साथ ही हम खेत में हल चलाते हैं हम वैश्य हैं।
कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् |
परिचर्यात्मकं कर्म श्रूद्रस्यापि स्वभावजम् ||भगवद्गीता१८.४४ ||
अनुवाद:-कृषि करना, गो रक्षा तथा व्यापार वैश्यों के स्वाभाविक कर्म हैं औरशूद्रों का कर्म श्रम तथा अन्यों की सेवा करना है |
कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् | यह हमारा व्यवसाय है और हमारी जो अर्थव्यवस्था है इंडस्ट्रियल अर्थव्यवस्था नहीं है यह ज्यादा समय नहीं टिकेगी यह जो औद्योगिक अर्थव्यवस्था है ज्यादा समय नहीं टिकटी हमें ऐसी अर्थव्यवस्था चाहिए जो जमीन और गाय पर निर्भर हो ऐसी अर्थव्यवस्था भगवान ने दी है सिखाई है और इस पर हमें निर्भर रहना चाहिए और यह गोवर्धन से हमारी गायों का पोषन करता है। वैसे आज तो पूजा की बात करनी चाहिए।
गाय से तो हमें सारी चीजें मिलती है दूध मक्खन ऐसी बहुत सारी अन्न मई पदार्थ हमें गाय से प्राप्त होता है उसे गौरस भी कहते हैं दूध को वृंदावन में गौरस कहते हैं छाछ भी गौरस हैं और फिर नंदबाबा भी मान गए और सारे ब्रजवासी भी मान गए और उन्होंने भी हां में हां में मिलाई और उन्होंने गोवर्धन पूजा की तयारी की वैसे भागवत में सुखदेव गोस्वामी कहे हैं श्री कृष्ण के उपदेश अनुसार कृष्ण ने कहा चीन की चीन की पूजा के लिए कहा एक गोवर्धन की पूजा गाय की पूजा और ब्राह्मणों की पूजा होनी चाहिए तो आज यह गोवर्धन पूजा का ही दिन नहीं है यह ब्राह्मण पूजा का भी दिन है ब्राह्मण भोजन या ब्राह्मण की सेवा आज कर सकते हैं और साथ ही गाय की पूजा कर सकते हैं।
नमो ब्रह्मण्य-देवाय गो-ब्राह्मण-हिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय गोबिन्दाय नमो नमः ॥77॥
अनुवाद:-
“मैं उन भगवान् कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ, जो समस्त ब्राह्मणों के आराध्य देव हैं, जो गायों तथा ब्राह्मणों के शुभचिन्तक हैं तथा जो सदैव सारे जगत् को लाभ पहुँचाते हैं। मैं कृष्ण तथा गोविन्द के नाम से विख्यात भगवान् को बारम्बार नमस्कार करता है।
कृष्णा गोविंद भी कहलाते हैं गाय को प्रसन्न करने वाले भगवान इसलिए उनको गोविंद कहते हैं वैसे गो मतलब इंद्रिया भी होती है जमीन भी है गो मतलब गाय भी हैं इन तीनों को सभी को प्रसन्न रखने वाले भगवान गोविंद कहलाते हैं और गोविंद कैसे हैं जो गाय को पसंद करते हैं ब्राह्मणों को पसंद करते हैं ब्राह्मणों की सेवा करते हैं। ब्राह्मणों की पूजा करने वाले भगवान ब्राह्मण ने देव तो सुदामा ब्राह्मण आए द्वारिका में तब भगवान ने उनका स्वागत किया उनकी आराधना की पाद प्रक्षालन किया उनके चरणों का जल अपने ऊपर और रुक्मणी के उपर के भी छिडया और फिर उन्हें भोजन खिलाएं इस प्रकार भगवान ब्रह्मन्यदेव हैं।
नमो ब्रह्मण्य-देवाय गो-ब्राह्मण-हिताय च। ब्राह्मणों के पुजारी हैं गाय के पुजारी हैं और गोवर्धन की भी पुजारी है भगवान उस दिन सभी ब्रज वासियों के साथ कृष्ण ने भी पूजा की गोवर्धन की एक तो आज के दिन जिस सामग्री को खरीदा था यही खट्टे की थी इंद्र पूजा के लिए कृष्णा ने कहा इसी के उपयोग गोवर्धन पूजा के लिए करो तो उस सामग्री से आज के दिन कृष्ण के प्रकट लीला में क्या हुआ अन्नकूट बनाया अन्नकूट कूट मतलब पहाड़ और पहाड़ गोवर्धन पहाड़ के ही पास में गोपिया हैं।
गोवर्धन के और उंगलियां कर कर बोल रही थी यह देखो गोवर्धन कैसा है हरिदास वर्य हरिदासो में श्रेष्ठ है इस प्रकार गोवर्धन की ख्याति दोनों प्रकार से हैं वह हरिदास में भी श्रेष्ठ हैं हरिदास है हरि के भक्त हैं गोवर्धन है और साथ ही साथ इसे उसी दिन जब पूजा प्रारंभ हुई जब वर्धन ने दर्शन दिया जो गोवर्धन का रूप है पर्वत है दर्शन तो कर ही रहे थे स्वरूप में पर साथ ही साथ प्रारंभ में ही भगवान प्रकट हुए और गोवर्धन स्वयं बन गए और वह गोवर्धन स्वयं है भी पर एक पहाड़ के रूप के बजाय सर्वांग सुंदर रूप का दर्शन दिया और भगवान ने कहा वैसे भागवत में इसका वर्णन आता है सुखदेव गोस्वामी कहे हैं।
शैलोस्मि शैलोस्मि यह गोवर्धन जो शिला हैं। या फिर गोवर्धन ही एक शीला हैं या फिर कई शीलाओ से एक गोवर्धन हैं। जो है गोवर्धन है यह सारा गोवर्धन मैं हूं ऐसा कह भी रहे थे और सभी ब्रज वासियों ने सुना और दर्शन भी किया बृजवासी हर साल इंद्र की पूजा करते थे पर कभी इंद्र ने दर्शन नहीं दिया पर कृष्ण ने कहा कि देखो देखो तुम्हारे इंद्र तो कभी नहीं आते थे दर्शन देने जब तुम सब उनकी पूजा करते थे और देखिए आज जब आप सब गोवर्धन की पूजा कर रहे हैं तो वह गोवर्धन प्रकट हो गए आप को दर्शन दे रहे हैं तो पूजा करने वालों में वैसे सारा ब्रिज ही गोवर्धन की पूजा कर रहा था सभी गोप सभी गोपिया और साथी कृष्ण बलराम भी पुजारी बने थे पूजा कर रहे थे तो आरती भी उतारे लेकिन उस दिन की पूजा तो गोवर्धन को भोग चढ़ाएं कितना भोग था पहाड़ एक दूसरा पहाड़ ही खड़ा किए थे हलवा पूरी सभी व्यंजनों से और साथी सुनने में आता है कि वहां के सारे कुंड खीर से भरे थे कटोरे में नहीं दिया जा रहा था ख़िर सारे कुंड भर गए खीर से हलवा पुरी का अन्य व्यंजनों का पहाड़ बन गया और फिर भगवान उस सब को ग्रहण करने लगे हरि हरि
भगवान तो है उनकी प्रसन्नता के लिए बहुत सारे व्यंजन तैयार थे तो वह ऐसे फटाफट खा रहे थे उनकी थाली खाली हो रही थी और वो कह रहे थे….
अन्योर,अन्योर….
और ले आओ और ले आओ तो वहीं पर दूध का भी दोहन हो रहा था ब्रज की सारी गाय वहां पर पहुंची थी दूध निकाला जा रहा है दुध को उबाला जा रहा है। कई सारे पकवान बन रहे हैं सारे ब्रजवासी प्रेम भाव से भगवान को खिला रहे हैं प्रेम भाव से पकवान बना रहे थे और कृष्ण खा रहे थे और साथ ही कह रहे हैं
अन्योर,अन्योर….
मतलब और भी कुछ हैं और भी ले आओ और भी ले आओ ऐसी प्रतियोगिता चलते रहे जहां पर यह गोवर्धन को भोग लगाया अन्योर का नाम लिया तो वहां पर एक गांव ही है उसका नाम ही है अन्योर जब हम परिक्रमा के लिए जाते हैं दानघाटी से गोविंद कुंड की ओर तो बीच में एक गाँव आता हैं उसका नाम ही हैं अन्योर ग्राम अन्योर नाम का ग्राम हैं।
तो यह ग्राम भी हमें स्मरण दिलाता है आज के अन्न कूट गोवर्धन पूजा महोत्सव का फिर यह कहते हैं कि यहां कोई चालाक युक्ति वान ब्रजवासी ने शायद भूल गए होंगे। तुलसी पत्र ही चढ़ाया और जब उसको ग्रहण किए तो गोवर्धन प्रसन्न हुए और वहां भोजन समाप्त और उसी के साथ पूजा से समाप्त हुई और उसी दिन दोपहर के समय सारे ब्रज वासियों ने गोवर्धन की परिक्रमा की और परिक्रमा करने वालों में कृष्ण भी थे। बलराम भी थे। तो गोवर्धन पूजा और गोवर्धन परिक्रमा। चालाक चतुर भक्त जब आज गोवर्धन पूजा महोत्सव के के लिए अन्नकूट बनाया जाता है। हम भी वहा हुआ करते थे। बरसाने में परिक्रमा की ओर से बहुत बड़ा। पहाड़ अन्नकूट बड़े गोवर्धन गोवर्धन बड़ा विशाला कर लेते हैं और हजार एक हजारों भक्त इकट्ठे होते हैं। पहले हम गौ पूजा भी करते हैं और फिर गिरिराज के शीला का अभिषेक भी होता हैं। महा अभिषेक कई सारे सीनियर देवोटी गोवर्धन का गुणगान किया गाते हैं और इतने में सब ठीक है, तैयारी होते हैं, गोवर्धन बनाया जा रहा होता है।
अन्नकूट बनाया जा रहा होता है, अन्नकूट बन रहा है और फिर मैं ध्यान के समय पर्दा खुलता है। फिर गोविंदम अड़ी पुरुषम में सभी दर्शन करते हैं। गोवर्धन की सभी और भक्त एकत्रित हो जाते हैं पूजा भी करते हैं, कीर्तन होता है हरे कृष्णा, हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन और नृत्य भक्त करते हैं। आप भी करो कर रहे हो कि नहीं। और या फिर मैं यह कह रहा था कि सही वक्त क्या करते हैं। वैसे परिक्रमा तो सभी करते हैं। अन्नकूट का ही अन्य अन्नकूट का ही परिक्रमा होती है। और उसमें से कुछ बहुत दण्डवत की परिक्रमा भी करते हैं। दंडवत करते हुए परिक्रमा गिरिराज की परिक्रमा के भक्त गोबर कृष्णा कृष्णा गोबर से कृष्णा बनाते हैं। उनको सजाते हैं। कल सोलापुर के भक्तों ने भी बनाया। उन्होंने मुझे भेजा गोबर कृष्णा का दर्शन भेजा और ऐसा दर्शाता है कि वह गोबर से बने हुए कृष्णा सुंदर कृष्णा की अन्नकूट को गोवर्धन को धारण करते हैं। हरि हरि! और फिर इस परिक्रमा के उपरांत कीर्तन। फिर महाप्रसाद, महा प्रसाद ग्रहण करते हैं। अन्ना परब्रह्मा! अन्ना क्या परब्रह्म तो भवन ही है गोवर्धन के रूप में उनको हम ग्रहण करते है हमारे पेट में! और पेट के पास फिर ह्रदय है, दिल है वहां पर और फिर आत्मा में प्रवेश होता है गिरिराज का और फिर गिरिराज की भावना कृष्ण कृष्ण की भावना और अधिक उदित होती है जागृत होती है
प्रसाद ग्रहण करने से हरि हरि! यह भगवान का मीठा स्वरूप है प्रसाद जी स्वयं भगवान गिरी गोवर्धन की जय!
ठीक है।
दिन मे यह कथा ही हो रही है। दिन में गोवर्धन पूजा। संपूर्ण हो कि गुरु पूजा होगी। तो हम भी यहां पर स्थित है आजकल पंढरपुर धाम में यहां भी पूजा गो पूजा और गौशाला में है और कथा होगी गोवर्धन की! 8:30 बजे तक पुनः गोवर्धन की गोवर्धन लीला की कथा कीर्तन होने वाला है
शार्ट तो नहीं शॉट करना चाहता था थोड़ा कठिन हो जाता है मेरे लिए शार्ट करना फेल हो गया मैं यथासंभव जब बनेगा। यहां का जब बनेगा। शंकर पार्वती भोलेनाथ की। बोलो पंढरीनाथ की। आज रात था गिरिनाथ पी बने के पंढरीनाथ! संभव है। उनका भी दर्शन संभव है और उनका दर्शन गौशाला का दर्शन गो पूजा तो आप भी करो अपने अपने। स्थान पर अपने घर में भी थोड़ा अन्नकूट बनाओ। रामलीला।माधव! बनाओगे? स्वर्ण मंजूरी स्वर्ण गोपी। अन्नकूट बनाओ! तो अन्नकूट बनाओ या? आनंददायी बनाने वाली है। इंद्री दही बनाने वाली है।
विशेष भोग जरा ज्यादा भोग । और फिर प्रसाद को बांटना है। आप तो खाओ कि यह बताने की आवश्यकता नहीं। प्रसाद फिर चलो खाना है तो बिना बताए आप तो खाओगे ही लेकिन प्रसाद थोड़ा वितरण भी करो। यह भी कहा है सुखदेव गोस्वामी जी जब कथा सुनाते हैं। तो वह कहां है कि आज प्रसाद का खूब वितरण होना चाहिए। चांडाल लोग को एवरी बडी सब को प्रसाद वितरण करना चाहिए और ब्राह्मणों को सभी को। प्रसाद वितरण भी हो जाए। राजेश्वर में तो कर रहे हैं हमारे जय तीर्थ प्रभु हर दिन कर रहे हैं।
ऐसे ग्रहस्त कि यह धर्म भी है डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ प्रसाद
हरे कृष्ण
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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से,
15 नवंबर 2020
आज हमारे साथ 640 स्थानों से भक्त जब कर रहे है। कहा गए हमारे बाकी साथी? दिवाली मना रहे है? कल बहुत रात तक पार्टी हुई? लेकिन साधना तो करनी है ना? साधना तो नित्य रुप से होनी चाहिए! हरे कृष्ण! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! आनंद के साथ हरि बोल!
सब जगह पर दिवाली है गौडीय वैष्णव दिवाली मना रहे है।कई सारे भक्त कल भी मना रहे थे। अयोध्या में भी कल दिवाली मनाई गई, कल अयोध्या में 500000 दीपक जलाए गए। अयोध्या धाम की जय! और उसी के साथ पुनः अयोध्या में श्रीराम का स्वागत हुआ। जय श्री राम! ऐसा समाचार था कि लगभग 500 वर्षों के उपरांत, मुसलमानों के कारण या यौवन के कारण वनवास में ही रहे ऐसा कह सकते है। लेकिन जीतेगा भाई जीतेगा ऐसा कर सकते है। भक्तों के कारण सैकड़ों वर्षो के उपरांत, इतने बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ अयोध्या में राम का स्वागत हुआ। हरि हरि। राम के ही कारण अयोध्या में दीपावली मनाई गई थी या मिठाई बांटी गई थी, और इतना सारा कीर्तन और नृत्य हुआ था। दीपावली महोत्सव की जय! और साथ ही साथ हम परिक्रमा भी कर ही रहे है, इस दामोदर मास परिक्रमा महोत्सव संपन्न हो रहा है। तो कल आप सब परिक्रमा के भक्त रामवन में ही रहे, कामवन जो प्रेम का दान करता है। तो वहां के जो वृक्ष है, वैसे वह रुकता नहीं है वह चिंतामणि धाम है। हमारे हर इच्छा की पूर्ति करने वाला कामवन!भक्तों की कामना होती है प्रेम! शास्त्रों में कई बार काम काम ऐसे वर्णन होता है, तो समझना चाहिए कि वहां प्रेम की बात होती है। वृंदावन में कामवासना की पूर्ति करने वाला बंद हो ही नहीं सकता का मोबाइल प्रेम प्रदान करने वाला वन है। तो इतनी सारी लीला जब वहां पर संपन्न हुई,
इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥
अनुवाद:- जो इस प्रकार दामबन्धनादि-रूप बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनंद-सरोवर में नित्यकाल सरावोर करते रहते हैं, और जो ऐश्वर्यपुर्ण ज्ञानी भक्तों के निकट “मैं अपने ऐश्वर्यहीन प्रेमी भक्तों द्वारा जीत लिया गया हूँ” – ऐसा भाव प्रकाश करते हैं, उन दामोदर श्रीकृष्ण की मैं प्रेमपूर्वक बारम्बार वंदना करता हूँ ।
इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम् वहां कई सारे कुंड भी है, और लिला से ही कुंड बन जाते है।लीला के आनंद का सागर होते हैं कुंड! तो कल परिक्रमा कामवन में थी, आप थे कि नहीं आप उस शीला के ऊपर? आप फिसल जाते हो उस शीला के ऊपर से जहां पर श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ खेलते थे। तो हम अनुभव करते है कि, हम भी लीला में प्रवेश कर रहे है, हम भी वह लीला खेल रहे है। और गुफा भी देखी होगी और वहीं पर भौमासुर का वध भी हुआ। और बलराम जी के चरण चिन्ह के दर्शन किए होंगे। भौमासुर के साथ युद्ध कर रहे थे भगवान तो तो पृथ्वी हिल रही थी तो उस को स्थिर रखने के लिए बलराम जी ने अपना पैर रखा। तो तभी बलराम जी के चरण चिन्ह वह उमट गए। तो वहां से आगे बढ़े तो भोजन किया परिक्रमा के भक्तों ने, अपने भी किया, वहिपर जहां श्रीकृष्ण भोजन किया करते थे ऐसी एक प्रसिद्ध भोजन स्थली कामवन में है। तो इसी प्रकार कल के परिक्रमा के उपरांत कामवन में गए, और कल रात का पड़ाव वहीं पर था।
वहीं पर रहो, दामोदर महीने के लिए वृंदावन वास करो! हरि हरि! व्रजधाम में रहो, ब्रजभाव में रहो, ब्रज की लीलाओं का श्रवण चिंतन करो! अपने दिव्य चक्षु से लीला को देखो। परिक्रमा में कथा करने वाले भक्त आपको भगवान की लीलाओं का दर्शन कराते है, देखो! देखो! यह भोजन स्थली देखो! और उसका वर्णन जो सुनाते है यह दर्शन ही है! हरि हरि। तो फिर आज प्रातःकाल परिक्रमा का प्रस्थान जो 6:00 बजे होता है, तो आज कामवन से बरसाना जाएगी। बरसाना धाम की जय! तो हम बरसाना जा रहे है रास्ते में ही है कई सारे स्थान है आपने परिक्रमा के मार्गदर्शन पुस्तक में पढ़ा होगा। ब्रजमंडल दर्शन नाम का एक ग्रंथ है जो मार्गदर्शक है, तो उसे भी आप पढ़े होंगे या पढ़ते रहिए। सुनते रहिए या पढ़ते रहिए तभी कुछ पल्ले पड़ेगा! परिक्रमा में श्रवण,कीर्तन के साथ आगे बढ़ना है। तभी दिव्य ज्ञान प्रकाशित होगा! श्रवण करने से दिव्य लीला प्रकाशित होगी। कंवारा नाम का स्थान काम वन में ही है, या इंद्रोली नाम का स्थान है जहां पर इंद्र आपने राजधानी अमरावती से नीचे उतरे, जब गोवर्धन लीला के उपरांत इंद्र परास्त हुए तो जहां पर इंद्र उतरे थे वह स्थान है इंद्रोली। फिर जहां पर गोविंद कुंड है वह वह कृष्ण से मिलेंगे और उनकी स्तुति करेंगे, और जहां पर उतरे वह स्थान है इंद्रोली कामवन में। और आगे बढ़ेंगे तो कर्ण पड़ा नाम का स्थान है जहां पर कृष्ण के कर्ण का छेदन हुआ था, ताकि उनमें कुंडल पहनाये जा सके, इसीलिए कर्ण छेदन हुआ था। आपका हुआ है या नहीं?
मेरा तो हुआ है। अगर आप मुस्लिम होंगे तो नहीं होगा, लेकिन अगर हिंदू है तो यह आपकी पहचान है! साबित करो कि आप हिंदू हो, अगर आपके कान में छेद है। मेरा तो है। वैसे तो आप हिंदू भी नहीं है! हरि हरि। गर्व से कहो, हम कौन है? हम गौडीय वैष्णव है! तो और आगे बढ़ते है तो एक छोटा सा पहाड़ी इलाका आता है, उसको पार करते ही हम कदमखंडी में प्रवेश करते है और यहां पर हमने, वृंदावन में पुनः प्रवेश किया। वृंदावन में कुछ समय पहले थे, और फिर हम कामवन गए और और फिर पुनः हम वृंदावन वन में प्रवेश किए। वृंदावन भी द्वादश वनों में से एक वन है। तो उस वन में प्रवेश करते ही हम कदमखंडी पहुंच जाते है। बहुत रमणीय स्थान है! वहां पर कदंब के कई सारे वृक्ष आज भी है। उस समय तो कितने सारे होंगे! और एक रसस्थली भी है, एक झुला भी है जहां पर भगवान की झूलन यात्रा संपन्न हुई है। और वहां पर कथा भी होती है, कई बार राधा रमन महाराज कथा करते है या मैं भी करता हूं और भक्त भी करते हैं। और आगे बढ़ते हैं तो सुनारग्राम आता है। जहां पर स्वर्ण वर्ण के चतुर्मुखी ब्रह्मा ने तपस्या की, और वह तपस्या करके पवित्र हुए।
तो भगवान ने वरदान दिया है, ब्रह्मा जी वृंदावन वास चाहते थे तो भगवान कहे कि, ठीक है रहो ! तो ब्रह्माजी बन जाते है बरसाने का पहाड़! तो उस पहाड़ के चार चोटि या शिखर भी है। और इसी सुनारग्राम में सुदेवी और रंग देवी का जन्म स्थान भि है, जो अष्टसखियों में से दो सखी है। जब हम अष्टसखियों का मायापुर में दर्शन करते है, तो राधा माधव मध्य में है और 4 सखियां राधा के बगल में है और 4 सखियां माधव के बगल में है। तो राधा के बगल वाली जो 4 सखियां उसमें से पहली सखी सुदेवी है और दूसरी है रंगदेवी! तो सुनहरा ग्राम इनका जन्म स्थान है। और इन सखियों के अपने चरित्र भी है। सभी के है! इसको थोड़ा सा विस्तार में पढ़ेंगे तो समझेंगे कि, इनकी उम्र क्या है? और किस प्रकार का वेशभूषा पहनती है? और उनका नाम क्या है? और विशेषता वह राधा कृष्ण की नित्यसेवा में कौन सी सेवा करती है? इतना सारा विस्तृत वर्णन है। इतना सारा विस्तृत वर्णन इससे आप मान जाओगे कि यह व्यक्तित्व काल्पनिक नहीं है। यह तथ्य है। वहां से आगे एक बड़ा पहाड़ आता है जिसका नाम सखीगिरी पर्वत है। वही चित्र विचित्र शीला है।
राधा रानी की ओढ़नी चिनांकित हुई एक शीला में वहां तो उसे चित्र विचित्र शीला कहते हैं। कैसे गिरी और क्यों चिनांकित हुई। इसका आप पढ़िए ब्रजमंडल दर्शन कल्प में या और कहीं स्त्रोतों में है और आगे बढ़ते हैं तो ऊंचा गांव आता है यह ललिता सखी का जन्म स्थान है। और यह बता ही देते हैं आपको वैसे बरसाना इसका नाम तो वैसे वृषभानुपुर है, नंदनी जो राधा रानी है तो उसे धीरे-धीरे अब बरसाना कहते हैं जहां वृष्टि हुई जहां राधा कृष्ण की कृपा की वृष्टि जहां होती है वर्षाना। वृषभानुपुर मध्य में है और सभी अष्ट सखियों के गांव सभी दिशाओं में है। रंगदेवी और सुदेवी का गांव सुनहरा गांव ऊंचा गांव ललिता सखी का है विशाखा का भी गांव है चित्र सखी का गांव तो बिल्कुल बरसाने के बगल में है। तृंघविध्या का गावं, चंपक लता के गांव अष्ट सखियों के गांव, राधा रानी के गांव के सभी ओर दिख रहे हैं या स्थित है। लेकिन यह भी याद रखिए जब हम पहली बार परिक्रमा में गए तब पता चला बरसाना राधारानी का जन्म गांव नहीं है। राधारानी की जय महारानी की जय बरसाने वाली की जय जय जय। ऐसा गाते भी है,तो बरसाने वाली राधा रानी तो बनी है लेकिन बरसाने में तो लालन पालन हुआ बरसाने में जन्म नहीं हुआ है। परिक्रमा का अंतिम पड़ाव होगा रावल गांव में जो महावन में है गोकुल के पास।तो वहां राधा का जन्म हुआ तो वहां से स्थांतरित होकर रावल के निवासी, वृषभानु जिनके मुखिया थे, राजा थे बरसाने पहुंचे। हरि हरि। ऊंचा गांव के बिल्कुल पास में नारायण भट्ट गोस्वामी जिनको ब्रजाचार्य भी कहते है। उनकी समाधि वही है। यह ब्रज मंडल परिक्रमा का विधि विधान है।ब्रजाचार्य नारायण भट्ट गोस्वामी ने इसकी रचना की है। ब्रज भक्ति विलास नामक ग्रंथ में और महान कार्य रहा उनका । हरि हरि। हमारा अगला पड़ाव होगा जो बरसाने के आगे हम बढ़ेंगे और गोवर्धन परिक्रमा कल संपन्न होगी। और वहीं से खादिर्वन की यात्रा के लिए जाएंगे।
जमुना तट के पश्चिमी ओर 7 वन हैं और पूर्वी ओर 5 वन है। खादिर्वन हम जाकर लौटते हैं और वहां की लीलाओं का श्रवण कर के। कल बरसाने धाम परिक्रमा भी होगी। हरी हरी। वैसे तो मरने के लिए समय नहीं है और जीने के लिए तो समय निकाला चाहिए। जब हम परिक्रमा करते हैं , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे करते हैं या भगवान की लीला कथा का श्रवण करते हैं। तो हम प्राणदी, हम में प्राण आ जाते हैं।हम जीवित होते हैं हम जागृत होते हैं पुनर्जीवन प्राप्त होता है हमें। जब हम कृष्ण के साथ जब हमारा संबंध स्थापित होता है वह हमारे प्राण नाथ कृष्ण कन्हैया लाल की जय या बरसाने के लाडली लाल, जो लाल ही नहीं है बरसाने में लाडली भी है लाडली लाल। राधा कृष्ण प्राण मोर युगल किशोर।
पुनर्जीवित होने के लिए समय निकालना चाहिए वरना हम पड़े रहेंगे या मरे रहेंगे। कोई कृष्ण भावना तो नहीं है यह संसारी जीवन तो मायावी जड़वत है, निर्जीव है। हरि हरि। आज का दिन दामोदराष्टक का गान लगभग समापन हो रहा है नामुंडे या अमावस्या है।दो सप्ताह से हम दामोदराष्टक गा रहे थे और दामोदर को दीप दान कर रहे थे और इस मास का नाम भी दामोदर मास। जिस लीला के कारण इस मास का नाम दामोदर मास रखा है वो एक विशेष प्रसिद्ध लीला के कारण l तो दामोदर लीला आज ही तो संपन्न हुई दिवाली के दिन गोकुल में। उसके पहले से वह दामोदर नहीं थे कन्हैया ही थे। लेकिन आज के दिन वह दामोदर बने आज के दिन यशोदा ने कन्हैया के उदर को डोरी से बांध दिया दामोदर। तो आज के दिन दामोदर लीला संपन्न हुई इसी समय प्रातः काल में प्रारंभ हुई लेकिन लीला बहुत समय तक चलती रही। क्योंकि आज बहुत कुछ हो रहा था गोकुल में। कृष्ण ने अपने घर में डाका डाला और चोरी भी की और यशोदा इस चोर को पकड़ते पकड़ते समय बीत गया। पकड़ तो लिया फिर बांधते बांधते और रस्सी चाहिए और रस्सी चाहिए और रस्सी चाहिए इसमें कितना सारा समय बीत गया। और फिर बांध तो दिया किंतु लीला यहां समाप्त नहीं हुई।
ओखल को खींचते हुए वह प्रांगण में गए और वहां अर्जुन वृक्षों का , जो कुबेर के पुत्रों को श्राप मिला था। नारद मुनि ने श्राप दिया था और वरदान दिया था कृष्ण तुमको मुक्त करेंगे। कृष्ण को नाराद मुनि का दिया हुआ वरदान स्मरण हुआ। नलकुबेर और मणिग्रीव को मुक्त किया। मुक्त भी किया और भक्त भी बनाया, खूब सारी भक्ति भी दे दी। भक्ति भाव प्रदान किया आज के दिन ही। और फिर हमारी प्रार्थना होती है जैसे आपने नलकुबेर और मणिग्रीव को मुक्त किया और भक्ति प्रदान की वैसे हमको भी भक्ति दीजिए। हे दामोदर ऐसी प्रार्थना हमारी आज भी है। आज यह लीला संपन्न हुई तो हमें यह विशेष प्रार्थना करनी चाहिए। आज के दिन सारे बृजवासी इकट्ठा हुए पहले तो उन्होंने कृष्ण को ढूंढ के निकाला, सुरक्षित है धन्यवाद देने लगे कि आप अपने हमारे कृष्ण की रक्षा की। तो उसके बाद बैठक हुई तय हुआ और यह आज की दिन की बात है और यह दिवाली भी है। जिसका शुकदेव गोस्वामी श्रीमद् भागवत में कहे है श्रीशुक उवाच
एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी । कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ॥ १ ॥ एकदा मतलब एक दिन की बात है, वह कौन सा दिन था वह दिवाली का दिन था। तो दिवाली के दिन की यह सब घटनाक्रम हुआ है फिर उसी दिन बैठक हुई और तय हुआ यहां आतंकवाद बढ़ रहा है, कई सारे खतरे। तो इनसे बचने के लिए हमें कहीं और जाना चाहिए। हम गोकुल छोड़कर वृंदावन जाएंगे। तो आज के दिन सभी बृजवासी समान बांध कर उपयोगी सामान और जमुना को पार किए और वृंदावन पहुंचे, वह रहने लगे । तो बहुत कुछ हुआ आज के दिन। यह दीपावली का दिन है और दामोदर लीला का भी दिन है। हरि हरि।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
दीपावली महोत्सव की जय!
जय श्रीराम!
दामोदर लीला महोत्सव की जय!
जय श्री दामोदर!
गोकुल धाम की जय!
अयोध्या धाम की जय!
यशोदा दामोदर की जय!
राधा दामोदर की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
ब्रजमंडल की जय,ब्रजमंडल परिक्रमा की जय!
भक्तवृंद की जय!
निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
१४ नवम्बर २०२०
हरे कृष्ण!
हरिबोल!
जय राधे! जय श्री राम! आप कहां हो? दिल्ली में? अगर आपने ऐसा कहने का सोचा तो फिर आप फेल हो गए।
रेवती रमण कहां हो? यदि तुमने कहा कि मैं ठाणे में हूं तब तुम भी फेल हो गए। राधा पंढरीनाथ, कहाँ है? हरि! हरि! आप कहां हो, का क्या जवाब है, क्या उत्तर है या मैं क्या सोच रहा हूं या मैं आपसे किस प्रकार के उत्तर की आशा कर रहा हूँ। हरि! हरि! नासिक रोड वाले? श्याम कुंड कहां हो? पदमाली कहां है? कृष्णकांत कहाँ हैं? काम्य वन की जय!
काम्य वन में हो या नहीं? आप परिक्रमा के ही भक्त हो इसलिए हम कई वनों की परिक्रमा यात्रा करते करते काम्य वन धाम में पहुंचे हैं। काम्य वन की जय! याद रखिए, परिक्रमा के मूड में रहिए। धाम में रहिए। कार्तिक मास में धाम वास कीजिए। हरि! हरि! धाम में श्रीकृष्ण का सानिध्य प्राप्त कीजिए। वैसे आज लोगों ने दीवाली मनाना प्रारंभ कर दिया है। हम पटाखे सुन रहे हैं। वैसे हम हरे कृष्ण लोग दीवाली कल मनाने वाले हैं। वैसे हम दिवाली कई दिन मनाते हैं। मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तब हम 5 दिन दिवाली मनाते थे। हरि! हरि! दिवाली मनाई भी जा रही है। इस समय हम काम्य वन में हैं। काम्य वन में भी कभी राम बनके कभी श्याम बनके…
जैसा कि हम कल बता रहे थे काम्य वन में श्याम बन गए राम। काम्य वन में श्याम बने राम। इसलिए भी वहां पर रामेश्वर है। वहां सेतू बंध भी है। फूल भी है और अशोक वाटिका भी है। अशोक मतलब शोक नहीं। आपने कल की परिक्रमा में अशोक वाटिका के दर्शन भी किए होंगे। हमनें कल रामेश्वर की यात्रा की थी। जहां शोक नहीं है, वह अशोक कहलाता है। इस अशोक वन में सीता रानी शोक ही शोक कर रही थी। सीता रानी की जय! शोकग्रस्त सीता! जय श्री राम! भगवान अपने सैनिकों अर्थात वानर सेना के साथ उस पुल पर चलते हुए श्रीलंका पहुंचे। वहां युद्ध होता रहा। युद्ध कांड! रामायण में सात कांड है। जिस प्रकार श्रीमद्भागवतम में खंड है, उसी प्रकार रामायण में कांड है। सात कंडीय रामायण का एक कांड अथवा एक विभाग युद्ध कांड है। वहां पूरा विस्तृत वर्णन है। राम ने युद्ध किया और राम की विजय हुई। इसलिए हम राम विजयदशमी मनाते हैं। राम विजयदशमी के दिन ही दशहरा महोत्सव होता है। वैसे हम हिंदुओं के कहो, हम नहीं कहना चाहते लेकिन .. या हम सनातनीय भागवत धर्म के लोगों के लिए दो बड़े उत्सव हैं लेकिन हम उन उत्सवों में दो महान उत्सव – एक दशहरा और फिर दिवाली मनाते हैं। इन दोनों उत्सव के साथ भगवान् राम का संबंध है। राम के कारण ही यह दशहरा मनाया जाता है। रावण का एक नाम दशानन है। दशानन अर्थात दस मुख वाला। जिसके सारे मुख व प्राण श्रीलंका में जिस दिन हर लिए गए थे, हम उस दिन राम विजय उत्सव संपन्न करते अथवा मनाते हैं। राम ने रावण के दस सिर हर लिए। सब कुछ हर लिया। जय श्री राम! काम्य वन में जो अशोक वाटिका है, वहां श्री राम सीता का पुनः मिलन हुआ। तत्पश्चात श्री राम ने पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। श्री लंका से पुष्पक विमान ने उड़ान भरी और डेस्टिनेशन अयोध्या धाम गया। लंबा सफर रहा। अयोध्या धाम की जय! आज के दिन अयोध्या धाम में श्री राम का स्वागत हुआ। पुनः श्री राम अयोध्या वासी राम, राम, राम.. राम दशरथ नंदन राम राम राम…
अब दशरथ तो नहीं रहे थे। राम पहुंच गए और राम का स्वागत हुआ। सुस्वागतम श्रीराम.. सुस्वागतम श्रीराम। हरि! हरि! दीपावली के दिन बड़े उत्साह उल्लास और हर्ष के साथ श्रीराम का स्वागत हुआ अर्थात उस स्वागत उत्सव का नाम दीपावली महोत्सव हुआ। सर्वत्र दीप जलाए गए। एक दीप, दूसरा दीप, तीसरा दीप, दीप ही दीप। दीपों की आवली अर्थात दीपावली।’फेस्टिवल ऑफ लाइट्स, फुल ऑफ डीलाइट।’ हरि! हरि!
पूरे नगर को ही सजाया गया था अर्थात पूरी नगरी का ही श्रृंगार किया गया था। दीप भी श्रृंगार का एक अंग रहे। अयोध्या को कई ढंग से सजाया गया था। लोग भी सज धज कर व नए वस्त्र पहन कर राम के स्वागत के लिए पहुंच गए। भरत उन स्वागतकर्ताओं में अग्रगण्य थे। हरि! हरि!
भरत के सर पर पादुका थी। हरि! हरि!
पादुका ही श्रीराम है या श्री राम ही पादुका के रूप में उपस्थित हैं।भरत ने ऐसा मानते हुए कारोबार संभाला था। अब श्रीराम लौट रहे हैं। भरत जब उस वक्त चित्रकूट में गए थे, वैसे तो सभी ही गए थे। वहां माताएं भी गई थी, भरत भी गए थे, शत्रुघ्न भी गए थे, लक्ष्मण तो राम के साथ में ही थे। वशिष्ठ जी भी गए थे आदि आदि…
हरे कृष्ण!
चित्रकूट में राम व भरत का मिलन हुआ था। उस समय सभी और विशेषतया भरत राम को अयोध्या वापिस लाने के उद्देश्य से गए थे लेकिन जो एकवचनीय राम या एक पत्नी राम या एक वाणी राम है, उन श्री राम की ऐसी ही ख्याति है। जय श्री राम! इसलिए राम प्रसिद्ध हैं। उन्होंने वचन दिया था अथवा 14 वर्षों के वनवास का संकल्प लिया था। मैं तो नहीं लौट सकता, नहीं लौटूंगा, यह पॉसिबल नहीं है। तब भरत ने श्रीराम की यह पादुका ही ले ली। तब भरत ने कहा था, ठीक है, आपकी मर्जी। आप अपने संकल्प को पूरा करना ही चाहते हो तो तथास्तु हो किंतु जब जिस दिन या जिस क्षण 14 साल पूरे होंगे, उस वक्त या उसके कुछ क्षण पहले ही आपको अयोध्या लौटना होगा, यदि नहीं लौटोगें तो नहीं लौटना ही अच्छा है। यदि आप थोड़ी देर से भी लौटे, तब आप मुझे जीवित प्राप्त नहीं करोगे। हरि! हरि! भरत ने ऐसे वचन भी कहे थे। तत्पश्चात राम ने पुनः वादा किया था कि हां- हां, भैया! मैं जरूर समय पर लौटूंगा। राम वचन के पक्के हैं। राम समय पर या समय से पहले पहुंचे। वह पहुंचने का दिन अर्थात आज दीपावली का ही दिन है। रामायण में इसका बड़ा सुंदर वर्णन है। कैसे-कैसे स्वागत की तैयारी हुई। कैसा स्वागत हुआ। वैसे मुख्य वर्णन अयोध्या वासियों के हर्ष और उल्लास का है। उनके हर्ष और उल्लास का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। अयोध्या वासियों ने ग्रैंड स्वागत उत्सव ही मनाया। ग्रैंड रिसेप्शन! दीप भी जलाएं। उनके जीवन में पुनः प्रकाश ने प्रवेश किया। कुछ अंधेरा ही छाया था। सभी उदास निराश थे। विरह की व्यथा से मर रहे थे। किंतु आज उनमें प्राणति अर्थात पुनः प्राण आ गए। उनके प्राण श्री राम उनको पुनः प्राप्त हुए। इसलिए उन्होंने उत्सव मनाया। मिठाइयां बांटी। हम अब भी क्यों मिठाइयां बांटते हैं क्योंकि लगभग दस लाख वर्ष पूर्व आज के ही दिन अयोध्या में राम आए थे, राम आ गए … राम यहाँ हैं। राम.. राम… जय श्री राम… वे एक दूसरे को समाचार दे भी रहे थे कि चलो! चलो! राम आए हैं, चलो!
जब हम कोई शुभ समाचार देते हैं तब हम कुछ मुंह मीठा करते हैं। मिठाइयां बांटते हैं।उस दिन अयोध्या में खूब मिठाइयां बांटी गई थी। यह उत्सव लाखों वर्षों से मनाया जा रहा है। हरि! हरि!
