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जप चर्चा
मायापुर धाम से
14 अक्टूबर 2021
गौरंग ! 888 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । मायापुर धाम की जय ! मायापुर धाम भी एक लोकेशन बन गया । या मैं ही पहुंच गया मायापुर । मैं अभी मायापुर में स्थित हूं । हरि हरि !!
जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद ।
श्री अद्वैत चंद्र जय गौर भक्त वृंद ॥
आप सभी जप करने वाले जप कर्ता भक्तों का स्वागत है । त्रिलोकीनाथ और नंदीमुखी माताजी का विशेष स्वागत है । मायापुर पहुंचे हैं । केशव प्रभु पुणे से । हरि हरि !! जप करने वालों को स्वागत है और जो जप नहीं करते उनका क्या ? कोई करेगा स्वागत ? इसी भाग्य का ही, हमारा भाग्य का ही उदित हुआ । हम मायापुर पहुंच गए । गौरंग ! तो भ्रमण करते करते कल हम योगपीठ पहुंच गए । योगपीठ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का जन्म स्थान है । जैसे कृष्ण जन्म मथुरा में तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अजन्मा होते हुए भी वे जन्म लेते हैं जन्म लिया उन्होंने मायापुर में । एक समय उसको मियांपुर कहते थे । मुसलमानों की खूब आबादी यहां हुआ करती थी 500 वर्ष पूर्व । चांद काजी का जमाना था । चांद काजी की सरकार थी । नवाब हुसैन सहा बंगाल के सम्राट थे या राजा थे तो हे तो मायापुर । मायापुर ! हम भी जब 1976 में आ रहे थे पदयात्रा करते हुए । प्रभुपाद ने भेजा हमको । वृंदावन से मायापुर जाओ । विमान से नहीं नोट एयर यात्रा, पदयात्रा तो रास्ते में हम लोग पूछते । कहां जा रहे हो ? कहां जा रहे हो ? मायापुर जा रहे हैं । साधु और मायापुर जा रहे हैं । माया का पूर । आपको तो कृष्णपुर जाना चाहिए । मायापुर क्यों जा रहे हो ? तो यहां की माया भिन्न है यहां की योगमाया है । जहां महामाया नहीं है तो दर्शन करने हम भी पहुंच गए कल मायापुर में योगपीठ ।
जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन गौर हरि !
जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन ! जय सचिनंदन गौर हरी !
सचि माता प्राण धन गौर हरी ! नदिया बिहारी गौर हरी !
गौर गौर गौर हरी ! गौर गौर गौर हरि !
तो वहां भी कुछ ऐसा गा रहे थे थोड़े समय के लिए और वह भी बात याद आ गई भक्ति विनोद ठाकुर कहे थे एक समय आएगा संसार भर के देश विदेश के भक्त एकत्रित होकर एकत्र होंगे मायापुर में और क्या गाएंगे ? जय सचिनंदन गौर हरि ! तो भक्ति विनोद ठाकुर की भविष्यवाणी भी सच हो रही है कल भी हमने अनुभव किया चाइना से भक्त हमारे साथ थे । बर्मा के भक्त । कहां-कहां से भक्त ! संसार भर के भक्त योगपीठ पहुंचे और गा रहे थे, जय सचिनंदन गौर हरि ! वो नीम का पेड आज भी है, साक्षी है । नीम के वृक्ष ने दर्शन किया होगा सर्वप्रथम दर्शन करने वाला तो वह नीम का पेड़ ही होगा तो नीम के पेड़ के नीचे कुटिया है आज भी है जगन्नाथ मिश्रा की । वृंदावन में तो नंद भवन है महल जैसा है । जैसे 84 खंबे हैं । किंतु जगन्नाथ मिश्रा तो ब्राह्मण थे । नंद बाबा के पास तो ...
