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*जप चर्चा*, *16 मई 2021*, *पंढरपुर धाम* हरे कृष्ण, 865 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि हरि। *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद, जय अद्वैत चंद्र जय गौर भक्त वृंद।* मतलब आप समझ ही गए होगे कि चैतन्य चरितामृत से कुछ चर्चा होने वाली है। कृष्णराज कविराज गोस्वामी की ऐसे ही हर अध्याय को प्रारंभ करते हैं। *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद, जय अद्वैत चंद्र जय गौर भक्त वृंद।* तो हम शिक्षाष्टक की ओर मुड़ते हैं। इसके लिए फिर हम गंभीर स्थान पर पहुंच जाते हैं। जब मैं कहता हूं गंभीर स्थान तब आपको याद आता है, मैं कौन से स्थान के बारे में बात कर रहा हूं? गंभीर स्थान मतलब गंभीरा। जगन्नाथपुरी में गंभीरा, जहां श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु काशी मिश्रा भवन में रहते थे। काशी मिश्रा, एक पुरोहित जगन्नाथपुरी के थे। जो उनका भवन था, वह काशी मिश्रा भवन कहलाता था और आज भी कहलाता है, हम वहां जा सकते है। जगन्नाथपुरी में, गंभीरा में, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु रात्रि का समय है और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, राय रामानंद और स्वरुप दामोदर के साथ विराजमान है। *स्वरूप , रामानन्द , -एड दुइजन - सने ।* *रात्रि - दिने रस - गीत - श्रोक आस्वादने ॥ ४ ॥* (अंतिम लीला 20.4) अनुवाद वे स्वरूप दामोदर गोस्वामी तथा रामानन्द राय , इन दो संगियों के साथ रात - दिन दिव्य आनन्दमय गीतों तथा श्लोकों का आस्वादन करते थे । दोनों की संगति में पूरी रात बीत जाती थी, रसास्वादन करते थे। तो रसास्वादन कई प्रकार के होते हैं। गीत गोविंद का भी रसास्वादन है। कृष्ण करुणामृत का भी रसास्वादन है। जगन्नाथ वल्लभ नाटक का रसास्वादन है। कभी श्रीमद्भागवत का रसास्वादन है और तो कभी अधिकतर शिक्षाष्टक का रसास्वादन करते हैं। तो यहां पर चैतन्य चरितामृत अंतिम लीला अध्याय 20 में शिक्षाष्टक का आस्वादन की चर्चा हुई है। जिसका उल्लेख हम कुछ दिनों से कर रहे थे। बीच में दो दिन नहीं हुआ उसके पहले किये थे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु रसास्वादन करने वाले है। चैतन्य महाप्रभु उस रस को बांट रहे हैं, ललिता और विशाखा के साथ, राय रामानंद और स्वरूप दामोदर, ललिता और विशाखा है। तो वह रसास्वादन कृष्णराज कविराज गोस्वामी हमारे साथ बांट रहे हैं। देखिए यह माधुर्य रस का रसास्वादन है या कृष्ण प्रेम का क्योंकि चर्चा तो वैसे नाम संकीर्तन की हो रही हैं। हरी नाम की चर्चा हो रही है और हरी नाम गोलाक प्रेम धन है। गोलोक वृंदावन का प्रेम धन महाप्रभु लेकर आए हैं और तुलसी महामंत्र संकीर्तन का रसास्वादन है। यह शिक्षाष्टक तो उसी संकीर्तन की टीका है, महिमा है या महात्म्य है। तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हर रात्रि को एक एक शिक्षाष्टक लेते है। उस संबंध में जितने सारे भाव उदित होते हैं उनके हृदय में, उनके हृदय प्रांगण में मोरा मन वृंदावन भी कहते हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु मेरा मन वृंदावन ही है। तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृंदावन पहुंच जाते रसास्वादन करते हुए। हरि हरि। उन्ही की कृपा से भगवान श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हमको भाग्यवान बनाया है। देखिए हम आज प्रातः काल चर्चा कर रहे हैं। चैतन्य महाप्रभु की रसास्वादन की, रात्रि के समय होती रही। किंतु हम प्रातः काल में शुभ सामाचार हमको सुनने को मिल रहा है। वही रस हम भी रसास्वादन कर रहे हैं। उसका श्रवण और कीर्तन करते हुए, स्मरण के साथ हम रसास्वादन करने का परम सौभाग्य हम सभी को प्राप्त है। तो *गुरु गौरंग जयत:* यह गुरु की कृपा है और गौरंग की कृपा है। *कोन दिने कोन भावे श्लोक - पठन ।