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*जप चर्चा,* *16 अप्रैल 2021,* *पंढरपुर धाम.* 840 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। सुस्वागतम, सुस्वागतम श्रीराम। आप सभी का स्वागत है और श्रीराम का भी स्वागत। या पहले श्रीराम का स्वागत और फिर आप की भी बारी। राम का स्वागत कहां, हमारे जीवन में राम का स्वागत और हमारे मंदिरों में जहां श्रीराम विग्रह के रूप में निवास करते हैं, वहां पर श्रीराम का स्वागत। और फिर अपने घरों में भी राम का स्वागत। अपने देश में भी, अपना तो कुछ है ही नहीं राम के देश में सब राम का है ,पूरे ब्रह्मांड में राम का स्वागत। *राम राम राम सीता राम राम* हमारे भावों में, हमारे मन में राम का स्वागत। हनुमान जी ने अपने ह्रदय प्रांगण में श्रीराम का स्वागत किया। हरि हरि। तभी हम रामभावनाभावित बनेंगे ,जब कृष्णभावनाभावित स्वागत होगा। हरि हरि, यहां मैं क्रम से तो श्रीराम कथा नहीं कर रहा हूँ। जो भी मन में विचार आ जाते हैं, या मन में जिन विचारों का प्रवेश हो जाता हैं वही बताता हूँ, *मनोनिष्ठति मंत्रो* राम नाम के मंत्र का उच्चारण करते रहों। उच्चारण करते मेरे मन में जो विचार आ रहे हैं,उन्हीं विचारों को बताउंगा और वह विचार ही राम है,ऐसे ही सोच कर मैं कहते रहता हूं या कह रहा हूं। हरि हरि। इन विचारों को स्थिर करना है। ताकि हम रामभावनाभावित, कृष्णभावनाभावित, पांडुरंग विट्ठलभावनाभावित हो सके और नरसिंह भगवान की जय! नरसिंह देव भावनाभावित बन सके। अंततोगत्वा हमारा जैसा भी संबंध है भगवान के किसी अवतार से या रूप से उसी में अंततः हम सेटल हो जाएंगे। ऐसा नहीं हैं कि राम भक्त कृष्ण का स्मरण नहीं करता या कृष्ण भक्त राम का स्मरण नहीं करता। ऐसा ही कुछ है।क्योंकि भाव के अनुसार ही भक्त भगवान का स्मरण करता है इसीलिए राम भक्तों के लिए कृष्ण का स्मरण करना मुश्किल होता है और कृष्ण भक्तो के लिए राम का। *हित्वा अन्यथा रुपम् स्वरुपेन व्यवस्थितिही* हरि हरि।। जैसे कई सारे गौर भक्त वृंद ने मुरारी गुप्त के सामने ऐसा प्रस्ताव रखा था, कि हम सब भी कृष्ण भक्त हैं इसलिए तुम भी कृष्ण भक्त बन जाओ,उन्हीं का स्मरण चिंतन करो। और वह मान भी गए, कि "ठीक है मैं कोशिश करता हूं" और उन्होंने पूरी कोशिश भी की। पूरी रात जगते रहे ,किंतु वह रघुनंदन को भूल नहीं पाए या उनको रघुनंदन की यादें सताती रही। मुरारी गुप्त मायापुर में चैतन्य महाप्रभु के एक परीकर,पार्षद,पड़ोसी रहे ।उन्होंने कहा कि मुझे माफ करना लेकिन मैंने कोशिश तो की किंतु मैं कृष्णभक्त बनने में सफल नहीं हुआ ।जो भी हो, हमको पता नहीं है कि हम वैकुंठवासी हैं, अयोध्यावासी हैं, गोलोकवासी हैं, द्वारका वासी हैं। यह तो पक्का है कि हम देवी धाम वासी नहीं है। देवी धाम मतलब यह संसार। इस संसार के तो हम वासी नहीं है, यह निश्चित है। किंतु भगवद् धाम में हम किसके भक्त हैं? यह समझ तो है कि गोड़िय वैष्णव राधा कृष्ण के भक्त होते हैं। और फिर गोलोक लौटते हैं, परंतु उसमें कई अपवाद हो सकते हैं। जैसे मुरारीगुप्त है। और मुरारीगुप्त तो हनुमान ही है। जय हनुमान! जिनके संबंध में कहां गया हैं कि उन्होंने अपना वक्षस्थल फाड़ के दिखाया और कहां देखो मेरे भगवान, उनका दर्शन करो ।