Hindi

*जप चर्चा* *17 -11 -2021* *पंढरपुर धाम से* हरे कृष्ण ! 818 स्थानों से आज भक्त जप में सम्मिलित हैं। *हरि हरि! विफले हरि हरि! विफले जनम गोंआइनु। मनुष्य जनम पाइया राधाकृष्ण ना भजिया, जानिया शुनिया विष खाइनु।।1।।* अर्थ - हे श्रीहरि! मैंने अपना जीवन व्यर्थ ही गँवा दिया है। मानव जीवन पाकर भी मैंने श्री श्रीराधा-कृष्ण का भजन नहीं किया और जानबूझकर विष खा लिया। हरि हरि ! यह आचार्यों की वाणी है या गीत है उनकी सोच ऐसी है हम कब ऐसा सोचेंगे? जैसा हमारे पूर्ववर्ती आचार्य सोचते थे। उनके विचार वाले हम कब बनेंगे। वह कहते हैं मनुष्य जन्म तो प्राप्त हुआ पर हमने क्या किया "विफले जनम गोंआइनु" एक होता है विफल और एक होता है सफल, फल के साथ सफल फल नहीं मिला विफल, बेकार का जीवन बिताया। "जानिया शुनिया विष खाइनु" जानबूझकर हमने जहर पी लिया। अब तो बंद कर दे जहर पीना। जहर पीने से तो मृत्यु होती है ना अर्थात हमारी मृत्यु और जन्म, फिर जन्म और मृत्यु कई बार हो चुका है। क्यों ? क्योंकि हमने कई बार जहर पी लिया दोबारा जन्म में दोबारा जहर पी लिया फिर दोबारा मर गए हरि हरि ! भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं "सुखे दुखे भूले ना कोई हरि नाम "सुख में और दुख में भी भगवान को नहीं भूलना वैसे "दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोई" ऐसा भी कहावत है जब दुख आता है तब हम फिर हाय हाय ! बाप रे! *पाहि पाहि महायोगिन्देवदेव जगत्पते नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥* श्रीमद भागवतम १.८.९ अनुवाद - हे देवाधिदेव, हे ब्रह्माण्ड के स्वामी, आप सबसे महान् योगी हैं। कृपया मेरी रक्षा करें, क्योंकि इस द्वैतपूर्ण जगत में मुझे मृत्यु के पाश से बचानेवाला आपके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है। पाही पाही महाबाहु! भगवान की ओर दौड़ते हैं भगवान को पुकारते हैं कि हम संकट में हैं हमें बचाओ कृष्ण ! संभावना है अच्छा है यदि ऐसे भी हम भगवान की ओर मुड़ते है। *चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन । आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥* (श्रीमद भगवद्गीता ७.१६) अनुवाद- हे भरतश्रेष्ठ! चार प्रकार के पुण्यात्मा मेरी सेवा करते हैं - आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी तथा ज्ञानी || आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी, भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है चार प्रकार के लोग मेरी और आते हैं और आर्त मतलब दुखी जो बहुत कष्ट भोग रहे हैं और अर्थार्थी, धन का अभाव है या फिर संपत्ति का अभाव है तब भी कुछ लोग दौड़ते हैं भगवान की ओर, सुख संपति घर आवे, ऐसी प्रार्थना भी करते हैं आरती गाते समय, जिज्ञासु कोई जिज्ञासु होते हैं और कुछ ज्ञानी भी होते हैं। इस प्रकार चार प्रकार के लोग "चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन" उनको सुकृति कहा है यह चार प्रकार के लोग आते हैं। *न धनं न जनं न सुंदरी, कवितां वा जगदीश! कामये । मम जन्मनि जन्मनीश्वरे, भवताद् भक्तिरहैतुकी त्वयि ।। 