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जप चर्चा, श्री श्री राधारास बिहारी मंदिर जुहू, 03 जनवरी 2022 *गीता मेरथन* हरि हरि।आज 1049 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि हरि। मैं जुहू मुंबई में हरे कृष्णा लैंड पहुंच चुका हूं और यहां मेरा स्वागत हो रहा हैं। मेरे अपने घर में मेरा स्वागत हो रहा हैं। एक दृष्टि से मेरा जन्म यहीं इस हरे कृष्णा लैंड में हुआ हैं।यहां मेरी जान में जान आ गई और यहीं पर मेरा लालन-पालन भी हुआ।हरे कृष्ण लैंड की जय। राधा रास बिहारी की जय। यहां आकर मुझे बचपन की बातें याद आ रही हैं। अभी तो नहीं बता पाऊंगा क्योंकि अभी मुझे और बहुत कुछ बताना हैं, किंतु 50 वर्ष पूर्व की यादें तो आ ही रहे हैं।प्रभुपाद की भी बहुत याद आ रही हैं और सभी भक्त भी बहुत याद आ रहे हैं।राधा रासबिहारी की बहुत याद आती हैं, जिनकी आज सुबह मैंने मंगल आरती उतारी हैं। जय जगदीश हरे। इन्हीं राधा रास बिहारी का श्रील प्रभुपाद ने मुझे मुख्य पुजारी बनाया था और कुछ सालों तक मैं इन विग्रहो की आराधना करता था। श्री-विग्रहाराधन-नित्य-नाना- शृङ्गार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ ( श्रीमद्-गुरोर् अष्टकम्) उनका श्रृंगार भी करता था। जो भी सेवा मिलती थी, वह करता तो था। भगवान के लिए भोग बनाने की सेवा भी करता था। यह मुझे आता तो नहीं था,ना ही अभी आता हैं, लेकिन कभी कोई शिकायत तो नहीं सुनने को मिली। भगवान ने उन सभी भोगों को स्वीकार किया जो भी मैं उन्हें बनाकर खिलाता था। हरि हरि।तो श्री राधा रासबिहारी आज भी हैं और हमेशा रहेंगे।यह हरे कृष्णा लैंड एक धाम बन गया हैं। यह हरे कृष्णा लैंड मुंबई में नहीं हैं। श्रीमद्भगवद्गीता की जय। जब तक मैराथन का समय हैं, हम गीता का संस्मरण करते रहेंगे। वैसे मैं यहा पहुंच तो कल ही गया था, लेकिन आज जब मंगल आरती के बाद मैंने यहां के पुस्तक वितरण के स्कोर सुने तो मुझे संस्मरण आया कि वास्तव में मैराथन होता क्या हैं।जैसा पुस्तक वितरण यह हरे कृष्ण लैंड के भक्त कर रहे हैं या थाने के भक्त भी मिलकर कर रहे हैं, इसे कहते हैं मैराथन और फिर राधा रासबिहारी ,श्रील प्रभुपाद और सभी भक्त वृंद की प्रसन्नता के लिए स्कोर बताए गए। पता हैं कुल मिलाकर कितना था?लगभग 3000 से ज्यादा पुस्तकों का कल- कल में वितरण हुआ हैं। यह केवल 1 दिन का स्कोर हैं। वैसे इस प्रकार भगवद्गीता का वितरण आप लोग भी कर रहे हो। मॉरीशस में भी पुस्तक वितरण हो रहा हैं, मंगोलिया में भी होता होगा,यहां मंगोलिया के भक्त भी उपस्थित हैं और बर्मा और नेपाल में भी हो रहा हैं.. आदि आदि और भी कई जगह के भक्त जप कर रहे हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया के... सभी जगहों पर ही पुस्तक वितरण हो रहा हैं। इन सभी जगहों के लोग इस जप चर्चा में उपस्थित हैं। तो इन जगहों पर भी पुस्तक वितरण हो ही रहा होगा। तो इसीलिए भगवान की प्रशंसा के लिए आइए हम अधिक से अधिक ग्रंथों का वितरण करते हैं। यह गीता जिसका आज वितरण हो रहा हैं, वह आज नहीं तो कल कभी ना कभी जरूर पढ़ी जाएगी। इसीलिए श्रील प्रभुपाद की भगवद्गीता को हम टाइम बोम कहते हैं। बोम भी तुरंत तो नहीं फटता हैं, उसका एक समय होता हैं। जिस समय पर वह फटता हैं, वह समय निश्चित होता हैं। यह उस व्यक्ति के कर्मों के अनुसार भी हो सकता हैं। लेकिन एक दिन वह शुभ दिन जरूर आएगा और उसके भाग्य का उदय होगा। वैसे जिस दिन भगवद्गीता ली एक दृष्टि से तो उसी दिन उसके भाग्य का उदय हो गया, किंतु अंततोगत्वा जिस दिन वह उस भगवद्गीता को खोलेगा उस दिन पूरी तरह से उसके भाग्य का उदय होगा और खोलेगा तो जरूर।