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14 सितंबर 2019
हरे कृष्ण
आज की जप कॉन्फ्रेंस एक चक्र ग्राम धाम जो कि अभी रूस में है, इस कांफ्रेंस को रूस से इसे संपन्न कर रहे हैं। यह सूचना इस जप कॉन्फ्रेंस में सभी जप करने वाले भक्तों को मैं अभी दे रहा हूं। इस कॉन्फ्रेंस में संपूर्ण विश्व से अनेक भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं और इस कॉन्फ्रेंस का नाम है लेट्स चेंट टू गेदर अर्थात आइए एक साथ जप करें। इस जप कॉन्फ्रेंस में गौर किशोर प्रभु हैं हॉलैंड से, पद्मावती माताजी हैं मुम्बई थाणे से, माधवी गोपी माताजी हैं पुणे से, वैभव प्रभु हैं , देवहूति माताजी हैं साथ ही साथ न्यूयॉर्क से धीर गोविंद प्रभु हमारे साथ जप कर रहे हैं।
नागपुर से श्याम सुंदर शर्मा हमारे साथ जप कर रहे हैं, ऑस्ट्रेलिया से धीर प्रशांत प्रभु हैं, इसी प्रकार से अमेरिका से राधे गोपाल प्रभु हैं। अतः लगभग 1000 भक्त अभी हमारे साथ जप कर रहे हैं, इस प्रकार इस कॉन्फ्रेंस में जो जप करने वाले साधक हैं उन्हें संपूर्ण विश्व के भक्तों का साथ मिलता है, उन्हें उनका संग लाभ मिलता है। इसके अलावा दुबई मॉरीशस आदि स्थानों से भी भक्त हमारे साथ जप करते हैं और यह कॉन्फ्रेंस प्रतिदिन होती है।यह हरिनाम तथा जप करने वाले साधकों की सेवा के लिए छोटा सा प्रयास है। इस कॉन्फ्रेंस में सर्वप्रथम हम कुछ देर तक जप करते हैं और फिर उसके पश्चात हम जप चर्चा करते हैं। जहां पर हम जप के विषय पर थोड़ी सी चर्चा करेंगे या कुछ प्रवचन करेंगे। "जीव जागो जीव जागो गोरा चांद बोले" तो यहाँ भी जीव को उठाने के लिए चैतन्य महाप्रभु (गौरांग महाप्रभु) बुला रहे हैं।
जीव अब तुम जागो हे सोई हुई आत्मा अब तुम उठो इस प्रकार से जब कोई जीव पूर्ण रूप से जागृत स्थिति में होता है तब वह हरे कृष्ण महामंत्र का अत्यंत सावधानी पूर्वक एवं ध्यान पूर्वक जप कर सकता है, लेट्स चेंट टुगेदर जपा कॉन्फ्रेंस एक प्रकार से प्रतिदिन होने वाली जपा रिट्रीट है। इस्कॉन में शचिनंदन महाराज आदि अन्य कई महाराज तथा सीनियर वैष्णव जपा रिट्रीट करते हैं, जहां वे बरसाना या किसी अन्य स्थान पर चार-पांच दिन के लिए सभी भक्तों को बुलाते हैं और फिर उसी स्थान पर रिट्रीट होती है। जहां सब को बताया जाता है कि किस प्रकार से अपना जप सुधार सकते हैं, ध्यान पूर्वक जप कैसे किया जाता है। इस प्रकार से यह जपा रिट्रीट होती है लेकिन हमारा जो यह जूम जपा कॉन्फ्रेंस है इसके माध्यम से हम प्रति दिन यह जपा रिट्रीट करते हैं, जहां किस प्रकार से ध्यान पूर्वक जप किया जाए, किस प्रकार से हम अपना जप सुधार सकते हैं, इस पर चिंतन किया जाता है।
