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जप चर्चा 14 सितंबर 2021 827 स्थानों से आज भक्त जप कर रहे हैं । हरि बोल । समझल का? अब 830 स्थानों से आप सब जप कर रहे हो । जय श्री राधे । राधे , जय श्री राधे । आप सबको राधा अष्टमी की बधाइयां , शुभेच्छा । आज के दिन का क्या कहना ? आज राधा अष्टमी है । नंद के घर आनंद भयो , कृष्ण अष्टमी के दिन नंद के घर आनंद भयो , किंतु आज के दिन वृषभानु राजा के घर आनंद भयो । भयो मतलब भाला ।भयो ब्रजभाषा हुई । हरि हरि । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। राधा अष्टमी के दिन राधा रानी का जन्म हुआ ही किंतु उनके नाम के रूप में जो हरे कृष्ण हरे कृष्ण का जो नाम है इस नाम के रूप में राधा रानी हर दिन प्रकट होती है । हरि बोल । आपके घर में प्रकट होती है । यवतमाल में , सतरंजी में या जहां पर भी हम राधे के नाम एक का उच्चारण करते हैं तब राधा प्रकट होती है और साथ में कृष्ण भी प्रकट होते हैं । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। यह जो नाम है , यह जो महामंत्र है यह राधा कृष्ण की कृपा है । इस नाम के रूप में भगवान प्रकट होते हैं , हरे मतलब राधा । इस महामंत्र में कितने बार हरे हरे हरे है ? 8 बार हरे हैं । हरे मतलब राधा । जय जय राम कृष्ण हरि । जय जय राम कृष्ण हरि । जय जय राम कृष्ण हरि । हरे कृष्ण महामंत्र में हरे हैं , हरि नहीं है । हरि तो कृष्ण है , राम कृष्ण हरि । कृष्ण कौन-कौन है? कृष्ण राम है या कृष्ण कृष्ण है और कृष्ण हरि है , किंतु इस हरे कृष्ण महामंत्र में जो हरे हरे है यहा मराठी लोग भी बैठे तो इसलिए यह चर्चा हो रही है या यह बताया जा रहा है । हरे कृष्ण महामंत्र का वैशिष्ठ है कि इसमें राधा का नाम है । राधा ! हरा हरा हरा मतलब राधा , और हरे मतलब हे राधे ,हे राधे ! यह पूरा मंत्र ही प्रार्थना है । अभी अभी हम क्या कर रहे थे ? जप करते-करते हम प्रार्थना कर रहे थे । किसको प्रार्थना करते हैं ? राधा और कृष्ण को केवल कृष्ण को नहीं । यही तो बात है राधा और कृष्ण दोनों को प्रार्थना करते हैं । हरि हरि । सत्यम् सत्यम् पुना, सत्यं सत्यं इव पुना पुना, विना राधिको प्रसादे, कृष्ण प्रसादो न विद्यते। - (नारद पुराण) श्री कृष्ण कहते हैं: हे नारद! मैं आपको सत्य कह रहा हूँ और बार बार, फिर से, सत्य बार-बार कहता हूं -"श्री राधारानी की कृपा के बिना मेरी कृपा कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता"। एकवचन है जिससे हम समझ सकते है कि यह सत्य है । जो आपको बताया जा रहा है सत्यम सत्यम पुना पुना यह सत्य बात , यह सत्य कथा , सत्य वचन है । बिना राधा प्रसादेन , राधा के प्रसाद बिना , राधा की कृपा बिना वैसे कृष्ण की कृपा नहीं होती । इसलिए हम केवल कृष्ण कृष्ण नहीं कहते । जय जय राम कृष्ण हरि भी ठीक है किंतु साथ में इस महामंत्र में राधा को पुकारते है। करुणां कुरु मयि करुणा भरिते। सनक सनातन-वर्णित चरिते।। अनुवाद:- आपका दिवय चरित्र सनक-सनातन जैसे महान संतो द्वारा वर्णित होता है। हे राधे, मुझ पर करूणा करो। राधा का गुणगान है । सनक सनातन-वर्णित चरिते। सुना होगा आपने , क्या है ? ब्रह्मा के पुत्र है , मानस पुत्रवह भी राधा राधा राधा राधा रटते हैं , राधा के गुण गाते हैं और फिर वह केवल चार कुमार ही नहीं ब्रह्मा भी रटते है । ब्रह्मा बोले , क्या बोले ?