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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
30 अगस्त 19
हरे कृष्ण
क्या आप भक्त मुझे सुन पा रहे हो, भारत के भक्तों के लिए यह समय अनुपयुक्त है जप के लिए, क्योंकि यह रात का समय है। भारत से अधिकतर भक्त हैं जो हमारे साथ अभी जप कर रहे हैं, साथ ही निमाई प्रभु भी हैं लंदन से, वे हमारे साथ जप कर रहे हैं। इसके साथ ही साथ यूक्रेन मिडल ईस्ट आदि जगहों से भी भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। इस कॉन्फ्रेंस की रिकॉर्डिंग कल सुबह भारतीय समय अनुसार वहां पर पुनः चलाई जाएगी। राधा प्रेम प्रभु जो कि दक्षिण अफ्रीका से है वे भी अभी हमारे साथ में जप कर रहे हैं। आप में से कुछ भक्तों के लिए यह समय उपयुक्त है जोकि भारत के अलावा अन्य देशों से है। लंबी यात्रा करने के पश्चात आज मैं चेक रिपब्लिक आया हूं, एक समय में इस देश को चेकोस्लोवाकिया कहते थे। अभी यह देश 2 देशों में बट गया है एक नाम है चेक रिपब्लिक और दूसरा स्लोवाकिया। मैं अभी चेक रिपब्लिक में हूं और राधा देश के समान यहां पर भी एक विशाल प्रोजेक्ट है। यहां गोशाला है, मंदिर है, फार्म है और यह भी ग्रामीण क्षेत्र है यह विशाल प्रोजेक्ट है और इसे कृष्ण ध्रुव के नाम से जाना जाता है। यहां पर आपके गुरु भाई और मेरे शिष्य वर्णाश्रम प्रभु हैं, जो यहां पर इसकी देखरेख करते हैं वे यहां पर पुन : वर्णाश्रम धर्म को स्थापित करने के लिए अत्यंत ही प्रयास कर रहे हैं।
श्रील प्रभुपाद वर्णाश्रम को स्थापित करना चाहते थे और एक समय प्रभुपाद जी ने कहा भी था मेरा अभी भी 50 प्रतिशत कार्य बाकी है, जब श्रील प्रभुपाद जी से पूछा गया की प्रभुपाद जी वह 50% कार्य क्या है, प्रभुपाद जी ने यही कहा कि मैं वर्णाश्रम स्थापित करना चाहता हूं। आज मैं आप सभी को यह बताना चाहता हूं और मुझको अत्यंत हर्ष हो रहा है आपको बताते समय की आज मैं कृष्ण ध्रुव जो हमारा फार्म हाउस है, जब मैं यहां पर पहुंचा तो यहां पर लगभग संपूर्ण यूरोप से जो 30 40 फार्म है, वहां के सभी लीडर जो कृषि और गोपालक में अग्रणी है सभी यहां पर आए और यहां पर हमारी एक बड़ी कॉन्फ्रेंस भी हुई।गौ रक्षा और कृषि पर इस्कॉन की मिनिस्ट्री भी है। यहां पर यह होता है कि प्रत्येक वर्ष जितने भी फार्म के लोग (जो कृषि करते हैं) यहां के भक्त 1वर्ष में एक फार्म पर जाते हैं और अगले वर्ष दूसरे फार्म पर जाते हैं और वहां पर इनकी कॉन्फ्रेंस होती है।
इस वर्ष ये सब यहां पर आए हैं और मुझे भी यह मौका मिला मैंने भी उन्हें कृषि और गौ रक्षा के ऊपर संबोधित किया। मैं अभी-अभी यहां पर आया हूं और यहां का प्रोजेक्ट अत्यंत ही विशाल है, मैं फिर कभी आप सभी को यहां के विशाल प्रोजेक्ट के बारे में बताऊंगा कि किस प्रकार से यहां पर कौन-कौन सी चीजें हैं। क्या आप सभी भक्त अपना जप कर रहे हैं? हम सभी से महाराज यह प्रश्न पूछ रहे हैं, वे कहते हैं कि आपने शपथ ली है प्रतिदिन जप करने की, अपना जप निरंतर चालू रखिए। आप अपना जप करते रहिए, जब मैं यहां पर आया वर्णाश्रम प्रभु ने मुझे बैठने के लिए एक कुर्सी अथवा उच्च आसन दिया। उन्होंने उस पर मुझे बिठाया, वे समझ रहे थे कि ये महाराज हैं और इसलिए भी इन्हें महाराज के समान एक उच्च आसन पर बैठना चाहिए। परंतु जब मैंने जप करना प्रारंभ किया तो मुझे वह सीट उपयुक्त नहीं लगी, क्योंकि जप करने के लिए उच्च सिंहासन पर बैठ कर जप करना ठीक नहीं है। वह अत्यंत ही भव्य सिंहासन था, वहां पर बैठकर जप करना (तृणादपि सुनीचेन) इसको चरितार्थ नहीं कर सकते, इसलिए जब मैंने जप करना प्रारंभ किया तो मैं उस सिंहासन से नीचे आ गया और मैं सामान्य आसन पर बैठकर जप करने लगा, क्योंकि इस प्रकार से हम स्वयं (तृणादपि सुनीचेन) इसके अनुरूप जप कर सकते हैं।
जप करने के लिए सिंघासन पर बैठना उपयुक्त नहीं था। आज पुनः मैं Chaitanya charitamrita सुन रहा था, चैतन्य चरितामृत मे, मैं यहश्रवण कर रहा था जब चैतन्य महाप्रभु वाराणसी में थे, उस समय उन्होंने वहां पर जो लीला संपन्न की उसका श्रवण कर रहा था, वाराणसी वासी जो मुख्य रूप से मायावादी हैं चैतन्य महाप्रभु के इस प्रकार जप कीर्तन नृत्य के विरुद्ध थे, और वे यह सोच रहे थे यह सन्यासी अत्यंत भावुक है। इस प्रकार से वह भावना को प्रकट कर रहा है वह ऐसा क्यों कर रहा है उसे तो धीर गंभीर होना चाहिए। एक समय चैतन्य महाप्रभु इन मायावादियों के गुरु (मायावादियों के अग्रणी प्रकाशानंद सरस्वती) मिले। जब वे प्रकाशानंद सरस्वती से मिले तो उन्होंने चैतन्य महाप्रभु को कहा कि आप तो एक सन्यासी हो आपको गंभीर होना चाहिए क्यों इस प्रकार कीर्तन नृत्य करते हो, आप भूमि पर लौटते हैं, रुदन करते हैं, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए, आपको अत्यंत गंभीर होना चाहिए। इस पर चैतन्य महाप्रभु ने अत्यंत विनम्रता के साथ उनको उत्तर दिया (लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने ऐसा नहीं कहा प्रकाशानंद सरस्वती को, परंतु वह कह सकते थे कि एक समय वह निमाई पंडित के नाम से जाने जाते थे जो अत्यंत ही विद्वान थे, चैतन्य महाप्रभु ने यह नहीं कहा कि मैं निमाई पंडित के नाम से जाना जाता था
वह ऐसा कह सकते थे) उनकी दीक्षा हुई गुरु महाराज ईश्वर पुरी से, जब उनकी दीक्षा हुई उसके बाद उनमें यह परिवर्तन हो गया। चैतन्य महाप्रभु कहने लगे कि मैं दीक्षा के पश्चात में बदल गया मेरे भीतर यह परिवर्तन होने लगा, आप भी यह परिवर्तन मुझ में देख सकते हैं कि मैं किस प्रकार कीर्तन रुदन नृत्य करता हूं और जब मैंने भी यह परिवर्तन देखा तो पुनःअपने गुरु महाराज के पास गया और मैंने उनसे पूछा ( किबा मंत्र दिला गोसाईं किबा तारे बल जपिते जपिते मंत्र करीला पागल) गुरु महाराज आपने मुझे यह कौन सा मंत्र दिया है और इस मंत्र में क्या बल है इसका जप करते-करते मैं पागल हो गया हूं, ऐसा मुझे भी लगता है और अन्य लोग भी ऐसा कहते हैं। मैं यह जप करते हुए पागल हो गया हूं इस प्रकार चैतन्य महाप्रभु यह बात प्रकाशानंद सरस्वती को बता रहे हैं। इसके पश्चात ईश्वर पुरी और चैतन्य महाप्रभु के मध्य में क्या अन्य वार्ताएं हुई वह आगे प्रकाशानंद सरस्वती को बताते हैं। चैतन्य महाप्रभु प्रकाशानंद सरस्वती को वह संवाद बताते हैं जो चैतन्य महाप्रभु और उनके गुरु महाराज ईश्वर पुरी के मध्य हुआ, चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि जब मैंने गुरु महाराज से इस प्रकार पूछा, गुरु महाराज ने मुझे उत्तर दिया कि हे निमाई तुम क्यों आश्चर्यचकित हो रहे हो इससे तुम में परिवर्तन हो रहा है यह परिवर्तन अत्यंत ही शुभ है और स्वाभाविक है।
तुम जब हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रहे हो, यह इस हरे कृष्ण महामंत्र का प्रभाव है जिसके परिणाम स्वरूप तुम में यह परिवर्तन हो रहा है। हरिनाम जप का जो रिजल्ट है वह तो वास्तव में यह परिवर्तन ही है जो तुम में अभी हो रहा है, चैतन्य महाप्रभु ने उनसे कहा कि गुरुदेव में क्या करूं अब स्वयं भी मैं अपने वश में नहीं हूं, हरिनाम मुझे अपने वश में करके रखता है। मैं जानबूझकर इस प्रकार से कीर्तन नृत्य रुदन अथवा भूमि पर लोटन नहीं करता हूं, यह सब अपने आप हो जाता है वास्तव में यह अपने आप नहीं होता है हरिनाम मुझसे यह करवा देता है, मुझे इसका पता भी नहीं रहता कि ऐसा कब होता है, वास्तव में तो यह अपने आप नहीं होता, हरि नाम के द्वारा होता है, क्योंकि हरिनाम स्वयं कृष्ण है। इस प्रकार कृष्ण हरिनाम के माध्यम से ऐसा करवाते हैं, चैतन्य महाप्रभु कहते हैं जैसे-जैसे जप करता हूं वैसे वैसे मेरे में यह परिवर्तन होता है। जब प्रकाशानंद सरस्वती ने चैतन्य महाप्रभु से यह सुना( चैतन्य महाप्रभु अत्यंत विनम्रता पूर्वक प्रकाशानंद सरस्वती को ये पूरा संवाद बता रहे थे) इससे प्रकाशानंद सरस्वती अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भी इस हरिनाम का जप करना प्रारंभ किया। सामान्यता मायावादी हरिनाम का जप नहीं करते और ऐसा कहा जाता है मायावादी कृष्ण अपराधी, उन्हें अपराधी समझा जाता है, और इसका कारण क्या है? मायावादी कृष्ण अपराधी इसलिए है क्योंकि कृष्ण के पवित्र नामों का जप नहीं करते, वे कृष्ण के नाम रूप गुण लीला आदि में इतनी श्रद्धा नहीं रखते हैं । वे समझते हैं
कि जो भगवान है वह तो ब्रह्म है जो एक श्वेत प्रकाश है, इस प्रकार से वे कृष्ण को समझ नहीं सकते कि भगवान के गुण रूप हैं। भगवान का क्या नाम है, इससे मायावादी अनभिज्ञ रहते हैं। इस प्रकार से जब प्रकाशानंद सरस्वती ने चैतन्य महाप्रभु से ये वचन सुने तो वे इससे अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने चैतन्य महाप्रभु को समर्पण कर दिया। वे चैतन्य महाप्रभु के इस संकीर्तन आंदोलन में सम्मिलित हो गए। प्रकाशानंद सरस्वती एक बहुत बड़े गुरु थे लगभग 60,000 उनके शिष्य थे और एक क्षण में चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें भक्त बना दिया और वह अपने सारे शिष्यों के साथ चैतन्य महाप्रभु के साथ इस संकीर्तन आंदोलन में सम्मिलित हो गए।उन्होंने महाप्रभु की शरण स्वीकार की जब ऐसा हुआ तब चैतन्य महाप्रभु पुनः वाराणसी आए अथवा जिस स्थान पर वे प्रकाशानंद सरस्वती से मिले थे वहां पुनःगए, अपने स्थान पर पाकर सभी ने चैतन्य महाप्रभु को स्वीकार किया और वह इससे अत्यंत प्रसन्न हुए और तब वाराणसी के प्रत्येक स्थान पर हरे कृष्ण महामंत्र का जप होने लगा। प्रारंभ में वहां पर “ओम ब्रह्मचैतन्या” इस प्रकार की ध्वनि होती थी परंतु अब वाराणसी हरे कृष्ण महामंत्र के जप के स्वर से गुंजायमान होने लगी। इस प्रकार से चैतन्य महाप्रभु ने प्रकाशानंद सरस्वती और उनके 60,000 शिष्यों को भक्त बना दिया। आज जप चर्चा को यहीं विराम देते हैं, मैं आशा करता हूं कि यहां पर जो तत्व था उसको आप समझे होंगे और अन्य किसी दिन पुनः जप चर्चा करके हरि नाम के विषय में चर्चा कर सकते हैं।
हरे कृष्ण
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
30TH AUGUST
MAYAVADI’S TOOK UP CHANTING!
Hare Krishna!
All are listening to me? There is Yugavatar prabhu?
Anyway this is an odd time for you to chant for devotees from India. Still we have 70 devotees chanting with us from India and also there is one prabhu from London and devotees from Ukraine and Middle East are there. So, this recording will be released later.
Radha Prem prabhu from South Africa Hare Krishna! This time is more convenient for some of you.
Travelling and travelling I have today reached which is this country? – Czech Republic which used to be Czechoslovakia 30 years back. Again, they have divided in two countries Czech Republic and Slovakia. Oh, here also like in Radhadesh we have the big land and farm and cows. This project here which is countryside in Czech Republic. We call it ‘Krishna Dhruv’.
Krishna Dhruv, the courtyard of Krishna or yard of Sri Krishna that’s the name of the project here and Varnashram Prabhu, your God brother and my God disciple his name is Varnashram and he is fine he is endeavouring very hard to establish varnashrama system here. Prabhupada wanted varnashram, to be established. We also hear that Prabhupada one fine day said 50% of the mission is yet to be complete. When asked what is that 50% of your mission? He had explained that he wanted to establish varnashram dharma.
I was glad to know and happy to announce to you all that, I think this is a coincidence that as I have arrived here in ‘Krishna Dhruv’ Farm at Czech Republic. Devotees from I don’t know with 20-30 temples or farms from all over ISKCON Europe, whatever ISKCON farm. ISKCON farm community leaders are in charge of the farming and cow protection, they have arrived here. So, there is a big conference here of all the farmers or devotees from the farm community. Infact, I was told ISKCON also has a ministry for cow protection and agriculture. So, they took this year they go from farm to farm, and this time they have come to this farm in Czech Republic. So, I will also have the opportunity to associate with them or interact with them. Hari Hari!
Gaur Premananda Hari Hari Bol! I have just arrived I will talk more about what are the aspects of the project here during our following sessions, I may talk. But talking of the chanting, I hope you are all continuing your chanting, you all have taken a vow of chanting every day.
As another thing, your varnashram Prabhu offered me a big chair. Bamboo decorative grand chair. If at all I am Maharaj so I should be offered a Maharaj like big chair. I was sitting and chanting. I can think much better, and I was sitting & also chanting, sitting & chanting on chair like this. It was not ‘trinadapi sunichen tarorapi sahishnuna amanina manden kirtaniya sada Hari’.
I am holding humble position exalted elevated position or seat. I came down to chant with you on more modest lower seat to maintain trinadapi sunichen
position for the situation.
Today I was hearing again from Chaitanya charitamrita about Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu.
Chaitanya Mahaprabhu was in Varanasi. Varanasi was is specially Mayavadis of Varanasi. They were critical of Chaitanya Mahaprabhu’s chanting and dancing and they thought this is the display of His emotions and sentimentalities. Why is He doing this, that was a long episode then as Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu had encountered with Prakashanand Saraswati these are all the Mayavadies and the other maya followers were also there. When they also asked, You are a Sanyasi You should be grave and serious person, but why are You laughing and crying, rolling on the ground and all this execution of Your emotions this is not proper on Your part to do. In response to such criticism Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu humbly replied. He didn’t say that He could have said, that He was one time known as Nimai Pandit a big scholar and it was very grave and serious but then as He was initiated by His Guru Maharaj Ishwar Puri and was asked to chant the holy names of the God and from then onwards Chaitanya Mahaprabhu is now talking to Prakashanand Saraswati and his followers, and from then onwards I was a changed person! yes one time I was serious and grave person, sober looking as Nimai Pandit but when I took to chanting of ‘Hare Krishna’, something changed within Me there was a big transformation and that is what you are seeing. You are not happy about this? Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu said, you know I Myself went to My Guru Maharaj and asked him what has happened to me?
kiba mantra dila gosai kiba tare Bal japite japite japite mantra karil pagal,
from the time you have asked Me to do this japa mantra meditation, chanting ‘Hare Krishna’ I am a changed person and I have gone mad I don’t think so but others say I am mad so why has this happened to Me?
He is asking to His Guru Maharaj and He is saying that dialogue between Chaitanya Mahaprabhu and Ishwar Puri. Then whatever dialogue happened between them, that He explains to Prakashanand Saraswati, that japeete japeete what kind of Mantra? So much is the power of this Mantra that this is what is happening to Me. It is beyond My control and then Chaitanya Mahaprabhu is now talking to Prakashanand Saraswati but His talk is based on His dialogue with His Guru maharaj and He said His Guru Maharaj said why are You surprised Nimai?
What is happening to You is all good. Well done! I am very happy with the outcome of Your chanting of Your mantra
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
This is exactly the desired result or the outcome of the chanting. This is what chanting does to the chanter. Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu is having a dialogue with Prakashanand Saraswati & he further explains now whatever happens to Me during chanting, it is not Me, it is beyond My control. The holy name tackles, handles Me and I just act accordingly. I don’t do the crying or laughing or rolling on the ground all this Madness I don’t do this knowingly. I don’t plan on doing this but this happens. This happens automatically, but nothing is automatic, this is caused by the holy name of the Lord and the holy name of the Lord is Krishna so He said this is caused by Krishna.
Krishna is the cause of all that happens to Me as I chant Hare Krishna Hare Krishna. So, then Prakashanand Saraswati the big leader of thousands of his followers, he was pleased with Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu response and then they also took to the chanting. The Mayavadi’s are considered, Mayavadi Krishna apradhi. Mayavadi are known as big apraadhis, big offenders. Why are they apradhis? Why are they offenders? Because they do not believe have faith have no understanding of Krishna’s name, Krishna’s form, Krishna’s qualities, Krishna’s pastimes. Yes yes! God exists, God exists & He is the light, He is the effulgence, He is the Brahmand. But they do not accept Krishna as He is. Fully Poornam complete by His form, pastime, qualities, & the name He has. As they heard Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu explaining this, they were fully convinced. So, they became personalists and surrender unto Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu and they joined Chaitanya Mahaprabhu’s sankirtan. And this way I think Prakashanand Saraswati a big Guru near something 60000 followers so in one instance in one sitting Shri Krishna Chaitanya Mahaprabhu converted them all and Chaitanya Mahaprabhu’s movement was embraced by them and his followers.
Following in priest as the holy name of the lord had reached Varanasi and was accepted by the Varanasi folks and then all over Varanasi there was chanting and dancing and everywhere. There was ‘Hare Krishna’. Prior there was ‘aham bramhasmi, this and that, and these names ‘Om Shanti’ but now it was
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
everywhere.
We will stop here. We need to get ready for the evening program maybe you can confirm it.
Hare Krishna
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
29 अगस्त 2019
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
हरि नाम प्रभु की जय!
आज की जप चर्चा, यह संभवतः कल सुबह भारत मैं इसका उपयोग होगा। तो अकिंचन भक्त आपको इसके विषय में बता देंगे और जब भी होगा वे इसे भारत के समय अनुसार चला देंगे तो आज इस कॉन्फ्रेंस में 85 भक्त हैं, जो अभी हमारे साथ जप कर रहे हैं। हमें इतने अधिक भक्तों की आज उम्मीद नहीं थी, क्योंकि मॉरिशस और भारत में अभी देर रात का समय है। तो आप सभी जप पर्सन है। आप दिन के समय भी जप करते हैं और आप रात्रि में भी जप कर रहे हैं। स्मरण न काल: अर्थात जप मैं कोई नियम नहीं है, किसी समय का अथवा उसका स्मरण करने का कोई नियम नहीं है। इसलिए आप सदैव जप कीजिए। वैसे प्रातः काल के समय जप करना सबसे उत्तम होता है ।परंतु आप दिन के समय या रात्रि के समय भी जप कर सकते हैं। जब हम जप करते हैं तो एक प्रकार से यह समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग है। आज यहां पर राधा देश में जब मैं भागवतम कक्षा दे रहा था। तो मैं आपको बताना भूल गया मैं अभी बेल्जियम में हूं। और यहां का जो मंदिर है, उसे राधादेश कहते हैं। यह मंदिर संपूर्ण विश्व में अत्यंत प्रसिद्ध है। राधा देश अर्थात यह राधा का देश है।
यह मंदिर एक प्रकार से ग्रामीण क्षेत्र में बना हुआ है। और यहां पर एक “कैसल” एक इमारत है जो कि एक किलेनुमा अत्यंत ही शक्तिशाली इमारत है। जो यहां का प्रमुख आकर्षण है। एक समय यह इमारत यहां की सेना के द्वारा उपयोग में ली जाती थी। परंतु पिछले 40 वर्षों से ये इस्कॉन के अंडर है। अभी इस्कॉन के भक्त इसकी देखभाल कर रहे हैं। यह अत्यंत प्रसिद्ध इमारत है, इस इमारत को देखने के लिए यंहा गाड़िया ओर बस भर भर कर आती हैं। इस प्रकार से जब बेल्जियम वासी यहां आते हैं तो हमारे इस्कॉन के भक्त उन्हें वह इमारत दिखाते हैं जो प्रसिद्ध है। ओर साथ ही साथ वे राधा गोपीनाथ मंदिर के दर्शन भी कराते हैं। उन्हें वे म्यूजिक दिखाते हैं। और उन्हें भरतनाट्यम भी दिखाते हैं, यहां जो भी दल आता है। वह भरतनाट्यम प्रतिदिन देखता है, साथ ही साथ यहां एक बहुत बड़ा गिफ्ट शॉप भी है जहां पर आपको चांदनी चौक, लुई बाजार इत्यादि जो भारत के प्रमुख स्थान है। वहां जैसे उपहार आपको यहां भी मिल सकते हैं। इसके साथ ही यहां पर एक छोटी सी सुंदर गौशाला है हमारे नागपुर के गौरहरि प्रभु गोशाला की देखरेख करते हैं । यहां पर गोविंदा रेस्टोरेंट भी है तो जब मैंने देखा कि बेल्जियम वासी बस में भरकर यहां पर आए और उन्होंने अत्यंत स्वादिष्ट प्रसाद यहां पर पाया इसमें इस्कोन बुलैटअर्थात गुलाबजामुन भी थे। इस्कॉन बुलेट के माध्यम से हमारे इस्कोन के भक्त इन बेल्जियम वासियों की दानवी चेतना, राक्षसी प्रवृति (हमारे भीतर जो प्रमुख गुण है)
उसका वह वध कर रहे थे। जो यहां के निवासी हैं, वो ये प्रसाद पाकर अत्यंत प्रसन्न थे।उनके लिए शाकाहारी भोजन का अर्थ होता है, सलाद और उबला आलू बस इतना ही परंतु जो यहां पर भक्त हैं, वे उन्हें शाकाहारी भोजन किस प्रकार बनाया जाता है, वह भी उन्हें सिखाते हैं। जब मैं अमेरिका में था, उस समय यहां पर यूथ प्रीचिंग हो रही थी, जो युवा है उनको प्रचार किया जाता है और जब वे कॉलेज में जाकर के प्रचार कर रहे थे । यहां पर प्रचार करते समय प्रेजेंटेशन को बीच मे रोककर शाकाहारी व्यंजन बनाना भी सिखाते हैं। इस प्रकार से कई व्यक्ति शाकाहारी बन रहे हैं और इसका श्रेय इसकोन को भी जाता है। इस प्रकार अमेरिका में जब मैं रुक्मणी द्वारिकाधीश मंदिर में था जब हम वहां पर जन्माष्टमी मना रहे थे, उस समय भगवान को 1008 भोग लगाए गए और भोग अलग अलग प्रकार के थे। इस प्रकार से इतने अधिक भोग बनाए गए कि जो उनका दर्शन करने के लिए वहां आए, जो वहां के नगरवासी थे, वे इससे एक प्रकार से आश्चर्यचकित थे। इस प्रकार से पश्चिम के लोग शाकाहारी बन रहे हैं, इस प्रकार हरे कृष्ण भक्त यहां के निवासियों को शाकाहारी बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
प्रत्येक रविवार को यहां पर वे उन्हें प्रसाद उपलब्ध कराते हैं जो पूर्ण रूप से शाकाहारी होता है और इसके साथ ही साथ गोविंदास रेस्टोरेंट वहां पर आकर भी वह इस स्वाद का आस्वादन कर सकते हैं। हरे कृष्ण भक्त उन्हें जो प्रसाद उपलब्ध करवाते हैं वह केवल शाकाहारी ही नहीं होता है परंतु वह प्रसाद कृष्णमय होता है। वह केवल वेजिटेरियन ही नहीं है कृष्ण टेरियन भी है। वहां पर राधा देश में एक कॉलेज है जिसका नाम है भक्ति वेदांत कॉलेज यहां पर कई प्रकार के कोर्स करवाए जाते हैं, अभी-अभी यहां पर कीर्तन क्लास चल रही थी, जो अभी-अभी कुछ समय पहले ही समाप्त हुई है। यहां सुरभि माताजी है जो आप सभी की गुरु बहन है वह अत्यंत थी सुंदर बांसुरी बजाती हैं, वहां पर कॉलेज में बांसुरी नहीं सिखाती हैं, परंतु वह यहां करताल सिखाती हैं। वह करताल में अत्यंत ही निपुण है और एक प्रकार से कहे तो माताजी करताल मास्टर हैं।
करताल बजाना भी एक कला है, हर कोई निपुणता के साथ में करताल नहीं बजा सकता। यहां पर उन्होंने करताल बजाना सिखाया, सुरभी माताजी मालती माताजी की पुत्री हैं और उन्हीं के घर पर आज मैं ये जप कॉन्फ्रेंस कर रहा हूं। इसके साथ ही साथ भक्तिवेदांत कॉलेज में भक्ति शास्त्री आदि कई कोर्स भी करवाए जाते हैं, यहां पर वर्ष में एक बार कीर्तन मेला होता है। वर्ष में एक बार तीन चार दिन का कीर्तन मेला होता है । उसे राधादेश मेलोज
के नाम से यहां जाना जाता है ओर इस कीर्तन मेले में लगभग यूरोपीय देशों से कई भक्त आते हैं।
उसमे विशेष रूप से युवा भी इसके प्रति अत्यंत आकर्षित रहते हैं। सचिनंदन महाराज भी इसमें सम्मिलित होते हैं, और उनको भी यहां से इस राधादेश मेला में आने के लिए आमंत्रण मिलता है, ये मुझे भी आमंत्रित करते हैं। कीर्तन मेला में यहां पर ठंड होती है, मेरे लिए यह संभव नहीं हो पाता, कि मैं इसमें सम्मिलित हूं। लेकिन फिर भी यहां के भक्त मुझे इस कीर्तन मेले में सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रण भेजते हैं। राधा देश का प्रोजेक्ट अत्यंत ही विशाल है, यह अत्यंत ही सुंदर प्रोजेक्ट है। अभी मैं यहां राधा देश में हूं और कुछ दिन में यहां पर रहूंगा। मैं यहां राधा देश के भक्तों से मिलने के लिए आया हूं, और उनसे मैं मिल रहा हूं। साथ ही साथ राधा देश में होलैंड से जो बेल्जियम के नजदीक ही है (इन दोनों की सीमाएं) आपस में मिलती हैं वहां से और भी कई स्थानों के भक्त मुझसे मिलने के लिए आए हैं।
हॉलैंड में मेरे कुछ शिष्य हैं और वहां पर कुछ ऐसे भी भक्त हैं जो कि इंस्पायर्ड हैं, वे सब भी यहां पर राधा देश में मुझसे मिलने के लिए आये हैं क्योंकि मैं वहां पर नहीं जा सकता हूं। इस समय मेरा वहां पर जाने का प्रोग्राम नहीं है, इसलिए वे सभी यहां पर आ रहे हैं। मैं यहां पर उन सभी के साथ समय व्यतीत कर रहा हूं और उनसे मिल रहा हूं और अगले 1 घंटे में यहां पर भी कीर्तन होगा।
जब राधा गोपीनाथ शयन करने के लिए जाते हैं तो यंहा के पुजारी राधा गोपीनाथ का श्रृंगार चेंज करते हैं। उनको जब रात्रि शयन की पोशाक पहनाई जाती है और उनका श्रृंगार करवाया जाता है, तब भक्त यहां पर बैठकर कीर्तन करते हैं। और भगवान जब शयन करने के लिए जाते हैं, उस समय यहां पर कीर्तन चलता है। वे भजन गाते हैं और हरे कृष्ण का कीर्तन करते हैं। आज भगवान के लिये मैं कीर्तन करूँगा, और अगले एक घंटे में कीर्तन प्रारम्भ होने वाला है। और मैं देख रहा हूं कि यह जप चर्चा रात्रि के समय शुरू हुई थी और मैं देख रहा हूं कि आप में से कई भक्त अभी सो रहे हैं। मनुप्रिया माता जी आप नही सो रही हैं, कई भक्त हैं जो अभी उबासी ले रहे हैं और उन्हें नींद आ रही है, आप सब अब रेस्ट कर सकते हैं। भारत में यह रात्रि का समय हो रहा है। इस प्रकार आप सदैव जप करते रहिए, इस जप चर्चा को हम यहीं पर विराम देते हैं और आज की यह जप चर्चा भारतीय समय अनुसार चलाई जाएगी। हम इस चर्चा को यहीं पर विराम देते हैं।
हरे कृष्ण
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।।
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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
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२८ अगस्त २०१९
जप चर्चा
आज हमारे साथ 85 प्रतिभागी हैं। मैं इसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था, क्योंकि भारत और मॉरीशस के लिए यह समय देर रात का है। आप दिन में जप कर चुके होंगे और अब देर रात में जप कर रहे हैं।
स्मरणेन कालह
जप के लिए कोई बहुत कठिन नियम नहीं है। मैं हमेशा जप करता हूँ लेकिन सुबह जप करने का सबसे अच्छा समय होता है। शुभ मुहूर्त है, जप और श्रवण करने के लिए सुबह का समय बहुत शुभ होता है।
राधादेश में आज सुबह भागवतम कक्षा के दौरान, (जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं यहाँ बेल्जियम में हूँ। इसे राधा का देश कहा जाता है और यहां विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यह राधा का देश है, यहाँ एक बड़ी इमारत है, इसे किला या महल कहा जाता है, इस इमारत को महल कहा जाता है। लेकिन यह भारतीय महल की तरह नहीं है, यह एक अच्छी तरह से निर्मित मजबूत महल या इमारत है। एक समय यहाँ एक राजा था और उस समय के लिए यह सेना का अड्डा भी था। अब यह पिछले चालीस वर्षों से हरे कृष्ण के भक्तों के पास है और बहुत सारे आगंतुक यहाँ आते हैं।
हजारो लोग यहां आते हैं, यह ऐतिहासिक स्थान है, इसलिए लोग इसे देखने आते हैं। बेशक, हम उन्हें इमारत और उसके आस-पास के क्षेत्र तो दिखाते ही हैं, साथ साथ हम उन्हें राधा-गोपीनाथ के दर्शन कराते हैं। यहाँ पर एक संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है। हर दिन भरतनाट्यम करने के लिए कई समूह यहां आते हैं। यहां बड़ी बड़ी गिफ्ट की दुकाने है, और चांदनी चौक और लोई बाजार के कई आइटम राधा देश की गिफ्ट की दुकानो में मिलते हैं।
यहाँ अच्छी गोशाला भी है। नागपुर के गौरहरी यहाँ की गायों की अच्छे से देखभाल करते हैं। गोविंदा रेस्तरां भी है यहां पर, मैंने सुना है कि बहुत सारे बेल्जियम के लोग यहां आते हैं और प्रसाद पाते हैं। उनकी आसुरी मानसिकता को मारने के लिए इस्कॉन बुलेट यहां उपलब्ध हैं। इस्कॉन की गोलियां, गुलाब जामुन यहां उपलब्ध है। उन्हें इस बात का कोई अनुभव नहीं है कि शाकाहारी व्यंजन भी इतना स्वादिष्ठ पकाया जा सकता है। उन्हें लगता है कि शाकाहारी व्यंजनों का मतलब कुछ कच्ची सब्जियां और उबला हुआ आलू है। लेकिन अब कृष्ण भक्त इन सब शाकाहारी व्यंजनों को उनके सामने दर्शा रहे हैं। वहां पर उनके (आगंतुकों) लिए खाना पकाने की कक्षाएं भी चलाई जा रही हैं। अमेरिका में कॉलेज कैंपस में प्रचार के दौरान बीच में यह भी बताया जाता है कि कैसे चपातियों को पकाया जाता है।
सभी को ये आसान नही दिखता है वो चपातियों को फूलते हुए देखकर चकित होते हैं वे प्रसन्न होते हैं, और उन वस्तुओं को खाते हैं। कभी-कभी हमारे रुक्मिणी-द्वारकाधीश मंदिर में (जो अमेरिका में बहुत ही भव्य मंदिर है), मुझे बताया गया था कि वे 1108 भोग तैयार करते हैं। सभी शाकाहारी व्यंजनों को जन्माष्टमी पर आये हुए आगंतुक प्रसाद के रूप में पाते हैं और वे 1000 से भी अधिक व्यंजनों की तैयारी देख कर शाकाहार के लिए प्रेरित होते हैं अब पश्चिम के बहुत से लोग शाकाहारी बन रहे हैं।
इस प्रकार वे समझते हैं कि शाकाहारी बनने के बहुत फायदे हैं। हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते हैं कि हरे कृष्ण मंदिरों के उत्सव, रविवार का फीस्ट और प्रसादम, गोविंदा के रेस्तरां, इस्कॉन शाकाहारी रसोई की किताबें और खाना पकाने की कक्षाएं ही प्रमुख कारक हैं, लोगो के शाकाहारी बनने के, इस्कॉन को लोगों को सात्विक और शाकाहारी बनाने का श्रेय जाता है। बेशक, हमारे भोजन शाकाहारी ही नहीं,अपितु वे कृष्णटेरियन हैं।
मुझे पता चला, यहाँ राधादेश का भक्तिवेदांत कॉलेज भी है। वे बहुत सारे कोर्स पढ़ाते हैं। कुछ पाठ्यक्रम अभी-अभी पूरे हुए हैं। हमारे यहाँ सुरभि(माताजी) पढ़ाती है? मैंने पूछा कि आप क्या सिखाते हैं? उसने कहा कि उसने किसी को नहीं पढ़ाया है लेकिन वह करताल बजाती है। वह करताल बजाना जानती है। वह एक एक्सपर्ट करताल वादक है। वह ऑनलाइन क्लासेस भी देती है। करताल बजाना भी एक कला है। एक्सपर्ट करताल वादक बहुत दुर्लभ हैं। वह माधवी माताजी की बेटी है, आप लोगो की गॉड सिस्टर है।
उनके पास भक्तिवेदांत कॉलेज में भक्ति-शास्त्री पाठ्यक्रम और विभिन्न पाठ्यक्रम भी हैं। उनके पास कीर्तन की टीम हैं “राधेश- मेलोज़”। वर्ष में एक बार उनके यहाँ बड़े कीर्तन मेला या “राधे देश कीर्तन मेला” होते हैं। यहां पूरे यूरोप से चार दिन, कई यूरोपीय देशों के भक्त और बहुत सारे युवा आते हैं। सचिनंदन महाराज भी आते हैं। वे मुझे भी आमंत्रित कर रहे हैं। लेकिन वहाँ कीर्तन मेला ठंडी में है। यह मेरे लिए काम नहीं कर सकता है। वे मुझे “राधेश मेलोज़” में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे थे। राधादेश इस्कॉन की एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित परियोजना है। मैं इस समुदाय के भक्तों से मिलने के लिए कुछ दिनों के लिए यहां हूं।
रॉटरडैम और हॉलैंड से भक्त यहां आए हैं। हॉलैंड , बेल्जियम का पड़ोसी है। हॉलैंड और बेल्जियम सीमा का साझा करते हैं। उसी तरीके से एम्स्टर्डम भी पड़ोसी देश हैं। हॉलैंड में कई शिष्य हैं। मैं हॉलैंड नहीं जा रहा हूं, इसलिए वे मुझे मिलने आए हैं। उसी की तरह, हम राधेदेश के भक्तों के साथ हैं। एक घंटे के समय में कीर्तन मेला होता है, श्री श्री राधा-गोपीनाथ यहाँ के सुंदर से विग्रह हैं। वे मध्यम साइज के विग्रह हैं, हर दिन उन्हें कपड़े पहनाए जाते हैं। वे रात में तैयार होते हैं और भक्त कीर्तन करते हैं। मेरा मतलब है कि उन्हें आराम करने के लिए वस्त्र बदले जाते हैं तब कीर्तन कियाजाता है। उन्हें बिस्तर पर ले जाते समय ‘हरे कृष्ण’ का जप करते हैं, इसलिए आज रात मैं उनके लिए कीर्तन करूंगा और उनके भक्त भी कीर्तन करेंगे।
आपको अब आराम करना चाहिए। मैं देख सकता हूँ आप में से कुछ लोग जम्हाई ले रहे हैं। So keep chanting…….
में यहां पर रुकूंगा, यह एक सत्र के लिए पर्याप्त है।
शुभ रात्रि
गुड नाईट
हरे कृष्ण!!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
28TH AUGUST 2019
GLORIES OF RADHADESH
We have 85 participants. I wasn’t expecting this much also as this is late night in India and Mauritius. You have been chanting during day and now chanting at night. smaranen kalaha. There are no hard and fast rules for chanting. I used to chant always but morning is the best time to chant. It is auspicious time. The time factor is made auspicious as you chant and hear.
During Bhagavatam class this morning in Radhadesh, as I mentioned to you that I am here in Belgium. This is called as Radhadesh & here is world famous temple. This is Radha’s country, Radha’s desh. There is big property here also & it is called fort or castle. This building is called as castle. But not like Indian castle. It is a well-built strong castle or building. There was one king here one time & it was army base also for some time. Now it is in possession of ‘Hare Krishna’ devotees for past forty years & there are lots of visitors. Busloads of people come here. It is the historical location & building, so people come to see the building. Of course, we show them around the building and the surroundings. We show them Radha-Gopinath & there is museum hear. There is a lot of culture on display. Many groups come here to perform Bharatanatyam every day. There is big gift shop, and so many items from Chandni Chowk and Loi Bazar are found here in gift shop of Radhadesh.
Here is also nice goshala. Gaurhari from Nagpur takes good care of the cows here. There is also Govinda’s restaurant. I heard a lot of Belgianians come in bus loads and have Prasad over here. ISKCON bullets are available here to kill their demoniac mentality. ISKCON bullets, Gulab Jamuns are available here. They have no experience of what all vegetarian dishes can be cooked. They think ok vegetarian dishes means some raw vegetables and boil potatoes. Ho Gaya aur Kya? But now Krishna devotees are making presentations. Some places they also have cooking classes. In America in college campus they preached to the youth & middle of the preaching there is demonstration of how to cook chapatis. It’s not easy as one thinks. That puffs up. chapati puffs. They are amazed to see how they cook; they are pleased and eat those items. Sometimes in our Rukmini-Dwarkadhish temple which is very opulent temple in America, I was told they cook 1108 preparations. All vegetarian preparations. They are on display & visitors come on Janmashtami & they see 1000 & more, & each one a different preparation. Now lot of people in the west are becoming vegetarians. There may be so many factors why people are becoming vegetarians. However, the fact can’t be denied that ‘Hare Krishna’ devotees & their serving Sunday feast & prasadam on all occasion & there are Govinda’s restaurants & ISKCON vegetarian cookbooks, and cooking classes all these are major factors. ISKCON gets the credit of people turning around and becoming vegetarians. Going for vegetarian meals. Of course, our meals are not vegetarian, they are Krishnaterian.
I found out, here there is also Bhaktivedanta college in Radhadesh. They teach a lot of courses. Some course they have just finished. We have Surabhi teaching here? I asked what do you teach? She said she did not teach anybody but she is a karatal player. She knows how to play kartals. She is a karatal master. She gives classes online. It’s an art to play kartals. Expert karatal players are rare. She is one of your God-sisters, daughter of Madhavi mataji.
They also have Bhakti-shastri course & different courses here in Bhaktivedanta college. They have Kirtan Mellows “Radhadesh- Mellows”. Once a year they have big kirtan mela or ” Radhadesh Mellows”. Here four days devotees from all over Europe, devotees from many European countries and lots of youth come here. Sachinandan maharaj also comes. They are inviting me also. But there kirtan Mellows is in the middle of freezing cold. It may not work out for me. They were kindly inviting me, to attend “Radhadesh Mellows”. So, like that Radhadesh is a very important prestigious project of ISKCON. I am here for a few days, to meet the devotees of this community. Devotees have come from Rotterdam & Holland. Holland is a next-door neighbour. Holland & Belgium they share the borders. Amsterdam, Rotterdam like that. There are many disciples in Holland. I am not going to Holland, so they have come to see me. Like that, we are with the devotees at Radhadesh. There is a Kirtan Mela in one hours’ time.
Radha-Gopinath are the deities here & they are beautiful. Medium size Radha-Gopinath. Every day they are dressed. They are dressed at night & devotees sing. I mean they are put to rest & they sing songs. Chant ‘Hare Krishna’ for putting them to bed. So tonight, I will sing for them & their devotees also.
You should take a rest now. I can see some of you are yawning. I could see, some others are yawning. So, keep chanting. I will stop here, this is enough for one session.
Shubharatri! Good night!
Hare Krishna
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
26th अगस्त 2019
इस भारत देश में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो जिक्र किया था, वो भविष्यवाणी सत्य हुई, और आज के ही दिन भगवान गौरांग श्रील प्रभुपाद को इस धरा पर लाये
श्रील प्रभुपाद की जय!
कृष्ण के जन्मदिन के ठीक एक दिन बाद……. कृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने अगले दिन ही श्रील प्रभुपाद को इस धरती पर भेजा, मुझे लगता है यह मात्र कोई संयोग नहीं हो सकता, अपितु यह भगवान की व्यवस्था है। वे(श्रील प्रभुपाद) श्री कृष्ण चैतन्य या श्री कृष्ण के बहुत प्रिय हैं। भगवान के जन्मदिन के तुरंत बाद, प्रभुपाद का जन्मदिन हुआ। जिस दिन, श्रील प्रभुपाद पैदा हुए थे, उसे नंदोत्सव भी कहा जाता है। जिस दिन नंद महाराज ने कृष्ण जन्माष्टमी मनाई। इसलिए, श्रील प्रभुपाद का आना और उनको सेनापति भक्त बनाना, यह सब भगवान की ही व्यवस्था थी, वह संकीर्तन के सेना प्रमुख बन गये। जैसा कि मैंने कहा कि सेनापति भक्त, श्रील प्रभुपाद सेनापति की भांति जलदूत पर सवार हो गये, दूत का अर्थ है संदेशवाहक। मैं कहता हूं कि वह कृष्णदूत, श्रीकृष्ण के दूत या गौरांग के दूत की तरह नाव पर सवार थे और यह सेनापति भक्त का एक लक्ष्य था, उन्होंने न्यूयॉर्क को अपना निशाना बनाया, जो कि कलयुग की राजधानी है या कली की राजधानी – न्यूयॉर्क। जब वह पहुंचे तो रास्ते में कई चीजें हुईं।
मुझे यह(महाराज जी अपने माला की ओर इशारा करते हुए ) माला आज ही मिली। लेकिन जब प्रभुपाद न्यूयॉर्क पहुंचे तो कोई भी उन्हें लेने वाला नहीं था। वो नहीं जानते थे कि दाएं मुड़ना है या बाएं, होटल की कोई बुकिंग नहीं थी। ज्यादा पैसा हाथ में नहीं था, केवल पाँच डॉलर, जो न्यूयॉर्क में केवल पाँच मिनट तक गुजारा करने के लिए पर्याप्त हैं। सत्तर साल की उम्र में, वह बिना पैसे के (वो एक गरीब इंसान थे) लेकिन मैं कहता हूं कि वह सबसे अमीर व्यक्ति थे, क्योंकि वह पवित्र भगवान के नाम का धन ले कर आये थे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
हरिनाम धन और ऐसा भी नही की उनका कोई दोस्त नही था, उनके साथ उनके सबसे अच्छे दोस्त श्री कृष्ण साथ थे, प्रभुपाद एक सेनापति भक्त है इसका मतलब है कि उनके पास बम भी होने चाहिए, इसलिए उनकी किताबें टाइम बम बन गईं, और उनके पास मंदिर थे, उनके पास मंदिर कमांडर थे और गोलियां भी थीं। इस्कॉन की गोलियां अस्तित्व में आईं सेना, सेनापति, गोलियां ये सब सुनकर ऐसा लगता है किसी जंग की बाते हो रही हैं।
प्रभुपाद ने कहा कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु पूरे भारत में पवित्र हरिनाम लाये और अब पूरी दुनिया के बचे हुए हिस्से मे यह पवित्र भगवान का नाम, हरे कृष्ण महामंत्र का प्रचार अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ के लिए छोडा है। वे इस्कॉन के संस्थापक आचार्य बने। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी को सच करने के लिए यात्रा की।
यदि गौर न होइते…. दुनिया को पवित्र नाम नहीं मिला होता यदि प्रभुपाद न होइते, अगर प्रभुपाद इस दिन प्रकट नहीं होते, तो पवित्र नाम दुनिया के बाकी हिस्सों में नहीं पहुंचा होता।
कल हमारे पास बहुत सारे भक्त थे, कृष्ण के भक्त…. लेकिन मुझे लगता है कि जो लोग प्रभुपाद के व्यास पूजा महोत्सव को मनाने के लिए यहां पहुंच रहे हैं, वे असली भक्त हैं।
अगर कोई अपना परिचय ऐसे देता है कि भगवान मैं आपका भक्त हूँ। यह अच्छा है!!…लेकिन अगर हम अपना परिचय दे सकें, कि हे भगवन! मैं आपके भक्त का भक्त हूँ , तब भगवान कहते हैं कि तुम मेरे असली भक्त हो। कल जो कृष्ण के भक्त थे वो आज कृष्ण के भक्त के भक्त हैं। प्रभुपाद प्राकट्य दिवस के उपलक्ष में जो लोग मौजूद हैं और भाग ले रहे हैं, वे असली भक्त हैं। वे कृष्ण के प्रिय हैं। श्रील प्रभुपाद से एक बार रिपोर्टर ने पूछा था, स्वामीजी, आप हमारे देश इंग्लैंड क्यों आए हैं? प्रभुपाद ने उत्तर दिया, ‘आप भी हमारे देश भारत आए और आपने और आपके वायसराय ने जो भी मूल्यवान समझा था, वो सभी चोरी कर रहे थे और इंग्लैंड ला रहे थे। चाहे वह रेशम या मसाले हो या कोहिनूर का हीरा, कोहिनूर नामक हीरा जो लंदन संग्रहालय मे रखा है, आपने इसे चुरा लिया। लेकिन इन सबके बीच आप वास्तव में भारत की सबसे मूल्यवान वस्तुओं को भूल गए , वो क्या है? भारत की संस्कृति। और क्या? – भगवद-गीता और भागवतम की शिक्षाएँ। और क्या? भगवान का पवित्र नाम…..कुछ ऐसा जो आपके वाइसराय ने पीछे छोड़ दिया है, उसी की होम डिलीवरी देने आया हूँ।
1977 के कुंभ-मेले में भक्त बात कर रहे थे कि कैसे ब्रिटिश साम्राज्य चारों तरफ फैल गया था और अब यह कहाँ है?
एक प्रसिद्ध कथन है, कि ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता ‘और प्रभुपाद ने कहा,’ लेकिन इंग्लैंड में सूरज कभी नहीं उगता है। ‘लेकिन अब इस्कॉन साम्राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता है। सुबह की आरती, शाम की आरती, पुस्तक वितरण, और हर तरफ प्रसाद वितरण किया जा रहा है, इसलिए अब इस्कॉन साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। पश्चिम और उत्तरी अमेरिका को जीतने(अर्थात प्रचार करने ) के बाद श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में आये। बॉम्बे प्रभुपाद का कार्यालय था और जैसा कि अधिकारी अपना बहुत समय कार्यालय में बिताते हैं, उसी प्रकार प्रभुपाद भी अपना बहुत समय बॉम्बे में बिताते थे।
हम बॉम्बे के मंदिर के ब्रह्मचारी थे। हमें सैकड़ो बार हवाईअड्डे पर प्रभुपाद को रिसीव करने का अवसर मिला था। मैंने एक पुस्तक लिखी है “बॉम्बे इज माई ऑफिस”, उस पुस्तक में मैने लिखा है कि, प्रभुपाद कितनी बार बॉम्बे पहुंचे और बंबई में एक साथ कितने हफ्तों और महीनों का समय बिताया। प्रभुपाद जहाँ से भी पहुँचते थे, हम एयरपोर्ट टर्मिनल में जाते थे और आपस मे बातें करते थे, कि प्रभुपाद ब्रिटिश एयरवेज द्वारा आ रहे हैं, वे उतरते हुए हवाई जहाजों को देख कर अनुमान लगाते थे कि प्रभुपाद इस हवाई जहाज में हैं, हमने अनुमान करने की कोशिश की, वह अब किस हवाई जहाज में है? तब प्रभुपाद एक हवाई जहाज से बाहर आते थे और हम उन्हें सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए देखते थे, और अपने हाथ में छड़ी लेकर टर्मिनल भवन तक आते थे। मुझे लगता था कि प्रभुपाद कुछ जीत के बाद वापस आए हैं, वह सेनापति भक्त भी हैं, इसलिए उन्होंने दुनिया को जीत लिया है, मुझे लगता था कि वह विजयी जनरल की तरह चल रहे हैं।
श्रील प्रभुपाद की जय!