इस प्रकार से इस जप कांफ्रेंस के माध्यम से हमारी जप चर्चा थोड़ी छोटी होती है क्योंकि यहां पर सर्वप्रथम हम एक साथ जप करते हैं और उसके पश्चात हम कुछ निर्देश देते हैं, ये जो कुछ निर्देश होते हैं उसमें कुछ नियम होते हैं, कुछ निषेध होते हैं, आपको यह करना चाहिए और यह नहीं करना चाहिए। इस प्रकार आप भी अपने जप की तैयारी कर सकते हैं। तो आज का यह जो जप सत्र है यह श्रीलभक्ति विनोद ठाकुर के आविर्भाव दिवस और नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर के तिरोभाव दिवस के मध्य एक प्रकार से सैंडविचड हो गया है क्योंकि श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का आविर्भाव दिवस अभी-अभी समाप्त हुआ है और श्रील हरिदास ठाकुर का तिरोभाव दिवस अभी शुरू हो रहा है। इस प्रकार से आज हमें श्रील भक्ति विनोद ठाकुर और नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर का स्मरण हो रहा है। कई भक्त अपना जप प्रारंभ करने से पहले नामाचार्य हरिदास ठाकुर से प्रार्थना करते हैं और उनसे उनकी कृपा के लिए याचना करते हैं। चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं हरिदास ठाकुर को हरिनाम का
आचार्य अर्थात नामचार्य की उपाधि प्रदान की है कि यदि हरी नाम के कोई आचार्य हैं तो वह हरिदास ठाकुर हैं। आचार्य कौन होता है आचार्य वह होता है जो अपने आचरण से सभी को सिखाते हैं, वह स्वयं उस प्रकार का आचरण करते हैं कि व्यक्तियों को शिक्षा मिल सके। चैतन्य महाप्रभु के पार्षदों में और संपूर्ण परंपरा में वह एक व्यक्ति हैं जिसने सभी को हरी नाम लेने के लिए प्रेरित किया हो तो वह व्यक्ति हैं नामचार्य श्रील हरिदास ठाकुर। वे प्रतिदिन 300000 नाम जप करते थे और उन्हें जप रोकने के लिए कई बार कहा गया कि अगर आप यह जप नहीं रोकेंगे या यह हरी नाम का जप करना नहीं बंद करेंगे तो हम आपकी पिटाई करेंगे या हम आपकी जान ले सकते हैं, हम आपको मारेंगे इस प्रकार से उन्हें प्रताड़ित किया जाता था और उन्हें प्रताड़ित करने के बाद भी उन्होंने अपना जप नहीं रोका और इतनी प्रताड़ना के उपरांत भी वे जप करते रहे। उन्होंने कहा आप चाहे मेरे शरीर को खंड खंड कर दीजिए परंतु फिर भी मैं यह जप करना नहीं रोकूंगा इस प्रकार से वे सदैव जप करते रहते थे।
इस प्रकार से नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के जो वचन हैं या जो स्टेटमेंट उन्होंने कहा जब मुझे इसका स्मरण हुआ तो मैं यह सोच रहा था कि वास्तव में तो हरिदास ठाकुर ऐसा कह रहे होंगे कि ऐसा नहीं है कि केवल उनका शरीर ही जप कर रहा हो परंतु वास्तव में उनकी आत्मा ही हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रही थी। यदि किसी का शरीर ही जप करे तो उसको रोका जा सकता है परंतु आत्मा को नहीं रोका जा सकता। भगवान कृष्ण स्वयं भगवत गीता में कहते हैं नैनं छिंदंति शस्त्राणि नैनम दहति पावकः ।