चतुर्मुख कृष्ण कृष्ण हरे हरे । ब्रह्मा जी भी बोलते हैं । वैसे ब्रह्मा 400 वर्ष पूर्व हरिदास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए और वह 300000 नामों का प्रतिदिन जप करते थे , प्रतिदिन दिन करते थे साल भर में नहीं । तीन लाख नाम जप प्रतिदिन करने वाले वह ब्रह्मा थे , चतुर्मुखी ब्रह्मा । पंचमुखी महादेव राम राम हरे हरे और शिव जी का एक रूप है पंचमुखी महादेव , पांच मुख वाले । उनके मुख पाच है तो आंखें कितनी है ? 15 है । एक मुख में 3 , त्रिनेत्र तो इन सभी मुखो से वह बोलते रहते हैं राम, राम राम , हरे हरे , हरि हरि । वृंदावन में गोपेश्वर महादेव भी है रास क्रीड़ा में स्वयं वह गोपी बन जाते हैं । शिवजी गोपी बनते हैं , गोपी भाव , गोपी रूप धारण करते है । राधा श्याम सुंदर की जय । राधा श्याम के साथ जो असंख्य गोपियां है वैसे शिवजी भी एक गोपी बनते हैं और नृत्य करते हैं । इस प्रकार वह भी राधा कृष्ण के गुण गाते हैं , नारद मुनि भी गोपी बनते हैं । नारदी गोपी , हरि हरि । वह भी रास क्रीडा में गोपी भाव में प्रवेश करते हैं , हरि हरि । यह गोपी भाव या गोपी भाव मतलब ही राधा भाव , भक्ति करनी है तो किस भाव में ? राधा भाव में , राधा भाव , गोपी भाव यह सर्वोच्च भाव है । साधी राहनी उच्च विचार । सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग । सबसे ऊंचा विचार राधा रानी का हुआ । राधा गोपी इनके विचार सर्वोच्च विचारों है । इनके विचार शुद्ध , पवित्र विचार हैं । राधा रानी सदैव कृष्ण का ही चिंतन करती है और कृष्ण का ही सानिध्य चाहती है । भक्ति करनी है तो राधा जैसी भक्ति करो । अनयाराधितो नूनं भगवान्हरिरीश्वरः । यत्रो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद्रहः ॥ (श्रीमद्भागवत 10.30.28) अनुवाद : इस विशिष्ट गोपी ने निश्चित ही सर्वशक्तिमान भगवान् गोविन्द की पूरी तरह पूजा की होगी क्योंकि वे उससे इतने प्रसन्न हो गये कि उन्होंने हम सबों को छोड़ दिया और उसे एकान्त स्थान में ले आये । श्रीमद् भागवत नमें कहा है । अनयाराधितो नूनं यह चरण कमल और किसके हो सकते हैं ? राधा रानी के ही होने चाहिए । यह लीला है , गोपियां कृष्णा को खोज रही थी । कृष्णssss कृष्णाssss आप कहां हो ? कृष्णा sssss आप कहां हो ? रास क्रीड़ा की शुरुआत होने वाली थी इतने में कृष्ण अंतर्धान हो गए और साथ में राधा को ले गए । बेचारी गोपिया बिछड़ गई , अलग हो गई। फिर खोज रही थी , खोजते , खोजते , खोजते खोजते , एक वन से दूसरे वन , दूसरे वन तीसरे वन , तीसरे वन से चौथे , कितने बन हैं ऐसे ?वृंदावन में 12 मोटे मोटे वन है । उपवन है , वन के अंदर वन , वन के अंदर वन ऐसे कई हजारों , लाखों वन है । वनात वनम एक वन से दूसरे वन जा रहे थे । गोपियां खोजती हुई आगे बढ़ रही थी तब कृष्ण के चरण चिन्ह उन्हें दिखे और आगे बढ़ी तब कृष्ण के चरण चिन्हों के साथ और एक व्यक्ति के चरण चिन्ह भी उनको दिखे । किसी गोपी ने पूछा कि , " यह चरण चिह्न किसके हो सकते हैं ?" वहां श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के 30वे अध्याय में कहां है , अनयाराधितो नूनं भगवान्हरिरीश्वरः । यत्रो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद्रहः ॥ पगली कहीं की इतना नहीं जानती , यह चरण चिन्ह और किसके हो सकते हैं ? राधा रानी के ही हो सकते हैं । अनयाराधितो नूनं ,और कैसी राधा ? कृष्ण की आराधना करने वाली राधा , आराधयते जो आराधना करती है । इसलिए जो नाम है आराधना राधा राधा आराधना ऐसे ध्वनित होता है । आराधना आराधना क्या नाम हुआ ? आराधना करने वाली राधा । जितने भी आराधक है , आराधना करने वाले इस संसार में है या बैकुंठ में है या अयोध्या में है या गोलोक वृंदावन में है नंबर वन आराधक कौन है ? जय श्री राधे । राधा रानी के बराबर कोई नहीं । हरि हरि । वैसे राधा रानी भगवान है । भगवान की शक्ति है , कृष्ण की शक्ति या कृष्ण को आल्हाद देने वाली शक्ति है । आल्हाद समझते हो ? प्रह्लाद आल्हाद दायिने , प्रह्लाद को आल्हाद देने वाले कौन है ? नरसिंह भगवान । नरसिंह भगवान ने प्रह्लाद को अल्लाह दिया । कृष्ण को आल्हाद देने वाली कौन है ? राधा रानी , और भी देते हैं लेकिन राधा रानी जितना आल्हाद , आनंद कृष्ण को देती है इतना अल्लाह , आनंद और कोई नहीं दे सकता । भगवान कैसे हैं ? सच्चिदानंद , यह जो आनंद है सच्चिदानंद हैं । भगवान सत है , भगवान चित हैं , भगवान आनंद है । राधारानी आनंद देती हैं और भी देते हैं , हम भी दे सकते हैं । इसलिए वैसे उनको बनाया है ताकि हम क्या करें भगवान को आनंद दे । हम भी शक्ति है , राधा रानी भी शक्ति है किंतु राधारानी अंतरंगा शक्ति है और माया बहिरंगा शक्ति है और हम तटस्थ शक्ति है । कई सारी सिद्धांत की ज़ तत्व की , शास्त्र की बातें हैं उनको हम को सीखनी समझनी चाहिए । चितरंजी में राधा अष्टमी के दिन राधा श्यामसुंदर आ रहे हैं । राधा कृष्ण को समझना होगा , राधा रानी को समझना होगा या उनका तत्व समझना होगा । एक तत्व शक्ति तत्व है , कई सारे तत्व है , “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || (भगवद्गीता 4.9) अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | भगवद्गीता के चौथे अध्याय में दिया है । क्या करो ? आप सब मेरा जन्म और फिर राधा रानी का जन्म भी , यह जन्म कैसा है? दिव्य है । राधा रानी का जन्म , कृष्ण का जन्म कैसा है ? दिव्य है । हमारा जन्म मेटरनिटी होम जहां कहीं भी होता है तो उसमें कोई दिव्यता तो नहीं है वैसे कुत्ते का भी जन्म होता है। कुत्ते का बिल्ली का भी जन्म होता है हम लोगों का भी जन्म वैसे ही होता है कुछ बड़ी बात नहीं है कोई विशेषता नहीं है लेकिन कृष्ण का जन्माष्टमी के दिन 2 सप्ताह पहले कृष्णष्टमी हुई और आज है राधा अष्टमी आज राधा अष्टमी है तो जिस दिन राधा रानी प्रकट हुई थी वृंदावन में कहा रावल गांव में यह सब आपको पता होना चाहिए और आपको और कई सारी बातें पता होती हैं कई सारे हीरो अवार्ड वॉच पवार जी ने कहा और आतंकवाद और उन सारे बदमाशों के बारे में हम बहुत पड़ते हैं जानते हैं। लेकिन हम कृष्ण के संबंध में राधा के संबंध में कब जानेंगे राधा का जन्म रावल गांव में आज के दिन हुआ वह