वही हनुमान जी मुरारी गुप्त के रूप में प्रकट हुए। जब श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु,श्रीवास ठाकुर कें निवास स्थान पर श्रीवास आंगन में असंख्य भक्तों को महा प्रकाश सप्तप्रहरी लीला दिखा रहे थे।असंख्य भक्तों को उनके स्वरूप के अनुसार, दर्शन दे रहे थे।तब वहां पर उनहोंने मुरारीगुप्त को भी दर्शन दिया ।भगवान श्रीकृष्णचैतन्य तो सभी अवतारों के स्त्रोत है।जब मुरारीगुप्त उनहे देख रहे थे, तो उनके लिए वहा गौर भगवान नहीं थे। गौरांग नहीं थे। उन्होंने तो अपने श्रीराम का दर्शन किया और जब मुरारीगुप्त ने उनकी और देखा तो वह भगवद् साक्षात्कार था। मेरे भगवान यह हैं। राम का साक्षात्कार।वह भगवद् साक्षात्कार था। एक आत्म साक्षात्कार होता है और एक भगवद् साक्षात्कार।उनको उस वक्त दोनों साक्षात्कार हो रहे थे, भगवद् साक्षात्कार और स्वयं का साक्षात्कार।जब उनहोंने अपनी ओर देखा तो पीछे पूछ थी और हाथ में गदा भी।उनहोने स्वयं को हनुमान के रूप में देखा। हरि हरि *हित्वा अन्यथा रुपम् स्वरुपेन व्यवस्थितिही* मुरारी गुप्त अपने स्वरूप में स्थित हो गये।यहा मुरारी गुप्त हनुमान कि भूमिका निभा रहे हैं। गौर लीला में गौरांग महाप्रभु की भक्ति कर रहे हैं। सेवा कर रहे हैं। मुरारीगुप्त ने संसार कि बहुत बड़ी सेवा की हैं। इसीलिए संसार मुरारीगुप्त का बहुत ऋणी है । वह हर रोज अपनी डायरी लिखते थे और श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का दर्शन करते थे।वह लीलाओं का भाग बने थे और वहां लिलाओ को लिखते जाते थे। मुरारी गुप्ता की डायरी ही चैतन्यचरितामृत और अन्य ग्रंथों का आधार बनी । हरि हरि। यह एक विचार है। यह विचार मेरा ऐसे ही बना। ऐसे ही हुआ कुछ और विचार आ गया। हम सोच कर सोचते रहते हैं। सोच कर सोचो। सोच कर सोचो मतलब क्या सोचते रहो ?राम का, कृष्ण का चिंतन करते रहो। सोच कर सोचो *चिंतयन्तो मां*। चिंतन है तो जीवन है, नहीं तो चिंता रहेगी तो चिंताग्रस्त होओगे। एक होता है चिंतन और दूसरी होती है चिंता। चिंता से मर जाते हैं।जब अंतिम संस्कार होता हैं,तब चिता पर लकड़ी और आग केवल एक ही बार जलाते हैं। लेकिन यह चिंता हमको हमेशा जलाती रहती हैं। हर दिन हर क्षण जलाती रहती है। चिंता जान लेती हैं, ऐसी चिंता से बचो। कैसे बचोगे? चिंतन करो, चिंतन करो। चिंतयन्तो मां हरि हरि। चिंतन के लिए प्रसिद्ध भक्त कौन हैं? *अनन्या चिंतायंतो मां* गोपिया है, ग्वाल बाल है या हनुमान है। जब राम,लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न बालक थे तो उन्हें महल में चार अलग-अलग पालनो में लिटाया जाता था। लेकिन होता क्या था? लक्ष्मण और शत्रुघ्न को सुमित्रा ने जिन पालनो में लिटाया होता था वह उस पालने से उतर जाते थे और लक्ष्मण ढूंढते थे कि राम कहा है और शत्रुघ्न ढूंढते थे कि भरत कहां है और उनके पास जाकर लेट जाते थे। उन्होंने अभी बोलना भी प्रारंभ नहीं किया होगा या फिर तोतली भाषा में बोलते होंगे। राम भैया कहां है? भरत भैया कहां हैं? और वहां जाकर लेट जाते।