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*जप चर्चा* *मायापुर धाम से* *दिनांक 16 अक्टूबर 2021* हरे कृष्ण!!! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!!! आज इस जप कॉन्फ्रेंस में 800 स्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हैं। हरि! हरि! आज एकादशी भी है। जप करो, थोड़ा अधिक जप कर सकते हो या जप करना प्रारंभ कर सकते हो।(ट्रांसलेशन हो रहा है? ट्रांसलेशन उपलब्ध है। यदि आपके पास स्मार्ट फ़ोन है तो आप ट्रांसलेशन/ अनुवाद को पढ़ सकते हो, आपको भी स्मार्ट बनना है, केवल आपका फोन ही स्मार्ट नहीं रखना है) हरि! हरि! एकादशी महोत्सव की जय! कीर्तनीय सदा हरि: जैसा कि महाप्रभु ने सिखाया है, हम अब उन्हीं के धाम से आपके साथ बात कर रहे हैं। आपको भी कभी कभी आना चाहिए। कई सारे भक्त मायापुर पहुंच चुके हैं। आप कब आओगे? प्रभुपाद भी आ चुके हैं या प्रभुपाद भी आ गए। वैसे प्रभुपाद तो यहीं रहते हैं, वे चैतन्य महाप्रभु के नित्य परिकर हैं, सेनापति भक्त हैं। एक समय गौरांग महाप्रभु ने श्रील प्रभुपाद को यहां भेजा था। हमारी जो सेना है अर्थात हम सब सेना हैं। 'हरे कृष्ण सेना' कोई शिवसेना है या कोई और कोई सेना है परंतु हमारी यह हरे कृष्ण सेना है। हरे कृष्ण सेना और इस सेना के सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद हैं। सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद की जय! कल श्रील प्रभुपाद मूर्ति के रूप में टी.ओ वी. पी. में आए हैं। आप टी.ओ वी. पी. समझते हो? टेंपल ऑफ़ वैदिक प्लैनेटेरियम, यह एक विशाल या अद्भुत मंदिर होगा। जहां से हरिनाम का प्रकाश होगा,विकास होगा।...जहां पर हरि नाम का ही प्रचार होगा। यह मंदिर अभी निर्माणाधीन ही है। श्रील प्रभुपाद इसे 60% पूर्ण कह रहे हैं। इसका 40% कार्य अभी बचा हुआ है उसको पूरा करने के लिए, उसकी देखरेख करने के लिए चूंकि काम बहुत ढीला चल रहा है। इसलिए श्रील प्रभुपाद ने ऐसा सोचा होगा और प्रभुपाद कल मूर्ति के रूप में यहां आए।कल बहुत बड़ा उत्सव हुआ। उसको 'प्रभुपाद वैभव उत्सव दर्शन' नाम दिया गया था। 'श्रील प्रभुपाद वैभव' यह शब्द कहा जाए। वैसे हम कृष्ण के वैभव की बात करते रहते हैं अर्थात हम opulence ओपुलेंस ऑफ कृष्ण की बात करते ही रहते हैं। यहां प्रभुपाद का वैभव ही तो कृष्ण का वैभव है। उसका हम दर्शन भी कर रहे थे। हमने दर्शन में यह भी देखा कि इतना बड़ा दर्शन मंडप इस्कॉन के किसी और मंदिर में नहीं है। हमने सर्वत्र भ्रमण करके देखा है। इतना विशाल, लंबा, चौड़ा, ऊंचा और गहरा यह दर्शन मंडप पहले दिन ही हाउसफुल हो गया। तब मैं सोच रहा था अगले 10000 साल वर्षों में क्या होगा? पहले ही दिन हाउसफुल हो गया है क्योंकि यह प्रचार बढ़ने वाला है। हरि नाम का प्रचार कहां तक पहुंचेगा? *पृथिवीते आछे यत नगरादि ग्राम।सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।।* ( चैतन्य भागवत अन्त्य खंड ४.१.