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जप चर्चा 14 जनवरी 2021, सच्चिदानंद प्रभुजी नमो विष्णुपादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भुतले। श्रीमते लोकनाथ स्वामिने इति नामिने।। वांछा कल्पतरूभेष्य कृपासिन्धुभ एवच। पतितानां पावनयोभ्य वैष्णवयोभ्य नमोनमः।। भगवत गीता के 18 अध्याय में 72 वे श्लोक में कहां गया है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं, “कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा | कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रणष्टस्ते धनञ्जय || ७२ ||” हे धनंजय, अर्जुन आपने आपके मन के साथ ध्यान से सुना। आपकी अज्ञानता और मोह नष्ट हो गया। तकरीबन 45 मिनट में यह 700 श्लोको का संवाद हुआ। और 45 मिनट में अर्जुन का मोह, अज्ञानता नष्ट हो गई। यह उद्देश्य है भगवान का। यह जो ज्ञान देने का उद्देश्य था हमारी जो अज्ञानता है और जो मोह है वह नष्ट हो जाए। गुरु महाराज बड़ी कृपा कर रहे हैं कि, हररोज हमें यह जपा टॉक दे रहे हैं। जिससे हमारी अज्ञानता और हमारा मोह भी नष्ट हो जाए। फर्क सिर्फ इतना है की, क्या हम लोग 45 मिनट में नष्ट कर पाएंगे या फिर हमें 45 घंटे लगेगी या फिर 45 हफ्ते लगेंगे या 45 महीने लगेंगे या 45 साल लगेंगे या फिर 45 जीवन लगेंगे। बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | कैसे सुनना चाहिए यह भगवान बता रहे हैं। ध्यान से सुनना चाहिए। एकाग्रता का यहां उल्लेख हुआ है। हम देखते हैं शास्त्रों में बताया गया है कि यदि आहार हमारा सात्विक शुद्ध रहता है तो फिर हम ध्यान से सुन सकते हैं। आहार केवल हम जो भोजन लेते हैं वह नहीं है। हमारी सभी ज्ञानेंद्रियों का जो आहार हैं, वह जब सात्विक हो जाएगा तो हम भी एकाग्रता के साथ हरे कृष्ण महामंत्र को भी सुन पाएंगे। और गीता भागवत के उपदेश है वह भी ध्यान से सुन पाएंगे। श्रवण की पद्धति भी बताई है उपनिषद में। श्रवण मनन और निजी आचरण। अर्जुन ने सुना उसका चिंतन मनन करके, स्पष्ट रूप से समझ लिया। और फिर उन्होंने निर्णय भी ले लिया शरणागति का। और अगले श्लोक में बोलते हैं कि, करिस्ये वचनम तव आपकी आज्ञा का पालन, शरणागति। आप युद्ध करने के लिए कह रहे हैं तो, उसके लिए मैं तैयार हूं 45 मिनट में अर्जुन ने श्रवण कर लिया, मनन कर लिया और अपने जीवन में उतार भी लिया और देखिए यह बहुत बड़ी बात है। 45 मिनट में उन्होंने तीनों चीज कर लिया। समझ गए श्रवण मनन और निजी आचरण। प्रभुपाद जी बार-बार हमारी स्थिति देखकर कहते थे यह जो कृष्णभावनामृत का जो मार्ग है वह ग्रैजुएल प्रोसेस है। तो हम लोग में से ज्यादातर जो कलयुग इस स्तर में है 45 साल का टारगेट ले सकते हैं। 45 मिनट तो कहीं नहीं है लेकिन 45 मिनट में पढ़कर पूरा हो जाना चाहिए। एक बार प्रभुपाद जी को कोई पूछ रहे थे कि कितना समय लगता है तो, प्रभुपाद जी ने कहा अभी आप 20 साल के हो तो कम से कम 50 साल के होने तक हो ही जाना चाहिए। एक बार श्रीधर महाराज को प्रभुपाद जी ने कहा था कि 35 साल के बाद आप अच्छी तरह से हरे कृष्ण महामंत्र का जाप कर सकते हैं। निश्चित रूप से हरे कृष्ण महामंत्र कीर्तन कर सकते हैं। हमारा टारगेट लेना चाहिए कि, हमें क्या करना पड़ेगा। हमारी इंद्रियों का जो आहार है, वह शुद्ध सात्विक करना पड़ेगा ताकि, हम