अतः इस आत्मा को ना तो कोई शस्त्र काट सकता है ना कोई अग्नि इस आत्मा को जला सकती है तो हरिदास ठाकुर की आत्मा वास्तव में जप कर रही है थी और आत्मा की पिटाई नहीं हो सकती, आत्मा की मृत्यु नहीं हो सकती आत्मा को जलाया नहीं जा सकता तो इस प्रकार से इस जगत की कोई भी प्रताड़ना हमें हरि नाम का जप करने से नहीं रोक सकती है और वास्तव में हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हरि नाम का जप वास्तव में आत्मा ही करती है शरीर नहीं कर सकता है । जिस प्रकार से एक स्पीकर होता है उस स्पीकर में कुछ रिकॉर्डिंग चलती है और वे कहते हैं कि आज के जो वक्ता हैं वह फला फला व्यक्ति हैं या उस कंपनी के जो भी अध्यक्ष हैं वह आज के वक्ता हैं तो उस स्पीकर में ऐसा चलता है और एक होता है कि वह आपके सामने बैठकर माइक में बोलता है तो वास्तव में वक़्ता कौन है वह स्पीकर में जो आवाज आ रही है वह, या जो माइक में बोल रहे हैं वह तो वास्तव में जो आपके समक्ष माइक में बोल रहे हैं वह वक्ता है, अभी हमें यहां पर यह अंतर देखना चाहिए कि मुंह जो है, वह वास्तव में एक प्रकार से उस स्पीकर के समान है जो कि केवल एक साधन है परंतु वास्तव में माइक में जो बोल रहा है वह तो आत्मा है।
आत्मा वास्तव में वक्ता है शरीर नहीं है और जप भी आत्मा करती है, आत्मा के बिना शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं है यदि आत्मा ना हो तो हमारा कान कुछ श्रवण कर सकता है क्या? तो यह श्रवण कीर्तन स्मरण यह सब आत्मा के धरातल पर संपन्न होते हैं। आत्मा के द्वारा संपन्न होते हैं शरीर तो एक मृत पदार्थ के द्वारा बना होता है, यह चिंतन नहीं कर सकता श्रवण भी नहीं कर सकता कीर्तन भी नहीं कर सकता यदि आत्मा ना हो तो। हम कुछ भोजन करते हैं जिससे यह शरीर चल सके परंतु यह हरी नाम आत्मा का भोजन है। हरिदास ठाकुर को चाहे कितनी भी प्रताड़ना दी गई इस जप को रोकने के लिए परंतु उन्होंने कभी भी इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना रोका नहीं और वे सदैव जप करते रहे।
इस प्रकार से जब हरिदास ठाकुर अपनी वृद्धावस्था में थे तब भी उन्होंने जप करना नहीं छोड़ा, उस समय महाप्रभु ने गोविंद को भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद देकर भेजा कि यह महाप्रसाद जाकर हरिदास ठाकुर को देकरआना। हरिदास ठाकुर सिद्ध बकुल में रहते थे, बकुल एक पेड़ होता है , वहां पर हरिदास ठाकुर रहते थे उस पेड़ को अब सिद्ध बकुल कहा जाता है। भगवान चैतन्य महाप्रभु स्वयं हरिदास ठाकुर का ध्यान रखते थे क्योंकि हरिदास ठाकुर को अपनी देह की सुध नहीं थी, वे निरंतर हरि नाम का जप करते रहते थे और खुद की कोई भी देखभाल नहीं करते थे। जगन्नाथ स्वामी जब सुबह उठते हैं तो दातुन करते हैं और यह दातुन बकुल के पेड़ का बना होता है। चैतन्य महाप्रभु एक समय बकुल के पेड़ का यह दातुन लेकर जहाँ हरिदास ठाकुर रहते थे वहां पर आए और उन्होंने उस दातुन को जो कि बकुल के पेड़ की टहनी का बना होता है उसको वहां पर जमीन में लगाया और देखते ही देखते वह दातुन एक बड़े वृक्ष के रूप में परिवर्तित हो गया क्यों क्योंकि हरिदास ठाकुर सर्दी गर्मी बरसात प्रत्येक ऋतु में वहां बैठकर जप करते थे। उन्हें देह की सुध नहीं रहती थी, वे कड़ी धूप में वहां बैठकर जप करते थे। चैतन्य महाप्रभु स्वयं हरिदास ठाकुर की देखभाल करते थे, उन्होंने हरिदास ठाकुर के लिए स्वयं वह बकुल का पेड़ वहां उत्पन्न किया।
