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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *15 अप्रैल 2021* हरे कृष्ण! *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।* आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 814 स्थानों से भक्त सम्मिलित हैं। *ओम नमो भगवते श्री रामायः* *ओम नमो भगवते श्री लक्ष्मणायः* *ओम नमो भगवते श्री भरतायः* *ओम नमो भगवते श्री शत्रुघ्नायः* हरि हरि । *जय श्री राम ॥* आप सभी तैयार हैं? आत्मा तो राम को चाहता ही होगा। *नाही जिवासी आराम* ,राम बिना मुझे चैन पड़े ना, ऐसा हो रहा है ना? रामनवमी आ रही है और अधिक से अधिक निकट पहुंच रही है । हम और अधिक राम और कृष्ण भावनामृत हो रहे हैं । राम भावना मृत होना है । मैं यह कह रहा था कि अभी राम नवमी की ऋतु चल रही है । इसका लाभ लेते हुए यह सारा वातावरण राम की ऊर्जा से पूर्ण है ,अर्थात राम से पूर्ण है और यह समय अनुकूल है | जैसे नंद बाबा,जब वह बाबा बने ,जो अधिक उम्र वाले होते हैं , बुजुर्ग होते हैं उनको बाबा भी कहते हैं उनकी काफी उम्र हो चुकी थी तब नंद बाबा को पुत्र प्राप्ति हुई, वैसा ही दशरथ महाराज के साथ हो रहा था । उन्होंने कई उपाय किए ,किंतु उनको पुत्र प्राप्ति नहीं हो रही थी । अंततोगत्वा संत महात्माओं विद्वानों के सलाह से मंत्रियों के मंत्रणा से उन्होंने पुत्रेष्ठी यज्ञ करने का संकल्प लिया । रुशश्रृंग स्वयं पुरोहित बने इनका विशेष व्यक्तित्व रहा। यज्ञ की तैयारी हो रही है और सभी को आमंत्रण भेजे हैं , स्वर्ग के देवता भी पहुंच चुके हैं अभी यज्ञ प्रारंभ होने ही जा रहा है । तब उनकी एक सभा प्रारंभ होती है , इष्ट गोष्ठी प्रारंभ होती है । यहां पर इस सभा के सभापति स्वयं ब्रह्मा है। *यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति ।* जब धर्म के ग्लानि होती है , भगवान तभी प्रकट होते हैं। अभ्युत्थानमधर्मस्य 'अधर्म' बढ़ता है , यह देवता चर्चा कर रहे हैं केसे अब 'अभ्युत्था' या 'अधर्म' मच रहा है, बढ़ रहा है और इसका कारण है 'रावण' , रावण नाम से पता चल रहा है , औरों को रुलाने वाले को रावण कहते हैं । एक-एक देवता बता रहे हैं ,वह रावण के कारण कैसे डरे हुए हैं, भयभित है और कांप भी रहे हैं । रावण का नाम सुनते ही या रावण के उपस्थिति में वह डर जाते हैं । वह यह कह रहे हैं कि समुद्र भी डर रहे है। समुद्र के भी देवता हैं जो स्तुब्द समुद्र शब्द हो जाता है । जब रावण समुद्र के बीच पर पहुंच जाता है , महल से रावण जब बाहर निकलता है तब सूर्य का तपना कम होता है , सूर्य को भी शिथील होना पड़ता है । ऐसे सभि देवता अपना अपना अनुभव बता रहे हैं और उसी के साथ वे ब्रह्मा जी को निवेदन कर रहे हैं । प्रभु जी कुछ उपाय बताइए या कहींये ताकि इस रावण का वध हो जाए । तब ब्रह्मा उत्तर में कहते हैं आप में से कोई भी ब्रह्मा के मृत्यु का कारण नहीं बन सकता वैसे हुआ ही था , जैसे शक्ति युग में हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था । तपस्या की और वरदान मांगे , "मैं ऐसा मरू अंदर नहीं ,बाहर नहीं ,आकाश में नहीं ,जमीन में नहीं ,हथियार से नहीं ,उससे नहीं , इससे नहीं ,पशु से नहीं, मनुष्य से नहीं " ठीक है , तथास्तु ! तथास्तु ! तथास्तु ! ऐसा ब्रह्मा ने कहा था । हिरण्यकशिपु को ऐसा आशीर्वाद प्राप्त हुआ था , वैसा ही आशीर्वाद रावण को भी ब्रह्मा दे चुके थे । जब