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जप चर्चा, श्री श्री राधा वृंदावनचंद्र मंदिर पुणे, 13 सितंबर 2021 आज जप चर्चा में 806 भक्त उपस्थित हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...! विश्व हरीनाम महोत्सव कि जय...! आज का सत्र हमें थोडा़ छोटा ही रखना पड़ेगा क्योंकि मैं राधा वृंदावनचंद्र मंदिर पहुंचा हूं और श्रृंगार दर्शन और गुरुपुजा 7:30 बजे होंगी। वैसे 8:00 बजे भागवतम् कि कक्षा हैं,उसकों भी आप सुन सकते हो । आज कि जप चर्चा छोटी और भागवतम् पे ज्यादा चर्चा होगी।हरि हरि! आज विश्व हरिनाम महोत्सव का कोनसा दिन चल रहा है? तीसरा दिन! (भक्तो ने जवाब दिया) महाराज ने आगे कहा ठीक हैं!कोई कोई दूसरा दिन कह रहे हैं।आज तीसरा दिन हैं। यहा पुणे में हर वर्ष इसे बडी धुम धाम से मनाते हैं और इस वर्ष भी मना रहे हैं।मैंने ढेर सारे समाचार सुने और मंदिर में पहुचा तो यहा दिनभर अखंड र्कीतन हो रहा था।तो कई भक्त नगर संर्कीतन भी कर सकते हैं,अभी पुणे में लॉकडाउन चल रहा हैं, नगर संर्कीतन का अवसर थोड़ा कम हैं,तो लोग घर-घर जा रहे हैं या भक्त घर-घर जा रहे हैं और घरों में संर्कीतन हो रहा हैं,घरवाले परिवारवालो को बुला रहे हैं,अपने इष्टमित्रों को बुला रहे हैं, इस प्रकार र्कीतन सर्वत्र हो रहा हैं। हमने सुना कि इनकी योजना हैं कि एक साथ 108 स्थानों पर,भवनों में,घरों मे, मंदिरों में र्कीतन हो। एक दिन में समकालिक र्कीतन होगा। मैंने ऐसा कभी नहीं सुना हैं। इस्कॉन पुणे के भक्त इसे पहले कर चुके हैं, एक ही साथ 108 कीर्तन मंडली,108 स्थानों पर, 108 भवनों में, घरों में,मंदिरों में र्कीतन होगा। समकालिक 108 स्थानों पर र्कीतन होगा, तो उसका प्रभाव और फल क्या होगा इसकी कल्पना शायद हम नहीं कर सकते,यह कितना प्रभावशाली होगा या होता हैं। आप भी कुछ आईडिया ले सकते हो और जहां तक यह नगर संर्कीतन की बात हैं या पब्लिक र्कीतन या ,डांसिंग र्कीतन या, जप र्कीतन,इस र्कीतन के आचार्य स्वयं भगवान ही हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कि जय...! “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः | स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 3.21) अनुवाद:-महापुरुष जो जो आचरण करता है, सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं | वह अपने अनुसरणीय कार्यों से जो आदर्श प्रस्तुत करता है, सम्पूर्ण विश्र्व उसका अनुसरण करता है | “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्त" श्रेष्ठजन जो जो आदर्श रखते हैं, "त्तदेवेतरो जनः"इतर जो लोग होते हैं,दूसरे लोग उसका अनुसरण करते हैं। संर्कीतन आंदोलन के लीडर, संसार को संर्कीतन देने वाले जो श्रेष्ठ हैं या नेता हैं, वह स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु हैं। भगवान ने आकर इस धरातल पर इस संर्कीतन का आरंभ किया। ईश्वर पुरी से मंत्र प्राप्त किए। उन्हे गुरु बना लिया। जो भगवान स्वयं ही गुरु हैं "वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" (श्री कृष्णाष्टक 1 आदि शंकराचार्य) अनुवाद:-कंस और चाणूर का वध करनेवाले, देवकी के आनन्दवर्द्धन, वसुदेवनन्दन जगद्गुरु श्रीक़ृष्ण चन्द्र की मैं वन्दना करता हूँ । वे बन गए शिष्य ,भगवान बन गए ईश्वर पुरी के शिष्य, उनसे मंत्र लिया। जैसे ही मंत्र का उच्चारण प्रारंभ हुआ तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने र्कीतन किया,पहले निमाई पंडित थे,विद्वान थे, प्रकांड विद्वान थे,शास्तार्थं करते थे,सभी को परास्त करते थें। भक्ति कम करते थे या र्कीतन नहीं करते थें। वैसे सभी यही चाहते थे कि यह र्कीतन करे।