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जप चर्चा श्री श्री कृष्ण बलराम मंदिर उज्जैन 16 सितंबर 2021 800 स्थानों से भक्त जप कर रहें हैं । हरे कृष्ण ! ठीक है । कल भी जप किएना आप ? हा । जप तो किए हो गए किंतु मगर इस कॉन्फ्रेंस में कि नहीं ? कइंया अपने हाथ दिखा रहे हैं या हाथ उठा रहे हैं । आप गोड़िय वैष्णव, कल जप किया इस कॉन्फ्रेंस में । ठीक है । सैकड़ों हात उठ रहे हैं । आपका हाथ का दर्शन हो रहा है । आपका हाथ हमारे साथ । आप साथ दे रहे हो अच्छी बात है । जप तो हम कर ही रहे हैं ध्यान पूर्वक जप । हो रहा है नहीं हो रहा है आप ही जान सकते हो । आप भी थोड़ा सिंहावलोकन करो या मूल्यांकन करो अपने उन्नति अपने उत्तमजप पर और भक्तों के संग में या अपने काउंसलर के साथ भी आप चर्चा करते हो इस संबंध में ध्यान पूर्वक जप । वैसे आप, हम यहां उज्जैन में पहुंचे हैं । इस उज्जैन का एक समय नाम रहा अवंतीपुर । इस नगर में शिप्रा नदी के तट पर है यह अवंतीपुर या मॉडर्न उज्जैन । यह सांदीपनि मुनि का आश्रम था और यहीं पर कृष्ण बलराम अध्ययन के लिए पहुंचे थे । कृष्ण ब्रह्मचारी, बलराम ब्रह्मचारी बनके और उसी समय सुदामा भी सुदामापुरी से गुजरात से पोरबंदर । पोरबंदर कहते हैं ना ! पोरबंदर से सुदामा आए थे यहां तो उन्होंने पढ़ाई की । वैसे यहां, भक्तिचारू स्वामी महाराज की जय ! उन्होंने यह इस्कॉन स्थापना की और कृष्ण बलराम की विग्रह यहां है । इतना ही नहीं यहां सांदीपनि मुनि का विग्रह भी ऑल्टर पर है । जिस ऑल्टर पर कृष्ण बलराम है वहीं पर सांदीपनि मुनि भी उनके विग्रह भी है । इस्कॉन का शायद एक ही ऐसा मंदिर है जिस मंदिर में जिस मंदिर के ऑल्टर पर सांदीपनि मुनि विराजमान है तो स्वाभाविक है यह उज्जैन है यह अवंतिपुर है यहां सांदीपनि मुनि नहीं रहेंगे तो और कहां रहेंगे । यह अवंतीपुर काफी कृष्ण बलराम ज लीला के लिए प्रसिद्ध हे । कृष्ण बलराम यहां पढ़ाई किए । श्रीनारद उवाच ब्रह्मचारी गुरुकुले वसन्दान्तो गुरोर्हितम् । आचरन्दासवन्नीचो गुरौ सुद‍ृढसौहृद: ॥ ( श्रीमदद् भागवतम् 7.12.1 ) अनुवाद:- नारद मुनि ने कहा : विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण संयम रखने का अभ्यास करे । उसे विनीत होना चाहिए और गुरु के साथ दृढ़ मित्रता की प्रवृत्ति रखनी चाहिए । ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह महान् व्रत लेकर गुरुकुल में केवल अपने गुरु के लाभ ही रहे । ऐसे कहा है भागवतम् में "ब्रह्मचारी गुरुकुले वसन्दान्तो गुरोर्हितम्" तो भगवान बन गए ब्रह्मचारी विद्यार्थी और "वसन्दान्तो गुरोर्हितम्" अभ्यास किए साधना किए "वसन्दान्तो" इंद्रिय निग्रह और "गुरोर्हितम्" गुरु के सेवा कीए साधना किए । कई सेवाएं किया । हरि हरि !! तो कृष्ण बलराम एक कमरे को बांटते थे वे सहकक्षार्थी थे । रात्रि 9:00 बजे बत्ती बुझाते थे यहां आश्रम में । अर्ली टू बेड अर्ली टू राइज । आप समझते हो ? अर्ली टू बेड अर्ली टू राइज । मैक्स मैन हैलदी-वैलदी एंड वाइज् तो यह आश्रमों में यह जल्दी विश्राम का नियम होता है उनका पालन करना चाहिए और आश्रम कहा तो आश्रम केवल ब्रह्मचारी ही नहीं है ब्रहमचारीयों हो का । गृहस्थ का भी आश्रम है । वैसे हमें घर में नहीं रहना चाहिए हमें आश्रम में रहना चाहिए या हम कहते तो रहते हैं अपने घर को बनाओ मंदिर । मंदिर