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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जपचर्चा-31-10-2019
हरे कृष्ण !!!
“बातें कम जप अधिक “
जैसा कि आज श्रील प्रभुपाद की तिरोभाव तिथि है। और आजकल मैं वृंदावन में ही हूं। 1977 में भी मैं वृंदावन में ही था,14 नवंबर की तारीख थी उस साल जैसा की श्रुतकीर्ति प्रभु ने लिखा है कि मैं उस समय श्रील प्रभुपाद के बगल में ही था और श्रील प्रभुपाद को प्रस्थान करते हुए हमने देखा। अंततोगत्वा श्रील प्रभुपाद ने अंतिम श्वांस ली और मुख खोलते हुए हरेकृष्ण कहा, हम सुन नहीं पाए किंतु हम समझ सकते हैं श्रील प्रभुपाद ने उस समय क्या कहा। उस समय प्रभुपाद के जितने भी शिष्य थे, वृंदावन में पहुंच चुके थे और वहां उपस्थित थे। कमरे में तो सभी नहीं आ सकते थे अतः उन्हें बाहर ही खड़ा होना पड़ा। हम सभी कुछ कर तो नहीं सकते थे, हम सिर्फ हरे कृष्ण हरे कृष्ण ही कर सकते थे ।
सभी लोग बाहर खड़े होकर कीर्तन कर रहे थे । ऐसा नहीं था, कि कोई एक कीर्तन लीड कर रहा हो और दूसरे सभी शिष्य उसे फॉलो कर रहे हो ,बल्कि हम सभी उच्च स्वर में एक साथ कीर्तन कर रहे थे। हरे कृष्ण महामंत्र का और उस समय हम सभी ने वैसा ही किया जैसा कि प्रभुपाद कहा करते थे “क्राइंग लाइक ए बेबी” और उस समय हमारा कीर्तन बिल्कुल वैसा ही था। उस समय हम सब छोटे बालक के समान ही थे कृष्णभावनामृत में, उस वक्त जब हमारे मध्य में से श्रील प्रभुपाद ने प्रस्थान किया तो हम सब छोटे बालको जैसे ही थे ।
वैसे तो हम सब आज के दिन को शुभ दिन ही कहते हैं। किंतु आज से 42 वर्ष पूर्व अपने गुरु की वपु सेवा / वाणी सेवा से हम अनाथ हो गए, हम सब बालक और बालिका रो रहे थे । आज जब सुबह मैंने मंगला आरती में प्रभुपाद जी की समाधि पर उनकी आरती की तो उस समय मुझे उनकी बहुत सी स्मृतियां और याद सता रही थी। मेरा अनुभव तो कुछ ऐसा है कि यह दिवस प्रभुपाद का तिरोभाव नहीं बल्कि अविर्भाव या प्राकट्य दिवस जैसा होता है, क्योंकि उनकी यादें स्वत: अपने आप आ जाती हैं , और ऐसा होना भी चाहिए ।
जैसा कि मैं बता रहा था मंगला आरती के बाद जब मै कृष्ण बलराम के विग्रह के पास गया तो वहां मेरे अन्य गुरु भाई भी उपस्थित थे। सभी आपस में एक दूसरे को देख कर एक दूसरे का आलिंगन करने लगे और अभिनंदन करने लगे तभी पीछे से मुझे श्रुतकीर्ति प्रभु ने स्पर्श किया और आलिंगन किया और उसके पश्चात वही हुआ जो आज से 42 वर्ष पूर्व हुआ था। मेरा हृदय भर आया और मैं रोने लगा , श्रुतकीर्ति प्रभु प्रभुपाद के निजी सेवक हुआ करते थे और उनको आलिंगन करने से मुझे प्रभुपाद का स्मरण हो आया, हम सभी प्रभुपाद को बहुत याद कर रहे थे।
प्रभुपाद की जय.. ।
हम प्रभुपाद की वाणी सेवाएं कर सकते हैं। हम उनके आदेश, उपदेशों को समझ के उनका पालन भी कर सकते हैं।
प्रभुपाद ने पूछा कि मैं कैसे समझूंगा कि तुम मुझसे प्रेम करते हो ? उन्होंने कहा मेरे जाने के बाद किस प्रकार तुम लोग आपस में सहयोग करते हो , आपस में योगदान करते हो, इस बात पर ये निर्भर करेगा। इस्कॉन मेरा शरीर है तो इस प्रकार श्रील प्रभुपाद आज हमारे मध्य इस्कॉन के रूप में उपस्थित हैं। श्रील प्रभुपाद ने कहा मै इस्कॉन का फाउंडर आचार्य हूं। इस हरे कृष्ण आंदोलन के लिए इसके विस्तार के लिए या इसकी रक्षा के लिए तुम सब किस प्रकार एक दूसरे को सहयोग करते हो या योगदान लेते और देते हो, तो मैं समझूंगा कि आप मुझसे प्रेम करते हो। तो मैं भी यही स्मरण करता हूं जो प्रभुपाद कह रहे थे आप लोग दूसरी या तीसरी पीढ़ी के हैं प्रभुपाद आपके भी गुरु हैं
आपके शिक्षा गुरु हैं। हम लोगों ने जो बात सुनी वही मैंने आपको भी सुनाई , किस प्रकार आप लोग भी आपस में सहयोग करते हो श्रील प्रभुपाद का यह वचन आप पर भी लागू होता है। तो क्या आप लोग भी प्रभुपाद से प्रेम करते हो? तो आप निश्चित ही कहेंगे हां हम प्रभुपाद से प्रेम करते हैं। हां हम सभी को प्रभुपाद से प्रेम करना चाहिए। केवल कहना ही नहीं चाहिए कि हां हम प्रभुपाद से प्रेम करते हैं कृपया आप सभी अपने प्रेम को प्रभुपाद के प्रति दर्शाइए संसार को भी देखने दीजिए आपके इस प्रेम को प्रभुपाद के प्रति जो है ।
क्या करके ?
इसकी रक्षा करके मनसा; वाचा के द्वारा प्रयास करके, और यह प्रयास ही आपको कृष्ण प्रेम देगा और कृष्ण आपको प्राप्त होंगे हम सबका और आपका जीवन सफल होगा। “यस्य देवेपरा भक्तिः यथा देवे तथा गुरौ “। जैसा हम भगवान की भक्ति करते हैं यह प्रभुपाद जी कहा करते थे, यह वैदिक वचन है जैसे हम कृष्ण की, या चैतन्य की भक्ति करते हैं जैसा आदि भगवान् की भक्ति करते हैं वैसे ही भक्ति हमें गुरु की भी करनी चाहिए। ऐसा करने से सिद्धि प्राप्त होती है,कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा। मैं अभी परिक्रमा में जाऊंगा सभी प्रभुपाद की तिथि का उत्सव मना रहे हैं।
श्रील प्रभुपाद तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय … ।
गौर प्रेमानंदे…।
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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जपा टॉक 30 अक्टूबर
हरे कृष्ण,
आज 444 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। कार्तिक शुुक्ल द्वितीय है आज, यह तो काल की बात है जहां तक देश की बात है मैं बरसाने में हूं वह वृंदावन में है और आज बरसाने में प्रातः काल भक्तों की दीक्षा भी होगी, इसीलिए मैं बरसाने में हूँ, बरसाना धाम की जय! हम जहां भी हैं ऑफकोर्स अगर धाम में हैं तो जप और आसान होता है अर्थात भगवान का स्मरण और सरल होता है। स्वाभाविक रूप से आप कल्पना कर सकते हो मैं जहां से जप कर रहा हूं वहां से लाडली लाल जी के मंदिर का पहाड़ मुझे दिखाई दे रहा है, वहां लाड़ली लाल जी विराजमान है। राधा रानी की जय बरसाने वाली की जय । वर्षभानुऔर कीर्तिदा भी रहते थे ।
“तप्त कांचन गौरांगी राधे वृंदा वनेश्वरी वृषभानु सुते देवी प्रणमामी हरि प्रिये ”
राधारानी हरिप्रिया भी हैं वह हरि को प्रिय हैं इसीलिए उन्हें हरिप्रिया कहा जाता है और वृषभानु सुता, संबोधन में सुते कहते हैं तो वे राजा वृष भानु की नंदिनी, पुत्री हैं। वे कीर्तिदा की पुत्री भी हैं। इस प्रकार राधा कृष्ण का स्मरण और भी सरल और आसान होता है हम उनका नाम ले रहे हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
धाम में जब हम पहुंचकर जप करते हैं कीर्तन करते हैं जब उनको पुकारते हैं। श्रील प्रभुपाद इस महामंत्र को टेलीफोन नंबर भी कहा करते थे कि यह टेलीफोन नंबर भगवान का है ,राधा कृष्ण का है इसीलिए यह 16 डिजिट का है, लंबा भी है किसी भी राजा महाराजा या प्राइम मिनिस्टर का इतना लंबा फोन नंबर है क्या? यह तो भगवान का ही होना चाहिए। धाम में आकर जब हम यह फोन नंबर डायल करते हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण जब डायल किया तो भक्त कहते हैं ऐसी समझ है कि जब हम धाम में आकर कॉल करते हैं तो फिर यह लोकल कॉल हो जाता है क्योंकि भगवान बगल में ही तो रहते हैं यह इंटरनेशनल कॉल नहीं है या long-distance कॉल नहीं है यह लोकल कॉल है लॉन्ग डिस्टेंस कॉल को पहुंचने में या पहुंचाने में कुछ दिक्कतें भी आ सकती हैं और वह महंगा भी हो सकता है और long-distance कॉल में जो संवाद है वह ठीक से सुनाई नहीं देगा हम क्या कह रहे हैं फोन में दूसरी पार्टी हमसे क्या कह रही है तो लॉन्ग डिस्टेंस कॉल तो लॉन्ग डिस्टेंस कॉल ही होता है। long-distance कॉल वर्सेस लोकल डिस्टेंस कॉल।
सामने आकर जब हम कॉल करते हैं अर्थात जप करते हैं तो वह लोकल कॉल हो जाता है बड़ी आसानी से और फटाफट कनेक्शन जुड़ जाता है और जप करना सरल होता है अर्थात यह एक कॉल ही है when we called someone किसी को हम फोन करते हैं किसी से कुछ कहते हैं तो वह बात भी है जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण महामंत्र का जप किया, नंबर डायल किए हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे तो इसका अर्थ है कि हम कॉल कर रहे हैं संबोधित कर रहे हैं पुकार रहे हैं उनसे कुछ कहना चाहते हैं, यह एक कॉल का ही प्रकार है। जब हम धाम में आकर जप करते हैं तो जिसको हम कॉल कर रहे हैं हम कृष्ण को कॉल कर रहे हैं, हम राधा को कॉल कर रहे हैं, उनको पुकार रहे हैं संबोधित कर रहे हैं अपने दिल की कुछ बात उन्हें सुनाना चाहते हैं।धाम में भगवान का स्मरण सरल हो जाता है। भगवान यहीं रहते हैं, यहीं लीला करते हैं उनकी अष्ट कालीय लीलाएं। 8 काल होते हैं
आठ पीरियड
प्रातः काल
अपराह्न
मध्याह्न
अपराह्न
प्रदोष काल
संध्या काल
रात्रि काल
उषाकाल
इस प्रकार से आठ काल हैं और उनके नाम भी हैं और किस समय से किस समय तक कौन सा काल कितने बजे से कितने बजे तक यह भी सब स्पष्ट है यदि आप कभी सुने पढ़े समझे होंगे भगवान की हर लीला किसी काल में और किसी देश में किसी स्थान में होती है तो यह काल हुए अष्ट काल और फिर देश हैं प्रदेश हैं प्रदेश तो वन है द्वादश कानन हैं। भगवान अलग-अलग वनों में अलग-अलग समय भिन्न-भिन्न लीलाएं खेलते हैं एक अष्टकालिए स्मरण एक साधना भी है कई साधक यह साधना करते हैं अपनी घड़ी को देखते हैं वह 7:00 बजे हैं भगवान अभी उठे होंगे अभी उनका अभिषेक श्रृंगार चालू होगा अब गौशाला में जाते होंगे कृष्णा बलराम का नाश्ता प्रसाद प्रातः काल में चालू होगा भगवान इस समय क्या कर रहे होंगे ग्वाल बाल आने वाले हैं नंद भवन की घंटी बजा रहे होंगे। चलो चलो कन्हैया चलो चलो वी आर गेटिंग लेट इस बात से यशोदा को अच्छा नहीं लगता है जब वन का प्रस्थान करने का समय आता है जब 8:00 बजे का समय होता है यशोदा तो चाहती है कि कृष्ण वन में जाएं ही नहीं 24 घंटे में उनके घर में रहे उनके साथ उनकी गोद में अगल बगल में वह कोई बहाना निकालती है और अधिक समय और अधिक समय लगाती है, कन्हैया को घर में रखने का उनका प्रयास रहता है अरे रुको रुको अभी तो वस्त्र ठीक से नहीं पहना है मैंने अभी तो तुम्हारी चोटी नहीं बनी अरे अभी तो तुम्हारा लंच पैक नहीं हुआ ब्रेड तो मैंने लगा दी पर अभी बटर नहीं लगा मैं माखन ले आती हूं इस प्रकार से यशोदा मैया का उद्यम या उद्योग या प्रयास रहता है। दूसरी और कन्हैया को जल्द से जल्द नंद भवन से बाहर निकालकर उनके साथ वन में जाने के लिए ग्वाल बाल उत्कंठित होते हैं। इस प्रकार की खींचातानी चलती है ।
एक और से यशोदा उनको खींच रही है, घर में अधिक समय उनको रखना चाहती है दूसरी ओर ग्वाल बाल कन्हैया के मित्र उनको जल्दी बाजी रहती हैं, स्मरण दिला रहे हैं जल्दी करो जल्दी करो जल्दी करो तुम्हारी मम्मी की माया तुम फंसे हो छोड़ दो निकल पड़ो, डू योर ड्यूटी गायों की रखवाली करना उनकी ड्यूटी है। कल हम सुन रहे थे। ड्यूटी का तो बहाना है कन्हैया और उनके सारे मित्र वे तो खेलना चाहते हैं वन में जाएंगे गाय तो चरती रहेंगी कन्हैया और उनके मित्र खेलेंगे। गायों की रखवाली , गोचारण यह सेवा है , यह उनका व्यवसाय है उनका धर्म है खेलना है उनका धर्म तो लीला अर्थात खेल तो भगवान खेलते रहते हैं तो जब हम धाम में जप करते हैं तो कन्हैया का राधा कृष्ण का स्मरण और आसान होता है ,सरल होता है ,सफल हो जाता है जैसे लोकल कॉल सस्ता भी होता है, आसान भी होता है ।सारी बातें कही हुई सुनाई भी देती हैं। यह धाम वास का एक ही लाभ है इसीलिए श्रील रूप गोस्वामी जहां 64 भक्ति के अंगों की चर्चा करते हैं तो अंततोगत्वा कहते हैं कि 5 प्रधान भक्ति के अंग हैं,
“साधु संग
नाम संकीर्तन
भागवत श्रवण
मथुरा वृंदावन धाम वास
और
श्री मूर्ति अर्चा विग्रह की आराधना ”
यह पांच महा साधन हैं, विशेष साधन है तो इस विशेष साधनों में धाम वास भी एक महत्वपूर्ण अंग है इसलिए प्रभुपाद कहा करते थे धाम वास करना चाहिए। यह हमारी भक्ति और हमारे जप के लिए, ध्यान के लिए स्मरण के लिए अनुकूल होता है।दामोदर मास में विशेषकर धाम वास की और भी अधिक महिमा है कई सारे भक्त, कल गोवर्धन पूजा भी है यहां पहुंचे हैं परिक्रमा भी कर रहे हैं और कई सारे आ रहे हैं रास्ते में हैं । समाचार मिल रहे हैं हम जयपुर में हैं हम बस पहुंचने वाले हैं कल गोवर्धन पूजा भी है और प्रभुपाद का भी तिरोभाव दिवस महोत्सव भी है कई सारे भक्त आ रहे हैं । उनको भी धाम वास प्राप्त होगा वृंदावन धाम की जय आप बहुत लोग लिख रहे हो वृंदावन धाम की जय वृंदावन धाम की जय अगर आप यहां नहीं पहुंचे हो नहीं पहुंच सकते हो तो आप मानसिक परिक्रमा करो मानसिक भेंट या दर्शन हो सकते हैं ऐसा ही करना पड़ता है हम लोग जहां भी हैं नागपुर में या कानपुर में या मॉस्को या न्यूयॉर्क हमारा ध्यान तो धाम में ही होना चाहिए या दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो इस माध्यम से हम धाम का ही ध्यान कर रहे हैं।
वृंदावन के धामी हैं राधा कृष्णा तो जब हम जप करते हैं तो हम वृंदावन का धाम का भी ध्यान, राधा कृष्ण का भी ध्यान ,कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका धाम है ऐसे श्री भगवान को मेरा बारंबार प्रणाम है जिनका नाम हमने कहा हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण जिनका नाम है जिनका नाम है राधा कृष्ण राधा कृष्ण दो अलग नहीं है वह एक ही है अर्थात हरे कृष्ण जिनका नाम है ,गोकुल जिनका धाम है वृंदावन जिनका धाम है और यशोदा जिनकी मैया हैं नंदजी बपैया हैं ऐसे श्री गोपाल को मेरा बारंबार प्रणाम है जप करते हुए हम याद कर सकते हैं राधा कृष्ण की मैया यशोदा मैया की जय नंद महाराज की जय कीर्तिदा की जय ऐसे हम रागानुग भक्ति का अवलंबन करते हैं। वात्सल्य भक्ति के आचार्य कहो नंद बाबा और यशोदा है उनका स्मरण करते हुए उनके भाव उनकी भक्ति के पीछे पीछे चलना है ‘अनुगा’ – उनके पीछे पीछे गमन करना है तो क्यों नहीं है हम और जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रहे हैं तो नंद बाबा और यशोदा का स्मरण हो ही जाता है और ऐसे श्री गोपाल को बारंबार प्रणाम है तो गोपाल का स्मरण तो हो ही जाता है वह गौचारण लीला खेलने वाले हैं गोपाल।
राधा जिनकी जाया है अद्भुत उनकी माया है अर्थात राधा जिनकी भार्या है ऐसा भी कृष्ण वल्लभा राधा कैसी है कृष्ण प्रिया है हरि प्रिया है भार्या है कृष्ण की है राधा अल्हादिनी शक्ति है राधा जिनकी जाया है अद्भुत जिनकी माया है ऐसे श्री घनश्याम को बारंबार प्रणाम है, लूट लूट दधि माखन खायो
ग्वाल बाल संग गैया चरायो।
ऐसे लीला धाम को बारंबार प्रणाम है। हम जप कर रहे हैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। और हम लीलाओं का स्मरण कर रहे हैं श्री कृष्ण का नाम जप या माता-पिता का स्मरण कर रहे हैं कृष्ण की राधा का स्मरण कर रहे हैं व माखन चोर कृष्ण का स्मरण कर रहे हो इस प्रकार हमारा धाम वास
स्वतः हो जाता है। जब हम इस प्रकार का स्मरण करते हुए जप करते हैं तो हम धाम में पहुंच जाते हैं । हमारा शरीर अन्यत्र हो सकता है लेकिन हम वहां नहीं होंगे हम तो धाम वासी बनेंगे। ध्यानपूर्वक जप के साथ यदि स्मरण हो रहा है , धाम के धामी का स्मरण ,तो हमारा भी धाम वास हो रहा है । प्रभुपाद कहते थे मैं न्यूयॉर्क में नहीं हूं मैं वृंदावन में हूं । मैं न्यू जर्सी में नहीं हूं मैं तो वृंदावन में हूं। जब प्रभुपाद राधा गोविंद का अथवा राधा मदन मोहन का या राधा दामोदर का (जहां श्रील प्रभुपाद निवास करते थे) उनका ऐसा ध्यान पूर्वक जप कर रहे हैं तो वे न्यूयॉर्क में थोड़े हैं वृंदावन में हैं।ऐसा प्रभुपाद कहा करते थे । यह आज के लिए फूड फॉर थॉट था यह बातें आप याद रखिए यह पद्धतियां जप करते समय भगवान का ध्यान- ध्यान पूर्वक ध्यान करते हुए आप वृंदावन पहुंच जाओगे आपका भी धाम वास होगा आज की वार्ता थोड़ी लंबी हो गई। राधे राधे बरसाना धाम की जय ब्रजमंडल धाम की जय ।
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जपा टॉक
28 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
आज हम पुनः दिवाली मना रहे हैं। कईयों ने कल दिवाली मनाई थी। गौड़ीय वैष्णव आज भी दिवाली मना रहे हैं। दिवाली के शुभ अवसर पर आप सभी जपकर्ताओं को हमारी शुभेच्छा व शुभकामनाएं। हैप्पी दिवाली! वैसे आज केवल 424 स्थानों से ही जप हो रहा है इसलिए हम सोच रहे थे कि हम कैसे दिवाली मनाएं? हमारी संख्या तो घट चुकी है। दिवाली अर्थात हर्ष का दिन या हर्ष का उत्सव परंतु आज जप करने वाले कम हैं तो हम कैसे दिवाली मनाएंगे और कैसे अपना हर्ष व्यक्त करेंगे? हो सकता है कि वे जप नहीं कर रहे हो, केवल दिवाली मना रहे हो। हरि! हरि! गौरंगा!
दीपावली महोत्सव लाखों वर्ष अर्थात कम से कम दस लाख वर्ष पुराना है।ऐसा कहा जा सकता है कि लगभग दस लाख वर्ष बार दिवाली मनाई जा चुकी है या यह कहा जा सकता है कि दस लाख साल से एक और वर्ष ऊपर अर्थात निश्चित दस लाख वर्ष ही नही, ऊपर नीचे हो सकता है, लगभग दस लाख वर्ष पूर्व त्रेता युग में राम की लीला हुई थी। श्रीराम ने वन के लिए प्रस्थान किया था। हरि! हरि! 14 वर्ष के वनवास के उपरांत आज के दिन से लगभग 2 सप्ताह पहले राम विजयदशमी (दशहरा) मनाया गया थी। राम श्रीलंका में थे। “वे बोले पूर्वे रावण वध लीला ..( गाते हुए)। यह सत्य ही कथा है वह बोले पूर्वे रावण वध लीला.. दशहरे के दिन रावण का वध हुआ था और राम की विजय हुई थी। जय श्री राम! भगवान, वानर सेना की मदद से जीत गए थे और पुनः सीता को प्राप्त किया था। राम के लिए वही दिवाली थी।
राम सीता मिलन। तत्पश्चात श्री राम ने सीता, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण और अन्य कईयों को साथ लेकर पुष्पक विमान में विराजमान या आरूढ़ होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। आज के दिन श्रीराम अयोध्या पहुंचे। अयोध्याधाम की जय! अयोध्यावासी चौदह वर्षों से विरह की व्यथा से ग्रसित थे। कौशल्या का तो क्या कहना। अन्य माताएं,भरत, शत्रुघ्न, मंत्रिमंडल व सारे अयोध्यावासी अर्थात पूरा चर और अचर राम की प्रतीक्षा में था कि कब 14 सालों का वनवास पूरा होगा और कब राम लौट कर आएंगे। आज के शुभ दिन व शुभ घड़ी में राम अयोध्या वापिस लौटे थे। यह दिवाली का महोत्सव मिलन महोत्सव है। राम के साथ मिलन, किन का मिलन? सारे अयोध्या वासियों का मिलन।
जब यह मिलन हुआ तब हर्ष- उल्लास की कोई सीमा ही नहीं रही। सबने हर्षोल्लास और मिलन का उत्सव मनाया। वही मिलन उत्सव ही दीपावली उत्सव बन गया। केवल सारे अयोध्यावासी स्वयं ही सजे-धजे नहीं अपितु उन्होंने सारी नगरी को भी सजाया। उन्होंने उस सजावट अर्थात साज-श्रृंगार में उस नगरी को दीपों से भी सजाया अर्थात सर्वत्र दीपक जलाए। दीप ही दीप। दीपों की आवली अर्थात दीपावली। सारी अयोध्या नगरी जगमगा रही थी। रामायण और भागवत में वर्णन हैं कि सारे अयोध्या निवासी नृत्य कर रहे थे। हरि! हरि! वे नाच रहे थे, वे राम और एक दूसरे को गले लगा रहे थे और राम को पहले मिठाई/ मिष्ठान्न खिलाकर तत्पश्चात सभी का मुख मीठा करते व खिलाते हुए और स्वयं भी ग्रहण कर रहे थे। वे मिठाइयां बांटकर एवं हर्षोल्लास के साथ उत्सव मना रहे थे। आज के दिन राम और अयोध्यावासी मिलन उत्सव मनाया गया। हरि! हरि!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! संयोगवश या देवयोग या कृष्ण कन्हैया के आयोजन से कहिए कि इसी दिन त्रेता युग में लगभग दस लाख वर्ष पूर्व श्री राम अयोध्या लौटे जिसे हम दीवाली कहते है, उसी दिन लगभग पांच हज़ार वर्ष पूर्व जब श्री कृष्ण गोकुल में थे वे बोले पूर्व रावण वघीला गोलोके वैभव लीला प्रकाश कैलि ..( गाते हुए) वही राम अब श्री कृष्ण बन गोलोक की लीलाओं को गोकुल में प्रकाशित कर रहे हैं। भगवान उन लीलाओं के अंतर्गत बाल सुलभ लीला और माखन चोरी की लीला आदि लीलाएं कर रहे हैं।
माखन चोर कन्हैया लाल की जय! यह लीला गोलोक में भी होती रहती है। यह नित्य लीला है।
भगवान गोकुल में माखन चोरी की लीला खेल रहे थे। आज के दिन भगवान ने माखन की चोरी अपने घर पर ही की थी। हो सकता है कि राम या नरसिंह भगवान को यह इतना पसंद नहीं होगा लेकिन कन्हैया का सभी 56 व्यंजनों/ पकवानों / छप्पन भोगों में सबसे अधिक प्रिय व्यजंन माखन है अर्थात कृष्ण को माखन सबसे अधिक पसंद है। मैया मोही माखन भावे … कभी-कभी वह रो रो कर भी कहते – “मैया! मुझे माखन खिलाया करो ना। ‘मेवा, पकवान कहती तू, मोहे रुचि नहीं आवे’ मुझे क्या क्या खिलाती रहती हो, मेवा, पकवान, छप्पन भोग लेकिन मुझे उन पकवानों में रुचि नहीं आती, मुझे तो माखन अच्छा लगता हैं, मुझे तो माखन खिलाया करो।” कन्हैया माखन के प्रेमी हैं। उन्होंने आज दिवाली के दिन अपने घर में ही माखन की चोरी की। फिर चोरी की तो चोर को दंड भी मिलना चाहिए।
यशोदा ने, जिसके घर पर चोरी हुई थी, उस चोर को ढूंढ निकाला और चोर को पकड़ भी लिया। तत्पश्चात चोर को डोरी से ऊखल के साथ बांध भी दिया। ऊखल को भी बांध दिया। यशोदा मैया ने ऊखल को भी दंडित किया। यशोदा ने सोचा कि इस चोर को मदद करने वाला ऊखल ही है। यदि ऊखल मदद नहीं करता तब कृष्ण कन्हैया उस ऊखल पर नहीं चढ़ते और छींके से लटके हुए माखन के घड़े तक निश्चित ही नहीं पहुंच सकता था। यह ऊखल भी चितचोर का मित्र है, इसको भी दंड मिलना चाहिए। यशोदा ने अपने कन्हैया और ऊखल दोनों को डोरी से बांध दिया। दाम अर्थात डोरी, उदर अर्थात पेट। कन्हैया के पेट और कमर को डोरी से ऊखल के साथ बांध दिया।
उस दिन से कन्हैया का एक और नाम दामोदर कहलाया। आज के दिन ही कन्हैया एक और नाम से विख्यात हुए। दामोदर अर्थात आज दीवाली के दिन जिनका उदर डोरी से बांध दिया। शुकदेव गोस्वामी, दामोदर लीला का श्रीमद्भागवतम के 10वें स्कन्ध के 9 वें अध्याय के प्रारंभ में वर्णन करते हुए कहते हैं कि एकदा गृहदासीषु यशोदा नंदगेहिनी। कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि।। शुकदेव गोस्वामी जी कहते हैं- ‘एकदा’ एक समय की बात है या एक दिन की बात है। कौन सी तिथि और कौन सा महीना या वर्ष था?उन्होंने इसका उल्लेख नहीं किया है लेकिन हमारे आचार्यों ने इस एकदा का भावार्थ प्राप्त किया है। हमें अपनी टीकाओं के माध्यम से समझाते हैं कि एकदा अर्थात दिवाली के दिन, कार्तिक मास में ही दिवाली आती है। दस लाख वर्ष पूर्व अयोध्या में जो दीवाली संपन्न हुई थी, उसी कार्तिक मास में दिवाली के दिन यशोदा ने ‘एकदा गृहदासीषु’ अपनी घर की दसियों को ‘कर्मान्तरनियुक्तासु’ अर्थात अन्य सेवाओं में लगा दिया। निर्ममन्थ स्वयं दधि अर्थात स्वयं ही दही मंथन करना प्रारंभ कर दिया। हर रोज दासियाँ मंथन करती थी। यशोदा ने सोचा “मेरा लाला जो माखन की चोरी करता है, हो सकता है कि यह दासियाँ मेरे घर का माखन इतना मीठा नहीं बनाती हो, चलो आज स्वयं ही मंथन करूंगी।” उस दिन यशोदा ने स्वयं ही दही मंथन करना प्रारंभ किया। उस दिन प्रातः काल को ‘उठी उठी गोपाला’ नहीं हुआ। यशोदा का पहला कार्य कन्हैया को जगाने का हुआ करता था। लेकिन ‘एकदा’ इस दिवाली के दिन कृष्ण को जगाया ही नहीं ,सीधे ही दही मंथन प्रारंभ कर दिया। शुकदेव गोस्वामी यशोदा मैया के सौंदर्य व उनके दही मंथन कर, विशेष माखन निकालने के परिश्रम का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हैं।
उस दिन कन्हैया स्वयं ही जगे और जगते ही उनको खाने की याद आई। यशोदा कुछ दूध पिलाया करती थी या माखन खिलाया करती थी। यशोदा ने जगाया ही नहीं, कन्हैया खोजने लगे- मम्मी, मम्मी, मैया कहां हो? वह नंद भवन में यशोदा को खोज रहे थे। फिर उन्होंने देखा कि यशोदा मैया तो व्यस्त हैं। उसने कन्हैया की कोई केयर (देखभाल) ही नहीं की। उसने कन्हैया को जगाया भी नहीं, कुछ खिलाया पिलाया भी नहीं और अपने घरेलू कामों में व्यस्त है। कन्हैया को यह बात अच्छी नहीं लगी। हरि! हरि! यशोदा का ध्यान अपने गृह कार्यों में है, मेरी और तो उसका ध्यान ही नहीं है। कन्हैया गए और थोड़ा समय रुके रहे। जब मंथन हो रहा था, वह आगे बढ़े और उन्होंने मथनी को पकड़ लिया। इसी के साथ मंथन का कार्य ठप्प और बंद हो गया। यशोदा समझ गई। इतने में कन्हैया छलांग मारकर यशोदा की गोद में चढ़ गए। उनका ध्यान यशोदा मैया के स्तनों की तरफ ही था।
वह यशोदा के स्तनों से दुग्ध पान करना चाहते थे। यशोदा मैया कन्हैया को गोद में लिटा कर दूध पिला रही थी, इतने में यशोदा को रसोई घर से कुछ आवाज सुनाई दी कि दूध चूल्हे पर उफ़न रहा है। उफ़न कर् सारा दूध खराब ना हो जाए इसलिए यशोदा मैया दूध के पात्र को साइड पर रखने के लिए रसोईघर में गई और कन्हैया को वहीं पटक दिया। कन्हैया यशोदा से पहले ही थोड़े नाराज थे और उनका पेट भी नहीं भरा था, अभी अभी दूध पीना प्रारंभ ही किया था। जब यशोदा ने वहीं उसे पटक कर अपने गृह कार्यों में दूध को बचाने के लिए रसोई घर में चली गयी तब कन्हैया ने उस दही मंथन के घड़े को फोड़ दिया और सारा कक्ष दही, छाछ और कुछ माखन से भर गया। उसे पता था कि यशोदा कुछ क्षणों में पुनः वापस लौटने वाली है, भगवान वहां से भागे।
उनको भूख तो लगी ही थी, वह नंद भवन के कक्ष में माखन खोज रहे थे। उन्होंने नंद भवन के एक कक्ष में माखन का मटका देखा, वहां ऊखल भी था तब उसको मटके के नीचे खड़ा कर दिया और उस पर चढ़ गए। वह स्वयं माखन खा रहे थे, अपना पेट भर लिया।इतने में वानर भी आ गए और उन वानरों को भी खिलाया। वैसे रामलीला में यह वानर (जय श्री राम) लंका के युद्ध के योद्धा वानर सैनिक थे और अब वे वृंदावन के वानर बने हैं। कृष्ण ने सोचा- “इन वानरों ने मेरे लिए बहुत मेहनत, वीर्य, शौर्य और पराक्रम दिखाया है परंतु मैंने तो इनके लिए कुछ किया ही नहीं।
मैंने इन्हें कोई पुरस्कार, भेंट इत्यादि नहीं दी। मैं तो कृतध्न रहा। इन वानरों ने मुझ पर जो उपकार किया एवं मेरी सहायता की, मुझे भी बदले में कुछ करना चाहिए था। चलो, अब तक तो नहीं किया, अब करता हूं।” ऐसा सोचकर भगवान ने बंदरों को माखन देते हुए कहा, “थैंक्यू (धन्यवाद) वानर आप सब ले लो, प्लीज ले लो, आपने रामलीला में रावण युद्ध में जो सहायता की थी, उसके लिए थोड़ा सा पुरस्कार ले लो।” इस भाव से कन्हैया वानरों को माखन खिला रहे थे। इतने में मैया यशोदा इस चोर को खोजती/ ढूंढती हुई वहां पहुंच गई ।उसके हाथ में छड़ी थी। कन्हैया तिरछी नजर से देख ही रहे थे कि यशोदा अब आ सकती है, अब आ सकती है और यशोदा आ ही गई, उसके हाथ में छड़ी है। कन्हैया, यशोदा को देखते ही उस ऊखल से नीचे उतरे।
यशोदा ने पीछा करना शुरू किया और फिर कुछ समय के उपरांत कन्हैया पकड़ में आ गए। मैया डोरी से बांधना चाहती थी। डोरी भी दो उंगली कम पड़ रही थी। हरि! हरि! अंततोगत्वा कृष्ण यशोदा की जिद/ संकल्प कि आज तो बांधकर ही रहेगी व परिश्रम देख कर बंधन में आ गए। भगवान ने अपनी कृपा ऐड ( मिला) दी। यशोदा का प्रयास और संकल्प और कृष्ण की कृपा से जो दो उंगली छोटा पड़ रहा था वह पूरा हो गया। इसी के साथ कृष्ण बंध गए, यशोदा ने कन्हैया को डोरी के साथ उदर व ऊखल को बांध दिया। हो गयी दामोदर लीला। त्रेता युग में दिवाली के दिन श्री राम अयोध्या लौटे थे तब वह दीपावली उत्सव हो गया था। उसी दिन जब 5000 वर्ष पूर्व कन्हैया ने विशेष लीला का प्रदर्शन किया और वात्सल्य रस में सभी को डुबो दिया।
इतीद्दक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे इस प्रकार दामोदर लीला करके सारे वृंदावन को आनंद से भर दिया। इस लीला से वृंदावन आनंदमय हो गया आनंद का सागर, आनंद का कुंड अर्थात इतीद्दक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे। आज दिवाली के दिन त्रेता युग में अयोध्यावासी आनंदमय मिलन उत्सव में गोते लगा रहे थे और आज के दिन गोकुल/ ब्रज मंडल में भी बृजवासी या अयोध्यावासी इस वात्सल्य रस का आनंद लेते हैं। अब तक वैसे वात्सल्य रस ही चल रहा था। सांख्य रस व बाकी रस भी बाद में आएंगे। कृष्ण अभी छोटे हैं। वृंदावन की लीलाएं वैसे वात्सल्य रस से प्रारंभ होती हैं फिर सांख्य रस आता है, अन्ततोगत्वा माधुर्य रस आता है।
सर्वप्रथम वात्सल्य रस होता है। इसमें रस ही रस होता है। रस से ही रास होता है। इतने अधिक रस को रास कहते हैं। माधुर्य रस यह भी एक तरह का रास है। यह एक दूसरे प्रकार का रास हैं।
जय श्री राम!
जय श्री अयोध्या धाम!
जय अयोध्यावासी!
जय कृष्ण कन्हैया लाल की जय! जय यशोदा मैया!
जय गोकुल निवासियों की जय!
जय ब्रज वासियों की जय हो
आज के आनंद की जय हो!
