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जप चर्चा व्रजधाम सोलापुर से 18 नवंबर 2021 778 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि हरि !! जय राधे ! बोलो श्री राधे... श्याम सुन्दर ! राधेश्याम ! ये दामोदर मास वैसे उर्जा व्रत भी कहलाता है । ऊर्जा मतलब शक्ति । कौन सी शक्ति ? याद नहीं सकती अह्लादिनी शक्ति राधा रानी । ये उर्जा व्रत भी है ये दामोदर मास और आज अभी हो सकता है कि वह चले गए होंगे । हमारे पदयात्रा के परिक्रमा के भक्त राधा रानी के गांव में थे । आप जानते हो राधा रानी का गांव का नाम ? रावल । वरसाणे वाली की जय जय कहते आप कहते हो और वरसाणा में बाद में गई राधा । कैसे अकेले नहीं गई । राजा वृषभानु वहां गए रहने के लिए वो वृषभानु पुर है वैसे । वृषभानु पुर से फिर वरसाणा ऐसा अपभ्रंश हुआ है, तो वहां वृषभानु पुर या वरसाणा जाने के पहले राधा रानी रावल गांव की जन्मी । जो गोकुल से ज्यादा दूर नहीं है । कल प्रातः काल हमारे भक्त परिक्रमा के भक्त या ब्रह्मांड घाट गोकुल होते हुए रावल गांव पहुंच भी गए और यह एक दावत है । समय-समय पर बड़ी दावत होती है, तो राधा रानी के गांव में वराह रूप माताजी जो सभी परिक्रमा में रही है वो हमारे मैनेजमेंट टीम में भी है । व्रजमंडल TMC मैनेजमेंट टीम में वराह रूप माताजी तो वो सभी को दावत स्पॉन्सर करती है । जय राधे ! परिक्रमा करते-करते पूरे 1 महीने की परिक्रमा वैसे आज वरसाणा हमारा आखरी पड़ाव होता है और देख लो परिक्रमा का फल भी कहो, परिक्रमा में जो तपस्या तो झेलनी ही पड़ती है । घर छोड़ते ही परिक्रमा में प्रवेश करते ही वहां तपस्या क्षेत्र शुरू होता है, सहज क्षेत्र से तपस्या क्षेत्र । पूरे 1 महीने के अंतरांत, वैसे जिन की कृपा से ही हम परिक्रमा कर पाते हैं वह राधा रानी की गांव में अंततोगत्वा हम परिक्रमा के भक्त पहुंच जाते हैं और फिर वहां या करुणामई राधा, हरि हरि !! "करुणा कुरु मई करुणा भरीते" हम प्रार्थना भी करते हैं रूप गोस्वामी प्रभुपाद प्रार्थना किए हैं । "करुणा कुरु मई करुणा भरीते" हे राधे तुम तो करुणा की मूर्ति हो, हम पर भी कृपा करो और राधा के कृपा के बिना श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त नहीं होती । राधा अनुशंसा करती है तो फिर कृष्ण कृपा करते हैं । "राधे वृंदावनेश्वरी"... तप्तकाञ्चनगौराङ्गि राधे वृन्दावनेश्वरि । वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये ॥ अनुवाद:- मैं उन राधारानी को प्रणाम करता हूँ , जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है , जो वृन्दावन की महारानी हैं । आप राजा वृषभानु की पुत्री हैं और भगवान् कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं । तो राधा रानी "तप्तकाञ्चनगौराङ्गि" कहलाती है । मतलब गौरंगी कहलाती है । गौर वर्ण की है । कैसा है गौर वर्ण ? "तप्तकाञ्चन" स्वर्ण वर्ण की राधा है हेमांगी राधा । लेकिन वो हेमांगी, 'हेम' कैसा स्वर्ण ? वर्ण मतलब रंग भी होता है, तो स्वर्ण वर्ण । सोने की रिंग की लेकिन कैसा सोना ? "तप्तकाञ्चन" तपा हुआ सोना जो और अधिक चमकता है । साधारण सोने से जब उसको त पाया जाता है तो उसमें अधिक चमक-दमक आ जाती है । ऐसे अंग-रंग वाली ये राधा रानी । "तप्तकाञ्चनगौराङ्गि राधे वृन्दावनेश्वरि" तो वृंदावन की ईश्वरी है राधा । कृष्ण की भी ईश्वरी है राधा । जब मान करके बैठती है तो तब कृष्ण को भी नचाती है और कृष्ण को भी झुकना पड़ता है राधा के चरणों में । अपने उदार कोमल चरण, हे राधे ! मेरे सिर पर रखो । "क्षमस्व" मुझे माफ कर दो इत्यादि-इत्यादि कहना भी पड़ता है कृष्ण को । इसलिए कृष्ण का नाम मदन मोहन मोहिनी । कृष्णा होंगे मदन को मोहित करने वाले मदन मोहन । किंतु इस मदन मोहन को मोहित करने वाली है राधा रानी । हरि हरि !! "वृषभानुसुते देवि" और ये राधा रानी वृषभानु सुता, वृषभानु नंदिनी के पुत्री है और कीर्तिदा