पुराण आपि नवम
यह अति प्राचीन अथवा पुराना उत्सव होते हुए भी हम हर वर्ष एक नया उल्लास व उत्साह के साथ इस उत्सव को मनाते हैं। यह उत्सव पुराना नहीं हो रहा है। लोग धीरे-धीरे उसको भूल नहीं रहे हैं। यह उत्सव अविस्मरणीय रहा है। अविस्मरणीय अर्थात भूला नहीं जा सकता। दुनिया भूल नहीं पा रही है। यह राम की कृपा ही है। राम ही इस उत्सव को जीवित रख रहे हैं। हर समय यह नया सा उत्सव लगता है। हरि! हरि! वैसे कल हमें यह समाचार मिला कि अयोध्या धाम में इस वर्ष आज या कल दिवाली मनाई जा रही है। वहाँ लगभग 500 वर्षों के उपरांत दीपावली बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। वहाँ दीपों की आवली होगी। दीपों की पंक्तियां होगी। कितने दीप जलाने अथवा प्रज्वलित करने का संकल्प है? मैंने पढ़ा कि अयोध्या धाम में पांच लाख दीप प्रज्वलित होंगे। क्योंकि वह डाउट पीरियड या थोड़ी अंधेर नगरी कहो। कुछ 500 वर्षों से हिंदू मुसलमान लड़ रहे थे। कोर्ट कचहरी चल रही थी। पुनः राम की जीत हुई। राम की जीत कहो या राम भक्तों की जीत कहो। कोर्ट ने फैसला किया। रामायण ने लाखों वर्ष पूर्व फैसला किया ही था कि राम जन्म भूमि कहां है। कोर्ट ने भी रामायण की हां में हां मिलाई और घोषित किया – हां हां यहां राम जन्मभूमि है। राम का मंदिर होना चाहिए। यह और कुछ हो ही नहीं सकता। नव मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हो चुका है। कुछ महीने पहले हमारे प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन ही किया है। शुभारंभ हुआ है। आज दीपावली सर्वत्र ऑल ओवर इंडिया ही नहीं, वैसे विश्व भर में दीपावली अधिक अधिक प्रसिद्ध होती जा रही है।
इंग्लैंड, अमेरिका, वाइट हाउस आदि । अमेरिका में जब ओबामा वहां के राष्ट्रपति थे, उन्होंने दीपावली मनाना प्रारंभ किया था। पिछले वर्ष ट्रंप जी ने भी दीपावली मनाई थी, पता नहीं, इस साल क्या करते हैं। इस साल का उनका क्या मूड है। हरि! हरि! इस वर्ष दीपावली का विशेष उत्सव अयोध्या में ही मनाया जा रहा है। हरि! हरि! जय श्री राम! जय लक्ष्मण! जय सीता! जय हनुमान! वे सब आज अयोध्या पहुंचे थे। तत्पश्चात वहाँ मिलन उत्सव भी हुआ। हमारा भी मिलन राम के साथ हो जाए । अयोध्यावासी तो केवल 14 वर्षों के लिए राम से अलग हुए हुए थे लेकिन हम ना जाने कब से राम से अलग हुए हैं। राम अयोध्या को छोड़कर वन में प्रवेश हुए थे और राम वनवासी हुए थे लेकिन हम अयोध्या को छोड़ कर इस भवसागर का भ्रमण कर रहे हैं। भागवतम में जिसको फॉरेस्ट ऑफ एंजॉयमेंट भी कहा है। हमने अयोध्या छोड़ी, राम को छोड़ा।
कृष्णबहिर्मुख हइया भोग वांञ्छा करे। निकटस्थ माया तारे जापटिया धरे।।
( प्रेम विवर्त२)
अनुवाद:- अनादि काल से कृष्ण-बहिर्मुख जीव नाना प्रकार से सांसारिक भोगों की अभिलाषा करता आ रहा है। यह देखकर उसके समीप ही रहने वाली माया झपटकर उसे पकड़ लेती है।
हम भोग वांछा के लिए बहिर्मुख होकर अयोध्या का त्याग करके इस संसार रूपी सागर अथवा वन अथवा जंगल में भटक रहे हैं। रास्ता भूल चुके हैं। हम जंगल में खो चुके हैं। हरि! हरि! किंतु हम फिर राम की ही कृपा से इस वार्ता कथा को सुन रहे हैं। श्री राम ने ही हम पर कृपा की है।
ब्रह्मांड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु- कृष्ण प्रसादे पाय भक्ति लता बीज।।
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक १९.१५१)
अनुवाद:- सारे जीव अपने अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्मांड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह मंडलों को। ऐसे करोड़ों भटक रहे जीवों में से कोई एक अत्यंत भाग्यशाली होता है, जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है। कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है।
श्री राम ने ही हमारा मिलन या मुलाकात गुरुजनों के साथ करवाया है। गुरुजन ही हमारा पुनः मिलन भगवान श्रीराम या श्रीकृष्ण के साथ कराएंगे।
महाजनो येन गतः स पन्थाः।
गुरुजन, हम भूले भटके जीवों को संसार में जो राउंड मार रहे थे, हमारा राउंड एंड राउंड, अप एंड डाउन चल रहा था लेकिन राम की कृपा ने पुनः हमें सही मार्ग पर लगाया है, पहुंचाया है। चलो हम आगे इसी मार्ग पर उत्साह निश्चय और धैर्य के साथ बढ़ते हैं ताकि हमारा भी पुनः श्री राम के साथ मिलन हो। जब वह मिलन होगा तब आनंद ही आनंद होगा। आनंद हमारी प्रतीक्षा में है। कृष्ण है आनंद या राम है आनंद।
रमन्ते योगिनोअनन्ते सत्यानन्दे चिदात्मनि। इति राम- पदेनासौ परं ब्रह्माभिधीयते।।
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक ९.२९)
अनुवाद:- “परम् सत्य राम कहलाता है, क्योंकि अध्यात्मवादी आध्यात्मिक अस्तित्व के असीम यथार्थ सुख में आनंद लेते हैं।”
योगिना रमंते अनंत ऐसा कहा है। हम भक्ति योगी हैं। हम फिर रमेंगें किस में रमेंगें। अनन्ते रमंते,. अनंत में रमेंगें। हम राम में, अनंत में रमेंगें। हरि! हरि! हाय हेलो छोड़ो! श्री राम बोलो।
जय श्री राम की जय!
दीपावली महोत्सव की जय!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण.
जप चर्चा,
13 नवंबर 2020,
पंढरपुर धाम.
हरे कृष्ण, सुवर्णगोपेश सुन रहे हो। सुनने के लिए तैयार हो आप। ठीक है। फिर लूट सके तो लूट लो, राम नाम के हीरे मोती। कृष्ण नाम के हीरे मोती।
हरि हरि इस कार्तिक मास में प्रेम की गंगा बह रही है। ज्योत से ज्योत मिलाकर। प्रेम की गंगा ज्योत से ज्योत। अब दिवाली भी आ रही है तो ज्योत ही ज्योत प्रकाश ही प्रकाश होगा।
हरि हरि, यहां आपका प्रकाश प्राप्त हुआ है तो वह प्रकाश औरो तक पहुंचाओ। आपको कुछ अनुभव हो रहा है कृष्ण भावना में। कृष्णभावना भावित हो रहे हो। आप हो रहे हो कि नहीं? हां, कुछ हो रहा है कि नहीं या सिर्फ रोज की दैनंदिनी चल रही है। हरि हरि और क्या हो सकता है? इतना सारा हो रहा है। दामोदर मास की जय! दामोदर व्रत संपन्न हो रहा है। परिक्रमा हो रही हैं। दीपदान हो रहा है। कृपा की वृष्टि हो रही है। इस कृपा को औरों तक पहुंचा दो।
हरि हरि, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! और परिक्रमा तो हो ही रहे हैं। आप परिक्रमा कर रहे हो? हर रोज परिक्रमा कर रहे हो। कहां हो आज? परिक्रमा कहां है? आप मानसिक परिक्रमा, वर्चुअल परिक्रमा करते-करते कहां तक पहुंचे हो? इतना तो याद है कौन से वन में पहुंच गए या ऐसे ही आप संभ्रमित होकर भटक रहे हो। आप वृंदावन में खो गए हो क्या? वैसे पता होना चाहिए वृंदावन में हम कहां हैं। वृंदावन में किस वन में हम हैं। या मैं यह पूछते रहता हूं कहां है? हम वैसे परिक्रमा के अंत में हम पूछते रहते हैं। कहो सारे वनों के नाम कहो जिन जिन वनों कि तुम नहीं यात्रा की। उनका नाम भी तो याद है। वहां की लीला वगैरा की बात अलग है या बाद में हो सकती है। वहां के नाम भी तो याद है जिन बनो कि तुम्हें यात्रा की हैं। तो यह सवाल आपको भी पूछा जाएगा। कहो वंशीबदन ठाकुरजी सारे वनों के नाम कहो कौन-कौन से वन की यात्रा की? ऐसे पूछेंगे आप सुनेंगे।
हम तो ऐसे ही बता रहे हैं। वैसे 30 दिनों में 12 वनों का नाम क्रम से याद होना चाहिए उल्टा सीधा नहीं क्रम से। मधुबन और फिर ताल वन कुमोद वन, बहुला वन वृंदावन और फिर छठवे वनमें पहुंचे हैं हम कामवन। यह कामवन काफी प्यारा और न्यारा वन है। यह एक निश्चित है, परिक्रमा के अंत में आपके साक्षात्कार कहो। कौन सा वन आपको अधिक अच्छा लगा, आपके पसंदीदा वनका नाम बताओ? वैसे कई भक्त कामवन का नाम लेते हैं। कामवन की यात्रा अधिक अविस्मरणीय होती है। कामवनमें जितने दर्शनीय स्थल है उतने और किसी वन में दिखते नहीं। वैसे सारा ब्रजमंडल दर्शनीय स्थलों से भरपूर है। सर्वत्र है दर्शनीय स्थल। किंतु कुछ वनों में यह दर्शनीय स्थल अब लुप्त है। अच्छादित है। तो कुछ वनों में बहुत स्थलीया भी प्रकट है। कई सारे चिन्ह है। वहां लक्षण है। जैसे कई लीलाओं का स्मरण दिलाता है यह कामवन।
हरि हरि इतनी सारे स्थलिया है। तो कामवन की यात्रा हम 2 दिन करते हैं। आज भी होगी। आज अंतर्गत परिक्रमा का वन के अंदर के अंदर परिक्रमा होगी। कल फिर बाहर वाली परिक्रमा होगी।तो भी पूरा नहीं होता सारे दर्शन, हम पूरे नहीं कर पाते। वात्सल्य पूर्ण लीलाए संपन्न हुई। हैं वैसे हम सभी लीलाएं तो नहीं कर पाएंगेँँ यशोदा कुंड तट पर ही हमारा परिक्रमा का पड़ाव रहता हैऋ और यह गोचारण लीला स्थली ही है। कामवन और गोचारण की लीला करते-करते कन्हैया ने यहां भोजन भी किया। कामवन कि भोजन स्थली प्रसिद्ध है। और यहां माधुर्य लीला भी संपन्न हुई है। यहां एक कुंड है जिसका नाम है विमल कुंडृ। ब्रज के प्रसिद्ध कुंडों में से एक कुंड है विमल कुंड। इतनी रास क्रीडा यहां संपन्न हुई। नृत्य होता है तो परिश्रम भी होता है। रास क्रीडा में नृत्य करते-करते पसीने पसीने हो गई गोपियां। पसीने की बूंदे या पसीनो के धाराओं से कुंड बन गया और उस कुंड का नाम हुआ विमल कुंड। विमल कुंड जहां मल नहीं है। विमल कुंड!
हरि हरि, इसी वन में जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन, श्री गोविंद गोपीनाथ मदनमोहन कामवन में भी मदनमोहन विग्रह का दर्शन है। मंदिर है। मदन मोहन, राधा गोविंद देव की जय! और राधा गोपीनाथ, यह गौड़ीय वैष्णव के आराध्य देव, आराध्य विग्रह है। इन तीनों के दर्शन यहां है वैसे इन तीनों के दर्शन एक तो वृंदावन में है। मदनमोहन, राधा गोविंद, गोपीनाथ वृंदावन पंचक्रोशी वृंदावन की बात है।
वैसे इन विग्रहो को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का प्रयास किया जा रहा था मुसलमानों का यवनों का आक्रमण हुआ था। 500 वर्ष पूर्व की बात है। वह मूर्तियों को तोड़ते फोड़ते क्या-क्या करते हैं। यह विग्रह पहले पंचक्रोशी वृंदावन में थे, फिर राधा कुंड में लाए। तो यह तीनों मंदिर राधा कुंड में भी है फिर वहां से कामवन में लाए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से। वहां सुरक्षित नहीं थे। तो फिर वहां से जयपुर लाए गए। जयपुर के राजा धार्मिक थे। धर्म रक्षक थे। तो उनके आश्रय पहुंचाए गए सारे विग्रह को। तो आपको दर्शन होगा राधा गोविंद जो मूल विग्रह है। राधा गोविंद की मूल विग्रह जयपुर में है। और मदन मोहन मूल विग्रह जयपुर में थे। फिर वहां से नीम करोली नाम का स्थान है, जयपुर से कुछ ही दूरी पर उधर हैं। वृंदावन में जो राधा कुंड और कामवन में जो विग्रह है उसे प्रतिभू मूर्ति कहते हैं। हरि हरि, परिक्रमा में हम आज आएंगे तो इन सारे मंदिरोंं का दर्शन होगा। वैसे विशेष दर्शन केवल और केवल काम वन में ही होगा। और वह दर्शन है वृंदा देवी का दर्शन। वृंदा देवी की जय!
वृंदा देवी को भी सुरक्षित स्थान पर जयपुर ले जाने का प्रयास हो रहा था। लेकिन वृंदा देवी वृंदावन नहीं छोड़ना चाह रही थी। हर प्रयास तो हो रहा था उनको ले जाने का लेकिन वहां टस से मस नहीं हुई। हिंदी में कहावत है वृंदा देवी का मूल दर्शन काम वन में है। और उसी मंदिर में राधा गोविंद के भी दर्शन है। राधा गोविंद और वृंदा देवी। वृंदा देवी जिनका नाम से वृंदावन प्रसिद्ध है। वृंदावन वृंदावन कहते हैं। ८वृंदावनः यहं वृंदावनम्* या वृंदारण्य भी कहते हैं जैसे दंडकारण्य वैसे वृंदारण्य।
दीव्यद्वन्दारण्य-कल्प-द्रुमाध
श्रीमद्लागार-सिंहासनस्थौ।
श्रीमद्राधा-श्रील-गोविन्द-देवी
प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि ।।
(Cc aadi 1.16)
अनुवाद
श्री श्री राधा-गोविन्द वृन्दाबन में कल्पवृक्ष के नीचे रत्नों के मन्दिर में तेजोमय सिंहासन के
ऊपर विराजमान होकर अपने सर्वाधिक अन्तरंग पार्थदों द्वारा सेवित होते हैं। मैं उन्हें *सादर नमस्कार
करता है।*
दीव्यद्वन्दारण्य-कल्प-द्रुमाध वृंदारण्य कि किसी कल्प के अधः के नीचे रत्नवेदी पर विराजमान है श्री श्री राधा गोविंद देव प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ उनकी सेवा कर रही है, अष्ट सखियां और अन्य गोपियां मंजीरिया। तो ऐसे दृश्य का मैं स्मरण करना चाहता हूं। ऐसी प्रार्थना हम करते रहते हैं, राधागोविंद के चरणकमलोंमें। तो इसी वृंदा देवी के मंदिर में, राधागोविंद देव जी है।
और एक समय या रूप गोस्वामी के समय, षड गोस्वामी यों का जो समय रहा उस समय रूप गोस्वामी प्रभुपाद वृंदावन में राधा गोविंद की आराधना किया करते थे और साथ में उसी मंदिर में वृंदा देवी की भी आराधना होती थी। वैसे हम जब तुलसी की आराधना करते हैं तुलसी का गीत जब गाते हैं श्रीराधा-गोविन्द-प्रेमे सदा येन भासि नमो नमः तुलसी कृष्णप्रेयसी हे तुलसी कृष्ण, कैसी है तुलसी तुलसीकृष्ण या कृष्ण की तुलसी हो तुम तुलसी कृष्ण जैसे राधाकृष्ण तो तुलसीकृष्ण। वैसे तुलसी मतलब वृंदा देवी वृंदा देवी ही तुलसी के रूप में प्रकट होती हैं। तुलसीकृष्ण मतलब वृंदा श्री श्री वृंदाकृष्ण। वृंदा देवी तुलसी की बहुत बड़ी पदवी है लगभग राधा रानी जैसी पदवी है। उसी वक्त तुलसी के साथ भी एक तो राधा रानी के साथ भी विवाह हुआ है भांडीरवन में कृष्ण का और तुलसी के साथ भी इस कार्तिक मास में तुलसी विवाह भी संपन्न होने वाला है। शालिग्राम तुलसी विवाह। यह तुलसी भी एक वल्लभा भार्या है श्रीकृष्ण की। खूब सारी योजना बनाती रहती हैं और मंच खड़े करती है। ताकि उस मंच पर कृष्ण का खेल राधा कृष्ण लीला संपन्न हो। वह एक इवेंट मैनेजर की तरह है। हरि हरि। वृंदा देवी के बिना कोई लीला संपन्न नहीं होती है वृंदावन में। वृंदा देवी की जय। तो ऐसी वृंदा देवी का दर्शन है कामवन मे।
हरि हरि। जैसे हमने कहा कि अधिक दर्शनीय स्थल काम वन में ही है देखेंगे मिलेंगे। तो वैसे ही सबसे अधिक वानर भी कामवन में ही है और वनों की अपेक्षा। कामवन पहुंचते ही आपको वानरों के झुंड के झुंड मिलेंगे। क्या कारण है? इसी वन में वैसे रामेश्वर है और इसी वन में अशोक वाटिका भी है वह अशोक वाटिका श्रीलंका की अशोक वाटिका जहां सीता को एक प्रकार के कारागार में ही कहो बंद रखा था नजरबंद यह अशोक वाटिका है। अब तक तो आप चार धामों में से एक धाम बद्रिकाश्रम का भी दर्शन किए और फिर यहां इस वन में आप रामेश्वर का दर्शन करोगे। रामेश्वर से श्रीलंका तक जो पुल बनाए तो यह पुल भी है वृंदावन में सेतुबंध। किसने बनाया यह पुल.. राम ने बनाया आप कहोगे लेकिन किस की सहायता से यह बन गया वे थे हनुमान एंड कंपनी। हनुमान और ओर वानरों ने ही तो बनाया यह पुल। एक समय कृष्ण ने कहा कि हे गोपीयो हे राधे एक समय में राम था और तुम थी सीता और तुम्हारा अपहरण हुआ ऐसा स्मरण दिला रहे थे त्रेता युग में जो लीला संपन्न हुई कृष्ण की। कृष्ण बने *रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन्
नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु* उस त्रेता युग के अवतार में मैं राम बना था, मैंने यह किया, मैंने वह किया, फिर तुम्हारा अपहरण हुआ, फिर मैंने तुम को खोज निकाला। तुम जहां थी अशोक वाटिका में फिर हम वहां पर पुल बनाते हुए वहां पहुंच गए, फिर रावण का वध किया राम विजय उत्सव संपन्न हुआ। और यह सारा उसमें से कुछ बातें कह रहे थे फिर हम वहां से पुष्पक विमान में बैठकर तुमको बिठाया मैंने, हनुमान को बिठाया, अंगद को बिठाया, विभीषण को बिठाया और हम आयोध्या लौटे। जाने दीजिए दिवाली पास आ रही है तो मुझे सब याद आ रहा है। हम जब अयोध्या पहुंचे तो दीपावली का उत्सव मनाया वहां। ऐसी अगवानी ऐसा स्वागत हुआ मेरे भ्राता श्री भरत ने पादुका भी पहुंचाई। इस तरह कुछ लीलाओं का उल्लेख कृष्ण कर रहे थे। गोपियों ने और राधा ने कहा कृष्ण तो ऐसे ही डिंग मार रहे हैं मैं यह था मैं वह था, अगर यह सब सच है तो दिखाओ हमको दर्शन कराओ उस लीला का। तुम ने पुल बनाया वानरों की मदद से दिखा दो गोपीयोने ऐसा चैलेंज किया। इसे साबित करो जब हम देखेंगे तो विश्वास होगा हमारा। फिर वहां का सीन चेंज हुआ वह सब यह देखो यह रामेश्वरम है वहां सब कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ सभी वानर बड़े-बड़े पत्थर, चट्टाने या वृक्ष फेंक रहे थे। वहा सागर भी था और गोपियां देख रही थी वहा नील भी थे। पत्थर या वृक्ष जल को स्पर्श करने से पहले झठ से उस पर राम का नाम लिख रहे थे राम का स्टॅम्प लगा रहे थे राम राम तो वह पत्थर डूबने की जगह तैर रहा था।
उसी के साथ वे आगे बढ़ रहे थे फिर वे लंका पहुंचे फिर युद्ध हुआ फिर राम अशोक वाटिका पहुंचे और फिर मिलन हुआ राम सीता का। तो गोपिया यहां सब देख रही थी सारा दृश्य हूबहू संपन्न हो रहा था हो रही थी यह लीला। हरि हरि। तो इसीलिए आज भी वहां अधिक संख्या में आपको वानर मिलेंगे और वहां रामेश्वर और अशोक वाटिका का भी दर्शन कर लेना और आपको पुल भी दिखेगा सेतुबंध। हरि हरि। इसी वन में ही चौरासी खंबा नाम का स्थान है या ऐसा स्थान है, ऐसी वास्तु रही एक समय लेकिन अब टूट रही है, गिर रही है, लेकिन अब भी कई सारे स्तम्भ खड़े हैं। चौरासी खंबे जहां अज्ञातवास के समय पांडव काम वन में रहते थे उनके निवास के लिए ऐसी व्यवस्था चौरासी खंबा वाला मेहल या स्थान बना था। वैसे चौरासी खंबे वाला और भी एक स्थान और एक ही स्थान है ब्रज मंडल में और वह है नंदभवन। गोकुल में जब पहुंच जाओगे तो नंद भवन में भी चौरासी खंबे है और यह कामवन में भी चौरासी खंबे वाला स्थान है जहां पांडव एक समय रहे। वैसे हम जो परिक्रमा कर रहे हैं ब्रज मंडल परिक्रमा वह भी चौरासी कोस परिक्रमा है। इस ब्रह्मड में भी हम लोग चौरासी लक्ष्य योनियों में भ्रमण करते रहते हैं, कर रहे हैं, पता नहीं कर चुके हैं या दोबारा राउंड मारना पड़ेगा। हरि हरि। अगर आप नहीं चाहते हो कि पुनः उस चौरासी लाख योनियों मे से गुजरना पड़े, इससे बचना चाहते हो तो करो यह चौरासी कोस परिक्रमा। साथ ही साथ करो दर्शन इस चौरासी खंबे वाला पांडवों का जो निवास स्थान जो कामवन का है और गोकुल में चौरासी खंबे वाला नंदभवन है। खंभों को भक्त अलिंगन भी देते हैं, साष्टांग दंडवत प्रणाम भी करते हैं। चौरासी कोस की परिक्रमा तो पूरे विनम्र भाव के साथ और धुली को अपने मस्तक पर उठाते हुए और धुली को भी नमस्कार करते हुए यह ब्रज की वही धुली है। ऐसी समझ है कि कृष्ण के समय के बाद काफी कुछ परिवर्तन आया है ऐसा दिखता तो है, क्योंकि भौम वृंदावन। एक वृंदावन और फिर भौम वृंदावन इस भूमि पर वृंदावन है।
स कालेनेह महता योगे नष्टः परन्तप कलि कुछ विनाशकारी होता है, कलि कुछ परिवर्तन लाता है वृंदावन में भी। हरि हरि। लेकिन कुछ बातें ऐसी है जो कृष्ण के समय से अब भी है उस समय भी थी आज भी है। वह है जमुना मैया की जय एक, गिरिराज गोवर्धन की जय दो और यहां के ब्रज रज की जय ब्रज की जो धूल ही है तीन। यह तीन बातें तो आज भी है इसके अलावा और भी बहुत कुछ है लेकिन यह तीन मुख्य बातें है। तो यहां की जो ब्रज धूली है, इस धूलि में हमको खूब लौटना चाहिए, इस धूली को अपने मस्तक पर उठाना चाहिए।
यहां की धूली मस्तक पर उठाने के उद्देश्य से ही वैसे ब्रह्मा प्रकट होते हैं, बरसाने का जो पर्वत है बरसाना, तो वह ब्रह्मा बने हैं। ताकि उनके सिर पर वहां राधा कृष्ण की लीला संपन्न हो। वह धुली उनके मस्तक पर वे धारण कर रहे हैं स्वयं ब्रह्मा। हरि हरि। ब्रजमंडल की जय। और भी कई सारी बातें है सब बताऊंगा तो आप.. परिक्रमा को देखना भी तो हैं। जब परिक्रमा रिलीज होगी तो उसमें भी जॉइन करना है, तो सब कह दिया तो काम नहीं चलेगा। फिर आप कुछ छोड़ देते हैं या यह तो ऑडियो हुआ, परिक्रमा में वैसे तो वीडियो चलता है, तो उस वीडियो को भी देखिए और वहां भी ऑडियो है उसको सुनिए और अपना जीवन सफल कीजिए।
निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
13 NOVEMBER 2020
6TH FOREST, THE
Hare Krsna!
Devotees from 724 locations are chanting with us. The super sale of Kartik month is on. This super sale is free and you are given the opportunity to take away as much as you can. You are getting to hear about and to virtually perform Braj Mandal Parikrama. I hope you’re all having a special experience. There is Parikrama going on, Deepdaan going on. Share this with others. Ask them to join and take the benefit of this. You must be aware of where we have reached in the Parikrama. Where are we? Although virtually, but your consciousness should be full of this. You must know where we have reached? You must remember the names of all the 12 forests that you visit in this Kartik month by the end. You should remember in sequence the names of the 12 forests that you visit in these 30 days.
Now we have reached Kamyavan. It is an extremely beautiful forest. At the end of Parikrama, every year devotees are asked to name the forest that they liked the most. Many devotees name Kamyavan. Parikrama to Kamyavan is unforgettable. Though the entire Braj Mandal is full of places of pastimes, some places have been lost or disappeared. But in Kamyavan, there are many places of Darshan. We will stay here today and tomorrow. Today we will do the interior parikrama and tomorrow, we will do the exterior parikrama. Still it is difficult to cover all darshan places of Kamyavan. There are places of parental pastimes and cow grazing fields. Yashoda kund is famous. Bhojan sthali is famous as Krsna had His food here. Vimal Kund is one of the most popular kund of Vraja, Rasa dance took place here. The Gopis perspired so much dancing with Krsna that an entire Kund was filled with it. Vimal means without any impurities.
jaya rādhe, jaya kṛṣṇa, jaya vṛndāvan
śrī govinda, gopīnātha, madana-mohan
TRANSLATION
All glories to Radha and Krsna and the divine forest of Vrndavana. All glories to the three presiding Deities of Vrndavana–Sri Govinda, Gopinatha, and Madana-mohana. (1st verse, Jaya Radhe Jaya Krsna Jaya Vrndavana (I), Sri Vraja Dhama Mahimamrta, Krsna Dasa)
You will also find the temples of Radha Govinda, Gopīnātha and Madanmohan here in Kamyavan. These are worshipable deities of Gaudīya Vaiśnavas. Their darshan is also available in 5-kos Vrindavan. They were originally in 5-kos Vrindavan 500 years ago, but they were being transferred to safer zones out of fear of cruel Muslim rulers who were breaking and destroying temples and deities. The deities were brought to Radha kund first and then Kamyavan on the way to Rajasthan. The original deity of Radha Govinda is in Jaipur as the King of Jaipur was a religious person. The original deity of Radha Gopīnātha is in Udaipur and Madanmohan is in Karauli. The deities now in Vrindavan, Radha kund and Kamyavan are called Pratibhu deities. We will have darshan of all these deities today. Vrinda Devi’s temple is also found in Kamyavan. Vrinda Devi was also tried to be shifted to a safer place but after she reached Kamyavan, she did not move as she did not want to leave Vrindavan. We also get darshan of Sri Sri Radha Govinda here in Vrinda Devi’s temple. Vrindavan name comes from Vrinda Devi. Vrindavan or Vrindaranya means forest of Vrinda/Tulasi.
divyad-vrindaranya-kalpa-drumadhah
srimad-ratnagara-simhasana-sthau
srimad-radha-srila-govinda-devau
preshthalibhih sevyamanau smarami
TRANSLATION
In a temple of jewels in Vrindavana, underneath a desire tree, Sri Sri Radha-Govinda, served by Their most confidential associates, sit upon an effulgent throne. I offer my most humble obeisances unto Them. (Abhidheyadhideva Pranama)
When we pray to Radha Govinda, we say that I wish to always have that sight of Śrī Radha Govinda who are seated on a throne studded with gems and diamonds under a desire tree in the forests of Vrinda and who are being served by the 8 gopīs. Rupa Goswami Prabhupāda used to worship Radha Govinda in Vrindavan where Vrinda Devi was also being worshiped.
dina krishna-dase koy, ei yena mora hoy
sri-radha-govinda-preme sada yena bhasi
TRANSLATION
This very fallen and lowly servant of Krsna prays, “May I always swim in the love of Sri Radha and Govinda. (5th verse, Sri Tulasi-Aarti)
When we sing Tulasi arati, in the last line we sing that Tulasi is always in the love of Radha Govinda. She is also remembered with Krsna as His extreme beloved. Vrinda Devi is Tulasi Herself. Tulasi Maharani is extremely elevated as Śrīmati Radharani. Krsna is married to Śrīmati Radharani in Bhandirvan. He is married to Tulasi also. Tulasi and Shaligram Marriage will also take place soon in Kartik. Vrinda Devi also has great authorities and responsibilities so that Radha Krsna’s pastimes could take place. Vrinda Devi is like an event manager. None of the pastimes take place without her in Vrindavan. The temple of Original Vrinda Devi deity is found in Kamyavan. Also, a lot of monkeys are found here. Compared to the other forests, the number of monkeys found here is much higher. The reason being, Rameshwaram and Ashok Vatika are here in Kamyavan. Ashok Vatika, where Mother Sita was taken by Rāvana. Yesterday we had Darshan of Badrinath and Kedarnath. I had told you that all the holy places reside in Braj Mandal. Here we have darshan of Rameshwaram. You will also find the stone Bridge (Setu Bandha) here to Lanka. It was made by Hanuman and many monkeys.
rāmādi-mūrtiṣu kalā-niyamena tiṣṭhan
nānāvatāram akarod bhuvaneṣu kintu
kṛṣṇaḥ svayaṁ samabhavat paramaḥ pumān yo
govindam ādi-puruṣaṁ tam ahaṁ bhajāmi
TRANSLATION
I worship Govinda, the primeval Lord, who manifested Himself personally as Kṛṣṇa and the different avatāras in the world in the forms of Rāma, Nṛsiṁha, Vāmana, etc., as His subjective portions. (Śrī brahma-saṁhitā 5.39)
One day Krsna said to Radha, “Long ago in our previous life in Treta yuga, I was Śrī Rama and you were Sita. You were kidnapped in Ashok Vatika and then I made a bridge and fought and brought you back. I did such great jobs then. I killed the great demon Rāvana and became victorious and celebrated Rama Vijay Utsav. I returned to Ayodhya with you on the Pushpaka Vimana with Hanuman and Vibhishan.” Diwali was the day, which is approaching, therefore I am remembering this. Gopis said that you are boasting just to impress us, if all this is true then prove it by constructing the bridge again. We shall believe only if we see. Krsna brought them to this place and showed them Rameshwaram. Then there were monkeys who were writing Ram on the stones and throwing them in the water. To their surprise, the rocks floated. Then Krsna showed the entire pastime of reaching Lanka and killing the demon Ravana and reunited with Sita in Ashok Vatika. The Gopis were seeing all this. You may also have darshan of Rameshwaram, Ashok Vatika and Setu Bandha.
Then you also see a place called chaurasi khamba ( 84 pillars) in Kamyavan means a palace with 84 pillars. Here the Pandavas had spent the 13th year of exile. This is different from the 84 pillared palace, Nanda Bhawan of Nanda Maharaj which is in Gokula. The entire Braj Mandal Parikrama is also of 84 Kos (a unit of measuring distance). Then there are 84 hundred thousand species and we keep moving in this cycle of birth and death. If you wish to be freed from this cycle then perform this Braj Mandal Parikrama of 84 Kos and also visit 84 pillars place in Kamyavan and Gokula. Devotees embrace these pillars and offer their obeisances.
evaṁ paramparā-prāptam
imaṁ rājarṣayo viduḥ
sa kāleneha mahatā
yogo naṣṭaḥ paran-tapa
TRANSLATION
This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost. (B.G. 4.2)
Kaliyuga is destructive so it does bring apparent changes in Vrindavan as well. Yet there are a few things which are still present from Krsna’s time. Yamuna, Govardhan and Braja soil are the three major ones of them. You must make sure you relish these great associates of Krsna. We must offer obeisances and possess Braja soil to our head. Brahma became the hill of Barsana for this cause. All glories to Braj Mandal Parikrama. You must make sure that you attend the virtual VMP. This was the audio version but you also get to see the audio-visual version. Therefore, do attend that and make your life successful.
Nitai Gaura Premanande Hari Hari bol!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण!
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम से,
12 नोव्हेंबर 2020
गौरांग…!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
हरि बोल…!
आप सभी का परिक्रमा में स्वागत है। आज परिक्रमा पता है ना कहां से कहां जाएगी प्रात:काल में घोषणा कि जाती है परिक्रमा के दौरान। मैं उम्मीद करता हूं कि मानसिक रूप से आध्यात्मिक रूप से आपकी आत्मा आजकल ब्रज में में निवास कर रही हैं। आपका मन में है ब्रज का ही ध्यान कर रहे हो।जप चर्चा काँन्फरन्स में उपस्थित प्रतिभागियों से प.पु. लोकनाथ स्वामी महाराज जी ने कहा “आप सुन लीजिए जप को थोड़ा हरि कथा जप बंद करिए थोड़ी देर के लिए।देवहूति माताजी जप करना शुरू ही है आपका। ऐका थोड! थांबा थोड! वागाळ घोड! हरि हरि! बद्री का आश्रम में आप सब ने दो रातें बिताई और आप सभी ने आपके बद्रीकाआश्रम में बद्रीनारायण का दर्शन किया। यह बद्री है यह वहां के वृक्ष है। वहाके कुछ वृक्ष बद्री वृक्ष कहलाते हैं। हरी हरी! वहां लक्ष्मी भी पहुंच जाती है भगवान तो पीछे छोड़े वैकुंठ में और स्वयं अकेले तपस्या करने के लिए बद्रीका आश्रम पहुंचे तो थे किंतु पीछे से लक्ष्मी भी आ गई अपने पति की सेवा में उनसे रहा नहीं गया। बद्रिकाश्रम में बद्री नामक वृक्षों के रूप में लक्ष्मी वहां निवास करती है और अपने पतिदेव को छाया प्रदान करती है और तप करती हैं। आज जब परिक्रमा बद्रिकाश्रम से बद्रीनाथ से केदारनाथ जाएगी, केदारनाथ से चरण पहाड़ी होते हुए कामवन पहुंचने वाली हैं। कामवन धाम की जय…!
भगवान जब बैकुंठ को त्याग कर तपस्या करने हेतु जब प्रस्थान किए तो ढूंढ रहे थे वह भूमि जहां वे तपस्या कर सके हैं। हिमालय में पहुंचे तो एक स्थान उनको बहुत पसंद आया वह बद्रीनाथ ही हैं। पसंद तो आया लेकिन उन्होंने यह भी देखा था की वहा शिव और पार्वती पहले से ही निवास कर रहे हैं। फिर नारायण युक्ति सोचते है कि शिव और पार्वती को कैसे यहां से निकाल सकते हैं। इस स्थान को हम प्राप्त कर लेंगे और हम यही रहेंगे। एक समय की बात है हो सकता है प्रात काल में हुआ होगा शिव और पार्वती तप्त कुंड में स्नान के लिए जा रहे थे आप को पता है। बद्रिकाश्रम का तप्त कुंड प्रसिद्ध है वहां जाने पर सभी यात्री प्रायः वही स्नान करते हैं। शिव और पार्वती स्नान के लिए जा रहे थे रास्ते में उन्होंने एक बालक को देखा। वह बालक अकेला ही है असहाय है, गरीब बेचारा, दुखी और उदासीन और निराश्रित। कोई आश्चर्य नहीं है कोई संभाल नहीं रहा है कोई खयाल नहीं कर रहा है आंसू भी बहा रहा है, रो रहा हैं। इस बालक को शिवजी और पार्वती दोनों ने भी देखा। पार्वती ने जब बालक को देखा तो उनको दया आयीं उन्होंने सोचा कि इस बालक को हमारे घर में रखते हैं और वैसा ही हुआ बालक को पार्वती जी घर में लेकर गयी और वहां रखी और दोनों पति पत्नी स्थान के लिए प्रस्थान किए और स्नान के उपरांत जब वे लौटे तो उन्होंने देखा कि सारे दरवाजे खिड़कियां बंद हैं।
अंदर से भी ताले या कुंडी लगाई गई हैऔर अंदर प्रवेश का कोई मार्ग ही नहीं है खूब दरवाजे खटखटा कर देखते हैं बेल बजाते हैं लेकिन वे जानते हैं। अंदर बालक है और उसकी करतूत होनी चाहिए। उसने ही बंद कर दिया है खिड़की दरवाजे। थोड़ा सोचने पर विचार विमर्श किया शिव पार्वती ने और उन्होंने सोचा कि यह बालक वे अनुभव भी कर रहे थे ये कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। माना कि यह बालक स्वयं भगवान ही हैं। उन्होंने हमारे घर पर कब्जा किया है, घेर लिया और वे यही रहना चाहते हैं। फिर शिव और पार्वती हिमालय के क्षेत्र में और अपने लिए दूसरा क्षेत्र ढुँढ ने के लिए निकले।ढुँढते ढुँढते उनको एक स्थली बहुत पसंद आयीं। उस स्थान का नाम केदारनाथ है और वहा शिव और पार्वती रहने लगे। अभी भी वही रहते हैं। एक है बद्री बद्रीनाथ और दूसरा केदार केदारनाथ। बद्रीनाथ…!केदारनाथ…! ये दो नाथ हिमालय में वास करते हैं। वही है बद्रीनाथ और केदारनाथ वृंदावन में भी ओरिजिनल(मूल) बद्रीनाथ ओरिजिनल(मूल) केदारनाथ हैं। उनका हम दर्शन कर रहे हैं। हरिद्वार भी है वृंदावन में। उस हरिद्वार को कुछ हरिद्वार कहते हैं या कुछ हरद्वार कहते हैं। हरि या बद्रीनारायण के जो भक्त हैं उनके लिए हरिद्वार प्रवेशद्वार ये प्रवेश द्वार है हरिनारायण या बद्रीनारायण के भक्तों के लिए वह प्रवेश द्वार हैं। वह कहेंगे यह हरिद्वार है और जो केदारनाथ जाना चाहते हैं शिव जी के भक्त हैं वह कहेगें हरद्वार। हरि और हर। कोई कहेगा हरिद्वार कोई कहेगा हरिद्वार। ये जो दो धाम बडे़ ही प्रसिद्ध हैं। बद्रीनाथ और केदारनाथ। इस केदारनाथ में ही केदार या शंकरजी ही बने थे शंकराचार्य। शंकरजी का ही अवतार रहे शंकराचार्य।हरि हरि!
उन्होंने भगवान के आदेशानुसार मायावाद का प्रचार और प्रसार किया। खूब शास्त्रार्थ किया।वे वेदवाद की स्थापना कर रहे थे सर्वत्र। करते करते अंततोगत्वा वे केदारनाथ पहुंचे और केदारनाथ में ही उम्र के 32 वर्ष की अवस्था में वह समाधिस्थ हुए। वैसे हिमालय में और चार धाम हैं। चार धाम की यात्रा हैं। बद्रीनाथ,रामेश्वर शिव जी का धाम है दक्षिण में और पूरब में है जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिकापुरी यह चार धाम की यात्रा प्रसिद्ध हैं।वैसेऔर भी चार धाम हिमालय में है वह है बद्रिकाश्रम धाम, केदारनाथ धाम, गंगोत्री और यमुनोत्री ये चार मिलकर हुए एक चार धाम कि यात्रा। गंगोत्री कि जय…! यमुनोत्री की जय…! वृंदावन में भी हैं।यमुनोत्री,गंगोत्री भी है, बद्रिकाश्रम भी है और केदारनाथ भी हैं।जब वृंदावन परिक्रमा करते हैं तो इन सारे धामों कि भी यात्रा हो जाती हैं। ऑल यात्रा इस वन यात्रा।ऑल इन वन टु इन वन आप कहते हो। रेडियो भी है ट्रांजिस्टर भी हैं। ब्रज मंडल परिक्रमा का ये वैशिष्ट्य हैं। ब्रज परिक्रमा करो तो सृष्टि में जितने भी तीरथ है, धाम है,उन सारे धाम की तीर्थ यात्रा की। ऐसे ब्रज मंडल की जय हो! बद्रीका आश्रम से फिर केदारनाथ जाते हैं। वहा इतनी सारी सिड़िया हैं पानी है हिमालय ही है। हिमालय के बारे में भगवान ने कहा हैं।
“महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् |
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।”
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10,श्लोक 25)
अनुवाद: -मैं महर्षियों में भृगु हूँ, वाणी में दिव्य ओंकार हूँ, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूँ |
स्थावराणां हिमालयः जितनी भी स्थिर स्थावर वस्तुएँ हैं।उन स्थावर वस्तुओं में अहम हिमालय: मैं हिमालय हुँ। भगवान ने कहा हिमालय मैं हूंँ। हिमालय का जो वैभव है उसमें जो स्थैर्य है इतना विशाल,ऊँचा हिमालय यह मैं हूंँ। भगवान का एक वैभव हैं। भगवत गीता के दसवें अध्याय में जहाँ भगवान अपने वैभवों का उल्लेख करते हैं। वहां पर सभी हाथियों में मैं एरावत हाथी हूंँ। नदियों में मैं गंगा हूंँ। ऐसा भी भगवान ने कहा है।हरि हरि!