आप सबकी भी जय जो इस आनंद को लूट रहे हो।
मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं मुझे अभी ब्रज मंडल परिक्रमा में जाना है। और वहां भी लीला कथा होगी। लगभग 8:00 बजे, पता नहीं आप सुन पायोगे या नहीं। अच्छा होता यदि आप भी परिक्रमा में उस लीला कथा को सुनते और आप भी आनंद लूटते। आज के दिन या पूरे मास में ब्रजमंडल में होना या कल गोवर्धन पूजा में वृन्दावन/ गोवर्धन या बरसाने में आकर भक्तों के साथ गोवर्धन पूजा मानाना और भी आनंद दायक होता। आपको नहीं पता कि आप क्या मिस कर रहे हो। आप आ जाइए, आजकल में आ जाइए। कुछ दिनों के उपरांत प्रभुपाद का तिरोभाव महोत्सव भी है। वैसे आप में से कई ऐसे समाचार दे रहे हैं कि मैं आ गया हूं या मैं पहुंच रहा हूं। आपने देखा भी कि कई सारे अपने नगरों , शहरों, ग्रामों में जप कर रहे थे, अब वृन्दावन आ पहुंचे हैं।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
27 अक्टूबर
जपा टॉक
हरे कृष्ण
मैं अंग्रेजी में उन भक्तों के लिए कुछ कह रहा था जो हिंदी नहीं जानते हैं। वे अब हिंदी जपा टॉक ट्रांसलेशन इंग्लिश में पढ़ेंगे। जपा टॉक तो हिंदी में होगा। आज दीपावली है कि कल है क्योंकि हैप्पी दिवाली के बहुत मैसेज आ रहे हैं शुभकामनाएं आ रही हैं मेरी ओर से भी आप सभी को दिवाली की शुभकामनाएं। दीवाली आज भी है कल भी मनाई जाएगी। लगभग 500 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं दिवाली के अवसर पर ज्यादा भक्त होने चाहिए परंतु रविवार को कुछ भक्त विश्राम भी करते हैं। परंतु आप जो मुझे सुन रहे हैं वो ऐसा मत करना, जो भक्त जप नहीं कर रहे हैं उन्हें थोड़ा बताइए कि हरे कृष्ण भक्तों के लिए कोई होलीडे नहीं है यहां होलीडे को होली डे मनाते हैं। भगवान के पवित्र नामों का जप करके छुट्टी के दिन को पवित्र बनाते हैं। आप में से कई सारे भक्त मुझे प्रणाम भी करते हैं जब आप कॉन्फ्रेंस ज्वाइन करते हैं, मैं पढ़ता हूं। मैं परंपरा के अनुसार भगवान की कृपा आप को पहुंचाता हूं आप सभी
वांछा कल्पतरुभयाच्च कृपासिंधुभ्य एव च।
पतिता नाम पावनेभ्यो वैष्णोवेभ्यो नमो नम:।।
बोल कर जपा कॉन्फ्रेंस में जुड़े सभी भक्तों को भी प्रणाम करते हो, तो आप प्रणाम करते रहिए जैसे कि आप परिक्रमा में नहीं आ पाए थे, तो मानसिक रूप से परिक्रमा में उपस्थित रहते थे इसी प्रकार प्रणाम को मानसिक मत बनाइए, इसको पूरा कर दें इस प्रकार प्रणाम को साष्टांग दंडवत प्रणाम पुरुषों के लिए व पंचांग प्रणाम माताओं के लिए है। सभी अंग का अष्टांग प्रणाम होता है पूरा अष्टांग तो मैं नहीं कहूंगा लेकिन साष्टांग में मनसा वाचा आदि के साथ शरीर का उपयोग होता है, वाचा का भी मंत्र कहते हैं या कुछ स्तुति के वचन भी हो सकते हैं, वाचा से मन तो अनिवार्य है अगर मन ही नहीं है तो वह माइंड लेस प्रणाम हुआ दिल ही नहीं है। भाव नहीं है यह छोटी सी प्रणाम की बात हम आप को समझा रहे हैं कि प्रणाम की भी एक विधि है, विधि और निषेध से वर्णन पूर्ण होता, मुझे नहीं कहना चाहिए था परंतु जब मन में आ ही जाती है तो हम कह ही बैठते हैं। हमें महत्वपूर्ण बातें ही करनी चाहिए प्रणाम की बात भी महत्वपूर्ण ही है “मम नमस्कुरु” ऐसा भगवान भी कह रहे हैं कि उसे प्रणाम करो, अब और प्रणाम के संबंध में और नहीं कहूंगा क्योंकि इस पर भी पूरी कथा हो सकती है प्रणाम के संबंध में।
वैसे मैं भी आपकी ही तरह मानसिक परिक्रमा ही कर रहा हूं। आज के दिन की परिक्रमा कामवन में होती है आज के दिन एक्सटिरयर परिक्रमा का दिन होता है,बिल्कुल इसी समय 7:00 बजे प्रातः काल मैं प्रतिदिन इसी समय 20-25 वर्षो से आज के ही दिन सुरभि कुंड पहुंचता था। अन्य भक्तों के साथ मैं ही वहां कथा किया करता था। 20 -25 बार ये ऐसी घटना घटी है, मैंने वहां कथा की। मेरे मन की स्थिति बिल्कुल ठीक है परंतु शरीर और गले की स्थिति ठीक नहीं है गला अब धीरे-धीरे ठीक हो रहा है हो सकता है कि आज दिन में मैं वहां कामवन जाऊं, मैं वहां ब्रजमंडल परिक्रमा में नहीं हूं पर मैं कल्पना कर सकता हूं कि वह सारे भक्त इस समय कहां होंगे मुझे वहां होना चाहिए था और भक्तों को एड्रेस करना चाहिए था, पर मैं अभी वहां नहीं हूं तो फिर मैंने सोचा कि वह सारी बातें और जो कथा हुआ करती थी घंटे डेढ़ घंटे की वो नहीं होगी। मैं उस सब को बहुत मिस कर रहा हूं अच्छा होता कि इस समय मैं वहां होता और वहां की लीलाओं का स्मरण करते करते भक्तों को लीलाओं का स्मरण दिलाता। एक बात कह ही देता हूं कि वहां पर जो सुरभि कुंड है इसी के तट पर श्रील प्रबोधानंद ठाकुर की भजन कुटीर है।
वहां पर जो भी बातें मैं प्रतिवर्ष कहा करता था,वह श्रील प्रबोधानंद ठाकुर की चंद्रामृत नामक ग्रंथ में लिखी कुछ बातों का भी स्मरण दिलाया करते थे। वो एक बात लिखे अपने ग्रंथ में “वंशी तोशनी वंशी तोष विश्वं गौर रसे अपीमम्” उन्होंने अपने ग्रंथ चैतन्य चंद्रामृत में लिखा है, मुझे ठगाया गया है। वे धार्मिक परिवार के तो थे ही परंतु गोड़ीय परिवार के नहीं थे। चैतन्य महाप्रभु ने जो धर्म सिखाया उसका अवलंबन नहीं करते थे, अलग ही धर्म का अवलंबन करते थे। जब वे श्री चैतन्य महाप्रभु के संपर्क में आए और उन्होंने गौड़ीय वैष्णविजम और कृष्ण भावनामृत के बारे में जाना अध्ययन किया तो उन्हें पता चला कि वह जिस धर्म का अवलंबन करते थे वह तो एक तरह की ठगाई थी मुझे ठगा गया था।
क्यों वे कहते थे कि “विश्वम गोरसे मगनम” गौड़ीय वैष्णवों का जो विश्व है वह क्या करता है ‘गौर रसे मगनम” गौररस, माधुर्य रस का जो रसास्वादन गौड़ीय वैष्णव कर रहे थे, उस भक्ति रसामृत सिंधु का एक बूंद भी मेरे पास नहीं पहुंच रहा था, परंतु गौड़ीय वैष्णव भक्त उस रस में गोते लगा रहे थे। वे तुलनात्मक दृष्टि से जब विचार कर रहे थे श्रील प्रबोद्धानंद के मुख से जो वचन निकले थे “वंशीतोशनी वंशीतोशनी न संसय” इसमें कोई शक नहीं कि मुझे ठगाया गया था, मैं बुरी तरह ठगा गया था। हम भी जब यह तुलनात्मक दृष्टि से देखेंगे कि पहले जो हमारा धार्मिक जीवन था और जो अब हमें मिला है श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से तो आप भी सब सहमत होंगे प्रबोधानंद सरस्वती ठाकुर के साथ। फिर उनका एकवचन हम स्मरण दिलाया करते थे। पदयात्रा में भक्तों को सुरभि कुंड के तट पर जो कि प्रबोधानंद ठाकुर के चैतन्य चरितामृत ग्रंथ से ही है।
अवतीर्ण गोरे चंदरे विस्तीर्ण प्रेम सागरे” यह वचन भी पहले वचन “वंशीतोशनी वंशीतोशनी” के साथ मेल खाता है। जिसमें प्रबोधनंद कहते हैं कि गौर चंद्र प्रकट हुए और फिर क्या किया “नमो महा वदान्याय कृष्ण प्रेम प्रदायते” कृष्ण प्रेम वितरण किया जो कि उनकी लीला थी। यह सुनना और स्वीकार करना होगा कि हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। पूरा महामंत्र यही तो कृष्ण प्रेम है चैतन्य महाप्रभु अवतीर्ण हुए और प्रेमसागर को और बढ़ाया। “आनंदम बुद्धि वर्धनम्” आनंद का विस्तार किया, प्रेम का विस्तार किया और विस्तार होते होते यहां तक पहुंच गया, मनु प्रिया देवी दासी तक पहुंच गया, परिक्रमा के भक्तों तक, अन्य भक्तों जैसे बांग्लादेश, स्वीडन, रसिया आदि अन्य देशों तक यह महामंत्र पहुंचा तो मानना पड़ेगा कि आनंदम बुद्धि वर्धन हुआ है। “सर्वातम स्नमपनम्” हमारा भी हो रहा है। हम भी हरिनाम का रसास्वादन कर रहे हैं। हरिनाम का बिंदु हमारे लिए सिंधु बन जाता है फिर हम उसमें गोते लगाते हैं। हम लोग सूक्ष्मजीव हैं, छोटे हैं तो हमारे लिए हरिनाम का एक बिंदु भी सिंधु बन जाता है फिर हम उसमें स्नान करते हैं। प्रबोधानंद सरस्वती ठाकुर की लिखी हुई बात सिद्ध हो गई, “अवतीर्ण गौर चांदेर विस्तीर्ण प्रेम सागरे” प्रेम सागर का उन्होनें विस्तार किया।
विश्व भर में हरिनाम फैल रहा है। फिर मैं जैसे कहता हूं नाम से धाम तक जैसे कि बहुत से भक्त लिख रहे हैं मैं वृंदावन की ओर आ रहा हूं, पहुंच रहा हूं राधानाथ महाराज की आज कथा प्रारंभ हो रही है। विश्व भर से दसों हजार भक्त वृंदावन की ओर दौड़ रहे हैं ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्त तो पहले से ही पहुंचे हुए हैं। मैं यह कह रहा था कि नाम से धाम तक जैसे ही हमें भगवान का नाम प्राप्त होता है तो हम उसका आस्वादन करने लगते हैं, कृष्ण का हमें स्मरण होने लगता है और जिससे हमें धाम का स्मरण होने लगता है धाम भी भगवान का एक स्वरूप ही है जब वह कीर्तन करते हुए हम वृंदावन की ओर दौड़ते हैं तो भगवान हमें वृंदावन ले आए हैं। जब हरिनाम प्राप्त होता है तो उसका “फुल बैक टू गॉड हेड” भगवत धाम लोटना होता है। भगवान की नित्य लीला में प्रवेश करना, वहीं रहना सदा के लिए भगवान के साथ। “अवतीर्ण गौर चांदेर विस्तीर्ण प्रेम सागरे अजयंती अजयंती महासागरे” प्रबोधानंद सरस्वती ठाकुर कहते हैं जो कुदेंगे नहीं भक्ति रसामृत सिंधु में, वहां नहाएंगे नहीं, गोते नहीं लगाएंगे ब्रज मंडल परिक्रमा में। ब्रज मंडल परिक्रमा भी भक्ति रसामृत सिंधु में गोते लगाने जैसा ही है।
भगवान का धाम आनंद का सागर है ।
इतीदृक स्वलीला भिरानंद कुण्डे, स्वघोषम् निमंजंतय माख्या पयंतम ” दामोदर अष्टकम में भगवान दामोदर ऐसी लीला संपन्न करते हैं। आज दिवाली के दिन में इस लीला से उत्पन्न होने वाले भाग से आनंद सागर , आनंद कुंड बन जाते हैं पूरा धाम ही, एक ही कुंड है। वृंदावन लीलाओं के आनंद का एक महासागर है , जैसे हम ब्रजमंडल परिक्रमा में धाम में आते हैं वृंदावन में आते हैं तो एक कुंड से दूसरे कुंड जाते हैं कि यहां यह लीला हुई वहां यह लीला हुई यहां स्नान कर लो हम यहां आए हैं। काम्यवन की एक्सटीरियर परिक्रमा कर रहे हैं। सुरभि कुंड में भगवान अपनी गायों को ले आते हैं वंहा वे जलपान करती थी, जब गाय जलपान सुरभि कुंड में जलपान करती तो भगवान भी जलपान करते थे। भगवान देखते थे कि गाय कैसे जलपान कर रही हैं वे लोटे या बर्तन का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं, भगवान भी गायों की तरह झुक कर सीधे बिना हाथ से लोटे का यूज किए जलपान करते हैं। सुरभि कुंड के जल की ऐसी बहुत सारी लीलाएं हैं जिन्हें सुनकर हमें आनंद होता है, हम उस में गोते लगाने लगते हैं। जैसे प्रबोधानंद कहते हैं “अजयंति अजयंति” जो लोग कृष्ण भावना मृत आंदोलन में शामिल नहीं होते हैं लीलाओं व कथाओं का श्रवण नहीं करते हैं।
हम लोग भी करते हुए जा रहे हैं एक कुंड से दूसरे कुंड की ओर एक वन से दूसरे वन की ओर, यह लीला सुनो, वह लीला सुनो, आगे बढ़ते रहो कीर्तन करते हुए, तो इस प्रकार आनंद ही आनंद हो रहा है। जो लोग ” अजयंति अजयंति महा अनर्थ सागरे” यह जो अवसर है यहां धाम भी है, भगवान भी हैं मनुष्य शरीर भी है दुर्लभ मानव जन्म मिला है तो भी कृष्ण भावनामृत में नहीं आते, परिक्रमा में नहीं आते, सागर कुंडों में गोते नहीं लगाते हैं तो उनके लिए दूसरा सागर प्रतीक्षा में है वह है महाअनर्थ सागर ऐसा प्रबोधानंद सरस्वती दो सागरों के बारे में बता रहे हैं। इसे दो प्रकार के सागर कहो या विश्व कहो जगत कहो। यानी आध्यात्मिक जगत या भौतिक जगत। एक अंतरंगा शक्ति ,एक बहिरंगा शक्ति है और बीच में हम तटस्थ शक्ति हैं। जीवात्मा के लिए दो प्रकार के संसार या सृष्टि है एक और यह आनंद का सागर है, ब्रज मंडल परिक्रमा है, भगवान की लीलाएं हैं , कीर्तन है, भगवान का प्रसाद है लेकिन जो इस स्थान की ओर नहीं मिलेंगे उनके लिए प्राकृतिक जगत है जो कि अनर्थ से भरा है वहीं पर्याप्त है वहां भी फिल्म संगीत है, ग्राम कथाएं हैं, दूरदर्शन है, नर नारियों की लीलाएं हैं काम क्रोध है। सोशल मीडिया पर वीडियो खचाखच भरा पड़ा है प्रिंट मीडिया व सारा संसार है और लोग उसमें गोते लगा रहे हैं। महाप्रभु की बहुत कृपा है मुझ पर व आप सभी पर जिन्होंने इस्कॉन को ज्वाइन किया है। ज्वाइन करते करते अब आप वृंदावन धाम पहुंचे हो आज के दिन आप परिक्रमा में हो तो आप काम्यवन में पहुंचे हो दिस इज द बेस्ट चॉइस।
प्रबोधानंद सरस्वती ठाकुर आप सबको हमको वहां देखकर अत्यंत प्रसन्न है, यह उनकी लीला स्थली है प्रबोधानंद की यहां भजन कुटीर है, वे वहां नित्य भजन करते हैं। हम लोग परिक्रमा में यहां पहुंचे हैं तो वे आज बहुत प्रसन्न होंगे और हमें आशीर्वाद प्रदान करें कि हम बढ़ते रहें इस परिक्रमा में भी और इस आध्यात्मिक जीवन में भी तो सभी भक्त इस काम्यवन में है जहां कई सारे पहाड़ वह तलहटिया भी हैं। यहां भगवान आते थे और गौ चारण की लीला भी यहां संपन्न हुई है यहां से नंद महाराज का नंद ग्राम ज्यादा दूर नहीं है तो भगवान की पूर्वान्ह लीला प्रारंभ होती है 8:00 से 10:30 बजे तक उसमें भगवान गौचारण करते हैं। मध्यान्ह लीला के समय भगवान राधा कुंड पहुंच जाते हैं यह सब बातें भी सुननी व समझनी चाहिए कि भगवान किस समय कौन सी लीला करते हैं। भगवान 8:30 बजे गौचारण लीला के लिए प्रस्थान करते हैं। आज आप यहां परिक्रमा कर रहे हो यहां से भोजन स्थली की ओर आगे बढेगें तो कृष्ण कन्हैया अपने असंख्य मित्रों के साथ हर मित्र की अपनी असंख्य गाय व कृष्ण अपनी 9 लाख गायों के साथ काम्यवन में आते हैं, गोचारण लीला करते हैं लेकिन वे वहां खेलते भी हैं। भगवान जो भी करते हैं वह खेल खेल में ही करते हैं इसलिए सारी लीलाओं को खेल ही कहा जाता है। भगवान को कोई काम धंधा नहीं है जबकि सारा संसार काम धंधे में फंसा हुआ है संसार ओन्ली वर्किंग नोट प्लेयिंग।
यहां से जब आगे बढोगे तो आप देखोगे फिसलने वाली शिला को। जहां भगवान अपने मित्रों के साथ ऊपर से नीचे को फिसलते हैं। आप भी भगवान के साथ इस शिला तक पहुंच सकते हैं। आप की परिक्रमा भक्तों की पार्टी भी 1000-2000 भक्तों की पहुंच गई है। आप सभी परिक्रमा भक्तों में से कोई भगवान के मित्र हैं कोई सेवक हैं कोई माता पिता हैं। भगवान के साथ जरूर खेलो भगवान के साथ ही फ़िसलो सभी, मैं होता तो मैं भी फिसलता। जब हम इन सारी लीलाओं का स्मरण करते हैं तो हम भगवान की नित्य लीला में तो प्रवेश करते ही हैं या जिस लीला का हम श्रवण करते हैं और श्रवण के साथ फिर स्मरण होता है मनन चिंतन होता है फिर उस दृश्य का दर्शन होने लगता है फिर हम उस लीला के साथ ही चलते हैं फिर हमारा मन ललचा सकता है कि जो लीला हो रही है क्या मैं इस लीला का अंग बन सकता हूं ऐसा विचार आना चाहिए। हम परिक्रमा कर रहे हैं तो यह लीला सुनी, वह लीला सुनी तो हमारे मन में ऐसा विचार आना चाहिए कि कैसे हम इस लीला का अंग बनेंगे। फिर फिसलनी शिला से आगे बढेंगे तो फिर पहाड़ के दूसरी ओर गुफा आएगी व्योमासुर गुफा। गुफा में प्रवेश मत करना दूर से देखो व नमस्कार करो, परिक्रमा में होने का यह लाभ है कि हम भगवान की लीला स्थलियों का दर्शन करते हैं व उन्हें स्पर्श करते हैं वहां की ध्वनियां हम सुनते हैं। आप वहां अपनी आत्मा के साथ परिक्रमा कर रहे हो। व्योमासुर गुफा के पास भगवान के निशान व अलंकार भी हैं उस पत्थर के पास, इसी क्षेत्र में ही भगवान बलराम के चरण चिन्ह देखने के लिए भी आप लाइन में लगने वाले हो। उसी क्षेत्र में जो व्योम मतलब आकाश और व्योमासुर मतलब आकाश में विचरण करने वाला असुर की लीला राधानाथ स्वामी महाराज कभी सुनाएंगे या फिर ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक में भी यह लीला लिखी गई है और भागवतम में भी यह लीला है कि कैसे भगवान अपने मित्रों के साथ गोवर्धन पर्वत पर थे।
वहीं पर मित्रों के साथ खेल रहे थे वहीं पर आकाश मार्ग से व्योमासुर आ गया और भगवान के मित्रों की चोरी करके गोवर्धन पहाड़ से उन्हें व्योमासुर गुफा में छिपा देता है। वहां मित्रों को छुपा कर पुनः गोवर्धन पर्वत पर जाता था, और 10-20 हजार मित्रों की चोरी करके उन्हें छिपा देता व फिर लौट आता था। यह आना-जाना चल रहा था, काम्यवन तथा गोवर्धन पर्वत के बीच में तब भगवान ने देखा कि शुरुआत में हम लाखों मित्र खेल रहे थे किंतु अब 10-20 ही बचे हैं क्या हुआ कौन आया था तब भगवान ने व्योमासुर का पीछा किया जब वह लास्ट बैच को छिपाने जा रहा था। फिर युद्ध हुआ व्योमासुर और कृष्ण के मध्य में दोनों लड़ रहे थे तो लड़ते समय भगवान के अलंकार भी व्योमासुर गुफा वाले पहाड़ पर गिरे थे और कभी कभी भगवान पृथ्वी पर उतर आते फिर आकाश में उड़ान भरते हैं उस समय पृथ्वी में कंपन हो रहा था तो बलराम जी जो वहीं पर थे तो उन्होंने पृथ्वी को पैर से स्थिर किया। जहां बलराम ने चरण रखे थे, जहां आपने कल या परसों के भगवान कृष्ण के पैरों के निशान के दर्शन किए थे वहीं आज आप बलराम के पैरों के निशान के दर्शन करोगे। इसी प्रदेश में भगवान ने व्योमासुर का वध किया है। जब जब किसी असुर का वध होता है तो सारे देवता वहां आ जाते हैं तो काम्यवन में भी सारे देवता आ गए थे और अपना हर्षोल्लास व्यक्त किया। अप्सराओं ने नृत्य किया, नगाड़े वह दुंदुभी बजने लगी थी।
ये सारी भगवान की नित्य लीलाएं हैं जिनमें आप प्रवेश कर सकते हैं। आज इस क्षण एक्सटीरयर परिक्रमा के अंतर्गत अंतिम पड़ाव होगा भोजन स्थली, जहां भगवान ने भोजन किया। इसे भोजन स्थली या थाली भी कहते हैं यहां भगवान ने अपने मित्रों के साथ भोजन किया। भगवान अपने व्यंजन उसी जगह पत्थर पर रखते थे क्योंकि वे अलग-अलग से थाली नहीं लाते थे कभी पत्ते का थाली बनाते या फूल के पत्ते पर भी कुछ आइटम रख लेते थे। यह नित्य लीला है जो हर रोज होती है। आज आप उस लीला में प्रवेश करने वाले हो भगवान भोजन कर रहे हैं तो आप भी भोजन करने वाले हो भगवान ने जब व्यंजन पत्थर पर रखे तो वह पत्थर ही पिघल गया और उस पत्थर को भगवान ने अपनी थाली बना लिया। जो स्थली आप देखने वाले हो उसी स्थली में आपको भोजन का सौभाग्य मिलने वाला है। इस प्रकार भाव भक्ति के साथ इस लीला का रसास्वादन हो रहा है तो यह स्थल हमसे दूर थोड़े ही है। हम कहते हैं कि परिक्रमा में हम क्यों जाते हैं श्रवण के लिए अगर हम हरि नाम या हरि कथा सुनते ही नहीं है तो हम परिक्रमा में क्यों जाएं, क्या उपयोग है उस परिक्रमा का जिसमें हमें श्रवणं , कीर्तनम, विष्णु स्मरणम नहीं किया। भगवान की लीलाओं का श्रवण व किस वन में क्या लीला हुई, बीच-बीच में कीर्तन व जप हम करते हैं, परंतु श्रवणं मुख्य उद्देश्य है जिसका की फल है विष्णु स्मरणम। हम भगवान से दूर थोड़े ही हैं क्योंकि जब स्मरण हुआ तो हम भगवान के साथ ही हैं।
जब आप आज भोजन स्थली पहुंचेंगे तो प्रसाद पाएंगे वह प्रसाद शेयर भी करके अपनी प्रीति का लक्षण प्रदर्शित करो। भगवान के मित्र भी जब भोजन करते थे तो वे अपना भोजन कृष्ण को भी देते थे वह अन्य मित्रों को भी देते थे। वहीं भोग लगता था व हीं सभी प्रसाद पाते थे। वहां भोग लगाने के लिए कोई मंदिर या विग्रह ढूंढने की आवश्यकता नहीं होती थी भगवान उनके समक्ष हुआ करते थे वे अपने अपने घर का भोजन उन्हें खिलाते थे, कैसे भाव उनके हुआ करते थे। कृष्ण व मित्रों के बीच की जो मित्रता है वह दिव्य थी। जो भक्त परिक्रमा में जाते हैं वे भी भगवान के मित्र ही तो हैं जो आपके साथ साथ रहकर परिक्रमा में चल रहे हैं। इन मित्रों का समूह परिक्रमा कर रहा है भगवान के मित्रों के मित्र बनो तब भगवान कहेंगे कि वे मेरे मित्र हैं। तो उन ग्वालों की केवल भगवान से मित्रता नहीं थी, वह और जो मित्र थे उनके भी मित्र थे। इस परिक्रमा में आप कैसे मैत्रीपूर्ण व्यवहार रख सकते हो, आपसी ईर्ष्या द्वेष को त्याग कर एक दूसरे के प्रति “ददाति प्रतिगृह्नाती ” होना चाहिए। जैसे श्रील प्रभुपाद न उपदेशामृत में निर्देश दिए हैं , उसी प्रकार सभी के साथ आदान-प्रदान करके अपनी प्रीति का लक्षण भक्तों के प्रति दिखाएं हम भगवान से तो प्रेम करते ही हैं पर हम अपना प्रेम भगवान के भक्तों के प्रति भी बढ़ाए। केवल लिप्स सर्विश न हो कि आई लव यू । मैं तुमसे प्रेम करता हूं बल्कि कुछ करके दिखाओ, प्रसाद खिलाओ मदद करो।
जो वृद्ध भक्त चल रहे हैं यंग भक्त उनकी सेवा कर सकते हैं, हर एक को अलग-अलग प्रकार की आवश्यकता होती है उनके इर्द गिर्द जो अन्य भक्त होते हैं वह उनकी मदद करें। वैसे हमारी ब्रज मंडल परिक्रमा की जो सेवा समिति है वह तो अपनी सेवा कर ही रही है लेकिन राधारमण महाराज व अन्य सभी प्रभु जो हैं मैं सबके नाम नहीं लूंगा आप तो जानते ही हैं कि कौन कौन है वह सब आपके मित्र हैं। उनकी सहायता करें जब हमें सहायता की आवश्यकता होती है तब हम देखते हैं कि हमारी सहायता कौन करता है कोई संकट है तो उस समय जो हमारी सहायता करेंगे वही हमारा असली मित्र है। इस परिक्रमा में हर एक को सहायता की आवश्यकता होती ही है सेवा समिति के अलावा परिक्रमा के भक्तों की inter relationship आदान प्रदान भी अनिवार्य है।
जब आप आज वहां जा रहे हो जहां भगवान अपने मित्रों के साथ ही गौ चारण लीला की, और भोजन की लीला भी की । देखो कैसे आप भगवान के मित्र बन सकते हैं तभी तो आप भगवान के साथ खेल सकते हो। हम केवल यही नहीं कह रहे कि केवल भगवान के मित्र बनो भगवान के मित्रों का मित्र भी होना होगा केवल हमें भगवान के साथ डील नहीं करना होता है भगवान के भक्तों के साथ भी लेनदेन करना होता है। मैत्रीपूर्ण व्यवहार हमारा सभी के साथ हो और भगवान के साथ भी हो वैसे तो आपको आगे बढ़ना चाहिए था। इस समय पर जब मैं कथा करता हूं तो यह समस्या तो है ही कि वह शार्ट नहीं होती है लेकिन अब आप फ्री हो जाओगे तो आगे बढ़ो। आज की लीला का आनंद लीजिए अगर आप दिवाली मना रहे हो तो दिवाली की शुभकामनाएं व दामोदर मास की भी शुभकामनाएं
ब्रज मंडल परिक्रमा की जय
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
27 October 2019
Hare Krishna!
For those who don't know Hindi , they can read the transcription on the screen. The transcriber is doing his best to give you everything that I say, but still everything cannot be typed so fast. He is catching 70 – 80% of the talk. Sorry about that. For sure we are transcribing the whole Japa talk in English during the day. Sorry for the shortfalls but a more complete transcription and translation will be available during the day. Please bear with us.
Diwali is today or tomorrow? Many are posting their Diwali good wishes. So I am also extending my good wishes and blessings to you all on the occasion of Diwali. Diwali is today and tomorrow also. There are around 500 participants chanting with us on the occasion of Diwali. There should have been more, but today being Sunday many like to take some rest which is a sad state of affairs. You all who are listening to me don't do that. There is no holiday for the Hare Krishna devotees. Convey this message to all those who are not chanting with us. A holiday should be made into a holy day by chanting. By chanting early in the morning we make a so called holiday or resting day into an auspicious day. Many of you are offering your obeisances when you join the Japa conference, I read that. So I extend my blessings to all those on behalf of Prabhupad and Guru parampara and ultimately Krsna. Getting the mercy of the Lord is the ultimate fruit of offering obeisances.
There is a shower of mercy. There occurs kripa drishti-vristi. You also keep offering obeisances to all those Vaisnavas attending the conference, which is a good thing. Keep offering your obeisances.
One thought is that some of you are doing manasik Vraja-mandala Parikrama, which is a good thing, but offering obeisances should not be done at a mental level only. There should be sashtang pranam by male devotees and Mataji should offer panchang pranam. I will not define it, but in a strong pranam it is kayen manasa vachan. In sashtang pranam there is the use of the body, speech as we see the pranam mantra for some glorification through our speech. The mind is of course the essential factor. Mindless pranam in which obeisances are offered, not with emotions, feeling and bhav is not truly pranam. It's a small thing about pranam which I am explaining. Everything has its own way and method of doing and so it is for pranam also. There are not only the do’s but also the dont’s which we call viddhi
and nishedh. When we explain both of these then the process becomes complete. I will not say more on this. I did not want to speak on this, but some thoughts are generated and then I felt like speaking on it. We should be talking important things. Of course this is also important.
I am also more or less doing manasik Vraja-mandala Parikrama like you. Today the Parikrama is in Kamavan. Today is the day of the Exterior Parikrama of Kamavan. Every year on this day at seven o'clock in the morning I used to reach Surabhi- kunda. Every year I would do Katha over there. Ten, twenty, twenty-five times I have done Katha over there, but this year unfortunately the state of my body specially of the throat is not good. So I am not there. The state of mind is very good and the body is also improving, but some problem with the throat is still persistent so I could not go over there. During the day I may go to Kamavan, but at least right now I am not there. I can imagine where all the Parikrama devotees will be right now. I should have been there to address them, but I am not there. I am missing all that and so I am expressing my grief. I will share some of those things which I used to talk about while addressing them over here. Although I can't share it all, but I will try to share some of it.
On the bank of Surabhi-kunda there is a bhajan kutir of Prabodhananda Sarasvati Thakur. I use to remind them of some of the things written by him in his book called Sri Caitanya Candramrta. One of the things in his book is:
vanchito ’smi vanchito ’smi vanchito ’smi na samsayah
visvam gaura-rase magnam sparso ’pi mama nabhavat [19]
Translation
Seeing the Lord’s most munificent descent as Sri Gauranga who is the bestower of the paramount gift of love divine, the devotee, feeling insatiable desire for the mercy of this Lord, considers himself to be drastically deceived — Deceived, deceived, no doubt, deceived am I! The whole universe became flooded with the love of Sri Gauranga, but alas, my fate was not to get even the slightest touch of it. (Sri-Prabodhanandapadanam) He has written in his book Sri Caitanya Candramrta, vañchito ’smi ‘I have been cheated.’ He was from a religious family, but not from the background of Gaudiya
Vaisnavism. When he came in contact with Caitanya Mahaprabhu and came across Gaudiya Vaisnavism and studied some nectarean principles of Krishna consciousness, he realized that whatever he was following before this was a cheat.
He was being cheated in what he was following. Why? visvam gaura-rase magnam “What are Gaudiya Vaisnavas doing? They are immersed and engrossed in Gaur rasa or Madhurya rasa, but I have not been touched by it at all. When all other
Gaudiya Vaisnavas were completely drenched in this nectar, not even a drop of that nectar of devotion ( Bhakti-rasamrta Sindhu) has reached me. sparso ’pi mama nabhavat When he was doing a comparative analysis of both the methods he
wrote,
vanchito ’smi vanchito ’smi vanchito ’smi na samsayah
“I have no doubt that I was being cheated. Yes, I was being cheated very badly”. If we also try to analyse our lives in a comparative sense and whatever religious practices we were following previously and what we are doing now in this
sankirtana movement, then you will also agree with Prabodhananda Sarasvati Thakur. You will have to agree.
I used to remind the Parikrama devotees at Surabhi-kunda of one more saying of Prabodhananda Sarasvati Thakur. This is also from Caitanya Candramrta.. That is
avatirne gaura-candre vistirne prema-sagare, yena majyanti majyanti te maha anartha sagare
It says Caitanya Mahaprabhu appeared and what did He do? “avatirne gaura-candre vistirne prema-sagare”. He expanded the prema sagare. And it is “here”
now, there is sagara all around us, ocean all around us. But, then on the Island, there is the ocean, the sankirtana.
namo maha vadanyaya krsna prema pradayate
He distributed love of God to everyone. We should understand that this
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
This itself is love of Godhead. vistirne prema-sagare … He expanded the ocean of love. That means what had Caitanya Mahaprabhu done? Hare Krishna maha-mantra
Gaur karila prachar
anandam buddhi vardhanam
He expanded the ocean of love. You should all understand and realise that this ocean went on expanding and further expanding and now it has even reached you and me. It has even reached Manupriya Devi Dasi. It has reached to all of us doing Parikrama or even to those who are sitting at various places for away in Bangladesh or in Russia or Sweden, North India or South India. It has reached you and me.We will also have to agree that anandam buddhi vardhanam. avatirne gaur
candre visthirne prem sagare. So as the ocean of love went on expanding we have also been immersed into it. Sarvatma svapanam is also happening to us. We are all also tasting the nectar of Harinama. Even if we may have received only a drop of this nectar, but that becomes an ocean for us and we start swimming in it. We are so infinitesimally tiny even a drop will be like an ocean. Whatever serial Prabodhananda Sarasvati Thakur had written is proved this way. avatirne gaur candre visthirne prem sagare. He expanded the ocean of love. Harinama is spreading all over the world. I always keep saying from nama to dhama. As devotees keep writing we are reaching Vrindavan. Also Radhanath Maharaja's
Katha is starting from today. Almost five to ten thousands devotees have already reached Vrindavan. Parikrama devotees have already reached Vrindavan-from nama to dhama. As we get Harinama and we start chanting it then we start remembering Krsna. Then we remember dhama. Dhama is non different from the Lord. While doing kirtana we reach Vrindavan. Lord has brought us to Vrindavan.
Going back home, back to Godhead happens after receiving the name. The fruit of chanting is to go back to Godhead, to enter into the eternal pastimes of the Lord and stay there eternally with Lord.
So Srila Prabodhananda Sarasvati Thakur had said ten majjanti majjanti maha anarth sagare.Those who will not dive into this ocean of love, into this Krishna consciousness, into this Bhakti Rasamrta Sindhu, and into Vraja-mandala Parikrama, because braja mandal Parikrama is like immersing oneself for one month into Krishna consciousness will be cheated.
Dhama is an ocean of happiness.
itidrik sva-lilabhir ananda-kunde sva-ghosham nimajjantam akhyapayantam
tadiyeshita-jneshu bhaktair jitatvam punah prematas tam satavritti vande
We keep singing like that everyday. Iti – this kind of pastimes, as we sing in Damodarastakam. Lord performing such pastimes, like Damodara pastime, and also other pastimes, and then what happens? Anand kunde – The emotions and
happiness which is aroused out of such pastimes are so vast that it feels like big lakes. Dhama also becomes one big lake or Kunda. Vrndavan is also a big kunda, lake or ocean. Vrndavan is the ocean of the various pastimes of the Lord.
We come to Vrndavan and also take part in Vraja-mandala Parikrama and then we keep going from one to another and to another. This pastime was performed here so let's take a bath in this kunda. Now we have reached Kamavan and we are
doing the Exterior Parikrama. We are at Surabhi-kunda. Lord used to bring His cows here and they used to drink water here and then the Lord also used to drink water along with them. He used to watch them how they were drinking water. He
used to think, “She is not using any cup or glass. She is directly drinking from the lake.” Then looking at the cows the Lord used to bend down and drink the water of Surabhi-kunda like them. He never used any glass or cup. So this is also one kind of Lila. When we hear that it gives us happiness.
itidrik sva-lilabhir ananda-kunde sva-ghosham nimajjantam akhyapayantam
From one forest to another forest of Vraja is like going from one of happiness to another because everywhere so many pastimes have taken place. So listen to that and keep doing kirtana and then everywhere you will perceive full happiness. But those who don't take part in this, ten majjanti majjanti maha anarth sagare…..
Those who lose such an opportunity, where there is nama and dhama and also one has a rare human body, but still they don't try to reach dhama, or try to immerse themselves in this ocean of happiness, for them ten majjanti majjanti maha anarth sagare…. For them one more ocean is waiting. Maha-anarth sagare. You can say that there are two types of ocean or two types of universes. One is the spiritual world and the other is the material world. There are two potencies. One is the internal potency and another is the external potency. In between we are the marginal potency. For the soul there are two choices. On one side there is Vrndavan where there is Vraja-mandala Parikrama. There is the dhama of the Lord, pastimes of the Lord. Kirtana is there and also Krsna prasada. Everything is there.
But those who don't like to turn towards this, then they have the option of only the material world which is filled with all the anarthas. There are songs. There are kathas which are gram-kathas. There is also darsana of actors and actresses and their pastimes full of lust and anger, greed etc. Whole media is full of this. Unfortunately the whole world is engrossed in it. Those who will not turn to Krsna for them this world is filled with anartha sagar. There is also darsana of actors and actresses gossip. Whole world is taking a dip in that anartha sagar. Those who have joined ISKCON have reached Vrindavana and are doing Parikrama. Prabhodannada Saraswati must be surely happy seeing you here at his Bhajan Kutir. He would bless us, inspire us to progress in Parikrama as well as in our devotional life. Are all Parikrama devotees listening? Here you can see a lot of hills and valleys in Kamavan. The Lord used to come here and perform Gocaran lila. We have to remember that Nanda Bhavan is not far from here.
There are different pastimes of the Lord at different times. There is:
• Purwanha ( before noon. It starts at 8.00 am to 10.30 am) . At 8.30 am Lord starts his gocharan lila. Krsna's 9 lakh cows, his friends also and with all those cows He used to enter Kamavan. It is his nitya-lila. He used to play when the cows grazed. Actually with the pretext of grazing the cows his main objective was to play with His friends. Krsna never works He only plays. Whatever He does is just His play. All His lilas are his play. Lord has no work. He has no occupation. Whole world is busy working, but Lord only plays.
• Madhyanh which is around noon and the Lord reaches Radhakund at this time.
• Apparanha As you will move further you will take darsana of Phisalini Sila. The Lord used to slide on Phisalini Sila. You will also reach there. It's quite possible that among you some must be cowherd boys so play with the Lord on Phisalini Sila. Some may be His servants or His friends or parents or some may be His lovers.
nirodho 'syanusayanam
atmanah saha saktibhih
muktir hitvanyatha rupam
sva-rupena vyavasthitih
TRANSLATION
The merging of the living entity, along with his conditional living tendency, with the mystic lying down of the Maha-Visnu is called the winding up of the cosmic manifestation. Liberation is the permanent situation of the form of the
living entity after he gives up the changeable gross and subtle material bodies. (SB 2.10.6)
So you all must surely play on Phisalini Sila with the Lord. If I was there I also would slide on it. But I am not there, but you all are fortunate to be there so play with the Lord.
This way we enter the pastime of the Lord. We will remember Lord’s Lila and then sravan, smaran, mananam and then darsana of the Lila. I should feel can I take part in the Lord’s Lila. We become witness of that pastime and it arouses the desire in the mind, 'When will I play with the Lord? When will I be part of this Lila?’ It should arouse such thoughts in mind. It's very natural.
Then there is Vyomasura Gufa, on other side of the hill. Don't enter Vyomasura Gufa. Just see it from the outside. This is the experience of Parikrama that we touch the Lila place of the Lord, smell it, feel the presence of the Lord there. Manasik Parikrama is different. Your soul reaches there. There are lot of marks there in the stone of the Lord’s ornaments. There also you will take darsana of the lotus feet of Balarama. Vyom means sky . Vyomasura means a demon who flies in the sky. You can read from Vraja-mandala darsana. Also Radhanath Maharaja will be explaining this katha in the evening. It is also explained in Krishna book. You can read. The Lord was playing on Govardhan and Vyomasura came and started stealing the Lord's friends and taking them to Kamavana in his Gufa. Since then that cave is called Vyomasura Cave, thus he was doing a shuttle service taking boys from Govardhan to his cave. He was doing up-down. Then Krsna realised.
When we started playing there were lakhs of friends and now only few 10 – 20 are remaining. Where are the others? Then he located Vyomasur and his mischief of stealing his friends. The Lord started chasing him in sky and started fighting with him. Imagine Krsna is fighting with Vyomasura and His ornaments fell down and so the marks are on the stone. While fighting in sky at times due to some tiredness He would come down on Earth and swing back again in sky. This caused vibrations on Earth. The Earth would lose its balance so Balaram who was also playing around there and He would put His feet firmly on ground to fix the earth in it's position. That place there are footprints of Balaram. Yesterday you took darsana of Krsna's footprints in Charan pahadi. Today you will have darsana of Balaram’s footprints.
Krsna killed Vyomasura. All the demigods were happy. They showered flowers and played musical instruments. Apasaras danced to express their happiness for the victory of the Lord. Imagine all these Lilas are happening now also.
In Exterior Parikrama you will go to Bhojan sthali , the place where the Lord had Bhojan. It is also called Bhojan Thali. He ate with His friends. The dishes were kept on the stone as He did not bring any plates. They used leaves or petals of large flowers as their plates . This nitya lila happens daily. It will happen today also.
Today you are going to enter that lila as Lord did bhojan there. You will also have bhojan there. As the Lord was taking his meals there, that stone melted and the Lord made that His plate. There are marks of plates and katori there. You will have the opportunity to take prasada there. When you are hearing the pastimes, remembering it that means we are not far from the lila. You are physically, mentally, spiritually there which means almost you all have entered the lila of Lord. When you are having darsana of this Lila it's very fortunate being here by hearing about the pastimes. We become enriched. Parikrama is mostly about hearing Hari katha. If you are not hearing, if we don't do Sravan, Kirtana and smaran of pastimes of the Lord then what's the use of going to Parikrama? We do Parikrama for sravan . That's the main objective. In this forest this pastime happened. In that forest that lila thus talking and thinking about these pastimes, if we are remembering the Lord that means we are with the Lord and not away from Him. Remembrance is the fruit of sravana and kirtana. When you reach Bhajan sthali , also share such pastimes with each other. so "bhunkte bhojane chaiva” – have prasada there and display your priti laksanam. When the cowherd boys used to have lunch there they used to give it to Krsna and also their other friends. Gopas did not offer food to Lord in the temple.They never wandered searching for a temple to offer bhoga. There was no need of it as their Lord used to be right in front of them. Whatever food they brought from home they gave it directly to Krsna first. They fed Him and then they ate.
Understand what kind of friendship they had with Krsna. They were not only His friends but also of the other gopas. Take note of this. So those who are going on Parikrama with you they are all your friends. Lord is also there in the form of his Lila and kirtana. Nitai Gaur Sundar is also with you. Dhama is also the form of the Lord. But where are the friends? You are walking with friends. This is the group of friends walking together. If you try to develop friendship with only the Lord it will be incomplete. Try to become friend of His friends. This is very important. Cowherd boys were not only friends of Krsna but also of the other gopas. On Parikrama you should contemplate on how you can maintain friendship with all other devotees on Parikrama.
sarvopadhi-vinirmuktam
tat-paratvena nirmalam
hrsikena hrsikesa-
sevanam bhaktir ucyate
Translation
Bhakti, or devotional service, means engaging all our senses in the service of the Lord, the Supreme Personality of Godhead, the master of all the senses. When the spirit soul renders service unto the Supreme, there are two side
effects. One is freed from all material designations, and one’s senses are purified simply by being employed in the service of the Lord.(CC Madhya lila 19.170)
Cast off the envy and jealousy among each other. sarvopadhi-vinirmuktam Forget all designations and love devotees.
dadati pratigrhnati
guhyam akhyati prcchati
bhunkte bhojayate caiva
sad-vidham priti-laksanam
Translation:
Offering gifts in charity, accepting charitable gifts, revealing one's mind in confidence, inquiring confidentially, accepting prasada and offering prasada are the six symptoms of love shared by one devotee and another. (NOI. Verse 4)
As Prabhupad has explained in Nectar of Instruction, display signs of your affection ( Priti laksanam ) with other devotees. It's easy to love the Lord but to love devotees is more important and that should not be just lip service, but practically. Do service to devotees. Young devotees can help old devotees. The management is serving very nicely, but still you also serve, your behaviour should be friendly. Friend in need is friend indeed. When we are in need that time we should see who helps us. When we're in trouble one who helps us is our real friend. In this area
where the Lord played with His friends, try to see how you also can be a friend with others. Become a friend of the Lord. Then only you can play with the Lord. Again I am stressing don't become a friend only of the Lord but also of his friends. Then only you can enter His Lila. We have to have some exchanges with the friends of the Lord so on Parikrama also we should have friendly relations with each other, with the devotees of the Lord.
I hope you heard the talk with patience. You have to move ahead. I held you back. That's the problem with me. If I speak it takes a long time.
Happy Diwali to all of you!
Move ahead in the Lilas of the Lord.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
26th अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण !!!
आप सभी जप करने वाले भक्तों को मेरी ओर से हरे कृष्ण !
आप सभी जप को रोक सकते हो, तभी जपचर्चा होगी। कुछ जरूरी सूचनाएं आप सभी से साझा कर रहा हूं। अब से यह जप चर्चा हिंदी में होगी और उसका अनुवाद अंग्रेजी में होगा ।आज जप चर्चा पर चर्चा थोड़ी देर से शुरू हो रही है, लगभग 6:45 पर, जो कि 7:00 बजे तक चलती रहेगी। अतः आप सभी हिंदी भाषी भक्तों से भी विशेष निवेदन है कि आप सभी जपचर्चा के समय कुछ भी टाइपिंग ना करें। ना अंग्रेजी में, नाम मराठी में और ना ही हिंदी में ताकि जप चर्चा में अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ने वाले जो भक्त हैं और जो केवल अंग्रेजी ही जानते हैं उन्हें कोई परेशानी ना हो । इस अनुवाद के साथ में कोई प्रश्न कमेंट या रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए ।
नहीं तो जपचर्चा समझने में दिक्कत होगी । जो जप करते समय टाइपिंग कर रहे हैं कृपया उसे पूर्णता बंद कर दें। अब आप हाथ जोड़कर इसे सुनते रहिए। कृपया अपनी उंगलियों का प्रयोग टाइपिंग करने में ना करें। वैसे मैंने कहा था ज्यादा रिपोर्टिंग नहीं करूंगा, लेकिन देखते हैं कुछ अच्छे रिपोर्ट तो आए ही हैं । ऑस्ट्रेलिया से वीर प्रशांत एंड कंपनी चैतन्य भागवत बता रहे है कल वहां ऑस्ट्रेलिया में दिवाली मेला संपन्न हुआ। उस दिवाली मेले में हमारे प्रभु जी लोग भी गए और 1100 लोगों से दीपदान करवाया।
हरी हरी !
अतः यह एक बहुत ही बड़ी खबर है ब्रेकिंग न्यूज़ है ।
हरी हरी !
आप प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं इस रिपोर्ट से। अगर ऑस्ट्रेलिया में 1100 हो सकते हैं तो भारत में 11000 या 11 लाख भी हो सकते हैं।
हरि हरि !
यहाँ “रियूनियन आईलैंड “ से आपको बताता रहता हूं समय-समय पर वहां एक दयालु राधा माताजी हैं । उन्होंने रिपोर्ट किया है, कि उन्होंने वहां अपने देश में या अपने द्वीप में रेडियो पर दामोदर अष्टकम या उसकी कथा वहां के लोगों को सुनाई । हो सकता है वहां फ्रेंच भाषा चलती है तो फ्रेंच भाषा में सुनाई होगी। तो यह कुछ नया सा है। कुछ विशेष प्रगतिशील विचार है । रेडियो पर ही क्यों, टेलीविजन पर प्रिंट मीडिया में भी इस तरह के विचार निकाल सकते हैं , उससे और अधिक प्रचार बढ़ेगा। राखी गणेश ने बेंगलुरु में 422 विद्यार्थियों से और किसी दुर्गा मंदिर में भी लोगों से दीपदान करवाया। इतने सारे बच्चे दीपदान कर रहे हैं स्कूल में , तो आप फोटोग्राफ लीजिये और थोड़ा कुछ लिखित में भेजिए समाचार पत्रों को, मुझे विश्वास है कि वो लोग इसे प्रकाशित करेंगे ।
महाराष्ट्र के सांगली में हमारे दीपक प्रभु हैं। जो वहां के एक साप्ताहिक बाजार में गए और उन्होंने लगभग 400/ 500 लोगों से दीपदान करवाया। हमारी मंजुला माताजी ने आज प्रातः कालीन मंगला आरती के समय कई सारे माता-पिता को उनके बच्चों सहित बुलाया और उनसे दीपदान करवाया। इस प्रकार से और भी कई सारे समाचार आ चुके हैं जो आप पढ़ ही रहे हैं तो जब आप रिपोर्ट भेजते हैं या टाइप करते हैं तो वह सिर्फ मेरे लिए ही नहीं अपितु आप सभी के लिए भी है। तो आज ये समाचार 530 भक्तों के लिए है। मुझे विश्वास है कि आप सभी इसे पढ़ते ही होंगे। अतःआप सभी भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं और मैं भी दे सकता हूं।
आप जो भी अपनी रिपोर्ट या कमेंट भेजते हैं जप से संबंधित अपने साक्षात्कार भेजते हैं ,सबके लिए आपका स्वागत है। आप सभी के लिए यह मुफ्त है। कई प्रकार के रिपोर्ट आप टाइप करते हैं यह बुरा नहीं है। आज एक रिपोर्ट आया, उज्जैन में मूल रूप प्रभु की बेटी आईसीयू में है। उनके लिए प्रार्थना करें , ऐसा निवेदन किया गया । जब मैंने यह पढ़ा तो मैंने प्रार्थना की और इतने में परम करुणा प्रभु नागपुर से उन्होंने आपकी प्रार्थना पढ़ी भी और लिख कर प्रतिक्रिया भी दी। यह एक उदाहरण है प्रत्युत्तर देने के लिए। इस प्रकार आप भी प्रश्न के उत्तर दे सकते हैं, लिख सकते हैं , ग्लोरिफिकेशन अथवा सम्मान कर सकते हैं अगर किसी भक्त को सहानुभूति की आवश्यकता है इत्यादि । तो जो भक्त रिपोर्ट भेजते हैं, आप मत चाहो कि मैं अकेला ही जवाब देता रहूंगा क्योंकि यह सभी के लिए है । आप भी अपने कमेंट लिख सकते हैं या पढ़ सकते हैं आप भी फ्री हो अपने कमेंट रिपोर्ट या सहानुभूति के लिए । अब समय थोड़ा कम बचा है क्योंकि वास्तविक जपचर्चा में, तो जप के संबंध में या नाम के संबंध में ,भगवान के रूप गुण लीला धाम के संबंध में कहना चाहिए जपचर्चा के अंतर्गत जो की ज्यादा आवश्यक है ।
हरी हरी !
तो याद रखिए ब्रज मंडल परिक्रमा हो रही है और आप परिक्रमा में नहीं हो, या फिर कहा जा सकता है कि आप की ओर से कुछ भक्त, आपके भ्राता श्री या माता श्री या पिता श्री या गुरु भाई ,गुरु बहन ,गुरु भतीजे ,गुरु चाचा ,परिक्रमा कर रहे हैं । तो आप उनको भी याद कीजिए और उसी के साथ आपको धाम स्मरण होगा। धाम के स्मरण के साथ आपको भगवान का स्मरण होगा और भगवान के स्मरण के साथ ही भक्त जहां भी परिक्रमा कर रहे हैं वहां की लीलाओं का स्मरण होगा । कार्तिक में यह अच्छा विषय वस्तु है । भगवान के स्मरण के लिए हम ब्रज मंडल परिक्रमा करें। हरि भक्तों का स्मरण करें कि आज वह कहां है और किन स्थानों पर गए , उन स्थानों में कौन-कौन सी लीलाएं भगवान ने संपन्न की। इसलिए हम आपसे निवेदन कर रहे हैं कि “ब्रजमंडल दर्शन” ग्रंथ पढ़िए। यह विशेषकर उन भक्तों के लिए लिखा गया है जो भक्त प्रतिवर्ष या इस साल परिक्रमा नहीं कर सकते या नहीं कर रहे हैं इससे आपको भी परिक्रमा करने का लाभ हो सकता है। घर बैठे बैठे आप मानसिक परिक्रमा कर सकते हो जैसे कि आप रोज एक अध्याय पढ़ोगे। कौनसा अध्याय ? जिसका वर्णन आज की परिक्रमा जहां है उसके बारे में दिया है। जैसे आज काम्यवन में और उसके कुछ अंदरूनी क्षेत्रों में हैं और कल भी काम्यवन और उसके कुछ बाहरी क्षेत्रों में होगी। तो वह अध्याय खोलिए उसमें 30 दिवसीय परिक्रमा है।
दामोदर मास में जितने दिन हैं ,उतने दिनों तक परिक्रमा चलती है। अतः आपके पास जो समय सारिणी है उसके अनुसार वह अध्याय खोलिए और उसको पढ़िए तो आप वहां पहुंच जाओगे , आप का मन वहां पहुंच जाएगा, आपकी आत्मा आपका ध्यान वहां पहुंच जाएगा। फिर आप इस जगत में या नागपुर में नहीं रहोगे। बैठे तो हो यहाँ वहां जैसे अर्चाविग्रह माताजी पुणे में बैठी हैं। आपका शरीर वहां बैठा रहेगा लेकिन आपका मन, आपकी चेतना वृंदावन पहुंच जाएगी। इस प्रकार आप स्वयं को वहां स्थानान्तरित कर सकते हो। आप स्वयं को वृंदावन पहुंचा सकते हो जब आप वह अध्याय पढ़ोगे और भी ग्रंथ पढ़ सकते हो। प्रभुपाद का “लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण” नाम का ग्रंथ है। जहां भी लीला हुई उन लीलाओं का वर्णन तो भागवत में है ही ,और प्रभुपाद की कृष्ण लीला बुक में भी है। उसी का उल्लेख “ब्रजमंडल दर्शन “में हुआ है । संक्षिप्त में तो आपके लिए थोड़ा काम आसान किया गया है । “ब्रजमंडल दर्शन “परिक्रमा नाम के इस ग्रन्थ में परिक्रमा का सारा अनुभव भी है भक्तगण कब और कहाँ गए उन्होंने क्या किया , क्या सूंघा सभी अनुभवों का वर्णन इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया हुआ है । आज परिक्रमा कहां है आपको पता होना चाहिए, आप वह अध्याय खोलिए यह आपका आज का ग्रह कार्य है।
आप इसको पढें, आप इसको समूह में पढ़ सकते हो , अपने परिजन के सभी सदस्यों को ,अपने इष्ट मित्रों को , पड़ोसियों को बुलाइए जैसे ग्वाल बाल सखा भगवान के साथ संध्या काल को अपने घरों में पहुंचते ही अपने माता-पिता को बुलाते थे। आ जाओ आ जाओ और कहते कि आज क्या क्या हुआ बाबा, आज क्या क्या हुआ माँ , आज यह हुआ, वह हुआ इत्यादि और भी लोगों को बुलाते थे , बिठाते थे और अन्य ग्वालो को अपने अनुभव साझा करते थे कि, आज हम वहां गए, आज हमने एक ऐसा प्राणी देखा, हमने सोचा कि यह कोई गुफा है। हम गुफा सोच कर अंदर घुसे लेकिन वह गुफा थोड़े ही थी वह तो अजगर था और कुछ देर के बाद में सौभाग्य से कन्हैया ने भी वहां प्रवेश किया। हम जैसे ही उसके पेट में पहुंचे उसने अपना मुंह बंद करने का प्रयास किया तो कन्हैया ने अपना आकार बढ़ा दिया और उसी के साथ अघासुर का वध हुआ। फिर हम भागे दौड़े आए कृष्ण कन्हैया लाल की जय ! कृष्ण कंहैया लाल की जय ! कहते हुए। तभी हमने देखा कि उस समय आकाश में कई सारे देवता भी वंहा पहुंचे हुए थे। नगाड़े बज रहे थे अप्सराएं नृत्य कर रही थी। हमने यह सब देखा और सुना, फिर अपनी घड़ियों की ओर देखा तो अब हमारा दोपहर के भोजन का समय निकल गया था। फिर बाद में हम लोग भोजन के लिए बैठे, किन्तु हमे बछड़े कहीं दिख नहीं रहे थे , तब कन्हैया ने कहा ,मित्रों तुम सब यहां बैठो और भोजन करो ,मैं बछड़ो को ढूंढ कर लाता हूं। कन्हैया गए तो बछड़ो को ढूंढने के लिए, फिर वापस भी आ गए लेकिन तब हम वहां नहीं थे। मित्रों ने कहा या बताया होगा उस दिन जो भी हुआ ।
एक साल के बाद बात आगे बढ़ी, एक साल तक कोई चर्चा नहीं हुई। किसी ग्वाल बाल ने अपने घर में साल भर तक अघासुर वध की कथा नहीं सुनाई । ऐसा शुकदेव गोस्वामी ने कहा तो राजा परीक्षित ने पूछा ऐसा कैसे संभव है की साल भर तक के लिए किसी ने कुछ नहीं कहा ? क्योंकि ग्वालबाल संध्याकाल में अपने घरों को पहुंचकर अपने माता पिता को दिन भर की भगवान की लीलाएं या ब्रज मंडल का अनुभव सुनाते थे और वे वहां नहीं थे। एक साल के लिए ब्रह्मा ने उनको चोरी कर रखा था। कृष्ण कन्हैया की लीलाएं अपने घरों में पहुंचाने वाले ग्वाल बाल एक वर्ष के लिए गायब थे या ब्रह्मा ने चोरी की। इसलिए उनकी कोई चर्चा ही नहीं हुई, किसी को पता ही नहीं था । इस प्रकार मैं आपको यह कहना चाह रहा हूं कि किस प्रकार ग्वाल बाल सुनाया करते थे अपने माता-पिता या इष्ट मित्रों को जो नहीं गए थे या उनको जो उन लीलाओं का दर्शन करने के लिए कृष्ण कन्हैया के साथ नहीं थे ग्वाल बालों के माध्यम से उनको समाचार मिलते थे ।
इसी प्रकार हम लोग जो परिक्रमा नहीं कर रहे उनके लिए समाचार पहुंचाने के उद्देश्य से यह “ब्रजमंडल दर्शन” ग्रंथ दिया गया है । गीता, भागवत, भक्तिरसामृत सिंधु ये सारे ग्रंथ पढ़े जा सकते हैं। इन सब लीलाओं का ब्रजमंडल अनुभव आप कर सकते हो, हमने स्वयं कुछ-कुछ गृह कार्य करके आपके लिए ब्रजमंडल दर्शन परिक्रमा के माध्यम से वह अनुभव तथा लीलाएं इत्यादि जो हैं , वह लिख के रखा ही है। उसे भी आप पढ़ सकते हो अथवा आप अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ पढ़ो और इष्ट मित्रों के साथ पढ़ो। भोजन अवकाश के अंतर्गत अपने कुछ सहयोगी के साथ भी पढ़ सकते हो, एक व्यक्ति पढ़ सकता है अथवा बाकी लोग भोजन करो। इस प्रकार से अगर आप बैठे हुए हो तो भी आप यह कर सकते हो। आप ही ब्रजमंडल परिक्रमा का एक अध्याय रोज पढ़ कर सुनाओ इस तरह आप वृंदावन के , ब्रज या दामोदर मास के मूड में रहो । तो अब समय हो गया है, अतः आप सब का आभार जो आपने इस जप के समय हमारा साथ दिया।
दिनभर आप व्यस्त रहते हो दीपदान में भी और दामोदर मास की तैयारियों में भी, गोवर्धन पूजा की भी तैयारी आप लोगों ने की होगी , कुछ दिनों में गोवर्धन पूजा है और वैसे कल या परसों दिवाली भी है। दिवाली मेला तो ऑस्ट्रेलिया में पहले ही मनाया गया लेकिन वास्तविक दिवाली तो कल है। कुछ कि कल है , कुछ कि परसों, तो देख लो आप अपने अपने देश के या शहर के वैष्णव कैलेंडर में उसकी भी तैयारी करनी है। जिस दिन यह लीला संपन्न हुई “दामोदर लीला” दाम – डोरी से, उदर बांधने की , वह दिवाली के दिन की है । अतः विशेष दिन एक-दो दिन ही दूर है तो यह विशेष दिन ,विशेष भाव के साथ, विशेष संख्या के साथ, गुणवत्ता के साथ दिवाली मनाइए।
हरि हरि !
