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जप चर्चा
4 जनवरी 2022
हरे कृष्ण,
आज 1042 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। आप सभी का स्वागत है। यद्यपि मैं आपका स्वागत कर रहा हूं परंतु वास्तव में यहां मेरा स्वागत हो रहा है। तो एक बार पुनः आप सभी का इस कॉन्फ्रेंस में स्वागत है। अंततः आप सभी का स्वागत वैकुंठ अथवा गोलोकधाम में हो ऐसी हम प्रार्थना करते हैं। भगवान श्री कृष्ण आप सभी का स्वागत करने की प्रतीक्षा में है। कृष्ण आप सभी को मिलेंगे। वहां भगवान श्रीकृष्ण होंगे और उनके भक्त भी होंगे।
*“सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्र्च दृढव्रताः |*
*नमस्यन्तश्र्च मां भक्तया नित्ययुक्ता उपासते ||* भगवद गीता ९.१४ ||”
अनुवाद
ये महात्मा मेरी महिमा का नित्य कीर्तन करते हुए दृढसंकल्प के साथप्रयास करते हुए, मुझे नमस्कार करते हुए, भक्तिभाव से निरन्तर मेरी पूजा करते हैं|
मैं सोच रहा था कि क्या भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जप या कीर्तन के विषय में कुछ कहा है? इसका उत्तर है हां भगवान श्री कृष्ण ने कीर्तन के विषय में कहा है : सततम् कीर्तयंतो माम अर्थात् मेरा कीर्तन करो। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी कीर्तन के विषय में कहा है : कीर्तनीय सदा हरी ।
*तृणादपि सु-नीचेन तरोरिव सहिष्णुना।*
*अमानिना मान-देन कीर्तनीयः सदा हरिः* ॥ चैतन्यचरितामृत आदिलीला 17.31॥
अनुवाद
जो अपने आपको घास से भी अधिक तुच्छ मानता है, जो वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु है।
और जो किसी से निजी सम्मान की अपेक्षा नहीं रखता, फिर भी दसरों को सम्मान देने के लिए सदा
तत्पर रहता है, वह सरलता से सदा भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन कर सकता है।"
तथा यहां पर भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं मेरा सतत अथवा निरंतर कीर्तन करो और यह कीर्तन दृढ़तापूर्वक करो। उपदेशामृत में श्रील रूप गोस्वामी बताते हैं उत्साहात निश्चयात धैर्यात अर्थात् एक भक्त को सदैव उत्साही तथा भगवान में विश्वास रखना चाहिए ।
*उत्साहात्निश्वयाद्धैर्यात् तत्त्कर्मप्रवर्तनात् ।*
*सङ्गत्यागात्सतो बृत्तेः वह्मिर्भक्ति:प्रसिध्यति* ॥ श्रीउपदेशामृत श्लोक ३ ॥
अनुवाद
भक्ति को सम्पन्न करने में छह सिद्धांत अनुकूल होते हैं : (१) उत्साही बने रहना
शुद्ध
(२) निश्चय के साथ प्रयास करना (३) धैर्यवान होना (४) नियामक सिद्धांतों के अनुसार कम
करना ( यथा श्रवणं, कीर्तनं, विष्णो: स्मरणम्--कृष्ण का श्रवण, कीर्तन तथा स्मरण करना)
(५) अभक्तों की संगत छोड़ देना तथा ( ६ ) पूर्ववर्ती आचार्यों के चरणचिह्नों पर चलना। ये
छहों सिद्धान्त निस्सन्देह शुद्ध भक्ति की पूर्ण सफलता के प्रति आश्वस्त करते हैं।
यहां भगवान श्री कृष्ण ने भी यही कहा है। ऐसा किसने कहा है? जय श्री कृष्ण! जय श्री कृष्ण! भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में इस प्रकार कह रहे हैं।
भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में क्या कह रहे हैं? भगवान कहते हैं सततम् कीर्तयंतो : मेरा निरंतर कीर्तन करो और यह कीर्तन प्रयत्न पूर्वक अथवा दृढ़ श्रद्धा के साथ करना चाहिए ऐसा भगवान श्री कृष्ण ने कहा है। अब हमारी बारी है । हमें भी वैसे ही कहना है जैसे भगवान ने कहा है। भगवान बता रहे हैं कि उन्हें किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है इसलिए यदि हम भगवान की प्राप्ति करना चाहे तो हमें वैसे करना होगा जैसे भगवान श्री कृष्ण ने कहा है। भगवान ने यहां पर पूरा सेमिनार तो नहीं दिया है परंतु यह वाक्य कहा है और यह वाक्य अपने आप में पूर्ण है कि भगवत प्राप्ति के लिए भगवान का कीर्तन करना चाहिए। एक अन्य विचार भी है कि भगवद गीता का प्रारंभ इस श्लोक से होता है :
*धृतराष्ट्र उवाच*
*धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |*
*मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय* || भगवद गीता १.१ ||
अनुवाद
धृतराष्ट्र ने कहा — हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
धृतराष्ट्र भगवत गीता के प्रारंभ में यह प्रश्न करते हैं कि धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया। यहां कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है। धृतराष्ट्र धर्मक्षेत्र की जगह केवल कुरुक्षेत्र भी कह सकते थे। परंतु उन्होंने धर्मक्षेत्र कहा , यह विशेष बात है। कुरुक्षेत्र धाम हरियाणा में स्थित है हरियाणा अर्थात जहां हुआ हरि का आना वह स्थान बना हरियाणा । इस कुरुक्षेत्र को धर्म क्षेत्र क्यों कहा गया है ? यह बात धृतराष्ट्र ने जानबूझकर या अपनी चिंतित अवस्था के कारण कही है। वह चिंतित हो रहे है और पूछ रहे हैं युद्ध हो रहा है कुरुक्षेत्र में यह कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र है और इसीलिए धृतराष्ट्र चिंतित है और संजय से पूछ रहे हैं *मामकाः पाण्डवाश्र्चैव किमकुर्वत सञ्जय* मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया । इस प्रकार धृतराष्ट्र अपने पुत्रों तथा पांडु के पुत्रों में भेद कर रहे हैं।
इस प्रकार धृतराष्ट्र अपने तथा अपने छोटे भाई के पुत्रों के मध्य भेद भाव अथवा पक्षपात कर रहे हैं। *पंडिता: समदर्शीन:* होना चाहिए परंतु धृतराष्ट्र पंडित नहीं है इसलिए वह समदर्शी भी नहीं है। यहां उनकी दृष्टि में भेद है। यह धृतराष्ट्र का परिचय अथवा उनकी पहचान है कि वह पक्षपात अथवा भेदभाव करने वाले हैं। यही धृतराष्ट्र अत्यंत चिंतित भी है क्योंकि यह युद्ध कुरुक्षेत्र में हो रहा है और कुरुक्षेत्र धर्म क्षेत्र है। धृतराष्ट्र जानते हैं कि मेरे पुत्र धार्मिक नहीं है और यह युद्ध क्षेत्र धर्मक्षेत्र है जो मेरे अधार्मिक पुत्रों के लिए अनुकूल नहीं है। यह संशय धृतराष्ट्र के मन में है इसलिए वह चिंतित है। उनके पुत्र भी अत्यंत दुष्ट हैं तथा उनके नाम भी ऐसे ही हैं यथा दुर्योधन दु:शासन आदि। इसलिए धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र कहकर धृतराष्ट्र संजय से पूछ रहे हैं कि संजय मुझे बताओ मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया। यह कुरुक्षेत्र में हो रहे युद्ध की लाइव कमेंट्री है। संजय युद्ध स्थल में जो कुछ घटित हो रहा है उसे देख रहे हैं। वह सभी योद्धाओं, कृष्ण , अर्जुन के मन की बात को समझ रहे हैं। अर्जुन के मन में या दुर्योधन के मन में क्या विचार है यह सब बातें संजय धृतराष्ट्र को सुना रहे हैं। संजय को किसी के मन का विचार जानने तक का ज्ञान प्रदान कर दिया गया था।