पूछा गया कि कोई उपाय ढूंढिए तब ब्रह्मा को याद आया हां ! हां ! एक बात संभव है । वैसे जब आशीर्वाद मांग रहा था मैं ऐसा नहीं मरू यह मुझे मारे वह नहीं मारे तब उसने मनुष्य का नाम नहीं लिया । मनुष्य मुझे ना मारे ऐसा उसने सोचा भी नहीं होगा और कहा भी नहीं और आशीर्वाद भी नहीं मांगा । क्योंकि रावण मनुष्य को बड़ा तुच्छ, मच्छर कहीं का नगण्य समझता था । फिर ब्रह्मा ने कहा , इस रावण को कोई मार सकता है या इसका प्रबंध कर सकता है तो उसको नर रूप में , नराकृति में , मनुष्यरूप में मार सकता है । जब ऐसा सोच ही रहे थे , ऐसा विचार विमर्श चल रहा था इतने में सभीने *कोटी सूर्य समप्रभा"* कोटी सूर्य जेसी प्रभा उनकी और आती हुई देखी और धीरे-धीरे *धीरन मयेन पात्रेण सक्तेसा विहीतम् मुखम्"* वह जो प्रखर तेज था हटता गया , यह तेज का स्रोत भगवान ही थे । भगवान वहां आ रहे थे, आ ही गए , सभी ने देखा भगवान ने दर्शन दिया , गरुड़ पर आरुढ होकर भगवान वहां पर पहुंचे थे । ब्रह्मा जी भगवान को निवेदन करते हैं , प्रभु आप प्रकट होईऐ , मनुष्य रूप में प्रकट होईऐ क्योंकि पुत्रेष्ठि यज्ञ संपूर्ण हो रहा है । अब आहुतियां चढ़नी ही है , पुत्रेष्ठि पुत्र की ईष्ठा और कामना संपूर्ण होनी जा रहा है । देवता की ओर से भी ब्रह्मा राजा दशरथ को ऐसा वरदान देना चाह ही रहे हैं की उनको पुत्र प्राप्ति हो और वह पुत्र साधारण नहीं हो , स्वयं भगवान पुत्र रूप में प्राप्त हो । राजा दशरथ की तीन रानियां है , इसलीये आप 4 रूपों में प्रकट हो ,ऐसा निवेदन, ऐसी प्रार्थना ब्रह्माजी देवताओं की ओर से की । ऐसा ही होता है , जब 5000 वर्ष पूर्व पृथ्वी परेशान थी वह गाय के रूप में देवताओं के पास पहुंचे और फिर ब्रह्मा जी को लेकर श्वेतदीप के तट पर गए थे और वैसे ब्रह्मा ने वहां पर निवेदन किया था , " प्रभु इस संसार को आप की आवश्यकता है , इस पृथ्वी की जो उलझन है उसकी सुलझन आप ही बन सकते हो।" उस समय भगवान ने कहां हां । तथास्तु । वैसे ही होगा । मैं पूरा करूंगा और आप भी मेरे साथ सहयोग करो , देवताओं मुझसे पहले आप ब्रज में ,वृंदावन में ,मथुरा में प्रकट हो जाओ, यहां पर अयोध्या में भी यह ब्रह्मा का निवेदन है , भगवान वैकुंठ से वहां पहुंचकर निवेदन सुन रहे हैं , भगवान ने कहा वैसे ही होगा । मैं दशरथ के चार पुत्र के रूप में प्रकट हो जाऊंगा और इस रावण का वध करूंगा । बालकांड के 15 वे सर्ग में यानी 15 वे अध्याय में भगवान कहते है *भयं त्यजत भद्रं वो हितार्थ युधि रावणम्* डरो नहीं! डरो नहीं !स्वयं भगवान देवताओ को कह रहे हैं *"मा श‍ुच:"* । *"हत्त्वा क्रूरं"* युद्ध में उस रावण की हत्या में करूंगा । *"देवर्षीणां भयावहम्"* और *दश वर्षसहस्राणि दश वर्षशतानि च ।* *वत्स्यामि मानुषे लोके पालयन्पृथिवीमिमाम् ॥* और मैं 11000 वर्ष तक राज करूंगा । इस मनुष्य लोक में मनुष्य बन कर ,मनुष्य आकृति में प्रकट होकर मैं इस रावण का वध करूंगा और मैं इस पृथ्वी पर राज करूंगा ऐसे भगवान कहते है । ऐसा वरदान या ऐसा वचन कह कर भगवान अंतर्धान होते हैं , आहुति चढ़ने लगी स्वाहा! स्वाहा ! स्वाहा ! स्वाहा! इतने में उस यज्ञ से या यज्ञ के अग्नि से एक विशालकाय पुरुष प्रकट हुआ और उस व्यक्ति के पास एक खीरसे भरा हुआ पात्र था ।