कृषिवाणिज्यगोरक्षा कुसीदं तूर्यमुच्यते ।
वार्ता चतुर्विधा तत्र वयं गोवृत्तयोऽनिशम् ॥
( श्रीमद् भागवतम् 10.24.21 )
अनुवाद:- वैश्य के वृत्तिपरक कार्य चार प्रकार के माने गये हैं - कृषि , व्यापार , गोरक्षा तथा धन का लेन - देन । हम इनमें से केवल गोरक्षा में ही सदैव लगे रहे हैं ।
9,00,000 गाय के मालिक और राजा थे तो जगन्नाथ मिश्रा गरीब ब्राह्मण या ब्राह्मण तो वैराग्य वान होते हैं । तपस्या है उनका धन होता है । वैसे ही कुटिया आज भी है नीम का पेड़ तो है ही । नीम के पेड़ के नीचे जन्म हुआ इसीलिए बालक का नाम निमाई । निमाई ! निमाई ! यह सचि माता का प्यारा नाम है तो जब निमाई निमाई कहते । हरि हरि !! वैसे सीता ठाकुरानी यह नाम रखा निमाई । लेकिन अधिकारी नाम भी होने वाला है तो कल जब हम वहां दर्शन कर रहे थे निमाई के चरण चिन्हों का दर्शन हुआ और चरण चिन्ह के साथ में एक बच्चन भी लिखा था जिसको रमण कृष्ण प्रभु जब बांग्ला जानते हैं उन्होंने पढ़के हमको सुनाया भी । याद है ? जो यंहा हमारे पास है वे जानते हैं फिर मैं सोच रहा था की चैतन्य चरितामृत में कहां है यह श्लोक ? तो मिल ही गया तो आदिलीला चैतन्य चरितामृत 14 परिच्छेद में प्रारंभ में ही इस श्लोक का उल्लेख है और चरण चिन्हों में क्या देखा उन्होंने ? लघु पद चिन्ह । छोटे छोटे आकार के एक तो चरण में चिन्ह और चरणों में फिर चरण चिन्हांकित थे । ध्वजा थी वज्र था शंख था चक्र था मीन मछली थी और भी चिन्हित है यहां सभी नहीं लिखे हैं । कृष्ण के चरणों में चिन्ह होते हैं चरणों में तो उन चिन्हों से चिन्ह अंकित हुआ था उनका घर का फर्श । मार्बल का नहीं होगा नहीं तो चिन्ह नहीं दिखते । गोबर से लेपन किया होगा जहां-जहां निमाई चला तो चिन्ह देखें और चरण चिन्हों में चिन्ह देखें । ध्वजा, मीन इत्यादि । यह दोनों को और आश्चर्य हुआ ।
देखिया दोंहार चित्ते जन्मिल विस्मय ।
कार पद - चिह्न घरे , ना पाय निश्चय ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.8 )
अनुवाद:- इन सारी छाप को देखकर न तो उनके पिता न ही माता समझ पाये कि पाँवों की ये छाप किसकी हैं । इस प्रकार विस्मित होकर वे यह निश्चय नहीं कर पाये कि उनके घर में ये चिह्न कैसे आये ।
हमारे घर में यह किसके चिन्ह है ? कुछ उनके समझ में नहीं आ रहा था और निष्कर्ष निकाल नहीं पा रहे थे ।
मिश्र कहे , बालगोपाल आछे शिला - सङ्गे ।
तेंहो मूर्ति हञा घरे खेले , जानि , रङ्गे ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.9 )
अनुवाद:- जगन्नाथ मिश्र ने कहा , " निश्चय ही बाल कृष्ण शालग्राम शिला के साथ हैं । वे अपना बालरूप धारण करके कमरे के भीतर खेल रहे हैं । "
तो जगन्नाथ मिश्रा सोचे हमारे घर के जो बाल गोपाल जो विग्रह है वहीं चले हैं । यह उनका चरण चिन्ह है । निमाई का हो सकता भी नहीं, निमाई तो हमारा बालक है । वे भगवान वगैरह है नहीं तो यह हमारे विग्रह के, हमारे विग्रह हमसे प्रसन्न हुए और वे चले हैं उनके चरण चिन्ह है ।
सेइ क्षणे जागि निमाई करये क्रन्दन ।
अङ्के लञा शची तारे पियाइल स्तन ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.10 )
अनुवाद:- जब माता शची तथा जगन्नाथ मिश्र बातें कर रहे थे , तब बालक निमाइ जग गया और रोने लगा माता शची ने उसे गोद में उठा लिया और अपने स्तन से दूध पिलाने लगीं ।