प्रभुपाद को इंग्लैंड में प्रचार के दौरान कुछ प्रसिद्ध गृहस्थ, तमाल कृष्ण और गुरुदास, मुकुंद और श्यामसुंदर मिले। वे सभी शादीशुदा थे, अपनी पत्नियों के साथ उन सभी मे लंदन सहित पूरे इंग्लैंड में जोरदार प्रचार किया था।
तब प्रभुपाद ने कहा कि जो काम गौड़ीय संन्यासी नहीं कर पाए हैं, मेरे गृहस्थ शिष्यों ने किया है या विजय प्राप्त की है। वे इंग्लैंड या लंदन में कृष्ण चेतना फैलाने में सफल रहे हैं। इस पहले भक्तो के समूह के वहां पहुंचने और कीर्तन करने उस पर उन्हें बहुत गर्व था
(महाराज जी आज का जपा कॉन्फ्रेंस भक्ति वेदांत मैनर में कर रहे है ) यह (भ.वे. मैं.) संपत्ति जॉर्ज हैरिसन की थी।
जॉर्ज हैरिसन की जय!
प्रभुपाद और उनके अनुयायी संपत्ति, बड़े बड़े चर्च, महल आदि खरीद रहे थे, लेकिन इस परिमाण की संपत्ति, जिसे भक्तिवेदांत जागीर के रूप में जाना जाता है, जो सत्रह एकड़ थी, यह जॉर्ज हैरिसन का उदार दान था।
जॉर्ज हैरिसन की जय!
उन्होंने (श्रील प्रभुपाद ने ) उसे आध्यात्मिक नाम क्यों नहीं दिया? – वह पहले से एक हरिपुत्र था। वह हरि (भगवान)का पुत्र है। उसका पहले से ही आध्यात्मिक नाम था। जॉर्ज हैरिसन ने पवित्र नाम फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई, न केवल संपत्ति का योगदान देकर, अपितु आज हम जिस स्थान पर हम बैठे हैं, वह इंग्लैंड की आध्यात्मिक राजधानी बन गया, जो कि जॉर्ज हैरिसन द्वारा दी गयी, जॉर्ज हैरिसन ने कृष्ण पुस्तकों के मुद्रण के लिए भी भुगतान (धन दिया) किया।
उनका रिकॉर्ड एल्बम जो पूरी दुनिया में बेचा गया था। ‘हरे कृष्ण’ पूरी दुनिया में हिट हो गया। वह एक बड़ी मदद थी।
इससे पहले कि श्रील प्रभुपाद पहुंचते, कई देशों में तो हरिनाम पहले ही पहुँच चुका था। हरे कृष्ण केंद्र या मंदिर में पहुंचने से पहले ही लोग ‘हरे कृष्ण ’ तक पहुंच चुके थे। मुझे लगता है कि हमें जॉर्ज हैरिसन को याद करना चाहिए क्योंकि उनका नाम अनंत काल से कृष्ण चेतना के प्रसार में जुड़ा हुआ है। श्रील प्रभुपाद की झलकियों में जॉर्ज हैरिसन की झलकियाँ भी शामिल हैं।
अंतिम जन्माष्टमी त्योहार, प्रभुपाद ने यहां(भ.वे. मैं.) मनाया। केवल जन्माष्टमी ही नहीं बल्कि श्रील प्रभुपाद की अंतिम व्यास पूजा , उनके इस ग्रह पर रहते हुए , यहाँ भक्तिवेदांत मैनर में मनाया गया था।
मुझे यकीन है, कि इंग्लैंड में, लंदन में, और अन्य जगहों पर प्रभुपाद की बहुत सारी यादें है। राधा-लंदेश्वर की जय!
आज से पचास वर्ष पूर्व स्थापित किए गए पहले विग्रह हैं और यह घोषित किया गया कि यही ईश्वर है, मालिक है, ये ही है लंदनेश्वर…. हम सभी इसका इंतजार कर रहे थे। ऐसे थे प्रभुपाद और उनका प्रचार कौशल…..
१९७७ में वह ऋषिकेश से वापस आ गये थे। (महाराज प्रभुपाद के वाक्य को यथा रूप दोहराते हुए )नहीं! नहीं!! नहीं!!! मुझे वापस वृंदावन ले चलो…
एक बार जब वो घर (वृन्दावन)वापस आ गए, तो उनकी तबियत में थोड़ा सुधार हुआ और फिर तुरंत वह बाहर जाकर प्रचार करना चाहते थे। हम उन्हें गीता-नगरी, अमेरिका लाने की योजना बना रहे थे। गीता-नगरी, अमेरिका जाते हुए , प्रभुपाद रास्ते में इंग्लैंड में जन्माष्टमी, और व्यासपूजा मनाने के लिए रुक गए।
जब प्रभुपाद वृंदावन से हवाई अड्डे के लिए प्रस्थान कर रहे थे, तो कार के पीछे की सीट पर उनके लेटने के लिए गद्दे लगाए गए थे क्योंकि वह ठीक से बैठने में असमर्थ थे, लेकिन उस हालत में भी प्रभुपाद अभी भी बाहर जाना चाहते थे और प्रवचन दे रहे थे।
इसी तरह प्रचार की मनोस्थिति में सदैव प्रभुपाद रहते थे, जिसे हम सभी को याद रखना चाहिए, और उसी मनोभाव से प्रचार करना चाहिए।
स्वास्थ खराब होने के कारण प्रभुपाद को इंग्लैंड से ही वापस आना पड़ा, वह अमेरिका नही जा पाये और भारत वापस लौट आए। हम उन्हें मुंबई एयरपोर्ट पर रिसीव करने के लिए गए थे। इस बार वह एयरपोर्ट पर बहुत अलग दिख रहे थे, छड़ी के सहारे भी वह ज्यादा चल नही पा रहे थे, वह एयरपोर्ट से एक कार में आये। प्रभुपाद के पास तीन अम्बेसडर कारें थीं। एक कोलकाता में, एक मुंबई में और एक दिल्ली में। प्रभुपाद को एक निजी कार हरिदास(उनके एक शिष्य) द्वारा दी गई थी और उस समय यह एक अलग तरह का अभिवादन था। प्रभुपाद हरे कृष्ण लैंड पर पहुँचे। प्रभुपाद ने बड़े काले चश्मे पहने हुए थे। हमने प्रभुपाद के बैठने के लिए पालकी बनाई थी। फिर उन्हें पाँचवी मंजिल पर उनके अपार्टमेंट में ले जाया गया। हम वहाँ श्रील प्रभुपाद के साथ थे, वह बिस्तर पर थे।
अब कोई सुबह की सैर नहीं हुई। एक समय प्रभुपाद बंबई में तीन महीने तक रहे थे। उस समय, हर सुबह, सुबह की सैर हुआ करती थी। वे सैकडों मॉर्निंग वॉक पर गये, सैकडों बार वे मॉर्निंग वॉक से लौटे, सैकड़ो बार उन्होंने श्री श्री राधा-रासबिहारी का अभिवादन किया, सैकडों बार हमने गुरु पूजा की, सैकडों बार हमने भागवतम का प्रवचन सुना। अब वो दिन चले गए थे और आज प्रभुपाद सिर्फ बिस्तर पर थे और हम कीर्तन कर रहे थे। कीर्तन के बीच में मैंने प्रभुपाद से पूछा, कि आप हमें बताइये जो आपके लिए हम कुछ कर सके, जिससे आप ठीक हो सकें,” उन्होंने कहा, ” जप करो ”। मैंने और जप करना जारी रखा। ये कुछ यादें हैं। प्रभुपाद तब राधा-रासबिहारी मंदिर में ज्यादा दिन रुके नहीं थे, वे वृंदावन चले गए।
वृंदावन मेरा घर है
बंबई मेरा कार्यालय है
मायापुर मेरा तीर्थस्थल है
तो ये वो जगह है जहाँ जहाँ हम उनके साथ गए या उनका अनुसरण किया। हमने अपने हरिनाम यात्रा वाहनों में यात्रा की। मैं नारद मुनि संकीर्तन पार्टी और पुस्तक वितरण पार्टी का नेता था। हमने यात्रा की और वहां पहुंचे।
तब प्रभुपाद ने मुझे इलाहाबाद भेजा, जाओ मेरे डॉक्टर मित्र, घोष को ले आओ। तमाल कृष्ण महाराज ने मुझे पैसे दिए और कहा कि तुम जाकर जल्दी से डॉक्टर को लेकर आओ,यह इलाहाबाद के लिए मेरी पहली यात्रा थी। इलाहाबाद में उनके ( डॉक्टर घोष की) घर पहुंचने पर मुझे पता चला कि वह दार्जिलिंग, असम में अपनी पोतियों के घर पर हैं। मुझे असम के लिए एक और उड़ान पकड़ने के लिए हवाई अड्डे पर आना पड़ा। रास्ते में मैंने बड़े हनुमानजी को देखा। मैं हनुमान के बारे में सोच रहा था, वो भी ऐसे ही मिशन पर थे जब लक्ष्मणजी , जो आदि गुरु हैं, ठीक नहीं थे युद्ध के बीच में उन पर हमला किया गया था और वे बेहोश थे और उन्हें कुछ इलाज की जरूरत थी इसलिए हनुमानजी को हिमालय भेजा गया। मुझे भी हिमालय जाना था, ऐसा सब कुछ सोच कर स्थिति को मैं रिलेट कर रहा था। हनुमानजी दवा लाने गए थे न कि डॉक्टर और मुझे भी हिमालय जाना था (दार्जिलिंग हिमालय की चोटी पर है), डॉक्टर के पास न कि दवा लेने। आप (हनुमानजी ) अपने मिशन में सफल रहे अब कृपया मुझे इस डॉक्टर को खोजने के लिए आशीर्वाद दें। मैं हनुमान की तरह प्रार्थना कर रहा था और सफल रहा था। मुझे डॉक्टर मिला। मैने उनसे कहा कि आपको चलना है प्रभुपाद आपको चाहते हैं। डॉक्टर घोष तुरंत चलने को तैयार हुए और वृंदावन आये, वहाँ आकर उन्होंने वही किया जो उन्हें करना था।
हम भी प्रचार के लिए यात्राओं पर निकल गए थे। हम बद्रीकाश्रम में थे, हम जानते थे कि प्रभुपाद का स्वास्थ ठीक नहीं हैं लेकिन उनकी तबियत का पता लगाने का कोई तरीका नहीं था, इसलिए हमें यह जानने के लिए वापस वृंदावन आना पड़ा कि प्रभुपाद कैसे हैं। वृन्दावन आकर हमने प्रभुपाद के दर्शन किये, प्रभुपाद हम दर्शनार्थियों को बहुत दयालुता के साथ मिले। प्रभुपाद बिस्तर पर पड़े थे और मैं उनके बगल में बैठा था। जब वह बात करते थे तो हम उनको पास से ही सुन पा रहे थे, क्योंकि जब वह बोलते थे तो दूर से बहुत मुश्किल से सुनाई देता था। उन्होंने पूछताछ की, पुस्तक वितरण कैसे हुआ? कौन सी किताबें कितनी बेची गईं और कौन सी सबसे ज्यादा बिकीं? प्रभुपाद हमेशा संकीर्तन रिपोर्टों को सुनना पसंद करते थे क्योंकि आज सुबह भी उन्हें संकीर्तन रिपोर्ट दी गई थी।
प्रभुपाद बोले कि लॉस एंजिल्स से आयी मेल को खोलें, कुछ किताबो की बिक्री का स्कोर आया है, उसे बताओ मुझे …..
हमने उनसे कहा कि प्रभुपाद हम बद्रीकाश्रम से आए हैं। वहाँ हमने व्यास देव को आपकी भगवद् गीता दिखाई। बद्रीकाश्रम में एक गुफा है जिसमें व्यास देव रहते हैं। इसे व्यास गुफ़ा कहा जाता है। हम प्रभुपाद की पुस्तकों को अपने साथ ले गए थे, वहां निश्चित रूप से हमने व्यासदेव को नहीं देखा था, लेकिन व्यासदेव ने हमें और प्रभुपाद की भगवद गीता को देखा होगा। जब मैंने प्रभुपाद से कहा, कि हमने आपके भगवद-गीता को व्यासदेव को दिखाया, तब प्रभुपाद बहुत खुश हुए। यह उनके चेहरे से साफ साफ देखा जा सकता था। जब हम प्रभुपाद के कमरे से बाहर निकल रहे थे, मेरी पार्टी के सभी लोग बाहर जा चुके थे मैं आखिरी था वहां पर, मैंने प्रभुपाद पर एक नज़र डाली, जैसे ही मैंने उनकी तरफ देखा, उन्होंने मुझे वापस आने का इशारा किया। वे कुछ कहना चाहते थे, जैसे ही मैं उनके पास गया उन्होंने कहा, मैं आपसे मिलना चाहता हूं और आपसे बात करना चाहता हूं। आपके लिए कौन सा समय ठीक रहेगा? यह मेरे लिए चौंकाने वाला था क्योंकि उस हालत में भी उन्होंने मुझसे पूछा था कि मेरे लिए क्या समय उपयुक्त है…..
क्या 4 बजे ठीक है? हाँ। जिस तरह से वह बात कर रहे थे, वह बहुत गंभीर था,और मैं सोच रहा था, कि वे मुझसे क्या बात करना चाहते हैं। इसलिए, पूरे दिन मैं सोचता रहा और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुचा। अंत में, 4 बजे मैं श्रील प्रभुपाद के कमरे के द्वार पर था। उनके सचिव ने कहा कि कृष्ण बलराम गेस्ट हाउस के स्वागत कक्ष में जाएँ। जब मैं वहाँ गया, तो देखा श्रील प्रभुपाद के सभी सेवक, सचिव और उनके सभी वरिष्ठ अनुयायी इकट्ठे हुए थे। मुझे एहसास हुआ कि वह मुझसे जो बात करना चाहते थे, उन्होंने पहले से ही उनमें से कुछ से बात की थी।
प्रभुपाद तीर्थयात्रा पर जाना चाहते थे, वह यात्रा करना चाहते थे या यूं कहिये कि प्रभुपाद माया से लड़ते हुए इस दुनिया को छोड़ना चाहते थे। वह बिस्तर में लेटे हुए बेचैनी महसूस कर रहे थे। वे बाहर जाना चाहते थे, और हम आज उनकी जैसी अवस्था मे ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकते, प्रभुपाद एक बैलगाड़ी में यात्रा करना चाहते थे। जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्हें याद आया कि मैं वही हूँ जिसे उन्होंने बैलगाड़ी में यात्रा करने के लिए कहा था। उन्होंने हमारी बैल गाड़ी यात्रा कार्यक्रम का उद्घाटन किया था। वृंदावन से मायापुर तक की पैदल यात्रा का उद्घाटन श्रील प्रभुपाद द्वारा ही किया गया था। यह बहुत सफल रहा, प्रभुपाद बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा था, हमारे पास पूरी दुनिया में इस तरह की लाखों बैलगाड़ियां होनी चाहिए। जब उन्होंने मुझे देखा, तो उन्हें बैलगाड़ी कार्यक्रम याद आया और उन्होंने खुदको एक बैलगाड़ी में बैठाना चाहा। जो लोग वहां बैठे थे, कृष्ण-बालाराम मंदिर के स्वागत कक्ष में, उन्होंने बताया कि प्रभुपाद चाहते हैं कि आप उनके लिए बैलगाड़ी की व्यवस्था करें। तब हम (त्रिविक्रम स्वामी पंचद्वीप और मैं स्वयं) मथुरा गए थे। यह सब बहुत आसान नहीं था क्योंकि उस समय गोवर्धन पूजा का समय था और आमतौर पर लोग बैलों की पूजा करते हैं, वे बैल को आराम देते हैं किसी प्रकार का उनसे काम नहीं करवाते। लेकिन हमने किसी प्रकार से एक किसान से बात करके बैलों की व्यवस्था की। अब कृष्ण बलराम मंदिर के सामने गाड़ी आ कर खड़ी हो गयी। लेकिन तब सभी चिंतित होकर आपस मे बातचीत करने लगे और अलग अलग मत निकालने लगे,
हमें बस प्रभुपाद की इच्छा के साथ जाना चाहिए।
नहीं! नहीं! वे कैसे जा सकते हैं इन ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर?
गोवर्धन को उनकी आज की यात्रा का डेस्टिनेशन बनाया गया था, अगर सब कुछ सही रहता तो आगे की यात्रा भी संभव थी, लेकिन फिर उनके स्वास्थ को ध्यान में रखते हुये बैलगाड़ी यात्रा का विचार छोड़ दिया गया।
हरि! हरि !!
लेकिन प्रभुपाद ने यात्रा का विचार अभी नहीं छोड़ा था, अगले दिन उनका कमरा उनके सभी सेवको और उनके वरिष्ठ अनुयायियों से भरा हुआ था और हम सभी प्रभुपाद के साथ उनके बिस्तर के चारों ओर बैठे थे। प्रभुपाद ने कहा, मुझे बस से यात्रा करने दो। वे यात्रा का विचार छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। “चलो ठीक है, अगर बैलगाड़ी नहीं, फिर बस से ही चलते हैं”
और निश्चित रूप से हमने उनके इस विचार का स्वागत किया। उनकी यात्रा की इच्छा से हम यह संकेत ले रहे थे ,कि वे अभी हमे छोड़ कर इस धरा से नही जाएंगे। समय-समय पर हम कह रहे थे, हमें मत छोड़ो। हमें मत छोड़ो, प्रभुपाद हमें शांत करने के लिए कहते थे कि कृष्ण प्रकट हुए और इस धरा को उन्होंने भी छोड़ दिया था।
वहां पर कुछ वैज्ञानिक भी थे जो कि भक्ति स्वरूप दामोदर महाराज के साथ आये थे। उन्होंने पूछा कि
क्या मैं भी चल सकता हूं?
– हाँ आप चल सकते हैं।
तब गिरिराज, (वे तब महाराज नहीं थे) जोकि ब्रह्मचारी थे, ने भी चलने के लिए पूछा।
वहाँ पर कुछ बड़े उद्योगपति और व्यापारी थे, जिन्हें मैने आजीवन सदस्य बनाया था, उन्होंने भी साथ चलने की आज्ञा मांगी
“क्या मैं जा सकता हूँ?
-हाँ। तुम जा सकते हो।
भारत के पंजाब से भक्ति चैतन्य स्वामी थे। उन्होंने कहा कि ”
प्रभुपाद मैं एक अच्छा ड्राइवर हूं, क्या मैं जा सकता था?”
– हाँ।
वहाँ पर उपस्थित सभी साथ चलने की आज्ञा प्रभुपाद से ले रहे थे।
क्या मैं जा सकता हूँ?
– हाँ।
क्या मैं जा सकता हूँ?
– हाँ।
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.
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वहाँ पर सभी के बस यात्रा से संबंधित
संवाद को सुनकर और अपने अनुभव (वास्तव में मुझे यह यकीन हो गया था) से मैने यह अनुमान लगाया की प्रभुपाद चाहते हैं कि मैं भी उनके साथ चलूं। फिर मैंने मजाकिया अंदाज में पूछा,
“क्या मैं जा सकता हूं?”
प्रभुपाद ने कहा,
“आप इस बस यात्रा के मुखिया होंगे।”
प्रभुपाद से यह सुनकर तो मेरा जाना पूरी तरह से तय होगया था।
सभी खुश थे कि प्रभुपाद हमारे साथ हैं और वह बस से हमारे साथ यात्रा करने जा रहे हैं। हम तैयारी कर रहे थे की बसें कहाँ से आएंगी, किस रास्ते का चयन होगा….इत्यादि।
तमाल कृष्ण महाराज, भवानंद महाराज और भक्तिचारु महाराज एक भारत का बड़ा नक्शा लाए और यह तय कर रहे थे कि किस रास्ते से जाना है।
हम सभी 14 नवंबर के (दुर्भाग्यपूर्ण) दिन यात्रा की तैयारी कर रहे थे, तभी कविराज,(प्रभुपाद के डॉक्टर,जो कि प्रभुपाद की देख-रेख कर रहे थे) मंदिर, गुरुकुल, गेस्ट हाउस, सभी जगह दौड़ दौड़ कर यह खबर देते हुए दिखे कि प्रभुपाद हमे छोड़कर जा रहे हैं !!!
“Prabhupad is leaving”
“Prabhupad is leaving”
.
.
हम सब कुछ छोड़कर प्रभुपाद के क्वार्टर में पहुंचे, वहाँ पर अब कुछ बाकी नही था अगर कुछ बचा था तो बस रोना……
हर कोई कीर्तन कर रहा था वहां पर कोई एक मुखिया कीर्तनिया नही था, अपितु सभी मुखिया कीर्तनिया की भांति एक साथ कीर्तन कर रहे थे। हम सब गा रहे थे और रो रहे थे। हमें उनकी दिव्य कृपा मिल रही थी।
हरि! हरि!
श्रील प्रभुपाद व्यास पूजा महोत्सव की जय!
निताई गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
26TH AUGUST 2019
MEMORIES OF PRABHUPADAA BY BELOVED GURUMAHARAJ.
Is India the only one in which, what Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu was referring to, that prediction is going to happen. Then on this day Lord Gauranga gave birth to Srila Prabhupada.
Srila Prabhupada ki jai!
Right day after Krishna’s birthday. Krishna appeared & He gave birth to Srila Prabhupada just next day. I think, this can’t be accident or coincidence, but it’s an arrangement of Lord. He was very dear to Sri Krishna Chaitanya or Sri Krishna. That immediately day after His birthday, there is Prabhupada’s birthday. So that day, Srila Prabhupada who was born on this day is also called as Nandotsav. The day Nand maharaj celebrated Krishna Janmashtami. So, giving birth to Srila Prabhupada & making him the senapati bhakta. He became commander in chief of the sankirtan army. As I said senapati bhakta, so senapati is in front of the army or boat so he boarded the ‘Jaldoot’ boat. Doot means messenger. I say he was Krishna doot. Jaldoot, ‘Krishna doot’. Messenger of Sri Krishna or Gauranga riding the boat & this senapati bhakta wanted to shoot. He made New York as his target. The capital of the age of Kali or Kali’s capital – New York. When he arrived, many things happened on the way. I received this garland as arrived today. But when Prabhupada arrived in New York there was no one to receive. He did not know, whether to turn right or left. There was no hotel booking. Not much money in hand. Only five dollars, which are good enough to survive for five minutes in New York. At the age of seventy, he was supposed to be penny less, but I say he was the richest person, because he was carrying the wealth of the holy name.
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Ram Hare Ram
Ram Ram Hare Hare
That was the wealth & talking of no friends, but the best friend Sri Krishna was with him, behind him. And this is senapati bhakta means he should have bombs with him, so his books became the time bombs. And he had temples, he had temple commanders & there were bullets also. ISKCON bullets came into being. So lot of things sounding like army, the senapati bhakta, bullets. Then Prabhupada did say that Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu, he took the holy name all over India & left the job of spreading HARE KRISHNA mahamantra to the rest of the world to International society for Krishna consciousness. He became the founder acharya of this International society for Krishna consciousness. He travelled all over making prediction of Chaitanya Mahaprabhu true.
Yadi Gaur na hoite, world would not have received the holy name & yadi Prabhupada na hoite, if Prabhupada would not have appeared on this day, then holy name would not have reached the rest of the world.
We had lots of devotees yesterday. Krishna’s devotees, but I think those who are arriving here to celebrate Prabhupada’s Vyasa Puja mahotsav, they are real devotees. O! I am your devotee Lord. That’s nice! But if we could introduce ourselves, I am a devotee of your devotee O Lord! , O then Lord says you are my real devotee. Yesterday visitors were devotees of Krishna but today’s devotees are devotees of devotee of Krishna. Those who are present & participating in celebration of Prabhupada appearance day are real devotees. They are dearer to Krishna. Srila Prabhupada was once asked by the reporter, swamiji, why have you come to our country England? Prabhupada replied, ‘you also came to our country, India & whatever you & your Viceroys thought was valuable, they were all stealing & bringing to England. Whether it was silk or spices or ‘Kohinoor ka Hira’, the diamond called Kohinoor which has ended up in London museum, you stole it. But while thinking this is valuable or that is valuable, you actually forgot the most valuable items of India. O! What are those? India’s culture. What else? – the teachings of Bhagavad-Gita & Bhagavatam. What else? The holy name of the Lord. Something that your viceroys left behind I have come to give home delivery of the same.
In Kumbh-mela of seventy-seven devotees were talking how British empire had spread all over & where is it now? & then there is a famous statement, Sun never sets in British empire’ & Prabhupada said, ‘But sun never rises in England.’ But now in ISKCON empire sun never sets. Wherever there is Sun, there is Mangal aarti going on, this aarti, that aarti, books & Prasad is being distributed. So now in ISKCON empire Sun never sets. Srila Prabhupada after conquering West America & North America, then later he was based in Bombay. Bombay was Prabhupada office & as officers spend lot of their time in office, similarly Prabhupada also spend a lot of his time in Bombay.
We were Bombay brahmacharis or Brahmacarinis. We used to get opportunity to receive Prabhupada at airport, every now & then, hundreds of times. I have written a book ” Bombay is my office”. There is a whole record of, how many times Prabhupada arrived & departed from Bombay & spent weeks & months together in Bombay. Prabhupada used to arrive from wherever. We used to go to the terminal building & we used to discuss, O! He is coming by British airways, like that. We used try to track, which aeroplane he is in now ? Is it this one or that one. Then Prabhupada used to come out & we used to watch him stepping down the stairs, & walking to the terminal building with a stick in his hand. I used to feel Prabhupada has come back after some victory, this frontier or that frontier, he is Senapati bhakta also. So he has conquered the world, he has conquered this territory, that territory. I used to feel he is walking like a victorious general. Srila Prabhupada ki jai!
So Prabhupada sent after having conquered some of the territories, he got the famous grihastha, Tamal Krishna & Gurudas, Mukund & Shamsundar. They were all married, accompanied by their wives & he took London & England on storm.
Then Prabhupada said, ‘What Gaudiya sanyasis couldn’t do, my householders Grihastha disciples have achieved or conquered. They have succeeded in spreading Krishna consciousness to England or London. He was very proud with first batch arriving there & doing kirtan & this & that.
This property came from George Harrison. George Harrison ki jai! Why George Harrison took to chanting? I think this Prabhupada & his followers were buying properties, big big churches , castles etc. , But property like this , of this magnitude, which came to be known as Bhaktivedanta Manor, expensive property which was seventeen acers had never come. This was the generous donation from George Harrison. All glories to him. Why did he not give him spiritual name? — he already had one. Hari-son, he is Hari’s son. He has already spiritual name. George Harrison he played a big role in spreading the holy name, not only by contributing the property. The place where we are sitting became the spiritual capital of England and George Harrison also paid for printing of Krishna book.
His record album which was sold all over the world. ‘Hare Krishna’ became the hit all over the world. He was a big help.
Before Srila Prabhupada’s team would have arrived in this country or that country, the harinaam had already reached there. People had reached to ‘Hare Krishna’, before the devotees reached Hare Krishna centre or temple. I think we should be remembering George Harrison as his name is eternally associated in spreading of Krishna consciousness. Glories of Srila Prabhupada, includes glories of George Harrison also.
Last Janmashtami festival, Prabhupada celebrated over here. Not only Janmastami but last Vyaspuja when Srila Prabhupada was on the planet was celebrated here in Bhaktivedanta Manor. I am sure, that should be bringing a lot of memories of Prabhupada, in England, in London, & other places. Radha-Londaneshwar ki jai!
These are the first deities installed, here fifty years ago. It was declared, He is the Ishwar, He is the proprietor. Londaneshwar is here. We were waiting. These were Prabhupada’s preaching skills. Moksha Laxmi was also there. Seventy- seven he had come back from Rishikesh. No! no!! no!!! Bring me back to Vrindavan. Once he was back home, he improved a bit & then immediately he wanted to go out & preach. And the plans were being made to bring him to Gita-nagari , America. So on the way to Gita-nagari Prabhupada stopped here in England to celebrate Janmastami , & Vyaspooja. Why I mentioned about Moksha Laxmi, is when Prabhupada was leaving from Vrindavan to airport, sitting in the car, not even able to sit down. Mattress was kept on the back seat & Prabhupada was lying down, but in that condition also, Prabhupada wanted to still go out & preach. That is the spirit of Srila Prabhupada, which we all should be remembering. So anyways, he didn’t go to America, but instead he returned to India. We were there to receive him in Mumbai. This time he arrived & reached airport differently. No more walking, with a stick looking up. But he came in a car. Prabhupada had three ambassador cars. One in Kolkata, one in Mumbai & one in Delhi. Prabhupada’s personal car was given by Haridas & there was a different kind of greetings that time. Prabhupada was wearing big black glasses when he arrived in ‘Hare Krishna’ land. We had made palanquin for Prabhupada to sit. Then he was carried to his apartment on the fifth floor. We were there with Srila Prabhupada. He was on bed. No more morning walks. One time Prabhupada was there for three months in Bombay. That time, every morning there used to be a morning walk. Hundred times he went on morning walks, hundred times he returned from morning walks, hundred times he greeted Radha-Rasbihari, hundred times we offered him guru puja, hundred times we heard Bhagavatam classes in a stretch. Those days had gone & that time Prabhupada was just on the bed we were doing kirtans. In the middle of the Kirtan, I asked Prabhupada, ‘anything we could do? Something we haven’t done, which we can do so that, you could be cured?’ He said, “chant”. I continued chanting more. These are some of the memories. Prabhupada then went to open the temple, Radha-Rasbihari temple, but he couldn’t stay on, so he went to Vrindavan. Vrindavan is my home & Bombay is my office, Mayapur is my place of pilgrimage. So that is where we went or followed him. We drove in our Harinaam travelling vehicles. I was Narad Muni travelling Sankirtan party leader, book distribution party leader. We travelled & arrived there.
Then Prabhupada sent me, or I was sent to Allahabad, ‘Go get his doctor friend, Ghosh.” Tamal Krishna maharaj gave me money & told you fly, rush to get the doctor. That was my first flight to Prayagraj, Allahabad. Upon arriving at his home in Allahabad I found out he was in Darjeeling Assam, at his granddaughters place. I had to come to airport to catch another flight to Assam. On the way I saw big Hanuman. I was thinking of Hanuman, you also were on the mission when Lakshman who is Adi Guru, was not well or he was in the middle of the battle. He was attacked and he was unconscious and he needed some cure so you were sent to himalayas. I also had to go to Himalaya, so I was making that connection. You had gone to bring the medicine and not the doctor but I had to go to Himalaya ( Darjeeling is on the top of Himalaya), I had to go to get the doctor and not the medicine. You were successful in your mission now please bless me to find this doctor. I was praying like that to Hanuman and I was successful. I found the doctor and he was very much willing. let’s go! Prabhupada wants you. He is in Vrindavan. So, he came and did what he had to do. Then and we had gone travelling all over. We were in Badrikashram. We knew that Prabhupada is not well but there was no way to find out the status, so we had to come back to Vrindavan to find out how Prabhupada is doing. Prabhupada was very kind to give us audience, Prabhupada was lying in bed and I was sitting next to him. When he used to talk, we had to be next to him so that we could hear what he is saying, as he was barely audible when he used to speak. He inquired, how was the book distribution? Which books were sold more and which was sold most? Prabhupada always loved listening to Sankirtan reports as this morning also Sankirtan reports were offered to him. The mail would come through, O! open that mail from Los Angeles, there is some books scores. He wanted also know the book scores from us. We told him Prabhupada we have come from Badrikashram. There we showed your Bhagwad Gita to Vyasa Dev. In Badrikashram there is a cave in which Vyasa Dev. resides. It is called ‘vyasa gufa’ We were carrying Prabhupada’s books with us, of course we did not see Vyasdev but for sure Vyasdev must have seen us & Prabhupada’s Bhagvad Gita. When I told Prabhupada, that we showed your Bhagavad-Gita to Vyasdev, then Prabhupada was very happy. It was seen from his face. When we were leaving Prabhupada’s room, my party men had all left, I was the last one. Before leaving, I just wanted to have one more glance at Prabhupada. As I look at him, he signalled me to come back. He wanted to say something. As I went near him he said, I want to meet you & talk to you. What time is good for you? That was shocking for me as in that condition also he asked me what time suits me. Whatever. Is 4 o’clock okay? Yes. The way he was talking was very grave & serious & I was wondering, about what he wanted to talk to me. So, all day I was thinking & thinking & not coming to any conclusion. Finally, at 4 o’clock I was at the door of Srila Prabhupada. The secretary, told go to reception of Krishna Balaram guest house. When I went there all Srila Prabhupada’s servants & secretaries & all big men had gathered around. I realized what he wanted to talk to me, he had already spoken to some of them. Prabhupada wanted to go on pilgrimage he wanted to travel or he wanted to leave this world fighting with maya. He was feeling restless lying in the bed. He wanted to go out, and we couldn’t imagine. Prabhupada wanted to travel in an oxcart. When he saw me he remembered he is the one to whom he had told to travel in oxcart. He had inaugurated our ox cart travelling program. Go from Vrindavan to Mayapur so that walk was inaugurated by Srila Prabhupada. It was very successful. Prabhupada was very much pleased. He had said, we should have millions of carts like this all over the world. When he saw me, he remembered the bullock cart program & he wanted to travel himself in a bullock cart. So those men who were sitting there, in Krishna -Balaram temple reception, they told, Prabhupada wants you to organize bullock cart for him. Then we had gone, Trivikram Swami & Panchdravid & myself. We had gone to Mathura. It was not easy as it was time for Govardhan Pooja and usually they worship bulls, they give rest to the bulls they don’t get work done from the bulls. But we managed as one farmer agreed. Then cart had come in front of Krishna Balram Temple. But then there were more talks and concerns and house was divided. We should just go with Prabhupada’s desire. No! no! how could he go? The bumpy roads. Govardhan was made a trial destination & then he would travel beyond, if this goes ok. But then things transpired differently & bullock cart travelling was dropped. Hari! Hari!!
Then Prabhupada’s travelling idea was not over. Just a day after when this bullock cart travelling idea was dropped, we were sitting around Prabhupada. Prabhupada in the middle on the bed, in a room, full of senior men. Prabhupada said,’let me travel with the buses.’ He was not ready to give up the idea of travelling. Ok, not bullock cart, then buses. And of course those days. This was welcomed. It was considered indication, meaning he is not leaving us behind. He is staying on! He is staying on! From time to time we were saying, don’t leave us. Don’t leave us. Prabhupada used to say to pacify us that Krishna appeared & He also left.
When Bus travelling idea came up, there were some scientific minded people. Bhakti Swarup Damodar maharaj was there. He had some guesrs together, some conference with the scientists. He asked could I go? – yes you could go. Then Giriraj he was not Maharaj, he was a brahmachari. There were always some big people, businessmen, I could make them life members. Could I go? -yes. You could go. There was Bhakti Chaitanya Swami from Punjab, India. He said, I am a good driver Prabhupada, could I go? – yes. Like that so many Devotees were taking turns. Could I go? – yes. Could I go? – yes. And I also, I knew for sure as the whole dialogue had taken place about this bus travelling & advance party. So, there was some experience & Prabhupada wanted me to go. Then I asked in a humorous way, could I go? & Prabhupada said, ‘ you will be our leader’. Then I had to anyway go. So, all were delighted, Prabhupada is staying on with us & he is going to travel with the buses & we were preparing, where to get buses from. Tamal Krishna maharaj, Bhavanand maharaj & Bhakticharu maharaj they had brought big map of India & they were deciding which way to travel or go. As we were making all these preparations on the unfortunate day of 14th of November, the Kaviraj , the doctor who was looking after Prabhupada, he was going all over temple, Gurukul, guest house, here there , giving us the news that Prabhupada is leaving, he is getting ready to leave. We dropped everything & we rushed to Prabhupada’s quarter. What was remaining was to cry. Everyone was singing & everyone was leading. There was not one person leading & others following. We were all singing & crying. We were around his divine grace. Hari! Hari!
Srila Prabhupada Vyasa Puja mahotsav ki Jai!
Nitai Gaur premande Hari Hari Bol!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
24th Aug 2019
हम सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। आज की जप चर्चा अत्यंत ही विशेष है, यह कुछ समय पहले रिकॉर्ड की हुई है जिसमें गुरु महाराज कृष्ण जन्माष्टमी का एक विशेष संदेश दे रहे हैं , कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनंदनाय च नन्द गोप कुमाराय गोविन्दाय नमो नमः
आज का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी यह अत्यंत ही विशेष दिन है, यह पूरे कल्प में एक बार होता है जब एक हजार चतुर्युगी बितती है तब ब्रह्मा का 1 दिन होता है और उस समय ब्रह्मा के 1 दिन में कृष्ण का अवतार होता है , कृष्ण प्रकट होते हैं ।भगवान कहते हैं संभवामि युगे युगे सभी युगों में भगवान के अवतार होते रहते हैं परंतु वे सभी अवतार हैं और कृष्ण अवतारी हैं, जो अवतारी कृष्ण हैं वे इस प्रकार एक कल्प
में केवल एक बार प्रकट होते हैं।
हमने कुछ गणना की है, आज से लगभग 5343 वर्ष पूर्व आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण मथुरा में प्रकट हुए।
इस प्रकार से हम कहते हैं हैप्पी बर्थडे टू यू लॉर्ड कृष्ण ,भगवान को हम उनके जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं और साथ ही साथ हम यह प्रार्थना भी करते हैं कि हम कभी पुनः इस भौतिक जगत में जन्म ना लें। भगवान श्री कृष्ण अत्यंत कृपा करके इस धरती पर प्रकट हुए और वह हमें भूले नहीं, कृष्ण अत्यंत ही दयालु हैं और इसीलिए आप इस जगत में प्रकट हुए जिससे कि हमें पुनः जन्म ना लेना पड़े ।
तो भगवान भगवत गीता में कहते हैं,
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः । त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥
अतः भगवान कहते हैं कि उनके जन्म और कर्म दिव्य हैं एवं जो भगवान के जन्म को समझ पाता है (कोई यह समझ पाता है कि भगवान के साथ हमारा क्या संबंध है), जो इस प्रकार का संबंध ज्ञान होने के पश्चात भगवान का जन्मोत्सव कृष्ण जन्माष्टमी महा महोत्सव मनाता है तो भगवान उन्हें एक प्रकार का उपहार देते हैं अथवा उन्हें एक पुरस्कार प्राप्त होता है। वह पुरस्कार क्या है तो भगवान इसी श्लोक में कहते हैं ,
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥
वह शरीर छोड़ने के पश्चात पुनः जन्म नहीं लेता है, वह मेरे धाम को आता है, मुझे प्राप्त करता है। मैं सोच रहा था आज से लगभग 50 या 51 वर्ष पहले जब प्रभुपाद जलदूत से अमेरिका जा रहे थे तो उस समय जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव आया (प्रभुपाद का जहाज उस समय अंटार्टिका में चल रहा था)। उन्होंने उस वर्ष का जन्माष्टमी महोत्सव जलदूत पर अंटार्कटिका में मनाया था। उन्होंने जल दूत पर जितने भी कर्मचारी थे उन सभी को एकत्रित किया था, कैप्टन पांड्या भी उसमें सम्मिलित हुए और इस प्रकार से भारत से बाहर प्रथम बार अथवा कहे तो भारत से बाहर प्रभुपाद ने एक स्थान जलदूत जहाज पर यह पहली जन्माष्टमी मनाई थी। परंतु आज मैं आपको अत्यंत ही हर्ष और गर्व के साथ यह बताना चाहता हूं कि 50 वर्ष पश्चात आज के दिन संपूर्ण विश्व में लगभग 150 देशों में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव अत्यंत ही हर्ष के साथ मनाने जा रहा है।
यह कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव सम्पूर्ण विश्व में मनाया जा रहा है, इसमें लाखों व्यक्ति सम्मिलित हो रहे हैं और भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव अत्यंत ही भव्य रूप से हमारे प्रत्येक मंदिर में प्रत्येक स्थान पर मनाया जाता है। हमें आज के दिन कृष्ण जन्माष्टमी के दिन उनका स्मरण करना चाहिए। भगवान का स्मरण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र के जप तथा कीर्तन द्वारा कर सकते हैं। हम भगवान का स्मरण प्रभुपाद द्वारा रचित कृष्ण पुस्तक पढ़कर कर सकते हैं। कृष्ण पुस्तक श्रीमद् भागवतम के दसवें स्कंध का सारांश है। अभी मुझे स्मरण हो रहा है कि पहले के दिनों में जब हम ब्रह्मचारी थे, उस समय हरे कृष्ण लैंड पर हम प्रतिदिन कृष्ण पुस्तक पढ़ते थे, जो आज नोएडा में तुमने भी पढ़ा ।
पहला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव नंद महाराज ने मनाया था और यह उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नहीं मनाया गया था, अपितु उससे अगले दिन मनाया गया था, इसको नन्द महाराज ने ऑर्गेनाइज़ किया था, इसलिए नंदोत्सव के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव गोकुल में प्रथम बार मनाया गया था। हम सभी आज नंद महाराज का, हमारे सभी आचार्य का, विशेष रूप से श्रील प्रभुपाद के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए पूरे हर्ष के साथ कृष्ण जन्माष्टमी को मनाएंगे। आज हम पूरे दिन उपवास रखते हैं परंतु मध्य रात्रि 12:00 बजे के पश्चात फीस्ट भी होता है।भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत ही कृपा करके हमारे समक्ष विग्रह के रूप में प्रकट हुए हैं, गोकुल में तो प्रकट हुए ही हैं साथ ही साथ हमारे लिए भी विग्रह के रूप में प्रकट हुए हैं और उनकी कृष्ण जन्माष्टमी को अत्यंत ही भव्य रुप से मना सकें। इस्कॉन के भक्त जो जन्माष्टमी मनाते हैं वह संपूर्ण भारत में सुप्रसिद्ध है, विशेष रूप से इस्कॉन के भक्त, कृष्ण के विषय में सुप्रसिद्ध हैं। यदि कोई कृष्ण को ठीक प्रकार से समझ सकता है तो वह गौड़ीय वैष्णव है। वह हरे कृष्ण आंदोलन के भक्त हैं, जो कृष्ण को यथारूप समझते हैं। श्रील प्रभुपाद ने हमे भगवत गीता प्रदान की है, कौन सी भगवत गीता ? भगवतगीता यथारूप
इस प्रकार से हमें इन रूपों में भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति होती है। यद्दपि भगवान श्री कृष्ण गीता जयंती के दिन भगवत गीता के रूप में प्रकट हुए, परंतु श्रील प्रभुपाद ने हमें यही गीता भगवत गीता यथारूप के रूप में प्रदान की है( एज़ इट इज़ भगवत गीता प्रदान की है)। इसके लिए हमें श्रील प्रभुपाद का अत्यंत आभारी होना चाहिए जिन्होंने हमें अर्चा विग्रह के रूप में, हरिनाम के रूप में, भगवद्गीता के रूप में तथा श्री मद्भागवतम् के रूप में भगवान श्री कृष्ण को ही प्रदान किया है। भगवान ने हमें अपने जन्म के पश्चात कई उपहार प्रदान किए हैं, आज भगवान का जन्म दिवस है अतः हम सभी भगवान को कुछ न कुछ उपहार अवश्य देते हैं, इसके साथ ही साथ भगवान भी हमें उपहार देते हैं। और उस उपहार में भगवान स्वयं को ही हमें दे देते हैं। इस प्रकार से भगवान अपने हरिनाम, भगवत गीता, भागवत कथा और प्रसाद के रूप में स्वयं को हम सभी को देते हैं। इस प्रकार इन उपहारों को आप ग्रहण करते रहिए न केवल आप आज बल्कि प्रतिदिन इन उपहारों को ग्रहण कीजिए और अधिक से अधिक मात्रा में जप करेंगे तो आप दिन प्रतिदिन और अधिक कृष्णमय बनते जाएंगे और आपका जीवन कृष्णमय बनेगा।इस प्रकार अंततः जो सर्वश्रेष्ठ उपहार है वह तब होगा जब भगवान हमें स्वयं के धाम में आने की अनुमति प्रदान करेंगे।
भगवान कहते हैं मन्मना भव मद्भक्तों जो मेरा स्मरण करेगा, जो मुझे प्रणाम करेगा जो मेरी इस वाणी का प्रचार करेगा मैं वचन देता हूं इस शरीर को छोड़ने पर, इस भौतिक देह का त्याग करने के पश्चात वह व्यक्ति मेरे परम धाम में आएगा, भगवान ऐसा कहते हैं और वे कहते हैं प्रतिजानि प्रियोसि मे हे अर्जुन तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो इसलिए मैं तुम्हें यह बता रहा हूं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ अर्जुन ही भगवान को प्रिय है, हम सभी भी भगवान को अत्यंत प्रिय है। यदि ऐसा नहीं होता तो वो क्यों इस भौतिक जगत में अवतार लेते उन्होंने केवल हमारे लिए इस भौतिक जगत में अवतार लिया है। भगवान इस प्रकार अत्यंत ही कृपा और करुणा करके इस भौतिक जगत में पधारे हैं, जिससे एक दिन हम पुनः भगवान के धाम जा सके। वह निरंतर हमें देख रहे हैं, ढूंढ रहे हैं और उनकी कृपा दृष्टि जब हम पर पड़ी तब हम इस हरे कृष्ण आंदोलन से जुड़े । हमें इस कृष्ण प्रेम की प्राप्ति हुई इस प्रकार से हमारा पुनः भगवद धाम जाने का मार्ग सुनिश्चित हुआ। हमें पुनः भगवद धाम जाने का मार्ग अब मिला है।
अतः एक बार पुनः मैं आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं ।आप सभी कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाइए और प्रसन्न रहिए ।
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी गुरु महाराज जी की जय। जगत गुरु श्रील प्रभुपाद की जय ।श्री कृष्ण जन्माष्टमी महामहोत्सव की जय। निताई गौर सीतानाथ प्रेमानंदे हरि हरि बोल।।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
24TH AUGUST
CELEBRATING LORD’S APPEARANCE.
Krishnay vasudevay devkinandanay ca nandgopkumaray govinday namo namah .
I wish all of you, all those who are listening to me or watching me, I wish all of you a very happy Janmashtami! As this is the happiest day of the kalpa, in fact so very rare is Krishna’s appearance, yes Krishna’s appearance is very rare. Although He has said ‘sambhavami yuge yuge’ in each yuga there is avtar and Krishna appears in some form or the other but Krishna Himself, Bhagwan Himself appears only once in one day of Brahma, of one kalpa which is thousand cycles of chaturyuga and then Krishna makes His own appearance so, others are avatars and Krishna is avtari so that avtari Shri Krishna appears today.
If we do a calculation five thousand three hundred & forty-three years ago on this day and that day was wednesday, when Shri Krishna appeared in Mathura at midnight. He made His appearance and Shri Krishna Janmashtami is the anniversary celebration of the most auspicious appearance of Lord Shri Krishna.
Happy birthday to You Lord Shri Krishna!
By doing so we will never take birth again but we had taken birth, so please do not forget us. We fallen souls we decendent and we are trying to reach You. As You are very very kind, You are appearing so that we do not have to take birth or we don’t have to appear in another species or human form again.
Janma karma ca me divyam evam yo vetti tattvatah tyaktva deham punar janma naiti maneti (BG 4.9)
He explained this to Arjuna. So if you celebrate Lord’s birthday, appearance with understanding of the Lord who He is and how is our relationship with Him, by doing so, by celebrating appearance like that, He has declared a reward and a reward is ‘tyaktva deham punar janma’ no more birth, no more death for those who celebrate Lord Shri Krishna appearance into this material world .
Hare Krishna!
I was thinking fifty or fifty-one years ago while Srila Prabhupada was on the way to America possibly his ‘Jaldoot’ boat was in Atlantic Ocean and then it appeared Janmashtami celebration. Srila Prabhupada had Janmashtami festival right on Jaldoot boat. There the crew, captain had joined and Prabhupada had great celebration of Krishna’s appearance so that was possibly only one celebration outside India or overseas that he was celebrating.
Now fifty years later today I am very proud to say this, share this that today International society for Krishna consciousness will celebrate Lord Krishna’s birthday Krishna Janmashtami mahotsav in 150 countries around the world. Shri Krishna Janmashtami mahotsav ki Jai!! .So let us join the vigilant around the world in making the celebration the very grand birthday party on the planet . Lord Shri Krishna’s appearance day by remembering Him, remember remember remember again by chanting the holy name.