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसुर्ययो:।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ||
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7,श्लोक 8)
अनुवाद: -हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ |
चंद्रमा और सूरज मैं हूंँ। चंद्रमा और सूरज में जो प्रकाश है मैं हूंँ। भगवान कहते है यह वैभव हैं।ये भी हमको स्मरण दिलाता है हिमालय देखने पर भी हमें भगवान का स्मरण होना चाहिए।गंगा का दर्शन हुआ तो भगवान का दर्शन भगवान ने कहा है मैं हूंँ गंगा। भगवान बने हैं गंगा।हमें उनका स्मरण होना चाहिए।
भीमा आणि चंद्रभागा, तुझ्या चरणीच्या गंगा (संत जनाबाई लिखित भजन)
भगवान के चरणों से ही निकलती है गंगा या फिर सुनते हैं। भगवान जब अपने, अपने ही जीव जो इस संसार में मर रहे हैं। तकलीफें झेल रहे हैं, परेशान हैं। आधिदैविक,अध्यात्मिक, आदिभौतिक, कष्ट से पीड़ित है उनको जब भगवान देखते हैं मतलब हम कोई जब भगवान देखते हैं तो भगवान के दिल में भगवान का दिल द्रविभूत होता हैं। एक होता है घनीभूत। हमारे ह्रदय तो घनीभूत है पत्थर है लोहे से भी कठिन है हमारे दिल लेकिन भगवान का ह्रदय पिघलता हैं जब हमारी स्थिति को भगवान देखते है तो भगवान का पिघला हुआ वो दिल वह द्रविभूत आर्द्र
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ||
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10,श्लोक 11)
अनुवाद: -मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |
दिल द्रवित होता है कंपीत होता है और वह द्रव फिर बहने लगता है तो यही तो है जो पवित्र नदियां है यह भगवान कि कृपा है या भगवान कि अनुकंपा हैं। भगवान ने करुणा की हैं।
गंगेच यमुना चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदा सिंधु कावेरी जले स्मिन् सन्निधिं कुरु।।
अनुवाद: – हे गंगा यमुना गोदावरी सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी नदियों! (मेरे स्नान करने के) लिए इस जल में (आप सभी) पधारिये।
प्रार्थना भी करते हैं हे गंगे हे जमुने हे सरस्वती हे गोदावरी है नर्मदे हे कावेरी हे सिंधु! ये विशेष नदियां हैं।पवित्र नदियां हैं। हरि हरि! हम जहां निवास कर रहे हैं। यहा हम भी गंगा के तट पर हैं चंद्रभागा गंगा ही हैं।
*भीमा आणि चंद्रभागा, तुझ्या चरणीच्या गंगा (संत जनाबाई लिखित भजन)
यह जो द्रवित होकर बह रहा है यह भगवान का स्मरण दिलाते हैं हम जब हिमालय में बद्रिकाश्रम गए हम जा रहे थे चलके पदयात्रा कर रहे थे हरिद्वार से हम पदयात्री ही हैं। यह देख रहे थे कि वहां विशाल रूप है हिमालय का विशाल बद्री विशाल भी कहते हैं हिमालय भी विशाल है उसका जो उत्तुंग शिखर है जब शिखर की ओर देखते हैं तो टोपी वाले वारकरी वगैरह महाराष्ट्र के हैं तो टोपी ऊपर देखते हुए टोपी फिर पीछे गिर सकती हैं। कितना ऊंचा पहाड़ है तो उस पहाड़ के सानिध्य में या बगल में हम जब वहां चल रहे थे तो वहां हम अनुभव कर रहे कर रहे थे और यह मेरा स्वयं का अनुभव है हम कितने तुच्छ हैं हम कितने छोटे हैं एक होता है महान और एक होता है लहार मराठी में उसे लहान (छोटा) कहते हैं। सर्वत्र हिमालय.. ही..हिमालय और शिखर बस पहाड़ ही पहाड़ जहां भी देखो पहाड़ ही पहाड़ उसके मध्य में हम चल रहे हैं। उसके आकार की दृष्टि से देखा जाए तो हम चिटी भी नहीं हैं। हम उसके आकार के हिसाब से देखा जाए तो हम तुच्छ हैं। नहीं के बराबर है हिमालय की तुलना में हम। हिमालय भी खड़ा है और आप बगल में जाकर खड़े हो जाओ सेल्फी खींचे तो इतने हम बड़े हैं ऐसा मैं अनुभव कर रहा था हम कितने शुद्र है,छोटे है, लहान है और उसके साथ कुछ नम्रता का भाव भी उत्पन्न हो रहा था और कोई गर्व है,अभिमान है,महान है, हम यह है, वह हैं। हिमालय के सामने तुम तो कुछ भी नहीं हो। नम्र बनने में फायदा कर रहा था वह हिमालय का दर्शन। हिमालय के सानिध्य का अनुभव हरि हरि!
यह भी अनुभव ऐसे हम कर रहे थे जैसे हम चल रहे थे बहुत ऊंचा है समुद्र तल (सी लेवल) से जो नापते हैं।एक किलोमीटर अब दो किलोमीटर समुद्र तल से तीन किलोमीटर समुद्र तल से कई हिमालय तो कई सारे किलोमीटर समुद्र सतह से ऊँचा हैं। हम जैसे ऊपर चल रहे थे यह मेरा थोड़ा निजी अनुभव रहा हम जो जा रहे थे बद्रिकाश्रम की तरह बद्रीनारायण की ओर जा रहे थे बद्री नारायण के दर्शन के लिए उत्कंठीत भी थे और वहां यह सारी परिस्थिति हैं। परिस्थिति में से भी गुजर रहे हैं ऊंचे, विशाल, उत्तुंग शिखर भी है हिमालय के। वैसे हिमालय भी भगवान का वैभव है और भी दो दर्शन वहा हो रहे हैं।जब हम ऊपर देखते है तो सूर्य का दर्शन। आकाश में सूर्य हैं बगल में देखो तो हिमालय है और नीचे देखो तो गंगा बह रही है वहां खाई में और भगवान ने कहा है यह तीनों मैं ही हूंँ। हिमालय मैं हूंँ, सूर्य मैं हूंँ और गंगा मैं हूंँ और जा कहां रहे हैं नारायण की ओर बद्रिकाश्रम जा रहे हैं।पदयात्रा करते हुए।जैसे हम आगे जा रहे थें। ऊपर चल रहे थे तो यही भी अनुभव हो रहा था हमारी जो भावना है हमारा जो कृष्णभावनाभावित है हम कुछ उच्च विचार के भी बन रहे थे उच्च विचार भी आ रहे थे हमारे भावना में भी कुछ विकास हो रहा था जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे चल रहे थे और जा रहे थे बद्रीनारायण की ओर।
हिमालय में हम जो नगण्य होते हैं।वैसे हम सोचते रहते है हम अग्रगण्य है, विशेष हैं। वैसे हम सोचते हैं कि हम अग्रगण्य है लेकीन हम नहीं के बराबर हैं।
तृणादपि सुनीचेन
तरोरपि सहिष्णुना।
अमानिना मानदेन
कीर्तनीयः सदा हरिः॥
( श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला अध्याय 17 श्लोक 31)
अनुवाद: -स्वयं को मार्ग में पड़े हुए तृण से भी अधिक नीच मानकर, वृक्ष से भी अधिक सहनशील होकर, मिथ्या मान की भावना से सर्वथा शून्य रहकर दूसरों को सदा ही मान देने वाला होना चाहिए। ऐसी मनः स्थिति में ही वयक्ति हरिनाम कीर्तन कर सकता है।
यह कीर्तन हम करते हुए भी जा रहे थें। उस समय हम पदयात्रा का जो विग्रहरथ हैं। वह हरिद्वार में रखे थे और गौर सुंदर को सिर पर ढोके हम चलते जा रहे थे और कीर्तन हो रहा था हरि हरि! उनके बद्रिकाश्रम से फिर केदारनाथ फिर आगे बढ़ते हैं ब्रज मंडल में कामवन में प्रवेश के पहले एक पहाड़ी आ जाती है एक पहाड़ आता हैं वैसे यह पहाड़ भी हिमालय का ही अंग है केदारनाथ बद्रीनाथ हिमालय पर्वत। वृंदावन जाने वाले हो लोही बाजार और पंचक्रोशी वृंदावन देख कर लौटते हैं और सबसे कहते हैं। हा!हा!हमने वृंदावन देख लिया वृंदावन का दर्शन हुआ वृंदावन कि पंचक्रोशी परिक्रमा भी कि फिर मथुरा भी गए थोडे बगल वाले स्थान देखे लेकिन वैसे ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं तो यह जो क्षेत्र है बद्रीनाथ केदारनाथ यहां पहाड़ है अधिकतर लोगों को पता नहीं कि ब्रज मंडल में पहाड़ होते हैं वैसे गिरी गोवर्धन हो सकता है पहाड़ा होता है लेकिन गिरी गोवर्धन के अलावा पहाड़ की बात चल रही है तो ब्रह्मा विष्णु महेश भी पहाड़ के रूप में ब्रज में रहते हैं और यह जो बरसाने का पहाड़ हैं। राधा रानी की जय महारानी की जय जय राधा रानी जहां रहती है कीर्तिदा वृषभानु राजा जहा रहते है वह पहाड़ है ब्रह्मा। बरसाने का पहाड़ है ब्रम्हगिरी और नंदग्राम के ऊपर चढ़कर जाना होता हैं। नंदग्राम भी पहाड़ है और वह पहाड़ है शिव जी। नंदेश्वर महादेव का दर्शन भी है नंदग्राम में। यह दो हो गए। फिर रह गए हमारे विष्णु। ब्रह्मा विष्णु महेश।
विष्णु बने हैं गोवर्धन। ऐसे तीन पहाड़ प्रसिद्ध हैं गिरिराज गोवर्धन की जय…! तीन पहाड़ को आप देखते रहते हो लेकिन हिमालय भी वहा ब्रज मंडल में है या केदारनाथ है और फिर आगे बढ़ते हैं तो चरण पहाड़ी हैं। दूसरे के पहाड़ के शिखर पर चरण पहाड़ी भगवान के चरण चिन्हों का दर्शन।यहा तक पहुंचे ही हो तो करो दर्शन करो! भगवान के चरण चिन्हों का दर्शन करो। आपकी यात्रा सफल हो गई।परिक्रमा में क्यू जा रहे थें। भगवान को खोजने जा रहे थें। भगवान को ढूंढने जा रहे थें। जैसे गोपियां भगवान को खोज रही थी वैसे आप भी भगवान के चरणों का दर्शन करते हुए एक वन से दूसरे वन जा रहे थें।
गोपियों को भी खोजते खोजते पहले तो किस का दर्शन हुआ? चरण का दर्शन हुआ और चरण का दर्शन होते ही उनकी आशा की किरण हुई अभी तो चरण यहा है तो कृष्ण कुछ दूर नहीं होंगे। यही पास में होने चाहिए चरण चिन्ह तो यहां हैं। यहा से ही चलकर गए होंगे तो चरण पहाड़ी में चरण चिन्हों का दर्शन विशेष अनुभव हैं। हमारा विश्वास भी हो जाता हैं। हम निष्ठावान बनते हैं। हां..!हां..!भगवान हमें मिलने वाले हैं। भगवान का दर्शन होने वाला हैं। भगवान के चरणों का दर्शन है चरण पहाड़ी अपना माथा टेक के वहा मस्तक को उठाकर आगे बढ़ते है और कामवन में प्रवेश होता हैं। कामवन की जय…!वैसे हम वृंदावन में थें। बहुलावन के बाद फिर हम राधाकुंड आए तब वृंदावन में थें। गोवर्धन परिक्रमा कि तब हम वृंदावन में थे फिर आगे बढ़े बद्रिकाश्रम वगैरा तब हम वृंदावन में थें। आप ब्रज मंडल का और एक वन कामवन यह छठवां वन में आ पहुंचे हो।
काम वन की जय…!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल…!
यह जो सुन लिया इसको देख भी लो! पढ भी लो! दिन में देखो और सुनो हरि हरि!ठीक है तो कुछ कुछ सूचनाएं हो गए हैं ठीक है तो आपकी यात्रा सफल हो…! अगर आप लिखना चाहते हो अभी भी चार्ट सेशन खुला है अपने विचार परिक्रमा के अनुभव आप लिख सकते हैं। साधना कार्ड में भी आपको लिखना हैं। लिखते रहो।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
12 NOVEMBER 2020
Vrajmandal parikrama Day 12
Witnessing Lords opulences generates humility in us.
Hare Krsna!
Devotees from 747 locations are chanting with us. Gauranga!
Gaura premanande Hari Hari bol!
Welcome all of you to the parikrama. Mentally your soul is residing in Vraja these days. Lord is in Vraja and you are contemplating Vraja. Yesterday we halted at Badrikashram. You had darshan of Badri Narayan. The trees of Badrikashram are called Badri. When Lord went to Badrikashram to perform penance, leaving Laxmi behind in Vaikuntha, she followed the Lord to serve Him. Laxmi stays there in the form of the leaves of Badri tree and provides shadow to the Lord.
Today we shall be going to Kedarnath from Badrinath and then to Kamyavan crossing Charanpahadi. We heard how on the request of Nārada, Lord left for penance. Lord came to the pious land of Badrinath. Then He saw that Lord Shiva and Pārvati are already residing there. But Vishnu had already chosen the place to be apt for the performance of penance for Him. Therefore, He thought of some trick.
One day, When Shiva and Pārvati were going for a bath in the natural geyser (tapt kunda) as I was describing yesterday, they found a small boy on the way crying alone, there was no caretaker around. Parvati felt mercy on the baby. They decided to give him shelter and they put the child in their house and locked him inside to keep him safe and protected. When they returned after taking a bath, they found the house to be locked from inside. They thought that it could be none other than Vishnu Himself as no ordinary child could do that with them. Accepted that as their fortune that Lord had chosen their house to stay and therefore they left Badrinath in search of a new place to reside. They found a beautiful place in the Himalayas to be very apt for them to stay and that place became Kedarnath. Shiva and Pārvati stay there in Kedarnath. The Badrinath and Kedarnath in Vrindavan are non different from the ones in Himalayas.
Haridwar is also there in Vrindavan. Some people call it Haridwar – those who are the devotees of Badri Narayan and desire to go to Badrinath whereas some call it Har-dwar – Those who desire to go to Kedarnath. Lord Shiva had himself appeared as Adi Shankaracharya, who preached Mayavada philosophy on the order of Lord and at the age of 32, he went to Kedarnath to perform penance. The 4 main pilgrimage places of India are in the extremes of the 4 directions. In North – Badrinath, West – Dwarika, South – Rameshwaram and in East – Jagannath Puri. There are also 4 pilgrimage places in the Himalayas. They are Badrinath, Kedarnath, Gangotri and Jamnotri. They are in Vrindavan also. When you go to Braj Mandal, you get the benefit of going to all the pilgrimage places in the world. All yatra in one yatra. Braj Mandal Parikrama is so great!
maharṣīṇāṁ bhṛgur ahaṁ
girām asmy ekam akṣaram
yajñānāṁ japa-yajño ’smi
sthāvarāṇāṁ himālayaḥ
TRANSLATION
Of the great sages I am Bhṛgu; of vibrations I am the transcendental oṁ. Of sacrifices I am the chanting of the holy names [japa], and of immovable things I am the Himālayas. (Bg. 10.25)
The Lord is talking about His own opulences that among all the mountains, I am Himalaya. I am Airawat among the elephants.
pavanaḥ pavatām asmi
rāmaḥ śastra-bhṛtām aham
jhaṣāṇāṁ makaraś cāsmi
srotasām asmi jāhnavī
TRANSLATION
Of purifiers I am the wind, of the wielders of weapons I am Rāma, of fishes I am the shark, and of flowing rivers I am the Ganges. (B.G. 10.31)
Lord says, He is Ganges among all the rivers.
raso ’ham apsu kaunteya
prabhāsmi śaśi-sūryayoḥ
praṇavaḥ sarva-vedeṣu
śabdaḥ khe pauruṣaṁ nṛṣu
TRANSLATION
O son of Kuntī, I am the taste of water, the light of the sun and the moon, the syllable oṁ in the Vedic mantras; I am the sound in ether and ability in man. (B.G. 7.8)
Lord says, “I am the glow in the moon and light in the sun.” These are the opulences of the Lord. Seeing these, one should remember the Lord. When the Lord sees us, His children, suffering in this material world due to adhidaivika, adhyātmika and adhibhautika miseries, His heart melts. Our hearts are bull headed, hard as rocks. But the Lord is extremely merciful, His heart melts.
teṣām evānukampārtham
aham ajñāna-jaṁ tamaḥ
nāśayāmy ātma-bhāva-stho
jñāna-dīpena bhāsvatā
TRANSLATION
To show them special mercy, I, dwelling in their hearts, destroy with the shining lamp of knowledge the darkness born of ignorance. (B.G. 10.11)
His molten heart flows as the rivers, which are a mercy of the Lord. These rivers availing are such an important source of mercy of the Lord.
Gange Ca Yamune Caiva Godavari Sarasvati
Narmade Sindhu Kaaveri Jalesmin Sannidhim Kuru
TRANSLATION
O Holy Rivers Ganga and Yamuna, and also Godavari and Saraswati, O Holy Rivers Narmada, Sindhu and Kaveri; Please be Present in this Water and make it Holy.
Ganga, Yamuna, Saraswati, Godawari, Narmada, Sindhu and Kaveri are the 7 holy rivers. I am on the banks of Chandrabhaga river, which is non different from ganga.
Bhima aani chandrabhaga tuzya charanichya ganga
(Yega yega vithabai … abhang by saint Janabai)
When we were walking to Badrikashram (in Himalayas) from Haridwar, we saw the gigantic form of the Himalayas. They are so high and strong. Such high mountains that your cap would fall watching its peak. While walking and seeing these great mountains, I was realising that how minute and insignificant (lahaan in Marathi) we are. We were walking in between those huge mountains. We weren’t even like ants compared to those mountains. Along with this realisation, there was a feeling of humility which was developing in my heart. The Himalaya was helping me develop that realisation. And when we were walking higher on the altitude gradually, reaching much higher than the sea level, I personally realised that going towards Badri-Narayan, on the way on all sides were great Himalayas, above was the Sun and in the valleys was Ganges flowing at great speed. Lord says that all of these 3 is He Himself. Realising this, was also a great experience. Rising above the sea level, was also giving a rise in the consciousness. We usually have the feeling that we are special and significant. But we are extremely ordinary and insignificant.
trinad api sunichena
taror api sahishnuna
amanina manadena
kirtaniyah sada harih
TRANSLATION
One should chant the holy name of the Lord in a humble state of mind, thinking oneself lower than the straw in the street; one should be more tolerant than a tree, devoid of all sense of false prestige, and should be ready to offer all respect to others. In such a state of mind one can chant the holy name of the Lord constantly. (3rd verse, Sri Siksastakam)
We were walking, performing kīrtana. We had left the bullock cart behind in Haridwar and carried Nitai Gaur Sundar on our heads. Well! in Braj Mandal Parikrama, Badrinath, Kedarnath are also mountains which are non different from great Himalayas. Usually people aren’t aware of mountains in Braj Mandal except Govardhan. They think that they have seen everything in Vrindavan by just going to the 5- Kos Vrindavan. Brahma, Vishnu and Shiva reside in Vraja as mountains. Brahma became the 4 hills of Barsana.
Radharani ki jai! Maharani ki jai!
Shiva became the hill of Nandagram. We get the darshan of Nandeshwar Mahadeva in Nandagram. Vishnu became Giriraj Govardhan. Himalayas are present as well. Moving ahead, you will also find Charan-pahadi, the hill with imprints of the Lotus feet of the Lord. When the Gopīs were finding Krsna in the forest, they also found the lotus feet of the Lord first and then they started searching more vigorously thinking that the Lord is near by. We should also follow in the footsteps of the gopīs. When we go to Charanpahadi, the hill where we find the footprints of Krsna, we also should realise that the Lord will be found very soon.
Well after Bahulavan, when you came to Radhakund, you were in Vrindavan and now you will enter the 6th forest of Vrindavan, the Kamyavan. We will discuss that tomorrow. You should attend the session today. Also see what you have heard. We shall stop here. May your Braj Mandal Parikrama be successful!
Gaura premanande Hari Hari bol!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
११ नवंबर २०२०
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 812 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। हरि! हरि!
दिव्यम, थाईलैंड से और राधा पंढरीनाथ, पंढरी से हो या दुबई से हो या मुंबई के हो गए?
आप कई स्थानों से हो। हम लोग ऐसे संसार भर में बिखर गए हैं। लाडली राधिका,मायापुर से क्या तुम वहां हो? हरि! हरि! आप सभी का स्वागत है। राय रामानंद, पटियाला से व कृष्ण रसायन, चिलकांजी वाले! हरि! हरि!
अच्छा है! आप सभी जप कर रहे हो। जैसा कि मैंने अभी कहा है कि आप 800 स्थानों से जप कर रहे हैं। आप सभी का स्वागत है, अभिनंदन है। इस्कॉन अरावड़े से भक्त जप कर रहे हैं। नोएडा, शोलापुर, सभी अन्यों जगह के भक्त भी जप कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया से प्रशांत प्रभु भी हमारे साथ हैं। क्या आज बर्थडे है? नहीं! चारों और रूमर फैला हुआ है । ठीक है। परिक्रमा भी ज्वाइन कर रहे हो? जपा सेशन तो ज्वाइन कर ही रहे हो? वैसे आज थोड़े अधिक भक्तों ने जपा सेशन भी ज्वाइन किया है। वैसे हर रोज सभी जपा सेशन भी ज्वाइन नहीं करते। जब एकादशी का सीजन आ जाता है तब तो आप हमारा साथ देते हो अन्यथा आप अपनी जगह पर रहते हो। हरि! हरि! इस जपा कॉन्फ्रेंस में भी हर रोज जप किया करो। प्रतिदिन परिक्रमा सम्पन्न हो रही है। इसका पूरा लाभ उठाओ। दामोदर मास की जय! आपने दामोदर व्रत को अपनाया होगा। दामोदर व्रत को अपनाने वाले को दामोदर व्रती कहते हैं अर्थात जिसने भी व्रत को अपनाया उसको व्रती कहते है। जैसे कथाव्रती या दामोदर व्रती होते हैं। प्रतिदिन अपना रिकॉर्ड भी रखो। डायरी में नोट करो या अपना साधना कार्ड भरो। आपको प्रेरित किया जा रहा है। मैंने आज परिक्रमा की, मैंने आज दीपदान किया या आज मैंने थोड़ा अधिक जप किया या मैंने आज इतनी माला का जप किया। हरि! हरि! प्रभुपाद के ग्रंथ पढ़े या ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ को भी पढ़ा या औरों से दीप दान करवाया या हम इतने लोगों के घरों में गए और हमने इतने लोगों से दीपदान कराया। इस कार्तिक मास में ऐसे व्यस्त रहना चाहिए।
डायरी रखो उसमें नोट करो। अपना साधना मेंटेन करो। तत्पश्चात आप अपना साधना कार्ड अपने काउंसलर को प्रस्तुत कर सकते हो अथवा सबमिट कर सकते हो। तब वे आपको कुछ सुधार बताएंगे कि यह करो, यह मत करो या ऐसा अधिक करो। आप सभी के काउंसलर होने चाहिए। हर भक्त और शिष्य का काउंसलर होना चाहिए चाहे आप छोटे या बड़े भक्त अथवा शिष्य हो, हर एक का काउंसलर होना चाहिए। काउंसलर नहीं है तो काउंसलर का चयन करो। अपना काउंसलर चुनो और उनके काउंसली बनो और इस प्रकार टीम बनाओ। टीम में रहो। काउंसलर काउंसली की टीम या एक काउंसलर के कई सारे काउंसली औऱ उनका समूह, वैसे ग्रुप में रहना चाहिए। तभी हमारी रक्षा होगी। यदि हम अकेले रह जाएंगे तो फिर माया हमें आसानी से पकड़ सकती है। माया डिवाइड एंड रूल( फूट डालो और राज करो) करती है। हमें भक्तों से दूर रखती है अर्थात अलग कर देती है। फिर हमें फंसाती है, भ्रमित करती है। इसीलिए यह टीम होना जरूरी है। हरि! हरि! जहाँ तक ब्रज मंडल परिक्रमा की बात है। ब्रज मंडल परिक्रमा की जय! ब्रजमंडल परिक्रमा आज बद्रिकाश्रम में है और आज एकादशी भी है। रमा एकादशी महोत्सव की जय! वैसे प्रतिवर्ष इस रमा एकादशी के दिन ब्रजमंडल परिक्रमा बद्रिकाश्रम में ही होती है।
बद्रिकाश्रम वृंदावन में ही है। यह नहीं समझना कि अब परिक्रमा के भक्त हिमालय के शिखर पर चढ़ गए। हां, हां हिमालय के शिखर पर चढ़ गए लेकिन वो हिमालय भी वृंदावन में ही है। उसमें बद्रिकाश्रम भी है, वृंदावन में केदारनाथ भी है,वृंदावन में रामेश्वरम भी है। वृंदावन में द्वारका धाम और द्वारकाधीश भी हैं। वैसे सारे धाम वृंदावन में हैं। जब एक समय सनातन धर्म के अनुयायी जिसका नाम हिंदू धर्म हो गया है। हरि! हरि! वैसे हमारा हिंदू धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। हम लोग भागवत धर्म या गौड़ीय वैष्णव धर्म का अवलंबन करते हैं। मैं यह कह रहा था कि हर धार्मिक व्यक्ति बद्रिकाश्रम की यात्रा जरूर करना चाहता है या चार धामों की यात्रा जरूर करना चाहता है। नंद बाबा व यशोदा मैया भी यात्रा करना चाहते थे। पुत्र का फर्ज बन जाता है कि वह माता-पिता को यात्रा में ले जाएं। अतः कृष्ण और बलराम, नंद बाबा यशोदा और कई सारे ब्रजवासी जुट गए। कृष्ण और बलराम असंख्य ब्रजवासियों को लेकर बद्रिकाश्रम गए। बद्रिकाश्रम धाम की जय! वास्तविक आदि बद्रिकाश्रम धाम तो वृंदावन धाम में ही है। जिस प्रकार कृष्ण सभी अवतारों के स्तोत्र हैं अर्थात कृष्ण अवतारी हैं और उनसे अवतार होते हैं। तब वे अवतार अलग-अलग धामों में निवास करते हैं अथवा अपनी लीला संपन्न करते हैं या उन धामों के धामी बन जाते हैं। धाम के होते हैं धामी। धामी मतलब अवतार। हर धाम में एक एक अवतार होता है। वैसे यह सारे अवतार कृष्ण से होते हैं। उसी प्रकार सारे धाम भी वृंदावन से उत्पन्न होते हैं या बनते हैं। बद्रिकाश्रम में सभी बृजवासी नंद यशोदा आ गए। परिक्रमा करने वाले भक्त भी परिक्रमा करते करते कल के दिन वहां पहुंच गए थे। तत्पश्चात वहां रात्रि का पड़ाव होता है। वहाँ वे दो रात बिताएंगे। जैसे बद्रिकाश्रम में सारे दर्शन हैं वैसे यहां भी हैं। आज के दिन सारे बद्रिकाश्रम की परिक्रमा होती है। जैसा कि हम बता रहे थे कि राधा कुंड की परिक्रमा या गोवर्धन की परिक्रमा अलग से होती है। आगे जब बद्रिकाश्रम आते हैं, तत्पश्चात बद्रिकाश्रम की परिक्रमा होती है। हरि! हरि!
वहां पर् नर-नारायण का दर्शन भी होगा। वहां आपको उद्धव का भी दर्शन होगा। भगवान ने उद्धव को विशेष आदेश किया था कि तुम बद्रिकाश्रम में जा कर रहो। यह सारे दर्शन वहां है। बद्रिकाश्रम तपोभूमि है। यहाँ नर नारायण भगवान ने तपस्या की है। यह नर और नारायण की तपस्या स्थली है। हरि! हरि! भगवान यहाँ तपस्या नहीं कर रहे थे अर्थात भगवान का ऐशोआराम ही चल रहा था। नारद मुनि जब भी भगवान से मिलने जाते तो देखते कि भगवान अनंत शैया पर लेटे हुए हैं और लक्ष्मी जी उनके चरणों की सेवा कर रही हैं अर्थात नारद मुनि जब भी भगवान को मिलने के लिए जाते तो नारद मुनि ऐसा ही दृश्य देखते। तब एक समय नारद मुनि ने भगवान् से पूछा कि लोग मुझसे पूछेंगे कि नारदजी, क्या आप वैकुंठ से लौट रहे हो। यस! यस! भगवान, क्या कर रहे थे? तब मैं क्या बता सकता हूं? आप तो आराम ही करते रहते हो। यदि मैं ऐसी बातों का प्रचार करूंगा तो पूरी दुनिया भी ऐसा ही आराम करना पसंद करेगी। आप कुछ करके दिखाओ जिससे आपका कार्य अथवा आपका कृत्य पूरी दुनिया भर के लोगों के लिए आदर्श बने। जिससे वे लाभान्वित हो। तब भगवान ने अपना बैकुंठ धाम अपना ऐशो आराम यहाँ तक कि लक्ष्मी को भी वहीं पर छोड़कर, इस ब्रह्मांड में प्रवेश किया और वह स्थान ढूंढते हैं, जहां वे तपस्या करेंगे। वैसे जब ब्रह्मा का जन्म हुआ था, तब उनकी जिज्ञासा रही कि मुझे अब क्या करना चाहिए, मुझे क्या करना चाहिए। उन्होंने दूर से दो अक्षर सुने- ‘त’ ‘प’ त,प ‘त’प’। तब ब्रह्मा की समझ में आया कि तपस्या करनी चाहिए। तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने तपस्या की, तपस्या का फल क्या हुआ?
नायं देहो देहभाजां नृलोके कष्टान्कामानह्हते विइ्भुजां ये । तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्ं शुद्धवेच्यस्माइृह्यासौख्यं त्वनन्तम् ॥
(श्रीमद भागवत 5.5.1)
अर्थ: भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा-है पुत्रो, इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे
मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन-रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर-सूकर भी कर लेते हैं। मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्चत जीवन का आनन्द मिलता
है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है।
ऋषभदेव जी भगवान ने भी अपने पुत्रों से यही बात कही। पुत्रों! पुत्रों! क्या करो?
ब्रह्मा जी को क्या करना चाहिए, यह बताया तो था ही। तपस्या करनी चाहिए। तपस्या करो। तपस्या करोगे तो शुद्धीकरण होगा। चेतना भी शुद्धि होगी। विचारों में शुद्धि होगी। हमारे आचार- विचार, व्यवहार में शुद्धि होगी।
‘शुद्धवेच्यस्माइृह्यासौख्यं त्वनन्तम्’
असली सुख आनंद है, वह प्राप्त होगा। यह सांसारिक सुख नहीं है। सुख आता है, सुख जाता है। यह आया राम, गया वाला सुख नहीं हैं। ऐसा सुख जो आया और रह भी गया और बढ़ेगा।
चेतोदर्पणमार्जनंभवमहादावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्। आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम्॥1॥
( श्री शिक्षाष्टकं)
अर्थ:
श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो, जो वर्षों से संचित मल से चित्त का मार्जन करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूप महादावानल को शान्त करने वाला है। यह संकीर्तन-यज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगलरूपी चन्द्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृत विद्यारूपी वधु का यही जीवन है। यह आनन्द के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्रीकृष्ण-नाम हमारे द्वारा नित्य वांछित पूर्णामृत का हमें आस्वादन कराता है।
यह तपस्या करने से होगा। तपस्या करो। भगवान ने बद्रिकाश्रम को अपना तपोभूमि बनाया। वैसे पूरा भारत भारतवर्ष ही तपोभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसे बद्रिकाश्रम की जय!
बद्रिकाश्रम में तप्त कुंड है। भगवान ने कुंड जिसमें गरमा-गरम जल (हॉट वॉटर) की व्यवस्था की है। सर्वत्र बर्फ है ‘स्नो एवरीवियर’ लेकिन बद्रिकाश्रम मंदिर के प्रांगण में कुछ कुंड हैं। हम कई बार बद्रिकाश्रम गए। हम वर्ष 1977 अक्टूबर-नवंबर के मास में वहीं थे। हमनें वहाँ तप्त कुंड में स्नान किया। यह अद्भुत है। उधर बर्फ है बीच में तप्त कुंड है। कुछ कुंड तो बोलिंग वॉटर है, कुछ यात्री जब वहां जाते हैं, वे उसी जल में चावल को पकाते हैं ।हरि! हरि!
यहाँ बद्रिकाश्रम में भी कुंड हैं लेकिन वहां का जल ठंडा होता है। उस जल में भी स्नान करने से तपस्या हो जाती है। हरि! हरि! बद्रिकाश्रम के संबंध में और भी पढ़ो। भागवत में पढ़ो। हमारी ब्रजमंडल दर्शन में पढ़ो। चर्चा करो। खूब कथाएं भी होती हैं, उनको सुनो। आज जरूर देखना, ज्वाइन करना ब्रजमंडल बद्रिकाश्रम परिक्रमा को जरूर ज्वाइन करना। हरि! हरि!
कोई प्रश्न टीका टिप्पणी है, वैसे आज एकादशी भी है। हम कहा करते ही हैं कि आप थोड़ा या पूरा सिंहावलोकन करो। यह कार्तिक व्रत कैसे चल रहा है? या ठीक से नहीं चल रहा है, कुछ समस्याएं हैं। आप में से कोई भक्त कुछ कहना चाहते हैं बढ़िया से चल रहा है या हम परिक्रमा का आनंद ले रहे हैं या यह अच्छा हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। हम बहुत खुश हैं या फिर कोई समस्या है या फिर कोई प्रश्न कोई जिज्ञासा है। हमारे पास थोड़ा सा समय है। हमने थोड़ा समय बचा कर रखा है। आप गुह्यमाख्यति पृच्छति कर सकते हैं।
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से,
10 नवंबर 2020
आज हमारे साथ 781 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। क्या आप ने सुन लिया ?आप प्रसन्न हो इस नंबर से? 780 चल रहा है, पद्ममाली अभी तक 1000 नहीं हुआ, देखो कुछ प्रयास करो! उज्वला गोपी माताजी नागपुर से उनका 71वा जन्मदिवस था। हमारा भी दीक्षा का दिन था और राधा कुंड का आविर्भाव तिथि था, उज्वला गोपी माता जी का जन्मदिवस था गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल,आपको जन्मदिवस की शुभकामनाएं!
और आप सभी का भी स्वागत और आप सभी को भी मेरी सदिच्छा, शुभकामनाएं! हरि हरि।
तो अभी कार्तिक मास चल रहा है तो मान लीजिए कि हर दिन विशेष है, सुखी रहो, भक्तिवान बनो और अपना जीवन सफल बनाओ। ब्रजमंडल परिक्रमा, दीपदान करो! औरोंसे भी करवाओ! ऐसा नहीं कि, हमारा भाग्योदय हुआ तो बस हुआ, ऐसा वैष्णव का स्वभाव नहीं होता, वैष्णव पर दुखी दुखी होते है! तो जब श्रील प्रभुपाद वृंदावन में थे तो राधा दामोदर मंदिर में रहते थे। लेकिन अमेरिका को प्रस्थान किए वृंदावन को नहीं छोड़ना चाहिए था, भगवान भी नहीं छोड़ते।वृंदावन परित्यज्य अकम् पगं न गच्छन्ति वृंदावन को छोड़कर एक भी नहीं जाते वृंदावन के कृष्ण, लेकिन श्रील प्रभुपाद उनके गुरु के आदेशानुसार गए! तो ऐसा ही है परंपरा के आचार्य पर दुखी दुखी होते है। दूसरों को दुखी देखते हैं तो वह स्वयं दुखी हो जाते है। और दुखी होके वह सोचते हैं कि कैसे उनको हम सुखी कर सकते है? संतों का या भक्तों का यही चिंतन का विषय रहता है। और भगवान का भी, भगवान भी तो चिंतित रहते है! तो भगवान की ओर से भगवान उनके आचार्य गनों को यानि बाप जैसे-जैसे बेटे भगवान है बाप तो आचार्य है उनके बेटे! और हम भी उन आचार्य उनके बेटे है या हम भी भगवान के छोटे-मोटे बेटे है। भगवान जैसे सोचते है या भगवान जैसे चिंतित होते है, भगवान भी पर दुखी दुखी होते है। वैसे पर दुख क्या, वे पाराए है ही नहीं! जीव पराए थोड़ी ना है? जिओ भी भगवान के ही है।
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः |
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ||
भगवतगीता १५.७
अनुवाद:- इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है ।
तो जीव पराए कैसे हुए? जीव उन्हीं के है। वैसे हमारे लिए भी जो अन्य जीव है वह पराए थोड़ी ना है? वैसे
मातृवत् परदारेषु परद्रावणी लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः।( चाणक्य श्लोक १०)
अनुवाद:- अन्य व्यक्तियों की पत्नियों को माता के रूप में मानें, दूसरों के धन पर नज़र न रखें, उसे बाहरी व्यक्ति समझें और सभी लोगों को अपना समझें।
वैसे पंडित मतलब ज्ञानी या जानकार, समझदार होता है। पंडित कौन है? जो जानता है आत्मवत् सर्वभूतानि जो जीव है, वह मेरे जैसे ही है मेरे प्रभु के है। तो वह भी पराए नहीं है! हरि हरि। मैं आपको समझाना चाहता था कि, हर एक जीव भगवान का अंश है, भगवान के जैसे ही है। तो उनका दुख देखकर, भगवान दुखी होते है, और जब भगवान दुखी होते हैं तो हमें भी दुखी होना चाहिए! लेकिन इस संसार में कुछ और ही होता है। भक्ति विनोद ठाकुर अपने गीत में गाते है, पर दुखे सुखी वैसे आप नहीं हो और मैं भी नहीं हूं लेकिन कई सारे लोग दूसरों को दुखी देखकर सुखी होते है। कोई परेशानी में है तो उसे मरने दो! जेसे मृगारी, मृग मतलब जानवर हरि मतलब हत्यारा, शिकारी। तो जब शिकारी पशु की हत्या करता है तो उसे आधा ही मार देता है, और जब वह पशु कई सारे वेदना का अनुभव करता है तो यह शिकारी वह दृश्य देखकर नाचने लगता है, सुखी होता है। और यह बात देखकर नारद मुनि प्रसन्न नहीं थे की, मृगारी पशु को आधा ही मारता है सिर्फ हाथ या पैर काट देता है। तो यह बहुत बड़ी कथा है, तो ऐसा दृश्य देखकर नारद मुनि बहुत दुखी थे। वैष्णव जन तो तेने रे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे। वैष्णव तो उन्हें कहिए दूसरों की पीड़ा जानता है। तो ऐसे नारद मुनि जैसे आचार्य है, उदाहरण के तौर पर मैं यह बात कह रहा हूं लेकिन आचार्य तो ऐसे ही है। हरि हरि। तो फिर उन्होंने मृगारी को शिक्षा दी, तो उसके खोपड़ी में कुछ प्रकाश डाला,
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै शीगुरवे नमः
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ऐसा कुछ किया और फिर वही मृगारी असुरी प्रवृत्ति का था। वैसे मुझे ब्रज मंडल परिक्रमा के बारे में कुछ कहना था तो कहां से कहां जा रहे है। ठीक है! अब आगे बढ़ते है, तो यह मृगारी पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करता था। तो उसने नारद मुनि से पूछा किसने देखा है पुनर्जन्म? नारदमुनि ने कहा तुम्हें इस कर्म का फल भोगना पड़ेगा, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में! तो उसने कहा कि, अगला जन्म किसने देखा है ? पुनर्जन्म होता ही नहीं है! जेसे चार्वाक मुनि ने कहा, कुथः पुनर आगमन भवेत् एक बार शरीर की राख हो गई तो पुनर्जन्म किसने देखा है? मैं नहीं मानता पुनर्जन्म को। तो नारादमुनी ने मृगारी को कहां, 10000 वर्षों के उपरांत का दृश्य देखो! तो मृगारी देख रहे, जिस चिड़िया की हत्या किए थे वह चिड़िया बनी है बहुत बड़ा पक्षी गिद्ध और मृगारी बने हैं चिड़िया! गिद्ध चिड़िया के पीछे दौड़ रहा है, तो चिड़िया कितना दौड़ पाएगी आखिर चिड़िया को पकड़ ही लेता है, और फिर भक्षण होता है। और फिर अगले जन्म में 10000 वर्षों के उपरांत या 100000 वर्षों के उपरांत ऐसा होने वाला है, ऐसे सारे दृश्य नारद मुनि जो भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता है वह मृगारी को बस कह नहीं रहे थे, दिखा रहे थे! मृगारी ने जब यह सब देखा तो, जिसे अंग्रेजी में कहा जाता है कि जब हम देखेंगे तब स्वीकार करेंगे! नास्तिक लोग कहते है, तुम कहते हो कि, भगवान है तो दिखाओ कहां पर है, दिखाओगे तो हम विश्वास करेंगे कि भगवान है! वैसे यह कुतर्क चलता रहता है संसार में, है तो बदमाश या चार्वाक मुनि का चेला!हरी हरी। गृहमेदि सुखादी तुच्छम् गृहमेदि बन कर सुख का आनंद ले रहा है, और ऐसा व्यक्ति कहता है की, मुझे भगवान दिखाओ! तो प्रभुपाद कहते थे, है दुष्ट! तुम भगवान को देखना चाहते हो? तुम्हारी गुणवत्ता क्या है? हरि हरि। तो फिर भी नारदमुनि ने इस मृगारी का भविष्य दिखा ही दिया और जब देखा तो उसने विश्वास कर लिया। नारद मुनि का उद्देश्य यही था कि मृगारी हत्या छोड़ दे!
