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जप चर्चा 11 सितंबर 2020 पंढरपुर धाम जय श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। 657 स्थानों से जप हो रहा है धन्यवाद आपके धीरज के लिए। हम माया में नहीं थे। हम व्यस्त थे। विश्व हरि नाम महोत्सव की तैयारी में थे। आज प्रातकाल ही इस्कॉन अमेरिका के नेताओं के साथ हमारी मीटिंग थी। हरि हरि। और यह प्रात काल का समय ही उनका सायंकाल होता है। जब हम उनसे मिले वहां पर संख्या अच्छी थी। वहां पर 60. शहरों से अमेरिका के 60 शहरों से इस्कॉन लीडर्स के साथ कॉन्फ्रेंस हुई। प्रारंभ में ही हमने शुभप्रभात कहां फिर लगा वहां पर शुभ संध्या थी। यहां पर मंगल आरती के तुरंत बाद 5:15 बजे हमने कॉन्फ्रेंस की शुरुआत की, वहा पर संध्या आरती समाप्त हो रही थी। हरि हरि तो इस्कॉन का साम्राज्य सर्वत्र फैला हुआ है। जैसे इंग्लिश में श्रील प्रभुपाद कहे या इंग्लिश में अंग्रेज़ कहा करते थे, "उनके साम्राज्य में सूर्यास्त कभी नहीं होता जहां भी सूर्य का उदय हुआ या होता रहा वहां का साम्राज्य था उनका"। साम्राज्य सर्वत्र फैला हुआ था तो वह गर्व से कहते थे। हमारे साम्राज्य में सूर्य का अस्त कभी नहीं होता है। लेकिन प्रभुपाद ऐसा भी कहे थे, "हां हां आपके साम्राज्य में सूर्य का कभी अस्त नहीं होता है परंतु सूर्य का उदय कभी इंग्लंड में नहीं होता है "। सूर्यास्त कभी ब्रिटिश साम्राज्य में नहीं होता है। सूर्य का उदय कभी इंग्लंड में होता ही नहीं या हमेशा आसमान बादलों से छाया होता है। यह ठंडा मुल्क है। सूर्य का कभी दर्शन हुआ तो बहुत बड़ा उत्सव मनाते हैं। यहां बहुत ही दुर्लभ बात है। तो कहा पर है अभी वो ब्रिटिश एंपायर? ब्रिटिशर्सने क्रांति की और साम्राज्य फैलाया फिर, फ्रेंच आये फ्रेंच क्रांति हुुई, फिर कम्युनिस्ट को फैलाया। कहां गई वो फ्रेंच क्रांति और सारे क्रांतियां रशियन क्रांति यह क्रांति वह क्रांति? प्रभुपाद का तो यह भी कहां करते थे "revolution is no solution" क्रांति के बाद क्रांति करते ही रहते हैंं। लोग या देश वह निराकरण नहीं होता क्रांति जो है उस देश के लोग या संसार लाभान्वित नहीं होते। वहां और कुछ सोचते हैं और कुछ बदलाव और कुछ क्रांतिकारी विचार आते हैं। हरि हरि। लेकिन श्रील प्रभुपाद सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद की जय! उन्होंने भी क्रांति की। श्रील प्रभुपाद क्रांतिकारी श्रील प्रभुपाद क्रांतिकारी थे। क्रांति के वीर थे। सबको प्रभुपाद कहां करते थे मैं आया हूं और मैं क्रांति कर रहा हूं भावनामृत की क्रांति। मेरी क्रांति कहां है किस क्षेत्र में है? हमारे भावों में, विचारों में क्रांति। श्रील प्रभुपाद के विचारों ने संसार भर के लोगों के भाव में विचारों में बदलाव लाया है। भाव में क्रांति पहले थे बाजार भाव और अभी कृष्ण भाव या कृष्ण भावना। 