तो इतने में जो सोच रहे थे किसके चरण चिन्ह है ? किसके चरण चिन्ह है ? हो सकता है हमारे विग्रह के चरण चिन्ह है तो इतने में निमाई को लगी है भूख और वे रो रहे हैं मां ... ! तो सचि माता ने गोद में बिठाया लिटाया और स्तनपान कराई । सचि माता महाभागा यस्या स्थनम् । जैसे यशोदा गोकुल में कृष्ण को अपना स्तनपान कराती थी दूध पिलाती थी अपने स्तन का तो वही माता यहां सचि माता बनी है और दूध पिलाने लगी निमाई को ।
देखिया मिलेर हइल आनन्दित मति ।
गुप्ते बोलाइल नीलाम्बर चक्रवर्ती ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.12 )
अनुवाद:- जब जगन्नाथ मिश्र ने अपने पुत्र के तलवे पर ये अद्भुत चिह्न देखे तो वे अत्यन्त पुलकित हुए और चुपके से उन्होंने नीलाम्बर चक्रवर्ती को बुलावा भेजा ।
ऐसा भी कई स्थानों पर उल्लेख है जब वह दूध पिला रही थी सचि माता निमाई को हो तो वो चरण, जो चरण चिन्ह घर में फर्श पर थे वही चिन्ह निमाई के चरणों में थे । हरि बोल ! तो उन दोनों ने नीलांबर चक्रवर्ती को बुलाया । जो कहां रहते थे ? बेलपुकुर में रहते थे थे तो आमंत्रण भेजा और यह कुछ नामकरण इत्यादि संस्कार संपन्न कराने हैं ।
चिह्न देखि ' चक्रवर्ती बलेन हासिया ।
लग्न गणि ' पूर्वे आमि राखियाछि लिखिया ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.13 )
अनुवाद:- जब नीलाम्बर चक्रवर्ती ने ये चिह्न देखे , तो हँसते हुए उन्होंने कहा , “ मैंने पहले ही नक्षत्र - गणना से इसे निश्चित कर लिया था और लिख भी लिया था ।
उन्होंने आकर नीलांबर चक्रवर्ती ने यह सब चरण चिन्ह देखें तो उनको तो कोई आश्चर्य नहीं लगा । वो समझ गए यह चरण चिन्ह तो और किसी के नहीं है ! यह किसके हैं ? निमाई के चरण चिन्ह है पुष्टि हो गई । उन्होंने बता दिया और उन्होंने कहा कि यह तो मैंने तो पहले सोचा था और लिख कर भी रखा है मैंने निमाई के संबंध में । निमाई कौन है इत्यादि । इनकी भगवता को समझ चुके थे नीलांबर चक्रवर्ती और नीलांबर चक्रवर्ती कृष्ण लीला के गर्गाचार्य है, गर्ग मुनि प्रकट हुए हैं नीलांबर चक्रवर्ती के रूप में तो जैसे गर्गाचार्य परम विद्वान त्रिकालज्ञ तो वैसे नीलांबर चक्रवर्ती भी थे जो निमाई के नाना है ।
बत्रिश लक्षण— महापुरुष- भूषण ।
एइ शिशु अङ्गे देखि से सब लक्षण ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.14 )
अनुवाद:- बत्तीस लक्षणों से महापुरुष का बोध होता है और के शरीर में इन सारे लक्षणों को देख रहा हूँ । इस बालक के शरीर में इन सारे लक्षणों को देख रहा हूं ।
तो नीलांबर चक्रवर्ती उन्होंने 32 जो लक्षण होते हैं महापुरुष के तो वह पहले ही लिख कर रखे थे अब वे सुनाने वाले हैं या वैसे महापुरुष थे उन्होंने ही लिखे हैं शास्त्र में । सामुद्रिक नाम का एक ग्रंथ है । ग्रंथ का प्रकार है तो उसमें उल्लेख है महापुरुष के लक्षण को सुनो और फिर याद कर सकते हो तो ।
पञ्च - दीर्घः पञ्च - सूक्ष्मः सप्त - रक्त : षडू - उन्नतः ।
त्रि - हस्व - पृथु - गम्भीरो द्वात्रिंशल्लक्षणा महान् ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.1 5 )
अनुवाद:- महापुरुष के शरीर में ३२ लक्षण होते हैं - उसके शरीर के पाँच अंग बड़े , पाँच सूक्ष्म , सात लाल रंग के , छह उठे हुए , तीन छोटे , तीन चौड़े तथा तीन गहरे ( गम्भीर ) होते हैं ।
