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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, 15 नवंबर 2020

आज हमारे साथ 640 स्थानों से भक्त जब कर रहे है। कहा गए हमारे बाकी साथी? दिवाली मना रहे है? कल बहुत रात तक पार्टी हुई? लेकिन साधना तो करनी है ना? साधना तो नित्य रुप से होनी चाहिए! हरे कृष्ण! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! आनंद के साथ हरि बोल!

सब जगह पर दिवाली है गौडीय वैष्णव दिवाली मना रहे है।कई सारे भक्त कल भी मना रहे थे। अयोध्या में भी कल दिवाली मनाई गई, कल अयोध्या में 500000 दीपक जलाए गए। अयोध्या धाम की जय! और उसी के साथ पुनः अयोध्या में श्रीराम का स्वागत हुआ। जय श्री राम! ऐसा समाचार था कि लगभग 500 वर्षों के उपरांत, मुसलमानों के कारण या यौवन के कारण वनवास में ही रहे ऐसा कह सकते है। लेकिन जीतेगा भाई जीतेगा ऐसा कर सकते है। भक्तों के कारण सैकड़ों वर्षो के उपरांत, इतने बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ अयोध्या में राम का स्वागत हुआ। हरि हरि। राम के ही कारण अयोध्या में दीपावली मनाई गई थी या मिठाई बांटी गई थी, और इतना सारा कीर्तन और नृत्य हुआ था। दीपावली महोत्सव की जय! और साथ ही साथ हम परिक्रमा भी कर ही रहे है, इस दामोदर मास परिक्रमा महोत्सव संपन्न हो रहा है। तो कल आप सब परिक्रमा के भक्त रामवन में ही रहे, कामवन जो प्रेम का दान करता है। तो वहां के जो वृक्ष है, वैसे वह रुकता नहीं है वह चिंतामणि धाम है। हमारे हर इच्छा की पूर्ति करने वाला कामवन!भक्तों की कामना होती है प्रेम! शास्त्रों में कई बार काम काम ऐसे वर्णन होता है, तो समझना चाहिए कि वहां प्रेम की बात होती है। वृंदावन में कामवासना की पूर्ति करने वाला बंद हो ही नहीं सकता का मोबाइल प्रेम प्रदान करने वाला वन है। तो इतनी सारी लीला जब वहां पर संपन्न हुई,

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम् तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥

अनुवाद:- जो इस प्रकार दामबन्धनादि-रूप बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनंद-सरोवर में नित्यकाल सरावोर करते रहते हैं, और जो ऐश्वर्यपुर्ण ज्ञानी भक्तों के निकट "मैं अपने ऐश्वर्यहीन प्रेमी भक्तों द्वारा जीत लिया गया हूँ" - ऐसा भाव प्रकाश करते हैं, उन दामोदर श्रीकृष्ण की मैं प्रेमपूर्वक बारम्बार वंदना करता हूँ ।

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम् वहां कई सारे कुंड भी है, और लिला से ही कुंड बन जाते है।लीला के आनंद का सागर होते हैं कुंड! तो कल परिक्रमा कामवन में थी, आप थे कि नहीं आप उस शीला के ऊपर? आप फिसल जाते हो उस शीला के ऊपर से जहां पर श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ खेलते थे। तो हम अनुभव करते है कि, हम भी लीला में प्रवेश कर रहे है, हम भी वह लीला खेल रहे है। और गुफा भी देखी होगी और वहीं पर भौमासुर का वध भी हुआ। और बलराम जी के चरण चिन्ह के दर्शन किए होंगे। भौमासुर के साथ युद्ध कर रहे थे भगवान तो तो पृथ्वी हिल रही थी तो उस को स्थिर रखने के लिए बलराम जी ने अपना पैर रखा। तो तभी बलराम जी के चरण चिन्ह वह उमट गए। तो वहां से आगे बढ़े तो भोजन किया परिक्रमा के भक्तों ने, अपने भी किया, वहिपर जहां श्रीकृष्ण भोजन किया करते थे ऐसी एक प्रसिद्ध भोजन स्थली कामवन में है। तो इसी प्रकार कल के परिक्रमा के उपरांत कामवन में गए, और कल रात का पड़ाव वहीं पर था।

