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8th Aug 19 हरे कृष्ण आज मैं अधिक समय तक आपके साथ जप नही कर सका क्योंकि मैंने अपना जप दिन के समय पहले से ही पूरा कर लिया है। अतः अब आपके साथ में, मैं जप चर्चा करूंगा, बहुत थोड़े समय के लिए मैंने आपके साथ जप किया है। आज मैं रिचमंड में हूं,लॉस एंजेलिस से रिचमंड आने में लगभग 10 घंटे लगे। रिचमंड वॉशिंगटन डीसी के पास में एक छोटा सा शहर है। यहां पर आते ही सत्संग का कार्यक्रम था। यह दिव्यनाम प्रभु का निवास है जंहा पर मैं अभी हूँ रिचमंड में , वे इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने सभी कांग्रेगेशन भक्तों को आमंत्रित किया है ,और यहां पर हरीनाम पर चर्चा होती है, और साथ ही साथ कीर्तन होता है। इस प्रकार दिव्यनाम प्रभु ने यह कार्यक्रम आयोजित किया है और इसमें मैं अभी सम्मिलित हुआ हूँ।इस प्रकार से जब मैं कल यहां पहुंचा तो मैंने आगमन प्रवचन दिया । यहां के भक्त मेरा बार-बार धन्यवाद कर रहे थे। वह कह रहे थे धन्यवाद महाराज आप यहां आए, इसके उत्तर में मैंने कहा कि वास्तव में तो हमें परम भगवान का धन्यवाद करना चाहिए और श्रील प्रभुपाद को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि महाप्रभु ने प्रभुपाद को शक्ति प्रदान की और अमेरिका का उद्धार करने के लिए वहां भेजा । प्रभुपाद वहां आए और उन्होंने यहां इस्कॉन बनाया अभी जब मैं यहां आया हूं और आपसे मिला हूं तो इसके पीछे मुख्य कारण श्रील प्रभुपाद ही हैं और हमें श्रील प्रभुपाद का धन्यवाद करना चाहिए उन्हीं के कारण हम आपस में एक दूसरे से मिल पा रहे हैं । मैंने उन्हें यह भी बताया कि श्रील प्रभुपाद जलदूत नामक जहाज से भारत से अमेरिका आए थे। जब श्रील प्रभुपाद अमेरिका पहुंचे तब यहां पर उनके स्वागत के लिए कोई नहीं था परंतु जब मैं यहां पहुंचा बहुत सारे भक्त मेरा स्वागत कर रहे थे, यहां अमेरिका में संकीर्तन कर रहे थे। परंतु श्रील प्रभुपाद जब आए तब यहां पर उन्हें रिसीव करने के लिए उनका स्वागत करने के लिए कोई भी नहीं था । प्रभुपाद ने अपनी डायरी में इसके विषय में लिखा है इस डायरी को जलदूत डायरी कहते हैं । श्रील प्रभुपाद ने इस डायरी को लिखा था जब वे भारत से पहले बोस्टन आए और फिर बोस्टन से न्यूयॉर्क आए। प्रभुपाद ने उस समय अपनी यात्रा के संस्मरण में एक डायरी लिखी। जलदूत डायरी में श्रील प्रभुपाद लिखते हैं कि जब मैं न्यूयार्क पहुंचा उस समय कोई भी मेरे स्वागत के लिए वहां पर उपस्थित नहीं था। मुझे यह भी नहीं पता था कि किधर जाना है दाएं जाना है अथवा बाएँ ।परंतु अब जब हम लोग यहां पर आते हैं तो हमारा भव्य स्वागत होता है हमें मालाएं पहनाई जाती है कीर्तन दल होते हैं जो कि हमारे आगमन पर कीर्तन करते हैं। इस प्रकार से ये सभी सुविधाएं अथवा सम्मान वह श्रील प्रभुपाद की कृपा से मिल रहा है। श्रील प्रभुपाद इस संकीर्तन सेना के सेनापति भक्त हैं। इस प्रकार उन्होंने अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की, परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने पहले ही इसकी स्थापना कर दी थी। भगवान श्री कृष्ण प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थान पर होते हैं। भगवान श्री कृष्ण अमेरिका या पश्चिम देशों में गुप्त रूप में थे, वे यहां पर अपनी लीलाएं कर रहे थे। परंतु भगवान उस समय में दृष्टिगोचर नहीं थे, वे हमें दृश्य नहीं थे, और वे इतनी अधिक मात्रा में सुलभ नहीं थे जिससे हम उन्हें अप्रोच करते। भगवान अमेरिका अथवा पश्चिम देशों में गुप्त रूप