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22 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ लगभग 563 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। शायद ऐसा हो सकता है कि हमारे साथ इस कॉन्फ्रेंस में नियमित(रेगुलर) रूप से जो भक्त जप करते हैं, वे ब्रजमंडल परिक्रमा में हो। इस कॉन्फ्रेंस में भक्तों की संख्या कम होने का यह भी एक कारण हो सकता है लेकिन हमें मेहनत और प्रयास करना चाहिए कि हम अधिक से अधिक भक्तों को इस जूम कॉन्फ्रेंस पर जोड़ें और विशेषतया इस कार्तिक मास/ दामोदर मास में क्योंकि यह हरे कृष्ण सिद्धि मंत्र का मास है। हमें इस जूम कॉन्फ्रेंस में ज्यादा से ज्यादा भक्तों को जोड़ने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत/ परिश्रम करना चाहिए।
हमें ना केवल यह मेहनत करनी चाहिए कि हम दूसरों को इस कॉन्फ्रेंस में जोड़ें बल्कि हमें यह भी प्रयास करना चाहिए कि इस महीने हम अपना स्वयं का जप सुधारें।हमें ध्यानपूर्वक, अपराध रहित और शुद्ध नाम जप करने एवं अपने जप में पूर्णतः प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। हरि! हरि!
उसी प्रयास के अंतर्गत यह कार्य भी आता है कि हम लोगों को दीपदान के लिए प्रेरित करें व साथ ही साथ हम उन्हें ब्रजमंडल दर्शन ग्रंथ का एक- एक अध्याय पढ़ने के लिए प्रेरित करें या हम उन्हें अध्याय पढ़कर सुनाएं। जब हम मंत्र सिद्धि या अपना जप सुधारने की बात करते हैं तो उसके लिए हमें जीव दया दिखानी होगी। केवल वह दया मन के स्तर पर या मानसिक रूप से दिखाने से कोई लाभ नहीं है अपितु हमें वास्तविक रूप से उनके लिए कुछ करना होगा। लेकिन हम किस प्रकार से उनके लिए दया दिखा सकते हैं? हम उनको कृष्ण देकर, उनको कृष्ण से जोड़कर, उनको कृष्ण के बारे में बताकर/प्रेरित कर या अन्य सेवा कार्यों में लगाकर जीवो के प्रति दया दिखा सकते हैं जिससे वे उनके बारे में पढ़ें, सुने और दीप दान करें अन्यथा वे लोग माया से जकड़े रहेंगे। यदि हम उनके प्रति दया नहीं दिखाएंगे तो उनकी मुक्ति का मार्ग नहीं निकल पाएगा। इसलिए इस महीने में मंत्र सिद्धि प्राप्त करने का यह तरीका है।
जैसा कि हम दामोदर अष्टक में गाते हैं
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु'
गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः
हम रोज ही यह प्रार्थना करते हैं 'कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु' - यह काफी अच्छी पंक्ति है। आप इसे स्मरण भी रख सकते हैं। कृपाद्दष्टि-वृष्टि अर्थात जहां हम या जो व्यक्ति दीपदान कर रहा है, वह भगवान से कह रहा है कि आप हमारे ऊपर अपनी कृपा की दृष्टि की वर्षा कीजिए। जब आप किसी नए व्यक्ति या नए भक्त से दीपदान करने के लिए कहते हैं और वह नया व्यक्ति दीपदान करता है या दामोदर अष्टक गाता है तब भी वह भगवान से कहता है कि आप अपनी कृपा की दृष्टि हम पर कीजिए। जैसे ही भगवान यह सुनते हैं कि वह व्यक्ति दीपदान करते समय यह प्रार्थना कर रहा है ,तब भगवान अपनी कृपा दृष्टि की वृष्टि (वर्षा) उस पर अवश्य करते हैं।
किसी व्यक्ति के जीवन को सिद्ध करने के लिए काफी है कि भगवान की कृपा दृष्टि उसको प्राप्त हो जाए। जब आप किसी व्यक्ति को इस कार्य में लगाते हैं अथवा जोड़ते हैं तो भगवान की कृपा दृष्टि उस पर तो होती ही है पर भगवान आप से भी प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि आप उस भक्त के दीपदान का कारण बने अर्थात आप उसके निमित्त/एक साधन बने। आपकी वजह से और आपके कहने से ही उस व्यक्ति ने दीपदान किया।इसलिए उसके साथ साथ आप पर भगवान की कृपा होती है। भगवान की कृपा होने से आपका जप सुधर जाता है और अपराध रहित होता है। जब आपका शुद्ध नाम जप होता है तब आपको अधिक प्रेम प्राप्त होता है, यह जीवे दया है। जब आप किसी जीव पर दया दिखाते हैं तो भगवान आप से भी प्रसन्न होते हैं।
हरि! हरि!
