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जप चर्चा, 15 अक्टूबर 2021, मायापुर धाम. हरि हरि बोल, जय श्रीराम! 760 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। आप शायद अपेक्षा नहीं कर रहे थे कि, मैं 6:30 जप चर्चा शुरू करूंगा। मध्वाचार्य आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय! राम विजयदशमी के उपलक्ष में मुझे भागवतम की कक्षा भी मुझे देनी है। हम जप चर्चा जल्दी शुरू करेंगे और खत्म भी जल्दी करेंगे। हम 7:00 बजे तक खत्म करेंगे। 8:00 बजे मुझे हिंदी भागवतम कक्षा देनी हैं। हरि हरि, आज बहुत बड़ा दिन है। कौन आ रहे हैं, श्रील प्रभुपाद आ रहे हैं, हरि बोल!! वह महोत्सव भी कल से जारी है। आज भी पूरे दिन यह महामहोत्सव संपन्न होगा। उस संबंध में भी 7:00 बजे इष्टदेव प्रवचन रिमाइंडर दे सकते हैं। आज क्या क्या होने वाला है। हरि हरि, मध्वाचार्य का भी आज आविर्भाव तिथि महोत्सव है। राम विजयदशमी के दिन ही मध्वाचार्य प्रकट हुए। उडुपी के पास वैसे उडुपी जानते हो। उडुपी कृष्ण प्रसिद्ध है। उडुपी के कृष्ण कहते हैं और उडुपी के कृष्ण को मध्वाचार्य ने ही प्रसिद्ध किया। हरि हरि, तो वह पवनदेव के अवतार माने जाते हैं। इसलिए बड़े बलवान थे। उनका शारीरिक बल अतुलनीय था। एक जहाज आ रही थी द्वारका की ओर से। जब उडुपी के पास पहुंचे समुद्र में आंधी तूफान के कारण डामाडोल हो रही थी, वह बोट जब दबने कि संभावना हो रही थी तो, वह लोग मदद के लिए पुकार रहे थे। मध्वाचार्य वही थे समुद्र के तट पर। तो उन्होंने जो भी किया, पता नहीं क्या किया उसी के साथ आंधी तूफान रुक गया, ठप हो गई। हरि हरि, और मध्वाचार्य ने मदद की। मध्वाचार्य को विशेष भेंट भी दे दिए। उस बोट के कैप्टन ने भेट दी होगी। एक संदूक देकर कहा यह आपके लिए। उसमें थे कृष्ण बलराम के विग्रह। द्वारका मे उनका लोडिंग हुआ था तो अपने सर पर धोके उनको मध्वाचार्य एक स्थान पर बलराम कि तो दूसरे स्थान पर कृष्ण कि स्थापना की। और तब से बलराम तो है प्रसिद्ध लेकिन कृष्ण अधिक प्रसिद्ध है उडुपी के। उनको उडुपी कृष्ण कहते हैं। मध्वाचार्य संप्रदाय विहीनये मंत्रः ते निष्फल मतः... पद्मपुराण कहते हैं जो भी हम मंत्र और तंत्र भी स्वीकार करते हैं, वह संप्रदाय में होने चाहिए नहीं तो वरना क्या, निष्फलामतः। मध्वाचार्य मध्व संप्रदाय उनके नाम से ही संप्रदाय है। मैं थोड़ा विचार कर रहा था, चारों संप्रदाय के आचार्य दक्षिण भारत में जन्मे, प्रकट हुए और कई सारे अवतार उत्तर भारत में प्रकट हुए। भगवान का प्राकट्य उत्तर भारत में और आचार्य का प्राकट्य दक्षिण भारत में। मध्वाचार्य सारे भारत का भ्रमण किए। परिव्राजकाचार्य संन्यासी थे। शायद कुछ 8 साल के ही थे, उन्होंने संन्यास लिया और भ्रमण करते करते यहां मायापुर में भी आए। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने उनको दर्शन दिया। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने वैसे हर संप्रदाय से उनके दो-दो विशेष गुणों का स्वीकार किया। अपने संप्रदाय को उन्होंने गौड़िया वैष्णव संप्रदाय को और पुष्ट बना दिया। मध्वाचार्य संप्रदाय से उन्होंने एक तो अर्चना पद्धति या जिस भाव से होनी चाहिए उसे स्वीकार किया। शुरुआत माधवाचार्य ही पूजा अर्चना श्रीकृष्ण की किया करते थे। उसको श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु अपनाएं। माया मत का खंडनमंडन मंडन जो किया मध्वाचार्य ने उसको भी