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
To remember Sri Krishna with the help of reading of Krsna book, book written by Srila Prabhupada. It was named after Krishna, Krsna book, is nothing but the summary study of tenth canto of Srimad Bhagavatam and in old days I remember all day there used to be reading, recitation of Krsna book in our Hare Krishna temples. We used to take turn. In Noida today and they also started this morning from Krsna book.
How Nand Maharaj celebrated the first birthday of Shri Krishna, which was not held on Janmashtami but held on the following day and it was held, sponsored, organized by Nand Maharaj. so that festival, of first Krishna Janmashtami festival became known as Nandotsav. A grand festival that took place in Gokul so, following in the footsteps of Nand Maharaj, following the footsteps of great acharyas, and especially following the footsteps of His divine grace A.C Bhaktivedanta Swami Srila Prabhupada, let us celebrate Lord Krishna’s birthday by remembering Him, by chanting, by grand arrangements, by feasting after midnight. Hari Hari! Lord Krishna has kindly appeared in the form of His archa vigraha and He appears in Gokul in the form. Deity form is appearing, or has appeared all over the planet so that in Shri Krishna’s archa vigraha form we could celebrate His birthday in so many varieties of ways.
We held this festival in Grand ways or in fact Janmashtami celebrated by ISKCON devotees is most popular in India. Most popular celebration of Janmashtami is ISKCON Janmashtami . We are here, we are specialized in Krishna, we are for Krishna, we understand Krishna. If anybody understands, Gaundiya vaishnava understand Shri Krishna. The members of the Hare Krishna movement understand Krishna as He is. As knowledge that has been revealed onto us by Lord’s pure devotee. Srila Prabhupada and he even gave us Bhagwad Gita which Bhagwatd Gita , ‘Bhagwat Gita as it is’ , So there also Krishna appeared in the form of Bhagwad Gita on Gita jayanti day and He is also among us, with us . Prabhupada gave us the message of Gita in the purest form. So,we are indebted to his divine grace Srila Prabhupada for giving us Krishna, in the form of His holy name, giving us Krishna in the form of Bhagavatam, in the form of Bhagwad Gita.
So in this way the Lord made His appearance and on Janmashtami He gave, He has lot many gifts for His appearance and those are available to us. So, today is Krishna’s birthday & we should be bringing gifts, making offering , we should do, we must do but at the same time we are also receiving gifts from Krishna on His birthday and of course what will be the better gift then receiving Krishna Himself, take Me. He offers Himself to us to each one of us in so many forms, in the form of holy name, in the form of Bhagwad Gita, in the form of Bhagavatam including also the prasadam form. Prasadam is also non different from Him so there we receive all these gifts, keep receiving all the time today and every day and make our life krishnaised as we receive his gift we will become Krishna conscious krishnaised and ultimately that would be the best of all the gifts that we will be allowed entrance to His kingdom .
Mameti, so Arjuna pritijano priyoasi Mai .
Those who accept Krishna’s love, serve Krishna, remember Krishna all the time and propagate Krishna consciousness for them what Krishna has guaranteed?
mameti that person will come back to Me pritijano I take, allow this is My benediction priyoasi Mai and I take this love I guarantee that you would come back to Me. He said this to Arjuna but it wasn’t just Arjuna who is dear to Lord. All of us, each one of us are very very dear to Lord otherwise why would He bother to come?
To appear in this world of suffering. Because He loves us, Lord loves all of us. So the Lord kindly made His appearance on this day so that one of the day at the end of this life we would go back to Him. Now He is missing us. So, He appeared was looking for us and His merciful glance fell upon us and this is reviving our dormant love for Him and that will result in our returning to Him, where He resides.
So, once again I wish you a very very happy Shri Krishna Janmashtami. So, celebrate Shri Krishna Janmastami and be happy!!
Hare Krishna!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
21अगस्त 2019
हरे कृष्ण
गोरांग, हरि हरि
बहुत सारी चीजें हैं बोलने के लिए, बहुत सारे विषय हैं कहने के लिए…. कृष्ण जन्माष्टमी आ रही है, कृष्ण आ रहे हैं, अगर सही कहे तो कृष्ण प्रकट हो रहे हैं (महाराज जी हंसते हुए) वास्तव में वह प्रकट हो चुके हैं 5247 वर्ष पूर्व….. हम कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाने जा रहे हैं। जन्म और अष्टमी, अष्टमी को कृष्ण जन्म अर्थात श्री कृष्ण प्रकट हुए।
कृष्ण हमारे लिए प्रकट हुए, हमारे हृदय में प्रकट हुए इस दिन कृष्ण हमारे हृदय में प्रकट हुए, कृष्ण हमारे हृदय में सदा से विराजमान हैं वह हमें याद दिलाते हैं की मेरा ध्यान करो मुझे याद करो मेरी पूजा करो
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु…..
हम सभी एकत्र होते हैं और भव्य उत्सव का आयोजन करते हैं, भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस मनाने के लिए। हजारों हजारों बार जन्मदिन आ चुका है (जैसे भक्त एक दूसरे का जन्मदिन मनाते हैं उसी की तर्ज पर….Happy Birthday to youuuuooo//एक बड़ा सा यु बोला महाराज जी ने//….And all that, महाराज जी हंस्ते हुए) अब जप करने वाले भक्तों ने भगवान का भी जन्म दिवस का भव्य उत्सव मनाना शुरू किया है।
श्रील प्रभुपाद ने हमारे अंदर कृष्ण भावनामृत को पोषित किया अब हम अपने जन्मदिन को महत्व नही देते हैं, हमारा अपना जन्मदिन महत्वपूर्ण नही है, अब श्री कृष्ण का जन्मदिन हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। श्रील प्रभुपाद जब 1965 में विदेश जा रहे थे, उन्होंने जलदूत पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया, जलदूत जहाज के सभी कर्मचारियों को एकत्रित करके श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया, उन्होंने अपना जन्मदिन नहीं मनाया।
प्रभुपाद ने तत्पशचात अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ को स्थापित करके जो व्यवस्था बनाई उसके द्वारा पूरे विश्व में हरिनाम का प्रचार किया, मंदिरों की स्थापना की भागवत और भगवद्गीता गीता जैसे शास्त्रों के माध्यम से हरिनाम का प्रचार किया, और आज 150 देशों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। नगर संकीर्तन वहा पहुँचा, भगवान का नाम पहुँचा, विदेशो में भी अब नई आत्माएं, नई तो नही क्योंकि आत्मा तो आत्मा है या फिर ये कहे कि वहाँ (विदेशो में ) भी आत्माओं को कुछ नया प्राप्त हुआ, अब वो एक नए प्रकार, बहुत ही लाभकारी उत्सव मना रहे हैं। ये श्री कृष्ण के जन्मदिवस का उत्सव है। यह आनंद का विषय है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बड़े धूम धाम से पूरे पृथ्वी पर मनाया जाता है ।
कुछ ही दिनों बाद लाखों भक्त या फिर आत्माएं (भी कह सकते हैं), सभी प्रकार के लोग (काले, श्वेत )अलग अलग जगहों पर श्री कृष्ण का प्राकट्य, अवतरण दिवस मनाने जा रहे हैं, सही मायने में यही उत्सव का पूर्ण अनुभव है। मैं अपनी यात्रा के दौरान अलग अलग जगहों पर देख रहा हूँ कि किस प्रकार भक्त लोग भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिवस के भव्य उत्सव की तैयारी में लगे है। मैं अभी यहाँ इंग्लैंड में हूँ, यहाँ लंदन के भक्ति वेदांत मैनर में मैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव समारोह में भाग लूंगा।
भारत से बाहर यहां इंग्लैंड के भक्तिवेदांत मैनर लंदन में जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा। अमेरिका, ह्यूस्टन अलग-अलग जगहों पर जहां भी मैं गया हूं अपने प्रवचनों में कीर्तन के माध्यम से याद दिलाया कि जन्माष्टमी आ रही है। अभी पिछले रविवार को मैं ह्यूस्टन में था, वहां भी अपने प्रवचन में मैंने भगवान के अवतरण के बारे में बताया। सभी को याद दिलाया कि जन्माष्टमी आ रही है। इसी प्रकार अमेरिका के न्यू वृंदावन में 2 दिन का कृष्ण लीला पर प्रवचन हुआ। वहां भी कृष्ण ही विषय(सब्जेक्ट मैटर) थे। कृष्ण का जन्म ही प्रवचन का विषय था। इस प्रकार से मैंने उन्हें याद दिलाया कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी आ रही है सभी लोग मानसिक रूप से, व्यावहारिक रूप से, भौतिक रूप से अपने आप को तैयार कर लो भगवान श्री कृष्ण के अवतरण दिवस के उत्सव को मनाने के लिए…
यहां पर जप कॉन्फ्रेंस में उपस्थित सभी जप करने वालों को भी मैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी के आगमन की याद दिला रहा हूं आप सभी अब ज्यादा से ज्यादा कीर्तन कथा भागवत सप्ताह इत्यादि की तैयारियों में जुट जाए। अभी नोएडा में भक्तों ने एक हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया और सभी को कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव के लिए आमंत्रित किया, उन्होंने लोगों को आमंत्रित किया कि आप सभी आइए और श्री श्री राधा गोविंद देव भगवान के जन्म उत्सव में भाग लीजिए नोएडा के भक्त 3 से 4 लाख लोगो के सम्मिलित होने के लिए अश्वस्त हैं और तैयारियों में लगे हुए हैं। इस्कॉन नोएडा भव्य जन्माष्टमी उत्सव मनाने वाले मंदिरों में से एक है।
मेरे जोन में आने वाले मंदिरो के भक्त, मेरे अनुयायियों के साथ साथ पूरा संसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियों में लगा हुआ है। आप सब भी यह सुनिश्चित कर लें कि आप एक सही मनो भाव में हैं और उत्सव मनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। सही भाव को बनाने के साथ साथ आप को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म और लीलाओ को भी समझना होगा।
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः… ॥4.9॥
जो मेरे जन्म को समझता है, जन्म तत्व को समझता है, भगवान के जन्म को समझना भी एक तत्व ज्ञान है। जो भगवान के जन्म तत्व और लीला तत्व को समझता है लीलाओ के विज्ञान को…उनके जन्म और लीलाओं का जो मूलभूत आधार है, उसको जो तत्वतः समझता है, उससे भगवान कहते हैं कि मैं तुम्हे अद्वितीय उपहार दूंगा। अपने बर्थडे पर में सबको उपहार(एक प्रकार का बर्थडे रिटर्न गिफ्ट) दूंगा वह कहते है,…
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन
यह है वो उपहार…कि ये भौतिक और दयनीय शरीर एक बार त्याग करने के बाद दोबारा ग्रहण नही करना पड़ेगा, मेरे धाम में मेरा शाश्वत संग और सेवा का आनंद प्राप्त करोगे। भगवान का इस प्रकार के उपहार का प्रस्ताव उन लोगो के लिए है जो इसे प्राप्त करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त और योग्य(पात्र, आधिकारिक) हैं। भगवान का यह रिटर्न गिफ्ट योग्य व्यक्ति जप करने के बदले में प्राप्त करते हैं, भगवान की सेवा करने के बदले में प्राप्त करते हैं, वो भगवान के जन्मदिवस की तैयारियां करते हैं।
…..(महाराज जी हस्ते हुए )और भी बहुत सी सेवाएं करते हुए वो भगवान के जन्माष्टमी उत्सव में भाग लेते हैं। वास्तव में कीर्तन और नृत्य श्री कृष्णजन्माष्टमी उत्सव का एक बडा हिस्सा है। सभी उत्साहपूर्वक तैयार होजाओ…
श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की….जय
गौर प्रेमनान्दे
हरि हरि
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
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18 अगस्त 2019
हरे कृष्ण
जप करने वाले आप सभी साधकों को ‘हरे कृष्ण’ मैं आप सभी का स्वागत करता हूं तथा हमारे साथ इस कॉन्फ्रेंस में जप करने के लिए आपका धन्यवाद देता हूं। हरिनाम प्रभु की जय। भगवान ही हरिनाम हैं, भगवान हरिनाम बनते हैं और हरि का नाम तथा भगवान दोनों अभिन्न हैं।भगवान अत्यंत कृपा करके स्वयं को विशेष रूप से कलयुग में हरिनाम के रूप में उपलब्ध करवाते हैं। आज मैं अजामिल के समान ही व्यक्तित्व वाले जगाई और मधाई के उद्धार की लीला सुन रहा था। यह चैतन्य भागवत के मध्य लीला का अंश है, जहां से मैं इसे सुन रहा था। जगाई और मधाई उद्धार लीला, वह वास्तव में हरिनाम की ही महिमा है अथवा हरिनाम के महत्व को समझाती है। इसमें भगवान यह बताते हैं कि यह हरिनाम हम सब के साथ क्या कर सकता है? हरिनाम का कितना महत्व है?
जगाई और मधाई दो भाई थे। वे विश्व में सबसे अधिक पापी थे अथवा एक प्रकार से कहे तो वे पापियों में अग्रणी थे, परंतु फिर भी हरिनाम के महत्व के कारण वे न केवल इन पाप कर्मों से मुक्त हुए अपितु वे इन पाप पूर्ण विचारों से भी मुक्त हुए। यह हरिनाम का महत्व है जिसका वर्णन इस जगाई मधाई उद्धार लीला में बताया गया है।
इस प्रकार जगाई मधाई की उद्धार लीला के माध्यम से भगवान हरिनाम के बल अथवा हरिनाम की जो कृपा है, किस प्रकार हरिनाम किसी पर कृपा कर सकता है उसको यहां पर प्रकट करते हैं। जब हम जगाई मधाई की उद्धार लीला का श्रवण करते हैं अथवा अध्ययन करते हैं तो हमें भी कुछ आशा उत्पन्न होती है कि, यदि जगाई मधाई जैसे पापियों का उद्धार हो सकता है तो हमारे लिए भी कुछ तो संभावना है कि हमारा भी उद्धार हो सकता है। चैतन्य महाप्रभु ने नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर तथा नित्यानंद प्रभु को यह आज्ञा दी की आप दोनों प्रत्येक घर जाओ और विशेष रूप से “जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश” इसका प्रचार करो। चैतन्य महाप्रभु ने यह निर्देश इस प्रकार हरिदास ठाकुर व नित्यानंद प्रभु को दिया। ये दोनों आचार्य हैं और वे प्रत्येक स्थान पर जाकर इसका प्रचार करने लगें। जो नित्यानंद प्रभु हैं वे बलराम हैं जो कि आदि गुरु हैं, तथा जो हरिदास ठाकुर हैं वह ब्रह्मा जी हैं, और ब्रह्मा जी भी आचार्य हैं। हमारा जो संप्रदाय है वह भी ब्रह्म मध्व गोड़ीय संप्रदाय है। इस प्रकार से ये दोनों आचार्य प्रत्येक स्थान पर गए और वहां जाकर हरि नाम का प्रचार करने लगे।
चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें निर्देश दिया “प्रति घर जाया करो येई आमार आज्ञा” हरिदास ठाकुर व नित्यानंद प्रभु को कहा की आप प्रत्येक घर जाइए और मेरीआज्ञा का प्रचार कीजिए।
तब हरिदास ठाकुर व नित्यानंद प्रभु ने निश्चय किया कि वे अब जगाई व मधाई का भी उद्धार करेंगे, उनको भी जाकर हरिनाम का प्रचार करेंगे तो वे सोचने लगे कि जगाई मधाई जैसे जो पापी हैं अथवा पापियों में अग्रणी है उनका उद्धार हो जाए। यदि वे पाप करना छोड़ दें तो इससे चैतन्य महाप्रभु की महिमा का अत्यंत प्रचार होगा। चैतन्य महाप्रभु नमो महावदान्याय हैं, उनकी जो इस नमो महावदान्याय की महिमा है वह चारों ओर फैल जाएगी, सभी को पता चलेगा कि क्यों चैतन्य महाप्रभु महावदान्याय हैं, क्यों चैतन्य महाप्रभु की कृपा का कोई अंत नहीं है। इस प्रकार से वे सोच रहे थे कि जब जगाई मधाई का उद्धार होगा तो चैतन्य महाप्रभु की जो करुणा है उसका सबको पता चल जाएगा।
क्या आप सभी को पता है कि किस प्रकार से यह लीला संपन्न हुई ?
हरिदास ठाकुर व नित्यानंद प्रभु ने जगाई मधाई को एक बाजार में देखा था, वहां पर उन दोनों भाइयों ने शराब पी रखी थी उनके हाथों में शराब की बोतलें थी। जब हरिदास ठाकुर व नित्यानंद प्रभु ने उन्हें देखा तो वे उनके समीप गए और उन्हें हरिनाम का जप करने के लिए निवेदन करने लगे, वे उनसे प्रार्थना करने लगे कि वे इस हरिनाम का जप करें। उन दोनों ने इसे नहीं माना और इसके विपरीत वे हरिदास ठाकुर और नित्यानंद प्रभु को गालियां देने लगे, उन्हें बुरे शब्द बोलने लगे और उन पर आक्रमण करने लगे। इस प्रकार से वे उनकी बात नहीं मान रहे थे। वे दोनों शराब के नशे में चूर थे वे अत्यंत डरावने तथा भयानक प्रतीत हो रहे थे। तब नित्यानंद प्रभु वह हरिदास ठाकुर दोनों वहां से भागने लगे, उन दोनों भाइयों ने उनका पीछा किया और वे उन दोनों के पीछे भागने लगे। बड़ी मुश्किल से नित्यानंद प्रभु व हरिदास ठाकुर ने अपने आपको उन दोनों से बचाया। जब वे दोनों शाम को चैतन्य महाप्रभु के पास गए तो महाप्रभु ने उनसे कहा कि आप प्रतिदिन प्रचार के लिए जाते हैं और “जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश” इसका प्रचार करते हैं।
शाम के समय जब आप आते हैं, तो मैं आपकी प्रतीक्षा करता हूं तथा आप मुझे प्रचार की रिपोर्ट बताते हैं। आज आपने कहां प्रचार किया उसके विषय में मुझे बताइए? उन दोनों के पास आज के प्रचार के बारे में बताने की कोई रिपोर्ट थी ही नहीं उन्होंने जो हुआ वह महाप्रभु को बता दिया। महाप्रभु ने उन्हें निर्देश दिया कि आप फिर वहां जाओ और प्रचार करो। यदि कोई आपका प्रतिवाद करें या आप पर आघात करेगा तो मैं उन्हें देख लूंगा और मैं अपने सुदर्शन चक्र के साथ में वहां प्रकट हो जाऊंगा। जब महाप्रभु ने उन्हें यह आदेश दिया तो वे दोनों फिर उसी स्थान पर गए, जगाई मधाई दोनों वहां बैठे हुए थे, जो शराब पीने में व्यस्त थे। वे पूरी तरह शराब के नशे में चूर थे। नित्यानंद प्रभु व हरिदास ठाकुर उन दोनों को प्रचार करने लगे। जब वह उन्हें प्रचार कर रहे थे कि वे हरिनाम ले तो मधाई ने शराब से भरा मिट्टी का पात्र उठाकर नित्यानंद प्रभु के ऊपर फेंका। वह पात्र नित्यानंद प्रभु के सिर पर लगा और उस से खून बहने लगा। चैतन्य महाप्रभु जो कि सर्वज्ञ हैं वह जिस स्थान पर भी थे उन्हें पता चल गया कि नित्यानंद प्रभु के ऊपर मधाई ने यह आक्रमण किया है और उनको आघात पहुंचाया है। तब चैतन्य महाप्रभु उसी समय उस स्थान पर प्रकट हो गए जहां पर यह घटना हुई थी और वह कहने लगे चक्र चक्र सुदर्शन चक्र तभी वहां महाप्रभु के हाथ में सुदर्शन चक्र प्रकट हो गया। भगवान, वैष्णव के प्रति अगर कोई अपराध करता है तो उसे सहन नहीं कर सकते, इसलिए वहां पर प्रकट हो गए। इस प्रकार से जब चैतन्य महाप्रभु सुदर्शन चक्र से उन पर आक्रमण करने वाले थे तब नित्यानंद प्रभु ने बीच बचाव किया कि नहीं महाप्रभु आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, यह कलयुग है यहां आप सुदर्शन चक्र का प्रयोग नहीं कर सकते। किस शास्त्र का इस कलयुग में उपयोग किया जा सकता है? वह है
हरिनाम “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे” यह एक शस्त्र है जिसका प्रयोग कलयुग में किया जाता है क्योंकि अन्य जो शस्त्र हैं, वे तो केवल शरीर का वध करते हैं। परंतु केवल शरीर का वध करना पर्याप्त नहीं है इसके साथ साथ जो पापपूर्ण विचार हैं या पापपूर्ण मानसिकता है उसका भी वध होना चाहिए, जब उस मानसिकता का वध होगा तभी व्यक्ति को पूर्ण लाभ हो सकता है। तब चैतन्य महाप्रभु ने सुदर्शन चक्र को पुनः अप्रकट किया और जब मधाई जिसने नित्यानंद प्रभु के ऊपर शराब के पात्र से आक्रमण किया था, जब उसने देखा कि किस प्रकार चैतन्य महाप्रभु हम दोनों भाइयों का वध करना चाहते हैं। परंतु नित्यानंद प्रभु जिनके सिर पर मैंने मारा है व जिनके सिर से खून बह रहा है, वे बीच बचाव कर रहे हैं हमें बचाने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार मधाई को हरिनाम की महिमा का पता चला कि किस प्रकार हरिनाम की महिमा के द्वारा नित्यानंद प्रभु इतने दयालु हैं कि वे स्वयं पर हुए आक्रमण के पश्चात भी हम दोनों को बचाना चाहते हैं। इस प्रकार मधाई को हरिनाम की महिमा का आभास उस समय पर हुआ।
इस प्रकार जगाई मधाई दोनों भाई गौरांग महाप्रभु, नित्यानंद प्रभु व हरिदास ठाकुर के चरण कमलों में गिर गए और वे उनसे क्षमा याचना करने लगे। इस प्रकार दोनों भाइयों ने यह प्रतिज्ञा ली कि आज से हम दोनों भी “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” महामंत्र का जप करेंगे।आज से हम दोनों इन पापपूर्ण कार्यों का त्याग कर देंगे। वे दोनों केवल शराब ही नहीं पीते थे बल्कि अन्य पापपूर्ण कार्यों में भी लिप्त थे। वे शराब पीते थे, मांस खाते थे। तब उन्होंने निर्णय किया कि वे शराब नहीं पिएंगे, मांस नहीं खाएंगे, अवैध संबंध नहीं रखेंगे तथा जुआ नहीं खेलेंगे तो उन दोनों भाइयों ने चार नियमों का पालन करने का निश्चय किया और साथ ही साथ नियमित रूप से जप करने का भी निर्णय लिया और उन्होंने कहा हम वैष्णव की सेवा करेंगे ऐसी प्रतिज्ञा उन दोनों भाइयों ने की।
इस प्रकार उनकी चेतना में परिवर्तन हुआ और वे हरे कृष्ण महामंत्र का जप करके वैष्णवों में प्रमुख बन गए। वे प्रत्येक समय हरिनाम का जप करते और कोई भी पापपूर्ण कार्य नहीं करते थे और सदैव वैष्णव सेवा में रत रहते थे। उनके पास जितनी भी धन संपत्ति थी उसका उपयोग करके उन्होंने गंगा नदी के तट पर एक घाट बनवाया, जिस घाट को जगाई मधाई घाट के नाम से जाना जाता है। उन दोनों भाइयों का वास्तविक नाम था जगदानंद व माधवानंद। उन दोनों ने मिलकर जो घाट बनाया वह योगपीठ से अधिक दूर नहीं है परंतु अभी कालांतर में वह प्रायः लुप्त हो गया है जो अब दिखता नहीं है। उस समय में जब वैष्णव वहां उस घाट पर पधारते थे,वे दोनों वैष्णवों का स्वागत करते और यथासंभव उनकी सेवा करते थे। इस प्रकार से यदि कोई कहे कि इस हरिनाम से पापियों का उद्धार होता है इसका क्या प्रमाण है इसका कौन साक्षी है? तो इसके साक्षी ये दोनों भाई जगाई और मधाई हैं। इस प्रकार से हरिनाम द्वारा पापियों की मुक्ति हो सकती है वे पापपूर्ण कार्यों से मुक्त हो सकते हैं तथा वे भगवान के शुद्ध भक्त बन सकते हैं। इसका उत्कृष्ट उदाहरण है जगाई और मधाई। जगाई और मधाई का इस लीला द्वारा जैसे हृदय परिवर्तन हुआ तो हमें भी एक आशा होती है कि हमारा भी उद्धार हो सकता है, हमारे उद्धार की भी कोई आशा है। इस प्रकार आप सदा हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते रहिए। आज हम यही अपनी वाणी को विराम देते हैं
हरे कृष्ण।
जय श्रील प्रभुपाद।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
18TH AUGUST
HARINAAM CAN DELIVER WORST OF SINNERS!
We welcome and appreciate your participation in chanting.Hari,Harinaam Prabhu ki! Lord, Lord is Harinaam,Lord becomes Harinaam,Lord is non different from Harinaam. Lord kindly makes himself available in the form of Holyname. Specially to people in this age of Kali.I was hearing someone like Ajamil, & Jagai and Madai uddhaar lila,as it is described in Chaitanya Bhagawat Madhya lila. But Jagai and Madai uddhaar lila that is glories of the Holyname. What could Holyname do to you, to us otherwise the sinners of this world. Jagai-Madai were too sinful,very sinful or leaders of the sinners. So Holyname even freed them of sinful activities or thoughts.They became free from thoughts of sinning. Hari! Hari! Lord has exhibited the power of the Holyname, mercy of the Holyname, through this Jagai-Madai udhar Lila. As we hear and read that pastime,We have also hope. If Jagai-Madai could be then there is every hope for me also.Hari! Hari! So Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu instructed Haridas Thakur,Naam Acharya Haridas Thakur and Nityananda Prabhu. To go everywhere, to go door to door.There are so many instructions, Jare dakho tare kaho krishna upadesh It was given specifically to Haridas Thakur and Nityananda Prabhu And they were going around roaming around as Gurus.
Nityananda Prabhu is Adi Guru he is Balaram. And Naam Acharya Shrila Haridas Thakur is Lord Brahma,Brahma is also acharya. Whom Brahma Madhav Gaudiya Sampradaya Belongs to. Prabhus, Nityananda Prabhu and Naam Acharya Haridas Thakur Prabhu and they started going around Amar agyay Kariya . Chaitanya Mahaprabhu says, pratigarya gaya Amar agyay prachar So Haridas Thakur and Nityananda Prabhu They decided to preach to Jagai and Madai. They were thinking that if Jagai and Madai like sinners or leading sinners,they could become free from sinning business,if they could be liberated then our Mahaprabhu’s name will spread, his glories will spread as Namo Mahavadanyaya. Lord would realize what is this Chaitanya being Mahavadanyaya his being Magnanimous,what is his Magnanimity? Have No limit . When Jagai-Madai like sinners when they received the Magnanimous kindness. That Magnanimity reached Jagai and Madai. Also Haridas Thakur they both are thinking like that. So they made the target Jagai and Madai was their Target. And As we know of ,the way the pastime unfolds. They saw them at the Market place. They were dropped off or the drinks were filling their hands, the bottle or claypots filled wine.As Haridas Thakur, Nityananda Prabhu were appealing them to chant, Please chant,please, but they were not receptive.They Started screaming and calling bad names and they started attacking Haridas Thakur and Nityananda Prabhu. So scary dangerous personalities that made Nityananda Prabhu and Haridas Thakur to get scared and they started running away trying to escape. So Jagai and Madai were Chasing after Nityananda Prabhu and Haridas Thakur.
So they barely managed to save their life. And then they came back and asked that we go Everyday preaching doing this Jare dekho tare kaho krishna upadesh, and you come back and do the reporting to me. So that day Haridas Thakur and Nityananda Prabhu,had nothing glorious and encouraging to report. So after Chaitanya Mahaprabhu heard that. You Go back you continue your preaching and if someone opposies you or even try to hurt you,I will take care of that, I will appear with my Sudarshan Cakra. So, Haridas Thakur and Nityananda Prabhu again went back and again there were those two prabhus Jagai and Madai,they are in the middle of their act of drinking and, yeah they were all intoxicated. So again the attempt was made by Haridas Thakur and Nityananda Prabhu because the Madai he threw Claypot which was filled with wine, throw at Nityananda Prabhu, it hit,the forehead of Lord and he was wounded and bleeding. Chaitanya Mahaprabhu is knower of everything,he came to know what just now happened. Chaitanya Mahaprabhu had come on the scene. And he is invoking chakra! Chakra! Sudarshan chakra! And the chakra appeared. Lord could not stand, could not tolerate offences against the vaishnavas. The Lord was there to kill,crush,cut that attacker into pieces. Nityananda prabhu and he was kind of justifying and preaching to Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu No! No! This is the age of Kali Lord You cannot use, this weapon Sudarshan Cakra, then what weapon to be used? ,The Holy Name is the weapon.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
This is the weapon other weapons they only kill the body but that is not sufficient killing the body,this demonic mentality has to be killed.Sinful thoughts and desires have to be killed eradicated then only that person can be fully benefitted. So then Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu withdrew that weapon Sudarshan Cakra and here when Chaitanya Mahaprabhu was ready to kill one of those two sinners,that strictly went over Nityananda prabhu with that clay pot that was Madai. So when Madai saw the Holyname was also working acting exhibiting its power. Holyname was being chanted at the same time. The kindness of the Lord,both the Lords specifically Nityananda Prabhu’s kindness or anybody who witnessed what jagai and Madai were witnessing. Especially Madai was witnessing being the attacker. When he saw Nityananda Prabhu bleeding, Chaitanya Mahaprabhu would attack him and he saw how kind was Nityananda Prabhu that
transformed Madai also,Both jagai and Madai fell flat at the lotus feet of Gauranga ,Nityananda ,Naam Acharya Shrila Haridas Thakur, they beg for forgiveness and took a vow that from this day onwards we will also chant
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
And from this day onwards we will stop all the sins they were doing, not only drunkard , no intoxication from this day, they were also meat eaters,fish eaters or all sorts of eating,they were doing from this day we will stop this. They were women hunters,no more illicit sex we will indulge in and they were gamblers, we stop gambling from today. So they agreed to follow these regulative principles and of course chant regularly and we would be serving Vaishnavas. So they said, they took vows and started doing all that they had said,they will do. And there was an evolution in their consciousness and they became the greatest of all vaishnavas. Always Chanting no more sinning and always chanting and always serving Vaishnavas also. They built the ghat,invested all the funds that they had accumulated that. That ghat is known as Jagai-Madai ghat spiritual names Jagadananda and Madhavananda. This is not far from yogpeeth, this is not fully visible for man but right now the location is known. The pilgrims coming to the banks of Ganga were coming,to their ghat,JagaiThe ghat is not far from Yogapith,it’s not fully visible unmanifest by now,but the location is known.
So lots of pilgrims coming,on the banks of Ganga coming to their ghat, Jagai-Madai were receiving them, touching their feets offering obeisances and serving in all possible ways always. All those pilgrims,all those vaishnavas. So dena hina yatha chelo harinaam uthahilo tara sakshi jagai Madai. Dina hina the poor fallen sinful Jagai and Madai or sinful people could be liberated by the holy name, there is the proof, it’s the proof,tara sakshi Jagai-Madai, Jagai and Madai are the witness,are the example of this fact that ,dena hina yatha chilo harinaam,that sinful people could be freed from sinning and sinful mentality just by becoming pure devotees of the Lord just by chanting the holy names of the Lord so there is every hope like Jagai-Madai. it’s possible! you& me can be transformed by chanting the holy names of the Lord so keep chanting.
Hare Krishna.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
17 अगस्त 2019
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद। आज की जप चर्चा कल की जप चर्चा का आगे का अंश है, कल हमने जहां पर इस जप चर्चा को विराम दिया था वहां गुरु महाराज बता रहे थे कि किस प्रकार से हम अपनी आत्मा को नेगलेक्ट करते हैं उसकी तरफ ध्यान नहीं देते हैं,और चैतन्य महाप्रभु जीव जागो जीव जागो इसके माध्यम से हमारी आत्मा को जगाने का आह्वाहन करते हैं। इस प्रकार से आज की जप चर्चा कंटिन्यूएशन है जहां हमने कल इसे विराम दिया था, वहीं से अभी यह पुन: शुरू हो रही है। इस प्रकार गुरु महाराज अपनी जप चर्चा प्रारंभ करते हैं, आज वे कहते हैं कि बहुत समय से हमारी यह आत्मा सो रही है, जब हम जीव जागो जीव जागो कहते हैं, वास्तव में जीव शरीर नहीं है शरीर तो जग ही जाता है परन्तु आत्मा तब भी सोई रहती है। शरीर, जब हम भूखे होते हैं तब भी उठता है, जब हमें ऑफिस जाना होता है तब भी शरीर उठता है, परंतु मुख्य बात यह है की जब यह शरीर उठ जाता है, उस समय भी यह आत्मा सोई रहती है।
जीव जागो जीव जागो गोरा चांद बोले ये भजन आत्मा को जगाने के लिए है तथा जब हम यह समझ जाते हैं कि वास्तव में मैं कौन हूं? जब हम स्वयं को समझ जाते हैं कि मैं यह शरीर नहीं अपितु मैं आत्मा हूं, तब ठीक प्रकार से जप कर सकते हैं। वास्तव में हम इस हरे कृष्ण महामंत्र के जप के द्वारा आत्मा का पोषण करते हैं, आत्मा का संबंध स्थापित करते हैं अथवा एक प्रकार से कहे तो इस हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा हम आत्मा को भोजन करवाते हैं। परन्तु आप इस बात का ध्यान रखें कि अत्यंत ध्यानपूर्वक आत्मा का पोषण हो, आत्मा का भोजन हो और यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी आत्मा ठीक प्रकार से भोजन कर रही हो। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि हम जप तो करते हैं परंतु उसका श्रवण नहीं करते अथवा जब हम जप करते हैं तब हमारा मन अन्य किन स्थानों पर घूमता रहता है। इस प्रकार से हमारी एक माला से दूसरी माला और इस प्रकार यह चलता रहता है। परन्तु मन उस जप का श्रवण नहीं करता है, वह कहीं अन्यत्र ही रहता है। तो हमें यह करना चाहिए कि इस मन को जप के समय श्रवण पर लगाएं। ओर वो जहां कहीं पर भी हो उसे वहां से पुन: खींच कर लाएं, और इस हरिनाम का श्रवण मन को करवाएं। इसके द्वारा इसके परिणाम स्वरूप मन भगवान के नामरूप, गुण, लीला और धाम आदि का चिंतन करें ।
जब इस प्रकार हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण होगा तो भगवान से संबंधित चिंतन होगा। इस प्रकार से जब एक मां अपने बच्चों को भोजन कराती है तब वह चम्मच से उस बच्चे को भोजन खिलाती है, स्पून फीडिंग अथवा मां स्वयं अपने हाथ से चम्मच पकड़ कर बच्चे को भोजन कराती है अथवा बच्चा चम्मच नहीं उठा सकता या उठाना नहीं चाहता तो मां उस चम्मच को पकड़ती है उसमें भोजन लेती है और बच्चे को खिलाने का प्रयास करती है। कभी-कभी बच्चा मुंह नहीं खोलता है अथवा यदि वह होठ खोल देता है तो वह अपने जबड़े और दांतो को कसकर टाइट रखता है, जिससे चम्मच अंदर नहीं जाए, हमने ऐसा देखा है कि किस प्रकार से मां बच्चे को भोजन कराने का प्रयास करती है। इस स्थिति में वह मां अपने बच्चे का ध्यान इधर-उधर से हटाती है और किस ना किसी प्रकार से उसके होंठ खोलकर और थोड़ी जगह बनाकर वह चम्मच उसके मुंह में डालती है। आपको कभी ऐसा अनुभव हुआ है या हो सकता है कि आपके स्वयं के पुत्र के साथ ही ऐसा हुआ हो कभी, लेकिन आपने देखा होगा बहुत से बच्चे ऐसा करते हैं और जब यह चम्मच उस बच्चे के मुंह में चला गया है परंतु वह भोजन जो उसके मुंह में है, वह बच्चा उसे चबाता नहीं है वह उसे मुंह में हीं रखें रखता है। अंत में जब वह बच्चा उसे चबाता है, उसके पश्चात जब वो उसके पेट में चला जाता है वहां पर उसके पचने की प्रक्रिया चालू होती है। इस प्रकार से जब वह भोजन पचता है तभी उसके शरीर को ऊर्जा मिलती है। तब वह अपने दैनिक कार्य कर सकता है अथवा उसका शरीर चलता है, इस प्रकार से जब हम श्रवण और कीर्तन करते हैं तब हमारा मन एक रुकावट है, जिस प्रकार बच्चे के मुंह और दांत एक रुकावट हो रहे थे जब वह भोजन ग्रहण कर रहा था उसी प्रकार हमारा मन भी रुकावट है। यह हमारा शत्रु है, भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता के 6 अध्याय में अष्टांग योग का वर्णन करते हैं, वहां पर भगवान कहते है
बंधुरात्मैव और रिपुरात्मनः इस प्रकार से मन हमारा मित्र भी है और यह मन हमारा शत्रु भी है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि किस प्रकार इस मन को हम हमारा मित्र बनाएं और यह शत्रु ना बने। इस प्रकार से भगवान् छठे अध्याय में बताते हैं उद्धरेदात्मनात्मानम (भ.गीता-6.5) इस पूरे श्लोक में केवल आत्मा का ही वर्णन किया गया है आप प्रत्येक बार आत्मा आत्मा कहते हैं तो यहां प्रत्येक जो आत्मा है एक स्थान पर वह आत्मा है दूसरे स्थान पर वह बुद्धि है और तीसरे स्थान पर वह मन है तो भगवान जब कहते हैं की आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरात्मैव अर्थात ये आत्मा ही आत्मा की मित्र है। यहां जो प्रथम आत्मा है वह मन है, इस प्रकार से यह आत्मा आत्मा की मित्र है इसका अर्थ है यह मन हमारी आत्मा का मित्र है अथवा मित्र हो सकता है दूसरे भगवान कहते हैं आत्मैव रिपुरात्मनः अर्थात यहां पर भी कहते हैं आत्मा आत्मा का शत्रु है तो इसका भी अर्थ है कि यह मन हमारे आत्मा का शत्रु है अर्थात यह बुद्धि आत्मा का मित्र है या शत्रु है उद्धरेदात्मनात्मानम-यहां भगवान कहते हैं एक आत्मा का दूसरी आत्मा से उद्धार होना चाहिए। गुरु महाराज कहते हैं कि मैं आपको कंफ्यूज नहीं करना चाहता हूँ इसके माध्यम से। परन्तु मैं यह बताना चाहता हूं कि यहां भगवान जो तीन बातों का वर्णन करते हैं वे क्या हैं भगवान कहते हैं आत्मा का उद्धार मन तथा बुद्धि के प्रयोग से हो सकता है। हमें मन बुद्धि के सहयोग द्वारा इस आत्मा का उद्धार करना चाहिए आत्मा को मुक्त होना चाहिए उसके लिए हम संयमित मन अथवा शुद्ध मन के द्वारा ऐसा कर सकते हैं, अथवा वह बुद्धि है जो हमारे मन को संचालित करती है मन को संयमित रखती है। इस श्लोक में तीन आत्माओं का वर्णन हुआ है प्रथम आत्मा और दूसरा है मन आत्मा और तीसरा है बुद्धि आत्मा। मन बुद्धि और आत्मा इन तीनों का वर्णन यहां होता है और तीनो के ऊपर है परमात्मा। परमात्मा है हमें यह बुद्धि प्रदान करते हैं भगवान कहते हैं ददाति बुद्धि योगम भगवान हमें यह शुद्ध बुद्धि प्रदान करते हैं तब हम हमारे मन को बुद्धि के द्वारा नियंत्रण में रखते हैं। यह नियंत्रित मन हमारी आत्मा का उद्धार कर सकता है, उसे मुक्त कर सकता है।
तो इस प्रकार से एक अन्य स्थान पर भगवान कहते हैं “मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः” अर्थात यह मन हमारे बंधन का ही कारण हो सकता है और हमारी मुक्ति का भी कारण हो सकता है। जब यह मन हमारा शत्रु है तभी हमारे बंधन का कारण है। जब यह हमारा मित्र है तो हमारे बुद्धि का कारण है, इसलिए जब हम कहते हैं की सफलतापूर्वक जप करना बुद्धिमान का कार्य है, बुद्धिमान व्यक्ति ध्यान पूर्वक जप कर सकता है ये एक बुद्धू का कार्य नहीं होता है। इस प्रकार से 2 व्यक्ति होते हैं बुद्धिमान और दूसरा होता है बुद्धू, बुद्धू जो निरा मूर्ख हो, तथा वो बुद्धू है जो जप ठीक प्रकार से नहीं कर सकता है। इस प्रकार से बलराम ने भी उस गधे का वध किया था जो धेनुकासुर के रूप में आया था, उसका वध बलराम जी ने किया था। जो गधा है उसे बिना बुद्धि का प्राणी माना जाता है अथवा वह अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करता इतना कठिन परिश्रम करता है दिन रात, परंतु उसे यह नहीं पता कि घास तो हर कहीं उपलब्ध है वह कहीं से भी अपना भरण-पोषण कर सकता है। परंतु वह यह सोचता रहता है कि मुझे अपने मालिक का अपने बॉस का अपनी कंपनी सरकार अथवा इस धोबी के लिए जब मैं बहुत अधिक कठोर परिश्रम करूंगा दिन रात, तब मुझे भोजन मिलेगा और तब मैं अपना जीवन यापन कर पाऊंगा तो यह जो मानसिकता है वह उस गधे की मानसिकता है, वह कठोर परिश्रम की मानसिकता है। बलराम आदिगुरु हैं और बलराम उस गधे का वध करते हैं। उसी प्रकार क्योंकि गुरु भी बलराम का प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात वह भी हमारे भीतर छुपे हुए गधे का वध करते हैं।
हमारे भीतर का गधा कठोर परिश्रम करवाता है, जो कठोर परिश्रम की मानसिकता रखता है। मानसिकता का गुरु वध करते हैं। यह एक कार्य हुआ उस गधे का दूसरा कार्य है कि वह संभोग करने में रत रहता है,वो गधा सदैव गधी के पीछे भागता रहता है उसके साथ में भोग करना चाहता है, हमारे वृंदावन के कृष्ण बलराम मंदिर में दीनबंधु प्रभु है वे बलराम द्वारा धेनुकासुर का वध, इस लीला का अत्यंत ही रुचि पूर्वक ढंग से वर्णन करते हैं, वे कहते हैं कि वह जो गधा है वे उस गधी के पीछे भागता है गधी उस गधे को लात मारती है कभी-कभी उसके मुंह पर लात मार देती है परंतु इससे भी वह गधा पीछे नहीं हटता है फिर भी उस गधी के पीछे भागता रहता है और अपने मुंह पर लाते खाता रहता है, क्योंकि वह उसके साथ में भोग करना चाहता है। इस प्रकार दो प्रकार से इसमें गधे का वर्णन है। प्रथम कि वह अत्यंत कठोर परिश्रम करता है।
और दूसरा है कि, वह सदैव भोग करने के लिए रत रहता है ओर वह गधी के पीछे भागता रहता है। तो इस प्रकार से उस धेनुकासूर का वध भगवान श्रीकृष्ण भी कर सकते थे परंतु बलराम ने भगवान से कहा नहीं नहीं इसका वध तो मुझे ही करने दो मैं ही इसका वध करूंगा क्योंकि इसके माध्यम से मैं सभी आध्यात्मिक गुरुओं को यह बताना चाहता हूं की उन्हें भी इस गधे रूपी मानसिकता जो उनके शिष्यों के हृदय में रहती है उसका वध करना होगा। इस प्रकार से यह जप बुद्धिमान का कार्य है वह एक बुद्धू का कार्य नहीं है। जब तक यह मानसिकता हमारे हृदय में रहेगी तब तक बंधन रहेगा, तब तक हम मुक्त नहीं हो सकते हैं। हमें इसके लिए बुद्धिमान बनना होगा तो हम बुद्धिमान किस प्रकार से बन सकते हैं।भगवान हमें भी बुद्धि प्रदान करते हैं, हमें यह पता होना चाहिए कि भगवान यह बुद्धि निशुल्क हर किसी को नहीं देते हैं, ये किसे प्रदान करते हैं,इसके लिए भगवान कहते हैं “तेषां सतत युक्तानां” (भ.गीता) भगवान कहते हैं कि जो सतत तथा प्रितिपूर्वकम-जो निरंतर और प्रीति के साथ में मेरा भजन करते हैं अथवा मेरी सेवा करते हैं। जब कोई साधक भक्तिपूर्वक तथा प्रेमपूर्वक स्वयं को भगवान की सेवा में सलंग्न करता है, तब भगवान उसे बुद्धि देते हैं। बाईबल में भी ऐसा कहा गया है एक स्टेटमेंट आता है कि “लव दा लोड विद ऑल द हार्ट विद ऑल द स्ट्रेंथ” अर्थात आप भगवान को अपने पूरे हृदय से और पूरे सामर्थ्य से भगवान को प्रेम कीजिए भगवान की सेवा कीजिए।
श्री कृष्ण भी भगवतगीता में ऐसा ही बताते हैं , भक्ति का आधार आध्यात्मिक सेवा ही है। इस आध्यात्मिकता के द्वारा ही हम भक्ति कर सकते हैं और सेवा करने वालों को भगवान यह बुद्धि प्रदान करते हैं। हम जितनी अधिक सेवा करेंगे उतनी ही अधिक मात्रा में हमें यह बुद्धि मिलेगी। इस हरे कृष्ण महामंत्र का जब हम जप करते हैं , यह भी एक सेवा है । कलयुग में हरे कृष्ण महामंत्र का जप सेवा है और जप ही एकमात्र मार्ग है।भगवान आगे कहते हैं कि इस प्रकार से हमें जब यह बुद्धि मिल जाती है तो इसका लक्ष्य क्या होता है परिणाम क्या होता है, अंततोगत्वा “येन मामुपयंति ते” हमारा लक्ष्य है हम पुन: भगवत धाम चले जाते हैं, हम पुनः भगवान के पास जाते हैं। जहां भगवान नित्य रूप से( कृष्ण और बलराम) वहां अपनी लीलाएं करते हैं। जब तक हम इस जगत में है तब तक हम साधन भक्ति करते हैं, हम महामंत्र का जप करते हैं और हम स्वयं को भक्तिमय सेवा में सलंग्न रखते हैं। जब हम इस साधन भक्ति में एक प्रकार से सक्षम हो जाते हैं, दक्ष हो जाते हैं। तब हम पुनः भगवत धाम जा सकते हैं, जहां पर भगवान की नित्य लीला सदैव चलती रहती है। इस प्रकार से यह जप चर्चा पूरी हो गई है, यहां पर इस बात का आप ध्यान रखिए जो प्रमुख बात है।
परम पूज्य श्री लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
16 अगस्त 2019
हरे कृष्ण
हरे कृष्ण, यह आपके जप करने का समय है यह नियमित जप करने का समय नहीं है, क्योंकि भारत में यह जप करने का समय नहीं है। अमेरिका में उस समय प्रातः काल था उस समय वहां के भक्त जप कर सकते थे परंतु भारत में शाम का समय था आप प्रत्येक समय जप कर सकते हैं। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं (नामनामकारी बहूधा निजसर्वशक्ति) इस प्रकार से चैतन्य महाप्रभु बता रहे हैं कि जप के लिए कोई कठोर नियम नहीं है जप कभी भी किया जा सकता है। मैं अभी अलाचवा (न्यू रमणरेती ) में हूँ जहां पर हमारा अमेरिका में कृष्ण बलराम मंदिर है। मैं इस कांफ्रेंस में आप सभी के साथ जप करते हुए और यहां मेरे आस-पास जो भक्त बैठे हैं मैं उनसे भी चर्चा कर रहा हूं। इस प्रकार जो विशेष बात है यहां पर वह यही है कि जप के लिए हमारे कोई कठोर नियम नहीं है, जप इसी समय होना चाहिए यह इसके नियम हैं परंतु फिर भी हम आप सभी को ब्रह्म मुहूर्त में जप करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और आपको उसके लिए सुझाव देते हैं कि ब्रह्म मुहूर्त में अपना जप करें। इस प्रकार से यद्यपि जप के लिए कोई कठोर नियम नहीं है फिर भी हम आप सभी को यह सुझाव देते हैं