गौर प्रेमानंदे।।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप टॉक
25 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज 502 प्रतिभागी हैं। अब यह बढ़कर 510 हो गए हैं। मैं आज से इस जपा टॉक में केवल हिंदी में ही बात किया करूंगा और जब मैं जपा टॉक हिंदी में कहूंगा तब गौर भगवान प्रभु उसी समय साथ ही साथ उसका अंग्रेजी में अनुवाद टाइप किया करेंगे जिसको ट्रांसक्रिप्शन भी कहते हैं।अंग्रेजी में टाइप किए हुए जपा टॉक को अंग्रेजी भाषी अर्थात जिन्हें हिंदी समझ में नहीं आती पढ़ सकते हैं और जो अंग्रेजी भी नहीं समझते जैसे रशियन भक्त, उनके लिए भी धीरे-धीरे व्यवस्था की जाएगी। मेरे हिंदी टॉक को गौर भगवान प्रभु जब अंग्रेजी में टाइप करेंगे तब उसको देखते हुए रशियन भक्त उसका अनुवाद रशियन भाषा में कर सकते हैं। जब जपा टॉक शुरू होगा तब आपको एक सावधानी बरतनी होगी। आपको जो लिखने की आदत पड़ी हुई है, आप कमैंट्स या प्रश्न लिखते रहते हो,अब वह सब नहीं हो सकता। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात आपको समझनी होगी और ऐसा करना भी होगा। जपा टॉक शुरू होते ही आप जो चैट सेंशन में लिखते हो, वह नहीं लिख पाओगे क्योंकि मेरे जपा टॉक का हिंदी से अंग्रेजी में जो भाषांतर है,
हम केवल उसी को भक्तों को दिखाना चाहते हैं जिससे वह पढ़ सके। यदि आप सब भी लिखते रहोगे तो सब मिक्स(मिश्रित) होगा। हम ऐसा करने की यह नई पद्धति बना रहे हैं। इससे समय की बचत होगी। उससे थोड़ा समय तो बचेगा ही।जपा टॉक आधे घंटे के लिए चलता है परंतु मैं केवल 15 मिनट के लिए बोलता हूं। आप में से कई भक्त अंग्रेजी और हिंदी समझते हैं।आपको भी ऐसे बैठे रहना पड़ता है। वही बातें दो-दो बार सुननी पड़ती है, एक बार अंग्रेजी में सुनो, फिर हिंदी में भी सुनो। यह जपा टॉक 6:30 की बजाय 6:45 पर शुरू करने का विचार है। इससे मंदिर के भक्तों को भी जप करने का थोड़ा अधिक समय मिलेगा। यह जपा टॉक हिंदी में लगभग 15 मिनट के लिए होगी। उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में उन भक्तों के लिए टाइप होगा जो हिंदी नहीं जानते, भारतवासी या अन्य देशों के भक्त भी इस कॉन्फ्रेंस में हैं। वे अंग्रेजी में इसको पढ़ सकते हैं। जो अंग्रेजी में नहीं पढ़ सकते उनके लिए अंग्रेजी का रशियन भाषा में अनुवाद की योजना भी धीरे-धीरे बनाई जाएगी। क्या आप सब समझ रहे हो? आपको टाइप नहीं करना है। जब यह जपा टॉक होगा तब आपका टाइपिंग बंद अर्थात जब जपा टॉक होगा तब आप हिंदी या अंग्रेजी या मराठी या किसी भी भाषा में टाइपिंग नहीं करोगे।
हम अंग्रेजी का अनुवाद भक्तों को दिखाना चाहते हैं। वे देखकर इसे पढ़ सकते हैं। मैं यह सोच रहा हूं कि आप जो कमेंट और टाइपिंग करते हो, उसको मैं पढ़ लूंगा लेकिन उस पर कमेंट या रिपीट करने का प्रयास नहीं करूंगा। आप सभी को पढ़ने का मौका मिलता ही है। आप जप के समय या दिन में भी उसको पढ़ ही सकते हो, आपके पास पढ़ने के लिए पूरा दिन है। हमारे पास ऐसी सुविधा है कि आप दिन में स्वयं उसे पढ़ या लिख सकते हो। आप उसको भी समझ जाओ। आप दिन में लैटस चैंट टुगेदर फेसबुक पेज पर कमेंट, प्रश्न या अनुभव पढ़ या लिख सकते हो। ऐसा मैं सोच रहा हूं कि हम जपा सेशन में उसकी चर्चा नहीं करेंगे या कम ही करेंगे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे।।
आपको हमारी पॉलिसी के बारे में बातें समझ में आई कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। क्या आपको पता चल रहा है? हरिबोल!
अब हम आपसे कुछ वार्तालाप करना चाहते हैं। आप लिखना बंद कर दीजिए।
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द
श्रीअद्वैत गदाधर
श्रीवासादि – गौरभक्तवृन्द
आप सभी न्यूनतम 16 माला जप कर ही रहे हो। आप में से किसी ने रिपोर्टिंग की है कि आप में से कुछ भक्त अधिक माला का भी जप कर रहे हैं। सोलापुर से अम्बरीष महाराज प्रभु ने 128 माला का जप किया। गणेश प्रभु ने 64 माला का जप किया। 51 माला का जप करने वालों ने भी रिपोर्ट की है। अधिक राउंडस (माला) करने वालों का स्वागत है लेकिन यह गुणवत्ता 16 माला की है या 25 माला की या अधिक माला की। कल एकादशी थी, इसलिए भी आपने अधिक जप किया होगा या फिर दामोदर मास में आपने अधिक माला करने का संकल्प लिया होगा। आप क्वांटिटी बढ़ा रहे हो इसका स्वागत है परंतु महत्वपूर्ण बात क्वालिटी की है। आप एक माला या आठ माला या 16 माला या 32 माला या 64 माला या 128 माला का जप कर रहे हो परंतु क्वालिटी बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्वांटिटी भी है लेकिन उसकी गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण है।
क्वालिटी में मुख्य बात ध्यान की होती है। जब कोई क्वालिटी(गुणवत्तापूर्ण) जप करने को कहता है तब क्वालिटी का अर्थ ध्यानपूर्वक जप करना होता है। जप ध्यानपूर्वक करना चाहिए अर्थात जप गुणवत्तापूर्वक होना चाहिए। क्या आपने गुणवत्ता बढ़ाई या आपने गुणवत्ता की तरफ पूरा ध्यान दिया। हमें प्रतिदिन ध्यानपूर्वक जप करने का अभ्यास करना है। हम ध्यानपूर्वक अभ्यास करेंगे। जप को एक शब्द में ही कहा जा सकता है कि जप कैसा करना चाहिए- ध्यानपूर्वक जप करना चाहिए। कोई कह सकता है कि प्रेमपूर्वक जप करना चाहिए। यह उसी का दूसरा नाम हुआ। ध्यान पूर्वक जप करेंगे तो प्रेमपूर्वक जप होगा ही। कोई कह सकता है कि हमें अपराध रहित जप करना चाहिए। हमनें ध्यानपूर्वक या प्रेमपूर्वक जप करने का अभ्यास किया है या हम कर रहे हैं तब हमनें अपराध रहित जप करने का प्रयास भी किया होगा ही। यदि हम अपराध रहित जप करने का प्रयास करेंगे तभी तो ध्यानपूर्वक या प्रेमपूर्वक जप करेंगे।
हार्दिक! तुम सुन नहीं रहे हो। सुनो, मुझे सुनो! अभी खुद के जप को नहीं सुनना है। आपके जप में सुधार लाने के लिए आपको कुछ सुनाया जा रहा है। यदि आप सुधार की बातें सुने बिना ही जप करते रहोगे तो यह आपका बिजनेस है जोकि अपराध पूर्ण है, यह है या वह है और वह ऐसे ही चलता ही रहेगा। ध्यान के संबंध में वृहदअरण्य उपनिषद में कुछ सुझाव दिए गए हैं एवं कुछ विधियां समझाई गयी हैं। कुछ दिन पहले सच्चिदानंदन स्वामी महाराज ने भी जप के विषय में लिविंग नेम्स नामक एक और ग्रंथ लिखा है। उसमें मुझे यह पढ़ने को मिला। वैसे मैं आपको पहले भी यह विभिन्न तरीके से या कुछ अंश एक समय, दूसरा अंश दूसरे समय कह चुका हूं लेकिन मैं आपको एक साथ यह गाइडलाइन, यह विधि यह ध्यान पूर्वक जप करने की विधि जितना संक्षिप्त हो सके उसको सुनाना और बताना चाहता हूं।
हमारे पास समय कम है। कुछ आज कहूंगा फिर कभी पुनः किसी दिन कुछ और भी कहूंगा। इसमें श्रवण, मनन, निधि अभ्यास है। सच्चिदानंदन महाराज ने श्रवण, मनन, निधि अभ्यास के साथ वन्दनम (प्रार्थना) को जोड़ दिया है।
वैसे श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं …. हम कोई भी बात या मंत्र श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं कहते हैं या हम कृष्ण के संबंध में कोई भी बात सुनते हैं, उसको श्रवण कहते हैं किंतु यदि हम केवल उसको सुन लेते हैं तो उससे हमारा श्रवण समाप्त नहीं होता है और न ही होना चाहिए। वह तो श्रवण की शुरुआत ही होती है, सुनी हुई बात को और सुनते रहो। जब हम कोई बात सुनते हैं, वह ध्वनि उत्पन्न करती है। कुछ बातें ध्वनित होती हैं, कुछ कंपन होता है, उसको सुनने से हम उसका कुछ अर्थ, भावार्थ या कुछ गूढ़ अर्थ समझते हैं।उसी को मनन कहते हैं। हमने सुना अथवा श्रवण किया, उसको आगे समझना चाहिए कि हमने क्या सुना है? हमनें जो हरे कृष्ण, हरे कृष्ण सुना है, श्रवण किया है, यह क्या है? हरे क्या है? कृष्ण क्या है? मैंने क्या सुना है? इसका अर्थ क्या है? भावार्थ क्या है? यह हरे कौन है? यह कृष्ण कौन है? ऐसे विचार उत्पन्न होना और उस पर ध्यान करना ही मनन कहलाता है। सच्चिदानंदन महाराज लिखते हैं कि हमने श्रवण किया अर्थात हम किसी विषय वस्तु को अपने कान तक लाएं। उन्होंने इसकी तुलना खाने की प्रक्रिया से की है। जैसे कि हम कोई वस्तु खाते हैं या अन्न, कोई प्रसाद, कोई घास अपने मुख तक लाते हैं अर्थात हमनें श्रवण किया अथवा हम उसे अपने कान के परदे तक लाए, कुछ ठक ठक हुई, कुछ घंटी बजी। हम कोई बात, वस्तु , नाम या होंठों तक लाए। मनन का अर्थ है उसको चबाना, उसको समझना कि वह कौन सा पदार्थ है? यह क्या है? इसका कौन सा स्वाद है? उसी समय हम उसका थोड़ा अर्थ या भावार्थ के साथ रस अनुभव करने लगते हैं।
हम जो भी बात सुनते या खाते हैं, उसको चर्वण करके अथवा चबाकर भली-भांति समझने का प्रयास करते हैं। हमें सुनने में ज़्यादा समय नहीं लगता, यदि हमने कोई भी बात सुनी और खाई है अर्थात हमें उसको होठों तक लाने में और जिव्हा तक रखने में ज्यादा समय नहीं लगता है लेकिन हमें उसी पदार्थ या व्यंजन को चबाना भी होता है। जैसे कि कहा है कि हमें उसे 32 बार चबाना चाहिए। भगवान ने हमें बत्तीस दांत दिए हैं इसलिए उसे 32 बार चबाना चाहिए। हम जितना अधिक चबाएंगे, उतना अधिक रसास्वादन होगा। श्रवणं और उसके पश्चात मनन लेकिन यहाँ बात समाप्त नहीं हुई। इसे श्रवण की विधि का रूपांतर कह सकते हैं। हम लोग श्रवण से मनन की ओर जाते हैं, फिर वहां पर भी बात समाप्त नहीं होती है फिर वहां निधि अभ्यास शुरू होता है। उसका ध्यान शुरू होता है। वह अंश जिन्हें हम होठों तक लाए थे, तत्पश्चात जिव्हा पर रखा जाता है। पहले उनका श्रवण हुआ, फिर चर्वण हुआ। फिर होठों पर लाकर दांतों और जिव्हा पर लाकर उसको चर्वण किया, उसका मनन किया, ध्यान लगा कर उसे समझने का प्रयास किया। हमें उसका कुछ स्वादन होता है। फिर हम भेदय तक पहुंच जाते हैं।
निधि अभ्यास अभी चालू ही है। श्रवण हुआ, मनन हुआ, फिर निधि अभ्यास होगा। उस खाने के पार्टिकल्स से उसके और छोटे-छोटे कण बनाए जाएंगे, उसका चर्वण होगा। पेट में उसके छोटे-छोटे कण बनेंगे, अंततोगत्वा उन कणों का रस बनेगा। रस से रक्त बनेगा और उसका उपयोग शरीर के पोषण के लिए होगा अर्थात शरीर की पुष्टि होगी। जैसा कि कहा है अन्न से पूरा शरीर बनता है। अन्न पहले जिस प्रकार से था अगर हम उसको सीधा पेट में डाल देंगे तो उल्टी भी हो सकती है या डायरिया हो सकता है। उसका शरीर के कल्याण/ पोषण या वर्धन के लिए कोई उपयोग नहीं होगा। अतः पहले हमने श्रवण किया, मनन किया फिर यदि उसका निधि अभ्यास किया अर्थात पेट तक पहुंचाया। हम इसे रक्त या भक्ति के रस भी कह सकते हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे से उत्पन्न होने वाले जो भक्ति के रस हैं, अंततोगत्वा इस रस का पान ही हमारा लक्ष्य है। हमारी आत्मा इसका रसपान करे जिससे हम आत्मा के महात्मा बने या हमारी आत्मा महात्मा बने। हमारी भक्ति में वर्धन हो। भक्ति का शोषण नहीं हो अपितु पोषण हो। यह निधि अभ्यास और ध्यान श्रवण से हुई बात को इसका रूपांतरण मनन में करके निधि अभ्यास तक इस हरि नाम के और कई सारे भावार्थ उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे भक्ति उत्पन्न होती है या रस उत्पन्न होता है। जब उसका आस्वादन आत्मा करती है तब वही जपयोग और भक्ति योग होता है। जब हमने भगवान के नाम हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण किया, हरे कृष्ण हरे कृष्ण ध्यान करने से उसका मनन करने से निधि अभ्यास करने से आत्मा को हरि नाम का परिचय होगा। नाम चिंतामणि रस विग्रह या हरि नाम रस की खान है। यह नित्य शुद्ध मुक्त और पूर्ण मैं ठीक ढंग से नहीं कह रहा हूँ किंतु चार बातें तो हैं ही।
यह नित्य शुद्ध है, यह पूर्ण है, ये मुक्त है यह सब साक्षात्कार आत्मा को होने लगेंगे। हम लोग इसी के साथ आत्मसाक्षात्कारी या भागवत साक्षात्कारी बनेंगे या साक्षात्कार की पूर्णता की सिद्धि को प्राप्त करेंगे। अभिन्नतवाम नाम नामिनो यह नाम और नामी अभिन्न है। यह नाम ही तो भगवान है। ऐसा आत्मा का साक्षात्कार है। मैंने उसी के साथ लगभग कहा था या कहना चाहता हूं कि हमनें यह जपयोग या भक्ति योग श्रवण किया, यह हरिनाम महामंत्र है। मनन से, निधि अभ्यास से ऐसा उसको बनाया गया जिससे आत्मा उसका पान या आस्वादन कर सकती है। वहां हरि नाम अर्थात हरि और आत्मा का मिलन हो रहा है। यही सिद्धि / पूर्णता या साक्षात्कार है। बृहद अरण्यक उपनिषद में यही तीन विधि समझाई गयी है श्रवणं, मनन, निधि अभ्यास। सच्चिदानंदन महाराज ने वंदना (प्रार्थना) को जोड़ दिया है कि भगवान से प्रार्थना करो, हरि नाम को प्रार्थना करो, हरिनाम का आभार मानो, हरिनाम के चरणों में वंदना करो। अपनी आत्मा की तरफ से कुछ रिस्पांस करो। भगवान कुछ कह रहे हैं, हरिनाम कुछ कह रहा है, कई सारी बातें ध्वनित हो रही हैं। आत्मा भी अपना आभार प्रकट कर रही है या हर्ष का अनुभव कर रही है। इसी के साथ वंदना (प्रार्थना) कर रही है। आत्मा भी बोल रही है, विचार उत्पन्न हो रहे हैं जिसको भगवान सुन रहे हैं। उस भगवान नाम को या उस भगवान के नाम से ध्वनित होने वाली बातों को आत्मा सुन रही है।
हरि! हरि!
संक्षिप्त में ऐसा कहा जा सकता है।समय बीत चुका है। हम लोग यहाँ रुक जाते हैं, कल हम आगे इस बात को आगे बढ़ाएंगे या कोई और बात पर चर्चा करेंगे।
हरे कृष्ण!
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23 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आप सभी का इस जपा कॉन्फ्रेंस में स्वागत है। मैं बहुत प्रसन्न हूं कि आप सभी जप कर रहे हैं और अपने परिवार के सदस्यों को भी जप करवा रहे हैं। आप में से अधिकांश लोग कहते थे कि उनके परिवार के सदस्य पहले जल्दी सुबह नहीं उठ पाते थे परंतु अब जब से यह जपा कॉन्फ्रेंस शुरू हुई है, अब वे भी सुबह जल्दी उठ कर जप कर रहे हैं। यह बहुत अच्छा है और लाभदायक भी है।
आज हमारे साथ 552 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। भक्तों की संख्या तो काफी अधिक है लेकिन 552 स्थानों से भक्तों ने ज़ूम पर लिंक किया है। भुवनेश्वर से तरुण कृष्ण प्रभु अपनी पत्नी, बच्चों, अपने माता-पिता और अपने ग्रैंडपेरेंट्स के साथ में जप कर रहे हैं। इस प्रकार से कई भक्त अकेले जप नहीं करते अपितु अपने परिवार के सदस्यों के साथ जप करते हैं। मैं देख रहा हूं कि कई भक्त सामूहिक जप कर रहे हैं। कई युवा, वृद्ध व परिवार के अन्य कई सदस्य एक साथ बैठकर जप कर रहे हैं। यह काफी उत्साहवर्धक है।
आज अभी मुझे एक बहुत ही अद्भुत दृश्य देखने को मिला है कि हरिमुरारी प्रभु जो कि अहमदाबाद से हैं, वह और उनकी पत्नी ब्रजमंडल परिक्रमा में जप कर रहे हैं। वे आज डिग से बद्रीनाथ जा रहे हैं। अहमदाबाद में उनके बच्चे संकीर्तन और प्रेरणा भी अपने घर पर बैठकर जप कर रहे हैं। माता-पिता परिक्रमा में जप कर रहे हैं और बच्चे अपने घर पर बैठकर जप कर रहे हैं। मैं यह सब देख पा रहा हूं। मुझे यह सब देखकर बहुत ही अच्छा लग रहा है। यह एक अद्भुत अनुभव है।
इस समय शिरोमणि गोपिका माताजी ट्रेन में हैं और वह मथुरा वृंदावन की ओर जा रही है। वह भी ट्रेन में जप कर रही है, इससे अच्छा क्या हो सकता है कि कोई मथुरा वृंदावन के रास्ते में जा रहा है और साथ-साथ हरि नाम का जप कर रहा है। यह एक बहुत अच्छी खबर है। हम वृंदावन में किसी ट्रेन या एयरप्लेन से नहीं आ सकते हैं अपितु वृंदावन के लिए एक चेतना चाहिए होती है अर्थात वृंदावन धाम में प्रवेश करने के लिए एक चेतना की आवश्यकता होती है। श्रील प्रभुपाद जी कहा करते थे कि वृंदावन में प्रवेश करने के लिए हमारा ऐसा भाव होना चाहिए जैसा कि अक्रूर जी का भाव मथुरा से वृंदावन की ओर आते हुए था। हमको यह हरि नाम ही इस लायक बनाएगा कि हम वास्तव में ब्रज/ वृंदावन में प्रवेश कर सकें।
इस प्रकार से जप करने का कोई विशेष नियम नहीं है। जैसा कि चैतन्य महाप्रभु कहा करते थे ‘खायते सोयते यथा तथा हरि नाम लोय’। आप किसी भी अवस्था में कहीं पर भी जप कर सकते हैं अर्थात आप खाते समय, सोते समय, यहां, वहां, जहां भी आप हैं, आप जप कर सकते हैं। मैं देख रहा हूं कि इस समय हमारे ग्रेटर नोएडा की कुछ माताएं रसोई में काम कर रही हैं और साथ में इस जपा कॉन्फ्रेंस को भी सुन रही हैं। इसी प्रकार से हमारी आनंद प्रदा माताजी जप भी कर रही हैं और उनको बीच बीच में नींद भी आ रही है। इससे पता चलता है कि महाप्रभु जैसा कहते हैं कि हम खाते सोते हुए कभी भी हरि नाम का जप कर सकते हैं। इसका कोई विशेष नियम या कानून नहीं है। (हँसते हुए..) नियम है भी और नहीं भी है।
अमेरिका के न्यू जर्सी से हमारे श्रृंगार मूर्ति प्रभु इस समय कई सारे कपड़ों से लदे हुए जप कर रहे हैं क्योंकि इस समय वहां पर बहुत कड़ाके की ठंड पड़ती है। हार्दिक पटेल प्रभु भी अमेरिका से हैं लेकिन उन्होंने इतने अधिक कपड़े नहीं पहने हुए हैं। वह भी अमेरिका से हमारे साथ जप कर रहे हैं। मैं देख रहा हूं कि वातावरण के अनुसार कुछ भक्त बहुत अधिक कपड़े पहने हुए हैं और कुछ भक्त बहुत कम कपड़े पहने हुए हैं जैसे उड़ीसा के भक्त क्योंकि शायद वहाँ इसकी ज्यादा जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार से सुबह के समय मैं सभी लोगों को जप करते हुए चाहे वह कम कपड़े पहने हुए हो या अधिक कपड़े पहने हुए हो, मैं देख रहा हूं। रशिया में कुछ भक्त किसी गंतव्य स्थान पर जा रहे हैं। वे ड्राइविंग भी कर रहे हैं लेकिन साथ साथ वे जप भी कर रहे हैं। ऐसे कई दृश्य इस कांफ्रेंस के अंदर देखने को मिलते हैं जोकि और काफी आनंददायक और उत्साहवर्धक है।
एक कुत्ता भी जप में भाग ले सकता है और एक बच्चा भी जप में भाग ले सकता है। हो सकता है कि कई हमारे बच्चे या बालक निश्चित रूप से सुबह जप नहीं करते हो लेकिन हमारे बच्चे दीपदान में बहुत बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। मायापुर से श्यामलता माताजी की पुत्री ललिता गोपी जो केवल 6 वर्ष की है, वह आज अपने मित्रों के साथ में दीपदान का आयोजन कर रही है यद्यपि वह केवल 6 वर्ष की है परंतु वह आज दामोदर अष्टक भी गाएगी। आज उसने अपने घर पर एक दीपदान का प्रोग्राम आयोजित किया है। हम ललिता गोपी को बधाई और आशीर्वाद देते हैं। हम उसका स्वागत करते हैं कि वह इतनी कम अवस्था में इस प्रकार से सुंदर दीपदान का आयोजन कर रही है ।
हमें अमरावती से एक बहुत बड़ी खबर प्राप्त हुई है। शायद आप भक्तों ने यह रिपोर्ट पढ़ी भी होगी। अमरावती के कुछ भक्त विभिन्न मंदिरों ,स्कूलों व जेलों में जा रहे हैं। कल वे भवानी मंदिर में गए थे और उन्होंने 600 लोगों से दीपदान करवाया और 800 स्कूल के बच्चों से दीपदान करवाया। कल वे जेल में जाएंगे परंतु वहाँ उन्हें कोई गिरफ्तार नहीं करेगा अपितु उनका स्वागत किया जाएगा क्योंकि वहां पर जेल के सुपरिंटेंडेंट ने उन्हें बुलाया है। कल वे जेल के हजारों कैदियों से दीपदान करवाएंगे। जब वे भगवान दामोदर को दीपक अर्पित करेंगे तब एक प्रकार से इन कैदियों का जीवन प्रकाशित होगा। इस प्रकार से मेरे ज़ोन में कई मंदिर हैं, मैं चाहता हूं कि मुझे वहां से भी इसी प्रकार से खबरें मिले। मैं चाहता हूं कि नागपुर, अरावड़े, पंढरपुर, वियतमाल, नोएडा आदि मंदिरों के भी भक्त जगे और उठे और वे छोटे- बड़े स्कूलों, मंदिरों, जेलों और जहां कहीं भी जा सकते हैं, जाएं। इसकी कोई सीमा नहीं है,यह आकाशीय सीमा है। आप जितना प्रयास कर सकते हैं, उतना करने का प्रयास कीजिए। नई नई योजनाएं बनाइए कि आप किस प्रकार से इस कार्तिक मास में अधिक से अधिक लोगों को भगवान दामोदर की आरती/ दामोदर अष्टक व दीप दान करवा सकते हैं।
जय दामोदर!
भगवान दामोदर सर्व-आकर्षक हैं। आकृष्यति इति कृष्ण: अर्थात भगवान कृष्ण वह व्यक्ति हैं जो सबको अपनी और आकर्षित करते हैं। भगवान अपनी सुंदरता,अपने रूप माधुर्य, लीलाओं के द्वारा आकर्षित करते हैं। भगवान के विषय की हर चीज ही बहुत ही सुंदर है। वहीं सुंदर अद्भुत दामोदर सभी जीवों को अपनी और आकर्षित करेंगे। यदि हम जीवों को भगवान दामोदर देंगे, तब सभी जीव दीपदान करके भगवान दामोदर के प्रति आकृष्ट होंगे। इस प्रकार से वे भगवान दामोदर का दर्शन करेंगे, यशोदा मैया का दर्शन करेंगे। इस मास में भगवान दामोदर ने जो नटखट लीला की थी, उन सभी को उसका स्मरण होगा।
बेंगलुरु मंदिर से हमारे बंशी मोहन प्रभु बता रहे हैं कि उन्होंने 750 भक्तों को दीपदान करवाया। वे सुबह गणेश मंदिर में गए जहाँ सैकड़ो की संख्या में भक्तों ने दीपदान किया।
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सनातन गोस्वामी से बात करते हुए बता रहे हैं कि भगवान की समस्त लीलाओं में अर्थात भगवान जितनी भी लीलाएं करते हैं या खेलते हैं, उसमें सबसे आकृष्ट करने वाली लीलाएं वे होती हैं जो भगवान अपनी नर-वपु रूप में खेलते हैं। सनातन गोस्वामी ने चैतन्य महाप्रभु से सुना कि भगवान विभिन्न अवतारों में जो लीलाएं करते हैं, उसमें सबसे सर्वोत्तम लीलाएं वह हैं जो कि भगवान अपने नर वपु में करते है जैसे कि भगवान ने दामोदर लीला मनुष्य के रूप में की। भगवान का वास्तविक रूप भी वैसा ही है यह सबसे आकर्षित करने वाली लीला है।
जैसा हम जानते हैं कि केशव! धृत- नरहरिरूप, केशव! धृत- कुर्मशरीर! केशव! धृत- मीन शरीर! भगवान भिन्न-भिन्न अवतारों में विभिन्न विभिन्न रूप धारण करते हैं। भगवान कभी शूकर का रूप धारण करते हैं, कभी मीन का शरीर धारण करते हैं, तो कभी एक वराह के रूप में आते हैं। कभी आधे नर और आधे सिंह अर्थात नरसिंह के रूप में आते हैं। भगवान इतनी तरह से रूप धारण करते हैं लेकिन इसमें भगवान आदि रूप अर्थात जो नर वपु रूप में आते हैं, वह लीला सर्वोत्कृष्ट व सर्वाकर्षक होती है जोकि सबसे ज्यादा आनंद दायक है।
भगवान के कई सारे अवतार हैं। भागवतम में जैसे की कहा भी गया है
एते चांशकलाः पुंसः
कृष्णस्तु भगवान स्वयम्।
भगवान मनुष्य के रूप में आते हैं जैसे रमादी मूर्ति शुक्ला आदि तिष्ठान। भगवान राम का रूप धारण करते हैं, वामन का रूप धारण करते हैं लेकिन वे कृष्ण भगवान , वे आदि भगवान हैं। कृष्णस्तु भगवान स्वयम् , भगवान अपने नर अवतारों में जो लीला करते हैं, उनमें भी भगवान कृष्ण जो लीला करते हैं अर्थात भगवान आदि स्वयं जो लीला करते हैं। वह सर्वोकृष्ट है। सबसे सुंदर सब प्रकार से सर्वोत्तम आकृष्ट करने वाली। उनकी लीलाओं के विषय में क्या कुछ कहा जाए। वे सबसे ज़्यादा आकर्षक हैं। भगवान स्वयं सब लीलाएँ करते हैं।
भक्तिरसामृत सिंधु में श्रील रूप गोस्वामी लिखते हैं कि भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं सबसे अधिक आकर्षक हैं। वे सभी जीवों को आकृष्ट करती हैं। भगवान अपनी विभिन्न अवस्थाओं को धारण करते हैं जैसे कुमार अवस्था,किशोर अवस्था आदि। उन अवस्थाओं में भगवान विभिन्न प्रकार की बहुत आकर्षक लीलाएं करते हैं परंतु भगवान की बाल लीलाएं बहुत ही आकर्षक हैं, उसमें भी विशेषकर दामोदर लीला। वह हमारी चेतना को एक प्रकार से अटका देती है या इस तरह से जोड़ देती है कि जब हम उसके विषय में सुनते या पढ़ते हैं, हम एक तरह से विस्मित से हो जाते हैं। उसको पढ़कर बहुत ही आनंद मिलता है कि भगवान बाल लीलाएं किस प्रकार से कर रहे हैं। जैसा कि दामोदर अष्टकम में गाया गया है इतीद्दक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्। दामोदर अष्टकम के प्रथम या द्वितीय श्लोक में लीला बताई गई है लेकिन तृतीय श्लोक इस प्रकार से कहा गया है इतीद्दक्स्वलीला अर्थात भगवान इन लीलाओं के माध्यम से आनंद का कुंड, सरोवर या पूरा समुंद्र जैसा बना देते हैं। जिसमें भगवान के नित्य पार्षद या बृजवासी/ गोकुल वासी आनंद के इस कुंड में गोते लगाते व स्नान करते हैं और हमेशा भगवान की इस प्रकार की लीलाओं को गाते रहते हैं। जैसे माता यशोदा मक्खन निकालते हुए हमेशा भगवान की लीलाओं का स्मरण करते हुए उसको गाती रहती हैं। इसी प्रकार से अन्य बृजवासी व भगवान के अन्य पार्षद भी भगवान की लीलाओं का गान करते हैं। हम भी इन लीलाओं को पढ़ कर या भगवान को दीपदान करके उस अनुभूति या उस भाव को कुछ-हद तक ग्रहण कर उसका रसास्वादन कर सकते हैं जिस प्रकार से बृजवासी या भगवान के अंतरंग पार्षद रसास्वादन करते हैं। आप सभी भी पूरे दिन में दामोदर लीला के आनंद का रसास्वादन कर सकते हो। आपका शुभ प्रभात हो, शुभ शुभ मध्यकाल हो,शुभ रात्रि हो और आप भगवान का निरंतर स्मरण करते रहो। आप सभी दामोदर लीला में गोते लगाएं।यही मेरी आशा और आशीर्वाद भी है।
हरे कृष्णा!
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22 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ लगभग 563 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। शायद ऐसा हो सकता है कि हमारे साथ इस कॉन्फ्रेंस में नियमित(रेगुलर) रूप से जो भक्त जप करते हैं, वे ब्रजमंडल परिक्रमा में हो। इस कॉन्फ्रेंस में भक्तों की संख्या कम होने का यह भी एक कारण हो सकता है लेकिन हमें मेहनत और प्रयास करना चाहिए कि हम अधिक से अधिक भक्तों को इस जूम कॉन्फ्रेंस पर जोड़ें और विशेषतया इस कार्तिक मास/ दामोदर मास में क्योंकि यह हरे कृष्ण सिद्धि मंत्र का मास है। हमें इस जूम कॉन्फ्रेंस में ज्यादा से ज्यादा भक्तों को जोड़ने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत/ परिश्रम करना चाहिए।
हमें ना केवल यह मेहनत करनी चाहिए कि हम दूसरों को इस कॉन्फ्रेंस में जोड़ें बल्कि हमें यह भी प्रयास करना चाहिए कि इस महीने हम अपना स्वयं का जप सुधारें।हमें ध्यानपूर्वक, अपराध रहित और शुद्ध नाम जप करने एवं अपने जप में पूर्णतः प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। हरि! हरि!
उसी प्रयास के अंतर्गत यह कार्य भी आता है कि हम लोगों को दीपदान के लिए प्रेरित करें व साथ ही साथ हम उन्हें ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ का एक- एक अध्याय पढ़ने के लिए प्रेरित करें या हम उन्हें अध्याय पढ़कर सुनाएं। जब हम मंत्र सिद्धि या अपना जप सुधारने की बात करते हैं तो उसके लिए हमें जीव दया दिखानी होगी। केवल वह दया मन के स्तर पर या मानसिक रूप से दिखाने से कोई लाभ नहीं है अपितु हमें वास्तविक रूप से उनके लिए कुछ करना होगा। लेकिन हम किस प्रकार से उनके लिए दया दिखा सकते हैं? हम उनको कृष्ण देकर, उनको कृष्ण से जोड़कर, उनको कृष्ण के बारे में बताकर/प्रेरित कर या अन्य सेवा कार्यों में लगाकर जीवो के प्रति दया दिखा सकते हैं जिससे वे उनके बारे में पढ़ें, सुने और दीप दान करें अन्यथा वे लोग माया से जकड़े रहेंगे। यदि हम उनके प्रति दया नहीं दिखाएंगे तो उनकी मुक्ति का मार्ग नहीं निकल पाएगा। इसलिए इस महीने में मंत्र सिद्धि प्राप्त करने का यह तरीका है।
जैसा कि हम दामोदर अष्टक में गाते हैं
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु’
गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः
हम रोज ही यह प्रार्थना करते हैं ‘कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु’ – यह काफी अच्छी पंक्ति है। आप इसे स्मरण भी रख सकते हैं। कृपाद्दष्टि-वृष्टि अर्थात जहां हम या जो व्यक्ति दीपदान कर रहा है, वह भगवान से कह रहा है कि आप हमारे ऊपर अपनी कृपा की दृष्टि की वर्षा कीजिए। जब आप किसी नए व्यक्ति या नए भक्त से दीपदान करने के लिए कहते हैं और वह नया व्यक्ति दीपदान करता है या दामोदर अष्टक गाता है तब भी वह भगवान से कहता है कि आप अपनी कृपा की दृष्टि हम पर कीजिए। जैसे ही भगवान यह सुनते हैं कि वह व्यक्ति दीपदान करते समय यह प्रार्थना कर रहा है ,तब भगवान अपनी कृपा दृष्टि की वृष्टि (वर्षा) उस पर अवश्य करते हैं।
किसी व्यक्ति के जीवन को सिद्ध करने के लिए काफी है कि भगवान की कृपा दृष्टि उसको प्राप्त हो जाए। जब आप किसी व्यक्ति को इस कार्य में लगाते हैं अथवा जोड़ते हैं तो भगवान की कृपा दृष्टि उस पर तो होती ही है पर भगवान आप से भी प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि आप उस भक्त के दीपदान का कारण बने अर्थात आप उसके निमित्त/एक साधन बने। आपकी वजह से और आपके कहने से ही उस व्यक्ति ने दीपदान किया।इसलिए उसके साथ साथ आप पर भगवान की कृपा होती है। भगवान की कृपा होने से आपका जप सुधर जाता है और अपराध रहित होता है। जब आपका शुद्ध नाम जप होता है तब आपको अधिक प्रेम प्राप्त होता है, यह जीवे दया है। जब आप किसी जीव पर दया दिखाते हैं तो भगवान आप से भी प्रसन्न होते हैं।
हरि! हरि!
हमें स्वार्थी नहीं होना चाहिए। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि “मैंने तो दीप दान कर दिया है, मुझे तो भगवान की कृपा प्राप्त हो गई।” यह अच्छी बात है लेकिन हमें निस्वार्थ होना चाहिए। हमारा भाव निस्वार्थ होना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि मैं किस प्रकार से दूसरे जीवों को मदद कर सकता हूं।
जैसे एक श्लोक में वर्णन है-
‘सर्वे भवंतु सुखिनः
सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कक्ष्चिध्दुःखभाग्भवेत्।
हमें भी उसके अनुसार सोचना चाहिए कि इस भौतिक जगत के जीव जोकि कामरोग या भव रोग से ग्रस्त हैं, उनकी मैं कैसे मदद कर सकता हूं या मैं उन्हें किस प्रकार से सुख दे सकता हूं या किस प्रकार से मैं उन्हें आध्यात्मिकता दे सकता हूं।
हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि किस प्रकार से उनके जीवन में सारी चीजें अच्छी हो। हमें ऐसा सोचना चाहिए कि हर एक जीव आध्यात्मिक सुख प्राप्त करे।
इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए अर्थात हमारी यह सोच होनी चाहिए कि हम भौतिकता ग्रस्त अर्थात अंधकार ग्रस्त लोगों के जीवन में प्रकाश ला सकें। दीपदान का एक भाव यह भी है कि हम उनके जीवन में कृष्ण का प्रकाश या भक्ति का प्रकाश लाते हैं। हमें यह प्रयास करना चाहिए हम उनके जीवन में यह भक्ति का प्रकाश ला सके या उन्हें दे सकें। जैसा कि शास्त्रों में एक अन्य श्लोक में वर्णित है- ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ – हमें यह सोचना और प्रयास करना चाहिए कि कोई भी तामसिक अंधकार/ अज्ञानतापूर्ण अंधकार में ना रहें और हर एक जीव ज्योति या कृष्ण भक्ति के प्रकाश की ओर जाए। हमारा निस्वार्थ भाव से यही प्रयास रहना चाहिए ।
जैसे यह कार्तिक/दामोदर मास चल रहा है।यह एक प्रकार से दामोदर का सीजन है, ब्रजमंडल परिक्रमा, दीपदान का सीजन है। हम इस विषय पर चिंतन मनन कर रहे हैं। कुछ महीने बाद या अगले दिसंबर के महीने हम मैराथन के विषय में चर्चा करेंगे क्योंकि वह मैराथन का महीना होगा। जैसे गौर पूर्णिमा के समय हम चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं के बारे में चिंतन मनन करते हैं। अभी यह दामोदर का महीना है। हमारे पास यह एक अच्छा कारण बन जाता है कि हम लोगों को इस महीने की महिमा या दामोदर की महिमा के विषय में बताएं। हमें सुनकर यह संदेश अन्य लोगों तक भी पहुंचाना है क्योंकि जिन लोगों के पास भक्ति नहीं है, वे मृत देह के समान माने जाते हैं, हमें उन प्राणियों को प्राण वापिस देने हैं। हमें दामोदर और कृष्ण की भक्ति प्रदान करके उन्हें प्राण देना है।
जैसा कि हम कहते हैं-
‘राधा कृष्ण प्राण मोर युगल किशोर’- राधा-कृष्ण ही वास्तविक प्राण होते हैं। जब हम इस भौतिक जगत में भटके हुए जीवों को राधा कृष्ण प्रदान करेंगे तो वे लोग वास्तविकता में जीवित होंगे या उन्हें प्राण मिलेगा। हमें इस माह यह कार्य करना चाहिए।
भले हम किसी भी सीजन या किसी भी महीने की बात करें। चाहे दामोदर मास, गौर पूर्णिमा या मैराथन का समय हो, चाहे कोई तिथि हो या श्रील प्रभुपाद का आविर्भाव या तिरोभाव दिवस हो या किसी अन्य आचार्य का आविर्भाव तिरोभाव दिवस हो। हम किसी भी महीने/दिवस या तिथि का प्रचार करें, हमारा प्रचार का मुख्य एक ही हेतु होता है- जीवों को हरे कृष्ण महामंत्र से जोड़ना या उनसे हरे कृष्ण महामंत्र जप करवाना। वास्तविकता में केवल हम यही दो कार्य करते हैं श्रवण और कीर्तन। हम भगवान के विषय में सुनते हैं और जप भी करते हैं। यह हरे कृष्ण महामंत्र का जप हमेशा सारे कार्यों में समानता से स्थित रहता है। हम लोगों को हरे कृष्ण महामंत्र से जोड़ते हैं, यह हमारा मुख्य कार्य है। हमें बस यही दो कार्य करने हैं कि हम स्वयं खुद महामंत्र का जप करें, उसका श्रवण कीर्तन करें और नए लोगों को या दूसरे लोगों को भी इससे जोड़े। हम उन्हें आमंत्रित कर उनसे हरे कृष्ण महामंत्र का जप, श्रवण, कीर्तन आदि करवाएं।
इसके अलावा दो मुख्य सूचनाएं या आज की ताजा खबरें भी हैं पुणे से ब्रजमाला माताजी ने कल बहुत ही अच्छा प्रोग्राम आयोजित किया था। उन्होंने कल 120 से भी अधिक नए लोगों से दीपदान कराया। उनके साथ कुछ भक्त भी थे, उन्होंने उस प्रोग्राम में कुल 200 की संख्या में दीपदान करवा कर काफी अच्छे से आयोजन किया। दूसरी खबर बेंगलुरु से है मंजुलाली माताजी का एक संकल्प या प्रोग्राम है, वह आज तीन से अधिक गवर्नमेंट स्कूलों में जाकर 600 से अधिक विद्यार्थियों से दीपदान करवाने वाली हैं। यह बहुत ही अच्छा कार्य है। उन्होंने अभी मैसेज किया था, आपने यह मैसेज पढ़ा या नहीं। इसलिए मैंने सोचा कि आपको अवगत करवा दिया जाए, यह काफी बड़ी सफलता है।
ब्रजमंडल परिक्रमा से भी काफी अच्छी खबरें आ रही हैं। मैं उनके आनंद को अनुभव कर पा रहा हूं। आज सुबह मैं ब्रजमंडल परिक्रमा के उज्ज्वल व आनंदित भक्तों के चेहरे का दर्शन कर रहा था। यह आनंद या प्रसन्नता उनके चेहरे पर पिछली रात को मध्यरात्रि में राधा कुंड स्नान करने के कारण थी। ब्रजमंडल परिक्रमा के जितने भी भक्त हैं, उन सभी ने राधा कुंड में स्नान किया जबकि हम लोगों में से अत्याधिक भक्त तो विश्राम कर रहे थे या सो रहे थे। ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्तजनों ने मध्य रात्रि में वहां पर स्नान किया इसकी वजह से वह काफी हर्ष/आनंद, उज्जवलता का अनुभव कर रहे थे जो कि उनके चेहरे पर दिख भी रहा था। मैं भी सौभाग्य से ब्रजमंडल परिक्रमा में जा पाया और उन भक्तों का दर्शन कर पाया। इस वर्ष काफी बड़ी संख्या में अर्थात 1700 से अधिक भक्त इस ब्रज मंडल परिक्रमा में आए हैं। मुझे भी दिन के समय यह सौभाग्य प्राप्त हुआ, मैं राधा कृष्ण की कृपा से राधाकुंड, श्याम कुंड पर जाकर दर्शन कर पाया। मैं राधा कुंड में स्नान तो नहीं कर पाया लेकिन मुझे आचमन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं राधाकृष्ण का आभार मानता हूं। उसके साथ ही साथ मैंने ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्तों का भी दर्शन किया व उनसे भी भेंट की। इसके लिए मैं उनका भी आभारी हूं और मैं भगवान का भी आभारी हूं।
आज हम वाणी को यहीं विराम देते हैं। कल हम पुनः मिलेंगे और चर्चा करेंगे।
दिन के समय आप व्यस्त रहिए।
हरे कृष्ण!
गौर प्रेमानंदे हरि! हरि बोल!