भाइयों में ऐसा संबंध था,उनकी ऐसी जोड़ियां थी। लक्ष्मण का राम पर विशेष स्नेह था और शत्रुघ्न का भरत से विशेष स्नेह था।और उनकी पूरी लीला में यही देखा जाता हैं कि राम और लक्ष्मण साथ में रहते हैं और भरत और शत्रुघ्न साथ में रहते हैं। राम और लक्ष्मण साथ में वनवास गए, "नहीं नहीं मैं यहां नहीं रह सकता हूं। मैं भी साथ में जाऊंगा"। जब भरत अयोध्या में नहीं थे तब शत्रुघ्न ऐसे हट करके नहीं बैठे थे कि मैं भी जाऊंगा भरत के साथ। लेकिन लक्ष्मण जरूर गए।वैसे लक्ष्मण का नाम ही रामानुज हैं। रामानुज, रामानुग होना चाहिए। वैसे रामानुज का अर्विभाव आ रहा हैं। लक्ष्मण हैं रामानुग और शत्रुघ्न है भरतानुग। मतलब पीछे पीछे जाने वाले, साथ में रहने वाले। यह बात आप याद रखो। आचार्यो ने या शास्त्रों ने यह दो संघ बनाकर रखे हैं। और शास्त्रों मे वर्णित है उनके संबंध के बारे में और यह भी कि कैसा स्नेह था उनका आपस में, राम का लक्ष्मण से और भरत का शत्रुघ्न से। जब वह बालक थे, राजपूत्र थे तो धीरे-धीरे उनका प्रशिक्षण शुरू हुआ। आगे क्या करेंगे? यह राजा बनेंगे।अभी राजपूत्र हैं। भविष्य में राजा बनेंगे, योद्धा बनेंगे, तो इनको सिखाया जा रहा है। धनुष बाण कैसे चलाना हैं या कैसे धारण करना हैं और घुड़सवारी कि घोड़े पर कैसे सवार होना है। विशेष रूप से राम धनुष बाण या बाण चलाने कि कला में प्रवीण थे। इसलिए ऐसा प्रसिद्ध है कि राम एक बाणी है या एक वचनी है,एक पत्नी भी हैं।उनका बाण कभी भी खाली फोकट नहीं गया, राम जब निशाना लगाते किसी को लक्ष्य बनाते तो उनका बाण जरूर उस लक्ष्य तक पहुंच ही जाता । इसलिए हम लोग कहते हैं रामबाण औषधि, यह औषधि कैसी हैं? रामबाण मानो राम का ही बाण। यह औषधि जो भी यह दवा लेगा,वह सफल होगा ही। वैसे कोरोना वैक्सीन के बारे में चर्चा हो रही हैं कि यह रामबाण है कि नहीं रामबाण हैं,या मरा मरा औषधि वैक्सीन हैं, नश्वर। लेकिन कुछ औषधिया होती हैं कि यह रामबाण औषधि हैं। रामबाण गारंटी के साथ। वैसे राम का नाम तो निश्चित ही रामबाण औषधि हैं। *राम राम राम सीता राम राम राम* *रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम* हो गया.. रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम पतितो को पावन बनाएगा राम का नाम। सिर्फ राम ही क्यों राम का नाम भी कलीयुग में पतितो को पावन बनाएगा। राम की लीला और राम का रूप भी कलीयुग में रामबाण औषधि हैं या उपाय हैं। हम भवरोगी है, रोगी हैं तो औषधि भी चाहिए ही, दवा चाहिए ही। रोग का निदान हो गया, तो उसके लिए प्रिस्क्रिप्शन क्या है? ओ तुम तो कली के जीव हो।