180 डिग्री घूम गया हमारा जीवन। प्रभुपाद 1977 के कुंभ मेले में थे तब उन्होंने कहा कि, "सूर्यास्त कभी नहीं होता इस्कॉन के साम्राज्य में कीर्तन कभी नहीं रुकता इस्कॉन के साम्राज्य में या इस लोक में"। इस्कॉन का साम्राज्य अभी सारे विश्वभर में फैला हुआ है। इस्कॉन का साम्राज्य मतलब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का साम्राज्य। यह राज वह राज ब्रिटिश राज यह सब आते जाते रहते हैं। इस कलयुग में राज होगा राज करेंगे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु। चैतन्य राज का यह जमाना है, कलयुग के बीच में ही 10000 वर्षों का जो कालावधी है यह सुवर्ण काल चैतन्य महाप्रभु का काल है। यह हरिनाम का राज होगा। हरिनाम सर्वत्र फेलेगा। हरिनाम हरि ही है तो हरी ही सर्वत्र फेंलेंगे हरि नाम के रूप में सर्वत्र फेलेंगे और हरि की ही स्थापना होंगी। कली-काले धर्म हरि नाम संकीर्तन और गौरांग महाप्रभु राज करेंगे या भगवान का नाम राज करेगा और इसकी ज्योति इसका प्रकाश सर्वत्र फेलेगा। मुझे याद है हम जब पदयात्रा में जा रहे थे, द्वारका से मायापुर। यह 1984 की बात है जब हम पदयात्रा करते हुए तमिलनाडु के कांचीपुरम पहुंचे। और वहां के शंकराचार्य वृद्ध थे और वे स्वयं भी कभी किसी वाहन से प्रवास नहीं किए, कभी किसी गाड़ी में घोड़े में नहीं बैठे हैं। केवल चले पदयात्रा ही किया उन्होंने जीवन भर। हम भी पदयात्री थे तो हमने सोचा चलो हम इन शंकराचार्य से मिलते हैं, जो पदयात्री हैं। उनको मिलने गए उन्होंने बहुत बढ़िया से स्वागत किया। विश्वभर के भक्त हमारे साथ थे 10 20 देशों के भक्त थे। और उस समय हमने मुलाकात के अंत में कहा कि, कृपया हमें आशीर्वाद दीजिए। महाराज हमें आशीर्वाद दीजिए हमारे पदयात्रा पार्टी को आशीर्वाद दीजिए। आपकी शुभेच्छा व्यक्त कीजिए, कुछ कहिए। हम को प्रोत्साहित करने के लिए ताकि हम पदयात्रा करते रहे। हरि नाम का प्रचार करते रहे। पता है उन्होंने क्या कहा? वह तो तमिल में बोल रहे थे और उनके मददगार जो थे उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया और हमको सुना रहे थे। हम सब जो पदयात्री थे "may name of the lord shine all over world" समझे, आप कुछ हरि नाम का प्रकाश सर्वत्र फैले। हरिनाम, श्रील प्रभुपाद ने हरिनाम का प्रचार-प्रसार अमेरिका से प्रारंभ किया। न्यूयॉर्क से प्रारंभ किया। न्यूयॉर्क में पब्लिक कीर्तन जो है वैसे प्रभुपाद अकेले ही कीर्तन किया करते थे। सड़कों में बीच में बैठकर कीर्तन किया करते थे। किंतु कह सकते हैं वहां सामूहिक कीर्तन नहीं था। संकीर्तन नहीं था। कांग्रीकेशनल सामूहिक मतलब कई लोग कई लोग एकत्रित आकर कीर्तन करते हैं। संकीर्तन करते हैं। कुछ लोग जब जुट गए प्रभुपाद के साथ योगदान देना प्रारंभ किया प्रभुपाद के अनुयायी बन रहे थे। तो श्रील प्रभुपाद ने कहा चलो चलते हैं। कहां? तो प्रभुपाद ने कहा हम पार्क में जा रहे हैं टॉमकिंग्स स्क्वेयर