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21 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आप सभी बहुत ही आशीर्वाद प्राप्त जीवात्माएं हो। इसलिए आप सभी जप कर पा रहे हो, यह आपका सौभाग्य है। आपको आशीर्वाद प्राप्त है, यह जप इसी का लक्षण है।
आज पुनः एक भव्य दिवस है, कार्तिक मास में प्रत्येक दिन ही बड़ा और पवित्र होता है। आज भी हमें बड़ी-बड़ी रिपोर्ट प्राप्त हो रही हैं। आज हमारे साथ 502 स्थानों से प्रतिभागी जप कर रहे हैं। कई स्थानों से दीपदान की रिपोर्ट आ रही है, कल विवतमाल में माताजी ने अपने घर पर भक्तों को बुलाया था। आज रात्रि माधवी गोपी माता जी ने अपने घर ठाणे में दामोदर अष्टकम का कार्यक्रम रखा है। कल भिवंडी में लगभग 60 भक्तों ने दीपदान किया था। दिल्ली से हमारी गोपीगीत माताजी नित्यप्रति गोपीगीत गाती हैं। मंदिरों में और कई भक्त भी इस मास में दामोदरअष्टकम के अतिरिक्त गोपीगीत गाते हैं। यह गोपीगीत शरद पूर्णिमा की प्रथम रात्रि को गोपियों द्वारा गाया गया था। यह मास राधा रानी का भी मास है अर्थात यह उर्जाव्रत का मास है।
जैसा कि दामोदर अष्टक में वर्णन है- नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै अर्थात यह मास राधारानी, राधा गोविंद और रासलीला का मास है। आप सभी अपनी सूची में दामोदर अष्टकम के अतिरिक्त गोपीगीत को भी जोड़ सकते हैं और प्रतिदिन गा सकते हैं।
हरि! हरि!
ऑस्ट्रेलिया से चैतन्य भागवत प्रभु ने अपने आफिस में काम करने वाले साथियों से कल दीपदान करवाया। इस प्रकार से उन्होंने यशोदा मैया के दुलारे कृष्ण अथवा दामोदर को उनके जीवन से जोड़ दिया। हम प्रार्थना करते हैं और आशा भी करते हैं कि इस प्रकार जो भी लोग भगवान दामोदर को दीपदान करेंगे, वे निश्चित रूप से ही भगवान दामोदर को अपनी ओर आकर्षित करेंगे एवं उनकी कृपा को प्राप्त करेंगे अर्थात जो भी दीपदान करेगा,भगवान दामोदर उन सभी के हृदय को अपनी ओर आकर्षित करेंगे। आप सब लोग भी ज्यादा से ज्यादा लोगों को दीपदान करवाएं जिससे उन सब को भगवान दामोदर की कृपा प्राप्त हो सके।
हरि! हरि!
इस प्रकार से कुछ अन्य भी रिपोर्ट्स प्राप्त हो रही हैं जैसे रियूनियन से दयालु राधा माताजी बता रही हैं कि आज राधाकुंड का अविर्भाव तिथि अथवा महामहोत्सव है। हमारी ब्रजमंडल परिक्रमा पार्टी भी राधा कुंड के तट पर ही है। वे पिछली तीन रात्रियों से राधा कुंड पर ही निवास कर रहे हैं। कल उन्होंने गिरिराज गोवर्धन जी की परिक्रमा की थी। मैं विश्वस्त हूँ कि आप सभी ने भी ब्रज मंडल दर्शन पुस्तक में से गोवर्धन परिक्रमा का अध्याय अवश्य पढ़ा होगा। आज हमारे ब्रजमंडल परिक्रमा पार्टी के लगभग 1000 से 1500 भक्त राधा कुंड और श्याम कुंड की परिक्रमा करेंगे। वे राधाकुंड और श्यामकुंड के चारों तरफ एक एक स्थान का जो कि बहुत ही भव्य और दिव्य स्थान है उनका दर्शन करेंगे और वहां की लीला कथा सुनकर अपने को बहुत ही सौभाग्यशाली मानेंगे और बहुत ही लाभान्वित होंगे।
आज ये भक्त और भी भाग्यशाली सिद्ध होंगे क्योंकि आज रात्रि राधाकुंड में जो मध्य रात्रि स्नान होता है उसमें ये सारे परिक्रमा वाले भक्त भी स्नान करते हैं। इस स्नान का निश्चित समय मध्यरात्रि है। हमारे परिक्रमा के भक्त, जो सौ हजार अर्थात एक लाख भक्तों के साथ में हैं जोकि आज के दिन चारों तरफ से राधा कुंड पर आते हैं और वे सभी तट पर स्थित रहकर और अपनी घड़ियों को देखते रहते हैं और जब 12:00 बजे मध्यरात्रि होती है तब सभी भक्त राधा कुंड में प्रवेश करते हैं और स्नान करते हैं और इस प्रकार से सब उस राधा कुंड के आविर्भाव घड़ी की बहुत प्रतीक्षा करते हैं । जो आज राधाकुंड में स्नान करते हैं वे काफी धन्यभागी होते हैं। आज का दिन बहुला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
राधा कुंड का जल वास्तव में भगवान के प्रेम का तरल रूप है। यह जल राधा कृष्ण के प्रेम का रूप है, आज रात्रि में जो लोग इस जल में स्नान करते हैं वह भगवान राधा कृष्ण की कृपा प्राप्त करते हैं। उनके जीवन में निश्चित रूप से भगवान राधा कृष्ण के प्रति प्रेम विकसित होता है। आज का दिन बहुत ही सुंदर और उन्नत दिवस है।
जय राधा! जय कृष्ण!
जय राधाकुंड!
आप में से जो भी भक्त प्रयास कर सकते हैं, वे वहां जरूर जाएं। निश्चित रूप से आप में से कई भक्त दिल्ली,नोएडा, आगरा और इधर उधर से राधा कुंड पर जाने का प्रयास करते हैं, भाग रहे होते हैं। कृष्ण बलराम मंदिर से भी कई भक्त मध्यरात्रि स्नान के लिए जाते हैं। दुबई से श्यामालंगी माताजी भी कृष्ण बलराम मंदिर में आई हुई हैं, वह भी आज राधाकुंड में मध्य रात्रि स्नान करने के लिए बहुत उत्सुक हैं। आप इस अवसर को अपने हाथ से जाने मत दीजिए। यदि आप किसी भी प्रकार से मैनेज कर आ सकते हैं तो आज रात्रि का स्नान करने अवश्य आइए। आपका बहुत-बहुत स्वागत है। आप सब इस आनंद प्रेम रस में गोते लगाइए। यह भगवान का प्रेम रूपी तरल अमृत है। यह बहुत ही अद्भुत अनुभव है। हमने बहुत वर्षों से इसका अनुभव लिया है, हमें इसका बहुत ही साक्षात्कार है। हम आप सभी का स्वागत करते हैं कि आप भी यहां आकर इस अद्भुत अनुभव को स्वयं भी अनुभव कीजिए और इस अमृत को प्राप्त कीजिए।
हरि! हरि!
आप में से जो भक्त राधाकुंड नहीं जा पाए हैं, वह भागवत में से या किसी अन्य शास्त्र से आज के इस पर्व की विशेषता को पढ़ सकते हैं। वास्तव में आज के दिन भगवान जब राधारानी और गोपियों से मिलने और रासलीला के लिए तैयार थे, तभी एक अरिष्टासुर नाम का एक असुर बैल के रूप में आया। वह विभिन्न प्रकार से आकर व्यवधान उत्पन्न करने लगा और ब्रजवासियों को बहुत ही कष्ट देने लगा। भगवान जोकि रासलीला के लिए तैयार थे उनको एक प्रकार से लड़ने के लिए चुनौती देने लगा। उसने ब्रज में इतना उत्पात मचाया कि गर्भवती महिलाओं का गर्भपात तक होने लगा। इस प्रकार भगवान ने उसके व्यवधान को देखकर उसकी चुनौती को स्वीकार किया और अरिष्टासुर को मार दिया। अरिष्टासुर को मारने के पश्चात जब भगवान राधारानी और गोपियों के समक्ष गए कि ‘चलो! अब हम रासलीला प्रारंभ करते हैं’ तब गोपियों ने उनके साथ में रासलीला करने से एकदम मना कर दिया।
उन्होंने भगवान के ऊपर एक आक्षेप लगाया कि “आपने एक बैल का वध किया है। एक तरह से आपने गोवंश की हत्या की है इसलिए हम आपके साथ क्रीड़ा नहीं कर सकते। आप हमसे दूर हट जाइए, हमें हाथ मत लगाइयेगा। आपको पहले इस ब्रह्मांड के समस्त तीर्थो में जा कर डुबकी लगानी होगी, स्नान करना होगा। उसके उपरांत जब आपका शुद्धिकरण हो जाएगा, तब हम आपके साथ में रास नृत्य करेंगी”। भगवान ने कहा,”अगर मैं सब तीर्थों में जाऊंगा, इसमें तो बहुत समय लगेगा। चलो! मैं अभी उन सब तीर्थों को यही आमंत्रित कर लेता हूं।” भगवान ने अपनी ऐड़ी से एक बहुत बड़ा कुंड बनाया जिसका नाम श्याम कुंड पड़ा। उसके बाद उन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड की सारी पवित्र नदियों, कुंडों सरोवरों और तालाबों इत्यादि को आमंत्रित किया और उस कुंड को पवित्र जल से भर दिया और भगवान ने उसमें स्नान किया। तत्पश्चात जब गोपियों ने कहा कि “अब आप पवित्र हो गए हैं, अब हम आपके साथ-साथ रासलीला कर सकते हैं” , परंतु भगवान ने उन से मना कर दिया कि “नहीं!
अब आप सब मुझसे दूर हो जाओ क्योंकि आप लोगों ने यह जानते हुए भी कि अरिष्टासुर एक राक्षस था, आपने मेरे ऊपर दोषारोपण किया है। मैं भी आपके साथ तब तक कोई क्रीड़ा नहीं करूंगा जब तक आप सब भी संपूर्ण तीर्थों में स्नान करके नहीं आती।” यह सुनकर गोपियां एक प्रकार से बहुत बड़ी दुविधा में पड़ गई कि वह सब अब जल कहां से लेकर आएंगी। उन्होंने पास में जहां अरिष्टासुर ने काफी उत्पात करके बहुत बड़ा गड्ढा बना दिया था, गोपीजनों ने उसी कुंड/ गड्ढे को अपने कंगनों से खोद कर थोड़ा और बड़ा किया। उसके पश्चात सब गोपियां एक पंक्ति बनाकर कुसुम सरोवर तक खड़ी हो गयी और एक घट घट में जल को लाइन से लाते हुए इस कुंड को भरने लगे लेकिन उसमें इतना समय लग रहा था। ये सारी गोपियों के लिए एक कड़ी एक्सरसाइज भी थी, भगवान को गोपियों पर दया आ गई।
तब भगवान ने उनसे कहा कि ” यदि आप चाहें तो आप ऐसा कर सकते हैं, मेरे कुंड से अपने कुंड को जोड़ लीजिए, इस प्रकार से आपके कुंड में भी सारे तीर्थों का जल आ जाएगा” परंतु राधा रानी और गोपीजनों ने मना कर दिया कि “हमें आपके कुंड का जल नहीं चाहिए।” तब सभी पवित्र तीर्थ, नदियां और सरोवर इत्यादि जो जल रूप में थे वह सब प्रकट हो गए और उन्होंने श्रीमती राधारानी के चरणों में प्रार्थना की, “कृपया! आप हमें अपनी सेवा करने का एक मौका दीजिए। आप हमारे जल का इस्तेमाल कीजिए।” तत्पश्चात राधारानी ने श्याम कुंड से राधा कुंड के बीच में एक ब्रिज/टनल जैसा बनाया जोकि आपने देखा होगा। राधाकुंड और शामकुंड का यह संगम आज रात्रि में बना था जिससे कि आज रात्रि में ही राधाकुंड का जल प्रकट हुआ था आज राधाकुंड का प्रकाट्य दिवस है।
कुछ भक्त आज मुझे स्मरण करा रहे हैं कि आज उनका जन्मदिन भी है। अहमदाबाद से शुभ लक्ष्मी माताजी बता रही हैं कि आज के दिन उनकी दीक्षा हुई थी मुझे भी स्मरण हो रहा है कि आज ही के दिन 1972 में राधा कुंड अविर्भाव तिथि के दिन, मैं प्रभुपाद के साथ वृंदावन के राधा दामोदर मंदिर में था। उस दिन वहां श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद जी की भजन कुटीर और समाधि मंदिर के आंगन में एक उत्सव मनाया गया था। राधाकुंड आविर्भाव दिवस बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है। इस पवित्र कार्तिक अथवा दामोदर मास में राधा दामोदर मंदिर जो कि हम रूपानुगों के लिए जो अत्यंत ही श्रेष्ठ स्थान हैं। वहाँ पर श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद की समाधि मंदिर और भजन कुटीर पर श्रील प्रभुपाद जी हमारे सामने ही तमाल वृक्ष के नीचे बैठ कर माला पर जप कर रहे थे।
उसी दौरान श्रील प्रभुपाद जी ने मुझे बुलाया और मेरी माला पर भी जप किया और मुझसे पूछा कि चार नियम कौन कौन से हैं ? मैंने श्रील प्रभुपाद को चार नियम बताए। उसके उपरांत श्रील प्रभुपाद जी ने अपने हाथ से मेरे हाथ में माला दी और कहा “कम से कम 16 माला का नियमित जप करना और तुम्हारा नाम पड़ता है लोकनाथ।” मेरे माता-पिता ने मुझे रघुनाथ नाम दिया था और मैं अब श्रील प्रभुपाद का लोकनाथ बन गया था। इस प्रकार से यह मेरा आध्यात्मिक जन्मदिन है। मेरे शरीर का जन्म तो अन्यत्र कहीं हुआ था परंतु मेरी आत्मा का शुद्धिकरण अथवा पुनर्जन्म राधा दामोदर जी के प्रेम से, राधा दामोदर के मंदिर में ही बहुला अष्टमी के दिन श्रील प्रभुपाद जी के द्वारा दीक्षा देकर हुआ था
राधा दामोदर की जय!
राधाकुंड की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
आप सभी को आज बहुला अष्टमी की बहुत-बहुत बधाई हो आपको आज के इस दिन की बधाई हो। आपको दामोदर मास की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। उन भक्तों को बहुत शुभकामनाएं है जिनका आज आध्यात्मिक जन्मदिन है। आज मेरे पास भी प्रसन्न होने के पर्याप्त कारण हैं। आज ही के दिन मेरा आध्यात्मिक जन्म हुआ था। आज मेरा आध्यात्मिक बर्थडे(जन्मदिवस) है।
गौर प्रेमानंदे!
हरि! हरिबोल!
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20th अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ इस कॉन्फ्रेंस में केवल 490 भक्त ही जप कर रहे हैं। आज पूरे विश्व भर से विशेष रूप से दीपदान के विषय में काफी आनंददायी और प्रोत्साहित करने वाली रिपोर्टस आ रही हैं। भक्त पूरे विश्व में किस प्रकार से दीपदान का आयोजन कर रहे हैं। यह रिपोर्ट्स मैं पढ़ रहा हूँ लेकिन अच्छा होगा कि आप सब भी यह रिपोर्टस पढ़ लीजिए जिससे मुझे यह सारी रिपोर्ट्स दुबारा रिपीट ना करनी पड़े और आपको बार बार सुनानी ना पड़े। आप लोग भी स्क्रीन पर ये सारी रिपोर्ट पढ़ सकते हो।
यह जरूरी नहीं है कि अभी इस कॉन्फ्रेंस में ही ये सारे रिपोर्ट्स पढ़े जाएं। आप दिन में भी हमारे फेसबुक पेज letschantstogether पर ये सारी रिपोर्ट्स पढ़ सकते हैं। आप ये रिपोर्टस पढ़कर प्रेरणा और उत्साह प्राप्त कर सकते हैं किस तरह से आप में से ही काफ़ी भक्त दामोदर की महिमा, कार्तिक मास का गुणगान और दीपदान करने में लगे हुए हैं एवं वे किस प्रकार से दामोदर, वृंदावन,ब्रज, कृष्ण की चेतना और कृष्णभावनामृत का प्रचार बढ़-चढ़कर कर रहे हैं। आप सब बता ही रहे हैं कि काफी भक्त इस कार्य में लगे हुए हैं लेकिन यदि आप में से कुछ भक्त दामोदर मास या वृंदावन या कृष्णभावनामृत का प्रचार करने के लिए कुछ भी नहीं कर पाए हैं या जिन्होंने कुछ भी नहीं किया है, वे सब यह रिपोर्ट पढ़कर प्रेरणा प्राप्त कर इस कार्य में लग सकते हैं।
कल जब मैं वृंदावन आ रहा था, मैंने मार्ग में कुछ होर्डिंग /बोर्ड पढ़े जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिवाली के दिन अयोध्या में दीपदान के भव्य आयोजन हेतु एडवरटाइजमेंट की गई थी। मैं यह सोच रहा था कि हम लोग तो दामोदर मास में प्रत्येक दिवस ही दिवाली मनाते हैं। आप में से जिन भक्तों को पता नहीं था उनकी जानकारी के लिए कि दामोदर लीला दिवाली के दिन ही सम्पन्न हुई थी। दिवाली के दिन ही सुबह के समय में यशोदा मैया ने भगवान नंदलाल, माखन चोर कृष्ण को अपने ही घर में माखन चोरी करते हुए पकड़ा था और उन्होंने बाल कृष्ण माखन चोर के उदर को रस्सी के साथ बांध दिया था। इस प्रकार भगवान का नाम दामोदर हुआ। हमें उस नाम या शब्द का अर्थ भी समझना चाहिए। दाम का अर्थ है रस्सी और उदर का अर्थ है पेट। जब यशोदा मैया ने भगवान कृष्ण के पेट को ऊखल के साथ रस्सी से बांध दिया तब भगवान का नाम दामोदर हुआ। हम दामोदर मास में प्रत्येक दिवस दीपदान और दामोदर लीला का स्मरण करके रोज दिवाली मनाते हैं। अयोध्या में तो दिवाली भगवान श्रीरामचंद्र के लिए एक ही दिन मनाई जाएगी परंतु हम कार्तिक मास में प्रत्येक दिन दिवाली भगवान श्रीकृष्ण के लिए मनाते हैं।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
जैसे कि हम दामोदरअष्टक के अंतिम अष्टक में गाते हैं- नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने और हम शुरुआत में तो गाते ही हैं- नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं अर्थात हम भगवान के सच्चिदानंदरूप को प्रणाम करते ही हैं अपितु हम उस रस्सी को भी प्रणाम करते हैं जोकि कोई साधारण रस्सी नहीं है। जिस रस्सी से यशोदा मैया द्वारा भगवान कृष्ण के पेट और ऊखल को बांधा गया था। वह रस्सी भी दिव्य है, वह साधारण रस्सी नहीं है जैसा कि हम जानते हैं -धाम में हर एक वस्तु सजीव है, हर वस्तु का एक अपना ही स्वरूप है। अतः हम उस रस्सी को भी प्रणाम करते हैं जिसका उपयोग यशोदा मैया ने भगवान को बांधने के लिए किया था और जिसकी वजह से भगवान का नाम दामोदर पड़ा। हम ऐसी रस्सी को भी प्रणाम करते हैं।
इस दामोदर अष्टकम में जब हम आगे गाते हैं- ‘नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने’ दूसरी पंक्ति में हम भगवान के उदर को प्रणाम करते हैं। पहला प्रणाम तो हम उस दिव्य रस्सी को करते हैं।तत्पश्चात दूसरा प्रणाम हम भगवान के उदर को करते हैं। वह कैसा उदर है ? विश्वस्य धाम्ने अर्थात पूरा विश्व अर्थात ब्रह्माण्ड जो भगवान के उदर में निवास करता है। हम ऐसे उदर को भी प्रणाम करते हैं। इस अंतिम अष्टक में दो अलग-अलग प्रणाम है- पहला प्रणाम रस्सी को किया जा रहा है जिसका उपयोग यशोदा मैया ने भगवान को बांधने के लिए किया था। दूसरा प्रणाम हम भगवान के उदर को करते हैं जहां पर पूरे विश्व का निवास है। भगवान का एक अन्य नाम जगन निवास भी है जिसका अर्थ है कि जहां पर पूरा जगत अर्थात पूरा ब्रह्मांड, भगवान में निवास करता है। जैसे कि हम दामोदर का अर्थ समझते हैं- दाम अर्थात रस्सी और उदर अर्थात पेट, हम उस दिव्य रस्सी को प्रणाम करते हैं जिससे उदर को बांधा गया था और दूसरा प्रणाम फिर हम भगवान के पेट को करते हैं जहां पर पूरा ब्रह्मांड निवास करता है।
इस प्रकार हम दो अलग-अलग प्रणाम करते हैं पहले रस्सी को, उसके पश्चात भगवान के उदर को।
हरि! हरि!
यह आपको समझना होगा कि
हम पूरे दामोदर अष्टक की हर पंक्ति में लगभग अलग अलग चीज़ों को अलग अलग प्रकार से प्रणाम कर रहे हैं। पूरा दामोदर अष्टक ही लगभग प्रणाम या दंडवत से ही भरा हुआ है। जब हम इसे समझ कर गाँएगे तभी हमें यह लीला समझ में आ सकती है। हम देखते हैं कि किस प्रकार से यशोदा मैया ने यह संकल्प किया कि वह कृष्ण को ऊखल से बांध देगी। उन्होंने पहले घर पर उपलब्ध कुछ रस्सी का उपयोग कर बांधने का प्रयास किया लेकिन उससे बात नहीं बनी।तत्पश्चात उन्होंने गौशाला की रस्सी का प्रयोग किया फिर भी बात नही बनी। उसके पश्चात पूरे गोकुल से अड़ोस पड़ोस की गोपियां भी उनकी सहायता करने के लिए रस्सी लेकर आ गयी।
आप इस समय इस लीला को स्मरण करने या देखने का प्रयास कीजिए कि किस प्रकार से यशोदा मैया कृष्ण को बांधने के लिए अति परिश्रम कर रही है। उन्होंने कृष्ण को बांधने के लिए एक लंबी रस्सी ही नहीं अपितु लगभग पूरे गोकुल की सारी रस्सी लगा दी थी। वह रस्सी अत्यंत ही लंबी हो गयी थी लेकिन जब भी यशोदा मैया कृष्ण को बांधने का प्रयास करती तब वह रस्सी हमेशा दो उँगली जितनी छोटी रह जाती थी अर्थात दो उंगली का अंतर रह जाता था। यह अंतर किस वजह से आता होगा ? अब आप इसे समझने में सफल हो सकते हैं। भगवान का उदर कोई साधारण उदर नही है, विश्वस्य धाम्ने। जैसा कि हमने कहा- ‘भगवान के उदर में केवल एक ब्रह्मांड नही, एक विश्व नहीं, अपितु अनंत कोटी ब्रह्मांडो का निवास है। विश्वस्य धाम्ने अर्थात वहाँ पर काफ़ी सारे ब्रह्मांडो का निवास है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने सारे ब्रह्मांडों को बांधने के लिए कितनी लंबी रस्सी की आवश्यकता होती होगी। जैसा कि हम समझते हैं इस पृथ्वी का लगभग 25000 किलोमीटर की परिधि (सरकम्फेरेंस) होता है। हम तो भगवान के उदर में स्थित अनन्त कोटि ब्रह्मांडो की बात कर रहे हैं। आप उतने सारे ब्रह्मांडो को बांधने की कल्पना कीजिए कि कितनी बड़ी रस्सी लगती होगी या लगेगी।
इस प्रकार से हम समझ सकते हैं भगवान की यह लीला और सारी लीलाएं दिव्य और अचिंत्य होती है जो कि हमारी इंद्रियों से परे है। हम अपनी इंद्रियां या बुद्धि का प्रयोग करके भगवान की दिव्य लीलाओं को नहीं समझ सकते। जैसे कि श्रील प्रभुपाद कहते थे भगवान की दिव्य लीलाओं जोकि अचिंत्य हैं, उसे हम हमारी टिनी फ्रेंड् (प्रभुपाद जी टाइनी शब्द का उच्चारण टिनी कह कर किया करते थे) अर्थात अपनी छोटी बुद्धि से नहीं समझ पाएंगे। यह हो सकता है कि हम उन लीलाओं का कुछ तत्व समझ पाएं लेकिन हम अपनी इंद्रियों से इन लीलाओं नहीं समझ सकते इसलिए भगवान का एक नाम अधोक्षज भी है। अधोक्षज का अर्थ है जो हमारी इंद्रियों से परे है अर्थात जिनको जानना और समझना हमारी भौतिक इंद्रियों से परे है। इसीलिए भगवान का नाम अधोक्षज भी है। यह दामोदर लीला काफी जल्दी सुबह प्रारंभ हुई थी और यह लीला पूरा दिन या लगभग दोपहर तक चली। पहले तो यशोदा मैया को भगवान को पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ कर काफी परिश्रम करना पड़ा। कुछ समय बाद जब भगवान उनके हाथ में आए तब यशोदा मैया को रस्सी एकत्रित करने और लंबा करने में उससे ज्यादा परिश्रम करना पड़ा।लगभग सारे बृजवासी, यशोदा मैया के साथ रस्सी लंबी करने या कृष्ण को बांधने में सहायता करने में लग गए थे। लगभग दोपहर तक यशोदा मैया द्वारा कृष्ण को पकड़कर रस्सी लंबी कर उनको बांधने का प्रयास चल ही रहा था। आप यह सोच या समझने का प्रयास कीजिए कि इतनी सुबह से जो यह लीला प्रारंभ हुई, वह लीला लगभग दोपहर तक चल ही रही है। दोपहर तक यशोदा मैया कृष्ण को बांध ही नहीं पाई थीं। अतः हम समझ सकते हैं कि भगवान का उदर कोई साधारण उदर नहीं है। यशोदा मैया को उन्हें बांधने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ा होगा ।
हरि! हरि!
हमारा समय लगभग समाप्त हो ही गया है लेकिन इस अंतिम अष्टक का एक और भाग है अर्थात अंतिम पंक्ति है। जिसके विषय में हम थोड़ा सा स्पष्ट या समझने का प्रयास करेंगे।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्।
जो अंतिम पंक्ति या लाइन हैं- नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम् अर्थात भगवान स्वयं अनंत हैं या उनकी लीलाएं भी अनंत हैं। हमारे लिए यह संभव नहीं होगा कि हम इस लीला के विषय में या भगवान की किसी भी लीला के विषय में पूर्ण रूप से चर्चा या वर्णन कर पाएं और एक समय ऐसा आए जहाँ हम कह सकें कि यह लीला पूरी संपन्न हुई या हमने इस लीला के विषय में सारी चर्चा या हर बात का वर्णन कर लिया है, ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है। भगवान की लीलाएं अनंत काल से चल रही हैं और चलती रहेंगी इसीलिए उसे अनंत लीला कहते हैं। ऐसी अनंत लीलाओं को भी हमारा प्रणाम हैं। यदि इस दामोदर लीला के विषय में पूरा महीना भी चर्चा करेंगे तो भी समय कम पड़ेगा और हम फिर भी नहीं कह पाएंगे कि हमने दामोदर लीला के विषय में हर एक बात के विषय में चर्चा कर ली हैं। लेकिन हमने अब प्रयास किया हैं कि हम दामोदर लीला के अंतिम अष्टक को लगभग भली-भांति समझ पाएं।
हम आज ब्रज मंडल परिक्रमा में गोवर्धन परिक्रमा करेंगे। ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक में गोवर्धन लीला परिक्रमा का वर्णन है, आप भी उस लीला में भाग ले सकते हैं। वृंदावन आने से पहले जब मैं नोएडा पदयात्रा बुक ट्रस्ट के ऑफिस में गया था तो मैंने वहां लगभग 300 से अधिक ब्रजमंडल दर्शन पुस्तकें एक लाइन में लगी देखी जो अमेज़न ऑनलाइन डिलीवरी के लिए तैयार थी। अब तक काफी सारी पुस्तकें वितरित हुई है और काफी पुस्तकें जा भी रही हैं। हमारे काफ़ी भक्त वृंदावन में भी ब्रजमंडल दर्शन पुस्तकों का वितरण कर रहे है। ब्रजमंडल दर्शन पढ़ने से विश्व भर के भक्त लाभान्वित हो रहे हैं। उन्हें ब्रज मंडल परिक्रमा करने का फल लगभग घर पर बैठकर प्राप्त हो रहा है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ,दामोदर मास में बड़ी संख्या में ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का वितरण हो रहा है। यदि आपके पास यह उपलब्ध नहीं है तब आप भी इसे मंगवाए और पढ़िए।
हम यहीं रुक जाते हैं। कुछ नेटवर्क इश्यू हो रहा है और समाप्त करने का भी समय हो गया है।
गौर प्रेमानंदे! हरि! हरिबोल!
कृष्ण बलराम की जय!
दामोदर की जय!
वृंदावन धाम की जय!
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19 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 555 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। यह संख्या 600 के पार पहुंच गई थी, परंतु आज हम उस संख्या से 50 कम हैं। हम चाहते हैं कि इस कांफ्रेंस में जप करने वाले भक्तों की संख्या बढ़े। आप सब इस कॉन्फ्रेंस में अधिक से अधिक भक्तों को जोड़ने का प्रयास कीजिए। चूंकि आज शनिवार है, अतः हमारे साथ मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया से कई भक्त जप कर रहे होंगे।
हमें आप सभी भक्तों से कार्तिक मास की बहुत अधिक मात्रा में रिपोर्ट्स प्राप्त हो रही हैं। हो सकता है कि इन सभी रिपोर्ट्स को प्रकाशित किया जाए। इसके साथ साथ आप सभी प्रणाम भी भेज रहे हैं, आप सभी मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। कई भक्त यह भी रिपोर्ट भेज रहे है कि महाराज! मैं वृंदावन आ रहा हूँ या मैं एक नवम्बर को वृंदावन पहुंच रहा हूं अथवा मुझे वृंदावन का स्मरण हो रहा है, या मैं प्रतिदिन ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक पढ़ रहा हूँ। सोलापुर, अहमदाबाद, भिवंडी आदि कई स्थानों पर अधिक से अधिक मात्रा में दीप दान और कीर्तन मेले का आयोजन किया जा रहा है। ये सभी दिव्य और आध्यात्मिक समाचार हैं। जो आप सब इस कॉन्फ्रेंस में अपने कमैंट्स के माध्यम से मुझे भेज रहे हैं।
आप सभी ये आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ते रहिए। आप दिन के समय इन रिपोर्ट्स को भी पढ़ सकते हैं। आप हमारे letschantstogether फेसबुक पेज पर भी ये सभी रिपोर्ट्स पढ़ सकते हैं और अपनी रिपोर्ट्स या कमैंट्स भी भेज सकते हैं। कुछ भक्त यह पूछ रहे हैं कि आज नरोत्तम दास ठाकुर का तिरोभाव दिवस है, हम किस प्रकार से नरोत्तमदास ठाकुर के चरणों का अनुगमन कर सकते हैं ? आप उनके स्मरण पर लिख सकते हैं और यदि आपका कोई प्रश्न भी हो, उसे भी आप फेसबुक के उस पेज पर पूछ सकते हैं। आप गुह्यामाख्याति पृयच्छति कर सकते हैं इन प्रश्न के उत्तर केवल मेरे द्वारा नहीं दिये जायेंगे अपितु आप भक्त भी इन प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं।
यह ज़ूम कॉन्फ्रेंस सोशल मीडिया नहीं है। कई भौतिक व्यक्ति समझते हैं कि यह एक सोशल मीडिया है परंतु हमारे लिए यह आध्यात्मिक मीडिया है। हम इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आध्यात्मिक विषयों पर गहन चर्चा करते हैं, हम यहां मनगढंत बातों पर चर्चा नहीं करते अपितु हम इस कॉन्फ्रेंस में जप करते हैं।अतः इसका नाम जप कॉन्फ्रेंस हैं। इसके साथ साथ हम अन्य उत्सवों के विषयों पर चर्चा करते हैं जैसे आजकल दामोदर व्रत चल रहा है तो हम दामोदर लीला पर चर्चा कर रहे हैं। इसी प्रकार हम भगवान राम,कृष्ण, चैतन्य महाप्रभु तथा अन्य आचार्यों के अविर्भाव और तिरोभाव दिवस पर उनकी लीलाओं के विषय में चर्चा करते हैं। अतः यह एक आध्यात्मिक कॉन्फ्रेंस है, ना कि कोई सामाजिक कॉन्फ्रेंस।
अभी मैं राधा गोविंद देव मंदिर, नोएडा में हूं और मेरे मन में एक विचार आ रहा था। मैं कल यहां दीप दान के समय उपस्थित था। मंदिर भक्तों और अतिथियों से भरा हुआ था। यशोदा दामोदर के विग्रह एक सुंदर वेदी पर थे और उन्हें अच्छे तरीके से सजाया हुआ था। कल वहाँ सभी भक्त दामोदरअष्टक प्रार्थना गा रहे थे। हमें यह बात समझनी चाहिए कि दामोदरअष्टक संस्कृत में है। वह संस्कृत भी अत्यंत सरल नहीं अपितु थोड़ी क्लिष्ट है। यह संभावित है कि हमें वह संस्कृत समझ नहीं आए अर्थात उसका अर्थ क्या है? हम समझ नहीं पाए। इसलिए मैं आप सभी भक्तों को रिकमंड(सिफारिश) करूँगा कि आप उसके साथ साथ अनुवाद और उसका तात्पर्य भी पढें जिससे हम समझ सकें कि दामोदर लीला क्या है ? दामोदर अष्टक में क्या भाव है ? जब आप बाहर पब्लिक प्रोग्राम करते हैं और नए लोगों से दीप दान करवाते हैं,उस समय भी आपको दामोदरअष्टक के अनुवाद को अवश्य पढ़ना चाहिए जिससे कि नए लोगों को पता लग सके कि हम क्या कर रहे हैं। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तब जैसा कि कहते हैं ‘रिलिजन विदाउट फिलॉसफी’ अर्थात दर्शन बिना धर्म के केवल कर्मकांड बन कर रह जाएगा। वे लोग इसे एक नार्मल रिवाज की तरह ही करेंगे। यदि आप चाहते हैं कि इस कार्यक्रम में सम्मलित होने वाले लोगों की चेतना में परिवर्तन आए तो आप दामोदरअष्टक का अनुवाद जरूर पढ़िए जिससे उन्हें पता लग सके।
आज हमारे एक अत्यंत महान आचार्य श्री नरोत्तमदास ठाकुर का तिरोभाव दिवस है, आज हम उनका स्मरण करेंगे। उनके विषय में बहुत कुछ कहने के लिए है, हम कहाँ से शुरू करें। नरोत्तम दास ठाकुर के अविर्भाव के पहले ही चैतन्य महाप्रभु एक समय जोर जोर से नरोत्तम! नरोत्तम! कहकर पुकारने लगे। उस समय भक्त समझ नहीं पा रहे थे कि महाप्रभु किसे बुला रहे हैं। इस प्रकार महाप्रभु ने नरोत्तमदास ठाकुर के जन्म से पहले ही उनके आगमन की भविष्यवाणी कर दी थी। नरोत्तम दास ठाकुर का जन्म वर्तमान में बंगला देश के खेतरी ग्राम में हुआ था। महाप्रभु ने जब इस धरती पर अपनी लीला का समापन किया, उसके तुरंत बाद ही नरोत्तमदास ठाकुर का जन्म हुआ।
मुझे भी नरोत्तम दास ठाकुर के जन्म स्थान पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। नरोत्तम दास ठाकुर एक राजा के पुत्र थे। अतः मैंने उनके महल जो कि बंगला देश के खेतरी ग्राम में है,वहाँ का दर्शन किया। वहाँ पद्मावती नदी बहती है और वह ग्राम पद्मावती नदी के तट पर स्थित है। यह नदी भारत और बंगला देश को विभक्त करती है। मैंने उस धाम की धूलि को अपने सिर पर चढ़ाया। इससे मैं स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली समझता हूं।
नरोत्तम दास ठाकुर स्वयं को वृंदावन और चैतन्य महाप्रभु के संग से दूर नहीं रख सकें। इसलिए उन्होंने खेतरी ग्राम छोड़ दिया और वृंदावन आ गए और जीव गोस्वामी से शिक्षा ग्रहण करने लगे। चूंकि उस समय षड् गोस्वामियों में से कोई अन्य गोस्वामी नहीं थे, यह एक प्रकार से सेकंड जनरेशन थी। तत्पश्चात उन्होंने लोकनाथ गोस्वामी से दीक्षा प्राप्त की। वह लोकनाथ गोस्वामी के एकमात्र शिष्य थे, यह भी एक अत्यंत विशिष्ट लीला है। इतिहास में वर्णन है कि किस प्रकार से नरोत्तम दास ठाकुर ने अपने गुरु महाराज की सेवा की। इसके पश्चात जीव गोस्वामी ने नरोत्तमदास ठाकुर, श्यामानंद प्रभु, श्रीनिवास आचार्य इन तीनों को गौड़ीय ग्रंथ देकर बंगाल में प्रचार के लिए भेजा। यह आचार्य त्रय कहलाते हैं अर्थात तीन आचार्य। उनमें से एक नरोत्तम दास ठाकुर थे।
नरोत्तम दास ठाकुर अपने भजनों के लिए बहुत ही सुविख्यात हैं। उन्होंने कृष्णभावनामृत की फिलॉसफी(दर्शन) को अपने सरल बंगाली भजनों में भर दिया है। श्रील प्रभुपाद ने हमें जो भजन दिए हैं, उनमें से हम अधिकतर भजन नरोत्तम दास ठाकुर के ही गाते हैं। जैसे “राधा कृष्ण प्राण मोर जुगल किशोर.. ,गुरु पूजा या श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु दया कर मोरे…” आदि ऐसे सैंकड़ों भजन हैं जिनकी रचना नरोत्तम दास ठाकुर ने की है, यह उनका हमारे लिए विशेष योगदान है। नरोत्तम दास ठाकुर के भजन वैदिक ज्ञान से भरे हुए हैं और यह अत्यंत सरल बंगाली भाषा में लिखे हुए हैं।
जैसा कि कहते है- ‘वेदैक्ष्चसर्वेरहमेव वेद्दो .. भगवान कहते हैं कि वेदों का सार केवल भगवान को जानना है। इसी प्रकार जब हम नरोत्तम दास ठाकुर के भजन को समझते हैं, तब हम भगवान कृष्ण को, चैतन्य महाप्रभु को समझ सकते हैं। वेदों का भाव उनके भजनों में हैं।
नरोत्तम दास ठाकुर का एक अन्य भजन है-
गौरांङ्ग बलिते हबे पुलक शरीर।
हरि हरि बलिते नयने बबे नीर।। जब हम इन भजनों को समझते हैं तब हम आचार्यों और उनके भावों को समझ सकते हैं। जैसे नरोत्तम दास ठाकुर इस भजन में कह रहे हैं कि “वह दिन कब आएगा, जब मैं गौरांग! गौरांग! कहूंगा और उस समय मेरे शरीर में पुलक होगा अथवा मैं पुलकित हो जाऊंगा, मेरे नयनों से अश्रुधारा बहेगी।” वह प्रार्थना कर रहे हैं कि वह दिन कब आएगा।
इसी भजन में वे आगे कहते हैं – विषय छाडिया कबे शुद्ध हबे मन
कबे हाम हरेब श्री वृंदावन।।
श्री नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं कि “कब मैं वृंदावन का दर्शन करूंगा ?कब मैं दिव्य या आध्यात्मिक वृंदावन को देख पाऊंगा, कब मैं वृंदावन में वास करूंगा।” उनका विचार है कि कोई व्यक्ति वृंदावन को देखने में तभी सक्षम हो सकता है जब वह विषयों अर्थात विषय वासना, इन्द्रियों को भोगने की इच्छा को छोड़ता है। इस प्रकार से इन्द्रियों के संयम द्वारा उसका मन शुद्ध होता है और वह वृंदावन का दर्शन करने योग्य बनता है। जब हम इन्द्रियों पर संयम करते हैं तब हम इस भौत्तिक जगत में इन्द्रिय तृप्ति से निवृत होते हैं और उसे भोगना नही चाहते। इसके पश्चात ही हम वृंदावन में प्रवेश के योग्य बन सकते हैं। नरोत्तम दास ठाकुर यहां वृंदावन के दर्शन करने की बात कर रहे हैं, वास्तव में वे भगवान के दर्शन और भगवान की लीलाओं के दर्शन की बात कर रहे हैं।
वृंदावन जाना इतना सस्ता नहीं है। हमें वृंदावन जाने के लिए मूल्य चुकाना पड़ता है। वह मूल्य कोई किराया राशि नहीं है। अपितु उस मूल्य के लिए भौतिक इंद्रियों अर्थात अपनी इच्छाओं को त्याग करना पड़ता है। तभी आप वृंदावन जाने के योग्य बनते हैं।
इस प्रकार आप नरोत्तम दास ठाकुर के भजनों को गाते रहिए, उन्हें पढ़ते रहिए, निरंतर जप करते रहिए, दीप दान कीजिए, कृष्ण पुस्तक और ब्रजमंडल दर्शन पढ़िए और अधिक से अधिक भक्तों से दीपदान करवाइए। तब आप स्वयं इस प्रकार वृंदावन में प्रवेश के योग्य जाएंगे।
हरि! हरि!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
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18 अक्टूबर 2020
जपा टॉक
यशोदा दामोदर भगवान आपको अपना आशीर्वाद प्रदान करें। इस समय हमारे साथ 581 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं, दामोदर भगवान इस समय वातावरण में विराजमान हैं और वृंदावन भी इस समय पूरी तरह हमारी चेतना में स्थापित है। आप सभी के मैं जब कमैंट्स देखता हूं की किस तरह आप दामोदर भावना मृत में आनंद पूर्वक गोते लगा रहे हैं। इस प्रकार आप सभी की चेतना बढ़ रही है और आप निरंतर दामोदर भगवान की सेवा में अग्रसर हो रहे हैं। कुछ भक्त बहुत तेजी से वृंदावन की ओर दौड़े जा रहे हैं, बहुत तीव्रता से वृंदावन की ओर जा रहे हैं। अभी कल श्याम लंगी माताजी बता रही थी कि वह आज वृंदावन पहुंच रही हैं, कल और एक माताजी परिक्रमा में थी वह वापस दिल्ली आ गई हैं, उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है वह कह रही है कि मेरा शरीर तो दिल्ली आ गया है परंतु मेरी आत्मा तो वृंदावन में ही स्थित है।
इस तरह से दामोदर मास में दामोदर भगवान और वृंदावन की भावना पूरी तरह व्याप्त है। जिस प्रकार से हम रोज भगवान दामोदर को दीप अर्पित करते हैं तो यह भावना और अधिक विकसित होती है इस प्रकार से भगवान दामोदर की चेतना पूरी तरह फैली हुई है यह बहुत सुंदर है। चिंतामणि धाम माताजी जोकि मॉरीशस से हैं वह बता रही थी कि पूरा दिन किस प्रकार वे दामोदर भगवान की लीलाओं से संबंधित वह अपना जीवन जी रही है और किस प्रकार से उन्होंने दामोदर व्रत धारण किया है और प्रतिदिन वे एक अध्याय ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक से भी पढ़ती है और ठंडे पानी से ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करती है और जमीन पर सोती है, जबकि उनके घर सोफ्ट मास्टर बेड़ व मिसट्रेस बेड़ भी है। वे ऐसा इसलिए करती हैं उन्होंने ब्रजमंडल पुस्तक में पढ़ा है कैसे जो भक्त ब्रजमंडल यात्रा करते हैं वह बहुत ही सादगी व तपस्या का जीवन जीते हैं जमीन पर सोते हैं व सुबह उठकर ठंडे पानी से नहाते हैं।
माताजी उन्हीं भक्तों का अनुसरण कर रही हैं मॉरीशस में रहकर तथा भगवान दामोदर की सेवा करके उनका चिंतन करके पूरा दिन अपना व्यतीत कर रही हैं। दामोदर व्रत का पालन व अनुशीलन पूरे विश्व भर में हो रहा है यही सुंदरता है इस अंतरराष्ट्रीय श्री कृष्ण भावना मृत आंदोलन की। श्रील प्रभुपाद जी ने भगवान कृष्ण को संसार में सर्वत्र पहुंचा दिया और जीवों के लिए कृष्ण को सुलभ बना दिया। हमारे हार्दिक पटेल प्रभु जो अमेरिका में हैं उन्होंने हमें बताया कि कल पहले ही दिन उन्होंने अपने कॉलेज के कैंपस में दीपदान किया, लगभग 60 से 70 भक्तों ने दीपदान किया और प्रसाद ग्रहण किया। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यह हमारा हरे कृष्ण आंदोलन व दामोदर भावना यत्र तत्र सर्वत्र फैल रही है। जयतीर्थ प्रभु जो कि ब्रजमंडल परिक्रमा में हैं वह भी अपने अनुभव हमारे साथ साझा कर रहे हैं। वे सभी को आमंत्रित कर रहे हैं वृंदावन आने के लिए। इस प्रकार आप सभी के पास आमंत्रण है ब्रज मंडल परिक्रमा में जाने के लिए आप जा सकते हैं, वृंदावन ब्रज मंडल परिक्रमा में अथवा आप जहां भी हैं वहां आप वृंदावन चेतना में रह सकते हैं कुछ भक्तिमय क्रियायें करके या व्रत लेकर या कोई संकल्प लेकर उसमें आप बहुत अधिक जपा कर सकते हैं।
प्रतिदिन भगवान को घी का दिया ऑफर कर सकते हैं इसके अतिरिक्त आप ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक पढ़ सकते हैं और दूसरे लोगों को भी दामोदर भावना मृत का दान दे सकते हैं। हो सकता है उनके लिए यह जीवन परिवर्तन करने का टर्निंग प्वाइंट हो, वह एक यू टर्न ले ले यहां से कि अब कृष्ण भावना मृत जीवन जिएंगे उनके अंदर बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। नारद मुनि प्रभु ने अपना रियलाइजेसन शेयर किया है। कल की जपा टॉक सुनकर उन्होंने एक बहुत सुंदर अनुभव किया जिसमें उन्होंने लिखा है, जो लेट्स चेंट टुगेदर फेसबुक पर जाकर आप उसे पढ़ सकते हैं पदमाली प्रभु वह दीनअनुकंपा माताजी उसे डाल सकते हैं जो उनका अनुभव है। आज मैं चेन्नई में हूं कल की रात में यहां आया था। मैं बड़ा अचंभित हूं जिस घर में मैं ठहरा हूं वहां 60 से 70 भक्त उपस्थित थे। वहां उन्होंने दीपदान किया दामोदर अष्टकम गाया। मैं दामोदर अष्टकम नहीं गा पाया क्योंकि मेरा गला ठीक नहीं है।
कुछ भक्तों ने वहां गाया और फिर घी का दिया भगवान को ऑफर किया। कल हमारा जपा टॉक रिकॉर्डेड था क्योंकि मैं तिरुपति बालाजी के दर्शन करने के लिए गया था। वह बहुत ही सुंदर अनुभव है, सुबह के टाइम में बहुत ही अच्छा दर्शन था बालाजी का। हमने बहुत सारे भक्तों व जीबीसी मेंबर्स के साथ दर्शन किया यह बहुत सुंदर दर्शन था। हम बालाजी को बहुत निकट से देख रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे और उनका धन्यवाद कर रहे थे कि किस तरह वह हमें इस भवसागर से निकालकर हमें कितना अपना सामीप्य दे रहे हैं। इस प्रकार से मैं इस अनुभव को शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता यह बहुत ही दिव्य अनुभव था कि हम बालाजी का सामीप्य प्राप्त कर रहे थे, बहुत निकट से दर्शन कर रहे थे। कल एक और सुंदर घटना घटी। इस्कॉन तिरूपति ने एक पदयात्रा शुरू की जो आंध्र प्रदेश के विभिन्न शहरों व गांव में जाएगी। इसका कल उद्घाटन हुआ। तिरुपति मंदिर में इस यात्रा में निताई गौर सुंदर के बहुत सुंदर विग्रह को रथ पर बैठाया गया है जिसका उद्घाटन जीबीसी के मेंबर्स द्वारा रिबन काटकर किया गया। इस प्रकार इस पदयात्रा पार्टी के लीडर राधा वल्लभ प्रभु हैं जो कि मेरे शिष्य हैं। मैं बहुत प्रसन्न हूं मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं इस्कॉन तिरुपति का जिन्होंने इस पदयात्रा को शुरू किया है। यह आंध्र प्रदेश के लिए बहुत अच्छी शुरुआत है जो कि हरिनाम को नगर नगर व गांव गांव पहुंचाने में बहुत सहयोग दिया है।
यशोदा मैया बहुत ही भाग्यशाली हैं कि दामोदर भगवान उनके पुत्र बनते हैं और उनका स्तनपान करते हैं। कितनी भाग्यशाली है यशोदा मैया वे महाभागा हैं किस प्रकार दामोदर उनके अंगों में खेलते हैं। यशोदा मैया की जय यशोदा का अर्थ है यश और दा अर्थात भगवान के यश का बहुत विस्तार करती हैं और सर्वत्र उनके यश का प्रचार करती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि दामोदर भगवान की जो लीलाएं हैं वह कितना मन को मोह लेने वाली हैं और यशोदा मैया जो कि कारण है इस मनमोहक लीला की। यशोदा मैया के कारण ही आज विश्व भर में दामोदर भगवान की लीला का यशगान हो रहा है। यहां भगवान का बड़ा विशेष वर्णन है, इस दामोदर लीला के माध्यम से जहां कहां गया है “भक्तरै जीतत्वम” जहां भगवान अपने भक्तों के द्वारा जीते जाने की लीला का निष्पादन कर रहे हैं।
किस प्रकार से भगवान का भक्त भगवान को जीत लेता है, तो यहां पर यशोदा मैया एक प्रकार से जीत गई हैं और उन्होंने भगवान को अपनी भक्ति रूपी रस्सी से बांध लिया है। इस प्रकार की जो लीला है वह भगवान को बहुत प्रसन्नता देने वाली है कि किस प्रकार से एक भक्त उन्हें अपने अधिपत्य में ले लेता है। भगवान को भक्तों की इस तरह की डीलिंग्स बहुत प्रिय है और इससे भगवान का यश गान सर्वत्र फैलता है। अभी आज हम यहीं पर विराम देते हैं। मुझे अभी एयरपोर्ट जाना है। आप सभी बहुत भाग्यशाली हैं जो एक स्थान पर रहते हैं परंतु हमें तो जैसे एक श्राप मिला हुआ है कि हम एक स्थान पर नहीं रह सकते हैं। कल मैं वृंदावन में रहूंगा और आपसे बात करूंगा अगर भगवान की इच्छा रही तो।
हरि बोल
श्रील प्रभुपाद की जय।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
18th October 2019
Alabama, USA Hardik Patel: Alabama devotees has reestablished Vedic Society at University Of Alabama on Oct 15th. Prema Hara European kirtaniyas did kirtan on the first day. There were 60-70 people took prasada. 60-70 people also offered lamp to Lord Damodara. We all seek your blessings to continue this society.