तुम्हें तो बहुत से रोग हैं, कौन-कौन से रोग हैं? बहुत बड़ा रोग तो काम रोग है। हम काम में है, लोग ऐसा कहते हैं कि हम काम में है, मतलब काम में है, हम राम के प्रेमी नहीं हैं, हम माया के प्रेमी हैं। मतलब उसको काम कहते हैं,लेकिन दुनिया उसको प्रेम कहती हैं। दूसरे शब्दों में गाढवी प्रेम,जैसे गधा प्रेम करता है गधीनी के साथ,उसको गाढवी प्रेम कहते हैं,मराठी में गधे को गाढव कहते हैं । इस संसार में जो प्रेम चलता है वह गधे जैसा हैं।गधे का प्रेम गधिनी के साथ तो काम हैं, यह काम रोग से ग्रस्त होना हैं।औषधि क्या है? *पतितानां पावनेभ्यो* भगवान का नाम पतितो को पावन बनाने वाला , राम का नाम पावन बनाने वाला हैं,इसके लिए राम प्रसिद्ध है। *पतित पावन सीताराम* पतितो को पावन बनाने के लिए ही तो भगवान प्रकट होते हैं। *परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।* *धर्मसंस्थानार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ८ ॥* त्रेतायुग का धर्म हैं यज्ञ, यह भागवत से हम समझते हैं *त्रेतायां यजतो मखै:*। तो मैं बता रहा था कि राम कुछ प्रशिक्षण ले रहे थे और प्रशिक्षित हो गए। वैसे कृष्ण भी सांदीपनि मुनि के आश्रम में प्रशिक्षण के लिए गए थे। राम तो कहीं नहीं गए।वही अयोध्या में ही उनका प्रशिक्षण हो रहा था।वशिष्ठ आदि मुनि गुरु उनको शिक्षा दे रहे हैं। उनकी अच्छी तरह से प्रशिक्षित होने के बाद विश्वामित्र मुनि आते हैं। स्वागत है, स्वागत है, आपका स्वागत है, अतिथि देवो भव। लोग ऐसा केवल साइन बोर्ड ही नहीं लगाते थे, अतिथि देवो भव परंतु उनका ऐसा भाव भी हुआ करता था। मानो देवता ही आ गए। ऐसा स्वागत हुआ करता था। आजकल हम नहीं करते।आजकल हमारे घर के सामने अतिथि देवो भव साइन बोर्ड नहीं होता है। कौन सा साइन होता है कुत्तों से सावधान तो इस प्रकार जमाना बदल गया।कलयुग में वह त्रेता युग की संस्कृति, भाव और बहुत कुछ नहीं रहा। सब उल्टा पाल्टा हो गया हैं। राजा दशरथ ने विश्वामित्र का स्वागत किया और कहां आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? बस आज्ञा करो। विश्वामित्र मुनि ने फिर आज्ञा की,अपनी इच्छा व्यक्त की,कि मुझे आपके पुत्र राम और लक्ष्मण चाहिए। फिर बताया कि जब हम यज्ञ करते हैं,त्रेता युग है तो यज्ञ ही धर्म हैं। यज्ञ का अनुष्ठान ही धर्म हैं। लेकिन हम लोग जब यज्ञ करते हैं तो कई विघ्न भी उत्पन्न होते हैं, कई राक्षस आते हैं और बाधा उत्पन्न करते हैं। तो मैं चाहता हूं कि राम और लक्ष्मण आकर हमारी सहायता करें। उन राक्षसों उन निशाचरो का वध करें, ताकि हमारा यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हो सके।जब यह प्रस्ताव राजा दशरथ ने सुना तो उनको बहुत अचरज हुआ। क्या?आप मेरे पुत्र को वन में ले जाना चाहते हो?और रात्रि के समय भी वही रखवाली करेंगे, नहीं नहीं नहीं यह मुमकिन नहीं है। यहां पर राजा दशरथ का वात्सल्य उमड़ आया,उनकी वत्सलता,वात्सल्य। तो क्या हुआ अगर राम और लक्ष्मण भगवान हैं?