यहां पर धृतराष्ट्र यह प्रश्न पूछ रहे हैं कि किम कुर्वत अर्थात वहां क्या-क्या हुआ? युद्ध में क्या होता है एक पक्ष की होती है जीत दूसरे की होती है हार। यहां पूछे गए प्रश्न के पीछे हेतु यह है कि धृतराष्ट्र यह जानना चाह रहे हैं कि मेरे पुत्रों की जीत हुई है या नहीं हुई। धृतराष्ट्र इस विषय में शंका ग्रस्त हैं क्योंकि दुर्दैव से यह कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र है और यहीं पर युद्ध हो रहा है। यदि भारत पाकिस्तान का क्रिकेट मैच रावलपिंडी में हो रहा हो तो भारतीय खिलाड़ियों को चिंता होती है। जब भारत में खेल रहे होते है तो पाकिस्तान के खिलाड़ियों को चिंता होती है |
जो प्रश्न गीता के पहले श्लोक मे पूछे गये है, उनके उत्तर गीता के अन्तिम श्लोक मे हैं |
पहले श्लोक में प्रश्न पूछा गया है कि संजय बताओ -- किसकी जीत हार हो रही है |
फिर संजय ने कहा --
*भगवतगीता* 18.78
“यत्र योगेश्र्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवो नीतिर्मतिर्मम || ७८ ||”
अनुवाद
जहाँ योगेश्र्वर कृष्ण है और जहाँ परम धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीँ ऐश्र्वर्य, विजय, अलौकिक शक्ति तथा नीति भी निश्चित रूप से रहती है | ऐसा मेरा मत है |
यहाँ कौन कौन है?
यत्र यानि जहाँ | जहाँ अर्जुन और कृष्ण की जोड़ी है, भगवान और भगवान के भक्त जिस पक्ष में है, तत्र अर्थात वहाँ पर श्री यानि वैभव और विजय होगी |अर्जुन विजयी होंगे | 45 मिनट के अंदर या 45 मिनट के अंत मे इस प्रश्न का उत्तर दिया जा रहा है |45 मिनट तक यह संवाद चलता रहा | युद्ध तो अभी शुरू भी नहीं हुआ है और संजय पहले ही कह रहे हैं कि किसकी जीत होने वाली है क्योकि वे जानते हैं कि वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है | उन्हें कृष्ण ने विश्वरुप भी दिखाया | संजय ने देखा कि शत्रु के सैन्य का क्या हाल हो रहा था | कृष्ण वैसे कहे भी हैं कि पांडव केवल तुम बचोगे बाकि सबका अंत हो जायेगा |
*भगवतगीता* 4.8
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||”
अनुवाद
भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
भगवान ने कहा कि मैं विनाश करूंगा इसलिए ही मैं प्रकट होता हूँ |
भगवान ने संभवामि युगे युगे भी दिखाया है | इस युद्ध का भविष्य या परिणाम विश्वरूप में दिखाये है और संजय कह भी रहे हैं क्योंकि संजय बड़े अनुभवी हैं, वे जानते हैं |
यतो धर्मः ततो जयः (या, यतो धर्मस्ततो जयः)
"जहाँ धर्म है वहाँ जय (जीत) है।" *महाभारत*
यह एक सिद्धांत है -- जहां धर्म है वहा जीत है, यतः यानि जहा, ततः यानि वहा |
*भगवतगीता* 18.78
“यत्र योगेश्र्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवो नीतिर्मतिर्मम || ७८ ||”
अनुवाद
जहाँ योगेश्र्वर कृष्ण है और जहाँ परम धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीँ ऐश्र्वर्य, विजय, अलौकिक शक्ति तथा नीति भी निश्चित रूप से रहती है | ऐसा मेरा मत है |
ये बात तो महाभारत की बड़ी प्रसिद्ध है कि जिस पक्ष में कृष्ण है, अर्जुन जैसे कृष्ण भक्त हैं, जिस पक्ष में स्वयं जनार्दन है, उस पक्ष की जीत होती है |
अगर जीत चाहते हो तो आप किस पक्ष को पसंद करोगे?
