Hindi

*जप चर्चा* *मायापुर धाम से* *17 अक्टूबर 2021* हरे कृष्ण आज 808 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं । राधे राधे । राधारानी की जय। ( जय ) राधा-माधव कुञ्ज-बिहारी । गोपी-जन वल्लभ गिरि-वर-धारी ॥ यशोदा-नंदन ब्रज-जन रंजन । जमुना-तीर वन-चारी ॥ जय राधा माधव कुञ्ज-बिहारी । श्रील प्रभुपाद अपने कथा प्रवचन के प्रारंभ में यह गीत जय राधा माधव कुंज बिहारी गाते थे। इस जप चर्चा में हर रोज हम नहीं गाते। शायद ही कभी गाए होंगे। लेकिन आज गा ही लिया। राधा माधव की जय। आज राधा माधव के विग्रह की आरती करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हरि हरि। केवल राधा माधव ही नहीं, पूरा ऑल्टर सजा हुआ है, भरा हुआ है। राधा माधव के साथ अष्ट सखी वृन्द वहां पर विराजमान है। मानो वैसा ही दृश्य है। दीव्यद्वन्दारण्य-कल्प-द्रुमाधः- श्रीमद्लागार-सिंहासनस्थौ । श्रीमद्राधा-श्रील-गोविन्द-देवी प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 1.16 ) अनुवाद:- श्री श्री राधा-गोविन्द वृन्दाबन में कल्पवृक्ष के नीचे रत्नों के मन्दिर में तेजोमय सिंहासन के ऊपर विराजमान होकर अपने सर्वाधिक अन्तरंग पार्षदों द्वारा सेवित होते हैं। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूं। राधा गोविंद का नाम कहां है? राधा गोविंद और राधा माधव एक ही है। दीव्यद्वन्दारण्य अरण्य मतलब वृंदावन। द्रुमाधः मतलब वृक्ष कल्प-द्रुमाधः मतलब कल्पवृक्ष। कल्पवृक्ष के नीचे क्या है? रत्न जड़ित सिंहासन है। सिंहासन पर आसीन है। राधा माधव है, राधा गोविंद है। प्रेष्ठालीभिः मतलब गोपियां सखियां। कृष्ण प्रेष्ठाए भूतले मतलब कृष्ण को प्रिय। उन सखियों को राधा माधव की सेवा करते हुए, उन का स्मरण मैं कर रहा हूं या करना चाहता हूं। यहां का ऑल्टर राधा माधव का अष्ट सखियां भी वहां पर विराजमान है। वह स्मरण दिलाता है कि या वृंदावन पहुंचाता है। राधा माधव है और कौन-कौन सखियां है। सुदेवी है, रंग देवी है, इंदुलेखा है, फिर विशाखा है, फिर राधा माधव, ललिता, चंपकलता, चित्रा और तुंग विद्या इस प्रकार अष्ट सखियां विराजमान है। तो उनकी जब आरती करने जब वहां पर पहुंच गए। तो कुछ विचार आया या सोच रहे थे कि कहां पहुंच गए। क्या राधा माधव जब सखियों से घिरे हुए हैं। सखियों ने घेर लिया है राधा माधव को और अपनी अपनी सेवा कर रहे हैं और मैं वहां पर पहुंच गया। तो मैं स्वयं को अति सूक्ष्म या मच्छर जैसा ही समझ रहा था लेकिन काटने वाला मच्छर जैसा समझ रहा था। लेकिन काटने के लिए मच्छर नहीं। छोटा शूद्र कहते हैं। राधा माधव के ऑल्टर पर या फिर और भी सारे ऑल्टर पर पहुंचकर भगवान के श्री विग्रह के दर्शन किये । श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना । श्रृंगार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ॥ 3 ॥ ( श्री श्री गुर्वष्टक ) हम अनुभव करते है कि राधा कृष्ण की लीला में हम भी प्रवेश किए हैं और हम भी सेवा कर रहे हैं। पूरा परमधाम और चिंतामणि धाम की जय, वृंदावन धाम की जय मायापुर धाम की जय। हर आत्मा वहां पर श्रीकृष्ण की सेवा करते हैं। हम भी ऑल्टर पर पहुंच जाते हैं। तो हम भी उस आध्यात्मिक आकाश या आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करने जैसा ही अनुभव करते हैं और भी सेवाएं कर रहे हैं और फिर हम भी सेवा के लिए पहुंचते हैं और सेवा करते है। मैं यह भी सोच रहा था कि वैसे मंगला आरती में या कोई भी आरती में जो अन्य भक्त पहुंच जाते हैं, वह भी आरती करते हैं और सम्मिलित होते हैं। सभी उपस्थित भक्तों की ओर से पुजारी आरती उतारता है। आप भी वहां पर हो। तो हर व्यक्ति शंख नहीं बजाएगा। सारे आइटम ऑफर नहीं करेगा। लेकिन जो पुजारी है। आज मेरी बारी थी। हर कुत्ते का दिन होता है, ऐसा कहा जाता है। हरी हरी। सभी उपस्थित भक्तों की ओर से एक भक्त या पुजारी आरती उतारते हैं। लेकिन वह अकेले आरती नहीं करते, वह सभी जो उपस्थित है वह भी आरती कर रहे हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि पुजारी हमारी ओर से आरती कर रहे हैं। हरि हरि। यह भी विचार आ रहा था कि मैं सोच रहा था कि यह अष्ट सखियां सोच रही है कि यह कौन है। तो कुछ सखियां अपनी सेवा में मस्त थी और तल्लीन थी और लेकिन कुछ आपस में बातें कर रही थी कि यह कौन है। यह ऐ.सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद के शिष्य हैं। हरि बोल। तो कुछ सखियां अपनी कृपा की दृष्टि की वृष्टि भी कर रही थी। हरि हरि। फिर मुझे याद आया जब मैं 1973 में पहली बार मायापुर में मायापुर महोत्सव में आया था। मैं इतिहास में पीछे चला गया था। उत्सव विग्रह समझते हो? उत्सव विग्रह में महाप्रभु है और छोटे-छोटे राधा माधव हैं। 1973 में केवल वही थे। यह बड़े राधा माधव और अष्ट सखियां नहीं थी। छोटे राधा माधव और महाप्रभु ही हुआ करते थे। तो 1973 में मैं जब उत्सव के लिए मायापुर महोत्सव में आया था। जननिवास प्रभु तब पुजारी थे और अभी भी है। 1973 में मैं राधा रासबिहारी इस्कॉन मुंबई मंदिर का पुजारी था। तो जब मैं मुंबई से हेड पुजारी आ गया। तब जननिवास प्रभु ने मुझ पर विशेष कृपा की और मुझे बुलाया करते थे, राधा माधव की आराधना के लिए। वह स्वयं माधव की अर्चना, आराधना, अभिषेक और श्रृंगार इत्यादि किया करते थे और मुझे कहा करते थे कि तुम राधा रानी की सेवा करो। हम राधा माधव की सेवा में पर्दे के पीछे व्यस्त रहते थे। वही समय हुआ करता था जब श्रील प्रभुपाद मॉर्निंग वॉक पर जाया करते थे। भक्ति सिद्धांत रोड पर चला करते थे। हम कर रहे हैं राधा रानी की सेवा लेकिन हम सोच रहे थे प्रभुपाद के बारे में प्रभुपाद यहां गए होंगे, यहां तक पहुंचे होंगे या प्रभुपाद लौटते होंगे। इतने में फिर कीर्तन प्रारंभ होता और प्रभुपाद कुछ भक्तों के साथ या कुछ सन्यासियों के साथ और फोटोग्राफर थे। जब पुनः प्रभुपाद लौटते थे। तो उस समय केवल एक प्रभुपाद कुटीर तो थी ही। 1972 में प्रभुपाद कुटीर थी। जो अगले साल 50वी मायापुर फेस्टिवल की सालगिरह होगी। आपको आयोजित करना होगा। आपको उस व्यवस्था को देखना होगा। जननिवास और अन्य भक्त सोचते होंगे। लेकिन 1972 तक यह लोटस बिल्डिंग में जो इस्कॉन में कहते हैं। शंख भवन है, पद्म भवन है, चक्र भवन भी है। पद्म शंख गदा चक्र यह सब भी है। सर्वप्रथम उस लोटस बिल्डिंग की जैसे मायापुर का विकास हो रहा है। एक एक पत्ती की जैसे। एक पत्ता शंख भवन बन गए, एक पत्ता गदा भवन बन गए, एक पत्ता चक्र भवन बन गए। तो श्रील प्रभुपाद लौटते थे तब कीर्तन प्रारंभ होता था। जय प्रभुपाद जय प्रभुपाद, हरे कृष्ण हरे कृष्ण। उस समय 200-300 भक्त मायापुर फेस्टिवल में आया करते थे और 200 भक्त आए मतलब ! बहुत सारे भक्त आए हैं, बहुत सारे भक्त आए हैं । कितने ? 