ध्यान से सुन सके। मनन करके समझ ले और फिर जीवन में उतार सके। पहला है कि आपने आज ध्यान से सुना। और जब हम ध्यान से सुन कर उसका मनन करेंगे तो क्या होगा, अज्ञानता नष्ट होगी। मोह जो है वह नष्ट होगा। और श्रील भक्तिविनोद ठाकुर समझाते हैं कि, जितनी मात्रा में अज्ञानता नष्ट होती हैं, उतनी ही मात्रा में संबंध ज्ञान और वैराग्य प्रकट होता है। तो सोचो कि हमारी अज्ञानता 10 परसेंट नष्ट हुई है तो 10 परसेंट संबंध ज्ञान और सब कुछ भगवान की सेवा में लगाने का 10 परसेंट प्रकट हुआ है। जितनी जितनी मात्रा में हम अज्ञानता नष्ट कर पाते हैं ज्ञान लेकर अज्ञानता नष्ट, ओम अज्ञान तिमिरंधास्य ज्ञानांजना शलाकय। चक्षुरन्मिलितन्मेन तस्मै श्री गुरवै नमः।। ज्ञान अंजन शलाकय तो ज्ञान जितना हमें समझ में आता है, साक्षात्कार होता है। उस हिसाब से फिर अज्ञानता नष्ट होगी और सब अज्ञानता नष्ट होगी फिर हम शरणागत हो सकते हैं। भगवान की बात को जीवन में उतारेंगे और यह तरीका है। फिर हमें ज्ञान मिलेगा कि, सब कुछ कैसे भगवान की सेवा में लगाना है। हमारी इंद्रिय तृप्ति के लिए नहीं लगाना है। इसमें बहुत सारा मन की बात भी बहुत चलती है क्योंकि, हमारा चेतन मन है और अचेतन मन है। हमारी सारी बातें मन में स्थापित की गई है। संस्कार बने हुए हैं ।तो यदि हम जब हम बार-बार सुनेंगे जैसे श्रुतिधर इस युग में बहुत ही दुर्लभ है ऐसे व्यक्ति मिलना। जैसे गुरु महाराज ने जपा टॉक में कहा था की, एक बार अर्जुन ने सुन लिया और उनको सब याद रह गया। एक बार व्यासदेवजी ने कहा और शुकदेव गोस्वामी को सब याद रह गया। इतना पावरफुल मेंमरी था लेकिन कलयुग में कहां हि हैं मंद सुमति यतोः। इसलिए बार-बार हमे गीता को पढ़ना पड़ेगा और चिंतन मनन करना पड़ेगा। उसको अच्छी तरह से समझने का प्रयास करना पड़ेगा। जितनी मात्रता में हमें समझमे आएगा फिर उतनी मात्रता में हमारी अज्ञानता नष्ट होगी। उतनी मात्रता में हमारी शरणागति बढेगी और तब जाकर के हमारी बुरी आदतें हमारे अंदर जो पाप वृत्तिया हैं, वह नष्ट होगी। इसलिए हमे बहुत ही ध्यान से एकाग्रता के साथ दोनों हरे कृष्ण महामंत्र और गीता भागवत को हमें सुनना पड़ेगा। जीवन में उतारना पड़ेगा। तब सफलता मिलेगी। तो फिर अर्जुन अगले श्लोक में क्या कहते हैं, हां मेरा मोह नष्ट हो गया और मेरी सुधृति वापस आ गई। मैं कौन हूं, भगवान कौन है, हमारा संबंध क्या है, मेरा धर्म क्या है, मेरा कर्तव्य क्या है वह सब उनको स्मरण हो गया फिर से। मेरी शंका का समाधान हो गया। जब हम समझने का प्रयास करेंगे तो निश्चित हमारे अंदर कुछ प्रश्न उठेगे। कुछ शंका उत्पन्न होगी लेकिन ऐसा है, तो फिर ऐसा है। तो भी उनका समाधान होना चाहिए परीप्रश्नेन सेवया इसलिए साधु संग बहुत महत्वपूर्ण है। और गुह्यं आख्याति प्रच्छती होना चाहिए क्योंकि, हम सबकुछ तो भर सभा में नहीं पूछ सकते है। हमारे ऐसे घनिष्ट संबंध होने चाहिए हम से उन्नत भक्तों का जिनसे हम पूछ सकते हैं दिल खोलकर हृदय खोलकर कि, हमारे समस्या का कोई समाधान नहीं हो रहा है। हम प्रयास कर रहे हैं। ऐसे गुप्तता होने चाहिए तो हमारी समस्या का समाधान होगा। जो अर्जुन ने कहा था करिस्ये वचनम तव, मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा। मैं युद्ध करने के लिए तैयार हूं। यह पद्धति हैं, गीता का और जैसे भगवान कहते