में अपनी लीलाएं संपन्न कर रहे थे। श्रील प्रभुपाद ने यहां पश्चिम में कृष्ण का प्राकट्य करवाया उन्होंने अमेरिका और पश्चिम के देशों में इसके साथ संपूर्ण विश्व में भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य किया। इस प्रकार अब हम जहां पर भी जाते हैं वहां पर कृष्ण भक्त हैं वहां पर भगवान कृष्ण के मंदिर है। यंहा पर रथ यात्रा उत्सव संपन्न होते हैं, अभी सभी भक्त आनेवाले भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की तैयारी कर रहे हैं। जन्माष्टमी उत्सव हो रहे हैं, नगर संकीर्तन संपूर्ण विश्व में हो रहा है जहां हमारे हरे कृष्ण भक्त नगर में, गलियों में जाकर मृदंग करताल के साथ में कीर्तन करते हैं। यह मृदंग और करताल का कीर्तन एक समय मायापुर में , नवद्वीप में ,मणिपुर में, एक तरह से कहें तो सिर्फ भारत में होता था। भारत से बाहर नहीं होता था परंतु अब प्रभुपाद की कृपा से संपूर्ण विश्व में हो रहा है जहां संपूर्ण विश्व में भक्त करताल मृदंग के द्वारा हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करते हैं।श्रील प्रभुपाद ने हमें यह सभी कुछ प्रदान किया है और इसलिए हम श्रील प्रभुपाद को हरिनाम के राजदूत के रूप में भी जानते हैं वह हरि नाम के एंबेसेडर है ऐसा हम कहते हैं। हमारे हरे कृष्ण भक्त इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करते हैं । वे यहां वहां सर्वत्र हरे कृष्ण नाम का कीर्तन करते हैं। इस प्रकार लोग जब हमें नगर संकीर्तन करते हुए देखते हैं, वे हमें इस प्रकार संबोधित करते हैं देखो वह हरे कृष्ण भक्त है, श्रील प्रभुपाद ने प्रत्येक स्थान पर गौर भक्त वृंद बनाए ,अनुयाई बनाएं। लोग हमें हरे कृष्ण भक्त या हरे कृष्ण अनुयाई भी कहते हैं। प्रभुपाद ने इस हरे कृष्ण महामंत्र के जप और कीर्तन को विश्व विख्यात किया और इस प्रकार जो बीटल ग्रुप है, बीटल ग्रुप के जॉर्ज हैरिसन ने भी इसका कीर्तन करना प्रारंभ किया और उन्होंने इसका एक एल्बम भी बनाया और इस एल्बम का वितरण संपूर्ण विश्व में हुआ और यह एल्बम अत्यंत ही विख्यात हुआ था। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद के समय जब प्रभुपाद और उनके अनुयाई किसी एक क्षेत्र में जाते थे अथवा किसी एक देश में प्रचार के लिए जाते थे तो ऐसा होता था कि वहां के जो क्षेत्रवासी है जो नगरवासी है वह पहले से ही "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। ।" महामंत्र पहले से ही सुन लेते थे उनके लिए नया नहीं होता, जॉर्ज हैरिसन का एल्बम वह बहुत विख्यात हुआ और इससे हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन भी बहुत विख्यात हुआ। इस हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन द्वारा श्रील प्रभुपाद ने अपने अनुयायियों को वह शक्ति प्रदान की, वह कृपा प्रदान की जिससे वे इसका प्रचार संपूर्ण विश्व में और अधिक से अधिक मात्रा में कर सकें, इसके साथ ही साथ प्रभुपाद ने पुस्तकों के अध्ययन और वितरण का उपदेश भी हमें दिया जिससे हमें भगवान श्री कृष्ण और अधिक सुगम हो पा रहे हैं, और प्रभुपाद के अनुयाई इन पुस्तकों का वितरण संपूर्ण विश्व में कर रहे हैं ।