तो मंदिर है ही या ब्रह्मचारी रहते हैं किंतु जो कांग्रेगेशन के जो भक्त हैं उनको अपने घर को मंदिर भी मंदिर भी बनाना है और अपने घर को आश्रम भी बनाना है । आश्रम में रहो जो आश्रम में रहता है वही सभ्य व्यक्ति है नहीं तो वह सभ्य नहीं हैं तो मनुष्य को किसी ना किसी आश्रम का जो प्रमाणिक आश्रम है उन आश्रमों में रहना चाहिए । ब्रह्मचारी आश्रम में रहने की तैयारी नहीं है ठीक है तो आप गृहस्थाश्रम में रहो तो घर को बनाओ आश्रम फिर आश्रम के जो नियम है उसका पालन अपने घर में करो और एक एक नियम तो यहां कृष्ण बलराम भी अनुसरण कर रहे थे वे जब आश्रम में रह रहे थे सांदीपनि मुनि आश्रम में वह क्या था ? जल्दी सोना और जल्दी प्रातः काल में उठ जाना लेकिन ऐसा देखा जाता था । मुझे यह सब कहने के लिए समय तो नहीं है क्योंकि मुझे और आज मुझे भागवद् कक्षा भी देनी है 8:00 बजे । भागवद् की कक्षा होगी मुझे देने के लिए कहा है भागवद् कक्षा यहां । उससे पहले दर्शन भी है कृष्ण बलराम के दर्शन और गुरु पूजा भी है श्रील प्रभुपाद गुरु पूजा तो आज का भी जपा टॉक छोटा ही होगा और संभव है तो पद्ममाली और आप सब मिलकर इस को लॉन्ग कर सकते हो लॉन्गर मैं रुक जाऊंगा और आप में से कोई टॉक देना चाहते हैं या कोई चर्चा है याद अनाउंसमेंट बगैरा है तो इसको लंबा खींच सकते हो । ठीक है । लेकिन कृष्ण रात्रि को जल्दी उनको सोना उनको मुश्किल ज्यादा था । बलराम समय-समय पर देखते थे 10:30 बज गया कृष्णा अब तक जगा हुआ है तेरे बलराम देखते थे रात 11:00 बजे हैं कृष्ण अभी तक सो नहीं रहे हे हैं तो क्या गलत हुआ है तुम्हारे साथ सोना चाहिए आश्रम का नियम है सो जाओ तो कृष्ण कहते थे मुझे तो वृंदावन की याद आ रही है दाऊजी भैया और यह मेरा रात्रि का समय तो रास क्रीडा का समय है । माधुर्य लीला का, श्रृंगार रस का अनुभव करने का यह समय है । वैसे वे कहते हैं कि नंद बाबा, यसोदा भी मेरे मित्रों के भी याद आ रही है और गोपियों की याद आ रही है तो बलराम कहते हैं गोपियों की ! तुम कैसे ब्रह्मचारी ? गोपियों की याद कर रहे हो । लड़कियों की याद कर रहे हो । मैं बता दूंगा सांदीपनि मुनि को बताऊंगा, गुरु महाराज को बताऊंगा तुम रात्रि की लड़कियों की याद करते हो तो इस प्रकार दोनों भाइयों में ऐसे संवाद भी करते थे तो आश्रम में रहकर कृष्ण बलराम अपनी पढ़ाई करते थे । वह बहुत अच्छे विद्यार्थी थे । आश्रम में उनको पढ़ाई भी करनी होती है हम लोग विद्यार्थी हैं आश्रम में विद्यार्थी की तरह एक साधक विद्यार्थी विद्यार्जन करना होता है आश्रम में तो वैसे किया कृष्णा और बलराम ने । विशेष रुप से कृष्ण ने कहो और एक दिन में एक-एक कला में वो निपुण हो जाते । 64 कला और विज्ञान में 64 दिन में पढ़ लिए और उनको पुरस्कार भी मिले सर्टिफिकेट भी मिला और गुरु महाराज बड़े प्रसन्न थे कृष्ण के प्रदर्शन के साथ या A+, उत्कृष्ट वैसे 100% अंक तो कृष्ण एक अच्छे विद्यार्जन करने में अग्रगण्य थे । हरि हरि !! सेवा के लिए भी साधना करते अध्ययन करते और सेवा करते । एक समय रसोई के लिए इंधन जरूरत होती है तो फिर इंधन इकट्ठे करने कृष्ण और सुदामा गए तो यहां यही पर यही उज्जैन में उन दिनों में फॉरेस्ट जंगल वन में प्रवेश किया और दोपहर में फिर आंधी तूफान भी प्रारंभ हुई भारी वर्षा हुई मूसलाधार वर्षा । तो उसके बाद हर जगह पानी पानी जल