यह र्कीतन कब करेगा?मुकुंद इत्यादि,प्रार्थना कर रहे थे कि निमाई एक दिन कीर्तन करे।जब यह र्कीतन करेगा हम प्रसन्न होंगे। तो फिर एक दिन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने मंत्र प्राप्त किया तो उसी के साथ उनका र्कीतन प्रारंभ हुआ।वह गया से लौटते लौटते, र्कीतन और नृत्य करते-करते ही नवदीप लौटे और श्रीवास ठाकुर के आंगन में, श्रीनिवास के प्रांगण में र्कीतन प्रारंभ हुआ। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु पंचतत्वों के साथ के साथ र्कीतन करते हैं। (जय) श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि - गौरभक्तवृन्द (पञ्चतत्त्व महामन्त्र) महाप्रभु स्वयं श्री कृष्ण हैं,नित्यानंद प्रभु बलराम हैं, महाविष्णु या सदाशिव हैं- अव्दैताचार्य और गदाधर राधा रानी हैं, राधा रानी ने भी भाग लिया,जिनकी राधाष्टमी हम लोग कल मनाएंगे। राधा अष्टमी महोत्सव कि जय...! राधा रानी भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के र्कीतन में नृत्य करने लगीं।रासक्रिडा में श्रीकृष्ण के साथ रात में नृत्य करने वाली राधा अब गदाधर के रूप में चैतन्य महाप्रभु के साथ र्कीतन में नृत्य कर रही हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस कीर्तन के साथ राधा और कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और गदाधर पंडित और श्रीवास जो स्वयं नारद मुनि हैं और गौर भक्तवृंद के साथ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने श्रीवास आंगन में अपना संकीर्तन आंदोलन प्रारंभ किया और इसी के साथ अद्वैताचार्य का जो सपना था वो साकार हुआ ।अद्वैताचार्य जो पुकार रहे थे वह पुकार पूरी हुई।उन्होने भगवान को पुकारा और भगवान चले आए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में और अद्वैताचार्य ने देखा था "धर्मस्य ग्लानिर्भवति" “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 4.7) अनुवाद:-हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ | धर्म की ग्लानी होते हुए देखा था। अद्वैताचार्य ने प्रार्थना कि थी कि धर्म कि पुनरस्थापना करने के लिए स्वयं भगवान ही आ जाए और भगवान उस प्रार्थना को सुनकर पहुंचे हैं और भगवान प्रकट होकर करते क्या हैं? धर्मसंस्थापनार्थाय,धर्म कि स्थापना करते हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने धर्म की स्थापना का कार्य, सेवा, लीला प्रारंभ कि,पहले तो श्रीवास ठाकुर के बाडी़ में, आंगन में कीर्तन होते थें, केवल शुद्ध भक्तों के लिए प्रवेश था,तो शुद्ध भक्त तो कीर्तन का आनंद लूट रहे थे,लेकिन औरों का क्या? जो पतित जन है, बद्ध जन हैं, उनका कैसे उद्धार होगा? तो अद्वैताचार्य इस बात से प्रसन्न नहीं थे कि चैतन्य महाप्रभु , सीमित और चयनित सभा के लोगों के साथ ही कीर्तन करते हैं, पतितो का क्या होगा? अद्वैताचार्य चिंतित थें तो उन्होंने एक दिन श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु के चरणों में विशेष प्रार्थना की "गोलोकम् च परितज्य लोकानाम त्राण कारणात" शास्त्रों, पुराणों में कहा हैं कि गोलोकम् च परितज्य, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु गोलोक को त्याग कर प्रगट हुए हैं, क्यो? "लोकानाम त्राण कारणात"लोगों को जो त्राण, कष्ट हैं, बद्धता हैं ,ताप हैं या तापत्राय हैं, उन से मुक्त करने हेतु ही तो भगवान प्रकट हुए थे।किंतु यहां पर वह पतितो के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं।जो पहले से ही पावन या शुद्ध हैं, उनके साथ ही कीर्तन कर रहे हैं।यह सब अद्वैत आचार्य ने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को स्मरण कराया और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु मान गए और उसी के साथ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने नगर संकीर्तन प्रारंभ किए, जिसका वर्णन भक्ति विनोद ठाकुर इस वैष्णव भजन में करते हैं। उदिलो अरुण पूरब-भागे द्विजमणि गोरा अमनि जागे भकत समूह लोइया साथे गेला नगर-ब्राजे (भक्ति विनोद ठाकुर) इस गीत में भक्ति विनोद ठाकुर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन के बारे में बता रहे हैं, तो हमको भी कीर्तन करना हैं या नगर संकीर्तन करना हैं। ऐसी संभावना अगर नहीं है कि नगर के रास्ते में कीर्तन कर सके तो नगरों में जो घर हैं उन घरों में जाकर हम कीर्तन कर सकते हैं,जहां जहां लोग मिलेंगे वहां वहां जाकर संकीर्तन कर सकते हैं। गेहे गेहे जने जने। हमारा मतलब तो है कि आत्माओं से संपर्क करना, आत्मा चाहे कहीं पर भी हो रास्ते में हो या घर पर हो जहां भी हो हमें वहां पहुंच कर उन्हें हरि नाम देना हैं, उनको हरिनाम करने के लिए प्रेरित करना हैं, कीर्तन के साथ नृत्य करने के लिए भी प्रेरित करना हैं। हरि हरि।भक्त समूह अर्थात बहुत बड़े समूह के साथ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन कर रहे हैं, पहले तो चैतन्य महाप्रभु कीर्तन करते ही नहीं थे फिर करना प्रारंभ किया तो अंदर ही अंदर करते थे, फिर बाहर करना प्रारंभ हुआ। सारे नवदीप में कीर्तन करना प्रारंभ हुआ। उस वक्त नवदीप का तो या नवदीप वासियों का तो कल्याण हो रहा था, लेकिन औरों का क्या होगा? उनका उद्धार कैसे होगा तो फिर उसके लिए चैतन्य महाप्रभु ने संयास लिया और फिर हरिनाम संकीर्तन का प्रचार पूरे भारतवर्ष में करा,चाहे वह साउथ इंडिया हो यानी दक्षिण भारत हो, उत्तर भारत हो या भारत का कोई भी हिस्सा हो पहले वृंदावन गए, फिर नवद्वीप भी गए और दक्षिण भारत रामेश्वरम भी गए, फिर पंढरपुर गए महाराष्ट्र में और नासिक में गए। कई स्थानों पर भ्रमण किया। चेतनय चरित्रामृत में इसे मध्य लीला कहां हैं। 6 वर्षों तक श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन कर रहे हैं।इसी के साथ इस युग का जो धर्म हैं, हरेर नाम एव केवलम उसकी स्थापना कर रहे हैं। थथाई थथाई बाजले खोल घन घन ताहे झांझेर रोल(भक्ति विनोद ठाकुर)भक्ति विनोद ठाकुर लिखते हैं कि चैतन्य महाप्रभु की संकीर्तन मंडली मैं मृदंग यानी खोल बज रहा हैं और करताल बज रही हैं।प्रेमे ढल ढल सोनार अंग चरनेर नुपुर बाजे। यह विशेष ध्यान करने योग्य बात हैं कि यह जो शोभायात्रा या नगर संकीर्तन आगे बढ़ रहा हैं इसमें श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सबसे आगे हैं। अग्रणी शिरोमणि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सबसे आगे हैं। उनका अंग सुनार गोरांग हैं और वह डोल रहे हैं।हरि हरि और चरणों में नूपुर बांध के राधा भाव में नृत्य कर रहे हैं।राधा भी इस प्रकार से नृत्य करती हैं। राधा भी जब नृत्य करती हैं तब उनके चरणों में नूपुर बजते हैं।इस प्रकार से श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु नृत्य कर रहे हैं।सुंदर लाला शचिर दुलाला नाचत श्री हरि कीर्तन में। यह नोट करो। अधिकतर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के साथ कीर्तन कर रहे हैं।