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जप चर्चा १४ नवम्बर २०२०

हरे कृष्ण!

हरिबोल!

जय राधे! जय श्री राम! आप कहां हो? दिल्ली में? अगर आपने ऐसा कहने का सोचा तो फिर आप फेल हो गए।

रेवती रमण कहां हो? यदि तुमने कहा कि मैं ठाणे में हूं तब तुम भी फेल हो गए। राधा पंढरीनाथ, कहाँ है? हरि! हरि! आप कहां हो, का क्या जवाब है, क्या उत्तर है या मैं क्या सोच रहा हूं या मैं आपसे किस प्रकार के उत्तर की आशा कर रहा हूँ। हरि! हरि! नासिक रोड वाले? श्याम कुंड कहां हो? पदमाली कहां है? कृष्णकांत कहाँ हैं? काम्य वन की जय!

काम्य वन में हो या नहीं? आप परिक्रमा के ही भक्त हो इसलिए हम कई वनों की परिक्रमा यात्रा करते करते काम्य वन धाम में पहुंचे हैं। काम्य वन की जय! याद रखिए, परिक्रमा के मूड में रहिए। धाम में रहिए। कार्तिक मास में धाम वास कीजिए। हरि! हरि! धाम में श्रीकृष्ण का सानिध्य प्राप्त कीजिए। वैसे आज लोगों ने दीवाली मनाना प्रारंभ कर दिया है। हम पटाखे सुन रहे हैं। वैसे हम हरे कृष्ण लोग दीवाली कल मनाने वाले हैं। वैसे हम दिवाली कई दिन मनाते हैं। मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तब हम 5 दिन दिवाली मनाते थे। हरि! हरि! दिवाली मनाई भी जा रही है। इस समय हम काम्य वन में हैं। काम्य वन में भी कभी राम बनके कभी श्याम बनके...

जैसा कि हम कल बता रहे थे काम्य वन में श्याम बन गए राम। काम्य वन में श्याम बने राम। इसलिए भी वहां पर रामेश्वर है। वहां सेतू बंध भी है। फूल भी है और अशोक वाटिका भी है। अशोक मतलब शोक नहीं। आपने कल की परिक्रमा में अशोक वाटिका के दर्शन भी किए होंगे। हमनें कल रामेश्वर की यात्रा की थी। जहां शोक नहीं है, वह अशोक कहलाता है। इस अशोक वन में सीता रानी शोक ही शोक कर रही थी। सीता रानी की जय! शोकग्रस्त सीता! जय श्री राम! भगवान अपने सैनिकों अर्थात वानर सेना के साथ उस पुल पर चलते हुए श्रीलंका पहुंचे। वहां युद्ध होता रहा। युद्ध कांड! रामायण में सात कांड है। जिस प्रकार श्रीमद्भागवतम में खंड है, उसी प्रकार रामायण में कांड है। सात कंडीय रामायण का एक कांड अथवा एक विभाग युद्ध कांड है। वहां पूरा विस्तृत वर्णन है। राम ने युद्ध किया और राम की विजय हुई। इसलिए हम राम विजयदशमी मनाते हैं। राम विजयदशमी के दिन ही दशहरा महोत्सव होता है। वैसे हम हिंदुओं के कहो, हम नहीं कहना चाहते लेकिन .. या हम सनातनीय भागवत धर्म के लोगों के लिए दो बड़े उत्सव हैं लेकिन हम उन उत्सवों में दो महान उत्सव - एक दशहरा और फिर दिवाली मनाते हैं। इन दोनों उत्सव के साथ भगवान् राम का संबंध है। राम के कारण ही यह दशहरा मनाया जाता है। रावण का एक नाम दशानन है। दशानन अर्थात दस मुख वाला। जिसके सारे मुख व प्राण श्रीलंका में जिस दिन हर लिए गए थे, हम उस दिन राम विजय उत्सव संपन्न करते अथवा मनाते हैं। राम ने रावण के दस सिर हर लिए। सब कुछ हर लिया। जय श्री राम! काम्य वन में जो अशोक वाटिका है, वहां श्री राम सीता का पुनः मिलन हुआ। तत्पश्चात श्री राम ने पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। श्री लंका से पुष्पक विमान ने उड़ान भरी और डेस्टिनेशन अयोध्या धाम गया। लंबा सफर रहा। अयोध्या धाम की जय! आज के दिन अयोध्या धाम में श्री राम का स्वागत हुआ। पुनः श्री राम अयोध्या वासी राम, राम, राम.. राम दशरथ नंदन राम राम राम...