200 I अभी तो 10,000 भक्त आ रहे हैं और अभी जिसको हम 10,000 भक्त जब आते हैं तो अब हम कहते हैं, बहुत सारे भक्त । कितने भक्त ? 10,000 तो भविष्य में 50 साल के बाद 1 लाख भक्त आएंगे । वह भी कहेंगे बहुत सारे भक्त 1 लाख । फिर 100 सालों के बाद, 200 सालों के बाद 1 करोड़ भक्त । कोई कह रहे थे परसों । अभी लाखों की संख्या में आते हैं विजिटर्स या भक्त । भविष्य में आएंगे करोड़ों । सारा संसार ही आने वाला है तो 1973 में फिर प्रभुपाद समय पर पहुंच जाते थे विग्रह के दर्शन करने और हम लोग पर्दे के पीछे भागम भाग सब तैयारी करते । राधा माधव और महाप्रभु को तैयार करते और फिर प्रभुपाद करते के आगे आके उपस्थित होते । मुझे याद आ रहा है कि उन दिनों में 7:15 बजे पर्दे खुलते थे । "गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि" "गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि" ऐसे श्रील प्रभुपाद साष्टांग दंडवत प्रणाम किया करते थे । अधिकतर प्रभुपाद साष्टांग दंडवत करते थे पंचांग नहीं करते थे । जैसे माता है पंचांग, पंच-अंग । पंच-अंग 8 अंश शरीर के तो प्रभुपाद के प्रणाम को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया करते थे प्रभुपाद और फिर राधा माधव पद्म इमारत की बात चल रही है जहां म्यूजियम है ना । चैतन्य महाप्रभु का डायरामां है वहां मंदिर या दर्शन मंडप हुआ करता था तो प्रभुपाद परिक्रमा करते थे । वहां एक घंटा भी थी तो प्रभुपाद स्वयं उस घंटा बजाते थे रुक के तो फिर कीर्तन पार्टी एसी जोरदार और कूदते थे भाव से तो प्रभुपाद घंटा बजाते हुए फिर हम सब की ओर देखते तो हर घंटे के नाद के साथ हम सब उड़ान भरते । ऊपर और नीचे कूदना वह शायद फोटोग्राफ आपने देखा होगा प्रभुपाद घंटा बजाते हुए तो उसके बाद गुरु पूजा में भागवत के कक्षाएं होते थे । आज आरती करते समय मुझे पुराने अच्छे दिन । पुराने दिन कैसे थे ? अच्छे थे । ओल्ड ईज गोल्ड तो पुराने दिन सोने के दिन थे । फिर मैं यह भी याद कर रहा था, भूल नहीं सकता । जिस राधा रानी का मैं किया करता था आराधना श्रृंगार अभिषेक इत्यादि वह राधा रानी अभी वहां नहीं रही । कुछ मुसलमान, काफी यहां दंगे हुआ करते थे । गोलीबार भी । मुस्लिम हमला करते थे तो एक समय एक रात को वह लोग राधा रानी की चोरी किए । यह अंग्रेज का मंदिर है । सांवेर मठ । वृंदावन में अंग्रेज का मंदिर और मायापुर में सांवेर मठ I अंग्रेज लोग साहेब फिर केबल जो शासन करते थे । साहेब आए हैं साहेब का यह मठ है सांवेर मठ इस्कॉन । फिर वहां से धनराशि आती होगी और यह ...तप्त-कांचन गौरांगी राधे, वैसे भी राधा रानी है "तप्त कांचन" । उन्होंने सोचा कि यह मूर्ति तो सोने की है । अर्च्य विष्णौ शिलाधीर्गुरुषु नरमतिर्वैष्णवेजातिबुद्धि : विष्णोर्वा वैष्णवानां कलिमलमथने पादतीर्थेऽम्बुबुद्धिः । श्रीविष्णोर्नाम्नि मन्त्रे सकल - कलुषहे शब्दसामान्यबुद्धि विष्णौ सर्वेश्वरेशे तदितर समधीर्यस्य वा नारकी सः ॥ ( पद्म पुराण ) अनुवाद:- मन्दिर के अर्चाविग्रह को पत्थर या काठ का बना हुआ नहीं मानना चाहिए , न ही गुरु को सामान्य मनुष्य मानना चाहिए । वैष्णव को किसी विशेष जाति या नस्ल का नहीं मानना चाहिए और चरणामृत या गंगाजल को सामान्य जल नहीं मानना चाहिए । हरे कृष्ण महामन्त्र को भौतिक ध्वनि नहीं मानना चाहिए भौतिक जगत् में कृष्ण के ये सारे विस्तार भगवान् की कृपा तथा इस भौतिक जगत् में भक्ति में लगे अपने भक्तों को सुविधा देने की इच्छा को प्रदर्शित करने वाले हैं । ऐसा कहा है तो सोचते हैं कि यह विग्रह किसी धातु के पत्थर के बने हैं । पत्थर ही है या सोना चांदी कोई धातु ही है ऐसा सोचना "र्गुरुषु नरमति" गुरु साधारण मनुष्य है और वैष्णव की कुछ जात पात होती है ऐसा विचार करने वालों को सीधे नरक पहुंचा जाता है तो वह राधा रानी परिवर्तन हो चुका है । अभी की राधा रानी है यह दूसरी राधा रानी है । मूल राधा रानी मिली ही नहीं । खोजे ढूंढे तो आज जिस राधा रानी का छोटे राधा रानी की बात चल रही है । उत्सव विग्रह राधा रानी वह वाली नहीं जो 1973 में बहुत सालों तक थी । हरि हरि !! इसीलिए भी वैसे, नरसिंह भगवान की जय ! नरसिंह भगवान प्रकट हुए या प्रार्थना की तो भगवान नरसिंह रूप में प्रकट हुए क्योंकि सारी यह उत्पात चल रहे थे । मारा पीटी काफी विरोध उसमें मुसलमानों का भी या उन दिनों में प्रभुपाद काफी परेशान थे यह परेशानियों से तो फिर धीरे-धीरे जब कुछ छोटा मंदिर था पद्म इमारत के निचले मंजिल पर । फिर यह दूसरा इमारत बन गई और फिर बड़े राधा माधव अष्ट सखियां भी आ गई । जय राधे ! राधा माधव की जय ! अष्ट सखी वृंद की जय ! तो मैं यह बता रहा था कि यह जो विघ्न आ रहे थे यहां के आराधना में या सेवा साधना में तो उससे रक्षा हो यहां के भक्तों की फिर नरसिंह भगवान उग्र नरसिंह प्रकट कराए तबसे शांति है । ओम शांतिः शांतिः शांतिः । तीन बार क्यों कहते हैं "शांति शांति शांति" । ताप, त्रय, उनमुलनम् । ताप, कष्ट, परेशानियां तीन प्रकार की है । आदि दैविक, आदि भौतिक, आदि आध्यात्मिक । ओम शांतिः :- मतलब आदि दैविक कष्टों से मुक्त । ओम शांतिः :- आदि भौतिक । ताप, त्रय शांति इससे निवारण यह तीन प्रकार के कष्टों से मुक्त ताप, त्रय । जब से नरसिंह भगवान पहुंचे हैं तब से कुछ राहत मिली है इस्कॉन मायापुर को और यहां के भक्तों को । भक्ति विघ्नविनाशक श्री नरसिंह देव भगवान की जय ! और फिर पंचतत्व भी सारे पुनः छोटे पंचतत्व की स्थापना हुई 2004 में । उत्सव विग्रह की स्थापना हुई उस अतिरिक्त मंदिर के पंचतत्व हॉल में विस्तार हुआ तो इस तरह से राधा माधव निचले मंजिल पर थे पद्म इमारत में तो उसके बाद यह अष्ट सखियां राधा माधव आ गए तो परिवर्तन हुए और फिर पंचतत्व आए और फिर दुगना कर दिया गया दर्शन मंडप दुगना हुआ । लेकिन जहां-जहां भी हम थे वह छोटा ही पढ़ रहा था । उसको बड़ा बनाते गए बड़ा बनाते गए बड़ा बनाते ही भर जाता था और वही हमने अनुभव किया यहां भी परसों के दिन इतना विशाल दर्शन मंडप पहले दिन ही भर गया । तो क्या होगा ? आने वाले 10000 साल ! वैसे कल मुझे यहां के मास्टर प्लानिंग टीम