श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने स्वीकार किया।। इसलिए श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु बारंबार कहां करते थे, मायावादी कृष्ण अपराधी और क्या कहते थे मायावाद भाष्य सुनीले हइले सर्वनाश। शंकराचार्य इन चारों संप्रदाय के आचार्य के पहले प्रकट हुए और उन्होंने ऐसा मायावाद असतशास्त्र मायावाद वैसे असत शास्त्र है। शास्त्रों में ही उल्लेख है की मायावाद कैसा शास्त्र है, असत शास्त्र। उसका वह कलो ब्राह्मणरूपेन उन्होंने स्वयं ही कहा, शंकराचार्य स्वयं ही पार्वती से कहें, मं। स्वयं प्रकट होकर कलयुग में मायावाद का प्रचार करने वाला हूं। और मायावाद कैसा है, असतशास्त्र। उन्होंने किया तो बड़ा जबरदस्त प्रचार। उसको रोकथाम लगाने हेतु यह देश भी एक रहा चार संप्रदाय के आचार्य प्रकट हुए दक्षिण भारत में और इस संबंध में मध्वाचार्य का योगदान सर्वोपरि रहा। मायावाद का खंडन जैसे मध्वाचार्य ने किया और किसी ने नहीं किया। एकदम अतुलनीय मध्वाचार्य का जब हम फोटोग्राफ वगैरा दर्शन करते हैं माधवाचार्य कैसे दिखाते हैं, उंगली दिखाते हैं। प्रभुपाद एक उंगली दिखा कर हमेशा कहते थे मामेकम शरणं व्रज। मध्वाचार्य दो उंगलियां दिखाते हैं, मतलब द्वंद्व। मतलब भगवान एक है और हम दूसरे हैं। या फिर हम भी हैं और भगवान भी हैं। दो है और दोनों शाश्वत है। यह सिद्ध किया मध्वाचार्य की जय! तो इनका एक कॉन्ट्रिब्यूशन रहा। मध्वाचार्य भ्रमण करते करते बद्रिकाश्रम पहुंचे। बद्रिकाश्रम में श्रील व्यासदेव का उन्होंने दर्शन किया। व्यासदेव ने उन्हें दर्शन दिया और व्यास देव के आदेशानुसार या दिव्य ज्ञान हृदये प्रकाशित व्यासदेव दिव्य ज्ञान प्रकाशित किए। मध्वाचार्य के हृदय प्रांगण में और मध्वाचार्य वेदांत सूत्र पर भाष्य लिखें। जिसमें उन्होंने सिद्ध किया कि हम एक नहीं है, दो है। भगवान भी हैं और जीव भी हैं। हरि हरि हम भी वैसे ब्रह्मा मध्व गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के सदस्य हैं। हम अनुयायी हैं मध्वाचार्य के। वैसे कल भी चारों संप्रदाय के जो वर्तमान आचार्य है, उन सभी ने श्रील प्रभुपाद के गुण गाए। यह कार्यक्रम 1 घंटे के लिए होना था लेकिन, गौरांग प्रभु जी मुझे बता रहे थे कि, प्रभुपाद के गुणगाथा यहां मध्वचार्य के वर्तमान आचार्य, रामानुजाचार्य, विष्णुस्वामी और निंबार्काचार्य उनके वर्तमान आचार्य सारे प्रभुपाद के गुण गाते गए, गाते गए, तो 1 घंटे के बजाय 3 घंटे तक बोलते रहे। प्रभुपाद इज कमिंग, प्रभुपाद आ रहे हैं!! उत्सव के अंतर्गत वैसे यहां भी प्रभुपाद के शिष्य प्रभुपाद की गौरव गाथा गा रहे थे, तो साथ ही साथ ऑनलाइन यह चारों संप्रदाय के आचार्य इनके साथ मध्वाचार्य संप्रदाय के वर्तमान आचार्य उडुपी के वह प्रभुपाद का एबे यश घुषुक त्रिभुवण तो इस प्रकार श्रील प्रभुपाद की गाथा यश सारे त्रिभुवन में फैल रहा है। सभी संप्रदाय के आचार्य भी प्रभुपाद के गुण गा रहे हैं। हरि हरि, तो अभी थोड़ा सा ही समय है। फिर आज है विजयदशमी। राम विजयादशमी जय श्रीराम हो गया काम। आज के दिन श्रीराम कहा थे, लंका में थे। यह बहुत समय पहले की बात है। कम से कम 10 लाख वर्ष पूर्व की बात है। आज के दिन वह दिन दशमी का था। श्रीराम अपनी सेना के साथ वानर सेना के साथ अयोध्या पहुंचे। यह युद्धकांड राम की लीला या सात कांडों में लिखी गई है। लंका पहुंचने के पहले प्रकट होना चाहिए उनको। प्रकट हुए अयोध्या में अयोध्यावासी