हर एक गीता जरूर पढ़ी जाएगी। कोई ना कोई तो उसे अवश्य पड़ेगा और जिसने खरीदी उसने ना भी पढी तो उसके बाल बच्चे पढेगे,उसकी अगली पीढ़ियों में कोई पढेगा,लेकिन हर भगवद्गीता कईयों के द्वारा पढ़ी जाएगी।लाखों-करोड़ों भगवद्गीता का वितरण तो हो चुका हैं और इस साल तो केवल भारत को ही 2000000 भगवद्गीता का वितरण करना हैं। तो इतने स्थानों पर या ,इतने घरों में,इतने लोगों के अंततः दिल में जहां आत्मा स्थित हैं, वहां यह गीता के वचन पहुंचने वाले हैं।तो यह गीता वितरण करने की बुद्धि भगवान आपको दें भगवद्गीता 10.10 “तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || १० ||” अनुवाद जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | यह गीता का वितरण परोपकार हैं, चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा हैं यारे देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हञा तार ' एइ देश ॥ चैतन्य चरितामृत 7.128॥ अनुवाद:- " हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । " चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि मेरा आदेश हैं,जिसको देखो उसे कृष्ण का उपदेश कहो।तो कृष्ण उपदेश क्या हैं? यह भगवद्गीता ही कृष्ण का उपदेश हैं और भी कई उपदेश मिलेंगे आदि पुरुष श्री कृष्ण गोविंद के लेकिन यह भगवद्गीता एक विशेष उपदेश हैं। इसका प्रचार करो।यह आदेश हमें भगवान का हुआ हैं। उपदेश का प्रचार करने की बुद्धि मैं भी कुछ देने की कोशिश कर रहा हूं,ताकि हम बुद्धू से बुद्धिमान बने।जो गीता का वितरण नहीं करते वह बुद्धू हैं,बुद्धू कहीं के और जो गीता का वितरण करते हैं, वह बुद्धिमान हैं। मतलब भगवान ने उनको बुद्धि दे दी हैं। भगवान तो बुद्धि सभी को देते हैं ,लेकिन हम लेते ही नहीं हैं। तो ऐसी बुद्धि को ले लो।श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा- चैतन्य चरितामृत आदिलीला 9.41 भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार। जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥41॥ अनुवाद जिसने भारतभूमि (भारतवर्ष ) में मनुष्य जन्म लिया है, उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए।" तो आप भारतीय हो तो प्रचार करो।आपको यह सिद्ध करना होगा कि आप भारतीय हो।आप हो कि नहीं भारतीय? केवल भारत भूमि पर जन्म लेने से कोई भारतीय नहीं बन जाता। जन्म से कोई भारतीय नहीं बनता,क्योंकि मैंने भारत में जन्म लिया इसलिए में भारतीयों हूं, ऐसा नहीं हैं।