यह दृश्य जब देख लिया मेरा भविष्य ऐसा है , वैसा है , और अब जो मैं पाप कृत्य कर रहा हू इसका फल मेरा पीछा छोड़ने वाला नहीं है , तो यह और किसने देखा है पुनर्जन्म मतलब फिर मैं जितना चाहे जी भर के पाप कर सकता हूं क्योंकि पुनर्जन्म है ही नहीं और पाप का कुछ तो होगा ही नहीं क्योंकि पुनर्जन्म है ही नहीं । हरि हरि । अपने कर्मों के या पाप के फल से बचना चाहते हैं ऐसा समझकर लेकिन फिर कहां है । खरगोश का कभी शेर फिछा कर रहा है और खरगोश दौड़ रहा है तब वह जब देखता है कि शेर मेरा पीछा नहीं छोड़ने वाला अब आ ही रहा है , आ ही सकता है तो फिर खरगोश क्या सोचता है ? देखो उसका दिमाग , छोटा सा गड्ढा बनाता है और उस मूह को गड्ढे में डाल लेता है और फिर सोचता है , किसने देखा है शेर ? शेर है ही नहीं । शेर है ही नहीं ।शेर क्या होता है ? शेर तो है ही नहीं ? शेर आ ही नहीं रहा है , ऐसा मान के मन्नते ऐसा मानकर , ऐसा मानता है वह खरगोश फिर ऐसे मान्यता से वह बचेगा नहीं , शेर तो आ ही रहा है , आ ही गया है और खा लिया है । यह जब हुआ ? किसने देखा है और यह जो लोग कर्म फल से , पाप फल से बचना चाहते हैं तो ऐसा कोई पर्याय सोचते हैं लेकिन ऐसा नहीं होता है , ऐसे नियम भगवान ने बनाए हैं और पुनर्जन्म तो है ही , तुम जानते हो , मानते हो कोई फर्क नहीं पड़ता है । पुनर्जन्म तो है ही और पुनर्जन्म में फिर पुण्य फल , पाप का पुण्य का फल तो भोगना ही होगा । ऐसे भगवान ने तो कहा ही है जगन्न गुणवती जो पुण्यात्मा है वह स्वर्गतक ही जाएंगे , भगवत धाम नहीं जाएंगे और जो अन्य है पाप करने वाले नीचे जायेंगे । अगर पुनर्जन्म नहीं होता तो फिर भगवान क्यों कहते थे की पुण्यवान वहा जाएंगे , पापी वहा जाएंगे । पुनर्जन्म है कि नहीं ? अगर भगवान कह रहे हैं तो है , शास्त्रों में कहा है तो समाप्त हो गया , हमें सोचना ही नहीं चाहिए । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
फिर इस प्रकार मृगारी ने नारद मुनि की बातों को स्वीकार किया और आज से मैं हिंसा करना बंद करता हू , फिर बाण को तोड़ दिया , धनुष्य बाण फेंक दिया । तुम यह माला ले लो और जप करो ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
ऐसा राम का मंत्र रत्नाकर ने वाल्मिकी कोभी दिए था । डाकू थे , गुंडे थे , लुटेरे थे तो वह भी जानते हैं आगे क्या हुआ । राम नाम लेते हुए राम के उत्तम , उच्च कोटि के भक्त बने हैं , वैसे ही यह मृगारी अपने पत्नी के साथ जप करता है , दोनों पति पत्नी जप कर रहे हैं । उनको यह भी कहा था कि मैं जप तो करूंगा तो फिर पेट की पूजा कैसे होगी ,सामान कैसे लाऊंगा , सब व्यवस्था कैसे होगी तब नारद मुनीने कहा , चिंता मत करो , मां शुच: भगवान ने कहा है , डरो नहीं
अनन्याश्र्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||
अनुवाद :
किन्तु जो लोग अनन्यभाव से मेरे दिव्यस्वरूप का ध्यान करते हुए निरन्तर मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ |
योगक्षेमं वहाम्यहम् भगवान का वचन है मेरे भगवान की जो आवश्यकता है उसकी पूर्ति में करता हूं । वैसे भी भगवान करते ही रहते है सभी के लिये ।
एकनो बहूनाम चलता ही रहता है , मनुष्य केवल चिंता करता रहता है व्यवस्था , व्यवस्था , परिवार की व्यवस्था ?पहले चिंतन करो । चिंता को छोड़ो चिंतन करो , मनन करो । मृगारी नाम जप तुलसी महारानी के पास बैठकर करते तो सर्वत्र चर्चा हो रही थी , मृगारी वह शिकारी जप कर रहा है , तप कर रहा है , महात्मा बन रहा है तो लोग उससे मिलने के लिए जाया करते थे और जो मिलने के लिए आते थे कई सारे भेट लेकर आते थे , हमारे तरफ से यह पत्रं , पुष्पं , तोयं या वस्त्रम या फलम तो कोई कमी नही थी । हरि हरि । एक समय नारद मुनि पुनः जहा मृगारी अपने जप तप में तल्लीन थे वहां उस स्थली के आकाशमार्ग से जब नारायण नारायण नारायण नारायण नारद मुनि बजाए बिना कीर्तन करते हुए नारद मुनि जा रहे हैं तो याद आया , यही तो मैंने मृगारी को शिक्षा और दीक्षा दि , तो चलो देखते हैं इसकी साधना कैसे चल रही है ? फिर नारद मुनि नीचे उतरे और मृगारी ने जैसे ही देखा नारद मुनि और आगे बढ़ रहे थे किंतु नारद मुनि ने यह देखा कि , उनका शिष्य बड़े मंद गति से उनके और आगे बढ़ रहा है , बीच में झुकता है कभी दहीनी और मूडता है , कभी आगे की ओर बढ़ता है , कभी बाहे मुड़ता है , कभी झुकता है , कभी चलता है तो नारद मुनि देखते रहे और आश्चर्य करते रहे , क्या कर रहे हो ? इतना धीरे-धीरे क्यों चल रहे हो ? अंतत्व गत्वा वह पहुंच ही गए फिर नारद मुनि के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और नारद मुनि ने पूछा , क्या हुआ तुमने जैसे हमको देखा तो दोडकर आना चाहिए था हमसे मिलने के लिए , मैं देखी रहा हूं तुम इतना धीरे क्यो आ रहे थे ? कितना सारा समय बिताया विलम से क्यों आ रहे हो ? मृगारी ने कहा हां मैं आना तो चाहता था लेकिन दौड़ के कैसे आता ? क्यों क्या समस्या थी ? मृगारी ने कहा रास्ते में कई सारी चीटियां थी चीटियां , मैं दौड़कर आता तो कई सारी चीटियों की हत्या कर देता पाप हो जाता यह टालने के लिए मैं रास्ता साफ करते हुए आ रहा था , मुझे माफ कर दो , मुझे माफ करना मैं ज्यादा जल्दी नहीं आ सका , लेकिन यह जब ऐसा उत्तर मृगारी से नारद मुनि ने सुना नारद मुनि ने वह आगे बढ़े और अपने प्रिय शिष्य को गाढ आलिंगन दिया और फिर कहां शाबाश बहुत अच्छा किया मृगारी । यछ प्रसादाद भगवद् प्रसादो तुमने मुझे प्रसन्न किया है । एक समय के तुम मृगारी , अब तो मृग अमृत हो गए । पशुओं के शत्रु ऐसी तुम्हारी ख्याति थी कु विख्यात थे लेकिन अब तो तुम सु विख्यात बन गए हो । सारे पशुओं के मित्र बन गए हो , यहां तक कि चीटियों को भी तुम मारना नहीं चाहते हो , दुख नहीं पहुंचाना चाहते हो , तुममे इतनी सारी करुना जागृत हुई है । हरि हरि ।
अब समय भी हो गया है और नारद मुनि और मृगारी कि यह कथा भी हुई फिर नाम का महीना भी आपने सुना , हरी नाम जप करने से कैसे विचारों की क्रांति कैसे हो सकती है , यह भी आपने मृगारी के चरित्र में देखा । और पापका तो फल भोगना ही पड़ता है पुनर्जन्म है इस बात को मृगारी ने भी स्वीकार किया , समझा तो आप भी समझे होंगे । मृगारी समझे तो फिर मृगारी को समझाते समझाते आप को समझाने का तो प्रयास ही है । इस उदाहरण से मृगारी का चरित्र ऐसी कई शिक्षाएं दी है व्यक्ति एक समय का पापी दुराचारी कैसे सदाचारी बन सकता है यह ज्वलंत उदाहरण है । हरि हरि ।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।
आप समझे होगे तो यह बात आप औरों को सुनाओ । आपको हम क्यों सुना रहे हैं ? क्यों सुना रहे हैं ? आपके लिए सुना रहे हैं , और साथ ही साथ आप औरों को भी सुनाओगे इस उद्देश्य से भी सुना रहे हैं । यह सारी बातें खुद तक सीमित नहीं रखना , इन बातों का प्रचार प्रसार , यह सत्य है , यह सत्य का प्रचार होना चाहिए । आपको मंजूर है ? सत्य भी मंजूर है ?और औरों तक पहुंचाने की बात भी मंजूर है ? हां !मुंडी तो हिला रहे हो नंदी बैल जैसे । परिक्रमा करते रहो , दामोदर मास में प्रचार करो और औरों से दीपदान कराओ , आप में से कई सारे कर रहे हो , रिपोर्टिंग भी करो , रिपोर्टिंग कर सकते हो , लिख सकते हो आप क्या क्या कर रहे हो और रोज परिक्रमा में जुड रहे हो या नहीं यह भी बताना होगा , आपका स्कॉर देखा जयेगा । हरि हरि । ब्रजमंडल दर्शन किताब को भी पढ़ो , यह सब करते रहो ।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
ब्रजमंडल परिक्रमा की जय ।
यशोदा दामोदर की जय ।
श्रील प्रभूपाद की जय ।
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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
9 नवम्बर 2020
आज हमारे साथ 720 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
हरी हरी…..
आप ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ भी पढ़ सकते हो इस कार्तिक मास में परिक्रमा भी कर रहे हो जो परिक्रमा का अनुभव है जप चर्चा के समय और जिस दिन जहां की भी परिक्रमा हो रही है जहां जा रही है।
वैसे से परिक्रमा इस ग्रंथ के आधार पर ही परिक्रमा होती है या परिक्रमा ही आधार है इस ग्रंथ का आज जैसे जहां भी परिक्रमा जा रही है।
*राधा कुंड की जय…….*
वह अध्याय पढ़ो वह दिन पढ़ो परिक्रमा तीस दिवस चलती है उसमें तीस दिनों का महत्व लिखा है। उसको पढ़ने के उपरांत फिर आप परिक्रमा के साथ चलोगे देखोगे और समझोगे परिक्रमा को अधिक गहराई में पहुंच जाओगे परिक्रमा के अधिक अनुभव होंगे। इस ग्रंथ को पढ़ो भी साथी परिक्रमा भी करो दोनों तरफ से हो सकता है पढ़ो या परिक्रमा करो परिक्रमा करो या पढ़ो बस वैसे ही हम सारा दिन पढ़ सकते हैं हरि हरि
कल ही बहुलाष्टमी थी और कल के दिन ही मेरी दीक्षा भी हुई थी ऐसा मानकर मैं कल ही ऐसी चर्चा की पर यह भी पता चला की इस्कॉन वैष्णव कैलेंडर के अनुसार आज है बहुलाष्टमी और राधाकुंड प्राकट्य दिन और फिर मेरी दीक्षा कि आज ही हुई ठीक है यह संभ्रम तो चलता ही रहता है। राधा कुंड स्नान के या प्राकट्य के 2 दिन मनाया जाते हैं। साथी मैंने पता लगाया कि इस इस्कॉन कैलेंडर के अनुसार कल विदेशों में पाश्चात्य देश में कल की ही बहुलाष्टमी थी और राधा कुंड प्राकट्य दिन कल था तो जो भी हो ज्यादा समस्या तो नहीं है।
वैसे जो परिक्रमा का समय हैं कल राधा कुंड प्राकट्य दिन औऱ आज से राधा कुंड से परिक्रमा डिग की ओर बढ़ रही हैं।
डीग के रास्ते में एक गांथोली ग्राम आता हैं जिसका वर्णन आप व्रजमण्डल दर्शन ग्रन्थ में पढ़ सकते हो उसके पहले वैसे हमआज हम राधा कुंड के रास्ते डीग जा रहे हैं। डीग राजस्थान में है और राधा कुंड उत्तर प्रदेश में है। यह समझना कि धाम किसी देश या प्रदेश में है अथवा यह समझना कि राधा कुंड उत्तर प्रदेश में है और डीग राजस्थान में है ऐसा सोचना धाम अपराध है। क्योंकि यह वृंदावन धाम तथा ब्रजमंडल धाम इस ब्रह्मांड में ही नहीं है तो फिर यह इस पृथ्वी का अंग कैसे हो सकता है ? अथवा फिर हम कैसे कह सकते हैं कि यह धाम भारत या इस प्रदेश का अंश है। यदि हम इसे आध्यात्मिक भारत समझें तो हम कह सकते हैं कि यह धाम आध्यात्मिक भारत का अंश है परंतु इस भौतिक भारत का अंश नहीं हो सकता। ब्रजाचार्य नारायण भट्ट गोस्वामी ने अपने ग्रंथ में इसका वर्णन किया है उनके ग्रंथ का नाम है। उनके ग्रंथ का नाम है ब्रज भक्ति विलास। उसमें वे लिखते हैं कि इस ब्रज मंडल को भी अनंतशेष ने धारण किया है। अनंतशेष के कई हजारों फन है। कुमुद नाम के एक विशेष फण के ऊपर भगवान अनंतशेष ने इस ब्रज को धारण किया है।
इस पृथ्वी को भगवान अनंतशेष ने किसी दूसरे फण पर धारण किया हैं परंतु ब्रजधाम को एक विशेष कुमुद नामक फन पर धारण किया है। ऐसा वर्णन नारायण भट्ट गोस्वामी करते हैं जिन्हें ब्रजाचार्य अर्थात ब्रज के आचार्य कहा जाता है। यह ब्रज भक्ति विलास नामक ग्रंथ हमारी परिक्रमा का एक आधार ग्रंथ है। यहां हम यह समझ सकते हैं कि पृथ्वी एक फन पर है और ब्रजमंडल दूसरे फन पर अर्थात यह ब्रजमंडल इस पृथ्वी पर नहीं है। यह ब्रजमंडल एक अन्य जगत है।
चिन्तामणिप्रकरसद्यसु कल्पवृक्ष-
लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् । लक्ष्मीसहसत्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं
गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥
अनुवाद-जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान
हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत- सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों
लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुषकी सेवा कर रही हैं, ऐसे
आदिपुरुष श्रीगोविन्दका मैं भजन करता हूँ
(श्लोक २९ ब्रह्म संहिता)
यह चिंतामणि धाम है यह चिंतामणि से बना है यह वृंदावन तथा ब्रजमंडल धाम चिंतामणि से बनता है। यह ब्रह्मांड पंचमहाभूत से बनता है जिसमें चाहे हमारे शरीर हो अथवा अन्य कोई जीव हो वह पंचमहाभूत से बना होता है परंतु ब्रजमंडल के साथ ऐसा नहीं है। अतः अगर हम ऐसा कहेंगे कि वृंदावन भारत में है अथवा वृंदावन उत्तर प्रदेश में है और वृंदावन का एक अंश राजस्थान में है तो ऐसा कहना धाम अपराध है। हमें इन धाम अपराधों को पढ़ना चाहिए और समझना चाहिए। जिस प्रकार हमारे इस्कॉन मंदिर में मंगल आरती के उपरांत हम 10 नाम अपराध पढ़ते हैं और सुनते हैं उसी प्रकार इस ब्रजमंडल परिक्रमा के दौरान मंगल आरती के उपरांत 10 नाम अपराध के स्थान पर हम 10 धाम अपराध पढ़ते हैं।
भक्तों को इन धाम अपराधों के विषय में स्मरण दिलाया जाता है जिससे वे समझे कि धाम अपराध क्या होता है और हम इससे बच सकें। हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस परिक्रमा को करते समय हमसे कोई अपराध ना हो। यह समझना कि धाम किसी भी देश में है यह एक अपराध है। मायापुर बंगाल में है या द्वारिका गुजरात में है अथवा कृष्ण गुजराती है ऐसा समझना एक अपराध है। भगवान गुजरात में नहीं रहते भगवान द्वारिका में रहते हैं और यह द्वारिका गुजरात में नहीं है , हमें यह तत्त्व समझना होगा। धाम के संबंध में यह ज्ञान है जिसे हमें समझना होगा। धाम शाश्वत है। जब इस ब्रह्मांड अथवा इस पृथ्वी पर महाप्रलय होता है जब सब कुछ जल मग्न हो जाता है तब भी धाम अपनी स्थिति में रहता है।
“भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते |
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे || १९ ||”
अनुवाद:-
जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि होते ही वे असहायवत् विलीन हो जाते हैं।
भूत्वा भूत्वा अर्थात बनता है और फिर प्रलियते अर्थात नष्ट हो जाता है तो यह नियम है इस संसार का । जहां जगत बनता है और फिर नष्ट हो जाता है। यह नियम हमारे लिए भी है हमारा शरीर भी बनता है फिर नष्ट हो जाता है। यह शरीर पंचमहाभूत से बनता है और जब इसका नष्ट हो जाता है तो यह पुनः पंचमहाभूत में विलीन हो जाता है। पृथ्वी पृथ्वी में चली जाती है ,अग्नि अग्नि में, जल जल में और इस प्रकार यह विलय हो जाता है। तो धाम के विषय में हम ऐसा नहीं कह सकते कि धाम अब बना है अथवा धाम पहले नहीं था। नहीं धाम सदैव रहता है धाम शाश्वत है। सृष्टि के प्रारंभ से ही धाम था।
ब्रह्मांड का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया उनके साथ भगवान भी उनकी सहायता कर रहे थे और तब अत्यंत परिश्रम करके ब्रह्मा जी ने यह सृष्टि बनाई परंतु इससे धाम को कोई असर नहीं होता है। धाम इस सृष्टि से परे है धाम का निर्माण सृष्टि निर्माण का कार्य नहीं है। तो प्रारंभ में सृष्टि होती है फिर स्थित होते हैं अर्थात हम इस सृष्टि में कुछ समय तक जीव रहता है और अंत में प्रलय होता है अर्थात में भी नष्ट हो जाते हैं। यह नियम प्रकृति पर लागू है। वृंदावन अथवा ब्रजमंडल प्रकृति नहीं है। यह धाम प्राकृत नहीं है। यह अप्राकृत है। एक होता है जड़ तथा दूसरा होता है चेतन। तो यह धाम चेतन है। सृष्टि का निर्माण होने से पूर्व ही वृंदावन इसी स्थिति में था। वृंदावन अथवा ब्रज मंडल में भगवान की नित्य लीला संपन्न होती है हमें इसका स्मरण रखना चाहिए।
वृंदावन में भगवान की अप्रकट लीला संपन्न हो रही है। इसका अर्थ है कि भगवान की लीला नित्य वृंदावन में चल रही है परंतु वह प्रकट नहीं है वह संसार को दृष्टिगोचर नहीं है। हर कोई इस लीला को नहीं देख सकता। भगवान का धाम नित्य धाम है जहां नित्य भगवान की लीलाएं संपन्न होती है। ऐसा दिव्य है वृंदावन धाम। वृंदावन धाम की जय।
परिक्रमा में जाते है तो फिर ऐसे शिक्षा भी मिलती है। नाम, रूप, गुण, लीला और धाम यह सब भगवान के स्वरुप है। धाम भी भगवान के स्वरुप है। बलराम बन जाते है धाम! बलराम, बलराम बन जाते है मंच भगवान बलराम के साथ भी वहां लीला खेलते है, इसलिए बिना जूता पहने परिक्रमा करनी चाहिए या कई भक्त परिक्रमा करते है क्योंकि वह बलराम है, भगवान है। हरी हरी। तो वहां भगवान है। वृंदावन में ब्रज मंडल में भगवान है! थे की बात नहीं है!और जब हम श्रवण करते हैं, परिक्रमा में जाते हैं। फिर श्रवण करते हैं। तपस्या करते है, उस तपस्या से हमारा शुद्धिकरण होता है। यही तो,
चेतो-दर्पण-मार्जनं* *भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं* *श्रेयः-कैरव-चंद्रिका-वितरणं* *विद्या-वधू-जीवनम् आनंदांबुधि-वर्धनं प्रति-पदं* *पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म-स्नपनं परं*
*विजयते श्री-कृष्ण-संकीर्तनम्
हरी हरी।तो जब हम जब श्रवण करते हैं, कीर्तन करते है और भगवान की लीलाओं श्रवण करते हैं। कहां श्रवन करते है? जहां पर वह लीला संपन्न हुई है, वहां पर बैठकर हम श्रवण करते है! हो सकता है हम किसी स्थली पर पहुंचे है, और वहां जो कथा हो रही है। वहीं लीला स्थली पर भगवान खेल रहे है या किसी भोजन स्थली जाते है तो हम भोजन स्थली की कमवन में कथा सुन रहे है, तो हो सकता है कि उसी समय कृष्ण वहां स्वयं को मध्य में या केंद्र में रखते हुए गोलाकार बैठे हुए सभी ग्वालबाल और भगवान का भोजन हो रहा है। एक समय यमुना वहां से बहती थी येसी समझ है। जहां भोजन स्थली है कामवन में, वहां से ही जमुना बहती थी। यह लीला जब हम सुना रहे है, तो हो सकता है कि यह लीला वहां पर हो रही है। और जहां भगवान ने भोजन किया तो वहां पर ही परिक्रमा के भक्त भोजन करते हैं।वह स्थली है। भगवान के भोजन की स्थली परिक्रमा के भक्त वहां पर पहुंच जाता है। और कथा भी सुन ली।
विदमते वह पूर्णार्था गोपाला बालम मानस सभी रास्ता मालूम* इसी प्रकार हम प्रार्थना करते है ऐसे लीला। तो यह पूर्ण वपु है! वह सच्चिदानंद विग्रह गोपालबालम गोपाल है! बाल गोपाल है! और क्या हो जाए? गोपबालों का मेरे मन में प्रवेश हो जाए। हमारे मन में स्थापित हो! और क्या चाहिए? मुझे और कुछ नहीं चाहिए। और लाखों लाखों लाभ मुझे नहीं चाहिए। बहुत हो गया।और असंख्य लाभो से क्या फायदा? *मोर येई अभिलाष बिलास कुंजे दियो वास* मुझे ऐसे वृंदावन में ही वास करा दो और यहां संपन्न किए हुए लीला का मनन में करता रहूं,वह लीला मेरे मन में बसे और वही लीला का फिर में चिंतन और मनन करु! और यह करते-करते फिर मेरा उन लीलाओ में भी प्रवेश हो जाए। और नित्यलीला प्रविष्ट हो जाऊ! ऐसी अभिलाषा ऐसी प्रार्थना करते करते हम ब्रज मंडल परिक्रमा करते है और एक दृष्टि से खोजते रहते है। एक बन से दूसरे बन जैसे गोपीया भगवान को खोज रही ह थीं! जहां पर गोपिया अपने कृष्ण को खोज रही थी और खोजते खोजते एक वन से दूसरे वन में जा रही थीं।
केवल 12 बन ही नहीं है। ब्रजभक्तिविलास यिस नारायण भट्ट गोस्वामी के ग्रंथ में अधिक वनों का वर्णन करते है। ऊप बन है,आधी बन है। ऐसे हजारों वन है। सैकड़ों बन है! बन के अंदर के बन के अंदर के बन। लेकिन मुख्य बन तो द्वादश बन है, लेकिन उन वनों के अंदर और कई सारे वन हैं। इस वनों की हम यात्रा कर रहे तो हम भी भगवान को खोजते रहते हैं। कब मिलेंगे कब मिलेंगे भगवान हमें ? परिक्रमा में श्रवण तो होता है हम कीर्तन भी करते है। पग पग पर भगवान के सामने देखते हम अनुभव करते है तो वैसे मुख्य बात तो परिक्रमा में श्रवण और कीर्तन ही है। और फिर हम भगवान को देखना चाहते है और देखते है तो कर्न से कानों से देखते है। कैसे देखते है? कानों से देखते है! आंखों का तो ज्यादा उपयोग नहीं है।कान की मदद से हम देख सकते है। और जब हम कान की मदद से सुनेंगे तो जो हम सुनते है, वह तो सत्य है। श्रद्धा के साथ जब नित्यम भागवत सेवाया, भगवती उत्तम श्लोके भक्तिर भगवती नैश्ठकी यह सिद्धांत भी है! भगवत कथा या भगवान की कथा, भगवान की लीला, कथा, नाम, रूप गुण, लीला कथा श्रवण करने से दर्शन होता है! अनुभव होता है!
हरि हरि।गौरंगा!
हरे कृष्ण। आप पढ़ो रास्ते में जाते हुए चकलेश्वर महादेव मंदिर जी का जहां पर सनातन गोस्वामी रहते है। वहां से आगे बढ़ते है, दीग और और पीछे मोड़ कर आप देखोगे तो आपको पूरा पैनोरमिक दृश्य पूरा गोवर्धन दिखाई देगा!
हरि हरि।
हरे कृष्ण!
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हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से,
8 नवंबर 2020
आराध्यो भगवान ब्रजेश तनय: तद्धाम वृन्दावनं
रम्यकाचिद उपासना व्रज – वधु वर्गेण या कल्पिता
श्रीमद भागवतम प्रमाणमलम प्रेम पुमर्थो
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(जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
आप सभी उपस्थित भक्तों का और शिष्यवृंदो का विशेष स्वागत है! आज विशेष दिन है इसीलिए भी विशेष स्वागत की बात है। आज राधाकुंड आविर्भाव तिथि महोत्सव है, और साथ ही साथ मेरे लिए यह विशेष दिन है क्योंकि, आज के दिन श्रील प्रभुपाद मुझे वृंदावन में दीक्षा दिए, गौडिय परंपरा के साथ मेरे संबंध को स्थापित किए, जन्मदिन भी कह सकते है, सब कहते रहते है लेकिन मैं नहीं कहता हूं कि मेरा जन्म वृंदावन में हुआ और वह आज के दिन हुआ है। हरि हरि। यह भक्तिलता बीज श्रीला प्रभुपाद मुझे दिए। बहुत ही पतित थे तो पावन बनाएं। और इसीलिए यह दिन मेरे लिए अविस्मरणीय है। हरि हरि। और फिर यहां कार्तिक मास भी था 1972 की बात है, श्रील प्रभुपाद ने घोषणा कि थी कि वे कार्तिक व्रत का पालन करेंगे, कार्तिक में वह वृंदावन में वास करेंगे, और कुछ कुछ हिस्सों को बताए थे। तो उस समय भारत में तो बहुत कम शिष्य थे, तो उस समय जो ब्रह्मचारी भक्त है वह विदेशी थे। तो जब सूचना मिली तो जो भी भारत के भक्त थे, वह मुंबई से गए। तो मैं भी मुंबई मंदिर में ब्रह्मचारी था, तो हम भी 15 भक्तों के साथ मुंबई से मथुरा की रेल यात्रा के साथ वृंदावन पहुंच गए। और फिर हम वहां पर पहुंचे जहां पर प्रभुपाद रहा करते थे और वह स्थान था राधा दामोदर मंदिर। जीव गोस्वामी के समाधि स्थल पर उन दिनों श्रीला प्रभुपाद रहा करते थे।
अमेरिका जाने से पहले भी वहीं पर रहा करते थे, और फिर इस्कॉन के सपना के स्थापना के बाद जब वे 1972 में वृंदावन आए तब वहीं पर रहते थे। तो जैसे हम वृंदावन आए तो राधा दामोदर मंदिर में आकर राधा दामोदर का दर्शन किए और दर्शन के तुरंत उपरांत हमे हमारे कोइ गुरुभ्राता श्रील प्रभुपाद के कक्ष में लेकर गए, तो वह बहुत ही सुंदर प्रसंग था, मुंबई से आए हुए हम भक्त जब उस कमरे में बैठ गए तो वह कमरा हाउसफुल हो गया। हरि हरि। तो श्रील प्रभुपाद एक छोटे से आसन, आसन भी नहीं, एक रजाई पर बैठे हुए थे तो वह देख कर मुझे बड़ा अचरज लगा, श्रील प्रभुपाद के सादगी का और उनके सरल जीवन का!
बहुत ही सरल जीवन श्रील प्रभुपाद जी रहे थे। विश्वभर में इस्कॉन की काफी सारी धन दौलत थी, उनके इतने सारे विदेशी शिष्य थे लेकिन यहां वृंदावन में श्रील प्रभुपाद वैसे ही रहते थे जैसे षड गोस्वामी वृंद रहा करते थे। फिर हम प्रणाम करके बैठ गए, और मैं श्रील प्रभुपाद के सामने ही बैठा था, और मैं इतना निकट कभी पहले कभी नहीं आया था। मुंबई में प्रभुपाद को देखा था, उनको सुना था लेकिन पहली बार उनके इतने निकट पहुंचा था। या वृंदावन ने मुझे उनके चरणों के अधिक पास जाने दिया। हरि हरि। वैसे जो यह सारी बातें मैं कह रहा हूं, वह लिखा हूं! यह सब कहने के लिए समय नहीं है। मायापुर वृंदावन उत्सव नाम का एक ग्रंथ मैंने लिखा है, उसमे 1972 का वर्णन है उसे आप पढ़ सकते हो! तो श्रील प्रभुपाद का प्रेम कार्तिक मास के महीने भर के लिए उनका सानिध्य में मिलने वाला था, और मिला भी!
राधा दामोदर मंदिर के प्रांगण में श्रील प्रभुपाद प्रतिदिन सुबह श्रीमद्भागवत की कक्षा और शाम में भक्तिरसामृतसिंधु की कथा को सुना रहे थे। और कक्षा के उपरांत, श्रील प्रभुपाद के कमरे में भी हम भक्तों को श्रीमद् भागवत के टिका पर कक्षा दिया करते थे। हरि हरि। तो श्रील प्रभुपाद ने पहला प्रत्यक्ष आदेश दीया जब मैं भक्तों के साथ बैठा हुआ था, और श्रील प्रभुपाद वार्तालाप कर रहे थे और वार्तालाप करते समय श्रील प्रभुपाद हमारी और भी देखते, हम सभी की ओर देखते थे! एक तरफ से देखना शुरू कर दे, और मेरी तरफ जब श्रीला प्रभुपाद देखते तब तब वे थोड़ा रुक जाते! ऐसा अनुभव मुझे हो रहा था या मैं सोच रहा था कि, क्यो मेरी और देख रहे हैं बार-बार, क्या मैंने तिलक ठीक से नहीं किया, या फिर कुर्ता का बटन ठीक से नहीं लगाया? क्यों बार-बार देख रहे थे? मुझे तो पता नहीं चला या फिर तब पता चला जब प्रभुपाद ने कहा, रोको! तो वैसे ही मैंने रोक दिया! तो उन दिनों में किसी लोगों को आदत होती है, जैसे मुझे भी थी! तो में अपनी जांघों को जोर जोर से हिला रहा था। उस समय तो मुझे पता नहीं चला लेकिन, जैसे ही प्रभुपाद देख रहे थे और सोच रहे थे और फिर तो कहा कि रोको! तो वैसे ही मैंने रोक दिया।
रोक लिया तो रोक ही लिया! और यह मेरे लिए पहला प्रत्यक्ष उपदेश रहा। वैसे आदेश उपदेश दो प्रकार के होते है, यह मत करो! यह एक बात है और यह करो! यह दूसरा प्रकार है। तो मुझे मत करो! निषेध वाली बात या आदेश दिया। हरि हरि। वैसे हम चाहते थे कि पूरा कार्तिक महीना हम श्रील प्रभुपाद के साथ रहेंगे लेकिन एक दिन अचानक श्रील प्रभुपाद कहे, मुझे और पंचद्रविड हम दोनों को कहे की, आप यहीं रह जाओ! गोवर्धन पूजा जो संपन्न होने वाली है, उसके लिए जो भी सामग्री चाहिए, तो मथुरा में बहुत बड़ा बाजार है वहां से लेकर आओ! तो हम दोनों गए और काफी समान हम लेके आए। तो यह भी एक पहली सेवा या आदेश श्रील प्रभुपाद ने दी। तो फिर जब हम वहां से लौटे तो आज के दिन, बहुलाष्टमी के दिन, वैसे हमें पता नहीं था कि बहुलअष्टमी है, तो इसी राधा कुंड के आविर्भाव दिन के प्रातः राधा दामोदर मंदिर के बगल वाले बाजू में जहां पर रूप गोस्वामी की समाधि है, उस समाधि के सामने रूप गोस्वामी का भजन कुटीर भी है,
हम बैठे थे और वहां पर दीक्षा समारंभ संपन्न हो रहा था। और श्रील प्रभुपाद वह विराजमान थे। तो आज के दिन, कुछ ज्यादा भक्त नहीं थे, ज्यादा से ज्यादा 10 होंगे, श्रील प्रभुपाद हमारे दीक्षा माला पर हमारे सामने ही जप कर रहे थे, तो जैसे ही माला पूर्ण होती तो हमें सामने बुलाते। तो वैसे ही मेरे समक्ष माला संपन्न करके मुझे संकेत दिए, तो में आगे बढ़ा और श्रील प्रभुपाद के समक्ष बैठा, और श्रील प्रभुपाद ने अंग्रेजी में वार्तालाप किया और नियम बताएं और फिर हाथ आगे किया, मैं भी भीख मांग रहा था कि, दीजिए! मुझे भगवान दीजिए! या भगवान का नाम दीजिए! तो श्रील प्रभुपाद ने,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह महामंत्र मुझे दिया!
16 माला जप करिए। कम से कम 16 माला। और तुम्हारा नाम है लोकनाथ। वैसे मैं था रघुनाथ भगवान पाटिल का बेटा था। मेरे पिताजी का नाम भगवान था। भगवान का पुत्र रघुनाथ, अब मैं श्रील प्रभुपाद का पुत्र, प्रात दामोदर का पुत्र बना रहे थे। दीक्षा के समय सभी बातें नई होती है। नाम भी नया होता है। लोकनाथ कहे, सभी उपस्थित भक्तो ने इस नाम और मेरी दीक्षा, हरि बोल कहकर स्वागत अभिनंदन किया ।
पुनः श्रील प्रभुपाद का साक्षात दंडवत प्रणाम करके हम अपने स्थान पर बैठे और फिर औरों को भी जप माला और नाम देकर यज्ञ संपन्न हुआ आज के दिन। हरि हरि। इस प्रकार राधाकुंड आविर्भाव, प्राकट्य दिन ,जन्मदिन। मध्य रात्रि में होना था राधा कुंड का आविर्भाव। मेरा आविर्भाव या जन्म उसी प्रातकाल में वृंदावन में राधा दामोदर मंदिर के प्रांगण में, रुप गोस्वामी प्रभुपाद के सानिध्य में, समाधि के निकट। श्रील प्रभपाद हमे जन्म दिए। श्रील प्रभुपाद की जय। राधा कुंड का आविर्भाव।
ब्रजमंडल ऑनलाइन परिक्रमा मे आप सम्मिलित हो रहे हो। परिक्रमा राधा कुंड के तट पर लगभग 3 दिन पहले ही पहुंची है। वहां पहुंचकर फिर एक दिन गोवर्धन की परिक्रमा हुई। फिर दूसरे दिन राधा कुंड की परिक्रमा हुई। लेकिन आज तो प्रस्थान करना चाहिए था किंतु परिक्रमा राधा कुंड के तट पर एक दिन और रहेगी। आज की दिन का आप कार्यक्रम उस एप में देख सकते हो।आज हम राधा कुंड में ही रुके हुए हैं क्योंकि आज राधा कुंड का आविर्भाव है। तो दिन में कई सारी कथाएं होती रहती है। राधा गोविंद महाराज भी आते हैं।हम भी कथा करते हैं कीर्तन होते हैं और भक्त राधा कुंड के तट पर आनंद लूटते हैं। इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम् ऐसा दमोदराष्टक में कहा है। इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुंडे इस प्रकार की लीलाओं से, भगवान जो लीला खेलते हैं वृंदावन में संपन्न करते हैं तब आनंद की कुंड भर जाते हैं।
आनंद के सागर, आनंद ही आनंद। तो जब यह लीला संपन्न हो रही है तो उन लीलाओं का श्रवण कीर्तन हम करते हैं। और फिर आज के प्राकट्य लीला का श्रवण कीर्तन होता है और राधा कुंड के प्राकट्य लीला का। राज क्रीड़ा की तैयारी हो रही थी। इतने में अरिष्टासुर आया , असुर गए बैल के रूप में और आतंक मचाया उसने। भगवान ने उसका वध किया तो फिर रास क्रीड़ा को आगे बढ़ाना था। किंतु राधा और गोपियों ने कहा नहीं नहीं , गो वध या बैल वध जो धर्म का प्रतीक माना जाता है उसका वध किया तुमने तुम पापी हो।तो तुम को स्नान करना होगा संसार की सारी पवित्र नदियों में कुंडो में स्नान कर के जब लौटोगे तब आगे का खेल या क्रीड़ा या रासलीला संपन्न होगी। भगवान ने पहले श्याम कुंड बनाया और संसार भर के पवित्र नदियों को सरोवरों को वही पर बुलाया और पधारे ।
आपकी क्या सेवा कर सकते हैं । भर दो मेरे कुंड को, श्याम कुंड फिर पवित्र जल से भरा और फिर भगवान ने उसमें स्नान किया। भगवान ने कहा अब मैं तैयार हूं अगर तुम समझते थे कि मैं पतित या पाप किया था । अब पतित पावन बन गया मैंने स्नान किया। लेकिन तुम भी पापी हो मेरे जैसे निष्पाप को, मैं पापी हूं ऐसा समझ लिया और ऐसा कहा । तो अब तुमको स्नान करना होगा और फिर मुझे छू सकती हो मेरे पास आ सकती हो। राधा और गोपियों ने फिर कुंड की खुदाई की। यह मधुर लीला है। तो जब कुंड तो बन गया किंतु जल था नहीं। मानसरोवर और मानस सरोवर अलग है। गोवर्धन के ऊपर एक मानस सरोवर हैं।
वहां से जल लाने का और कलश से जल भरकर कुंड भरने का प्रयास चल रहा था। लेकिन उसमें बहुत देरी लग रही थी। तो फिर कृष्ण कहे तुम एतराज नहीं हो तो मेरे कुंड में जल है ही उसी से जल भर दो। तुम्हारा कुंड भी अंततोगत्वा राधा और गोपियां मान गई। फिर ठीक मध्य रात्रि के समय, जो जल श्याम कुंड में था, उस जल ने प्रवेश किया राधा कुंड में। और इस प्रकार ये राधा और श्याम का मिलन भी हुआ है। हरि हरि। दोनों कुंड तैयार हो गए। तो फिर राधा और गोपियों ने स्नान किया और वह भी तैयार हो गए। रास क्रीड़ा आगे संपन्न हुई, राधा कुंड के तट पर। हरि हरि। यह आप ब्रज मंडल ग्रंथ में भी पढ़ सकते हो।
भागवत के तात्पर्य में यह पढ़ने को मिलेगा।
हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। राधा कुंड श्याम कुंड की जय। राधा श्यामसुंदर की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। राधा दामोदर की जय। बोलो श्री राधे श्याम।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
8th November
Vrajmandal parikrama Day 9
Spiritual birthday of Gurumaharaj on auspicious occasion of Radha-kund appearance.
namas te sārasvate deve gaura-vāṇī-pracāriṇe
nirviśeṣa-śūnyavādi-pāścātya-deśa-tāriṇe
śrī-kṛṣṇa-caitanya prabhu-nityānanda
śrī-advaita gadādhara śrīvāsādi-gaura-bhakta-vṛnda
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
All the assembled devotees, disciples are welcome to today’s session. Today is a special day so special welcome.
Today is the appearance day of Sri Radha-Kunda. Also, it is very special because on this day 48 years ago Srila Prabhupada accepted me as his disciple in Vrindavan. This day is also called a birthday. I keep on saying that I was born in Vrindavan. He sowed the seed of Bhakti in my heart. He gave me the right path to walk on. He brought my life in the real sense. In 1972, in the month of Kartik Srila Prabhupada had announced then that he would observe Kartik Vrat and would reside in Vrindavan for the entire month. Those days there were not many disciples, and among them major were foreigners. There were very few Indian devotees. One of them was me who joined as a Brahmachari in Mumbai. I had gone to Vrindavan from Mumbai by train long with 15 devotees
We went to Srila Jiva Goswami’s Radha Damodar temple where Srila Prabhupada used to stay. He would stay there whenever he would come to Vrindavan. So we reached there and took darshan in the temple. So one devotee took me to Srila Prabhupada’s room. It was a very small room.
15 devotees could pack the room. You can imagine. Srila Prabhupada was very simple. Despite the establishment of International Society and having so many disciples he would live very simply just like the 6 Goswamis. So I took a shower, got ready, and was sitting in front of Srila Prabhupada.
It was the first time that I saw Srila Prabhupada from so near.
I have written a book named Mayapur-Vrindavan Festivals. I have described this Kartik month of 1972 in that book.
I got a very good association of Srila Prabhupada for 1 full month. Srila Prabhupada gave classes daily. In the morning he used to give Bhagavatam and in the evening he used to give the class on Necter of devotion. And after the class devotees and disciples used to take darshan of Srila Prabhupada in his room. The first day, when Srila Prabhupada was talking to all of us, I got the first instruction from him. He was looking at all of us while talking to us but he would stop at me for a while. I became very conscious and started wondering if my tilak or dress had any issues.