राम, अयोध्या के वासी बन गए। तब बालकांड या फिर अयोध्या कांड। फिर हुआ अरण्यकांड। अरण्य में प्रवेश किए वनवासी हुए राम। और फिर किष्किंधा कांड इस अरण्य में दंडकारण्य में वह राक्षस रावण ने सीता का अपहरण किया। और फिर राम और साथ में लक्ष्मण भी सहायता कर रहे थे। खोज रहे हैं, सीता को खोज रहे हैं। वृंदावन में तो राधा और गोपियां कृष्ण को खोज रही थी। रामलीला में उल्टा हो रहा है। यहां सीता को खोज रहे हैं। श्रीराम खोजते खोजते पहुंच गए किष्किंधा पहुंच गए। किष्किंधा नामक एक स्थान है। राजधानी भी रही और फिर किष्किंधा से सीता का खोज प्रारंभ हुआ। और हनुमान भी गए। किष्किंधा कांड और फिर सुंदरकांड। सुंदरकांड में हनुमान का सीता को खोजने के प्रयास और हनुमान पहुंच ही गए और सीता का पता लगवा कर लौट आए। हरि हरि, किष्किंधा लौट आए। राम प्रतीक्षा ही कर रहे थे। मेरे पास आपके लिए शुभ समाचार है। श्रीराम आपके लिए खुशखबरी लाया हूं। बताओ तो सही क्या शुभ समाचार है। क्या खबर है। हमने इस सीता का पता लगाया है। मैं जानता हूं कहां है सीता। यह समाचार जैसे ही राम ने सुना तो राम ने हनुमान को गले लगाया। हरि हरि, वैसे राम कह रहे थे कि आपको पता है हनुमान अगर मैं इस समय अयोध्या में होता तो, कितने बड़े-बड़े पुरस्कार या उपहार तुमको दे देता। लेकिन मैं तो वनवासी हूं। मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं खाली जेब हूं। जेब ही नहीं है। कैसे वस्त्र पहना हूं। लेकिन तुमको एतराज नहीं है तो मेरे आलिंगन को स्वीकार कर सकते हो। ऐसा कहकर राम आगे बढ़े और हनुमान को गले लगाए। हरि हरि, और फिर जय श्रीराम! जय श्रीराम! जय श्रीराम! कहते ही वानर सेना और भालू सेना लंका की ओर आगे बढ़ी। रास्ते में उनको पुल भी बनाना पड़ा। इतने सारे पत्थर हनुमान एंड कंपनी कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम। हनुमान एंड कंपनी बड़े-बड़े पत्थर या पहाड़ ही फेक रहे थे। नल और नील भी पत्थर पानी को स्पर्श करने से पहले ही स्पर्श करने से पहले ही उस पर नाम लिखते राम। उसी के साथ पत्थर डूबते नहीं पत्थर क्या करते, तैर रहे थे। राम के नाम का संबंध स्थापित हुआ। उन पत्थरों से अगर निर्जीव पत्थर कर सकते हैं, राम राम राम!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। फिर हमको विश्वास होना चाहिए कि पत्थर अगर कह सकते हैं, वह तो निर्जीव है। हम तो फिर सजीव हैं। राम का नाम हरे कृष्ण नाम लेंगे तो हमारा भी उद्धार निश्चित है। अवश्य रक्षिबे कृष्णाश या अवश्य रक्षिबे राम और फिर ऐसे सेना पहुंची हैं। सुंदर कांड के बाद अभी युद्ध कांड होगा। युद्ध बहुत समय के लिए। कुरुक्षेत्र का युद्ध तो अट्ठारह दिन का था लेकिन यह युद्ध तो बहुत महीनों तक चलता रहा लंका में। और फिर आज के दिन राम और उसके पहले यह कुंभकर्ण नहीं रहे। और फिर आज बारि थी रावण की। परित्राणाय साधुनाम, श्रीराम ने आज के दिन उस दुष्ट का संघार किया। कुत्ते कहीं के ऐसा भी कहां है श्रीराम ने। कुत्ता क्या करता है, जब घर का मालिक यह मालकिन घर में नहीं है। किचन में नहीं है तो घुस कर चोरी करता है। और ले जाता है। ऐसा ही राम कह रहे थे। मैं जब वहां नहीं था, सीता के साथ जैसे कुत्ते चोरी करते हैं ले जाते हैं वैसे तुमने भी किया। तो आज तुम को सबक सिखाता। ऐसा कहकर उन्होंने अपनी प्रत्यंचा धनुष को चढ़ाई। और राम के बाण कैसे होते हैं, वह प्रसिद्ध है। एक बार उनका बाण कभी खाली नहीं जाता। वहां