Srimati Radhika Devi Dasi: Maharajj right now I m in Delhi but my soul is in brijmandal. I did 4 day parikrama. I feel out of this world parikrama.
Dubai Shyamalangi devi dasi: Hare krsna gurumaharaj. pls accept my humble obeisances. I am in
taxi on my way to vrindavan from delhi..
Vrajtarini Radha Devi Dasi (Jalgaon): Dandvaat colony me daily ek pariwar ko deepdan karun ghete
Param Brham Das: Dandavat Pranam Gurumaharaj, 4th deep daan carried out at Isanpur,
Ahmedabad on 16th october.
N. Delhi; Nityalila Smriti DD: Gurumaharaj will be going to govardhan parikrama on Sunday
Gr.noi.Mahadev Das: Hare Krishna Srila Gurumaharaj my humble request to you pls pray for Hg svaroop aanand prabhu faster recovery He have a road accident. Hare Krishna srila Gurumaharaj my humble request to you pls pray for Hg svaroop aanand prabhu faster recovery He have a road accident.after this accident he attended daily mangal aarti this morning inspiring for all. Rohini Jadhav pune: Gurumaharaja. 4 mataji ka group hai ham har roj har ek ghar me dipdan
kirtan prasad kar rahe hai Hare Krishna Guru Maharaja! Dandavat Pranam! By my good fortune, I got an official tour to visit Delhi. I am taking 2 days leave for Vrindavan & Govardhan prakrima thereafter. Please bless me.
Rohini Jadhav pune: janvha rani mataji ke ghar hum kirtan karte hai
Jaytirth das Raichur: We are walking in vraj & also hearing vraj mahima by Guru Maharaj This is
real Krsna Consiouness .Jaytirth das
Rohini Jadhav pune: janvha rani mataji,Kaveri katkar mataji,Prabha ashtge,our mai ham milke dipdan kar rahe hai,kirtan kar hai brajmandal parikrsma book padha Solapur Vrajvadhu DD: 30 matajis went for Radha pandarinath and vitthal Rukmini charan darshan deep dan kartik snan in pandarpur dham
Sangli Shantaram Das: Walking around Vraja on foot gives one more time to think and to find out one's real identity. There's no room for false prestige, and no time to envy others.
Pr Godase Ganesh pandharpur dham: gurumaharaj I have completed every day 51 round read b.g sloka and also krishna book depdan every day
Bangladesh- Sankirtan Gaur Das: Giri Govardhan VOICE Tribal Care will celebrate Dwip Daan
and Gita Daan festival with 300 tribal devotees.
Rohini Jadhav pune: ham 4 mataji milke jap kar rahe hai, kirtan karte hai,
prashad dipdan kar rahe hai janvha rani mataji ke ghar
Jaytirth das Raichur: just we are arrived Talvan, Dauji ki jai
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
16 October 2019
जप टॉक
हरे कृष्ण
आज जपा कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ 600 से अधिक भक्त जप कर रहे हैं । शिवांगी यह सुनकर बहुत प्रसन्न होगी। हम यह देखना चाहते हैं कि हमारा यह लक्ष्य जो 700 का है वह कितनी जल्दी पहुंचता है इसके लिए आप सभी को प्रयास करना होगा अभी यदि 600 भक्त हैं हमारे साथ तो यदि 600 के 600 अपने साथ एक-एक भक्त को भी जपा कॉन्फ्रेंस से जोड़ते हैं तो हमारी यह संख्या 1200 तक पहुंच जाएगी और 1200 नहीं तो 100 अधिक संख्या बढ़ा ही सकते हैं, प्रयास कर सकते हैं। आप सभी 600 भक्त जप कीजिए और अपने साथ सभी एक-एक भक्त लाने का प्रयास कीजिए। निश्चित ही भगवान परम दयालु हैं इतनी कृपा करके वे हमें सुबह उठने की प्रेरणा दे रहे हैं और अपने नाम का जप करने के लिए हम सभी को प्रेरित कर रहे हैं निश्चित रूप से भगवान बहुत ही दयालु हैं, उन्होंने हम सबको इस भवसागर में चिन्हित किया है और वह हम सब को उठा कर के इस भवसागर से जो जीवात्मा तैर रही थी या डूब रही थी उनमें से कुछ जीवात्मा को उन्होंने कृपा करके उठा दिया है और उनकी कृपा कटाक्ष के द्वारा वह हम सब पर ऐसी कृपा कर रहे हैं “ददामी बुद्धि योगम तम” वे हमें ऐसी बुद्धि प्रदान कर रहे हैं कि हम रोज प्रातः सुबह उठकर हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं यह वास्तव में भगवान की महावदान्यता है इसके लिए हमें हृदय से भगवान का आभारी होना चाहिए और उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देना चाहिए।
आज हमारे रायचूर से राजेश्वर कृष्ण प्रभु के पुत्र निमाई का जन्मदिन है तो वे वैष्णवों का आशीर्वाद मांग रहे हैं तो हम सभी उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं, बधाई देते हैं। आप सभी का इस भौतिक जगत में पुनर्जन्म ना हो और आप सभी इस भौतिक जगत में दोबारा ना आएं। यदि आप हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते रहते हो और आप इस दामोदर मास को अच्छी तरह से मनाते हो, निश्चित रूप से यह गारंटी है कि आप इस भौतिक जगत में दोबारा जन्म नहीं लोगे। दामोदर मास की हमारे पास विभिन्न स्थानों से रिपोर्ट्स आ रही हैं। आप में से अधिकांश लोग मानसिक परिक्रमा कर रहे हैं, कई भक्त जो वृंदावन धाम में पहुंच चुके हैं और ब्रजमंडल की परिक्रमा कर रहे हैं। राधिका माताजी बता रही हैं कि वह परिक्रमा करके आज मथुरा पहुंच चुकी हैं आज भक्त (ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्त) मथुरा मंडल में पहुंच चुके हैं इस प्रकार से वे विश्राम घाट जाएंगे और अन्य अनेक स्थानों पर जाएंगे और उसके उपरांत संध्याकाल में सभी कृष्ण जन्मभूमि पर जाएंगे जहां वह भगवान केशव देव का दर्शन करेंगे। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी जब मथुरा मंडल आए थे तो उन्होंने ब्रजमंडल परिक्रमा की थी, और हमारे ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्त भी उसी पद का अनुगमन कर रहे हैं जिस पर चैतन्य महाप्रभु परिक्रमा के समय चले थे इसप्रकार जब चैतन्य महाप्रभु मथुरा पहुंचे थे तो उन्होंने सबसे पहले विश्राम घाट पर स्नान किया था और उसके उपरांत श्री कृष्ण जन्मभूमि पर केशव देव का दर्शन किया था।
जो भक्त मानसिक परिक्रमा कर रहे हैं वह अपनी रिपोर्ट भेज रहे हैं और ब्रजमंडल दर्शन का प्रत्येक दिन 1 अध्याय पढ़ रहे हैं और इसके विषय में अच्छी-अच्छी रिपोर्ट भेज रहे हैं। उनको पता है कि आज मथुरा मंडल में परिक्रमा है तो आप सभी मथुरा में मानसिक रूप से जा सकते हैं और अपने को परिक्रमा के साथ जोड़ सकते हैं तो आप जहां कहीं भी हैं ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं अमेजन के द्वारा और पदयात्रा ट्रस्ट के द्वारा भी इसे प्राप्त कर सकते हैं। जिसका मैं (हरि स्मरणदास ) भी सदस्य हूं और गुरु महाराज की प्रसन्नता के लिए मैं बताना चाहता हूं कि कल ही मेरा पुंडरीक विद्यानिधि प्रभु से डिस्कशन हो रहा था कि अमेजन के ऊपर डेली 5 से 10 पुस्तकें जा रही हैं और यदि किसी भी भक्त को पुस्तक चाहिए तो वे अमेजन पर जाकर यह पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं। और यह लिंक जो पदयात्रा ट्रस्ट का है ब्रजमंडल परिक्रमा लिंक दे रहे हैं, आप लोग जिसमें काफी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। आप इस लिंक से पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा किसी भी मंदिर से यह पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं। अन्यथा पदयात्रा ट्रस्ट हमें फोन करके रिक्वेस्ट कर सकते हैं। तुरंत आपको ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक उपलब्ध कराई जाएगी।
मॉरीशस से बहुत अच्छी खबर आई है अयोध्या नाथ प्रभु जो ओसियां में रहते हैं उन्होंने बहुत सुंदर तरीका अपनाया हुआ है कई वर्षों से वे पद यात्रा निकालते हैं जिसमें वे प्रत्येक घर दरवाजे से दरवाजे पर जाते हैं। इस प्रकार से उन्होंने लगभग पूरा शहर कवर कर लिया है और वह प्रत्येक घर घर जाकर उन परिवारों को बाहर निकाल कर भगवान की आरती कराते हैं और इस प्रकार से उन्होनें दामोदर आरती में कई परिवारों को, बहुत से लोगों को सम्मिलित किया है जो एक बहुत अच्छी खबर है।
अहमदाबाद से परम ब्रह्मप्रभु भी इसी प्रकार से एक दिवसीय पदयात्रा निकालते हैं, कई भक्तों को उसमें सम्मिलित करते हैं और फिर वह भी इसी प्रकार से घर-घर जाकर के कई परिवारों में जाकर के उन घरों में परिवार के जो सदस्य हैं और उनके जो पड़ोसी हैं उन सभी को इकट्ठा करके भगवान दामोदर की आरती कराते हैं और दीपदान कराते हैं। मैं उनका धन्यवाद करता हूं और उनको बधाई देता हूं वे इस प्रकार से भगवान की बहुत ही सुंदर सेवा कर रहे हैं।
एक बहुत सुंदर खबर प्राप्त हुई है लगभग 300 भक्तों ने चित्र ग्राम बंगलादेश में एकत्रित होकर दीप दान किया और पंढरपुर से भक्त गोडसे प्रभु कृष्ण बुक पढ़ रहे हैं और दीपदान की क्रिया को पंढरपुर में ज्यादा से ज्यादा लोगों से दीपदान करा रहे हैं। सुन्दराचल प्रभु ने अभी अभी यह शेयर किया है कि मैंने जो दामोदर अष्टकम गाया है, उसकी स्टूडियो रिकॉर्डिंग की है वह भी, आप सभी भक्त ब्रजमंडल पुस्तक के साथ उसकी भी प्रति प्राप्त कर सकते हो यूट्यूब पर जाकर और आप उसको बजा सकते हो जब आप दामोदरष्टकम करा रहे हो ।यह भी एक सेवा है जो आप सभी कर सकते हो।
:अहमदाबाद से मुरली मोहन प्रभु भी 1 दिन की पदयात्रा निकालते हैं और वे भी लोगों को दामोदर अष्टकम में सम्मिलित करके दामोदर आरती कराते हैं । पुणे से रोहिणी जाधव माताजी कृष्ण बुक पढ़ रही हैं और अपने बच्चों को भी कृष्ण बुक पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं और दीपदान भी कराती हैं। इसी प्रकार से आप सब से भी अपेक्षा है कि आप सभी नियमित रूप से कोई ना कोई पुस्तक पढ़ें। परम करुणा प्रभु भी बता रहे हैं कि उनके पास मेरे गाए हुए दामोदर अष्टकम की एक प्रति है जिसको वह नियमित सुनते हैं। इस प्रकार से आप सभी इस सुंदर अच्छे उत्सव का लाभ उठाइए और इस भाव को, आपकी जो दामोदर चेतना है दामोदर मास में इसको और अधिक प्रगतिशील बनाइए इसकी पुष्टि कीजिए। रमेश गौर प्रभु बता रहे हैं कि उन्होंने संकल्प लिया है कि वह दामोदर मास में 1251 राउंड जपा करेंगे आप सभी अधिक से अधिक जपा कर सकते हैं। शुद्धता के साथ, ध्यानपूर्वक जप कीजिए दीपदान कीजिए और दूसरों को भी दीपदान करने के लिए प्रेरित कीजिए और ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का प्रतिदिन एक अध्याय पढ़कर भगवान दामोदर की चेतना में भगवान दामोदर के भाव में स्थित होइये और इस प्रकार से दूसरों को भी आप अधिक से अधिक दामोदर चेतना दामोदर, भाव दे सकते हैं।
यह मास हमारे लिए एक विशेष अवसर है कि हम अधिक से अधिक लोगों को दामोदर भावना वितरित कर सकें। इस प्रकार से निरंतर खबरें आ रही हैं। नारदीय गोपी माताजी ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक पढ़ रही हैं और उनकी पुत्री भी माला कर रही है और ब्रजमंडल दर्शन पढ़ रहे हैं। ग्रेटर नोएडा से भक्ति बिरहाणी माताजी भी ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक पढ़ रही हैं। अलीबाग से गिरिराज गोवर्धन प्रभु बता रहे हैं कि किस प्रकार से आज उन्होंने अपने शहर में बहुत बड़ा आयोजन किया है, जिसमें वे बहुत लोगों को दामोदर अष्टकम और दामोदर लीला की कथा सुनाएंगे और उनसे दामोदर भगवान की आरती कराएंगे। इस प्रकार से कई भक्त अनेक प्रकार के संकल्प ले रहे हैं और आप लोग भी इस सबको जपा कांफरेस के फेस स्क्रीन पर पढ़ पा रहे होंगे। इसके अतिरिक्त आप सभी फेसबुक पेज पर जाकर के वहां से रिपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं। हम लोग जपा सेशन में अधिक से अधिक तत्व पर व्याख्या करें रिपोर्ट की जगह, क्योंकि वह ज्यादा अच्छा रहेगा रिपोर्ट तो आप लोग भी पढ़ ही रहे हो महाराज की यही इच्छा है कि ज्यादा से ज्यादा लीला के ऊपर या तत्व के ऊपर चर्चा की जाए।
प्रेमानंदे हरि हरि बोल
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
16th October 2019
BLR Manju Lali: Maharaj it felt as if you are tapping my head and blessing
Paramhans Das: देव माझा विठू सावळा, माळ त्याची माझिया गळा
विठु राहे पंढरपुरी, वैकुंठच हे भूवरी
भीमेच्या काठी डुले, भक्तीचा मळा
साजिरे रूप सुंदर, कटी झळके पीतांबर
कंठात तुळशीचे हार, कस्तुरी-टिळा
भजनात विठू डोलतो, कीर्तनी विठू नाचतो
रंगुन जाई भक्तांचा पाहुनी लळा
जय गुरुदेव दंडवत प्रणाम! संकीर्तन यज्ञ की जय
रोमांच कांपा सृथारांगा भाजो बंधे गुरो श्री चरणारा विंधम…..
Rohini Jadhav pune: 32 round, bachhoko leke dipdan, kirtan,prasad, bhktirasamrit sindu,chota
brajmandal parikrsma book padh rahi hu. Aaj se Krishna book padhungi
Noida- Prem Padmini devi dasi:t I am reading BrajMandel Darshan daily and doing mansion
Parikrama
Srimati Radhika Devi Dasi: we are in kishoriraman college and we started Mathura dham prikrma
Param Brham Das:Please bless me for doing deep daan at maximum area at ahmedabad, isanpur
in this Kartik month.
Srimati Radhika Devi Dasi: Maharaj ji kal hum sanatan goswami ji ke kutir aur samadhi par
Gaye aur unse aashirwad prapt liya
MAUR L Ayodhyanath Dasa:Yesterday padayatra deep utsav was very ecstatic my journey started
with your darsan and mercy giving my patients opportunity to offer lamps and evening session on
the road reaching at every doorstep distibution sweets and gave the chance to every habitant to
offer Deep daan we have been doing this for years and it is very nectarian always inspire us with
your glance Gurudev
Rasasawar Krishna Das Raichur: Today is my NIMAI Birthday give blessing to ho. my son 6th
birthday
Dubai Shyamalangi devi dasi:So wonderfully said gurumaharaj..we are eternally thankful to u first
and foremost
Noi Bimala Krishna Dasa: Bless Nimai prabhu ji
Maur L Vamandevdas: Stay krsna consciousness
Maur L Sundarachal Das: Happy birthday Nimai
NashikRoad Shailaja Narsinghani: Happy birthday Nimai
Noi – Sri Advaitacharya das: Hare Krishna Nimai, wish you very happy krsna conscious B'day.
Rasasawar Krishna Das Raichur: Today we r celebration his birthday in his with Dhamodhar Arthi
with all the students in school
Nashikroad Sadhya bhakti devi dasi (Savita Katore):Happy birthday Nimai prabhu
Jayapanchali devi dasi pune: yes gurumaharaja मी सकाळी हीच प्रार्थना करत होते की भगवंताच्या कृपेने
मंगलाआरती करत आहे आज मला तुलसी आरती करण्याची सेवा मिळाली.
Rohini Jadhav pune: mai vrindavan nahi gai lekin man se mai vrindavan me hi isa anabhav kar rahi hu
Jaytirth das Raichur: Raichur 1 house programe dipdan 150 devoeets participate yesterday night
Balnandini gortyal solapur: मी रोज एकाची घरी दिप दान करत आहे guru maharajआपल्या कृपे मुळे
Sita kisore devi dasi noida: yesterday mena deep Dana did in my home and invited about 30 mataji.
Solapur Vrajvadhu Dd: I read daily feel blessed thanks guru Maharaj Thane – sulochana Laxmi Devi dasi: yes gurumaharaj ji I have read 3 chapter
Caran Tulsi dd, Mexico: Thank you for this beautiful darsana and association with you which keep
me motivated and strong in my spiritual life. And also Thank you so much for provide us this way to
perform Vraja mandala parikrama anywhere we are. This year I'm unable to visit Sri Vrndavan
dham personally but I'm praying and doing parikram from Mexico with my Family. Thank You so
much for all your Blessings
Bhakti Viharini DD:maharaj ji we are recommended few of my friends and relatives for brajamndal
parikrama book.
Aus Ratikeli Devi Dasi:An email was sent to Melbourne Congregation about Braj Mandal Darshan
book and few devotees expressed their interest for the book and we ordered few books from India
and now it has been distributed to the devotees here in Melbourn Srivas Delhi:
*Hare Krishna Devotees PAMHO,*
*The Damodar month/Kartik Month* is the month of *Srimati Radharani*. Let us all *�� Live in
Vrindavan Mentally….. * �� and seek Her mercy. Join us for *Manasik 84 Miles Vraja Mandala
Parikrama* by reading one chapter of *Vraja Mandal Darshan* book everyday. Join the Mansik
Parikrama group by clicking the links below
https://chat.whatsapp.com/HSVgjQNHqo40C2OgOUUDt2
https://www.facebook.com/VrajaMandalaParikramafromHome/
Get your copy of *Vraja Mandal Darshan* Now
*Hindi:*
*https://amzn.to/2lOHCzh*
*English:*
*https://amzn.to/2lZxfIH*
Neelu Pandey: Yesterday by ur blessings….i hv also invited my students for
deepdaan….along with there parents….total were 40…participants..
Bangladesh- Sankirtan Gaur Das: Giri Govardhan VOICE celebrated another Dwip Daan Utshav
yesterday with 300 new devotees in Chattogram.
Dubai Shyamalangi devi dasi:yes we have kits and we carry them and sheets
Dayalu Radha Devi Dasi: can people who eat méat offer lamp, it is very inspiring
Pr Godase Ganesh pandharpur dham In whole kartik mass i have take sankalp 1251 round
complete and reading every day reading b.g sloka and also reading krishna book and every day
deep dan all activities completed pls bless me gurumaharaj and all vaishnavas.
Maur L Sundarachal Das: Since the day one I am sending picture of Yashoda damodar , songs of
damodar on you tube sung by u gurumaharaj on whats up to my friends and colleagues
Rohini Jadhav pune: mai bhi bacho se dipdan karva rahi
Vrajtarini Radha Devi DasiJalgaon: Hum karte he
A'bad-Muralimohan Da3s: In Ahmedabad there are three places One Day Padayatra being
conducted every month. One day Padayatra ki jai.
Rohini Jadhav pune: mai bhi aaj se Krishna book padhungi
Nagpur Paramkaruna das & Bhaktinidhi devi dasi: we have the Damodarastak sung by u
Gurudev
Rohini Jadhav pune: mai bhi 1100 raund karungi
Naradi gopi (ahmednagar): hare krishna guru maharaj. my daughter Rachana is reading Brajmandal darshan book and chanted 5 rounds extra every day.
Bhakti Viharini DD: yes i am reading maharaj regularly.
Pr Godase Ganesh pandharpur dham: Pls bless me gurumaharaj
(ALIBAG)girirajgovardhandas: Today we celebrate deepdan in ALIBAG CITY.
Lalitamohan Das:720 round in karthik mas
G. Noida Panchali sakhi d d: guru Maharaj m Apne ghar baccho ko dipdan karate hu as pas ke
,15 baccho ko brajmandal book Daly reading karte hu
BLR Manju Lali:we perform deep daan morning 4:30 am and 7:00 pm with 30 people in our
appartment
madhavisita nj:ramacandra das from new jersey reading spirutual stories daily
G. Noida Panchali sakhi d d: Daly 32 japa karte hu
Thane – sulochana Laxmi Devi dasi: I am also reading brajmandal Darshan one chapter daily and
Chanting 25 rounds daily
Vrajtarini Radha Devi DasiJalgaon: regular book read
Antaratma devidasi (Ahmednagar): I read vrajmandal parikrama daily Gurunaharaj.Next day at
time of Chanting i remember parkrama
Ramvijay Das (Pune): We follow you instruction
GGN Arjun Sakha Das: Damodarastak explanation by Guru Maharaj – Nov 18 Vrindavan
(ALIBAG)girirajgovardhandas: Non devotee also appresiate about BRUJ MANDAL
DARSHAN.
Dayalu Radha Devi Dasi: i send mail with glories of Kartik month and links you tube
Sangli Shantaram Das: I will be always indebted to you for your causeless mercy!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
15 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे इस जप कॉन्फ्रेंस में जप करने वाले भक्तों की संख्या बढ़ी है। यह एक खुशखबरी है। हमारे साथ लगभग 600 भक्त जप कर रहे हैं। जैसे जैसे यह संख्या बढ़ती जाएगी, मुझे और अधिक प्रसन्नता होगी एवं आप सभी को भी उसका लाभ प्राप्त होगा। आप सभी इस जपा कॉन्फ्रेंस पर अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों, इत्यादि को भी जॉइन करवा सकते हैं और फेसबुक के पेज letschanttogether पर प्रश्न पूछ सकते हैं या कोई समीक्षा, टीका या टिप्पणी आदि भी कर सकते हैं।
बैंगलोर से भक्त गणेश, मुझे नहीं पता कि वह अन्य लोगों से भी जप करवाएंगे या नहीं लेकिन उन्होंने स्वयं संकल्प लिया है कि वे इस कार्तिक मास में 1200 राउंड्स जप करेंगे। उसके साथ ही वह प्रतिदिन भगवतगीता और कृष्णा पुस्तक का भी अध्ययन करेंगे एवं भगवान को दीप अर्पित करेंगे।
उकर्शिया से देवऋषि नारद प्रभु, मंदिर में प्रतिदिन भक्तों के साथ मिलकर दामोदरअष्टक तथा दीप दान कर रहे हैं। वह हमारे साथ यूरोप से जुड़े हुए हैं,हमें इसकी काफी प्रसन्नता है।
ग्रेटर नोएडा से मानसी गर्ग माताजी लिख रही हैं कि वह अमृत सागर में गोते लगा रही हैं। मुझे यह पढ़ कर स्मरण हो रहा है और जैसा की दामोदर अष्टकम के तीसरे श्लोक में भी लिखा है
“इतीदृक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।”
भगवान दामोदर किस प्रकार से अपनी लीलाओं के माध्यम से ब्रजवासियों को आनंद के सागर में गोते लगवाते हैं। मानसी गर्ग माताजी भी शायद इसलिए आनंद के सागर में गोते लगा रही हैं। उन्होंने कल लगभग 60 वृद्धों और युवाओं को दीप दान करवाया, हमें आशा है कि वह आगे भी इसी प्रकार से दीप दान की सेवा में संलग्न रह अन्य लोगों से दीप दान करवाती रहेंगी।
पुणे से जय पांचाली माताजी अपना खेद प्रकट कर रही हैं कि वह इस बार ब्रजमंडल परिक्रमा में नहीं जा पा रही हैं परंतु वह कहती है कि वह इस विषय पर ज़्यादा नहीं सोचती। वह पुणे में रुकी हुई है और वहाँ वह प्रतिदिन मंगला आरती और भगवान दामोदर को दीपदान कर रही है। साथ ही साथ उन्होंने प्रतिदिन ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का एक अध्याय पढ़ने का भी संकल्प लिया है।
साथ ही साथ उन्होंने एक अन्य रिपोर्ट भी दी है कि जलगांव में उनके माता पिता ने अपने निवास स्थान पर दीपदान प्रोग्राम का आयोजन करवाया जिसमें लगभग 300 भक्तों ने भाग लिया और भगवान दामोदर को दीप दान अर्पित किया। यह बहुत ही सुंदर विषय है और सुनने में भी बहुत ही अच्छा लग रहा है।
नागपुर मंदिर से परमात्मा प्रभु ने हमें जलगांव की रिपोर्ट दी है, उन्होंने नागपुर की रिपोर्ट नहीं दी है। यद्यपि वह अधिकांश समय नागपुर में ही रहते हैं, फिर भी उन्होंने जलगांव की रिपोर्ट दी है। यह भी बहुत अच्छा है
हमें वृंदावन से भी निरंतर खबरें प्राप्त हो रही हैं। मैं इस बात से निश्चित हूं कि वहाँ पर भक्तों ने अच्छी तरह से मैनेज किया है और उन्होंने तीस दिवसीय सारणी भी निकाली है। आज प्रातः वे कृष्ण बलराम मंदिर से अब से लगभग 40 मिनट पूर्व अपनी परिक्रमा के लिए निकल चुके हैं। वे प्रतिदिन संभवतः
छः बजे अपना कैम्प छोड़ते हैं, आज वे वृंदावन धाम से श्रीकृष्ण भूमि की ओर परिक्रमा करेंगे और रास्ते में वे यज्ञपत्नी स्थल, अक्रूर घाट, बिड़ला मंदिर स्थानों पर जाएंगे। सुबह का प्रसाद वे बिड़ला मंदिर पर लेंगे, मैं वृंदावन की परिक्रमा से एक वियोग का अनुभव कर रहा हूँ। आज मैं जी.बी.सी. मीटिंग के लिए तिरुपति में हूं परंतु मैं प्रत्येक क्षण वृंदावन और उन भक्तों का स्मरण कर रहा हूँ जोकि वृंदावन की परिक्रमा में हैं। आप लोग जहाँ पर भी हैं, वहाँ आप ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक में से द्वितीय अध्याय ‘वृंदावन से मथुरा’ की परिक्रमा का अध्ययन अच्छी तरह से करिए ।
हमारे नोएडा मंदिर के भक्तों , काँग्रेशन मेम्बेर्स, इस्कॉन युथ फोरम के भक्तों ने मिलकर नोएडा से वृंदावन की पदयात्रा निकाली थी। यह पदयात्रा, दो सप्ताह पहले शुरू हुई थी और कल वृंदावन (ब्रज) में इसका समापन हुआ। उन्होंने इस पदयात्रा के दौरान श्रील प्रभुपाद की चार हजार से अधिक पुस्तकों का वितरण किया । यह बहुत ही सुंदर खबर है। प्रभुपाद जी को पुस्तक वितरण सबसे प्रिय था। जब श्रील प्रभुपाद जी की पुस्तकें वितरित होती हैं तब श्रील प्रभुपाद जी निश्चित रूप से प्रसन्न होते हैं। वे इससे अत्यंत प्रसन्न हुए होंगे। कल नोएडा में लगभग 300 भक्तों ने दामोदर आरती और दीपदान में भाग लिया।
लगता है कि बंगलोर से गणेश प्रभु की बात सुन कर नागपुर से परमकरुणा प्रभु बहुत ही उत्साहित हुए हैं। उन्होंने अभी अभी 2100 माला हरे कृष्ण महामंत्र जप करने का संकल्प लिया है।
हरिबोल!
महालक्ष्मी माताजी, कहाँ से हैं ? मुझे ठीक से नहीं पता परंतु उन्होंने कल 75 भक्तों से दीपदान करवाया जो कि बहुत ही सुंदर और उत्साह वर्धक खबर है।
अभी बहुत ही सुंदर मौसम/ ऋतु अर्थात कार्तिक मास चल रहा है। कार्तिक मास एक प्रकार की ऋतु/ सीजन है जिसमें हम अपनी भक्तिपूर्ण कृत्यों को अधिक से अधिक बढ़ा सकते हैं और इससे बहुत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। संसार में कई प्रकार की ऋतुएं मनाई जाती हैं अर्थात मौसम आते हैं जैसे कि यदि बरसात का मौसम होता है तब छतरियां बहुत बिकती हैं। इसी प्रकार से जब अन्य मौसम आते हैं, तब अन्य कई प्रकार की वस्तुओं की बिक्री होती है और मुनाफा भी होता है। यह कार्तिक मास उत्सवों का मास है और हम गौड़ीय वैष्णवों के लिए यह कार्तिक मास सबसे उत्तम ऋतु और सीजन है। हम इस मास में अपने भक्तिपूर्ण कृत्यों को करके बहुत अधिक लाभ और मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। हम अधिक से अधिक जपा और दीप दान कर सकते हैं, श्रवण और कीर्तन में अपने को संलग्न कर सकते हैं। श्रीकृष्ण, श्रीमद् भागवतम, ब्रजमंडल दर्शन इत्यादि पुस्तकों का गहनता से अध्ययन कर सकते हैं। हम अन्य लोगों से भी अधिक मात्रा में दीप दान करवा सकते हैं और हम इस कार्तिक मास का अधिक से अधिक लाभ उठा सकते हैं।
आप लोग इस मास में अधिक से अधिक श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का भी वितरण कीजिए। आप ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक भी खरीद सकते हैं। यह इस पुस्तक का विशेष सीजन है अर्थात ऋतु है जिसमें आप इस पुस्तक को खरीद और पढ़ सकते हैं एवं अधिक से अधिक वितरण भी कर सकते हैं। जैसा कि श्रील प्रभुपाद कहते थे कि प्रसादम वितरण के बिना हमारा कोई भी आध्यात्मिक कार्यकम अधूरा रहता है। इस मास में हम जो भी कार्यक्रम करते हैं, उसमें हम अधिक से अधिक लोगों को कृष्ण प्रसादम भी वितरण कर सकते हैं।आप अपने मित्रों, स्वजनों को अपने घर पर आमंत्रित कर सकते हो, जिस प्रकार से जय पांचाली माताजी के पिता जी प्रधुम्न प्रभु ने जलगांव में परिवारजनों, मित्रों को आमंत्रित करके 300 लोगों के साथ दीप दान किया। आप भी ऐसा प्लान कर सकते हैं, आप भी अपने घर में सप्ताह के दिनों में या सप्ताह के अंत में जब भी आपको समय मिलता है, तब आप इस प्रकार के कार्यकम का आयोजन करके अपने इष्ट मित्रों को दीप दान आदि सेवा में संलग्न कर सकते हैं।
श्री हरिभक्ति विलास जोकि श्रील सनातन गोस्वामी प्रभुपाद के द्वारा लिखा हुआ ग्रंथ है, इसमें वह इस बात की संस्तुति करते हैं कि इस दामोदर मास में दामोदर अष्टकम का पाठ/ जप व दीप दान नियमित रूप से किया जाना चाहिए। वे कहते हैं कि जो भी इस प्रकार से करता है, वह करुणासिंधु, दीनबंधु भगवान दामोदर की कृपा व करुणा को आकर्षित करता है और उस कृपा को पाने के लिए उनका पात्र बनता है।
दामोदर अष्टक बहुत ही सुंदर अष्टक है जिसका वर्णन पदम पुराण में भी आता है। सत्यव्रत मुनि ने अपनी वार्ता में नारद मुनि के साथ इस अष्टक का गान किया है। यह अति दिव्य प्रार्थना है जो कि पूर्णरूप से भक्ति से ओतप्रोत है। दामोदर अष्टकम के माध्यम से सत्यव्रत मुनि बहुत ही दीन भाव से भगवान दामोदर की कृपा के लिए याचना कर रहे हैं। इस मास में हम दामोदर अष्टक/प्रार्थना गाते हैं।
नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्
( गाते हुए)
जैसा कि मैंने आपको पहले भी सुझाव दिया था कि आप सभी अपने आप को इस दामोदर अष्टक के अर्थ से अवगत करवाएं। आप सभी को इस अष्टक का गुह्य भाव और अर्थ भी पता होना चाहिए इसलिए आप सभी भावार्थ को समझने का प्रयास कीजिए।
उन्होंने “नमामीश्वरं” अर्थात सबसे पहले ईश्वर को प्रणाम किया अथवा उनके प्रति नमस्कार अर्पित किया। कौन से ईश्वर ? सच्चिदानंदरूपं अर्थात वे भगवान का सत चित आनंद स्वरूप अर्थात विग्रह को प्रणाम करते हैं। यह अष्टक यहाँ से प्रारंभ होता है।
वह भगवान दामोदर की उस लीला का स्मरण कर रहे हैं, जिस में वे गोकुल के वृंदावन में अपने घर नंदभवन से माखन चुराते हैं । इस प्रकार से उनका स्मरण भगवन को उस दिव्य लीला का स्मरण करवा रहा है जहां भगवान अपने ही घर पर माखन चोरी की लीला कर रहे हैं। फिर वे वर्णन करते हैं कि भगवान ने जो कुंडल अर्थात लसत्कुण्डलं पहने हुए हैं, वे किस प्रकार से झिलमिला रहे हैं,हिल रहे हैं और उनसे प्रकाश निकल रहा है। भगवान किस प्रकार से यशोदा मैया से दूर भाग रहे हैं और उनके कानों में जो शोभायमान कर्ण फूल हैं, वे झिलमिला रहे हैं। इस प्रकार से वह इस अष्टक को आगे बढ़ाते हैं। आप सभी भी भागवतम के दसवें स्कंध के आठवें अध्याय में जहाँ पर शुकदेव गोस्वामी ने इस लीला का वर्णन किया है, वहां इस लीला के विषय में और अधिक गहराई से पढ़ सकते हैं।
सत्यव्रत मुनि आगे वर्णन करते हैं “यशोदाभियोलूखालाभद्धावमानं” भगवान अपने ही घर में माखन की चोरी कर रहे थे और स्वयं भी खा रहे थे व बंदरो को भी खिला रहे थे, जब उन्होंने माता यशोदा को हाथ में एक बड़ी छड़ी लिए अपनी ओर आते देखा तब भगवान दामोदर इतना डर गए कि वह ऊखल से एकदम कूद गए और भयभीत होकर भागने लगे। माता यशोदा किसी प्रकार से भगवान को पकड़ने में सफल हो जाती है। सत्यव्रत मुनि आगे लिखते हैं:-
रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।
जब भगवान पकड़े जाते हैं तो वह किस प्रकार से डर के मारे भयभीत और कम्पित हो रहे हैं और रो रहे हैं। वे अपने दोनों कर कमलों से अपनी दोनों आँखों को भीच भींच कर रगड़ रगड़ कर रो रहे हैं। सत्यव्रत मुनि ने बहुत ही सुंदर वर्णन किया है किस प्रकार से नंदनंदन भगवान कृष्ण माता यशोदा से भयभीत हो गए हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें। वे सोच रहे हैं कि अब पकड़े जाने पर उनके साथ कैसा व्यवहार होगा अर्थात उनकी किस प्रकार से प्रताड़ना की जाएगी। यह सोच कर के वह भयभीत हो गए हैं।
सत्यव्रत मुनि आगे लिखते हैं कि भगवान की श्वास किस प्रकार से ऊपर नीचे हो रही हैं।
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ
स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम
भगवान की श्वास डर के मारे तेजी से चल रही थी। उनके पूरे शरीर में कम्पन हो रहा था, उनके होंठ भी डर के मारे कांप रहे थे। सत्यव्रत मुनि ने देखा कि भगवान के सुंदर कंठ में तीन रेखाएं हैं। वे भगवान के बहुत सुंदर विग्रह और सुंदर श्रीअंगों की विशेषता का वर्णन कर रहे थे। उनके कंठ में एक माला है जिसमें एक लॉकेट भी पड़ा है जो कि हिल रहा है। भगवान का पूरा शरीर हिल रहा और कांप रहा है। भगवान के होंठ हिल रहे हैं। इस प्रकार भगवान का पूरा शरीर कंप रहा है।
यहां पर वर्णन आता है कि यह जो बंधन लीला है जिसमें यशोदा मैया ने भगवान को ऊखल से बांधा है। “भक्तिबद्धम” यशोदा माई अपने दुलारे, अपने लाडले पुत्र को जिससे वह इतना प्यार करती हैं, उसे बांध रही हैं। वह उन्हें भक्ति के द्वारा बांध पा रही है अर्थात वह भगवान के प्रति निष्ठा के कारण ही उनको बांध पा रही हैं।
इतीदृक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।
सत्यव्रत मुनि अगले श्लोक में बताते हैं कि भगवान इन लीलाओं के माध्यम से अपने ब्रजवासियों, पार्षदों, भक्तों
को आनंद के कुंड में गोते लगवा रहे हैं। आप इस लीला के विषय में और अधिक पढ़िए और स्मरण कीजिए एवं इस पर ध्यान कर अपने ध्यान को और अधिक प्रगाढ़ बनाइए।
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
Mys Sri Gopika Devi dasi:Please bless me Guru Maharaj, I am joining the Vraja Mandala Parikram . Seeking your blessing.
Paramhans Das: आपल्या चरणी कोटी कोटी दंडवत प्रमाण वास्तविक आपण भगवंताचे आहोतच, पण मी विषयाचा
आहे असे भ्रमाने वाटू लागले. संत 'तू विषयाचा नाहीस, भगवंताचा आहेस' असे सांगतात. हीच संतांची खरी कामगिरी, आणि
याकरिता ते नाम घ्यायला सांगतात.
Jayapanchali devi dasi pune: मी या वर्षी वृंदावन लाख येवू शकल्याने मी मानसिक परिक्रमा करण्याचा व रोज मंदीरातील मंगलाआरती लाख जाण्याचा संकल्प घेतला आहे. त्या साठी आपला व सर्व वैष्णवांचीकृपा हवी.
कल जळगावला आई च्या घरी दिप दान कार्यक्रम आयोजित करण्यात आला त्या वेळी 300 भक्त आले होते. सगळ्या साठी प्रसाद पण आयोजित केला होता.
Vrajtarini Radha Devi DasiJalgaon: Vrajmandal Darshan ka varnan etana sunder he ki parikrama me le jane ka anand deta he 2day Badrikashram.
Gr. noi mansi Garg:Yesterday completed first chapter of Brijmandal darshan… can't express my अनुभूति…जितना कृष्ण भावना में डूबते जा रहे हैं उतने आनंद के मोती पा रहे हैं।also did deepdaan and damodarshtkam with 50 new n old devotees in greater noida…
Gr. Noida Radhika (Radhavinod pr. daughter): Yesterday we invited our society members for the deep daan at our house
Mohanpriya dd(Ramlila's doughter in law)solapur: Blessing of Gurumaharaj 2 Satsang group of Ramlila Matajis started kirtan,Bhajan and Deepdan of going to every matajis house from yesterday
Paramatma Das: In Every House Jalgaon Everyday Deepdan program is going Srikanth Gangul,
Bhiwandie: Damodar Every day Satsang Kirtan pravachan Deep Dan hota hai
Aashirwad dijiye Guru Maharaj
Srimati Radhika Devi Dasi: We are in brijmandal parikrama jai guru dev A- BLR..
Akinchan Bhakt Das:oday Braj mandal parikrama – Vrindavan to Mathura
Shyamalangi devi dasi: Today devotees will walk towards mathura.. I love the place akrur ghat and yajna patni sthan
Gr. Noi Purnanandi Radha DD: Parikrama going Vrindavan to Mathura
Pr Ganesh Godase pandharpur dham:In whole kartik mass i have take sankalp 1200 round complete and daily read b.g.sloka and krishna book reading daily and deep dan and every day go pandharpur dham parikarama complete every day.
Thane/ Madhavi Gopi Dasi:We have done the sankalpa of singing Gopigeet everyday.
BLR Manju Lali: We did 30 deep daans yesterday and pledged to do the same every day this month in different houses
Param Brham Das: We have done deep daan on First day of kartik month with 70 devotees at ahmedabad,, sarangpur.
Noi Bimala Krishna Dasa:Dinanukampa Mata ji in the mail yesterday sent the excerpts of HH Radharaman Swami lecture on Kaliya past life.Submission at the Lotus Feet of true Sadhus is so well understood
GGN Arjun Sakha Das:I started reading Braj Mandal Darshan yesterday and was very happy to recall parikrama memories i participated few years back. It was blissful Rohini Jadhav pune: Bacho ko leke dipdan karvaya, Katha, sankirtan prshad, bhahut anand as raha hai
Thane – sulochana Laxmi Devi dasi: Maine bhi brajmandal Darshan ka 2 adhayay read and 26 rounds Chanting kiya
Maur L Vamandevdas: We are around 45 from Mauritius chanting today
Jagannath, Bhiwandi: Daily reading vraj mandal parikrama one chapter
Srikanth Gangul, Bhiwandie: Daily reading vraj mandal parikrama one chapter
BLR Manju Lali: We did 30 deep daan yesterday in one of the houses and pledged to do the same everyday in different houses for this month
ISKCON Noida: Noida Vrindavan Padyatra came back yesterday… distributed around 4000 books ….Daily around 250 to 300 devotees performed Deepdaan..
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Vrn Anandamayi_Radha Devi Dasi:We all are also missing you a lot everybody is enquiring when are you coming?
Noi Bimala Krishna Dasa:I read 2nd chapter and did deepdaan + 24 rounds Nagpur Paramkaruna das &
Bhaktinidhi devi dasi: Gurudev two chapters of vrajamandal darshan done and feeling the ecstasy and bliss of being already in vraj also after being inspired by devotees we both bhakti Nidhi and myself will do 2100 japa rounds in this Kartik month
Mahalakshmidevidasi in: Shirdhon se kal hamne 75 logonse dipdan karvaya aur is month main ham prayas karne wale hai ki har ghar main dipdan ho . Isiliye hum har ghar main jakar dipdan jarne ka sanklp kiya hai. Aur vrindavan parikrma kitab padne ka sankalp kiya hai.
Neelu Pandey: I hv also invited some of the children…for doing deepdaan…along with there parents…and also i will be distributing…books…pls bless me for this… dandvat…
Bangladesh- Sankirtan Gaur Das: GIRI Govardhan VOICE managed 200 devotees to offer lamp to Lord. Today also a program of 300 devotees.