कोई क्या पराजय चाहता है?
अभी तक तो मैं किसी से नहीं मिला जो पराजय चाहता है | वही जीतेगा जो कृष्ण के पक्ष में होगा | इसलिए मैं कभी-कभी कहता हूँ आज भी कहता हुँ |
आपल्या मत कोणार?
वोट फॉर कृष्णा
वोट फॉर कृष्णा
वोट फॉर कृष्ण या कृष्ण भक्त |
या उस MP या MLA को अपना मत दो जो कृष्ण भक्त है |
आपके द्वार पर आते हैं ना मत मांगने के लिए? गीता की शुरुआत तो धृतराष्ट्र उवाच से है | गीता का समापन, जिसे उपसंघार भी कहते हैं, संजय उवाच से है | अंतिम चार - पाँच वचन या श्लोक संजय के ही है, अब यह सारांश होगा, concluding statement संजय के हैं | उसने अपनी इमानदारी से कहा --
Honesty is the best policy.
*भगवतगीता* 18.75
“व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं परम् |
योगं योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम् || ७५ ||”
अनुवाद
व्यास की कृपा से मैंने ये परम गुह्य बातें साक्षात् योगेश्वर कृष्ण के मुख से अर्जुन के प्रति कही जाती हुई सुनीं ।
18 वे अध्याय में संजय कुछ विशेष बात कह रहे हैं -- व्यास प्रसादात श्रुतवान |
श्रुतवान या दृष्टमान भी कह सकते हैं | संजय ने कहा कि मैं जो भी सुन रहा हूँ , देख रहा हूँ, यह कैसे संभव हो रहा है?
व्यास देव के प्रसाद से |
यह कोई मेरी स्वयं की क्षमता, स्वतंत्र क्षमता की बात नहीं है | ऐसी बात भी नहीं हैं कि मैं किसी पर निर्भर नहीं हूँ| संजय बता रहे हैं कि मेरा कुरुक्षेत्र का घटनाक्रम देखना और सुनना संभव हो पा रहा हैं जो भी मैंने देखा मैंने सुना | कैसे?
व्यास प्रसादात श्रुतवान |
इसको कैसे समझे?
महाभारत में समझाया है कि इन दिनों में व्यास देव थे, स्वयं व्यास देव थे, वो भी महाभारत के एक पात्र हैं, एक व्यक्तित्व है जो उन दिनों महाभारत के काल मे थे |महाभारत एक इतिहास है | श्रील व्यास देव वहां प्रकट हुए हैं | इस महाभारत इतिहास के इतिहासकार स्वयं भगवान है | व्यास देव जो है वे भगवान के साकत्यावेश अवतार हैं |
उन्होंने महाभारत लिखा और उन्होंने ही भगवत गीता लिखी और भगवत गीता कहने वाले भगवान श्री कृष्ण हैं |
लिखने वाले कौन है?
किसी सचिव ने टाइपिंग की हो तो वो लेखक नहीं हो जाता | हमारे सचिव का नाम लेखक के स्थान पर नहीं आता है | तो गणेश जी ने गणेश गुफा में बैठकर और व्यास देव ने व्यास गुफा में बैठकर कुछ सेवा की |
श्रील व्यास देव धृतराष्ट्र से मिलने गए थे और उन्होंने प्रस्ताव रखा था कि आप चाहोगे तो मैं आपको दृष्टि दे सकता हूँ क्योंकि वे अंधे थे, जन्मांध थे ताकि आप कुरुक्षेत्र में जो घटना क्रम घटने वाला है उसे आप स्वयं देख सकते हो |
क्या आपको मैं दृष्टि दे दूं?