की पुत्री है । वहां यशोदा है कृष्ण को जन्म देने वाली यशोदा और राधा को जन्म देने वाली कीर्तिदा । ये दोनों भी कीर्ति या यस अपने-अपने घराने को यश बढ़ाने वाली है यशोदा और कीर्तिदा तो इस कीर्तिदा की नंदिनी पुत्री राधा रानी । तो 1 दिन या एक शाम राधा के नाम । कल दोपहर जब परिक्रमा के भक्त पहुंचे उसके बाद कल की शाम और आज प्रातःकाल की मंगल आरती ये सब रावल गांव में ही होता है और परिक्रमा के भक्त खूब प्रार्थना याचना करते हैं । राधे तेरे चरणों की यदि धूल मिल जाए ! ऐसी प्रार्थना करते हैं वृंदावन में, तो फिर क्या हो जाए ? तकदीर बदल जाए । राधा के चरणों की धूल । वैसे ब्रह्मा के लिए भी दुर्लभ है । वैसे नारद मुनि को सर्वप्रथम राधा रानी का दर्शन करने वाले । वैसे वृषभानु रह जाते हैं और कीर्तिदा किंतु नारद मुनि आ गए । जो पहले गोकुल गए थे । गोकुल में नारद मुनि कृष्ण का दर्शन किया बालकृष्ण का, तो उनको विचार आया कि अगर कृष्ण प्रकट हुए हैं तो जरूर राधा रानी की भी कहीं ना कहीं प्रकट हुई होगी ही था की खोज में निकले । खोजते खोजते वे रावल गांव पहुंचे और राजा वृषभानु के महल में राधा रानी का दर्शन हुआ नारद मुनि को । हरि हरि !! तो यह सब तो यह सब नारद और "सनक सनातन वर्णित चरिते" चार कुमार कहो । ये ब्रह्मा के पुत्र हैं या नारद मुनि भी कहो जो वो भी ब्रह्मा के मानस पुत्र है और ये महात्मा, ये ऋषि मुनि राधा रानी के चरणों का वर्णन करते ही रहते हैं, तो ये ऊर्जा व्रत भी हमने प्रारंभ तो ये कार्तिक मास । फिर आज परिक्रमा प्रातःकाल को मार्ग में होंगे ही । लगभग 6:00 बजे प्रस्थान करते हैं तो परिक्रमा लौट रही है विश्राम घाट या लौट रही है मथुरा और धीरे-धीरे वृषभानु मंदिर की ओर वो धीरे-धीरे कृष्ण बलराम मंदिर की ओर वे लौटेंगे । वैसे आज कार्तिक मास का समाप्त तो कल है । कल पूर्णिमा है लेकिन पूर्णिमा आज भी शुरू हो रही है । कार्तिक पूर्णिमा आज भी है और कल भी है । आज शुरू होगी और कल समापन होगा तो वैसे चतुर्मास विशेष रूप से कल इसका समापन है कार्तिक पूर्णिमा के दिन परिक्रमा के भक्त अब लौट रहे हैं । वहां जहां ये परिक्रमा आरंभ किए थे । किसी ने व्रत कर ही लिया तो ये कार्तिक व्रत तो ब्रज मंडल परिक्रमा कारी करने वाले कार्तिक व्रत का भली-भांति बढ़िया से उसका पालन किया । कृष्णं स्मरन् जनं चास्य प्रेष्ठं निज-समीहितम् । तत्तत्कथा- रतश्चासौ कुर्याद्वासं व्रजे सदा ॥ ( भक्तिरसामृतसिन्धु 1.2.294 ) अनुवाद:- भक्त को चाहिए कि वह अपने अन्तर में सदैव कृष्ण का चिन्तन करे और ऐसे प्रिय भक्त को चुने जो वृन्दावन में कृष्ण का सेवक हो । उसे उस सेवक की कथाओं के विषय में तथा कृष्ण के साथ उसके प्रेममय सम्बन्ध के विषयों का सदैव चिन्तन करना चाहिए और उसे वृन्दावन में निवास करना चाहिए । हाँ , यदि कोई शरीर से वृन्दावन नहीं जा सकता , तो उसे मानसिक रूप से वहाँ रहना चाहिए । सा बच्चन "कुर्याद", "व्रजे", "वास" वृंदावन में सदैव वास करें यह विशेष रूप से दामोदर मास में वृंदावन मास हो । "कुर्याद्वासं व्रजे सदा" और ये "कुर्याद्वासं व्रजे सदा" कह रहे हो ? "कुर्याद्वासं व्रजे सदा" लिख भी सकते हो । एक विधि है "कुर्याद्वासं व्रजे सदा" । "व्रजे" वृंदावन में "कुर्याद" करें । क्या करें ? निवास करें सदैव तो परिक्रमा के भक्त जरूर व्रज में वाक्य वास किया । व्रज की सभी वनों की यात्रा की । सभी वनों में वास किया और आप भी घर बैठे बैठे वर्चुअल परिक्रमा वगैरह आपकी चल रही थी या हम भी आपको पहुंचा रहे थे इस जपा टॉक में । वृंदावन ले जा रहे थे और आप भी उस परिक्रमा पार्टी के सदस्य बन रहे थे । आपने भी कुछ आंशिक रूप में वृंदावन में वास कर ही लिया या आपका मन दौड़ रहा था वृंदावन की ओर । वृंदावन धाम की जय ! व्रजमंडल की जय ! व्रजमंडल परिक्रमा की जय ! दामोदर मास की जय ! ॥ हरे कृष्ण ॥

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