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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 16नवम्बर 2020

गिरिगोवर्धन जय गिरीगोवर्धन जय गिरीगोवर्धन

गिरीगोवर्धन की जय......

मतलब यह तो गोवर्धन पर्वत या पहाड़ की जय हो गिरी गोवर्धन की जय हो लेकिन गिरिधारी की भी जय हो गिरधारी की जय हो एक है गोवर्धन और दूसरे हैं गिरिधारी गिरिधारी ही गोवर्धन को धारण किया इसलिए गिरिधारी कहते हैं।

गिरिराज को धारण करने वाले या फिर मुरलीधर भी है साथ ही वह गोवर्धन भी है जब मैं ऐसे कह रहा हूं तो ऐसा नहीं समझना कि आज धारण नहीं किया गिरिधारी गिरिराज को आज नहीं धारण किया आज नहीं उठाया आज तो केवल पूजा का दिन है। गोवर्धन पूजा महोत्सव की जय.....

यह हमें समझना चाहिए आज फिर से पूजा होनी तो थी हर साल की भांति इंद्र की पूजा होनी थी लेकिन कन्हैया ने जब वह 7 साल के थे और इसी उम्र में उन्होंने नंद बाबा को उपदेश किया इसे उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को उपदेश किया था तब उस समय भगवान 100 साल के थे पर अभी तो उनकी उम्र केवल 7 साल की है कुमार अवस्था में है भगवान आज के दिन कृष्ण ने उपदेश किया प्रचार किया और समझाया बुझाया।

कामैस्तैस्तैर्ह्रतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः | तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया || भगवद्गीता ७.२०

अनुवाद:- जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं |

वैसे इन शब्दों में तो नहीं कहा यह तो गीता के शब्द है उन्होंने कहा बाबा बाबा हम इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन की पूजा हमें करनी चाहिए हरि हरि गोवर्धन क्या करता है गोवर्धन हमें हमारी उपजीविका का पोषन करते हैं।

हमारी जो गाय हैं हम उन पर निर्भर है गाय से बैल भी उत्पन्न होते हैं और साथ ही हम खेत में हल चलाते हैं हम वैश्य हैं।

कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् | परिचर्यात्मकं कर्म श्रूद्रस्यापि स्वभावजम् ||भगवद्गीता१८.४४ ||

अनुवाद:-कृषि करना, गो रक्षा तथा व्यापार वैश्यों के स्वाभाविक कर्म हैं औरशूद्रों का कर्म श्रम तथा अन्यों की सेवा करना है |

कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् | यह हमारा व्यवसाय है और हमारी जो अर्थव्यवस्था है इंडस्ट्रियल अर्थव्यवस्था नहीं है यह ज्यादा समय नहीं टिकेगी यह जो औद्योगिक अर्थव्यवस्था है ज्यादा समय नहीं टिकटी हमें ऐसी अर्थव्यवस्था चाहिए जो जमीन और गाय पर निर्भर हो ऐसी अर्थव्यवस्था भगवान ने दी है सिखाई है और इस पर हमें निर्भर रहना चाहिए और यह गोवर्धन से हमारी गायों का पोषन करता है। वैसे आज तो पूजा की बात करनी चाहिए।

गाय से तो हमें सारी चीजें मिलती है दूध मक्खन ऐसी बहुत सारी अन्न मई पदार्थ हमें गाय से प्राप्त होता है उसे गौरस भी कहते हैं दूध को वृंदावन में गौरस कहते हैं छाछ भी गौरस हैं और फिर नंदबाबा भी मान गए और सारे ब्रजवासी भी मान गए और उन्होंने भी हां में हां में मिलाई और उन्होंने गोवर्धन पूजा की तयारी की वैसे भागवत में सुखदेव गोस्वामी कहे हैं श्री कृष्ण के उपदेश अनुसार कृष्ण ने कहा चीन की चीन की पूजा के लिए कहा एक गोवर्धन की पूजा गाय की पूजा और ब्राह्मणों की पूजा होनी चाहिए तो आज यह गोवर्धन पूजा का ही दिन नहीं है यह ब्राह्मण पूजा का भी दिन है ब्राह्मण भोजन या ब्राह्मण की सेवा आज कर सकते हैं और साथ ही गाय की पूजा कर सकते हैं।