* *सेइ लोक आस्वादिते रात्रि - जागरण ॥७॥* (अंतिम लीला 20.7) अनुवाद कभी - कभी महाप्रभु किसी विशेष भाव में डूब जाते और उससे सम्बन्धित लोक सुनाकर तथा उसका आस्वादन करते हुए रातभर जगे रहते । तो कोई एक श्लोक किसी एक रात्रि को चैतन्य महाप्रभु उसका पाठ करते यहाँ लिखा है *श्लोक - पठन । सेइ लोक आस्वादिते रात्रि - जागरण* और उसी श्लोक का श्रवण कीर्तन स्मरण के साथ उनकी पूरी रात बीत जाती। उस माधुरी रस में, जो दुनिया वालों की रात काम रस में, कामुकता में है। तो दुनिया वाले पूरी रात बिना सोए बिता सकते हैं । जैसे श्री शुकदेव गोस्वामी कहते हैं *निद्रया हियते नक्तं* दुनिया वाले कामी, क्रोधी, लोभी होते हैं। कामी लोग क्या करते हैं? *निद्रया हियते नक्तं* निद्रा में कभी जग भी जातें हैं, सोते ही नहीं और क्या करते हैं? व्यवायेन च वा वयः मैथुन आनंद में जाग सकते हैं। हरि हरि। मैथुन के जहर का पान करते हुए पूरी रात जाग सकते हैं । हरि हरि। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के भक्त, अनुयायी माधुर्य रस का रसास्वादन करते हुए, पूरी रात बिताते। हमारे षठ गोस्वामी वृंद भी लगभग सोते ही नहीं, घंटे या 2 घंटे के लिए सो जाते हैं। सोइए सोइए थोड़ा, विश्राम कीजिए, उनसे निवेदन करना पड़ता था, उनके हाथ पैर पकड़ना पड़ता था। विश्राम तो करो, पूरी रात जगते रहते हो। हरि हरि। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु माधुर्य रस का आस्वादन करते हुए शिक्षाष्टक के श्लोकों का भाष्य और भाव का रसास्वादन रात्रि जागरण में करते रहे। *कोन दिने कोन भावे श्लोक - पठन । सेइ लोक आस्वादिते रात्रि - जागरण ॥७।।* (अंतिम लीला 20.7) अनुवाद कभी - कभी महाप्रभु किसी विशेष भाव में डूब जाते और उससे सम्बन्धित लोक सुनाकर तथा उसका आस्वादन करते हुए रातभर जगे रहते । *आस्वादन करते हुए रातभर हर्षे प्रभु कहेन - शुन स्वरूप - राम - राय । नाम - सङ्कीर्तन - कलौ परम उपाय ॥८।।* (अंतिम लीला 20.8) अनुवाद श्री चैतन्य महाप्रभु ने परम हर्ष में कहा , हे स्वरूप दामोदर तथा रामानन्द राय , तुम मुझसे जान लो कि इस कलियुग में पवित्र नामों का कीर्तन ही मुक्ति का सर्वसुलभ साधन है । यह बात आपको हमने सुनाई थी। सुनो सुनो स्वरूप और राय रामानंद। वैसे इस प्रकट लीला में तो उनके नाम राय रामानंद और स्वरूप दामोदर है। किंतु जब यह रसास्वादन हो रहा है। तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरी में स्वयं ही राधा भाव में है और स्वयं अगर राधा भाव में है, तो राय रामानंद और स्वरूप दामोदर को भी वे नित्य लीला में शामिल करा। यह तो प्रकट लीला है जो 500 वर्ष पूर्व हुई थी। लेकिन जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की नित्य लीला है या श्रीकृष्ण की जो नित्य लीला है। उसमें श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु राधा भी है। ललिता सखी और विशाखा सखी है, राय रामानंद और स्वरूप दामोदर है। ललिता राय रामानंद है और विशाखा स्वरूप दामोदर है। मतलब इन दोनों को संबोधित करते हुए यानी ललिता और विशाखा को संबोधित करते हुए, राधारानी ही बोल रही हैं। नाम संकीर्तन ही परम उपाय हैं। यह वचन राधा भाव में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं। शास्त्र तो कहते ही हैं *हरिनाम एव केवलम*। कृष्ण भी कहते हैं। फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी मध्य लीला के अंतर्गत कह रहे हैं। *हरेर्नाम हरेर्नाम हरे मैव केवलम् ।