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जप चर्चा १० सितम्बर २०२० हरे कृष्ण! तो कल ही हम कह रहे थे या फिर परसों कह रहे थे मुझे अभी याद नहीं, लेकिन कैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कृष्णम वंदे जगत गुरु बने। सारे संसार के गुरु बन कर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने हरे कृष्ण नाम गौर करीले प्रचार हरिराम का प्रचार किए। सारे संसार को हरिनाम दिए, या कम से कम भारतवासियों को तो दिए और भारत के बाहर के लोगों को हरिनाम देने की, या प्रदान करने की जिम्मेदारी उन्होंने कृष्ण कृपामूर्ति श्रील भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद के ऊपर छोड़ दी। उन्हें सेनापति भक्त बनाएं और अपने गुरु के आदेशानुसार वे विदेश गए और वहां पर सभी को हरिनाम से लाभान्वित किए। हरि हरि! और फिर आज भी लाभान्वित किया जा ही रहा है। हरि हरि! अब श्रील प्रभुपाद के प्रतिनिधि हम सब या आप सब को यह यह कार्य करना है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की ओर से, फिर पंचतत्व की ओर से, फिर पूरी गुरुपरंपरा की ओर से कहिए या श्रील प्रभुपाद की ओर से अपने शिक्षा- दीक्षा गुरुओं के और से हमे इस महामंत्र का दान करना है। यह हरिनाम धन का दान करना है! दान करना है कहते हैं तो कुछ धन का विचार आता है, आखिर यह भी एक एक धन है। हमें गोलोक के इस प्रेम धन का वितरण करना है और आने वाले विश्व हरिनाम उत्सव के अंतर्गत जितने भी कार्यक्रम बन चुके है, तो आप भी उस टीम के मेंबर हो सदस्य हो तो हम सब मिलकर इस हरिनाम का हरिराम धन का दान देंगे या वितरित करेंगे। लोगों को अधिक भाग्यवान बनाएंगे। अधिक लोगों को अधिक भाग्यवान बनाएंगे! इसीलिए इस विश्व हरिनाम उत्सव का जो उद्देश्य है lets make the world fortunate! ( श्रीमान एकलव्य प्रभुजी जवाब देते है) तो आइए हम सब मिलकर संसार को भाग्यवान बनाते है! यह भाव, यह थीम या उद्देश्य लेके इस विश्व हरिनाम उत्सव का आयोजन हो रहा है। तो अधिकाधिक लोगों को भाग्यवान बनाना है। हरि हरि! वैसे तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु धरातल पर थे, नवदीप में नित्यलीला! नित्यलीला तो नहीं नवदीप में नित्यलीला तो संपन्न होती ही रहती है, मुझे प्रगटलीला कहना था। तो प्रगटलीला जब प्रगट कर रहे थे तो उस प्रगटलीला में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन किया। हम चैतन्य महाप्रभु के ऋणी है। हम भगवान के ऋणी है! जैसे हम कहते रहते है कि, हम हमारे पूर्व आचार्यों के श्रील प्रभुपाद के ऋणी है तो इसी ऋण से मुक्त होने के लिए श्रील प्रभुपाद ने कहा था कि, you do as I did वैसा ही करो जैसा मैने किया है! तो ऐसा सोच भी सकते है कि, भगवान ने या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु या गौर भगवान ने जो हमारे ऊपर उपकार किया है, उस उपकार से या उस ऋण से मुक्त होने के लिए क्या हम भी ऐसा कर सकते है? जेसे प्रभुपाद ने कहा तो वैसे ही करो! प्रयास करो कि कृष्णभावना का प्रचार करे। हरीनाम का दान दो अधिकाधिक लोगोंको! जैसे मैंने किया, मैंने दिया! as I did you do तो हम यह लागू कर सकते है