वहीं पर रहो, दामोदर महीने के लिए वृंदावन वास करो! हरि हरि! व्रजधाम में रहो, ब्रजभाव में रहो, ब्रज की लीलाओं का श्रवण चिंतन करो! अपने दिव्य चक्षु से लीला को देखो। परिक्रमा में कथा करने वाले भक्त आपको भगवान की लीलाओं का दर्शन कराते है, देखो! देखो! यह भोजन स्थली देखो! और उसका वर्णन जो सुनाते है यह दर्शन ही है! हरि हरि। तो फिर आज प्रातःकाल परिक्रमा का प्रस्थान जो 6:00 बजे होता है, तो आज कामवन से बरसाना जाएगी। बरसाना धाम की जय! तो हम बरसाना जा रहे है रास्ते में ही है कई सारे स्थान है आपने परिक्रमा के मार्गदर्शन पुस्तक में पढ़ा होगा। ब्रजमंडल दर्शन नाम का एक ग्रंथ है जो मार्गदर्शक है, तो उसे भी आप पढ़े होंगे या पढ़ते रहिए। सुनते रहिए या पढ़ते रहिए तभी कुछ पल्ले पड़ेगा! परिक्रमा में श्रवण,कीर्तन के साथ आगे बढ़ना है। तभी दिव्य ज्ञान प्रकाशित होगा! श्रवण करने से दिव्य लीला प्रकाशित होगी। कंवारा नाम का स्थान काम वन में ही है, या इंद्रोली नाम का स्थान है जहां पर इंद्र आपने राजधानी अमरावती से नीचे उतरे, जब गोवर्धन लीला के उपरांत इंद्र परास्त हुए तो जहां पर इंद्र उतरे थे वह स्थान है इंद्रोली। फिर जहां पर गोविंद कुंड है वह वह कृष्ण से मिलेंगे और उनकी स्तुति करेंगे, और जहां पर उतरे वह स्थान है इंद्रोली कामवन में। और आगे बढ़ेंगे तो कर्ण पड़ा नाम का स्थान है जहां पर कृष्ण के कर्ण का छेदन हुआ था, ताकि उनमें कुंडल पहनाये जा सके, इसीलिए कर्ण छेदन हुआ था। आपका हुआ है या नहीं?

मेरा तो हुआ है। अगर आप मुस्लिम होंगे तो नहीं होगा, लेकिन अगर हिंदू है तो यह आपकी पहचान है! साबित करो कि आप हिंदू हो, अगर आपके कान में छेद है। मेरा तो है। वैसे तो आप हिंदू भी नहीं है! हरि हरि। गर्व से कहो, हम कौन है? हम गौडीय वैष्णव है! तो और आगे बढ़ते है तो एक छोटा सा पहाड़ी इलाका आता है, उसको पार करते ही हम कदमखंडी में प्रवेश करते है और यहां पर हमने, वृंदावन में पुनः प्रवेश किया। वृंदावन में कुछ समय पहले थे, और फिर हम कामवन गए और और फिर पुनः हम वृंदावन वन में प्रवेश किए। वृंदावन भी द्वादश वनों में से एक वन है। तो उस वन में प्रवेश करते ही हम कदमखंडी पहुंच जाते है। बहुत रमणीय स्थान है! वहां पर कदंब के कई सारे वृक्ष आज भी है। उस समय तो कितने सारे होंगे! और एक रसस्थली भी है, एक झुला भी है जहां पर भगवान की झूलन यात्रा संपन्न हुई है। और वहां पर कथा भी होती है, कई बार राधा रमन महाराज कथा करते है या मैं भी करता हूं और भक्त भी करते हैं। और आगे बढ़ते हैं तो सुनारग्राम आता है। जहां पर स्वर्ण वर्ण के चतुर्मुखी ब्रह्मा ने तपस्या की, और वह तपस्या करके पवित्र हुए।

तो भगवान ने वरदान दिया है, ब्रह्मा जी वृंदावन वास चाहते थे तो भगवान कहे कि, ठीक है रहो ! तो ब्रह्माजी बन जाते है बरसाने का पहाड़! तो उस पहाड़ के चार चोटि या शिखर भी है। और इसी सुनारग्राम में सुदेवी और रंग देवी का जन्म स्थान भि है, जो अष्टसखियों में से दो सखी है। जब हम अष्टसखियों का मायापुर में दर्शन करते है, तो राधा माधव मध्य में है और 4 सखियां राधा के बगल में है और 4 सखियां माधव के बगल में है। तो राधा के बगल वाली जो 4 सखियां उसमें से पहली सखी सुदेवी है और दूसरी है रंगदेवी! तो सुनहरा ग्राम इनका जन्म स्थान है। और इन सखियों के अपने चरित्र भी है। सभी के है! इसको थोड़ा सा विस्तार में पढ़ेंगे तो समझेंगे कि, इनकी उम्र क्या है? और किस प्रकार का वेशभूषा पहनती है? और उनका नाम क्या है? और विशेषता वह राधा कृष्ण की नित्यसेवा में कौन सी सेवा करती है? इतना सारा विस्तृत वर्णन है। इतना सारा विस्तृत वर्णन इससे आप मान जाओगे कि यह व्यक्तित्व काल्पनिक नहीं है। यह तथ्य है। वहां से आगे एक बड़ा पहाड़ आता है जिसका नाम सखीगिरी पर्वत है। वही चित्र विचित्र शीला है।