हैं“तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || " जो यहां भगवान बुद्ध की बात कर रहे हैं इस श्लोक में, यह भगवान की विशेष कृपा के साथ यह बुद्धि प्रधान मिलती हैं। जब हम इमानदारी से गंभीरता से हरे कृष्ण महामंत्र का ग्रहण करते हैं और गीता भागवत का अध्ययन करते हैं तो भगवान हमें बुद्धि देते हैं। दिव्य ज्ञान हृदे प्रकाशित है। गुरु और कृष्ण की कृपा से जब हम पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं तब हम प्रकाशित होते हैं। प्रकाश आता है की यह मुझे अप्लाई होता है। इसको करने से, मैं आगे बढ़ सकता हूं। और यह कृपा प्राप्त करने के लिए, उसके प्रति गुरु महाराज ने हमें प्रेरित किया है कि, हमें गीता का वितरण करना चाहिए। विशेष करके किसको वितरण करना चाहिए, जैसे हमने समझाया कि बहुत साल लग जाएंगे गीता समझने के लिए। इसलिए विशेष करके युवा पीढ़ी को पकड़ना चाहिए। उनको गीता देना चाहिए क्योंकि, उनके पास टाइम है अब उनके जीवन में। वह समझ पाएंगे, जीवन में उतार पाएंगे। सभी को बांटना चाहिए क्योंकि, कम से कम आज तक जीवन में जितना रास्ता काट लिया उतना अगले जीवन में कम काटना पड़ेगा। तो बाटना सभी को है लेकिन, विशेष रूप से जैसे प्रभुपाद ने कहा था कि, कुछ बुद्धिशैली युवकों को पकड़ो ताकि वहां आगे इस संस्था को चला भी सके। गीता बाटने से कृपा मिलती है। जैसे भगवान कहते हैं, "जो भी यह ज्ञान बांटते हैं वह मुझे बहुत प्रिय है।" इसलिए हमें यह गीता बांटना है। गीता बाटेंगे तो भगवान की हमारे ऊपर भगवान की कृपा दृष्टि रहेगी। जैसे प्रभुपाद ने कहा,"don't try to see krishna but act in such way that krishna see you" कृष्ण को देखने की प्रयास मत करो। कुछ ऐसा कार्य करो कि कृष्ण आपको देखें। वह कार्य क्या है, गीता का ज्ञान दूसरे जीवो को देना। वह भी अज्ञानता और मोह में ग्रस्त है। यह दया है। किसी अज्ञानी और मोहग्रस्त व्यक्ति को उसकी अज्ञानता मोह निकालना है। यह बहुत बड़ी कृपा है। सबसे बड़ी कृपा है। रोटी, कपड़ा, मकान देना यह तो बहुत निम्न प्रकार की कृपा है। अज्ञानता किसी की निकालना उसको भवबंधन से निकालना यह सबसे बड़ी कृपा है। और यहां कृपा प्राप्त करने के लिए, प्रतिदिन गुरुमहाराज ने हमें प्रोत्साहित किया है कि, हम गीता का वितरण करें। लेकिन, जैसे कुछ भक्तों ने अपने साक्षात्कार में बताया था हमें केवल बांटना नहीं है, हमें समझना भी हैं। हमें बांटना भी है और समझना भी है। समझ कर हमारी अज्ञानता को नष्ट करना है। हमारी पहचान में सुधार लाना है। हमारी पहचान समझकर मोह को नष्ट करना है। हम अपनी पहचान मन से और शरीर से करते हैं। दूसरे कि भी पहचान मन से और शरीर से करते हैं। इससे हमें ऊपर उठना है इसीलिए हमें मेहनत करनी पड़ेगी। समय निकालना पड़ेगा गीता पढ़ने के लिए। अगर हम सोचते हैं, हमने तो गीता पढ़ ली है। अगर अपने गीता पढ़ ली है तो 18.72 में भगवान ने जो प्रश्न किए हैं वह आपको लागू पढ़ते हैं। क्या आपने ध्यान से गीता पढ़ी है, क्या आपने आपकी अज्ञानता नष्ट हो गई हैं, क्या आपका मोह नष्ट हो गया? और आपका उत्तर भी अर्जुन की तरह 18.73 जैसा है। हमें बार बार पढ़ना पड़ेगा, चिंतन करना पड़ेगा, मनन करना पड़ेगा। हमारी डिग्री इसमें होगी, हमारी अज्ञानता एक परसेंट नष्ट हो गई है। हमारा मोह 2 परसेंट नष्ट हुआ है। अभी 5 परसेंट हुआ है। ऐसे हम सोच लेंगे क्योंकि, हम लोग नित्य बद्धजीव हैं। इस जीवन में भी हमसे गलतियां हुई हैं। पिछले जीवन में भी बहुत हुई है। पहाड़ है हमारे अंदर गलत संस्कारों का पहाड़ है। उसको भी साफ करना है। हरे कृष्ण महामंत्र से और इस ज्ञान से।