श्रील प्रभुपाद ने हमें चैतन्य चरितामृत, इशोपनिषद ,भगवत गीता ,भागवत आदि अनेक शास्त्र प्रदान किए हैं और प्रभुपाद ने अपने अनुयायियों को यह निर्देश भी दिया की भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने प्रभुपाद को अथवा उस समय वह अभय बाबू के नाम से जाने जाते थे उन्हें यह निर्देश दिया था कि तुम पश्चिम में जाओ और अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने भागवत के प्रथम स्कंध को अंग्रेजी में प्रकाशित किया और जब वह अमेरिका आए तो अपने साथ श्रीमद भगवतम के प्रथम स्कंध की 200 कॉपी भी जलदूत में लेकर आए थे इन पुस्तकों को केरल के कोच्चि से जलदूत में चढ़ाया गया, और श्रील प्रभुपाद उन्हें अपने साथ लेकर आये थे। श्रील प्रभुपाद स्वयं महा भागवत हैं, वे व्यक्ति भागवत हैं । ये व्यक्ति भागवत अपने साथ में पुस्तक भागवत लेकर आए थे। यहां प्रभुपाद अकेले नहीं आए वे अपने साथ में श्रीमद्भागवतम लेकर आए थे। मुझे इस कांफ्रेंस पर विराम भी देना है तो प्रभुपाद के अनुयाई बने, श्रील प्रभुपाद ने संपूर्ण विश्व में लगभग 5000 अनुयायियों को निर्देश दिया अब तुम मेरी पुस्तकों को अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद करो, इन पुस्तकों का प्रकाशन और वितरण करो। श्रील प्रभुपाद विस्तार करना चाहते थे, जैसे व्यास देव हैं व्यास से अर्थात जो विस्तार करें जो व्यास को बढ़ाएं तो इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद भी व्यास देव के प्रतिनिधि हैं और वे भागवतम का प्रचार कर रहे थे, वे और अधिक विस्तार कर रहे थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को कहा कि अब आप इन पुस्तकों को अधिक से अधिक भाषाओं में प्रकाशित करो और वितरण करो और उनके अनुयायियों ने ऐसा किया भी । विभिन्न भाषाओं में इन साहित्यों का अनुवाद कर रहे हैं और अधिक मात्रा में उपलब्ध करा रहे हैं। कुछ वर्ष पहले जीबीसी की मीटिंग हो रही थी उस मीटिंग में कॉन्फ्रेंस हॉल था उस हॉल में कार्यकर्ताओं ने एक बल्ब लगा रखा था और वह बल्ब प्रत्येक सेकंड झपक रहा था ब्लिंक कर रहा था तो हम जब उस जीबीसी मीटिंग में सम्मिलित हुए तो प्रारंभ में हमें पता नहीं चला कि यहां पर बल्ब क्यों लगाया है और यह बल्ब क्यों बार-बार झपक रहा है परंतु जब यह मीटिंग समाप्त हुई तब वहां के जो आयोजक थे उन्होंने उस रहस्य को प्रकट किया यह जो बल्ब झपक रहा है चमकता है तो उस समय श्रील प्रभुपाद की एक पुस्तक का वितरण होता है ।लगभग प्रत्येक सेकंड संपूर्ण विश्व में श्रील प्रभुपाद की पुस्तक का वितरण हो रहा है जब एक बार बल्ब झपकता है तो एक पुस्तक जब दूसरी बार झपकता है तो अन्य कोई पुस्तक तो प्रत्येक सेकंड पुस्तकों का वितरण हो रहा है । श्रील प्रभुपाद कहते थे कि पुस्तकें ही आधार हैं और कृष्ण भावनामृत की जो आधारशिला है वह पुस्तके हैं । श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों के रूप में कृष्ण हमें उपलब्ध होते हैं, श्रील प्रभुपाद के निर्देश के अनुसार पुस्तकों का प्रचार हुआ और साथ ही साथ हरि नाम का भी प्रचार हुआ और कृष्ण सर्वत्र उपलब्ध हुए इसके साथ श्री प्रभुपाद ने कई मंदिर बनाए और वहां पर राधा कृष्ण सीता राम लक्ष्मण हनुमान, जगन्नाथ बलदेव देवी सुभद्रा, नरसिंहदेव, गौर निताई आदि के विग्रह स्थापित किये जहां उनकी आराधना हो रही है। इस प्रकार अपने विग्रह के रूप में अभी कृष्ण प्रत्येक स्थान पर हैं ।श्रील प्रभुपाद ने हमें प्रसाद भी सुलभ कराया जो भगवान का अत्यंत ही स्वादिष्ट रूप है । प्रसाद भी एक प्रकार का कृष्ण का स्वरूप है तो हम इस प्रसाद के द्वारा स्वादिष्ट कृष्ण का आस्वादन करते हैं ।श्रील प्रभुपाद ने हमें कई उत्सव दिए, श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण हमें कई रूपों में प्रदान किए और संपूर्ण विश्व में और पश्चिम में श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण उपलब्ध कराए।