राधा रानी की ओढ़नी चिनांकित हुई एक शीला में वहां तो उसे चित्र विचित्र शीला कहते हैं। कैसे गिरी और क्यों चिनांकित हुई। इसका आप पढ़िए ब्रजमंडल दर्शन कल्प में या और कहीं स्त्रोतों में है और आगे बढ़ते हैं तो ऊंचा गांव आता है यह ललिता सखी का जन्म स्थान है। और यह बता ही देते हैं आपको वैसे बरसाना इसका नाम तो वैसे वृषभानुपुर है, नंदनी जो राधा रानी है तो उसे धीरे-धीरे अब बरसाना कहते हैं जहां वृष्टि हुई जहां राधा कृष्ण की कृपा की वृष्टि जहां होती है वर्षाना। वृषभानुपुर मध्य में है और सभी अष्ट सखियों के गांव सभी दिशाओं में है। रंगदेवी और सुदेवी का गांव सुनहरा गांव ऊंचा गांव ललिता सखी का है विशाखा का भी गांव है चित्र सखी का गांव तो बिल्कुल बरसाने के बगल में है। तृंघविध्या का गावं, चंपक लता के गांव अष्ट सखियों के गांव, राधा रानी के गांव के सभी ओर दिख रहे हैं या स्थित है। लेकिन यह भी याद रखिए जब हम पहली बार परिक्रमा में गए तब पता चला बरसाना राधारानी का जन्म गांव नहीं है। राधारानी की जय महारानी की जय बरसाने वाली की जय जय जय। ऐसा गाते भी है,तो बरसाने वाली राधा रानी तो बनी है लेकिन बरसाने में तो लालन पालन हुआ बरसाने में जन्म नहीं हुआ है। परिक्रमा का अंतिम पड़ाव होगा रावल गांव में जो महावन में है गोकुल के पास।तो वहां राधा का जन्म हुआ तो वहां से स्थांतरित होकर रावल के निवासी, वृषभानु जिनके मुखिया थे, राजा थे बरसाने पहुंचे। हरि हरि। ऊंचा गांव के बिल्कुल पास में नारायण भट्ट गोस्वामी जिनको ब्रजाचार्य भी कहते है। उनकी समाधि वही है। यह ब्रज मंडल परिक्रमा का विधि विधान है।ब्रजाचार्य नारायण भट्ट गोस्वामी ने इसकी रचना की है। ब्रज भक्ति विलास नामक ग्रंथ में और महान कार्य रहा उनका । हरि हरि। हमारा अगला पड़ाव होगा जो बरसाने के आगे हम बढ़ेंगे और गोवर्धन परिक्रमा कल संपन्न होगी। और वहीं से खादिर्वन की यात्रा के लिए जाएंगे।

जमुना तट के पश्चिमी ओर 7 वन हैं और पूर्वी ओर 5 वन है। खादिर्वन हम जाकर लौटते हैं और वहां की लीलाओं का श्रवण कर के। कल बरसाने धाम परिक्रमा भी होगी। हरी हरी। वैसे तो मरने के लिए समय नहीं है और जीने के लिए तो समय निकाला चाहिए। जब हम परिक्रमा करते हैं , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे करते हैं या भगवान की लीला कथा का श्रवण करते हैं। तो हम प्राणदी, हम में प्राण आ जाते हैं।हम जीवित होते हैं हम जागृत होते हैं पुनर्जीवन प्राप्त होता है हमें। जब हम कृष्ण के साथ जब हमारा संबंध स्थापित होता है वह हमारे प्राण नाथ कृष्ण कन्हैया लाल की जय या बरसाने के लाडली लाल, जो लाल ही नहीं है बरसाने में लाडली भी है लाडली लाल। राधा कृष्ण प्राण मोर युगल किशोर।