वास्तव में हरे कृष्ण महामंत्र में इतनी ताकत है कि, यह ज्ञान की भी जरूरत नहीं है, अगर हम शुद्ध रूप से हरिनाम ले रहे हैं। लेकिन इतनी सारी मेहनत की है प्रभुपाद जी ने केवल 2 घंटा सोते थे। किताब लिखते थे। क्योंकि बिना इस ज्ञान शुद्ध रूप से हम हरे कृष्ण महामंत्र नहीं ले सकते। इसीलिए दोनों चीज साथ साथ में चलना चाहिए। गीता भागवत का ज्ञान और हरे कृष्ण महामंत्र। तब हमारा मोह जिससे हम गलत पहचान में जी रहे हैं और हमारी अज्ञानता नष्ट हो। हमें यहां शुद्ध अवसर उठाना चाहिए। हमें प्रभुपादजी की कृपा से, गुरुमहाराज की कृपा से इस्कॉन में सेवा करने का ज्ञान लेने का अवसर आनंद मिला है। और हमें अपनी गंभीरता और अपनी ईमानदारी भक्ति करने में इसके बारे में बार-बार चिंतन मनन करना चाहिए। विशेषकर कर आज उत्तरायण है 2021 चला गया अभी 2022 है। आज बहुत लोग पंतग उड़ाते हैं। तो हमें सावधान रहना है हमारा जीवन कटी पतंग जैसा ना हो। लेकिन गुरु और कृष्ण के मार्गदर्शन से हमारी पतंग गोलोक जाए। वैकुंठ जाए, ऐसा होना चाहिए। इसके लिए हमें एक अच्छा भक्त बनना पड़ेगा। अधिकृत भक्त बनना पड़ेगा। 1500 रुपए का किट पहनकर जो भक्त बनते हैं, उससे काम नहीं चलेगा। हमारा मन भक्त बनना चाहिए। हमारा ह्रदय भक्त बनना चाहिए। इसके लिए हमारे लिए यह गीता का ज्ञान भागवत का ज्ञान बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमें बहुत ही ईमानदारी से भक्ति में लगना चाहिए। इससे हमें भी वह रिजल्ट मिलेगा जो अर्जुन को मिला। और हम यह सब नाप सकते हैं। अपने आप को माप सकते हैं। मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु हमारा मन कितना गंदा है और कितना मेल है। क्योंकि, हम द्वंद्व में हैं तो हमें दोनों भी मापना है, कितना मैल है और कितना कृष्णमय है और भक्त बनने के प्रयास में हम कौन से स्तर पर हैं। अधो श्रद्धा साधु संग अनर्थ निवृत्ति निष्ठा भाव प्रेम कौन से स्तर का भक्ति कर रहे हैं। कनिष्ठा मध्यम उत्तम। बहुत सारा ज्ञान का भंडार है। प्रभुपाद जी ने हमें इतना ज्ञान दिया है कि, 45 जीवन में भी हम इसका पूरा अभ्यास नहीं कर सकते हैं। इसलिए हमेशा सारग्राही बनना है। 45 मिनट में अर्जुन का अज्ञान और वह नष्ट हो गया। और वह शत-प्रतिशत कृष्णा के आज्ञा का पालन किए शरणागत होकर। हमें भी शरणागति बढ़ानी है हमें भी सोचना है कि, हम किस तरह शत प्रतिशत गुरु और कृष्ण को शरणागत हो जाए। तो इस तरह गुरुमहाराज ने आज मुझे अवसर दिया वह। हम सब मिलकर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि गुरु महाराज जल्द से जल्द स्वस्थ होकर वापस आए। हरे कृष्ण, धन्यवाद, श्रील प्रभुपाद की जय! गुरु महाराज की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! भक्तः भगवतगीता के 18.68 में भगवान बोल रहे हैं कि, यह ज्ञान भक्तों के बीच मे देना चाहिए, भक्त बनेगे फिर यह ज्ञान देना चाहिए। भगवान यह ज्ञान अर्जुन को दे रहे हैं। अर्जुन भक्त था और कृष्ण भगवान थे। दोनों के बीच में यह संवाद हो रहा है। तो