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*जप चर्चा*, *गोविंद धाम, नोएडा*, *12 सितंबर 2021* हरी बोल। हमारे साथ 750 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। गौरंग। पंढरपुर में गौरंग और प्रहलाद बैठे हैं। बाकी भक्त कहां गए? पीछे देखो। हरि हरि। सब को बुलाओ। हरि हरि। जपा टॉक का समय है। हरी नाम उत्सव की मना रहे हैं। आपने शुरुआत तो की है मैंने रिपोर्ट देखी थी। पंढरपुर इस्कॉन भक्त वृंद आप मंदिर गए थे। हरीबोल, धन्यवाद। उसी प्रकार आप सभी भक्त, हर एक भक्त,हर एक पुरुष, स्त्री और बच्चे को पार्टिसिपेट करना है या भाग लेना है। वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल की जय। विश्व हरि नाम महोत्सव की जय। जो भेंट श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु लेकर आए। *गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन, रति ना जन्मिल केने ताय।* *संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले, जुडाइते ना कैनु उपाय ।।* अनुवाद: गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है, और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। यह हरि नाम संकीर्तन हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह गोलोक वृंदावन का प्रेम धन है। परंपरा में इसका वितरण हो रहा है। अभी कईयों की दीक्षा हुई और भी लोगों की दीक्षा हुई। हरी नाम दीक्षा हुई तो हरी नाम धन प्राप्त हुआ। इस धन को सबके साथ बांटना है। हरि हरि। जैसे चीटियां, कुत्ते तो नहीं, लेकिन चीटियां, चींटी की कोई दाना पानी मिलता है शक्कर का कोई कण मिलता है। तो वह चखती भी होगी, उसकी जीवा भी होगी। भगवान ने कैसे-कैसे शरीर बनाए हैं। शायद आप भी एक समय चींटी थे। भूल जाते हैं, है कि नहीं? चीटी थोड़ा मधुर व्यंजन चख लेती है और खाना वही बंद कर देती है और इधर उधर दौड़ती और भागती है और सबको सूचना देती है कि आओ आओ आओ और फिर सब मिल कर टूट पड़ती है। उनकी दावत होती है। *महाप्रसादे गोविंदे* तो यह चींटी का स्वभाव है। अच्छा स्वभाव है। चीटी से भी हम सीख सकते हैं। चींटी को भी हम अपना गुरु बना सकते हैं। इस प्रकार हमें मधुर हरिनाम जो है उसको बांटना चाहिए और सब के पास पहुंचाना चाहिए। हरि हरि। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरिनाम साथ में ले आए। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरिनाम का स्वयं वितरण किए। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की मुख्य लीला में गौर भगवान है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की मुख्य लीला तो कीर्तन लीला है। *सुंदर लाला सचीर दुलाला नाचत श्री हरि कीर्तन में* सुंदरलाल क्या करते थे? श्री हरि कीर्तन में नाचते थे, नृत्य करते थे। गाते और नाचते थे। *महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन।* मंगला आरती में अभी अभी हम गा रहे थे। महाप्रभु का कीर्तन, नृत्य, गीत, वाद्य इसका आस्वादन करते हैं। *वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्* जैसे हम गुरुजनों के चरणों की वंदना करते हैं। जो स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन और नृत्य करते हैं और रोमांचित होते हैं कीर्तन करते समय इसीलिए हम गुरुजनों के चरणों की वंदना करते है। जो भी कीर्तन करते उनके चरणों की वंदना करते हैं। *बोलेत जैसा चालेत* महाराष्ट्र में पंढरपुर में यह सब कहते रहते हैं। जैसे बोलते हैं वैसे चलते हैं। अंग्रेजी में वाक्स द टॉक। जैसा बोलता है वैसा करता है, करके दिखाता है। तो ऐसे भक्तों के चरणों की वंदना, ऐसे भक्तों के चरणों का हमें अनुसरण करना चाहिए। अब वह समय आ चुका है। विश्व हरि नाम उत्सव के समय में आप जो हमारे साथ जप करते हो। जप चर्चा कभी सुनते हो जैसे अभी सुन रहे हो। हमारी एक टीम बन चुकी है। जप क्लब तो नहीं कहेंगे। क्लब अच्छा शब्द नहीं है। हमारा एक समूह बन चुका है। बन रहा है और हम प्रतिदिन एकत्रित होते हैं। देश विदेश के भक्त एकत्रित हो जाते हैं। कई नगरों के, कई ग्रामों के, कई देशों के, कई वर्णों के, कई आश्रमों के, कोई ब्रह्मचारी है, कोई गृहस्थ हैं, यह सब भक्त एक साथ उपस्थित होते हैं। गाय गोरा मधुर स्वरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। गृहे थाको वने थाको , सदा हरि बले डाको , सुखे दुःखे भुल नाको । बदने हरिनाम कर रे ।। मायाजाले बद्ध हये , आछ मिछे काज ल'ये , एखनओ चेतन पे'ये । राधा - माधव नाम बल रे ।। जीवन हइल शेष , ना भजिले हृषीकेश , भक्तिविनोद- ( एइ ) उपदेश , एक बार नामरसे मात रे ।। अनुवाद - अहो ! स्वयं भगवान श्रीगौरसुन्दर अत्यन्त ही सुमधुर स्वरसे ' हरे कृष्ण ' महामंत्रका कीर्तन कर रहे हैं । अतः हे भाइयो ! आप लोग भी घरमें रहें या वनमें अर्थात् गृहस्थाश्रममें रहें या त्यागी आश्रममें अथवा सुखमें रहें या दुःखमें सदैव भगवानका कीर्तन करें । आप लोग माया जालमें आबद्ध होनेके कारण व्यर्थ ही सांसारिक कामोंमें व्यस्त हैं । अब तो होशमें आओ तथा राधामाधवका नाम लो । अरे ! व्यर्थके कार्योंमें तुम्हारा तो सारा जीवन ही बीत गया , परन्तु तुमने कभी हृषीकेश ( कृष्ण ) का भजन नहीं किया । श्रीभक्ति विनोदठाकुर यही उपदेश प्रदान कर रहे हैं - अरे भाइयो ! एक बार तो नामरसमें निमग्न हो जाओ । ऐसे भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा ही है। गृहस्थ है या ब्रह्मचारी है या वानप्रस्थ है या सन्यासी है। हम सभी के लिए एक ही धर्म है। *कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार* कृष्ण प्रकट होते हैं कलयुग में नाम के रूप में प्रकट होते हैं। *अवतरि'चैतन्य कैल धर्म - प्रचारण ।* *कलि - काले धर्म - कृष्ण - नाम - सङ्कीर्तन ।।* (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 11.98) अनुवाद: इस कलियुग में श्री चैतन्य महाप्रभु कृष्णभावनामृत धर्म का प्रचार करने के लिए अवतरित हुए हैं । अतएव भगवान् कृष्ण के पवित्र नामों का कीर्तन वही इस युग का धर्म है। हम सब का एक ही धर्म है। किसी भी वर्ण और आश्रम के हो सकते हैं लेकिन एक ही धर्म है। इस प्रकार हम श्रील प्रभुपाद के शब्दों में इसको हम आध्यात्मिक जगत का एक संगठित देश कह सकते हैं। जब हम जप के लिए एकत्रित हो जाते है। तो हम एक सचमुच में एक साथ संगठित होते हैं। कौन कहां से है, कौन से देश है, कोई थाईलैंड से, कोई नेपाल से, कोई बर्मा से, कोई बांग्लादेश से, कोई भारत से, कोई दक्षिण अफ्रीका से, कोई ऑस्ट्रेलिया