* *कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥२१॥* (मध्य लीला 6.242) अनुवाद इस कलियुग में आत्म - साक्षात्कार के लिए भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है । *ए राधा भावेर गौर् अवतार हरे कृष्ण नाम गौर कैइला प्रचार।* वह गीत भी हम गाते हैं। राधा भाव में गौरंग महाप्रभु का अवतार, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतार हुआ है। उस राधा भाव में *हरे कृष्ण नाम गौर कैइला प्रचार*। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* का प्रचार करा है। कृष्ण ने प्रचार किया, राधा भी साथ में है। राधा भाव में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने प्रचार किया। तो फिर गंभीरा में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु राधा ही बने हैं। राधा तो है ही, *अंत: कृष्ण बहिर गौर* कृष्ण अंदर है या कृष्ण छुपे हुए हैं। बहिर गौर बाहर राधा रानी है। ऐसा चैतन्य भागवत में कहा है। बाहर राधा रानी इसीलिए अंग भी गौरांग है। राधा रानी का ही अंग है। *अंत: कृष्ण* कृष्ण अंदर है। बाहर गौरंग है। राधा रानी के अंग का रंग। तो राधा भाव में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं। *नाम संकीर्तन कलौ परम् उपाय्।* *सङ्कीर्तन - यज्ञे कलौ कृष्ण - आराधन ।* *सेड़ त ' सुमेधा पाय कृष्णेर चरण ।।९।।* (अंतिम लीला 20.9) अनुवाद इस कलियुग में कृष्ण की आराधना की विधि यह है कि भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन द्वारा यज्ञ किया जाय । जो ऐसा करता है , वह निश्चय ही अत्यन्त बुद्धिमान है और वह कृष्ण के चरणकमलों में शरण प्राप्त करता है। देखो आगे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु राधा भाव में क्या कह रहे हैं। उन्होंने कहा कलयुग में कृष्ण की आराधना कैसी होती है? संकीर्तन यज्ञ करने से कलयुग में कृष्ण की आराधना होती है। *सेड़ त ' सुमेधा पाय कृष्णेर चरण*। ऐसा ही बुद्धिमान व्यक्ति जब संकीर्तन करता है या संकीर्तन यज्ञ करके कृष्ण की आराधना करता है। तो ऐसा ही बुद्धिमान व्यक्ति सुमेधा, धुमेधा नहीं। *पाय कृष्णेर चरण* उनको कृष्ण के चरण प्राप्त होंगे। यह बात तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु राधा भाव में अपने शब्दों में कहे। तो मैंने अभी-अभी जो कहा इसका कोई सबूत भी है और शास्त्र का आधार भी है। तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने उदाहरण दिया है। जो मैंने कहा, *सङ्कीर्तन - यज्ञे कलौ कृष्ण - आराधन ।* *सेड़ त ' सुमेधा पाय कृष्णेर चरण* ऐसी मेरी मन की बात या मेरी बात सुना रहा हूं। यह उटपटांग बात नहीं है। तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने श्रीमद्भागवत के 11वे स्कंद के पांचवे अध्याय में 32वा श्लोक का उदाहरण दिया है। *कृष्णवर्ण विधाकृष्ण साङ्गोपाङ्गासपार्षदम् ।* *यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्वजन्ति हि सुमेधसः ॥ ३२ ॥* (श्रीमद् भागवत 11.5.32) अनुवाद कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है । वैसे आप इस श्लोक से परिचित होंगे, परिचित होना चाहिए। नहीं परिचित हैं, तो उसको नोट करिए बहुत महत्वपूर्ण भागवत का वचन है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने इसका उदाहरण दिया। मैंने अभी जो कहा राय रामानंद और स्वरूप दामोदर, यह केवल मेरी ही बात नहीं है। यदि मैंने यह बात कही है तो श्रीमद्भागवत इसका आधार है और उस भागवत का यह श्लोक है। जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं कहा उसका भावार्थ और शब्दार्थ वही है। *सङ्कीर्तन - यज्ञे कलौ कृष्ण - आराधन ।