हमें स्वार्थी नहीं होना चाहिए। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि "मैंने तो दीप दान कर दिया है, मुझे तो भगवान की कृपा प्राप्त हो गई।" यह अच्छी बात है लेकिन हमें निस्वार्थ होना चाहिए। हमारा भाव निस्वार्थ होना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि मैं किस प्रकार से दूसरे जीवों को मदद कर सकता हूं।
जैसे एक श्लोक में वर्णन है-
'सर्वे भवंतु सुखिनः
सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कक्ष्चिध्दुःखभाग्भवेत्।
हमें भी उसके अनुसार सोचना चाहिए कि इस भौतिक जगत के जीव जोकि कामरोग या भव रोग से ग्रस्त हैं, उनकी मैं कैसे मदद कर सकता हूं या मैं उन्हें किस प्रकार से सुख दे सकता हूं या किस प्रकार से मैं उन्हें आध्यात्मिकता दे सकता हूं।
हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि किस प्रकार से उनके जीवन में सारी चीजें अच्छी हो। हमें ऐसा सोचना चाहिए कि हर एक जीव आध्यात्मिक सुख प्राप्त करे।
इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए अर्थात हमारी यह सोच होनी चाहिए कि हम भौतिकता ग्रस्त अर्थात अंधकार ग्रस्त लोगों के जीवन में प्रकाश ला सकें। दीपदान का एक भाव यह भी है कि हम उनके जीवन में कृष्ण का प्रकाश या भक्ति का प्रकाश लाते हैं। हमें यह प्रयास करना चाहिए हम उनके जीवन में यह भक्ति का प्रकाश ला सके या उन्हें दे सकें। जैसा कि शास्त्रों में एक अन्य श्लोक में वर्णित है- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' - हमें यह सोचना और प्रयास करना चाहिए कि कोई भी तामसिक अंधकार/ अज्ञानतापूर्ण अंधकार में ना रहें और हर एक जीव ज्योति या कृष्ण भक्ति के प्रकाश की ओर जाए। हमारा निस्वार्थ भाव से यही प्रयास रहना चाहिए ।
जैसे यह कार्तिक/दामोदर मास चल रहा है।यह एक प्रकार से दामोदर का सीजन है, ब्रजमंडल परिक्रमा, दीपदान का सीजन है। हम इस विषय पर चिंतन मनन कर रहे हैं। कुछ महीने बाद या अगले दिसंबर के महीने हम मैराथन के विषय में चर्चा करेंगे क्योंकि वह मैराथन का महीना होगा। जैसे गौर पूर्णिमा के समय हम चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं के बारे में चिंतन मनन करते हैं। अभी यह दामोदर का महीना है। हमारे पास यह एक अच्छा कारण बन जाता है कि हम लोगों को इस महीने की महिमा या दामोदर की महिमा के विषय में बताएं। हमें सुनकर यह संदेश अन्य लोगों तक भी पहुंचाना है क्योंकि जिन लोगों के पास भक्ति नहीं है, वे मृत देह के समान माने जाते हैं, हमें उन प्राणियों को प्राण वापिस देने हैं। हमें दामोदर और कृष्ण की भक्ति प्रदान करके उन्हें प्राण देना है।
जैसा कि हम कहते हैं-
'राधा कृष्ण प्राण मोर युगल किशोर'- राधा-कृष्ण ही वास्तविक प्राण होते हैं। जब हम इस भौतिक जगत में भटके हुए जीवों को राधा कृष्ण प्रदान करेंगे तो वे लोग वास्तविकता में जीवित होंगे या उन्हें प्राण मिलेगा। हमें इस माह यह कार्य करना चाहिए।
