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6 August 2019 हरे कृष्ण मैं अभी लॉस एंजेल्स में हूं, और कल यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा संपन्न हुई । जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान और समापन स्थान पर निरंतर कीर्तन करने के कारण मेरा गला खराब हो चुका है, और मेरी आवाज इतनी स्पष्ट नहीं है । आज, अभी मैं लॉस एंजेल्स में जप कर रहा हूं और इस समय 164 भक्त मेरे साथ जप कर रहे हैं, इतने अधिक भक्तों की जपा कॉन्फ्रेंस में होने की आशा इस समय मुझे नहीं थी, क्योंकि ऐसा विचार था कि अभी का जप और जप चर्चा को रिकॉर्ड करके भारत के समयानुसार कल सुबह 5:30 बजे इस रिकॉर्डिंग को चलाया जाएगा, परंतु अभी मैं यह देख रहा हूं कि इतने अधिक भक्त इस समय मेरे साथ जप कर रहे हैं, यह काफी प्रोत्साहित करने वाला समाचार है, इससे यह दर्शाता है कि आप सभी भक्त जप करने के लिए बहुत ही ज्यादा उत्साहित हैं। मैं यह भी जानना चाहता हूं कि कल जो जपा और जप चर्चा लॉस एंजिलिस में हुई उसकी रिकॉर्डिंग आज सुबह भारत के समय अनुसार सुबह 5:30 पर चलाई गई, मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या पद्ममाली प्रभु और दीनानुकंपा माताजी, जो इस जपा की रिकॉर्डिंग को चलाने की सेवा कर रहे हैं उन्होंने यह भारत में रिकार्डेड जपा और जप चर्चा को चलाया? क्या अकिंचन प्रभु ने उसका हिंदी अनुवाद किया ? ( कुछ भक्तों ने टाइप करके महाराज जी को उत्तर दिया कि हां रिकॉर्डिंग चलाई गई थी और उसका हिंदी अनुवाद भी हुआ था) अभी जो भक्त मेरे साथ जप किया और जप चर्चा सुन रहे हैं वह कल पुनः इस जप चर्चा को भारतीय समयानुसार सुबह 5:30 पर सुन सकेंगे तो उस समय आप सभी को दोहरा लाभ मिलेगा । काल यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा संपन्न हुई और यह जगन्नाथ रथ यात्रा पश्चिम देशों में सबसे बड़ी और भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा थी। यह रथयात्रा अत्यंत वैभव पूर्ण ढंग से संपन्न हुई, यहां जगन्नाथ बलदेव और सुभद्रा माता को उनके- उनके रथों में बिठाया गया और फिर हम सभी नगर भ्रमण के लिए उनको ले गए। जगन्नाथ जी, बलदेव और सुभद्रा मैया के साथ जब भ्रमण कर रहे थे तो उनकी रथयात्रा में पुलिस का बंदोबस्त किया गया था, पुलिस के व्यक्तियों को देख कर ऐसा लग रहा था कि जगन्नाथ जी बहुत ही वीआईपी हैं, और वास्तव में जगन्नाथ जी बहुत ही वीआईपी हैं वेरी इंपोर्टेंट पर्सन है क्योंकि जब वे चल रहे थे उनका रथ किसी भी रेड लाइट पर नहीं रुका,(हंसते हुए...) वे अपने रथ पर विराजमान होकर निरंतर चले जा रहे थे, जिस पथ पर जगन्नाथ जी की रथ यात्रा जा रही थी, उस पर यातायात को पूरी तरीके से बंद कर दिया गया था, सड़कों को पूर्ण रूप से खाली कर दिया गया था, वहां केवल भगवान के रथ ही चल रहे थे, इस प्रकार से जब यहां रथ यात्रा संपन्न हो रही थी, जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा और उनके भक्तों के अलावा सड़कों पर अन्य कोई नहीं था। इस प्रकार से