Hindi

9 अगस्त 2019 हरे कृष्ण! आज इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ 170 प्रतिभागी जप कर रहे हैं। हरि! हरि! मैं अभी रिचमंड, अमेरिका में हूं, यहां अभी प्रात:काल का समय है और मैं अपना जप कर रहा हूँ। जब मैं उठा तब यहाँ बहुत ठंडा था। यह एक ग्रामीण स्थान है जोकि अत्यंत ही शांत है। मुझे लगता है कि एक समय यहां जंगल रहा होगा, क्योंकि यहां बहुत से पेड़ भी देखने को मिलते हैं। प्रात:काल का समय हमारे जप करने के लिए अत्यंत ही उपयुक्त समय होता है। मैं जप करते हुए सोच रहा था कि जब मैं जप कर रहा हूँ, तो मैं अकेले बैठ कर जप क्यों करूँ। इन दिनों जब भी मैं जप करता हूँ, मुझे आप सभी भक्तों का स्मरण होता है, मुझे आप सभी की याद आती है। इसलिए मैंने यह सूचना आप सभी को भेजी और मैं आशा करता हूं कि आप सब को यह सूचना मिल गयी है। यह इसी का परिणाम है कि  175 भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। मैं इस कॉन्फ्रेंस में कुछ नए भक्तों को भी देखना चाहता हूं। हमें इस कॉन्फ्रेंस में नए भक्तों को जप करने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। इसमें हमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है लेकिन, पता नहीं, क्यों मैं इस विषय में बहुतों से इच्छा या अपेक्षा भी नहीं करता। अमेरिका के पूर्वी तट से कुछ भक्त भी हमारे साथ जप कर रहे हैं।राम चंद्र प्रभु भी इस कॉन्फ्रेंस में जप कर रहे हैं। अभी,राम चंद्र प्रभु ने लिखा भी था कि उन्हें प्रतिदिन काम पर भी जाना होता है परंतु पहले वे इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ जप करते हैं। तत्पश्चात वे अपने कार्य पर जाते हैं। चाहे हम कार्य कर रहे हो या नही, हमें जप में बहुत व्यस्त रहना चाहिए। जप हमारे जीवन का प्रमुख अंग और केंद्र होना चाहिए। जप करने का समय हमारे दिन का महत्वपूर्ण समय होता है। सामान्यतया हम अपना समय माया के लिए रखते हैं और केवल बचा हुआ समय ही हम कृष्ण के लिए रखते हैं हरि!हरि! एक दिन में केवल 24 घंटे होते हैं। हमें उन 24 घंटो में से लगभग 2 घंटे अपने जप के लिए सुरक्षित रखने चाहिए। जप का समय हमारा सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण समय है। जप के समय हम भगवान के साथ सीधे संपर्क में होते हैं और हम भगवान के साथ आदान प्रदान करते हैं। उस समय हमारी अपॉइंटमेंट भगवान के साथ होती है और हम भगवान से बातचीत करते हैं। हमें प्रतिदिन 2 घंटे विशेष रूप से जप के लिए रखने चाहिए जिसमें हम भगवान का ध्यान कर सकें और उनसे संवाद कर सकें। शेष अन्य 22 घंटो में आप अपने अन्य कार्य कर सकते हैं। 2 घंटे आप जप के लिए और 22 घण्टे आप अपने जीविकोपार्जन आदि अन्य कार्यों के प्रयोग में ले सकते हैं परंतु हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हमारे २२ घंटे केवल माया के लिए हैं और केवल २ घंटे जप के लिए हैं। हमें उन 22 घंटो में भी कृष्ण भावना भावित रहना चाहिए । इन 22 घंटो में हम अन्य आध्यात्मिक गतिविधियाँ कर सकते हैं, जैसे - श्रवण, जप, प्रसाद पाना, अध्ययन करना, भक्तों का सहयोग करना, जन्माष्टमी उत्सव की तैयारी या श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करना; जारे देखो, तारे कहो, कृष्ण उपदेश। ये सभी सेवाएँ हम 22 घंटो में सम्पन्न करते हैं। हमें कभी भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि ठीक है ,2 घंटे कृष्ण के लिए दे दिए बाकी 22 घंटे माया के लिए है। ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए। श्रील प्रभुपाद बताते हैं कि हमारा लक्ष्य 24 घंटे कृष्ण भावना भावित रहना है। अतः प्रात:काल का समय हमारे जप का समय होता है। यह जप चर्चा का समय है। हमारे जप के विषय में क्या अनुकूल है, हम इसके विषय में वर्णन अर्थात चर्चा कर रहे हैं।यहां पर सिद्धान्त है कि जप करते समय हमें केवल जप ही करना चाहिए। "chant while chanting". ऐसा नही है कि जब आप अन्य कार्य करें तो आप जप नहीं कर सकते। आप अन्य कार्य करते समय भी जप कर सकते हैं। जैसा कि हमने 2 दिन पूर्व बताया था कि "हाथ में काम, मुख में नाम" अर्थात आप कार्य करते समय भी जप कर सकते हैं। भगवान कृष्ण के लिए हमारा लक्ष्य 24 घंटे होना चाहिए और श्रील प्रभुपाद जी द्वारा दिए मानक के अनुसार हमें अपने लक्ष्य के प्राप्त करना है। आप रसोई घर में भगवान के लिए भोग बनाते हुए भी जप कर सकते हैं, वाहन चलाते समय भी जप कर सकते हैं, जैसा कि मैं देख रहा हूँ कि दीननुकम्पा माताजी वाहन चलाते हुए अपना जप कर रही है और अपने जप का श्रवण भी कर रही है। विशेष बात यहां पर यह है कि इन 24 घंटो में से ये 2 घंटे भगवान के पवित्र नामों का उच्चारण, उनका श्रवण, उनके चिंतन के लिए सुरक्षित रखने चाहिए। हो सकता है कि आपका मन इसका विरोध करे और कहे 'अरे! नहीं ! मेरे पास तो कई सारी समस्याएं हैं, मुझे उन समस्याओं का निवारण करना है।