उनके लिए तो भगवान नहीं हैं,उनके तो पुत्र हैं।और अभी बालक हैं *उनषोडशा वर्षीय* उनकी उम्र कितनी हैं? *उनषोडशा वर्षीय* हैं। मतलब सोलह साल के भी नहीं है। उसमें भी एक कम पंद्रह साल के ही हैं। और कैसे हैं यह राम और लक्ष्मण *राजीवलोचन:* कमलनयनी हैं।उनकी आंखों के सौंदर्य के संबंध में बताया गया हैं कि उनकी आंखें कितनी सुंदर हैं, कमलनयनी हैं, पद्म नयनी हैं या राजीव लोचन हैं।उनका नाम भी हैं, राजीव लोचन। इसीलिए राजा दशरथ कह रहे हैं कि वैसे तो कमल के पुष्प खिले रहते हैं,लेकिन जब सायं काल का समय आता है, संध्या काल का समय आता हैं, वह बंद हो जाते हैं। तो राजा दशरथ का कहना है कि संध्या काल के समय इनकी भी आंखें धीरे-धीरे बंद होती है। मतलब उन को नींद आ जाती हैं, हम उनको सुलाते हैं और पूरी रात वे सोते रहते हैं। और आप कह रहे हैं कि निशाचरो का वध करेंगे, पूरी रात सेवा होगी, पूरी रात सतर्क रहेंगे इनसे यह नहीं होगा। यह राजीव लोचन है,इनको संध्या काल के समय बस झपकी आ जाती हैं।नहीं नहीं नहीं वह नहीं जा सकते। हरि हरि। विस्तार से इस प्रसंग का वर्णन रामायण में हैं,कि कैसे विश्वमित्र क्रोधित हो जाते हैं। उसके पहले राजा दशरथ ने तो कहा था इन दो को क्यों में तो बहुत बड़ी सेना भेज दूंगा, लेकिन विश्वामित्र ने कहा कि नहीं नहीं नहीं मुझे सिर्फ राम और लक्ष्मण चाहिए।श्री वशिष्ठ मुनि जी राजा दशरथ को समझाते हैं और फिर राम और लक्ष्मण को भेजा जाता हैं, । राम और लक्ष्मण वनवासी बन गए। भविष्य में तो वनवासी बनने वाले हैं ही,उनहे 14 साल का वनवास। राम और लक्ष्मण का बनवास यहां से शुरू हो गया।विश्वामित्र मुनि उनको वन में ले गए और कि उन्होंने रखवाली की , उनके वध का कार्य तारका से प्रारंभ हुआ । कृष्ण ने भी ऐसा ही श्री गणेश किया था। *विनाशायच दुष्कृतम्*। दुष्टों का संहार करा था। कृष्ण जब छह दिन के ही थे तब उन्होंने गोकुल में पूतना का वध किया था। और राम ने यहां ताड़का का वध किया। और भी एक वध किया।वध तो नहीं किया, लेकिन अपने बाण के प्रहार से मरीचि को ऐसा धक्का दिया कि उडान भरखर उनका शरीर लंका में पहुंच गया।उनहोंने उसकी जान तो नहीं ली,लेकिन वहां से हटा तो दिया।श्रीलंका मे फेंक दिया। 2000 किलोमीटर दूरी पर उसको फेंक दिया। यह वही मरीचि है जो भविष्य में रावण के काम आने वाला है। उस वक्त तो वध नहीं किया था जब राम यज्ञ की रक्षा कर रहे थे, किंतु गोदावरी के तट पर पंचवटी क्षेत्र में इसी मरीचि का वध करने वाले हैं।तो इस प्रकार राम ने *धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि* त्रेता युग का जो धर्म हैं, यज्ञ *त्रेतायां यजतो मखै:* मखैः उस यज्ञ की रखवाली की या यज्ञ नामक धर्म की रखवाली की। इस विधि की रखवाली की, स्थापना की और अपनी लीला सफल की। अपना उद्देश्य सफल किया।जिस उद्देश्य से राम प्रकट हुए थे। *संभवामि युगे युगे* । ऐसे श्री राम की जय हो। जय श्री राम।

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