२६) अनुवाद:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गांव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा। मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा, पृथ्वी के कोने-कोने में होगा, हो रहा है या बढ़ेगा। अभी मैं ब्रेकिंग न्यूज़ में देख रहा था कि अभी अभी हमारी ऑल इंडिया पदयात्रा वृंदावन पहुंचने वाली है, उन्होंने कितना सारा हरि नाम का प्रचार किया है। विश्व भर के हरे कृष्ण भक्त जिन्हें दूसरा कोई काम धंधा नहीं है। वे हरे कृष्ण हरे कृष्ण ही करते रहते हैं। इससे लोगों को कृष्ण मिल जाते हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहना कृष्ण की प्राप्ति ही है। आज मेरे पड़ोस वाले भी जब उठे, तब लग रहा था कि वह नए थे कुछ अभ्यास कर रहे थे। वे हरे कृष्ण हरे कृष्ण थोड़ा रुक रुक के कह रहे थे। मैं सोच रहा था कि शायद वे सीख रहे हैं या याद कर रहे हैं। एक और व्यक्ति ने हरिनाम को अपनाया और कीर्तन कर रहा था। सारे संसार में जब प्रचार बढ़ेगा तब जप करने वाले नाम से धाम में जाते हैं। मायापुर हमारी मक्का है। हु केयर फॉर मक्का। वैसे तुलना भी नहीं करनी चाहिए। मायापुर की तुलना न तो मक्का न तो जेरुसलम के साथ हो सकती है । ऐसी तुलना करना भी अपराध होगा लेकिन यह भाषा आप समझते हो इसलिए कहा जाता है। जो भी भक्त जप करेंगे, कीर्तन करेंगे, वह एक बार तो अपने जीवन में जरूर मायापुर आ ही जाएंगे। यह हरि नाम ही हमें भगवान तक पहुंचा देता है या भगवान की लीला तक पहुंचाता है या भगवान की लीला में प्रवेश कराता है। यहां मायापुर में आज भी लीला करे गौर राय है कोन-कोन भाग्यवान देखे व भाग्य पाय। आज भी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की लीला यहां संपन्न हो रही है। जो भी यहां पहुंच जाते हैं। वे महाप्रभु की लीला में प्रवेश करते हैं। महाप्रभु की यहां की प्रधान लीला कौन सी है? *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* *सुन्दर-लाला शचीर-दुलाल नाचत श्रीहरिकीर्तन में। भाले चन्दन तिलक मनोहर अलका शोभे कपोलन में॥1॥* अर्थ:- यह अद्भुत विस्मयकारक बालक, भगवान् हरि के नामों के कीर्तन में नृत्य करता हुआ, माता शची का अत्यन्त प्रिय शिशु है। उसका मस्तक चन्दन के लेप से बने तिलक से अलंकृत है, उसके मंत्रमुग्ध कर देने वाले बालों की लटें वैभवपूर्ण रूप से चमकती हैं जब वे उनके गालों से टकराकर उछलती हैं या उड़ती हैं। मॉरीशस के सुंदरलाल वैसे अभी वे भी सुंदर चैतन्य स्वामी हो गए हैं। भगवान सुंदर हैं। जो भी यहां आते हैं, वे चैतन्य महाप्रभु की लीला में प्रवेश करते हैं। हम जब कीर्तन करते हैं तब हमारा भी उस लीला में प्रवेश होता है। हम भी उस लीला का अंग बन जाते हैं। जैसे-जैसे प्रचार बढ़ता जाएगा अधिक अधिक लोग स्वाभाविक रूप से यहां आ जाएंगे। इस्कॉन की स्थापना हुए कुछ 50- 55 वर्ष बीत चुके हैं। ऑलरेडी( पहले से ही) यह बड़ा मंदिर भी हाउस फुल, (हाउस फुल नहीं कह सकते) टेंपल फुल हो गया है। भविष्य में अर्थात अगले 50 वर्षों के उपरांत, 100 वर्षों के उपरांत, 500 वर्षों के उपरांत यह प्रचार खूब बढ़ने वाला है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच होगी या नहीं? भगवान सत्य वचनी हैं। राम भी अपने सत्य वचन के लिए प्रसिद्ध हैं। राम ही तो कृष्ण हैं, राम ही तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हैं। सत्यश्र्च योनि: भगवान जो भी बोलते हैं- *सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव। न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः।।* ( श्रीमद भगवतगीता १०.