भगवान को भी या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को भी! तो चैतन्य महाप्रभु कहेंगे you do as I did "आप लोग वैसे ही कार्य करें जैसे मैंने किया!" तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का कार्य, जिसको हम कार्य नहीं कहते है उसको हम लीला कहते है। लीला! भगवान कार्य नहीं करते, या करते भी है तो हम उसको लीला कहते है। स्वेच्छा से बड़े आनंदपूर्वक जब भगवान कार्य करते है तो वह कार्य लीला होती है। तो you as I did ! वैसा ही करो जैसा मैने किया ! ऐसा हम कृष्ण के संबंध में नहीं कर सकते! आप वैसे करें जैसे मैंने किया जैसे कि, मैने गोवर्धन पर्वत उठाया तो आप उठाओ! तो हम नहीं कर सकते या फिर मैंने रासलीला खेली तो चलो वेसा ही करो जैसे मैने किया ! you do as I did ! आप भी खेलो रासलीला! रासक्रीडा करो! तो हम वह नहीं कर सकते। तो श्रीकृष्ण की लीला का तो हम बस आराम से बैठकर श्रवण कर सकते है, सुन सकते है, उसका चिंतन कर सकते है लेकिन वैसा हम नहीं कर सकते! जैसे श्रीकृष्ण ने लीलाएं की। लेकिन यह कर सकते है कि, चलो you did as I say "तो वैसा ही करो जो मैं कहता हूं!" तो श्रीकृष्ण जब ऐसा कहेंगे तो उसको हम फिर कर सकते है। या फिर हमें करना चाहिए। तो वह है भगवतगीता! भगवतगीता में जो मैंने कहा है वैसा करो! you can't do what I did but you did what I said !( मैने जो किया वो आप नहीं कर सकते लेकिन आप वही करो जो मेने कहा है ) इसमें भेद है! किंतु, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो किया वैसा हम कर सकते है! क्योंकि श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु भक्त बन गए, भगवान बन गए! भक्त के रूप और फिर भक्तों के रूप में किए हुए कृत्य, की हुई लीलाएं उसका हम कुछ हद तक अनुसरण कर सकते है।जैसे चैतन्य महाप्रभु ने किया, वैसा हम कर सकते है! तो जो किया वह लीलाएं मुख्य लीलाएं थी जैसे चैतन्य महाप्रभु कीया कीर्तनीय सदा हरी चैतन्य महाप्रभु सदैव कीर्तन करते रहे! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे उदिलो अरुण पूरब-भागे द्विजमणि गोरा अमनि जागे भकत समूह लोइया साथे गेला नगर-ब्राजे। उदीलो अरुण भजन - भक्तिविनोद ठाकुर तो यह हम कर सकते है! श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के उदिलो अरुण नामक भजन या गीत में वह लिखे है। इस समय वैसे उदिलो अरुण अरुण का उदय हो रहा है। इस समय, अभी तो यही समय है जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु क्या करते है? पूर्व दिशा में जो अरुणोदय होता था प्रतिदिन तो भकत समूह लोइया साथे गेला नगर-ब्राजे तो प्रतिदिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तों को साथ में लेकर नगर कीर्तन करते थे। जैसे प्रभातफेरी कहते है। या कई स्थानों पर कई नगरों में, ग्रामों में प्रातःकाल में फेरी या भ्रमण होता है, कीर्तन के साथ! हम दक्षिण भारत में जब गए थे पदयात्रा के समय तो हमने देखा था, कई गांव में वही मंत्र हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस महामंत्र का कीर्तन करते हुए हमने ग्रामवासियों को या लोगों को देखा। तो केवल दक्षिण भारतवासी ही क्यों ? नहीं! पूरे भारतवर्ष में कई नगरों में, कई ग्रामों में प्रतिदिन या समय-समय पर कोई विशेष प्रसंग के उपलक्ष में प्रभात फेरी या नगर कीर्तन होता है। तो यह हम कर सकते है! चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन किया और कीर्तन इसीलिए किया कि, वैराग्य विद्या निज भक्ति योग- शिक्षर्थ मेकः पूरुषः पुराणः। श्री कृष्ण चैतन्य शरीर धारी कृपाम्बुधिर्यस्तमहं प्रपद्ये।। चैतन्य चरितामृत मध्यलीला ६.२५४ अनुवाद:- "मैं उन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की शरण ग्रहण करता हूं, जो हमें वास्तविक ज्ञान, अपनी भक्ति तथा कृष्णभावनामृत के विकास में बाधक वस्तुओं से विरक्ति सिखलाने के लिए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए हैं। वे दिव्य कृपा के सिंन्धू होने के कारण अवतरित हुए हैं। मैं उनके चरण कमलों की शरण ग्रहण करता हूं। तो शिक्षर्थ मेकः पूरुषः पुराणः यह हमे सिखाने के लिए, हमारे समक्ष आदर्श रखने के उद्देश्य से चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन किया कीर्तन करके दिखाया कि, वैराग्य विद्या निज भक्ति योग तो यह जो आदिपुरुष है, गौरांग! सारे संसार को सिखाने के लिए, प्रेरित करने के उद्देश्य से श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन कीया है। केवल भाषण नहीं किए! या केवल ऐसा नहीं कहे कि, "आप सब कीर्तन करो कलयुग आ गया है कीर्तन करने का समय आ पहुंचा है!" तो वे केवल भाषन नहीं किए, वैसे भाषण कम किए कीर्तन अधिक किए! समाज में या लोगों के बीच अधिकतम कीर्तन ही करते थे चैतन्य महाप्रभु और यह कीर्तन करते-करते, स्वयं भगवान चैतन्य महाप्रभु प्रगट होकर अपने मध्य लीला में 6 साल पूरे भारत का भ्रमण करके सन्यास लेते है। आप भी संन्यास ले सकते है।महाप्रभु ने संन्यास लिया हम भी संन्यास ले सकते है, या कम से कम वानप्रस्थाश्रम तो ले सकते है। वन में प्रस्थान कर सकते है। प्रचार हेतु पूरे भारत भर में श्री चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन और नृत्य किया। ताथइ-ताथइ’ बाजल खोल, घन-घन ताहे झाँजेर रोल। प्रेमे ढलऽढलऽ सोनार अंङ्ग चरणे नूपुर बाजे॥2॥ (अरुणोदय-कीर्तन भाग 1) -भक्तिविनोद ठाकुर अनुवाद: -कीर्तन में, “ताथइ-ताथइ” की मधुर ध्वनि से मृदंग एवं उसी की ताल से ताल मिलाकर झाँझर-मंजीरे इत्यादि वाद्य बजने लगे। जिससे प्रेम में अविष्ट होकर श्री गौरांग महाप्रभु का पिघले हुए सोने के रंग जैसा श्रीअंग ढल-ढल करने लगा अर्थात्‌ वे नृत्य करने लगे तथा नृत्य करते हुए उनके श्री चरणों के नूपुर बजने लगे। भक्ति विनोद ठाकुर अपने इस भजन में लिखते हैं। ताथइ-ताथइ’ बाजल खोल, खोल मतलब "मृदंग" महाराष्ट्र में पकवाज चलता है,और कई कई ढोलक चलते है लेकिन गौडीय वैष्णव का जो मुख्य वाद्य है यह है मृदंग ये मिट्टी से बनता है और इसमें मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है। ताल निकलता है मृदुंग से, ताथइ-ताथइ’ बाजल खोल, घन-घन ताहे झाँजेर रोल। झांज करताल बज रहे हैं।