से, रशिया से, यूक्रेन से मैं देख रहा हूं कि पूरे जगत के भक्त हैं। मॉरिशियस से भी भक्त जुड़े हुए हैं। जब एक साथ जप करते हैं तो यह एकता है। हम एकत्रित हैं। हां या ना? आप क्या कहोगे हम सब एकत्रित हैं? हम सब एक है। अलग-अलग होते हुए भी हम एक हैं। हर जीवात्मा वैसे एक एक है। ऐसे करके कई सारी जीव हैं। तो भी हम कहते हैं हम एक हैं। हम एक विचार के हैं। हम सबका एक ही विचार है और यह उच्च विचार हैं। हम सभी का एक लक्ष्य हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और श्रीकृष्ण के चरणों की सेवा या प्राप्ति या भगवत धाम वापस लौटना हमारा लक्ष्य है। *एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् । एको देवो देवकीपुत्र एव ।।* *एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि। कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ।।* (गीता महात्म्य ७) अनुवाद: आज के युग में लोग एक शास्त्र, एक ईश्र्वर, एक धर्म तथा एक वृति के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं। अतएव सारे विश्र्व के लिए केवल एक शास्त्र भगवद्गीता हो। सारे विश्र्व के लिए एक इश्वर हो-देवकीपुत्र श्रीकृष्ण । एक मन्त्र, एक प्रार्थना हो- उनके नाम का कीर्तन, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे। केवल एक ही कार्य हो – भगवान् की सेवा। हम सभी के लिए एक ही शास्त्र है। श्रीमद्भगवद्गीता की जय। आपका कोई अलग सा शास्त्र है क्या? नहीं है। सभी के लिए एक ही ग्रंथ है। *एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम्*। तो यहां पर हम जितने भी एकत्रित हुए हैं। 1000 – 1500 भक्त एकत्रित हुआ है। जप किया अब जपा टॉक को सुन रहे हैं। हम सभी के लिए एक शास्त्र है। पूरे संसार के लिए एक शास्त्र है। *गीता सुगीताकर्तव्या किमन्यौ: शास्त्रविस्तरैः ।* *या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ॥* (गीता महात्मय ४) अनुवाद: चूँकि भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है, अतएव किसी अन्य वैदिक साहित्य को पढ़ने की आवश्कता नहीं रहती । केवल भगवद्गीता का ही ध्यानपूर्वक तथा मनोयोग से श्रवण तथा पठन करना चाहिए । केवल एक पुस्तक, भगवद्गीता, ही पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक ग्रंथो का सार है और इसका प्रवचन भगवान् ने किया है। गीता महात्म्य में कहा गया है कि अन्य शास्त्रों की आवश्यकता ही क्या है। जब आपको गीता प्राप्त है। गीता और भागवत एक ही ग्रंथ है। एक दूसरे की पूर्ति करते हैं और ज्यादा मैं नहीं कहूंगा। हम सभी के देव आदि देव हम सभी के भगवान एक ही हैं। 2, 3, 4 अनेक भगवान नहीं है। जब हम एकत्रित होकर जप करते हैं केवल उन्हीं के भगवान एक हैं, ऐसी बात नहीं है। सारे संसार के लिए एक ही भगवान हैं। जिस प्रकार हम एक हैं। एक विचार के हैं। भगवत गीता के विचार हमारे विचार हैं और हम सभी के एक भगवान हैं। हम सभी के लिए एक मंत्र महा मंत्र है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। एक मंत्र है। सभी के लिए एक मंत्र है। जो हमको तारने वाला है। मन को मुक्त करने वाला है। इसी को मंत्र कहते हैं। मन और त्र मतलब त्रायते। बचाने वाला या मुक्त करने वाला मंत्र। किसको मुक्त करने वाला? मन को मुक्त करने वाला। मन ही बद्ध है। *मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।