है, ह्रदय चैतन्य प्रभु और तो वो मुझे दिखा रहे थे यह भी भर गया तो एक पार्क बनने वाला है एक स्टेडियम की तरह यह है मास्टर प्लान । चैतन्य कल्चरल वर्ल्ड इरिटेशन मतलब मायापुर । सिटी ऑफ गोल्डन अवतार या नगर । नगर की स्थापना होगी । गौर नगर तो हो गए एक तो तो उस सिटी ऑफ गोल्डन अवतार में एक स्टेडियम होगा उसको पार्क कहते हैं । उसका नाम हरि बोल पार्क होगा तो उसमें कुछ 50,000 भक्त एक समय इकट्ठे हो सकते हैं । तो वह जब बनेगा तो वह भर जाएगा तो यह सब मछ्छ अवतार की तरह हम बता रहे थे उस दिन ... प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदम् विहित वहित्र-चरित्रम् अखेदम् केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे ॥ 1 ॥ अनुवाद:- हे केशव ! हे जगदीश ! प्रलय के विशाल समुद्र में वेद नष्ट होने जा रहे थे और उनकी रक्षा करने के लिए आप एक विशाल मछली बनकर आये । मछली का रूप धारण करने वाले हे हरि ! आपकी जय हो ! प्रकट हुए तो कमंडलु में से, कमंडलु भर गया इतना अपना आकार को बढ़ा दिये । वहां से फिर छोटे से कुएं में भी रख दिए तो वह भी अपने आकार को बड़ा बना दिए तो कुआं भर गया । फिर तालाब में । फिर बड़े सरोवर में । फिर किसी समुद्र में जहां जहां रखते थे उसको पूरा आछाद देते थे यह मत्स्य अवतार । ऐसी लीला है मत्स्य अवतार की तो वैसे ही यहां हो रहा है । जितना भी बड़ा दर्शन मंडप बना दो ,भर जाता है आकार बढ़ा दो ,भर जाता है । जैसे प्रचार बढ़ेगा, प्रचार हो रहा है कि नहीं संसार में उसका पता मायापुर में चलता है । अधिक आ रहे हैं मतलब प्रचार हो रहा है । कल भोपाल के 200 भक्त आ गए । मतलब भोपाल में प्रचार हो रहा है मध्यप्रदेश में या चाइना के भक्त आ रहे हैं, रसिया के भक्त आ रहे हैं तो अधिक अधिक भक्त आ रहे हैं । मतलब नेपाल में प्रचार हो रहा है और पदयात्रा प्रचार कर रही है तो हरि नाम का प्रचार होता है तो जिनको भी यह प्राप्त होता है ... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ उन सबको सबका मायापुर के साथ संबंध स्थापित हो जाता है तो सभी सोचते हैं एक दिन मैं भी मायापुर जाऊंगा । मायापुर धाम की जय ! महामंत्र का पता लगने से महाप्रभु का भी और मायापुर का भी पता लग ही जाता है या भक्त बड़ी संख्या में पहुंच जाते हैं पहुंचते रहेंगे । आप हम नहीं रहेंगे, ऐसे जीव ऐसी बारी-बारी से लोग आएंगे और मुक्त होंगे और यही प्रवेश करेंगे लीला में या ... परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः । यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥ ( भगवद् गीता 8.20 ) अनुवाद:- इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है । यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है । जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता । दूसरा जो अन्य जगत है वास्तविक परलोक वहां के लिए प्रस्थान करेंगे जैसे हम खाली जगह, खाली करते जाएंगे तो रिक्त स्थान भर दिया जाएगा दूसरे भक्त आएंगे तो यह हम माध्यम चलता रहेगा 10000 सालों के लिए । यह स्वर्णकाल है कलियुग का । ठीक है l ॥ गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ॥ ॥ हरे कृष्ण ॥

English

Russian