नामक एक प्रसिद्ध पार्क है न्यूयॉर्क में। तो प्रभुपाद वहां गए अपने अनुयायियों को लेकर। कुछ गिने-चुने ज्यादा थे नहीं उनके अनुयायि। तो टॉमकिंग्स स्क्वेयर नामांक जो पार्क है। वहां पर कीर्तन प्रारंभ किया। कीर्तन संकीर्तन अमेरिका में प्रारंभ हुआ उस पार्क से। और वह टॉमकिंग्स स्क्वेयर पार्क वही पार्क है जो हम प्रभुपाद का एक प्रसिद्ध चित्र देखते हैं। पेड़ बीच में है और प्रभुपाद वहां पेड़ के पीछे खड़े हैं। और कुछ लोगों को अनुमोदित कर रहे है। इस फोटोग्राफ में जरूर देखा होगा वह है टॉम किंग्स स्क्वेयर पार्क वाला फोटो। तो वहां प्रारंभ किए हरिनाम संकीर्तन श्रील प्रभुपाद। फिर वहां से फैलता गया, फैलता गया, फैलता गया। और श्रील प्रभुपाद बन गए जेटीश परिव्राजकाचार्य जेट में बैठकर श्रील प्रभुपाद यात्रा करने लगे। और 14 बार विश्व का भ्रमण किया। और जहां जहां भी गए वहां वहां उन्होंने हरिनाम की डिलीवरी भी दी। हरिनाम दिया। वहां वहां के लोगों को हरि नाम की भेंट दी और अपने ग्रंथ भी दिए। बेशक भागवतम के ऊपर व्याख्यान भी दिए और भागवतम के ग्रंथ भी, गीता का भी वितरण हो रहा था, प्रसाद वितरण भी हो रहा था, उत्सव भी संपन्न हो रहे थे सर्वत्र। प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रचार और प्रसार भी हो रहा था। यह भेंट संपूर्ण पैकेज आंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ मतलब उसमें फिर मंदिर है, मंदिर के विग्रह आ गए उस पैकेज में। या इस्कॉन में और फिर कीर्तन तो होता ही है अन्यथा कैसा हरे कृष्ण मंदिर जहां कीर्तन नहीं होता।कीर्तन भी है और नाचो गाओ खाओ प्रभु के गुण गाओ सेइ अन्नामृत पाओ राधा कृष्ण गुन गाओ तो प्रसाद वितरण भी होता रहा। रविवार का उत्सव श्रील प्रभुपाद ने प्रारंभ किया। प्रसाद वितरण होता रहा। उत्सव जन्माष्टमी उत्सव, गौर पूर्णिमा उत्सव, यह उत्सव, वह उत्सव, रथ यात्रा उत्सव प्रारंभ हुए। इस तरह से गुरुकुल स्कूल प्रारंभ हुए। ऐसे देशों में जहां पर गौ भक्षक थे वहां पर श्रील प्रभुपाद ने गौ रक्षक तैयार किए थे गौ भक्षक बन गए गौ रक्षक। नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च । जगत् हिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ अनुवाद - "हे प्रभु! आप गायों तथा ब्राह्मणों के हितेषी है और आप समस्त मानव समाज तथा विश्व के हितेषी है।" ऐसी प्रार्थना भी करने लगे। यहा ब्राह्मणों का सत्कार सम्मान होना चाहिए। गाय की सेवा, गाय का रक्षण होना चाहिए। क्योंकि स्वयं भगवान भी ब्राह्मणों का सत्कार सम्मान करते थे, जैसे सुदामा का उन्होंने सत्कार सन्मान किया द्वारीका में। वह गोपाल नंद गोधन रखवाला नंद महाराज के गायों के रखवाले वह कृष्ण। तो इस प्रकार की संस्कृति भी इस प्रकार का जीवन शैली भी दिया आर्ट ऑफ लिविंग योगः कर्मसु कौशलम योग का भक्ति योग का जो जीवन है यह एक कला है, एक विज्ञान है, जीवन की शैली