सर्वत्र । किंतु कृष्ण सुदामा ने जो इंधन इकट्ठा कर रहे थे वो सेवा को रोके नहीं । इकट्ठे करते रहे और इतने में सूर्यास्त भी हुआ अंधेरा हुआ और वैसे भी यह तुम्हार तो दिख ही नहीं रहा था तो कैसे लौट सकते थे । उन्होंने रात वन में ही जंगल में ही बिताइ तो दूसरे प्रातः काल को सांदीपनि मुनि जब जागे तो कृष्ण नहीं लौटे और सुदामा नहीं लौटे तो यह गुरु जन उन शिष्यों के साथ जो संबंध है या संबंध हे अपनी पुत्रों की तरह तो खोजने गए । पुकार रहे थे कृष्ण ! सुदामा ! कहां हो ? तो खोजते खोजते उनको कृष्ण सुदामा मिले जंगल में हीं । क्यों नहीं लौटे ? कैसे लौट सकते थे ! इंधन इकट्ठा करने गए थे हम । हमारी सेवा पूरी नहीं हुई तो हम, और फिर यहां बाढ़ सर्वत्र बर्षा तों हम वहीं रह गए तो , इंद्रद्युम्न महाराज, सांदीपनि मुनि बहुत खुश थे और आशीर्वाद दिए कृष्ण को आशीर्वाद दिया तुम्हारे मुख से जो भी बच्चन निकलेगा वह वेद वाणी होगी सत्य होगा । यस्य प्रसादात् भगवत्-प्रसादो यस्याप्रसादात् न गतिः कुतोऽपि । ध्यायन् स्तुवंस्तस्य यशास् त्रिसंध्यां वंदे गुरोः श्री चरणारविंदं ॥ तो गुरु महाराज प्रसन्न हुए । सांदीपनि मुनि प्रसन्न हुए । श्री कृष्ण और उनके भक्ति भाव सेवा भाव देखकर और कृष्ण अन्य सभी वैसे विद्यार्थियों को आश्रम वासियों को सांदीपनि मुनि भेजा करते थे माधुकरी के लिए । जाओ माधुकरी मांग के आओ । कृष्ण भी जाते थे वैसे माधुकरी मांगना तो यह बहाना हुआ करता था । इसी के बहाने किसी के बहाने प्रचार का अवसर प्राप्त होता था तो कृष्ण चाहते थे । भिक्षाम देही ! तो घरवाली सुनते तो बाहर आकर देखते तो यह अति सुंदर सर्वांग सुंदर बालक का दर्शन करते । "पीतांबरात" वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् । पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥ अनुवाद:- जिनके करकमल वंशी से विभूषित हैं, जिनकी नवीन मेघ की-सी आभा है, जिनके पीत वस्त्र है, अरुण बिम्बफल के समान अधरोष्ठ हैं, पूर्ण चन्द्र के सदृश सुन्दर मुख और कमल के से नयन हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी तत्त्व को मैं नहीं जानता । पीतांबर वस्त्र पहना हुआ यह बालक "अरविन्दनेत्रात्" उसके पद्मनयनी कमललोचन यह बालक "पूर्णेन्दुसुन्दरमुखाद" तो उनका मुख पूर्णचंद्र की तरह तेजस्वी है । "वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्" यहां शायद मुरली तो बजा रहे होंगे लेकिन उनके सौंदर्य में कहा है कृष्ण जब मुरलीधारण करते हैं तो "विभूषितकरान्न" उनके हाथों की शोभा बढ़ाती है जब वे मुरलीधरण करते हैं और फिर मुरली को अपने अधरो पर रखते हैं और "बामबाहू या तो बाम कपोल" और अपने गर्दन को बाईं और झुकाते हैं और फिर मुरली बजाते हैं । "यत्र मुकुंद" तो ऐसे मुकुंद का दर्शन वह सब गृहस्थ करते । बहुत सारी मधुकरी देते थे गृहस्थ तो जो भी माधुकरी उनको प्राप्त हुई कृष्ण आगे बढ़ने की तैयारी करते । वह ग्रस्त कहते, रुको रुको ! और फिर कहते ए वह थोड़ा आलू लेके आओ । आलू लाए कृष्ण को दे दिए । कृष्ण जाने की तैयारी में थे । ए उसको और क्या चाहिए ले आओ । आटा ले आओ कुछ लक्ष्मी ले आओ यह ले आओ वह ले आओ । इस प्रकार वैसे अपना सारा घर खाली कर दे दे यह सोचते हुए की हमारे घर के समक्ष या हमारे दृष्टि पथ पर यह बालक सदा के लिए बना रहे या यहां उपस्थित रहे तो अन्य