तो यहां लिखा है पहले 5 दीर्घ अंग होते हैं । ऊंची नासिका है, भुजाएं, हनु है ऊंची, नेत्र है और जानू है । फिर पांच दीर्घ यह भी पांच सुक्ष्म त्वचा है महाप्रभु की या भगवान की गोरांग की त्वचा, बाल है । अंग लिप्त और उनके दांत भी विशेष दांत है । छोटे-छोटे दांत है भी और रोमा बली है यही 5 टी सुक्ष्म । अब बताएंगे शरीर के 7 प्रकार के 7 अंक उसमें लालिमा होती है और वह है नेत्र । नेत्र में लालिमा होती है । यह भगवान की करुणा का लक्षण है । कल हम जगन्नाथ का दर्शन कर रहे थे तो वहां भी लालिमा है । हमारी आंखें लाल होती है तो वह क्रोध का लक्षण है लेकिन भगवान की आंखों में ! फिर पदतल, करतल उसमें लालिमा है । तालू में मुंह खोलेंगे तो देख सकते हैं भगवान जब बोलते हैं । ओस्ट, हॉट भगवान के लाल है तो हम भी लाल करना चाहते हैं लिपस्टिक वगैरह लगाते हैं । लाल है नहीं लेकिन, और नख लाल है । हाथों के पैरों के नख लालिमा है एई सप्त रक्त । अब 6 ठो उन्नत उभरे हुए हैं ऊंचे हैं । जो वक्षस्थल है भगवान का चलते भी है तो ..और कंधे भी ऊंचे हैं । दोबारा नख का नाम आया है उसमें यह उन्नत है । नासिका ऊंची है नाक की चाइनीस नाक और कट्टी और मुख यह उन्नत है । 3 अंक भगवान के छोटे हैं । जैसे ग्रीवा है । उनका गला छोटा है, त्रीरेखाअंक कंठ होते हैं । ऊंट जैसा लंबा नहीं होता है और जंघ और जनन इंद्रिय छोटा है । फिर 3 ठो विस्तीर्ण भगवान की कट्टी प्रदेश उनके बड़ी होती है और ललाट यह भी विशाल होता है और वक्षस्थल । दोबारा वक्षस्थल का नाम आया । 3 अंग में गहराइयां है । नाभि भगवान की गहरी होती है वहां तालाब भी है ऐसे कमल का पुष्प भी उत्पन्न होता है और स्वर, भगवान का जो स्वर है उसमें भी गांभीर्य और गहराई होती है । " मेघ गांभीर्य वाचा" वैसे बादल आते हैं और फिर उसका जो आवाज है दूर-दूर तक पहुंचता है । 5-10 किलोमीटर दूर जाता है । जब बादल बोलते हैं तो वहां माइक्रोफोन सिस्टम की आवश्यकता नहीं है उसका आवाज दूर पहुंचाने के लिए । तो भगवान बोलते हैं तो उसमें गांभीर्य है और दूर दूर तक पहुंचता है । नरसिंह भगवान जब सिंहनाद हो रहा था तो सारे ब्रह्मांड में फैल गया और सारा ब्रह्मांड कांप रहा था यह अद्भुत है । सारे ब्रह्मांड में आवाज ध्वनि तो परम पुरुष भगवान इस प्रकार, मायावती तो 100 मीटर दूर भी नहीं जाती । लेकिन भगवान के आवाज सर्वत्र या भगवान के मुरली की आवाज ब्रह्म लोक में ब्रह्मा सुने । उसी के साथ दीक्षा भी हुई ब्रह्मा की । गायत्री मंत्र को सुनाएं और उसके बाद यही तीनों गांभीर्य है, ठीक है । जिनमें यह 32 लक्षण है वे होते हैं महापुरुष और वे थे गौरांग । गौरांग ! गौरांग ! गौरांग ! तो गर्गाचार्य अभी बने हैं नीलांबर चक्रवर्ती यह सब सुना रहे हैं ।
नारायणेर चिह्न - युक्त श्री हस्त चरण ।
एइ शिशु सर्व लोके करिबे तारण ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.16 )
अनुवाद:- इस बालक की हथेलियों तथा तलवों में भगवान् नारायण के सारे लक्षण ( चिह्न ) हैं । यह तीनों लोकों का उद्धार करने में समर्थ होगा ।
और एसी लक्षण नारायण में होते हैं और दूसरे शब्दों में यह बालक नारायण ही है या महा नारायण है या नारायण का भी स्रोत है और यह शिशु, अभी तो शिशु है "सर्व लोके करिबे तारण" सभी लोगों का रक्षण करने वाले हैं यह बालक है ।
एइ त ' करिबे वैष्णव धर्मेर प्रचार ।
इहा हैते हबे दुइ कुलेर निस्तार ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.17 )
अनुवाद:- यह बालक वैष्णव सम्प्रदाय का प्रचार करेगा और अपने मातृ तथा पितृ दोनों कुलों का उद्धार करेगा ।