है भक्ति योगी यों की, वैष्णवो की या प्राचीन भारतीयों की। इसका प्रचार और प्रसार सर्वत्र किए श्रील प्रभुपाद। तो यह भारत की भेंट यह कृष्ण भावना भारत की भेंट है। उसके अंतर्गत जैसे हमने कहा हरिनाम है, भागवतम है, कृष्ण प्रसाद है, उत्सव है, प्राचीन संस्कृति है यह भेंट सारे संसार को दिए श्रील प्रभुपाद। हरि हरि। अगर भारत को कोई पहचाना भली-भांति भारत के आत्मा (स्पिरिट ) को मर्म को समझने वाले मर्मज्ञ श्रील प्रभुपाद रहे और भारत की यह सारी भेंटे श्रील प्रभुपाद ने वितरित की। इस प्रकार वैसे श्रील प्रभुपाद भारत के रत्न भारतरत्न थे। उन्होंने भारत के अलग-अलग जो रत्न कहो, भेंट कहो या गिफ्ट कहो इसका वितरण किया सर्वत्र। हरि हरि। मैंने पहले भी कहा वैसे कहते रहता हूं। एक समय प्रभुपाद जब इंग्लैंड पहुंचे थे तो एक पत्रकार परिषद में पत्रकार ने पूछा स्वामी जी आप हमारे देश क्यों आए हो। तो प्रभुपाद ने कहा होगा आप भी तो हमारे देश आए थे, आप पूछ रहे हो कि मैं क्यों आया हूं। आप भी तो आए थे अब मैं भी आ गया बराबरी हो गई। अब आप पूछ ही रहे हो क्यों मैं आ गया तो प्रभुपाद ने आगे जवाब दिया कि ब्रिटिश लोग आए और जो हमारे देश की मूल्यवान वस्तु है सिल्क है या स्पाइसेस है कोहिनूर हीरा है वह सारा आप चोरी करके गए, लूट कर गए। लूट लिया आपने भारत की संपत्ति आप इंग्लैंड ले गए। या जिसको जिसको आपने मूल्यवान समझा आप उसको ले गए। लेकिन ऐसा करते समय आपने हमारी देश की जो असली संपत्ति है उसको तो आप पीछे ही छोड़ दिए। आप उसको पहचाने भी नहीं और आप उसको अपने देश लाए भी नहीं। जिसको आप भूले थे पीछे छोड़े थे उस मूल्यवान वस्तु कि भेंट को मैं लेकर आया हूं। उसका हैंड डिलीवरी देने में आया हूं। तो फिर उन्होंने पूछा ऐसी कौन सी बात है ऐसी कौन सी संपत्ति है आपके देश की जिसको हमारे वॉइस ट्रोइस नहीं पहचाने उसका मूल्य। तो फिर श्रील प्रभुपाद ने कहा जो उन्होंने पहले भी कहा यह कृष्ण भावना मृत या जो हमारे धर्म ग्रंथ गीता, भागवत यह धर्म ग्रंथ वेदवानी यह वह भेंट हैं भारत से। प्राचीन भारतीय भेंट है। भगवान का नाम गोलोकेर प्रेम धन हरिनाम संकीर्तन यह भगवान का नाम बहुत मूल्यवान है, इसको मैं ले आया हूं। हमारे देश की संस्कृति या प्राचीन भारत की संस्कृति। आधुनिक भारत कि जो संस्कृति है वह पाश्चात्य देश की संस्कृति बन गई है। लेकिन प्रभुपाद ने कहा प्राचीन भारत की संस्कृति को मैं ले आया हूं। तो इस प्रकार वह पत्रकार प्रभावित हुए थे उस उत्तर को सुनकर। तो ऐसे भारतरत्न श्रील प्रभुपाद की जय सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद की जय और फिर ऐसे श्रील प्रभुपाद ने क्या किया भारत-भुमिते हइला मनुष्य जन्म यांर। जन्म सार्थक करी कर पर-उपकार।। (च. च. आदि लीला 9.41) अनुवाद - "जिसने भारत भूमि (भारतवर्ष) में जन्म लिया है, उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए।" चैतन्य