4।।* (शिक्षाअष्टकं) अर्थ - हे सर्वसमर्थ जगदीश! मुझे धन एकत्र करने की कोई कामना नहीं है, न मैं अनुयायियों, सुन्दर स्त्री अथवा सालंकार कविता का ही इच्छुक हूँ। मेरी तो एकमात्र कामना यही है कि मेरे हृदय में जन्म-जन्मान्तर तक आपकी अहैतुकी भक्ति बनी रहे। यह चैतन्य महाप्रभु ने जो व्यक्त किया हुआ है। हमारा ऐसा भाव् नहीं होता। मुझे धन नहीं चाहिए, मुझे जन नहीं चाहिए, मुझे सुंदर स्त्री का उपभोग नहीं लेना है, मुझे अनुयाई नहीं चाहिए। फिर क्या चाहते हो? मम जन्मनि जन्मनीश्वरे, भवताद्भक्तिरहैतुकी त्वयि, मुझे मुक्ति भी नहीं चाहिए मुझे जन्म देना है तो दीजिए लेकिन हर जन्म में क्या हो ? मुझे भक्ति प्राप्त हो, जन्मनि जन्मनीश्वरे, ईश्वर के चरणों में, श्रीकृष्ण के श्री चरणों में मुझे भक्ति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना श्री चैतन्य महाप्रभु ने की। यह शुद्ध भक्ति है किंतु यहां कृष्ण कह रहे हैं भाव शुद्ध नहीं होगा लेकिन मेरी ओर आ तो रहे हैं। इसीलिए अच्छा है हरि हरि ! "लॉर्ड ! गिव अस डेली ब्रेड" ईसाई लोग कहते हैं भगवान के पास जाते हैं और प्रार्थना करते हैं हमको ब्रेड मिले हमारे खानपान की व्यवस्था हो, हमारा मेंटेनेंस रोटी कपड़ा मकान भगवान हमको प्राप्त हो, ओ लार्ड ! गिव अस डेली ब्रेड यह शुद्ध भक्ति नहीं है लेकिन अच्छा है हम भगवान के पास तो जा रहे हैं। सो दैट, वेलकम ! श्रील प्रभुपाद हमको कह रहे हैं भगवान से कभी प्रार्थना या निवेदन नहीं करना चाहिए हे कन्हैया हमको ब्रेड दे दो भोजन दे दो उल्टे श्रील प्रभुपाद कह रहे थे यह प्रसिद्ध बात है यशोदा कृष्ण को ब्रेड देती है कृष्ण को खिलाती है उल्टा हुआ ना इसाई लोग या कई लोग अपने स्वयं के ब्रेड के लिए कि, मुझे भोजन मिले या मुझे यह प्राप्त हो या वह प्राप्त हो ऐसी प्रार्थना करते हैं। लेकिन बृज के भक्त, बृज की भक्ति सर्वोपरि है यशोदा कृष्ण को खिलाती है और समय पर नहीं आता खाने के लिए, तो खोजने जाती है कहां है? कब से खेल रहे हो ,रुक जाओ ,चलो तुम्हारी पिताश्री राह देख रहे हैं बलदेव सखा ऐसे बलदेव और सारे सखा सभी पंक्ति में बैठते हैं और यशोदा सभी को खिलाती है। कृष्ण के मित्र भी आ गए तो पार्टी हो जाती है। एक तो भगवान के पास आना ही नहीं किसी स्थिति में, सुख हो या दुख हो या कुछ भी हो, हरि नाम करो, ऐसे भी कुछ लोग हैं बल्कि अधिकतर ऐसे ही हैं। *न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ||* (श्रीमद भगवद्गीता ७. १५|| अनुवाद- जो निपट मुर्ख है, जो मनुष्यों में अधम हैं, जिनका ज्ञान माया द्वारा हर लिया गया है तथा जो असुरों की नास्तिक प्रकृति को धारण करने वाले हैं, ऐसे दुष्ट मेरी शरण ग्रहण नहीं करते | सातवें अध्याय में भगवत गीता में लिखा है। दो वचन अगल-बगल में हैं एक में चतुर्विधा भजन्ते मां, चार प्रकार के लोग जो मेरा भजन करते हैं मेरी और आते हैं मेरी