नमो ब्रह्मण्य-देवाय गो-ब्राह्मण-हिताय च। जगद्धिताय कृष्णाय गोबिन्दाय नमो नमः ॥77॥

अनुवाद:- "मैं उन भगवान् कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ, जो समस्त ब्राह्मणों के आराध्य देव हैं, जो गायों तथा ब्राह्मणों के शुभचिन्तक हैं तथा जो सदैव सारे जगत् को लाभ पहुँचाते हैं। मैं कृष्ण तथा गोविन्द के नाम से विख्यात भगवान् को बारम्बार नमस्कार करता है।

कृष्णा गोविंद भी कहलाते हैं गाय को प्रसन्न करने वाले भगवान इसलिए उनको गोविंद कहते हैं वैसे गो मतलब इंद्रिया भी होती है जमीन भी है गो मतलब गाय भी हैं इन तीनों को सभी को प्रसन्न रखने वाले भगवान गोविंद कहलाते हैं और गोविंद कैसे हैं जो गाय को पसंद करते हैं ब्राह्मणों को पसंद करते हैं ब्राह्मणों की सेवा करते हैं। ब्राह्मणों की पूजा करने वाले भगवान ब्राह्मण ने देव तो सुदामा ब्राह्मण आए द्वारिका में तब भगवान ने उनका स्वागत किया उनकी आराधना की पाद प्रक्षालन किया उनके चरणों का जल अपने ऊपर और रुक्मणी के उपर के भी छिडया और फिर उन्हें भोजन खिलाएं इस प्रकार भगवान ब्रह्मन्यदेव हैं।

नमो ब्रह्मण्य-देवाय गो-ब्राह्मण-हिताय च। ब्राह्मणों के पुजारी हैं गाय के पुजारी हैं और गोवर्धन की भी पुजारी है भगवान उस दिन सभी ब्रज वासियों के साथ कृष्ण ने भी पूजा की गोवर्धन की एक तो आज के दिन जिस सामग्री को खरीदा था यही खट्टे की थी इंद्र पूजा के लिए कृष्णा ने कहा इसी के उपयोग गोवर्धन पूजा के लिए करो तो उस सामग्री से आज के दिन कृष्ण के प्रकट लीला में क्या हुआ अन्नकूट बनाया अन्नकूट कूट मतलब पहाड़ और पहाड़ गोवर्धन पहाड़ के ही पास में गोपिया हैं।

गोवर्धन के और उंगलियां कर कर बोल रही थी यह देखो गोवर्धन कैसा है हरिदास वर्य हरिदासो में श्रेष्ठ है इस प्रकार गोवर्धन की ख्याति दोनों प्रकार से हैं वह हरिदास में भी श्रेष्ठ हैं हरिदास है हरि के भक्त हैं गोवर्धन है और साथ ही साथ इसे उसी दिन जब पूजा प्रारंभ हुई जब वर्धन ने दर्शन दिया जो गोवर्धन का रूप है पर्वत है दर्शन तो कर ही रहे थे स्वरूप में पर साथ ही साथ प्रारंभ में ही भगवान प्रकट हुए और गोवर्धन स्वयं बन गए और वह गोवर्धन स्वयं है भी पर एक पहाड़ के रूप के बजाय सर्वांग सुंदर रूप का दर्शन दिया और भगवान ने कहा वैसे भागवत में इसका वर्णन आता है सुखदेव गोस्वामी कहे हैं।