१४) अर्थ: हे कृष्ण! आपने मुझसे जो कुछ कहा है,उसे मैं पूर्णतया सत्य मानता हूं। हे प्रभु! न तो देवतागण, न असुरगण ही आपके स्वरूप को समझ सकते हैं। अर्जुन ने भी कहा कि आप जो भी कहते हो, सत्य है अथवा सत्य होता है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु द्वारा की गई भविष्यवाणी सच होकर ही रहेगी। कितने सारे लोग यहां पहुंचने वाले हैं। भक्ति विनोद ठाकुर ने भी भविष्यवाणी की है कि संसार भर के लोग आएंगे और देश विदेश के भक्त मिलकर क्या करेंगे? *जय शचीनन्दन जय शचीनन्दन जय शचीनन्दन गौर हरि!!* जब सारे संसार के भक्त यहां आते हैं तब वे इसी देश के हो जाते हैं। उनका देश कौन सा बनता है? मायापुर! मैं मायापुर देश का हूं।व्हाट इज योर मदर लैंड? (आपकी मातृभूमि कौन-सी है?) मायापुर। व्हाट इज योर फादर लैंड? (आपकी पितृभूमि कौन सी है?) मायापुर। मैं यहां का हूं, मैं वहां का हूं , यह हमारे विकार या सब झूठ है। इसे सापेक्ष सत्य या रिलेटिव ट्रुथ कहते है कि मैं इस देश का हूं। मैं ब्राजील का हूं या मैं ब्राजील की हूं। मैं बांग्लादेश का हूं। मैं मॉरीशस का हूं इत्यादि इत्यादि। कलि इस प्रकार संसार का विभाजन करता है। यह कलि का बिजनेस( व्यापार) है। वह इस संसार के टुकड़े-टुकड़े करता है। एक समय तो इस पृथ्वी पर एक ही देश था। उस देश का नाम भारत था, महाभारत। जैसे कलियुग आ गया, कलियुग में हम लोग शेयर( बांटना) नहीं करना चाहते। हम लोग भगवान को भी शेयर नहीं करना चाहते। हमारे भगवान, तुम्हारे भगवान। यहां से शुरुआत हो जाती है अल्लाह, कृष्ण, जेहोवा... इत्यादि। हमारे भगवान, हमारा देश, हमारा यह, हमारा वह.. यह जो अहं मामेति है, वह और बढ़ जाता है। अहं मामेति अर्थात मी एंड माईन, मी एंड माईन। यही मंत्र चलता रहता है और बोलते रहते हैं। किसी ने सर्वे किया लोग फोन पर कौन सा शब्द सबसे अधिक बार बोलते है। किसी ने पता लगाया कि मैं, मैं, मैं। यह शब्द सबसे अधिक बार बोला जाता है। इस प्रकार हम ऐसे बद्ध बने हुए हैं कि अहं, अहं, अहं, उसके साथ मम, मम, मम या उसके साथ त्वम त्वम अहम त्वम अर्थात मैं और तू, मैं - तु, मैं - तु, तू-मैं, तू-मैं। यह द्वंद है। इस द्वंद में यह कलियुग फसा देता है लेकिन वैसे जो भी हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं, कीर्तन करते हैं, भक्ति करते हैं अर्थात जब भक्ति योग को अपनाते हैं उसी के साथ बॉडी फिनिश्ड ( समाप्त) हो जाती है। बॉडी पर हमारी पकड़ ढीली पड़ जाती है। जप करते करते करते यह ढीला हो जाता है। विदेश के भक्त जब भारत में मायापुर या वृंदावन में आते हैं तब कई इंडियन ( भारतीय) लोग पूछते हैं- वेयर कंट्री फ्रॉम ( आप किस देश से हो?) तब भक्त कहते हैं -मैं फ्रांस से हूं। फिर एक दो मिनट बाद दूसरा व्यक्ति पूछता है- व्हेयर फ्रॉम? कई बार उत्तर देना होता है तब उत्तर देने वाला हरे कृष्ण भक्त सोचता है कि क्या? आई एम फ्रॉम फ्रांस, नो, मैं फ्रांस का नहीं हूं। तत्पश्चात वह कहता है कि मैं बैकुंठ से हूं। हम सारे वैकुंठ वासी हैं। हमारा देश वैकुंठ है या महावैकुंठ गोलोक है। हम वहां के वासी हैं। वही वैकुंठ यहां भी है। हम वैकुंठ में गोलोक में बैठे हैं। मायापुर धाम की जय! मैं एक बात कह रहा था कि संख्या बढ़ने वाली है। यहां के जो दर्शनार्थी है, वे दिन-ब-दिन, सप्ताह-व सप्ताह, माह दर माह, वर्ष दर वर्ष बढ़ते जाएंगे। कल रात ही मंच पर एक वक्ता कह रहे थे,वे कुछ प्रतिशत की बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऐसा समय आएगा 99% जनसंख्या गौड़ीय वैष्णव हो जाएगी। मैं निश्चित नहीं हूं लेकिन निश्चित ही एक बहुत बड़ी संख्या में, जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग गौड़ीय वैष्णव का होगा । वैसे वैष्णव होना उपाधि नहीं है। *सर्वोपाधि-विनिर्मुक्तं तत्परत्वेन निर्मलम्। हृषीकेण हृषीकेश-सेवनं भक्तिरुच्यते।।