शरण लेते हैं उनका उल्लेख है और उससे पहले का जो श्लोक है चार प्रकार के लोग जो मेरी ओर नहीं आते न मां दुष्कृतिनो मूढाः तरह एक प्रकार हुआ दुश्मनों का और दूसरा प्रकार "सुकृतिनो" और 'दुष्कृतिनो" हरि हरि ! *बहुत सुकृतांची जोडी म्हणुनी विठ्ठल आवडी* एक मराठी अभंग भी है इसमें कहा है एक अच्छा सु कृत्य किया अच्छा सही कार्य किया भगवान को प्रसन्न करने के लिए, इसका परिणाम क्या निकलेगा म्हणुनी विठ्ठल आवडी, विट्ठल में रुचि और प्रेम उत्पन्न होगा। एक तो दुष्ट है और दूसरे सज्जन हैं ऐसे दो प्रकार के लोग इस संसार में होते हैं एक सुर पार्टी होती है और एक असुर पार्टी होती है लेकिन फिर सुर पार्टी जो है उसमें भी दो प्रकार हैं एक मिश्र भक्ति होती है उनकी कुछ खुद के लिए डिमांड या मांग होती है अभी भी बोडिली कांसेप्ट चल रहा है अभी भी कुछ उपाधियों में फंसे हैं। ओफ़्कौर्से, सर्वोपरि तो शुद्ध भक्ति ही है। *शुद्ध भकत-चरण-रेणु, भजन अनुकूल। भकत-सेवा, परम-सिद्धि प्रेमलतिकार मूल* ।।1।। अनुवाद - शुद्ध भक्तों की चरणधूलि भक्ति के अनुकूल है और वैष्णवों की सेवा परम सिद्धि तथा दिव्य प्रेम रूपी कोमल लता की मूल है। फिर हम शुद्ध भक्तों के चरण रेणू अपने सर पर धारण करेंगे श्रील प्रभुपाद जैसे *महाजनो येन गतः स पन्थाः* *तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नासावृषिर्यस्य मतं न भिन्नम्। धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥* अनुवाद- श्री चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, “शुष्क तर्क में निर्णय का अभाव होता है। जिस महापुरुष का मत अन्यों से भिन्न नहीं होता, उसे महान् ऋषि नहीं माना जाता। केवल विभिन्न वेदों के अध्ययन से कोई सही मार्ग पर नहीं आ सकता, जिससे धार्मिक सिद्धान्तों को समझा जाता है। धार्मिक सिद्धान्तों का ठोस सत्य शुद्ध स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के हृदय में छिपा रहता है। फलस्वरूप, जैसाकि सारे शास्त्र पुष्टि करते हैं, मनुष्य को महाजनों द्वारा बतलाये गये प्रगतिशील पथ पर ही चलना चाहिए।" जो महाजनों ने मार्ग दिखाया है उसको सुनेंगे समझेंगे फिर हम शुद्ध भक्ति करना प्रारंभ करेंगे। जब *चेतोदर्पण-मार्जनं भव-महादावाग्नि निर्वापणं श्रेय:कैरव-चंद्रिका-वितरणं विद्यावधू जीवनम् । आनन्दाम्बुधि-वर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम्।।* (शिक्षाष्टकम-1) अर्थ: श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो, जो हमारे चित्त में वर्षों से संचित मल को साफ करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूपी महाग्नि को शान्त करने वाला है। यह संकीर्तनयज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगलरूपी चन्द्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृत विद्यारूपी वधु का यही जीवन (पति) है। यह आनन्द के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्रीकृष्ण-नाम हमें नित्य वांछित पूर्णामृत का आस्वादन कराता