शैलोस्मि शैलोस्मि यह गोवर्धन जो शिला हैं। या फिर गोवर्धन ही एक शीला हैं या फिर कई शीलाओ से एक गोवर्धन हैं। जो है गोवर्धन है यह सारा गोवर्धन मैं हूं ऐसा कह भी रहे थे और सभी ब्रज वासियों ने सुना और दर्शन भी किया बृजवासी हर साल इंद्र की पूजा करते थे पर कभी इंद्र ने दर्शन नहीं दिया पर कृष्ण ने कहा कि देखो देखो तुम्हारे इंद्र तो कभी नहीं आते थे दर्शन देने जब तुम सब उनकी पूजा करते थे और देखिए आज जब आप सब गोवर्धन की पूजा कर रहे हैं तो वह गोवर्धन प्रकट हो गए आप को दर्शन दे रहे हैं तो पूजा करने वालों में वैसे सारा ब्रिज ही गोवर्धन की पूजा कर रहा था सभी गोप सभी गोपिया और साथी कृष्ण बलराम भी पुजारी बने थे पूजा कर रहे थे तो आरती भी उतारे लेकिन उस दिन की पूजा तो गोवर्धन को भोग चढ़ाएं कितना भोग था पहाड़ एक दूसरा पहाड़ ही खड़ा किए थे हलवा पूरी सभी व्यंजनों से और साथी सुनने में आता है कि वहां के सारे कुंड खीर से भरे थे कटोरे में नहीं दिया जा रहा था ख़िर सारे कुंड भर गए खीर से हलवा पुरी का अन्य व्यंजनों का पहाड़ बन गया और फिर भगवान उस सब को ग्रहण करने लगे हरि हरि

भगवान तो है उनकी प्रसन्नता के लिए बहुत सारे व्यंजन तैयार थे तो वह ऐसे फटाफट खा रहे थे उनकी थाली खाली हो रही थी और वो कह रहे थे....

अन्योर,अन्योर.... और ले आओ और ले आओ तो वहीं पर दूध का भी दोहन हो रहा था ब्रज की सारी गाय वहां पर पहुंची थी दूध निकाला जा रहा है दुध को उबाला जा रहा है। कई सारे पकवान बन रहे हैं सारे ब्रजवासी प्रेम भाव से भगवान को खिला रहे हैं प्रेम भाव से पकवान बना रहे थे और कृष्ण खा रहे थे और साथ ही कह रहे हैं

अन्योर,अन्योर.... मतलब और भी कुछ हैं और भी ले आओ और भी ले आओ ऐसी प्रतियोगिता चलते रहे जहां पर यह गोवर्धन को भोग लगाया अन्योर का नाम लिया तो वहां पर एक गांव ही है उसका नाम ही है अन्योर जब हम परिक्रमा के लिए जाते हैं दानघाटी से गोविंद कुंड की ओर तो बीच में एक गाँव आता हैं उसका नाम ही हैं अन्योर ग्राम अन्योर नाम का ग्राम हैं।

तो यह ग्राम भी हमें स्मरण दिलाता है आज के अन्न कूट गोवर्धन पूजा महोत्सव का फिर यह कहते हैं कि यहां कोई चालाक युक्ति वान ब्रजवासी ने शायद भूल गए होंगे। तुलसी पत्र ही चढ़ाया और जब उसको ग्रहण किए तो गोवर्धन प्रसन्न हुए और वहां भोजन समाप्त और उसी के साथ पूजा से समाप्त हुई और उसी दिन दोपहर के समय सारे ब्रज वासियों ने गोवर्धन की परिक्रमा की और परिक्रमा करने वालों में कृष्ण भी थे। बलराम भी थे। तो गोवर्धन पूजा और गोवर्धन परिक्रमा। चालाक चतुर भक्त जब आज गोवर्धन पूजा महोत्सव के के लिए अन्नकूट बनाया जाता है। हम भी वहा हुआ करते थे। बरसाने में परिक्रमा की ओर से बहुत बड़ा। पहाड़ अन्नकूट बड़े गोवर्धन गोवर्धन बड़ा विशाला कर लेते हैं और हजार एक हजारों भक्त इकट्ठे होते हैं। पहले हम गौ पूजा भी करते हैं और फिर गिरिराज के शीला का अभिषेक भी होता हैं। महा अभिषेक कई सारे सीनियर देवोटी गोवर्धन का गुणगान किया गाते हैं और इतने में सब ठीक है, तैयारी होते हैं, गोवर्धन बनाया जा रहा होता है।