अतः मैं अभी जप नहीं कर सकता हूं'। यह समस्या सुलझाने का ठीक तरीका नहीं है।सभी समस्याओं का केवल एकमात्र निवारण भगवान श्री कृष्ण अथवा कृष्ण भावनामृत है। 'भागवतम' हमारी सभी समस्याओं का निवारण है। हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने से हम अपनी सारी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं। हमें समझना चाहिए कि हमारी जो सभी समस्याएं हैं, उनका निवारण केवल कृष्णभावनामृत से ही हो सकता है परंतु हम किसी अन्य भ्रमित उपाय को स्वीकार कर लेते हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें इन समस्याओं का निवारण करने के लिए कृष्ण भावनामृत को ही स्वीकार करना चाहिए परंतु कई बार लोग कहते हैं कि यद्यपि मैं जप नहीं करता, भागवतम का श्रवण नहीं करता, मैं भगवतगीता भी नहीं पढ़ता परंतु फिर भी मैं अपनी समस्याएं सुलझा सकता हूँ। यह उपयुक्त नहीं है। लोग कहते हैं कि जन्माष्टमी मनाने के लिए उनके पास समय नहीं है क्योंकि वे अपनी समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त है। उन्हें यह समझाना चाहिए कि जो भी समस्याएं हैं, वे इस युग के कारण है, ये कलियुग के कारण है। वास्तव में, हमारा इस जगत में होना ही हमारे लिए बड़ी समस्या है। भगवान से विमुख होना और इस जगत के सम्मुख होना ही बड़ी समस्या है। श्री मद्भागवतम में श्री शुकदेव गोस्वामी जी बताते हैं कि कलेर दोष निधे राजन अस्ति हि एको महान गुणः श्री शुकदेव गोस्वामी भागवतम में भगवान का प्रतिनिधित्व करते हुए बता रहे हैं कि यह कलियुग दोषो की निधि है अर्थात कलियुग अवगुणों की खान है, खजाना है, निधि है परंतु इन सभी अवगुणों के उपरांत भी कलियुग में एक अत्यंत ही महान गुण है। जैसा कि हम जानते हैं कि भगवान हमारे सर्जक(नियंता) हैं, चूँकि भगवान हमारे सर्जक हैं, वे सभी के सर्जक हैं, इन समस्याओं के भी सर्जक हैं अर्थात इन समस्याओं को भी भगवान ही उत्पन्न करते हैं। अतः भगवान कृष्ण ही इन समस्याओं का निवारण (उपाय) भी करते हैं। श्रीमदभागवतम में श्री शुकदेव गोस्वामी जी , जोकि एक महाभागवत है, वास्तव में वह श्रीमति राधा रानी के तोते हैं, वे हमें यह बताते हैं कि वे अभी भी इस रूप में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और इस भागवतम के माध्यम से राधा कृष्ण की महिमा का गान करते हैं। भागवतम में एक अन्य स्थान पर आता है कि "शुक मुखद अमृतम" श्री शुकदेव गोस्वामी जी इस अमृत का स्वयं आस्वादन करते हुए इसका वितरण भी करते हैं। यदि हम इस अमृत का पान नहीं करेंगे तो हम मर जायेंगे परन्तु यदि हम भागवतम रूपी इस अमृत का पान करते हैं तो हम अमर हो जाएंगे और अज्ञान में नहीं रह पाएंगे। हमें जन्म, जरा, व्याधि, मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिल जाएगी। हमारा जीवन इससे मुक्त होगा और हम अमर और सनातन रूप को प्राप्त कर अपने वास्तविक स्वरूप में भगवान की सेवा कर पाएंगे। सदा के लिए भगवान की सेवा में समर्पित। इस प्रकार से जब हम इन समस्याओं का वर्णन करते हैं कि हमारे पास ये समस्याएँ है लेकिन सबसे बड़ी दुविधा यह है कि वास्तव में हमें यह पता ही नही है कि हमारी वास्तविक समस्या क्या है, जब हमें अपनी वास्तविक समस्या का ज्ञान हो जायेगा, तब हम ज्ञानवान हो जाएंगे। सम्पूर्ण जगत इन समस्याओं का वर्णन करता है कि मेरे पास यह समस्या है, मेरे पास यह कष्ट है, लेकिन वास्तविक कष्ट क्या है ये उनको नहीं पता है। जन्म, मृत्यु, ज़रा, व्याधि दु:ख दोषानुदर्शनम। भगवान कहते हैं और चाहते हैं कि पूर्ण विश्व यह जाने कि वास्तविक समस्या क्या है, वास्तविक कष्ट क्या है। भगवान के अनुसार सबसे प्रमुख समस्याएँ जन्म, मृत्यु, ज़रा, व्याधि है। इनके अतिरिक्त कुछ गौण समस्याएं भी हैं। हम कह सकते हैं कि कुछ प्रमुख समस्याएं हैं और कुछ गौण समस्याएं हैं। भागवतम में श्री शुकदेव गोस्वामी जी कहते हैं कि 'कलेर दोष निधे राजन'। कलियुग तो दोषों का खजाना है, यह एक विशेष युग है। जैसा कि श्रील प्रभुपाद कहते थे कि यह एक ऋतु है, एक प्रकार का मौसम है। सत्ययुग, त्रेता, द्वापर युग भी ऋतुओं या मौसम के सामान है। कलियुग भी एक ऋतु है। यह दोषपूर्ण युग है।