तो फिर उसको कुंडली सब बताई जा रही है पहली बार अधिकृत रूप से बताया जा रहा है निमाई के संबंध में वे जानते हैं जानकार है, त्रिकालज्ञ है, विद्वान है वे बता रहे हैं । वैसे श्रील प्रभुपाद जब जन्मे थे; यह बालक 108 मंदिरों का निर्माण करेगा । इत्यादि इत्यादि कुछ बातें जो वैसी की वैसी है जो कोलकाता में कही थी । वही बातें यहां मायापुर में नीलांबर चक्रवर्ती सुना रहे हैं । "एइ त ' करिबे वैष्णव धर्मेर प्रचार" या वैष्णव धर्म का प्रचार करेगा । "इहा हैते हबे दुइ कुलेर निस्तार" और दोनों कुलों का, दोनों कुल कौन से ? एक सचि माता का और जगन्नाथ मिश्रा के कुल का उद्धार करने वाला है यह बालक । आगे वे कहते हैं ...
महोत्सव कर , सब बोलाह ब्राह्मण ।
आजि दिन भाल , -करिब नाम - करण ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.18 )
अनुवाद:- मैं नामकरण संस्कार करना चाहता हूँ । हम उत्सव मनायें और ब्राह्मणों को बुलायें , क्योंकि आज का दिन अत्यन्त शुभ है ।
तो निलंबर चक्रवर्ती कह रहे हैं कि सब को बुलाओ ! आमंत्रण दे दो और उत्सव संपन्न करो । मैं आज ही इस बालक का नामकरण करना चाहता हूं तो नामकरण संस्कार के लिए बुलाओ सबको ।
सर्व - लोकेर करिबे इहँ धारण , पोषण ।
' विश्वम्भर ' नाम इहार , -एइ त ' कारण ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.19 )
अनुवाद:- यह बालक भविष्य में सारे जगत् की रक्षा और पालन करेगा । इसलिए इसे विश्वम्भर नाम से पुकारा जायेगा ।
तो हो भी गया । अभी अभी कह रहे थे कि उत्सव संपन्न करो और आयोजन करो । "आयोजन हाईवे, आयोजन" तो कल होगा ऐसा नहीं, अभी करो । सभी आए भी हैं उत्सव संपन्न हो रहा है और नीलांबर चक्रवर्ती कह रहे हैं इस बालक का नाम होगा 'विश्वंभर' । आपने अनुमोदन किया ? आपका जब नामकरण होता है । उसका नाम दशरथ ! तो आप क्या कहते हो ? हरि बोल ! तो नगाड़े बजता है, मृदंग बजता है, करताल तो इस प्रकार हम भी थोड़ा योगदान करते हैं नामकरण संस्कार में । यह तो चिरकाल लिए ऐसा उत्सव तो हर दिन हो सकता है । होता है नित्यलीला है नामकरण के भी तो आज हमारी बारी है । हमको भी बुलाया और हम वहां उपस्थित थे । और जब भी हम पढ़ते हैं इसको याद करते हैं वही क्षण है नामकरण का ।
शुनि ' शची मिलेर मने आनन्द बाड़िल ।
ब्राह्मण - ब्राह्मणी आनि ' महोत्सव कैल ॥
( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 14.20 )
अनुवाद:- नीलाम्बर चक्रवर्ती की भविष्यवाणी सुनकर शचीमाता तथा जगन्नाथ मिश्र ने बड़े ही आनन्द के साथ सारे ब्राह्मणों और उनकी पत्नियों को आमन्त्रित करके नामकरण उत्सव सम्पन्न किया ।
तो यह ब्राह्मण ब्राह्मणी बड़े प्रसन्न हुए "आनन्द बाड़िल" जब कहा कि बुलाओ बुलाओ सब को बुलाओ और उत्सव संपन्न हो रहा है तो "महोत्सव कैल" महोत्सव का आयोजन भी हो गया । हरि हरि !! उत्सव संपन्न हो गया । निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । गौरंग ! नाम तो विश्वंभर है, नाम तो क्या है ? निमाई है, महाप्रभु है, गौर हरी है, श्री कृष्ण चैतन्य है सन्यास के समय तो श्री कृष्ण चैतन्य और सची माता के पसंद का नाम है निमाई तो महाप्रभु , माताएं भी कहती है महाप्रभु ! महाप्रभु ! जब चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि मेरा नाम का प्रचार होगा तो कौन सा नाम का प्रचार होने वाला था ?