* *बन्धाय विषयासंगो मुक्त्यै निर्विषयं मनः ॥* (अमृतबिन्दु उपनिषद्) अर्थात् : मन ही मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है। इन्द्रियविषयासक्त मन बंधन का कारण है और विषयो से विरक्त मन मुक्ति का कारण है । तो हम बद्ध है। बंधे हुए हैं। पूरी माया ने हम को जकड़ लिया है या फिर हम मुक्त हैं। तो हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है। हमारी मुक्तता या बद्धता। यह मन पर निर्भर रहती है। तो यह जो मंत्र है मन पर कार्रवाई करता है । *भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः ।* *क्षीयन्ते चास्य कर्माणि दृष्ट एवात्मनीश्वरे ॥* ( श्रीमद् भागवतम् 1.2.21 ) अनुवाद: इस प्रकार हृदय की गाँठ भिद जाती है और सारे सशंय छिन्न - भिन्न हो जाते हैं । जब मनुष्य आत्मा को स्वामी के रूप में देखता है , तो सकाम कर्मों की श्रृंखला समाप्त हो जाती है । हमारे मन में जो ह्रदय ग्रंथि है श्छिद्यन्ती, क्षीयन्ती ग्रंथि गांठ को तोड़ देता है छोड़ देता है यह महामंत्र तो यह काम करता है मन में मंत्र तो हम सभी के लिए एक ही मंत्र पूरे संसार के लिए एक मंत्र तो इस प्रकार हम एक हैं सभी एक हैं सारे संसार के लोग हम एक है और क्या है ? "तस्य देवस्य सेवा" "कर्माप्येकं" कर्म भी एक ही है । हम सभी का कर्म एक है और वह कौन सा है ? "तस्य देवस्य सेवा" उस देव की आदि देव कृष्ण देव की सेवा ही हमारा कर्म है तो इस प्रकार हम वैसे एक है और इसी प्रकार से हम हम लोग एक हो सकते हैं या संसार में ही ऐक्य की भावना या विचार या दृष्टिकोण को फैलाया जा सकता है तो श्रील प्रभुपाद कृष्ण की ओर से और परंपरा के आचार्यों की ओर से यह सारे दृष्टिकोण दिए हमको संसार को ताकि संसार में कुछ एकता आ जाए या फिर विश्व बंधुत्व जिसको पैटरनिटी लोग कहते रहते हैं । 'हिंदी चीनी भाई भाई' हम सचमुच वैसे भाई भाई है । इस बंधुत्व को हम अनुभव कर सकते हैं और ऐसा अनुभव करेंगे तो संसार में जो होने वाले झगड़े रगड़े हैं यह मिट जाएंगे या कम तो हो सकते हैं । कितने युद्ध चल रहे हैं, लड़ाई चल रहे हैं, कलह हो रहा है । क्योंकि लोगों के मन काम कर रहे हैं हम तो एक है हम तो भाई भाई हैं लेकिन इस संसार में हम या मित्र है । एक व्यक्ति दूसरा व्यक्ति या मेत्री का हमारा संबंध है लेकिन उसको भूल कर हम एक दूसरे को भूल कर हम एक दूसरे को शत्रु मान रहे हैं । शत्रु मानकर बैठे हैं हम । यह जो ऐक्य का एकता का संदेश है उपदेश से यह जो विचार है इसका प्रचार प्रसार होना अनिवार्य है और इस सब के मध्य में यह हरि नाम है या प्रभु प्रकट होते हैं हुए हैं हरि नाम के रूप में और यह समाधान है । यह सब बातें आपको औरों को सुनानी समझानी भी है जो जो जिन लोगों का समय आ चुका है यह जो आईडिया हम कह रहे हैं यह प्राप्त करने का कुछ जीवों का आज समय आ गया या कल किसी ने कल समय आया था कल उसको सुने और स्वीकार किए । किसी किसी के बारी आज है अपने सारे पूर्व कर्मों के अनुसार आज उनका समय है यह हरिनाम प्राप्त करने का यह विचार प्राप्त करने का गीता का विचार प्राप्त करने का समय तो ऐसी उनकी मांग या तो फिर उसको कोई देने वाला भी चाहिए । *ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव ।* *गुरु - कृष्ण - प्रसादे पाय भक्ति - लता - बीज ॥* ( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 19.151 ) अनुवाद: सारे जीव अपने - अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं । इनमें से कुछ उच्च ग्रह - मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह - मण्डलों को । ऐसे करोड़ों भटक र जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता है , जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है । कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है । तो आज किसी की भाग्य का उदय होगा तो फिर किसी हरे कृष्ण भक्तो को उनके पास पहुंचना होगा । *यारे देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश ।* *आमार आज्ञाय गुरु हञा तार ' एइ देश ॥* ( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 7.128 ) अनुवाद: हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । करने के लिए या मुझे कहे थे "यारे देख , तारे कह" क्या कहे मुझे श्रील प्रभुपाद ? पदयात्रा शुरू करने प्रारंभ में ! "यारे देख , तारे कह" हरे कृष्ण उपदेश तो हमने किया । श्रील प्रभुपाद के आदेश अनुसार और यथाशक्ति हमने पदयात्राएं की सारी संसार भर में । हरि हरि !! श्रील प्रभुपाद के जन्म शताब्दी समय तो 100 से ज्यादा देशों में पदयात्राएं संपन्न हुई तो पग पग पर पदयात्री इन सारी देशों में कीर्तन कर रहे थे और कीर्तन का दान दे रहे थे । श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ भी दे रहे थे प्रसाद भी दे रहे थे तो यह कार्य जो वैसे शुरू किए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय ! और परंपरा में यह प्रचार प्रसार का कार्य चल रहा था और फिर श्रील प्रभुपाद ने इस इस्कॉन की स्थापना करके इस कार्य को ऐसा विश्वव्यापी अंतरराष्ट्रीय बना दिया या ताकि क्या हो जाए ? वैसे चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी ... *पृथ्वीते आछे यत नगर आदी ग्राम ।* *सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम ॥* ( चैतन्य भागवत् 4.126 ) अनुवाद: इस पृथ्वी के प्रत्येक नगर तथा ग्राम में मेरे नाम का प्रचार होगा । मेरा नाम का प्रचार होगा । नगरों में, ग्रामों में तो श्रील प्रभुपाद गए 1965 में हरि नाम लेकर और उन्होंने वितरण शुरू किया और श्रील प्रभुपाद 14 बार सारे संसार का भ्रमण किए जेटएज परीव्राजक आचार्य बने और संसार के कोने कोने में श्रील प्रभुपाद भगवान के नाम यस गान का प्रचार प्रसार किया तो आप वैसा ही करो जैसा मैंने किया या मैंने प्रारंभ किए हुए इस कार्यो को आगे बढ़ाओ । ऐसा श्रील प्रभुपाद का आदेश भी है हम सभी के लिए तो विशेष रूप से यह जो वैसे 17 सितंबर को जो तारीख है इस तारीख को श्रील प्रभुपाद न्यूयॉर्क पहुंचे । जलदूत जहाज में जा रहे थे तो वोट पहुंच गई । पहले बोस्टन में पहुंची । कामनवेल्थ पीरियड मुझे याद आ रहा है कि उस पोर्ट नाम था । कुछ घंटों के लिए प्रभुपाद बोस्टन में वैसे क्या पेंटा पांड्या श्रील प्रभुपाद को श्रील प्रभुपाद को बोस्टन दिखा रहे थे । फिर पुनः वोट में