कि आप सभी अपना जप ब्रह्म मुहूर्त में पूरा करें क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त के समय सतोगुण का प्रभाव होता है। उसी प्रकार से दोपहर के समय रजोगुण का प्रभाव अधिक होता है रात्रि में तमोगुण का प्रभाव होता है इस प्रकार से इन गुणों के अनुसार हमारा दिन है। यह तीन भागों में विभक्त होता है और इसके लिए आपको प्रयास करना चाहिए। यहां पर जप के लिए कौन सा गुण किस प्रकार प्रभावित करता है उसके अनुसार आपको प्रयास करना चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त में हम अपना जप पूरा करें। इस प्रयास में सबसे प्रथम चीज तो यही है कि आपको सुबह जल्दी उठना पड़ता है, आप जल्दी उठिए आप ब्रह्म मुहूर्त में अपना जप करने का प्रयास कीजिए मैं जानता हूं कि आप सभी अत्यंत व्यस्त हैं। आपकी दिनचर्या अत्यंत व्यस्त रहती है फिर भी आप अपने जप करने का समय निश्चित कीजिए आप यह समझ ले कि मेरे लिए जो दिन है वह 24 घंटे का नहीं है अपितु 22 घंटे का ही है। 22 घंटों में आप अपनी जो अध्यात्मिक सेवाएं हैं वे कर सकते हैं, जो पारिवारिक कर्तव्य हैं जो कि वर्णाश्रम का एक अंग है उन्हें आप संपन्न कर सकते हैं अथवा अन्य कोई कार्य कर सकते हैं परंतु आपके इन सभी कार्यों के लिए 2 घंटे हैं ही नहीं यह 2 घंटे केवल और केवल आपके जप के लिए हैं।
इस प्रकार से 2 घंटे आप जप कीजिए और इस प्रकार अन्य 22 घंटे है उसमें और अधिक जप कर सकते हैं, आप श्रवण कर सकते हैं, आप सेवाएं कर सकते हैं। आपके जो कर्तव्य हैं आप उन्हें पूरा कर सकते हैं, उनका पालन कर सकते हैं। हमने यहाँ अलाचवा अमेरिका में कल बलराम पूर्णिमा मनाई थी और भारत में आज सभी बलराम पूर्णिमा मना रहे होंगे। इस प्रकार जब हमने बलराम पूर्णिमा का महोत्सव कल मनाया था अलाचवा मे तो हमने पूरे दिन बलराम जी का स्मरण किया उनके विषय में चिंतन करते रहे और उनके लिए कीर्तन किया और बलराम जी की कथा करके उनका स्मरण किया। हमने हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस मंत्र का अधिक से अधिक मात्रा में कल कीर्तन किया और विशंभर प्रभु ने भी कीर्तन किया। बलराम जी आदि गुरु हैं, वे प्रथम अध्यात्मिक गुरु हैं और जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं उसमें जो हरे राम आता है तो उसमें श्रील प्रभुपाद एक समय बताते हैं की यह जो हरे राम है उसमें वह राम बलराम ही हैं। भारत में कुछ व्यक्ति जानना चाह रहे थे कि हम हरे राम कहते हैं महामंत्र में, क्या यह जय श्रीराम वाले राम है दशरथ पुत्र राम है। प्रभुपाद ने उन्हें कहा हां वे वो ही राम हैं। प्रभुपाद यह भी कहते हैं, हरे कृष्ण में जो राम हैं वह बलराम है और हम सभी जैसा कि जानते हैं कि जब हम हरे राम कहते हैं वे श्री कृष्ण ही हैं। इस प्रकार से कृष्ण ही बलराम हैं, हरे राम बलराम भी हैं और कृष्ण भी हैं, कृष्ण बलराम एक ही हैं। प्रभुपाद जी भी ऐसा कहते हैं हमने भी कल ऐसा बताया था
बलराम जो 98% भगवान है वह लगभग कृष्ण ही हैं। वे कृष्ण के अत्यंत समीप है केवल कुछ 2% ही कमी है कि वे कृष्ण नहीं हैं। परंतु वह लगभग वही है इस प्रकार से हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने वाले साधक जो हरे राम कहते हैं उन्हें आज बलराम का स्मरण होना चाहिए। उनका नाम ही है बलराम अर्थात बल और राम, बल का अर्थ है शक्ति वह जो हमें आध्यात्मिक बल प्रदान करते हैं। वह बलराम है जैसा कि कहते हैं( नायम आत्मा ना बलहीने ना लभय) अर्थात आत्मा का अनुभव हमें नहीं हो सकता है, हमें कृष्ण साक्षात्कार अथवा भागवत साक्षात्कार नहीं हो सकता है जब तक हमारे पास में वह बल नहीं है (बल ही ना लभय) अर्थात जिसके पास आध्यात्मिक बल नहीं है ना लभय है उसे यह प्राप्त नहीं हो सकता है। इस प्रकार से बलराम हमें आध्यात्मिक शक्ति अथवा आध्यात्मिक बल प्रदान करते हैं । इस प्रकार से बलराम जी आदि गुरु हैं और यह जो शक्ति है उसके स्त्रोत भी बलराम ही हैं। जो हमारे आध्यात्मिक गुरु हैं वे बलराम के प्रतिनिधि हैं और यह जो शक्ति और अध्यात्मिक बल है वह बल बलराम जी द्वारा हमारे आध्यात्मिक गुरु के पास और उनके माध्यम से हम तक आता है। और हमें भी आध्यात्मिक बल अथवा आनंद की प्राप्ति होती है। इस प्रकार कहते हैं (रमन्ति रमयन्ती इति राम:) रमन्ति अर्थात जो आनंद प्रदान करते हैं जो स्वयं आनंद प्राप्त करते हैं रमयंती जो अन्यों को आनंद देते हैं और च अर्थात भी जों स्वयं भी आनंद प्राप्त करते हैं, वे राम हैं।
इस प्रकार से बलराम स्वयं यह आनंद प्राप्त करते हैं और हमें भी आनंद प्रदान करते हैं जैसा कि कहा जाता है कि( हा हा प्रभु नित्यानंद प्रेमानंद सुखी) यह प्रसिद्ध पंक्ति है भजन की इसमें कहते हैं नित्यानंद प्रभु आप तो अत्यंत सुखी हैं, आप अत्यंत प्रसन्न है, आप सदैव इस प्रेम आनंद में निमग्न रहते हैं। तो यहां पर नित्यानंद को संबोधित करके यह कहा गया है नित्यानंद प्रभु और बलराम यह दोनों एक ही है और यह हमेशा प्रेमानंद में आनंदित रहते हैं। आनंद में सुखी रहते हैं “बलराम होइलो निताई” हम चाहे निताई कहे या बलराम यहां पर उसमें कोई भेद नहीं है इस प्रकार से निताई अथवा बलराम सदैव आनंदित रहते हैं परंतु आगे वे कहते हैं (आमी बडो दुखी) परंतु आप मेरी तरफ देखिए मैं तो अत्यंत दुखी हूं आप सदैव सुखी रहते हैं और मैं सदैव दुखी हूं यह ठीक नहीं है।अतः हे नित्यानंद हे बलराम कृपया कुछ ऐसा कीजिए कि मैं भी सुखी रह सकूं मुझे भी इस प्रेम आनंद की प्राप्ति हो सके। जो भी भक्त यह भजन करते हैं अथवा इसके विषय में जानते हैं उन्हें यह सोचना चाहिए, नित्यानंद अथवा बलराम वे सदैव सुखी हैं और हम सदैव दुखी हैं और हम यह प्रार्थना करते हैं इस भजन के माध्यम से कि हमें भी प्रेमानंद का कुछ अंश प्राप्त हो जिससे हम सुखी हो सकें। इस प्रकार जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं यह हरे कृष्ण महामंत्र का जप कृष्ण और बलराम के लिए हमारे द्वारा की गई प्रार्थना है। इससे हम प्रसन्न हो सकते हैं जब कोई हरे कृष्ण महामंत्र जप करता है वह प्रसन्न हो सकता है, इसके अलावा और कोई माध्यम नहीं है जिससे हम प्रसन्न रह सकते हैं (हरेर्नामेव केवलम) केवल यही एक मार्ग है जो हमें प्रसन्न कर सकता है।
कल हम बलराम जी का आविर्भाव दिवस मना रहे थे और यहां पर भी दो जीवात्माओं ने कल दीक्षा ग्रहण की उन्होंने वास्तव में( जीव जागो जीव जागो गोरा चांद बोले) अर्थात हे जीव अब तुम उठो चैतन्य महाप्रभु ऐसा आह्वान कर रहे हैं। हमें बुला रहे हैं वास्तव में गौरांग महाप्रभु प्रत्येक समय हमें बुलाते हैं की हे जीव अब तुम उठो परंतु हम कभी यह सुनते हैं, कभी नहीं सुनते हैं, अथवा कभी हम सुन भी लेते हैं। इसके विषय में हम सोचते नहीं हैं, कुछ चिंतन नहीं करते हैं। परंतु कल दो जीवात्माओं ने वास्तव में सुना कि चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं, हे जीव जागो हे जीव जागो और कल उन्होंने दीक्षा प्राप्त की साक्षी गोपाल प्रभु जी का बड़ा बेटा है जो की उम्र में ज्यादा बड़ा नहीं है मात्र 13 वर्ष का है, उन्होंने कल दीक्षा ली और उनका जो दीक्षित नाम हुआ गोरा चांद प्रभु तो गोराचंद प्रभु ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए अथवा कहे तो मैंने उनके लिए सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये और मैंने मात्र 13 वर्ष की उम्र के बच्चे को दीक्षा दी अभी वह मेरे सभी शिष्यों में सबसे छोटे शिष्य हैं, जिनकी उम्र 13 वर्ष है। कल सभी उनकी प्रशंसा कर रहे थे यहां जो मंदिर अध्यक्ष है मुख्या माताजी वह भी उनकी प्रशंसा कर रही थी गोरा चांद प्रभु के साथ ही साथ एक भक्त है जो कि 22 वर्ष की हैं उन्होंने भी कल दीक्षा ली उनका दीक्षित नाम है रस आनंदी राधा।
रस आनंदी राधा माताजी जो गुहयाना से है पर वह अब काफी समय से अलाचवा में रहती हैं और यह धर्मराज प्रभु की बेटी है कल इन 2 जीवात्माओं ने बलराम पूर्णिमा के दिन यहां पर दीक्षा ग्रहण की इस प्रकार से इन दो भक्तों ने यहां पर दीक्षा ली। दीक्षा को अंग्रेजी में इनीशिएशन जैसा कि कहा जाता है इनीशिएशन अर्थात कल इनीशिएटिव लिया है इन्होंने यहां कल पहल की है। इन्होंने यहां दीक्षा ली यहां जो मंदिर अध्यक्ष है मुख्या माताजी वह बता रही थी कि आज इन 2 जीवात्माओ ने यह शपथ ली है कि अब हम प्रतिदिन 16 माला करेंगे। जब यह दीक्षा हो रही थी जब यह समारोह चल रहा था उस समय गोरा चांद प्रभु के जो गुरुकुल के मित्र थे वे इसके साक्षी थे और रस आनंदी माताजी के ग्रुप के सदस्य वे भी इसके साक्षी थे। विशंभर प्रभु इसके साक्षी थे तुलसी इसकी साक्षी थी और हमारे हार्दिक पटेल हैं जो नियमित इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ जप करते हैं, वे 8 घंटे की लंबी ड्राइव करके यहां पर आए और वह भी इसके साक्षी रहे। इसके साथ ही साथ मॉरीशस के भक्त भी साक्षी है, विद्या माताजी है जो कनाडा टोरंटो में रहती है वह भी बहुत लंबी हवाई यात्रा करके यहां पर आई और वह भी इसकी साक्षी रही। इस प्रकार से इन दो भक्तों ने कल दीक्षा प्राप्त की, उन्होंने अन्य के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है और अब उन्हें अन्य को भी यह बताना चाहिए आप सभी ने अब 16 माला करने का यह नियम लिया है। आपका जप गुणवत्ता पूर्वक क्वांटिटी और क्वालिटी वाइज दोनों होने चाहिए।
गुणवत्ता पूर्वक, ध्यानपूर्वक अच्छी प्रकार से हो, जब मैं क्वालिटी वाइज कहता हूं ऐसा नहीं आप कहे ठीक है मैं 4 माला करूंगा और यह चार माला मैं ध्यान पूर्वक करूंगा, ऐसा नहीं कम से कम आप को 16 माला करनी है। आपके लिए अब प्रत्येक दिन में से जो 2 घंटे हैं वह कृष्ण के लिए हैं उस समय केवल हरे कृष्ण महामंत्र का जप करेंगे। इस प्रकार से ध्यानपूर्वक जप करने का अर्थ है स्वयं की देखभाल करना, आप इस प्रकार से खुद की देखभाल करते हैं आपने स्वयं को समझ लिया है, जो वास्तव में सेल्फ है वह कौन है वह हमारी आत्मा है और जो आत्मा है वह हम खुद हैं परंतु हम बहुत लंबे समय से इसे इग्नोर कर रहे थे , और इस प्रकार से जीव जागो जीव जागो के माध्यम से हम कहते हैं, हे जीव अब तुम जागो यहां हम शरीर को संबोधित नहीं करते हैं, शरीर तो जग जाता है। जब हम भूखे हैं या जब हमें ऑफिस जाना होता है उस समय शरीर तो उठता है परंतु आत्मा उस समय भी सोई रहती है। परंतु इस प्रकार से हम यह जो भजन जीव जागो जीव जागो इसके माध्यम से हम आत्मा को संबोधित करते हैं और उसे जगाते हैं।
हरे कृष्ण
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
15 अगस्त 2019
हरे कृष्ण
प्रिय भक्तों, आज मैं लास वेगास से जपा कॉन्फ्रेंस कर रहा हूं, इंडिया के भक्तों के लिए यह जपा टाइम नहीं है। वैसे तो हमें सतत ही भगवान का नाम लेना चाहिए, जप करना चाहिए।
नामनामकारी बहुधा निज सर्वशक्तिस्तरारपिता नियमित स्मरने न कालः… जैसा महाप्रभु ने बताया है जप के लिए कोई बहुत कठिन नियम नहीं है (महाराज जी वहां जपा कांफ्रेंस में साथ में जप कर रहे भक्तों को अपने पास बुलाते हुए इशारा करते हैं कि सभी थोड़ा थोड़ा आगे आ जाए) …… मैं आपको बता रहा था कि जप के लिए बहुत कठिन नियम नहीं है लेकिन मैं यहां पर आप सभी को याद दिलाना चाहूंगा कि जप के लिए सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त है, जल्दी सुबह का समय……. यह समय सतोगुणी होता है, इसके बाद दिन का समय मुख्यतः रजोगुण से प्रभावित होता है, और रात्रि का समय मुख्य तमोगुणी होता है।
इस प्रकार पूरे समय (दिन रात)को गुणों के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है प्रत्येक भाग में एक गुण की मुख्य रूप से प्रधानता होती है । जप का कार्य हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होना चाहिए क्योंकि मैं जानता हूं आप सभी बहुत व्यस्त लोग हैं।( हंसते हुए)
जप के कार्य की वरीयता सबसे ऊपर होनी चाहिए, आप सभी के लिए मेरा यह सुझाव है कि आप दिन को 22 घंटे का ही समझे और इन 22 घंटों में आप खूब व्यस्त रहें। यह व्यस्तता आपकी पारिवारिक वचनबद्धता, वर्णाश्रम धर्म और अन्य भक्तिमय सेवाओं में हो सकती है। इसलिए आप 22 घंटों में इन सब उत्तरदायित्वों का निर्वाह करिए, परंतु शेष 2 घंटे में इनका कोई अस्तित्व नहीं है आपको इन 2 घंटे में केवल हरे कृष्ण महामंत्र का गंभीरता से जप करना है और कुछ भी नहीं……
आप दिन को दो भाग में अपने लिए बांट सकते हैं पहले 2 घंटे के भाग में जप और दूसरे 22 घंटे वाले भाग में (हंसते हुए )और ज्यादा जप, प्रवचन सुनना, प्रचार सेवाएं, पारिवारिक कर्तव्य पालन इत्यादि।
यहां अमेरिका के लास वेगास में कल बलराम पूर्णिमा उत्सव मनाया गया, भारत में आप संभवततः आज यह उत्सव मनाएंगे । कल हमने पूरा दिन बलराम जी को याद करते हुए बिताया, उनकी गौरवमई लीलाएं और गाथाओं को सुना , सबने हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन किया;
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
बलराम जी आदि गुरु हैं वह प्रथम आध्यात्मिक गुरु हैं। भारत में लोग यह जानने के लिए उत्सुक रहते थे और ऐसा पूछते हैं कि आप हरे कृष्ण वाले जो हरे कृष्ण महामंत्र कहते हैं……
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे राम हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसमें जो दूसरा भाग है हरे राम हरे राम ……..
इसमें राम क्या श्रीराम के लिए है तो श्रीलप्रभुपाद कहते थे हाँ वो राम हैं, श्री राम हैं। प्रभुपाद ने यह भी बताया कि जो राम हैं वह बलराम हैं और हम यह शास्त्र की तकनीक से जानते हैं कि राम कृष्ण हैं और कृष्ण बलराम हैं वे दोनों एक दूसरे से अभिन्न हैं। बलराम ही कृष्ण हैं और कृष्ण बलराम हैं।
प्रभुपाद कहते हैं कि बलराम 98 प्रतिशत कृष्ण हैं, अंतर बहुत कम है वह लगभग कृष्ण ही हैं। कृष्ण के जैसे ही हैं, इस प्रकार जप में हम बलराम को भी संबोधित करते हैं बलराम शब्द को अगर हम समझे तो बल और राम, हमे आध्यात्मिक बल बलराम से प्राप्त होता है।
नायमात्मा बलहीन ना लभया…
जैसा कहा गया है कि.. नायमात्मा… आत्मा का साक्षात्कार नही कर सकते ,या नही किया जा सकता बिना बल के बलहीन… अर्थात बिना बल के, बिना ताकत के… बलहीन ना लभया ना लभया का तात्पर्य है प्राप्त न करना, अर्थात बिना बल (आध्यात्मिक बल) के निश्चित ही कृष्ण का साक्षात्कार एवं आत्मसाक्षात्कार नही हो सकता।
इस प्रकार हमे साक्षात्कार के लिए आध्यात्मिक बल की आवश्यकता होती है, आध्यात्मिक क्षमता की आवश्यकता होती है, और यही आध्यात्मिक बल एवं क्षमता हमे बलरामजी से प्राप्त होती है। वह हमारे आदि गुरु हैं, और उन्ही से हम गुरु परंपरा के माध्यम से अपने आध्यात्मिक गुरु के द्वारा आध्यत्मिक बल प्राप्त करते हैं ।
आध्यात्मिक बल के साथ साथ बलराम जी हमे राम भी प्रदान करते हैं राम का अर्थ है आनंद
रमन्ति रमयन्ति इति राम:….
राम का ऐसा व्यक्तित्व है कि वह प्राकृतिक रूप से शाश्वत है , आनंदमयी है और वे दूसरों को भी आनंद प्रदान करते हैं क्योंकि वही समस्त आनंद के स्रोत हैं, और दूसरों के आनंद के भी वही एक मात्र कारण हैं।
हा हा प्रभु नित्यानंद प्रेमानंद सुखी, कृपावलोकन करो अमी बड़ा दुखी…..
यह बहुत ही प्रसिद्ध वैष्णव भजन की पंक्ति है इसमें बताया जा रहा है कि ओ नित्यानंद आप बहुत ही सुखी प्रतीत हो रहे हो, आप प्रेम के आनंद में सुखी हो ।
नित्यानंद प्रेमानंद है, बलराम प्रेमानंद है, दोनों एक ही हैं, बलराम होईल निताई… दोनों एक ही है नित्यानंद और बलराम,(महाराज जी नित्यानंद शब्द को प्रमुखता से बोलते हुए)//नित्यानंद // आनंदमयी हैं, बलराम आनंदमयी हैं। कृपावलोकन करो… (महाराजजी चुटकी बजाते हुए…..)मुझे देखो, मुझ पतित को देखो कितना दुखी हूं, कितना व्यथित हूँ।
बडों दुखी….
यह कैसे हुआ, आप सुखी हैं और मैं दुखी!! नित्यानंद प्रभु मुझ पर भी कुछ दया करिए और हम बलराम जी से भी यह कह सकते हैं कि आप भी प्रेम के आनंद मैं सुखमणि है जब हम यहां वैष्णव भजन गाते हैं हमारा मन हमसे कहता है कि हमें भी खुश होना है हम भी खुश होना चाहते हैं। कुछ प्रेम हमें
भी चाहिए और इसीलिए बलराम रमते रामायते च वह स्वयं आनंद में रहते हैं और दूसरों के आनंद का भी कारण है इसलिए
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसलिए जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करते हैं तो हम कृष्ण और बलराम से प्रार्थना करते हैं ताकि हम भी सुखी हो सके, इसके अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं है, सुखी होने का….. हरेर्नामेव केवलम कल हम बलराम जी का अविर्भाव दिवस सेलिब्रेट कर रहे थे, तब यहां पर दो भक्तों ने दीक्षा भी प्राप्त किया उन्होंने वैष्णव भजन गाया और सुना, जीव जागो जीव जागो गौरा चांद बोले…. हमने उनमे से एक को गौरचांद नाम दिया।
उठो देखो गौरांग महाप्रभु बुला रहे हैं, वह पुकार रहे हैं, वह हर समय हमें पुकारते हैं, लेकिन हम सुनते नहीं हैं, हम सुनते हैं, और नहीं भी सुनते हैं, कभी नहीं भी सुनते हैं और यहां तक कि जब हम सुनते हैं तो हम वास्तव में अपना ध्यान नहीं लगाते हैं, और कुछ और ही सोचते रहते हैं कल हमने दो भक्तों को जगाया उन्होंने वास्तव में सुना इस महाप्रभु की पुकार को, गौरांग महाप्रभु बुला रहे हैं जीव जागो जीव जागो… जिन दो भक्तों की दीक्षा हुई उनमें से एक ने गौरचांद नाम ग्रहण किया जो कि साक्षीगोपाल प्रभु के बड़े बेटे हैं और वह ज्यादा बड़े नहीं हैं केवल 13 साल के हैं और उन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, (हस्ते हुए )। उन्होंने तोड़ा या मैंने रिकॉर्ड तोड़ दिया उनको दीक्षा देकर, इतने कम आयु के भक्तों को दीक्षा दिया। केवल 13 साल के भक्त हैं वे, वह मेरे सबसे कम आयु के शिष्य बन गए और वहां पर उपस्थित सभी भक्तों ने उनकी सराहना की। मंदिर की अध्यक्षा मुख्य माताजी उनकी सराहना कर रही थी और यह हम सबके लिए आवश्यक है कि हम जागृत अवस्था में आए। दूसरी दीक्षा जो माताजी ने लिया वह 22 वर्ष की आयु की थी, और गुयाना से आई थी, वह रसानंदी राधा बनी उनके माता-पिता गुयाना से हैं, और उनका जन्म यहां नहीं हुआ है वह धर्मराज प्रभु की पुत्री है ।
दीक्षा का मतलब है शुरुआत तो इस प्रकार दूसरी माताएं भी बहुत सराहना कर रही थी कि इन 2 भक्तों ने कम से कम 16 मालाएं करने का वचन लिया और वह प्रेरणादाई थे। गुरुकुल के सभी लोग भी यहां थे, उनके आयु समूह के सभी मित्र उपस्थित थे। हार्दिक पटेल जो कि जपा कॉन्फ्रेंस में प्रतिदिन नियमित रूप से जप करते हैं , 8 घंटे की ड्राइव के बाद यहां पर सबका संग प्राप्त करने के लिए आए थे। विद्या जो कि मॉरीशस से हैं वह भी यहां पर थी उन्होंने ड्राइव तो नहीं किया लेकिन वह बहुत लंबी दूरी से हवाई जहाज के द्वारा आई थी, और कल की दीक्षा समारोह की प्रत्यक्ष दृष्टा बनी।
जिन दो लोगों ने दीक्षा प्राप्त की वह सभी दोस्तों के लिए प्रेरणादाई थे। तो हम सभी इसके बारे में विचार कर सकते हैं और अपने जप को और गंभीर कर सकते हैं। गुणवत्ता की दृष्टि से गंभीर होना चाहिए और मात्रा की दृष्टि से पूरे 16 राउंड कम से कम जप होने चाहिए, ऐसा नहीं है कि मैंने गंभीरता से 4 राउंड किए हैं या 8 राउंड किए,( महाराज जी ने बहुत जोर देते हुए बोला ) नहीं कम से कम दिन में 16 मालाओ का जप करना है गंभीरता से, जप करने का मतलब है कि आप स्वयं की देखभाल कर रहे हैं, आप अपने आपको समझ पा रहे हैं ।
आप एक शुद्ध आत्मा हैं, जिसकी आप सदा से अवमानना करते आ रहे हैं, यह जीव जागो आत्मा को जागृत करने के लिए बोला जा रहा है, यहां श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने आत्मा को जागृत करने के लिए बताया है, वह कहते हैं जीव जागो ऐसा गौरा चांद बोल रहे हैं। अगर हम गंभीरता से अपनी देखभाल कर रहे हैं,—अपनी देखभाल करने का तात्पर्य केवल शरीर नहीं, किंतु हम एक आत्मा है। आत्मा को हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप करके संतुष्ट करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी आत्मा के लिए हरे कृष्ण महामंत्र की खुराक सही से दे रहे हैं और इसी प्रकार केवल हम अपनी आत्मा को तृप्त कर सकते हैं। यह आत्मा उसे ग्रहण करती है और पोषित होती है। हम सभी जप तो कर रहे हैं लेकिन उसे सुन नहीं पा रहे हैं, हम जप करते हैं लेकिन वास्तव में हमारा मन जप में नहीं रहता, मन कहीं और ही होता है हम अपने राउंड करते रहते हैं पहला राउंड, दूसरा राउंड और इस तरीके से साथ ही साथ हमारा मन भी इस संसार के कार्यों में राउंड करता रहता है। हमें अपने मन को जप में स्थिर करना होगा मन को इंद्रियों से हटाकर जप मे लगाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा, कि हम अपने जप को सुन पा रहे हैं और भगवान को याद कर पा रहे हैं। भगवान को उनके गुण, लीला, धाम के रूप में याद कर सकते हैं। जब माता को अपने छोटे बच्चे को भोजन देना होता है, तो कुछ बच्चे खाने के लिए अपना मुंह नहीं खोलते हैं, वह मुंह खोलने का मात्र दिखावा सा करते हैं लेकिन अपने जबड़ों को तेजी से कस लेते हैं हम सभी ने ऐसा देखा है, जब माता को किसी भी प्रकार से अपने बच्चे को भोजन देना होता है तो वह उसका ध्यान भोजन से हटाकर कैसे भी भोजन भर कर चम्मच को होठों के बीच में लाकर उसे भोजन देती है, और यह सुनिश्चित करती है कि भोजन उसके मुंह में जा पाया है कि नहीं, यहां पर बहुत सारी माताएं मुझसे सहमत होंगी, बहुत सारे बच्चों के साथ आपने ऐसा देखा होगा। यहां तक कि जब माताएं भोजन को उसके मुंह में पहुंचा देती हैं तब भी वह (बच्चा)इसे निगलता नहीं है और माताओं को अभी अपने बच्चों के साथ प्रयास करते रहना पड़ता है,और यह सुनिश्चित करना होता है, कि उसने मुख का भोजन निगल लिया है या नहीं, पेट में यह भोजन पाचित होने के उपरांत हमें ऊर्जा देता है, और हम अपने सभी कार्यों को सुचारु रुप से कर पाते हैं।
इस प्रकार यह जप करने की प्रक्रिया में हमारा मन एक अवरोध उत्पन्न करता है। यह मन उसी प्रकार से अवरोध देता है, जिस प्रकार किसी छोटे बच्चे को भोजन कराते समय उसके दांत और होंठ अवरोध देते हैं। यहां तक कि बच्चे के मुंह में भोजन आ भी जाता है वह इसको मुंह में ही रखता है उसे पेट में नहीं जाने देता है उसी प्रकार मन भी हमारा शत्रु है।
आत्मैव हि आत्मनो बंधुर आत्मनेवा रिपुरात्मनः…
भगवान भगवत गीता के छठे अध्याय में अष्टांग योग की व्याख्या करते हुए बताते हैं कि मन हमारे लिए शत्रु या मित्र दोनों ही तरह से व्यवहार कर सकता है, इसलिए हमें अपने मन को मित्र बनाना चाहिये।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। (6.5)
भगवान कहते हैं, उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्….
ईस श्लोक के पहले भाग में भगवान ने केवल आत्मा शब्द को 3 बार कहा है, आत्मा, आत्मा और आत्मा।
यहाँ आत्मा शब्द आत्मा के साथ साथ मन और बुद्धि के लिए भी प्रयोग किया है।
आत्मैव हि आत्मनो बंधुर….-आत्मा , आत्मा का मित्र है, यहां पर पहला आत्मा शब्द आत्मा(स्पिरिट सोल ) के लिए कहा गया है, आत्मैव हि आत्मनो बंधुर…. यह मन(आत्मा) आत्मा का मित्र भी बन सकता है, या आत्मैवरिपुरात्मनः मन जो कि आत्मा है, आत्मा का शत्रु भी हो सकता है। तो यहाँ पर कृष्ण एक आत्मा को स्पिरिट सोल (आत्मा) और दूसरा , मन को भी आत्मा कह रहे हैं। इस श्लोक मे बुद्धि को भी आत्मा ही कहा गया है।
एक आत्मा दुसरी आत्मा की प्रगति में सहायक है, एक आत्मा से दूसरी आत्मा को उद्धरित (एलिवेट) करना चाहिए, उद्धरेद… उद्धार करो, उद्धरेदात्मनात्मानं तुम अपनी आत्मा का उत्थान दूसरी आत्मा से करो, जो कि तुम्हारा मन है, तुम्हारी बुद्धि है। अपने मन के द्वारा (जो कि दैवी बुद्धि के द्वारा नियंत्रित हो ) अपनी आत्मा का उत्थान करो, और उसे नित्य भगवान की सेवा में लगाओ।(मोक्ष प्राप्त करो)
आत्मा को हम नियंत्रित मन और दैवी बुद्धि के साथ उत्थान की और ले जा सकते हैं, मन को नियंत्रित करने वाला यह बुद्धि ही है। इस प्रकार यहां पर 3 आत्मा शब्दो का प्रयोग किया गया है:
सोल-आत्मा
मन-आत्मा
बुद्धि-आत्मा
इन सबसे ऊपर परमात्मा है, भगवान कहते है, ददामि बुद्धियोगं तं मैं सभी को बुद्धि प्रदान करता हूँ। भगवान बुद्धि देते हैं, और इस दैवी बुद्धि से हम अनियंत्रित मन को नियंत्रण में कर सकते हैं। मन ही आत्मा है।
मन एव मनुष्यानाम कारनाम बध्धह मोक्षयोः जब मन शत्रु की तरह व्यवहार करता है तब हम बंधन में फस जाते हैं और जब यह मन हमारे मित्र की भांति व्यवहार करता है तो हम मुक्त हो जाते हैं, मन ही मुक्ति और बंधन का कारण है ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
इसलिए हम कहते हैं कि जप सफलतापूर्वक करना एक बुद्धिमान व्यक्ति का ही कार्य हो सकता है, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति ही तल्लीनता से सही तरीके से, शुद्धता से, जप कर सकता है इसलिए यह बुद्धू का काम नहीं है। एक होता है बुद्धू और दूसरा होता है बुद्धिमान…….
यही कारण है कि बलराम जी ने गधा असुर,धेनुकासुर का वध किया, गधा एक बुध्धू जानवर समझा जाता है, और इसीलिए वह सदैव कठिन परिश्रम में लगा रहता है, उसके चारों तरफ घास ही घास होती है और उसे घास खाने के लिए इतनी अधिक परिश्रम की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर भी वह कठिन परिश्रम करता है अपने मालिक, सरकार और कंपनी (जिसके लिए हम काम कर रहे हैं) का भारी बोझ उठाता है घास पाने के लिए, यह बिल्कुल ही गधा मानसिकता(अस्स मेंटेलिटी) है, बलराम जी हमारे अंदर के धेनुकासुर का वध करते हैं, वह हमारे आदिगुरु हैं। बलराम की कृपासे उन्ही के माध्यम से गुरु हमारे अंदर के छुपे हुए गधे (जिसके कारण से हमने अपने अंदर गधा की मानसिकता विकसित कर रखी है ) को मारते हैं।
गधा कठिन परिश्रम करने के साथ साथ संभोग में भी बहुत ज्यादा आसक्ति रखता है। वह सदैव गधी के पीछे दौड़ता है, हमारे iskcon वृन्दावन (कृष्ण बलराम मंदिर) के दीनबंधु प्रभु बलराम जी और धेनुकासुर वध लीला को बहुत अच्छे से बताते हैं, की कैसे एक गधा ,गधी के पीछे दौड़ता है जबकि यह भी हो सकता है कि पास पहुचने पर गधी उसके मुंह पर जोरदार लात ही क्यों न मारदे, लेकिन फिर भी गधा उससे दूर नही रहता,वह लगातार प्रयास करता रहता है, बार बार प्रयास करता रहता है और भोग सुख के लिए लात पर लात खाता रहता है।
भगवान कृष्ण भी धेनुकासुर को मार सकते थे, लेकिन उन्होंने यह मौका बलराम जी को दिया क्योंकि वह सभी गुरुओ को यह शिक्षा देना चाहते हैं की सभी गुरुओ को भी अपने शिष्यों को उनके भीतर की गधा मानसिकता से छुटकारा दिलाना है।
इसीलिए हम हरे कृष्ण महामंत्र जप को बुद्धिमानो का कार्य बता रहे हैं ना कि किसी बुद्धू का, और जब तक हम गधे की मानसिकता में रहेंगे, हम प्रगति नहीं कर सकते, और इस प्रकार से हम गलत पथ पर जाते रहेंगे और बंधन में फंसेगे ।
हमें बुद्धिमान होना चाहिए भगवान किस को बुद्धि देते हैं? ऐसा नहीं है कि वह बुद्धि मुफ्त में ही प्रदान करते हैं वह कहते हैं
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् , ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते
जो प्रेम पूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हें में ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं।
जो भगवान की सेवा करने का प्रयास कर रहे हैं वे ही भगवान की निरंतर सेवा करना चाहते है… सतत युक्तानाम और प्रीति पूर्वकम…. वे भगवान के लिए प्रेम विकसित करना चाहते हैं वे भक्ति और श्रद्धा के साथ सेवा करना चाहते हैं।
बाइबिल में बताया गया है भगवान को पूरी श्रद्धा के साथ प्रेम करो कृष्ण भी कहते हैं कि भगवान को पूरी श्रद्धा के साथ प्रेम करो साधन भक्ति में भक्तिमय सेवा और हरे कृष्ण महामंत्र जप मुख्य सिद्धान्त है, और जो पूरी श्रद्धा से भगवान की भक्तिमय सेव करते हैं, भगवान उनको बुद्धि प्रदान करते हैं। इस कलियुग में भक्ति का मुख्य अंग नाम जप है, इसके अलावा और कोई दूसरा साधन नही है। हमारा लक्ष्य है येन मामुपयान्ति ते-वो मुझे प्राप्त करेंगे। भगवान के धाम को प्राप्त करना है जहाँ कृष्ण और बलराम की शाश्वत लीलाये संम्पन्न हो रही है। इस संसार मे हम सभी साधना भक्ति कर रहे हैं, जो हमें शुद्ध करके अपने स्वरूप में वापस लाएगी और तब हम अपने शाश्वत निवास में चले जायेंगे जहां से इस संसार में आये थे।
हरि हरि
जय बलराम
परम पूज्य श्रील लोकनाथ स्वामी महाराज की जय
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
15th August 2019
CAST OFF THE ASS LIKE MENTALITY
For you this is not Japa time, but you could also be chanting all the time. What did Mahaprabhu say? – namnamkari bahuda nija sarva shaktis tatra arpita niyamita smaranen kalaha. So there is no hard and fast rule about chanting. Here I am talking to you, sitting with several devotees. We are in Alachua. New Ramanreti, Krishna-Balaram temple, America. We did a little Japa with the devotees assembled here and while talking to you all on this conference, some are also around me here. So there is no hard and fast rule with regard to the time, but of course we have been emphasising and reminding all you chanters that the best time for chanting is Brahma muhurta.
The morning of the day is the time in the mode of goodness. Day time is passion. Rajo Guna becomes prominent and night time is supposed to be reserved for ignorance. Like this, the day is divided into three parts and the three modes are dominant in each one of those. So we should attempt with all effort to chant. Get up and the first thing you do is chanting. I know you all are busy people. My advice is that you should consider that the day has only 22 hours for you. You could stay busy for 22 hours in different things and devotional services or family obligations also, which
is part of your Varnasrama responsibilities. To take care of those you have 22 hours, but the other 2 hours they don't exist for doing anything else but chanting of maha-mantra. You could divide your day like that in two parts, two hours for chanting and 22 hours for more chanting and more serving, hearing and taking care of other different obligations. Here in Alachua we celebrated Balaram Purnima yesterday. I think in India , you are celebrating that today.
We spend the day remembering Balarama, chanting and hearing his glories. Also chanting
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
Lots of Hare Krishna and some more chanting also. Balaram also did many things. He is Adiguru, the first spiritual master. When we chant Hare Krishna the next part is Hare Rama. Prabhupada would say that this 'Hare Rama Hare Rama' also refers to Balarama. In India people are interested to know about this Hare Rama that we chant. Whether it is Jay Sri Rama or what? Prabhupada would say , “Yes, and 'Hare Rama Hare Rama' refers to Balarama. Technically we know this Hare Rama is Krsna, but then Krsna is Balarama and Balarama is Krsna. They are non-different.
Balarama is as good as Krsna. He is almost Krsna. Srila Prabhupada said that, and we also said yesterday, He is almost there. He is there. He is Krsna. So chanters of the maha-mantra of course remember Balarama while chanting 'Hare Rama Hare Rama' part. Balarama from the name itself is Bala and Rama. We get strength, spiritual strength from Balarama.
nayam-atma bala-hinena labhyo
na = not;ayam = this; atma = Paramatma; bala-hinena = by the weak ( in spirit );
labhyah = is attained (MUNDAKOPANISHAD : CHAPTER-3. SECTION-2. MANTRAM-4)
It says na ayam atma – atma can be realized, but the soul can't be realized, become God realized, Krsna realized , without strength. na bala hinena – you are devoid of Bala – strength. na labhyo – you can't attain self realization, Krsna realization. So we need this Bala,strength to realize the lord.
That strength comes from Balarama. He is also Adiguru. It comes from Balarama and then through our spiritual master it reaches us. So we get spiritual strength from Balarama. Rama means pleasure,joy.
ramati ramayati ca iti ramah
Rama is that personality who is joyful in nature. He enjoys-: ramati ramayati ca, ca means. ' and' He becomes the cause of others’ pleasure.
ha ha prabhu nityananda, premananda sukhi
kripabalokana koro ami boro duhkhi
The famous prayer statement, says, ha ha prabhu nityananda, premananda sukhi. You seem to be sukhi, happy and full of premananda. So whether Nityananda or Balarama is premananda sukhi. is same. Balarama hai Nitai. Balarama has become joyful. But then the song says, look at me, poor me. I am miserable. – boro dukhi. That's not fair. You are sukhi and I am dukhi. So do something for me too Nityananda Prabhuji. We also say this to Balarama by addressing Him as You are premanande sukhi. When we sing this song,our mind says me too! I would like to be Happy. Some Prema for me also. That is what Balarama has ramati ramayati ca. He enjoys Himself and He becomes the cause of others enjoyment. So
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
We chant Hare Krishna mahamantra and in the prayer unto Krishna and Balarama so that we could be happy, and there is no other way to become Happy.
harer namaiva kevalam
Yesterday as we were celebrating Appearance Day of Balarama, we gave initiation to some souls. They heard, Jiva Jago Jiva jago Gauracand bole. We gave him the name Gauracand. Please wake up. Gauranga Mahaprabhu is calling. He has been calling. He is calling all the time. We don't listen, or we listen and not listen. Even if we listen we don’t pay attention really and think of something else. Yesterday we woke up two souls They really heard the wake up call. Gauranga is calling Jiva Jago Jiva jago. They were initiated. One became Gauracand – Sakshi Gopal Prabhu's elder son is not very old. He is only thirteen years old. He broke all the records. He broke or I broke the record by initiating such a young man – only thirteen years old. He has become my youngest disciple and then he was appreciated by devotees assembled here. Temple president , Mukhya mataji was appreciating them. That of course is about whether we also woke up . Other one is twenty-two, took some extra time and she became Rasanandi Radha, from Guyana. She is
not born here. Her parents are from Guyana. She is Dharmaraj Prabhu's daughter. She also took initiation. Initiation means initiated . So the other mataji was appreciating that these two souls have taken this commitment of chanting the prescribed number of rounds. They are exemplary. The whole Gurukul was also here. Friends also from their age groups. They were associating. Hardik Patel who chants regularly on this conference has travelled a long distance driving for eight hours. to catch up with us. Vidya is from Mauritius. She also is here. She didn't drive, but she flew long distance to join us. She was also a witness of yesterday's initiation. Two of them took initiation,
which is an example for others. So think about it and take to the chanting seriously. Quality wise seriously and quantity wise sixteen rounds minimum of all rounds. Not that I chanted four rounds seriously , I have taken it seriously. I have chanted four rounds seriously or eight rounds seriously.
No! No! Minimum sixteen rounds at that time of the day.
Chanting seriously means you are taking care of yourself. You have understood yourself. The spirit soul is being yourself which you had been neglecting for a long, long time. So this Jiva Jago is wake up soul. We don't say wake up body. Time to go to work. Even after telling them , as Bhaktivinoda Thakura has given the wake up call. He says Jiva Jago Jiva jago Gauracand bole. This wake up call is for Gauracanda. If we are serious in taking care of ourselves – self is not the body, but the soul. We feed the soul by chanting Hare Krishna Hare Krishna. We are connecting the soul. Make sure that we feed it properly. Make sure we trying to feed the soul, but are we feeding it properly. The soul is consuming, or swallowing it.
We are chanting, but we are not listening. We are chanting, but our mind is really not into chanting. Mind is off. We are doing our rounds. Round after round, one round done, second round and in between the mind makes so many rounds around the world. We have to do this thing, fixing our mind on chanting Bringing the mind back from the senses and
making sure you are hearing and then thinking and remembering the Lord. Remembering Lord's form, qualities abode and like that. When the mother has to feed the child , some children don’t even open their mouth. He is pretending to open, but the jaws are still tight. We have seen this. Then the mother somehow feeds the child, distracts the child from the task of opening the mouth and somehow with the spoon holding in between the lips tries to make the space. Then she has to make sure that food reaches the mouth. There are many mothers here who will agree. So many babies you have seen. Even if the food is in the mouth the child doesn't swallow it. She still keeps working on the child. The baby
has to swallow it. And when it is in stomach, it also has to be assimilated. Once it is digested then it becomes part of your system and that is what gives you strength, energy. Then you could function in your lively way. So for this process of chanting and hearing, our mind is always a stumbling block. The mind comes in the way like that child's body comes in the way. Child's lips, teeth come in the way. Child's mouth also may come in a way. Child's food in the mouth and he is holding it and it is not going down to the stomach. Likewise Mind is 'anti', Your enemy.
atmaiva hy atmano bandhur
atmaiva ripur atmanah
The Lord has explained this in the sixth chapter of Bhagavad-Gita where he is talking about astanga yoga. It applies to us. Krsna says your mind can act like your enemy, it can also act like your friend, so make your mind friend.
uddhared atmanatmanam
natmanam avasadayet
atmaiva hy atmano bandhur
atmaiva ripur atmanah (BG 6.5)
Lord's advice is uddhared atmanatmanam. Throughout this particular statement the Lord is only saying atma, atma, atma, that each of these atma refers to the soul, refers to intelligence also as atma, refers to the mind also as atma.
atmaiva hy atmano bandhur- atma is friend of atma. Here first atma is atma, spirit soul. atmaiva hy atmano bandhur. This atma – mind could be the friend of the soul, or atmaiva ripur atmanah – the mind which is atma could be the enemy of atma – soul. So one Atma is atma and other atma which Krsna talks about is the mind . Intelligence is also atma. One atma should lift the other atma. So this atma – soul should be lifted. Uddhared – uddhar karo, lift! uddhared atmanatmanam- You lift the soul(atma) with the other atma, that is the mind and intelligence. With the help of the mind
which is governed by divine intelligence, you lift the soul. The soul has to be lifted and the soul has to be liberated. The soul could be lifted by the controlled, purified mind with intelligence. What governs or controls the mind is intelligence. So the three atmas are:
soul -atma
mind – atma
intelligence – atma
Above all, there is Paramatma. Lord says,” I give atma, I give intelligence. dadami buddhi-yogam tam (BG 10.10). I give intelligence. Lord gives intelligence. With the help of that divine intelligence we can control our otherwise uncontrollable mind. Mind is soul.
Mana eva manushyanam karanam bandha mokshayoho
When the mind acts like your enemy then bandhan, bondage, you are conditioned. And when the mind acts as our friend then our soul becomes free from bondage. Mind is the cause of bondage and liberation.
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare.
So while we say that to chant successfully is a job of an intelligent person. Buddhiman person could chant attentively, properly, purely and fiercly . So ye buddhu ka kama nahi hai. Ek hota hai buddhu. and the other is buddhiman. That's why Balarama killed the ass demon. Dhenukasur. Otherwise the ass is known to be dull headed and that is why he works so very hard. Although the grass is everywhere and it doesn't require much labor to get the grass, he feels he must work very hard, carry a big load of my boss, government or company for which I am working, to get the grass. This is one mentality of the ass. Working hard mentality. Balarama killed the ass demon. He is Adi-guru. This is the Guru's business on behalf of Balarama, the ass that is hiding within us because of which we have developed ass like mentality has to be killed. The ass works very hard that's one thing, but the ass is also attached to sex life. He always runs after the she ass or the he donkey runs after the she donkey. Our Deenabandhu Prabhu , ISKCON panda from Krishna Balaram temple Vrindavan describes this Dhenukasur past time. He describes it in a very interesting way. How the ass is running after the she ass and she ass may give the he ass a kick on his face, but he ass doesn't go away. He persists and tries again. Another attempt to enjoy and another kick. Kick after kick just
to enjoy the sex pleasure. Ass is also known for working hard and sex life. So Krsna could have killed that ass, but he let Balarama kill him to set an example for all the guru's, that you have to also get rid of the ass like mentality.
We were talking of chanting as being the job of buddhiman and not buddhu. As long as we stay or maintain the ass like mentality, then we can't progress. We will be going the wrong way and that leads to bondage. We have to become intelligent. To whom does Lord gives intelligence? He doesn't distribute it like free cookies. He says I give such intelligence :
esam satata-yuktanam
bhajatam priti-purvakam
dadami buddhi-yogam tam
yena mam upayanti te
To those who are constantly devoted and worship Me with love, I give the understanding by
which they can come to Me. (BG 10.10)
Those who are endeavouring to serve the Lord, they want to serve Lord, satata-yuktanam and priti- purvakam. They want to develop love for the Lord. You want to serve, with love and devotion . The Bible says, ' Love thy Lord with all thy strength'. Krsna also said, 'Love thy Lord with all thy strength.' in sadhana bhakti, devotional service, chanting is the primary principal. This is devotional service. Those who are serving the Lord like that, to them the Lord gives intelligence. We did some service and the Lord gave some intelligence. Then he served more. By seeing that service , the Lord gave more intelligence and like that. So part of that service is the chanting service specially in this age of Kali. There is no other way . The goal is – yena mam upayanti te. They will come back to Me. Come back to Godhead where Krsna and Balarama are performing the pastimes eternally. Here we do sadhana bhakti in this world and then when we become perfect, eligible, then we return to the place from where we have come.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
14.08.2019
हरे कृष्ण!