I didn’t understand till Srila Prabhupada said Stop It!!. Then I stopped. It was then I realized that I was shaking my thighs constantly. It was not doing it consciously but then I stopped it forever. This was the first instruction for me. Srila Prabhupada’s instructions would comprise of do’s and don’ts. So first instruction to me with a don’t. One day Srila Prabhupada asked me and another brahmachari named Dravid to go to Agra and purchase some things for Govardhan Puja. So we went and brought everything. Prabhupada was so much happy. So this was also another instruction that I received.
So today early in the morning, in Radha Damodar temple courtyard, in front of Samadhi of Srila Rupa Goswami, a yajna shala was made ready. So we all Diksha candidates were seated. 10 devotees were there. Srila Prabhupada started giving us his chanted beads and Harinam Diksha. When my time came he asked me the 4 regulative principles. Srila Prabhupada gave me my beads and Hare Krsna Mahamantra and said chant 16 rounds minimum. My name was Raghunath Bhagwan Patil and now I was Lokanath Das, son of Radha Damodar and Srila Prabhupada. Everything is new at the time of Diksha. So he has given me the name ” Lokanath”. There is usually not much scope of discussion during initiation but yet it is a memorable event in my life.
Today is also RadhaKunda appearance day. It will be celebrated at the midnight. The Brajmandal parikrama stays at RadhaKunda for 3 days. On the First day you all did Govardhan Parikrama and yesterday you did Radha-Kunda Parikrama.
Today you should have moved on but the parikrama stays for one extra day so that the devotees can attend the special celebration. Sometimes Radha Govind Maharaja including me comes and gives Katha. Kirtan also happens. It is an extremely blissful experience.
tīdṛk sva-līlābhir ānanda-kuṇḍe
sva-ghoṣam nimajjantam ākhyāpayantam
tadīyeṣita-jñeṣu bhaktair jitatvam
punaḥ prematas tam śatāvṛtti vande
Translation:
Those superexcellent pastimes of Lord Krishna’s babyhood drowned the inhabitants of Gokula in pools of ecstasy. To the devotees who are attracted only to His majestic aspect of Narayana in Vaikuntha, the Lord herein reveals: “I am conquered and overwhelmed by pure loving devotion.” To the Supreme Lord, Damodara, my obeisances hundreds and hundreds of times.[Damodarastakam Verse 3]
The pastimes of the Lord are pleasure-giving. It fills ponds with bliss. The pastime is such that Arishthasur, a demon in the form of a bull came to Vrindavan and Krsna had to kill him.
Now Srimati Radharani and the Gopis deny playing rasa dance with Krsna saying that. He was impure so he had committed a great sin by killing the bull that is a symbol of righteousness.
So they said Krsna to dance with us you need to take bath in all the holy waters of holy rivers and ponds in the universe.
Krsna agreed and immediately all the rivers personified started appearing and they went to the pond [ Shyam-Kunda] made by Krsna. So Krsna took bath and said that now he was pure but since the Gopis along with Srimati Radharani had supported the demon so they were impure sinners now.
They were asked to do the same purification task. All the Gopis started digging and bringing water from Mansi Ganga. However, all these efforts were in vain. The pond next to that of Krsna, made by the Gopis, did not fill at all. Finally, Krsna connected both the Ponds through an internal passage and the water got divided. So the water which was in Shyama Kunda was divided into Radha KundaaIn this way, these Kundas were formed. It happened in the midnight of today. You can read these past times in Srimad Bhagavatam.
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
Radha-Kundaa Shyama-Kundaa ki Jay.
Radha Shyam Sundar ki jay
Radha Damodar ki jay
Srila Prabhupada ki jay.
Bolo Radhe Shyam
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
दिनांक 7 नवम्बर 2020
हरे कृष्ण!
जय राधे, जय कृष्ण, जय वृन्दावन।
श्रीगोविन्द, गोपीनाथ, मदन-मोहन॥1॥
श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, गिरि-गोवर्धन
कालिन्दी यमुना जय, जय महावन॥2॥
केशी घाट, वंशि वट, द्वादश कानन।
याहा सब लीला कोइलो श्रीनन्द नन्दन॥3॥
श्रीनन्द-यशोदा जय, जय गोपगण।
श्रीदामादि जय जय, धेनु वत्स-गण॥4॥
जय वृषभानु, जय कीर्तिदा सुन्दरी।
जय पौर्णमासी, जय अभीर-नागरी॥5॥
जय जय गोपीश्वर, वृन्दावन माझ।
जय जय कृष्ण सखा, बटु द्विज-राज॥6॥
जय राम घाट, जय रोहिणी नन्दन।
जय जय वृन्दावन, वासी यत जन॥7॥
जय द्विज पत्नी, जय नाग कन्या-गण।
भक्तिते जाहार पाइलो, गोविन्द-चरण॥8॥
श्री रास-मंडल जय, जय राधा-श्याम।
जय जय रास लीला, सर्वमनोरम॥9॥
जय जयोज्ज्वल-रस-सर्व रससार।
परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार॥10॥
श्री जाह्नवी-पाद-पद्म करिया स्मरण।
दीन कृष्णदास कहे, नाम-संकीर्तन॥11॥
अर्थ
(1) राधा-कृष्ण तथा वृंदावन धाम की जय हो। श्री गोविंद, गोपीनाथ तथा मदनमोहन- वृंदावन के इन तीन अधिष्ठाता विग्रहों की जय हो।
(2) श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, गिरिगोवर्धन तथा यमुना की जय हो। कृष्ण और बलराम के बाल्य क्रीडास्थल महावन की जय हो।
(3) जहाँ कृष्ण ने केशी राक्षस का वध किया था, उस केशी-घाट की जय हो। जहाँ कृष्ण ने अपनी मुरली से सब गोपिकाओं को आकर्षित किया था, उस वंशी-वट की जय हो। व्रज के द्वाद्वश वनों की जय हो, जहाँ नन्दनंदन श्रीकृष्ण ने सब लीलायें कीं।
(4) कृष्ण के दिवय माता-पिता, नंद और यशोदा की जय हो। राधारानी और अनंग मंजरी के बड़े भााई श्रीदामा सहित सब गोपबालकों की जय हो। व्रज के सब गाय-बछड़ों की जय हो।
(5) राधाजी के दिवय माता-पिता, वृषभानु और कीर्तिदा की जय हो। संदीपनि मुनि की मां, मधुमंगल व नंदीमुखी की दादी एवं देवर्षि नारद की प्रिय शिष्या- पौर्णमासी की जय हो। व्रज की युवा गोपिकाओं की जय हो।
(6) पवित्र धाम के संरक्षणार्थ निवास करने वाले गोपीश्वर शिव कपवित्र धाम के संरक्षणार्थ निवास करने वाले गोपीश्वर शिव की जय हो। कृष्ण के ब्राह्मण-सखा मधुमंगल की जय हो।
(7) जहाँ बलराम जी ने रास रचाया था, उस राम-घाट की जय हो। रोहिणीनंदन बलराम जी की जय हो। सब वृंदावनवासियों की जय हो।
(8) गर्वीले यज्ञिक ब्राह्मणों की पत्नियों की जय हो। कालिय नाग की पत्नियों की जय हो, जिन्होंने भक्ति के द्वारा गोविन्द के श्रीचरणों को प्राप्त किया।
(9) श्री रासमण्डल की जय हो। राधा और श्याम की जय हो। कृष्ण की लीलाओं में सबसे मनोरम, रासलीला की जय हो।
(10) समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो, भगवान् कृष्ण ने परकीय-भाव में जिसका प्रचार ब्रज में किया।
(11) नित्यानंद प्रभु की संगिनी श्री जाह्नवा देवी के चरणकमलों का स्मरण कर यह दीन-हीन कृष्णदास नाम संकीर्तन कर रहा है।
श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी महाराज की जय! श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी महाराज गीत लिखते हैं- श्याम कुंड, राधा कुंड, गिरि गोवर्धन, इन तीनों नामों का उल्लेख हुआ है। श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी राधा कुंड के तट पर रहे। राधा कुंड के तट पर उन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना की। राधा कुंड के तट पर ही उनका समाधि मंदिर भी है। कृष्ण दास कविराज गोस्वामी की जय! यह राधा कुंड की महिमा है। आज राधा कुंड की परिक्रमा होगी। आप सभी परिक्रमा के भक्त राधाकुंड पर रुके थे या आप घर लौट गए? वृंदावन में रहो, वृंदावन में ही वास करो। इस कार्तिक में ब्रजवास करो। हरि! हरि! यदि वृंदावन का ध्यान करोगे, राधा कृष्ण की लीलाओं का श्रवण इत्यादि करने से आपका मन वृंदावन हो जाएगा, वृंदावन की और दौड़ेगा और आप वृंदावन में रहना पसंद करोगे। यदि आप मुबई लौट गए तो तब आप सोचोगे कि ‘आई लॉस्ट माय हार्ट इन वृंदावन’ ‘आई लॉस्ट माय हार्ट इन वृंदावन’ या जिस हार्ट को आप वृंदावन में खोओगे, तो इसको पाने के लिए आप पुनः वृंदावन लोटोगें । यह वृंदावन का मूड है। यह वृंदावन में रहने का समय है। इस मुड़ को जगाने अथवा जागृत अथवा उदित करने हेतु यह कार्तिक व्रत है। वह वृंदावन धाम, जहाँ हमें अंततोगत्वा पहुंचना है,
*जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।( श्रीमद्भगवतगीता4.9 )
अनुवाद: हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है।
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं
रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता ।
श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्
श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादरो नः परः ।।
(चैतन्य मंज्जुषा)
अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है । व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी, वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्द प्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है – यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है । यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है ।
हम इस कार्तिक मास में वृंदावन में ही तो रहने का अभ्यास करते हैं। ऐसे ही परिक्रमा करते हैं ताकि अंततोगत्वा हमें वृंदावन का वास हो।
मोर एइ अभिलाष, विलासकुंजे दिओ वास। नयने हेरिबो सदा युगल-रूप-राशि॥3॥
( तुलसी आरती श्लोक ३)
अनुवाद:- मेरी यही अभिलाषा है कि आप मुझे भी वृन्दावन के कुंजों में निवास करने की अनुमति दें, जिससे मैं श्रीराधाकृष्ण की सुन्दर लीलाओं का सदैव दर्शन कर सकूँ।
हम तुलसी महारानी को भी यही प्रार्थना करते हैं, विलासकुंजे दिओ वास। मोर एइ अभिलाष हे तुलसीदेवी -यही मेरी अभिलाषा है। विलासकुंजे दिओ वास अर्थात कुंजो में मेरा वास हो। वृंदावन में भी कई भिन्न-भिन्न स्थान हैं। वृंदावन में कितनी सारी भी विविधता हैं। वृंदावन अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध है। वृंदावन में कुंज हैं। इन कुंजो और निकुंजो में राधा कृष्ण की लीलाएं संपन्न होती हैं। हरि! हरि! ऐसा वास हमें प्राप्त हो। ऐसी हम प्रार्थना करते हैं। इसी अभिलाषा की पूर्ति हेतु ही हम ब्रज मंडल परिक्रमा भी करते हैं। चलिए समय तो बलवान है। वह किसी के लिए रुकता नहीं है। हरि! हरि! वैसे रुकता भी है, जब हम कृष्ण भावना भावित होते हैं।
आयुर्हरति वै पुंसामुद्यन्नस्तं च यन्नसौ ।
तस्यर्ते यत्क्षणो नीत उत्तमश्लोकवार्तया ॥
(श्रीमद भागवतम 2.3.17)
अनुवाद:- उदय तथा अस्त होते हुए सूर्य सबों की आयु को क्षीण करता है, किन्तु जो सर्वोत्तम भगवान् की कथाओं की चर्चा चलाने में अपने समय का सदुपयोग करता है, उसकी आयु श्रीण नहीं होती।
उत्तम श्लोक अर्थात जब हम भगवान की वार्ता सुनते सुनाते हैं। तब हम लोग वर्तमान काल में रहते हैं, भूत भविष्य के परे ही पहुंचते हैं, इसी को कालातीत कहते हैं अर्थात काल के अतीत अर्थात काल के परे। यही अवस्था गुणातीत भी है। हरि हरि! आज के दिन ही राधा कुंड की परिक्रमा होती है। कल गोवर्धन की परिक्रमा हुई थी आज राधा कुंड की परिक्रमा होगी। परिक्रमा के बीच में चौरासी कोस की परिक्रमा तो है ही। ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा। ब्रज मंडल परिक्रमा किंतु यह परिक्रमा करते समय हम और भी डिटेल्स ( गहराई) में जाते हैं। सबने वृंदावन की पंचकोसी परिक्रमा की लेकिन यह अतिरिक्त है। तत्पश्चात मथुरा गए, एक दिन फिर मथुरा की परिक्रमा हुई। या फिर गोवर्धन की परिक्रमा हुई। आज राधा कुंड परिक्रमा है। हम अन्य कहीं आते जाते नहीं और जहां कहां भी पड़ाव रहते हैं तब हम यहाँ वहां से आकर परिक्रमा करके चाहे गोवर्धन है या राधाकुंड आते हैं,हम अपने पड़ाव के स्थान पर लौट जाते हैं। ऐसी ही परिक्रमाएं होती रहती है। आज राधा कुंड की ऐसी ही परिक्रमा है।
राधा कुंड श्याम कुंड की जय!
परिक्रमा केवल राधा कुंड की नहीं है, श्याम कुंड की भी है। प्रसिद्ध तो राधा कुंड है। लेकिन वहां श्याम का कुंड है ही ना। हरि हरि। श्याम श्यामा के कुंड भी हैं।
राधा कृष्ण राधा कुंड, श्याम कुंड। राधा कुंड के तट पर राधा गोपीनाथ मंदिर है। हरि !हरि!
वहीं पर जहानवा बैठक है अर्थात नित्यानंद प्रभु की भार्या की बैठक अर्थात जहाँ उनको राधा गोपीनाथ के दर्शन हुए थे। नित्यानंद प्रभु की भार्या अर्थात जान्ह्वा माता वहाँ बैठी रही थी और उन्होंने वहां भजन किया था। वह स्थान जहां उनको राधा गोपिनाथ का दर्शन भी हुआ था।
इसी राधा गोपीनाथ मंदिर के प्रांगण में ही और राधा कुंड के तट पर रघुनाथ दास गोस्वामी जिनको दास गोस्वामी भी कहा जाता है, जोकि गोवर्धन के पुजारी रहे। वह गोवर्धन की आराधना और गोवर्धन की परिक्रमा भी किया करते थे एवं जिनको श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने गोवर्धन शिला भी दे दी। उस शिला की श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं आराधना किया करते थे, वह शिला श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने रघुनाथ गोस्वामी को दे दी और गूंज मालाएं भी दी। उन रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधी राधा कुंड के तट पर है। जब हम राधा कुंड के तट से ही आगे बढ़ते हैं, शायद यह उत्तरी तट है लेकिन जब हम पूर्वी तट पर पहुंचते हैं तो वहां पुनः एक समाधी है। वहाँ एक ही समाधि में तीन आचार्यों की समाधियां हैं- एक रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधी और रघुनाथ भट्ट गोस्वामी की समाधी व कृष्ण दास कविराज गोस्वामी की समाधी। उस मंदिर का दर्शन करने के पश्चात राधा कुंड और श्याम कुंड के बीच में या राधा कुंड के तट पर श्याम कुंड के तट पर अर्थात दोनों कुंडों के बीच जो कॉमन तट है, वहाँ भी गोवर्धन है, उसका दर्शन करेंगे।
राधाकुंड, श्यामकुण्ड वैसे गोवर्धन का ही अंग है। राधाकुंड व श्यामकुण्ड के बीच के तट पर वहां गिरिराज की आराधना व अभिषेक होता है। वहाँ वापिस लौट कर ये जो तीन समाधियां है, हम उससे आगे पूर्व दिशा में बढेगे, वहाँ कृष्ण दास कविराज गोस्वामी का भजन कुटीर अर्थात निवास स्थान है जहाँ उन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना की। अपना भजन किया। उन्हीं के बगल में रघुनाथ गोस्वामी का भजन कुटीर है। सनातन गोस्वामी भी वहाँ रहा करते थे। वहां पर रघुनाथ दास गोस्वामी प्रतिदिन राधा कुंड के निवासियों को गौर लीला सुनाते थे। हरि हरि। जब वहां से थोड़ा और उत्तर की और बढ़ेंगे, राधा गोविंद का मंदिर है। वैसे राधा कुंड श्याम कुंड के तट पर मदन मोहन ,राधा गोविंद, राधा गोपीनाथ ( राधा गोपीनाथ मंदिर का तो उल्लेख हुआ है। जहां बैठक है जहां रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधि व बैठक है) अब यहां राधा गोविंद मंदिर है। राधा कुंड, श्याम कुंड की पूरी परिक्रमा करके हम राधा कुंड श्याम कुंड की दक्षिण दिशा में आएंगे तो वहां राधा मदन मोहन का मंदिर है। हरि! हरि!
मदन मोहन, राधा गोविंद, राधा गोपीनाथ गौड़ीय के आराध्य देव हैं। इनकी आराधना राधा कुंड श्याम कुंड के तट पर होती है। राधा गोविंद के मंदिर के बगल में ही एक गोवर्धन की जिव्हा अर्थात टंग ऑफ गोवर्धन का दर्शन है। जहां राधा कुंड, श्याम कुंड है, वह गोवर्धन का मुख मंडल है। पीछे पुछरी का लौठा बाबा का जो स्थान है वह पूंछ है। वैसे गोवर्धन एक मयूर के रूप में है, ऐसी भी मान्यता है। यह उनका मुख है, जीव्हा भी है और वह वहाँ जीव्हा का दर्शन है। वहां से जब हम राधा कुंड व श्याम कुंड के परिक्रमा मार्ग पर लौट कर उत्तर दिशा में जाते हैं। वहाँ भक्ति विनोद ठाकुर का भजन कुटीर है। भक्ति विनोद ठाकुर जो नवद्वीप के गोस्वामी अर्थात सप्तम गोस्वामी के रूप में प्रसिद्ध हैं। जब वह वृंदावन आए तब वह राधा कुंड के तट पर रहते थे। राधा कुंड के तट पर उनका निवास स्थान अथवा भजन कुटीर है। उसी भजन कुटीर् में भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर भी रहे जब वह आए और उन्होंने 1932 में ब्रज मंडल परिक्रमा की। वहां उनकी पादुकाएं है। कुछ वस्तुएं है, वहाँ पर बेड चेयर है। जब हम पुनः राधाकुंड परिक्रमा मार्ग की और वापिस लौटते हैं तब वहाँ एक जगन्नाथ मंदिर का दर्शन है। जय जगन्नाथ! जगन्नाथ स्वामी की जय! जब हम वहां से परिक्रमा की ओर आगे बढ़ते हैं तब बाएं बगल में ललिता कुंड है। यहाँ वहां पर राधा कुंड, श्याम कुंड और ललिता कुंड भी हैं और अष्ट साखियों के कुंड हैं। उनके भी दर्शन होने चाहिए लेकिन उनके दर्शन प्राप्त नहीं हैं। हमने कहा तो था कि वहां अष्ट साखियों के कुंज भी हैं। हरि! हरि!
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
एक और बायीं तरफ ललिता कुंड है। वहीं पर दाहिने कुंड में जीव गोस्वामी की भजन कुटीर है। उनके विग्रहों के दर्शन भी हैं वहाँ चैतन्य महाप्रभु के चरण चिन्हों के भी दर्शन हैं। हम दर्शन कर सकते हैं। चैतन्य महाप्रभु राधा कुंड पर आए थे और उन्होनें ही राधाकुंड को खोजा था अर्थात प्रस्तुत किया था। वैसे आगे बताएंगे थोड़ा, चैतन्य महाप्रभु आने वाले हैं। जब हम जीव गोस्वामी की भजन कुटीर से आगे बढ़ेंगे तब रास्ते में एक कुआं आता है। वैसे गोस्वामियों को उस कुएं से ही यह गोवर्धन टंग प्राप्त हुई थी। जब वे कुआं इस विचार से खोद रहे थे कि हमें कुछ शौच आदि क्रियाओं के लिए राधाकुंड व श्यामकुण्ड के जल का उपयोग नहीं करना चाहिए। जब वे ऐसा सोच कर कुंआ खोद रहे थे।
जब खुदाई चल रही थी तब वे खुदाई के लिए कुछ हथियारों का प्रयोग कर रहे थे। उनको यह पत्थर मिला। उस जिव्हा में से खून भी निकल रहा था। सभी ने मान लिया कि यह गोवर्धन की जिव्हा है। इससे खून भी निकल रहा है। तत्पश्चात राधा गोविंद मंदिर के बगल में उस जिव्हा की स्थापना हुई । आगे बढ़ते हैं, जब परिक्रमा मार्ग से दाहिनी ओर मुड़कर हम श्याम कुंड के पूर्वी तट पर पहुंच जाते हैं वहां माधवेंद्र पुरी की बैठक है। माधवेंद्र पुरी हमारे गौड़ीय वैष्णव की परंपरा के प्रथम आचार्य रहे। हमारे गौड़ीय वैष्णव परंपरा के स्त्रोत अथवा बीज रहे। वे एक समय वृंदावन और गोवर्धन में भी निवास किया करते थे। उन्होंने भगवान के आदेशानुसार गोपाल के विग्रह को जिनको कि छुपा कर रखा गया था, उसे जमीन से बाहर निकाल कर उसकी स्थापना की और अन्नकूट महोत्सव मनाया । यह सारी लीलाएं कथाएं हैं। माधवेंद्र पुरी प्रतिदिन गोवर्धन की परिक्रमा भी किया करते थे। गोविंदगढ़ के तट पर ही उनको यह स्वप्न आदेश हुआ। मुझे जमीन से निकालो, जहां मुझे छुपा कर रखा गया है। तत्पश्चात हम पुछरी के लोठा पहुंच कर पुनः परिक्रमा में आगे बढ़ते हैं जतीपुरा नाम का गांव आता है। जती मतलब यति, बंगला में जती का यति जैसा उच्चारण होता है। यति मतलब सन्यासी अर्थात परिव्राजाकाचार्य। यतिपुर वैसे माधवेंद्र पुरी के नाम से प्रसिद्ध है । कौन यति? कौन से सन्यासी? कौन से वैरागी? कौन से परिव्राजाकाचार्य, हमारे माधवेंद्र पुरी। यतिपुर मतलब माधवेंद्र पुरी का नगर। ऐसी समझ है। माधवेंद्र पुरी की बैठक श्याम कुंड के तट पर है।
फिर हम परिक्रमा मार्ग पर लौटेंगे और आगे बढ़ेंगे। श्याम कुंड के तट पर दायीं तरफ चैतन्य महाप्रभु की बैठक है। जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु गोवर्धन की परिक्रमा अर्थात ब्रज मंडल परिक्रमा कर ही रहे थे तब वे राधाकुंड, श्यामकुण्ड पर आए थे। उन्होंने उस समय राधाकुंड पर स्नान भी किया था। उस समय वहां छोटा सा गड्ढा था, जिसमें थोड़ा सा जल था। उसी में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने स्नान किया। हरि! हरि! उस समय किसी को पता ही नहीं था कि यहां पर राधा कुंड और बगल में श्याम कुंड है। इसको लोग भूल चुके थे। शायद कल हमनें बताया भी था। मुसलमानों के प्रभाव अथवा अत्याचारों अथवा आक्रमणों से वृंदावन एक समय निर्जन प्रदेश बन चुका था।
वृंदावन में शायद ही कोई निवास कर रहा था। कोई यात्री नहीं आता था। धीरे-धीरे सब भूल गए थे कि कहां है राधा कुंड? कहां है श्याम कुंड। चैतन्य महाप्रभु ने इस बात को सारी दुनिया में प्रकाशित किया कि कौन सा राधा कुंड है। उसी भेंट में चैतन्य महाप्रभु ब्रज की यात्रा परिक्रमा कर रहे थे तो उन्होंने राधा कुंड, श्याम कुंड का परिचय दिया और जहाँ कुछ समय के लिए वे बैठे और रुके। जहाँ चैतन्य महाप्रभु रुके, वह स्थान महाप्रभु की बैठक बन गया। बडा़ ही सुंदर स्थान है। हरि! हरि! और पुनः परिक्रमा मार्ग में आगे बढ़ते हैं।
बायीं तरफ नित्यानंद प्रभु की पादुका हैं। नित्यानंद प्रभु भी वृंदावन आए थे।
हरे कृष्ण
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
7th November
Vrajmandal parikrama Day 8
Rememberance of our aacharyas, on way of Radha-kund Parikrama.
jaya radhe, jaya krishna, jaya vriindavan
sri govinda, gopinatha, madana-mohan
Translation:
All glories to Radha and Krishna and the divine forest of Vrindavana. All glories to the three presiding Deities of Vrindavana—Sri Govinda, Gopinatha, and Madana-mohana. [Jaya radhe, jaya krishna Verse 1 by Krsnadasa Kaviraja Goswami ]
syama-kunda, Radha-Kunda a, giri-govardhan
kalindi jamuna jaya, jaya mahavan
Translation:
All glories to Syama-kunda, Radha-Kunda a, Govardhana Hill, and the Yamuna River (Kalindi). All glories tothe great forest known as Mahavana, where Krishna and Balarama displayed all of Their childhood pastimes.
[Jaya radhe, jaya krishna Verse 2 by Krsnadasa Kaviraja Goswami ]
keśī-ghāṭa, baḿśi-baṭa, dwādaśa-kānan
jāhā saba līlā koilo śrī-nanda-nandan
Translation:
All glories to Kesi-ghata, where Krishna killed the Kesi demon. All glories to the Vamsi-vata tree, where Krishna attracted all the gopis to come by playing His flute. Glories to all of the twelve forests of Vraja. At these places the son of Nanda, Sri Krishna, performed all of His pastimes. [ [Jaya radhe, jaya krishna Verse 3 by Krsnadasa Kaviraja Goswami ]
Krsnadasa Goswami Maharaja ki jay. He stayed on the bank of Radha-Kunda a and wrote Sri Caitanya Caritāmrta . And on the bank of Radha-Kunda a, there is also samadhi mandir of Krsnadasa Goswami Maharaja. So this is the glory of Radha-Kunda . Today there will be parikrama of Radha-Kunda a. Yesterday all the devotees stayed at Radha Kunda. So reside in Vrindavan. If you will think and hear about Vrindavan then your mind will go to Vrindavan and it will run towards Vrindavan. After coming to your respective city, again you will think that “I lost my heart in Vrindavan”. And again you will go to Vrindavan. You will end up in Vrindavan. This is the time to stay in the mood of Vrindavan. This Kartik month is meant for this.
janma karma ca me divyam
evam yo vetti tattvatah
tyaktva deham punar janma
naiti mam eti so ‘rjuna
Translation:
One who knows the transcendental nature of My appearance and activities does not, upon leaving the body, take his birth again in this material world, but attains My eternal abode, O Arjuna.[BG 4.9]
aradhyo bhagavan vrajesa-tanayas tad-dhama vrndavanam
Translation:
The Supreme Personality of Godhead, Lord Krishna, the son of Nanda Maharaja, is worshipped along with His transcendental abode Vrndavana.
In the month of Kartik, we are practicing to stay in Vrindavan.
mora ei abhilāṣa, vilāsa kuñje dio vāsa
Translation:
My desire is that you will also grant me a residence in the pleasure groves of Sri Vrndavana-dhama.[ Namo Namah Tulasi Krsna Preyasi verse 3 ]
We all pray to Tulasi maharani saying, O Tulasi Maharani, my only desire is to get to reside in the Kunja where the pastimes of Sri Radha and Krsna are constantly going on. In Vrindavan, there are so many places. Among them, there are Kunjas, where the pastime of Radha and Krsna happens. So we do this Vraj Mandala Parikrama so that our desire to reside in the Kunja can be fulfilled. Anyway, we have less time. Time does not stop. But if we are Krsna Consciousness, then we live in the present only. It takes to a higher level which is beyond the limitations of time. There is no dominance or effect of the past or future. Yesterday we did Govardhan Parikrama. Today we will be doing Radha-Kunda Parikrama. Though it is popularly called Radha-Kunda Parikrama, it is the parikrama of Shyam-Kund and Radha-Kunda both. On the bank of Radha – Kund there is also a temple of Radha Gopinath.
Nityanand Prabhu’s wife Jahnava Devi sat there and performed her bhajan. She also got the darshan of Radha Gopinath. Raghunath Das Goswami’s samadhi is also at Radha-Kunda. He was the pujari of Govardhan and also he used to do Govardhan Parikrama. He worshipped Govardhan Shila which was given to him by Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Moving forward we see the 3 samadhi which is in the same place. One more samadhi of Raghunath Das, the samadhi of Raghunatha Bhatta and Krishna Dasa Kaviraja Goswami. On the place between Radha-Kunda and Shyam Kund, where they remixing there is a small Giriraj temple. After taking the darshan of Samadhis, if you move ahead on the east side you will find the Bhajan Kutir of Krishna Dasa Kaviraja Goswami. And near that, you will find the Bhajan Kutir of Raghunath Das Goswami and Sanatana Goswami also used to stay there. And there Raghunath Das Goswami used to narrate Gaur Lila. And if you move ahead on the north side you can find the temple of Radha Govind.
In the parikrama, you can find temples of Radha Govind, Radha Gopinath, and Radha Madanmohan. After doing the parikrama of Radha-Kunda and Shyam- Kunda on the south side there is a temple of Radha Madanmohan. These deities are worshipped by us the Gaudiya Vaishnavas. Near Radha Govind temple, you can take the darshan of the tongue of Govardhan. The Place where Radha- Kund and Shyama Kunda is there is the face of Govardhan. The entire Govardhan is in the shape of a peacock, it is believed so. Radha -Kund, and Shyam-Kund are the eyes. Moving ahead you can take darshan of Bhaktivinod Thakur’s Bhajan Kutir. Srila Bhaktisiddhanta Saraswati also stayed in that Kutir. In 1932 he did Vraj Mandala Parikrama. His Paduka, bed, and Chairs also there in the Kutir. Moving ahead there is a darshan of Jagannath. Moving further ahead on the left side comes the Lalita Kund. There are Kund of all 8 different Gopis and also Kunjas.
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
On the right-hand side, we have bhajan Kutir of Jiva Goswami.
Mahaprabhu had also come here. His footprints are present there. Moving further ahead comes a well on the left side. At the time of digging, they found shila that appeared from there. And blood was coming from that Shila. And that shila is worship as a tongue of Govardhan. Further, ahead we find the sitting place of Sri Madhavendra Puri. He is among our prominent Acaryas. He is the one who revealed the Srinathji deity from the ground when he got a dream. He organized grand Abhishek and 56 bhogas several times. There is also a place in Govardhan called Yatipura which is after the name of Madhavendra Puri. Further ahead is the sitting place of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. He came and stayed here when Radha-Kunda and Shyam-kund were sorts of concealed and people had forgotten about it. Gradually everyone had forgotten.
So Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu revealed these two great Kunda’s. It is a beautiful place. Further ahead on the RadhaKund parikrama route we find the Padukas of Sri Nitai. Nityanand Prabhu is non-different from Balaram. So he also used to be on a pilgrimage just like Balaram. It was when he came here that he got the news that Lord had appeared as Caitanya Mahaprabhu. There we find the lotus footprints of Nitai. Further ahead is a Manipur Temple which was donated to our beloved Swarup Damodar Maharaja. There is a samadhi of Swarup Damodar Maharaja. Then we get to see the transcendental Kunjas of the 8 primary Gopis.
divyad-vrindaranya-kalpa-drumadhah
srimad-ratnagara-simhasana-sthau
srimad-radha-srila-govinda-devau
preshthalibhih sevyamanau smarami
Translation:
In a temple of jewels in Vrindavana, underneath a desire tree, Sri Sri Radha-Govinda, served by Their most confidential associates, sit upon an effulgent throne. I offer my most humble obeisances unto Them.
So we pray that Sri Radha Govind seated on a gem-studded throne under the desire tree at RadhaKund may accept us.
So such glorious is Radha-Kunda .There is no other better place than RadhaKund in this universe. Radha-Kunda, Shyama-Kund ki jay.
So we’ll stop here today. Kindly try to join Virtual Parikrama daily. It will benefit you all.
Hari bol
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण।
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम
6 नवंबर 2020
820 स्थानों से जप हो रहा है। और हर स्थान पर एक से अधिक भक्त जप कर रहे हैं। हमारे जो बेसेस है या मंदिर है और आप जो गृहस्थ आश्रमी भक्त ह वे अपने आश्रम के और भी सदस्यो के साथ जप कर रहे है आप सभी का स्वागत है। हरि हरि। वैसे अधिकतर आजकल परिक्रमा की ही चर्चा हो रही है सारे नगर भर में सारे विश्वभर में परिक्रमा की ही चर्चा हो रही है। तो हम भी वही चर्चा कर रहे हैं, इस जप चर्चा में जिस दिन कि परिक्रमा से आप जुड़ने वाले हो उस दिन के संबंध में या एक दिन पहले के परिक्रमा के संबंधित हि कुछ कथा या चर्चा कहां जा रहा है या मैं कह रहा हूं। हरि हरि। तो परिक्रमा का पड़ाव राधा कुंड में कल रात्रि को हुआ आज रात्रि को भी होगा। कल रात आप बिताए राधा कुंड के तट पर। हरि हरि। आपकी आत्मा का विचरण तो वही होना चाहिए आपके मन को वही रखिएगा वृंदावन में। हरि हरि। आज गोवर्धन की परिक्रमा होगी गिरिराज गोवर्धन की जय गोवर्धन कि महिमा का क्या कहना उनकी महिमा स्वय गोपियों ने भी कहा और उस गीत का नाम हुआ वेणु गीत। उस वेणु गीत के अंतर्गत उन्होंने गोवर्धन के गीत गाए हैं।
हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो
यद् रामकृष्णचरणस्परशप्रमोद: ।
मानं तनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत्
पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलै: ॥ १८ ॥
( श्रीमद भागवतम 10.21.18)
हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो ऐसे उन्होंने शुरुआत की, हे अबलाओ और गोपियों को या सभी गोपियों को संबोधित करते हुए, वैसे सब साथ में ही बोल रही हैं। ऐसा ही ध्वनित होता है, ऐसा ही संकेत मिलता है सारी गोपियां मिलकर एक साथ यह वेणु गीत गा रही है। हम तो अबला है, बलहीन हैं लेकिन अयमाद्रि यह सामने जो देखो देखो तो सही यह अद्रि है अद्रि मतलब पहाड़ पर्वत। यह अद्रि जो है गोवर्धन जो है हरिदासवर्य यह हरिदास है। हम भी दासिया हैं, समझती तो है हम दास दासिया है किंतु इस गोवर्धन के समक्ष हम तो कुछ भी नहीं है। ऐसा भी विचार करती हुई स्वयं को अबला कह रही हैं। यह गोवर्धन तो बलवान है लेकिन हम तो बलहीन हैं अबला हैं। तो यह गोवर्धन कैसा है हरिदास हैं और कैसा हरिदास हरिदासवर्य वर्य मतलब श्रेष्ठ सभी हरिदासो में श्रेष्ठ है यह गिरिराज गोवर्धन ऐसा गोपियों ने कहा। यद् रामकृष्णचरणस्परशप्रमोद: और गोपीया आगे कह रही हैं कृष्ण बलराम जब इस गोवर्धन पर चढ़ते हैं, जब इस गोवर्धन पर खेलते हैं, कृष्ण बलराम के चरणों का जब स्पर्श होता है इस गोवर्धन को प्रमोदः वह मुदित होता हैै हर्षित होता है अति आह्लाद का अनुभव करता है यह गिरिराज। कितना भाग्यवान और महान है यह गिरिराज ऐसा कहती हुई वैसे विरह की व्यथा भी व्यक्त कर रही हैै यह गोपिया जब वे वेणु गीत गा रही है।
ऐसा स्पर्श हमको तो नहीं हो रहा है कृष्ण के चरणों का स्पर्श हमको तो नहीं प्राप्त हो रहा है लेकिन इस गिरिराज को प्राप्त हो रहा है प्राप्त होते ही रहता है। भगवान इस पर चलते हैं, चढ़ते हैं तो कृष्ण और बलराम के स्पर्श से यह हरिदासवर्य रोमांचित होता है। यह वृक्ष तो देखो गोवर्धन के ऊपर मानो यह रोंगटे खड़े हो गए गोवर्धन के यह जो वृक्ष हैं। मानं तनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत् और गोपीया आगे कहती है यह जो गोवर्धन है मानं तनोति मान सम्मान को बढ़ाता हैै। किस का मान सम्मान करता है यह गोवर्धन गो गायोंं का गोगनः और जो गाय के रखवाले हैं कृष्ण बलराम है और उनके मित्र है यह उनका खूब सम्मान करता है। सादर सत्कार सम्मान करता है सम्मान को बढ़ाता है यह गिरिराज गोवर्धन। तो क्या केवल सम्मान आपका स्वागत ऐसे करने से ही होता है, वैसे वह भी है माल्यार्पण भी करता है फूल खिलते हैं गोवर्धन पर तो उसीसे कृष्ण बलराम सज जाते हैं।
और बालको को भी जाने दीजिए कई प्रकार से यह गोवर्धन कृष्ण बलराम की कृष्ण बलराम के जो मित्र है संगी साथी है गाय हैं उनका सम्मान करते हैं। इसीलिए तो कहा गोवर्धन मानं तनोति मान को बढ़ाता है यह। वैसे उनके शरीर को भी अधिक रष्टपुष्ट बनाता है गोवर्धन क्या करके पानीयसूयवसकन्दरकन्दमूलै: पानीय पीने योग्य पानी उपलब्ध कराता है। कई सारे जलाश्रय है गोवर्धन में कई सारे कपात है। हरि हरि। वहां वॉटर स्पोर्ट्स भी होता है और वहां जलपान भी होता है गायों को जलपान भी होता है। गोवर्धन केे जल से पानीयसूयवस और यहां की हरी-भरी घास सुगंधित और सुमधुर घास का आस्वादन करती हैैै गाये। और कन्दरकन्दमूलै: यहा के जो कन्दराएँ गुफाए जो है वह एक तरह से वातानुकूलित है तो बाहर जब गर्मी हैं तब कृष्ण बलराम अपने मित्रों के साथ गुफा गुफाओं का आश्रय लेते हैं थोड़ा विश्राम करते हैं हां और गुफाओं के कई सारे उपयोग है। और कन्दरकन्दमूलै: और यह कंद फल मूल भी देता है कृष्ण बलराम को और उनके मित्रों को। वैसे वे घर से लंच पैकेट तो लाते ही है लेकिन साथ ही साथ जब भोजन करते हैं।
यह कंदमूल फल उसका भी आस्वादन करते हैं, उसको भी खूब भर भर पेट खाते हैं कृष्ण बलराम और उनके मित्र। इस प्रकार गोपियों ने गिरिराज गोवर्धन के गुण गाए हैं। आज हमारे ब्रजमंडल के भक्त गोवर्धन की परिक्रमा करेंगे। जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृंदावन पहुंचे वे भी परिक्रमा कर रहे थे। वैसे चैतन्य महाप्रभु ने की हुई परिक्रमा कार्तिक में नहीं हुई कार्तिक के बाद आए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृंदावन। और फिर जब भी आए पहला कार्य उन्होंने परिक्रमा का ही किया परिक्रमा करने के उपरांत चैतन्य महाप्रभु वृंदावन पहुंचे और वह भी राधा कुंड के तट पर पहुंचे। वैसे उसकी भी लीला कथा है राधा कुंड को ढूंढ के निकालने वाले खोजने वाले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही है। नहीं तो उस समय की जो परिस्थिति थी 500 वर्ष पूर्व मुसलमानों का कारोबार या फिर आक्रमण और जो हो रहा था वृंदावन की मूर्तियों की तोड़फोड़ करना और। हरि हरि। वे दुष्ट यवन मुस्लिम उनका आतंकवाद ही चल रहा था कहो। तो उससे परेशान होकर ब्रजवासी जन उन्होंने वृंदावन को छोड़ा तो वृंदावन प्रायः निर्जन बन चुका था कोई दर्शनार्थी नहीं आ रहे थे वृंदावन। हरि हरि। परिक्रमाए बंद थी या इसीलिए तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु षडगोस्वामी वृन्दो को वृंदावन भेजें और बाद में स्वयं भी वहां पहुंचे वृंदावन।
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थानार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ८ ॥
( भगवदगीता 4.8)
अनुवाद – भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूं।
इस उद्देश्य से प्रकट हुए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपनी प्रकट लीला में उन्होंने वृंदावन आकर वृंदावन में धर्म की भक्ति की स्थापना करने की जिम्मेदारी षडगोस्वामी वृन्दो को दी थी। तो चैतन्य महाप्रभु भी उसी उद्देश्य से वृंदावन पहुंचे वैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने लोकनाथ गोस्वामी को सर्वप्रथम वृंदावन भेजा था और भूगर्भ गोस्वामी भी उनके साथ थे। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं आए थे और अन्य षड गोस्वामी वृंद चैतन्य महाप्रभु के वृंदावन भेंट के उपरांत एक-एक करके वहां भेजे गए और वे पहुंच गए। फिर गौरांग महाप्रभु ने भी कुछ स्थानों को ढूंढ के निकाला और प्रकाशित किया।
षडगोस्वामी वृंदो ने भी इस कार्य को आगे बढ़ाया। राधा कुंड को खोजने का श्रेय स्वयं श्रीकृष्ण महाप्रभु को जाता है। राधा कुंड को भी खोजा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने और गोवर्धन की परिक्रमा भी की। गोवर्धन परिक्रमा के समय श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु यह जो गोपियों ने गाया हुआ गीत यह गोपी गीत नहीं है आपको बताए हैं, यह वेणु गीत है। तो वेणु गीत वाला यह गीत हन्तायमद्रिरबला हरिदासवर्यो इस गीत को इस वचन को श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु गा रहे थे सारी परिक्रमा में यही गा रहे थे गोपियों ने गाया हुआ वेणु गीत। गोवर्धन का दर्शन और गोवर्धन का स्पर्श और गोपियों ने गाया हुआ गोवर्धन का यह गीत को महाप्रभु भी गा रहे थे, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भाव विभोर हुए थे। हरि हरि। और वहां ब्रज की रज तो है ही, गोवर्धन की परिक्रमा के रज में चैतन्य महाप्रभु लौट रहे थे, मुश्किल से उठकर खड़े होते हैं और थोड़ा चलते पुनः धड़ाम से गिर जाते। ऐसी परिपाठी है कि कुछ और कई प्रकार से परिक्रमा होती है कोई-कई दंडवत परिक्रमा करते हैं।
चैतन्य महाप्रभु ऐसा नहीं किए। दंडवत परिक्रमा मतलब पैर से चलकर नहीं दंडवत करके एक दंडवत किया आगे बढ़े दूसरा दंडवत जहां पहला दंडवत समाप्त हुआ था एक पत्थर रखते हैं वहां पहुंचते हैं दंडवत करते हैं। हरि हरि। और कुछ भक्त बिना दंडवत परिक्रमा करते समय गोवर्धन का अभिषेक करते हैं, दूध का अभिषेक पूरे मार्ग में दूध का अभिषेक होता है। और कुछ लोग उन्हें चालाख कहो या आलसी कहो हमेशा बिजी चलने वाले लोग दिल्ली आगरा या जयपुर से आते हैं और अपने कार में ही बैठकर गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं। और कार की खिड़की में से बाहर एक लोटा होता है उनके पास एक कलश होता है उसको नीचे छेद होता है और गाड़ी को घुमाते हैं गाड़ी में बैठ कर फिर गोवर्धन का अभिषेक करते हैं। तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी अभिषेक कर रहे थे, अभिषेक के लिए उन्होंने कहीं से दूध या जल नहीं मंगवाया था।
आनंदले मन, प्रेमे पाझरति लोचन जैसे तुकाराम महाराज ने कहां वे आनंद के अश्रु बहा रहे थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब आनंद के अश्रु बहाते हैं तो अश्रु के बिंदु नहीं होते अश्रु की धारा बहती है। अपनी अश्रु धराओसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु गोवर्धन का अभिषेक कर रहे थे परिक्रमा मार्ग पर। परिक्रमा मार्ग की सारी धूली को भिगो रहे थे। ऐसे प्रेम का प्रदर्शन हुआ जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने गोवर्धन की परिक्रमा की। गोवर्धन राधा को प्रिय है राधा कृष्ण को प्रिय है। उनकी कई सारी लीलाएं जैसे कृष्ण की गोचरण लीला गोवर्धन की तलहटी में संपन्न होती है। कृष्ण की रासलीला भी माधुर्य लीला भी गोवर्धन पर संपन्न होती हैं।
कृष्ण की रास क्रीडा भी माधुर्य लीला भी गोवर्धन पर संपन्न होती है। कई लीलाओं की राशि यहां गोवर्धन के संबंध में, या तलहटी में, गोवर्धन के शिखर पर या सर्वत्र लीलाए संपन्न होती रहती हैं। गोवर्धन सबसे पसंदीदा जगह थी घूमने के लिए। गोवर्धन एक सौंदर्य की खान है। इसीलिए गोवर्धन रमणीय स्थली हैै। रमणे योग्य स्थल है।और फिर हमारे लिए या सभी के लिए दर्शनीय स्थली है।
हरि हरि, तो ऐसे गोवर्धन की पूजा भी कृष्ण ने प्रारंभ की है। पहलेे तो इंद्रपूजा ही करते थे। इंद्रपूजा मतलब क्या? देवताओं की पूजा, इंद्रपूजा मतलब कर्मकांड चल रहा था। कृष्ण ने रोका उसको। नंदबाबा आदि भक्तों को प्रस्ताव रखा उन्होंने कि आप गोवर्धन की पूजा क्यों नहीं करते। कृष्ण ने ही गोवर्धन की पूजा प्रारंभ करवाई, अब तक हो रही है। गोवर्धन की पूजा यह कल्पना गोवर्धन पूजा की जो परिकल्पना हैै, वह स्वयं श्रीकृष्ण की है। परिक्रमा भी जिस दिन गोवर्धन की पूजा हुई नंद बाबा ने गोवर्धन की पूजा की सभी ब्रज वासियों के साथ। और उत्सव ऐसा महा उत्सव, बड़ा विरल महोत्सव विशेष उत्सव, अविस्मरणीय महोत्सव संपन्न हुआ। यह गोवर्धन पूजा महोत्सव उस पूजा केे तुरंत उपरांत उसी दिन या सायंकाल हुई होगी पूजा करते करते, गोवर्धन परिक्रमा हुई।
पूजा करने वालों में से कृष्णा बलराम भी पूजा कर रहे थे। ब्रज वासियों के साथ गोवर्धन की पूजा हो रही थी। इतनेे में भगवान ने कहां भी था शल्योअस्मि शल्योअस्मि क्या कहा गोवर्धन ने गोवर्धन ने कहा शल्यःअस्मि मैं यह शीला हूं। यह जो गोवर्धन पूरी शीला है। यह पूरा गोवर्धन मैं हूं। तो भगवान ने गोवर्धन के रूप में दर्शन दिया। और वैसे रूप वाले गोवर्धन बन गए। गोवर्धन भी एक रूप है। उनका आकार है। आकृति हैं। किंतुु चतुर्भुज या पता नहींं कितने भुजा वाले मुख वाले कृष्ण गोवर्धन बने। और वही भोजन भी कर रहे थे। कृष्ण और बलराम ने पूजा की। उस वक्त कृष्ण ने कहा, “देखो तुम सब लोग इंद्र की पूजा कर रहे थे लेकिन कहींं इंद्र आए यहां, लेकिन जैसे ही आप ने गोवर्धन की पूजा प्रारंभ की, गोवर्धन की पूजा कर रहे थे तो, गोवर्धन प्रकट हुए गोवर्धन उपस्थित हुए”। उसी दिन परिक्रमा भी हुई। सर्वप्रथम परिक्रमा करने वालों में कृष्ण बलराम भी थे। और नंद यशोदा रोहिणी और सारा ब्रज सारा ब्रज पहुंचा था गोवर्धन पूजा के लिए। जो भी वहां पहुंचे थे पूजा के लिए उन सभी ने गोवर्धन परिक्रमा की।
हरि हरि, गोवर्धन, तुम पढ़ो और पढ़ो गोवर्धन की लीला, कथा, भगवतम में, श्रील प्रभुपाद के ग्रंथों में। और आचार्य ने भी रघुनाथ दास गोस्वामी उन्होंनेेे गोवर्धन का गुणगान वाले श्लोक अष्टक लिखे हैं। या काफी वांंग्ड़मय साहित्य की जैसे बाढ़ गोवर्धन के संबंध में उपलब्ध है। उसका श्रवन कीजिएगा। मनन कीजिएगा। कीर्तन भी कीजिए। गिरिराज गोवर्धन की जय!