Greater Noida Radhika Dubey: गुरुमहाराज कोटि कोटि प्रणाम मैने भी कुछ संकल्प लिया है आशिर्वाद दीजिए मै इस संकल्प को पूरा कर पाऊ
Srimati Radhika Devi Dasi Give us blessings maharajji we are in brijmandal parikrama
Balnandini gortyal solapur: hare krishna guru msharaj मी रोज एकाचा घरी दिप दान करणार आहेआणि त्याचा सोबत जप करवणार आहे तर krishnaकथा सागणार आहे आपण. आपण मला आशिर्वाद दया मी हे संकल्प पुर्ण करण्यासाठी
Jagjivan Das Noida: मैने भी कुछ संकल्प लिया है आशिर्वाद दीजिए मै इस संकल्प को पूरा कर पाऊ
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
14 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
अब हमारे समक्ष बहुत ही शुभ दामोदर मास है। यह दामोदर मास बहुत ही सुंदर और दिव्य समय है। इस दामोदर माह में आज हमारे साथ लगभग 578 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। मैं ऐसी आशा करता हूँ कि जिस प्रकार जुलाई मास में हमारे साथ जप करने वाले सहभागियों की संख्या लगभग 700 थी, इस कार्तिक मास में उतनी या उससे अधिक संख्या होनी चाहिए। आप सभी इसके लिए प्रयास कीजिए जिससे इस जपा कॉन्फ्रेंस में अधिक से अधिक भक्त संग लेकर जप कर सकें।
हमें पूरे संसार भर से अत्यंत ही आनंदप्रदत्त और बहुत ही उत्साहित करने वाली खबरें मिल रही हैं और विशेषकर श्री वृंदावन धाम से, जहां कार्तिक मास में भक्त लोग कितनी अन्य क्रियाओं में संलग्न हैं। वे मुझे अपनी दैनिक रिपोर्ट्स भेजते हैं।
हमारा फेसबुक पर एक पेज भी है- letschanttogether जहाँ पर समाचार और खबरें आप सभी भक्तों के पढ़ने और प्रेरित होने के लिए पोस्ट (भेजी) की जाती हैं। इनमें से कुछ खबरें मैं इस कॉन्फ्रेंस में भी आपके सबके समक्ष रखता हूँ।
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर अपने भक्तों के समक्ष ऐसी इच्छा प्रकट किया करते थे कि हमारा एक दैनिक समाचार पत्र होना चाहिए जिसका नाम हरे कृष्ण दैनिक समाचार पत्र हो। उस समय सभी भक्त काफी अचंभित व विस्मित हो गए थे कि यह ऐसे कैसे सम्भव हो सकता है कि “हमारा गौड़ीय वैष्णवों का एक दैनिक समाचार पत्र छपे।” लेकिन मैं आज देख रहा हूँ, कि पूरे संसार भर से इतने समाचार आ रहे हैं,उससे लगता है, ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि हमारा दैनिक समाचार पत्र छप पाए अपितु मैं देखता हूँ कि आज पूरे संसार में इस्कॉन अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के क्रियाकलाप चल रहे हैं, उसका हमें केवल एक छोटा सा अंश मात्र ही प्राप्त होता है। मैं ऐसा सोच रहा था कि दैनिक समाचार पत्र की क्या बात की जाए, हम तो प्रतिक्षण एक समाचार पत्र छाप सकते हैं। हमारे पास पूरे संसार में हरे कृष्ण आंदोलन के प्रचार और प्रसार के कार्यो की इतनी खबरें हैं कि हमारा तो हर पल एक समाचार पत्र हो सकता है।
मैं सोच रहा था कि हमारे इस्कॉन की दुनिया की हज़ारों की संख्या में वेबसाइट है और उन वेबसाइट पर भक्तों के द्वारा इतना अधिक समाचार प्रसारित किया जा रहा है, ऐसा लगता है कि पूरा आध्यात्मिक जगत ही एक प्रकार से उतरा हुआ है। आध्यात्मिक खबरें चारों तरफ फैल रही हैं। यह बहुत ही सुंदर है कि हम चारों तरफ से हरे कृष्ण आंदोलन के समाचारों को सुन रहे हैं।
संसार के समाचार पत्रों में ग्राम्य कथा औऱ केवल उल्टी सीधी मन को दूषित करने वाली व समाज को प्रदूषित करने वाली खबरें छपती रहती हैं लेकिन जो खबरें हमारे ज़ूम कॉन्फ्रेंस या पूरे इस्कॉन जोन की विभिन्न वेबसाइटों में रहती हैं, उसमें केवल भगवान कृष्ण, दामोदर की कथा होती है। इस्कॉन का दंडवत नाम से भी एक समाचार पत्र है जोकि दैनिक प्रकाशित होता है जिसमें भगवान की कथाएँ ही होती हैं। हम समाचार पत्रों के माध्यम से जो ग्राम्य कथाएं इतने समय से सुन रहे हैं, हमें उसको एकदम बंद कर देना चाहिए, अब बहुत हो चुका। हमें विभिन्न माध्यमों से केवल और केवल दामोदर कथा, राम कथा, कृष्ण कथा, चैतन्य कथा ही सुननी चाहिए।
जैसे जैसे हम कृष्ण कथा, दामोदर कथा या दामोदर मास की कथा सुंनेगे, हम और अधिक कृष्ण भावना भावित होते जाएंगे। जब हम विभिन्न माध्यमों से उन खबरों को पढ़ेगें और सुनेंगे तब हमारी एकाग्रता/ध्यान हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के समय और अधिक प्रगाढ़ होती जाएगी। तत्पश्चात हम भगवान से सम्बंधित कथाओं/ समाचारों के विषय में अधिक से अधिक मनन और स्मरण कर पाएंगे।
दुबई अर्थात दामोदर देश से श्यामलंगी माताजी अपनी रिपोर्ट में हमें बता रही हैं कि दुबई में श्री नाथ जी का जो एकमात्र हिन्दू मंदिर है, वहां कल भगवान का बहुत सुन्दर दिव्य श्रृंगार हुआ था। भगवान को सुंदर श्वेत वस्त्र धारण करवाए गए थे और उसमें भगवान अपने भक्तों से घिरे हुए थे। उनका शरद पूर्णिमा का बहुत सुंदर दर्शन हो रहा था। उन्होंने बताया कि आज जब वह सुबह जप करने के लिए बैठी तब उनको शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान ने जो सुंदर श्वेत वस्त्र धारण किए हुए थे, उस दिव्य स्वरूप का स्मरण हो रहा था। मैं निश्चित हूं कि आप में से जिन भक्तों ने भी कल दामोदर आरती की होगी या यशोदा दामोदर का सुंदर दिव्य दर्शन किया होगा, उन सब को भी जप के समय उस दर्शन का स्मरण हो रहा होगा।आज सुबह जब आप जप कर रहे होंगे तब आपके मन में भगवान की जो छवियां हैं, वह निश्चित रूप से उभर रही होंगी।
हरि! हरि!
आज सुबह वृंदावन धाम में ब्रजमंडल परिक्रमा प्रारंभ हुई है। भक्त लोग वृंदावन धाम की परिक्रमा कर रहे हैं। वहां से कुछ भक्तों ने मुझे समाचार भी भेजा है कि वे जपा कॉन्फ्रेंस में भी हैं और ब्रजमंडल परिक्रमा भी कर रहे हैं। जब मैंने यह देखा कि भक्त परिक्रमा में चल रहे हैं और साथ साथ वे लोग जपा भी कर रहे हैं, इससे मुझे बहुत ही अधिक प्रसन्नता हुई।
इसके अतिरिक्त कुछ भक्तों से मुझे यह भी समाचार मिल रहा है कि आज सुबह भक्तों ने ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का पहला अध्याय वृंदावन परिक्रमा का भी अध्ययन किया। यह एक प्रकार से मुझे बहुत ही संतुष्ट और बहुत ही प्रसन्न करने वाली अनुभूति है। यह जो पुस्तक मैंने लिखी है अर्थात संकलन किया है, इसके लिए मुझे बहुत वर्ष और बहुत अधिक तपस्या करनी पड़ी है। सालों की तपस्या के उपरांत यह पुस्तक निकली है जिससे अब भक्त लोगों को घर बैठे ब्रजमंडल परिक्रमा का सुंदर अनुभव हो रहा है। यह समाचार मेरे लिए बहुत ही संतुष्ट करने वाला है, मैं उससे बहुत अधिक प्रसन्न हूँ।
मैं सोच रहा था कि आप सभी भक्तों के पास दो चीज़ें अवश्य होनी चाहिए एक ब्रज मंडल परिक्रमा की सारणी जिसे हमारे फेसबुक letschanttogether पेज पर भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। आप सभी के पास ब्रजमंडल परिक्रमा का चौरासी कोस परिक्रमा का शिड्यूल(सारणी) होना चाहिए अर्थात परिक्रमा कब, कहाँ पर जाएगी और साथ में आपके पास ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक होनी चाहिए।आप उस सारणी के अंदर देख सकते हो कि दैनिक परिक्रमा कहां जा रही है ? यदि परिक्रमा आज गोवर्धन जा रही है तब आप तत्काल ब्रज मंडल दर्शन पुस्तक का वह पेज खोल कर उसका अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार से यदि आज परिक्रमा बद्रिकाश्रम जा रही है तब आप ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक में बद्रिकाश्रम का वह पेज खोल कर उसका अनुभव ले सकते हैं। इस प्रकार से जहाँ जहाँ भी परिक्रमा जा रही है, आप उसका घर बैठे मानसिक रूप से दिव्य सुंदर अनुभव प्राप्त कर सकते हो। आजकल भक्त लोग वृंदावन की परिक्रमा कर रहे हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी वृंदावन की परिक्रमा की थी। हम भी उन भक्तों के साथ वृंदावन की परिक्रमा घर बैठे इस पुस्तक के द्वारा मानसिक रूप से कर सकते हैं।
आप सभी दीपदान उत्सव में मंदिरों में सम्मलित हो सकते हैं और साथ साथ आप अन्य जीवात्माओं, अपने मित्रों, अपने सहभागियों को, रिश्तेदारों को इस उत्सव में सम्मिलित कर सकते हैं “यारे देखो तारे कह कृष्ण उपदेश” आप अधिक से अधिक संख्या में लोगों को इस दीपदान उत्सव में सम्मलित करने के लिए प्रेरित कीजिए। हमने आज ही एक खबर सुनी है कि हमारे अकिंचन प्रभु जो कि इस्कॉन बंगलोर से हैं उन्होंने बताया कि इस्कॉन बंगलोर ने 5 लाख लोगों को दीप दान करवाने का संकल्प लिया है। यह बहुत बड़ा लक्ष्य है, जिस प्रकार से इस्कॉन बंगलोर ने अपने लिए यह लक्ष्य स्थापित किया है। उसी प्रकार से आप सभी भी अपनी अपनी क्षमता के अनुसार लक्ष्य स्थापित कर सकते हैं। इस्कॉन सोलापुर भी कह रहा है कि वे भी काफी लोगो को दीप दान करवाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
ग्रेटर नोएडा से भी हमें खबर मिली है कि वहाँ अतुल कृष्ण प्रभुजी ने दामोदरअष्टकम पर चार सीरीज ऑफ लेक्चर दिया है। नोएडा से सीता ठुकरानी माताजी भी बता रही है कि उन्होंने दामोदर मास के पहले दिन ही इस्कॉन नोएडा में बाल गोविंद प्रभुजी के द्वारा पेरेंटिंग अर्थात माता पिता अपने बच्चों का लालन पालन किस प्रकार से कॄष्णभावनामृत में कर सकते हैं, विषय पर सेमिनार करवाया। हमें बहुत प्रेरणादायक खबरें मिल रही हैं।
मॉरीशस से कुसुम सरोवर माताजी ने ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का अध्ययन शुरू किया है और उन्होंने उसका एक अध्याय पढ़ लिया है। अयोध्या नाथ प्रभु भी बता रहे हैं कि वे इस दामोदर मास में पद यात्रा संयोजित (कार्ययोजना) कर रहे हैं और उस पद यात्रा में शामिल होने वाले लोगों से वे दीप दान भी करवाएंगे। इस प्रकार से चारों तरफ से खबरें बम की तरह गिर रही हैं। मैं इन सबको तो पढ़ नही सकता लेकिन आप इसको अपने खाली समय में फेसबुक के letschantstogether पेज पर यह सभी खबरें पढ़ करके उत्साहित अनुभव कर सकते हैं।
अंत में यह मैं कहना चाहता हूं कि आप सभी दामोदरअष्टक पढ़ रहे हैं,दीप दान कर रहे हैं और यशोदा दामोदर की आरती कर रहे हैं। आप सभी को दामोदर अष्टक के अर्थ को भी अच्छी तरह से समझने का प्रयास करना चाहिए। दामोदरअष्टक शब्द का अर्थ क्या है? उसका भावार्थ, उसका अनुवाद (ट्रांसलेशन) उसका व्याख्या क्या है ? और यदि हमें उसके ऊपर किसी आचार्य की व्याख्या भी पढ़ने को मिलती है, आप उसको भी पढ़ कर उसके भाव को समझने का प्रयास कीजिए। यह जो दामोदरअष्टक गाया या लिखा गया है, जब हम इसको गाते हैं, तब हम समझते भी हैं कि दामोदरअष्टक में भक्ति का क्या अनुभव किया गया है इसका क्या भाव है, इसके द्वारा हमारे अंदर किस प्रकार की भावनाएं जागृत होती हैं? जैसे कि हम दामोदर अष्टकम पढ़ते हैं वैसे ही हमारे अंदर भी वे भावनाएं उदित होती हैं और हम उसको और अधिक प्रेम व आनंदपूर्वक समझ सकते हैं और गा सकते हैं।
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
Navadwipdas VRN: all devotees are doing vrindavan parikrama
Jagannath, Bhiwandi: I started reading braj mandal parikrama daily one section
Rohini Jadhav pune: kal bacho se padosise dipdan karvaya ,Katha,sankirtan,prshad vitran Kiya bhahut anand aya maharajji bhagvan bhahut sundar Sikh rahe the
MAUR L Ayodhyanath Dasa: HK Guru Maharaj my obeisance at your lotus feet one month kartik deep daan outsaw padayatra start as from today your mercy upon us
Rohini Jadhav pune: 32 round bhktirasamrit sindu braj Mandal parikrsma chota book padha
Sita kisore devi dasi noida: üíêkal shaam ko ghar per society ko ladies ko bulkar deepdaan karvaya ha or kirtan bhi kiya ha sab .
A- BLR.. Akinchan Bhakt Das: Gurudev, iskcon sheshadripuram have targeted 5 lakh deep daan in Bangalore. All devotees started this service by reaching out to new people and engaging them in deep daan Pr Ganesh Godase pandharpur dham: gurumaharaj deep dan usav is done yesterday in jaganath temple pandharpur very nicely
Blr anadi keshav Das: we are in Vrindavan prarikrama
Gr Noi Svarup Anand Das: Hare Krishna, Happy Kartik Guru maharaj üôè
noi Sita Thakuranidd: Hk GM tmr in noida temple we conduct parenting seminar ",how to trained children in krsna conscious at home", by h.g. bal govind pr. sitathakurani ďd noida
Vrajtarini Radha Devi DasiJalgaon: Guru Maharaj ji Dandwat Pranam Parikrama Book adyan keya first day lag raha tha Dham me he
Gr. noi mansi Garg: HG Atul krishna prabhu in greater noida iskcon and attended mangla aarti also, keertan, Katha,and prasadam .. everything was like vrindawan dham waas.
Hari bol
A'bad-Muralimohan Da3s: Dear Guru Maharaja, Pamho. Yesterday we conducted our 39th One
day Padayatra at Surendra-nagar.
Srimati Radhika Devi Dasi: Hare Krishna, Dandvat Pranam Gurudev! üôèI m in Vrindavan prikrma
Dubai Shyamalangi devi dasi: My humble and respectful obeisnaces to u gurumaharaj and all .yesterday sharad purnima darshan was simply mesmerising in shrinathji haveli dubai lord dressed in silver white with all round gopis doing rasa lila,we are not allowed to click picts. This darshan is on my mind this mor as I chant
Gopigeet dd: hare Krishna dandwat pranam Guru Maharaja 15 devotees daily morning mangla aarti , Gopigeet, damodar astak,tulsi aarti or braj mandal parikrama ka ek adyaye daily kar rahe hai bless us (ALIBAG)girirajgovardhandas: Damodar maas Mahostav ki JAY.
Sundari Lila DeviDasi: dandvat pranam guru Maharaj beed iscon ten devotees in prikrama
Noi Bimala Krishna Dasa: Guru Maharaj I have already joined the Facebook page
Dubai Shyamalangi devi dasi: all darshanarthis got kheer prasad as well
(ALIBAG)girirajgovardhandas: Braj Mandal Parikrama bhakthvrund ki JAY.
Ratnawali Madhavi Devi dasi: unbelievable and can't express in words the darshan of Radha Shyam sunder ji in Vrindavan yesterday while offering Deep daan
Noi Bimala Krishna Dasa: I have completed the first day Parikrama of Vraj Mandala Darshana and after the Ishtagoshati at Iskcon temple i went to make small purchases as advised during the meeting
Maur L Sakhi vrinda dd:We cooked sweet rice for the lord and place it on the roof garden last night Pr Ganesh Godase pandharpur dham Yesterday I have take sankalp in kartik mass every day chanting 40 round upto 30 day and completed 1200 round and every day reading b.g.krishna book reading so pls bless me all these activity completed.
Yugadharma harinam das iskcon Kaundinyapur: gurudev yesterday I completed chapter chapter 1 of vraj mandal parikrama
Srikanth Gangul, Bhiwandi: gurudev yesterday I completed chapter chapter 1 of vraj mandal parikrama
Jaytirth das Raichur: kal hamne Damodar lila me suna ki,pralay ke time sare brahmand nasht hote hai,magar Bhagawan par koi aarop nahi lagata, magar ek makhan ki mataki chori karne par vo khud ko aparadhi maan rahe hai aur Yashoda maiya ke bhaya se kap rahe hai, aaj ka chintan japa time.Jaytirth das Raichur virginia's iPhone: happy Kartika everyone
(ALIBAG)girirajgovardhandas We started MAANSIK parikrama in HARE KRISHNA NAAMHATT KENDRA.
Gr. noi mansi Garg: yesterday we were busy in temple activities of hearing damodar leela n deep daan but from today will start reading braj mandal darshan..
01:26:11 Maur L Jaya Shree Devi Dasi: Hare krsna dear gurudev. The great zeal, enthusiasm and motivation of the devotees on vraja Mandal Parikrama to be on the conference and read vraja mandala darshan is highly motivating to usüôè your grace and mercy is indeed flowing through your heart to the whole world. Thank you unlimited times for being so magnanimous to us and having worked so hard for the Vraja Mandal darshan book nectar. Indeed our fortune knows no bounds.
Maur L Sakhi vrinda dd: we have read the book I felt I am starting the vraj mandal with the devotees I feel the same experience thank u v much for ur masterpiece this vraj mandal book Sharanya krushna devi dasi .(solapur ) Yesterday l was completed chapter 1 varja mandal pari karam.
Maur L Kusum Sarovar Priya Dasi: Hare Krishna Gurumaharaj, bringing one of the 2 Braj Mandal book at work to read to my colleagues who are also offering lamps for Kartik Mass. Please bless us.
Dayalu Radha Devi Dasi: we had a program yesterday to start Damodara month Keshav Bharati Das,Dubai Damodardesh: Thanks a lot for inspiring us…
GGN,Radha citta Hari das: we went to Goverdhan Parikrama with 100 devotees yesterday
Keshav Bharati Das,Dubai Damodardesh: We also started Damodar Arati with Damodar Astakam yesterday at Damodardesh Dubai
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
13 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज कार्तिक मास का प्रथम उदघाटन दिवस है। आज हमारे साथ 552 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
हरि! हरि!
हम इस कार्तिक मास में आशा करते हैं कि इस कॉन्फ्रेंस में अधिक से अधिक संख्या में भक्त सम्मलित हो। इस कार्तिक मास को मंत्र सिद्धि मास भी कहते हैं अर्थात यदि कोई इस कार्तिक मास में हरे कृष्ण महामन्त्र का जप करता है तो उसे सिद्धि प्राप्त हो सकती है, वह उच्च स्थिति प्राप्त कर सकता है। यह जप के लिए अत्यंत ही अनुकूल मास है। यदि आप शीर्ष तक नहीं भी पहुंचे तो इस मास में जप करने से आप अवश्य ही उच्च स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए आप इस पवित्र कार्तिक/ दामोदर मास का पूरा लाभ लीजिए और अधिक मात्रा में जप कीजिए। आप अपने जप की संख्या को बढ़ाइए और साथ ही साथ आप ध्यानपूर्वक शुद्ध नाम जप करने का प्रयास कीजिए।
आप में से कुछ भक्त अभी भी जप कर रहे हैं जैसे नासिक से भक्ति वैभव माताजी, वह अभी भी जप कर रही हैं। जप करते रहना ठीक है परंतु अभी यह समय श्रवण के लिए है।कृपया अभी आप अपना जप रोकिए और जप चर्चा का श्रवण कीजिए।
हरि! हरि!
हमें आपको यह बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज से हम इस letschanttogether के एक नए पेज का उदघाटन कर रहे हैं। यह हमारे इस जप चर्चा का अर्थात आइए एक साथ जप करें का फेसबुक पेज है। हम इस पेज का ऑफिसियल (आधिकारिक) उदघाटन कर रहे हैं। हम आप सभी भक्तों की सेवा के लिए इसका उद्घाटन कर रहे हैं। इस फ़ेसबुक पेज का लाभ यह होगा कि जब भी आपको दिन में समय हो, तब आप हमारे साथ जप कर सकते हैं। आप इस जप चर्चा को दिन के समय फ्री होने पर भी सुन सकते हैं।आप वहाँ पर इसका ट्रांसलेशन (अनुवाद) भी पढ़ सकते हैं। आप वहां कमेंट कर सकते हैं और अपने अनुभव बता सकते हैं। यदि आप का कोई प्रश्न भी हो तो वहाँ पर पूछ सकते हैं। अभी क्या हो रहा है कि यदि आपका कोई कमेंट या प्रश्न होता है तब आप उसे इस जप सत्र के दौरान ही पूछते हो परंतु अब इस फ़ेसबुक पेज के माध्यम से आप पूरे दिन में कभी भी हमसे प्रश्न पूछ सकते हो या अपने अनुभव बता सकते हो।आप इसका लाभ अवश्य ले।
ऐसा नहीं होगा कि जब आप इस फ़ेसबुक पेज पर अपने प्रश्न पूछेंगे, आपको तत्क्षण उनके उत्तर मुझ से मिल जाएंगे। मैं अगले दिन अथवा कुछ दिन के भीतर ही उन में से कुछ प्रश्न या अनुभव लूंगा और उसके पश्चात हम उन पर चर्चा करेंगे। इस प्रकार हम आपके प्रश्नों का उत्तर भी देने का प्रयास करेंगे।
मुझे नही पता कि यह संभव होगा या नहीं लेकिन यदि संभव हो तो जैसा कि हम कहते हैं – ‘बोधयन्त: परस्परं ‘आप आपस में ही प्रश्न पूछ कर उत्तर प्राप्त कर सकते हैं और अपनी समस्या सुलझा सकते हैं। हम भी देखते हैं और यदि यह संभव हुआ तो हम भी इसे कर पाएं।
वैसे आज से कार्तिक मास का प्रारंभ हो चुका है लेकिन तिथि के हिसाब से आज अश्विन मास की पूर्णिमा है। कल से कार्तिक मास प्रारंभ होगा, आज शारदीय रास पूर्णिमा है। आज के दिन भगवान ने रास किया था।अतः हम भी पूर्णिमा से कार्तिक मास को प्रारंभ करते हैं अर्थात आज के दिन को हम कार्तिक मास में ही सम्मलित करते हैं। आप भी आज से अपना कार्तिक व्रत प्रारंभ कीजिए। मैंने भी आज इस्कॉन तिरुपति में श्री राधा गोविंद देव और अष्ट सखी की मंगल आरती उतार करके कार्तिक मास को प्रारंभ किया। आज जब मैं प्रात:काल उठा, तब मेरा मन एक बार वृंदावन में चला गया था, आज मैं वृंदावन में था और राधा श्यामसुंदर का चिंतन कर रहा था। आज रास पूर्णिमा है, इसलिए मैं भगवान की रास लीला का भी चिंतन कर रहा था। श्रीमद् भागवतम के दसवें स्कन्ध में उनतीस से सैंतीस अध्यायों में भगवान की रास लीला का वर्णन आता है। आज पूर्णिमा की रात्रि को यह रास लीला सम्पन्न हुई थी और इस प्रकार मैं इन लीलाओं का चिंतन करते हुए स्वयं को वृंदावन में पा रहा था।
आज से दीप दान भी प्रारंभ होगा और हम यशोदा दामोदर को दीप दान करेंगे। यहां मुझे आज शाम को दामोदर अष्टकम प्रार्थना गाने के लिए कहा गया है। मैं आज यशोदा दामोदर अष्टकम गाऊँगा। हम कार्तिक मास में जो कार्तिक व्रत लेते हैं, उसमें हम एक व्रत प्रतिदिन यशोदा दामोदर को दीप दान करने का भी लेते हैं। आप सभी भी ऐसा कीजिए, आप प्रतिदिन यशोदा दामोदर को दीप दान कीजिए अर्थात दीप अर्पित कीजिए। कुछ दिन पहले मैंने आपको प्रोत्साहित करते हुए कहा था कि आप स्वयं तो दीप दान करते ही हैं परंतु इस बार आप अन्यों से भी दीप दान करवायें। आप अपने मित्रों, रिश्तेदारों, अपने आस पड़ोस के लोगों को कम्युनिटी हॉल में या उनके साथ जाकर अथवा उन्हें अपने घर बुलाकर उन्हें एकत्रित कीजिए और उन्हें बताइए कि वे भी यशोदा दामोदर को दीप दान करें और इस कार्तिक मास का लाभ लेकर इस पूरे उत्सव का अंश बने। अतः उन्हें भी दीप दान के लिए प्रोत्साहित कीजिये।
इस प्रकार से यह एक छोटा सा उत्सव हो सकता है,आप सभी को आमंत्रित कीजिए, उन सभी से भगवान को दीप दान करवाइए। जब वे दीप दान करें तब आप दामोदर अष्टकम का गान व उसके पश्चात आप हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन कर सकते हैं, उन सभी को प्रसाद वितरण कीजिए। इस प्रकार आप इस छोटे उत्सव के रूप में यह दीप उत्सव मना सकते हैं। आप सभी इस प्रकार का प्रयास कीजिए और इसका लाभ उठाइए।
आप निरंतर जप और श्रवण करते रहिए और इस दिव्य कार्तिक मास में वृंदावन वासी बनिए। यदि आप ब्रजमंडल परिक्रमा में भी सम्मलित हो सकते हैं, उसके लिए प्रयास कीजिए परंतु यदि आप किसी कारणवश वृंदावन नहीं जा सकते हैं तब आप के लिए एक और अवसर है जिसके माध्यम से आप घर बैठे ही वृंदावन वासी बन सकते हैं। आप प्रतिदिन ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का एक अध्याय पढ़िए जिसे पढ़ कर आप ब्रजमंडल परिक्रमा का भाग बन सकते हैं। मुझे ठीक से नहीं पता परंतु नोएडा से महात्मा विदुर प्रभु कुछ प्लान कर रहे हैं कि प्रतिदिन आप किस प्रकार से ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक के एक अध्याय का श्रवण कर पाएं। प्रभुजी अभी इस पर कार्य कर रहे हैं और आगे जैसा भी होगा, आपको बता भी दिया जाएगा। आप प्रतिदिन एक अध्याय का श्रवण कीजिए औऱ वृन्दावन के वास का लाभ लीजिए एवं सम्पूर्ण माह वृन्दावन की चेतना में स्थित रहिए।दुबई से श्यामलंगी माताजी भी कुछ ऐसा प्रयास कर रही हैं कि दुबई में जो नित्यं भागवतम सेवया प्रोग्राम होता है, उसमें किस प्रकार से दुबई के भक्त भागवतम का श्रवण कर सकते हैं और इस चेतना में स्थित रह सकते हैं। इसके साथ साथ नागपुर से हमारे विमल कृष्ण प्रभु और परम करुणा प्रभु ने इस पुस्तक को पढ़ना प्रारंभ कर दिया है और उन्होंने कल भी यह पुस्तक पढ़ी थी। आप सभी भी सुनिश्चित कीजिए कि ब्रज मंडल पुस्तक आपके पास हो। यदि आपके पास पुस्तक नही है तो आप यह पुस्तक अपने नजदीकी मंदिर से सम्पर्क करके प्राप्त कर सकते हैं अथवा नोएडा यात्रा प्रेस से मंगवा सकते हैं। यह पुस्तक हिंदी और अंग्रेजी में अमेज़न पर भी उपलब्ध है, आप वहां से इसे ऑनलाइन आर्डर कर सकते हैं। इसके साथ ही साथ आप श्रील प्रभुपाद जी की कृष्णा पुस्तक का अध्ययन कर सकते हैं।प्रभुपाद ने दसवें स्कन्ध का सारगर्भित रूप इस कृष्णा पुस्तक में दिया है, आप उसका भी अध्ययन कर सकते हैं।
हमारे पास कार्तिक मास में करने के लिए बहुत सेवाएं है। आप शीघ्र ही उनमें जुट जाइए। बातें कम और सेवाएं अधिक कीजिए। मॉरीशस से हमारे सुंदराचल प्रभु बता रहे थे कि उन्होंने पिछले वर्ष भी पूरे मास इस ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का अध्ययन किया था और वहां के भक्तों को भी कराया था और वे इस वर्ष भी ऐसा करेंगे। वे बता रहे थे कि यह अत्यंत ही सुंदर पुस्तक है। इसमें ब्रजमंडल यात्रा के जो विग्रह हैं , उनकी तस्वीरें है, आप घर बैठे उन सभी विग्रहों का दर्शन कर सकते हैं। आज से हमारी ब्रज मंडल प्ररिक्रमा प्रारंभ हो चुकी होगी। इस परिक्रमा के लिए लगभग हजार से 1500 भक्त वृन्दावन के कृष्ण बलराम मंदिर पहुंच गए होंगे। मैं इस परिक्रमा में सम्मलित होने वाले उन सभी भक्तों को धन्यवाद और बधाई देता हूँ। वे अवश्य ही सौभाग्यशाली आत्माएं हैं कि उन्हें ब्रजमंडल परिक्रमा का मौका मिला है।
हम इस कांफ्रेंस को यहीं विराम देते हैं। आप सभी कार्तिक मास की सेवाओं में जुट जाइये। ये आध्यात्मिक सेवाएं हैं, वे भी आपके कार्तिक व्रत का एक अंश/भाग है। आप सभी पूरे जोश से इन कार्तिक सेवायें में जुट जाइए और इनको सम्पन्न कीजिए।
गौरांगा!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
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12 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 540 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं परंतु यह संख्या काफ़ी कम है और यह नीचे जा रही है। अभी बांग्ला देश से संकीर्तन गौर प्रभु ने पुस्तक वितरण का स्कोर भेजा है। हम इस कॉन्फ्रेंस में जपा स्कोर की बात किया करते हैं। उसके साथ साथ आज प्रभुजी ने बुक वितरण का स्कोर भेजा है कि उन्होंने बांग्ला देश में नवरात्रि और दुर्गा पूजा के समय युवा भक्तों की सहायता से 32 लाख टका (जो कि बांग्लादेश की करेंसी मुद्रा है) की श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण किया है। ये जो पुस्तकें है हरि नाम की महिमा से पूर्ण हैं। हम संकीर्तनगौर प्रभु को उनके इस प्रयास के लिए बधाई और धन्यवाद देते हैं।महाप्रभु का निर्देश है-
य़ारे देख, तारे कह ‘कृष्ण’- उपदेश।आमार आज्ञाय गुरु हञा
तार’ एइ देश।।
श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करना ही महाप्रभु के निर्देश का विस्तृत रूप है। प्रभुपाद की पुस्तकों में कृष्ण का आदेश है। चैतन्य महाप्रभु द्वारा जो निर्देश दिया गए हैं, वे श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों के माध्यम से हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के लिए उत्साहित करते हैं।
यदि कोई श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करता है तो वह चैतन्य महाप्रभु के ‘ य़ारे देख, तारे कह ‘कृष्ण’- उपदेश ‘ के निर्देश का पालन करता है।
चैतन्य महाप्रभु के य़ारे देख, तारे कह ‘कृष्ण’- उपदेश, में हरे कृष्ण उपदेश भी समाहित हैं। इसलिए हम भी हरे कृष्ण उपदेश देते हैं।
मैं अभी तिरुपति में हूं। इस्कॉन तिरुपति पुस्तक वितरण के लिए जाना जाता है। यहां तिरुमला/तिरुपति में पुस्तक वितरण के लिए भक्तों के अलग अलग दल बने हुए हैं और वे तिरुपति में अलग अलग जाकर पुस्तक वितरण करते हैं। तिरुमला अर्थात तिरुपति अत्यंत ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। यहां न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व से काफी अधिक संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं और हमारे इस्कॉन तिरुपति के भक्त वृहद स्तर पर उन भक्तों को श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें वितरित करते हैं। उनके इस प्रयास से राधा गोविंद देव, गौरांग महाप्रभु, श्रील प्रभुपाद अत्यंत प्रसन्न होंगे। इस प्रकार पुस्तक वितरण से संकीर्तन आंदोलन का विस्तार होगा। श्रील प्रभुपाद जी कहते थे कि books are the basis अर्थात पुस्तकें ही आधार हैं।
जब वे लोग पुस्तकें लेंगे तब वे लोग संकीर्तन आंदोलन को भी समझ पाएंगे और इसका विस्तार भी होगा।
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर पुस्तक वितरण को वृहद मृदंग कहते थे। जब हम संकीर्तन करते हैं तब हम उसमें मृदंग का प्रयोग करते हैं,तो उस मृदंग की आवाज़/ ध्वनि जहाँ हम संकीर्तन करते हैं या उस टेम्पल हॉल में ही रहती है या कुछ ही दूरी तक सुनाई देती है लेकिन जब हमारे भक्त पुस्तक वितरण के लिए जाते हैं, तब हम कहते हैं कि वे संकीर्तन के लिए गए हैं क्योंकि उनके पास में पुस्तक रूपी वृहद मृदंग होती है। जब वे पुस्तक वितरण करते हैं तो वे राधा गोविंद देव, गौरांग महाप्रभु की महिमा, उनकी लीलाओं को प्रत्येक स्थान पर पहुंचाते हैं। यह पुस्तक वितरण ही वृहद मृदंग है।
राधा गोविंददेव, गौरांग महाप्रभु और श्रील प्रभुपाद इससे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। हम सभी को पुस्तक वितरण के लिए प्रयास करना चाहिए और यह सेवा करनी चाहिए।
हरि! हरि!
अभी अभी एक भक्त शुद्ध हरिनाम जप के लिए आशीर्वाद मांग रहे थे। वे चाह रहे थे कि उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हो जिससे वो शुद्ध हरि नाम का जप कर सकें। यह विचार तथा प्रार्थना अति उत्तम है। हम सब उनका स्वागत करते हैं। हमारा भी यह विचार होना चाहिए कि कब हम शुद्ध नाम जप कर पाएंगे। मैंने अभी अभी कहीं पर पढ़ा भी था कि भगवान की कई प्रकार की ऊर्जाएं हैं। उनमें से एक भगवान की ऊर्जा का नाम है- कृपा शक्ति।
हम सभी को भगवान से उनकी कृपा के लिए याचना करनी चाहिए। हमें भी भगवान की वह कृपा प्राप्त हो सकती है। भगवान की कई प्रकार की ऊर्जाएं हैं जिसमें एक ऊर्जा उनकी कृपाशक्ति है जो हमें हमारे आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से प्राप्त हो सकती है और जो इस कृपा को प्राप्त करने के लायक है,उसे ही यह कृपा मिलती है। जैसा कि कहा जाता है- ‘First deserve than desire’ अर्थात ‘पहले आप इसके लायक बनिए तब आप इसकी इच्छा कीजिए’। सर्वप्रथम हमें इसके लायक बनना होगा और वह पात्रता ग्रहण करनी होगी जिससे हम शुद्ध नाम का जप कर सकें। जब हमारे अंदर यह इच्छा होती है, तभी हमें वह कृपाशक्ति प्राप्त हो सकती है।
इस प्रकार से दो बातें होती है एक साधना सिद्धि और दूसरी कृपा सिद्धि। हम सभी कृपा सिद्धि को प्राप्त करने के लिए अधिक आतुर रहते हैं। हमें यह बात अवश्य समझ लेनी चाहिए कि यदि हम कृपा सिद्धि चाहते हैं तो पहले हमें साधन सिद्धि प्राप्त करनी होगी। कृपा केवल उन्हीं को मिल सकती है जिन्होंने अपनी साधना को ठीक प्रकार से किया है।यह उसी प्रकार से है जैसे कि हम किसी से हाथ मिलाते हैं।
यदि हम अपनी साधना ठीक प्रकार से करेंगे, तब हम उसमें सिद्ध हो जाएंगे और हमें स्वत: ही कृपा प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार से हमें सर्वप्रथम अपनी साधना को ठीक प्रकार से करके, इसके लायक बनना चाहिए कि हमें वो कृपा प्राप्त हो सके। जहाँ साधन सिद्धि है वहां कृपा सिद्धि उन भक्तों को स्वत: मिल जाती है।
नोएडा से सुपद्मिनी माताजी ने हमें इस प्रार्थना के विषय में स्मरण दिलाया है कि श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करना भी हमारी साधना का एक प्रमुख अंश है। जैसा कि हमने बताया कि श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण- ‘य़ारे देख, तारे कह ‘कृष्ण’- उपदेश,’ इस निर्देश का सबसे उत्कृष्ट प्रकार है।
यदि आप पुस्तकों का वितरण करते हैं तो आप अत्यंत उत्तम प्रकार से इस निर्देश का पालन करते हैं।
यह आपकी साधना होती है। जब आप पुस्तक वितरण द्वारा अपनी साधना को सम्पन्न करते हैं तो आप उस कृपा को प्राप्त करने के लिए अधिकारी बन जाते हैं व आप सम्पूर्ण गुरु परंपरा, हमारे गौड़ीय आचार्यो, श्रील प्रभुपाद व अपने आध्यात्मिक गुरु की कृपा को प्राप्त करने के पात्र बन जाते हैं।
रायचूड़ से हमारे जयतीर्थ प्रभु कार्तिक महीने में वृंदावन में वास करने हेतु आशीर्वाद मांग रहे हैं। आप सभी का स्वागत है। आप रायचूड़ से अन्य भक्तों को भी ले कर आइए। कुछ दिन पहले मैंने आप सभी को कहा था कि कार्तिक में वृंदावन वास का महत्व है, इसलिए आप सभी वृंदावन आइए और कार्तिक व्रत का पालन कीजिए। आप सभी का वृंदावन वास के लिए स्वागत है। मैं एक विशेष बात आप सभी को बताना चाहता हूं कि हमारी साधना का एक प्रमुख अंग है- श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करना। हम पुस्तकों का वितरण करते हैं। वितरण करना एक बात है परंतु हमें स्वयं भी श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों को पढ़ना चाहिए। जैसा कि अंग्रेजी में कहते हैं – ‘Charity begins at home’ अर्थात यदि हम कुछ भी चैरिटी करना चाहते हैं, वह सर्वप्रथम घर से शुरू होती है। हमें सर्वप्रथम स्वयं को पुस्तक वितरण करना चाहिए। हमारे पास श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें जैसे श्रीमद् भागवतम, चैतन्य चरितामृत, श्री मद्भगवत गीता होनी चाहिए।
हमें इन पुस्तकों को न केवल पढ़ना चाहिए अपितु इनका गहन अध्ययन करना चाहिए। जब हम इस प्रकार से करेंगे तो यह हमारी साधना का एक प्रमुख अंश बन जाएगा और हमारी साधना उत्तम हो जाएगी।
जब हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करते हैं, वास्तव में हम उनका श्रवण करते हैं। हम उन पुस्तकों को सुनते हैं। हम उन पुस्तकों के माध्यम से संस्थापक आचार्य,पूर्ववर्ती आचार्यों की वाणी का श्रवण करते हैं। जैसा कि हम कहते हैं गौर वाणी प्रचारिणे। हम पुस्तकों के माध्यम से गौरांग महाप्रभु की वाणी का श्रवण करते हैं।
कल से कार्तिक महीना प्रारंभ हो रहा है। आप सभी इस कार्तिक महीने में यह व्रत ले सकते हैं कि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का नियमित रूप से अध्ययन करेंगे। इसके साथ ही साथ ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का भी अध्ययन कीजिए। श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों,विशेष रूप से ‘श्री कृष्ण’ को आधार बना कर ही इस ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक की रचना की गई है।आप ब्रजमंडल दर्शन, श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ कर अपने कार्तिक व्रत का पालन कर सकते हैं।
मॉरीशस से कुछ भक्त वृंदावन आ रहे हैं। सोलापुर से भी छह माताजी वृंदावन आ रही हैं।आप सभी का स्वागत है। सुंदराचल प्रभु लिख रहे हैं कि वे नियमित रूप से श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ने का संकल्प ले रहे हैं। आप
इन कमैंट्स को पढ़ सकते हैं। मैं इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देता हूँ।
हरिबोल!
गोविंद!गोविंद!गोविंद!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
A'bad – Shubhlaxmi Devi Dasi: Today we r going for padyatra at Surendranagar…it's our 39th padyatra
Divya Bhatia: hare Krishna guru maharaj dandvat pranam happy damodar month guru maharaj
Dubai Shyamalangi devi dasi: Happy saradiya rasayatra purnima to gurudev and to all.Today is also disappearance day of murari gupta
00:56:14 UAE tulsi puja Devi dasi: happy damador month to dear Gurudev and to all the
Vaishnava
Maur L Vamandevdas: Gurudev we are around 42 devotees from Mauritius chanting today
Maur L-Srivalavi devi dasi: My Dandavaat Pranaam onto your lotus feet on this auspicious day
Maur L Sakhi vrinda dd: Gurudev wish you a Happy Kartik month with we pray to always be in your association. For your pleasure we will chant hear read more and eat non-grains for 1 month. And be with you in vrindavana through Vraj Mandal Darshan
Maur L Vamandevdas: HAPPY KARTIK PURNIMA GURUDEV TO YOU AND ALL
Noi Bimala Krishna Dasa: A very happy Karttika to dear Guru Maharaj and all devotees
Srimati Radhika Devi Dasi: hare Krishna Maharaj ji we are in Vrindavan right now A'bad- Digvijay Arjundas i.p.o: हरे कृष्ण कोटी कोटी दंडवत प्रणाम गुरूमहाराज
Sangli Shantaram Das: Dear Devotees,
Hare Krishna
*LET’S CHANT TOGETHER*
_Let’s Chant Together with Lokanath Swami Maharaja_
A phrase that’s become part of many devotees’ vocabulary. A phrase that reminds us that
Lokanath Swami Maharaja is taking special care to teach us the meaning of *attentive and
powerful* chanting.
We have had close to about 350 sessions and in all that time Maharaja’s desire has been to not only chant with devotees, friends and well wishers, not only to nullify the geographical barriers, but also to interact with all.
To ‘ have a dialogue ‘ – ask questions, receive answers, share realizations, interact with each
other, support and guide each other.
These are the the thoughts that have given birth to the official
*Let’s Chant Together Facebook page*
LIKE IT RIGHT NOW &
stay connected.
https://www.facebook.com/LetsChantTogether/
Noi Bimala Krishna Dasa: I have already joined yesterday
Maur L Sundarachal Das: very good news a new Facebook page for chanting
Srila Prabhupada: Today we are doing Govardhan parikrama Guru Maharaj
Dubai Shyamalangi devi dasi: yes gurumaharaj I am visiting 1 friends home today where other ladies will get together to offer lamp and will narrate the pastime
GauraBhagavana Dasa: Damodarstakam ki jai
Dubai Shyamalangi devi dasi: even in conference call we can read and discuss together on vraj mandal.parikrama and even GM last year in Nityam bhagvat sevaya class .at end of class I would daily share in short the places where devotees are walking and visiting daily Noi Bimala Krishna Dasa: Gurudev I have started re reading the Vraja Mandala Darshana.I
have completed upto acknowledgment yesterday and today onwards I shall read one chapter a day
Jagannath, Bhiwandi: I also started reading
Nagpur Paramkaruna das & Bhaktinidhi devi dasi: we will also start reading vrajamandal darshan
from today Noi – Sri Advaitacharya das: Gurumaharaj, I will be reading Brajamandal Darshan 01 chapter per
day in kartik.
Maur L Sundarachal Das: every year i read the wonderful book vraj mandal book so nice and inspiring as if we are personally visiting the place while reading the book and v beautiful photos v good darsan of vraj bhumi
Vaishnav Pran das: Eager to read vrajmandal darshan book Hare Krishna
SKCON Solapur: in solapur 50k devotees will be doing deepdaan in different programs BLR Anupam Gaura Dasa,
Bhubaneswar:One devotee last year took the book of vrajamandal Darshan book from me and he was really deeply inspired and touched his heart. It is by your mercy.
Jaytirth das Raichur: Today we have started kartik vrat by Radha Shyamsunder mangla aarti & japa preaching,Guru Maharaj
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
11 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज मैं तिरुपति में हूं। आज सुबह तिरुपति मंदिर में मंगला आरती के पश्चात जी. बी. सी. भक्तों की प्रसन्नता के लिए श्रील प्रभुपाद के दिव्य ग्रंथों के वितरण का स्कोर घोषित किया गया था और आप सब की प्रसन्नता के लिए हमारे ज़ूम कॉन्फ्रेंस का आज का स्कोर अर्थात भक्तों की संख्या 520 है अर्थात इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ 520 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
आप में से कुछ भक्तों ने आज चैट पर मैसज में गोविंद! गोविंद! लिखा था। तिरुपति में यह प्रणाली है कि जब भी कोई भक्त भगवान बालाजी के सामने जाता है , तो वह उनको गोविंदा! गोविंदा! कह कर बुलाता है। यहां इस प्रकार से बोलने की एक विशेष पद्दति है। वे इस प्रकार ‘गोविन्द’ बोलकर भगवान को संबोधित करते हैं। इससे वे यह भी ऐलान या स्थापित करते हैं कि तिरुपति बाला जी भी गोविंद हैं। वे भगवान गोविंद हैं।
यहां इस्कॉन तिरुपति में जो श्री विग्रह हैं, उनका नाम भी राधा गोविंद देव हैं। शायद भक्ति स्वरूप दामोदर महाराज ने या किसने यह नाम दिया है? यह तो मैं नहीं जानता लेकिन यह काफी उपयुक्त नाम है। बालाजी को तिरुपति में गोविंद कह कर संबोधित किया जाता है। इस्कॉन तिरुपति में हमारे विग्रह का नाम भी श्री श्री राधा गोविंद देव जी है।
कल जब हम यहां तिरुपति में पहुंचे, रेवती रमन प्रभु, हमें मंदिर में आल्टर के सामने लेकर आए और काफी विशेष दर्शन करवाए। वहां पर हमारे आल्टर में बाला जी भगवान, नरसिंह देव, गिरिराज शिला भी है। वहां विशेष दर्शन तो श्री श्री राधा गोविंद देव और अष्ट सखी का था। काफी भरा भरा आल्टर है। रेवती रमन प्रभु ने मुझे इसका एक विशेष दर्शन करवाया।
प्रायः सामान्य रूप से देखा जाता है कि साउथ इंडिया (दक्षिण भारत) के काफ़ी मंदिरों में लक्ष्मी नरसिंह देव के विग्रह होते हैं और एक नरसिंह देव की सेवा एक ही लक्ष्मी करती है। लेकिन यहाँ इस्कॉन तिरुपति में या वृंदावन में गोविंद जी, राधारानी व अन्य काफी सखियों के साथ आल्टर में विराजमान हैं। हम यहाँ अष्ट सखियों को हमारी आँखों के सामने देख सकते हैं। वृंदावन का यह भाव है कि वृंदावन में कृष्ण की सेवा में शत सहस्त्र लक्ष्मियाँ लगी हुई हैं। वहां हज़ारों- हजारों लक्ष्मियाँ मिलकर भगवान की सेवा किया करती हैं। जो भी गोपियां, सखियाँ और मंजरियां हैं, वे सभी लक्ष्मी देवी का विस्तार हैं, वे लक्ष्मी ही हैं।राधारानी, स्वयं महालक्ष्मी हैं। वे सारी लक्ष्मियाँ मिल कर अकेले कृष्ण की सेवा में लगी रहती हैं जबकि वैकुंठ में नारायण की सेवा में केवल एक लक्ष्मी होती है।
यह राधा कृष्ण का अष्ट सखियों के साथ वृंदावन का दर्शन है, यह गोलोक का दर्शन है। सामान्यतया साउथ इंडिया (दक्षिण भारत) में राधा रानी, गोपियों, सखियों के दर्शन की प्रणाली नहीं है। साउथ इंडिया में राधारानी का दर्शन ही नहीं है। यहां लगभग हर मंदिर में एक कृष्ण के विग्रह के साथ एक लक्ष्मी का विग्रह है लेकिन राधा रानी या गोपियों के दर्शन नहीं हैं लेकिन चैतन्य महाप्रभु के आने के पश्चात गौड़ीय सम्प्रदाय ने इसे स्थापित किया है। चैतन्य महाप्रभु ने हमें राधा कृष्ण के दर्शन व राधा कृष्ण की सेवा दी है। यह गौड़ीय सम्प्रदाय का भाव है। परकीय भाव और स्वकीय भाव। द्वारका और वैकुण्ठ में स्वकीय भाव होता है और जैसा कि हम गाते हैं- परकीय भाव यंहा ब्रजते प्रचार। वृंदावन में परकीय भाव है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने इसकी स्थापना की है और इसे हमें प्रदान किया है।
यहाँ साउथ इंडिया(दक्षिण भारत) में श्री सम्प्रदाय का अधिक प्रचार और प्रभाव है। श्री सम्प्रदाय में जैसे श्री रामानुज आचार्य,उडुपी में मध्वाचार्य का प्रचार है। उडुपी में लगभग सभी भक्त प्रायः केवल उडुपी कृष्ण ही कहते हैं कोई उडुपीवासी राधा कृष्ण नहीं कहता। वहाँ पर भी राधा रानी की सेवा नहीं होती है। वहां केवल कृष्ण की सेवा की जाती है।
श्री सम्प्रदाय के रामानुज आचार्य केवल लक्ष्मी नारायण की सेवा करते हैं। मध्वाचार्य के अनुयायी केवल अकेले कृष्ण की सेवा करते हैं। इन दोनों सम्प्रदायों में अनुयायियों को राधा रानी की सेवा के बारे में नहीं बताया गया है।
मॉरिशस से एक माताजी लिख कर प्रार्थना कर रही थी कि आज मैं शरद पूर्णिमा या रास डांस(नृत्य) के विषय में कुछ कहूँ। जब हम राधा गोविंद और अष्ट सखी के विषय में चर्चा कर रहे थे तब मेरे मन में विचार आया था कि यह जो दर्शन है लगभग रास लीला के पहले का ही दर्शन है। जहाँ पर कृष्ण और राधा रानी, अष्ट साखियों व अनंत अन्य साखियों के मध्य में विराजमान है।
दिव्यद्वृन्दारण्य कल्पद्रुमाधः।
श्रीमद् रत्नागार सिंहासनस्थौ।
श्रीमद् राधा श्रीलगोविन्ददेवौ
प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि।।
यह राधा गोविंद देव का प्रणाम मंत्र है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है कि राधाकृष्ण दोनों कहाँ पर है ? वृन्दअरण्य में यानी वृंदावन में हैं, वे ब्रज के वनों में हैं।
वे वन दोनों तरफ से कल्प वृक्ष से भरे हुए हैं। उन असंख्य कल्पवृक्षों में से एक कल्पवृक्ष के नीचे राधा गोविंद देव विराजमान है। कहाँ पर विराजमान हैं ? रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ असंख्य गोपियां राधा कृष्ण की सेवा में आतुरता से लगी हुई हैं। यह लगभग रास लीला के पूर्व का दर्शन है।
रास लीला प्रारंभ होने से पहले हमें यही दर्शन प्राप्त होता है कि वृंदावन के कल्पवृक्ष के नीचे रत्न जड़ित सिंहासन पर राधाकृष्ण विराजमान हैं और असंख्य गोपियाँ आतुरता से उनकी सेवा में लगी हुई हैं।
जब हम रासलीला की बात करते हैं या रास लीला के पूर्व या रासलीला के बारे में जब ध्यान करते हैं तो यही सब बातें हमारे मन में आती हैं और हमें राधा कृष्ण का अनंत साखियों के साथ का दर्शन होता है। जब हम अष्ट सखी कहते हैं तो अष्ट सखियों में काफी सखियाँ या गोपियां मंजरियां व उनकी दिव्य लीलाएं,उनकी दिव्य वेशभूषा आती है। हर सखी, हर गोपी का एक विशेष नाम, विशेष रूप और एक विशेष सेवा है। उन सबकी एक विशेष और विभिन्न प्रकार की वेश भूषा है, इन सबका वर्णन हमें प्राप्त है। ऐसा नहीं है कि ये सारी बातें केवल कोरी कल्पना है या किसी के मन की घटना है जिसे उन्होंने अपने मन से कुछ लिख और कह दिया है। ये सारी बातें शास्त्रों में वर्णित हैं।
लक्ष्मी सहस्त्र शता सम्भराम सेवायमानम।
यह जो ब्रह्मसंहिता का श्लोक है जिसमें कहा गया है कि हजारों गोपियां भगवान की सेवा में लगी हुई हैं। यह वास्तविकता है, यह कोई कोरी कल्पना नहीं है।
हरि! हरि!