ब्राह्मण परिवार में मैंने जन्म लिया इसलिए मैं ब्राह्मण हूं,नहीं। आप ब्राह्मण नहीं हो। ब्राह्मण तो अपने गुणों से होते हैं। BG 4.13 “चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः | तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् || १३ ||” अनुवाद प्रकृति के तीनों गुणों और उनसे सम्बद्ध कर्म के अनुसार मेरे द्वारा मानव समाज के चार विभाग रचे गये | यद्यपि मैं इस व्यवस्था का सृष्टा हूँ, किन्तु तुम यह जान लो कि मैं इतने पर भी अव्यय अकर्ता हूँ । भारतीयता भी होनी चाहिए। भारतीयता नाम की भी कोई चीज हैं, तब हम भारतीय कहलाएंगे। भारतीय वह हैं, जो भाव में रक्त हैं भा मतलब प्रकाश और रत मतलब तल्लीन होना। जो प्रकाश में रक्त हैं या तल्लीन हैं वह भारतीय हैं और कैसा प्रकाश? इस भगवद्गीता के प्रकाश में तल्लीन हैं, गीता का ज्ञान एक प्रकाश है। असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्तोतिर्गमय ॥ मृत्योर् मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ (उपनिषद 1.3.28) तो जो अंधेरे में हैं, वह भारतीय नहीं हैं।लेकिन जो ज्योति की ओर जा रहे हैं, जिन्हें प्रकाश प्राप्त हुआ हैं, कौन सा प्रकाश? गीता का प्रकाश प्राप्त हुआ हैं, कृष्ण द्वारा दिया गया.. गीता का ज्ञान जिसके पास हैं वह भारतीय हैं। इसीलिए जिस स्थान पर गीता का ज्ञान दिया गया उसे ज्योतिसर कहा गया हैं। अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर में ज्ञान लिया, सेना के बीच में खड़े हुए। कृष्ण भी खड़े थे और अर्जुन भी खड़े थे, ज्योतिसर में वह स्थान आज भी हैं और उसी स्थान की ओर प्रभुपाद ने उंगली करके बताया था, आपको बताया था कि जब प्रभुपाद अपने शिष्यों के साथ रेल से दिल्ली जा रहे थे, तो प्रभुपाद अपने शिष्यों को उंगली करके रेल की खिड़की में से दिखा रहे थे कि वह देखो यहीं पर कृष्ण ने गीता का उपदेश सुनाया, यही हैं धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र..यह वह स्थान हैं, जिसे ज्योतिसर कहते हैं। सर मतलब सरोवर भी होता हैं और स्त्रोत भी होता हैं। ज्योति का स्त्रोत। ज्ञान का स्रोत या ज्योति का स्रोत तो यह भगवद्गीता का ज्ञान ज्योति हैं, प्रकाश हैं। कृष्ण-सू़र्य़-सम;माया हय अन्धकार। य़ाहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार।। (श्रीचैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, 22.31) अनुवाद:-कृष्ण सूर्य के समान हैं और माया अंधकार के समान हैं। जहांँ कहीं सूर्यप्रकाश है वहांँ अंधकार नहीं हो सकता। ज्योंही भक्त कृष्णभावनामृत नाता है, त्योंही माया का अंधकार (बहिरंगा शक्ति का प्रभाव) तुरंत नष्ट हो जाता हैं। ऐसे गीता के ज्ञान को केवल ज्ञान ही नहीं बल्कि कहना होगा कि ज्ञान और भक्ति का वितरण करना, इसको औरों तक पहुंचाना एक बहुत बड़ा उपकार हैं। भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार। जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥41॥ भारत में जन्मे हो और जन्म की सार्थकता चाहते हो, चाहते हो कि नहीं? बताओ कौन कौन चाहता हैं? वैसे हरे कृष्णा वाले तो सब लोग ही चाहते हैं कि अपने जन्म को सार्थक करें इसलिए तो आप हरे कृष्णा वाले बने हो। तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा,यह महाप्रभु की हम सभी को देन हैं, कृष्णा ओर अधिक दयालु बनकर चैतन्य महाप्रभु के रूप में आए हैं नमो महा-वदान्याय, कृष्ण प्रेम प्रदायते। कृष्णाय कृष्ण चैतन्य, नामने गोर-तविशे नमः ॥ (चैतन्य महाप्रभु प्रणाम मंत्र) कृष्ण महा वदनयाय हैं, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने हमारा उद्धार किया हैं। वह हमें बचा रहे हैं।सब कुछ तो वही करवा रहे हैं और उन्हीं की तरफ से श्रील प्रभुपाद कर रहे हैं, गौरांग महाप्रभु की ही दया, कृपा श्रील प्रभुपाद ने हम तक पहुंचाई हैं। हर घर में श्रील प्रभुपाद ने पहुंचाई हैं और श्रील प्रभुपाद ने जो कृपा इस संसार के लोगों पर की हैं, वह अद्वितीय हैं। हरि हरि।भगवान श्रील प्रभुपाद से प्रसन्न हैं, तो मैं जो आपको बता रहा था यह चैतन्य महाप्रभु का वचन हैं (श्रीचैतन्य-चरितामृत आदि लीला 9.41) भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार। जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥41॥ अनुवाद जिसने भारतभूमि (भारतवर्ष ) में मनुष्य जन्म लिया है, उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए।" इस वचन को श्रील प्रभुपाद से हमने सैकड़ों बार कहते हुए सुना हैं, चाहे वह उनके प्रवचन हो या कोई पंडाल प्रोग्राम हो,श्रील प्रभुपाद इसे जरूर कहते थे। जब भी श्रील प्रभुपाद भारतीयों को संबोधित करते तो बारंबार श्रील प्रभुपाद इस वचन को दोहराते थे, कौन सा वचन? भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार। जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥41॥ आप भी इस को याद करो। इस को कंठस्थ करो और लोगों को इसके बारे में स्मरण दिलाओ। तो महाप्रभु ने कहा कि परोपकार करो और गीता का वितरण करना सबसे बड़ा परोपकार हैं। आप शायद सोच रहे हो कि कि बार-बार बोल रहे हैं,कि परोपकार करो परोपकार करो, हम करना भी चाहते हैं परोपकार, लेकिन करें क्या? तो यह गीता का वितरण करो। वैसे और भी कई तरीकों से कर सकते हैं, कल भी मैं कुछ भक्तों से मिल रहा था,तो मैंने उनसे पूछा कि आप लोगों को कृष्ण कैसे प्रदान कर सकते हैं?उन्होंने झट से कहा कि भगवद्गीता का वितरण करेंगे, तो मुंबई के भक्त इतने मैराथन भावना भावित हैं या गीता की भावना से ग्रसित हैं कि यहां गीता की ही बात चलती रहती हैं, जिससे भी मैं मिलता हूं सब गीता की ही बात करते हैं।यहां सभी के दिमाग में गीता घुसी हुई हैं। सभी लोग गीता का चिंतन और विचार कर रहे हैं, जैसे एक व्यापारी होता हैं, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के व्यापारी बने हैं। यह हमारा पारिवारिक व्यापार हैं। यह हमारा फैमिली बिजनेस हैं। जैसे व्यापारी अपने व्यापार के संबंध में सोचता हैं कि उसके सामान का अधिक से अधिक वितरण हो, उसकी बिक्री हो,उसका प्रचार हो।दिमाग लगाता रहता हैं। वैसे ही हम भगवान के लिए या गीता के वितरण के लिए अपना दिमाग लगा सकते हैं। Prithvite ache yata nagaradi grama sarvatra prachara haibe mora nama (Chaitanya Bhagavata) तो जब मैंने भक्तों से पूछा कि कैसे हम लोगों को कृष्ण प्रदान कर सकते हैं? तो उन्होंने कहा कि भगवतद्गीता का वितरण करके और भी कुछ भक्तों ने कहा कि हरे कृष्ण महामंत्र देंगे, किसी ने कहा कि प्रसाद बाटेंगे, ऐसे ही यह सूची बहुत लंबी हो सकती हैं, क्या क्या कर सकते हैं, या क्या-क्या दे सकते हैं। लेकिन यह तीन आइटम मोटे-मोटे सबसे मुख्य हैं इस सूची में।