भले हम किसी भी सीजन या किसी भी महीने की बात करें। चाहे दामोदर मास, गौर पूर्णिमा या मैराथन का समय हो, चाहे कोई तिथि हो या श्रील प्रभुपाद का आविर्भाव या तिरोभाव दिवस हो या किसी अन्य आचार्य का आविर्भाव तिरोभाव दिवस हो। हम किसी भी महीने/दिवस या तिथि का प्रचार करें, हमारा प्रचार का मुख्य एक ही हेतु होता है- जीवों को हरे कृष्ण महामंत्र से जोड़ना या उनसे हरे कृष्ण महामंत्र जप करवाना। वास्तविकता में केवल हम यही दो कार्य करते हैं श्रवण और कीर्तन। हम भगवान के विषय में सुनते हैं और जप भी करते हैं। यह हरे कृष्ण महामंत्र का जप हमेशा सारे कार्यों में समानता से स्थित रहता है। हम लोगों को हरे कृष्ण महामंत्र से जोड़ते हैं, यह हमारा मुख्य कार्य है। हमें बस यही दो कार्य करने हैं कि हम स्वयं खुद महामंत्र का जप करें, उसका श्रवण कीर्तन करें और नए लोगों को या दूसरे लोगों को भी इससे जोड़े। हम उन्हें आमंत्रित कर उनसे हरे कृष्ण महामंत्र का जप, श्रवण, कीर्तन आदि करवाएं।
इसके अलावा दो मुख्य सूचनाएं या आज की ताजा खबरें भी हैं पुणे से ब्रजमाला माताजी ने कल बहुत ही अच्छा प्रोग्राम आयोजित किया था। उन्होंने कल 120 से भी अधिक नए लोगों से दीपदान कराया। उनके साथ कुछ भक्त भी थे, उन्होंने उस प्रोग्राम में कुल 200 की संख्या में दीपदान करवा कर काफी अच्छे से आयोजन किया। दूसरी खबर बेंगलुरु से है मंजुलाली माताजी का एक संकल्प या प्रोग्राम है, वह आज तीन से अधिक गवर्नमेंट स्कूलों में जाकर 600 से अधिक विद्यार्थियों से दीपदान करवाने वाली हैं। यह बहुत ही अच्छा कार्य है। उन्होंने अभी मैसेज किया था, आपने यह मैसेज पढ़ा या नहीं। इसलिए मैंने सोचा कि आपको अवगत करवा दिया जाए, यह काफी बड़ी सफलता है।
ब्रजमंडल परिक्रमा से भी काफी अच्छी खबरें आ रही हैं। मैं उनके आनंद को अनुभव कर पा रहा हूं। आज सुबह मैं ब्रजमंडल परिक्रमा के उज्ज्वल व आनंदित भक्तों के चेहरे का दर्शन कर रहा था। यह आनंद या प्रसन्नता उनके चेहरे पर पिछली रात को मध्यरात्रि में राधा कुंड स्नान करने के कारण थी। ब्रजमंडल परिक्रमा के जितने भी भक्त हैं, उन सभी ने राधा कुंड में स्नान किया जबकि हम लोगों में से अत्याधिक भक्त तो विश्राम कर रहे थे या सो रहे थे। ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्तजनों ने मध्य रात्रि में वहां पर स्नान किया इसकी वजह से वह काफी हर्ष/आनंद, उज्जवलता का अनुभव कर रहे थे जो कि उनके चेहरे पर दिख भी रहा था। मैं भी सौभाग्य से ब्रजमंडल परिक्रमा में जा पाया और उन भक्तों का दर्शन कर पाया। इस वर्ष काफी बड़ी संख्या में अर्थात 1700 से अधिक भक्त इस ब्रज मंडल परिक्रमा में आए हैं। मुझे भी दिन के समय यह सौभाग्य प्राप्त हुआ, मैं राधा कृष्ण की कृपा से राधाकुंड, श्याम कुंड पर जाकर दर्शन कर पाया। मैं राधा कुंड में स्नान तो नहीं कर पाया लेकिन मुझे आचमन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं राधाकृष्ण का आभार मानता हूं। उसके साथ ही साथ मैंने ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्तों का भी दर्शन किया व उनसे भी भेंट की। इसके लिए मैं उनका भी आभारी हूं और मैं भगवान का भी आभारी हूं।
आज हम वाणी को यहीं विराम देते हैं। कल हम पुनः मिलेंगे और चर्चा करेंगे।
दिन के समय आप व्यस्त रहिए।
हरे कृष्ण!
गौर प्रेमानंदे हरि! हरि बोल!