जन्म दिव्य जन्म है हम सुनेंगे पड़ेंगे कैसे जन्म हुआ तो हम समझ सकते है कि वह जन्मदिन दिव्य था। या अलौकिक था कैसा था और अलौकिक लौकिक और अलौकिक लौकिक मतलब इस लोक में इस संसार को लौकीक कहते हैं त्रिलोक या चौराहा भुवन और ये लोक अलौकिक आउट ऑफ दिस वर्ल्ड इतना तो समझते हो इस जगत के परे ऐसा जन्म कृष्ण का जन्म और राधारानी का जन्म इस जगत का जन्म नहीं है। यह जगत में सिर्फ हम जन्म लेते हैं ऐसा जन्म नहीं है और ना तो राधा कृष्ण और राधा कोई साधारण जीव नहीं है हम जीव हैं हम कौन हैं जीव हैं जीवात्मा है लेकिन राधा रानी तो भगवान की आल्हादिनी शक्ति है। चैतन्य चरितामृत आदी 1.5 राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥५५ ॥ राधा - भाव अनुवाद:- " श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । " एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ ऐसे चैतन्य चरितामृत में उल्लेख आता है। वैसे राधा और कृष्ण एक आत्मा है एक आत्मा राधा और कृष्णा दो नहीं है राधा और कृष्ण एक है एक शक्ति है और दूसरे शक्तिमान है। एक है शक्ति वो है राधा रानी और जिनकी वो शक्ति है कृष्ण की वह है राधा रानी कृष्ण की शक्ति है राधा और शक्ति और शक्तिमान में भेद नहीं है राधा रानी साधारण स्त्री नहीं है जैसे कोई इचलकरंजी की हम तो ऐसे मच्छर है चीटी है हम तो कुछ भी नहीं है राधा के समक्ष राधा कृष्ण ही है राधा क्या है राधा कृष्ण ही है। तो लीला खेलने के लिए भी हो देह भेद गतो तो एक कि वह क्या करते हैं एक के दो बन जाते हैं अपने कई प्रकार के पेंटिंग वृंदावन में देखा होगा राधा कृष्ण केवल युगल सरकार राधा कृष्ण कृष्ण का चित्र दिखाते हैं वैसे वह एक ही है। सिर्फ रंग का भी दिखता है काले सांवले कृष्ण है और राधारानी का रंग कैसा है तप्तकांचन मतलब तपा हुआ सोना जो और चमकता है ना इसलिए केवल कांचन नहीं कहा तप्तकांचन कहा तपा हुआ सोना और भी चमकता है। हरि हरि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कैसे हैं राधा रानी को समझना कठिन है भगवान को समझना राधा रानी को समझना हरि हरि तो राधा रानी को समझने के लिए वैसे कृष्ण प्रकट हुए और कौन बने चैतन्य महाप्रभु कृष्ण बने श्री कृष्ण चैतन्य श्री कृष्ण चैतन्य बनने का उद्देश्य क्या था राधा को वह जानना चाहते थे। भगवद्गीता 4.8 “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||” अनुवाद भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | यह भी एक उद्देश्य परित्राणाय साधुनाम यह तो करेंगे ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु किंतु एक अधिक कारण था एक विशेष कारण था जिस उद्देश्य के साथ कृष्ण प्रकट हुए चैतन्य महाप्रभु के रूप में वह था राधा रानी को जानना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने राधा भाव को अपनाया चैतन्य चरितामृत आदि 1.5 राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं राधा - भाव - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥५५ ॥ अनुवाद " श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । " और फिर जगन्नाथपुरी में जब चैतन्य महाप्रभु 18 वर्ष रहे जगन्नाथपुरी में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु रहे कितने साल 18 साल और वो कोल्हापुर भी आए थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहा आये महालक्ष्मी का दर्शन करने यहां महालक्ष्मी को दर्शन देने आपने सुना हम लोग दर्शन करने जाते हैं वहां लक्ष्मी का लेकिन चैतन्य महाप्रभु महालक्ष्मी को दर्शन देने गए महालक्ष्मी किसकी है भगवान की है कृष्ण की लक्ष्मी है आपकी नहीं है हम लोग लक्ष्मी को अपनी लक्ष्मी कहते हैं। अपना पैसा अड़का ऐसा करना मतलब रावण बनना है। राम की सीता किसकी है राम की सीता रावण का क्या प्रयास चल रहा था उसको अपनी सीता रावण की सीता ऐसा कभी संभव नही है श्री श्री सीता रावण ऐसा कभी संभव नही है। श्री श्री सीताराम ही संभव है लेकिन रावण प्रयत्न तो करते हैं धन दौलत यह भी लक्ष्मी है। संपत्ति है फिर श्री हनुमान आ जाते हैं और क्या करते हैं सीता को पुनः राम जी को सौंप देते हैं। पहले खोजते हैं राम को फिर वहां ले जाते हैं फीर युद्ध होता हैं हमें रावण नहीं कौन बनना चाहिए हनुमान बनना चाहिए रावण सीता को लक्ष्मी को अलग करना चाहता था उसका उपभोग करना चाहता था। यह तो हम सब की समस्या है हम सब रावण है आपको यह सुनकर अच्छा तो नहीं लगेगा अब तक किसी ने नहीं कहा था हम रावण है। हम रावण है या हिरण्यकशिपु है हिरण्यकशिपु मतलब इसको क्या पसंद है हिरण्य हिरण्य मतलब सोना हिरण्य मतलब सोना एक तो सोना सोना दूसरा सोना कशिपु मतलब सॉफ्ट बेड किसको पसंद है। जिसको हिरण्य स्वर्ण सोना पसंद है और साथ ही साथ कशीपू ऐशो आराम पसंद है। जिसको भी ये पसंद है हो गया कि नहीं हिरण्यकशिपु हरि हरि जय श्री राधे तो माधव सो रहे हो चैतन्य महाप्रभु ने कहा है चैतन्य महाप्रभु स्वयं ही राधा के भाव को अपनाए और राधा जैसी भक्ति कर रहे थे। राधा को जानने के लिए वही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहते हैं आप सब क्या करो रम्याकाशीद उपासना कल्पित वृंदावन का वधु वर्ग सभी गोपिया और उनकी लीडर राधारानी जैसी भक्ति आराधना भगवान की करती हैं वैसे हमको भी भगवान की उस पद्धति से उस विचारधारा के साथ समझ के साथ हमको भगवान की आराधना करनी चाहिए यह है शुद्ध भक्ति शुद्ध भक्ति है। यहां यह जो जप है कीर्तन है हरे कृष्ण महामंत्र का जप महामंत्र का कीर्तन और कई भी प्रकार से पद्धति से हमभगवान की भक्ति करते हैं लेकिन मुख्य तो इस कलयुग में हरेर नामेव केवलम केवल हरिनाम केवल हरि नाम हरे कृष्ण आज के दिन मैं तो सोच रहा था लेकिन आज के दिन मतलब राधा अष्टमी के दिन 37 वर्षों पूर्व हमारी जो ऑल इंडिया पदयात्रा चल रही है। पूरी भारत यात्रा करने वाली पदयात्रा पहले यहां महाराष्ट्र पदयात्रा आयी थी और इंडिया पदयात्रा का भी आई थी तो ये ऑल इंडिया पदयात्रा राधा अष्टमी के दिन द्वारिका से 1984 में पदयात्रा शुरू हुई और आज तक चल रही है। पिछले 37 वर्षों से आज उसका वर्धापन दिन कहो ऑल इंडिया पदयात्रा का वर्धापन दिन और पदयात्रा की बात चल रही है तो श्रील प्रभुपाद मुझे राधा अष्टमी के दिन ही दिल्ली में 1976 में 1 सितंबर राधा पार्थसारथी मंदिर में मुझे पदयात्रा बैलगाड़ी के साथ प्रचार करने का आदेश दिया। इसे मैं