अब दशरथ तो नहीं रहे थे। राम पहुंच गए और राम का स्वागत हुआ। सुस्वागतम श्रीराम.. सुस्वागतम श्रीराम। हरि! हरि! दीपावली के दिन बड़े उत्साह उल्लास और हर्ष के साथ श्रीराम का स्वागत हुआ अर्थात उस स्वागत उत्सव का नाम दीपावली महोत्सव हुआ। सर्वत्र दीप जलाए गए। एक दीप, दूसरा दीप, तीसरा दीप, दीप ही दीप। दीपों की आवली अर्थात दीपावली।'फेस्टिवल ऑफ लाइट्स, फुल ऑफ डीलाइट।' हरि! हरि!

पूरे नगर को ही सजाया गया था अर्थात पूरी नगरी का ही श्रृंगार किया गया था। दीप भी श्रृंगार का एक अंग रहे। अयोध्या को कई ढंग से सजाया गया था। लोग भी सज धज कर व नए वस्त्र पहन कर राम के स्वागत के लिए पहुंच गए। भरत उन स्वागतकर्ताओं में अग्रगण्य थे। हरि! हरि!

भरत के सर पर पादुका थी। हरि! हरि!

पादुका ही श्रीराम है या श्री राम ही पादुका के रूप में उपस्थित हैं।भरत ने ऐसा मानते हुए कारोबार संभाला था। अब श्रीराम लौट रहे हैं। भरत जब उस वक्त चित्रकूट में गए थे, वैसे तो सभी ही गए थे। वहां माताएं भी गई थी, भरत भी गए थे, शत्रुघ्न भी गए थे, लक्ष्मण तो राम के साथ में ही थे। वशिष्ठ जी भी गए थे आदि आदि... हरे कृष्ण!

चित्रकूट में राम व भरत का मिलन हुआ था। उस समय सभी और विशेषतया भरत राम को अयोध्या वापिस लाने के उद्देश्य से गए थे लेकिन जो एकवचनीय राम या एक पत्नी राम या एक वाणी राम है, उन श्री राम की ऐसी ही ख्याति है। जय श्री राम! इसलिए राम प्रसिद्ध हैं। उन्होंने वचन दिया था अथवा 14 वर्षों के वनवास का संकल्प लिया था। मैं तो नहीं लौट सकता, नहीं लौटूंगा, यह पॉसिबल नहीं है। तब भरत ने श्रीराम की यह पादुका ही ले ली। तब भरत ने कहा था, ठीक है, आपकी मर्जी। आप अपने संकल्प को पूरा करना ही चाहते हो तो तथास्तु हो किंतु जब जिस दिन या जिस क्षण 14 साल पूरे होंगे, उस वक्त या उसके कुछ क्षण पहले ही आपको अयोध्या लौटना होगा, यदि नहीं लौटोगें तो नहीं लौटना ही अच्छा है। यदि आप थोड़ी देर से भी लौटे, तब आप मुझे जीवित प्राप्त नहीं करोगे। हरि! हरि! भरत ने ऐसे वचन भी कहे थे। तत्पश्चात राम ने पुनः वादा किया था कि हां- हां, भैया! मैं जरूर समय पर लौटूंगा। राम वचन के पक्के हैं। राम समय पर या समय से पहले पहुंचे। वह पहुंचने का दिन अर्थात आज दीपावली का ही दिन है। रामायण में इसका बड़ा सुंदर वर्णन है। कैसे-कैसे स्वागत की तैयारी हुई। कैसा स्वागत हुआ। वैसे मुख्य वर्णन अयोध्या वासियों के हर्ष और उल्लास का है। उनके हर्ष और उल्लास का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। अयोध्या वासियों ने ग्रैंड स्वागत उत्सव ही मनाया। ग्रैंड रिसेप्शन! दीप भी जलाएं। उनके जीवन में पुनः प्रकाश ने प्रवेश किया। कुछ अंधेरा ही छाया था। सभी उदास निराश थे। विरह की व्यथा से मर रहे थे। किंतु आज उनमें प्राणति अर्थात पुनः प्राण आ गए। उनके प्राण श्री राम उनको पुनः प्राप्त हुए। इसलिए उन्होंने उत्सव मनाया। मिठाइयां बांटी। हम अब भी क्यों मिठाइयां बांटते हैं क्योंकि लगभग दस लाख वर्ष पूर्व आज के ही दिन अयोध्या में राम आए थे, राम आ गए ... राम यहाँ हैं। राम.. राम... जय श्री राम... वे एक दूसरे को समाचार दे भी रहे थे कि चलो! चलो! राम आए हैं, चलो!