है। फिर शुद्धिकरण हुआ और फिर हम आनंद की ओर बढ़ेंगे या आनंद के सागर में गोते लगाएंगे जब हम शुद्ध भक्ति करेंगे। इसीलिए कहा भी है बृज के भक्तों की जो भक्ति है वैसे आज हमारी ब्रज मंडल परिक्रमा पार्टी जो है वह गोकुल में पहुंच चुकी है। ब्रह्मांड घाट, चिंता हरण घाट, उखल बंधन लीला, जहां संपन्न हुई उस स्थान पर पदयात्रा पार्टी पहुंचेगी और माखन मिश्री का वहां भोग लगेगा और माखन बाटेंगे, कुछ परिक्रमा के भक्त बंदर बन जाएंगे। बंदरों को भगवान ने माखन खिलाया था ना। अपना पेट भर लिया फिर औरों की भी याद आ गई अपने मित्रों की या इन बंदरों की उनको भी खिलाया। परिक्रमा के डेवोटीज़ आज वहां पहुंचेंगे उखल बंधन मतलब दामोदर लीला जहां हुई, कार्तिक मास में दीपावली के दिन और जहां यमल अर्जुन दो वृक्ष खड़े थे उनको जहां उखाड़ा भगवान ने और उसके कारण जो भी ब्रज में चहल-पहल, धूल या सर्वत्र धूल के बादल जैसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था और सभी ऐसी परिस्थिति में भी श्रीकृष्ण का स्मरण कर रहे थे हरी हरी ! वेयर इज कृष्ण कृष्ण कहां है कृष्ण कहां है ? सबको स्मरण रहा वह सुरक्षित है यह दुर्घटना घटी यह जो बड़े वृक्ष जो हजारों वर्षों से वहां खड़े थे, नारद के एक श्राप से बने नलकुबेर और मणि ग्रीव् अब भगवान ने दीपावली के दिन दामोदर लीला के दिन उनको मुक्त किया और खूब भक्ति दी। इसीलिए हम दामोदर अष्टकम में प्रतिदिन गा रहे हैं। *कुबेरात्मजौ बद्धमूत्यैव यद्वत् त्वयामोचितौ भक्तिभाजीकृतौ च। तथा प्रे भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह।।* (दामोदर अष्टकम -7) अनुवाद -हे दामोदर! ऊखल से बँधे अपने शिशु रूप में आपने नारद द्वारा शापित दो कुवेर-पुत्रों को मुक्त करके उन्हें महान् भक्त बना दिया। इसी प्रकार कृपया मुझे भी अपनी शुद्ध प्रेमभक्ति प्रदान कीजिए। मैं केवल इसकी कामना करता हूँ और मुक्ति की कोई इच्छा नहीं करता। कुबेरात्मजौ , जो कुबेर आत्मज है , यह दामोदर अष्टकम जहां आज ब्रज मंडल परिक्रमा पार्टी पहुंचेगी, उखल बंधन लीला उस पर यह लागू होती है। उसमें वे यह प्रार्थना करते हैं कि हम कुबेर आत्मज जो वृक्ष योनि में बद्ध थे, वृक्ष योनि में क्यों? क्योंकि जो वस्त्र नहीं पहनना चाहते , नंगे ही रहना पसंद करते हैं या बहुत कम वस्त्र पहनना चाहते हैं यह नहीं कि वह गरीब है लेकिन ऐसी बदमाशी या दुराचार ऐसा चलता रहता है उनका बॉटमलेस और टॉपलेस और पता नहीं क्या-क्या धंधे चलते रहते हैं और नाचते हैं। नंगा नाच मतलब नंगे लगभग प्रैक्टिकली और लिटरली और ऑलमोस्ट नो वस्त्र चल रहा है और यही सिनेमा वगैरह में भी चल रहा है जिसे हम देखते हैं या और पार्टी में तो जो वस्त्र नहीं पहनना चाहते हैं तब उनके लिए क्या होगा ? जैसे इन कुबेर आत्मजो का हुआ, नारद मुनि वहां से गुजर रहे थे आकाश मार्ग से यहां नलकुबर और मणि ग्रीव कुछ लड़कियों के साथ वहां के सरोवर में दे वीकम नेकेड एंड उनका जो भी खेल स्विमिंग, ऐसे नारद मुनि जी ने जब उनको देखा