धृतराष्ट्र ने साफ इंकार कर दिया नहीं नहीं नहीं नहीं क्योंकि वैसे वे जानते थे कि मेरे पुत्रों का क्या हाल होना है या ये कृष्ण ही क्या हाल करेंगे |
*भगवतगीता* 4.8
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||”
अनुवाद
भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
विनशाय चतुस्कृताम इनका कार्य है, भगवान कृष्ण ऐसा ही करते हैं और मेरे पुत्र दुष्ट हैं तो मैं अपनी आँखों से अपने पुत्रों का संहार होते हुए, विनाश होते हुए नहीं देखना चाहता हूँ | नहीं नहीं मुझे आंखें मत दीजिए मुझे अंधा ही रहने दीजिए |
तो जब धृतराष्ट्र इंकार किए, वे दृष्टि नहीं चाहते थे, वे युद्ध देखना नहीं चाहते थे तो श्रील व्यासदेव अपनी विशेष कृपा से कृपा दृष्टि एवं दिव्य दृष्टि संजय को दे दिये | धृतराष्ट्र के इनकार करने के बाद संजय, जो धृतराष्ट्र के सचिव या मंत्री उन दिनों मे रहे, व्यास देव उनको यह सारी देखने की सुनने की समझने की क्षमता दिए, दूरदर्शन या दूर से दृश्य देखने की क्षमता संजय को प्राप्त हुई |
यह क्षमता, शक्ति, सामर्थ्य श्रील व्यास देव दिये थे, इसीलिए संजय गीता के अंतिम कुछ श्लोको में कह रहे हैं -- "व्यास प्रसादात श्रुतवान" श्रील व्यास देव की कृपा से |
एक तो अर्जुन गीता सुन रहे थे और वैसे वहां एक वृक्ष भी था वट वृक्ष अक्षय वट वो भी सुना वह भी अक्षय हुआ अमर हुआ आज भी है और तीसरे हैं संजय |
कह सकते हैं कि तीन पार्टी सुन रही थी |
संजय का सुनना संभव कैसे हुआ?
व्यास की कृपा से |
साथ में यह भी कह रहे हैं कि
*भगवतगीता* 18.75
“व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं परम् |
योगं योगेश्र्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम् || ७५ ||”
अनुवाद
व्यास की कृपा से मैंने ये परम गुह्य बातें साक्षात् योगेश्वर कृष्ण के मुख से अर्जुन के प्रति कही जाती हुई सुनीं ।
पहले तो कहे कि व्यास की कृपा से मैंने यह भगवत गीता के वचन सुने | यह गुह्य भी है और गोपनीय भी है | भगवत गीता योग का शास्त्र है |
किससे सुना?
सुना तो गया व्यास देव की कृपा से लेकिन मैं कृष्ण को सुन रहा था | योगेश्वरात कृष्णात साक्षात | कितने शब्दों का उपयोग किया है | इसी के साथ यह प्रमाणित हो रहा है कि गीता किसने कही |
गीता मे भगवान उवाच भगवान उवाच तो है ही और उस पर संजय अपनी मुहर लगा रहे हैं कि मैंने यह भगवत गीता योगेश्वर से सुनी, योगेश्वर के मुखारविंद से सुनी, कृष्णात कृष्ण से सुनी, उनको नाम भी दे रहे हैं और साक्षात साक्षात श्री कृष्ण से मैंने यह गीता का संदेश उपदेश सुना है तो लोग पूछते रहते हैं कृष्ण अर्जुन का संवाद तो हुआ, वहां कोई लिखने वाला तो नहीं था |
क्या पुराने जमाने में ऐसे सचिव हुआ करते थे जो शॉर्ट हैंड फटाफट लिखते थे?