अभी मैं रिचमंड में हूं, रिचमंड वाशिंगटन डीसी की तुलना में एक छोटा शहर है और कृष्ण अभी यहां पर भी हैं। श्रील प्रभुपाद के अनुयाई उनके भक्त हैं उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का यहां पर भी प्राकट्य कराया है। इस प्रकार से मुझे आप सभी को यह बताते हुए अत्यंत हर्ष और गर्व हो रहा है कि यह जो इस्कॉन रिचमंड है मेरे शिष्य दिव्यनाम प्रभु इसका संचालन करते हैं ।दिव्य नाम प्रभु यहां के मंदिर अध्यक्ष हैं। रिचमंड कृष्णभावनामृत के कारण और अधिक रिच हो गया है वह और अधिक समृद्ध बना है, कृष्ण भावनामृत की संस्कृति से रिचमंड और अधिक समृद्ध बन रहा है हम जप चर्चा को यहीं विराम देते हैं। हमारी जूम कॉन्फ्रेंस जपा टीम वे इस वीडियो को आप सभी को उपलब्ध करवा देंगे अभी मैं देख रहा हूं हमारे साथ में 23भक्त जप कर रहे हैं । इस प्रकार रात्रि के समय भी हमारे साथ जप कर रहे हैं, आप सब का आभार है मैं देख रहा हूं वृंदावन लीला माताजी भी हमारे साथ जप कर रही हैं ।रूस से ओम कुंड प्रभु है जो हमारे साथ जप कर रहे हैं अन्य देशों से भी भक्त हैं भारत में वृंदावन से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। ठीक है मैं यहां पर विराम देता हूं अकिंचन भक्त मैं देख रहा हूं तुम भी इस कॉन्फ्रेंस में हो तो तुम इस रिकॉर्डिंग का अनुवाद करना और रिलीज करना। आज मैंने बहुत छोटा बहुत कम समय तक जप किया है और उसके पश्चात जप चर्चा भी ज्यादा बड़ी नहीं है तो तुम इसका अनुवाद करके इसे भारतीय समय अनुसार उपलब्ध कराना यहां पर मैं विराम देता हूं। परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।

English

8th August 2019 Srila Prabhupada is our senapati bhakta Hare Krishna I am in Richmond at Divyanam Prabhu’s residence. He has invited all the congregational ISKCON regional devotees, so it is a busy schedule. When I arrived here, some devotees were thanking me for coming. My response was, "We thank the Lord, and specially we thank Srila Prabhupada for coming to America. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu had sent Srila Prabhupada to bless America. Here he founded the International Society for Krishna Consciousness. My coming here and meeting the congregation is also Srila Prabhupada’s blessing. He is the cause of our meeting and he is the one we should thank." And here we share another meeting. When Prabhupada arrived for the first time from India, there was no one to receive him. I see some of the garlands and the kirtana party, but none of that existed when Prabhupada had arrived. Prabhupada has written in his diaries now known as the Jaladuta Diaries from India to Boston and then, finally to New York. Now, we are giving greetings, garlands and a kirtana and mrdanga party. This is Srila Prabhupada's Sankirtana sena and he is the commander in chief of the Sankirtana army. Yesterday, I saw the founded International Society for Krishna Consciousness. Of course, Krsna is always everywhere and in America also before Prabhupada's arrival, but He was not visible and He was not accessible or approachable. His stories here, His presence, His lilas, in America are all in the Krsna book and Srila Prabhupada made Krsna visible and available all over America and all over the the