लौट आए और फिर बोस्टन से न्यूयॉर्क का सफर आगे बढ़ा । बोस्टन से न्यूयॉर्क ज्यादा दूर नहीं है तो फिर 17 सितंबर को श्रील प्रभुपाद न्यूयॉर्क पहुंचे । पहुंचते ही उन्होंने हरि नाम का प्रचार प्रसार प्रारंभ किया तो इसीलिए यह जो 17 सितंबर है इसका चयन जो हुआ है । प्रतिवर्ष पिछले 25 सालों से हम यह विश्व हरि नाम उत्सव मना रहे हैं और श्रील प्रभुपाद की गौरव गाथा भी बढ़ा रहे हैं और हरी नाम का महिमा हरि नाम की गुण गाथा का प्रचार प्रसार वैसे कीर्तन करके भी । *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥* तो आप सबको आज हमने घोषणा सुनी नोएडा मंदिर में मंगल आरती के बाद तो आज दूसरा दिन है विश्व हरि नाम उत्सव का दूसरा दिन इस तरह 17 तारीख तक और फिर दूसरा एक पार्ट है 17 से 23 तारीख तक वैसे 23 तारीख तक यह उत्सव मनाए जाएंगे तो इसको नोएडा इसको पहले से ही शुरू कर चुका है और कल उन्होंने भाग्यवान जीव कैंपेन के कितने वीडियोस ? कल एक ही दिन में 500 वीडियोस बनाएं इसको नोएडा के भक्तों ने, कई युवकों ने कई उत्साही युवक रिकॉर्ड कर रहे थे जो विजिटर्स या मंदिर के सामने आने जाने वाले लोगों को पकड़ पकड़ के, कोयला भी तक संख्या वैसे 4500 वीडियो हो चुके हैं और उनका प्रयास चल रहा है कुछ विश्व विजेता बनने का । विजेता बनना चाहते हैं 25000 का टारगेट उन्होंने बनाया है तो यह एक बात है और भी कई सारे योजनाएं हैं माधुरी गौरी आपको सुना रही थी । क्या तुम हो ? पद्ममाली तुम हो ? और कौन-कौन है ? कृष्ण भक्त ज्ञात थोड़ा समझाओ क्या क्या कर सकते हैं हमारे यह जो टीम है । यह एक विशेष टीम है और भी कई सारे टीमें है मंदिर है देश है या नगर है ग्राम है उनमें में हमारे यह जो प्रतिदिन एकत्रित होके यह जो जप करते हैं जपा टॉक को सुनते हैं तो इस टीम को एक्टिव होना होगा मंदिर के साथ भी जुड़ सकते हैं या मंदिर वालों को याद दिला सकते हैं यह विश्व हरि नाम उत्सव आ गया । "श्रद्धावान जन हे, श्रद्धावान जन" पातियाछे नाम-हट्ट जीवेर कारण" "नदिया गोद्रुमे नित्यानंद महाजन" एसे भक्तिविनोद ठाकुर घोषणा कर रहे हैं उसकी इसमें । हे श्रद्धावान लोगों क्या करो ? नदिया गोद्रुम में आओ यह नित्यानंद प्रभु ने नाम हट्ट प्रारंभ किया है इसका फायदा उठाओ तो हमारी टीम भी ऐसी घोषणा कर रही है और वैसे आप टीम मेंबर हो तो आपकी भी स्कोर्स वगैरा उत्सव के अंत में देखे जाएंगे और आप में से कौन जीतेगा भाई जीतेगा ! तो आपको इसमें भाग लेना होगा या बड़ी प्रतियोगिता होगी, दिव्य प्रतियोगिता । ठीक है तो आप लोग भी कहो कुछ । माधुरी गोरी तुम कुछ अधिक कहना चाहती हो या कृष्ण भक्त हेतु या पद्ममाली तुम स्वयं या आप भी जो मुझे सुन रहे हो आप में से कोई कुछ कहना चाहते हैं और कुछ प्रेरणा के बच्चन या आपका कोई संकल्प है या आपने कैसे शुभारंभ हुआ । अपने विश्व हरि नाम उत्सव कल कैसे बनाया । आज क्या करने वाले हो । काम धंधे तो चलते रहते हैं थोड़ा थोड़ा दूसरा कुछ करो, कुछ दिव्य कार्य करो । यह दुनियादारी बहुत हो गई । हरि हरि !! जीव जागो जीव जागो ! गोराचांद बोले ! चैतन्य महाप्रभु बुला रहे हैं । ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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