ऐसा कोई कुरुक्षेत्र में था क्या?
कृष्ण अर्जुन बोल रहे थे उस वक्त कोई वहाँ था क्या?
क्योंकि आजकल के टेप रिकॉर्डर तो थे ही नहीं, ऐसा कोई प्रश्न तो नहीं पूछेगा|
लेकिन वहां तो कोई था नहीं तो यह संवाद ज्यों के त्यों कैसे रिकॉडेड हुआ?
अरे भाई अगर व्यास की कृपा से यह भगवत गीता का संवाद संजय सुन सकते हैं, तो फिर स्वयं व्यास देव को क्या समस्या है, वे उस समय जहां भी थे उन्होंने वहीं से सुनी होगी |
और वे श्रुतिधर थे, एक एक अक्षर एक एक शब्द एक एक वाक्य उन्होंने जो जो सुना उनको दोहराना उनके लिए कोई कठिनाई नहीं है, यह तो साधारण श्रुतिधर मनुष्य भी करते हैं, करते रहे हैं "एवं परंपरा प्राप्तम"
तो फिर व्यास देव भी उस संवाद को संदेश उपदेश को सुने और उन्होंने महाभारत के बीच में भगवत गीता का भी समावेश किया | महाभारत के भीष्म पर्व का 18 अध्याय है, 18 पर्व में से एक पर्व है भीष्म पर्व, 25 से लेकर 42 तक और उसमें से ही 18 अध्याय भगवत गीता है |
*भगवतगीता* 18.77
” तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे: |
विस्मयो मे महान्राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः || ७७ ||”
अनुवाद
हे राजन्! भगवान् कृष्ण के अद्भुत रूप का स्मरण करते ही मैं अधिकाधिक आश्चर्यचकित होता हूँ और पुनःपुनः हर्षित होता हूँ |
संजय ने यह भी कहा है कि कृष्ण अर्जुन के संवाद के समापन के उपरांत भी यह ज्ञान ध्वनित तो हो ही रहा है, वे सुन हीं रहे हैं, ऐसा स्मरण कर रहे हैं |
वे संवाद का स्मरण कर करके उसके परिणामस्वरुप भगवान के अद्भुत रूप का दर्शन कर रहे हैं |
गीता के वचन स्मरण दिला रहे हैं, कृष्ण का दर्शन दिला रहे हैं, वक्ता का दर्शन दिला रहे हैं, गीता के वक्ता कृष्ण है, उनके मुखारविंद से ही यह वाणी निकली तो उस रूप का इनको स्मरण हो रहा है | यह भी लक्ष्य है भगवान के रूप का दर्शन या गीता श्रवण कीर्तन प्रचार प्रसार |
10.29.27
श्रवणाद्दर्शनाद्ध्यानान्मयि भावोऽनुकीर्तनात् । न तथा सन्निकर्षण प्रतियात ततो गृहान् ॥ २७ ।।
मेरे विषय में सुनने , मेरे अर्चाविग्रह रूप का दर्शन करने , मेरा ध्यान करने तथा मेरी महिमा का श्रद्धापूर्वक कीर्तन करने की भक्तिमयी विधियों से मेरे प्रति दिव्य प्रेम उत्पन्न होता है । केवल शारीरिक सान्निध्य से वैसा ही फल प्राप्त नहीं होता । अतः तुम लोग अपने घरों को लौट जाओ ।
जो लोग गीता का वितरण कर रहे हैं, गीता पढ़ेंगे तो उनको दर्शन होगा, लोगों को जीवो को भगवान का दर्शन हो इसीलिए गीता लो और गीता पढ़ो ऐसा निवेदन आप सभी कर रहे हो करते रहिये |