पुनर्जीवित होने के लिए समय निकालना चाहिए वरना हम पड़े रहेंगे या मरे रहेंगे। कोई कृष्ण भावना तो नहीं है यह संसारी जीवन तो मायावी जड़वत है, निर्जीव है। हरि हरि। आज का दिन दामोदराष्टक का गान लगभग समापन हो रहा है नामुंडे या अमावस्या है।दो सप्ताह से हम दामोदराष्टक गा रहे थे और दामोदर को दीप दान कर रहे थे और इस मास का नाम भी दामोदर मास। जिस लीला के कारण इस मास का नाम दामोदर मास रखा है वो एक विशेष प्रसिद्ध लीला के कारण l तो दामोदर लीला आज ही तो संपन्न हुई दिवाली के दिन गोकुल में। उसके पहले से वह दामोदर नहीं थे कन्हैया ही थे। लेकिन आज के दिन वह दामोदर बने आज के दिन यशोदा ने कन्हैया के उदर को डोरी से बांध दिया दामोदर। तो आज के दिन दामोदर लीला संपन्न हुई इसी समय प्रातः काल में प्रारंभ हुई लेकिन लीला बहुत समय तक चलती रही। क्योंकि आज बहुत कुछ हो रहा था गोकुल में। कृष्ण ने अपने घर में डाका डाला और चोरी भी की और यशोदा इस चोर को पकड़ते पकड़ते समय बीत गया। पकड़ तो लिया फिर बांधते बांधते और रस्सी चाहिए और रस्सी चाहिए और रस्सी चाहिए इसमें कितना सारा समय बीत गया। और फिर बांध तो दिया किंतु लीला यहां समाप्त नहीं हुई।

ओखल को खींचते हुए वह प्रांगण में गए और वहां अर्जुन वृक्षों का , जो कुबेर के पुत्रों को श्राप मिला था। नारद मुनि ने श्राप दिया था और वरदान दिया था कृष्ण तुमको मुक्त करेंगे। कृष्ण को नाराद मुनि का दिया हुआ वरदान स्मरण हुआ। नलकुबेर और मणिग्रीव को मुक्त किया। मुक्त भी किया और भक्त भी बनाया, खूब सारी भक्ति भी दे दी। भक्ति भाव प्रदान किया आज के दिन ही। और फिर हमारी प्रार्थना होती है जैसे आपने नलकुबेर और मणिग्रीव को मुक्त किया और भक्ति प्रदान की वैसे हमको भी भक्ति दीजिए। हे दामोदर ऐसी प्रार्थना हमारी आज भी है। आज यह लीला संपन्न हुई तो हमें यह विशेष प्रार्थना करनी चाहिए। आज के दिन सारे बृजवासी इकट्ठा हुए पहले तो उन्होंने कृष्ण को ढूंढ के निकाला, सुरक्षित है धन्यवाद देने लगे कि आप अपने हमारे कृष्ण की रक्षा की। तो उसके बाद बैठक हुई तय हुआ और यह आज की दिन की बात है और यह दिवाली भी है। जिसका शुकदेव गोस्वामी श्रीमद् भागवत में कहे है श्रीशुक उवाच

एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी । कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ॥ १ ॥ एकदा मतलब एक दिन की बात है, वह कौन सा दिन था वह दिवाली का दिन था। तो दिवाली के दिन की यह सब घटनाक्रम हुआ है फिर उसी दिन बैठक हुई और तय हुआ यहां आतंकवाद बढ़ रहा है, कई सारे खतरे। तो इनसे बचने के लिए हमें कहीं और जाना चाहिए। हम गोकुल छोड़कर वृंदावन जाएंगे। तो आज के दिन सभी बृजवासी समान बांध कर उपयोगी सामान और जमुना को पार किए और वृंदावन पहुंचे, वह रहने लगे । तो बहुत कुछ हुआ आज के दिन। यह दीपावली का दिन है और दामोदर लीला का भी दिन है। हरि हरि।

गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! दीपावली महोत्सव की जय! जय श्रीराम! दामोदर लीला महोत्सव की जय! जय श्री दामोदर! गोकुल धाम की जय! अयोध्या धाम की जय! यशोदा दामोदर की जय! राधा दामोदर की जय! श्रील प्रभुपाद की जय! ब्रजमंडल की जय,ब्रजमंडल परिक्रमा की जय! भक्तवृंद की जय! निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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