यह रथयात्रा चल रही थी और अंत मे हम सभी वेनिस बीच के तट पर पहुंचे, वेनिस बीच के तट पर वहां के कई स्थानीय व्यक्ति और आगंतुक थे इसके साथ साथ हजारों हरे कृष्ण भक्त वहां पर थे , इस्कॉन लीडर्स और कई बड़े वरिष्ठ भक्त भी वहां पर थे। स्थानीय लोग और आगंतुक भगवान के दर्शन कर रहे थे और कीर्तन का श्रवण कर रहे थे और इससे वे आनंदित हो रहे थे, वहां पर दर्शन और कीर्तन के अलावा बहुत ज्यादा संख्या में पुस्तक वितरण भी हुआ, वास्तव में वहां पर (सही कहे तो) पुस्तक वितरण से अधिक लोगों को उपहार में पुस्तकें दी गई, भक्तों ने पुस्तकों के पैकेट्स बना रखे थे जिनमें छोटी बुक्स थी और उन्होंने इस का निशुल्क वितरण किया। इस प्रकार यह रथ यात्रा संपन्न होते हुए वेनिस बीच के तट पर आ चुकी थी और वहां पर एक बहुत वृहद स्टेज बना हुआ था, इसके साथ-साथ वहां पर बुक स्टॉल, प्रचार का स्टॉल और निशुल्क प्रसादम का स्टाल था, यह निशुल्क प्रसाद का स्टॉल सबका ध्यान आकर्षित कर रहा था, हजारों लोग पंक्ति बनाकर प्रसाद के माध्यम से जगन्नाथ भगवान की कृपा प्राप्त कर रहे थे, इसके साथ वहां पर प्रश्न उत्तर के लिए एक स्टाल लगा था , उस स्टॉल पर भक्त वहां के स्थानीय लोगों और आगंतुकों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे, और वे किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछ सकते थे, एक प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि यह पूर्ण प्रश्न और पूर्ण उत्तर थे, वहां पर जो प्रश्न पूछे जा रहे थे वह भी पूर्ण थे और उनके उत्तर भी पूर्ण थे, हरे कृष्ण भक्त भावुक भक्त नहीं है, वे भावुकता में हरे कृष्ण महामंत्र नहीं करते, उन्हें शास्त्र ज्ञान भी होता है । रथ यात्रा, कीर्तन, हरे कृष्ण महामंत्र का जप , यह सब एक धार्मिक पद्धति है, इसके साथ साथ अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत में शास्त्र और दर्शन का भी एक विशेष महत्व है, हम धर्म और शास्त्र दोनों को एक साथ रखते हैं। हम भगवत गीता का अध्ययन करते हैं, श्रीमद्भागवतम का अध्ययन करते हैं और गौड़ीय वैष्णव की चैतन्य चरितामृत का अध्ययन करते हैं, और उसी के आधार पर हम भगवान के नाम का प्रचार करते हैं। भगवत गीता प्राथमिक शिक्षा के समान है, वहां से हमारी प्रारंभिक शिक्षा होती है तत्पश्चात श्रीमदभागवतम स्नातक के समान है और चैतन्य चरितामृत स्नातकोत्तर के समान है । इस प्रकार इस्कॉन के भक्त जो कि चैतन्य महाप्रभु के अनुयाई हैं और इन ग्रंथों की शिक्षाओं के आधार पर प्रचार करते हैं, इसी कारण से वे इन्हीं ग्रंथों की शिक्षाओं के आधार पर उन सभी प्रश्नों का उत्तर दे पा रहे थे। मुझे स्मरण है कि जब 1971 में मुंबई में हमारा हरे कृष्ण उत्सव हुआ था उस समय मैं एक कॉलेज का विद्यार्थी था और में भी इस उत्सव में शामिल हुआ था। वंहा पर भी इसी प्रकार(पूर्ण प्रश्न, पूर्ण उत्तर ) का स्टाल था, उस समय पूरे बॉम्बे में इस प्रकार से प्रचार किया गया था कि अमेरिकन और यूरोपियन साधु अपने शहर में हैं, चर्चगेट के पास जो क्रॉस मैदान