जब हम कोई शुभ समाचार देते हैं तब हम कुछ मुंह मीठा करते हैं। मिठाइयां बांटते हैं।उस दिन अयोध्या में खूब मिठाइयां बांटी गई थी। यह उत्सव लाखों वर्षों से मनाया जा रहा है। हरि! हरि!

पुराण आपि नवम

यह अति प्राचीन अथवा पुराना उत्सव होते हुए भी हम हर वर्ष एक नया उल्लास व उत्साह के साथ इस उत्सव को मनाते हैं। यह उत्सव पुराना नहीं हो रहा है। लोग धीरे-धीरे उसको भूल नहीं रहे हैं। यह उत्सव अविस्मरणीय रहा है। अविस्मरणीय अर्थात भूला नहीं जा सकता। दुनिया भूल नहीं पा रही है। यह राम की कृपा ही है। राम ही इस उत्सव को जीवित रख रहे हैं। हर समय यह नया सा उत्सव लगता है। हरि! हरि! वैसे कल हमें यह समाचार मिला कि अयोध्या धाम में इस वर्ष आज या कल दिवाली मनाई जा रही है। वहाँ लगभग 500 वर्षों के उपरांत दीपावली बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। वहाँ दीपों की आवली होगी। दीपों की पंक्तियां होगी। कितने दीप जलाने अथवा प्रज्वलित करने का संकल्प है? मैंने पढ़ा कि अयोध्या धाम में पांच लाख दीप प्रज्वलित होंगे। क्योंकि वह डाउट पीरियड या थोड़ी अंधेर नगरी कहो। कुछ 500 वर्षों से हिंदू मुसलमान लड़ रहे थे। कोर्ट कचहरी चल रही थी। पुनः राम की जीत हुई। राम की जीत कहो या राम भक्तों की जीत कहो। कोर्ट ने फैसला किया। रामायण ने लाखों वर्ष पूर्व फैसला किया ही था कि राम जन्म भूमि कहां है। कोर्ट ने भी रामायण की हां में हां मिलाई और घोषित किया - हां हां यहां राम जन्मभूमि है। राम का मंदिर होना चाहिए। यह और कुछ हो ही नहीं सकता। नव मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हो चुका है। कुछ महीने पहले हमारे प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन ही किया है। शुभारंभ हुआ है। आज दीपावली सर्वत्र ऑल ओवर इंडिया ही नहीं, वैसे विश्व भर में दीपावली अधिक अधिक प्रसिद्ध होती जा रही है।