मैं अभी भी न्यू वृंदावन में ही हूं और यहाँ पर नेटवर्क बहुत अस्थिर है। फिर भी हम प्रयास कर रहे हैं कि आप इस जप चर्चा को सुन पाएं और इस में किसी प्रकार का कोई व्यवधान उत्पन्न ना हो।
यहां न्यू वृंदावन में कई उत्सव हो रहे हैं और यहाँ बहुत सारे भक्त और शिष्य,और मित्र आए हुए हैं। यहां राधा वृंदावन चन्द्र का पुष्प अभिषेक हुआ है और सर्वत्र कीर्तन हो रहा है।आज शाम को भगवान का नौका विहार भी हुआ था। इस प्रकार से यहां कई प्रकार के उत्सव चल रहे हैं। आज जब मुझे थोड़ा समय मिला तो मैं श्रील रूप गोस्वामी जी द्वारा रचित उपदेशामृत में से सातवां श्लोक पढ़ रहा था। इस श्लोक ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। हम इस कॉन्फ्रेंस में जप करते हैं,इसलिए हमारे लिए ‘उपदेशामृत’ के सातवें श्लोक को समझना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। यह पवित्र नाम के जाप के लिए बहुत शिक्षाप्रद है।
इस श्लोक में श्रील रूप गोस्वामी जी जप करने वाले साधकों को कुछ निर्देश देते हैं।श्रील प्रभुपाद भी समय- समय पर इस श्लोक के विषय में अपने अनुयाइयों और भक्तों को समझाते थे। मैं सिर्फ आपके साथ यह साझा करना चाहता हूं। पहले मैं इस श्लोक का संस्कृत हिस्सा पढ़ूंगा और फिर उसे समझाने की कोशिश करुंगा।
स्यात्कृष्णनामचरितादिसिताप्यविद्या-
पित्तोपतप्तरसनस्य
न रोचिका नु।
किन्तवादरादनुदिनं
स्त्रखलु सैव जुष्टा
स्वाद्वी क्रमाद्भवति तद्गदमूलहन्त्री।।
श्रील रूप गोस्वामी जी इस सातवें श्लोक में कहते हैं कि ‘स्यात्कृष्णनामचरितादिसिताप्यविद्या’ अर्थात निश्चित रूप से कृष्ण के नाम अर्थात हरिनाम के साथ ही प्रारंभ होता है, फिर भगवान का चरित्र, लीलाएं आदि आती हैं। यह पवित्र नाम और सभी लीलाएं अत्यंत ही मधुर हैं। यदि हम इस प्रकार से संस्कृत के एक एक शब्द का अनुवाद करेंगे तो हमें बहुत अधिक समय लगेगा। हम इसको एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं कि श्रील रूप गोस्वामी जी इसमें क्या कहना चाह रहे हैं, यदि कोई व्यक्ति पीलिया के रोग से पीड़ित है, तब उस व्यक्ति को गन्ना मीठा नही लगता। उसे गन्ना कड़वा लगता है लेकिन वास्तव में गन्ना मीठा ही होता है। चूंकि वह व्यक्ति बीमार है, उसे पीलिया हुआ है,इसलिए उसे उसके मीठेपन का आभास नहीं होता है। मुझे लगता है कि आप सभी को पता होगा कि पीलिया रोग क्या होता है।
जब वह व्यक्ति डॉक्टर के पास उपचार के लिए जाता है तब डॉक्टर उसको देख कर कहते हैं कि आपको तो पीलिया हुआ है, इसलिए आप गन्ना खाओ, पीलिया के रोगी को गन्ना मीठा नहीं लगता है लेकिन उस रोग की दवाई गन्ना ही है। जैसे जैसे वो गन्ना खायेगा, उसकी बीमारी कम होती जाएगी, उसका पीलिया ठीक होना शुरू हो जायेगा और उसको गन्ना मीठा लगने लगेगा।
श्रील रूप गोस्वामी जी बताते हैं कि ये हरिनाम अत्यंत ही मधुर है, और इसके समान कुछ भी मधुर नहीं हैं परंतु हमें भवरोग लगा हुआ है। इस भवरोग के कारण ही प्रारंभ में यह हरिनाम हमें अत्यंत मधुर नहीं लगता है। तब हम सोचते हैं क्या इसके अलावा कोई अन्य वस्तुएं हैं जो इससे अधिक मधुर हो ? हमारे आचार्य, गुरु, वरिष्ठ वैष्णव कहते हैं, ‘नहीं, केवल हरिनाम ही इसका एकमात्र उपाय है। यदि इस हरिनाम में आपकी रुचि नही हो रही है, ‘रोचिका नु’ लेकिन यदि हम निरंतर हरि नाम लेते रहेंगे, तो इसमें हमारी रुचि जागृत हो जाएगी।
हरेर्नामैव केवलम।
हम भवरोग के रोगी हैं। हमारी एकमात्र औषधि हरिनाम है जो कि अत्यंत ही मधुर है। प्रारंभ
में साधक को हरिनाम इतना अधिक मधुर नही लगता है। उस साधक को हरिनाम में रुचि नहीं होती।
जैसा कि चैतन्य महाप्रभु भी कहते हैं, न अनुराग अर्थात मेरा हरिनाम में अनुराग उत्पन्न नहीं होता। इसके लिए हमें क्या करना चाहिए। इसका उपाय भी यही है कि आप निरतंर हरिनाम का जप करते रहिए। इसी प्रकार, पीलिया का रोगी जब गन्ना खाना प्रारंभ करता है तो वह धीरे धीरे ठीक होने लगता है, फिर वो पूर्ण रूप से रोग मुक्त हो जाता है, उसे गन्ने का स्वाद आने लगता है और कुछ समय पश्चात वह पूर्ण रूप से इस पीलिया रोग से मुक्त हो जाता है तो वह कहता है कि अरे यह गन्ना तो अत्यंत ही मधुर है। स्वादिष्ट है, मुझे और गन्ना चाहिए, मुझे और गन्ना चाहिए।
एक समय ऐसा था जब वह गन्ने को खाना ही नहीं चाहता था। वो कहता था कि क्या इसके अलावा अन्य कोई वस्तु है, जिसे मैं खा पाउँ। इसका मुझे स्वाद नही आ रहा है। यह मुझे अच्छा नही लग रहा है परंतु धीरे धीरे जब उसने इस गन्ने को खाया और वह रोग मुक्त हो गया और अब वह अधिक मात्रा में गन्ने की मांग कर रहा है।
इसी प्रकार रूप गोस्वामी बताते हैं कि दरादनुदिनं अर्थात
प्रतिदिन हमें माला करनी चाहिए। माला हमारे लिए एक दवाई के समान है। पहले एक माला, फिर दूसरी माला, उसके बाद तीसरी माला, फिर करते करते जब हम हमारी सोलह माला का जप करते हैं। बाद में हम फिर से सोलह माला, या फिर से सोलह माला या अगली 16 माला उसी दिन या उससे अगले दिन जाप करते हैं परंतु यह अनुदिनं होनी चाहिए, प्रतिदिन होनी चाहिए और इसके पश्चात वे कहते हैं, ‘स्वाद्वी क्रमाद्भवति’ अर्थात धीरे धीरे हमारी उस में रुचि उत्पन्न होती है। जब हम निरतंर नियमित रूप से नाम का जप करते हैं तो हमारी इस हरिनाम में रुचि उत्पन्न हो जाती है। हमें यह हरिनाम मधुर लगने लगता है। अंत में रुप गोस्वामी बताते हैं मूलहन्त्री अर्थात हम उस बीमारी से मुक्त हो जाते हैं। हम भव रोग, काम रोग आदि बीमारियों से ग्रसित हैं। जब हम इस हरिनाम का अधिक से अधिक मात्रा में जप करेंगे, कीर्तन करेंगे, हम भी इन बीमारियों से मुक्त हो जाएंगे।
हम हरिनाम का जप करके इस भव रोग से मुक्त हो सकते हैं।
क्या आप श्रील रूप गोस्वामी जी द्वारा दिए इस निर्देश को समझ पाए, यहां हमने जिस तत्व के विषय में चर्चा की है, क्या आप उसे समझ पाएं। आप इस श्लोक को और अधिक पढ़िए।आप इन निर्देशों को पढ़िए। यह उपदेशामृत का सातवां श्लोक है, जिसके विषय में हमने अभी अभी चर्चा की, आप सब उपदेशामृत से इस श्लोक को, इसके अनुवाद को और श्रील प्रभुपाद द्वारा दिए गए इसके तात्पर्य को पढ़िए और इसके महत्व को समझिए। इस प्रकार से आप सदैव जप करते रहिए। मैं आशा करता हूँ, यदि आप निरतंर जप करते रहेंगे, एक दिन निश्चय ही हरिनाम में आपकी रुचि उत्पन्न हो जाएगी।आपकी इसमें आसक्ति उत्पन्न हो जाएगी और उस स्थिति में आप इस हरिनाम को रोकना नहीं चाहेंगे। हमारे आचार्य रूप गोस्वामी जी,इस चीज़ की गारंटी लेते हैं कि यदि हम निरतंर हरि नाम का जप करेंगे, तो हमारी इसमें रुचि उत्पन्न हो जाएगी और हम भवरोग से मुक्त हो जाएंगे। यह एक तत्व है, यह एक विशेष बात है, जिसकी हमनें आज चर्चा की है। आप इसका और अधिक अध्ययन उपदेशामृत से कर सकते हैं।
हरे कृष्ण!
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी गुरु महाराज की जय।
श्रील प्रभुपाद की जय।
निताई गौर, सीतानाथ प्रेमानंदे हरि हरि बोल।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
14TH AUGUST 2019
HARINAMA – ONLY REMEDY OF BHAVROG.
I am still in New Vrindavan and the network is quite unstable here. Still we are trying so that you can all listen to the Japa-talk and there should not be any difficulties. Lots of devotees and disciples , followers and friends have come to New Vrindavan and there is a festival over here.
I was studying Srila Rupa Goswami's Upadesamrta ( Nectar of Instruction) in my free time. I was studying the seventh sloka of Nectar of Instruction. This sloka got my attention. I thought it to be relevant to the chanting that we do on this conference. It is very instructive for the chanting of the holy name. Prabhupada quoted this particular instruction of Srila Rupa Goswami again and again. Many, many times he told us about this or reminded his followers about this instruction. I just want to share that with you. I will read the Sanskrit part and then try to explain it.
syāt kṛṣṇa-nāma-caritādi-sitāpy avidyā-
pittopatapta-rasanasya na rocikā nu
kintv ādarād anudinaṁ khalu saiva juṣṭā
svādvī kramād bhavati tad-gada-mūla-hantrī
Here Srila Rupa Goswami is instructing that certainly beginning with Krsna's name , then it comes his caritra, His past times etc. It is very juicy. The holy name is very, very sweet. I was trying to say that one who is afflicted with the disease of jaundice , then sweet sugar candy does not taste at all sweet to that person. Candy is sweet, but the eater of the sweet candy who is afflicted with the disease , goes to the doctor. The doctor diagnoses the jaundice and the prescription is to eat sugar candy. He had tried sugar candy and it did not taste very sweet. But the doctor says
sugar candy is the only cure for your jaundice. So here in this sloka, he is instructing that the holy name is the only medicine for the bhavarog, with which we have been contaminated. The sweet holy name doesn't initially taste sweet for the beginner. So one may feel, ‘How could I experience the sweetness of the holy name? Then acarya's and spiritual masters and Rupa Goswami Prabhupada here say – na rocikā nu – you are not tasting the sweetness of the holy name, but that holy name is the cure for the diseased, contaminated condition in which we are.
Chanting is that cure. harer nama eva kevalam. There is no other way. Doctor tells the jaundiced patient , there is no other cure other then this sugar candy. You have to eat sugar candy.
The chanter of the holy name is not interested. He has no ruci. Caitanya Mahaprabhu also says – na anuragaha – He has no attraction for the chanting. But the prescription is you have to chant. You have to keep chanting. Going back to that example of jaundice and prescription of sugar candy. When the jaundiced patient
eats sugar candy, this candy cures the jaundice and as he gets cured more and more, then he begins tasting the original sweetness of sugar candy. When he is fully cured of disease, “Give me more! More sugar candy!” He was not willing to eat sugar candy as it was bitter, but he was told that this is the only cure, so he goes on. Then he gets cured and starts asking for more and more. So likewise Rupa Goswami says ādarād anudinaṁ carefully and anudinaṁ. Over again and again , day after day , round after round he could say dose after dose. Sixteen rounds after sixteen rounds some day or in few days. saiva juṣṭā svādvī kramād bhavati You will begin tasting. You develop ruci, liking , attraction , taste for the holy name.
By this time tad-gada-mūla-hantrī there is a destruction of the disease which is Bhavarog, or Hritrog or Kama-rog, lust. Such diseased conditions of the contaminated consciousness could be cured or purified by mula hantri by chanting
the holy name of the Lord.
You could read instruction number seven from Upadeshamrta. The verse and translation of the purport , then you will have a better and clearer understanding of this instruction. Have you heard everything? It's the seventh verse from the Nectar of Instruction. So keep chanting and one day you will reach that point where you will have so much attraction for the holy name that you don't want to stop. This is guaranteed by our acarya Srila Rupa Goswami.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
13th Aug 2019
हरे कृष्ण
अभी तक लगभग16 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं,तथा कुछ भक्त मेरे साथ यंहा जप कर रहे हैं, अभी आधी रात का समय है इसलिए यह संख्या कम है परन्तु कीर्तनीया सदा हरि।
जैसे कि चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि सदैव हरि नाम का कीर्तन करना चाहिए। गुरु महाराज हार्दिक पटेल जो अलबामा से पूछ रहे हैं कि क्या तुम न्यू वृन्दावन आ रहे हो? मैं भी अभी अमेरिका में हूँ तो आप चाहे तो न्यू वृन्दावन आ सकते हो और हम मिल सकते हैं। आज की यह जप चर्चा परम् धाम प्रभु और जमुना माताजी के घर पर हो रही है।
मैं यहां रुका हुआ हूँ।उनका पुत्र है चैतन्य और पुत्री लावण्या, वे सभी यहां अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में रहते हैं। इस प्रकार आज का जो विचार है इसके विषय में हम चर्चा करना चाहेंगे, यह वॉशिंगटन डीसी अमेरिका की राजधानी है, और यहां के हमारे इस्कॉन मंदिर में अन्य विग्रह के साथ-साथ सीता राम लक्ष्मण हनुमान का भी विग्रह है। इस प्रकार से अमेरिका की राजधानी में भगवान श्री राम विराजते हैं। इसी प्रकार इंग्लैंड की राजधानी लंदन है वहां के
इस्कॉन मंदिर में भी भगवान श्री राम लक्ष्मण हनुमान के विग्रह हैं। इसी प्रकार भारत की राजधानी है दिल्ली, वहां पर भी राम दरबार है तो इस प्रकार भगवान ने इन सब को अपनी राजधानी बनाया है ।
इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जितने भी नेता हैं, उन्हें भगवान् राम से यह सीखना चाहिए कि जिस प्रकार भगवान राम ने अयोध्या अथवा संपूर्ण विश्व पर निष्कण्टक राज्य किया, वैसे उन्हें शासन करना चाहिए। उन्हें भगवान राम के पद चिन्हों का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि भगवान राम ने इन स्थानों को अपनी राजधानी बनाया है, यह विचार मेरे मन में आया है। यहां पर अभी मैं जप कर रहा हूं और आप सभी भक्त मेरा जप सुन पा रहे हैं, परंतु मैं आपका जप नहीं सुन पा रहा हूं, यह ठीक नहीं है मैं भी आपका जप सुनना चाहता हूं। सबसे प्रमुख बात यह है कि जब हम जप करते हैं तब हमारी जिह्वा में कंपन होना चाहिए। अभी मैं जहां रुका हुआ हूं परमधाम प्रभु के घर पर यहां पर एक साइन बोर्ड लगा हुआ है उस पर लिखा हुआ है उत्तम कम्पन केवल , जो सबसे उत्तम कंपन है जिह्वा द्वारा वह यहां पर होना चाहिए । जब हम जप करते हैं उस समय हमारे द्वारा कंपन होना चाहिए । प्रभुपाद कहते थे टंग मस्ट वाइब्रेट । जब हमारी जीभ हिलती है तब हम हरे कृष्ण महामंत्र का ठीक प्रकार से उच्चारण कर सकते हैं, हमारे कान उस महामंत्र का श्रवण करेंगे और तत्पश्चात हम उस पर चिंतन कर सकते हैं।
इसलिए जिव्हा में कंपन होना अत्यंत आवश्यक है। इस प्रकार हमें अपना जप इस तरह से करना चाहिए की उसकी ध्वनि हमारी जिह्वा द्वारा निकलनी चाहिए। जिह्वा द्वारा उस हरिनाम की ध्वनि को हमें कंपन करना चाहिए जिससे हम स्वयं अपना जप सुन सकें यदि हम इस प्रकार से जप नहीं करेंगे तो हम अपना जप सुन नहीं पाएंगे, पर हम जप के स्थान पर कुछ अन्य ही बातें सुनेंगे जैसे कि आसपास के वातावरण में अन्य जो बाते हैं कोई खांस रहा है ,कोई गाड़ी का हॉर्न बज रहा है या अन्य ध्वनियां, वह सुनेंगे तो हमारा मन इधर उधर भटक रहा होगा। उस समय किसी अन्य स्थान में चले जाएंगे और वहां पर क्या बातें हो रही हैं उन पर ध्यान देने लगेंगे तो हमें स्वयं को इन विचारों से दूर रखना चाहिए और इस प्रकार से जब हम जप करते हैं तब हमारी जिह्वा द्वारा हरि नाम का उच्चारण अत्यंत ही ध्यान पूर्वक और स्पष्ट होना चाहिए जिससे कि हम उसको सुन सके और उस पर चिंतन कर सकें। हमें ऐसा करना चाहिए, साथ ही साथ हमें अन्यों को भी बताना चाहिए कि किस प्रकार से जप करें तथा श्रील प्रभुपाद का जो रिकॉर्डिंग है वह अत्यंत लाउड है और प्रभुपाद उच्च स्वर में हरे कृष्ण मंत्र का उच्चारण उसमें कर रहे हैं।
आज जब मैं अपना दोपहर का प्रसाद ले रहा था तो उस समय चैतन्य चरितामृत आदि लीला का सप्तम अध्याय सुन रहा था , तब मुझे प्रसाद पाते हुए कुछ श्रवण करना से एक बात का स्मरण होता है, जब हम ब्रह्मचारी आश्रम में रहते थे उस समय जब हम रात्रि में सोने के लिए जाते थे,उससे पहले हम दूध पीते थे। ऐसा होता था कि सभी ब्रह्मचारी एक गोले में बैठ जाते और बीच में दूध की बाल्टी रखी रहती और हम उसमें से गिलास भर भर के दूध पीते जाते, ऐसा नहीं होता था कि एक ही गिलास, कई भक्त दूध के अनेक गिलास पी जाते थे।
परंतु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां पर भी जब हम सोने से पहले दूध पीते थे, वहां एक भक्त कृष्ण बुक से कुछ पढ़ता और अन्य सभी भक्त उसका श्रवण करते।भक्तों में जो कृष्ण बुक पढ़ता था केवल वह भक्त बोलता था, अन्य सभी भक्त उस समय चुप रहते, और इस प्रकार हम एक ही समय पर दूध और भगवान कृष्ण की अमृतमयी वाणी का पान करते थे। इस प्रकार आप भी प्रसाद पाते समय श्रवण कर सकते हैं और आप इसका दोहरा लाभ उठा सकते हैं। एक प्रसाद पाने का लाभ है और दूसरा कृष्णा के विषय में श्रवण करने का लाभ। जब आप ऐसा करते हैं तो कृष्ण आपके मुख, आपके कानों से आपके शरीर में प्रवेश करते हैं, और आप कृष्णमय हो जाते हैं। यह एक उत्तम अभ्यास है जिसका आपको पालन करना चाहिए और एक अन्य बात है जो मैं आपको जल्दी बताना चाहूंगा क्योंकि जपचर्चा का हिंदी में भी अनुवाद होगा और उसमें भी समय लगेगा, आज जब मैं चैतन्य चरितामृत का वह अंश सुन रहा था, उसमें हरिनाम की महिमा के विषय में बताया गया है। मैंने उसे स्वयं महाप्रभु के मुखारविंद से सुना, वह लीला इस प्रकार थी – जब महाप्रभु वाराणसी में थे, वाराणसी मायावादी संन्यासियों का एक प्रकार से गढ़ है और जब चैतन्य महाप्रभु वहां गए तो कुछ लोग चैतन्य महाप्रभु का प्रतिवाद कर रहे थे, उन्हें अपमानित कर रहे थे और वह कह रहे थे कि यह सन्यासी जिस प्रकार से संकीर्तन करता है नृत्य करता है वह उचित नहीं है, और एक सन्यासी को तो गंभीर होना चाहिए। परंतु यह सन्यासी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह कीर्तन करता है, नृत्य करता है और सन्यासी ऐसा नहीं करते। इस प्रकार से वे महाप्रभु के प्रति अपराध कर रहे थे और उन्हें अपमानित कर रहे थे, और उन्होंने देखा कि यह संकीर्तन तो करता है परंतु यह वेदांत का अध्ययन नहीं करता है। वे कहते हैं ‘वेदांत करें ना अध्ययन,। परंतु हम तो वेद पढ़ते हैं , मायावादियों को इसका बहुत अभिमान होता है कि वे वेद पढ़ते हैं। इस प्रकार की चर्चा पूरे शहर में चल रही थी। एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण जो महाप्रभु का भक्त था उनके इस अपमान को सहन नहीं कर पाया और वह महाप्रभु के पास गया और उसने कहा मैं इस बात को अब और अधिक सहन नहीं कर सकता हूं, आपसे निवेदन करता हूं की कृपया मायावादी सन्यासी से मिलिए, एक सभा कीजिए
उन्हें इसके विषय में बताइए, क्योंकि मैं यह अपमान अब और अधिक सहन नहीं कर सकता हूं।अतः इस प्रकार महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण ने चैतन्य महाप्रभु से निवेदन किया कि वे उन सभी सन्यासियों से मिलें, परन्तु महाप्रभु ऐसा नहीं करना चाहते थे, उनसे नही मिलना चाहते थे (मायावादियों से नहीं मिलना चाहते थे)।
यह जो काम था उस महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण ने किया, वहां उसने एक गोष्ठी का आयोजन किया और वह स्वयं इस गोष्ठी का यजमान बना । उसमें सभी सन्यासियों को आमंत्रित किया गया । चैतन्य महाप्रभु के साथ अन्य कई सन्यासी उस गोष्ठी में सम्मिलित हुए।जब चैतन्य महाप्रभु ने उस गोष्ठी में प्रवेश किया, जब उस स्थान पर चैतन्य महाप्रभु पधारें , वे उस स्थान पर जाकर बैठ गए जहां अन्य सभी सन्यासी अपने पाँव धोते थे।उन सभी सन्यासियों के गुरु थे प्रकाशानंद सरस्वती (जो लगभग 60,000 सन्यासियों के गुरु थे) और वे सन्यासी वहाँ उस समय उपस्थित थे उन्होंने देखा कि चैतन्य महाप्रभु कहां पर जा कर बैठे हैं। वे चैतन्य महाप्रभु के पास गए उन्हें वहां से उठाकर अपने स्थान पर बैठने का निवेदन किया, और अंततः उन्होंने उनको (चैतन्य महाप्रभु का जो स्थान था)उस स्थान पर बिठाया । जब वे दोनों अपने-अपने स्थान ग्रहण कर चुके तो वहां पर चैतन्य महाप्रभु और प्रकाशानंद सरस्वती के बीच शास्त्रार्थ हुआ। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु को संकीर्तन करने, नृत्य करने, और वेदांत का अध्ययन ना करने के लिए डांटा और कहा की आप हमसे वेदान्त का अध्ययन सीखे और यह भावुक नृत्य छोड़कर वेदांत अध्ययन करें।
महाप्रभु ने जब यह सुना तो उन्होंने प्रकाशानंद सरस्वती को कहा, क्या आपको पता है मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं? क्योंकि मेरे जो गुरु महाराज हैं ईश्वरपुरी। उन्होंने कहा कि “गुरु मोहे मूर्ख जानि करीला शासन” तुम तो मूर्ख हो मैं तुम्हें एक आज्ञा देता हूं तुम वेदांत अध्ययन नहीं कर सकते हो, तुम केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करो और जप करो। इसलिए मैं इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करता हूं, इसके साथ ही साथ मेरे गुरु महाराज ने मुझे एक मंत्र और दिया है , “हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामेव केवलं, कलौ नास्तेव नास्तेव गतिरन्यथा ” इसके पश्चात चैतन्य महाप्रभु ने प्रकाशानंद सरस्वती को इसका तात्पर्य भी बताया। चैतन्य महाप्रभु ने प्रकाशानंद सरस्वती को कहा , नास्ति एव नास्ति एव कलयुग में भगवान श्री कृष्ण को कर्म ज्ञान अथवा योग से नहीं समझ सकते अथवा उनकी प्राप्ति नहीं कर सकते, अतः हरेर्नामेव केवलम्। कलयुग में केवल हरि नाम से ही भगवान की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए मैंने जप और कीर्तन को करना प्रारंभ किया, और जब से मैंने यह जप और कीर्तन प्रारंभ किया है तब से मेरे अंदर परिवर्तन हो रहा है। मैं एक नया भक्त था जब मैंने हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करना प्रारंभ किया था। परंतु जप करते-करते मेरे अंदर परिवर्तन होने लगा, परंतु मेरे गांव के लोग समझते हैं कि मैं मूर्ख हो गया हूं, मैं पागल हो गया हूं और वे मुझे पगला बाबा बुलाने लगे। चैतन्य महाप्रभु प्रकाशानंद सरस्वती को आगे बताते हैं कि जब ऐसा हुआ तो मैं पुनः अपने गुरु महाराज के पास गया और मैंने गुरु महाराज से कहा कि ” किबा मंत्र दिया गुसाईं कीबा तारे बल
जपीते जपीते मंत्र
करिला पागल'”
हे गुरु महाराज हे गोसाई आपने यह मुझे कैसा मंत्र दिया है इस मंत्र की क्या शक्ति है जैसे जैसे मैं इस मंत्र पर जप करता हूं कीर्तन करता हूं मैं पागल हो गया हूं, मेरे शरीर में कंपन होता है, कभी मैं हँसता हूँ, कभी रोता हूँ, कभी मैं स्तब्ध हो जाता हूं, कभी भूमि पर लोटता हूं और मैं एक प्रकार से पागल हो गया हूं। इस प्रकार जब मेरे गुरु महाराज ने यह सुना तो उन्होंने मुझे कहा तुम बुद्धिमान हो, बहुत अच्छा अन्य लोग तुम्हें पागल बोलते हैं, लेकिन तुम पागल नहीं हो तुम बहुत अच्छी प्रकार से यह कर रहे हो। अतः मेरे गुरु महाराज ने मुझे ऐसा कहा और वे इसकी प्रशंसा कर रहे थे कि जप से जो परिवर्तन हुआ है वे इससे अत्यंत प्रसन्न है। इसके साथ ही साथ ईश्वर पुरी ने चैतन्य महाप्रभु को श्रीमद्भागवत के दूसरे स्कन्ध के सातवें अध्याय के चौथे श्लोक को भी उद्धृत किया। उसमें उन्होंने बताया कि जो हरे कृष्ण महामंत्र के जाप का कीर्तन करता है, उसके साथ क्या होता है अथवा जो कृष्ण की आराधना करता है ,भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करता है उसके साथ क्या होता है । जैसा कि हम जानते हैं
“महाप्रभु कीर्तन नृत्य गीत
वादित्र माद्यन मनसो रसेन
रोमांच कंपाश्रु तरंग भाजौ
वन्दे गुरु श्री चरणारविन्द”
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर द्वारा रचित श्री गुरुवाष्टकम के दूसरे श्लोक में वे लिखते हैं, कि जब कोई चैतन्य महाप्रभु के इस मंत्र का जप करता है अथवा कीर्तन करता है तो उसके साथ क्या होता है उसमें वह व्यक्ति रोमांचित होता है कंपन होता है उसमें अश्रु आते हैं । इस प्रकार से यह परिवर्तन उसमें होने लगता है, वास्तव में मेरे गुरु महाराज ने मुझे यह बताया की जो परिवर्तन मुझ में हो रहा है यह अत्यंत उत्तम है, और प्राकृतिक है तो जब कोई हरे कृष्ण महामंत्र का ध्यानपूर्वक और अपराध रहित होकर निरंतर जप करता है तो तब उसमें यह परिवर्तन आता है। आप सभी भी चैतन्य चरितामृत के आदि लीला के सप्तम अध्याय को पढ़ सकते हैं और इस अध्याय में पंचतत्व की महिमा का वर्णन है । मैंने अभी आपको चैतन्य महाप्रभु और प्रकाशानंद सरस्वती के बीच जो वार्ता हुई चर्चा हुई उसका केवल प्रारंभिक अंश बताया है आप इसको विस्तृत रूप में वहां पर पढ़ सकते हैं। यह बहुत ही अच्छी वार्ता है। एवं अत्यंत उत्तम प्रकार से इसका वर्णन चैतन्य चरितामृत में कहा गया है, और यह अत्यंत ही प्रभावित करने वाला वर्णन है तो जब आप इसे पढेंगे, यह आपके हरे कृष्ण महामंत्र के जप को प्रभावित करेगा और इस प्रकार से अपराध रहित जप करने के लिए यह चर्चा आपको प्रभावित करेगी।
अतः मैं अपनी जप चर्चा को यहीं विराम देता हूं कल सुबह भारतीय समयानुसार 6:00 से 7:00 के बीच यह जप चर्चा चलाई जाएगी। हमारी जूम कॉन्फ्रेंस टीम जब इसे चलाएगी तब आप इसका लाभ ले सकते हैं ।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
JAPA-TALK 13th AUGUST 2019
ASTAVIKAR MANIFESTS IN OFFENSELESS CHANTING.
This japa session is happening at Param Dham Prabhu and Jamuna mataji’s house, their son Chaitanya and daughter Lavanya are also here. I am in Washington DC , capital town of America. Today there are many things we can discuss. Washington DC is the capital of America and here in the ISKCON temple along with the other deities there is Rama Laksman Sita Hanuman also. Like the way the Lord rules here, in England’s capital London also there is Rama Laksman Sita Hanuman. Even in Delhi, the Indian capital there is Rama Darbar. All these places have been made into His Kingdom by Lord Sri Rama. So the rulers in these cities could rule the way Rama ruled Ayodhya. All these rulers could take some lessons from Sri Rama, follow in the footsteps of Sri Rama while ruling these countries the way Lord Rama ruled the whole world from Ayodhya in an unbiased way. All these places have become Rama’s kingdom.
I want to discuss something that came to my mind just now. All of you are able to hear my chanting but I could not hear you chanting. This is not good. I also wish to hear your chanting. The most important thing is that while we are chanting as Prabhupada would say ,'The tongue must vibrate'. Here where I am staying, in Param Dham Prabhu’s house there is a sign board and it is written , – 'Good vibes only' so ‘the tongue must vibrate' specially during chanting. Vibrate the tongue with the holy name , so that we could hear our own chanting. If that doesn't happen, then we may end up hearing some other sounds of the material world. Or we may just listen to our mind and the
mind is contemplating on something. We may be listening to that. In order to keep all other sounds out of the way we have to mind to chant. Our chanting, our vibes should be wider than other vices, sound vibrations in the air. While chanting japa our tongue should vibrate. If you hear a recording of Srila Prabhupad chanting, it is quite clear and loud.
While I was honouring my lunch prasada. I was hearing Caitanya-caritamrta Adi lila 7th chapter. I was hearing while honouring prasada and I could also say something about hearing while honouring prasada. In good old days in our brahmacari asrama before going to bed we would have a glass of milk. We had the milk in a big bucket in the centre and we all brahmacaris would sit around it. We would fill our glasses with milk and drink. It was not that we only had one glass. Some devotees had more than one glass. Among those devotees there would be one devotee who read from Krishna book. Every one had to shut up. Just drink the milk and listen and we had to hear that while drinking milk. While drinking milk we drank the nectarian pastimes of Lord Krsna from Krishna book. We were trained like that. To hear while eating. You can also practice the same, while having prasada you can hear. Here the benefit is twofold. One we are benefitted by eating prasada , Krsna is entering into you through your mouth, and by hearing, through your ears. So you are being bombarded by Krsna. You may like to do it as it is the best practice.
I want to say something very quickly because the session is supposed to be very short. While I was listening to Caitanya-caritamrta I heard the glories of the holy name from Mahaprabhu Himself, from His lotus lips. That time Caitanya Mahaprabhu was in Varanasi. Varanasi is the seat of the Mayavadis sanyasis who were impersonalists. There was a lot of criticism going on about Caitanya Mahaprabhu. He was criticized for chanting and dancing all over Varanasi and having followers follow Him sentimentally. Being a Sannyasi He should be grave, but He was laughing and dancing and what not. This is not apt for a Sannyasi. On top of all that he does not study Vedanta. But we study the vedanta. vedanta kare na pathan Mayavadi's are very proud of their study of Vedanta. This criticism was heard by a Maharastrian Brahmin. He could not tolerate this gossip which had become the talk of the town. He went to Caitanya Mahaprabhu and said that he could not tolerate this anymore and had to be stopped. He appealed to Mahaprabhu to meet these sannyasis and explain the truth. Caitanya Mahaprabhu was not interested in meeting the sannyasis. He was trying to avoid these impersonalist mayavadis. He did not want to meet them. mayavad bhasya sunile hail sarvanash But finally as the Maharashtrian Brahmin was insisting and pleading and begging finally Mahaprabhu agreed. The Maharashtrian Brahmin became the host for the meeting of all the sannyasis including Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu.
Caitanya Mahaprabhu arrived and as he entered the arena he sat where everyone washed their feet. This was noticed by Prakashanda Sarasvati, the leader and spiritual master of all other sannyasis. He had around 7000 disciples. He went to the place where Caitanya Mahaprabhu sat and asked Him, to please get up and sit with him in his place. Mahaprabhu then went and sat with him in his place. After both of them took their respective seats, their discussion started. He accused Caitanya Mahaprabhu of sentimental dancing and chanting and not studying Vedanta in this land of Varanasi. ‘This is not proper. Now you should take lessons from the Vedantist and stop this sentimental chanting. Why are you doing this?’
On hearing this from Prakashanada Sarasvati Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu said. ‘ You know why I am doing this? My Guru Maharaja Isvara Puri has asked me to do this. Guru mor murkh Delhi karil shasan . He said, ‘You are a fool, so I am instructing You. You can’t study Vedanta. So follow what I say. You just chant the Hare Krishna Mahamantra and sing the holy names.’
‘I am following what my Guru Maharaja said and he also said:
harer naam harer naam harer naam evakevalam kalau nastyeva nastyeva nastyeva gatir anyatha
Only the holy name, only the holy name , only the holy name is required for all the living entities. And he explained the meaning and importance of this mantra to Prakasananda Sarasvati. There is no other way, there is no other way, there is no other way to realise Krsna in this kaliyuga. Not by knowledge, not by karma, not by yoga can you attain God. In this age of Kali the holy name is the only path.That’s why I took up this chanting . As I started chanting, changes started happening in Me and I was a changed man. It transformed Me. People started calling Me a madman, pagala
baba. Once this happened I again went to my Guru Maharaja and asked him, – ‘kiba mantra dila Goswami kiba tar bal japite japite mantra karil pagal What kind of mantra have you given me Guru Maharaja? There is so much power in this holy name . By chanting I am becoming mad .
The moment I started chanting i became a madman. I started trembling. Sometimes I laugh and sometimes I cry. Sometimes I become stunned and sometimes I roll on the ground. After hearing this my Guru Maharaja said, ‘Wise man! Good boy! This is a good thing. You are intelligent. You are not a bad Man, but a good Man. Others may say that You are a fool, but You are not a fool. You are doing it very well.’ This is what Caitanya Mahaprabhu said to Prakasanada Sarasvati. Good vibes only! ‘He was really pleased and appreciating what had happened to Me as a result of chanting the Hare Krishna mahamantra. And then he also quoted the verse, I think canto 7 chapter 2 text 40
mahāprabhoḥ kīrtana-nṛtya-gīta-
vāditra-madyan-manaso rasena
romāñca-kampāśru-taraṅga-bhājo
vande guroḥ śrī-caraṇāravindam
This is a Gurvastakam verse of Srila Vishwanath Chakravarty Thakura. Viswanatha Chakravarty Thakura is describing the symptoms of one who does kirtana like Mahaprabhu has tears rolling down one’s cheeks and transformations become clearly visible. All those astavikar , eight different manifestations become clearly visible.My Guru Maharaja said that this is perfect. This is natural. This is what happens to one who chants Hare Krishna. Isvara Puri also quoted Srimad-
Bhagavatam canto 7, chapter 2 text 14. Especially and this only happens to one who does attentive chanting without any offence and chants constantly.
All of you can read Caitanya-caritamrta Adi lila chapter seven , where this debate between Caitanya Mahaprabhu and
Prakasananda Sarasvati is being discussed. There is lot more about enlightening dialogue which continued which you should read and study. It will inspire you to chant offencelessly. Lets stop here.
Hare Krishna!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
12 अगस्त 2019
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे।।
आज अभी तक 331 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। मैं आज न्यू वृन्दावन, अमेरिका से आपके साथ जप कर रहा हूं। मेरे आस पास अभी कई भक्त हैं जो मेरे पास बैठकर जप कर रहे हैं। इनमें से कुछ भक्त कनाडा से आए हुए हैं, कुछ लॉस एंजेलिस से आए हुए हैं जैसे वृन्दावन लीला माताजी वेस्ट कोर्स से, रामचन्द्र प्रभु जी नई जर्सी से, अंतर्यामी कृष्ण प्रभुजी बोस्टन से, तिरुपति से वेंकटचलपति प्रभुजी, युवराज प्रभुजी दक्षिण भारत से हैं, अभी यहां न्यू वृंदावन में रहते हैं। साथ ही साथ दक्षिणा माताजी भी और रूपमति माताजी भी जो एक आर्किटेक्ट(वास्तुकार) और इंजीनयर है,अभी न्यू वृन्दावन में रहते हैं और वृंदावन को छोड़कर अन्यंत्र नहीं जाते हैं, वे भी हमारे पास बैठकर जप रहे हैं।
आज अमेरिका में एकादशी है, हमने सोचा, हम आप सभी के साथ आज जप करेंगे। भारत में आज द्वादशी है और वहां अभी भक्त उठें होंगे, अभी-अभी मंगल आरती सम्पन्न की होगी। आज यहां पर एकादशी की संध्या आरती हुई है। यह जगत इसी प्रकार का है, कहीं पर अभी प्रात:काल है, तो कहीं अभी सायं काल है। कहीं भक्त अभी उठ रहे हैं, तो कहीं पर भक्त अभी सोने के लिए जा रहे हैं। श्रील प्रभुपाद जी कहते थे कि इस्कॉन के साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता, अर्थात जिस भी स्थान पर सूर्य अभी है, वहां भी इस्कॉन है अर्थात सम्पूर्ण विश्व में इस्कॉन के केंद्र हैं। एक बार वर्ष 1977 में कुम्भ मेले में श्रील प्रभुपाद जी बता रहे थे कि एक समय में ब्रिटेन के लोग अत्यन्त गर्व के साथ कह रहे थे कि ब्रिटिश राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता अर्थात सम्पूर्ण विश्व में ब्रिटिश लोग राज्य कर रहे हैं। प्रभुपाद जी ने कहा कि यह हो सकता है कि इंग्लैंड में कभी सूर्यास्त नहीं हुआ पर लेकिन इंग्लैंड में कभी सूर्योदय भी नहीं होता। वहाँ तो हमेशा बादल छाए रहते हैं, कोहरा रहता है और वहाँ के लोगों को कभी सूर्य दर्शन नहीं होता। इस्कॉन के साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होताहै। इस्कॉन सभी स्थानों पर है।
यह चैतन्य महाप्रभु का साम्राज्य है और चैतन्य महाप्रभु के इस संकीर्तन आंदोलन के कमांडर चीफ़ अर्थात सेनापति श्रील प्रभुपाद जी हैं।
हमें सदैव अपने जप के विषय में चिंतन करना चाहिए और किस प्रकार हम हमारे जप को सुधार सकते हैं और अधिक ध्यानपूर्वक जप कर सकते हैं, हमें इसके विषय में सोचना चाहिए। अभी कुछ दिन पहले मैं रिचमंड में दिव्यनाम प्रभु के घर पर था, उन्होंने मुझे वह स्थान बताया जहाँ वे बैठकर जप करते हैं। वहां पर हमने हरिदास ठाकुर जी की छोटी सी मूर्ति की स्थापना की। ये मूर्ति उन्हें कहीं से प्राप्त हुई थी, उन्होंने मुझे उसकी स्थापना करने के लिए कहा।अब वे वहाँ बैठकर जप करते हैं। जहां पर वे बैठकर जप करते थे,वहां उस स्थान पर तुलसी महारानी नहीं थी, मैंने उनको वहां तुलसी जी लगाने के लिए भी कहा, वे वहां तुलसी जी भी लगाएंगे। इनके जप कक्ष में हरिदास ठाकुर जी भी इनके साथ बैठकर जप करेंगे। उनके जप कक्ष में श्रील प्रभुपाद जी, उनके गुरु महाराज एवं एन्द्रा प्रभु, जो कि कई भक्तों के लिए प्ररेणादायक हैं, एवं जप के लिए प्रोत्साहित करते हैं, की तस्वीरें भी थी। इस प्रकार वे वहां बैठ कर जप करते हैं। हमें भी ध्यान रखना चाहिए कि हम जिस स्थान पर बैठकर जप करें उसका वातावरण हमारे जप के अनुकूल हो और वहाँ बैठकर हम ध्यानपूर्वक जप कर सकें।
आज सुबह, राधा वृन्दावन चंद्र मंदिर, न्यूवृन्दावन में मंदिर के अधिकृत अधिकारी(अथॉरिटी) कुछ घोषणाएं(अनाउंसमेंट) कर रहे थे, जब अनाउंसमेंट पूरा हुआ, तब उन्होंने जप करने के समय से पहले नामामृत पुस्तक से कुछ अंश पढ़ा। यह अत्यंत ही उत्तम अभ्यास है। आप सब भी अपना जप प्रारंभ करने से पूर्व श्रील प्रभुपाद के नामामृत पुस्तक में से कुछ अंश पढ़ सकते हैं।इस पुस्तक में श्रील प्रभुपाद के प्रवचन, प्रात: कालीन सैर के समय की चर्चायें और जहां कही भी श्रील प्रभुपाद ने हरिनाम के विषय में या नाम की महिमा जो बताई हैं, उसका इस पुस्तक में संकलन हैं। आप भी इस पुस्तक को प्राप्त कर सकते हैं और जप करने से पूर्व कुछ अंश पढ़ सकते हैं।
आज सुबह यहाँ मुझे श्रीमद भागवतम पर प्रवचन देना था लेकिन मैंने भागवतम की अपेक्षा चैतन्य चरितामृत पर कक्षा ली। मैंने चैतन्य चरितामृत के उस अंश को पढ़ा,जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन गए थे और वृंदावन की यात्रा कर रहे थे। यात्रा के अंत में वे अक्रूर घाट पर समय व्यतीत करते थे। एक दिन वृंदावन में यमुना जी के तट पर इमलीतला पर महाप्रभु गये, वे उस इमली के पेड़ के नीचे बैठ कर जप कर रहे थे। चैतन्य महाप्रभु जप कर रहे थे, संभवतया यह प्रातः काल का समय ही रहा होगा। हमने विनोदपूर्ण कहा कि चैतन्य महाप्रभु अपराध रहित जप कर रहे थे। वास्तव में महाप्रभु का जप तो सदैव अपराध रहित होता था। वे अपराध युक्त जप कर ही नहीं सकते थे। वे अत्यंत ध्यानपूर्वक जप में तल्लीन होकर भगवान के नामों का जप कर रहे थे। जब चैतन्य महाप्रभु इस प्रकार इमलीतला पर ‘हरे कृष्ण’ महामंत्र का जप कर रहे थे तब वे पूर्णरूपेण कृष्णभावना भावित हो गए। महाप्रभु राधारानी के भाव के साथ जप कर रहे थे। महाप्रभु भक्त रूप बने, महाप्रभु कौन से भक्त रूप बने? वे स्वयं राधारानी बने। उस दिन चैतन्य महाप्रभु वहाँ बैठकर इस प्रकार से जप कर रहे थे, जप करते समय उनकी अंगकान्ति में परिवर्तन हो गया। वे भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णरूपेण से कृष्ण भावनाभावित हो गए। गौर सुंदर चैतन्य महाप्रभु जो गौर वर्ण के हैं, वे गौर वर्ण के न रह कर वे श्याम सुंदर हो गए, वे श्याम वर्ण के हो गए अर्थात उनकी अंगकान्ति श्याम वर्ण की हो गयी।यह एक लीला है जो हमें यह बताती है कि हरे कृष्ण कीर्तन व जप आपको कैसे बदल सकता है। चैतन्य महाप्रभु जी की आभा अंग कांति स्वर्णिम है, परंतु जप करने के पश्चात वो स्वर्णिम आभा नीले रंग की हो गयी। चूंकि वे भगवान है, उनके लिए ऐसा संभव है। हम ऐसा नही कह सकते कि हम भी जप करेंगे तो हमारी अंग कांति भी श्याम सुंदर की तरह हो सकती है। यह संभव नहीं है परंतु कुछ परिवर्तन अवश्य हो सकते हैं। इसके साथ यह वर्णन भी आता है कि नाम जप ध्यान पूर्वक करने से हमारे शरीर में कंपन,अश्रु, रोमांच आदि परिवर्तन आते हैं। जब महाप्रभु ध्यानपूर्वक शुद्ध नाम जप पूर्ण रूप से तल्लीन होकर अपराध रहित जप कर रहे थे, तब यह परिवर्तन उनके अंगकान्ति में आया।
आज सुबह भागवतम प्रवचन के पश्चात हमनें चैतन्य चरितामृत में महाप्रभु के वृंदावन यात्रा के विषय में अध्ययन किया। महाप्रभु ने सम्पूर्ण ब्रज मंडल की परिक्रमा की। भागवतम की कक्षा के पश्चात हम सभी भी न्यू वृंदावन की यात्रा पर गए। यद्यपि हम मूल वृंदावन में तो नहीं थे, जोकि मथुरा वृंदावन हैं, लेकिन हम न्यू वृंदावन में थे। हम बरसाना स्वामी महाराज जी के साथ यात्रा पर गए और जो हमारे पथ प्रदर्शक बने। मैंने भी यहां पर इसके विषय में कुछ बताया। हमारे साथ 100 से अधिक भक्त न्यू वृंदावन की परिक्रमा कर रहे थे।
हमारा प्रथम पड़ाव द पैलेस ऑफ गोल्ड था। हम सभी भी यात्रा का दर्शन व्हाट्सएप पर कर सकते हैं। ( वहां गुरु महाराज और बरसाना स्वामी महाराज फोटो में हैं) यह हमारा प्रथम विश्राम स्थल था। बरसाना स्वामी महाराज ने यहाँ के इतिहास के विषय में बताया। महाराज ने बताया कि श्रील प्रभुपाद जी जब यहां आए थे, तब यह महल निर्माणाधीन था।
यद्यपि अभी समय समाप्त हो रहा है, परंतु मैं यहां आपको अत्यंत ही प्रमुख बात बताना चाहता हूं। बरसाना स्वामी महाराज जी ने हमें बताया कि संभवतया वर्ष 1976 या उसके आस पास श्रील प्रभुपाद जी इस स्थान पर आए थे, उस समय इसका निर्माण कार्य पूर्ण नही हुआ था और यह बिल्डिंग भी बन रही थी। जो भक्त इसके निर्माण कार्य में लगे हुए थे, उन्होंने श्रील प्रभुपाद को बताया, ‘प्रभुपाद, हम यहाँ पर स्वर्ण लगाएगें।कई मूल्यवान रत्न जवाहरात लगाकर इस स्थान को सजायेंगे’। प्रभुपाद जी ने जब यह सुना, उन्होंने भक्तों को कहा, ‘वास्तव में तो भक्त ही इस मंदिर के वास्तविक रत्न हैं’। इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद जी कह रहे थे कि इन हीरे जवाहरात से अधिक महत्वपूर्ण उनके भक्त हैं। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद, उस स्थान से अधिक महत्व भक्तों को दे रहे थे। श्रील प्रभुपाद जी कह रहे थे कि स्थान की वास्तविक सजावट भक्तों से होती है। ऐसा सुनकर हम सभी अत्यंत प्रभावित हुए।महाराज ने बताया कि महाभागवतम श्रील प्रभुपाद जी का मिशन है। श्रील प्रभुपाद जी ऐसा नहीं सोचते थे, कि यह मेरा स्थान है और मेरे स्थान को कई रत्नों,हीरे जवाहरात सोने आदि रत्नों से सजाया जाएगा अपितु श्रील प्रभुपाद जी सोचते थे, यहाँ के भक्त ही वास्तविक रत्न हैं, यह सत्य भी है।इस्कॉन के जितने भी मंदिर बन रहे हैं, जो भी प्रबंधक हैं, जो मंदिर बनाते हैं,हमें उनके प्रति आभारी होना चाहिए। साथ ही साथ उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए इन मंदिरों में भक्तों की संख्या बढे़ और भक्तों की देखभाल हो। बिल्डिंग नही, वहाँ के भक्त ही वास्तविक सजावट मूल्य हैं। वास्तव में भक्त ही उस मंदिर के रत्न हैं।
मैं एक और विशेष बात आपको बताना चाहता हूं। जब हम न्यू वृन्दावन की परिक्रमा कर रहे थे, हमारा अंतिम पड़ाव राधाकुंड और श्याम कुंड के तट पर था। यहां के कुछ भक्त गोवर्धन के राधाकुंड से कुछ जल लेकर आए और वह जल यहाँ इस राधाकुंड में मिला दिया, यह राधाकुंड वृंदावन के राधाकुंड से अभिन्न हो गया। इस राधा कुंड पर राधा गोपीनाथ का मंदिर अभी निर्माणाधीन है। यहां घने छायादार वृक्ष हैं और राधाकुंड के किनारे वृंदा देवी का मंदिर भी है। हम यहां बैठकर कथा सुन रहे थे, महाराज ने हमें यहां राधाकुंड के प्राकट्य के बारे में बताया। मैंने भी यहाँ पर कुछ राधा कुंड के विषय में बताया। यहां कुण्डेश्वर महादेव जी भी हैं। हमारे साथ एक माताजी है जो हमारे साथ यह जप कर रही है, वे राधा गोपीनाथ के गुम्बद का कार्य देख रही हैं। यह गुम्बद अभी निर्माणाधीन है। इसको एक दो वर्ष और लगेंगे। जब आप यहाँ आएंगे तो आपको लगेगा कि राधा गोपी नाथ मंदिर भी पूर्ण हो चुका हैं।
जप करते रहिए, सुनिश्चित करें कि आप अपना जप समय से करें। आप सभी को शुभ रात्रि।
भारत की सुप्रभात यहाँ शुभ रात्रि है।
हरे कृष्ण!
आपका दिन शुभ हो!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
12th August 2019
DEVOTEES ARE REAL DECORATION
I am chanting with you from New Vrindavan, America. I also have some of the devotees from Canada. They have come from Canada to New Vrindavan. Also there are devotees from Los Angeles like Vrndavana Lila Mataji, Ramchandra Prabhuji from New Jersey, Antaryami Krishna Prabhuji from Boston and all the way from Tirupati, Venkatachalpati Prabhuji and devotees from South India. We have Daksina mataji from New Vrindavan and Rupamati mataji who is an architect and engineer.