राधा रानी की कृपा समझकर मुझ पर राधारानी की कृपा प्रभुपाद जी ने मुझ पर बरसाये पदयात्रा क्या करती है और पदयात्रा का मुख्य उद्देश्य तो हरि नाम का प्रचार है जो जप हम करते हैं कीर्तन हम करते हैं और चैतन्य महाप्रभु ने कहा मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥ २४२ ।। अनुवाद ' कलह और दिखावे के इस युग में उद्धार का एकमात्र साधन भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन है । इसके अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं है , अन्य कोई नहीं है , अन्य कोई नहीं है । " पदयात्रा के माध्यम से हरिनाम को नगरों में ग्रामों में पहुंचाया जाएगा ऐसा प्रभुपाद जी का दृष्टिकोण था तो उसके बाद श्रील प्रभुपाद जीने मुझे ये सेवा के राधाष्टमी के दिन ही दी। हरि बोल हरि बोल आज के दिन एक नई पदयात्रा प्रारंभ हो रही है यह ऑल इंडिया पदयात्रा वाले बैठे हैं राजस्थान में हैं। आज से एक नई पदयात्रा की शुरुआत हो रही है और बंगाल में शुरू होंगी मायापुर से नवदीप मायापुर से जगन्नाथपुरी जाएंगी आज उसका शुभारंभ है जय हो और क्या ठीक है आज के दिन 17 वर्ष पूर्व पंढरपुर में राधापंढरीनाथ की स्थापना हुई राधा पंढरीनाथ की जय पंढरपुर के भक्त भी यहां बैठे हैं तुम मुझे तो आज वहां होना चाहिए था। राधा अष्टमी के दिन ही पंढरपुर में राधापंढरीनाथ प्रकट हुए प्राण प्रतिष्ठा हुई और फिर हमको हर्ष हो रहा है यह घोषित करते हुए की मुझे वैसे आज के दिन वृंदावन होना चाहिए था मैं वृंदावन में ही था दो दिन पहिले वृंदावन को छोड़कर न जाने कहां पहुंच गए लेकिन पता चला कि इचलकरंजी में इस्कॉन इचलकरंजी की जय यहां राधाश्यामसुंदर का आगमन हो रहा है यहां राधाश्यामसुंदर का स्वागत हो रहा है तो मैं यहां आज पहुंचा हूं राधाश्याम सुंदर का स्वागत करने के लिए हरि बोल आप सब सादर आमंत्रित हो 10 देशों के भक्त यहां हमारे साथ इस वक्त हजार डेढ़ हजार भक्त सुन रहे हैं या अधिक भी हो सकते हैं। राधा अष्टमी की जय मोरिशियस से है थाईलैंड से भी कोई है यूक्रेन से हैं तो वह सुन रहे हैं आप हर रोज जप करते हो कि नहीं अपने अपने घरों में करते होंगे पर हमारे साथ भी किया करो ठीक है। और क्या बताएं जयपताका स्वामी महाराज श्रील प्रभुपाद जी ने उनको सन्यास दीक्षा दी और ये 51 वर्ष पूर्व की बात है 51 वर्ष सन्यास दीक्षा महामहोसव की जय एक उत्तर प्रदेश में भी है एक महाराष्ट्र में चल रही है बंगाल में आज शुरू हुई है। तो उत्तर प्रदेश वाली पदयात्रा भी राधा अष्टमी के दिन ही शुरू हुई थी। उनका ज्यादा कनेक्शन है जुड़ा है राधा की कृपा है वृंदावन में गुरुकुल की भूमि का पूजन भी राधाअष्टमी के दिन ही हुआ 1975 में आज के दिन प्रभुपाद वृंदावन में थे कृष्णबलराम मंदिर के बगल में जो गुरुकुल है भूमि पूजन समारोह ही संपन्न हुआ जिस गुरुकुल में साथ सनातन प्रभु रहे थे वह गुरुकुल में पड़े हैं वह स्कूल जहां की भूमि पूजन की बात है तो इस प्रकार यह परम पावन दिन कई सारे उत्सव या पदयात्रा का प्रारंभ इत्यादि इत्यादि घटना घटी है यह सब राधा रानी की कृपा है जय श्री राधे श्याम ठीक है

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