तो देने की चीज क्या हैं? एक तो हम लोगों को हरि नाम देते हैं और बहुत ही पुस्तक वितरण होता हैं, इसीलिए संसारी लोग हमें क्या कहते हैं? हरे कृष्णा लोग। यह हरे कृष्णा लोग हैं। क्योंकि चारों तरफ हरि नाम का प्रचार हो रहा हैं। हरि नाम का प्रचार-प्रसार हो रहा हैं या हम नाम जप को बाकी लोगों में वितरित रहे हैं और दूसरा हैं प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण कर रहे हैं और तीसरी आइटम जिसका हम वितरण करते हैं वह हैं प्रसाद वितरण maha-prasade govinde nama-brahmani vaisnave svalpa-punya-vatam rajan visvaso naiva jayate (महाभारत) अन्न परभम्र.. जैसे अर्जुन ने श्रीकृष्ण को गीता में कहा है भगवद्गीता 10.12-13 “अर्जुन उवाच परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् | पुरुषं शाश्र्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् || १२ || आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा | असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे || १३ ||” अनुवाद अर्जुन ने कहा- आप परम भगवान्, परमधाम, परमपवित्र, परमसत्य हैं | आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं | नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं | ऐसे ही अन्न भी परभम्र हैं। अन्न को भी परब्रह्म कहा हैं, भगवान उसे ग्रहण करते हैं। तो फिर भगवान के गुण उस अन्न में आ जाते हैं। ऐसा अन्न का वितरण करना भी कृष्ण को ही देना हैं, कृष्ण का ही वितरण करना हैं। तो संसार भर में हरे कृष्ण भक्त इन तीन प्रकार के वितरण पर जोर देते हैं,जो कि प्रभुपाद ने भी दिया,ऐसी योजनाएं बनाई जिनसे कि इन तीनों का वितरण हो सके, भगवान का नाम, भगवान के ग्रंथ और भगवान का प्रसाद। तो यह समय मुख्य रूप से पुस्तक वितरण के लिए हैं।जैसे हरि नाम का भी समय होता हैं,जब हम हरि नाम का वितरण करते हैं, उसे कहते हैं,वर्ड होली नेम वीक। तब हरि नाम का मैराथन करते हैं और अब यह ग्रंथ वितरण का मेराथन हैं। अगर ऐसा हम करेंगे तो लोगों को नाम देंगे। गीता देंगे।तो हमारा जन्म भी सार्थक हो जाएगा, क्योंकि यह बहुत बड़ा उपकार हैं। इससे हमें कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा और कृष्ण की प्रेममई सेवा सदा के लिए प्राप्त हो जाएगी। हरि हरि। तो ठीक हैं, पुनः मिलेंगे। तब तक व्यस्त रहिए।पुस्तक वितरण में व्यस्त रहिए। एक प्रकार से हमारा यह प्रातः काल में मंदिर ही बन रहा हैं। मैं सोच रहा था यह तो जूम मंदिर हैं। जो एक विराट विश्व रूम हैं, क्योंकि विश्व भर के लोग इस में आते हैं। अलग-अलग वर्ण के भी हैं, वर्ण मतलब अलग-अलग रंगों के भी लोग हैं।अलग-अलग साइज के भी लोग हैं। अलग-अलग लिंगों के भी लोग हैं। अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग भी हैं। तो यह एक छोटा सा जगत ही हैं। यह अंतरराष्ट्रीय जूम मंदिर हैं और आप सब इसी मंदिर के भक्त हो। हरे कृष्णा।

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