There was a good number yesterday and today morning also. They don't want to leave New Vrindavan but stay on here. Today is Ekadasi here in America, so we decided to chant with you. I am sure this is Dvadasi for you. You just got up, had mangala aarti and started chanting. In New Vrindavan it is Sandhya aarti.
We will chant and talk and then get a little rest. That is the kind of situation for devotees. East and West, North and South. Somewhere it's day and at another place night. Somewhere devotees are just getting up and at another
place they are getting ready to sleep. That's why Srila Prabhupada had once said, 'In ISKCON’s empire the sun never sets. It's always shining in whichever part there is in ISKCON’s empire'. He talked about this in 1977
Kumbha-mela.
The British were very proud that the ‘sun never sets in the British empire' Their colonised empire had spread all over the planet, so they would say that the 'sun never sets in the British empire’. Prabhupada would say, ‘But
the sun never rises in England.’ It is always foggy and cloudy and they never get to see the sun. The sun is not visible in England. But in case of ISKCON, it is everywhere. It never sets in ISKCON empire.
This is Caitanya Mahaprabhu's empire and Prabhupada’s empire as Prabhupada is the commander in chief of Caitanya Mahaprabhu's sankirtana movement.
An important thing about chanting is that we should always be planning to improve our chanting. I was in Richmond at Divyanama Prabhu's home. He showed me the Japa meditation corner. We also installed Haridas Thakur's murti, which he had managed to get from somewhere. Someone donated to him the murti of Namacarya. He wanted me to install the murti in that meditation hall of his house and that is where he was planning to continue his chanting in presence of Haridas Thakur. I noticed that he didn't have Tulasi in that room. So he was going to add Tulasi also and chant in the presence of Tulasi and Namacarya Haridas Thakur. Of course he had other photographs also of Srila Prabhupada, his Guru Maharaja, Aindra Prabhu, who was an inspiration for many devotees for chanting and singing. It was a nice set up. Very inspirational to chant japa. You could also make sure you have an appropriate place for your chanting.
This morning at Radha Vrindavanchandra temple, in New Vrindaban, the director of the project, one who was making all the announcements read some quotations from Srila Prabhupada’s Namamrta. That was a very good practice. Just before the devotees’ chanting session in the temple, they read a few paragraphs, few quotes from Srila Prabhupada’s Namamrta. You
chanters also try to get hold of this book of Sri- Namamrta. It's a compilation from Srila Prabhupada’s books, purports, conversations, morning walks, wherever Prabhupada talked about chanting or even singing. All those quotes have been collected in this book. It is a very good collection, very inspirational. You could also read that, before you begin chanting your japa and then chant.
Then again this morning during Bhagavatam class,I gave Caitanya – caritamrita class. Caitanya Mahaprabhu was touring Vrindavan and we mentioned and reminded the audience that towards the end of Mahaprabhu's touring, Caitanya Mahaprabhu spent time at Akrura ghata. One day He went over to Imalitala on the banks of Yamuna and He was chanting. Caitanya Mahaprabhu was doing his nama japa underneath that tamarind tree on the banks of Yamuna.
We humorously said that Caitanya Mahaprabhu was chanting offenselessly. There is no need to mention this because Caitanya Mahaprabhu only chanted offenselessly. His chanting was never ever
offensive chanting. He would get absorbed in chanting. There would be full concentration on the chanting and as a result of such chanting of 'Hare Krishna Hare Krishna' Caitanya Mahaprabhu became Krishna conscious.
In this case Radharani was the one who was chanting. Caitanya Mahaprabhu is in the mood of Radhabhav. He has become a devotee. He has become Bhaktarupa or he is in Bhaktarupa. He has become Radharani. As a result of that chanting, that morning Caitanya Mahaprabhu's whole complexion changed. He literally became Krishna conscious. Literally or
spiritually became Krishna conscious. His complexion no more remained Gauranga or Gaursundara, but He became Syamsundara with a bluish complexion He attained Ghaniva syam.
This is one incident which explains how the chanting of Hare Krishna could transform you. That happened to Caitanya Mahaprabhu. He was no more golden in complexion but He had a Syamsundara bluish complexion. Of course He is the Lord and we can't expect our body to become Syamsundara like His. But different transformations are expected as are explained in the Nectar of Devotion- trembling of body or rolling on the ground, tears rolling down etc. So that day Caitanya Mahaprabhu exhibited the symptom of a change in complexion or symptom of pure chanting, chanting with devotion and emotions, feelings.
After today's morning class, we discussed Caitanya Mahaprabhu's Vrindavan tour. He did Vraja Mandala parikrama of Vrindavan. So after we finished our prasada we went on a tour of new Vrindavan, following in the footsteps of Caitanya Mahaprabhu. Of course we were not in the Vrindavan but we were in New Vrindavan. There are several forests here and we went on a tour with my dear godbrother, good old friend Varasana Swami Maharaja who became the guide. I was also a guide and a large number of disciples, friends followers over a hundred we went on a Parikrama of new Vrindavan.
Our first stop was a Palace of Gold. We took the tour and sat down and we talked and listened to Barasana Swami Maharaja speaking and sharing all realisations and history of the Palace of Gold. We heard that Prabhupada had visited the place once. Even though the Palace of Gold was not completed then you could see the photograph. Both Barasana Maharaja, and I were in the photo there. Although we have less time left, I will share one thing, that Maharaja talked to us about this morning. I forget the year when Prabhupada took a tour of the Palace of Gold which was under construction. Devotees were doing a guided tour and those who were responsible for completing the construction of the palace they told to Prabhupada, ‘Prabhupada, we are going to have a lot of jewels and chandeliers. We are going to decorate this place truly with lots of gold. It will be much more decorated. It is unfinished now'. In response to that Prabhupada said, ‘My disciples, the devotees of this temple would be the jewels. They would be the real decorations.' It means that Prabhupada was more pleased not only with decorating the temple with jewels, but he was
more interested in giving value to the devotees. Devotees are more important and valuable. They are the real decoration. Everybody would agree. Maharaja also said that this is Maha Bhagavat Srila Prabhupada’s mission. This is how Prabhupada was thinking. He wasn't thinking that my residence, my palace would be decorated or studded with gems or jewels, but my real decorations are the devotees. They are the jewels. We should also be thinking that way. If we can't manage to build the temple we should be making the devotees as decorations, the jewels and not just
building the building. Devotees should be highlighted. The number should increase. They should be taken care of then the temple would shine.
One final item that we did in New Vrindavan Parikrama. Our final stop was on the banks of Radha-kund and Syama-kunda. Here in New Vrindavan they managed to get some Radha-kunda water and they mixed it with waters here. So this is non-different from Radha-kunda in Vrindavan.
There is a temple of Radha-Gopinath which is under construction on the banks of Radha-kunda here in New Vrindavan. There are nice shady trees and also a Vrinda Devi temple on the banks of Radha-kunda. Among the shady trees we talked and talked about Hari Katha. Maharaja spoke about the glories of Radha-kunda. The whole pastimes of how Radha-kunda and
Syama-kunda came into existence. There was Kundeswar Mahadev also. The dome is not finished yet as they need some more funds. Radha- Gopinath temple can also be seen.
Keep chanting. Make sure that you chant in your chanting time. It is 9.45 pm here so good night, shubharatri to you all. India's good morning is good night here.
Hare Krishna!
Have a good day!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
11 Aug19
हरे कृष्ण!
( यह जप चर्चा कल की जप चर्चा (जपा टॉक) का अग्रिम भाग है, इस श्लोक में गुरू महाराज जी
” सर्वधर्मान्परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज’
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।”
(भगवतगीता) (१८.६६) के विषय में आगे बता रहे हैं)
हमने स्वयं अपनी इच्छानुसार इस पथ का चयन किया है अर्थात हमने स्वयं ही यह राह चुनी है। अतः हम भगवान को इसके लिए दोष नहीं दे सकते हैं। यह हमारी स्वयं की गलती है और हम ही इस गलती को सुधार सकते हैं। भगवान से स्वतंत्र होकर हमारे अंदर जो भोग करने की इच्छा हैं, हमें उसका त्याग करना चाहिए। हमें अपनी इस भोग की मानसिकता का त्याग करना होगा। हमें योगी बनना होगा।
भगवान अर्जुन को कहते हैं- अर्जुन, ‘योगी भव:’, तुम योगी बनो। हम कहते हैं कि आप जप योगी बनिए। आप जप कीजिए और जप योगी बनिए। यह संसार रूपी माया हमें भोगी भव: बनने के लिए कहती है। यह संसार, भगवान कृष्ण के विपरीत बोलता है, भगवान कृष्ण कहते हैं, “योगी भव:” और संसार कहता है, “भोगी भव:”। ‘भव:’ का अर्थ है बनना।
हमें अपनी भोग करने की मानसकिता का त्याग करना चाहिए। इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जैसा कि सभी कहते हैं कि अमेरिका, सुविधाओं और अवसरों का देश है (America is the land of opportunity)। यहाँ आपको सभी प्रकार की सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं। इस प्रकार यह अमेरिका देश ‘भोगी भव:’ की मानसकिता का प्रतिनिधित्व कर रहा है अर्थात सभी को भोगी बनने के लिए सुविधाएं प्रदान कर रहा है। परंतु वह यह नहीं बताता है कि आप जो अभी अभी भोग कर रहे हो, उस भोग का परिणाम रोग होगा, भोग से रोग की प्राप्ति होती है। हमारी प्रवृत्ति आंनद प्राप्त करने की है, परंतु हमें आनंद के साथ दुखों को सहन करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। आधा ज्ञान अत्यंत ही खतरनाक होता है। अभी अमेरिका या अन्य कई विकसित देश हमें आधा ज्ञान दे रहे हैं। वे कहते हैं, आप आनंद लीजिए, आप भोग करिए परंतु वह यह नहीं बताते कि इस आंनद का परिणाम अंततः दुख ही है।
इस प्रकार भगवान भगवतगीता (५.२२) में इसके विषय में बताते हैं कि
“ये हि संस्पर्शजा भोगा
दुःखयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय
न तेषु रमते बुधः।।
हम भोग की कई वस्तुएं एकत्रित करते हैं अथवा बहुत अधिक मात्रा में हम भोग करने के लिए वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। यदि हमारे यहाँ उत्पादन नहीं हो सकता तब हम उसको बाहर से आयात करते हैं, बड़े बड़े शॉपिंग मॉल और दुकानों में उनको भेजते हैं, उनका प्रचार करते हैं।
उस समय, हम उन पदार्थों को प्राप्त करने और उनका भोग करने के लिए उनकी ओर भागते हैं। वास्तव में भोग करने के लिए केवल 5 ही प्रकार के पदार्थ हैं, सुनना, स्पर्श, स्वाद, सूंघना या देखना होगा अर्थात श्रवण, स्पर्श, रस, गंध और रूप।छठा कोई भोग नहीं है।सम्पूर्ण जगत मात्र इन 5 पदार्थों से भरा हुआ है और इनके पीछे भाग रहा है।
आधुनिक सभ्यता में इन पदार्थों को अत्यंत ही सुंदर ढंग से सजा कर अथवा अच्छे से पैक कर इन्हें प्रस्तुत किया जाता है। जब भोग की इच्छा रखने वाले इसकी चमकदार पैकिंग को देखते हैं, तब वे इसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। जैसा जब एक पतंगा अग्नि को देखता है, तो वह शीध्र ही उस अग्नि की ओर जाता है परंतु अतंत: उस अग्नि के सम्पर्क में आने से उसकी मृत्यु हो जाती है।
भगवान कहते हैं, “संस्पर्शजा भोगा” अर्थात जब भोग की वस्तु इन्द्रियों के स्पर्श में आती हैं, वही संस्पर्शजा होता है। संस्पर्शजा, में सम आता है। सम का अर्थ है, सम्यक प्रकारेण अर्थात जब हम अधिक से अधिक मात्रा में इन पांच प्रकार के पदार्थों के भोगों में लिप्त रहते हैं अथवा उन्हें भोगना चाहते हैं, तब भगवान कृष्ण कहते हैं कि संस्पर्शजा भोगा। अंत में हमें उससे आनंद मिलता है।
जब हम भोग की वस्तुओं को भोगते हैं, तब हमें कुछ क्षणिक भोग की प्राप्ति होती है परंतु अभी तक यह केवल अर्ध सत्य है। इसका आधा सत्य कुछ और है। भगवान कृष्ण आगे दुख योग के विषय में बताते हैं।
आपके भोग का कारण ही, आपके दुख का कारण भी होगा। जो वस्तु आपको भोग दे रही है वही आपको दुख भी देगी।
जैसा कि अभी प्रचलित है ‘Buy Two, Get One Free’, दो वस्तुएँ खरीदिये, उनके साथ एक वस्तु आपको निःशुल्क मिलेगी। जब आप दो वस्तुएँ खरीदते हैं और तब जो वस्तु निःशुल्क मिलती है, वही एक दुख है।
इस प्रकार से जब हम दो वस्तुएँ खरीदते हैं और एक वस्तु हमें मुफ़्त (फ्री) मिलती है। इसका अर्थ यह नहीं होता है कि हम उन्हें दुख के लिए भुगतान करते हैं। हम उन्हें भुगतान तो आंनद के लिए करते हैं, लेकिन हमें दुख साथ में निशुल्क ही मिल जाता है, क्योंकि वह भी इसी पैकेट का एक अंश है। जिस प्रकार से एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, हम ऐसा नहीं कह सकते हैं कि इस सिक्के का केवल एक ही पहलू है अथवा एक ही साइड है। प्रारंभ में व्यक्ति हाथ मिलाते हैं परंतु बाद में वे चांटा मारते हैं। इस प्रकार से जो वस्तु हमें सुख देती है, वही अंत में हमारे दुख का कारण बनती है। माया किस प्रकार कार्य करती है यह समझना अत्यंत आवश्यक है। भगवान आगे कहते हैं।
ये हि संस्पर्शजा भोगा
दुःखयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय
न तेषु रमते बुधः ।
भौतिक जगत में जो कार्य होते है,उनका अंत होता है।प्रारंभ में उनसे आंनद प्राप्त होता है। जब हम भोग करना प्रारंभ करते हैं, उस समय हमें उनसे क्षणिक आंनद की प्राप्ति होती है परंतु इसका अन्त अत्यंत ही दुखदायक होता है।
भगवान इस श्लोक के मध्य में अर्जुन को कह रहे हैं कि “आद्यन्तवन्तः कौन्तेय” कौन्तेय, तुम सुनो! भगवान कृष्ण अर्जुन को श्लोक के बीच में क्यों कह रहे हैं कि ‘अर्जुन, तुम सुनो।’ ऐसा नही है कि अर्जुन भगवान की वाणी को सुन नहीं रहा था । वह सुन रहा था। अर्जुन के कई नाम हैं यथा भारत, अर्जुन, धनञ्जय, कौन्तेय आदि। भगवान श्लोक के मध्य में बोलते हैं कि “कौन्तेय, तुम सुनो।” इसका कारण यह है कि यह अत्यंत ही ध्यान देने वाली बात है। भगवान कह रहे हैं कि यद्यपि, अर्जुन तुम सुन रहे हो परंतु इस बात को विशेष रूप से ध्यानपूर्वक सुनो क्योंकि मैं अत्यंत ही गंभीर और महत्वपूर्ण बात तुम्हें बता रहा हूँ। इसलिए भगवान अर्जुन का पूरा ध्यान इस बात पर आकर्षित करने के लिए कहते हैं, हे अर्जुन, हे कुंती पुत्र, अब तुम सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।
“ये हि संस्पर्शजा भोगा
दुःखयोनय एव ते।”
यह एक पूरी प्रक्रिया है, जिसका आदि है और अंत है, कारण है, और उस कारण का परिणाम भी है। जहां प्रेम है, तथा घृणा है। जब प्रेम समाप्त होता है तब घृणा का प्रारंभ होता है।
आगे भगवान कहते हैं “न तेषु रमते बुध:” न तेषु अर्थात इन कार्यों में एक धीर और बुद्धिमान व्यक्ति सम्मलित नहीं होता। इसके लिए भगवान ने पहले बताया “ये हि संस्पर्शजा भोगा” ये संस्पर्शजा भोग का अभिप्राय भोग करने की वस्तुओं से है। जिनका आदि और अंत है और जिनका प्रारंभ आंनद से होता है और अंत दुख से होता है एवं दुख दायक होता है। “न तेषु रमते बुध:” रमते अर्थात जो रमन नही करते। बुद्धिमान व्यक्ति भोग की वस्तुओं में, इन्द्रियों के सुख में आनंद नहीं लेते हैं अथवा उनमें सम्मलित नहीं होते हैं।
अतः बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए वह स्वयं को इससे परे रखे।
जिन वस्तुओं का आदि है तथा अंत है, जो प्रारंभ में सुख देती हैं परंतु अंत में उनका परिणाम दुख दायक होता हैं। उनमें बुद्धिमान व्यक्ति सम्मलित नहीं होता।
इस प्रकार से बुद्धिमान व्यक्ति द्वंद्व में सम्मलित नही होता। इससे हम पता कर सकते हैं कि कौन अधिक बुद्धिमान है और कौन कम बुद्धिमान है।
भगवान कहते हैं कि जो इसमें सम्मलित नही होता है, वही बुद्धिमान है। उसका बोद्धिक स्तर (I.Q.) अधिक होता है। हम भी यह पता कर सकते हैं कि कौन व्यक्ति बुद्धिमान है और कौन नहीं। बुद्धिमान व्यक्ति हरे कृष्ण महामंत्र का जप करता है। कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति हरि नाम का जप करते हैं।
श्री मदभागवतम के ११.५.३२ में वर्णन आता है कि
“यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः।” जो व्यक्ति संकीर्तन यज्ञ में शामिल होता है, वह वास्तव में सुमेधसा है, वह सबसे अधिक बुद्धिमान है जो भगवान का कीर्तन यज्ञ अर्थात जप यज्ञ करते हैं।
भगवान भगवतगीता में स्वयं कहते हैं,
‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ अर्थात सभी यज्ञों में जप यज्ञ मैं हूँ। हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन एक यज्ञ है। कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति भगवान की आराधना संकीर्तन यज्ञ से करते हैं और कृष्णभावनामृत को स्वीकार कर जप करते हैं, संकीर्तन करते हैं, पद यात्रा करते हैं। इस प्रकार से वे हरिनाम का प्रचार और वितरण भी करते हैं। भागवतम कहती है कि जो ऐसा करते हैं, वे बुद्धिमान हैं। आप सभी भी इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं,आप सभी बुद्धिमान हैं।
हम इस जप चर्चा को यहीं विराम देते है, आप सभी से किसी अन्य दिन फिर भेंट होगी।
हरे कृष्ण!
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10 अगस्त 2019
हरे कृष्ण!
(आज की यह जप चर्चा कल की जप चर्चा का अग्रिम भाग है)
कीर्तन का अर्थ है कीर्ति अथवा महिमा। वाणिज्यिक रूप से चारों ओर माया की महिमा का जप दिन रात चल रहा है। माया का कीर्तन हर समय होता रहता है।
श्री शुकदेव गोस्वामी भागवतम में बताते हैं, ‘कीर्तनाद एव कृष्णस्य’ अर्थात कृष्ण का कीर्तन। वे देवताओं के नामों का कीर्तन करने के लिए नही बता रहे हैं। देवताओं के नाम को भगवान के नाम के समान समझना अथवा उनसे भिन्न समझना, यह भी एक अपराध है।
कलियुग का गुण है कीर्तन, अथवा केवल और केवल कृष्ण का कीर्तन करना। भागवतम में केवल भगवान कृष्ण की महिमा का वर्णन हुआ है।यह पुस्तक भागवत है और एक व्यक्ति भागवत होते हैं जो भगवान की महिमा का वर्णन करते हैं। भगवान की महिमा का गुणगान करके वह व्यक्ति महाभागवत हो जाते हैं।
‘मुक्त संग: परम् व्रजेत’ अर्थात जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति, भगवान कृष्ण के नामों का कीर्तन करने से अनंत के लिए संग और आसक्ति से मुक्त हो सकता है।
जैसा कि कहते हैं
‘असत संग त्याग एइ वैष्णव आचार’
वास्तव में वैष्णव वही है जो भगवान के पवित्र नामों का जप करता है और सांसारिक असत संग को छोड़ देता है।
आगे वर्णन है मुक्त संग अर्थात हम संग से मुक्त हो सकते हैं, जब हम संग से मुक्त होंगे तब हम कृष्ण से आसक्त हो जाएंगे, हम हरि नाम से, भगवान के भक्तों से आसक्त हो जाएंगे।
भगवान के भक्त भी किसी न किसी रूप में भगवान हैं अथवा भगवान के अंश हैं। भगवान के भक्त, भगवान को अत्यंत ही प्रिय होते हैं। माया अस्थायी, असत है, हम उससे मुक्त हो सकते हैं।
भगवान कहते हैं- ‘सर्वधर्मान्परित्यज्य’ अर्थात सभी प्रकार के असत, तथाकथित धर्मों का त्याग करो और उसके परिणामफलस्वरूप व्यक्ति परम् व्रज हो जाता है एवं इस भौतिक जगत से परे भगवान के धाम चला जाता है। ऐसा नहीं है कि उसके लिए वैकुंठ विमान आता है और वह उसमें सवार होकर सशरीर वैकुंठ चला जाता है। वास्तव में ऐसा नहीं होता है परंतु वह जीवन मुक्त हो जाता है। वह भौतिक जगत में रहते हुए भी अनासक्त रहता है। वह बाहरी गतिविधियां एवं कार्यकलापों से प्रभावित नहीं होता है। जैसे एक कमल का पुष्प कीचड़ में रहता है परंतु कीचड़ में रह कर भी वह कभी गंदा नही होता, वह पुष्प सदा कीचड़ में रहते हुए भी कीचड़ से पृथक रहता है।
भगवान भगवदगीता १८.६६ में बताते हैं कि
‘सर्वधर्मान्परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज’
वास्तव में, भगवान के इस कथन
‘सर्वधर्मान्परित्यज्य’ को समझना बहुत ही कठिन है कि भगवान हमें कौन से धर्मों का परित्याग करने के लिए कह रहे हैं परंतु समयाभाव के कारण हम इस पर अधिक चर्चा नहीं कर पाएंगे। भगवान आगे कहते हैं – ‘मामेकं’ अथवा ‘माम् एव’अर्थात केवल मेरी शरण में आओ। जैसे
कहते है ‘हरेर्नाम केवलम्।’
केवल हरि का नाम, उसी प्रकार से ‘माम् एव’ अर्थात केवल मेरी शरण ग्रहण करो। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी कहते हैं –
नाम आश्रया करि जतन तमि आपन काज,
हम जप तथा कीर्तन करके हरि नाम की शरण ग्रहण करते हैं और जब हम हरिनाम के शरणागत होते हैं तब हम वास्तव में भगवान के शरणागत होते हैं। हम जितना अधिक ध्यानपूर्वक और अपराध रहित जप करते हैं, हम उतनी ही मात्रा में भगवान के शरणागत होते हैं।
हरि !हरि!
‘नाम आश्रया’ अर्थात जब हम हरिनाम पर आश्रित होंगे। तब हम मामेकं शरणं व्रज भी हो जाएंगे। यह दोनों एक समान हैं, हरिनाम की शरण ग्रहण करना, भगवान की शरण ग्रहण करने के समान है।भगवान कहते हैं कि
सर्वधर्मान्परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज’
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः
( भगवतगीता 18.66)
यदि कोई भी अपना कार्य करते हुए भगवान के शरणागत होता है,अंततः वह पूर्ण मुक्त संग व्रज हो जाता है।
भगवान कहते हैं कि अहम अर्थात मैं, त्वाम् अर्थात तुम्हारे, सर्व अर्थात सभी(समस्त) और पापेभ्य: अर्थात जितने भी पाप हैं, “तुमने जितने भी पाप किये हैं, मैं तुम्हें उन सभी पापों से मुक्त कर दूंगा।” वास्तव में भगवान कह रहे हैं कि हमारे पापपूर्ण कार्यों की जो भी प्रतिक्रियाएं या प्रतिफल आएंगे,भगवान हमें उनसे मुक्त कर सकते हैं। अंततः जब हम पूर्ण रूप से हरिनाम के शरणागत हो जाएंगे, तब हम भगवान के भी शरणागत हो जाएंगे। हरिनाम की शरण लेना और परम भगवान की शरण लेना एक ही है और हरिनाम और भगवान की शरण लेने से हम सभी प्रकार के पापों और उनकी प्रतिक्रियायों से मुक्त हो जाएंगे।
जैसा कि संत तुकाराम महाराज जी बताते हैं पाप चि वसान अर्थात पाप करने के विचार, अवधारणाएं । हमारे विभिन्न विचार, वासनाएँ, इच्छाएं ही हमें पापपूर्ण कार्य करने के लिए उतेजित करती हैं। सर्वप्रथम हमारे अंदर विचार और वासनाएं आती हैं, उनके प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप हम पाप करते हैं। हम पापपूर्ण कार्य करते हुए तीन स्थितियों में होते हैं जिसे समझना अत्यंत आवश्यक है, प्रथम स्थिति में सर्वप्रथम पाप करने के विचार और वासना हमारे हृदय में आती है।
द्वितीय स्थिति में ये वासना हमारे हृदय में हमें पाप पूर्ण कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है और हमसे वह पापपूर्ण कार्य करवाती है।
तृतीया स्थिति में हमारे पापपूर्ण कार्यों का प्रतिफल हमें प्राप्त होता है, और् उनका प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है।
हमारे दुख का कारण हमारे द्वारा किए गए पाप पूर्ण कार्य हैं।
भगवान भगवतगीता में कहते हैं
सर्वधर्मान्परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज’
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(१८.६६)
भगवान कहते हैं कि “मैं तुम्हें तुम्हारें पापों से मुक्त कर दूंगा।” यदि हमें भगवान की पूरी कृपा चाहिए, तो हमें किसी भी प्रकार के पापपूर्ण कार्यों को नहीं करना चाहिए। यदि हम पापपूर्ण कार्य नही करेंगे, तब हमें पापपूर्ण कार्यों का प्रतिफल भी प्राप्त नहीं होगा और हमारी पाप करने की वासनाएं और इच्छाएँ भी समाप्त हो जाएंगी।
अंत में भगवान बताते हैं कि ‘मा शुचः’ अर्थात तुम डरो मत। तुम संदेह मत करो, आगे बढ़ो और मेरे शरणागत बनो।
भगवान कहते हैं, “I am here, come near, o dear, don’t fear.” अर्थात मैं यहाँ पर हूं, मेरे प्रिय, मेरे समीप आओ, तुम डरो मत। चिंता मत करो, तुम मेरे शरणागत हो।
भगवान इस सम्पूर्ण सृष्टि के सर्जक हैं। वे समस्याओं के भी सर्जक हैं परंतु हम इसके लिए भगवान को दोषी नहीं कह सकते हैं, वास्तव में यह हमारी ही गलती है, हमने ही समस्याएं मांगी हैं। हमें भगवान से विमुख और दुनिया के सम्मुख होकर इन समस्याओं की प्राप्ति हुई है।
“कृष्ण संग छोड़ जीव भोग वांच्छा करे” यह भोग वांछा है या भोग की इच्छा ही वासना है। जब कोई स्वयं की तृप्ति के लिए भोग की इच्छा करता है तभी तुरंत ही माया निकट आकर उस व्यक्ति को पकड़ लेती है। व्यक्ति द्वारा इस स्वतंत्रता का जो अनुपयुक्त लाभ उठाया जाता है, उसके लिए वह उसे दंड देती है।
वास्तव में हमने स्वयं ही स्वतंत्र रूप से दुखों के सागर, इस जगत का चयन किया है। अतः हम इसके लिए भगवान को दोषी नहीं ठहरा सकते कि भगवान ने हमें ये समस्याएं प्रदान की हैं। हमें अपने दोषों को सुधारना होगा। हमारे अंदर भगवान से स्वत्रंता रह जो भोगने की इच्छाएं हैं,उसका त्याग करना होगा। हमें अपनी इस भोग की मानसकिता का त्याग करना होगा। हमें योगी बनना होगा। भगवान अर्जुन से कहते हैं कि अर्जुन, तुम योगी बनो, ‘योगी भव:’। यदि अगर हम जप योगी नहीं बनेंगे तो माया हमें ‘भोगी भव:’ भोगी बना देगी।
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
10th August 2019
Kirtan means glory
kirti means glory. So, glories of maya are chanted day and night in commercial. Maya’s glories are broadcasted. Maya’s kirtan are on all the time. So, Sukadev Goswami says, ‘kirtana eva krsna sya,’ also meaning that the demigods considered their names equal to three worlds, independent on name of the Lord is an offence. So, Sukadev Goswami empahsised the best quality or guna in this age of Kali is kirtan only and kirtan only of Krishna. Bhagavatam chants the glories of Krishna, Bhagavan’s glories are chanted and it becomes Bhagavat, Krishna related. mukta sanga param vrajet – by chanting the holy names, Krishna’s names, mukta sangah, we become free from attachment for infinity.
There’s no sanga.’astanga tyagat ei vaishnav acar’. Vaisnava is seen or vaisnava is known for giving up, denouncing or renouncing the poor association, worldly association, by chanting the holy names of the Lord and we become attached to Krishna, we become attached to the chanting of the holy names of the Lord and the devotees. Devotees are also Lord’s in some form, they are parts and parcels of the Lord and devotees are very dear to the Lord. So, you develop attachment to the devotees. By chanting Hare Krishna, we become mukta person, all that is false, all that is Maya, all that is symbolic; we become free from the concepts and theology and faith.
‘sarva dharman parityaja’ – You give up all varieties of so-called religions.
‘param vrajet ‘, that person transcends and he goes beyond this material existence. It’s not that the Vaikuntha vimaan come and he boards on and goes back to Vaikuntha. He has become jivan mukta. While he is still around, he is not bound anymore. He is jivena mukta. Like the lotus is in the mud but it cannot be muddied by the mud. He is transcendental touched but is not touched, he is not influenced by the things around him. ‘mam ekam sharanam vraj’, all varieties of religion are not very easy to understand. “sarva dharman, mam eka sharanam”, surrender unto Me only. So, chanting of the holy names of the Lord is surrendering unto the Lord.
nama ashraya kari jatan tumi takah apana kaje,
taking shelter of the holy name. While chanting our japa we are taking shelter of the holy name. The more attentive chanting you do is indication you are more surrender unto the holy name. If our chanting is offence less then we are surrendered more unto the holy name of the Lord. So, ‘mam ekam sharanam vraj’ is same as a nama ashraya. The chanting of the holy name is equal to taking shelter to the Lord, or surrendering unto the Lord
Here He says, mam ekam sharanam vraj aham tvam sarva papebhyo. aham, also; tvam, yours; papebhyo, not one, two, but all the sins that you have committed. Meaning, the reactions or the resulted actions of the sinful activities. moksyayisyhmi, Lord will free you from all the sins, sinful activities and from all the reactions and results and sufferings of the sins.
Ultimately, we fully surrender unto the Lord, unto the holy name of the Lord then we become truly free from, papa chi vasana, the thoughts of committing sins, concepts, ideas of committing sins. There’re various ideas for us to boost these inspiration or dictation, these vasanas, these desires, and then we commit the sins, and then there are reactions dictated by the kama vasana; there are inspirations and desires to commit sins, sinful activity dictated by kaam vasana. Then the reactions of sinful activities become the cause and effect. Sinful activities cause sufferings.
So, when Lord is talking here, mam ekam sharanam vraj, I will make you free from the sin. That means you have received full benediction of the Lord, then no more desires to commit sin. You will not commit sin and there will be no reaction to any sinful activity. And ma sucah, do not fear, there is no reason. Do not doubt, go ahead, surrender unto Me. I am here, come here, my dear, do not fear, I’m right here, ma sucah. ma means do not. So, the Lord, originally, who is the creator of all problems are there, He created problems, we can’t blame the Lord because it’s all our fault. We embraced the world of problems and we turned against the Lord with our back to Him and we came to this world with bhoga van cha with vasana, with the desire to enjoy. As soon as there is bhoga van cha, the desire to enjoy, immediately nikita starts. Maya dragged us then Maya started handling us. We made bad use of the independence that we had. We chose this world of problems. So, we cannot blame the Lord, but we could rectify the fault by giving up this mentality to enjoy independently, give the spirit this bhoga mentality. Instead, you could go for yoga, yogi bhava, advised and instructed Arjuna you become a yogi, yogi bhava. So, we could say japa yogi bhava and Maya says bhogi bhava.
Hare Krishna
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
9 अगस्त 2019
हरे कृष्ण!
आज इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ 170 प्रतिभागी जप कर रहे हैं।
हरि! हरि!
मैं अभी रिचमंड, अमेरिका में हूं, यहां अभी प्रात:काल का समय है और मैं अपना जप कर रहा हूँ। जब मैं उठा तब यहाँ बहुत ठंडा था। यह एक ग्रामीण स्थान है जोकि अत्यंत ही शांत है। मुझे लगता है कि एक समय यहां जंगल रहा होगा, क्योंकि यहां बहुत से पेड़ भी देखने को मिलते हैं। प्रात:काल का समय हमारे जप करने के लिए अत्यंत ही उपयुक्त समय होता है। मैं जप करते हुए सोच रहा था कि जब मैं जप कर रहा हूँ, तो मैं अकेले बैठ कर जप क्यों करूँ। इन दिनों जब भी मैं जप करता हूँ, मुझे आप सभी भक्तों का स्मरण होता है, मुझे आप सभी की याद आती है। इसलिए मैंने यह सूचना आप सभी को भेजी और मैं आशा करता हूं कि आप सब को यह सूचना मिल गयी है। यह इसी का परिणाम है कि 175 भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। मैं इस कॉन्फ्रेंस में कुछ नए भक्तों को भी देखना चाहता हूं। हमें इस कॉन्फ्रेंस में नए भक्तों को जप करने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। इसमें हमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है लेकिन, पता नहीं, क्यों मैं इस विषय में बहुतों से इच्छा या अपेक्षा भी नहीं करता।
अमेरिका के पूर्वी तट से कुछ भक्त भी हमारे साथ जप कर रहे हैं।राम चंद्र प्रभु भी इस कॉन्फ्रेंस में जप कर रहे हैं।
अभी,राम चंद्र प्रभु ने लिखा भी था कि उन्हें प्रतिदिन काम पर भी जाना होता है परंतु पहले वे इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ जप करते हैं। तत्पश्चात वे अपने कार्य पर जाते हैं।
चाहे हम कार्य कर रहे हो या नही, हमें जप में बहुत व्यस्त रहना चाहिए। जप हमारे जीवन का प्रमुख अंग और केंद्र होना चाहिए। जप करने का समय हमारे दिन का महत्वपूर्ण समय होता है।
सामान्यतया हम अपना समय माया के लिए रखते हैं और केवल बचा हुआ समय ही हम कृष्ण के लिए रखते हैं
हरि!हरि!
एक दिन में केवल 24 घंटे होते हैं। हमें उन 24 घंटो में से लगभग 2 घंटे अपने जप के लिए सुरक्षित रखने चाहिए। जप का समय हमारा सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण समय है। जप के समय हम भगवान के साथ सीधे संपर्क में होते हैं और हम भगवान के साथ आदान प्रदान करते हैं।
उस समय हमारी अपॉइंटमेंट भगवान के साथ होती है और हम भगवान से बातचीत करते हैं। हमें प्रतिदिन 2 घंटे विशेष रूप से जप के लिए रखने चाहिए जिसमें हम भगवान का ध्यान कर सकें और उनसे संवाद कर सकें।
शेष अन्य 22 घंटो में आप अपने अन्य कार्य कर सकते हैं। 2 घंटे आप जप के लिए और 22 घण्टे आप अपने जीविकोपार्जन आदि अन्य कार्यों के प्रयोग में ले सकते हैं परंतु हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हमारे २२ घंटे केवल माया के लिए हैं और केवल २ घंटे जप के लिए हैं। हमें उन 22 घंटो में भी कृष्ण भावना भावित रहना चाहिए । इन 22 घंटो में हम अन्य आध्यात्मिक गतिविधियाँ कर सकते हैं, जैसे – श्रवण, जप, प्रसाद पाना, अध्ययन करना, भक्तों का सहयोग करना, जन्माष्टमी उत्सव की तैयारी या श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करना;
जारे देखो, तारे कहो, कृष्ण उपदेश।
ये सभी सेवाएँ हम 22 घंटो में सम्पन्न करते हैं। हमें कभी भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि ठीक है ,2 घंटे कृष्ण के लिए दे दिए बाकी 22 घंटे माया के लिए है। ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए।
श्रील प्रभुपाद बताते हैं कि हमारा लक्ष्य 24 घंटे कृष्ण भावना भावित रहना है। अतः प्रात:काल का समय हमारे जप का समय होता है। यह जप चर्चा का समय है।
हमारे जप के विषय में क्या अनुकूल है, हम इसके विषय में वर्णन अर्थात चर्चा कर रहे हैं।यहां पर सिद्धान्त है कि जप करते समय हमें केवल जप ही करना चाहिए। “chant while chanting”.
ऐसा नही है कि जब आप अन्य कार्य करें तो आप जप नहीं कर सकते। आप अन्य कार्य करते समय भी जप कर सकते हैं। जैसा कि हमने 2 दिन पूर्व बताया था कि “हाथ में काम, मुख में नाम” अर्थात आप कार्य करते समय भी जप कर सकते हैं। भगवान
कृष्ण के लिए हमारा लक्ष्य 24 घंटे होना चाहिए और श्रील प्रभुपाद जी द्वारा दिए मानक के अनुसार हमें अपने लक्ष्य के प्राप्त करना है।
आप रसोई घर में भगवान के लिए भोग बनाते हुए भी जप कर सकते हैं, वाहन चलाते समय भी जप कर सकते हैं, जैसा कि मैं देख रहा हूँ कि दीननुकम्पा माताजी वाहन चलाते हुए अपना जप कर रही है और अपने जप का श्रवण भी कर रही है।
विशेष बात यहां पर यह है कि इन 24 घंटो में से ये 2 घंटे भगवान के पवित्र नामों का उच्चारण, उनका श्रवण, उनके चिंतन के लिए सुरक्षित रखने चाहिए। हो सकता है कि आपका मन इसका विरोध करे और कहे ‘अरे! नहीं ! मेरे पास तो कई सारी समस्याएं हैं, मुझे उन समस्याओं का निवारण करना है।अतः मैं अभी जप नहीं कर सकता हूं’। यह समस्या सुलझाने का ठीक तरीका नहीं है।सभी समस्याओं का केवल एकमात्र निवारण भगवान श्री कृष्ण अथवा कृष्ण भावनामृत है। ‘भागवतम’ हमारी सभी समस्याओं का निवारण है।
हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने से हम अपनी सारी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं। हमें समझना चाहिए कि हमारी जो सभी समस्याएं हैं, उनका निवारण केवल कृष्णभावनामृत से ही हो सकता है परंतु हम किसी अन्य भ्रमित उपाय को स्वीकार कर लेते हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें इन समस्याओं का निवारण करने के लिए कृष्ण भावनामृत को ही स्वीकार करना चाहिए परंतु कई बार लोग कहते हैं कि यद्यपि मैं जप नहीं करता, भागवतम का श्रवण नहीं करता, मैं भगवतगीता भी नहीं पढ़ता परंतु फिर भी मैं अपनी समस्याएं सुलझा सकता हूँ। यह उपयुक्त नहीं है।
लोग कहते हैं कि जन्माष्टमी मनाने के लिए उनके पास समय नहीं है क्योंकि वे अपनी समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त है। उन्हें यह समझाना चाहिए कि जो भी समस्याएं हैं, वे इस युग के कारण है, ये कलियुग के कारण है। वास्तव में, हमारा इस जगत में होना ही हमारे लिए बड़ी समस्या है। भगवान से विमुख होना और इस जगत के सम्मुख होना ही बड़ी समस्या है।
श्री मद्भागवतम में श्री शुकदेव गोस्वामी जी बताते हैं कि
कलेर दोष निधे राजन
अस्ति हि एको महान गुणः
श्री शुकदेव गोस्वामी भागवतम में भगवान का प्रतिनिधित्व करते हुए बता रहे हैं कि यह कलियुग दोषो की निधि है अर्थात कलियुग अवगुणों की खान है, खजाना है, निधि है परंतु इन सभी अवगुणों के उपरांत भी कलियुग में एक अत्यंत ही महान गुण है।
जैसा कि हम जानते हैं कि भगवान हमारे सर्जक(नियंता) हैं, चूँकि भगवान हमारे सर्जक हैं, वे सभी के सर्जक हैं, इन समस्याओं के भी सर्जक हैं अर्थात इन समस्याओं को भी भगवान ही उत्पन्न करते हैं।
अतः भगवान कृष्ण ही इन समस्याओं का निवारण (उपाय) भी करते हैं।
श्रीमदभागवतम में श्री शुकदेव गोस्वामी जी , जोकि एक महाभागवत है, वास्तव में वह श्रीमति राधा रानी के तोते हैं, वे हमें यह बताते हैं कि वे अभी भी इस रूप में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और इस भागवतम के माध्यम से राधा कृष्ण की महिमा का गान करते हैं। भागवतम में एक अन्य स्थान पर आता है कि
“शुक मुखद अमृतम”
श्री शुकदेव गोस्वामी जी इस अमृत का स्वयं आस्वादन करते हुए इसका वितरण भी करते हैं। यदि हम इस अमृत का पान नहीं करेंगे तो हम मर जायेंगे परन्तु यदि हम भागवतम रूपी इस अमृत का पान करते हैं तो हम अमर हो जाएंगे और अज्ञान में नहीं रह पाएंगे। हमें जन्म, जरा, व्याधि, मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिल जाएगी। हमारा जीवन इससे मुक्त होगा और हम अमर और सनातन रूप को प्राप्त कर अपने वास्तविक स्वरूप में भगवान की सेवा कर पाएंगे। सदा के लिए भगवान की सेवा में समर्पित।
इस प्रकार से जब हम इन समस्याओं का वर्णन करते हैं कि हमारे पास ये समस्याएँ है लेकिन सबसे बड़ी दुविधा यह है कि वास्तव में हमें यह पता ही नही है कि हमारी वास्तविक समस्या क्या है, जब हमें अपनी वास्तविक समस्या का ज्ञान हो जायेगा, तब हम ज्ञानवान हो जाएंगे। सम्पूर्ण जगत इन समस्याओं का वर्णन करता है कि मेरे पास यह समस्या है, मेरे पास यह कष्ट है, लेकिन वास्तविक कष्ट क्या है ये उनको नहीं पता है।
जन्म, मृत्यु, ज़रा, व्याधि
दु:ख दोषानुदर्शनम।
भगवान कहते हैं और चाहते हैं कि पूर्ण विश्व यह जाने कि वास्तविक समस्या क्या है, वास्तविक कष्ट क्या है। भगवान के अनुसार सबसे प्रमुख समस्याएँ जन्म, मृत्यु, ज़रा, व्याधि है। इनके अतिरिक्त कुछ गौण समस्याएं भी हैं। हम कह सकते हैं कि कुछ प्रमुख समस्याएं हैं और कुछ गौण समस्याएं हैं।
भागवतम में श्री शुकदेव गोस्वामी जी कहते हैं कि
‘कलेर दोष निधे राजन’।
कलियुग तो दोषों का खजाना है, यह एक विशेष युग है। जैसा कि श्रील प्रभुपाद कहते थे कि यह एक ऋतु है, एक प्रकार का मौसम है। सत्ययुग, त्रेता, द्वापर युग भी ऋतुओं या मौसम के सामान है। कलियुग भी एक ऋतु है। यह दोषपूर्ण युग है।इस कलियुग में कई समस्याएं हैं परंतु सभी समस्याओं में जो प्रमुख समस्या जन्म, मृत्यु, ज़रा, व्याधि है। इसी श्लोक में आगे आता है कि
अस्ति ह्येको महान्गुणः।
शुकदेव गोस्वामी जी कहते हैं कि इन सबके उपरांत भी कलियुग का एक महान गुण है- कीर्तनाद एव कृष्णस्य।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम केवलम्।
केवल हरि का नाम,केवल हरि का नाम,केवल हरि का नाम। उसी प्रकार यहां पर भी एक शब्द आया है, कीर्तनाद एव कृष्णस्य।
इस प्रकार से शुकदेव गोस्वामी जी बताते हैं कि हमें हर किसी का कीर्तन नही करना है,हम किसी का भी कीर्तन करेंगे तो उसका परिणाम एक जैसा नहीं होगा। वे स्वयं ही इसे बताते हैं कि कीर्तनाद एव कृष्णस्य। केवल कृष्ण का कीर्तन करो, माया का कीर्तन नही।अभी आधुनिक उपकरणों के द्वारा दिन-रात माया का कीर्तन कर रहे हैं, और कीर्ति का प्रचार हो रहा है। वास्तव में कीर्ति का अर्थ है कि कीर्तन करना, भगवान की महिमा को बताना। हमें यह चाहिए कि हम सदैव निरतंर भगवान कृष्ण की कीर्ति का गुणगान करें।
हरे कृष्ण
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
9th August 2019
Hare Krishna
We have 170 participants.
Hari Hari!
I was chanting my japa during morning hours, here, in Richmond, Dwarka. When I got up, it was very cool. It’s very quiet and peaceful. This place is countryside. We must see the forest sometime. So, this is a good time and good place to chant. Then I thought why chant alone, I remembered. Whenever I chant these days, I remember the other chanters. They send communications. And many of you have joined – there are 175 chanters. My idea was to catch new chanters, new participants and we have some success by communicating and getting them to join the chanting session. But not many as I aspire, desire or expect. I don’t know why. I thought devotees in America would chant on east coast.
Right now, chanting is Ram Chandra prabhu who wrote and he said they have to go to work, now. They should chant and go to work. Either they are going to work or they are or we are too busy to chant.
Hari, Hari. Gaura Premanande, Hari, Hari bol!
Chanting should be the centre of our whole life. Chanting should be at the prime time. Not that prime time for maya and some other time for Krsna. There are 24 hours in a day. So, 2 hours, more or less, we should spare for chanting our japa, meditating, communicating with the Lord, your dialogue for the Lord, your time with the Lord, your appointment with the Lord, for 2 hours. You should consider 22 hours to do other things and only 2 hours for chanting and many more hours for Krishna, to do other spiritual activities – hearing, chanting, reading, studying, honouring prasadam, association of the devotees, preparing for Janmastami festival or distributing Srila Prabhupada’s books;
yāre dekha, tāre kaha kṛṣṇa’-upadeśa.
So, what I am trying to say is 2 hours for Krishna and 22 hours for maya. Out of those 22 hours, lot of hours should be given to Krsna. Our goal is 24 hours for Krishna. Srila Prabhupada has given us that as our goal, our standard to follow. This is the chanting time or the chanting session, this is japa talk, so, I am talking in favour of chanting, that is favourable to chanting. The policy also should be chant while chanting. Do other things while doing other things. While doing other things also we can chant – hata may kama mukha me nama. While cooking also you can chant. While driving also, as Dinanukampa mataji chant or hears us chanting while driving. But the 2 hours of japa time can be exclusive, can be dedicated to chanting, hearing, remembering. So, you may think, even I may say “Oh, I have so many problems so I can’t chant. I have no time to chant as I have to solve those problems.” That is not the way to solve the problems. Solution to all of our problems is Krishna, Krishna consciousness. Bhagavatam is solution. Chanting Hare Krishna is solution to all our problems. So, when you are not taking to this solution, you take to other speculated ways of solving problems which you do something else of Krishna consciousness to solve the problems. I will not chant and I will solve my problem. I will not hear Bhagavatam or I will not study Bhagavad Gita and I will solve my problems. I have no time to celebrate Janmastami because I must solve my problems. We have to be convinced that problems are caused by this deceptive age, the age of Kali. Being in this world is a problem. Turning us against Krishna, our back towards the Lord and face towards maya, that is the problem.
kalir doso nidhi rajan asti ekho mahan gunah – so many defects, in this age of Kali, so many flaws, so many shortcomings. This age of Kali is full of defects, full of bad qualities. But then there is one good quality. In the Bhagavatam, SukadevGoswami says that on behalf of the Lord, he knows what our problem is. The Lord is the creator of the problems and He is also the creator of all the solutions. If anybody knows what the solution is, that is the Lord. So, on behalf of the Lord, the maha bhagawat, Sukadev Goswami – who is, originally, the parrot of Radharani, Suka the parrot – had appeared into this world to chant the glories Radharani and Krishna.
sukha mukhad amritam – he is relishing amritas, sharing amritas of Bhagavatam that were spoken on behalf of the Lord Krishna. If we drink the nectar of Bhagavatam, then no more leaving in ignorance. We become deathless, birthless, diseaseless and ageless. Life becomes free – life minus death, minus birth. And we become amar, we become eternal. Eternally, devoted in service of the Lord.
As we talk of problems, I say the problem is we do not know what the problem is. The real problem is not knowing. We become knowledgeable when we know what the problem is. The whole world is talking of problems but they have not realised Krishna.
janma mrutyu jara vyadhi duhkha-dosanudarsanam , the lord wants to enlighten the whole world. The Lord is wants the whole world to know what the problem is and according to Lord, death, birth, disease, old age are the problems.