ठीक हैैै, आज का समय समाप्त हुआ। आप में से किसी को कुछ कहना है तो, कहो या लिखो। आप भी गुण गाओ गिरिराज गोवर्धन के। गोवर्धन की लीला कथा और सुनाओ। हो सकता है परिवार के सदस्यों को सुनाओ या पढ़ के सुनाओ या अभी तो सुना है उसको रिपीट करो। और फैलने दो गोवर्धन की गाथा, कथा, लीला, कीर्ति।
ठीक है।
हरे कृष्ण।
और कुछ कोई सूचना घोषणा है।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
06 November 2020
Hare Krishna
Devotees from 811 locations are chanting with us today. In each location more than one devotee is chanting from baces, temples and you all grhastha ashrami / householder devotees are chanting within the homes with the family members. You are all welcome. Hari Hari!
Mostly we are talking about the parikrama, it has become the talk of the town, talk of the world. From all around the world, devotees are discussing about the parikrama. And we too are discussing about parikrama in our japa talk. We talk about the pastimes related to parikrama of the same day or of the day before.
Yesterday night’s destination of the Vraj Mandala Parikrama was Radha-Kund, did you all spent yesterday on Radha-kund ? Your soul must mesmerize in the pastimes of radha-kund and keep yourself immersed in vrindavan pastimes. So today Govardhan parikrama will take place, Giriraj Govardhan ki Jai! The glories of Govardhan are unfathomable to which the gopis have beautifully described the glories in an song called Venu Geet. …………….
hantāyam adrir abalā hari-dāsa-varyo yad
rāma-kṛṣṇa-caraṇa-sparaśa-pramodaḥ
mānaṁ tanoti saha-go-gaṇayos tayor yat
pānīya-sūyavasa-kandara-kandamūlaiḥ
Translation
Of all the devotees, this Govardhana Hill is the best! O my friends, this hill supplies Kṛṣṇa and Balarāma, along with Their calves, cows and cowherd friends, with all kinds of necessities — water for drinking, very soft grass, caves, fruits, flowers and vegetables. In this way the hill offers respects to the Lord. Being touched by the lotus feet of Kṛṣṇa and Balarāma, Govardhana Hill appears very jubilant.
[S.B. 10.21.18]
hantāyam adrir abalā hari-dāsa-varyo
yadnñí O powerless woman! it sounded that all the gopis are together addressing each other and singing together this venu geet. We are abala, powerless woman adri hari-dāsa-varyo but look at this adri, adri means mountain, this mountain Govardhan is haridasa varyaha he is haridasa and we too are dasi maidservants, but we are insignificant comparing to Govardhan the gopis thought and called themselves powerless. The Govardhan is very powerful but we are powerless, this is haridasa varyaha, meaning to be excellent or best among all the devotees.rāma-kṛṣṇa-caraṇa-sparaśa-pramodaḥ Further the gopis are describing the pastimes of Krishna and Balaram, the time when they climb on the mountain Govardhan by the divine touch of the feet of the Lord, Govardhan feels jubilant and joyful.
The gopis thus feeling the pain of separation from the Lord & thus sings the venu geet and exclaims how fortunate is this mountain Govardhan. We are not touched by the lotus feet of Krishna but this Giriraj is having the touch as both the Lord’s plays and walks on the Govardhan. By the touch of Krishna and Balaram, the Govardhan feels extreme ecstasy and see, how the trees are behaving, it seems like hair standing erect. Further the gopis says, the mānaṁ tanoti saha-go-gaṇayos tayor yat Govardhan enhances the honour. Whose honour…? Go cows go ganayo ho the caretakers of the cows, Krishna Balaram and their friends, Govardhan revere them all a lot. Govardhan welcomes them with great reverence by offering garlands, he blooms the flowers on the plants and trees to offer it so as to beautify Krishna Balaram and their friends.
Additionally the Govardhan too makes the cows, Krishna Balaram and their friends healthy, by making available drinkable water in the reservoirs. aayemadrabala haridasa varayaha There are many waterfalls and resorviors for the Lord for their water sports pastimes. The cows drink cool water and chew on fragrant, juicy grass, kandara kandamulai , the caves are air conditioned for the Lord and their friends to have rest when there is hot temperature outside along with juicy fruits and roots to eat. They all do bring their lunch from homes but in addition they also enjoy the eatables grown on Govardhan. Giriraj Govardhan ki Jai!
Thus the gopis glorified the Govardhan in beautiful ways.
Devotees of vraj mandala parikrama will perform Govardhan parikrama today. The time when Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu arrived in Vrindavan, he too performed the parikrama. Whenever Chaitanya Mahaprabhu visited Vrindavan, the first thing he did was Govardhan parikrama and then went to Vrindavan. There are many beautiful pastimes of Mahaprabhu. He is the one who discovered Radha kund.
Five hundred years ago at the time of battle when the Muslims attacked India and destroyed the temples, the deities. The wicked, vicious, godless, miscreant Muslims terrorism was at peak, the disturbed Vrajavasis left Vrindavan and thus Vrindavan had become unhabited, desloate, remote place. Visitors didn’t visit Vrindavan, the parikramas were stopped and so Chaitanya Mahaprabhu sent the six Goswami’s to Vrindavan and later himself went to Vrindavan to revive the glories of Vrindavan.
paritrāṇāya sādhūnāṁ
vināśāya ca duṣkṛtāmdharma-saṁsthāpanārthāya
sambhavāmi yuge yuge
Translation:
To deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to reestablish the principles of religion, I Myself appear, millennium after millennium.(BG 4.8)
Chaitanya Mahaprabhu therefore came to Vrindavan in his manifest form to revive the Gaudiya culture and instructed the six goswami’s to carry out the responsibilities henceforth. Initially, Chaitanya Mahaprabhu sent Lokanath Goswami and Bhugarbha Goswami to Vrindavan, gradually one by one the six goswami’s were asked to go and lastly Chaitanya Mahaprabhu himself went to vrindavan. Chaitanya Mahaprabhu himself searched and discovered the lost pastime places of Lord.
The merit discovering Radha kund especially goes to Chaitanya. Mahaprabhu himself. After that, Mahaprabhu performed Govardhan parikrama and the song sung by the gopis not the ‘gopi geet’ but the venu geet’, was recited by the Lord frequently pānīya-sūyavasa-kandara-kandamūlaiḥ during the whole govardhan parikrama. The darshan, the touch of the mountain Govardhan, the pastimes of Govardhan and singing venu geet all these made Mahaprabhu to drown in ecstasy, Mahaprabhu rolled himself in the dust of Vraja, barely stood on his feet He walked for some distance and again fell on the ground. Some devotees do Dandvat parikrama and some do abhishek of Govardhan with milk carrying a pot with them while walking.
Some smart and busy people do parikrama sitting in their motor cars and from{ outside the car window they carry the milk pot with hole on the bottom to bathe the govardhan path. Chaitanya Mahaprabhu did Govardhan parikrama but he didn’t bought milk or water to bathe the Govardhan, anandale man preme pazarati lochaî. blissful tears were flowing from Chaitanya mahaprabhu’s eyes and it wasn’t the tear drops but tear waves flowed, and from this tear waves Chaitanya Mahaprabhu Mahaprabhu bathed/abhishek the Govardhan parikrama path and the dust of Vraja! got wet. Thus in this way the love of godhead displayed when Chaitanya mahaprabhu did the Govardhan parikrama. Hari Hari!
Govardhan is dear to Radha Krishna and the gopis. The cow grazing pastimes is completed on the foothills of govardhan and the rasa lila of Krishna is too thrived on the govardhan. And many other pastimes are successfully completed on the foothills of govardhan. It’s an favourite picnic spot for Krishna Balaram and their friends, govardhan is considered to be beauty mine and therefore govardhan is scenic spot ramaniya sthal. For all of us, govardhan is worshipable place. Lord Krishna inaugurated the govardhan puja, He stooped the karmic indra puja and commenced the govardhan puja and govardhan parikrama which is still carried out till today.
The first govardhan festival was celebrated by the Lord Himself along with all the vraja vasis like Nanda Maharaj and Mother Yashoda, the cowherd friends and gopis with great festival, an exclusive festival, an unforgettable festival was this govardhan festival. And the same evening the ever first govardhan parikrama was performed, while govardhan worship was being performed by Krishna and Balaram, the mountain govardhan uttered shailosmi shailosmi what does that mean? Govardhan said shail-e-asmi I am this shila, the whole govardhan shila is me. Krishna gave the darshan in the form of govardhan with the giant face and started honouring the palatable offerings by His mouth. Then Krishna Balaram asked the vrajavasis, you were performing indra puja did he came here? But as you commenced the govardhan puja, He immediately appeared. All the vrajavasis did govardhan parikrama thereafter.
Read the pastimes of govardhan complied by Srila Prabhupada and other acharyas like Raghunath Das Goswami’s ashtakam. There is lot of literature available on Lord Govardhan, read it, contemplate on it, do kirtan and share the glories of govardhan with your friends and family.
Giriraj Govardhan ki Jai!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण!
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम से,
5 नोव्हेंबर 2020
आज 859 स्थानो सें भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं क्या हुआ ब्रम्ह मुहूरत में सबको जगना चाहिए। जीव जागो। जीव जागो। का समय है। साधना परिक्रमा और दामोदरअष्टक करना है करवाना है तो हमको उत्साही होना चाहिए।
उत्साहान्निश्चयाध्दैर्यात् तत्तत्कर्मप्रवर्तनात।
सड्ंगत्यागात्सतो वृत्ते: षड्भिर्भक्ति: प्रसिध्यति।।
(श्री उपदेशात्मक श्लोक 3)
अनुवाद: – शुद्ध भक्ति को संपन्न करने में छह सिद्धांत अनुकूल होते हैं1) उत्साही बने रहना 2) निश्चय के साथ प्रयास करना 3) धैर्यवान होना 4) नियामक सिद्धांतों के अनुसार कर्म करना( यथा श्रवण कीर्तन तथा स्मरण करना) 5) अभक्तों की संगत छोड़ देना तथा 6) पूर्ववर्ती आचार्य के चरण चिन्हों पर चलना यह छह सिद्धांत निसंदेह शुद्ध भक्ति की पूर्ण सफलता के प्रति आश्वस्त करते हैं।
न्निश्चयाध्दैर्यात् होना चाहिए। निश्चय पूर्ण होना चाहिये। हमें अपने अभ्यास, साधना को आगे बढ़ाना चाहिए। कार्तिक मास में साधना का विशेष महिमा है,फायदा हैं। कृष्ण-प्राप्ति हय याहा ह’ते कृष्ण प्राप्ति होगी। कृष्ण प्रेम प्राप्ति होंगी हरि हरि!
आप सारे की परिक्रमा रिवाइंड कर रहे हो। कल परिक्रमा व्रजमंडल परिक्रमा की जय…!
बैठे हो घर में और परिक्रमा करनी हैं वृंदावन में ऐसी सुविधा प्रभु की कृपा से हो चुकी हैं।उनके आभार मानीए जिन्होंने ऐसी व्यवस्था की हैं। घर बैठे बैठे आप लोग व्रज मंडल परिक्रमा कर सकते हो। इतना आसान करने के उपरांत भी अगर कोई परिक्रमा नहीं करें तो फिर और क्या किया जा सकता है? ईतना आसान कर दिया है हरि हरि!
प्लीज जॉइन और औरों को भी परिक्रमा जाइन करवाइए हरि हरि! परिक्रमा मधुबन में थीं। मधुबन की जय…!
मधुबन से परिक्रमा कल रास्ते में तालवन। तालवन की भी यात्रा हुई। कुमुदवन भी पार कर लिया और परिक्रमा पहुंच गई कुमुदवन और बहुलावन की सीमा पर कहो और फिर प्रात:काल में थे मधुवन में। मधुवन से परिक्रमा प्रारंभ और दो वनों कि यात्रा एक ही दिन में। वैसे कुछ एक दृष्टि से छोटे वन हैं। वैसे वह विशाल वन हैं महान वन हैं।
अभी ऐसी परिस्थिति है ये लगता है कि दो छोटे वन है और हम पार कर लेते एक ही दिन में तालवन के बारे में तो आपने पढ़ा सुना होगा सुनाहीं होगा ताल वन में वैसे मैंने कल कहा ही था तालवन में वहा तो एक समय ताल वृक्ष ही ताल वृक्ष थें। ताल वन कैसा वन ताल वृक्षों का वन।ऐसे नाम दिए गए। कुमुद वन कुमुद के पुष्प जहा खिलते हैं। उस वन का नाम हुआ कुमुद वन। एक वन का नाम हुआ तालवन ऐसे नाम दिये गये। के काम्यवन खदिर वन ऐसे अलग अलग नाम पड़ गए। हरि हरि!
भगवान ले गए अपने मित्रों को तालवन में और फल खिलाए आगे आप गधासुर ( धेनुका सुर) गधा ही था वह असुर अपने अलग-अलग रूप बना लेते हैं तो गधे के रुप में आया था वो असुर। बलराम ने वध किया हैं। हरि हरि!
भगवान जब सभी स्थानोपर असुरों का वध करते हैं।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 8)
अनुवाद: -भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
हमे उन लीलाओं का श्रवण जरूर करना चाहिए। उसका फायदा हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर समझाते है कि, उन असुरो में जो अवगुण था, दुर्गुण था। वैसा ही दुर्गुण अगर हममें है, होता ही हैं। हममें ऐसा छोटे अधिक मात्रा में दुर्गुण।यह गधा का, धेनुकासुर गधा एक तो मंद होता हैं। डल हेडेड(नीरस, बोदा)होता है और मैथुनआनंद लूटना चाहता हैं। ऐसा चाहने वाला गधा होता हैं। गधनी के पीछे दौड़ता हैं दो तो हो गए। एक तो मंद होता है गधा मंद होता है और कामवासना बड़ी तीव्र होती है गधे की और कठिन परिश्रम गधे जैसा। गधा बहुत परिश्रम करता हैं। उग्र कर्म करता रहता है या करवाता हैं। मालिक उसका उससे करवाता हैं। बहुत बड़े बोझ लादकर तो जिस व्यक्ति में ऐसी प्रवृत्ति है जो व्यक्ति गधे ही हैं। दिखते तो मनुष्य जैसे लेकिन वह गधे ही होते हैं। जब हम उस असुर के यहां गधे का वध किया बलराम ने तो वे गधे में जो अवगुण थे वही अवगुण हम में भी हैं। इस लीला का श्रवण करने से भगवान ने उस गधे का, धेनुकासुर का वध किया उस लीला का श्रवण करने से हम में जो भी अवगुण है उस गधे जैसे। अवगुण है या दुर्गुण हम में हैं। अनर्थ हम में हैं। हम लाभान्वित होते हैं। हम उन दुर्गुणों से दूर होते हैं।
याद रखिये ब्रज मंडल में कई सारे असुरों का वध होने वाला है एक के बाद एक,एक के बाद एक कृष्णकेली याने कृष्ण कि लीला है उनका श्रवण जरूर करना चाहिए। यहां व्रजमंडल दर्शन किताब में भी आप इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हो और सूची भी हैं। ताल वन से कुमुदवन चले या फिर हम पहुंच गए शंतनु कुंड कुमुद वन से भी आगे वहा पडाव होता हैं। शंतनु बिहारी भगवान का नाम है वह टिला है, मंदिर हैं। राधा शंतनु बिहारी वहा विहार करने वाले रामने वाले भगवान को शंतनु बिहारी गए थे। आज से प्रस्थान परिक्रमा का होगा और राधा कुंड की जय…! परिक्रमा राधाकुंड पहुंचने वाली हैं। रास्ते में बहुला वन से परिक्रमा आगे बड़ेगी बहुला वन ।राधा कुंड तो वृंदावन में हैं। ये पाचवा वन वृंदावन। मधुवन, तालवन, कुमुदवन,बहुलावन चार हुएऔर पाचवा वन है वृंदावन।
परिक्रमा बहुत समय के लिए वृंदावन में रहेगी फिर परिक्रमा काम्यवन जायेगी।खादिर वन कि परिक्रमा के उपरांत पुन्हा वृंदावन में परिक्रमा प्रवेश करेगी और फिर जमुना पार करके अगले वन भद्रवन में परिक्रमा प्रवेश करने वाली हैं।शंतनु कुंड से जब हम राधा कुंड की ओर जाते हैं तो एक खेचरी ग्राम आता है यह पूतना का गाँव हैं।पूतना के जन्म स्थान का दर्शन होगा वहां पर पूतना का स्मरण किया जाएगा। ये भगवान ने जो असुर वध प्रारंभ किया तो पूतना से प्रारंभ हुआ। भगवान जब छह: दिन के ही थे तब छठी का उत्सव मनाया जा रहा था उसी दिन भगवान ने पूतना का वध किया और इस पुतना के दो भाई भी थें। एक बकासुर और दूसरा अघासुर व्हाट ए फैमिली? मैं कहता हूंँ क्या परिवार हैं? बहन पूतना और भाई बकासुर यह बक बक बक करने वाला बकासुर का वध किये है भगवान खदिरवन में और अघासुर अघ मतलब पाप भी होता है तो पापी असुर किसका वध किए भगवान वृंदावन में एक सरपोली नाम का गांव भी हैं। सरपोली उसका नाम वज्रनाभ जी ने हीं दिया होगा भगवान के पपौत्र।
वृंदावन का पुनः निर्माण इत्यादि की स्थापना कर रहे थें। वे नामकरण भी कर रहे थें। शांडिल्य ऋषि ने उनको आदेश दिया था। ऐसा कार्य वे करें। ब्रजमंडल के गौरव की पुनः स्थापना करें और अलग-अलग स्थलिओं का नामकरण करें वहां पे संपन्न हुई लिला के अनुसार यहां अघासुर का वध किए जब भगवान वत्सपाल थे और वहां जब भगवान बछड़ों को चराते थे। हम आगे बढ़ेंगे खेचरी ग्राम अब मतलब आकाश होता है खे मतलब आकाश में चरी मतलब विचरण आकाश मार्ग से भ्रमण या आकाश में विचरण करने वाली ऐसा भी शक्ति सामर्थ्य असुरों को प्राप्त होती है ऐसी सिद्धियां आकाश में विचरण कर सकते हैं ऐसी वाली थी ये पुतना इसलिए उसे खेचरी कहते हैं तो ऐसे इस खिचरी ग्राम के कुछ ही दूरी पर मयूर वन भी है मयूरवन यहां भगवान कई मयुरो के साथ नृत्य किए वैसे गोपियों के साथ रासक्रिडा करते हैं भगवान तो इस मयुर वन में असंख्य मयूर एकत्रित हुए और भगवान उनके साथ नृत्य किए थे। मयूर भी अपने नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। डांसिंग लाइक पीकॉक नृत्य कैसा हो? मयूर जैसा हो हरि हरि! उसी समय में भगवान कि प्रतियोगिता भी चल रही हैं। मयूर भी नाच रहे हैं। कृष्ण भी नाच रहें हैं।कृष्ण भी नटराज हैं।
बेस्ट ऑफ एक्टर्स बेस्ट ऑफ डांसर्स नंबर वन है कृष्ण। नटवर नागर! मयूरो नें निवेदन किया कि अब आपकी बारी हैं।भगवान नाचे नाचे और नाचे नाचते रहे। सारे मयूर भगवान के नृत्य से प्रसन्न हुए।मयूर अपने नृत्य के लिए प्रसिद्ध है उन्होंने अपने नृत्य के पश्चात भगवान से निवेदन किया कि आप भी नृत्य करो। भगवान ने उन मयूरों के नृत्य के पश्चात अत्यंत अद्भुत नृत्य किया। इससे वे सभी मयूर अत्यंत प्रसन्न हुए और वे भगवान को कुछ उपहार देना चाहते थे। मयूरों के पास उपहार देने के लिए क्या होता है? उनके पास में सबसे सुंदर वस्तु है वह है उनके पंख। इसलिए वे मयूर जोर-जोर से अपने पंखों को हिलाने लगे और कुछ पंख नीचे गिर गए तो इस प्रकार भगवान ने उस मयूरपंख को उठाया और अपने सिर पर धारण किया और इस प्रकार भगवान बन गए मयूर पुच्छधारी कृष्ण। तत्पश्चात हम बहुला वन जाते हैं वहां बहुला गाय की लीला है आप उसे पढ़ सकते हैं और श्रवण कर सकते हैं। और वहां से हम राधाकुंड जाते हैं। तो आज का परिक्रमा का पड़ाव राधा कुंड के तट पर रहेगा तो आप सभी भी आज राधाकुंड पर रहोगे क्योंकि आप भी घर से यह परिक्रमा कर रहे हो। परिक्रमा करते समय आपको कुछ असुविधा भी होती है क्योंकि वहां पर घर जैसी व्यवस्था नहीं हो पाती परंतु यही तो तपस्या है। परिक्रमा करना एक तपस्या है। तपस्या करके ही हम सुख प्राप्त कर सकते हैं।
नायक देह देहभाजां नृलोके कष्टान्कामानर्हते विड्भुजां ये।
तपो दिव्यं पुत्रकामेष्टि येन सत्त्वम् शुध्द्येद्यस्माध्दह्यसौखयं त्वनन्तम्।।
(श्रीमद्भागवतम् स्कंध 5 अध्याय 5 श्लोक 1)
अनुवाद: – भगवान ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा “हे पुत्रों, इस संसार के समस्त देश धारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इंद्रियतृप्ति के लिए ही दिन रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कुकर- सूकर भी करते कर लेते हैं।मनुष्य को चाहिए कि भर्ती का दिव्य पद प्राप्त करने के के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्वत जीवन का आनंद मिलता है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला हैं।
इस प्रकार परिक्रमा में जो तपस्या हम करते हैं उससे हम परम सुख को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान कहते हैं।
यत्करोषि यदश्रासि यज्जुहोषि ददाति यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्।।
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 27)
अनुवाद: – हे कुंतीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो
अर्थात तुम जो कुछ खाते हो जो तपस्या करते हो वह मुझे अर्पण करो। परिक्रमा में हम जो तपस्या करते हैं यह हम भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करते हैं। राधा कुंड की जय…!
अंग्रेजी में ऐसा कहा जाता है कि यदि आपको असुविधा नहीं हो रही है तो आपको लाभ नहीं होगा। तो आपको तपस्या करनी चाहिए जिससे आपको लाभ मिले। पर जब आप तपस्या करेंगे इस प्रकार तभी अंततोगत्वा आपका वृंदावन में प्रवेश होगा। राधा कुंड की महिमा अनंत है। कल हम राधा कुंड के विषय में बता रहे थे। रूप गोस्वामी ने बताया है कि ब्रज मंडल में सर्वोच्च स्थान राधा कुंड है। उससे ऊंचा और कोई स्थान नहीं है। सभी गोपियों में राधारानी श्रेष्ठ है राधा रानी से और कोई श्रेष्ठ नहीं है। सभी भावों तथा रसों में माधुर्य रस सर्वोपरी है। इसी राधा कुंड के तट पर भगवान की माधुर्य लीला संपन्न होती है। चारों और मंदिर है और मध्य में है राधा कुंड। वहां इस राधा कुंड के आसपास अष्ट सखियों के कुंज है। सुदेवी का कुंज , ललिता कुंज , विशाखा कुंज, चित्र सखी का कुंज और इस प्रकार अष्ट सखियों के कुंज है। तो वहां कुंज तथा कुंड दोनों है। वहां अलग-अलग कुंजों में अलग-अलग ऋतुएं निवास करती है।
किसी एक कुंज में वर्षा ऋतु है तो दूसरे कुंज में शिशिर ऋतु है तीसरे कुंज में शरद ऋतु है और इस प्रकार सभी अलग-अलग कुंजो में अलग-अलग ऋतुएं निवास करती है। भगवान विविध प्रकार से यहां अपनी माधुर्य लीला संपन्न करते हैं। यहां भगवान झूले भी झूलते हैं। प्रतिदिन वहां झूलन यात्रा संपन्न होती है। यहां जलकेली भी होती है, यहां भगवान जलविहार करते हैं। राधा कुंड में भगवान स्नान करते हैं। यहां राधा रानी तथा गोपियां कृष्ण के साथ इस कुंड में स्नान करती है। इस प्रकार कई प्रकार के खेल तथा लीलाएं यहां संपन्न होती है। राधा कुंड में प्रतिदिन मध्याह्न के समय 10:30 बजे से लेकर 3:30 बजे तक दोपहर में यहां मध्याह्न लीला संपन्न होती है। भगवान की अष्टकालीय लीला में से जो मध्याह्न लीला है वह राधा कुंड में संपन्न होती है।
वह लीला राधा कुंड में अथवा राधा कुंड के तट पर अथवा राधा कुंड के पास स्थित कुँजों में संपन्न होती है। राधा कुंड के तट पर हमारे षड गोस्वामी वृंद भी वहां निवास करते थे। रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधि भी वहां है। जब हम राधा कुंड पर निवास करते हैं तब 1 दिन की परिक्रमा हम राधा कुंड की करते हैं। जब हम राधा कुंड की परिक्रमा करते हैं तब वहां स्थित सारी लीला स्थलीओं का हमें दर्शन होता है। और हमें उन सभी लीला स्थलियों का वर्णन सुनने का अवसर प्राप्त होता है।
राधा कुंड की जय…।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल…!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
05 NOVEMBER 2020
Vrajmandal parikrama Day 6
Krishna’s reciprocation to Peacocks & Bahula cow.
Hare Krsna!
Jai Śrī Rādhe!
Devotees from 778 locations are Chanting with us. The numbers are dropping. This is not good. More people should join to get the benefit. We should be enthusiastic, determinant and patient. We have to increase our sādhana. This holy month of Kārtik is very auspicious and magnanimous to get Krsna prema, kṛṣṇa-prāpti hoy jāhā ha’te.
You’re all joining the Virtual Braja Mandal Parikrama sitting at home. Be thankful to those who have made this facility for all of us. If someone doesn’t join even after the parikrama is made so easy then what to say? Keep joining the parikrama and let others also join. Well, yesterday the Parikrama started from Madhuban and crossed Tālavana and Kumudvana. And now it has reached the borders of Bahulāvana. It seems that these are small forests and we have crossed them in a single day but indeed they are great and powerful forests as they are a part of Vraja. First we crossed Tālavana, you all must have heard of Tālavana, a forest of Tāla trees. Similarly, Kumudvana is a forest of Kumud trees. The Lord took His friends to Tālavana and all have started eating the sweet juicy Tāla fruits. Then Gardhbasur, a demon who lived there in the form of a donkey, attacked them. He was killed and delivered by Lord Balarāma.
paritrāṇāya sādhūnāṁ
vināśāya ca duṣkṛtām
dharma-saṁsthāpanārthāya
sambhavāmi yuge yuge
TRANSLATION
To deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to reestablish the principles of religion, I Myself appear, millennium after millennium. (B.G. 4.8)
We must hear the pastimes of the Lord killing the demons. It is beneficial for us. Śrīla Bhaktivinoda Thākura explains that every demon depicts some qualities which we should make sure that they are not in us. A donkey is dull headed, always longing for sexual pleasure and is over hard working. Most, if not all, of us have such bad qualities in us as well. We must pray to Lord Balarāma to free us of them. By hearing these pastimes, we can get free from such bad qualities. Daily Krsna and Balarāma would kill one or the other demon in Vraja. Therefore, you must listen to these different pastimes. You may also read the Braja Mandal Darshan book.
Further the parikrama goes to Shāntanu Kunda. There the deity is Śrī Shāntanubihari. From there, the parikrama reaches Rādhā Kunda. Rādhā Kunda is in Vrindavan, the 5th forest. Vrindavan is the Largest of all 12 forests. Parikrama would stay in Vrindavan for some time and then proceed to Kāmavana, Khādirvana and then again Vrindavan. After crossing Yamuna, parikrama would enter Bhadravana.
On the way to Rādhā Kunda, there’s a village called Khechari grāma, a village of Putana. Krsna killed and delivered Putana when He was only 6 days old. Putana had two brothers, Bakāsura and Aghāsura. Bakāsura was killed in Khādirvana. Aghāsura was killed in Vrindavan, Agha means sinner. When Vajranābha, the great grandson of Śrī Krsna, was re-establishing the glorious places of Vraja on the instructions of Sage Shandilya, he named this village as Sarpoli where Aghāsura was killed. Lord killed Aghāsura when He was vatsapāla, Calf herder. Well, we are crossing this Khechari village of Putana. Khe means sky and Chari means one who travels. Therefore, One who travels through the sky routes is called Khechari.
Further on the way, comes the Mayurvana. This forest has thousands of Peacocks. Peacocks are known for their beauty of dance. Krsna and His cowherd boy friends are dancing among the Peacocks. And then there is a competition between them. Krsna is Natavar-nāgar, best of actors and dancers. Everyone is enjoying so much. All the Peacocks were overwhelmed seeing Krsna dance so beautifully. They gifted Krsna with their feathers. Krsna wore those feathers on His head and since then He is known as Mayurpich dhari. Now the Parikrama moves further to Śrī Rādhā Kunda after Bahulāvana. The Parikrama shall stay here for next few days. Since you all are doing parikrama, therefore you must stay in Rādhā Kunda mentally. It may not be as comfortable as your home. But this austerity is penance. Doing parikrama is an austerity.
nāyaṁ deho deha-bhājāṁ nṛloke
kaṣṭān kāmān arhate viḍ-bhujāṁ ye
tapo divyaṁ putrakā yena sattvaṁ
śuddhyed yasmād brahma-saukhyaṁ tv anantam
TRANSLATION
Lord Ṛṣabhadeva told His sons: My dear boys, of all the living entities who have accepted material bodies in this world, one who has been awarded this human form should not work hard day and night simply for sense gratification, which is available even for dogs and hogs that eat stool. One should engage in penance and austerity to attain the divine position of devotional service. By such activity, one’s heart is purified, and when one attains this position, he attains eternal, blissful life, which is transcendental to material happiness and which continues forever. (ŚB 5.5.1)
We can get unlimited and eternal happiness by performing austerity and doing parikrama is true austerity.
yat karoṣi yad aśnāsi
yaj juhoṣi dadāsi yat
yat tapasyasi kaunteya
tat kuruṣva mad-arpaṇam
TRANSLATION
Whatever you do, whatever you eat, whatever you offer or give away, and whatever austerities you perform – do that, O son of Kuntī, as an offering to Me. (B.G. 9.27)
The Lord says, “Whatever austerity you may perform, offer it to Me.” Therefore, Whatever austerity you are performing in parikrama, offer it to Krsna. Do it for the pleasure of Krsna. It is said that, ‘No Pain No Gain’. Only if you have done some austerity, then you may get an entrance in Śrī Vrindavan.
Śrīla Rupa Goswami explains that Rādhā Kunda is the topmost place in this universe. Radharani is the best among all the gopīs. In all the moods of devotion, the mood of conjugal love is the best and topmost. The conjugal love pastimes of the Lord happens in Rādhā Kunda. Therefore, Rādhā Kunda is considered to be the best and topmost place among all the places in the universes. All the prime 8 Gopīs have their own 8 Kunjas on the bank of Rādhā Kunda. Each Kunja has its own qualities, different flowers, different seasons. There is a swinging festival and water sporting daily. Krsna along with Radharani and other Gopīs play in the waters of Rādhā Kunda. From 10:30 am to 3:30 pm (madhyan kāla, one among ashtha kālas), is the afternoon pastimes of Radha Krishna. They spend this time at Rādhā Kunda. They reside in different Kunjas. The six Goswami’s used to relish the pastimes there. Raghunātha Dāsa Goswami has his samadhi there on the bank of Rādhā Kunda. Tomorrow will be Rādhā Kunda Parikrama. You will get to know more in detail then. We shall stop here now.
Rādhā Kunda ki jai!
Gaura premanande Hari Hari bol!
There is a small announcement. We all are literally in Vrindavan. We are virtually doing the Parikrama and are also getting to hear this from the transcendental mouth of Guru Maharaj. Indeed we all are in Vrindavan but as you are all already aware that after the WHNF, we had announced that in this holy month of Kārtik, we will be making videos of people offering deepdaan and chanting the Mahā-mantra. This is a reminder for this service of making deep daan videos. Tell us your Kārtika oaths.
Also after the polling for the timings of Braja Mandal Parikrama video, it has been finalised that the videos shall be released at 12 noon. There are many activities that you can do or have already pledged and are doing. You can share it here or ‘Chant japa with Lokanath Swami’ Facebook page. You can maintain a Kārtik Sādhana Card also, mentioning the number of videos made, whether you attended Braja Mandal Parikrama, number of rounds chanted, etc. Those who will join at least 25 days of parikrama, will get a certificate of attending parikrama.
Hare Krsna!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा
दिनांक 4 नवम्बर 2020
हरे कृष्ण!
आपका स्वागत है और
वर्चुअल ब्रजमंडल परिक्रमा में भी आपका स्वागत है। हम परिक्रमा में जा रहे हैं, उस समय हमारा ऐसा भाव हो सकता है या होना भी चाहिए कि हम कृष्ण को खोज रहे हैं, कृष्ण से मिलना चाहते हैं, कृष्ण का दर्शन चाहते हैं। इसलिए हम जा रहे हैं जैसे एक समय गोपियां एक वन से दूसरे वन कृष्ण को खोजती हुई जा रही थी।
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृन्दावनं
रम्या काचिदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता।
श्रीमद् भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्
श्री चैतन्य महाप्रभोर्मत तत्रादरो न परः।। ( चैतन्य मंज्जुषा)
अनुवाद:- भगवान व्रजेन्द्रनंदन श्री कृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभवयुक्त उनका श्रीधाम वृंदावन आराध्य वस्तु है। व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी, वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है। श्रीमद्भागवत ग्रंथ ही निर्मल शब्द प्रमाण है और प्रेम ही पुरुषार्थ है- यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है। यह सिद्धांत हम लोगों के लिए परम आदरणीय है।
वैसा ही गोपी जैसा भाव हमारे अंदर हो। हरि! हरि! ऐसा भाव कहां से आएगा?