उस विशालकाय पुरुष ने वह खिर का पात्र राजा दशरथ को दिया और कहा कि अपने तीनों रानियों को खिलाओ तब राजा दशरथ ने वैसा ही किया । खिरका आधा भाग , आधा हिस्सा कौशल्या को ग्रहण करने को कहा , जो बचा था उसका आधा हिस्सा सुमित्रा को दिया और बचा हुआ था उसका आधा कैकिई को खिलाया और जो बचा था वह सुमित्रा को पुनः खिलाया । सुमित्रा ने खिर दो बार खाई है तो सुमित्रा के 2 पुत्र होने वाले हैं और कौशल्या का 1 और कैकई का 1 ऐसे 4 पुत्र होंगे । अब जब सभी देवता समझ गए कि भगवान प्रकट होने जा रहे हैं , ब्रह्मा जी उस समय चर्चा करते हैं और एक प्रकार से आदेश देते हैं कि आप भी प्रकट हो जाओ । भगवान ने कहा है की वह रावण का वध करेंगे , युद्ध होगा ऐसा भी संकेत किया है। देवताओं उस युद्ध में आपभी प्रकट हो जाओ और उस युद्ध में आप हिस्सा लो , आप वानर रूप में प्रकट हो जाओ और भगवान नर बनेंगे। आप वानर बन जाओ ज्यादा भेद नहीं है । वानर कौन है ? यह नर नहीं है ? जब ऐसा मन में प्रश्न उठता है तब हम कहते हैं , यह वानर नर नहीं हे ? लगता है कि नर ही है! नर है क्या ? और कौन है , वानर , पुरुष वैसे पुरुष भी नहीं है । ऐसी भी योनि है । ब्रह्मा ने कहा मैंने पहले ही रिक्ष राज को उत्पन्न किया है , रिक्ष राज मतलब भालू वह भालू सेना और बंदर सेना होगी । रिक्ष राज भालू सेना के राजा होंगे , मैं जमाई दे रहा था मेरे मुख से ये रिक्ष राज उत्पन्न हुए हैं । इंद्रभी सुग्रीव बनेंगे ,सूर्य बाली बनेंगे ,और ऐसे अलग-अलग देवता कौन-कौन बनेगे ऐसा वर्णन रामायण में आ चुका है फिर वायु देवता कौन बनेगें ? वायु देवता स्वयं हनुमान बनेंगे । पवन पुत्र हनुमान की जय ! इस प्रकार इस देवताओं की सभा में यह भी तय हुआ कि अलग-अलग लेकिन सभी मानव रूप में जन्म लेंगे और सभी देवता युद्ध में भगवान की सहायता करेंगे। अब कौशल्या ने जन्म दिया , जय श्री राम । और सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया है जय लक्ष्मण और जय शत्रुघ्न और कैकइ ने भरत को जन्म दिया और यह सारे जन्म नवमी के दिन हुये हैं इसलिए मैंने एक दिन कहां था यह नवमी केवल रामनवमी ही नहीं है लक्ष्मण नवमी , शत्रुघ्न नवमी ,और भरत नवमी भी है , इसको भूलिए मत । उसी के साथ यह सब देवता भी प्रकट हुए हैं जन्म लिए हैं ,सरयू नदी के तट पर भगवान तो प्रकट हुए हैं । अयोध्या धाम की जय । और यह सारे वानर वन में जहां-तहां या दंडकारण्य में भालू रूप में या वानर रूप में सर्वत्र प्रकट हुए हैं । जब भगवान वनवासी बनेंगे यह सब तैयारी है , सारा घटनाक्रम है ताकि वनवासी भगवान लंका की ओर आगे बढ़ेंगे और रास्ते में किष्किंधा पहुंचने वाले हैं , वहां सुग्रीव के साथ उनका मिलन होने वाला है और यह सब वानर सेना ,सुग्रीव की सेना और बाली की भी थी , इस सेना को लेकर फिर भगवान लंका की ओर प्रस्थान करेंगे , रास्ते में पूल भी बनाने वाले हैं । लंका पहुंचकर रावण का दशहरे के दिन वध होणे वाला है। दशहरा जानते हैं ? नाम तो वैसे दशहरा होना चाहिए, जिस दिन राम ने 10 सिर को हर लिया वह दिन दशहरा बना । 10 मुख वाले रावण को भगवान ने हर लिया । उससे पहले कुम्भकर्ण को हर लिया ,भगवान ने उसकी भी जान ली । हरि हरि । *गौर प्रेमानंदे हरी हरि बोल ।* इतना ही सुन कर उसका चिंतन कीजिए और मनन कीजिए । *जय श्री राम।* *जय श्री लक्ष्मण।* *जय श्री भरत ।* *जय श्री शत्रुघ्न।* *अयोध्या धाम की जय |* *रामायण महाकाव्य की जय ।* *वाल्मीकि मुनि की जय।* *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ।*

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