इंग्लैंड, अमेरिका, वाइट हाउस आदि । अमेरिका में जब ओबामा वहां के राष्ट्रपति थे, उन्होंने दीपावली मनाना प्रारंभ किया था। पिछले वर्ष ट्रंप जी ने भी दीपावली मनाई थी, पता नहीं, इस साल क्या करते हैं। इस साल का उनका क्या मूड है। हरि! हरि! इस वर्ष दीपावली का विशेष उत्सव अयोध्या में ही मनाया जा रहा है। हरि! हरि! जय श्री राम! जय लक्ष्मण! जय सीता! जय हनुमान! वे सब आज अयोध्या पहुंचे थे। तत्पश्चात वहाँ मिलन उत्सव भी हुआ। हमारा भी मिलन राम के साथ हो जाए । अयोध्यावासी तो केवल 14 वर्षों के लिए राम से अलग हुए हुए थे लेकिन हम ना जाने कब से राम से अलग हुए हैं। राम अयोध्या को छोड़कर वन में प्रवेश हुए थे और राम वनवासी हुए थे लेकिन हम अयोध्या को छोड़ कर इस भवसागर का भ्रमण कर रहे हैं। भागवतम में जिसको फॉरेस्ट ऑफ एंजॉयमेंट भी कहा है। हमने अयोध्या छोड़ी, राम को छोड़ा।

कृष्णबहिर्मुख हइया भोग वांञ्छा करे। निकटस्थ माया तारे जापटिया धरे।। ( प्रेम विवर्त२)

अनुवाद:- अनादि काल से कृष्ण-बहिर्मुख जीव नाना प्रकार से सांसारिक भोगों की अभिलाषा करता आ रहा है। यह देखकर उसके समीप ही रहने वाली माया झपटकर उसे पकड़ लेती है।

हम भोग वांछा के लिए बहिर्मुख होकर अयोध्या का त्याग करके इस संसार रूपी सागर अथवा वन अथवा जंगल में भटक रहे हैं। रास्ता भूल चुके हैं। हम जंगल में खो चुके हैं। हरि! हरि! किंतु हम फिर राम की ही कृपा से इस वार्ता कथा को सुन रहे हैं। श्री राम ने ही हम पर कृपा की है।

ब्रह्मांड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु- कृष्ण प्रसादे पाय भक्ति लता बीज।। ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक १९.१५१)

अनुवाद:- सारे जीव अपने अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्मांड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह मंडलों को। ऐसे करोड़ों भटक रहे जीवों में से कोई एक अत्यंत भाग्यशाली होता है, जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है। कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है।

श्री राम ने ही हमारा मिलन या मुलाकात गुरुजनों के साथ करवाया है। गुरुजन ही हमारा पुनः मिलन भगवान श्रीराम या श्रीकृष्ण के साथ कराएंगे।

महाजनो येन गतः स पन्थाः।

गुरुजन, हम भूले भटके जीवों को संसार में जो राउंड मार रहे थे, हमारा राउंड एंड राउंड, अप एंड डाउन चल रहा था लेकिन राम की कृपा ने पुनः हमें सही मार्ग पर लगाया है, पहुंचाया है। चलो हम आगे इसी मार्ग पर उत्साह निश्चय और धैर्य के साथ बढ़ते हैं ताकि हमारा भी पुनः श्री राम के साथ मिलन हो। जब वह मिलन होगा तब आनंद ही आनंद होगा। आनंद हमारी प्रतीक्षा में है। कृष्ण है आनंद या राम है आनंद।

रमन्ते योगिनोअनन्ते सत्यानन्दे चिदात्मनि। इति राम- पदेनासौ परं ब्रह्माभिधीयते।। ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला श्लोक ९.२९)

अनुवाद:- "परम् सत्य राम कहलाता है, क्योंकि अध्यात्मवादी आध्यात्मिक अस्तित्व के असीम यथार्थ सुख में आनंद लेते हैं।"

योगिना रमंते अनंत ऐसा कहा है। हम भक्ति योगी हैं। हम फिर रमेंगें किस में रमेंगें। अनन्ते रमंते,. अनंत में रमेंगें। हम राम में, अनंत में रमेंगें। हरि! हरि! हाय हेलो छोड़ो! श्री राम बोलो।

जय श्री राम की जय! दीपावली महोत्सव की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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