अन्नकूट बनाया जा रहा होता है, अन्नकूट बन रहा है और फिर मैं ध्यान के समय पर्दा खुलता है। फिर गोविंदम अड़ी पुरुषम में सभी दर्शन करते हैं। गोवर्धन की सभी और भक्त एकत्रित हो जाते हैं पूजा भी करते हैं, कीर्तन होता है हरे कृष्णा, हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन और नृत्य भक्त करते हैं। आप भी करो कर रहे हो कि नहीं। और या फिर मैं यह कह रहा था कि सही वक्त क्या करते हैं। वैसे परिक्रमा तो सभी करते हैं। अन्नकूट का ही अन्य अन्नकूट का ही परिक्रमा होती है। और उसमें से कुछ बहुत दण्डवत की परिक्रमा भी करते हैं। दंडवत करते हुए परिक्रमा गिरिराज की परिक्रमा के भक्त गोबर कृष्णा कृष्णा गोबर से कृष्णा बनाते हैं। उनको सजाते हैं। कल सोलापुर के भक्तों ने भी बनाया। उन्होंने मुझे भेजा गोबर कृष्णा का दर्शन भेजा और ऐसा दर्शाता है कि वह गोबर से बने हुए कृष्णा सुंदर कृष्णा की अन्नकूट को गोवर्धन को धारण करते हैं। हरि हरि! और फिर इस परिक्रमा के उपरांत कीर्तन। फिर महाप्रसाद, महा प्रसाद ग्रहण करते हैं। अन्ना परब्रह्मा! अन्ना क्या परब्रह्म तो भवन ही है गोवर्धन के रूप में उनको हम ग्रहण करते है हमारे पेट में! और पेट के पास फिर ह्रदय है, दिल है वहां पर और फिर आत्मा में प्रवेश होता है गिरिराज का और फिर गिरिराज की भावना कृष्ण कृष्ण की भावना और अधिक उदित होती है जागृत होती है

प्रसाद ग्रहण करने से हरि हरि! यह भगवान का मीठा स्वरूप है प्रसाद जी स्वयं भगवान गिरी गोवर्धन की जय!

ठीक है। दिन मे यह कथा ही हो रही है। दिन में गोवर्धन पूजा। संपूर्ण हो कि गुरु पूजा होगी। तो हम भी यहां पर स्थित है आजकल पंढरपुर धाम में यहां भी पूजा गो पूजा और गौशाला में है और कथा होगी गोवर्धन की! 8:30 बजे तक पुनः गोवर्धन की गोवर्धन लीला की कथा कीर्तन होने वाला है शार्ट तो नहीं शॉट करना चाहता था थोड़ा कठिन हो जाता है मेरे लिए शार्ट करना फेल हो गया मैं यथासंभव जब बनेगा। यहां का जब बनेगा। शंकर पार्वती भोलेनाथ की। बोलो पंढरीनाथ की। आज रात था गिरिनाथ पी बने के पंढरीनाथ! संभव है। उनका भी दर्शन संभव है और उनका दर्शन गौशाला का दर्शन गो पूजा तो आप भी करो अपने अपने। स्थान पर अपने घर में भी थोड़ा अन्नकूट बनाओ। रामलीला।माधव! बनाओगे? स्वर्ण मंजूरी स्वर्ण गोपी। अन्नकूट बनाओ! तो अन्नकूट बनाओ या? आनंददायी बनाने वाली है। इंद्री दही बनाने वाली है।

विशेष भोग जरा ज्यादा भोग । और फिर प्रसाद को बांटना है। आप तो खाओ कि यह बताने की आवश्यकता नहीं। प्रसाद फिर चलो खाना है तो बिना बताए आप तो खाओगे ही लेकिन प्रसाद थोड़ा वितरण भी करो। यह भी कहा है सुखदेव गोस्वामी जी जब कथा सुनाते हैं। तो वह कहां है कि आज प्रसाद का खूब वितरण होना चाहिए। चांडाल लोग को एवरी बडी सब को प्रसाद वितरण करना चाहिए और ब्राह्मणों को सभी को। प्रसाद वितरण भी हो जाए। राजेश्वर में तो कर रहे हैं हमारे जय तीर्थ प्रभु हर दिन कर रहे हैं। ऐसे ग्रहस्त कि यह धर्म भी है डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ प्रसाद

हरे कृष्ण

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