* *सेड़ त ' सुमेधा पाय कृष्णेर चरण ।।९।।* तो कृष्ण प्रकट होंगे और फिर अभी तो समय कहां हैं। यह जो श्लोक है श्रीमद भागवत का करभाजन मुनि नवयोगेंद्र में से एक योगेंद्र या मुनि कहो करभाजन मुनि रहे। निमी राजा के संवाद के अंतर्गत संवाद हो रहा था। *निमी राजा उवाच* राजा निमी ने पूछा। *श्री गजोवाच कस्मिन्काले स भगवानिक वर्ण : कीडशो नृभिः ।* *नाम्ना वा केन विधिना पूज्यते तदिहोच्यताम् ॥१ ९ ॥* (श्रीमद भगवतम 11.5.19) अनुवाद राजा निमि ने पूछा । भगवान् प्रत्येक युग में किन रंगों तथा रूपों में प्रकट होते हैं और वे किन नामों तथा किन - किन प्रकार के विधानों द्वारा मानव समाज में पूजे जाते हैं ? इसको विस्तार से तो नहीं कह सकेंगे । प्रश्न ये था की कसमिन काले किस युग में भगवान ( किम वर्ण:) किस युग में किस वर्ण में किस रंग के भगवान बन जाते है कौनसा वर्ण धारण करते है। उनका नाम कौनसा होता है । किस नाम से वे जाने जाते है। केन विधि न पूज्यते। उस भगवान की उस युग में किस विधि से आराधना होती है । ऐसा प्रश्न पूछे है राजा निमित। राजा मुनि और राजा कर्मभाजन। उसके उत्तर में सतयुग में , त्रेता युग में , द्वापर युग में , भगवान किस किस रूपो में प्रकट होते है, किन नामो से वे जाने जाते है। उनका वर्ण कौनसा होता है। ये सारा समझाए है। फिर कलयुग के भगवान के प्राकट्य के चर्चा का समय आया तो वहा कर्मभाजन मुनि कहे कृष्ण वर्णम, वे क्या करेंगे कौनसी लीला खेलेंगे। कृष्ण वर्णम । कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हे कृष्ण का वर्णन करेंगे। कृष्ण के नामो का उच्चारण करेंगे। यह उनकी लीला होगी। कृष्ण वर्णम तू तृषा अकृष्णम। किंतु तृषा मतलब कांति या रंग। अकृष्णम मतलब, वे काले नही होंगे, फिर कैसे होंगे? वे गोरे होंगे। गौरंगा गौरांगा गौरा गौरा गौरा। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के बारे में कर्मभाजन मुनि कहे। भगवान कलियुग में प्रकट होंगे कृष्ण वर्णम । हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार। हरे कृष्ण महामंत्र का प्रचार करेंगे। कृष्ण कृष्ण गाएंगे, नाचेंगे, नृत्य होगा , लेकिन वे गौर वर्ण के होंगे। *कृष्णवर्ण विधाकृष्ण साङ्गोपाङ्गासपार्षदम् ।* *यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्वजन्ति हि सुमेधसः ॥ ३२ ॥* (श्रीमद भगवतम 11.5.32) अनुवाद कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है । उनके कई सारे परिकर होंगे। उनके कई सारे अंग होंगे उपांग होंगे। इस प्रकार के परिकर जिनके साथ और परिकर भी होंगे। और फिर ये सभी पार्षद होंगे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के और यही अस्त्र का कार्य करेंगे। वैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अलग से कोई अस्त्र लेकर प्रकट नही होने वाले है कलियुग में । परशुराम जैसी कुलाहड़ी उनके पास नहीं होंगी। राम जैसा धनुष बाण नही होगा। कृष्ण जैसा सुदर्शन चक्र नही होगा। वराह भगवान के जैसी गदा भी नही होगी। तो और कोई शस्त्र अस्त्र नही होगा। उनके जो भक्त है वे ही शस्त्र अस्त्र बनेंगे, सहायता करेंगे और विनाशय च दुष्कृतम । जो दुष्टता है, दुष्कृति है। लोगो में मनुष्यों में , उन दुष्प्रवातियो का विनाश करेंगे। हरिनाम अस्त्रों का उपयोग