है वहां पर यह उत्सव संपन्न हो रहा था, मैं भी वहां यह देखने के लिए गया कि क्या वे वास्तव में साधु हैं , मुझे स्मरण है कि प्रश्न उत्तर के स्टाल पर मैने तो कोई प्रश्न नहीं पूछा, परंतु कई भारतीय बहुत ही चुनौतीपूर्ण प्रश्न भक्तों से पूछ रहे थे , और वे अमेरिकन एवं यूरोपियन साधु , श्रीलप्रभुपाद के अनुयाई और भक्त उन प्रश्नों का सटीक उत्तर दे पा रहे थे, उनके उत्तर से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ और यह प्रमाणित भी हुआ कि वे वास्तव में साधु हैं, वे केवल बाहरी रूप से या वस्त्रों के आधार पर या भावुकता वश ही साधु नहीं हैं, अपितु उन्हें प्रबल शास्त्रीय ज्ञान भी है। वे भगवत गीता, श्रीमद्भागवत और चैतन्य चरितामृत की शिक्षाओं के आधार पर प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। हम जैसा कहते हैं कि पुस्तकें ही आधार हैं और इन पुस्तकों के उनके ज्ञान के आधार पर यह प्रमाणित हो रहा था कि वे सभी वास्तव में साधु हैं । इस प्रकार हम जो भी सेवाएं संपन्न करते हैं वह इन शास्त्रों की शिक्षाओं के आधार पर ही होती हैं। यह जगन्नाथ रथ यात्रा है एक प्रकार से हमारा शास्त्र है, दर्शन है और यही हमारी संस्कृति है। इस प्रकार यह हमारी संस्कृति में क्रांति की तरह है, श्रील प्रभुपाद जी कहते थे रिवॉल्यूशन इन कल्चर , यह कृष्ण भावनामृत का कल्चर है और यह कृष्ण भावनामृत की संस्कृति है, यह संस्कृति शास्त्रों पर आधारित है हमारी संस्कृति में राधा भाव, भक्ति भाव, आदि भाव उपस्थित हैं । इस प्रकार शास्त्रों के आधार पर श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण भावनामृत को बहुत सुदृढ़ता से प्रस्तुत किया, श्रील प्रभुपाद कहते थे कि कृष्ण भावनामृत का जो वैज्ञानिक आधार है वह यह शास्त्र अथवा दर्शन ही है। यह जगन्नाथ रथयात्रा जो कल लॉस एंजिल्स के वेनिस बीच पर संपन्न हुई , यहां पर श्रील प्रभुपाद प्रात: कालीन सैर के लिए आते थे। श्रील प्रभुपाद के समय लॉस एंजेल्स इस्कान का वर्ल्ड हेड क्वार्टर था, क्योंकि श्रील प्रभुपाद अधिकतर समय यहां पर व्यतीत करते थे, वे बहुत अधिक समय तक यहां पर रहे थे, और इसी स्थान पर श्रील प्रभुपाद ने इस्कॉन के कई मानकों को स्थापित किया, जैसे अर्चा विग्रह किस प्रकार से होना चाहिए उसके मानक को यहां पर स्थापित किया गया , इसके साथ कई अन्य मानक भी स्थापित किए गए, श्रील प्रभुपाद विश्व के कोने-कोने से अपने शिष्यों और अनुयायियों को आमंत्रित करते थे, वे यहां पर आएं और इन मानकों को सीखें, फिर अपने स्थान पर जाकर इनका प्रचार करिए। श्रील प्रभुपाद जब वेनिस बीच के तट पर प्रातः कालीन समय की सैर पर आते थे तो उनके साथ भारत के मणिपुर के स्वरूप दामोदर महाराज जी भी होते थे, जो कि एक वैज्ञानिक थे, स्वरूप दामोदर महाराज श्रील प्रभुपाद से लॉस एंजिल्स में पहली बार मिले थे और उनके शिष्य बन गए। श्रील प्रभुपाद उनसे प्रतिदिन चर्चा करते और उनसे कहते थे कि वह प्रश्न पूछे। प्रतिदिन स्वरूप दामोदर महाराज श्रील प्रभुपाद से प्रश्न पूछते और श्रील