सभी भक्त कीर्तन कर रहे हैं। नृत्य कर रहे हैं। * प्रेमे ढलऽढलऽ सोनार अंङ्ग चरणे नूपुर बाजे। ओर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस नगर कीर्तन नदिया में कीर्तन हो रहा है सबके आगे नेतृत्व कर रहे हैं। सबके आगे इस कीर्तन मंडली का नेतृत्व! श्री चैतन्य महाप्रभु सबक प्रेमे ढलऽढलऽ सोनार अंङ्ग चरणे नूपुर बाजे। बाहु तुले भी! चैतन्य महाप्रभु का दर्शन या फिर विग्रह की स्थापना होती है तब चैतन्य महाप्रभु के रूप की चर्चा होती है या कोई चित्र भी खींचता है या कोई कलाकार मूर्ति बनाता है तो हाथ ऊपर (हैंड्स अप) बाहु तुले ही होता हैं। कृष्ण कहते ही हमें मुरलीधर का, राम कहते ही हमें धनुर्धारी राम का,या चैतन्य महाप्रभु कहते ही हमें बाहु तुले का क्योंकि अधिकतर उनकी लीला कीर्तन की लीला रही और कीर्तन में वे नृत्य करते रहते थे प्रेमे ढल ढल डोलते हुए ओर चरणों में नूपुर बांध के उनकी उन नुपूरो से रुनझुन रुनझुन ध्वनि भी निकल रही है। सुन्दर-बाला शचीर-दुलाल हरि हरि! कैसे सुंदरलाला? सुंदरलाला, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु! सुन्दर-बाला शचीर-दुलाल नाचत श्रीहरिकीर्तन में। भाले चन्दन तिलक मनोहर अलका शोभे कपोलन में।।1।। (वैष्णव गीत) हरि कीर्तन में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु नाचते हैं।उस समय उनके मुखमंडल कि शोभा अलका शोभे कपोलन में उनकी अलकाए लंबी थी। संन्यास लेने के पहले का यह दृश्य होगा। महाप्रभु के बाल लंबे है। अरुण वसन नहीं है। सन्यास लिया तो अरुण वसन मतलब सूर्योदय के समय जो सूर्य की किरणें या लालीमा होती है वही वर्ण, वस्त्र संन्यास लेने के उपरांत चैतन्य महाप्रभु पहनते थे लेकिन अब वे गृहस्थ है तो कीर्तन कर रहे है ।आप गृहस्थ है तो कीर्तन कर सकते हो यह भी दर्शा रहे है महाप्रभु। अधिकतर कीर्तन, नृत्य भक्त करते रहते है लेकिन कुछ भक्त वैसे प्रचार भी कर रहे है। लेकिन अगर कीर्तन हो रहा है तो कीर्तन सुनके या मृदंग को सुनते हुए सुनते हुए, धिक तान धिक तान धि.. गे तान! क्या बोल रहा है मृदंग? मृदंग के धीक तान धीक धीगे तान क्या कहता है ? क्या कहता है मृदंग? कथयति कथयति मृदंग: मृदंग कहता हैं। क्या कहता हैं?धिक धिक धिक धिक्कार है! धिक्कार असो! मराठी में कहते हैं। धिक्कार है आप लोगों का! वे आप लोग कीर्तन यहां हो रहा है और आप वहां क्या कर रहे हो? वहां क्यों मर रहे हो? धिक्कार है जो आप कीर्तन और नृत्य में सम्मिलित नहीं हो रहे हो! "कथयति मृदंग:" मृदंग भी यही भाषा बोलता है मृदंग भी प्रचार करता है चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मंडल नदिया में नवद्वीप में कीर्तन करते हुए आगे बढ़ रहा है। कुछ भक्त प्रचार भी कर रहे है। उन लोगों को जो अभी-अभी भागे दौड़े आए है, कीर्तन मंडल के पास या अभी अभी जगे है जब उन्होंने जीव जागो सुना जीव जागो, जीव जागो, गोराचाँद बोले। कत निद्रा जाओ माया-पिशाचीर कोले।। (अरुणोदय-कीर्तन भाग 2) अनुवाद:-श्रीगौर सुन्दर कह रहे हैं- अरे जीव! जाग! सुप्त आत्माओ! जाग जाओ! कितनी देर तक मायारुपी पिशाची की गोद में सोओगे? प्रातः काल का समय है। कई लोग सोए भी थे जब कीर्तन सुना मृदंग सुना तो कई लोग पास आए हैं उनका प्रचार किया जा रहा है। मुकुन्द माधव यादव हरि, बलेन बल रे वदन भरि। मिछे निद-वशे गेल रे राति, दिवस शरीर-साजे॥