world. Now, everywhere we go, we have Krsna bhaktas, Krsna temples, Ratha-yatra festivals, and we are all getting ready for Sri Krsna Janmastami and nagar Sankirtana is taking place all over the planet, Hare Krishna devotees are chanting with drums and kartals, which was only in Mayapur, Navadipa. In Manipur also. It was mostly in Hindi, and only in India. But now, by Srila Prabhupada's mercy, it is all over the world. Srila Prabhupada is the ambassador of the Holy name. As the devotees started chanting Hare Krishna on the streets and everywhere, by seeing those Hare Krishna devotees chanting here, there and everywhere, people started calling us, "Oh, these are the Hare Krishna people! Look! These are Hare Krishna people." These were Srila Prabhupada's followers. Now, they are Gaura bhakta vrndas, Krsna bhaktas and are known as Hare Krishna people chanting Hare Krishna. Prabhupada’s chanting made everyone happy. George Harrison was a big Beatles singer, and he took to chanting. He recorded an album and that album was sold all over the planet. It has been experienced that at times even before Prabhupada's arrival Prabhupada's followers in some country, in some town had already heard Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare from George Harrison’s album. It became a hit making Hare Krishna chanting popular. As Srila Prabhupada empowered, instructed and guided his Hare Krishna Consciousness movement making it available here and there Krsna is becoming accessible, available to all. Books by Srila Prabhupada - Gita, Bhagawat, Caitanya-caritamrta , Upanishads and other scriptures are being distributed. Prabhupada had instructed his followers, like Bhaktisiddhanta Saraswati Thakur had instructed Srila Prabhupada. He had instructed Abhaya, to propagate Krishna Consciousness in the Western world in English. Srila Prabhupada personally brought Bhagavatam with him. He is personally, bhagawatamah bhagawat, the person bhagawat, and he has also carried his Srimad-Bhagawatam. Then he instructed his followers, "Now, you print my books. Translate it in English, French and you distribute it in as many languages as possible". Prabhupada had his books translated and printed in English and now we have to expand that. His instruction was, "You print. Translate and print my books, in as many languages as possible." So, his followers did just that. For years, BBT, Bhaktivedhanta Book Trust had held a conference, and during the presentation BBT presenters revealed the secret. One blink means that one book by Srila Prabhupada has been distributed somewhere. Another blink, another book. Each blink, a book of Srila Prabhupada is being distributed. At BBT every second Srila Prabhupada's books were being made available. The Deities, Krishna, Radha Krishna, Sita Rama, Gaura Nitai, Jagannatha Baladeva Subhadra, Nrsimhadev - having installed Them meant Krsna is here. Right here, right now. Hare Krishna

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