प्रभुपाद इसी वेनिस बीच के तट पर प्रात: कालीन समय की सैर करते हुए उनके सभी प्रश्नों का उत्तर देते, उनके सभी वैज्ञानिक विचारों और भ्रामक बातों (जो आज के वैज्ञानिक करते हैं) का श्रील प्रभुपाद खंडन करते और इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण भावनामृत का वैज्ञानिक आधार स्वरूप दामोदर महाराज के समक्ष लॉस एंजेलिस में प्रस्तुत किया। श्रील प्रभुपाद श्रीमद भगवत गीता, भागवत और चैतन्य चरितामृत के आधार पर उस समय के वर्तमान वैज्ञानिकों को परास्त कर पा रहे थे , और कृष्ण भावनामृत का वैज्ञानिक आधार स्थापित कर रहे थे, तो यह किस प्रकार हुआ ? --- यह श्रुति प्रमाण अथवा शास्त्र प्रमाण के द्वारा प्रभुपाद कर रहे थे। वर्तमान समय के वैज्ञानिक और साधारण जन मानस प्रत्यक्ष प्रमाण को मानते हैं वे, जिस को प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं उसी को सत्य मानते हैं । वैज्ञानिक कहते हैं कि मैं अपनी ज्ञानेंद्रियों द्वारा जो ज्ञान अर्जित करूंगा वही सत्य है, प्रभुपाद कहते थे कि हमारी इंद्रियां सीमित हैं और इन इंद्रियों से प्राप्त ज्ञान भी सीमित ही होगा, तो हमें सीमित ज्ञान नहीं अपितु पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और यह जानना चाहिए कि इस पूर्ण ज्ञान का उद्गम कहां से होता है, जहां से इस पूर्ण ज्ञान का उद्गम होता है, जो इस ज्ञान का स्रोत है, हमें उसके पास जाना चाहिए। श्रीमद्भगवत गीता, श्रीमद भागवतम, चैतन्य चरितामृत और वेद से हमें सीखना चाहिए। यह श्रुति प्रमाण है, शास्त्र प्रमाण है। वेद, गीता , भागवतम और चैतन्य चरितामृत की शिक्षाएं ही हमारे सिद्धांत हैं और इसी प्रकार से यही हमारा वैज्ञानिक आधार है । इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद सुदृढ़ रूप से कृष्ण भावनामृत को यहां पर स्थापित कर रहे थे। ऐसा नहीं कि कृष्ण भावनामृत की स्थापना भावुकता के साथ हुई,अपितु शास्त्रीय आधार पर बहुत ही सुदृढ़ रूप से इसकी स्थापना यहां पर हुई। इस प्रकार जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो वह धर्म है, वह इस कलयुग का धर्म है, कई बार भक्त भावुकता वश हरे कृष्ण महामंत्र का जप भी करते हैं, यह जप धर्म है और धर्म के साथ-साथ दर्शन भी होना चाहिए, शास्त्र ज्ञान भी होना चाहिए, आज यद्यपि यह जब चर्चा बहुत लंबी हो रही है, परंतु यहां पर जो इसका मुख्य सिद्धांत है वह मैं आपको बताना चाहूंगा। कृष्ण भावनामृत का यह सिद्धांत है कि धर्म और दर्शन शास्त्र दोनों एक साथ ही होना चाहिए। जब हम यह जपा कॉन्फ्रेंस करते हैं, तो जप करते हैं जो कि धर्म है और इसके साथ साथ हम जप चर्चा भी करते हैं जो कि शास्त्रीय आधार है और यही दर्शन है, जो जप के सिद्धांत हैं उस पर हम यहां पर चर्चा करते हैं। इस प्रकार धर्म और दर्शन दोनों ही इस कॉन्फ्रेंस में संपन्न होते हैं। वास्तव में हमें इन शास्त्रों और दर्शन की आवश्यकता क्यों होती है ? हमारे अंदर बहुत प्रश्न होते हैं, बहुत संशय हमारे भीतर होते हैं। अतः हम इस शास्त्रीय ज्ञान से