इस कलियुग में कई समस्याएं हैं परंतु सभी समस्याओं में जो प्रमुख समस्या जन्म, मृत्यु, ज़रा, व्याधि है। इसी श्लोक में आगे आता है कि अस्ति ह्येको महान्गुणः। शुकदेव गोस्वामी जी कहते हैं कि इन सबके उपरांत भी कलियुग का एक महान गुण है- कीर्तनाद एव कृष्णस्य। हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम केवलम्। केवल हरि का नाम,केवल हरि का नाम,केवल हरि का नाम। उसी प्रकार यहां पर भी एक शब्द आया है, कीर्तनाद एव कृष्णस्य। इस प्रकार से शुकदेव गोस्वामी जी बताते हैं कि हमें हर किसी का कीर्तन नही करना है,हम किसी का भी कीर्तन करेंगे तो उसका परिणाम एक जैसा नहीं होगा। वे स्वयं ही इसे बताते हैं कि कीर्तनाद एव कृष्णस्य। केवल कृष्ण का कीर्तन करो, माया का कीर्तन नही।अभी आधुनिक उपकरणों के द्वारा दिन-रात माया का कीर्तन कर रहे हैं, और कीर्ति का प्रचार हो रहा है। वास्तव में कीर्ति का अर्थ है कि कीर्तन करना, भगवान की महिमा को बताना। हमें यह चाहिए कि हम सदैव निरतंर भगवान कृष्ण की कीर्ति का गुणगान करें। हरे कृष्ण

English

9th August 2019 Hare Krishna We have 170 participants. Hari Hari! I was chanting my japa during morning hours, here, in Richmond, Dwarka. When I got up, it was very cool. It's very quiet and peaceful. This place is countryside. We must see the forest sometime. So, this is a good time and good place to chant. Then I thought why chant alone, I remembered. Whenever I chant these days, I remember the other chanters. They send communications. And many of you have joined - there are 175 chanters. My idea was to catch new chanters, new participants and we have some success by communicating and getting them to join the chanting session. But not many as I aspire, desire or expect. I don't know why. I thought devotees in America would chant on east coast. Right now, chanting is Ram Chandra prabhu who wrote and he said they have to go to work, now. They should chant and go to work. Either they are going to work or they are or we are too busy to chant. Hari, Hari. Gaura Premanande, Hari, Hari bol! Chanting should be the centre of our whole life. Chanting should be at the prime time. Not that prime time for maya and some other time for Krsna. There are 24 hours in a day. So, 2 hours, more or less, we should spare for chanting our japa, meditating, communicating with the Lord, your dialogue for the Lord, your time with the Lord, your appointment with the Lord, for 2 hours. You should consider 22 hours to do other things and only 2 hours for chanting and many more hours for Krishna, to do other spiritual activities - hearing, chanting, reading, studying, honouring prasadam, association of the devotees, preparing for Janmastami festival or distributing Srila Prabhupada’s books; yāre dekha, tāre kaha kṛṣṇa’-upadeśa. So, what I am trying to say is 2 hours for Krishna and 22 hours for maya. Out of those 22 hours, lot of hours should be given to Krsna. Our goal is 24 hours for Krishna. Srila Prabhupada has given us that as our goal, our standard to follow. This is the chanting time or the chanting session, this is japa talk, so, I am talking in favour of chanting, that is favourable to chanting. The policy also should be chant while chanting. Do other things while doing other things. While doing other things also we can chant - hata may kama mukha me nama. While cooking also you can chant. While driving also, as Dinanukampa mataji chant or hears us chanting while driving. But the 2 hours of japa time can be exclusive, can be dedicated to chanting, hearing, remembering. So, you