The whole world is talking of problem, So many problems, secondary or tertiary problem, world related problems. In Bhagavatam, Sukadev Goswami says kalir dosha nidhi rajan. This age of Kali is a special age for the world as it passes through this period called the Kali yuga. Srila Prabhupada called this a season. So, Kali yuga is one kind of a season. Dwapar yuga is another season and Treta yuga and Satya yuga are another seasons. So, this season Kali has lots of problems related with birth, death, old age and diseases. In Srimad Bhagavatam, Sukadev Goswami says ekho mahan gunah. There is one good quality, the best quality. In Kali Yuga is kirtana eva krsna sya mukta sanga param vrajet. Harer namaiva, eva – nama only. This Sukadev Goswami has said kirtana eva – only by kirtan, only. And then he had not just talked to the readers or audiences or listeners to do kirtan of anybody and everybody, no. He specified, kirtana eva krsna sya, kirtana only of Krishna, otherwise it will not work. Maya’s kirtan is going on through the karmic radio. Kirtan means glories. Kirti is glory. So, glories of maya chanted day and night.
To be continued
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
8th Aug 19
हरे कृष्ण
आज मैं अधिक समय तक आपके साथ जप नही कर सका क्योंकि मैंने अपना जप दिन के समय पहले से ही पूरा कर लिया है। अतः अब आपके साथ में, मैं जप चर्चा करूंगा, बहुत थोड़े समय के लिए मैंने आपके साथ जप किया है। आज मैं रिचमंड में हूं,लॉस एंजेलिस से रिचमंड आने में लगभग 10 घंटे लगे। रिचमंड वॉशिंगटन डीसी के पास में एक छोटा सा शहर है। यहां पर आते ही सत्संग का कार्यक्रम था। यह दिव्यनाम प्रभु का निवास है जंहा पर मैं अभी हूँ रिचमंड में , वे इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने सभी कांग्रेगेशन भक्तों को आमंत्रित किया है ,और यहां पर हरीनाम पर चर्चा होती है, और साथ ही साथ कीर्तन होता है। इस प्रकार दिव्यनाम प्रभु ने यह कार्यक्रम आयोजित किया है और इसमें मैं अभी सम्मिलित हुआ हूँ।इस प्रकार से जब मैं कल यहां पहुंचा तो मैंने आगमन प्रवचन दिया । यहां के भक्त मेरा बार-बार धन्यवाद कर रहे थे। वह कह रहे थे धन्यवाद महाराज आप यहां आए, इसके उत्तर में मैंने कहा कि वास्तव में तो हमें परम भगवान का धन्यवाद करना चाहिए और श्रील प्रभुपाद को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि महाप्रभु ने प्रभुपाद को शक्ति प्रदान की और अमेरिका का उद्धार करने के लिए वहां भेजा । प्रभुपाद वहां आए और उन्होंने यहां इस्कॉन बनाया अभी जब मैं यहां आया हूं और आपसे मिला हूं तो इसके पीछे मुख्य कारण श्रील प्रभुपाद ही हैं और हमें श्रील प्रभुपाद का धन्यवाद करना चाहिए उन्हीं के कारण हम आपस में एक दूसरे से मिल पा रहे हैं ।
मैंने उन्हें यह भी बताया कि श्रील प्रभुपाद जलदूत नामक जहाज से भारत से अमेरिका आए थे। जब श्रील प्रभुपाद अमेरिका पहुंचे तब यहां पर उनके स्वागत के लिए कोई नहीं था परंतु जब मैं यहां पहुंचा बहुत सारे भक्त मेरा स्वागत कर रहे थे, यहां अमेरिका में संकीर्तन कर रहे थे। परंतु श्रील प्रभुपाद जब आए तब यहां पर उन्हें रिसीव करने के लिए उनका स्वागत करने के लिए कोई भी नहीं था । प्रभुपाद ने अपनी डायरी में इसके विषय में लिखा है इस डायरी को जलदूत डायरी कहते हैं । श्रील प्रभुपाद ने इस डायरी को लिखा था जब वे भारत से पहले बोस्टन आए और फिर बोस्टन से न्यूयॉर्क आए। प्रभुपाद ने उस समय अपनी यात्रा के संस्मरण में एक डायरी लिखी। जलदूत डायरी में श्रील प्रभुपाद लिखते हैं कि जब मैं न्यूयार्क पहुंचा उस समय कोई भी मेरे स्वागत के लिए वहां पर उपस्थित नहीं था। मुझे यह भी नहीं पता था कि किधर जाना है दाएं जाना है अथवा बाएँ ।परंतु अब जब हम लोग यहां पर आते हैं तो हमारा भव्य स्वागत होता है हमें मालाएं पहनाई जाती है कीर्तन दल होते हैं जो कि हमारे आगमन पर कीर्तन करते हैं। इस प्रकार से ये सभी सुविधाएं अथवा सम्मान वह श्रील प्रभुपाद की कृपा से मिल रहा है। श्रील प्रभुपाद इस संकीर्तन सेना के सेनापति भक्त हैं। इस प्रकार उन्होंने अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की, परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने पहले ही इसकी स्थापना कर दी थी। भगवान श्री कृष्ण प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थान पर होते हैं। भगवान श्री कृष्ण अमेरिका या पश्चिम देशों में गुप्त रूप में थे, वे यहां पर अपनी लीलाएं कर रहे थे। परंतु भगवान उस समय में दृष्टिगोचर नहीं थे, वे हमें दृश्य नहीं थे, और वे इतनी अधिक मात्रा में सुलभ नहीं थे जिससे हम उन्हें अप्रोच करते। भगवान अमेरिका अथवा पश्चिम देशों में गुप्त रूप में अपनी लीलाएं संपन्न कर रहे थे।
श्रील प्रभुपाद ने यहां पश्चिम में कृष्ण का प्राकट्य करवाया उन्होंने अमेरिका और पश्चिम के देशों में इसके साथ संपूर्ण विश्व में भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य किया। इस प्रकार अब हम जहां पर भी जाते हैं वहां पर कृष्ण भक्त हैं वहां पर भगवान कृष्ण के मंदिर है। यंहा पर रथ यात्रा उत्सव संपन्न होते हैं, अभी सभी भक्त आनेवाले भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की तैयारी कर रहे हैं। जन्माष्टमी उत्सव हो रहे हैं, नगर संकीर्तन संपूर्ण विश्व में हो रहा है जहां हमारे हरे कृष्ण भक्त नगर में, गलियों में जाकर मृदंग करताल के साथ में कीर्तन करते हैं। यह मृदंग और करताल का कीर्तन एक समय मायापुर में , नवद्वीप में ,मणिपुर में, एक तरह से कहें तो सिर्फ भारत में होता था। भारत से बाहर नहीं होता था परंतु अब प्रभुपाद की कृपा से संपूर्ण विश्व में हो रहा है जहां संपूर्ण विश्व में भक्त करताल मृदंग के द्वारा हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करते हैं।श्रील प्रभुपाद ने हमें यह सभी कुछ प्रदान किया है और इसलिए हम श्रील प्रभुपाद को हरिनाम के राजदूत के रूप में भी जानते हैं वह हरि नाम के एंबेसेडर है ऐसा हम कहते हैं। हमारे हरे कृष्ण भक्त इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करते हैं । वे यहां वहां सर्वत्र हरे कृष्ण नाम का कीर्तन करते हैं। इस प्रकार लोग जब हमें नगर संकीर्तन करते हुए देखते हैं, वे हमें इस प्रकार संबोधित करते हैं देखो वह हरे कृष्ण भक्त है, श्रील प्रभुपाद ने प्रत्येक स्थान पर गौर भक्त वृंद बनाए ,अनुयाई बनाएं। लोग हमें हरे कृष्ण भक्त या हरे कृष्ण अनुयाई भी कहते हैं। प्रभुपाद ने इस हरे कृष्ण महामंत्र के जप और कीर्तन को विश्व विख्यात किया और इस प्रकार जो बीटल ग्रुप है, बीटल ग्रुप के जॉर्ज हैरिसन ने भी इसका कीर्तन करना प्रारंभ किया और उन्होंने इसका एक एल्बम भी बनाया और इस एल्बम का वितरण संपूर्ण विश्व में हुआ और यह एल्बम अत्यंत ही विख्यात हुआ था। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद के समय जब प्रभुपाद और उनके अनुयाई किसी एक क्षेत्र में जाते थे अथवा किसी एक देश में प्रचार के लिए जाते थे तो ऐसा होता था कि वहां के जो क्षेत्रवासी है जो नगरवासी है वह पहले से ही “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
।” महामंत्र पहले से ही सुन लेते थे उनके लिए नया नहीं होता, जॉर्ज हैरिसन का एल्बम वह बहुत विख्यात हुआ और इससे हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन भी बहुत विख्यात हुआ। इस हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन द्वारा श्रील प्रभुपाद ने अपने अनुयायियों को वह शक्ति प्रदान की, वह कृपा प्रदान की जिससे वे इसका प्रचार संपूर्ण विश्व में और अधिक से अधिक मात्रा में कर सकें, इसके साथ ही साथ प्रभुपाद ने पुस्तकों के अध्ययन और वितरण का उपदेश भी हमें दिया जिससे हमें भगवान श्री कृष्ण और अधिक सुगम हो पा रहे हैं, और प्रभुपाद के अनुयाई इन पुस्तकों का वितरण संपूर्ण विश्व में कर रहे हैं ।श्रील प्रभुपाद ने हमें चैतन्य चरितामृत, इशोपनिषद ,भगवत गीता ,भागवत आदि अनेक शास्त्र प्रदान किए हैं और प्रभुपाद ने अपने अनुयायियों को यह निर्देश भी दिया की भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने प्रभुपाद को अथवा उस समय वह अभय बाबू के नाम से जाने जाते थे उन्हें यह निर्देश दिया था कि तुम पश्चिम में जाओ और अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने भागवत के प्रथम स्कंध को अंग्रेजी में प्रकाशित किया और जब वह अमेरिका आए तो अपने साथ श्रीमद भगवतम के प्रथम स्कंध की 200 कॉपी भी जलदूत में लेकर आए थे इन पुस्तकों को केरल के कोच्चि से जलदूत में चढ़ाया गया, और श्रील प्रभुपाद उन्हें अपने साथ लेकर आये थे।
श्रील प्रभुपाद स्वयं महा भागवत हैं, वे व्यक्ति भागवत हैं । ये व्यक्ति भागवत अपने साथ में पुस्तक भागवत लेकर आए थे। यहां प्रभुपाद अकेले नहीं आए वे अपने साथ में श्रीमद्भागवतम लेकर आए थे।
मुझे इस कांफ्रेंस पर विराम भी देना है तो प्रभुपाद के अनुयाई बने, श्रील प्रभुपाद ने संपूर्ण विश्व में लगभग 5000 अनुयायियों को निर्देश दिया अब तुम मेरी पुस्तकों को अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद करो, इन पुस्तकों का प्रकाशन और वितरण करो। श्रील प्रभुपाद विस्तार करना चाहते थे, जैसे व्यास देव हैं व्यास से अर्थात जो विस्तार करें जो व्यास को बढ़ाएं तो इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद भी व्यास देव के प्रतिनिधि हैं और वे भागवतम का प्रचार कर रहे थे, वे और अधिक विस्तार कर रहे थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को कहा कि अब आप इन पुस्तकों को अधिक से अधिक भाषाओं में प्रकाशित करो और वितरण करो और उनके अनुयायियों ने ऐसा किया भी । विभिन्न भाषाओं में इन साहित्यों का अनुवाद कर रहे हैं और अधिक मात्रा में उपलब्ध करा रहे हैं।
कुछ वर्ष पहले जीबीसी की मीटिंग हो रही थी उस मीटिंग में कॉन्फ्रेंस हॉल था उस हॉल में कार्यकर्ताओं ने एक बल्ब लगा रखा था और वह बल्ब प्रत्येक सेकंड झपक रहा था ब्लिंक कर रहा था तो हम जब उस जीबीसी मीटिंग में सम्मिलित हुए तो प्रारंभ में हमें पता नहीं चला कि यहां पर बल्ब क्यों लगाया है और यह बल्ब क्यों बार-बार झपक रहा है परंतु जब यह मीटिंग समाप्त हुई तब वहां के जो आयोजक थे उन्होंने उस रहस्य को प्रकट किया यह जो बल्ब झपक रहा है चमकता है तो उस समय श्रील प्रभुपाद की एक पुस्तक का वितरण होता है ।लगभग प्रत्येक सेकंड संपूर्ण विश्व में श्रील प्रभुपाद की पुस्तक का वितरण हो रहा है जब एक बार बल्ब झपकता है तो एक पुस्तक जब दूसरी बार झपकता है तो अन्य कोई पुस्तक तो प्रत्येक सेकंड पुस्तकों का वितरण हो रहा है । श्रील प्रभुपाद कहते थे कि पुस्तकें ही आधार हैं और कृष्ण भावनामृत की जो आधारशिला है वह पुस्तके हैं । श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों के रूप में कृष्ण हमें उपलब्ध होते हैं, श्रील प्रभुपाद के निर्देश के अनुसार पुस्तकों का प्रचार हुआ और साथ ही साथ हरि नाम का भी प्रचार हुआ और कृष्ण सर्वत्र उपलब्ध हुए इसके साथ श्री प्रभुपाद ने कई मंदिर बनाए और वहां पर राधा कृष्ण सीता राम लक्ष्मण हनुमान, जगन्नाथ बलदेव देवी सुभद्रा, नरसिंहदेव, गौर निताई आदि के विग्रह स्थापित किये जहां उनकी आराधना हो रही है। इस प्रकार अपने विग्रह के रूप में अभी कृष्ण प्रत्येक स्थान पर हैं ।श्रील प्रभुपाद ने हमें प्रसाद भी सुलभ कराया जो भगवान का अत्यंत ही स्वादिष्ट रूप है । प्रसाद भी एक प्रकार का कृष्ण का स्वरूप है तो हम इस प्रसाद के द्वारा स्वादिष्ट कृष्ण का आस्वादन करते हैं ।श्रील प्रभुपाद ने हमें कई उत्सव दिए, श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण हमें कई रूपों में प्रदान किए और संपूर्ण विश्व में और पश्चिम में श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण उपलब्ध कराए।अभी मैं रिचमंड में हूं, रिचमंड वाशिंगटन डीसी की तुलना में एक छोटा शहर है और कृष्ण अभी यहां पर भी हैं। श्रील प्रभुपाद के अनुयाई उनके भक्त हैं उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का यहां पर भी प्राकट्य कराया है।
इस प्रकार से मुझे आप सभी को यह बताते हुए अत्यंत हर्ष और गर्व हो रहा है कि यह जो इस्कॉन रिचमंड है मेरे शिष्य दिव्यनाम प्रभु इसका संचालन करते हैं ।दिव्य नाम प्रभु यहां के मंदिर अध्यक्ष हैं। रिचमंड कृष्णभावनामृत के कारण और अधिक रिच हो गया है वह और अधिक समृद्ध बना है, कृष्ण भावनामृत की संस्कृति से रिचमंड और अधिक समृद्ध बन रहा है हम जप चर्चा को यहीं विराम देते हैं। हमारी जूम कॉन्फ्रेंस जपा टीम वे इस वीडियो को आप सभी को उपलब्ध करवा देंगे अभी मैं देख रहा हूं हमारे साथ में 23भक्त जप कर रहे हैं । इस प्रकार रात्रि के समय भी हमारे साथ जप कर रहे हैं, आप सब का आभार है मैं देख रहा हूं वृंदावन लीला माताजी भी हमारे साथ जप कर रही हैं ।रूस से ओम कुंड प्रभु है जो हमारे साथ जप कर रहे हैं अन्य देशों से भी भक्त हैं भारत में वृंदावन से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। ठीक है मैं यहां पर विराम देता हूं अकिंचन भक्त मैं देख रहा हूं तुम भी इस कॉन्फ्रेंस में हो तो तुम इस रिकॉर्डिंग का अनुवाद करना और रिलीज करना। आज मैंने बहुत छोटा बहुत कम समय तक जप किया है और उसके पश्चात जप चर्चा भी ज्यादा बड़ी नहीं है तो तुम इसका अनुवाद करके इसे भारतीय समय अनुसार उपलब्ध कराना यहां पर मैं विराम देता हूं।
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
8th August 2019
Srila Prabhupada is our senapati bhakta
Hare Krishna
I am in Richmond at Divyanam Prabhu’s residence. He has invited all the congregational ISKCON regional devotees, so it is a busy schedule.
When I arrived here, some devotees were thanking me for coming. My response was, “We thank the Lord, and specially we thank Srila Prabhupada for coming to America. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu had sent Srila Prabhupada to bless America. Here he founded the International Society for Krishna Consciousness. My coming here and meeting the congregation is also Srila Prabhupada’s blessing. He is the cause of our meeting and he is the one we should thank.”
And here we share another meeting. When Prabhupada arrived for the first time from India, there was no one to receive him. I see some of the garlands and the kirtana party, but none of that existed when Prabhupada had arrived. Prabhupada has written in his diaries now known as the Jaladuta Diaries from India to Boston and then, finally to New York. Now, we are giving greetings, garlands and a kirtana and mrdanga party. This is Srila Prabhupada’s Sankirtana sena and he is the commander in chief of the Sankirtana army.
Yesterday, I saw the founded International Society for Krishna Consciousness. Of course, Krsna is always everywhere and in America also before Prabhupada’s arrival, but He was not visible and He was not accessible or approachable. His stories here, His presence, His lilas, in America are all in the Krsna book and Srila Prabhupada made Krsna visible and available all over America and all over the the world.
Now, everywhere we go, we have Krsna bhaktas, Krsna temples, Ratha-yatra festivals, and we are all getting ready for Sri Krsna Janmastami and nagar Sankirtana is taking place all over the planet, Hare Krishna devotees are chanting with drums and kartals, which was only in Mayapur, Navadipa. In Manipur also. It was mostly in Hindi, and only in India. But now, by Srila Prabhupada’s mercy, it is all over the world. Srila Prabhupada is the ambassador of the Holy name.
As the devotees started chanting Hare Krishna on the streets and everywhere, by seeing those Hare Krishna devotees chanting here, there and everywhere, people started calling us, “Oh, these are the Hare Krishna people! Look! These are Hare Krishna people.” These were Srila Prabhupada’s followers. Now, they are Gaura bhakta vrndas, Krsna bhaktas and are known as Hare Krishna people chanting Hare Krishna. Prabhupada’s chanting made everyone happy.
George Harrison was a big Beatles singer, and he took to chanting. He recorded an album and that album was sold all over the planet. It has been experienced that at times even before Prabhupada’s arrival Prabhupada’s followers in some country, in some town had already heard
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
from George Harrison’s album. It became a hit making Hare Krishna chanting popular. As Srila Prabhupada empowered, instructed and guided his Hare Krishna Consciousness movement making it available here and there Krsna is becoming accessible, available to all.
Books by Srila Prabhupada – Gita, Bhagawat, Caitanya-caritamrta , Upanishads and other scriptures are being distributed. Prabhupada had instructed his followers, like Bhaktisiddhanta Saraswati Thakur had instructed Srila Prabhupada. He had instructed Abhaya, to propagate Krishna Consciousness in the Western world in English. Srila Prabhupada personally brought Bhagavatam with him. He is personally, bhagawatamah bhagawat, the person bhagawat, and he has also carried his Srimad-Bhagawatam. Then he instructed his followers, “Now, you print my books. Translate it in English, French and you distribute it in as many languages as possible”. Prabhupada had his books translated and printed in English and now we have to expand that. His instruction was, “You print. Translate and print my books, in as many languages as possible.” So, his followers did just that.
For years, BBT, Bhaktivedhanta Book Trust had held a conference, and during the presentation BBT presenters revealed the secret. One blink means that one book by Srila Prabhupada has been distributed somewhere. Another blink, another book. Each blink, a book of Srila Prabhupada is being distributed. At BBT every second Srila Prabhupada’s books were being made available.
The Deities, Krishna, Radha Krishna, Sita Rama, Gaura Nitai, Jagannatha Baladeva Subhadra, Nrsimhadev – having installed Them meant Krsna is here. Right here, right now.
Hare Krishna
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
6 August 2019
हरे कृष्ण
मैं अभी लॉस एंजेल्स में हूं, और कल यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा संपन्न हुई । जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान और समापन स्थान पर निरंतर कीर्तन करने के कारण मेरा गला खराब हो चुका है, और मेरी आवाज इतनी स्पष्ट नहीं है ।
आज, अभी मैं लॉस एंजेल्स में जप कर रहा हूं और इस समय 164 भक्त मेरे साथ जप कर रहे हैं, इतने अधिक भक्तों की जपा कॉन्फ्रेंस में होने की आशा इस समय मुझे नहीं थी, क्योंकि ऐसा विचार था कि अभी का जप और जप चर्चा को रिकॉर्ड करके भारत के समयानुसार कल सुबह 5:30 बजे इस रिकॉर्डिंग को चलाया जाएगा, परंतु अभी मैं यह देख रहा हूं कि इतने अधिक भक्त इस समय मेरे साथ जप कर रहे हैं, यह काफी प्रोत्साहित करने वाला समाचार है, इससे यह दर्शाता है कि आप सभी भक्त जप करने के लिए बहुत ही ज्यादा उत्साहित हैं।
मैं यह भी जानना चाहता हूं कि कल जो जपा और जप चर्चा लॉस एंजिलिस में हुई उसकी रिकॉर्डिंग आज सुबह भारत के समय अनुसार सुबह 5:30 पर चलाई गई, मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या पद्ममाली प्रभु और दीनानुकंपा माताजी, जो इस जपा की रिकॉर्डिंग को चलाने की सेवा कर रहे हैं उन्होंने यह भारत में रिकार्डेड जपा और जप चर्चा को चलाया? क्या अकिंचन प्रभु ने उसका हिंदी अनुवाद किया ? ( कुछ भक्तों ने टाइप करके महाराज जी को उत्तर दिया कि हां रिकॉर्डिंग चलाई गई थी और उसका हिंदी अनुवाद भी हुआ था)
अभी जो भक्त मेरे साथ जप किया और जप चर्चा सुन रहे हैं वह कल पुनः इस जप चर्चा को भारतीय समयानुसार सुबह 5:30 पर सुन सकेंगे तो उस समय आप सभी को दोहरा लाभ मिलेगा । काल यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा संपन्न हुई और यह जगन्नाथ रथ यात्रा पश्चिम देशों में सबसे बड़ी और भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा थी। यह रथयात्रा अत्यंत वैभव पूर्ण ढंग से संपन्न हुई, यहां जगन्नाथ बलदेव और सुभद्रा माता को उनके- उनके रथों में बिठाया गया और फिर हम सभी नगर भ्रमण के लिए उनको ले गए।
जगन्नाथ जी, बलदेव और सुभद्रा मैया के साथ जब भ्रमण कर रहे थे तो उनकी रथयात्रा में पुलिस का बंदोबस्त किया गया था, पुलिस के व्यक्तियों को देख कर ऐसा लग रहा था कि जगन्नाथ जी बहुत ही वीआईपी हैं, और वास्तव में जगन्नाथ जी बहुत ही वीआईपी हैं वेरी इंपोर्टेंट पर्सन है क्योंकि जब वे चल रहे थे उनका रथ किसी भी रेड लाइट पर नहीं रुका,(हंसते हुए…) वे अपने रथ पर विराजमान होकर निरंतर चले जा रहे थे, जिस पथ पर जगन्नाथ जी की रथ यात्रा जा रही थी, उस पर यातायात को पूरी तरीके से बंद कर दिया गया था, सड़कों को पूर्ण रूप से खाली कर दिया गया था, वहां केवल भगवान के रथ ही चल रहे थे, इस प्रकार से जब यहां रथ यात्रा संपन्न हो रही थी, जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा और उनके भक्तों के अलावा सड़कों पर अन्य कोई नहीं था।
इस प्रकार से यह रथयात्रा चल रही थी और अंत मे हम सभी वेनिस बीच के तट पर पहुंचे, वेनिस बीच के तट पर वहां के कई स्थानीय व्यक्ति और आगंतुक थे इसके साथ साथ हजारों हरे कृष्ण भक्त वहां पर थे , इस्कॉन लीडर्स और कई बड़े वरिष्ठ भक्त भी वहां पर थे।
स्थानीय लोग और आगंतुक भगवान के दर्शन कर रहे थे और कीर्तन का श्रवण कर रहे थे और इससे वे आनंदित हो रहे थे, वहां पर दर्शन और कीर्तन के अलावा बहुत ज्यादा संख्या में पुस्तक वितरण भी हुआ, वास्तव में वहां पर (सही कहे तो) पुस्तक वितरण से अधिक लोगों को उपहार में पुस्तकें दी गई, भक्तों ने पुस्तकों के पैकेट्स बना रखे थे जिनमें छोटी बुक्स थी और उन्होंने इस का निशुल्क वितरण किया।
इस प्रकार यह रथ यात्रा संपन्न होते हुए वेनिस बीच के तट पर आ चुकी थी और वहां पर एक बहुत वृहद स्टेज बना हुआ था, इसके साथ-साथ वहां पर बुक स्टॉल, प्रचार का स्टॉल और निशुल्क प्रसादम का स्टाल था, यह निशुल्क प्रसाद का स्टॉल सबका ध्यान आकर्षित कर रहा था, हजारों लोग पंक्ति बनाकर प्रसाद के माध्यम से जगन्नाथ भगवान की कृपा प्राप्त कर रहे थे, इसके साथ वहां पर प्रश्न उत्तर के लिए एक स्टाल लगा था , उस स्टॉल पर भक्त वहां के स्थानीय लोगों और आगंतुकों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे, और वे किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछ सकते थे, एक प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि यह पूर्ण प्रश्न और पूर्ण उत्तर थे, वहां पर जो प्रश्न पूछे जा रहे थे वह भी पूर्ण थे और उनके उत्तर भी पूर्ण थे, हरे कृष्ण भक्त भावुक भक्त नहीं है, वे भावुकता में हरे कृष्ण महामंत्र नहीं करते, उन्हें शास्त्र ज्ञान भी होता है ।
रथ यात्रा, कीर्तन, हरे कृष्ण महामंत्र का जप , यह सब एक धार्मिक पद्धति है, इसके साथ साथ अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत में शास्त्र और दर्शन का भी एक विशेष महत्व है, हम धर्म और शास्त्र दोनों को एक साथ रखते हैं। हम भगवत गीता का अध्ययन करते हैं, श्रीमद्भागवतम का अध्ययन करते हैं और गौड़ीय वैष्णव की चैतन्य चरितामृत का अध्ययन करते हैं, और उसी के आधार पर हम भगवान के नाम का प्रचार करते हैं। भगवत गीता प्राथमिक शिक्षा के समान है, वहां से हमारी प्रारंभिक शिक्षा होती है तत्पश्चात श्रीमदभागवतम स्नातक के समान है और चैतन्य चरितामृत स्नातकोत्तर के समान है ।
इस प्रकार इस्कॉन के भक्त जो कि चैतन्य महाप्रभु के अनुयाई हैं और इन ग्रंथों की शिक्षाओं के आधार पर प्रचार करते हैं, इसी कारण से वे इन्हीं ग्रंथों की शिक्षाओं के आधार पर उन सभी प्रश्नों का उत्तर दे पा रहे थे।
मुझे स्मरण है कि जब 1971 में मुंबई में हमारा हरे कृष्ण उत्सव हुआ था उस समय मैं एक कॉलेज का विद्यार्थी था और में भी इस उत्सव में शामिल हुआ था। वंहा पर भी इसी प्रकार(पूर्ण प्रश्न, पूर्ण उत्तर ) का स्टाल था, उस समय पूरे बॉम्बे में इस प्रकार से प्रचार किया गया था कि अमेरिकन और यूरोपियन साधु अपने शहर में हैं, चर्चगेट के पास जो क्रॉस मैदान है वहां पर यह उत्सव संपन्न हो रहा था, मैं भी वहां यह देखने के लिए गया कि क्या वे वास्तव में साधु हैं , मुझे स्मरण है कि प्रश्न उत्तर के स्टाल पर मैने तो कोई प्रश्न नहीं पूछा, परंतु कई भारतीय बहुत ही चुनौतीपूर्ण प्रश्न भक्तों से पूछ रहे थे , और वे अमेरिकन एवं यूरोपियन साधु , श्रीलप्रभुपाद के अनुयाई और भक्त उन प्रश्नों का सटीक उत्तर दे पा रहे थे, उनके उत्तर से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ और यह प्रमाणित भी हुआ कि वे वास्तव में साधु हैं, वे केवल बाहरी रूप से या वस्त्रों के आधार पर या भावुकता वश ही साधु नहीं हैं, अपितु उन्हें प्रबल शास्त्रीय ज्ञान भी है। वे भगवत गीता, श्रीमद्भागवत और चैतन्य चरितामृत की शिक्षाओं के आधार पर प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे।
हम जैसा कहते हैं कि पुस्तकें ही आधार हैं और इन पुस्तकों के उनके ज्ञान के आधार पर यह प्रमाणित हो रहा था कि वे सभी वास्तव में साधु हैं । इस प्रकार हम जो भी सेवाएं संपन्न करते हैं वह इन शास्त्रों की शिक्षाओं के आधार पर ही होती हैं।
यह जगन्नाथ रथ यात्रा है एक प्रकार से हमारा शास्त्र है, दर्शन है और यही हमारी संस्कृति है। इस प्रकार यह हमारी संस्कृति में क्रांति की तरह है, श्रील प्रभुपाद जी कहते थे रिवॉल्यूशन इन कल्चर , यह कृष्ण भावनामृत का कल्चर है और यह कृष्ण भावनामृत की संस्कृति है, यह संस्कृति शास्त्रों पर आधारित है हमारी संस्कृति में राधा भाव, भक्ति भाव, आदि भाव उपस्थित हैं । इस प्रकार शास्त्रों के आधार पर श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण भावनामृत को बहुत सुदृढ़ता से प्रस्तुत किया, श्रील प्रभुपाद कहते थे कि कृष्ण भावनामृत का जो वैज्ञानिक आधार है वह यह शास्त्र अथवा दर्शन ही है।
यह जगन्नाथ रथयात्रा जो कल लॉस एंजिल्स के वेनिस बीच पर संपन्न हुई , यहां पर श्रील प्रभुपाद प्रात: कालीन सैर के लिए आते थे। श्रील प्रभुपाद के समय लॉस एंजेल्स इस्कान का वर्ल्ड हेड क्वार्टर था, क्योंकि श्रील प्रभुपाद अधिकतर समय यहां पर व्यतीत करते थे, वे बहुत अधिक समय तक यहां पर रहे थे, और इसी स्थान पर श्रील प्रभुपाद ने इस्कॉन के कई मानकों को स्थापित किया, जैसे अर्चा विग्रह किस प्रकार से होना चाहिए उसके मानक को यहां पर स्थापित किया गया , इसके साथ कई अन्य मानक भी स्थापित किए गए, श्रील प्रभुपाद विश्व के कोने-कोने से अपने शिष्यों और अनुयायियों को आमंत्रित करते थे, वे यहां पर आएं और इन मानकों को सीखें, फिर अपने स्थान पर जाकर इनका प्रचार करिए।
श्रील प्रभुपाद जब वेनिस बीच के तट पर प्रातः कालीन समय की सैर पर आते थे तो उनके साथ भारत के मणिपुर के स्वरूप दामोदर महाराज जी भी होते थे, जो कि एक वैज्ञानिक थे, स्वरूप दामोदर महाराज श्रील प्रभुपाद से लॉस एंजिल्स में पहली बार मिले थे और उनके शिष्य बन गए। श्रील प्रभुपाद उनसे प्रतिदिन चर्चा करते और उनसे कहते थे कि वह प्रश्न पूछे। प्रतिदिन स्वरूप दामोदर महाराज श्रील प्रभुपाद से प्रश्न पूछते और श्रील प्रभुपाद इसी वेनिस बीच के तट पर प्रात: कालीन समय की सैर करते हुए उनके सभी प्रश्नों का उत्तर देते,
उनके सभी वैज्ञानिक विचारों और भ्रामक बातों (जो आज के वैज्ञानिक करते हैं) का श्रील प्रभुपाद खंडन करते और इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण भावनामृत का वैज्ञानिक आधार स्वरूप दामोदर महाराज के समक्ष लॉस एंजेलिस में प्रस्तुत किया।
श्रील प्रभुपाद श्रीमद भगवत गीता, भागवत और चैतन्य चरितामृत के आधार पर उस समय के वर्तमान वैज्ञानिकों को परास्त कर पा रहे थे , और कृष्ण भावनामृत का वैज्ञानिक आधार स्थापित कर रहे थे, तो यह किस प्रकार हुआ ? — यह श्रुति प्रमाण अथवा शास्त्र प्रमाण के द्वारा प्रभुपाद कर रहे थे।
वर्तमान समय के वैज्ञानिक और साधारण जन मानस प्रत्यक्ष प्रमाण को मानते हैं वे, जिस को प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं उसी को सत्य मानते हैं । वैज्ञानिक कहते हैं कि मैं अपनी ज्ञानेंद्रियों द्वारा जो ज्ञान अर्जित करूंगा वही सत्य है, प्रभुपाद कहते थे कि हमारी इंद्रियां सीमित हैं और इन इंद्रियों से प्राप्त ज्ञान भी सीमित ही होगा, तो हमें सीमित ज्ञान नहीं अपितु पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और यह जानना चाहिए कि इस पूर्ण ज्ञान का उद्गम कहां से होता है, जहां से इस पूर्ण ज्ञान का उद्गम होता है, जो इस ज्ञान का स्रोत है, हमें उसके पास जाना चाहिए।
श्रीमद्भगवत गीता, श्रीमद भागवतम, चैतन्य चरितामृत और वेद से हमें सीखना चाहिए। यह श्रुति प्रमाण है, शास्त्र प्रमाण है। वेद, गीता , भागवतम और चैतन्य चरितामृत की शिक्षाएं ही हमारे सिद्धांत हैं और इसी प्रकार से यही हमारा वैज्ञानिक आधार है ।
इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद सुदृढ़ रूप से कृष्ण भावनामृत को यहां पर स्थापित कर रहे थे। ऐसा नहीं कि कृष्ण भावनामृत की स्थापना भावुकता के साथ हुई,अपितु शास्त्रीय आधार पर बहुत ही सुदृढ़ रूप से इसकी स्थापना यहां पर हुई।
इस प्रकार जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो वह धर्म है, वह इस कलयुग का धर्म है, कई बार भक्त भावुकता वश हरे कृष्ण महामंत्र का जप भी करते हैं, यह जप धर्म है और धर्म के साथ-साथ दर्शन भी होना चाहिए, शास्त्र ज्ञान भी होना चाहिए, आज यद्यपि यह जब चर्चा बहुत लंबी हो रही है, परंतु यहां पर जो इसका मुख्य सिद्धांत है वह मैं आपको बताना चाहूंगा।
कृष्ण भावनामृत का यह सिद्धांत है कि धर्म और दर्शन शास्त्र दोनों एक साथ ही होना चाहिए। जब हम यह जपा कॉन्फ्रेंस करते हैं, तो जप करते हैं जो कि धर्म है और इसके साथ साथ हम जप चर्चा भी करते हैं जो कि शास्त्रीय आधार है और यही दर्शन है, जो जप के सिद्धांत हैं उस पर हम यहां
पर चर्चा करते हैं। इस प्रकार धर्म और दर्शन दोनों ही इस कॉन्फ्रेंस में संपन्न होते हैं।
वास्तव में हमें इन शास्त्रों और दर्शन की आवश्यकता क्यों होती है ? हमारे अंदर बहुत प्रश्न होते हैं, बहुत संशय हमारे भीतर होते हैं। अतः हम इस शास्त्रीय ज्ञान से अपने प्रश्नों का उत्तर पाते हैं और अपने भीतर के संशयो को खत्म कर सकते हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है , और आवश्यक है कि हम इन संशयो से मुक्त हो सकें, क्योंकि भगवान कहते हैं संशयात्मा विनश्यति….
मेरी वाणी पर अगर संशय करोगे तो इससे अंततोगत्वा विनाश ही होता है इन संशयो से हम भ्रमित हो जाते हैं और एक प्रकार से ये संशय हमारे शत्रु हैं, इसलिए हमारा शास्त्रीय ज्ञान प्रबल होना चाहिए । जब हमारा शास्त्रीय ज्ञान प्रबल होगा तो हम इन संशयो से मुक्त हो जाएंगे, इन्हें हम दूर कर पाएंगे।
कृष्ण भावनामृत एक दर्शन है और कृष्ण भावनामृत से संबंधित पुस्तकों को हमें पढ़ना चाहिए इससे हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर मिलेगा और हमे हमारे सभी संशयो से मुक्ति मिलेगी, और यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो इन संशयो से और ज्यादा प्रश्न उठेंगे और उससे और भी अधिक संशय होगा जिससे कि हम भ्रमित होंगे और भ्रमित होने से हमारी बुद्धि का विनाश हो सकता है। हम इस जप कॉन्फ्रेंस में केवल जप ही नहीं करते हैं अपितु शास्त्रों के आधार पर जप चर्चा भी करते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जप के विषय में चर्चा करते हैं। तो इस प्रकार यहां पर धर्म और शास्त्र अथवा दर्शन दोनों ही एक साथ होते हैं। यहां पर हम भगवान कृष्ण के रूप, गुण, नाम, लीला आदि का शास्त्रों के आधार पर चर्चा करते हैं।
इस प्रकार अभी हमारे साथ 176 भक्त हैं जो जप कर रहे हैं (यह गुरु महाराज कल की बात कर रहे हैं जब यह जप चर्चा लाइव्ह थी) कल सुबह इस जप चर्चा को भारतीय भक्तों के लिए पुनः चलाया जाएगा। जैसा कि मुझे पता चला कि जब कल की रिकॉर्डिंग भारतीय भक्तों के लिए चलाई गई थी तो इसमें 464 भक्त सम्मिलित हुये थे, तो यह एक अच्छी बात है कि 464 भक्त उस समय सम्मिलित हुए थे। अभी यह जप अमेरिका के समय क्षेत्र के अनुसार लाइव किया गया है, कल इसकी रिकॉर्डिंग भारतीय समय के अनुसार सुबह पुनः चलाई जाएगी तब और ज्यादा संख्या में भारतीय भक्त इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अभी मैं यहां पश्चिम देशों की यात्रा पर हूं तो मुझे अलग-अलग समय क्षेत्र में जाना है, तो यह हो सकता है कि मैं प्रत्येक दिन इसी समय जप न कर पाऊं, जैसे कि कल मैं अमेरिका में ही पश्चिम से पूर्व की ओर जाऊंगा, तो यह जो पूर्वी भाग है वह पश्चिमी भाग से 3 घंटा आगे है इसका तात्पर्य यह है कि जब लॉस एंजलिस में 7 बजते हैं तो पूर्व के अमेरिका में 10 बजते हैं, अमेरिका एक विशाल देश है, यहां तीन समय क्षेत्र हैं, एक ही देश में अलग-अलग टाइम जोन है। कल मैं वाशिंगटन डीसी जा रहा हूं न्यू वृंदावन की ओर…. और कल मैं जप कॉन्फ्रेंस कब प्रारंभ करूंगा इसकी सूचना आपको व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मिल जाएगी
हरे कृष्ण
श्रील प्रभुपाद की जय
निताई गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल…
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
जप चर्चा 5 अगस्त
हरे कृष्ण,
सर्वप्रथम मैंने सोचा था की मैं जप करूंगा और जो रिकॉर्डिंग है वह आप भक्तों तक पहुंचा दी जाएगी परंतु बाद में मैंने सोचा कि अकेले जप करने की अपेक्षा यह उचित है कि सबको पता चले कि मैं कब जप कर रहा हूं। आज सुबह मैं लॉस एंजेलिस में बैठकर जप कर रहा हूं और लगभग 70 भक्त हमारे साथ में जप कर रहे हैं।
इस प्रकार से आज मैं देख रहा हूं कि लंदन से गौरांग हमारे साथ में जप कर रहे हैं, सामान्यतया जब यह जप कॉन्फ्रेंस होती है तो भारतीय समयानुसार होती है इसलिए पश्चिम देशों के भक्त इसे ज्वाइन नहीं कर पाते हैं, परंतु आज यह उनके समय के अनुसार हो रही है इसलिए मैं कई नए चेहरे देख रहा हूं, जो कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ जप कर रहे हैं। जब तक मैं विश्व भ्रमण की इस यात्रा पर रहूंगा तब तक हम ऐसा करेंगे कि मैं मेरी सुविधा के अनुसार जिस क्षेत्र में रहूंगा वहां पर प्रातः काल में जप करूंगा तत्पश्चात यह रिकॉर्डिंग आपके साथ में शेयर की जाएगी तो दीन अनुकंपा माताजी और पदममाली प्रभु जी इसको देख रहे हैं और वे इस मीटिंग को भारतीय समयानुसार लगभग 5:30 या 6:00 के बीच में इसे वहां पर चलाएंगे और आप सभी भक्त एक नई जप चर्चा प्रतिदिन सुन पाएंगे। यद्यपि यह रिकॉर्डिंग होगी परंतु यह एक नई जप चर्चा होगी। यह जपा टोक नहीं है, अभी तक हमने आप सभी भक्तों को यह बताया कि किस प्रकार हम अगले 30- 40 दिन तक जप कॉन्फ्रेंस को भारतीय भक्तों के लाभ के लिए कंडक्ट करेंगे।
आप सभी को प्रेरित करने के लिए हम यह बताना चाहते हैं कि यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा हो रही है, जगन्नाथ स्वामी की जय।
जगन्नाथ रथ यात्रा अत्यंत ही विशाल और अद्भुत रूप में यहां संपन्न होगी यहां पर बहुत अधिक मात्रा में कीर्तन होगा और इस प्रकार से जगन्नाथ स्वामी रथ पर भ्रमण के लिए निकलेंगे। यहां एक बात हमें विशेष रुप से ध्यान देनी चाहिए जब हम कहते हैं कि जगन्नाथ रथ यात्रा होगी और कीर्तन होगा अथवा जब कीर्तन मेला होता है तो हमें कभी भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए क्योंकि मैंने कीर्तन मेला में कीर्तन कर लिया है तो मेरा जप पूरा हो गया , नहीं आपको अपनी 16 माला को नियमित रूप से करना चाहिए। मैं कई बार कीर्तन मेला में सम्मिलित होता हूं मैं घंटों वहां पर कीर्तन करता हूं जहां मृदंग, करताल, हारमोनियम आदि पर कीर्तन होता है। कीर्तन करना मुझे अत्यंत पसंद है इसलिए मैं घंटों कीर्तन करता हूं परंतु फिर भी ऐसा कभी नहीं हुआ कि जो मेरी नियम संख्या में नाम जप है वह नहीं किया हो। जैसा कि मैं बताता हूं कि एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब मैं अपना जप नहीं करता हूं। आप सभी कीर्तन करते हैं परंतु इसके पश्चात भी आपको प्रतिदिन जो नियम में 16 माला है उसका जप करना चाहिए। इस प्रकार यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा संपन्न हो रही है और हम कहते हैं भक्ति के अंग अर्चनम, वंदनम श्रवणम, कीर्तनम आदि इसमें हरेर नाम एव केवलम है, अर्थात इसमें जो हरि का नाम है वही एकमात्र आधार है। हरि के नाम के अलावा और कोई हमारा आधार नहीं है, यहां प्रश्न उठता है कि जब हरेर नाम एव केवलम है तो फिर भक्ति के विभिन्न अंग अर्चनम, वंदनम आदि की क्या उपयोगिता है अथवा इन का क्या महत्व है इसका उत्तर हमें जीव गोस्वामी देते हैं, जीव गोस्वामी हमें बताते हैं कि किस प्रकार हम अर्चनम, वंदनम आदि भक्ति के अन्य अंगों को संपन्न करते हुए हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर सकते हैं और किस प्रकार इससे हमें लाभ प्राप्त होता है।
इस प्रकार से यह जगन्नाथ रथ यात्रा अर्चनम है, भारत में हम देखते हैं कि कई मंदिरों में विशेष रूप से तिरुपति में अथवा दक्षिणी भारत के मंदिर में, वहां पर भगवान के जो उत्सव विग्रह होते हैं उन्हें एक पालकी में बिठाकर भ्रमण के लिए मंदिर से बाहर लाया जाता है। और न केवल दक्षिण भारत के मंदिर अपितु हमारे इस्कॉन मायापुर मंदिर में भी राधा माधव के उत्सव विग्रह का प्रति शनिवार एलीफेंट प्रोसेशन होता है, जहां पर राधा माधव के उत्सव विग्रह को हाथी की पीठ पर बिठाकर मंदिर में भ्रमण करवाया जाता है । इस प्रकार से भगवान की यह आराधना जहां भगवान के विग्रह बाहर आते हैं, जैसे जगन्नाथ रथ यात्रा है, जब भगवान जगन्नाथ अपने रथ पर आरूढ़ होकर नगर के लिए निकलते हैं, यह अर्चनम है जहां भगवान की इस प्रकार से अर्चना होती है। जब यह जगन्नाथ रथ यात्रा संपन्न होती है तब वहां पर हरि नाम का कीर्तन होता है ऐसा नहीं है कि भगवान जगन्नाथ अकेले रथ पर चुपचाप भ्रमण पर निकलते हैं, वह पूर्ण नहीं होगा हम चाहे अर्चना कर रहे हों रथयात्रा के माध्यम से अथवा चाहे जब हम हमारे घर में विग्रह सेवा कर रहे हो उस समय भी वहां पर हरि नाम होना चाहिए। किसी ना किसी रूप में भगवान के नाम का गुणगान वहां पर होना चाहिए यदि ऐसा नहीं है तो यह अपूर्ण है। तो कई बार ऐसा होता है कि भक्त केवल विग्रह आराधना ही करते हैं और नामजप नहीं करते हैं, हरेर नाम एव वहां नहीं होता है तो वह विग्रह आराधना अधूरी है। परंतु गौड़ीय वैष्णव अत्यंत ही समझदार होते हैं और वे चतुर होते हैं तो इसलिए उन्हें पता है कि हरि नाम के अलावा अथवा हरि नाम के बिना उनकी सेवा अपूर्ण रहेगी। इसलिए प्रत्येक स्थिति में हरी नाम वहां पर होना चाहिए हम जो भी भक्ति का अंग संपन्न कर रहे हैं, हरेर नाम एव केवलम का यही वास्तविक अर्थ है कि आप जो भी भक्ति का अंग करें वहां हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस महामंत्र का जप तथा कीर्तन अवश्य हो।
इस प्रकार से हरे कृष्ण महामंत्र के जप को हमें भक्ति के प्रत्येक अंग के साथ संपन्न करना चाहिए अर्थात जो नवधा भक्ति है तो उसमें श्रवनम, कीर्तनम, विष्णु स्मरणम सभी अंग में हरे कृष्ण महामंत्र सम्मिलित होना चाहिए, तभी यह अंग पूर्ण होंगे। जब हम भक्ति के अंग संपन्न करते हैं तो इनमें कई प्रकार की त्रुटियां रह जाती है। उसमें कुछ अपराध हो सकते हैं अथवा किसी ना किसी प्रकार की त्रुटि उसमें होती है। सभी प्रकार की त्रुटियों से बाहर निकलने के लिए हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए। इन अंगों का पालन करते हुए ऐसा एक सिद्धांत है श्रीमद भगवतम के आठवें स्कंद के 23 वें अध्याय में जहां पर वामन देव नर्मदा नदी के तट पर आते है जंहा यज्ञ संपन्न हो रहा था।
इसके विषय के लिए मैं अभी ज्यादा नहीं बता पाऊंगा क्योंकि इस जप चर्चा का कल सुबह दिन में भी अनुवाद होगा और यह बहुत लंबी हो जाएगी। वास्तव में मैं इस जप चर्चा को यहीं रोकना चाहता था परंतु क्योंकि मैंने इस सिद्धांत के विषय में आपको थोड़ा सा बताया है तो मैं आगे इस पर चर्चा करूंगा।श्रीमद्भागवतम के आठवें स्कंद के 23 वें अध्याय में इस सिद्धांत पर चर्चा होती है, इस प्रकार से श्रीमद भगवतम के आठवें स्कंद के 23 वें अध्याय के 16 वें श्लोक में जो सिद्धांत का वर्णन है वह सिद्धांत है “सर्वम करोति निश्छिद्रम अनुसंकीर्तन तव”अथवा नाम संकीर्तन अर्थात ये जो भी त्रुटियां है इन सभी त्रुटियों को पूर्ण किया जा सकता है, इन सभी त्रुटियों को निष्क्रिय किया जा सकता है हरिनाम के कारण। यहां कोई प्रश्न कर सकता है कि जब भी हम ये आध्यात्मिक सेवाएं संपन्न करते हैं तो उनमें किस प्रकार की त्रुटियां रहती हैं। ये त्रुटियां क्या हैं, इसी श्लोक की प्रथम पंक्ति में यह बताया गया है, वह इस प्रकार है “मंत्रत: तंत्रत: छिद्रम देशकाल अर्ह वस्तुतः । सर्वं करोति निश्छिद्रम नाम अनुसंकीर्तनम तव”।। अर्थात मंत्र हम जो मंत्र जप करते हैं हो सकता है वह सही मंत्र ना हो अथवा सही मंत्र होने के उपरांत भी उसे सही प्रकार से जपा नहीं गया हो, उन मंत्रों का उच्चारण ठीक प्रकार से नहीं किया गया हो तो यह भी एक छिद्र है, यह भी एक त्रुटि है। तंत्रत उन मंत्रों को संपन्न करने की एक विधि होती है उनका पालन करने के लिए एक प्रक्रिया होती है यदि उस विधि या प्रक्रिया का पालन न किया गया हो तो वह भी एक त्रुटि है। आगे है देश अर्थात आप जिस स्थान पर हैं, हो सकता है वह स्थान पवित्र ना हो तो वह भी एक त्रुटि है। काल है, यहां पर जो काल है, समय है, मुहूर्त है जब आप उस यज्ञ या उस सेवा को संपन्न कर रहे हैं वह उपयुक्त ना हो वस्तुतः जो सामग्री है वह ठीक न हो, सामग्री जो भी आपकी उस सेवा में भक्ति के उस अंग में प्रयुक्त होती है, जैसे कि यह जल हो सकता है यदि जल शुद्ध ना हो अथवा यज्ञ संपन्न करने के लिए शुद्ध घी ना होकर डालडा भी हो सकता है तो इस प्रकार से यह सभी प्रकार की त्रुटियां हैं। वह होती ही हैं जब हम भक्ति का कोई अंग संपन्न करते हैं और इन त्रुटियों के होने का कारण है कि यह कलयुग दोषों का खजाना है ऐसा कहते हैं कलेदोषनिधे राजन यहां पर तो त्रुटियां ही त्रुटियां हैं। किस प्रकार से हो सकता है कि हम इन त्रुटियों के होते हुये अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। उसका क्या तरीका है कि त्रुटियां तो होंगी परंतु किस प्रकार हम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकें।
इस प्रकार से इन दोषों से किस प्रकार से हम मुक्त हो सकते हैं, इसके लिए उपाय है “सर्वं करोति निश्छिद्रम हरि नाम संकीर्तनम तव” तो नाम संकीर्तन के द्वारा हम इन सभी त्रुटियों से इन दोषों से मुक्त हो सकते हैं । इसी प्रकार का वर्णन हम सुखदेव गोस्वामी के द्वारा भी सुनते हैं जहां सुखदेव गोस्वामी कहते हैं “क्लेर्दोषनिधे राजन अस्ति ही एको महान गुण।कीर्तनात एव कृष्णस्य मुक्तसंग परम वर्जेत” ।। अर्थात यह जो कलयुग है वह दोषों का खजाना है परंतु फिर भी इसका एक अत्यंत ही महान गुण है और वह महान गुण यह है कि इस कलयुग में कृष्ण के पवित्र नामों का कीर्तन करके अथवा नामों का जप करके हम मुक्त हो सकते हैं । इस प्रकार यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिस पर हमने चर्चा की कि किस प्रकार हरेर नाम एव केवलम संपन्न किया जाता है अथवा हरेर नाम एव केवलम का महत्व क्या है? आप भक्ति का कोई भी अंग संपन्न करें, उसमें हरिनाम जप है उसमें भी त्रुटियां होती हैं, उससे हम मुक्त हो सकते हैं और हमारा जो लक्ष्य है परम भगवान की प्राप्ति अथवा पुनः भगवत धाम जाना हम वह प्राप्त कर सकते हैं, इन सभी त्रुटियों के होने के पश्चात भी। इसलिए आप जो भी भक्ति का अंग संपन्न करें भगवान का पवित्र नाम उसमें होना चाहिए तभी वह प्रक्रिया पूर्ण हो सकती है ।
इस प्रकार से हमने देखा कि भगवान के पवित्र नामों के जप द्वारा हम सभी प्रकार की त्रुटियों से मुक्त हो सकते हैं। हम इस जप चर्चा को यहीं विराम देते हैं मुझे भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में सम्मिलित होने के लिए मुझे जाना है वहां पर मैं कई सारे भक्तों से मिलूंगा जैसे कृष्ण दर्शन प्रभु के पुत्र हैं वो भी वहां पर रहेंगे तो उनसे भी मिलूंगा और भी कई भक्त होंगे। इस प्रकार से आप सभी भक्त अभी भी इस कॉन्फ्रेंस को ज्वाइन कर रहे हैं और यह इस बात को दर्शाता है कि आप किस प्रकार से सदा जप करने के लिए तत्पर रहते हैं । कल सुबह भारतीय समय अनुसार 6:00 बजे पुनः ये रिकॉर्डिंग चलाई जाएगी और तब इसका हिंदी अनुवाद होगा तो आप सभी उस समय इसका लाभ ले सकते हैं ।
हरे कृष्ण परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय जगत गुरु श्री प्रभुपाद की जय निताई गौर सीतानाथ प्रेमानंदे हरि हरि बोल
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
5th August 2019
Harer Namaiva Kevalam
I meant to chant and record this for you so that you know we chanted here, for tomorrow morning’s chanting time in India. But then I decided to let the world know that I’m chanting right now, right here in Los Angeles on Sunday the fourth of August. Today is also ratha yatra. As the world wants to chant, many of you have joined.