हम ऐसे लोगों को गीता दे रहे हैं जो भक्त भी नहीं है तो यह भगवान का वचन सही है गीता में? प्रभुजीः जैसे चैतन्य महाप्रभु से ज्यादा कृपालु नित्यानंद प्रभु है। चैतन्य महाप्रभु तो सुदर्शन निकाल रहे थे जगाई मधाई को मारने के लिए। लेकिन नित्यानंद प्रभु ने रोक लिया। हम यहां मारने के लिए नहीं आए हैं। कलयुग के जीव पहले ही मरे हुए हैं। इनको प्राण देना है। और नित्यानंद प्रभु से और भी कृपालु है अद्वैत आचार्य। इस प्रकार से परंपरा में आते हुए प्रभुपाद जी और भी कृपालु है। जो सेनापति भक्त है। गीता हम शुरुआत में दे रहे हैं तो हम सब उनको गुह्य बातें नहीं बताते लेकिन उनको जोड़ने के लिए यह बातें जरूरी है। हम अपनी गोपनीय बातें उनको नहीं बताते है। तो इस तरह से प्रभुपाद जी ने जो प्रणाली दी है येन केन प्रकारेन कैसे भी व्यक्ति भक्ति में आ जाए वह धीरे धीरे भक्ति में आ जाएगा। वह गीता को हाथ लगाता है मतलब उसका सुकृति हो रहा है। और जैसे जैसे ज्यादा सुकृति बढ़ते जाएगा वैसे वहां भक्ति में आ जाएगा। इस प्रकार से उनको उचित स्तर से ज्ञान दिया जाएगा तो वह भक्त हो जाएगा। और नहीं बनेगा तो वहां बैठेगा ही नहीं सुनने के लिए। माधवी कुमारी माताजीः प्रभुजी यह जो सारग्राही मतलब वह थोड़ा समझा दीजिए। प्रभुजीः जैसे दूध होता है दूध को उबालकर उसका दही बनाते हैं। उसका मक्खन निकालते हैं। फिर उससे घी बनाते हैं। तो वहां सार है। सार क्या है, अज्ञानता नष्ट होना है। इस श्लोक में से हम लोग अगर देखें तो, गीता पढ़ना मतलब क्या है? हमारी अज्ञानता और मोह नष्ट होना है। कृष्ण को शरणागत होना। हमें यह जानना है कि हम शरीर नहीं है, हम मन नहीं है। हम एक अनु आत्मा, चेतन तत्व के भगवान के नित्य दास है। कृष्ण की सेवा करने से ही हम आनंद प्राप्त कर सकते हैं और कोई रास्ता नहीं है। यह सार है। यह समझना है, हमें गीता को पढ़कर। मंजूरानीगोपी माताजीः मेरा यह प्रश्न है कि आपने जैसे कहा था कि, जीवों पर दया करनी चाहिए। जैसे खाना देने से, कपड़ा लेने से निम्न प्रकार की दया है। जब हम भक्त भक्तिवृक्षमे लोगों को बताते हैं कि, यह क्या है कैसे हैं। जैसे हम लोगों को उदाहरण लीजिए। जैसे कि हम देवी देवता पूजा के ऊपर हमने पूरा अभ्यास लिया था। लेकिन फिर वही सोच है कि नहीं हमें देवी देवताओं की भी पूजा करनी है। तो यह सुनकर कभी कभी तो हमारे पैशन्स छूट जाते हैं। क्या हमें उनको छोड़ देना चाहिए, हमें जो करना था हमने कर लिया। अब छोड़ दो उन्हें उनके हाल पर या फिर उनके पीछे उनको मेंटर करना चाहिए। क्योंकि बहुत बोलने से भी लोग इरिटेट हो जाते हैं। तो क्या करना चाहिए हमें? प्रभुजीः हमें और स्मार्ट तरीके से उनको प्रेजेंटेशन देना चाहिए। भक्तिवृक्ष में भी उन्हें अलग-अलग स्तर दिखाने चाहिए। यह अलग अलग स्तर है। आप यह स्तर पर हैं। अच्छी बात है। आपने इतना रास्ता काट लिया है। आपको इतना करना है। आगे का यह रास्ता है। आप अपने स्पीड से जा सकते हैं। और ऐसा करने से और उनको जोड़ कर रखना है। उनको सेवा में लगाइए। अगर भजन नहीं कर रहे हैं तो सेवा में लगाइए। उनकी सुकृति बढ़ाते रहिए। उनको संग देते रहिए क्योंकि, उतना वह एडवांस हो जाएंगे। हमें पेशन्स रखना है। कृष्ण पेशन्स रख रहे हैं हमारे ऊपर। ठीक है, हरे कृष्ण।

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