जब हम सखियों, गोपियों, मंजरियों की बात करते हैं कि सबके कुछ विशेष नाम, रूप, सेवाएं , भाव हैं। कुछ सखियाँ उनमें से, उनके मनोभाव की हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुछ भगवान के बाएं तरह, कुछ अग्रगण्य होती हैं, कुछ किसी गोपीयों के समुदाय की मुखिया होती हैं, सबके अलग अलग मनोभाव हैं। राधा गोविंद देव, अष्टसखी के दर्शन करते हैं हम आल्टर में देखते हैं कि हमारी दाईं तरफ से यानी कि आरंभ जहाँ से होता है सबसे पहले वहां पर सखी सुदेवी है।
उनके बगल में रंगदेवी है, फिर इंदुलेखा है फिर विशाखा है जो कि राधा रानी के बगल में खड़ी रहती है फिर दूसरी तरफ जब हम देखते हैं अपनी बाईं तरफ वहा गोविंद के बगल में ललिता है फिर चम्पकलता है, चित्रा है, तुंगविद्या है। इस प्रकार राधा गोविंद देव, अष्ट साखियों के बीच में विराजमान हैं।राधा गोविंद देव और अष्ट सखी का दर्शन, रास लीला के प्रारंभ का दर्शन है। जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तब जप के समय यह हमारे ध्यान का विषय बन सकता है कि वृंदावन में राधा कृष्ण, अष्टसखियों और अन्य हजारों सखियों और गोपियों के मध्य में हैं। ऐसा नहीं हैं कि वे सखियाँ, गोपियाँ, राधाकृष्ण के सामने या बगल में केवल वहां पर खड़ी ही रहती हैं बल्कि वहां पर वे उनकी आतुरता के साथ सेवा भी करती हैं व उनके साथ रास लीला में नृत्य भी करती हैं। जिस प्रकार से राधारानी और अन्य सखियाँ, गोपियां कृष्ण के साथ नृत्य करती हैं तो ये हमारे जप के समय ध्यान का विषय बन सकता है।
हम जितना ज्यादा इस विषय वस्तु पर श्रवण करेंगे या जितना अधिक अध्ययन करेंगे, हम उतना ही अधिक ध्यान कर पाएंगे। यदि हम इसे अपना ध्यान का विषय बनाना चाहते हैं तो हमें ज़्यादा से ज़्यादा इस विषय में श्रवण और अध्ययन करना चाहिए।
जितना अधिक हम इस बारे में अध्ययन करेंगे या सुनेंगे, उतनी ही हमें ध्यान में मदद होगी अर्थात हमनें जो अध्ययन किया है या सुना है,हम उसके विषय में ध्यान कर पाएंगे।
अभी रायचूड़ से जयतीर्थ प्रभु ने अपने कुछ संस्मरण लिख कर काफी लंबा मैसज भेजा है। उन्होंने हमारी पिछली बार तिरुपति यात्रा के विषय पर कुछ अपना साक्षात्कार लिखा है। धन्यवाद! जयतीर्थ प्रभु।
आज हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देंगे।
गोविंद! गोविंद! गोविंद!
राधा गोविंद देव की जय!
हरे कृष्ण!
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10th Oct 2019
जप टॉक
हरे कृष्ण
आज लगभग 550 भक्त इस कांफ्रेंस में जप कर रहे हैं। मॉरीशस से एक रिपोर्ट आयी है वे कह रहे हैं कि जितने भक्त इस कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित है उनके नाम नहीं दिखते। शालिनी माताजी जो कि दुबई से हैं उनकी भी इसी प्रकार की रिपोर्ट या शिकायत है कि उन्होंने पदमाली प्रभु से कहा है कि हम इस विषय में जांच कर लेंगे देखेंगे क्या है? मैंने इसकी सूचना ले ली है और इस पर ध्यान दिया है। आज मैं कार्तिक मास के विषय में सोच रहा था और यह सोच रहा था कि आपको बताऊं कि हम किस प्रकार से कार्तिक मास में कुछ संकल्प ले सकते हैं कुछ व्रत ले सकते हैं। मैं ऐसा विचार कर ही रहा था तो दयालु राधा माता जी जो यूनियन आईलैंड से हैं मॉरीशस के पास एक छोटा सा द्वीप है उन्होंने मुझे लिखा कि महाराज! कार्तिक मास के दौरान मैं हरिनाम की महिमा का खूब प्रचार करूंगी पूरे द्वीप के ऊपर। जैसे ही मैंने यह मैसेज पढ़ा, मुझे लगा मेरे जो विचार हैं वह कंफर्म हो गए वह सही थे और मैंने निश्चय कर लिया कि मैं आप लोगों को बताऊंगा कि आप किस प्रकार कार्तिक मास में प्रचार कर सकते हैं। दामोदर महीने की काफी महिमा श्री रूप गोस्वामी ने भक्तिरसामृत सिंधु में बताई है।
अन्य गौड़ीय वैष्णव तथा अन्य शास्त्रों ने इसकी महिमा का काफी स्थान पर उल्लेख किया है। किस प्रकार से हम अलग-अलग विधियां या अलग-अलग कार्य कर सकते हैं? धाम वास के ऊपर कार्तिक मास में अत्यंत बल दिया गया है। अतः आप लोग श्री धाम वृंदावन में आकर पूरा महीना बिता सकते हैं। आप ब्रजमंडल परिक्रमा कर सकते हैं और कृष्ण बलराम मंदिर में भी रह सकते हैं और भी अनेक विधियां हैं जिनके बारे में हम चर्चा करेंगे। दीपदान के ऊपर भी बहुत अधिक बल दिया जाता है। कार्तिक मास के दौरान आप यशोदा दामोदर को दीप दिखा सकते हैं आप जहां कहीं भी रहते हैं, आप अपने घर पर यह कार्य कर सकते हैं, आप अपने सगे संबंधियों मित्र बंधुओं को भी बुला सकते हैं, आसपास के लोगों को भी आमंत्रित कर सकते हैं और दामोदर अष्टकम का गान करके भगवान को दीप दिखा सकते हैं।
अब आप सभी भक्तों को भी पता चल गया होगा कि दुबई का नाम बदल दिया गया है। उसका नाम अब हो गया है दामोदर देश, यह इस्कॉन के भक्तों के अंदर की बात है कि हम इसको अब दामोदर देश कहते हैं। दामोदर देश में दामोदर महीना अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। अधिकतर भक्त मैराथन ही कर लेते हैं। हजारों की संख्या में वे लोग दीपदान करते हैं और अन्य लोगों से दीपदान कराते हैं और दामोदरष्टकम करते हैं और हमारे जोन में इस्कॉन सोलापुर यह बहुत धूमधाम से मनाता है और अन्य मंदिर भी करते ही हैं। आप जहां पर भी हो वहां यह कार्य कर सकते हो। 1972 में श्रील प्रभुपाद अपना पूरा प्रचार कार्य, विश्व भ्रमण रोककर, श्री धाम वृंदावन में आकर रहे पूरा कार्तिक महीना, पूरा एक महीना श्रील प्रभुपाद ने कहीं ट्रेवल नहीं किया और उन्होंने पूरा कार्तिक महीना राधा दामोदर मंदिर में रहकर मनाया मुझे भी यह सौभाग्य मिला कि मैं प्रभुपाद के साथ वहां था तो हमने श्रील प्रभुपाद से पूछा कि किस प्रकार से कार्तिक मास मनाना चाहिए तो फिर प्रभुपाद ने उत्तर दिया
नो ईटिंग
नो स्लीपिंग
जस्ट चेंट
हरे कृष्ण 24 आवर।
इसका अर्थ है कि 24 घंटे सिर्फ हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए। खाना पीना सोना सब छोड़कर सिर्फ हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर हमें दामोदर महीना बिताना चाहिए और उस समय श्रील प्रभुपाद राधा दामोदर मंदिर में रहते थे और प्रत्येक दिवस पूरा महीना भक्तिरसामृत सिंधु के ऊपर कक्षा होती थी और श्रीमद्भागवतम् पर भी कक्षा होती थी तो सुबह और शाम क्लासेज होते थे दिन में दो बार । श्रील रूप गोस्वामी की समाधि के पास प्रभुपाद कक्षा देते थे और उसके बाद हमें संकीर्तन करने भेजा जाता था, हम प्रत्येक दिन राधा दामोदर मंदिर से रमणरेती जाते थे। रमणरेती जहां पर कृष्ण बलराम मंदिर स्थित है और वहां पर तब उस समय कंस्ट्रक्शन प्रारंभिक अवस्था में थी तो प्रत्येक दिन हम लोग वहां हरिनाम संकीर्तन करते हुए जाते थे और दिन में दो क्लासेज कम से कम प्रभुपाद की सुनते थे तो पूरे महीने में हमारी काफी हियरिंग और चैनंटिंग होती थी, हम बहुत सारा जप करते थे और काफी श्रवण भी करते थे। यदि आप पूरा महीना वृंदावन आकर नहीं रह सकते और ब्रज मंडल परिक्रमा नहीं कर सकते तो एक और उपाय है।
आप लोगों के लिए कि आप लोग ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक पढ़ें। काफी भक्त इसका अभ्यास इस प्रकार करते हैं कि वे प्रत्येक दिन 1 अध्याय का अध्ययन करते हैं जो परिक्रमा हमारी 30 दिन चलती है। उसके साथ-साथ प्रत्येक दिन 1 अध्याय का अध्ययन करते हैं और वहां की लीला स्थलियों के बारे में पढ़ते हैं। वहां की लीला स्थलियों के जो विग्रह हैं उनके दर्शन करते हैं क्योंकि इस पुस्तक में काफी विस्तृत वर्णन किया गया है। हर एक वस्तु का हर एक स्थान का हर एक विग्रह का उनके काफी सुंदर छायाचित्र भी दिए गए हैं जो आप देख सकते हैं और काफी भक्त इसका अभ्यास करते हैं कि प्रत्येक भक्त प्रत्येक दिन 1 अध्याय पढ़कर इस परिक्रमा के साथ-साथ मानसिक रूप से रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक स्थान से काफी भक्त दुनियाभर में जैसे न्यूजर्सी से रिपोर्ट आता है कि भक्त इस प्रकार करते हैं, यह उनकी साधना का एक मुख्य अंग बन जाता है। ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक जो हिंदी और इंग्लिश में उपलब्ध है वे उसका प्रतिदिन एक अध्याय का अध्ययन करते हैं। इस प्रकार 30 दिन में 30 अध्याय पूरे हो जाते हैं और इस प्रकार वे मानसिक परिक्रमा करते हैं। अभी तो यह पुस्तक यह ग्रंथ हिंदी और अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है लेकिन इसका अनुवाद अन्य भाषाओं में भी हो रहा है। जैसे बंगाली रशियन और मराठी। भविष्य में और लोकल भाषा में भी यह ग्रंथ प्राप्त हो जाएगा भक्तों की सुविधाओं के लिए , लेकिन फिलहाल हिंदी और इंग्लिश में है।
कार्तिक मास का प्रत्येक दिन एक उत्सव के समान है क्योंकि इसमें अनेक उत्सव आते हैं जैसे कि शरद पूर्णिमा से इसका प्रारंभ होता जो कि रास पूर्णिमा है। इसके साथ-साथ अनेक फेस्टिवल है जैसे कि दिवाली, दिवाली एक महत्वपूर्ण उत्सव है। यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है, इसी दिन भगवान कृष्ण दामोदर बने थे, इसी दिन दामोदर लीला हुई थी। भगवान ने अपने घर में माखन की चोरी की और यशोदा मैया ने भगवान को रस्सी की सहायता से ऊखल से बांध दिया था, इसीलिए भगवान का नाम दामोदर हुआ। आपकी जानकारी के लिए यह लीला दिवाली के दिन ही संपन्न हुई थी और श्रील प्रभुपाद का तिरोभाव दिवस भी कार्तिक मास में आता है। गोवर्धन पूजा भी कार्तिक मास में आती है और उत्थान एकादशी भी इसी में आती है और काफी आचार्यों के आविर्भाव, तिरोभाव तिथि वह भी इसी कार्तिक मास में आती है,जैसे नरोत्तम दास ठाकुर का तिरोभाव दिवस।
आप पूरी भक्ति उत्साह के साथ कार्तिक मास मनाने की तैयारी कर लीजिए और आज हम यह कॉन्फ्रेंस यही रोकेंगे क्योंकि मुझे तिरुपति के लिए निकलना है। तिरुपति में जीबीसी मीटिंग प्रारंभ हो चुकी है और मैं निकल रहा हूं। इस कांफ्रेंस को हम यहीं विराम देते हैं हरे कृष्ण।
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय। श्रील प्रभुपाद की जय।
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9 अक्टूबर 2019
जपा टॉक
हरे कृष्ण
आज हमारे साथ 510 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आज एकादशी है कई भक्त अपनी ग्रीटिंग्स भेज रहे हैं। एकादशी के उपलक्ष में आपको यह बताते हुए मुझे हर्ष हो रहा है कि हमारी पदयात्रा जो नोएडा से वृंदावन जा रही है वह कल ब्रज मंडल वृंदावन में प्रवेश कर गई है। हमारी जो पदयात्रा महाराष्ट्र में चल रही है वह भी बहुत सुंदर तरीके से चल रही है और दिल्ली मंदिर में कल विजयदशमी के उपलक्ष्य में कीर्तन मेला रखा गया था। कल रात मैंने भी वहां कीर्तन किया था और इसके अतिरिक्त भिवंडी में भी भक्तों ने कीर्तन मेला किया है। ये सभी समाचार जपा के संबंध में हैं, हरिनाम के संबंध में हैं जो हमें अति प्रसन्नता देने वाले हैं जो मैं आपको बताना चाह रहा हूं। कल जब मैं अपनी भागवतम क्लास में भक्तों को बता रहा था कि किस प्रकार भगवान राम ने रावण को मारा था, हमें भी भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें भी मार दे क्योंकि भगवान के हाथों मरना भी बहुत महत्वपूर्ण है
अर्थात भगवान किसी का वध भी करते हैं तो उससे उसका उद्धार हो जाता है। मैं यह बता रहा था कि भगवान राम के समय एक विशालकाय रावण उपस्थित था। इसी प्रकार हम सभी के अंदर भी छोटे छोटे रावण हैं क्योंकि हम सभी के अंदर ऐसी प्रवृत्तियां हैं जो भगवान राम के विरुद्ध है एंटी राम व एंटी कृष्ण की जो हमारी प्रवृत्तियां है वही छोटे-छोटे रावण हमारे अंदर हैं। इस प्रकार हम भगवान राम, कृष्ण, चैतन्य महाप्रभु के चरणों में यह प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमारे अंदर के इन रावणों का वध करें। जो हमारे हृदय में बड़े-बड़े अनर्थ हैं ,
जो अवांछित इच्छाएं हैं वह रावण का ही रूप है क्योंकि अनर्थ आसुरी गुणों का रूप है। इस प्रकार हम भगवान से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्तियों को समाप्त करें। ऐसा करने के लिए भगवान आतुर हैं अर्थात हमारी आसुरी प्रवृत्तियां नष्ट करने के लिए भगवान हर समय तैयार हैं। भगवान का नाम वह अस्त्र है वह एक प्रकार की औषधि है। जिस प्रकार कहते है “चेतोदर्पण मार्जनम्” अर्थात हमारे मन में जो आसुरी प्रवृत्तियां हैं गंदगी भरी है उसका मार्जन करता है भगवान का नाम स्मरण। इस प्रकार जब हम भगवान के नाम का जप करते हैं तो वह हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्ति को नष्ट कर देता है ऐसी भगवान के नाम की शक्ति है।
इस प्रकार यदि हम एकाग्रता पूर्वक जप कर सकते हैं तो हम अपने चित् रूपी दर्पण का मार्जन कर सकते हैं। हमारे अर्नथों की पूरी तरह निवृत्ति हो सकती है, अगर हम एकाग्रता पूर्वक जप करते हैं। एकाग्र का अर्थ भी यही है कि एकाग्र हम अपने को एक ही तरफ अग्रसर करें अर्थात केवल भगवान नाम की ओर जो कि भगवान से अभिन्न है। हमें भगवान के उस हरिनाम की तरफ पूर्ण रुप से ध्यान पूर्वक जप करना चाहिए। जैसा कि भगवान कहते हैं कि “बहु शाखा आनंदतस्य” जैसे की हमारे विचार बहुत सारी शाखाओं में बैठे हुए हैं उन्हें हमें हरिनाम पर केंद्रित करना होगा, एक साथ लाना होगा। जिसके विषय में हम वार्ता कर रहे हैं यह ज्ञान हो सकता है तो हमें इस ज्ञान को विज्ञान में बदलना होगा, यह केवल अभ्यास द्वारा संभव है अभ्यास सरल नहीं है लेकिन हमें ध्यान को केंद्रित करके ऐसा करना होगा।
मैं विज्ञान में होने वाले एक प्रयोग के बारे में सोच रहा था कि किस प्रकार से सूर्य की जो बिखरी हुई किरणें हैं अगर उन्हें प्रिज्म से पास कराया जाता है तो सारी किरणें एकाग्र होकर एक शक्तिशाली किरण निकलती है और वह जिस बिंदु पर पड़ती है वहां कागज को जला देती है। इस प्रकार सूरज की किरणें अलग-अलग हैं तो प्रकाश देती हैं लेकिन प्रिज्म से गुजरने पर एक होकर वे एक पॉइंट को जला डालती है इस प्रकार यह प्रिज्म है यह वह विभिन्न उपकरण है जो हम जप करते हुए इस्तेमाल करते हैं, ये यंत्र हैं हमारी जीवा, हमारे होंठ, कान, मन व बुद्धि। ये हमारे यंत्र हैं जब हम जप करते हैं इस प्रकार इन सब को एकाग्र करके एक साथ करके जब हम जप करते हैं तो उसका क्या परिणाम होगा। ऐसा करने से हमारे अंदर जो अनर्थ हैं
आसुरी प्रवृत्तियां है वह जलने लगती हैं, भस्म हो जाती है। कल जब मैं कीर्तन मेला के लिए जा रहा था तब मैंने आवाज सुनी व रावण के पुतले को जलते हुए देखा तब मैं यह सोच रहा था कि अगर हम ध्यान पूर्वक हरि नाम पर केंद्रित होकर जप करें तो हम अपने अंदर उस जलन का अनुभव कर सकते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमें भी भगवत प्राप्ति होगी। यहां भक्त बता रहे हैं कि वह कोनवेक्स लेंस होता है जिससे सूर्य की किरणों को केंद्रित करके कागज को जलाया जाता है। ये दोनों कोनवेक्स लेंस व प्रिज्म है जो यह एक जैसा काम करते हैं। इस प्रकार यह भी एक उदाहरण था जिसके द्वारा मैं आपको बता रहा था कि किस प्रकार हम ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं। आज हम यहां पर विराम देंगे।
जय श्रील प्रभुपाद।
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8 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 520 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आप सभी भक्तों का इस जपा कॉन्फ्रेंस में स्वागत है। आज बहुत ही पावन दिवस है, आज विजय दशमी है।
आप सभी को राम विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
आप में से कई भक्त दशहरा और राम विजय दशमी की अपनी शुभकामनाएं लिख कर भेज रहे हैं। मैं भी आप सभी को राम विजय दशमी की बधाई देता हूं।
मैं यह भी सोच रहा था कि आज के दिन किसी का वध हुआ था, किसी को मार दिया गया था और आप खुश हैं।आज के दिन रावण का वध हुआ था अर्थात आज उसकी मृत्यु का दिन है और हम रावण की मृत्यु के दिन अपनी खुशी व्यक्त कर रहे हैं। यह हम सभी के लिए खुशी का दिन बन गया है। यह किस प्रकार हो सकता है?
जब भी कोई राक्षस भगवान के हाथों मारा जाता है तो देवता प्रकट होते हैं और उत्सव करते हैं।
रावण एक दैत्य अर्थात दानव था,
जब उसका वध भगवान के द्वारा किया गया तब वहां देवता प्रकट हुए और उन्होंने अपना हर्ष व्यक्त किया। वे अत्यंत ही प्रसन्न थे। मैं यह सोच रहा था कि हम सभी भी एक प्रकार से दैत्य बन चुके हैं रावण और कुम्भकर्ण दोनों जय और विजय थे,उन्होंने दैत्यों की भूमिका अदा की थी। कुछ समय पश्चात उनका पतन हुआ, और वे वैकुंठ से नीचे गिर करके इस धरती पर दैत्य बने। हम भी अत्यंत पतित जीव हैं। हम भी सालोक्य, गोलोक, साकेत, वैकुंठ से इस धरती पर आए हैं, हमारा भी वहां से पतन हुआ है और अब हम इस भौतिक जगत में सभी दैत्यों के समान रह रहे हैं।
हमारे भीतर भी आसुरी भाव व तामसिक प्रवृत्तियां हैं। जब हमारे अंदर के आसुरी भाव का पूर्णतया वध होगा, तब भगवान कितना प्रसन्न होंगे और वह हमारे लिए भी सबसे अधिक हर्ष का दिन होगा। जब हमारे अंदर से पूर्णरूपेण यह आसुरी भाव चला जाएगा, तभी हम वास्तव में खुश होंगे।
हरि! हरि!
भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। वास्तव में भगवान श्री राम ने रावण का वध करके एक प्रकार से रावण का उद्धार किया था और यही रावण को मारने का उद्देश्य था। रावण का वध करना भगवान श्री राम की एक लीला थी। वास्तव में भगवान का लक्ष्य केवल रावण, कुम्भकर्ण अथवा उस समय के राक्षसों का वध करना ही नहीं था परंतु उनका लक्ष्य हम सभी भी हैं, अंततः हमारा भी वध होगा। हम भगवान श्री राम के शरणागत हो गए हैं और हमनें उनके पवित्र नाम की शरण ली है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे।।
जब हम इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो हमारा वध होता है। यहाँ हमें यह समझना चाहिए कि हम कौन हैं ? हम आत्मा हैं और आत्मा का कभी वध नहीं हो सकता परंतु हमारे भीतर आसुरी भाव है। हमारी राक्षसी प्रकृति है, हमारे काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या छह शत्रु हैं। काम हमारा सबसे प्रमुख शत्रु है । हम सभी इस काम के वशीभूत हो चुके हैं। रावण भी इसी काम वासना के कारण अंधा हो चुका था और वह सीता जी के साथ में भोग करना चाहता था। हमारे भीतर भी वही काम भाव है और हम भी इस भौतिक जगत में, उस काम भावना के कारण और अधिक भोग करना चाहते हैं लेकिन वही वासना हमें परेशान कर रही है और हमें संतुष्ट कर व्यस्त रखती है। इस भाव के कारण हमारे अंदर इच्छाएं जगी हैं जिसके कारण हम इस दुनिया का आनंद लेना चाहते हैं। इसलिए हम भगवान श्री राम के चरणों में यह प्रार्थना करते हैं कि “जिस प्रकार उन्होंने रावण का वध किया,उसी प्रकार हमारे भीतर भी जो काम रूपी शत्रु बैठा हुआ है, उसका वह वध करें।” जब ऐसा होगा तब वास्तव में भगवान श्री राम की प्रसिद्धि / यश का और अधिक प्रचार होगा। भगवान की प्रसिद्धि और अधिक फैलेगी। वहीं भगवान की और अधिक विजय होगी।
जय श्री राम!
हरि! हरि!
भगवान श्री राम के नाम, रूप, गुण, लीला, धाम आदि शस्त्रों के द्वारा ही हमारे भीतर जितने भी आसुरी प्रवृत्ति के शत्रु हैं, उनका वध हो सकता है। अतः हमें सदैव भगवान श्री राम का स्मरण करना चाहिए।
भक्त टिप्पणी कर रहे हैं और जैसा कि यह सर्वविदित भी है, जब हनुमान और उनका दल राम सेतु बना रहे थे, उस समय नल और नील दो भाई, बड़ी बड़ी शिलाओं के ऊपर भगवान श्री राम का नाम लिख रहे थे अर्थात उन चट्टानों पर भगवान के नाम की मुहर लगा रहे थे। जैसे ही उन शिलाओं पर राम का नाम लिखा जाता और उसके बाद जब वे उन विशाल पत्थरों को हिन्द महासागर में फैंकते, तब वे पत्थर डुबते नहीं थे अपितु वे भगवान श्री राम का नाम अंकित होने के कारण जल पर तैर रहे थे। अगर यह उन चट्टानों के साथ हो सकता है जो कि निर्जीव है,फिर हमारे साथ क्यों नहीं ? भगवान राम के नाम के साथ जुड़े होने के कारण यदि वे पत्थर तैर सकते हैं तो हम सभी तो सजीव प्राणी हैं, हमारे भीतर चेतना है। अगर हम भगवान श्री राम के नाम का जप करते हैं तो क्या हम इस भवसागर को पार नहीं कर सकते ?
यदि हम गंभीरता पूर्वक इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करेंगे। इस राम नाम को स्वीकार करेंगे तो हम इस भवसागर में डूबेंगे नहीं अपितु हम इस पर तैरेंगे। न केवल तैरेंगे अपितु इस नाम रुपी जहाज में बैठकर पुनः अपने घर भगवदधाम जा सकते हैं।
यह भी राम नाम की महिमा है, कृष्ण नाम की महिमा है। इसलिए हमें इसे अत्यंत गंभीरता पूर्वक लेना चाहिए और सावधानीपूर्वक इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए एवं इस पवित्र नाम से आकर्षित होना चाहिए तब हम डूबेंगे नहीं और हम इस भौतिक अस्तित्व में तैरेंगे और श्री कृष्ण से जुड़ पाएंगे। इसलिए हरे कृष्ण का जप करते रहना चाहिए।
उस दिन भगवान श्री राम लंका में थे और उन्होंने रावण का वध किया था। भगवान श्री राम द्वारा रावण वध की इस लीला का सदैव स्मरण करना चाहिए। यदि हम भगवान की इस लीला का स्मरण करते हैं तो हम इस लीला में सम्मलित भी होते हैं। भारत में विशेषकर उत्तर भारत में राम भक्त आज के दिन बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं और रावण के पुतले को जलाते हैं। जब वह पुतला जलता है तो कई बार वे उस पर पत्थर भी फैंकते हैं। कई भक्त धनुष और तीर लेकर भी आते हैं। वे उस पुतले पर बाण छोड़ते है। इस तरह से जब हम रावण वध की इस लीला का स्मरण करते हैं तो हम भी रावण के वध में सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार भगवान राम द्वारा रावण के वध की इस लीला के स्मरण से हमारे भीतर के काम का भी वध होता है। इस लीला को याद करने से हमारे अंदर की वासनाएं मिट जाएंगी। आज के दिन का विशेष महत्व है। विजयदशमी के दिन हमें इस लीला का स्मरण करना चाहिए और जो भक्त स्वयं को इस काम, क्रोध,मद ,लोभ, मत्सर, ईर्ष्या इन सभी से मुक्त होना चाहते हैं, उसे अवश्य ही भगवान राम की इस रावण वध लीला का स्मरण करना चाहिए।
जय श्री राम!हो गया काम।
कई बार कुछ भक्त ऐसा भी कहते हैं। कि यदि आप भगवान श्री राम का नाम लेंगे, आपकी विजय होगी। भगवान राम का नाम लेकर आप विजयी हो सकते हैं।
अभी हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं। मैं अभी दिल्ली के पार्थसारथी मंदिर में हूं लेकिन मुझे अभी दिल्ली के पंजाबी बाग मंदिर में भागवतम क्लास देने के लिए जाना है। वहाँ हम आठ बजे विजयदशमी पर भगवान राम की महिमा को और अधिक कहेंगे। आज दिल्ली के पार्थसारथी मंदिर में कीर्तन मेला भी है , यह पूरे दिन जारी रहेगा। इस प्रकार से मंदिर भगवान राम की विजयदशमी को मना रहा है। मेरा भी शाम को कीर्तन का स्लॉट है, लगभग सात या आठ बजे के आसपास।
यदि आपके पास समय हो तो आप सुबह आठ बजे भागवतम कक्षा और शाम को आप कीर्तन सुन सकते हैं।
जय श्री राम!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
8 OCTOBER 2019
KILL THE RAVANA WITHIN US
Today is the day of Ram-vijay. Many of you are writing or conveying your Dussera greetings. I also greet you
all on this happy auspicious day of Ram-vijay.
I was also thinking someone was killed this day and you are happy. You are expressing your joy on Ravana's
death day. It has become a happy day for you all. How is that?
Whenever a demon is killed by the Lord the demigods appear on the scene and they have a celebration. They express joy as the demon is killed. I was thinking that we are also demons. We have also become demons. Ravan and Kumbhkaran were Jay and Vijay. They had assumed the role of demons. They fell from Vaikuntha and became demons. Likewise, we also are fallen souls. We also have fallen from who knows where – whether Goloka or Saket dham or Vaikuntha, and now we are acting like demons in this world.
When that demon and demonic nature in us will be killed then the demigods would be happy and that would be the happiest day for all of us. We would be really happy when the demoniac nature, asuri- bhav, within us would be finally and fully finished.
So Ram killed Ravana today. What has exactly transpired, is that Ram has liberated Ravana. That was his aim of killing Ravana. But Ram's aim was not just killing Ravana or killing Kumbhkaran and any other demons of those days. They were not the only target. They were not the only ones on Ram's hit list. We all are also on that hit list. Finally we are also getting killed as we have come to the stage of surrendering to Sri Ram, as we are finally surrendering to the holy names of Ram through the chanting of:
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
This chanting is killing us, not the real us. We are ofcourse souls and souls cannot be killed, but the demon and demonic nature within us is. The lust, the kama-rog in us, the kama- bhav in us, the kama consciousness – those desires in us are the enemies within us. They are the six serpents, kama, krodha, lobha mada, moha and matsarya ( lust, anger, greed, illusion, pride and envy). These are the demons. These are the enemies in us. The leading demon is lust and lust is what Ravana was being harassed by. That is why he was attempting to enjoy Sita alone. The very same kama, not similar, but the same lust is bothering us, grasping us, keeping us busy, and causing this bhav. Desires are aroused in us. We want to enjoy this world. So we pray,”As You kindly killed Ravana, that way Sri Ram, kill the same demon that is
harassing and troubling us.” That would be a further victory of Lord Ram. Ram Vijay, Ram became victorious today, so this could be another victory of Ram when the demon in us would be killed. We pray to Him to kill the demon in us.
Ram Nama Guna, Rupa, Lila, Dhama are the weapons with which the demon in us could be killed. So we should always remember Ram. The devotees make comments like, “Look!, when Hanuman and company were throwing big, big rocks into the ocean to build the bridge, before the rocks were thrown into the waters of the Indian ocean, they were writing the name of Ram on each rock. This was Nal and Neel’s service. They had a big brush and they were stamping the rocks with the names of Ram. As soon as the rocks were stamped with the name of Lord Ram on their body, they were not drowning but floating because of their association with the name of Lord Ram. If this could happen to the rocks which are just dead matter, then why not with us, and we are living beings, if we chant Ram then certainly we will also be floating and not
drowning in the ocean. We will remain above the water and will not be touched by the water if we keep chanting the names of Lord Ram. And we will not only float, but we could be in the boat, going back home.
That is also mahima of Ram Nama. So we should take this chanting seriously and be attached and attracted by the holy names, then we will not drown. We will float and go across this material existence and join Sri Krsna. So keep chanting Hare Krishna.
On this day Ram was in Sri Lanka and he killed Ravana there. This pastime of Ram and Ravana should be remembered . As we remember this pastime, we take part in this pastime. Many devotees of Ram in India especially in North India today gather in big numbers. They burn the statue of Ravana. While he is being burnt those who are assembled sometimes throw rocks at Ravana and sometimes they also come with a bow and arrow. They also keep shooting Ravana with arrows. So in this way as we remember this pastime of Ram killing Ravana, or take part in Ravana being burnt alive then, this will kill the demonic nature within us.
Those lusty desires in us will be eradicated as we remember the pastime of Ram killing Ravana. This is the special benefit of remembering this pastime. That is why this pastime of Ram Vijay Ram killing Ravana is very, very useful, for those who wish to become free from the demonic nature or enemies.
Jay Sri Ram! Ho Gaya kama. Some devotees say this that you say Jai Sri Ram and you will be victorious, as we chant Holy names of Shri Ram.
I am in Delhi temple now but I have to go to Punjabi bagh temple in Delhi to give Bhagavatam class.We will again remember in that Vijaya dasami Katha at 8 o'clock today. Then we also have a Kirtana-Mela, at Radha Parthasarathi Temple in New Delhi. It will be continuing all day long as the temple is celebrating Vijaya dasami. I also have a slot in the evening, sometime around 7 or 8 p.m.
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All glories to Ram-vijay. Jay Sri Ram!!
As we remember the pastime of Ram killing Ravana then this will kill the demonic nature within us. Those lusty desires in us will be eradicated. That is why this pastime of Ram Vijay Ram killing Ravana is very useful for those who wish to become free from the demonic nature.
Ram Nama Guna, Rupa, Lila, Dhama are the weapons with which the demon in us could be killed.
Nal and Neel were writing Ram’s name on the rocks being thrown into the ocean to build a bridge to get to Lanka. These rocks were not drowning, but floating because of their association with the name of Lord Ram. If this could happen to the rocks which are just dead matter, then why not with us. We are living beings. If we chant Ram then certainly we will not only be floating, but we could be in the boat, going back home. So we should take this chanting seriously and be attached to the holy names of the Lord. Keep chanting Hare Krishna.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
6th अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 440 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। यह अत्यंत ही सुन्दर दृश्य है। कुछ भक्त ग्रुप (समूह) में भी जप कर रहे हैं। कुछ भक्त मंदिर तथा बेस के भक्तों के साथ बैठकर बड़ी संख्या में जप कर रहे हैं। यद्यपि आज हमारी संख्या कम है, केवल 440 ही है परंतु व्यक्तिगत रूप से सहयोगी (कॉन्ट्रीब्यूटर) एक साथ बैठकर अधिक संख्या में जप कर रहे हैं जिसे देखकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूं।
हरि !हरि!
इस समय भारत में बहुत सी पदयात्राएं चल रही हैं। इन्हीं पदयात्राओं में एक और पदयात्रा शामिल हुई हैं जोकि इस्कॉन नोएडा से प्रारंभ होकर वृन्दावन जा रही हैं। हमारे इस्कॉन नोएडा के भक्त पदयात्रा करते हुए दिन प्रतिदिन वृन्दावन के ओर अधिक समीप पहुंच रहे हैं। वे इस पदयात्रा के दौरान नगरों, गाँवो में कीर्तन करते हुए वे एक गाँव से दूसरे गांव जाते हैं, बीच रास्ते में जो भी जगह खाली रहती है, उस पर भी वे चुपचाप नहीं बल्कि नगर कीर्तन करते हुए चलते हैं। चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है कि प्रत्येक नगर और गांव में मेरे नाम का प्रचार होगा, कीर्तन होगा। केवल नगर और गांव में ही नहीं अपितु दो गाँवों के बीच की जो दूरी है, वहाँ पर भी नगर संकीर्तन हो रहा है। महाप्रभु ने जो भविष्यवाणी की थी, उससे कई अधिक मात्रा में ये पदयात्री उसको पूरा कर रहे हैं। आप भी इस पदयात्रा या नगर कीर्तन में सम्मलित हो सकते हैं। इससे गौरांग महाप्रभु अत्यंत प्रसन्न होंगे एवं आपको उनकी कृपा भी प्राप्त होगी।
हरि! हरि!
मैं अभी दिल्ली में हूँ। यहाँ आने से कुछ दिन पूर्व मैं पंढरपुर में था। पंढरपुर में मुझे भगवान विट्ठल के दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ एवं मुझे राधा पंढरीनाथ के दर्शन भी प्राप्त हुए। पंढरपुर के जो आराध्य देव व ठाकुर हैं, वे भगवान विठ्ठल हैं। उनका अत्यंत विशेष श्रृंगार होता है। यद्यपि अभी नवरात्रि चल रही है और नवरात्रि में भगवान विठ्ठल और रुक्मिणी का अत्यंत विशेष और सुंदर श्रृंगार होता है।मेरे लिए विट्ठल का दर्शन अत्यंत ही महत्वपूर्ण और विशेष है क्योंकि विट्ठल मेरे इष्टदेव हैं।
कल जब मैं दिल्ली पहुंचा, दिल्ली एयरपोर्ट पर मुझे इन्द्रद्युम्न स्वामी महाराज का दर्शन हुआ। मैं दक्षिण भारत से दिल्ली आया था और इन्द्रद्युम्न महाराज उत्तर भारत, हिमालय के बद्रिकाश्रम से दिल्ली आए थे। मैंने पंढरपुर में भगवान विट्ठल पांडुरंग के दर्शन किए थे और इन्द्रद्युम्न महाराज ने बद्रिकाश्रम में भगवान बद्रीनारायण के दर्शन किए। इस प्रकार जब हम दोनों एयरपोर्ट पर मिले तब हम एक दूसरे को अपने दर्शन का विवरण व अपनी यात्राओं का अनुभव बता रहे थे।
हम दोनों ने सर्वप्रथम भगवान के दर्शन किए। ततपश्चात भगवान की कृपा से जब हम एयरपोर्ट पर मिले तब हमें भक्तों के दर्शन हुए एवं हमनें एक दूसरे के दर्शन किए। भगवान की कृपा के कारण ही हमें भक्तों का दर्शन होता है और तभी वह दर्शन पूर्ण होता है। जब भक्त आपस में मिलते हैं, वह क्या करते हैं? वे बोधयन्त: परस्परं करते हैं,भगवान की कथाओं का वर्णन करते हैं।अपने अनुभवों को बताते हैं व आनन्द लेते हैं। तुष्यन्ति च रमन्ति च इससे उन्हें आनंद मिलता है, वे प्रसन्न होते हैं।
वास्तव में पहले हम भक्तों से मिलते हैं और भक्त हमें भगवान की महिमा के विषय में बताते हैं कि भगवान कितने महान हैं। अब आप जाओ और भगवान का दर्शन करो अर्थात जब भक्त हमें भगवान का दर्शन करने और उनकी महिमा के विषय में बताते हैं और हम भगवान का दर्शन करते हैं, हम भगवान का दर्शन करके पुनः भक्तों से मिलते हैं। ऐसा नहीं है कि हम पहले भगवान का दर्शन करते हैं, तत्पश्चात हमें भक्तो का दर्शन होता है। अपितु हमें पहले भक्तों का दर्शन होता है, वे हमें भगवान की महिमा बताते हैं तब हम भगवान का दर्शन कर पाते हैं।
इस जगत में दर्शन करने योग्य यदि कोई है तो वह केवल भगवान और भगवान के भक्त हैं। इस जगत में कई सांसारिक राक्षस हैं , वे दर्शन करने योग्य नहीं है, वे दर्शनीय नहीं हैं। केवल भगवान और भक्त दो ही है जोकि दर्शन करने योग्य हैं और हमें उनका ही दर्शन करना चाहिए।
हरि! हरि!
संस्कृत में एक विशेष शब्द है – दर्शनीय। जिसका अर्थ होता है- दर्शन करने योग्य। भगवान के विग्रह और भगवान के भक्त, ये दोनों ही दर्शन योग्य हैं। हमें दोनों का दर्शन करना चाहिए।भगवान के विग्रह स्वयं भगवान हैं,भगवान के विग्रह और भगवान, दोनों में कोई भी भेद नहीं हैं। हम विग्रह के माध्यम से भगवान और भगवान के भक्तों का दर्शन करते हैं।
हरि! हरि!
मैंने आप भक्तों को बताया नहीं कि मैं दिल्ली में क्यों आया हूँ ? आज दिल्ली में एक बहुत बड़ा प्रोग्राम आयोजित किया जा रहा है। नेशनल कैपिटल रीजन (एन.सी.आर.) में आने वाले सभी मंदिर मिल कर इस प्रोग्राम को आयोजित कर रहे हैं। दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद , गुरुग्राम आदि सभी मंदिर एक साथ में युवाओं के लिए यह विशेष प्रोग्राम आयोजित कर रहे हैं। यह प्रोग्राम दिल्ली के इंदिरागांधी स्टेडियम में होगा जो कि दिल्ली का सबसे बड़ा स्टेडियम है। हो सकता है कि यह सम्पूर्ण भारत देश का सबसे बड़ा स्टेडियम हो!