वैसे आत्मा का ऐसा भाव है। आत्मा हमारे मूल स्वरूप में
मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं स्वरूपेण व्यवस्थितिः ( श्रीमद् भागवतं २.१०.६)
अनुवाद:- परिवर्तनशील स्थूल तथा सूक्ष्म शरीरों को त्याग कर जीवात्मा के रूप की स्थायी स्थिति ‘मुक्ति’ है।
आत्मा का ऐसा भाव है, उसी को जागृत करने का प्रयास ही हमारी साधना है। साधना के अंतर्गत ही यह वर्चुअल ब्रज मंडल परिक्रमा भी साधना है। ताकि हमारे स्वरूप का जो मूलभाव है वह पुनः जागृत हो, विकसित हो, प्रकाशित हो। परिक्रमा अब मथुरा से मधुवन जाने वाली है। मधुवन की जय! एक प्रकार की गणना से मधुवन, द्वादश वनों में पहला वन बन जाता है। हरि! हरि!
नायं देहो देहभाजां नृलोके
कष्टान् कामानर्हते विड्भुजां ये।
तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं
शुद्धयेतद्यस्माद् ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम्।। (श्रीमद् भागवतं ५.५.१)
अनुवाद:- भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा : हे पुत्रों, इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है, उसे इंद्रियतृप्ति के लिए ही दिन-रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कुकर सूकर भी कर लेते हैं। मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने के लिए वह अपने आपको तपस्या में लगाएं। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्वत जीवन का आनंद मिलता है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत टिकने वाला है।
कठोर तपस्या से ध्रुव महाराज की चेतना / भावना का शुद्धिकरण हुआ। भावना पूर्ण विकसित हुई।
नारद मुनि से ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र भी प्राप्त किया था। नारद मुनि उनके गुरु बने। वह भगवान से मिलना चाहते थे। इसलिए भगवान ने गुरु को भेजा, ताकि गुरु उन्हें भगवान् से मिलवाएं। नारद मुनि ने पूरा उपदेश किया तत्पश्चात ध्रुव अपनी साधना में लगे। केवल 6 महीनों में ध्रुव ने भगवान को अपने धाम अर्थात वैकुंठ से मधुवन में पधारने के लिए मजबूर किया। हरि! हरि! भगवान को आना ही पड़ा! ध्रुव महाराज ने रिकॉर्ड ब्रेक किया। भगवान का दर्शन केवल 6 महीने में प्राप्त किया। उन्होंने ऐसी कठोर तपस्या व साधना की। इस मंत्र का उच्चारण भी किया। तब भगवान ने प्रकट होकर ध्रुव महाराज को मधुवन में दर्शन दिया। यह सतयुग की बात है। त्रेता युग में भगवान पुनः मधुवन में प्रकट हुए। वह शत्रुघ्न भगवान थे। भगवान राम भी भगवान हैं। लक्ष्मण भी भगवान हैं। भरत भी भगवान हैं। शत्रुघ्न भी भगवान हैं। राम ने शत्रुघ्न भगवान को वृंदावन भेजा और तत्पश्चात वे मधुवन पहुंचे।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥ ( श्रीमद् भगवतगीता ४.८)
अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।
उन्होंने वहां रहने वाले लवणासुर का वध किया। लवणासुर एक प्रसिद्ध असुर था, जिसने मधुवन को अपना अड्डा बनाया हुआ था। लवणासुर की गुफा अब भी मधुवन में है। जब हम वहां जाते हैं तब नीचे गुफा है और ऊपर हम बैठते हैं। आज प्रातः कालीन नाश्ता प्रसाद भी वहीं मधुवन में होगा। भगवान् त्रेतायुग में प्रकट हुए। भगवान् शत्रुघ्न का मधवन में मंदिर भी है, जरूर दर्शन कीजिए। मधुवन में सभी भक्त परिक्रमा के दौरान भगवान् शत्रुघ्न के विग्रह का जरूर दर्शन करते हैं। द्वापर युग में तो भगवान वृंदावन आ ही गए अर्थात वृंदावन में प्रकट हुए। मधुवन में एक विशेष कुंड हैं, जिसे कृष्ण कुंड कहते हैं, यहां पर कृष्ण, बलराम और उनके मित्र अपनी गायों को जल पिलाने के लिए लाया करते थे। ब्रज के कुंडों का यह भी एक उपयोग है। गोचारण लीला, ब्रज मंडल में सर्वत्र होती है। गाय वहां की हरी घास अथवा हरियाली खाती है। जब पीने का समय आता है तो उस वन के किसी बगल वाले किसी कुंड में जाकर जलपान करती हैं। ऐसा है ब्रजमंडल, जो सबको सुखी रखता है। सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
नित्यो नित्यानां चेतनाश्चेतनानाम्
एको बहूनां यो विद्धाति कामान्।
तमात्मस्थं येअनुपश्यन्ति धीराः
तेषां शान्तिः शाशवती नेतरेषाम्।। (कठोपनिषद २.२.१३)
अनुवाद:- परम भगवान नित्य हैं और जीवात्मागण भी नित्य हैं। परम भगवान सचेतन हैं। सभी जीवात्मा भी सचेतन हैं। परंतु अंतर यह है कि एक परम भगवान सभी जीवात्माओं के जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं। जो भक्तगण उस आत्मतुष्ट परम भगवान को निरंतर देखते रहते हैं या निरंतर स्मरण करते हैं, उन्हें ही शांति प्राप्त होती है, अन्यों को नहीं।
सभी की इच्छा, कामना, आवश्यकता की पूर्ति करने वाला एक ही है।
कृष्ण ने ब्रजमंडल में ऐसी व्यवस्था की है कि सब की आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। गाय वहीं पर हरी घास खाती हैं और जलपान करती हैं। वहां का कुंड प्रसिद्ध है।
जब मधुवन में निवास होता है तब भक्त उसी पवित्र कुंड में स्नान करते हैं, गोते भी लगाते हैं अथवा उस कुंड में स्नान/तैरने का आनंद भी लूटते हैं।
भगवान कृष्ण भी उस कुंड में जरूर स्नान किया करते होंगे और आजकल कर भी रहे हैं। भगवान की नित्य लीला तो संपन्न होती ही रहती है। हर कुंड का जल गाय पीती है और हर कुंड में कृष्ण अपने मित्रों के साथ स्नान भी करते हैं। हो सकता है कभी गोपियों के साथ या कभी राधा के साथ भी ।
‘मधुवन में राधिका नाचे’
नृत्य के उपरांत वे पसीने पसीने हो जाती हैं और फिर थकान भी महसूस करती हैं। तत्पश्चात जल अथवा जलाशय में प्रवेश करते हैं चाहे यमुना का जल हो या राधाकुंड का जल हो या अन्य कुंडो का जल हो। जलकेलि अर्थात जल- जल में और केलि मतलब लीला अर्थात जल में लीलाएं संपन्न होती हैं। इसी मधुवन में एक दिन कृष्ण अपने मित्रों के साथ गाय चरा रहे थे और ताल वन की ओर से मधुवन की तरफ हवा बह रही थी। हरि! हरि! हवा में आहहह! महक/ सुगंध थी। भगवान के मित्रों ने उसको सूंघ लिया तो वे समझ गए कि यह किसकी सुगंध है। ताल वन में जो ताल वृक्ष हैं अथवा ताल वृक्ष पर जो फल हैं, जो पके थे, उन्हीं पके फलों की गंध हवा/ वायु के साथ मधुवन तक पहुंच रही थी। सुगंध को सूंघने से भगवान के मित्रों के मुंह में कुछ पानी आने लगा। सभी हठ लेकर बैठ गए कि हमें वह फल खिलाओ ना, हम वह फल खाना चाहते हैं। तब कृष्ण और बलराम सारे मित्रों को लेकर मधुवन के बगल में स्थित वन अर्थात ताल वन में गए। द्वादश काननों ने तालवन दूसरे नंबर पर है। इस प्रकार ऐसी कई सारी लीलाएं मधुवन में संपन्न हुई जब द्वापर युग में कृष्ण प्रकट हुए। द्वापर के उपरांत कलियुग आ गया। कलियुग में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए।
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय!
जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए थे और चैतन्य महाप्रभु वृंदावन आए तब
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृन्दावनं
रम्या काचिदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता।
श्रीमद् भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्
श्री चैतन्य महाप्रभोर्मत तत्रादरो न परः।। ( चैतन्य मंज्जुषा)
अनुवाद:-भगवान व्रजेन्द्रनंदन श्री कृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभवयुक्त उनका श्रीधाम वृंदावन आराध्य वस्तु है। व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी, वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है। श्रीमद्भागवत ग्रंथ ही निर्मल शब्द प्रमाण है और प्रेम ही पुरुषार्थ है- यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है। यह सिद्धांत हम लोगों के लिए परम आदरणीय है।
उनका मन था कि बृजेंद्र नंदन की आराधना होनी चाहिए। साथ में और किसकी आराधना होनी चाहिए? और कौन आराध्य है? कौन आराधनीय है? धाम आराधनीय है।
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने धाम की आराधना की। कैसे की?
उन्होंने परिक्रमा करते हुए धाम की आराधना की।
धाम की सेवा की, वृंदावन में या नवद्वीप में परिक्रमा करना इसको पादसेवनम भी कहा जाता है।
श्रवणं कीर्तनं विष्णो: समरणं पादसेवनम।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।।
इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्र्चेन्नवलक्षणा।
क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येअ्धीतमुत्तमम।
प्रल्हाद महाराज ने कहा: भगवान विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रुप, साज सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान के चरण कमलों की सेवा करना, षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान की सादर पूजा करना, भगवान को प्रार्थना अर्पण करना, उनका दास बनना, भगवान को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना (अर्थात मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना) शुद्ध भक्ति की यह नौ विधियां स्वीकार की गई है। जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है, उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
नवधा भक्ति में परिक्रमा करना पादसेवनम कहलाता है। जब श्री चैतन्य महाप्रभु पहले मथुरा में पहुंचे और विश्राम घाट पर स्नान किया। वहां से कृष्ण जन्मस्थान पर गए और केशव देव का दर्शन किया। एक लोकल ब्राह्मण, चैतन्य महाप्रभु के पंडा अथवा गाइड बने। उसने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को मथुरा मंडल का दर्शन करवाया। चारों दिक्पालों की स्थलियों पर ले गया, तत्पश्चात सप्तर्षी टीला पर ले गया कुब्जा के भवन, कृष्ण जन्मस्थान आदि ऐसे सारे स्थान जब वह दिखा रहा था तब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन में ब्रज मंडल परिक्रमा करने की इच्छा जगी, उस ब्राह्मण ने कहा, क्यों नही! मैं आपको ब्रजमंडल की परिक्रमा करवाता हूं। यह मधुवन वह पहला स्थान था जहां पर वह, चैतन्य महाप्रभु को लेकर आया था। इस प्रकार चारों युगों में भगवान मधुवन में प्रकट हुए हैं अर्थात भगवान की लीलाएं संपन्न हुई है। मधुवन की जय! वैसे और भी लीला कथाएं हैं। हमारा जो ब्रज मंडल दर्शन ग्रंथ है, उसमें पढ़िएगा। हरि! हरि! आप भागवतम में भी ध्रुव महाराज का चरित्र पढ़ सकते हो। श्रील प्रभुपाद की श्री कृष्णा पुस्तक पढ़ो और वर्चुअल परिक्रमा भी ज्वाइन कीजिए। हम जो कुछ कह रहे हैं,आप वह स्थान देखोगे भी अर्थात उनका दर्शन होगा और ऑडियो विजुअल भी है अथवा उसको सुनोगे भी।
सुनोगे और देखोगे भी। सीइंग इज बेलीविंग, जब आप देखोगे तो फिर विश्वास होगा। विश्वास बढेगा। इस परिक्रमा को मिस मत करना। आपकी सुविधा के लिए परिक्रमा हेतु हमारी टीम के और भी प्रयास चल रहे हैं। जिससे आपको और अधिक पूर्ण एक्सपीरियंस मिले, पिछले कई महीनों से ब्रज मंडल परिक्रमा में नियुक्त की हुई टीम अर्थात वैष्णवों का समूह कड़ी मेहनत कर रही है। वे पूर्ण तपस्या कर रहे हैं। वे इस प्रयास से जरूर लाभान्वित होंगे। वैसे वे आपके लिए वैष्णव सेवा कर रहे हैं। वैष्णव सेवन ताकि आप परिक्रमा कर पाओ । आपको उनका आभारी होना होगा जो आपके पास, आपके घर में वृंदावन पहुंचा रहे हैं, सारे वनों को पहुंचा रहे हैं। सारी परिक्रमा को पहुंचा रहे है।
ओके
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण!
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से,
3 नवम्बर 2020
हरे कृष्ण । आप सभी का स्वागत है । परिक्रमा का कोणसा दिन चल रहा है ? तिसरा या चौथा ? परिक्रमा मथुरा में पहुंची है , इस तरह से अन्यस्थान की तैयारी भी हो रही है । मथुरा धाम की जय । कृष्ण भी अब मथुरा में प्रवेश करेंगे जन्में तो कब के थे , 10 – 11 वर्ष पूर्व जन्में थे फिर वहां से रातों-रात गोकुल में प्रस्थान किया । गोकुल में 3 वर्ष और 8 महीने रहे ऐसा विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर का कहना है , और फिर आए हैं वृंदावन में , वहां पधार चुके हैं । दीपावली के दिन प्रस्थान किया , गोकुल को छोड़कर , जमुना पार करके वृंदावन आये और फिर वहा रहे 10 – 11 साल के वह हुये थे , वहां पर अक्रूर पहुंचे हैं और उनको रथ में बिठा के उन्होंने मथुरा के लिए प्रस्थान किया है । उनका रथ अक्रूर घाट तक पहुंचा हैं , अक्रूर घाट पर या एक स्थान पर , जमुना के तट पर उन्होंने उस रथ को थोड़ा रोख लिया , कृष्ण बलराम रथ में बैठे रहे और अक्रूर ने जमुना में प्रवेश किया , वहां उन्होंने स्नान किया , जमुना मैया की जय ।
ध्यान ही कर रहे थे , गायत्री का मन ही मन में जप कर रहे थे , तब ध्यान अवस्था में अंक्रूर जी ने यह देखा , दर्शन किया या अनुभव किया , उनको आभास हुआ , आभास क्या वैसे उन्होंने देखा ही । ध्यान में देखा कि वह अनंत अशेष है , अनंतशैय्या है । अनंत शेष है और उन पर पहूड़े हुए हैं , लेटे हूये है , कृष्ण भगवान चतुर्भुज मूर्ती या वासुदेव कहिए और लक्ष्मी उनके चरणों की सेवा कर रही है और नारद आदी , शिवा आदि ब्रह्मा , वरुणेंद्र चंद्र इंद्र सभी प्रार्थना कर रहे हैं ।
सूत उयाच
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्रुब्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-बैदै:* *साङ्गपदक्रमोपनिषदैगायन्ति यं सामगाः।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥
(श्रीमद भागवत 12.13.1)
*अनुवाद :* सूत गोस्वामी ने कहा : बरहमा, वरुण, इन्द्र, रुद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद-क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता-ऐसे भगवान् को में सादर नमस्कार करता हूँ।
तब अकृर के मन मे ऐसा विचार आया , “मैंने कृष्ण बलराम को देखा क्या ?, वह कृष्ण बलराम ही बने हैं , बलराम बने हैं अनंत अशेष और कृष्ण बने हैं चतुर्भुज मूर्ति , विष्णू या वासुदेव ” तब झट से वह नदी से बाहर आकर रथ की ओर जाकर देखते हैं तो कृष्ण बलराम तो वैसे ही बैठे हैं , फिर वह तो बैठे थे । उनकी सांत्वना , समाधान तो हुआ थोड़ा , इतना परिश्रम और असुविधा भी कहो । सावधानी के साथ वह कृष्ण बलराम को वहां तक लाए थे , जमुना के तट पर लाए थे और मथुरा ज्यादा दूर नहीं थी वहां से तो पुनः जाकर वह जमुना में प्रवेश करते हैं और पुनः भी देखते हैं कि वही तो दृश्य है वहां पर , वहां पर भी वही दृश्य है , अनंतशेष भी है , चतुर्भुज मूर्ति भी है और साथ ही साथ कृष्ण बलराम भी विराजमान है । कृष्णा बलराम तो है ही , कृष्ण बलराम को मथुरा के और वह लेकर जा रहे हैं । संक्षिप्त में यह सिद्धांत की बात है या तत्व की बात है ।
*जन्म कर्म च दिव्यम एवं योगी तत्वत:* ऐसा भगवान ने कहा है । तत्व की बात , सिद्धांत की बात , ऐसा चैतन्य चरितामृत मे कहा है।
सिद्धान्त बलिया चित्ते ना कर अलस।
इहा हुइते कृष्णे लागे सुदृढ़ मानस ।।
(चैतन्य चरितामृत आदी 2.117)
*अनुवाद :* निष्ठापूर्ण जिज्ञासु को चाहिए कि ऐसे सिद्धान्तों की व्याख्या को बिवादास्पद मानकर उनकी उपेक्षा न करे, क्योंकि ऐसी व्याख्याओं से मन दृढ़ होता है। इस तरह मनुष्य का मन श्रीकृष्ण के प्रति अनुरक्त होता है।
यह सिद्धांत को समझने में आलस्य नहीं करना चाहिए , भगवान की लीला को सिद्धांत के अनुसार , तत्व के अनुसार समझना चाहिए । यह हुआ क्या है ? उस समय से इस स्थान का नाम हुआ अकृर घाट । भागवत मे इसी स्थान पर अक्रूर की प्रार्थनाये भी है । इसी स्थान पर अकृरने भगवान से प्रार्थना की थी , जब वह देख रहे थे , दर्शन कर रहे थे। अनंतशैय्या है और चतुर्भुज मूर्ति है टब अकृर ने प्रार्थना की है भागवत में कई सारी प्रार्थनाये है , स्तुतीयां है । उसमें से 1 अक्रुर की प्रसिद्ध प्रार्थना , स्तुती है , उस समय से इंस स्थान का नाम हुआ अक्रूर घाट । आप जब जाओगे , परिक्रमा में गये तो थे तब आपने उस घाट का दर्शन किया होंगा । वहां कृष्ण बलराम घाट भी है वैसे कृष्ण बलराम और अक्रूर का वहां दर्शन है और यह अकृर घाट जो स्थान है यह वृंदावन और मथुरा की सीमा मानी जाती है , पीछे रह गया वृंदावन अक्रूर जैसे आगे बढते है वहां से वहां से मथुरा में प्रवेश होता है । एक बात आपने सुनी होगी , वृंदावन को छोड़कर भगवान एक पक भी बाहर नहीं जाते ।
भगवान , *कृष्णास्तू भगवान स्वयं* जो है , वह वृंदावन में रहते हैं और वृंदावन से बाहर भी जाते हैं , बाहर जाने वाले वह फिर मथुरा के कृष्ण बन जाते हैं फिर आगे द्वारका के कृष्ण बनने वाले हैं । अक्रूर जब रथ को हाकते हुए कृष्ण बलराम को मथुरा में प्रवेश कर रहे थे , उनको ले जा रहे थे तो कृष्ण बलराम वैसे ही दिख रहे थे जैसे वृंदावन के कृष्ण बलराम दिखते थे , दर्शन तो वैसा ही है , उनका रूप तो वैसा ही दिखता है किंतु उनकी भागवत्ता की दृष्टि से कुछ बदलाव हुआ है । जैसे दूसरे तत्व का है , जब भगवान द्वारका में भगवान पूर्ण होते हैं और मथुरा में कृष्ण पूर्ण तर होते हैं मतलब अधिक पूर्ण होते हैं और वृंदावन में कृष्ण पूर्णतम होते हैं ।आप समझ रहे हो ? पूर्ण , पूर्णतर , पूर्णतम । वृंदावन के पूर्णतम कृष्ण वृंदावन मे रह जाते हैं और वह पूर्णतर बनके मथुरा में प्रवेश करते हैं और वहा भी लीला संपन्न होने वाली है । जब ऐसे मथुरा में जन्मे ही थे फिर वह मथुरा के कृष्ण वासुदेव है और वृंदावन के कृष्ण , कृष्ण है ऐसा यह भेद है और भेद नहीं भी है , यह सब अचित्य भेदाभेद की बातें हैं । हरि हरि । *मथुरा धाम की जय ।* मथुरा में जैसे ही प्रवेश हुआ है और फिर यह सब बातें हैं , मथुरा में भगवान का स्वागत और भगवान बलराम के साथ और अन्य ग्वाल बाल भी पीछे से आए थे वह भी जुट गए , नंद बाबा के साथ बृजवासी भी मथुरा आए हैं । कृष्ण जब भ्रमण कर रहे थे , मथुरा जैसी नगरी उन्होंने कभी भी नहीं देखी थी , वृंदावन में तो ग्राम है , गांव है , वन है लेकिन मथुरा तो नगरी है ,शहर है , इस नगर का भ्रमण हो रहा है ।
यह हमको भी याद है , ऐसा होता ही है , हम भी जब पहली बार गांव से शहर गए वह शहर 10 मील दूरी पर था मेरे गांव से , लेकिन 13 साल की उम्र हूई तो हमने पहली बार शहर देखा जो 10 किलोमीटर दूरी पर था । और फिर शहर की शोभा हम भी देख रहे थे , वहा की इमारते कहो या वहां के रास्ते कहो और क्या कहना ? जीवन में पहली बार हमने इलेक्ट्रिसिटी देखी , दिये (बल्ब) जल रहे हैं और कई सारी गाड़ियां हैं । हमने तो सिर्फ बैलगाड़ी देखी थी वहां मोटर गाड़ी भी थी और मैं जब अपने मित्रों के साथ तासगाव नगरी देख रहा था , वैसे सभी बालक ऐसे देखते रहते थे , आश्चर्य लगता है जब बड़े शहर को देखते हैं । कृष्णा भी कोई अपवाद नहीं है , कृष्ण भी बालसुलभ लीला खेल रहे हैं ,अपने लीलासे वह भी दर्शा रहे है कि मैं भी बालक हूं , मैं भी इस मथुरा नगरी को देखना चाहता हूं वह देख रहे थे , कृष्ण बलराम और उनके मित्र हब मथुरा देख रहे थे तब उनकी आरती उतारी जा रही थी , मथुरा वासी कृष्ण बलराम की आरती उतार रहे थे । वृंदावन में कोई कृष्ण बलराम की आरती नहीं उतरता था । वृंदावन में तो यशोदा कान पकड़ती है या छड़ी लेकर डराती है ।
यहा मथुरा में भगवान की पहचान भिन्न है , भगवान महान है ,भगवान वैभव की खान है , वैभव से संपन्न है ऐसा ज्ञान मथुरा वासियों का है तो वह आरती उतार रहे हैं । हरि हरि । कृष्ण बलराम जब मथुरा में पहुंच चुके हैं और अब वह जाना चाहते हैं , उनको रंगमंच की ओर जाना है जहा कुस्ती का मैदान कंस मथुरा नरेश ने बनाया है । कृष्णा बलराम सोच रहे थे कि जैसा देश वैसा भेष होना चाहिए । हम इस मथुरा प्रदेश में पहुंच है तो यहां का भेष हो , हम ऐसा भेष करें और उन्होंने वहां के धोबी को देखा वह बहुत सारे वस्त्र धोकेे , लेकर जा रहा था । तो उन्होंने मांगे कि ,” कुछ वस्त्र दीजिए , पहनने के लिए ।” उसने कहा , ” यह वस्त्र , मथुरा नरेश कंस महाराज के हैं और तुम उनके वस्त्र की मांग कर रहे हो ।” (हंसते हुए ) भगवान ने एक तमाचा तो नहीं मारा , उंहोणे हथेली से लेकिन गर्दन को खींचा और उसीके साथ वह नहीं रहा , उसके प्राण चले गये। और भी धोबी थे, वे अपने वस्त्र जो थे वहीं फेंक के वहां पर गए और श्री कृष्ण बलराम और उनके मित्रों ने अपने पसंद के वस्त्र पहन लिए और जा रहे थे।
लेकीन कृष्ण बलराम और उनके मित्र तो बालक थे और यह वस्त्र तो बड़े लोगों के, राजा के थे तो उनको वहां बैठ नहीं रहे थे। तो आगे जाकर उनको एक टेलरिंग शॉप ( दर्जी का दुकान ) मिला उस टेलर ( दर्जी ) ने भगवान के नाप अनुसार वस्त्र अच्छे से बना दिए। और फिर आगे बढ़े तो एक फूल के दुकान में फूल की माला की बिक्री हो रही थी तो उस दुकान के मालिक ने बिना पूछे ही कृष्ण बलराम और उनके मित्रों को मालाएं अर्पित की, लेकिन कृष्ण बलराम चाहते थे कि वस्त्र तो हो गए, तो फिर माला भी तो चाहिए! सुदामा ऐसा कुछ नाम है में भूल गया, तो शायद उसको पता चला होगा कि, जब धोबी वस्त्र नहीं दे रहा तो भगवान ने उसका क्या हाल बना दिया उसका प्राण ही ले लिया तो फूल वाले ने बेचारेने बिन मांगे ही मालाएं अर्पित की, पुष्पवृष्टि की और फिर भगवान ने विशेष कृपा भी की है। अब और आगे बढ़ते है तो कृष्ण बलराम ने देखा कि, टेडी मेडी कुब्जा जा रही है और उसके हाथ में चंदन है। अलग-अलग रंग और चंदन मिलाके वह कंस की सेवा में उसे लेकर जा रही थी मेहल कि और, तो अब वस्त्र भी ठीक से थे, मालाएं भी पहनी है अब कमी तो चंदन लेपन की ही थी, तो कुब्जा ने कृष्णा और बलराम के विग्रह का चंदन लेपन किया। और इसके साथ कुब्जा पर भगवान बड़े प्रसन्न थे, भगवान ने उपहार दिया या पुरस्कृत किए। क्या किया भगवान ने? तो कृष्ण ने अपने चरणों से उसके शरीर को उठा दिया तो जो कुब्जा टेढ़ी-मेढ़ी थी , वह सीधी हो गई! वह सुंदर दिखने लगी! फिर आप कृष्ण बलराम आगे बढ़ रहे हैं उनको जहां पर कुश्ती का मैदान है वहां पर पहुंचना है। जहां पर मुष्ठी और जानवी जैसे बड़े बड़े पहलवान और कुवलयापीड़ ये सब कृष्ण बलराम के प्रतीक्षा में है। तो कृष्ण और बलराम आगे बढ़ रहे हैं तो रास्ते में उन्होंने देखा कि, धनूरयज्ञ हो रहा है।
कंस को एक विशेष धनुष्य प्राप्त हुआ था उस की पूजा चल रही थी तो कृष्ण और बलराम वह देख रहे थे, तो आगे बढ़कर जैसे ही उन्होंने वह धनुष उठाया तो उस धनुष के दो टुकड़े हो गए, तो कृष्ण ने अपने पास एक रखा और बलराम को कहा कि, तुम अपने पास एक रखो! तो वहां पर जो उपस्थित पुरोहित और जो भी मंत्री वगैरा थे या फिर सैनिक थे वे कृष्ण बलराम की और आगे बढ़कर उनको दंडित करना चाह रहे थे और उनसे कहना चाहते थे कि क्या किया आपने ? हम यज्ञ कर रहे थे और आप ने धनुष तोड़ दिया! तो कृष्ण और बलराम ने जो धनुष था उसका एक एक टुकड़ा अपने हाथ में लिया हुआ था उसी के साथ उनके सर फोड़के सबको लिटाया। और जब धनुष तोड़ा तो उसके आवाज को कंस ने सुना और उसको बताया गया था जब उसको धनुष दिया गया था दान में कि, जो इस धनुष को तोड़ेगा तो समझ लेना वही व्यक्ति तुम्हारे रीढ़ की हड्डी तोड़ेगा और तुम्हारा सर फोड़ेगा! तो कंस को पता चला कि, यह धनुष टूटने की आवाज या ध्वनि को मैं सुन रहा हूं तो अब मेरी मृत्यु निकट आ रही है! उसको पता चला कि, यह कृष्ण बलराम जिनको मैंने अक्रूर की मदद से बुलाया यह उन्हीं की करतूत होगी, मेरी मृत्यु अब और निकट पहुंच गई है। फिर भी यह सोच रहा था कि, रास्ते में कुवलयापीड़ भी है। वह सोच रहा था कि इस पृथ्वी पर कुवलयापीड़ जैसा बलवान हाथी और कोई नहीं है। यह हाथी कंसको जरासंध ने दहेज में दिया हुआ था। उसको कुवलयापीड़ को कंस रास्ते में खड़ा किए थे, रंगमंच के द्वार पर ही उसने कुवलयापीड़ को खड़ा किया था ताकि जब यह दो बालक आएंगे तो, कुवलयापीड़ अपने पैरों के नीचे उनको कुचल डालेगा यह आपने सुंड से पीटेगा, गिराएगा, मार देगा ऐसा विश्वास था कंस का। तो अब कृष्ण बलराम और कुवलयापीड़ के मध्य में युद्ध हो रहा है हरि हरि। और फिर कृष्ण ने कुवलयापीड़ का भी वध किया।
कुवलयापीड़ धड़ाम करके गिरा है! इस घटनाक्रम का सुखदेव गोस्वामी वर्णन किए है कि, केसे कृष्णा और कुवलयापीड़ लड़े। तो कृष्ण और बलराम ने उस कुवलयापीड़ का एक-एक दात उखाड़ के निकाला और अपने कंधे पर रखकर कृष्ण बलराम उस रंगमंच की और कुश्ती का जो मंच था, उस मैदान का जो प्रवेश द्वार था वहां से प्रवेश किए। और कंस ने देखा कि, बालक तो छोटे है लेकिन कोकुवलयापीड़ के मोटे दांत को लेकर वह प्रवेश कर रहे है तो कंस तो समझ गया कि, इन्होंने कुवलयापीड़बलिया का भी कल्याण कर दिया है और उसकी जान ले ली है, अब मेरी जान बची है। तो वहां पर जो उपस्थित थे उन सभी के अलग-अलग भाव का भी वर्णन आता है। स्त्रियां है, बुजुर्ग लोग है और कई प्रकार के लोग है तो उन्होंने भिन्न-भिन्न समझा या कृष्ण और बलराम का अनुभव किया। और कंस ने भी अनुभव किया कि, यह मेरी मृत्यु है! और कुश्ती शुरू हो गई। तो कृष्ण और बलराम में जो पांच विशेष योद्धा या पहलवान थे चल, कौशल मुश्टी तो इन सभी को परास्त किया और उनकी जान उस रंगमंच में चली गई। और फिर और भी कई पहलवान से जो कतार में खड़े हुए थे वे वहां से भाग गए। तो कृष्ण जब कंस मामा की और आगे बढ़े तो वह एक बड़े सिहासन पर विराजमान थे और कृष्ण ने कंस को पीछे घसीट लिया और उन्हें कुछ ज्यादा करना नहीं पड़ा थोड़ी सी कुश्ती हुई और सब समाप्त!
मामा नहीं रहे! कंस के कंक इत्यादि 8 भाई थे, वे आगे बढ़े तो फिर बलराम ने कंस के भाइयों का वध किया। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! उसी के साथ फिर पुष्पवृष्टि हुई। एक अग्रगण्य दुष्ट का संहार हुआ! सारे संसार को हर्ष हुआ देवता पुष्पपुष्टि करने लगे, अप्सराओं ने नृत्य किया, गंधर्व गीत गा रहे है। हरि हरि। तो कृष्ण कंस के शरीर को मथुरा में घसीटते हुए ले कर जा रहे है और दिखा रहे है, देखो! उसे एक चूहे जैसा पकड़ कर सभी को दिखा रहे थे और कह रहे थे, अब निर्भर हो जाओ अब डरने की कोई जरूरत नहीं! और ऐसा भी सुनने को आता है कि, यमुना के तट पर कुछ क्षण के लिए विश्राम किया है और उसी के उपरांत अपने माता पिता यानी देवकी और वसुदेव के साथ मिलन हुआ है। जब कृष्ण जन्मे थे तभी उनसे मिले थे, और बलराम तो मिले भी नहीं थे, उनका तो गर्भातरन हुआ था। उनका सातवां पुत्र बलराम तो उनसे पहली बार मिल रहे थे। और कृष्ण दूसरी बार मिले थे लेकिन पहली बार कुछ घंटों या मिनटों के लिए ही मिले थे। अब 11 वर्षों के उपरांत देवकी और वसुदेव अपने अपत्यों को मिल रहे थे, उनका पुनः मिलन हुआ है। और अब कृष्ण बलराम मथुरा में ही रहने वाले है देवकी और वसुदेव के साथ।
मथुरा धाम की जय!
कृष्ण बलराम की जय!
वसुदेव देवकी की जय!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
ठीक है! तो परिक्रमा भी देखते रहो, सुनते रहो! यह भी कार्तिक व्रत का एक अंग है। और यह प्रातकालीन जप और यह जपा टॉक जो चल रहा है। और दामोदर मास में दीपदान कर रहे हो? चंद्रिका माताजी आरवदे में हो या दुबई में है? और भक्तों को भी इस जापा टॉक में जोड़ो और सायंकाल के परिक्रमा में भी जोड़ो! और उनके दीपदान भी करवाओ! बेंगलुरु में तो हो रहा है। और लोगों पर कृपा करो उनको भी दामोदर दे दो! ले लो दामोदर, ले लो कृष्ण! ठिक है। हरे कृष्ण!
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जप चर्चा
पंढरपुर धाम से
2 नवम्बर 2020
हरि हरि…..
*जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः*
*श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि*
*दयित दृश्यतां दिक्षु तावका-*
*स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते*
आज हमारे साथ 851 स्थानों से भक्त जब कर रहे।
*दामोदर मास की जय…..*
*कार्तिक व्रत की जय….*
कार्तिक व्रत संपन्न करते हुए हमें वृंदावन पहुंचना है या वृंदावन पहुंचकर हमें कार्तिक व्रत को पूरा करना है।
इस महीने हरे कृष्ण महामंत्र का जप भी करते हैं तो यह महामंत्र हमको वृंदावन पहुंचा ही देता है क्योंकि इस मंत्र के देवता है राधा कृष्ण मंत्र के देवता होते हैं हर मंत्र के आराध्य देव होते है।
इस मंत्र के उच्चारण से इस मंत्र के जप से इस मंत्र के श्रवन कीर्तन से हम उस मंत्र देवता की आराधना कर रहे।
हरे कृष्ण महामंत्र के आराध्य है राधा और कृष्ण और कृष्ण के कई सारे नाम हैं राधा श्याम सुंदर या फिर राधा के भी कई सारे नाम हैं लाडली लाल भी कहते हैं बरसाने में वृषभानु नंदिनी की से एक है नंद नंदन श्री कृष्ण राधा रानी है वृषभानु नंदिनी उनके यह विशेष नाम है।
एक होता है सामान्य नाम एक है विशेष नाम या भगवान को त्रिलोकीनाथ कहना ऐसे कुछ भी नाम है वह सामान्य नाम है साधारण नाम है साधारण कह के उसका हम महत्व कम तो नहीं कर रहे हैं और नहीं होता वैसे एक मुख्य नाम और गौण नाम ऐसा उल्लेख आता है शास्त्रों में कृष्ण नाम नामों से या राधा रमन रमन एक नाम हुआ श्यामसुंदर एक नाम हुआ वृंदावन बिहारी लाल एक नाम हुआ यशोदा दुलाल एक नाम हुआ ऐसे रासबिहारी उनका नाम है वैसे यह सभी नाम उनके लीलाओं के कारण हैं और भक्तों के साथ उनके संबंध के कारण होते हैं और कुछ नाम तो उनके गुणों के कारण होते हैं भक्तवत्सल भगवान का 1 नाम है भक्तवत्सल भगवान की भक्तवत्सलता के कारण भगवान का नाम भक्तवत्सल नाम हुआ।
या फिर श्यामसुंदर नाम क्यों हुआ वह सुंदर तो हैं लेकिन वह श्याम सुंदर है घन एवं श्याम है जब मानसून बादल का जो कलर है उस रंग के कृष्ण हैं इसलिए उनका नाम श्याम सुंदर है।
भगवान के अनेक नाम और विशेष नाम है जब हम इन नामों का उच्चारण करते हैं हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करते हैं तब हम वृंदावन पहुंचते हैं हरे कृष्ण महामंत्र के देवता आराध्य वो वृंदावन वासी है अयोध्यावासी राम तो वृंदावन वासी श्री कृष्ण उनके नामों का उच्चारण करते हैं तब हम वहां पहुंच जाते हैं या फिर यह भी कहा जाता है कि जब हम उनके नामों का उच्चारण करते हैं तो फिर वह वहां आते हैं जहां आप उनके नामों का उच्चारण कर रहे हैं और वहां भगवान पधार ते हैं जहां आप जप कर रहे हो तो हो गया वृंदावन या तो फिर आप गए वृंदावन उनका स्मरण करते करते उनका नामस्मरण करते करते हैं या तो आप उन वंदावन पहुंच गए या वृंदावन बिहारी लाल भक्तवत्सल दीनदयाल है भगवान का और एक नाम है दीनादयाल नाथ एक तो लोकनाथ त्रिभुवन नाथ और एक नाम है लेकिन फिर भगवान का और एक प्रकार से नाथ कहना दीनदयाल नाथ तो दीन जो दीनदुखी है जो हम बध्द जीव हैं वह दीन है। गरीब बेचारे दीन है।
*दीनहीन यत छिल,*
*हरिनामे उद्धारिल*
*ता’र साक्षी जगाइ-माधाइ*
*जो व्रजेंद्रनन्दन कृष्ण हैं, वे ही कलियुग में शचीमाता के पुत्र (श्रीचैतन्य महाप्रभु) रूप में प्रकट हुए, और बलराम ही श्रीनित्यानंद बन गये। उन्होंने हरिनाम के द्वारा दीन-हीन, पतितों का उद्धार किया। जगाई तथा मधाई नामक महान पापी इस बात के प्रमाण हैं।*
भगवान ऐसे दीनादयालद्र जब भगवान हम जैसे दीनों को भगवान देखते हैं या भगवान की दृष्टि हमारी और होती है हम पर होती हैं तो फिर क्या होता है कुछ होता है दयालद्र वह दीनानाथ है।
भगवान को दीनानाथ भी कहा जाता है दीनों के नाथ *दीनबंधु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ* दीनानाथ एक दिन है एक दीन है दिन मतलब दिवस और दीन मतलब गरीब बेचारा जय दो शब्द है तो दीनदयाल जब दिनों की ओर देखते हैं और फिर क्यों होता है उनके हृदय में आद्रता उत्पन्न होती हैं।
*तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः*
*नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता*
*भगवद्गीता 10.11*
*अनुवाद:-*
*मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |*
*तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः* अनुकम्प भगवान का हॄदय हैं आद्रता दिख जाता है दयादत्रा के कारण खासकर हम प्रातकाल में देखते हैं।
कई बार हम देखते हैं उद्यान में या खेत में पेड़ों के पत्ते हैं उस पर दवबिंदू उसको आद्रता कहते हैं तो वैसा ही होता है भगवान के हॄदय में आद्रता उत्पन्न होती है। वह है दीन दयालअद्र्
भगवान ने कहा है अनुकंपात या भगवान का व्रत है एक कंपपीत होता है। अपने ही जीव की स्थिति को जब वो देखते हैं। इसी लिए भी तो वह अवतार लेते हैं।
*लोकांनाम त्राणकारणांत गोलोकंच परित्यज्य लोकांनाम त्राणकारणांत*
लोगों को या बद्ध जीव जो परेशानियां झेल रहे हैं उसका कुछ निवारण करने के लिए कुछ इन को राहत देने के लिए या उन को उठाओ बंधन से मुक्त करने के लिए भगवान
*गोलोकंच परित्यज्य लोकांनाम त्राणकारणांत*
भगवान प्रकट होते हैं।
भगवान इस के लिए विख्यात है दीनदयालद्र नाथ नाम से साथ ही जो माधवेन्द्र पूरी की प्रार्थना है उसमें ऐसे हो प्रार्थना करते हैं कि…..