* ( भक्तिरसामृत सिन्धु १.१.२) अर्थ:- भक्ति का अर्थ है समस्त इन्द्रियों के स्वामी, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की सेवा में अपनी सारी इन्द्रियों को लगाना। जब आत्मा भगवान की सेवा करता है, तो उसके दो गौण प्रभाव होते हैं। मनुष्य सारी भौतिक उपाधियों से मुक्त हो जाता हैं और भगवान की सेवा में लगे रहने मात्र से इसकी इंद्रियां शुद्ध हो जाती है। हमें निर्मल होना है। हम निर्मल कब होंगे? अथवा हम गंदगी से कचरा विचार से तब मुक्त होंगे जब हम सारी उपाधियों से भी मुक्त होंगे। हम कई सारी उपाधियां लेकर बैठे हैं। मैं यह कहना चाहता था कि वैष्णव कोई उपाधि नहीं है। ब्राह्मण भी उपाधि हो गई कि मैं ब्राह्मण हूं। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं- *नाहं विप्रो न च नरपतिर्नापि वैश्यो न शुद्रो नाहं वर्णी न च गृह-पतिर्नो वनस्थो य़तिर्वा। किन्तु प्रोद्यन्निखिल-परमानन्द-पूर्नामृताब्धेर् गोपी- भर्तुः पद-कमलयोर्दास-दासानुदासः।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला १३.८०) अनुवाद:- मैं न तो ब्राह्मण हूं, न क्षत्रिय, न वैश्य, न ही शुद्र हूं। न ही मैं ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ या संन्यासी हूं। मैं तो गोपियों के भर्ता भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों के दास के दास का भी दास हूँ। वे अमृत के सागर के तुल्य हैं और विश्व के दिव्य आनन्द के करणस्वरूप हैं। वे सदैव तेजोमय रहते हैं। यह सब उपाधियां है। मैं इस वर्ण का हूं ,मैं इस आश्रम का हूं, यह भी उपाधियां हैं लेकिन वैष्णव होना उपाधि नहीं है। वैकुंठ जगत में वैष्णव वह है जो विष्णु को महाविष्णु को, कृष्ण को समर्पित है, वहीं वैष्णव है। वैकुंठ या गोलोक अर्थात आध्यात्मिक जगत की सारी जनसंख्या 100% वैष्णव हैं। हमें वैष्णव बनना हैं। जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण करते हैं तब हम वैष्णव बन जाते हैं और फिर भगवत धाम लौटने अथवा प्रवेश करने के पात्र भी बन जाते हैं। जैसे-जैसे प्रचार बढ़ेगा,तब सारे वैष्णव ही वैष्णव हो जाएंगे, हमारी सारी जो अन्य उपाधियां हैं कि मैं इस देश का, उस देश का हूं, यह सब मिट जाएगा। इसलिए श्रील प्रभुपाद भी कहा करते थे और हमने कई बार देखा, सुना है कि श्रील प्रभुपाद, पंडाल प्रोग्राम्स में अथवा हरे कृष्ण फेस्टिवल और मंच पर उपस्थित कई भक्तों को उंगली करते हुए कहते थे- यह जापान से है, यह ऑस्ट्रेलिया से है, यह ब्राजील से है, यह कनाडा से है, भारत से है, यह फ्रांस से है, तब वे कहते थे कि यह यूनाइटेड नेशन ऑफ स्पिरिचुअल वर्ड है ( यह आध्यत्मिक जगत का संयुक्त राष्ट्र संघ है ) वैसे न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन का जो हेड क्वार्टर है,जब भी प्रभुपाद वहां से गुजरते थे तब वे झंडो को देखकर कहते थे- एक और झंडा। अगली बार जब फिर वे वहां से गुजरते- एक और झंडा अथवा एक और ध्वज/ पताका। यह प्रभुपाद का प्रसिद्व स्टेटमेंट( वाक्य) है। दिस इस डिस- यूनाइटेड नेशन। डी. यू. एन. ओ. लेकिन भक्तों की ओर मंच पर भक्तों का परिचय देते हुए कहते हुए यह है यूनाइटेड नेशन। वर्ष 1971 में जब मैं पहली बार हरे कृष्ण उत्सव