कुछ तो प्रचार भी कर रहे हैं,इस कीर्तन की ध्वनि को सुनते ही कहीं लोग उठ रहे हैं। प्रातः काल का समय हैं, उदिलो अरुण। अरुण का उदय हो रहा हैं और यह कीर्तन मंडली जिस प्रकार से नगर में आगे बढ़ रही हैं, लोग इस कीर्तन को सुनकर जाग रहे हैं मानो उनके लिए अलार्म की घंटी हो। अभी तक तो सोए हुए थे,लेकिन इस चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली में मृदंग करताल बज रहे हैं और नाम संकीर्तन हो रहा हैं। लोग जग कर बाहर दौड़कर आ रहे हैं। तो उनको भी इस कीर्तन मंडली के कुछ भक्त प्रचार कर रहे हैं। हमको भी ऐसा करना होगा। कीर्तन भी हो रहा हैं और प्रचार भी हो रहा हैं। कीर्तन करने वाले कीर्तन कर रहे हैं और प्रचार करने वाले प्रचार कर रहे हैं। कीर्तन करने वाले कीर्तन कर रहे हैं और साथ में कुछ और भक्त हैं जो लोगों से बातचीत कर रहे हैं या उन्हें कुछ समझा बुझा रहे हैं, उन्हें प्रेरित कर रहे हैं कि आप भी कीर्तन करो या फिर उनको प्रभुपाद के ग्रंथ दे रहे हैं। स्तक वितरण भी हो रहा हैं और कई स्थानों पर भक्त प्रसाद बांटते हैं। कीर्तन हो रहा हैं, ग्रंथ वितरण हो रहा हैं, प्रसाद वितरण हो रहा हैं और बीच-बीच में रुक कर बोलते हैं कि जितने लोग उपस्थित हैं हाथ ऊपर करो और बोलो हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ऐसी घोषणा करते हैं और करनी चचाहि। हम यह सब भी बता सकते हैं कि यह सब क्या हो रहा हैं। हम क्या कर रहे हैं और यह सब हमने कहां से सीखा हैं। श्रील प्रभुपाद की जय।श्रील प्रभुपाद ने यह सब हमें सिखाया हैं। श्रील प्रभुपाद ने यह कार्य चैतन्य महाप्रभु की तरफ से शुरू किया और सारे विश्व को हरेनाम का दान देने वाले श्रील प्रभुपाद कीजय।य श्रील प्रभुपाद एंबेसडर ऑफ द होली नेम हैं। श्रील प्रभुपाद हरि नाम के अंबेडकर हैं।श्रील प्रभुपाद भक्ति योग के एंबेस्डर हैं। मैं कल ही पढ़ रहा था कि किसी समाचार पत्र में किसी ने लिखा कि श्रील प्रभुपाद कौन हैं?अंबेसडर ऑफ द भक्ति योग। तो प्रभुपाद ने यह बात पत्र के द्वारा एक गोडिए मठ के भक्त को लिखी थी कि लोग कह रहे हैं मैं भक्ति योग का एंबेस्डर हूं ।तो श्रील प्रभुपाद भक्ति योग के एंबेस्डर हैं। श्रील प्रभुपाद हरि नाम के दूत हैं भगवद्धाम से लाए हुए इस प्रेम धन का वितरण करने वाले श्रील प्रभुपाद ही हैं। यह घोषणा करके हम प्रभुपाद के बारे में और हरि नाम के बारे में बता सकते हैं और उन्हें आमंत्रित कर सकते हैं कि कृपया राधा वृंदावन मंदिर में आए।मंदिर हमसे ज्यादा दूर नहीं हैं। वहां अलग-अलग प्रकार के कार्यक्रम होते हैं और आजकल तो विश्व हरि नाम उत्सव मनाया जा रहा हैं। यह कुछ भक्त प्रचार कर रहे हैं।दिवसे शरीर साजे। तुम सारी रात सोते रहते हो और जगते ही अपने शरीर को सजाने लगते हो। इस प्रकार तुम्हारे दिन और रात बीते जा रहे हैं। यह मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभ हैं।" एमन दुर्लभ मनुष्य जन्म पाईला"। इसलिए जागो।अपने जीवन का समय व्यर्थ मत करो।यह जीवन अनित्य हैं और कई सारी विपदाए संसार में आती रहती हैं। नाम का आश्रय लो या फिर मुख में नाम हाथ में काम।काम करते करते नाम लेते रहो। इस प्रकार का प्रचार हो रहा था और कीर्तन भी हो रहा था और अंत में फाइनल घोषणा कर रहे हैं-" नाम बिना किछु नाही और 14 भुवन मांझे"- नाम के बिना कुछ भी नहीं हैं और नाम ही सब कुछ हैं। इन 14 भुवनो में सबसे मूल्यवान नाम ही हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।ठीक हैं। मैं यहां रुकूंगा।मुझे रुकना होगा। हरे कृष्णा।

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