हे दीनदयाल नाथ,मथुरा नाथ, कदा अवलोक्यसे….. राधारानी का ये भाव है या वचन हैं वृंदावन को माधवेन्द्रपुरीपाद ने व्यक्त किया उनकी उनके प्रार्थना के लिए वह प्रसिद्ध है।
इन दिनों में उनके प्रार्थना और को पुनः पुनः वह कह रहे हैं हे दीनदयाद्र्रनाथ हे मथुरा नाथ कब दोगे दर्शन यह दीनदयालद्र नाथ और मथुरा नाथ हमारी ऑनलाईन परिक्रमा मथुरा पोहोच गई या पोहोच रही हैं। भगवान बन गए मथुरानाथ मथुरा वासी बन गए वृंदावन को छोड़ा…
सोडुनिया गोपीया कृष्ण मथुरेसि गेला
वृंदावन को छोड़े और अक्रूर ले गए हैं कृष्ण बलराम को मथुरा मथुरा वासी बने कृष्ण और बिचारी गोपियां वीरह के मारे मर रही है।
तब उनके यह वचन है कब दर्शन देंगे कब दर्शन देंगे तो यह उच्च भाव यह गोपी भाव है माधवेन्द्र पूरी ऐसी प्रार्थना किया करते थे राधा रानी के भाव है।
वैसे यह भाव इतना ऊंचा है चैतन्य चरितामृत में लिखा है इस प्रार्थना के संबंध में से प्रार्थना केवल तीन व्यक्ति ही जानते थे वह थे माधवेंद्र पुरी तो है ही और फिर दूसरे राधा रानी और तीसरे श्री कृष्ण चौथा कोई नहीं था इस प्रार्थना का जो भाव भावार्थ सार है जाननेवाला फिर मथुरा में कृष्ण ने जन्म लिया था परिक्रमा में देख रहे हो या देखोगे सुनोगे मथुरा सोफा गोस्वामी रहे हैं मथुरा के लिए वैकुंठ से भी श्रेष्ठ है मथुरा क्योंकि भगवान का वैकुंठ में जन्म नहीं होता जन्म लेने के लिए वह मथुरा हो जाते हैं वह जन्म मथुरा में लेते हैं।
जन्म लेते या प्रकट होते हैं वसुदेव देवकी का पुत्र बनकर विशेष रसास्वादन होगा वात्सल्य रस का आस्वादन कृष्ण भी करेंगे वसुदेव देवकी भी करेंगे ऐसा रसास्वादन और जन्म में लेने की लीला वसुदेव और देवकीनंदन को मथुरा में ही होते हैं बैकुंठ में नहीं इसीलिए वैकुंठ से विशेषताएं मथुरा मथुरा धाम की जय और फिर आगे रुपगोस्वामी कह रहे हैं मथुरा से भी श्रेष्ठ है ब्रजमंडल श्रेष्ठ है *व्रज मंडल की जय…..*
जहां द्वादश कानन है और फिर जिस द्वादष कानन में भगवान ने लीला की थी इसलिए ब्रजमंडल मथुरा से श्रेष्ठ हैं।
मथुरा से भी श्रेष्ठ है तो गोवर्धन श्रेष्ठ हैं आप इस स्क्रीन में देख रहे हो गिरिराज गोवर्धन की जय……
वैसे गो-वर्धन आप गायों को भी देख सकते हो आप गिन रहे हो कितनी गाय हैं।
वन टू थ्री……
गो-वर्धन गो मतलब गाय और वर्धन का मतलब उसका विस्तार या विकास उसकी पुष्टि जो गायकी करता है वह गोवर्धन इसी के साथ इसका नाम गोवर्धन फिर वहां का जो जल है कहां की घास है कंदमूल पर है उनके पिता है गोवर्धन ब्रजमंडल में गोवर्धन श्रेष्ठ हैं।
और गोवर्धन से भी श्रेष्ठ है राधा कुंड क्योंकि वह राधा का कुंड है और भगवान को राधा कुंड उतना ही प्रिय है जितनी राधा उनको प्रिय है। वैसे और कोई व्यक्तित्व है जो कृष्ण को अधिक प्रिय होगा पहला क्रमांक राधा से और कोई प्रिय नहीं है राधा जितने प्रिय है उतना ही राधा कुंड कृष्ण को प्रिय है राधा सर्वोपरि तो राधा का कुंडली सर्वोपरि है राधा कुंड से और कोई स्थान श्रेष्ठ नहीं है और मथुरा की अपनी महिमा है ही कृष्ण का जन्म स्थान मथुरा सारे ब्रह्मांड में एक स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण जन्म लिया और वह है मथुरा धाम की जय जन्मे तो मथुरा से उन्होंने प्रस्थान भी किया और फिर गोकुल में और अन्य वनों में गोकुल महाबन है गोकुल को महाबन कहते हैं गोकुल में भी रहे कुछ वर्ष और वीर यमुना को पार किए अकेले नहीं सारे यमुना वासी दिवाली के दिन दामोदर लीला नंद भवन में ही संपन्न हुई डोरी से बांध दिया उखल से
वह दिवाली का दिन था।
श्रीशुक उवाच एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी । कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ॥१ ॥ यानि यानीह गीतानि तद्बालचरितानि च । दधिनिर्मन्थने काले स्मरन्ती तान्यगायत ॥२ ॥
*श्रीमद्भागवत 10.9*
*श्रीशुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : एक दिन जब माता यशोदा ने देखा कि सारी नौकरानियाँ अन्य घरेलू कामकाजों में व्यस्त हैं , तो वे स्वयं दही मथने लगीं । दही मथते समय उन्होंने कृष्ण की बाल – क्रीड़ाओं का स्मरण किया और स्वयं उन क्रीड़ाओं के विषय में गीत बनाते हुए उन्हें गुनगुनाकर आनन्द लेने लगीं*
*श्रीशुक उवाच एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी* एकदा मतलब 1 दिन की बात है दिवाली का दिन था गोकुल वासी वृंदावन के लिए प्रस्थान किया तो फिर वृंदावन में और अन्य वनों में लीला संपन्न हुई और फिर जब कृष्णा बस 11 वर्षों की हो गए तब लगभग वो किशोर अवस्था को प्राप्त कर रहे हैं अब तक उनकी वृंदावन में वात्सल्य में पुर्ण लीला उस माधुर्य लीला थीं वैसे लीला के तीन प्रकार है या रस है।
यह तीन प्रकार के लीलाएं संपन्न हुई यह गोकुल में प्राधान्य था वात्सल्य रस का जब वहां से प्रस्थान किया शक्तावर्त स्थान पर छटीकरा आजकल तो छटीकरा है वहां का साख्य रस संपन्न हुआ है।
और वहां पर गोचरण लीला भी हुई है और फिर अंततोगत्वा कृष्णा और बड़े हुए हैं और फिर साधा के साथ और फिर गोपियों के साथ रास क्रीड़ा शरद पूर्णिमा के दिन महारास सम्पन हुआ वो लीलायें भी संपन्न होती है भिन्न भिन्न प्रकार की लीलाओं की संपन्न होने के उपरांत और फिर कंस ने अक्रूर को भेजा था कृष्ण बलराम को लाने के लिए और फिर अक्रुर ले आए वैसे कहना तो आसान है कि अक्रूर ले आएं एक वाक्य में कहां अक्रुर ले आएं परंतु सुखदेव गोस्वामी पूरा अध्याय अक्रूर का वृंदावन के लिए प्रस्थान और उनके सारे भाव कई सारे अनुभव बता रहे हैं वृंदावन में आगमन मतलब नंदग्राम में आगमन उनका नंदग्राम में स्वागत हुआ एक रात वहां बिताने के उपरांत दूसरे दिन की प्रात काल को वहां से प्रस्थान किया उसका बहुत सुंदर वर्णन है अक्रूर जो कृष्ण बलराम को ले आए तब कृष्णा कुछ वर्षों के थे वहां पहुंचने के उपरांत फिर अन्य लीलाएं है मथुरा में प्रवेश वहां पर कई सारे मित्र और ब्रजवासी भी है नंद बाबा और धनुर यज्ञ संपन्न कर रहे हैं मथुरा नरेश कंस इस सब का बहाना बनाकर कृष्ण को बलराम जी को वहां बुलाया था।
और फिर कुश्ती का जंगी मैदान भी खड़ा किया कंस ने कुश्ती खेलते खेलते खिलवाते हुए कृष्ण को मारेंगे वे बड़े बड़े पैलवांन कृष्ण को मारना है कृष्ण का वध करना है।
लेक़िन वध हुआ कंस का मथुरा में ब्रंग टीला है जहा ब्रंगेश्वर महादेव मथुरा में पिपलेश्वर गोकर्णेश्वर और रंगेश्वर ऐसे चार स्थान है वहां शिवजी निवास करते हैं। उन्हें दिगपाल कहते हैं चारो दिशा में अलग अलग दिगपाल हैं और मथुरा की रखवाली करते हैं रंगेश्वर महादेव के पास एक रंग महल बना था वहीं पर कृष्णा कंस का वध किया हरि हरि यह मथुरा की बहुत बड़ी घटना रही उन दिनों की कृष्ण के समय की हरी हरी और कृष्ण अनन्त है और कृष्ण की लीलाएं भी अनंत है। प्ररिक्रमा को आप जॉइन करते रहिए औरों को प्रेरित कीजिए और उनसे भी व्रत करवाइए कार्तिक व्रत पहले सम्भव नही हुआ था कोई कारण के बजह से वो कहते रहते हैं मरने के लिए समय नहीं है हम कहा जाएंगे परिक्रमा करने लेकिन अभी तो यह कोरोना वायरस की कृपा से भी कह सकते हैं वह भी एक कारण बना है धाम को प्रत्येक घर में पहुंचाया जा रहा है। ऑनलाइन परिक्रमा के माध्यम से आपका काम आसान किया जा रहा है उसका फायदा उठाइए हरि हरि और रही है राधा कृष्ण की मूड में वृंदावन के मूड में या को फायदा करेगा मानसिक परिक्रमा में ठीक है वैसे आप कई भक्त हमें लिख रहे हैं हां हां हमें परिक्रमा पसंद आ रही है थैंक यू धन्यवाद जो ब्रज मंडल परिक्रमा के आयोजक वैसे उनको धन्यवाद तो हमारे जो पूरी टीम है ऑनलाइन परिक्रमा की प्रोडक्शन किया है।
आपको आभार तो उनके मानने चाहिए हमारे महात्मा विदुर और स्वरूपानंद प्रभु और कई भक्तों के प्रयास से यह कार्य हो रहा है वृंदावन मंदिर के अध्यक्ष श्री वह भी योगदान दे रहे हैं अंग्रेजी कॉमेंट्स दे रहे हैं।
पंचगोड़ प्रभु दे रहे हैं महादेवी माता जी मेरी गुरु बहन उनका भी योगदान दिनांक दिनानुकम्पा माताजी बोहोत बड़ा योगदान हैं और ऐसे कई सारे भक्त हैं साथ ही जो आर्थिक मद्त कर रहे भक्त उनका भी आभार और साथ ही हम परिक्रमा के आखरी दिन सारे नाम दिखाए जायेगे और दिखा भी रहे हैं आप उनके भी आभार मानिये….
*और साथ ही बोहोत आभार श्रील प्रभुपाद जी का*
*श्रील प्रभुपाद की जय…..*
*राधा श्याम सुंदर,कृष्ण*
*बलराम,* *श्री श्री निताई गौर सुंदर की जय…..*
*गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल…..*
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
2 November 2020
Jaya rādhe, jaya kṛṣṇa, jaya vṛndāvan
śrī govinda, gopīnātha, madana-mohan
Translation
All glories to Radha and Krsna and the divine forest of Vrndavana. All glories to the three presiding Deities of Vrndavana–Sri Govinda, Gopinatha, and Madana-mohana.
( Verse 1, Shri Vraj Dham Mahimarita )
gopya ūcuḥ
jayati te ‘dhikaṁ janmanā vrajaḥ
śrayata indirā śaśvad atra hi
dayita dṛśyatāṁ dikṣu tāvakās
tvayi dhṛtāsavas tvāṁ vicinvate
Translation
The gopīs said: O beloved, Your birth in the land of Vraja has made it exceedingly glorious, and thus Indirā, the goddess of fortune, always resides here. It is only for Your sake that we, Your devoted servants, maintain our lives. We have been searching everywhere for You, so please show Yourself to us.
(SB 10.31.1)
You are all welcome, who are chanting from 851 locations.
Damodar mas ki Jai!!
Kartik mas ki Jai. !!
We are supposed to reach Vrindavan by accomplishing Kartik months vows. Or we should complete our Kartik vows by reaching Vrindavan. When we chant Hare Krishna mahamantra, this chant delivers us to Vrindavan.
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Ram Hare Ram
Ram Ram Hare Hare
Because the deity of this chant is Radha Krishna. Each chant has a significant mentioned dejty. Through the chanting & hearing of a mantra we worship a particular form of Lord. Lord of Hare Krishna mahamantra is Radha Krishna. Hari Hari
Krsna has many many other names also. Like Radha Shyamsunder. And Radha also has many other names. In Barsana they are called as Ladli -lal. She is also known as Vrishbhanu Nandini. And Krsna is known as Nand Nandan. There are many other special names for both of them. There are ordinary names and special names also. Lord is also known as Trilokinath, who is the owner of three planets. This is a special name. And ordinary names are also there. We are not degrading them by calling ordinary names. They are never degraded. In scriptures few special names and few ordinary names are mentioned. Like
Radha Raman , Shyam Sunder, Vrindavan Bihari Lal are also name. Yashoda Dulal is also a name. Ras Bihari is another name. Few names are assigned due to some specific past time. And few names are assigned for special qualities. As Lord is popular for his unlimited kind compassion towards devotees so he is known as Bhakta Vatsala. Or why Lord is called as Shyam Sunder. ? Because he is very beautiful and his colour is like monsoon clouds so he is known as Shyam Sunder. Like this Lord has various names and has special names also. Hari Hari!. When we call these various names or we call Hare Krishna mahamantra then we immediately reach Vrindavan.
Lord of Hare Krishna mahamantra is one who resides in Vrindavan. Lord Ram resides in Ayodhya and Krishna resides in Vrindavan. When we call these specific names then we reach that place respectively. And we can also claim that when we call upon their Lordship’s names then Lord personally arrives wherever his names are being called. And when Lord arrives at the place where you are chanting his name then that place immediately transforms in Vrindavan. Either you are delivered to Vrindavan by remembering Lord and chanting Lord’s names or Vrindavan Biharilal , Deen Dayal or Bhakta Vatsal arrives there. Lord’s one more name is Deen Dayadra Nath and Loknath and Tribhuvan Nath also. Lord is also known by a special name as Deen Dayadra Nath.
Deena means fallen conditioned souls or poor helpless and Dayal means merciful.
Papi tapi yat chilo
Harinaam e uddharilo
The Lord looks upon fallen poor conditioned people like us then something happens. Since he is Deena Nath he showers mercy upon us.
Deen Bandhu Deena Nath Meri Dori tere hath.
There are two meanings of word ‘Deena’ . One is known as a day time. The other is fallen or forsaken. When the Lord looks upon a helpless soul is approaching him then his heart melts with compassion.
tesam evanukampartham
aham ajnana-jam tamah
nasayamy atma-bhava-stho
jnana-dipena bhasvata
Translation
Out of compassion for them, I, dwelling in their hearts, destroy with the shining lamp of knowledge the darkness born of ignorance.(BG 10.11)
Lord’s heart fills with compassion. We see morning dews in gardens or fields or on leaves of trees and creepers; they create dampness and moisture. Such type of dampness does not happen in Lord’s heart. The Lord’s heart melts with mercy when he knows the condition of the poor soul. That is why he advents in many forms.
golokam ca parityajya lokanam trana-karanat kalau gauranga-rupena lila-lavanya-vigrahah
Translation
“In the Kali-Yuga, I will leave Goloka and, to save the people of the world, I will become the handsome and playful Lord Gauranga.” (Markendaya Pūrana)
The conditioned souls are going through miseries so to relieve them from such pains and to deliver them from this material world Lord appears in this world and leaves his Goloka Dham. Therefore he is popular as Deen Dayadra Nath. Hari Hari!
Madhvendra Puri is praying like this
He Deen Dayadra Nath
ayi dina dayadra natha he
mathura natha kadavalokyase
hrdayam tvad aloka kataram
dayita bhramyati kim karoty aham
Translation
“0 compassionate Lord of the poor and humble! 0 Lord of Mathura! When shall I see You again? Without seeing You, My heart has become very much afflicted. Oh My beloved, I am overwhelmed. What shall I do now?” (Caitanya-caritamrta Madhya 4.197)
This mood was expressed by Madhvendra Puri Pad. Madhevendra Puri used to pray again in this verse in his last days. Repeatedly he is saying that He Deen Dayadra Nath , He Mathura Nath when will I see you. ? Our Parikrama also reached Mathura yesterday. So Lord started residing in Mathura by leaving Vrindavan.
Soduniya gopina Krishna Mathure se gela
Translation
Krsna left for Mathura and he left Gopis behind. (Marathi Abhang)
Lord left Gopis in Vrindavan. Akrūra escorted Krsna and Balram. Now Krsna becomes a citizen of Mathura and the Gopis are very sad in separation from him. At that time Gopis said these words when we will see you ? This prayer is in a higher superior mood of separation. It is a Mood of Gopi’s. Madhvendra Puri also used to pray like this. Radha Rani also has a similar mood. It is a very superior personal prayer that it is mentioned in Chaitanya Charitamrita only 3 people knew about this prayer. One is Madhvendra Puri and second is Radharani and third is Krsna. There was no fourth person who knew the deep mood of this prayer. Hari Hari!
Lord took birth in Mathura. You will see and hear about Mathura in Parikrama. Mathura is better than Vaikuntha. Because Lord never takes birth in Vaikuntha. He goes to Mathura to take birth. He appeared as son of Vasudev and Devaki and relished some special loving exchanges with them. That is known as Vatsalya Bahv. He will perform past times like taking birth and became Vasudev Nandan and being Devaki Nandan. He does such past times in Mathura only and not in Vaikuntha. Therefore Mathura is better.
Mathura Dham ki Jai!
Srila Rup Goswami explains in Upadesh Amrit that Braj Mandal is better than Mathura. Braj mandal ki Jai. !!
There are 12 forests in Braj Mandal. Lord has performed many past times in these 12 forests. Therefore Braj Mandal is better than Mathura. Govardhan is better than them.
Giriraj Govardhan ki Jai !!
You can see cows in the picture. There are three cows in the picture. Go means cow and Vardhan means to take care and to help to progress or prosper. One who satisfies cows is known as Govardhan. Govardhan provides water, grass, fruits and shelter to cows. Therefore Govardhan is better than Vraj Mandal. And Radha Kund is even better than Govardhan. Because it belongs to Radha so it is dearmost to Lord. Radha Kund is as dear to Lord as much as Radha. Is there any other personality who is more dear to Krsna than Radha ? No. She is the number one. No one else is dearer than Radha. Krsna loves Radha Kunda just the same way as Radha. Radha is sarvato pari. Therefore Radha Kund is also sarvo pari. There is no other place better than Radha Kund. Hari Hari!
Mathura has a lot of importance as Lord took birth there. It is not an ordinary thing. Mathura is Birthplace of Krsna. In whole universe there is only one place where Shri Krsna took birth and that is Mathura. Mathura Dham ki Jai !
Immediately after birth he departed for Gokul on the same night. Gokul is also known as Mahavan. For a few years he stayed in Gokul. Then he crossed the Yamunā river along with all residents of Gokul on the day of Diwali. It is the day of Damodar Lila. In Nand Bhavan Damodar Lila has taken place. Lord was tied with the wooden mortar. It was the day of Diwali.
śrī-śuka uvāca
ekadā gṛha-dāsīṣu
yaśodā nanda-gehinī
karmāntara-niyuktāsu
nirmamantha svayaṁ dadhi
yāni yānīha gītāni
tad-bāla-caritāni ca
dadhi-nirmanthane kāle
smarantī tāny agāyata
Translation
Śrī Śukadeva Gosvāmī continued: One day when mother Yaśodā saw that all the maidservants were engaged in other household affairs, she personally began to churn the yogurt. While churning, she remembered the childish activities of Kṛṣṇa, and in her own way she composed songs and enjoyed singing to herself about all those activities. ( S.B. 10.9.1-2)
Srila Sukh Dev Goswami has said once upon a time on that day residents of Gokul departed for Vrindavan. They crossed the Yamunā. And then in Vrindavan and in other forests also Krsna performed various past times. And then when Krsna was 10 or 11 years old it means in early teenage till that time Krsna relished loving exchanges in various past times enjoying Vatsalya bhava, Sakhya bhava with friends and also Madhurya lila pasttimes . In Gokul Vatsalya mood was dominant and then when he left Gokul he stayed in Chatikara. There he relished the sakhya mood. In this cowherd past times also took place. And at last when Krsna was little more older at the age of eight or nine years he began to meet Radha and other Gopis. And then Ras Dance past time took place on Sharad Poornima. These past times took place in Vrindavan.
After completion of such various past times Kamsa sent Akrūra to escort Krsna and Balram. Akrūra brought them. It is very easy to say that Akrūra brought them but Sukhdev Goswami has dedicated a whole chapter on Akrūra leaving for Vrindavan then the mood of Akrūra and his experiences. His arrival in Nand gram you will understand it in Parikrama. His welcome in Nandgram. He stayed for one night there and then the next morning he departed from there. It is very beautifully explained. Akrūra brought Krsna and Balram. And there are other pastimes in Mathura. Like entering Mathura with his cowherd friends. Residents of Braj like Nand baba also reached there. The king of Mathura, Kamsa is performing Dhanur Yagna. He called Krsna and Balaram on pretext of inviting them for Yagyana. Huge ground was established for wrestling. And there was a plan to kill Krsna while wrestling. It would have been done through great wrestlers.
But this never happened. They wanted to kill Krsna but Kamsa was killed. In Mathura there is Rang-tila or Rang Manch. Rangeshwar Mahadev is close to this in Mathura. Pipeleshwar, Bhuteshwar, Go(karneshwar and Rangeshwwar are four places where Shivji resides. He is known as Dikpal. Dik means directions. In all four directions Shivji is residing and taking care of Mathura. Rang manch is close to Rangeshwar Mahadev. Krsna’s killing of Kamsa was a great incidence in Mathura . Hari Hari!
Krsna is unlimited and his pastimes are also unlimited.
Take part in Parikrama. And inspire others to join it. You can make it as a Kartik Vrat. Earlier it was not possible because of lack of time and busy schedule. But now due to Coronavirus the Parikrama is available at home in the form of Virtual Parikrama. Thus it has been made very easy for you. Take full advantage of this. Hari Hari! It will develop devotion for Radha Krsna and Vrindavan’s mood in your mind. Okay.
Many devotees are writing that they liked the Parikrama very much. Thank you maharaj who arranged Braj mandal please. But we should be grateful to the team of virtual Parikrama team. Our Mahatma Vidur Prabhu , Swaroopanand Prabhu, President of Vrindavan temple is also contributing in English commentary. Panch Gaouda Prabhuji is also there. My god sister Mahadevi mataji is also contributing. And Dinanikampa mataji has a major role. Like that many others.
Everyday at the end of Parikrama credits are displayed. You can read them and express your thanks to them. And ultimately thank Prabhupada.
Srila Prabhupada ki Jai. !!
Radha Shyamsunder, Krishna Balram and Gaur Nitai ki Jai !!
Gaur Premanande Hari Hari Bol
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
हरे कृष्ण
जप चर्चा
पंढरपुर धाम से,
1 नवंबर 2020
आज हमारे साथ 522 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। शायद आपने प्रयास नहीं किया और उनको इस झूम कॉन्फ्रेंस में जोड़ने का। शायद आपको दया नहीं आ रही है, वह कॉन्फ्रेंस से नहीं जुड़ रहे है,देखो कुछ प्रयास करो! ताकि जो रिक्त स्थान है वह भर जाए। इस कॉन्फ्रेंस में अभी भी कुछ खाली स्थान बचे हुए है तो, आप सब देख लीजिएगा के प्रयास करके उसको हाउसफुल कर सकते हो। वैसे भी कार्तिक का महीना है, दामोदर मास की जय! तो यह विशेष पर्व है।हरि हरि।
इसको कार्तिक व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत है कार्तिक व्रत कई सारे प्रसिद्ध व्रतों में से एक महान व्रत है। तो औरोंको भी संपन्न करने दो, उनको भी स्मरण दिलवादो और आप भी लगे रहिए, जुड़े रहिए! अभी तो बस 1 दिन और एक रात बीत चुकी है अभी तो पूरा महीना शेष है। वैसे कार्तिक मास तो आज से ही प्रारंभ हो रहा है। आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है। कल थी पूर्णिमा, अश्विन मास की पूर्णिमा! मराठी में उसे कोजागिरी पौर्णिमा कहते या शरद पूर्णिमा कहते है। उस रात्रि को भगवान की कालरात्रि! श्रीमद् भागवत में सुखदेव गोस्वामी दशम स्कंध के 29 अध्याय के प्रारंभ में कहें,
श्रीबादरायणिरुवाच भगवानपि ता रात्री : शारदोत्फुल्लमल्लिकाः ।
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रित॥
श्रीमद भागवत स्कंद १० अध्याय २९ श्लोक १
अनुवाद :- श्रीबादरायणि ने कहा : श्रीकृष्ण समस्त ऐश्वर्यों से पूर्ण भगवान् हैं फिर भी खिलते हुए चमेली के फूलों से महकती उन शरदकालीन रातों को देखकर उन्होंने अपने मन को प्रेम – व्यापार की ओर मोड़ा । अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपनी अन्तरंगा शक्ति का उपयोग किया ।
यह शरद रितु है, इस रात्रि को क्या हुआ? शारदोत्फुल्लमल्लिकाः मल्लिका यानी पुष्प, पुष्प खिल गए रन्तुं मनश्चक्रे भगवान के मन में रमणने का विचार आया। रमन करने का! वे तो राधा रमन है ही! या फिर कुछ रमणीय स्थल पर राधा और गोपियों के साथ रमन करने का विचार आया। योगमायामुपाश्रित तो योग माया की और बड़े और भगवान जब संकेत करते है तो योगमाया समझ जाती है। भगवान के मन में इच्छा उत्पन्न होते ही योग माया उसे समझ लेती है और उसके अनुसार सारी व्यवस्था प्रारंभ हो जाती है। योगमायामुपाश्रित! तो ऐसे ही उस रात्रि को भी हुआ। सर्वप्रथम तो भगवान को रमने का विचार हुआ, आप भगवान वन में पहुंचे है, मुरली वादन हुआ है, और उसी के साथ सब को बुलावा और संदेश भेजे गए है। मुख्य समाचार! यहां आ जाओ, यहां पधारो! तो राधारानी और गोपियां सभी दिशाओं से भागी दौड़ी पहुंच जाती है। तो ऐसा बहुत विस्तृत वर्णन है, अब तो जपा टॉक ही चल रहा है, कोई भागवत कथा तो नहीं है इसीलिए विस्तार से नहीं कह पाते! कैसे मुरली कि ध्वनि को सुनते ही गोपियों के मन की स्थिति कैसे हुई, कैसी विचलित हुई और तुरंत कृष्ण की और दौड़ने के लिए तैयार हो गई, जो भी कार्य चल रहा था वह वही ठप हुआ। उनको घरवाले रोक रहे थे लेकिन उसकी परवाह भी नहीं कि इन गोलियों ने!और फिर पहुंच ही गई।
श्रीभगवानुवाच
स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः ।
व्रजस्यानामयं कच्चिद्भूतागमनकारणम् ॥
श्रीमद भागवत स्कंद १० अध्याय २९ श्लोक १८
अनुवाद:- भगवान् कृष्ण ने कहा, हे अति भाग्यवंती नारीगण , तुम्हारा स्वागत है । मैं तुम लोगों की प्रसन्नता के लिए क्या कर सकता हूँ ? व्रज में सब कुशल – मंगल तो है ? तुम लोग अपने यहाँ आने का कारण मुझे बतलाओ ।
जब वह पहुंचती है तो स्वागतम सुस्वागतम ! भगवान कहते हैं, आप सभी का स्वागत है, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? इतना ही नहीं आप क्यों आई हो? ऐसा भी भगवान पूछते है। तो गोपीया उत्तर देती है, क्यों आए मतलब? आपने बुलाया तो हम चले आए। प्रेम्णः गातिः अहिरेव!ऐसा एक सिद्धांत है, प्रेम की गति कैसी है? प्रेम की गति सर्प जैसी होती है, टेढ़ी-मेढ़ी होती है, सीधी नहीं होती! तो यह कृष्ण का क्यों आई हो यह प्रश्न पूछना और कहना कि ओ, अच्छा तुम यहां वन की शोभा देखने के लिए आई हो! तो ऐसी बातें कृष्ण करते है। और फिर कृष्ण सलाह देते है, अच्छा है कि तुम अपने घर लौटो! यह घोररूप रजनी!
यह रात्रि भयानक है, यह वन है यहां पशु भी है। और तुम युवती को मेरे साथ यानी मेरे जैसे युवक के साथ नहीं होना चाहिए! यह भी अनुचित है! और ऐसा कारण देकर भगवान बोलते है, लोटो जाओ! हरि हरि। तो फिर सभी गोपिया बड़ी निराश, उदास और हताश हो जाति है। और सभी मिलकर एक गीत गाती है। जो इस 29 वे अध्याय में है। श्रीमद भागवत के दशम स्कंध में पांच अलग-अलग गीत, गोपियों के ही गीत है और राधा भी उनके साथ है। और उसमें से ही यह एक गीत है। और भी प्रसिद्ध गीत है जैसे गोपिगीत भी होने वाला है, और भ्रमरगीत है, और इस पंच अध्याय में एक अध्याय गोपीगीत वाला है। और एक वेणुगीत भी होने वाला है, और एक युगलगीत है तो ऐसे अलग-अलग नाम है उन गीतों के। तो इस गीत में गोपियों ने अपना भाव प्रकट किया है। गोपीभाव! जो सर्वोपरि है। परकीय भाव!
परकीय भावे जहां ब्रिजते प्रचार
ब्रज में परकिय भाव का पूरा प्राधान्य है। इस गोपी भाव का बृजभाव का तो यह सब इसमें प्रकट है, इन गोपियोंके गाये हुए अलग-अलग गीतों में प्रगट हुआ है। तो यहां पर भी एक गीत गाई है। कृष्ण के चरणों में गाई है गोपियां, कृष्ण के चरणों में गोपिया निवेदन की है। तो फिर कृष्ण थोड़े भाव में आकर मान जाते है।अब कृष्ण उन्हे घर लौटने के लिए नहीं कह रहे है। और धीरे-धीरे रास प्रारंभ हो रहा है, कुछ कदम उठाए जा रहे है और कुछ हलचल धीरे-धीरे प्रारंभ हो रही थी। यह शरद पूर्णिमा की रात्रि की बात है अभी भी रात बीत रही है, ओर यह प्रतिपदा का प्रातकाल है। तो भगवान सभी गोपियों को वहीं छोड़कर अचानक केवल और केवल राधारानी को साथ में लेके घनघोर वन में प्रवेश करते है। सुखदेव गोस्वामी कहे है, प्रसमेय प्रसादाय गोपिया सोच रही थी कि, हम कुछ विशेष ही होंगी इसीलिए भगवान हमारे साथ खेलना चाहते है, ऐसा कुछ अहम भाव, गर्व के विचार उनके मन में आ रहे है, ऐसा कृष्ण सोच रहे थे! तो शमनाय या दामनाय, उन विचारों का दमन करने के लिए भगवान वहां से निकल पड़े और प्रसादाय राधारानी को प्रसाद देने के लिए। राधारानी पर विशेष कृपा करने के लिए, जब सभी गोपियोंके साथ वहां पर राधा थी और कृष्ण का विवाह उनके साथ वैसे ही हो रहा था जैसा अन्य गोपियों के साथ हुआ था तो यह बात राधारानी को अच्छी नहीं लगी लेकिन राधारानी सोचती थी कि, मैं विशेष हूं! मैं तो महाभावा राधा ठकुरानी हूं! मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार जैसे और उनके साथ हो रहा है! तो राधारानी के इस बात या उनके मन में उत्पन्न होने वाले विचारों पर विचार करके कृष्ण ने, क्या करने का सोचा? प्रसादाय!
राधा रानी को कुछ विशेष कृपा करने हेतु कृष्ण वहां से निकल पड़ते है। और फिर जब कृष्ण वह से अंतर्धान हुए तो सारी गोपियां कृष्ण के खोज के लिए निकल पड़ती है, और उसी के साथ फिर अध्याय 30 का वर्णन प्रारंभ होता है। गोपियां कैसी-कैसी कहा कहा पर कृष्ण को खोज रही थी और रास्ते में सभी से पूछ रही थी। है हिरण तुमने देखा है कृष्ण को? हे तुलसी, क्या तुमने देखा है कृष्ण को? अरे किसी ने तो देखा ही होगा कृष्ण को! शायद तुम कद में ऊंचाई में थोड़े छोटे हो इसीलिए शायद तुमने देखा नहीं होगा, या देख नहीं पा रहे हो। फिर वहां पर जो सबसे ऊंचा वृक्ष है उससे पूछने लगती है, तुम इतने ऊंचे हो तुम वहां से देखो तुम्हें कृष्ण दिखते ही होंगे जहां पर भी है! बता दो कहां पर हम कहां पर हैं हमारे कृष्णा? तो यह सब विरह की व्यथा है। हरि हरि।गोपियों की विप्रलंब स्थिति या उसका प्रदर्शन या उनकी व्याकुलता का वर्णन इस तीसरे अध्याय में हुआ है। तो खोज रही है, खोज रही है और फिर किसी गोपी ने सर्वप्रथम देखा कृष्ण के चरण कमलों को, तो चरण कमल में भी अलग-अलग चिन्ह से चिन्हाअंकित है।
कृष्ण के तलवे में कई सारे चिन्ह है। तो उसी से यह बात पता चली कि यह कृष्ण के चरण चिन्ह है। यह चरणचिन्ह कृष्ण के ही है! तो जिस गोपी ने वह चरणचिन्ह देखे थे उसने सब को बुला लिया। वह कहने लगी आजाओ, आजाओ देखो! यह कृष्ण के चरणचिन्ह है, ताजे है लगता है अभी अभी यहां से गुजरे हैं, पास में ही होंगे बहुत दूर तो नहीं होंगे! तो गोपियों ने चरणों का अनुसरण कियाऔर अनुसरण करते हुए आगे बढ़ रही है इतने में ही, उन्होंने और एक व्यक्ति के चरनचिन्ह देखें। तो कुछ गोपिया पूछने लगी कि, यह चरनचिन्ह किसके है? तो उत्तर में कुछ गोपियों ने कहा, पगली कहीं की! नहीं समझती? और किसके हो सकते हैं, यह चरनचिन्ह तो राधारानी के ही हो सकते है, और किसके होंगे अनयाराधितो नूनं तो कृष्ण की आराधना करनी वाली जो है ना! सीधे तो राधारानी तो नहीं कहा है। राधारानी का नाम लेते ही बस बात ख़तम। उनके शरीर पर रोमांच खड़े होते है या उन्हें कुछ भान नहीं रहता। तो शुकिष्टा! शुकदेव गोस्वामी की इष्टा है राधारानी। जैसे ईष्ट देव होते है उसी तरह इष्टा होती है देवी। इसीलिए राधारानी का नाम है शुकेष्टा। तो भागवत में शुकदेव गोस्वामी राधारानी का नाम नहीं लेते हैं। राधारानी के नाम का संकेत हुआ है तो यही स्थान है श्रीमद्भागवत का दसवां स्कंद, अध्याय 30 श्लोक 28 में।
अनयाराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वर: ।
यन्नो विहाय गोविन्द: प्रीतो यामनयद् रह: ॥
भागवत स्कंद 10.अध्याय 30. श्लोक 28
अनुवाद:- निश्चित रूप से इस विशेष गोपी ने पूरी तरह से पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, गोविंद की शक्तिशाली व्यक्तित्व की पूजा की है, क्योंकि वह उनसे बहुत खुश थे कि उन्होंने हमें छोड़ दिया और उन्हें एकांत स्थान पर ले आए।
निश्चित ही ये राधारानी के चरणचिन्ह हैं। ऐसा कुछ गोपियों ने उत्तर दिया। और भी गोपियां आगे बढ़ रही है खोजते खोजते। और भी दृश्य उन्होंने देखें हैं। और खोजते खोजते गोपियां जो हजारों लाखों में है। कहीं कहीं पर उल्लेख हुआ कि तीन करोड़ गोपियों के साथ कृष्ण रासलीला खेला करते थे। तीन करोड़ क्या होता है कुछ भी नहीं।और भी अधिक संख्या में गोपियों के साथ कृष्ण क्रीड़ा खेलते हैं। इतनी सारी गोपियों का समूह या झुंड आगे बढ़ रहा है। राधा कृष्ण दोनों को खोज रही है। थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्होंने राधारानी को देखा। पहले तो कृष्ण गोपियों से अलग हुए। और फिर राधारानी के साथ मे थे तो राधारानी के मन में भी कुछ गर्व का विचार या अभिमान का विचार आया। वैसे कृष्ण राधारानी को कंधे पर लेकर चल रहे थे और पुनः रखें भी थे। और पुनः आगे बढ़ने की समय, राधारानी ने कहां मैं थक गई हूं। मुझे उठा लो पुनः। कृष्ण बैठ गए और उन्होंने कहा बैठ जाओ। तो राधारानी कृष्ण को थोड़ा बनाना चाहती थी। उनके कंधे पर सवार होने के विचार से आगे बढ़ रही थी। कृष्ण अंतर्ध्यान हुए। और फिर जब कृष्ण का सानिध्य छूट गया तब राधारानी का क्या हाल हुआ। ऐसी स्थिति में गोपियों ने राधारानी को प्राप्त किया। तो उस समय राधारानी पुकार रही थी, कह रही थी I
हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्वासि क्वासि महाभुज ।
दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम् ॥
भागवत स्कंद १० अध्याय १० श्लोक २८
अनुवाद:- उन्होंने पुकारा: हे स्वामी! मेरे प्रेमी! हे प्रियतम, तुम कहाँ हो? आप कहाँ हैं? हे बलवान, हे मित्र, हे अपने सेवक, मुझ गरीब सेवक के समक्ष प्रकट हुए !
हे राधारानी के नाथ, हे नाथ गोपीनाथ, हे राधानाथ, हे प्राणनाथ क्वासि क्वासि कहां हो? महाभुज हे महाभुजा वाले । रमन हे नाथ हे रमन , रमन कृष्ण का नाम है। वे कृष्ण है जो रमन करते हैं। रमन में जो प्रसिद्ध हैं। तो राधा रानी पुकार रही है , हे रमन मेरे साथ आप घूम रहे थे। लेकिन अचानक आप कहां चले गए। दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम् – दास्यास्ते मैं तो आपकी दासी हूं। कृपणाया मैं कृपण, मैं बेचारी राधारानी और कृपा करो। आप जहां भी हो मुझे आप वहां पर पहुचाओ। या आप यहां आओ जहां मैं हूं। ऐसी प्रार्थना करती हुई पुकारती हुई राधारानी को सभी गोपियों ने देखा। हरि हरि। और तब गोपियां तो खोज ही रही थी और अब राधारानी भी उनके साथ हो गई। वे कृष्ण को खोज रही है। ऐसा वर्णन 30वे अध्याय में आता है। और फिर कृष्ण मिले नहीं खूब खोजने पर। तो निराश होकर राधारानी और गोपियां जमुना की तट पर पहुंच जाती है। और सब मिलकर कृष्ण के गुण गाती है। और वही जो गुण गाए और गुणों को ही नहीं गाया। उन्होंने कृष्ण की लीलाओं का भी स्मरण करके लीला का वर्णन किया है और नाम गुण रूप लीला वर्णन करते हुए गा रही है।
तम कथा अमृतं तप्त जीवनम तो यही है गोपी गीत। अध्याय संख्या 31। 29,30,31 में प्रसिद्ध गोपी गीत और साथ में राधारानी भी गा रही है। इस गोपी गीत को भी गाने की परंपरा है वृंदावन में। कार्तिक मास में दामोदराष्ट्रकम तो गाते हैं ही। कुछ भक्त गोपी गीत का भी गान करते हैं। हरि हरि। तो जब गोपियां गोपी गीत गा रही है तब भगवान का वचन है जहां भक्त एकत्रित होकर मेरा गान करते हैं कीर्तन करते हैं गुणगान करते हैं यत्र मद भक्त गायन्ति वहां मैं उपस्थित रहता हूं। मैं वहां प्रकट होता हूं। तो वैसा हुआ गोपियां गीत गा रही थी तब गाते गाते और गीत के समापन तक कृष्ण वहां पहुंच गए वहां प्रकट हुए। और फिर उसके अगले अध्याय में अध्याय संख्या 32। रास के जो पांच अध्याय हैं 32वा अध्याय जो है पुनः जब मिलन हुआ है कृष्ण गोपी राधारानी का । तो उनके मध्य का संवाद है। कृष्ण सभी को संबोधित कर रहे हैं और गोपियां अपने मनोरथ के भाव व्यक्त कर रही है। कुछ अंग संग हो रहा है। तो फिर इस अध्याय की अंत में तब संवाद हो रहा था तब कृष्ण का प्रसिद्ध वचन , हे गोपियों मैं आपका ऋणी हूं। आप जितना और जो कुछ करती रहती हो उसका बदला मैं चुका नहीं सकता। उसका बदला चुकाने में मैं असमर्थ हूं।
सर्व समर्थ कृष्ण अपनी असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। हरि हरि। यह माधुर्य रस है श्रृंगार रस है। जो गोपी राधा रानी कृष्ण के मध्य संभव है। कृष्ण कितना आनंद लूटते हैं कितने प्रसन्न होते हैं। गोपियों की जो सेवाएं हैं, भाव है,भक्ति है। तो यह कृष्ण ने कहा अपने शब्दों में गोपियों का राधा रानी का गौरव राधा ही है। और कृष्ण का कहना न पार्य अहम अब क्या कहा जा सकता है। गोपियों की महिमा राधारानी की महिमा का गान इन शब्दों में किए हैं। अध्याय संख्या 33 में रास नृत्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को जो रास हुआ ही। रास क्रीड़ा संपन्न हुई उसका वर्णन शुकदेव ने 33वे अध्याय में करा है। ये जो रासलीला संपन्न हुई पंच अध्याय में उसका जो श्रवण कीर्तन करता है परंपरा के आचार्यों की अध्यक्षता में। जिस तरह डॉक्टर से परामर्श लेते है ये दवा लो। तो यह रास क्रीड़ा यह लीला दवा के रूप में कार्य कर सकती है परंतु इसका जो खुराक लेनी है वो मनगढ़ंत या मनोधर्म से नहीं करनी है। यह मना है निषेध है। तो इसलिए कहा गया है किसी से सुने इसको । और अगर ऐसा करते है तो भक्ति प्राप्त होगी ।
काम नाम का जो रोग है उससे व्यक्ति मुक्त होगा । यह अंतिम श्लोक है इस अध्याय का।
कृष्ण कन्हैया लाल की जय!
राधारानी की जय!
राधा श्याम सुंदर की जय!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
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