may think, even I may say "Oh, I have so many problems so I can't chant. I have no time to chant as I have to solve those problems." That is not the way to solve the problems. Solution to all of our problems is Krishna, Krishna consciousness. Bhagavatam is solution. Chanting Hare Krishna is solution to all our problems. So, when you are not taking to this solution, you take to other speculated ways of solving problems which you do something else of Krishna consciousness to solve the problems. I will not chant and I will solve my problem. I will not hear Bhagavatam or I will not study Bhagavad Gita and I will solve my problems. I have no time to celebrate Janmastami because I must solve my problems. We have to be convinced that problems are caused by this deceptive age, the age of Kali. Being in this world is a problem. Turning us against Krishna, our back towards the Lord and face towards maya, that is the problem. kalir doso nidhi rajan asti ekho mahan gunah - so many defects, in this age of Kali, so many flaws, so many shortcomings. This age of Kali is full of defects, full of bad qualities. But then there is one good quality. In the Bhagavatam, SukadevGoswami says that on behalf of the Lord, he knows what our problem is. The Lord is the creator of the problems and He is also the creator of all the solutions. If anybody knows what the solution is, that is the Lord. So, on behalf of the Lord, the maha bhagawat, Sukadev Goswami - who is, originally, the parrot of Radharani, Suka the parrot - had appeared into this world to chant the glories Radharani and Krishna. sukha mukhad amritam - he is relishing amritas, sharing amritas of Bhagavatam that were spoken on behalf of the Lord Krishna. If we drink the nectar of Bhagavatam, then no more leaving in ignorance. We become deathless, birthless, diseaseless and ageless. Life becomes free - life minus death, minus birth. And we become amar, we become eternal. Eternally, devoted in service of the Lord. As we talk of problems, I say the problem is we do not know what the problem is. The real problem is not knowing. We become knowledgeable when we know what the problem is. The whole world is talking of problems but they have not realised Krishna. janma mrutyu jara vyadhi duhkha-dosanudarsanam , the lord wants to enlighten the whole world. The Lord is wants the whole world to know what the problem is and according to Lord, death, birth, disease, old age are the problems. The whole world is talking of problem, So many problems, secondary or tertiary problem, world related problems. In Bhagavatam, Sukadev Goswami says kalir dosha nidhi rajan. This age of Kali is a special age for the world as it passes through this period called the Kali yuga. Srila Prabhupada called this a season. So, Kali yuga is one kind of a season. Dwapar yuga is another season and Treta yuga and Satya yuga are another seasons. So, this season Kali has lots of problems related with birth, death, old age and diseases. In Srimad Bhagavatam, Sukadev Goswami says ekho mahan gunah. There is one good quality, the best quality. In Kali Yuga is kirtana eva krsna sya mukta sanga param vrajet. Harer namaiva, eva - nama only. This Sukadev Goswami has said kirtana eva - only by kirtan, only. And then he had not just talked to the readers or audiences or listeners to do kirtan of anybody and everybody, no. He specified, kirtana eva krsna sya, kirtana only of Krishna, otherwise it will not work. Maya's kirtan is going on through the karmic radio. Kirtan means glories. Kirti is glory. So, glories of maya chanted day and night. To be continued

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