करेंगे। *साङ्गोपाङ्गासपार्षदम् यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्वजन्ति* ये करेंगे क्या? यज्ञ करेंगे कौनसा यज्ञ करेंगे? संकीर्तन यज्ञ करेंगे। और ये संकीर्तन यज्ञ करते हुए ही वे भगवान की आराधना करेंगे। वे होंगे सुमेध स: । बुद्धिमान लोग। कौन बुद्धिमान है, कैसे होगा परीक्षण निरक्षण ? संकीर्तन कर रहे हो। संकीर्तन करने वाले ही बुद्धिमान है। बाकी सब बुद्धू है। हरी बोल । आप सब बुद्धिमान वयक्तियों की जय हो। आपकी जय हो। आप बुद्धिमान निकले। आपकी पहचान क्या है आप बुद्धिमान हो। यज्ञ संकीर्तन प्राय यजन्ति ही। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। आप हरि नाम का संकेतन करके भगवान की आराधना कर रहे हो। तो फिर ऐसे बुद्धिमान लोग, लोग नहीं रहते वह भक्त बन जाते हैं। उनका स्वागत है और ऐसे बुद्धिमान लोगों की संख्या बढ़ानी है। हरि हरि। *ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते* तो जब व्यक्ति को बुद्धि प्राप्त होती है। जैसे व्यक्ति अधिक संकीर्तन करता है अधिक आराधना करता है वैसे ही भगवान अधिक बुद्धि देते हैं। अधिक संख्या में करोगे तो अधिक बुद्धि मिलेगी ऐसा कृष्ण कहे है गीता में। श्लोक भगवद। गीता। *तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्*। *ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते* ॥१०॥। (श्रीमद भगवदगीता 10.10) अनुवाद: जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | गीता में कहे है भगवान । गीता में कहे है , भागवत में कहे है, या पुराण में कहे है यह थोड़ा पता होना चाहिए। और फिर गीता में कहे है 10वे अध्याय में कहे है। यह सब आपको भगवान की वकालत करनी होगी। कृष्ण भावनामृत का पचार पसार करना है तो आपको उधारण देंगे होंगे। जैसे वकील अलग अलग संविधान का उदहारण करते है अलग अलग कानून का उदहारण करते है। यह कानून ये कानून। अपनी बात को सिद्ध करते है। ऐसे ही भगवान उनको बुद्धि देते है जो अपनी नित्य साधना भक्ति करते है। और इस प्रकार प्रभुपाद भी कहा करते थे 24 घंटे। *स्वतत युक्तानाम* कितने समय के लिए भक्ति करनी है। हम पागल थोड़ी है। ये हरे कृष्ण वाले तो पागल है। हम तो दो मिनट करते है जब उठते है राम राम कहते है और सोने के पहले करते है। कितनी मिनट हो गई 4 मिनट। ले लो भगवान खुश हो जाओ। तुम्हारे लिए 4 मिनट और हमारे लिए 23 घंटे और 56 मिनट हमारे लिए। भगवान के लिए 4 मिनट दिए है यह क्या कम बलिदान है क्या। 4 मिनट दिए है हमने भगवान को। किंतु भगवान की मांग है, अपेक्षा है, की उनकी सेवा करे। गंगोघम । जैसे गंगा गंगा सागर में मिलती है। सागर और गंगा का मिलन जहा होता है उसे गंगा सागर कहते है। कुंती महारानी ने कहा ही प्रभु मेरी भक्ति कैसी हो? गंगोघम । गंगा+ऊ+हम = गंगोघम। *तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्*। ऐसे व्यक्ति को मैं बुद्धि देता हूं। जब मनुष्य को बुद्धि प्राप्त होती है, तो बुद्धि का उपयोग किसके लिए करता है? मेरी ओर आने के लिए, मुझे प्राप्त करने के लिए। *येन मामुपयान्ति ते* । दुनिया तो जा रही है । चंद्र पर जा रही है, मंगल पर जाना चाहती है। किंतु बुद्धिमत्ता है? बुद्धि नही है, यह बेकार है, यह सारे प्रयास। वे कहा कहा जाना चाहते है। इस पृथ्वी पर ही जाना चाहते है। हरि हरि। पृथ्वी का सब सत्यानाश कर दिया। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि कर दी। पृथ्वी का बुखार बढ़ा दिया हमने। जंगलों को कांटा और क्या क्या सब पर्यावरण का सत्यानाश करते हुए पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। तो कैसे रहेंगे उसकी गोद में। पृथ्वी माता की गोद में। सात माताओं में से हमारे वैदिक वांग्मय में कहा है की पृथ्वी हमारी माता है। ऐसी समझ और लोगो की जी की बुद्धू है उनकी नही है, इस देश के और दूसरे देश के। ऐसा भाव उनका , ऐसा दृष्टिकोण नही है पृथ्वी को देखने का की पृथ्वी उनकी माता है। इस माता की कई तरह से बर्बाद किया जा रहा है। दुशाशन जैसे द्रोपदी के वस्त्र का हरण कर रहा था। दुष्ट जो था। वैसा ही इस संसार के लोग या ब्राजील के लोग। ब्राजील नाम का एक देश है। वहा अमेजन जंगल है और भी देश है जिसमे जंगल है। तो उस जंगल को काट रहे है। तबाह कर रहे है। ये पृथ्वी के ऊपर जो वृक्ष है , लता भेली है, हरियाली है ये वैसे पृथ्वी माता की पहनी हुई साड़ी है। फूल से एंब्रॉयडरी हो गई साड़ी की। फूल भी है और भी रंग बिरंगी चीजे है। दुशाशन जो है इस संसार के । जी इसका भोग लेना चाहते है। काटते जा रहे है, पेड़ों को काटते जा रहे है। साफ करते जा रहे है। जंगल में मंगल नही , अमंगल हो रहा है । वही पर कतल खाने खोलते है, फैक्ट्री खोलते है फिर धुआं आता है। ऑक्सीजन की कमी होना कभी सोचे हो? आपको तो पता होगा, निसर्ग से पेड़ों से पेड़ में जो हरे पत्ते है उन पत्तो से ऑक्सीजन निकलता है। ऑक्सीजन का सबसे बड़ा माध्यम है ये जंगल। इस पृथ्वी में कई सारे जंगल है। और ऑक्सीजन वही उत्पन हो रहा था। लेकिन अब हम उसी को ही काट रहे है। दुष्ट दुशाशन। ये पृथ्वी माता ने जो पहनी हुई साड़ी है उसका हनन कर रहे है। तो फिर उसके परिणाम भोगने होंगे। वैसे भोग ही रहे है। सारा संसार भोग रहा है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होना और फिर अब साइंटिस्ट माफी मांग रहे है और कह रहे है अब कोई दूसरा गृह ढूंढो। चंद्रमा पर जाओ, मंगल पर जाओ। अब आपकी लाइफ बोट की जरूरत पड़ेगी। मुख्य नौका के साथ लाइफ बोट होती है। अगर मुख्य नौका में पानी भर जाता है तो क्या करते है लोग, लाइफ बोट में चढ़ जाते है। तो वैसा ही प्रस्ताव रखा जा रहा है, नेता कहो या साइंटिस्ट के द्वारा। की इस पृथ्वी को भूल जाओ और दूसरे ग्रहों पर जाओ। ये प्रस्ताव कैसा है? क्या है संभव है? और उसी में दिमाग लगा रहे है। विनाशकाले विपरीत बुद्धि। विनाश का काल आ चुका है। और समय से आ टपका है। लोगो की विपत्ति बुद्धि काम कर रही है। इसलिए वो सारा विनाश कर रहे है। हमारे स्वास्थ्य का विनाश कर रहे है, मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य का नष्ट कर रहे है। हमारी जीवन शैली और आहार के कारण ही ये वायरस उत्पन्न हो रहे है। अभक्षण भी ही रहा है। चीन के युहान शहर में यह शुरू हुआ। वहा के लोग क्या नही खाते। सांप का सूप पीते है, केकड़े खाते है, चीटियां खाते है। तो ऐसा खाकर कैसा दिमाग आएगा। जैसा अन्न वैसा मन। जैसा अन्न खायेंगे वैसा ही मन होगा। ऐसे हमारे नेता है तथाकथित नेता। राजनेता कहो, शास्त्रज्ञ कही ये कहो वो कही, समाज सुधारक कहो। वे अंधे है और हम उन्ही के पीछे जा रहे है। तो हम भी गड्ढे में गिरने वाले है तो सावधान। रुको और सोचो कुछ करने से पहले। तो बुद्धिमान कौन और बुद्धू कौन यह समझ जाओ। यह तो कहा है जो भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का संकीर्तन यज्ञ करेंगे संकीर्तन यज्ञ को और फैलाएंगे। जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश। ये करेंगे, तो वे होंगे बुद्धिमान। तो ऐसी बुद्धि आप सब को भगवान दे। इसी प्राथना के साथ अपनी वाणी को विराम देते है। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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