स्त्रियों के साथ । स्त्रियाँ तो लज्जित हुई और उन्होंने अपने वस्त्र पहन लिए ढक लिया उन्होंने अपने शरीर को, लेकिन यह दो नंग धड़ंग ही रहे मणि ग्रीव और नलकुबेर, यह जो दुराचार नारद मुनि ने देखा तब उन्होंने कहा तुम वृक्ष बनो। वृक्ष का क्या होता है उन्हें कोई वस्तु नहीं पहनना पड़ता। टेलर के पास नहीं जाते , स्टे नेकेड जो लोग जींस भी पहनते हैं कई व्यक्तियों को मैंने देखा पैंट में जींस में आधा छेद ही था हमने कहा कि थोड़ा बदली करो थोड़ा नया पेंट खरीद लो उसने कहा अभी अभी तो खरीदा है। दिस इज़ ब्रांड न्यू , आधा फाड़ के उसको पहन लेते हैं उनका भविष्य क्या है इस लीला से समझ सकते है दे बिकम द ट्री इन नेक्स्ट लाइफ, अगले जन्म में वृक्ष बनो। फिर उन्होंने क्षमा याचना वगैरह मांग ली नारद मुनि के चरणों में उन्होंने कहा ओके ओके ! श्राप तो दिया ही है इसलिए अभी वृक्ष बनना ही पड़ेगा किंतु तुम वृक्ष बनोगे नंद महाराज के कोर्ट यार्ड में और दीपावली के दिन दामोदर लीला के दिन भगवान ने उनका उद्धार किया। फिर हम प्रार्थना में कहते ही हैं जैसे आपने और कुबेर आत्मजो को मुक्त किया और प्रचुर मात्रा में उनको भक्ति दे दी ऐसा श्रीमद् भागवत10th कैंटो 10th चैप्टर दामोदर लीला में है *वाणी गुणानुकथने श्रवणौ कथायां हस्तौ च कर्मसु मनस्तव पादयोनः । स्मृत्यां शिरस्तव निवासजगत्प्रणामे दृष्टिः सतां दर्शनेऽस्तु भवत्तनूनाम् ॥* अनुवाद - अब से हमारे सभी शब्द आपकी लीलाओं का वर्णन करें, हमारे कान आपकी महिमा का श्रवण करें, हमारे हाथ, पाँव तथा अन्य इन्द्रियाँ आपको प्रसन्न करने के कार्यों में लगें तथा हमारे मन सदैव आपके चरणकमलों का चिन्तन करें। हमारे सिर इस संसार की हर वस्तु को नमस्कार करें क्योंकि सारी वस्तुएँ आपके ही विभिन्न रूप हैं और हमारी आँखें आपसे अभिन्न वैष्णवों के रूपों का दर्शन करें। श्री कृष्ण के साथ संवाद हो रहा है इन दो कुबेर के आत्मजो का अर्थात उनके पुत्रों का ऊखल के साथ बैठे हुए हैं और संवाद हो रहा है श्रवणौ कथायां तुम अपने कानों का प्रयोग कथा के श्रवण में करोगे हस्तौ च कर्मसु , अपने हाथों का उपयोग भगवान की सेवा में करो, मनस्तव पादयोनः और मन का उपयोग, मन को सेवा में लगा दो भगवान के चरण कमलों का स्मरण करने में स्मृत्यां शिरस्तव निवासजगत्प्रणामे, मुझे प्रणाम करने के लिए अपने सर का उपयोग करोगे दर्शनेऽस्तु और देखो क्या कह रहे हैं तुम अपनी दृष्टि का उपयोग संतो के दर्शन भक्तों के दर्शन में करो अपनी आंखों का उपयोग भवत्तनूनाम् , सब भक्तों को तनु मेरा ही रूप है वह मुझसे अभिन्न है मेरा ही प्रतिनिधित्व करते हैं *साक्षाद्धरित्वेन समस्तशास्त्रैउक्तस्तथा भाव्यत एव सद्भिः। किंतु प्रभोर्य: प्रिय एव तस्य वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।