3॥ (अरुणोदय - कीर्तन (भाग एक) अनुवाद:-चैतन्य महाप्रभु ने लोगों को पुकार कर कहा, “अरे भाइयों! आप लोगों ने रात तो सोते-सोते एवं दिन को शरीर के श्रृंगार में वयर्थ ही वयतीत कर दिया, परन्तु भगवान का भजन नहीं किया। अतः मुकुन्द, माधव, यादव, हरि इत्यादि भगवन्नामों का उच्च स्वर से कीर्तन करो। ” अरे लोगों बोलो! मुकुंद बोलो! माधव बोलो! मुकुंद माधव यादव बोलो! गौर हरी बोलो! गौर हरी! गौर हरी!गौर हरि! ऐसा भी प्रचार भी कर रहे है कुछ भक्तवृंद। चैतन्य महाप्रभु ने सब करके दिखाया संसार समक्ष आदर्श रखा। श्रील प्रभुपाद जब अंतरराष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना किए तब कीर्तन हो रहा था। प्रारंभिक दिनों में वैसे श्रील प्रभुपाद यह नगर संकीर्तन यही माध्यम था प्रचार का। उस समय ग्रंथ(बुक्स)वगैरह नहीं थे प्रभुपाद के। ग्रंथ बाद में आए या बुक्स डिस्ट्रीब्यूशन (ग्रंथों का वितरण) बाद में शुरू हुआ। शुरुआत में श्रील प्रभुपाद अपने शिष्यों को हर केंद्र में जितने भी केंद्र थे। शुरू के समय में 20 थे फिर 50फिर 80 हुए 100 से अधिक केंद्र या मंदिर की स्थापना किए। श्रील प्रभुपाद अपने शिष्यों को पूरे दिन भर जाओ कीर्तन करो! तो कीर्तन और करताल लेकर सारे भक्त नगर भर में भ्रमण करते हुए कीर्तन और नृत्य किया करते थे और इस प्रकार धीरे-धीरे जहां-जहां प्रभुपाद गए या शिष्य, भक्त बने मंदिर बने वहां मंदिर की स्थापना हुई तो वहां के भक्त दिनभर इस सेवा में नगर कीर्तन करो! नगर कीर्तन करो! तो इतना कीर्तन हो रहा था इतना कीर्तन हो रहा था नृत्य भी हो रहा था कि लोग जहां-तहां हम भक्तों को इस्कॉन के भक्तों को कीर्तन करते देखते। कौन सा कीर्तन? हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। दुनिया वाले जो हमको देखते थे नगर कीर्तन करते हुए तो यह कहते थे यह हरे कृष्ण लोग! हरे कृष्ण पिपल है न्यूयॉर्क में बोस्टन में है। मेलबोर्न ऑस्ट्रेलिया में हैं। डर्बन साउथ अफ्रीका में है।यहां है वहां है लंडन, इंग्लैंड में है। यहाँ फिर दिल्ली, वृंदावन में भारत में है। जहां तहां सर्वत्र कीर्तन और नृत्य होने लगा उसी के साथ हम लोगों को इस्कोन भक्तोंको संसार के लोग हरे कृष्ण लोग कहने लगे इस प्रकार यह श्रील प्रभुपाद का स्थापित यह हरे कृष्ण आंदोलन धीरे-धीरे यह कीर्तन को फैलाते गया। यह फैला रहा है! आप सभी को प्रभुपाद एक समय एक भागवत कथा के समय इस हरि नाम के संबंध में श्रील प्रभुपाद के उद्गार शुरुआत के दिनों में कैसा कीर्तन प्रारंभ हुआ और टॉन्पकिंस स्क्वेयर पार्क में अच्युतानंद ब्रह्मानंद स्वामी वे पहले थे जिन्होंने सर्वप्रथम कैसे कीर्तन किया। वह कुछ मिनिटोंका वीडियो है, वह वीडियो पर्दे पर दिखाएंगे। हमारा जो विश्व हरिनाम महोत्सव का प्रमोशनल वीडियो है। मटेरियल है। उसके अंतर्गत प्रभुपाद जी का वीडियो का भी समावेश है।यह सब मटेरियल को आपने प्राप्त करना चाहिए ताकि आप विश्व हरिनाम सप्ताह का प्रचार कर सकते हो। कई सारे वीडियो हमने बनाएं उसमें से एक वीडियो श्रील प्रभुपाद का वीडियो हैं। उसे आप देखिए और सुनिए। हरे कृष्ण!

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