As a result, I’m seeing new faces. Normally Indian time is not convenient for them to chant. So for these devotees this will be more convenient. I see Gauranga in London chanting, and others are chanting. So, here’s what we will do; Everyday, I chant as per my convenience during my world tour. We will let you know, possibly in advance. If not, when I’m about to begin chanting, we will notify you and if it is convenient for you, you can also chant with us, with me. Devotees could chant some more rounds and then hear the japa talk after they have chanted their rounds. And then again , this recording will be made available at 05:30 or by 6 in the morning. 6 to 7 in the morning is fine.
I think it’s clear what I’m trying to communicate to all of you, the chanters, especially those who would be on this conference and the translator who would do this during my travels in the West. I think it would be best to talk in English for others to benefit. It can also be translated. What I’m speaking is not exactly japa talk so my words of inspiration for you all today is to keep chanting.
There will be lots of Kirtana during Jagannatha Ratha-yatra. The one thing I was thinking that you should take note of is that we do kirtana in the morning, during the day and in the evening. There is a kirtana mela and we do kirtana. In Ratha-yatra we do kirtana. There is Sankirtana. We do kirtana and that must be done, but we also have to chant our 16 rounds and many more rounds. I chant for hours during kirtana or kirtana melas or other kirtanas. I never think, “Oh, I have done my chanting, I have done my duty, I have done my part, I have done singing and chanting of Hare Krishna and that’s it,” That is not the case. Besides the few times that I have mentioned in the past, I have never missed chanting my daily prescribed number of rounds. Of course, I chant more than my prescribed rounds. On top of all the kirtana I have always chanted my rounds. I do kirtana with mrdanga, kartal or harmonium, singing, dancing but I also chant my japa.
harer namaiva kevalam is the principal – chanting of the Lord’s name is the only way and there is no other way, no other way, no other way. Chanting is the only way. This has to be understood and then one may think, “Why do Ratha-yatra? Why do Deity worship? Why do pada sevanam, arcanam, vandanam, dasayam, sakhyam, atmanivedanam? Why do other processes?
Only harer namaiva kevalam.The deeper meaning of this harer namaiva kevalam has been explained by Jiva Goswami. The meaning is that the other processes also have to be followed – arcanam and vandanam,dasayam, sakhyam, atmanivedanam. But all the processes should be accompanied by the chanting of the holy names of the Lord.
Ratha-yatra is arcanam. The Deities are taken on a procession. They circumambulate the temple in many, many places. This happens especially with the small utsava vigraha Deities. Utsava means festival. They are taken on a procession in Tirupati and many other places, in ISKCON also. In Mayapur, every Saturday, there is what they call an elephant procession. Radha Madhava ride on the back of the elephant and They go on the procession. That is arcanam. During Jagannatha Ratha-yatra, the Lord goes on a big tour. He travels a long distance riding on the chariot. That arcanam, that Ratha-yatra is complete when it is accompanied by the chanting of Hare Kṛṣṇa Hare Kṛṣṇa Kṛṣṇa Kṛṣṇa Hare Hare Hare Rāma Hare Rāma Rāma Rāma Hare Hare. So, that is harer namaiva kevalam. Harinama has to be there, especially with Deity worship.
Deity worship with Harinama or singing the glories of the Lord is a ritual, but the Gaudiya Vaisnavas have to understand this harer namaiva kevalam principle. Along with arcanam, Deity worship, Ratha-yatra is part of arcanam. It’s worshipping of Jaganntha by bringing Them on a tour in a town, where He is going from Dwaraka to Vrndavana. Devotees are bringing Him to Vrndavana. That procession is accompanied by the chanting of Hare Kṛṣṇa Hare Kṛṣṇa Kṛṣṇa Kṛṣṇa Hare Hare Hare Rāma Hare Rāma Rāma Rāma Hare Hare. No process that we follow or conduct is complete without chanting of Hare Krishna. Hare Krishna has to be there.
By the chanting of Hare Krishna along with the other devotional services, sravanam kirtanam, sravanam is one bhakti and kirtanam is another bhakti, smaranam is another bhakti. Like that there are 6 more bhaktis or processes of devotional service. Specially, in this age of Kali, we chant while following other processes and then that process becomes complete. In the sense it becomes free from flaw or defect. We may be doing something wrong, something incorrectly. That wrong is done right or is rectified and the rectification takes place as we chant Hare krsna. It is bound to have some flaws and some defects by following other processes. So, there is a statement of the Siddhanta and we want to bring your attention to that Siddhanta, The 8th canto 23rd chapter is the Vamana Dev episode. That had compound by Vaman Dev. He also wrote about circumstances in history where the performances of yajna is happening at the bank of Narmada. So, there these statements were declared.
8th canto 23rd chapter :
sarvam karoti nishchidram nama sankirtanam tava
Oh Lord, when Your names are chanted or the Hare Krishna mantra is chanted and some other mantras glorifying the Lord are also chanted, nama sankirtanam tava so they do sarvam karoti nishchidram . There are some kind of chidra, flaws , defects , loopholes and some shortcomings, following the process. That’s compensated, rectified by chanting the holy name of the Lord, nama sankirtanam tava. That kind of flaws or defects, and possibly there could be many, this is the age of “kalir dosh nidhir rajan” – this age of is full of faults, “dosh nidhir.” So, some of the dosh here is “mantra taha, tantra taha, desh kalah vastuh taha.” Here some items are mentioned. Mantra taha – maybe you are not chanting the right mantra or you are chanting the right mantra but you are chanting it incorrectly or you are not pronouncing it properly. Tantra taha – are the techniques while performing different devotional services or arcana, with so many rules, do’s and don’ts. There is a whole tantra sastra. Techniques which have some flaw or defect in following the process. Desh kalah – may be the place or your location is wrong when you are doing such and such devotional activity. Desh Kalah – maybe the time is wrong. It is not the right muhurta or when we calculated maybe the calculation was wrong, or you did not even calculate and you are dong something. So, dosha kalah vastu kalah .
Vastuh taha – maybe items could be wrong – no pure ghee. They use dalda and a lot of things or ingredients could be faulty. So, vastu taha – all kind of vastu, all items, objects, materials, or samagri that are being used for yajna or Deity worship or this or that could be wrong. So, these are the chidra. karoti nishchidra – these faults, these shortcomings and mantra chanting or following the process or techniques, or the timing is wrong, the place is wrong, the items are faulty or they are contaminated. This is in the age of Kali and this can happen and we still have to achieve the goal.
And this can be the quote. We chant the holy names of the Lord
Hare Kṛṣṇa Hare Kṛṣṇa Kṛṣṇa Kṛṣṇa Hare Hare Hare Rāma Hare Rāma Rāma Rāma Hare Hare
If this is done and as we hear from Sukadev Goswami kalir dosh nidhir rajan asti eka mahan gunah. This age of Kali has all faults, all defects, all loopholes, but there is one good thing, one good and powerful thing and that is the nama sankirtana. kalir dosh nidhir rajan asti eka mahan gunah. By chanting the holy names of the Lord, we get mukti. We become free from the bonds, flaws, attachment and whatever difficulties are there. We overcome or rectify these by chanting the holy names of the Lord. We all definitely bow down to the harer namaiva kevalam. Harinama has to be there – wherever we are and whatever we are doing before undertaking any activity or service. Hanth me kama , mukha me nama- You are doing different things with your hands, with your feet, with your mind, with other articles or with other people, there has to be mukha me nama, chanting has to be there. Then everything is fine and everything would be aligned, adjusted, rectified and we will achieve the desired result or goal. And do everything for the Lord and perform devotional service unto the Supreme Krsna, the Supreme Godhead.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
4th Aug 2019
आज हम जैसा कि कल हमने किया था, अभी हम इस कॉन्फ्रेंस मे जप कुछ समय तक करते हैं और तत्पश्चात मैं जपा टोक देता हूं। जब मैं भारत में था उस समय हम अधिक समय तक जप करते थे, परंतु यहां पर शाम को मेरे अधिकतर कार्यक्रम है, जिनमें मुझे सम्मिलित होना है। लॉस एंजेलिस में तो हमने कुछ देर जप किया, अब हम जब चर्चा करेंगे। तो आप सभी भक्त इस जप चर्चा के पश्चात अपना बचा हुआ जप पूरा कर सकते हैं। सभी भक्त अपना जप सुबह करने का प्रयास कीजिए जैसा कि मैं जानता भी हूं और मुझे पता भी चला है जब दुबई से श्यामालंगी माताजी ने मुझे लिखा कि कुछ भक्त अपना जप सुबह के समय पूरा नहीं कर पाते हैं तो वे शाम के समय ऑफिस से आने के पश्चात गाड़ी चलाते समय जब पूरी तरह से थक जाते हैं, शाम को या रात के समय वे बैठ कर अपना जप पूरा करते हैं । यह अच्छी बात नहीं है यह अत्यंत बुरी बात है आपको अपना जप सुबह के समय पूरा करना चाहिए, क्योंकि जप हमारे आध्यात्मिक जीवन का सबसे विशेष अंग है और यदि हम इसे सुबह के समय जब सतोगुण का प्रभाव सर्वाधिक होता है और इस समय रजोगुण और तमोगुण का प्रभाव कम होता है। रात को जब हम सोते हैं तत्पश्चात सुबह के समय जगने के बाद हमारा शरीर और मन दोनों ही ताजा होते हैं , दोनों ही 1 तरीके से पर्याप्त विश्राम कर चुके होते हैं उस समय में हम ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं हम भगवान का चिंतन कर सकते हैं हम हरे कृष्ण के मंत्र का अनुभव कर सकते हैं। तो आप इस चीज का ध्यान रखिए अपना जप सुबह के समय पूरा करें, इस प्रकार से आप अपनी अधिकतर माला सुबह के समय पूरी कर सकते हैं ऐसा नहीं है कि आप में से कोई भक्त सुबह के समय जप नहीं करता है, अधिकतर आप सुबह के समय जप करते हैं परंतु कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो सुबह के समय बिल्कुल भी जप नहीं करते हैं। वे अपना जप दिन भर खींचते हैं,
रात के समय पूरा करते हैं, जप को टुकड़ों में करते हैं यह अच्छी बात नहीं है।आप को जितना हो सके 16 माला में से अधिकतर माला सुबह के समय पूरी कर लेनी चाहिए इस प्रकार जो हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने वाले साधक हैं, हमें दिन के 24 घंटों का हिसाब किताब रखना चाहिए कि मैं किस समय जप करूंगा, मैं किस समय अध्ययन करूंगा, यह सुबह का समय प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त का समय है यह हमारे जप, अध्ययन के लिए सर्वोत्तम है तो इस समय जपऔर अध्ययन करने का फल प्राप्त होता है। जो परिणाम हमें प्राप्त होता है वह सबसे उत्तम है। मैं स्पंज के विषय में सोच रहा था, जो स्पंज है उसे स्याही , पानी अथवा किसी तरल पदार्थ में डूबाते हैं तो वह उस पदार्थ को शोषित कर लेता है, उसे शोख लेता है परंतु एक बार यह उस पदार्थ को शोख लेता है, उसके पश्चात उसे फिर से डुबाएंऔर यदि हम चाहें की और अधिक पानी को शोखे तो यह संभव नहीं होता है। एक स्थिति होती है कि जहां तक स्पंज उस पानी को शोख सकता है उसके पश्चात आप डूबाएंगे तो भी कुछ नहीं होगा, क्योंकि वह पहले से ही उस पानी से भरा हुआ है अथवा उस तरल पदार्थ से भरा हुआ है।
इसी प्रकार हमारा मन वह भी उस स्पंज के समान है, हमारा मन पूरे दिन कार्य करने के पश्चात अथवा कई विचार हमारे मन में आते हैं पूरे दिन में उनका चिंतन करता है और इस प्रकार से उन विचारों के चिंतन से उन कार्यों के कारण से यह मन पूर्ण हो जाता है वह उस विचारों से भर जाता है और तब यदि आप उसके पश्चात जब हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो मन महामंत्र के जप को शोखता नहीं है अथवा उसको ध्यान पूर्वक सुनता नहीं, अपितु उसे पुनः उछाल देता है इस प्रकार से यदि आप एक बॉल दीवार पर फेंकते हैं तो वह तुरंत उछल कर आपके पास आ जाती है,उसी प्रकार जब आपका मन बाह्य विचारों अथवा आपके दैनिक कर्म के विचारों से पूरी तरह भरा होता है अपितु परिपूर्ण रहता है तब यदि आप बैठकर रात्रि के समय “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ” का जप करते हैं तो मन इसको स्वीकार नहीं करता है और वह उस हरि नाम को पुनःउछाल देता है, अर्थात वह हमारे भीतर प्रवेश नहीं करता है तो ऐसे जप से हम उस पर चिंतन नहीं कर पाएंगे। हम उसका श्रवण नहीं कर पाएंगे। सबसे उत्तम होता है प्रातः काल का समय जब मन एकदम ताजा रहता है, फ्रेश रहता है आप पूरी रात सोते हैं, कल के सारे विचार पीछे चले जाते हैं। जैसा कि कहा जाता है उस समय सतोगुण का प्रभाव होता है तो इस कारण से भी चारों और शांति रहती है। तब जब आप हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तब मन एक-एक शब्द को अवशोषित करता है और उस पर चिंतन कर सकता है, इस प्रकार अभी चतुर्मास चल रहा है चतुर्मास्य शयनी एकादशी से प्रारंभ होता है। शयनी एकादशी को आप में से कई भक्त पंढरपुर में उपस्थित थे तो यह चातुर्मास शयनी एकादशी से प्रारंभ होकर उत्थान एकादशी को जो कि कार्तिक में आती है तब तक चलता है।
चतुर्मास्य के समय हमें हमारी साधना को ध्यान पूर्वक करना चाहिए, उसे ठीक प्रकार करना चाहिए, श्रवण कीर्तनम की संख्या बढ़ानी चाहिए। आप इस समय अधिक मात्रा में जप कर सकते हैं आप अधिक मात्रा में अध्ययन और श्रवण कर सकते हैं। चतुर्मास के समय कुछ पदार्थों का भी निषेध होता है जैसे कि हरे पत्तेदार सब्जियां, दूध, दही उड़द की दाल एक एक महीने में इनका निषेध होता है। कई भक्त होते हैं जो इनका कठोरता पूर्वक पालन करते हैं परंतु यहां पर जो मुख्य बात है कि हमें इस चतुर्मास के समय हमारे जप को हमारे अध्ययन को हमारे शश्रवण को और जो हम आध्यात्मिक सेवाएं करते हैं उनको ध्यान पूर्वक करना चाहिए। उनकी संख्या को बढ़ाना चाहिए और चैतन्य महाप्रभु जब पुरी में थे, चतुर्मास्य के समय संपूर्ण बंगाल, उड़ीसा , शांतिपुर आदि कई स्थानों से भक्त जगन्नाथपुरी आते थे और पूरे 4 महीने जो चतुर्मास का समय है, उस समय तक वे पुरी में ही महाप्रभु के साथ निवास करते थे इस प्रकार 4 महीने भगवान जब शयन करते हैं और कार्तिक में जो उत्थान एकादशी आती है, जब भगवान उठते हैं तो यह चतुर्मास वहां पर समाप्त होता है। तो पंढरपुर में कुछ भक्त शयनी एकादशी से जब भगवान शयन करने जाते हैं उससे पहले पंढरपुर आते हैं और भगवान विट्ठल का दर्शन करते हैं। इस प्रकार भगवान जब शयन कर रहे होते हैं तब भक्त धाम में, पंढरपुर में वृंदावन, जगन्नाथपुरी, मायापुर अथवा आप भक्त अपने घरों में क्योंकि आपके घर में भगवान के विग्रह है भगवान की पूजा होती है आपका घर भी धाम ही है, आप अपने घर में रहकर भी इन आध्यात्मिक सेवाओं को संपन्न कर सकते हैं। इस प्रकार आप अधिक मात्रा में जप कीजिए, अध्ययन कीजिए, ध्यान पूर्वक श्रवण कीजिए । आप जो जप करें रहे हैं उसको आप ध्यान पूर्वक सुनिए और कई बार ऐसा होता है कि हम जप करते हैं, श्रवण नहीं कर पाते परंतु कोई और ही श्रवण करता है ऐसा नहीं होना चाहिए, जब आप जप कर रहे हो तो आप उसका श्रवण करें, और इस चतुर्मास्य का आप इस प्रकार से लाभ ले सकते हैं।
आप ध्यान पूर्वक जप कीजिए आप अपराधों से बचने की कोशिश कीजिए इस प्रकार आप एक लिस्ट बना सकते हैं की चतुर्मास में क्या-क्या कार्य करूंगा, कुछ भक्त ऐसा भी करते हैं, इस चतुर्मास में मैं नमक नहीं खाऊंगा अथवा मैं इस चतुर्मास में वैष्णव अपराध नहीं करूंगा अपितु मैं वैष्णव की सेवा करूंगा तो नामे रुचि जीवे दया,यहां पर मैं प्रयास करूंगा कि हरिनाम में रुचि उत्पन्न हो इसलिए आप ध्यान पूर्वक जप करेंगे तो आपकी रुचि इसमें उत्पन्न होगी और जीवो के प्रति अपनी दया दिखाइए, आप के आस पास पड़ोस के व्यक्ति,आपके भाई बहन संपूर्ण मानवता के प्रति आप दयालु बनिए। इस प्रकार से आप चतुर्मास का लाभ ले सकते हैं, अभी मैं लॉस एंजिल्स में हूं जैसा कि मैंने कहा है कि कल आपको बताया था यहां पर रथ यात्रा संपन्न होने वाली है और आपको कल यह भी बताया गया कि लॉस एंजेलिस जो आध्यात्मिक नाम है नवीन द्वारका न्यू द्वारका है यहां पर जो भक्त हैं, वे इस रथ यात्रा की जो अद्भुत और बहुत विशाल रथ यात्रा होने वाली है इसकी तैयारी में लगे हुए हैं, यह रथयात्रा यहां पर कल वेनिस तट पर संपन्न होगी। आज सुबह मैं चैतन्य चरितामृत पर प्रवचन दे रहा था जहां पर सभी भक्त एकत्रित थे वहां पर मैं बता रहा था कि पुरी में चतुर्मास चल रहा था तो उस समय सभी भक्त जो पुरी आ रहे थे, राजा प्रताप रुद्र इन भक्तों को नहीं जानते थे, जो भक्त नवदीप से आ रहे थे जब वे भक्त वहां आए और जब वे जगगनाथपुरी में नगर संकीर्तन कर रहे थे, उस समय महाराजा प्रताप रुद्र अपने महल की छत पर चले गए थे, सार्वभौम भट्टाचार्य और गोपीनाथ आचार्य भी उनके साथ थे, और महाराज प्रताप रुद्र उनसे पूछ रहे थे अरे वह जो वृद्ध व्यक्ति है सफेद दाढ़ी में वह कौन है, उन्हें उत्तर मिलता है कि वह अद्वैत आचार्य हैं, इसी प्रकार वे पूछते हैं और वह व्यक्ति कौन है जिसने नीले कलर की धोती पहनी हुई है, मुझे आशा है कि आपको पता होगा कि वह व्यक्ति कौन है
वह नित्यानंद प्रभु हैं, फिर पूछते हैं कि उनके पीछे कौन है फिर पता चलता है कि श्रीवास हैं,उन्हें परमेश्वर और उनके आदि भक्तों का परिचय प्राप्त हो रहा था महाराजा प्रताप रूद्र उनका दर्शन कर रहे थे। और वे सब जो हरि नाम संकीर्तन कर रहे थे महाराजा प्रताप रूद्र स्तब्ध रह गए, वे उन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सार्वभौम भट्टाचार्य और गोपीनाथ आचार्य से पूछा कि मैंने पहले भी कई बार कीर्तन सुना है जहां कीर्तनीय इस मंत्र को गाते हैं, इसी प्रकार से करताल और मृदंग बजाकर कीर्तन करते हैं, परंतु मैं इस कीर्तन से बहुत अधिक प्रभावित हो रहा हूं। इनमें क्या भिन्नता है यह कीर्तन क्यों एक अलग कीर्तन है और क्यों मैं इसके प्रति अधिक से अधिक आकर्षित हो रहा हूं। उन्होंने उत्तर दिया की है यह प्रेम कीर्तन है इस कीर्तन में प्रेम के साथ में भक्त भगवान के नाम का गान कर रहे हैं , यह अपराध रहित कीर्तन है, यह शुद्ध नाम कीर्तन है। इस प्रकार से हमसे भी आशा की जाती है जो गौड़ीय वैष्णव है हम से आशा की जाती है की हम इस प्रकार से प्रेम जप और प्रेम कीर्तन करें।
जब हम सदैव निरंतर जप करते रहते हैं तो भगवान के प्रति प्रेम की प्राप्ति होती है, प्रेम उत्पन्न होता है और तब हम जप और कीर्तन करते हैं, वह कीर्तन होता है। हमारा जो लक्ष्य है वह यह है जो बंगाल से भक्त आते थे और कीर्तन करते थे,हमें भी उनके पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए ध्यान पूर्वक जप करके उस प्रेम को प्राप्त करने के लिए प्रेम कीर्तन और प्रेम जप करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार से आपको यह संदेश मिल चुका है, आज के विचार आहार के समान है अब हम इस जप कॉन्फ्रेंस को विराम देते हैं। और यह आपके और हमारे लिए दिन का अंत नहीं है यहां लॉस एंजलिस में सायं कालीन कार्यक्रम है या कीर्तन मेला अभी भी चल रहा है। आप भी इस कीर्तन मेला को गुरु महाराज के युटुब चैनल, एफबी पेज पर लाइव देख सकते हैं, और लॉस एंजलिस के समय के अनुसार 7:30 बजे शाम को अभी से 1 घंटा 20 मिनट के पश्चात गुरु महाराज वहां पर जो मंदिर है वहां पर कीर्तन करेंगे, हम सभी इसे लाइव देख सकते हैं और कल यहां पर विशेष जगन्नाथ यात्रा है। भक्त संपूर्ण अमेरिका से पूर्व पश्चिम से लॉस एंजेलिस आ रहे हैं और कई देशों से भी भक्त इस जगन्नाथ रथ यात्रा में सम्मिलित होने के लिए लॉस एंजेलिस आ रहे हैं तो यह रथयात्रा कल संपन्न होगी।आप जप करते रहिए,जो बाकी जप है आप उसे पूरा कीजिए और आगे जप कीजिए।
हरे कृष्णा
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
4th August 2019
Brahma Muhurta – the best time to chant
Try to chant your japa during the morning hours. I heard from Shyamlangi Mataji from Dubai, how devotees plan to do their japa during the day or at the end of the day after they have returned home tired from work and then they are trying to do their japa. Don’t do that. That’s very bad policy.
The best time of the day for devotional performances, especially chanting, is the early morning hours when the mode of goodness prevails and the modes of passion and ignorance are subdued. That is the time after the night’s rest that our body and mind has rested and is peaceful and ready to absorb more thoughts, vibrations or talks. This is the time we should be chanting our japa. Make sure you are chanting in the morning.
At least you should chant most of your rounds in the morning. Some remaining rounds are fine. You can try to complete them during the day or in the evening. I was talking of the devotees who do not chant in the morning at all. And they plan to do all their chanting from beginning to finish during the day, in the evening or late in the night. We as Sadhakas, the practitioners of the chanting of the holy name. We have to plan our day, all 24 hours. This time I am going to do this. This time I am going to do that. Especially for chanting, hearing and some reading also, Brahama Muhurta is the most favourable time. You will reap better results while chanting in the morning.
I was just thinking. A sponge absorbs ink or water or some liquid. So if a sponge has already absorbed ink or water and it is saturated, then it won’t absorb any more. If you try to use the same sponge to wipe the ink or water that has fallen, it won’t absorb or suck in the ink or water because it is already full. I was thinking our minds are also like that. All day we are taking in so many thoughts, so many things are absorbed, contemplated upon by the mind and mind is kind of saturated, super saturated, overloaded and under stress. It can’t take in any more. If you try to use such a mind that has overworked the whole day thinking and hearing and observing, then on top of that you try to chant Hare Krishna, Hare Krishna’ then that ‘Hare Krishna, Hare Krishna’ is going to bounce off your mind. Like you throw a ball against the wall and it just bounces back. So we say ‘Hare Krishna, Hare Krishna’ but the mind is already preoccupied with all the thoughts throughout the day. We are keeping our mind busy so there is no room for ‘Hare Krishna, Hare Krishna’. Even if we chant it will just bounce off our ears or our mind. It will not take it in or contemplate on the Hare Krishna Mahamantra. It will not absorb the ‘Hare Krishna, Hare Krishna’ Mahamantra.
So the best time is when the mind is fresh and ready during the early, peaceful morning hours. All our yesterday’s thoughts and wanderings have kind of taken a back seat or settled somewhere and then the mind is ready for more. It is peaceful in the mode of goodness in the morning hours and then when we chant ‘Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare, Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare’ the mind would very eagerly take that and hear and think about what it has been hearing.
From Sayani Ekadasi Caturmasya commences. Many of you were in Pandharpur for Vyasa puja on Sayani Ekadasi. That was the beginning of Caturmasya which is also a good time for doing more sadhana, more sravanam kirtanam, of course some tapasya , some fasting from spinach one month, no milk for one month, no yogurt another month and no urad dhal another month. We do not follow so much austerity. Some devotees become more strict with the diet. We could do more sadhana, more chanting, hearing, more studies, more sadhu sanga. There are lots of festivals also during this four-month period.
While Caitanya Mahaprabhu was on the planet He was spending time in Jagganath Puri. Devotees would come from all over Orissa, Bengal, Bangladesh, East Bengal, Santipur, here and there. Many of them would stay on for four months in Jagannatha Puri with Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Utthana Ekadasi comes during the month of Kartik. Utthana means getting up and Sayan means sleeping. That’s the Lord’s program for all those pilgrims you noticed coming to Pandharpur. They were coming there to receive darsana of the Lord before He goes to sleep and rest for four months. Good idea? We too will follow in the footsteps of the Lord.
While the Lord is relaxing and resting, devotees in the dham like Pandharpur dham, Jagganath Puri dham, Vrindavan dham and also could be at your home, concentrate on the holy names of the Lord. Your home is also a place of pilgrimage. You have made your home into a temple and there devotees practice more hearing and chanting and concentrate on what he is hearing, “I want to hear the holy name. I want to hear’. Many times we chant but we do not hear. Or maybe we are chanting, and others are hearing but we are not hearing. So, it’s a good time to take advantage of this Caturmasya and practice attentive chanting. Practice avoiding the ten offences. You could make a list, “I am going to avoid this, I am going to avoid that. I am not going to eat salt and the benefits are there also. I am going to avoid Vaisnava aparadha. On the contarary I am going to serve Vaisnavas, do Vaisnava seva, sadhu seva, name ruci, jive daya. I am going to increase the attachment and the taste for chanting and do jive daya, exibit some compassion or daya on other fellow human beings or fellow brothers and sisters.
This Caturmasya is the time when each one of you could see what you could do in addition to improve your sadhana, your chanting.
Here in Los Angeles there is a Ratha-yatra tomorrow, big Ratha-yatra festival. Los Angeles is also known as New Dwaraka. Devotees of New Dwaraka are getting ready for grand Jagannatha Ratha-yatra festival here tomorrow at Venice Beach. So, this morning in Caitanya-caritamrta class, I was asked to give class and we were remembering the devotees who 500 years ago were coming to Jagannatha Puri. So I was narrating this morning that now they were arriving.
King Prataparudra was new to this. He did not know who is who. As they were coming in big numbers and in a procession, nagar Kirtana was also taking place. He was very curious to know and understand who they were and what they were doing? King Prataparudra climbed up to the rooftop of his palace and he was accompanied by Sarvabhauma Battacharya and Gopinath Acarya. King Prataparudra wanted to know who that elderly person with the beard was? That’s Advaitacarya, And what about that one with the blue Dhoti? Who was he? Balaram? It was Nityananda Prabhu. And who is that one behind Him? It was Srivas Thakur, And that one? Parmeshwar. Who is that one?Narsimhananda. And so it went on.
King Prataparudra was taking darsana. The one thing that impressed and amazed king Prataparudra was the performance of the Kirtana. He was asking others around him, Sarvabhauma Battacharya and others, “I have heard Kirtana, but not of this kind. Kirtaniyas are chanting the same mantra, playing the same drums and kartals, but this Kirtana that I am hearing today performed by these pilgrims arriving from all over Bengal, is something different. I am really attracted by this Kirtana. This is very appealing to me and this is very powerful. What is the difference between this Kirtana and the other Kirtanas that I had heard? The reply given was that this Kirtana is Prema Kirtana. They are singing with prema, with love for the Lord. This Kirtana is offenceless Kirtana,pure chanting, suddha nama japa.
That is desirable. What is expected. Gaudiya Vaisnava japa or kirtana is prema japa or prema Kirtana, Kirtana with love for the Lord. By chanting and chanting they have developed love for the Lord. One could feel that love and get influenced by this loving Kirtana. Make your goal of chanting like those pilgrims coming from Bengal.
You got the message. It’s enough food for thought for the day, so we will wind up here. It’s not end of the day for me us here.At 7.30 Los Angeles time, in 1 hour and 20 minutes, I will also be chanting in the temple and there is Ratha-yatra tomorrow. Devotees are arriving from all over America. This is the West coast. Devotees are coming from the East coast and from other countries.
Continue chanting. You have more japa to do. Jai Jagannatha.
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
03 अगस्त 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 320 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। मैं लॉस एंजेलिस में हूँ। यह कोई पूर्व में रिकॉर्ड की गई क्लास नहीं है। मैं लाइव सेशन दे रहा हूँ। यहाँ इस समय शाम के 5 बजकर 40 मिनट हुए हैं। आज मेरी अन्य व्यस्तताएँ भी हैं। आज लॉस एंजेलिस मंदिर में कीर्तन मेला है। मुझे शीघ्र ही लॉस एंजेलिस मंदिर में कीर्तन करने के लिए जाना है। इसलिए मुझे ये सेशन जल्दी ही समाप्त करना होगा।
मैं आश्वस्त हूँ कि आप सब ने पिछले दो दिनों में जप किया होगा। मैं जहाँ कहीं भी था, जप कर रहा था। मेरा अधिकांश समय तो एयरप्लेन(हवाई जहाज) के एयर क्राफ्ट में निकला परंतु जहां भी मुझे समय मिल रहा था, मैं वहां जप कर रहा था लेकिन मैं आप सबको मिस कर रहा था। मुझे आपकी अनुपस्थिति अनुभव हो रही थी । मुझे अच्छा नहीं लग रहा था परन्तु आप सभी भी जप कर रहे होंगे, मैं भी जप कर रहा था।
मैं ऐसा अनुभव कर रहा था कि भगवान सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं। भगवान धरती पर भी हैं और आसमान में भी हैं।
हम जहाँ कहीं भी जप करते हैं, वहां भगवान होते हैं। जब मैं एयरप्लेन में था, उस वक़्त मैं अनुभव कर रहा था कि भगवान मेरे साथ उपस्थित हैं। वहाँ मैं जप कर रहा था, ” यतो- यतो यामी ततो नरसिंह” ” भगवान बाहर भी हैं, अंदर भी हैं यहाँ भी हैं, वहां भी हैं , मेरे प्रभु, मैं जहाँ कहीं भी होता हूँ, आप सर्वत्र हैं।” ऐसा नही है कि जब हम जप नहीं करते, वहाँ भगवान उपस्थित नहीं होते परंतु जब हम जप करते हैं तब हमें भगवान की विशेष उपस्थिति का अनुभव हो सकता है। हम जहाँ कहीं भी होते हैं, वहाँ भगवान होते हैं।
कल जब मैं हवाई जहाज से न्यूयॉर्क में उतरा , उस समय मैं श्रील प्रभुपाद की भावना से काफी अभिभूत हो गया। मुझे श्रील प्रभुपाद का स्मरण हो रहा था,उनकी याद आ रही थी।
जब मैं अमेरिका में पहुंचा, वहां कई भक्त मेरे स्वागत और अभिवादन के लिए आए हुए थे लेकिन श्रील प्रभुपाद जी अपनी डायरी में लिखते हैं कि जब वे 1965 में अमेरिका आए थे, उनके स्वागत के लिए कोई भी नहीं था, ना ही उनके पास रुकने का कोई स्थान था, न ही उनके लिए किसी ने होटल की व्यवस्था की थी। श्रील प्रभुपाद जी को यह भी नहीं पता था कि उनको बाएं जाना है या दाएं जाना है।
श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कॉन (अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ) की स्थापना की और एक प्रकार से सारी व्यवस्थाओं और सुविधाओं का निर्माण किया।मैं ऐसा विचार कर रहा था कि श्रील प्रभुपाद के अतिरिक्त इस्कॉन में कोई भी ऐसा भक्त नहीं है जिसने मालवाहक जहाज से यात्रा की हो। श्रील प्रभुपाद जी 30 दिन की अति कठिन यात्रा कर अमेरिका पहुंचे थे परंतु मैं केवल 14 घंटो में ही अमेरिका आ गया जबकि प्रभुपाद जी ने अमेरिका आने के लिए कितनी अधिक कठिनाईयों का सामना किया था। केवल श्रील प्रभुपाद जी की वजह से ही आज हम लोगों को प्रचार और प्रसार करने के लिए सारी सुविधाएं प्राप्त हैं।
हम कहते हैं कि जब श्रील प्रभुपाद जी अमेरिका आए, वे मित्रहीन थे अर्थात उनका कोई मित्र नहीं था, न ही कोई उनके स्वागत के लिए आया था। श्रील प्रभुपाद जी धनहीन भी थे, उनके पास केवल पांच डॉलर थे परन्तु यह हमें केवल बाह्य दृष्टि से देखने में लगता है कि उनका कोई मित्र नही था, उनके पास कोई धन नहीं था। वास्तव में तो स्वयं भगवान श्रील प्रभुपाद जी के साथ थे। भगवान स्वयं प्रभुपाद जी के परम मित्र के रूप में उनके साथ आए थे। हम यह भी नही कह सकते कि श्रील प्रभुपाद जी धन और सम्पत्ति से विहीन थे। उनके पास प्रचुर मात्रा में हरि नाम की धन सम्पत्ति थी। श्रील प्रभुपाद जी के पास श्री मदभागवतम थी जो कि सम्पूर्ण धन और सम्पत्ति का स्रोत है। श्री मदभागवतम में पूर्ण रूप से पूरे विश्व (संसार) की धन और सम्पति निहित है, जिस धन सम्पति को श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु “गोलोकेर प्रेम धन” से लेकर आए थे, श्रील प्रभुपाद जी उसी धन संपत्ति को लेकर पाश्चात्य देश अमेरिका में आए।
पाश्चात्य देश में अमेरिकन लोगों के पास भौतिक दृष्टि से बहुत अधिक धन संपत्ति थी परंतु वे लोग हिप्पी बन रहे थे, क्योंकि उनके पास वास्तविक धन नहीं था जो उनको प्रसन्न कर सके।
श्रील प्रभुपाद जी ने हरिनाम की संपत्ति इन अमेरिकन और पाश्चात्य देशों में बांटी जिससे वे वास्तव में हैप्पी बन सकें।श्रील प्रभुपाद जी ने उन अमेरिकन,पाश्चात्य देश के निवासियों को हरि नाम की सम्पति दी जिससे वे प्रसन्नचित बन सकें, जो उनकी धन सम्पति उनको नहीं दे पा रही थी।
मुझे न्यूयॉर्क में पहुंच एक औऱ बात का स्मरण हुआ, जब मैं 1978 में पहली बार न्यूयॉर्क में आया था तब मेरे गुरुभाई पूर्वदास प्रभुजी, मुझे एयरपोर्ट पर लेने के लिए आए थे और वे न्यूयॉर्क में श्रील प्रभुपाद जी के musuem के संचालक भी थे, वे मुझे अपने साथ वहां लेकर गए और हाथ में प्रभुपाद लीलामृत दी। गाइडेड टूर मेरे गुरुभाई ने उन सभी लीलास्थलियों का भ्रमण करवाया जहाँ जहाँ श्रील प्रभुपाद जी ने विभिन्न लीलाएं की थी और विभिन्न प्रकार से प्रचार और प्रसार कार्य प्रारंभ किया।
हम सब से पहले बावरी गए, जहां श्रील प्रभुपाद जी का कई बार हिप्पियों के साथ भिंड़त(एनकाउंटर) हुआ था। उसके बाद में हम ग्रीन स्कवायर पार्क गए, जहाँ श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कॉन का पहला नगर संकीर्तन किया था और हमने उस वृक्ष के भी दर्शन किए जिसके नीचे खड़े होकर प्रभुपाद जी ने हरे कृष्ण महामंत्र का पहला लेक्चर दिया था। वे उन हिप्पिज़ को कृष्णभावनामृत के बारे में बता रहे थे। उसके उपरांत हम उस इस्कॉन के पहले केंद्र मैचलैस गिफ्ट्स 26th 2nd एवेन्यू, न्यूयॉर्क में गए।
श्रील प्रभुपाद जी ने हरे कृष्ण आंदोलन का पहला केंद्र 26th 2nd एवेन्यू में स्थापित किया। यह केंद्र किराए के स्थान पर बना हुआ था। हम सोच सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ का मुख्यालय एक किराये की बिल्डिंग में स्थित था। श्रील प्रभुपाद सड़क के किनारे कीर्तन करके, पार्कों में जाकर लोगों को अपने केंद्र 26th 2nd एवेन्यू के लिए आमंत्रित करने लगे। इस प्रकार से जब लोग वहां आने लगे तब श्रील प्रभुपाद जी ने अकेले ही 100 से 150 लोगों का पहले स्वागत करते थे, अकेले ही उनके लिए प्रसादम बनाते थे। बाजार से सामग्री को खरीद कर लाते थे, उसको धोते थे, काटते थे, भोग बनाते थे और भगवान को अर्पित करते थे। उसके उपरांत वे सबको क्लास दे कृष्ण भक्ति का प्रचार करते थे। उनको खड़ा कर नृत्य सिखाते थे, स्वामी स्टेप सिखाते थे। प्रभुपाद जी ने उन सबको नृत्य करना सिखाया। इसके पश्चात श्रील प्रभुपादजी, सबको पंक्तिबद्ध बैठाकर अपने हाथ से सबको प्रसाद परोसते थे। जब वे सब उदर भर कर, पेट भर कर खा कर चले जाते थे, तब प्रभुपाद जी पूरी तरह से उस जगह की सफाई करते थे। ये सारे कार्य श्रील प्रभुपाद जी अकेले ही करते थे। एक अकेले व्यक्ति होकर ‘सिंगल हंडेड’ वे सारे कार्य करते थे।
एक आगंतुक जो श्रील प्रभुपाद जी का लेक्चर और हरिनाम के विषय में सुनने के लिए उनके पास आया करता था, एक दिन उन्होंने उस दुकान के बाहर (जहां प्रभुपाद जी ने स्टोर के फ्रंट पर अपना केंद्र बनाया हुआ था) मैचलैस गिफ्ट अर्थात अनमोल उपहार का एक बोर्ड लगा हुआ देखा, उन्होंने सोचा कि इस बोर्ड का क्या करना चाहिए, तब वे श्रील प्रभुपाद जी के पास गए और उनसे पूछा, “स्वामी जी, दुकान के पास जो बोर्ड लगा हुआ है और जिस पर लिखा है ‘मैचलैस गिफ्ट्स’, क्या हम इसको हटा दे या इसको लगे रहने दे” श्रील प्रभुपाद जी ने सोचने के बाद कहा, “नही! नही! इसको लगे रहने दो,वास्तव में मैं जो देने के लिए आया हूँ, वो तो अनमोल ही है, मैचलैस ही है, उसका कोई मूल्य नहीं है, वह तो बहुत सुंदर उपहार देने के लिए है।” वास्तव में श्रील प्रभुपाद जी एक अनमोल उपहार ले कर ही वहां गए थे। मैचलैस मतलब अतुलनीय। श्रील प्रभुपाद जी अतुलनीय उपहार ले कर गए थे। प्रभुपाद जी वहाँ जो सिद्धांत और दर्शन प्रस्तुत कर रहे थे, क्लास दे रहे थे, वो भी अतुलनीय था। श्रील प्रभुपाद जी जो हरिनाम दे रहे थे, वो भी अतुलनीय था। जो प्रसादम वहाँ दे रहे थे, वो भी अतुलनीय था। श्रील प्रभुपाद जी उनको कृष्ण दे रहे थे,वो तो अतुलनीय ही हैं। भगवान अतुलनीय ही हैं।। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद जी ने मना कर दिया, “नही! नही! आप इस बोर्ड को मत हटाइये। उसको वहीं लगे रहने दीजिए।” इस प्रकार हम देखते हैं कि वहां से श्रील प्रभुपाद जी द्वारा ये नाम मैचलैस गिफ्ट अतुलनीय उपहार आज पूरे संसार में वितरित हो रहा है।
श्रील प्रभुपाद जी मैचलैस गिफ्ट के स्टोर में एक वर्ष रहने के बाद वे पहली बार कैलिफोर्निया के सेनफ्रांसिस्को शहर में गए। श्रील प्रभुपाद जी की पहली हवाई यात्रा न्यूयॉर्क से सेनफ्रांसिस्को तक की। जब वे वायुयान में बैठे, उन्होनें अपने अनुभव अपने शिष्यों के साथ साझा किए कि “किस प्रकार से हवाई जहाज उड़ा और उन्होंने गगन चुम्बी इमारतों को देखा।” प्रभुपाद जी ने कहा कि “उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे एक माचिस की डिब्बी के ऊपर दूसरी माचिस की डिब्बी रख दी हो और फिर जोड़ जोड़ कर इमारतें खड़ी कर दी गयी है। इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद जी अपने शिष्यों के साथ अपना अनुभव साझा कर रहे थे। श्रील प्रभुपाद जी ये सब देखकर काफी अचम्भित हो गए थे क्योंकि यह प्रभुपाद जी की पहली हवाई यात्रा थी, इससे पूर्व प्रभुपाद जी कभी हवाई जहाज में नहीं बैठे थे।
आप सब को पता ही है कि श्रील प्रभुपाद जी ने सेनफ्रांसिस्को में पहली जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया था। यहां हमें श्रील प्रभुपाद जी की कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। उनकी कई लीलाओं का पता चलता है।हम सब को पता है कि श्रील प्रभुपाद जी का सेनफ्रांसिस्को में एक इतिहास है। जब श्रील प्रभुपाद जी ने पहली जगन्नाथ रथ यात्रा का यहाँ आयोजन किया था,इस कार्यक्रम में लगभग 10000 की संख्या में अमेरिकन स्त्री और पुरुष एकत्रित हुए थे और श्रील प्रभुपाद जी को उस कार्यक्रम से बहुत बड़ी अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी। उसके उपरांत श्रील प्रभुपाद जी ने कहा कि “मैं सेनफ्रांसिस्को का एक नया नाम देता हूँ। ” उन्होंने सेनफ्रांसिस्को शहर का नामकरण कर उसको न्यू जगन्नाथपुरी नाम दिया।यह शहर नवीन जगन्नाथपुरी कहलाएगा। श्रील प्रभुपाद जी ने वहां के इस्कॉन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदेव, सुभद्रा जी की स्थापना भी की।
मैं आज सुबह जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के लिए न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स आया हूँ ।यहाँ रविवार के दिन जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव रखा गया है। लॉस एंजिल्स की रथ यात्रा बहुत ही अतुलनीय है और प्रसिद्ध है। यहां इसमें तीन रथ होते हैं। श्रील प्रभुपाद जी ने लॉस एंजिल्स का भी नामकरण कर उसको नवीन द्वारकापुरी नाम दिया। नवीन द्वारकापुरी , लॉस एंजिलिस में यहाँ के प्रसिद्ध समुद्री किनारे ‘रेन्स बीच’ पर रथ यात्रा होती है। श्रील प्रभुपाद जब यहाँ रहते थे, प्रतिदिन वॉक के लिए यहाँ आया करते थे। मैं भी इस रथ यात्रा में भाग लेने के लिए आया हूं। यहां मेरा दो दिवसीय प्रोग्राम, प्रचार कार्य रहेगा। आज कीर्तन मेला में भी मुझे भाग लेना है। मैं यहां दो दिन निवास करूंगा, प्रचार करूंगा, कीर्तन मेला, रथ यात्रा में सहभागी बनूँगा।
मुझे अभी यहाँ रुकना होगा क्योंकि मुझे आगे के कार्यक्रम में जाना है। हम आप लोगों के साथ इस कॉन्फ्रेंस में जप करते रहेंगे या तो लाइव जप चर्चा के माध्यम से जैसे कि आज हो रही है या रिकार्डेड कॉन्फ्रेंस के माध्यम से, लेकिन हमारा प्रयास रहेगा इस कॉन्फ्रेंस को चालू रखें। इसमें निरतंर सहभागी बनते रहिएगा और आते रहिएगा।
जय श्रील प्रभुपाद की जय!
हरे कृष्ण!
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
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