महाप्रभु ने वैसे कहां भारत में जन्मे हो, हां हां मैं तो भारत में ही जन्मा हूं। मनुष्य रूप में जन्मे हो, हां हां इस वक्त मनुष्य बने हैं। जन्म का सार्थक करना चाहते हो, हां हां जन्म सार्थक तो करना चाहते ही हैं। तो कैसे करें चैतन्य महाप्रभु ने कहा यारे देखा तारे कहो कृष्ण उपदेश या भारत-भुमिते हइला मनुष्य जन्म यांर। जन्म सार्थक करी कर पर उपकार।। परोपकार करो, परोपकार करो, परोपकार करो। तो श्रील प्रभुपाद ने परोपकार किया सारे संसार पर उपकार किए। श्रील प्रभुपाद सारे संसार को कृष्ण भावना दिए, कृष्ण दिए, कृष्ण के नाम को दिए, कृष्ण के वाणी को दिए, कृष्ण के प्रसाद को दिए, कृष्ण के उत्सव को दिए, सब कुछ कृष्ण से संबंधित जो भी है वह सब दिया। सारे संसार के साथ शेयर किया और ऐसा करके श्रील प्रभुपाद ने अपना जीवन सफल तो बनाया ही और साथ ही साथ सभी भारतीयों के समक्ष एक आदर्श रखा हैं श्रील प्रभुपाद नहीं ने। भारतीयों को ऐसा करना चाहिए, ऐसा परोपकार करना चाहिए। तो आप सभी उपस्थित भक्तों, हमको श्रील प्रभुपाद के चरण कमलों का अनुसरण करते हुए उनका आदर्श समक्ष रखते हुए हमें अपने जीवन को निभाना है या कार्यरत रहना है। और अपने जीवन को सफल करना है। तो करी कर परोपकार में हम सभी के लिए अब अवसर हैं यह विश्व हरि नाम उत्सव एक अवसर है। इसके माध्यम से जो योजनाएं बनी है आज के अनुसार इस उत्सव में सम्मिलित होकर इसको संपन्न करें। हरि नाम का प्रचार प्रसार करें प्रभुपाद के वाणी का या प्रभुपाद के लीलामृत का भी प्रचार कर सकते हो। उनका भी वितरण कर सकते हो क्योंकि हम प्रभुपाद की गौरव गाथा भी गाना चाहते हैं। विश्व हरि नाम उत्सव के अंतर्गत हरि नाम की गौरव गाथा तो गाना ही है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। का कीर्तन भी करना है, जप भी करना है, अधिक करना है, ध्यान पूर्वक करना है, और औरों से करवाना है, औरों को भी जोड़ना है, या नए नए लोगों को भी यह हरि नाम की भेंट देनी है। ऐसा यह विश्व हरि नाम उत्सव कि उल्टी गिनती (काउंटडाउन ) चल रही है। पांच दिन और इतने घंटे, इतने सेकंड, ऐसा भी लिखा है हमने। अमेरिकन लीडर्स के साथ जब यह कॉन्फ्रेंस चल रही थी तो एकलव्य प्रभु ने काउंटडाउन बनाया है। जब कॉन्फ्रेंस हो रही थी तो उसमें था पांच दिन इतने घंटे इतने मिनट 30 सेकंड के पूरे होते ही यह उत्सव शुरू होने वाला है। तो सिर्फ पांच दिन बचे हैं आप सभी लोग मूड में आ जाइए। तैयार रहीए। ( जूम पर सभी भक्तों को संबोधित करते हुए महाराज कह रहे हैं) हां क्या आप सब तैयार हो? हरि हरि। ठीक है तो जय्यत तैयारी कीजिये मराठी में कहते हैं जय्यत तैयारी। क्योंकि इस उत्सव को हम धूमधाम से मनाएं। ताकि जो यह हरि नाम हैं उसकी कृपा, उसका प्रकाश, उसकी करुणा सर्वत्र फैले। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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