पहुंच गया सीधा भेदन हुआ वक्षस्थल में भूसा। वहां बाण और उसी के साथ रावण के 10 मुखों से रक्त बहने लगा। रक्त की उल्टी करने लगा और विमान से धड़ाम करके गिर गया। हाय हाय हाय हाय कह रहा था। हरि हरि उसी के साथ जय श्री राम जय श्रीराम हो गया विजय विजय प्राप्त कर लिए राम ने और सीता को जीत लिया। सीता को प्राप्त किया और रावण के वध के उपरांत राम सीधे अशोक वाटिका अशोक मान गए। जहां एक साधारण कुटिया में शीशम के पेड़ के नीचे सीता महारानी बैठी थी निराश और उदास होकर सामने जब श्रीराम को देखा तो उनके जान में जान आ गयी। और इसी के साथ श्रीराम श्रीराम सीता को स्वीकार किए। गले लगाए फिर अग्नि परीक्षा भी होती है। वह भी पास हो गई सीता। वहां का कारोबार विभीषण को दे दिये। अगले एक कल्प तक तुम यहां के राजा बनके रहोगे। रावण का अंतिम संस्कार करो ऐसा आदेश भी दिया। और फिर पुष्पक विमान में आरूढ होकर श्रीराम अयोध्या को प्रस्थान किए। वहां तक पहुंचेंगे तो दिवाली का उत्सव मनाया जाएगा। और आज के दिन कौन सा उत्सव है, दशहरा 10 सिर थे और दिमाग नहीं था। 10 सिर हर लिए इसलिए दशहरा। उत्तर भारत में आज के दिन रावण का अंतिम संस्कार भी हम लोग करते रहते हैं। रावण दहन रावण के बड़े बड़े पुतले बनाते हैं और उसको लगाते हैं आग। ऐसे कई लोग हमने देखा कई लोग उन स्थानों पर अपना अपना धनुष बाण भी लेकर आते हैं। वह लोग भी सहायता कर रहे हैं राम कि। हम भी मारते हैं। हमको भी श्रेय मिल जाएगा। इस लीला के श्रवण से ही आज के दिन जो रावण का वध हुआ, यह लीला श्रवण से रावण में जो कौन थे अवगुण थे दुर्गुण थे, वैसे ही दुर्गुण अवगुण हम में हैं। इसलिए लिला श्रवण मात्र से हम उन दुर्गुणों से मुक्त होते हैं। हरि हरि रावण को मारने के लिए जो लोग आते हैं। धनुष बाण लेकर पत्थर फेंकते हैं बदमाश कहीं का। आज के दिन राम ने वैष्णव कैलेंडर या घड़ी के और देखा होगा 14 साल पूरे होने जा रहे थे। अपने वचन के पक्के थे श्रीराम। वहां चित्रकूट में राम भरत मिलन हुआ। और फिर भरत को तो केवल पादुका ही मिली राम नहीं मिले। तो उस समय वादा किया था या वैसे भरत भी कहे थे, ठीक है मैं क्या कर सकता हूं, अभी आप नहीं आ रहे हो मुझे केवल पादुका ही दे रहे हो किंतु, जब 14 वर्ष का कालावधी पूर्ण होगा उस समय आपको सही समय पर या फिर पहले पहुंचना होगा। आप देरी करोगे तो उससे अच्छा नहीं होगा। आना ही होगा। आप आओगे तो भी तो मुझे जीवित नहीं देखोगे। यह सब बातें राम को याद थी। उनको समय पर पहुंचना था। तो आज के दिन फिर फटाफट, नहीं तो वैसे चल कर आए थे। पदयात्रा करते हुए आए थे पदयात्रा करते हुए ही लौटे। लेकिन समय नहीं था। इसीलिए राम पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या धाम की जय! अयोध्या में आज के दिन दशहरे का उत्सव हम मना रहे हैं। और कार्तिक में कार्तिक के मध्य में दिवाली का दिन या उत्सव हम मनाएंगे। वैसे हम हिंदू या सनातनी जो भक्त हैं। हमारे यही दो बड़े उत्सव है, दशहरा और दिवाली. क्रिसमस डे वैसे से पाश्चात्य देशों में होता है। हमारा दशहरा दिवाली तक सबसे बड़े उत्सव है। और यह दोनों हम राम के साथ संबंध में हैं। जय श्रीराम ! जैसे राम विजयी हुए तो वैसे आप सब को भी विजय प्राप्त हो। आप सभी विजयी हो। यशस्वी हो। ऐसी भी मनोकामना हम करते हैं। प्रार्थना हम करते हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!!

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