* (गुरुअष्टक7) अनुवाद - समस्त शास्त्र स्वीकार करते हैं कि श्रीगुरु में भगवान् श्रीहरि के समस्त गुण विद्यमान रहते हैं और महान् सन्त भी उन्हें इसी रूप में स्वीकार करते हैं। किन्तु वास्तव में वे भगवान को अत्यन्त प्रिय हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। उनको साक्षाद्धरित्वेन कहा है। ऐसे संतों का दर्शन करो वैसे संतों का दर्शन आंखों से भी होता है लेकिन हम जब संतो के दर्शन के लिए जाते हैं तो उनके द्वारा कही हुई जो वाणी है वही दर्शन है उनके द्वारा कही हुई वाणी जो हम सुनते हैं तब कृष्ण का दर्शन हमें होने लगता है या संत महात्मा हमको दृष्टि देते हैं ताकि हम दर्शन करें। इसीलिए संतो के संबंध में कहा है यह प्रार्थना है। *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम:।।* अर्थ - मैं घोर अज्ञान के अन्धकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से मेरी आखें खोल दीं। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ। हमारी आंखें खोलते हैं हमारी आंखों का ऑपरेशन गुरुजन करते हैं ताकि हम भगवान का दर्शन कर सकें जब आत्मसाक्षात्कार भगवत साक्षात्कार संभव होगा। कृष्ण नलकुबेर और मणि ग्रीव को रिकमेंडेशन कर रहे हैं समदर्शनी भक्तों के दर्शन में और उनकी तनु मेरी तनु एक ही है हरि हरि ! परिक्रमा पार्टी आज बेसिकली गोकुल में है। गोकुल में नंद भवन का दर्शन करेंगे, लाला का दर्शन और वहां कन्हैयालाल को झूले में बिठाया है। हम दर्शन के लिए जब जाते हैं तब हम झूला झूलाते हैं। ऐसे वहां के जो पुजारी हैं ऐसा सभी से करवाते हैं और आप जब झूला झूलाते हो तो आपको हंसना पड़ता है हा हा ! हंसो अपना हर्ष व्यक्त करो। हां रामप्रसाद जी कर रहे हो रोना बंद करो अभी हंसो, हंसने के दिन आ गए। माया रुलाती है कृष्ण हंसाते हैं। वहां कृष्ण के समक्ष जब नंद भवन में आते हैं वहां पूरा परिवार है कृष्ण बलराम नंद यशोदा के दर्शन हैं। नंद भवन में और 84 खंभे हैं। परिक्रमा भी चल रही है। ब्रजमंडल परिक्रमा कितने कोस की है ? 84 कोस और योनि कितनी है चौरासी लाख! फिर कहते हैं जो चौरासी कोस वाली परिक्रमा करते हैं और नंद भवन आकर जिस नंद भवन में 84 खंभे हैं वहां का दर्शन करते हैं फिर उन्हें चौरासी लाख योनियों में से, किसी भी योनि में प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं है। किसी भी योनि में, नॉट इवन डेमी गॉड या देवता बनने की भी आवश्यकता नहीं है। वह तो कुछ भी नहीं है देवता की या इंद्र गोप, एक जंतु होता है उसको इंद्र गोप्स कहते हैं सबसे सूक्ष्म इंद्र गोप से इंद्र तक अलग अलग पदवियाँ या शरीर प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उसमें प्रवेश नहीं कराया जाएगा *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः । त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥* (श्रीमद भगवद्गीता ४.९॥ अनुवाद- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | ऐसा व्यक्ति भगवान को प्राप्त होगा। भगवान के धाम को लौटेगा भगवान की लीला में प्रवेश करेगा हरि हरि! ठीक है अब हम इसे यहीं विराम देते हैं। निताई गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल!

English

Russian