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
यह उनकी परिचय है । वास्तविक परिचय "श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नाही अन्य" तो इसका वृंदावन के साथ संबंध है और मेरे नाम का प्रचार, हरे कृष्ण हरे कृष्ण का प्रचार होगा और यहां गर्गाचार्य बताए ही "एइ त ' करिबे वैष्णव धर्मेर प्रचार" यह बालक वैष्णव धर्म का या कलियुग के धर्म का ... "कलि - कालेर धर्म - हरि नाम संकीर्तन" वैसे चैतन्य महाप्रभु तो भारत में ही प्रचार किए । कहे थे तो ..
पृथ्वीते आछे यत नगर आदी ग्राम ।
सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम ॥
( चैतन्य भागवत अंत्यखंड 4.126 )
अनुवाद:- इस पृथ्वी के प्रत्येक नगर तथा ग्राम में मेरे नाम का प्रचार होगा ।
सारे पृथ्वी पर होगा । लेकिन फिर प्रभुपाद का है हां महाप्रभु सर्वत्र प्रचार करते तो हम क्या करते ? हमारे लिए बचा हुआ कार्य हमारे लिए छोटे भगवान तो फिर प्रभुपाद इस अंतरराष्ट्रीय श्री कृष्णा भावना मृत संघ का फिर स्थापना किए और फिर हुआ सर्वत्र प्रचार या नहीं कह सकते सर्वत्र प्रचार हुआ लेकिन बहुत देशों में प्रचार प्रारंभ हुआ तो प्रभुपाद भी कर सकते थे प्रचार । फैला सकते थे हर नगर हर ग्राम में तो फिर हम क्या करते ? हमारी भी बारी है जिम्मेदारी है कि हम और नगरों में और ग्रामों में इसको फैला दें और उस नगर के ग्राम के हर व्यक्ति तक हरिनाम पहुंचाना है । यह नहीं कि हमने कहां पहुंचा दिया । वर्तमान नगर वहां गए और एक कीर्तन कर दिया । ए ! गांव में प्रचार हो गया, हरि नाम फैल गया तो हरि नाम फिर रास्ते के मूर्ति के लिए उधार के लिए नहीं है या वहां के जो दीवारें हैं घर है उसके उद्धार के लिए हम कीर्तन नहीं करते । कीर्तन तो वहां के जीवो के लिए मनुष्य के लिए । कीर्तन को तो फिर घर घर सिर्फ घर-घर ही नहीं घर में रहने वाले .. "गैहे गैहे- जने जने" जैसे नारद मुनि कहे हमारा लक्ष्य तो वहां के या मनुष्य है । उन मनुष्यों को तक पहुंचाना है यह नहीं कि हमने इस नगर में कीर्तन किया फैल गया पहुंच गया । इस गांव में गया पहुंच गया या एक देश में नहीं की कीर्तन किया विदेश में पहुंच गया । हमको तो हर मनुष्य के पास पहुंचाना है और फिर मनुष्य भी परिवर्तन होते रहते हैं या कुछ जिनके पास पहुंचा तो वह हो गए मुक्त भक्त बन गए । भगवत धाम लौट गए दूसरी पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी तो यह सब अगले 10000 वर्ष तक होना है । जिनमें पदयात्रा करते हुए द्वारका से कन्याकुमारी से मायापुर पहुंचे । 1986 में चैतन्य महाप्रभु का 500 जन्म वर्ष का उत्सव संपन्न हुआ बहुत बड़ा उत्सव था तो फिर हमको याद आई वह 1996 में प्रभुपाद का जनशताब्दी है । 