हमें इस प्रोग्राम में 15000 से अधिक युवाओं के आने की उम्मीद है। इस प्रोग्राम की थीम नशाबंदी है, जिसमें हम बताएंगे कि युवा किस प्रकार नशे से बच सकते हैं। सम्पूर्ण विश्व के युवा इस नशे की लत में आ चुके हैं,जकड़े जा चुके हैं। वे शराब पीना, ड्रग्स लेना, ध्रूमपान करना आदि की लत में फंस चुके हैं। भारत के युवा भी अब इससे अछूते नहीं हैं। वे भी इसमें आ चुके हैं। इस्कॉन यूथ फोरम, इस प्रोग्राम को आयोजित कर रहा है।वहाँ पर हम सभी,युवाओं को बताएंगे कि वे किस प्रकार से इन नशों की लत से छुटकारा पा सकते हैं व इससे छूट सकते हैं जैसा कि कहते हैं prevention is better than cure दवाई लेने से बचाव करना ज़्यादा अच्छा है । हम उन्हें बताएंगे कि वे किस प्रकार इस नशे की लत से छूट सकते हैं और स्वयं को बचा सकते हैं, यह इस कार्यक्रम की विषय वस्तु होगी।
हम इस प्रोग्राम में उन युवाओं को शराब, ध्रूमपान आदि छोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे। कोई भी व्यक्ति, यह शराब, नशा आदि की लत को तभी छोड़ सकता है, जब उसे, उससे अधिक अच्छी वस्तु प्राप्त हो जाए। जब तक कोई हरिनाम, शास्त्रों एवं संस्कृति को स्वीकार नहीं करता जोकि उस नशे से बहुत उच्च स्थिति होती है। तब तक वह शराब, ध्रूमपान आदि नहीं छोड़ सकता है। हम उन्हें बताएंगे कि वे किस प्रकार इनको स्वीकार करके चरित्रवान बन सकते हैं। जब श्रील प्रभुपाद पहली बार अमेरिका गए थे। अमेरिका का युवा वर्ग नशे की आदत में एक प्रकार से जकड़ा हुआ था। उन सभी को नशे की लत थी, जब उन्हें पता लगा ये स्वामी जी जो भारत देश से आए हैं , वे अपने साथ में एक नशा लेकर आए हैं तब उन सभी युवाओं ने स्वामी जी से कहा कि आप जो नशीला पदार्थ/ वस्तु लेकर आए हैं, वह हमें भी दीजिए। अमेरिका में युवा वर्ग जो कुछ नशीले पदार्थों का सेवन करता था, वे कुछ समय के लिए स्वयं को एक उच्च स्थिति में समझता था, लेकिन जब उसका असर समाप्त हो जाता, वे पुनः निम्न स्थिति को प्राप्त हो जाते थे। तब वे और अधिक मात्रा में उस नशीले पदार्थ का सेवन किया करते थे।
सेवन करके पुनः उच्च स्थिति में तत्पश्चात पुनः निम्न स्थिति में आ जाते। एक स्थिति ऐसी आती थी जब वे निम्नतम स्थिति में आ जाते थे और जहाँ से वे पुनः अपनी चेतना में उच्च स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाते थे। ऐसी अवस्था में उन्होंने श्रील प्रभुपाद से पूछा कि स्वामी जी, ‘आपके पास में कौन सी ऐसी नशीली वस्तु है? आप हमें वह वस्तु दीजिए।तब श्रील प्रभुपाद ने कहा- हां, मेरे पास में वह वस्तु है जिसको स्वीकार करके आप हमेशा के लिए उच्च स्थिति में रह सकते हो। वहां से आप पुनः कभी निम्न स्थिति में नहीं आएंगे। और वह वस्तु है- हरिनाम, कृष्ण प्रसाद, सादा जीवन उच्च विचार।
हम प्रतिदिन कृष्ण प्रसाद का आस्वादन करते हैं। हम इस संस्कृति के माध्यम से सदैव उच्च स्थिति में रहेंगे और कभी भी निम्न स्थिति में नहीं आएंगे।
अमेरिकी युवाओं ने उसे स्वीकार किया और इससे उनका जीवन पूर्णरूपेण बदल गया, वे जैसे थे,वैसे नहीं रहे। उन्होंने आकर प्रभुपाद से कहा- ‘स्वामी जी, अब हम शपथ लेते हैं कि अब हम कभी भी नशा नहीं करेंगे। हम मांसाहार, अवैध संबंध, द्यूतक्रीडा, और नशापान का त्याग करेंगे। वे ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि अब वे हरिनाम का नशा कर रहे थे, अब वे कृष्ण प्रसाद का नशा कर रहे थे। इस प्रकार इस हरिनाम के माध्यम से उनके हृदय में जो सुप्त कृष्णभावनामृत था , वह पुनः प्रकट हो रही थी। ये हिप्पिज़ जोकि नशेड़ी,शराबी थे। श्रील प्रभुपाद ने उन्हें वह मंत्र दिया जिससे वे सभी हिप्पी, हैप्पी हो गए। इस प्रकार से वह इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करके प्रसन्न हो गए।
परम् दृष्टवा निवर्तन्ते.. कुछ भक्त कमैंट्स भी कर रहे हैं। यह जो प्रोग्राम है उसका नाम उद्गार प्रोग्राम है। हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं। मुझे अभी राधा पार्थसारथी का दर्शन करना है, वहां गुरु पूजा है, फिर कीर्तन होगा। तत्पश्चात राधा पार्थसारथी मंदिर में मैं भागवतम पर 8 बजे प्रवचन दूंगा। हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं। आप सभी जप करते रहिए। अपने आस पास के क्षेत्र के युवाओं में प्रचार कीजिए और उन्हें हरिनाम प्रदान कीजिए।
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
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5th Oct 2019
हरे कृष्ण,
आज 446 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं ,आप सभी का धन्यवाद कि आप कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ सम्मिलित हो रहे हैं ।आज शनिवार है और मेलबॉर्न ऑस्ट्रेलिया से भी भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। वह आज देवांश प्रभु के घर एकत्रित होकर जप कर रहे हैं इसके साथ ही साथ सिडनी से एक परिवार है जो इस कांफ्रेंस में आज सम्मिलित हुआ है और हमारे साथ जप कर रहे हैं। सिंगापुर से भी भक्त हैं जो हमारे साथ जप कर रहे हैं इस प्रकार इस कांफ्रेंस के विराट रूप के कारण हमें इस कॉन्फ्रेंस में जो भी भक्त जप कर रहे हैं उनका दर्शन होता है। अतः भक्तों के साथ साथ हम भगवान का भी दर्शन करना चाहते हैं । चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि वैष्णव वह है जिन्हें देखने मात्र से हमें भगवान का स्मरण हो जाता है इस प्रकार भक्तों का दर्शन होता है और भक्तों के दर्शन से हमें भगवान का स्मरण होता है। यदि केवल हम एक दूसरे का दर्शन करके ही संतुष्ट होते हैं तो इससे हमारे उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है हमारा वास्तविक उद्देश्य है कि इस कांफ्रेंस के माध्यम से हम सभी एक साथ जप करें और अंततः हमें विष्णु स्मरणम अर्थात भगवान विष्णु अर्थात कृष्ण का स्मरण हो। एक समय गोपियां भी इस प्रकार से एकत्रित होकर सर्वत्र भगवान श्री कृष्ण को ढूंढ रही थी, वे हर कहीं ढूंढ रही थी कि आप कहां हैं, आप कहां हैं जब वे वनों में ढूंढ रही थी तो उन्हें कृष्ण नहीं मिले फिर भी यमुना के तट पर आए तो वहां पर भी उन्हें भगवान नहीं मिले ।
यद्दपि गोपियां हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन तो नहीं कर रही थी वे गोपी गीत गा रही थी परंतु गोपी गीत भी हरे कृष्ण महामंत्र जप के कीर्तन के समान ही है जब गोपियां यह गोपी गीत गा रही थी तो उसका परिणाम यह हुआ कि भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अपना दर्शन दिया। जप इस प्रकार है, यह गोपी गीत गा रही थी तो भगवान स्वयं वहां प्रकट हो गए और गोपियों को दर्शन लाभ हुआ तो इस प्रकार इस कॉन्फ्रेंस में भी कई भक्त एक साथ जप करते हैं तो जब हम जप करते हैं तो हम भी भगवान श्रीकृष्ण को ढूंढते हैं, हे कृष्ण! आप कहां हैं ?आप कहां हैं ?और हम कृष्ण का दर्शन करना चाहते हैं। जप के समय हमारा यह भी एक उद्देश्य होता है कि हमें कब भगवान का दर्शन होगा और वास्तव में हमें विभिन्न स्तरों में उस पर डिग्री के हिसाब से हमें भगवान का अनुभव था अथवा साक्षात्कार होता भी है।
इस प्रकार से यह मंत्र मेडिटेशन है, किस प्रकार मंत्र पर ध्यान किया जाता है इस विषय पर हमने चर्चा की। आज मैं सुबह श्रील प्रभुपाद का एक अत्यंत पुराना आर्टिकल पढ़ रहा था यह लेख प्रभुपाद ने इस्कॉन बनाया उससे भी पहले का था वह पहले भी कुछ लेख लिखते थे और यह वृंदा बेस डॉट पर उपलब्ध है प्रभुपाद ने उस आर्टिकल में मेडिटेशन अथवा ध्यान के विषय में लिखा है। वे लिखते हैं कि भगवान हमारे हृदय में हमेशा रहते हैं और इस प्रकार से जब हम जप करते हैं तो हमें उनके रूप पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उनके पास्ट टाइम्स पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हम जप योगी हैं अतः जप करते समय हमें भगवान के रूप, लीला, गुण और उनके पार्षद का चिंतन करना चाहिए उनकी लीलाओं का स्मरण होना चाहिए।
जब मैंने लीला स्मरण के विषय में बताया तो लीला स्मरण का अर्थ है भगवान के रूप का भी स्मरण होना चाहिए। क्योंकि भगवान जब कोई लीला संपन्न करते हैं तो उनका कुछ रूप भी है जो यह लीला संपन्न करते हैं। लीला स्मरण करते समय भगवान के रूप का स्मरण है, भगवान के गुणों का स्मरण है यदि कोई लीला संपन्न हो रही है तो भगवान के कोई पार्षद अथवा भक्त भी हैं जो भगवान के उस लीला में अंश है। इस प्रकार से हम भगवान के भक्तों के ऊपर भी ध्यान टिका सकते हैं उनका भी हमें स्मरण होता है।
आज जब मैंने सुबह आर्टिकल पढा तो उसमें श्रील प्रभुपाद हिंसा व अहिंसा के विषय में बता रहे थे तो वे यह भी बता रहे थे कि किस प्रकार से हिंसा व अहिंसा दोनों ही इन भौतिक तीन गुणों जो है रजो सत्व तमो उनके भीतर कार्य करते हैं, एक प्रकार से द्वंद है श्रील प्रभुपाद बता रहे थे कि यह जो हिंसा है वह रजोगुण और तमोगुण का परिणाम है उनके कारण प्रकट होता है यदि कोई व्यक्ति रज और तमोगुण में होता है तो वह हिंसक प्रव्रत्ति का होता है ।वह हिंसा करता है परंतु जब कोई सतोगुण में स्थित होता है तो वह अहिंसक होता है और वह हिंसा नहीं करता है परंतु हिंसा और अहिंसा दोनों ही इन तीन भौतिक गुणों के अंतर्गत आते हैं और यह द्वंद है और हमारा लक्ष्य है इन दोनों से परे होना तो हम इस भौतिक जगत का जो हमारा लक्ष्य है वह इन गुणों को दूर करना हम गुणातीत होना चाहते हैं अर्थात हम इन गुणों से दूर जाना चाहते हैं।:
यह एक अत्यंत ही वृहद विषय है और इसके साथ साथ अत्यंत महत्वपूर्ण भी हैं तो हम समझ सकते हैं कि किस प्रकार से यह द्वंद कार्यरत होता है और हम भौतिक 3 गुणों के अंतर्गत जकड़े जा चुके हैं तो फिर प्रभुपाद ने हिंसा और अहिंसा बताया साथ ही पाप और पुण्य भी द्वंद है, एक पाप होता है और एक पुण्य होता है किंतु भगवान की आध्यात्मिक सेवा दिव्य होती है, आध्यात्मिक धरातल पर होती है, गुणातीत होती है जैसे स्वर्ग और नर्क हैं। स्वर्ग में सतोगुणी व्यक्ति (जो अच्छे कार्य करता है) जाता है। नरक में बुरा व्यक्ति जाता है परंतु फिर भी वे दोनों भौतिक ही हैं, इन दोनों से बेहतर हैं बैकुंठ और गोलोक, ये दोनों आध्यात्मिक हैं, गुणातीत है। इसके साथ ही साथ जो हमारा भोजन है वह भी इस प्रकार से मांसाहारी तथा शाकाहारी होता है। मांसाहारी भोजन अच्छा नहीं है और शाकाहारी और सात्विक आहार सतोगुण का प्रभाव है परंतु फिर भी वह इस भौतिक जगत का ही है। परंतु जब यही सात्विक भोग हम भगवान को चढ़ाते हैं और फिर जब हम उसे खाते हैं तो वह दिव्य बन जाता है, वह गुणातीत हो जाता है। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद यह संदेश देना चाहते थे कि जो सतोगुण में कार्य किए जाते हैं उन्हें धर्म समझ लिया जाता है यथा यदि कोई अहिंसक है तो उसे धार्मिक समझा जाता है परंतु ऐसा नहीं है जो आध्यात्मिक सेवाएं हैं वे दिव्य होती हैं।
इस प्रकार से हमें इस द्वंद से परे जाना है इससे बाहर निकलना है यह हिंसा अहिंसा जो सात्विक और तामसिक भोजन है यह सभी भौतिक जीवन का है, यह आध्यात्मिक नहीं है। हमें इन सबसे परे जाना है यहां श्रील प्रभुपाद यही बताना चाहते हैं। यही कृष्ण भावनामृत है श्रील प्रभुपाद ने इस संस्था को अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ नाम दिया उन्होंने इसे कोई देवता भावनामृत नाम नहीं दिया क्योंकि गॉड अथवा देवता कई हो सकते हैं वे स्वर्ग के भी हो सकते हैं। तो श्रील प्रभुपाद ने इसे कृष्णभावनामृत नाम दिया तो कृष्ण भावनामृत का अर्थ ही यही है कि वह सही अथवा गलत, सतो रजो तथा तमो इन तीनों गुणों से परे है और यह शुद्ध सत्व में स्थित है। इस प्रकार हम भी इन तीन गुणों से परे जाकर शुद्ध सत्व में स्थित होकर रहना चाहते हैं, जब भी हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो हमारा लक्ष्य होता है कि हम इन तीन गुणों से परे जाकर शुद्ध सत्त्व में स्थित हों। यह जगत द्वंद से भरा हुआ है, हम यहां इन तीन गुणों से जकड़े हुए हैं और इनमें से एक जो सबसे बड़ा द्वंद है, वह है शारीरिक भेद करना यह नर है यह नारी है, यह स्त्री है यह पुरुष है, यह भी एक द्वंद है ।
भगवान भगवत गीता में कहते हैं कि हमें समभाव को प्राप्त करना चाहिए इन सभी शरीरों में फिर चाहे वह स्त्री का शरीर और पुरुष का शरीर हो, वह क्या है जो एक है वह है आत्मा ।कृष्णभावनामृत यही है क्या हम समभाव से सभी को देखते हैं और इस प्रकार से कृष्ण भावना भावित बनना चाहते हैं। इस प्रकार से जब हम इन भौतिक गुणों से परे जाकर सभी जीवो को देखते हैं तो वही कृष्णभावनामृत है। इस प्रकार यह आज हमारे विचारों के लिए एक आहार है, आप इसके विषय में और अधिक चिंतन कर सकते हैं और आपको करना चाहिए। आप श्रीमद भागवतम और भगवत गीता पढ़िए और यह समझिए कि किस प्रकार से यह द्वंद कार्यरत होता है और किस प्रकार हम इसके परे जा सकते हैं आपको यह सब समझना चाहिए। वर्तमान समय में जो समाज कल्याण के कार्य हैं जैसे दान करना , अस्पताल खोलना, स्कूल खोलना अन्न दान करना गरीबों को भोजन खिलाना आदि इसे ही धर्म समझ लिया जाता है।
आजकल इजराइल के लोग और कुछ हिंदू भी यही करते हैं,वे किसी को दान दे देते हैं , कोई स्कूल खोल देते हैं और वे जो किसी को दान देते हैं तो उसमें मीट खिला देते हैं शराब पिलाकर के कहते हैं आप इंद्रिय तृप्ति कीजिए इस प्रकार से यदि कोई इस प्रकार का दान देता है और वह जब सतोगुण में स्थित होकर यह कार्य करता है केवल सही कार्य करता है तो ऐसे ही धर्म समझ लिया जाता है परंतु यह कार्य आध्यात्मिक नहीं होते हैं यह भी एक बहुत बड़ा भ्रम है और पूरे वैश्विक स्तर पर यह भ्रम अभी चल रहा है जो सतोगुण में कार्य करते हैं वही धर्म है, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है भगवान श्री कृष्ण कहते हैं सर्वधर्माण परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज भगवान करे कि आप यह जो सभी कार्य है इन सभी को छोड़कर जैसे हम देवी-देवताओं की आराधना करते हैं उनको छोड़कर हमें भगवान श्रीकृष्ण की शरण लेनी चाहिए और जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो हम भगवान की शरण ले सकते हैं और भी बहुत कुछ है जिसके विषय में हम चर्चा कर सकते हैं। यह सिद्धांत है, एक तत्व है जिसकी चर्चा हमने यहां की चैतन्य चरितामृत में आता है सिद्धांत बलिया ना करिए आलस तो जब हमें सिद्धांत के विषय में चर्चा करनी होती है, जब हमें तत्व के विषय में चर्चा करनी होती है तो हमें आलस नहीं करना चाहिए और हमें दृढ़ता पूर्वक उस सिद्धांत के विषय में चर्चा करना चाहिए क्योंकि जब हम ऐसा करते हैं तब हमारा जो विश्वास है। वह और अधिक दृढ़ होता है इस प्रकार हमें तत्व की चर्चा करनी चाहिए कि क्या हमारा सिद्धांत है और क्या हमारा तत्व है आज इस जप चर्चा
को यही विराम देते हैं ।परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय ।श्रील प्रभुपाद की जय।
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हरे कृष्ण
3rd अक्टूबर 2019
जप चर्चा
आज सुबह का सुप्रभात समाचार यह है कि हमारे जयतीर्थ प्रभु जो रायचूर से हैं वह प्रतिदिन लगभग 10000 लोगों को यह जूम जपा टॉक का लिंक भेजते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग जूम जपा कॉन्फ्रेंस पर जप कर सके। आज की भक्तों की संख्या 496 है जो कि लगभग 500 भक्त हैं। जिस प्रकार से जयतीर्थ प्रभु यह सेवा कर रहे हैं उसी प्रकार आप सभी भी यह सेवा कर सकते हैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह लिंक भेज कर जिससे आप सभी के भाई-बहन आदि भी इस जप कॉन्फ्रेंस में जुड़ सकें, इस प्रकार आप सब भी यह प्रयास कर सकते हैं। मैं बहुत प्रसन्न हूं यह देखकर कि मेरे बड़े व छोटे दोनों भाई भी इस जप कॉन्फ्रेंस में जप कर रहे हैं और जो मेरी बहन है सीता रानी माताजी वह भी मेरे साथ यहां पंढरपुर में जप कर रही है। इस प्रकार मैंने अपने परिवार के सभी सदस्यों को भक्त बना दिया है और परिवार ही नहीं जो मेरे रिश्तेदार व भाई बंधु मित्र आदि हैं उन सभी को मैंने भगवान से जोड़ दिया है आपको भी इसी प्रकार से करना है। कल यहां पंढरपुर में दोपहर के बाद में हमने यहां एक गुरुकुल का शुभारंभ किया जिसका नाम भक्तिवेदांत गुरुकुल रखा गया जिसका हमने कल उद्घाटन किया। इसमें लगभग 20 विद्यार्थी हैं कल उनके माता-पिता भी यहां आए थे और कुछ मंदिर के भक्त भी उपस्थित थे।
मैं उन सभी को यह बता रहा था कि जैसे भागवतम में कहा गया है हम किसी के रिश्तेदार या स्वजन नहीं बन सकते हैं जब तक कि हम उन्हें कृष्ण भावनामृत में नहीं जोड़ देते हैं, अन्यथा आपको किसी का स्वजन या रिश्तेदार नहीं बनना चाहिए। उसी श्लोक में यह भी बताया गया है कि जननी न शिष्यात पिता न शिष्यात अर्थात आप माता पिता या बेटी बेटा मत बनिए, यदि आप अपने आश्रित परिवार जनों को कृष्ण भावना भावित नहीं बना सकते हैं। इस प्रकार आपको कोई अधिकार नहीं है माता-पिता बनने का अगर आप अपने आश्रितों को कृष्ण भावना भावित नहीं बना सकते। हम उन्हें संसार में क्यों लाए हैं जो कि सारा संसार बड़े-बड़े कष्टों से भरा है तो हम उन्हें यहां क्यों लाए हैं क्या हम यह चाहते हैं कि जो हमारे आश्रित स्वजन हैं वे संसार में कष्ट भोगे।
यदि हमने उन्हें जन्म दिया है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इस संसार में कष्ट ना भोगे। इस प्रकार हमें कुछ ऐसा करना होगा कि जिससे वे जन्म-मृत्यु के चक्र से निकलकर एक शाश्वत जीवन जी सकें। हमें कृष्ण से उनका परिचय कराना होगा हमें उन्हें हरिनाम जप के लिए प्रेरित करना होगा, उन्हें भगवत गीता, भागवतम पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा, कृष्ण प्रसाद पाने के लिए प्रेरित करना होगा। इस प्रकार हम कल माता-पिताओं को यह समझा रहे थे कि किस प्रकार आपको अपने आश्रितों को भगवान से जोड़ना होगा। जिससे वह भगवान की भक्ति में लग सके। उसी श्लोक में सबसे पहले आया है गुरु न शष्यात अतः आप गुरु भी मत बनिए यदि आप अपने शिष्यों को कृष्ण नहीं दे सकते हो या उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं कर सकते हो। मैं यह सोच रहा था कि क्या यह केवल दीक्षा गुरु के लिए है लेकिन ऐसा नहीं है जब इसके विस्तार में जाते हैं तो सभी शिक्षा गुरु व पथ प्रदर्शक गुरु का भी यही दायित्व है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने तो यहां तक कहा है “यारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश, आमर आज्ञा हया तार एय देश” अर्थात जो चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में जुड़े लोग हैं जो इस गौड़ीय वैष्णव परंपरा के अनुयाई हैं उन्हें अपने आश्रित व स्वजनों के लिए दायित्व है जिनको भी वे प्रचार करते हैं उन्हें कृष्ण दे। अब जब आपके पास कृष्ण हैं तो आप उन सभी को कृष्ण दीजिए जो आपके आश्रित हैं या जिनको आप भक्ति के लिए प्रेरित कर रहे हैं या आप जिनके काउंसलर हैं।
एक राम लीला माताजी हैं जो वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं। वह भी कल उस प्रोग्राम में उपस्थित थी। वह माताजी सोलापुर में सत्संग चलाती हैं। जिन्होने विश्व हरिनाम सप्ताह में बहुत लोगों से माला जप भी करवाया था। वह माताजी नगर कीर्तन करना चाहती हैं। वह कह रही थी कि विश्व हरि नाम के बाद वह माह में एक बार एक बड़ा नगर संकीर्तन आयोजित करना चाहती हैं। इसके लिए मेरी आज्ञा व आशीर्वाद मांग रही थी। तो मैंने उनसे कहा कि मैं आशीर्वाद क्यों नहीं दूंगा, जब आप इतना सुंदर काम कर रही हो , जो कि भक्तों को कृष्ण से जोड़ना चाहती हैं।
मुझे अभी-अभी एक भक्त का संकल्प और प्राप्त हुआ है जो बांग्लादेश में रहते हैं उन्होने बताया कि इस समय बांग्लादेश में नवरात्र उत्सव मनाया जा रहा है। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा बड़े-बड़े पंडालों में मनाई जा रही है। मैंने व मेरे मित्र ने एक संकल्प लिया है कि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तके वहां पंडालों में जा जा कर वितरित करेगें। जहां बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। यह बहुत ही सुंदर है यह बहुत ही प्रेरणादायक है कि वे सभी को कृष्ण देना चाहते हैं। दुर्गा पूजा सभी स्थानों में, भारत में और विदेशों में भी मनायी जा रही है। वहां जो जनसमूह है उनकी काफी धार्मिक भावनाएं रहती हैं आप सभी भी वहां जाकर कीर्तन करिए और प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण कीजिए। आप सभी यह देखिए कि आप क्या कर सकते हैं यह जो जनसमूह एकत्रित हो रहे हैं इन दिनों उनकी भावना भी धार्मिक रहती है आप देखिए कि किस प्रकार से आप उन्हें कृष्ण दे सकते हैं।
सभी अपने-अपने क्षेत्रों में योजना बनाकर आपस में मिलजुल कर यह कर सकते हैं। मौका मिलने पर आप शक्ति तत्व के बारे में समझा भी सकते हैं। जैसे कि ब्रह्म संहिता में आता है। “छायेव यश्य भुवनानी विभृति दुर्गा, इच्छानुरूपमपि यस्य च चेष्टते सा, गोविंदम आदि पुरुषम तमहम भजामि” अर्थात दुर्गा देवी भगवान की छाया है वह श्रीमती राधारानी का विस्तार है। जिस प्रकार गोलोक में श्रीमती राधारानी भगवान की सेवा करती है उसी प्रकार दुर्गा देवी इस दुर्ग भवन में यानी इस संसार में आकर वह भगवान कृष्ण की इच्छा अनुरूप कार्य करती है। वे भगवान से स्वतंत्र नहीं है, भगवान की इच्छा अनुसार कार्य करती है। इस प्रकार से सेवा करती हैं श्रीमती राधारानी एक प्रकार से सेवा करती हैं गोलोकधाम में वहां उन्हें योग माया कहा जाता है। परंतु दुर्गा देवी जो शक्ति है वह महामाया कहलाती है और इस संसार में भगवान की इच्छा अनुरूप कार्य करती है। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने इस शक्ति तत्व को बहुत अच्छी तरह से हमें समझाया है। इस गौड़ीय वैष्णव परंपरा में भी इस शक्ति तत्व को बहुत अच्छी तरह समझाया जाता है। जिस प्रकार राधा रानी है गोलोक में उसी प्रकार उनका विस्तार दुर्गा देवी है इस संसार में।
इस प्रकार हमें यह समझना है और अधिक से अधिक लोगों को हमें समझाना है दुर्गा देवी का इस संसार में जो नाम है, वह पार्वती है तो शिव व पार्वती दोनों ही एक प्रकार से एक टीम बनाते हैं। जैसा शिव के लिए कहा भी जाता है “वैष्णव नाम यथा शम्भू” अर्थात सभी वैष्णव में शिवजी अग्रणी है। जो माता पार्वती हैं वह भी गौरांग भगवान की बहुत बड़ी भक्त हैं। एक बार शिव व पार्वती तपस्या कर रहे थे और भगवान की बहुत सुंदर लीलाओं का जप व कीर्तन कर रहे थे। जिस प्रकार कहते हैं ब्रह्मा बोले चतुर्मुखी, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। महादेव पंचमुखी राम राम हरे हरे, इस प्रकार ब्रह्माजी शिवजी व पार्वती भगवान नाम का जप करते हैं इस प्रकार जब एक बार वे जप कर रहे थे, कीर्तन कर रहे थे मायापुर में तो भगवान उनके सामने प्रकट हो गए, महाप्रभु प्रकट हो गए तो माता पार्वती ने उन्हें प्रणाम किया और उनके चरणों से रज लेकर उन्होंने अपनी मांग में धारण की, जहां महिलाएं सिंदूर लगाती हैं, इस प्रकार उनका नाम सीमान्तनी पड़ा। जैसे सीमान्तक का मतलब मांग से जुड़ा है क्योंकि उन्होंने अपनी मांग में रज को धारण किया था, इस प्रकार उनका नाम सीमान्तनी पड़ा। उस द्वीप का नाम सीमांतद्वीप पड़ा जहां पर हमारा इस्कॉन का एक मंदिर है। जहां पर भगवान जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा के विग्रहों की सेवा की जाती है। उन्हीं के साथ साथ उन्होंने एक सीमान्तनी देवी का मंदिर भी बनाया है। इस प्रकार हम भी पार्वती मां की पूजा अर्चना करते हैं लेकिन भगवान महाप्रभु के संबंध में हम उनकी पूजा अर्चना करते हैं।
नवद्वीप जो 9 द्वीप हैं जो नवधा भक्ति के अंगों के रूप में जाने जाते हैं। उनमें से सीमांतद्वीप श्रवण भक्ति के लिए जाना जाता है। क्योंकि सीमान्तनी देवी यानी पार्वती देवी, जो है वह निरंतर भगवान की कथाओं का श्रवण करती रहती हैं। हमें भी शिव पार्वती जी से प्रेरणा लेनी चाहिए, कि किस प्रकार से वह भगवान की लीलाओं का श्रवण करते रहते हैं विशेष रूप से गौर कथा को सुनने मे वे सीमांत द्वीप में गौर मंडल में इस प्रकार से रहते हैं। एक अन्य स्थान वहां नवद्वीप में नैमिषारण्य भी है भगवान शिव नैमिषारण्य में एक बार गौर कथा सुन रहे थे और पूरी कथा सुनने के बाद उन्होंने माता पार्वती को भी बताया। इस प्रकार वे दोनों श्रीमद भगवतम, श्रीमद गौरकथा का श्रवण करते हैं और आपस में एक दूसरे से चर्चा करते रहते हैं। यह वास्तव में वह “बोधयंता परस्परम” है। शिवजी व पार्वती गौर कथा, भागवत कथा सुनते हैं और उसी में आनंदित होते रहते हैं। इस प्रकार शिवजी व पार्वती जी सभी ग्रहों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं कि किस प्रकार से गृहस्थों का जीवन पूरी तरह से भगवान पर केंद्रित होना चाहिए। भगवान की लीलाओं और कथा को सुनने की इतनी उत्सुकता होनी चाहिए। माता पार्वती व शिवजी के चरित्र से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। आज हम यही अपनी वाणी को विराम देंगे।
साधना माताजी जो ऑस्ट्रेलिया से है वह वापिस हिंदुस्तान आ गई हैं वे मायापुर धाम में गई हैं तो हम उनका मायापुर धाम में आने पर स्वागत करते हैं।
हरे कृष्ण
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2 февраля 2020 г.
В нашем сердце есть Равана
Я здесь, в Beed. Вчера у нас был фестиваль Ратха-ятры Кришны Баларамы. Все участвовали, пели и танцевали с большим энтузиазмом в Ратха-ятре. Божества Гаур-Нитай также были на колеснице. Было объявлено, что это будет Ратха-ятра Кришны Баларамы. Кришну Балараму приветствовали, и произошла Shobha yatra. Когда я увидел, как все люди танцуют и поют с преданностью, я вспомнил о возвращении Рамы, Лакшмана и Ситы в Айодхью и о том, как жители Айодхьи приветствовали их с большим энтузиазмом. Я видел, как преданные кружили в воздухе свои верхние одежды. Точно так же десять лакхов лет назад жители Айодхьи приветствовали шествие ко дворцу. Это было объяснено в Рамаяне. В настоящее время я читаю и слушаю Рамаяну.
паритраная садхунам
винашая ча душкртам
дхарма-самстхапанартхайа
самбхавами юге юге (Б.Г. 4.)
Перевод:
Чтобы освободить праведников и уничтожить злодеев, а также восстановить устои религии, Я прихожу сюда из века в век.
Равана и все его соратники и демоны были убиты Рамой, Лакшманом, Сугривой, Хануманом и армией обезьян и медведей. Когда эти демоны были убиты, Мандодари, там была и жена Равана (у которой была manda udara, которая является признаком красоты). Когда она достигла поля битвы, все женщины искали тела своих мужей. Мандодари также начала искать тело Раваны. Шукадева Госвами описал это, в двух главах девятой песни «Шримад-Бхагаватам».
hā hatāḥ sma vayaṁ nātha
loka-rāvaṇa rāvaṇa
kaṁ yāyāc charaṇaṁ laṅkā
tvad-vihīnā parārditā (ШБ 9.10.26)
Перевод:
О мой господин! О повелитель! Ты заставлял всех страдать, поэтому тебя прозвали Раваной. Сейчас, когда ты повержен, мы повержены вместе с тобой, ибо без тебя враг завоевал Ланку. Кто теперь ее защитит?
Мандодари обращается к своему мужу, который ушел и не сможет услышать. Она обращается к Раване как к тому, кто заставил других плакать. Сита плакала день и ночь, и Равана был причиной этого.
на ваи веда маха̄-бха̄га
бхава̄н ка̄ма-ваш́ам̇ гатах̣
теджо ’нубха̄вам̇ сӣта̄йа̄
йена нӣто даш́а̄м има̄м(ШБ 9.10.27)
Перевод:
О баловень судьбы, охваченный вожделением, ты не смог по достоинству оценить могущество Ситы. Проклятый ею, ты утратил всё величие и погиб от руки Господа Рамачандры.
Комментарий
Что бы вы ни делали, это было сделано под влиянием похоти, и это заставило вас танцевать. Вы хотели наслаждаться Матерью Ситой, и это причина вашей смерти. То, как вы имели дело с Ситой, что я могла увидеть, является причиной вашего падения.
кр̣таиша̄ видхава̄ лан̇ка̄
вайам̇ ча кула-нандана
дехах̣ кр̣то ’ннам̇ гр̣дхра̄н̣а̄м
а̄тма̄ нарака-хетаве (ШБ 9.10.28)
Перевод:
О радость рода ракшасов, из-за тебя царство Ланки и мы сами остались без защиты. Своими поступками ты заслужил, чтобы твое тело съели стервятники, а душа твоя отправилась в ад.
Мандодари говорит, что поскольку Раваны больше нет, она стала вдовой вместе со всей Ланкой. Теперь стервятники съедят его тело, а его душа отправится прямо в ад. Вы достигли такой судьбы, так как находились под влиянием похоти. Рамаяна учит нас, что те, кто находится под влиянием похоти, сталкиваются с тем же. История повторяется снова и снова. В настоящее время то же самое происходит в каждом городе. Люди умирают и рождаются снова и снова, поскольку они стали жертвами похоти и жадности. Он получил имя Равана, и такие Раваны также присутствует в нас. Многие такие Раваны есть в нас и вокруг нас. Нам следует прочитать 16-ю главу Бхагавад-гиты.
dvau bhūta-sargau loke ’smin daiva āsura eva cha
daivo vistaraśhaḥ prokta āsuraṁ pārtha me śhṛiṇu (BG 16.6)
Перевод:
В этом мире существует два вида существ: наделенные божественной природой и обладающие демонической природой. Я подробно описал божественные качества, о Арджун. Теперь услышь от меня о демонической природе.
Господь говорит, что в этом мире существует два типа живых существ. Некоторые божественны, а некоторые демоничны. Некоторые из них йоги, а некоторые бхоги. Нам нужно изучить это, чтобы знать, кто мы есть. Тогда мы сможем понять, кто мы и какова наша личность.
правриттим ча нивриттим ча
джана на видур асурах�на шаучам напи чачаро�на сатйам тешу видйате
(БГ 16.7)
Перевод:
Те, кто обладает демонической природой, не понимают, какие действия являются правильными, а какие неправильными. Следовательно, они не обладают ни чистотой, ни хорошим поведением, ни даже правдивостью.
Далее он сказал это в той же главе. Люди-демоны не знают, что делать, а что нет, что правильно и что неправильно.
анха-панха-хатаир баддхам кама-кродха-парайанах
иханте кама-бхогартхам анйайенартха-санчайан
Перевод:
Удерживаемые в рабстве сотнями желаний и движимые вожделением и гневом, они стремятся накапливать богатство несправедливыми средствами, все для удовлетворения своих чувств.
Далее Господь сказал в 16-й главе, что демонические люди связаны крепкими веревками сотен и тысяч ожиданий. Они не могут даже немного двигаться здесь и там. Он очень опытен в похоти и жадности. Если вы похотливы, то вы будете гневаться. Ответ очень простой. Гнев возникает от похоти. Тогда люди начинают зарабатывать деньги незаконным путем.
Мы должны изучать Бхагавад-гиту, и с этого момента наше обучение начинается. Мы должны стать учениками Бхагават-Гиты. Это объясняет Раджа Видья, которая является наиболее конфиденциальной вещью. Мы должны изучить это знание. Харинама – это жизнь видья-вадху (жены знания). Когда мы приобретаем знание, мы можем петь и совершать санкиртану в эту Кали-югу. Господь Брахма говорит, что он прочитал все Веды и знает все Веды и, следовательно, …
ei nām brahma jape catur-mukhe kṛṣṇa kṛṣṇa hare hare
ei nām nārada jape vīṇā yantre kṛṣṇa kṛṣṇa hare hare
ei nām śiva jape pañca mukhe kṛṣṇa kṛṣṇa hare hare
…. Господь Брахма повторяет маха-мантру своими 4 ртами, а Господь Шива – 5 ртами. Господь Шива слышит с 10 ушами и видит с 15 глазами.
sarvopādhi-vinirmuktaṁ
tat-paratvena nirmalam
hṛṣīkeṇa hṛṣīkeśa-
sevanaṁ bhaktir ucyate(ЧЧ 19.170)
Перевод:
«Бхакти, или преданное служение, означает задействовать все наши чувства в служении Господу, Верховной Личности Бога, повелителю всех чувств. Когда духовная душа служит Всевышнему, возникает два побочных эффекта. Человек освобождается от всех материальных назначений, а его чувства очищаются просто благодаря служению Господу ».
Бхакти означает задействовать все наши чувства в служении Господу. Вайшнавские традиции начинаются с Брахмы и Шивы. Сампрадья начинаются с этих двух. Что делает Господь Шива? Он всегда обсуждает Бхагават-катху со своей женой Парвати. Это идеальная жизнь для жены и мужа. Не следует вести пустые разговоры. Шива и Парвати всегда заняты в Бхагават-катхе. Мы должны следовать за ними. Брахма и Шива хорошо осведомлены и Ведагайя. Они делают киртан в эту Кали-югу. Так как киртан и харинама – богатство в эту Кали-югу, они зарабатывают это. А те, кто принадлежит демоническому менталитету, не знают, что является законным средством зарабатывания средств к существованию. Они не знают, что они души, и считают себя телами. Сколько еще глупости может быть, если мы просто работаем для своих тел, а не для себя, своих душ? Мы – души, неотъемлемые частицы Верховного Господа, и если мы не работаем для наших душ или душ наших мужей, жен, дочерей, сыновей и граждан страны, то мы сознательно пьем яд.
hari hari! bifale janama gonainu
manushya-janama paiya, radha-krishna na bhajiya,
janiya suniya visha khainu
Перевод:
0 Господи Хари, я всю жизнь провел без толку. Получив человеческое рождение и не поклонявшись Радхе и Кришне, я сознательно пил яд.
Мы пьем яд и рождаемся снова и снова. Нам следует пить нектар Святых Имён, чтобы остановить цикл рождения и смерти.
paritranaya sadhunam
vinasaya ca duskrtam
dharma-samsthapanarthaya
sambhavami yuge yuge(Б.Г. 4.)
Перевод:
Чтобы освободить праведников и уничтожить злодеев, а также восстановить устои религии, Я прихожу сюда из века в век.
Мы умерали так много раз по тем же причинам, что и Равана – похоть и жадность. Нас убивают, и если мы должны спасти себя, мы должны выпить нектар, и тогда мы сможем достичь Господа. Мы следуем 4 регулирующим принципам, чтобы избавиться от демонических наклонностей. Мы чтим прасад Кришны. Интоксикация и незаконный секс – это демонические наклонности. Равана пытался бегать за чужой женой, и это стало причиной его гибели. И Господь Рама, и Мать Сита пообещали иметь только одну жену и одного мужа. Шрила Прабхупада дал четыре регулирующих принципа, чтобы демонические наклонности внутри нас были побеждены, и Кришна Према проснулась.
nitya-siddha kṛṣṇa-prema ‘sādhya’ kabhu naya
śravaṇādi-śuddha-citte karaye udaya (ЧЧ Мадхья 22.107)
Перевод:
Чистая любовь к Кришне вечно утверждается в сердцах живых существ. Это не то, что можно получить из другого источника. Когда сердце очищается от слуха и пения, эта любовь естественно пробуждается.
Слушая «Шримад-Бхагаватам», «Бхагавад-гиту», «Чайтанья-Чаритамриту» или игры Господа, тогда наше сознание очистится, и мы будем действовать под влиянием любви. Преданные Кришны работают под влиянием любви. Поймите эти учения и продолжайте воспевать.
Харе Кришна
Гаур Премананде
Хари Харибол!
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जप चर्चा – 01-Oct-2019
हरे कृष्ण
आज हमारे साथ 480 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं I जब हम जानते हैं कि हम मनुष्य हैं और वास्तव में यदि हम मनुष्य हैं जब हम यह जानते हैं, तो हम तुरंत ही कृष्ण भावना भावित हो जाते हैं ,धार्मिक बन जाते हैं क्योंकि “ धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः II ऐसा कहा जाता है यद्यपि हम धार्मिक नहीं हो तब भी धार्मिक होने का प्रयास करते हैं I कृष्ण भावना भावित भक्त बनने के लिए प्रयास करते हैं I जब हमें यह पता चलता है कि हमारा जन्म कलयुग में हुआ है और अभी यह कलयुग चल रहा है, यहां हरिनामेव केवलम ही आधार है I तब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना प्रारंभ करते हैं I इसके पश्चात हमें यह भी पता चलता है कि स्वयं भगवान कृष्ण 500 वर्ष पूर्व स्वयं ही श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में इस धरा धाम पर पधारे थे और, उन्होंने इस हरि नाम संकीर्तन जो इस कलयुग का युग धर्म है, इसकी स्थापना की I जो भाग्यवान जीव हैं, वे इस गौड़ीय वैष्णव गुरु परंपरा से जुड़ते हैं और इस हरिनाम को स्वीकार करते हैं I भगवान ने हमें भाग्यवान बनाया I
इस प्रकार से हम एक आध्यात्मिक गुरु की शरण लेते हैं I जब हम उनकी शरण लेते हैं तब हम यह संकल्प लेते हैं कि अब हम नियमित रूप से प्रतिदिन कम से कम 16 माला का जप अवश्य करेंगे I जब प्रातः काल का ब्रह्म मुहूर्त का समय होता है उस समय हमें एक स्थान पर बैठकर इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए ,इसके अतिरिक्त कोई अन्य कार्य करना उस समय करने योग्य नहीं I हमें यह भी पता होना चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त के समय में जो जप किया जाता है वह सर्वोत्तम जप होता है I उस समय हम बहुत ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं I अतः हमें प्रातकाल जल्दी उठने के लिए जल्दी सोना चाहिए I जब आपको यह पता चलता है कि कल सुबह भी मुझे जप करना है और ध्यान पूर्वक जप करना है तो इसकी तैयारी आपको एक दिन पहले या उस रात्रि में करनी होती है I आपको यह सोचना चाहिए कि किस प्रकार से मेरे कल का जप सावधानीपूर्वक और ध्यान पूर्वक हो I
अतः आपको अपने कार्यकलाप उस प्रकार से करने चाहिए I इस प्रकार से प्रातः काल के समय जब हम उठते हैं ,तो आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर के अपना आसन बिछाइये , आसन सामान्य होना चाहिए, आसन पर बैठकर आपको जप करना चाहिए I आसन के कई अंश होते हैं उसमें आसपास का वातावरण भी सम्मिलित होता है I आप अन्य भक्तों के संग में बैठकर जप कर सकते हैं ,आप अपने विग्रह के समक्ष बैठकर जप कर सकते हैं , इस्कॉन मंदिर में या घरों में भी बैठ कर आप जप कर सकते हैं , जो आपके जप के अनुकूल हो I जब हम जप करते हैं तो उस समय हमें हमारी जिब्हा का प्रयोग करना चाहिए I श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि जप करते समय जिव्हा में कंपन होना चाहिए ,ध्वनि उत्पन्न होनी चाहिए, वो हमें मानसिक जप के लिए प्रोत्साहित नहीं करते I तो आपको अपनी जिव्हा से ठीक प्रकार से उच्चारण करते हुए जप करना चाहिए I इस प्रकार जब हम स्पष्ट रूप से हरिनाम का उच्चारण करते हैं तो यह हरिनाम हमारे कानों तक पहुंचता है और तब हम उसका श्रवण कर पाते हैं I कल हमने यह बताया था कि श्रवण करते समय हमारा मन उसमें संलग्न होना चाहिए I मन को पता होना चाहिए कि हम क्या श्रवण कर रहे हैं I जो भी बात हमारे कानों तक पहुंचती है, मन को उसे स्वीकार करना चाहिए , ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए I
इसका अर्थ यह होता है कि जब हम जप करते हैं तब हमारा मन जागृत होना चाहिए I मन यदि उस समय सो रहा होगा या अन्य बातों का चिंतन कर रहा होगा या एक प्रकार से जागृत स्थिति में नहीं होगा तो वह ठीक प्रकार से श्रवण नहीं कर सकता I हमें हमारे मन को अन्य सभी विचारों से मुक्त रखना चाहिए I जब हम इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करें और इस मंत्र की दिव्य ध्वनि हमारे कानों तक पहुंचे तो मन प्रतीक्षा कर रहा हो, कि कब यह मंत्र की ध्वनि सुनाई दे और कब मैं इसे ग्रहण करुं I मन को जागना चाहिए ताकि ध्यान पूर्वक हरे कृष्ण महामंत्र कर सके I अतः इस प्रकार से उस समय जप, श्रवण ,कीर्तन एक ही समय में संपन्न होता है I यहां पर जिव्हा एक तत्व है ,मन है ,और कान है , ये तीनों ही इसमें भागीदार होते हैं परंतु इसके साथ ही साथ एक अत्यंत आवश्यक तत्व है जो कि हमारे ध्यान पूर्वक जप में सहयोगी है और वह है बुद्धि I बुद्धि को उस समय कार्यशील रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बुद्धि उस समय निरीक्षण करती है, कि क्या सभी कार्य ठीक प्रकार से हो रहे हैं? क्या हमारा मन हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण कर रहा है अथवा नहीं ?
यह मन किसी अन्य स्थान पर तो नहीं चला गया अथवा क्या हम सो तो नहीं रहे ? तो यह सभी बातें हमें कौन बताएगा ? यह बुद्धि का कार्य है , जो इन सभी बातों को देखती हैं और निरीक्षण करती है इसलिए हमारी बुद्धि तीव्र होनी चाहिए जो इन सभी बातों का निरीक्षण कर सके और ध्यानपूर्वक श्रवण कर सके I इन सभी तत्वों के अलावा एक और है जिसे हमारे जप में सम्मिलित होना चाहिए, और वह है हमारी आत्मा I हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि जप करते समय हम हमारी आत्मा को भी उसने संलग्न करें I अर्थात जब हम इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रहे हैं उस समय आत्मा को इस हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण करना चाहिए I इस जप के द्वारा आत्मा को आहार मिलता है और आत्मा की पुष्टि होती हैI मन और आत्मा द्वारा अन्य की भी भागीदारी होती है I इस प्रकार से जो सर्किट है या जो परिपथ है वह पूरा होना चाहिए इसमें शॉर्टसर्किट नहीं होना चाहिए I जब हम जप प्रारंभ करते हैं तो एक प्रकार से जिव्हा जप करती है ,परंतु वास्तव में तो आत्मा ही है जो हरे कृष्ण महामंत्र का जप करती है I यदि किसी शरीर में आत्मा नहीं है तो जिव्हा जप नहीं कर सकती I
मन तो पहले से ही शरीर छोड़ चुका होता है यदि आत्मा नहीं है, यदि किसी के शरीर में आत्मा नहीं है तो जप करने का प्रश्न ही नहीं उठता I अतः आत्मा ही जप करती है और यह हरिनाम समस्त अंगों के माध्यम से होता हुआ पुनः आत्मा तक पहुंचता है, तब यह परिपथ पूरा होता है I इस प्रकार से आत्मा जप करती है, वह जिव्हा तक पहुँचता है , जिव्हा द्वारा उच्चारण किया जाता है वह कान तक पहुंचता है, कान उसका श्रवण करते हैं फिर वह मन तक पहुंचता है और मन पुनः आत्मा तक पहुंचIता है I इस संपूर्ण प्रक्रिया में जब यह हो रहा होता है तब बुद्धि का कार्य अत्यंत आवश्यक है I बुद्धि उस समय क्रियाशील रहनी चाहिए, यह उस समय निरीक्षण करती है कि क्या यह सब ठीक प्रकार से हो रहा है अथवा नहीं? इस प्रकार से बुद्धि साक्षी होती है कि परिपथ पूरा हो रहा है या नहीं ? और भगवान स्वयं भी साक्षी रहते हैं वे अनुमन्त रहते हैं I अतः हमें आत्मा के जप को पूरा आत्मा तक श्रवण करवाना है इस परिपथ को पूरा करना है और जब यह सर्किट या परिपथ पूर्ण होता तब इसे योग कहा जाता है और वह योग क्या है ? योग का वास्तविक अर्थ होता है आत्मा और परमात्मा का मिलन I
इस भक्ति के द्वारा यह आत्मा उस परमात्मा से मिलती है I यह भक्ति योग है यहां आत्मा जप करती है यह अत्यंत सूक्ष्म है यह तत्व ठीक प्रकार से आपको समझना चाहिए कि कैसे यह होता हैI सब कुछ इस भक्ति में सेवा द्वारा संपन्न होता है , हमारी आत्मा परमात्मा से मिलती है तब वह परमात्मा को प्रणाम करती है और उनसे प्रार्थना करती है I तो यहां मुख्य तत्व यह है कि हरिनाम के माध्यम से आत्मा परमात्मा से मिलती है और उनका मिलन होता है और वास्तव में तो हरिनाम स्वयं ही भगवान है I हमें सावधानीपूर्वक जप करना चाहिए I हमारे हृदय की गहराइयों में यह आभास होना चाहिए कि हमारी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो रहा है I अतः इस प्रकार से यह आत्मा सोचती है ,अनुभव करती है और कार्य करती है I हम सभी कहते हैं कि यह मन के कार्य हैं परंतु नहीं ,आत्मा इन सभी कार्यों को करती है , आत्मा की एक प्रकार से आध्यात्मिक इच्छा उत्पन्न होती है कुछ करने की, यह अंतरंग होता हैI
हमारा यह जो सूक्ष्म शरीर या अंतःकरण जिसने मन ,बुद्धि और अहंकार इसमें संलग्न होते हैं ,तो बुद्धि भी वहां उपस्थित होती है और हमारा जो मन है वह आध्यात्मिक विचारों से ओतप्रोत हो जाता है I अतः अब हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं I आज का उपसंहार यह है कि आज हमने यह संपूर्ण विधि आपको बताई कि किस प्रकार यह जप प्रारंभ होता है और किस प्रकार आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है I आपको इसका प्रयास करना चाहिए और प्रत्येक समय जब आप जप करते हैं तब आपको इसे अंगीकार करना चाहिए इसे स्वीकार करना चाहिए I हम सभी यह तो जानते हैं कि हमें जप करना चाहिए परंतु जप कैसे करना चाहिए यह हम नहीं जानते I इस कांफ्रेंस के माध्यम से हम अलग-अलग विषयों पर चर्चा करते हैं जो आपके जप में सहायक हैं और आज जो हमने चर्चा की ,वह आज के विचारों के लिए आहार है अतः आप इसे अंगीकार कीजिए, इस पर चिंतन कीजिए ,और अपने जीवन में उतारने का प्रयास कीजिए I
हरे कृष्ण !
हरि बोल !
निताई गौर प्रेमानंदे !!