एक दरवाजा फिर फ्री कार्यकलाप । वे लोग भी इतना सारा सामग्री दे देते कृष्ण को । हरि हरि !! तो और मित्रों को या जो आश्रम वासी थे उनको कुछ ज्यादा भेट नहीं देते थे लोग । उनका यह थोड़ा, ले चलो ! जाओ या हम भी जब, मैं भी जब ब्रह्मचारी था जुहू हरकृष्ण लांड में तो मेरी भी ड्यूटी थी वैसे मधुकरी मांगने की । फूड फॉर लाइफ चलाते थे हम लोग । हरे कृष्ण लैंड में उसके लिए मैं चावल इकट्ठा करता था । वैसे चावल पर कुछ कंट्रोल था तो चावल ओपन मार्केट में खरीद नहीं सकते थे तो मैं घर घर जाकर चांद सोसाइटी नामक एक सोसाइटी मेरी कई कहानियां, बिल्डिंग और कई घर और भी तो तो वह घरवाले वाले मुझे देखते ही या पहले तो द्वार खोलते ही नहीं अंदर से देखते कौन है कोई साधु है हरे कृष्ण वाला है तो मेरी ओर ध्यान ही नहीं देते और कभी दरवाजा खोल दिया तो हमको आजाओ कुछ देने के लिए दरवाजा खोल दिया तो दरवाजा खोल कर फिर अपने कुत्ते को हमारे पीछे लगाते या चौकीदार को अंदर से फोन करके बुलाते । यह साधु को भगाओ यहां से । फिर चौकीदार आ जाता था फिर उससे बचने के लिए हम ऊपर के मंजिल पर ऊपर गए । ऊपर से नीचे वो पीछा करता था और हम छिपने का प्रयास छुप-छुप के कुछ माधुकरी मांगने का प्रयास जो भी हो कई लोग देते भी थे लेकिन अधिकतर लोग देते नहीं थे तो वैसा ही कुछ हो रहा था और कृष्ण के जो सहपाठी या दोस्त थे उनको कुछ ज्यादा सामग्री नहीं प्राप्त होती थी तो फिर उन्होंने सोचा कि सोचा कि अरे अलग से क्यों जाएं कृष्ण के साथ ही जाते हैं तो कृष्ण को जो जो दान भेंट सामग्री मिलती थी वह सारे मित्र उसको एक के बाद एक ढो कर कृष्ण के पीछे पीछे जाते । जैसे कि कोई शोभायात्रा और जो भी इकट्ठा होता था सारा समर्पित करते अपने गुरु के चरणों में ऐसा भी नियम है से फिर कुछ भोजन बन गया भोग लग गया और प्रसाद के लिए गुरु ने अगर प्रसाद के लिए बुलाया आदेश किया सभी प्रसाद लेंगे ब्रह्मचारी नहीं तो नहीं लेंगे । हमारे अयोध्यापति राम तू गुरुग्राम में जल्दी सुबह का नाश्ता ले रहे हैं । साधक है ! दया करके आनंद लीजिए । लेकिन आश्रम में सारा कलेक्शन किया घर घर गए और उससे कई सारे व्यंजन छप्पन भोग बनाए । लेकिन गुरु का आदेश है तभी प्रसाद ले सकते तो नहीं तो ब्रह्मचारी उपवास रहेंगे । ब्रह्मचारी ऐसा भूखा रह सकता है ऐसा भी एक नियमावली है । श्री कृष्ण बलराम इन सारे नियमों का आश्रम के सारे जीवन के शैली का, सिद्धांतों का और विचारधाराओं का साधना सेवा का पालन कर रहे थे वह अच्छे विद्यार्थी थे मथुरा से आए थे वापस । मथुरा से आए यहां रहे उज्जैन अवंतीपुर में और फिर यहां से वापस मथुरा तो ऐसी भी लीला स्थली है उज्जैन या अवंतीपुर । इसका बड़ा महिमा है । हमने अपने कुंभ नामक जो पुस्तिका है उसमें हमने महिमा लिखा हुआ है उनका सब महात्म्य इस धाम का और इसी उज्जैन में अवंतीपुर में जहां तक याद है 2007 में जब कुंभ मेला यहां हुआ तो उसी मेले में उज्जैन में मुझे यह महंत की पदवी जो दी गई महंतों का समाज या अधिकारी होते हैं उन्होंने मुझे महंत बनाया मैं इस्कॉन का महंत इस्कॉन की ओर से में महंत बन गया इसी नगर में इससे ही इसी धाम में । हरि हरि !! गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल !! ठीक है मैं यहां रुकता हूं । ॥ हरे कृष्ण ॥

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