1986 प्रभुपाद का 100 वा जनशताब्दी तो हमने सोचा कि अब यही रुकेंगे हम लोग, वैसे पदयात्रा को यहां रुकना था तो हम और 10 साल पदयात्रा करे । हृदयानंद गोस्वामी महाराज उनके साथ मेरी बात हो रही थी तो उन्होंने पूछा मुझे; महाराज ! और कब तक करते रहोगे पदयात्रा ? तो मैंने कहा अगले 10 सालों तक परिक्रमा पदयात्रा करेंगे तो मुझे तो लगा कि महाराज को आश्चर्य लगेगा । इतने सालों तक करते रहोगे, ऐसा में उपेक्षा कर रहा था ऐसा महाराज कहेंगे । किंतु महाराज कहे ; बस 10 तक । उन्होंने कहा क्यों नहीं 10000 सालों के लिए । फिर हम भी थोड़ा दूरदृष्टि और तो यह श्रील प्रभुपाद ने प्रारंभ की हुई यह पदयात्रा भी, पदयात्रा का बड़ा योगदान रहा हरिनाम को और नगरों में और ग्रामों में पहुंचाने के लिए और इसीलिए भी प्रभुपाद एक पद यात्रा चल रही थी भारत में तो प्रभुपाद ने रिपोर्ट भेजा यानी हमने प्रभुपाद को रिपोर्ट भेजा तो प्रभु बात बड़े प्रसन्न थे । उन्होंने एक पत्र लिखा नित्यानंद प्रभु अमेरिका में नया तालवन फार्म के इंचार्ज थे उनके पास बेल इत्यादि थे । प्रभुपाद कहे हमारे भारत में ऐसी ऐसी पदयात्रा चल रही है बुलक कार्ट संकीर्तन पार्टी , बहुत सफल है तो हमको ऐसी लाखों गाड़ी चलानी चाहिए विश्वभर में । गाड़ी एक चल रही थी भारत में लेकिन प्रभुपाद ने कहा लाखों ऐसी गाड़ियां चलनी चाहिए पूरे विश्व भर में तो लाखों करोड़ों ऐसी बेल गाड़ियां सर्वत्र होनी चाहिए तो यह हैं प्रभुपाद । प्रभुपाद कभी छोटा सोचते ही नहीं थे । यह मेरी बीमारी है कहते थे । उच्च विचार वाले, श्रील प्रभुपाद की जय ! निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !
इष्ट देव प्रभु ने पदयात्रा शुरू की है बंगाल और उड़ीसा राज्य के लिए । फिर सोच रहे हैं बंगाल में एक हो उड़ीसा में और एक हो तो आप सब का स्वागत है । पदयात्रा करो । अपने से गई एक दिन के लिए पदयात्रा करते हो बेंगलुरु में, करते हो ना ? 1 दिन का पदयात्रा । इसी तरह से जमशेदपुर में 1 दिन का पद यात्रा और कई अहमदाबाद में तो होती है तो 1 दिन के लिए पदयात्रा या हर राज्य में एक पद यात्रा और नगर कीर्तन भी करते रहो अपने अपने नगरों में । प्रभात फेरी में निकल जाओ, कीर्तन करो प्रातः काल और घर में तो करना है ही । "जे दिने गृहते भजन देखी गृहेते गोलक भाए" जिस दिन मेरे घर में कीर्तन होता है ...
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
मेरे घर का हो गया कल्याण । गोलक ! फिर गोलक में रहो, वैकुंठ में रहो जहां भी कीर्तन करोगे वहां भगवान प्रकट होंगे तो भगवान के साथ रहो ।
॥ हरे कृष्ण ॥