अपने प्रश्नों का उत्तर पाते हैं और अपने भीतर के संशयो को खत्म कर सकते हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है , और आवश्यक है कि हम इन संशयो से मुक्त हो सकें, क्योंकि भगवान कहते हैं संशयात्मा विनश्यति.... मेरी वाणी पर अगर संशय करोगे तो इससे अंततोगत्वा विनाश ही होता है इन संशयो से हम भ्रमित हो जाते हैं और एक प्रकार से ये संशय हमारे शत्रु हैं, इसलिए हमारा शास्त्रीय ज्ञान प्रबल होना चाहिए । जब हमारा शास्त्रीय ज्ञान प्रबल होगा तो हम इन संशयो से मुक्त हो जाएंगे, इन्हें हम दूर कर पाएंगे। कृष्ण भावनामृत एक दर्शन है और कृष्ण भावनामृत से संबंधित पुस्तकों को हमें पढ़ना चाहिए इससे हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर मिलेगा और हमे हमारे सभी संशयो से मुक्ति मिलेगी, और यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो इन संशयो से और ज्यादा प्रश्न उठेंगे और उससे और भी अधिक संशय होगा जिससे कि हम भ्रमित होंगे और भ्रमित होने से हमारी बुद्धि का विनाश हो सकता है। हम इस जप कॉन्फ्रेंस में केवल जप ही नहीं करते हैं अपितु शास्त्रों के आधार पर जप चर्चा भी करते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जप के विषय में चर्चा करते हैं। तो इस प्रकार यहां पर धर्म और शास्त्र अथवा दर्शन दोनों ही एक साथ होते हैं। यहां पर हम भगवान कृष्ण के रूप, गुण, नाम, लीला आदि का शास्त्रों के आधार पर चर्चा करते हैं। इस प्रकार अभी हमारे साथ 176 भक्त हैं जो जप कर रहे हैं (यह गुरु महाराज कल की बात कर रहे हैं जब यह जप चर्चा लाइव्ह थी) कल सुबह इस जप चर्चा को भारतीय भक्तों के लिए पुनः चलाया जाएगा। जैसा कि मुझे पता चला कि जब कल की रिकॉर्डिंग भारतीय भक्तों के लिए चलाई गई थी तो इसमें 464 भक्त सम्मिलित हुये थे, तो यह एक अच्छी बात है कि 464 भक्त उस समय सम्मिलित हुए थे। अभी यह जप अमेरिका के समय क्षेत्र के अनुसार लाइव किया गया है, कल इसकी रिकॉर्डिंग भारतीय समय के अनुसार सुबह पुनः चलाई जाएगी तब और ज्यादा संख्या में भारतीय भक्त इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अभी मैं यहां पश्चिम देशों की यात्रा पर हूं तो मुझे अलग-अलग समय क्षेत्र में जाना है, तो यह हो सकता है कि मैं प्रत्येक दिन इसी समय जप न कर पाऊं, जैसे कि कल मैं अमेरिका में ही पश्चिम से पूर्व की ओर जाऊंगा, तो यह जो पूर्वी भाग है वह पश्चिमी भाग से 3 घंटा आगे है इसका तात्पर्य यह है कि जब लॉस एंजलिस में 7 बजते हैं तो पूर्व के अमेरिका में 10 बजते हैं, अमेरिका एक विशाल देश है, यहां तीन समय क्षेत्र हैं, एक ही देश में अलग-अलग टाइम जोन है। कल मैं वाशिंगटन डीसी जा रहा हूं न्यू वृंदावन की ओर.... और कल मैं जप कॉन्फ्रेंस कब प्रारंभ करूंगा इसकी सूचना आपको व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मिल जाएगी हरे कृष्ण श्रील प्रभुपाद की जय निताई गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल...

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