इस प्रकार से महाप्रभु हरिदास ठाकुर की देखभाल करते हैं और उस दिन उन्होंने गोविंद को कहा कि यह महाप्रसाद लेकर जाओ और हरिदास ठाकुर को देना और जब गोविंद जी महाप्रसाद लेकर आए तो उन्होंने देखा कि हरिदास ठाकुर लेटे हुए थे और उन्होंने हरिदास ठाकुर को कहा कि महाप्रभु ने आपके लिए यह भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद भेजा है आप इसे ग्रहण कीजिए तो हरिदास ठाकुर ने कहा कि मैंने तो अभी तक अपनी निर्धारित संख्या का जप पूर्ण नही किया है। इस प्रकार से मैं अभी यह प्रसाद ग्रहण नही कर सकता हूं। एक अन्य समय पर चैतन्य महाप्रभु स्वयं हरिदास ठाकुर के पास आते हैं, हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब भी हम जप करते हैं तो हम भगवान का संबोधन करते हैं,T हम भगवान को बुलाते हैं और हमारे जप के द्वारा भगवान वहां पर प्रकट होते हैं । भगवान वहाँ पर आते हैं हमें इस बात का विश्वास रखना चाहिए।
इस प्रकार से जो भक्त भगवान के नामों का उच्चारण करते हैं, जप करते हैं, भगवान उन साधकों को अपना दर्शन देते हैं। हरिदास ठाकुर जब जप करते थे तो उस के परिणाम स्वरूप महाप्रभु वहाँ स्वयं प्रकट होते थे और महाप्रभु स्वयं आकर हरिदास ठाकुर को दर्शन देते थे। उस समय चैतन्य महाप्रभु जब अपनी प्रकृट लीला कर रहे थे तो वह स्वयं चलकर वहां आए और उन्होंने हरिदास ठाकुर को दर्शन दिया। जब आप भगवान की ओर एक कदम उठाते हैं तो भगवान हमारी ओर 1000 कदम उठाते हैं।
जप करते समय हम भगवान के समीप जाते हैं और जब हम जप करते हैं तो हमसे अधिक उत्तेजित भगवान होते हैं, हमसे मिलने के लिए। इस प्रकार से जप के द्वारा हम दोनों एक दूसरे के निकट आते हैं और जब हम अपराध रहित होकर नाम जप करेंगे, बिना अपराध के नाम जप करेंगे तो हम इसमें सफल होंगे, हमें इसमें सफलता मिलेगी और हम शुद्ध नाम, प्रेम नाम ले पाएंगे और भगवान हमारे समक्ष अपनी यथारूप अथवा अपने स्वरूप में प्रकट हो जाएंगे।
हमें जप योगी कहा जा सकता है क्योंकि हम भी योगी हैं, हमें जप योगी अथवा भक्ति योगी कहा जा सकता है। जप के द्वारा हम भगवान से मिलना चाहते हैं, हमें हरिदास ठाकुर के जीवन से यह सीखने को मिलता है कि जब वे जप करते थे तो वे निरंतर जप ही करते थे, वे कभी जप को रोकते नहीं थे और ऐसा नहीं है कि वे केवल संख्या ही पूरा करते थे, कि मुझे केवल इतना ही जप करना है, कीर्तनीय सदा हरी तो एक संख्या बताई गई है कि हमें कितना जप करना है परन्तु कीर्तनया सदा हरी हमेशा जप करते रहिए परंतु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें यह संख्या तो पूरी करनी ही चाहिए परंतु उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है ध्यान पूर्वक जप करना। हम जो जप करें वह अत्यंत ध्यानपूर्वक हो तब हम इसमें सफल हो सकते हैं। आज की जप चर्चा को यहीं पर विराम देते हैं और इसके आगे की चर्चा कल करेंगे।
हरे कृष्ण