में गया था तब एक दिन श्रील प्रभुपाद ने मंच पर ही भक्तों को दीक्षा दी थी। दस हजार लोग बैठे हुए थे और उनके समक्ष दीक्षा समारोह हुआ। उसमें एक विवाह भी हुआ था। ऑस्ट्रेलिया की पद्मावती माता जी व उनके पति जो स्वीडन के थे अर्थात वाइफ फ्रॉम ऑस्ट्रेलिया से थी और हस्बैंड फ्रॉम स्वीडन से थे, का विवाह हुआ था। तब प्रभुपाद ने कहा यह यूनाइटेड नेशन है। इन दोनों का विवाह हो रहा है। यह यूनाइटेड नेशन है। जैसे हम कहते हैं *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* कल भी जब कीर्तन हो रहा था। (थोड़ी देर में मुझे रुकना है) कीर्तन करते समय टी. ओ. वी. पी. का सारा विशाल दर्शन मंडल देख मुझे लग रहा था कि कृष्ण कितने बड़े हो रहे हैं, *नाम चिंतामणि: कृष्णश्रै्चतन्य-रस-विग्रहः। पूर्णः शुद्धो नित्य-.मुक्तोअभिन्नत्वान्नाम-नामिनोः।* ( पदम् पुराण) अर्थ:- कृष्ण का पवित्र नाम दिव्य रूप से आनंद मय है यह सभी प्रकार के आध्यात्मिक वरदान देने वाला है, क्योंकि यह समस्त आनंद का आगार अर्थात स्वयं कृष्ण है। कृष्ण का नाम पूर्ण है और यह सभी दिव्य रसों का स्वरूप है। यह किसी भी स्थिति में भौतिक नाम नहीं है और यह स्वयं कृष्ण से किसी तरह से कम शक्तिशाली नहीं है। चूंकि कृष्ण का नाम भौतिक गुणों से कलुषित नहीं होता, अतएव इसका माया में लिप्त होने का प्रश्न ही नहीं उठता। कृष्ण का नाम सदैव मुक्त तथा आध्यात्मिक है, यह कभी भी भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा बद्ध नहीं होता। ऐसा इसलिए है क्योंकि कृष्ण नाम तथा स्वयं कृष्णा अभिन्न हैं। नाम और नामि में भेद नहीं है। जब कीर्तन हो रहा था, वह गुम्बद कीर्तन से भरता जा रहा था। पूरा गुम्बद खचाखच भर रहा था। किस से भर रहा था? वहां भगवान पहुंच रहे थे। भगवान वहां विशाल रूप धारण कर रहे थे, जब कीर्तन हो रहा था। मुझे स्ट्रांग फीलिंग हुई। अच्छा हुआ। बड़ा मंदिर तो भगवान भी बड़े हो गए। भगवान बड़े हो गए। पहले थे वहां वामन अब हो गए-त्रिविक्रम। वैसे भी हमारा दूसरा विचार यह था और आज भी हम जप कर रहे थे और जब भी जप करते हैं अर्थात जब जब नाम होता है, तब कृष्ण प्रकट होते हैं। *नाहं तिष्ठामि वैकुण्ठे योगिनां हृदयेषु वा। मद्भक्ताः यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।* ( पद्म पुराण) अर्थ:- न मैं वैकुंठ में हूं, न योगियों के ह्रदय में। मैं वहाँ रहता हूं, जहां मेरे भक्त मेरी लीलाओं की महिमा का गान करते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार जब हम भगवान के नामों का उच्चारण करते हैं तब भगवान प्रकट होते हैं। जितने भक्त जप कर रहे थे, उतने ही भगवान प्रकट हो जाते हैं। जैसे जितनी गोपियां उतने कृष्ण बन जाते हैं ।वैसे ही जितने भक्त जप कर रहे होते हैं तो एक जप करने वाला एक भगवान, दूसरा जप करने वाला दूसरा भगवान। एक ही लेकिन अनेक बन जाते हैं। आपके खुद के भगवान, आप और भगवान, जप करते समय श्रीकृष्ण, राधा माधव भगवान प्रकट होते हैं। जब हम भगवान को पुकारते हैं तब फिर हम उनका स्मरण कर सकते हैं फिर हम उनसे सवांद या उनको प्रार्थना कर सकते हैं, उनकी संस्तुति कर सकते हैं। हरि! हरि! हम जप करते-करते अनर्थो से मुक्त होकर शुद्ध नाम जप कर सकते हैं और कृष्ण भावना भावित हो सकते हैं। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! हरे कृष्ण!!!

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