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23 अक्टूबर 2019 हरे कृष्ण! आप सभी का इस जपा कॉन्फ्रेंस में स्वागत है। मैं बहुत प्रसन्न हूं कि आप सभी जप कर रहे हैं और अपने परिवार के सदस्यों को भी जप करवा रहे हैं। आप में से अधिकांश लोग कहते थे कि उनके परिवार के सदस्य पहले जल्दी सुबह नहीं उठ पाते थे परंतु अब जब से यह जपा कॉन्फ्रेंस शुरू हुई है, अब वे भी सुबह जल्दी उठ कर जप कर रहे हैं। यह बहुत अच्छा है और लाभदायक भी है। आज हमारे साथ 552 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। भक्तों की संख्या तो काफी अधिक है लेकिन 552 स्थानों से भक्तों ने ज़ूम पर लिंक किया है। भुवनेश्वर से तरुण कृष्ण प्रभु अपनी पत्नी, बच्चों, अपने माता-पिता और अपने ग्रैंडपेरेंट्स के साथ में जप कर रहे हैं। इस प्रकार से कई भक्त अकेले जप नहीं करते अपितु अपने परिवार के सदस्यों के साथ जप करते हैं। मैं देख रहा हूं कि कई भक्त सामूहिक जप कर रहे हैं। कई युवा, वृद्ध व परिवार के अन्य कई सदस्य एक साथ बैठकर जप कर रहे हैं। यह काफी उत्साहवर्धक है। आज अभी मुझे एक बहुत ही अद्भुत दृश्य देखने को मिला है कि हरिमुरारी प्रभु जो कि अहमदाबाद से हैं, वह और उनकी पत्नी ब्रजमंडल परिक्रमा में जप कर रहे हैं। वे आज डिग से बद्रीनाथ जा रहे हैं। अहमदाबाद में उनके बच्चे संकीर्तन और प्रेरणा भी अपने घर पर बैठकर जप कर रहे हैं। माता-पिता परिक्रमा में जप कर रहे हैं और बच्चे अपने घर पर बैठकर जप कर रहे हैं। मैं यह सब देख पा रहा हूं। मुझे यह सब देखकर बहुत ही अच्छा लग रहा है। यह एक अद्भुत अनुभव है। इस समय शिरोमणि गोपिका माताजी ट्रेन में हैं और वह मथुरा वृंदावन की ओर जा रही है। वह भी ट्रेन में जप कर रही है, इससे अच्छा क्या हो सकता है कि कोई मथुरा वृंदावन के रास्ते में जा रहा है और साथ-साथ हरि नाम का जप कर रहा है। यह एक बहुत अच्छी खबर है। हम वृंदावन में किसी ट्रेन या एयरप्लेन से नहीं आ सकते हैं अपितु वृंदावन के लिए एक चेतना चाहिए होती है अर्थात वृंदावन धाम में प्रवेश करने के लिए एक चेतना की आवश्यकता होती है। श्रील प्रभुपाद जी कहा करते थे कि वृंदावन में प्रवेश करने के लिए हमारा ऐसा भाव होना चाहिए जैसा कि अक्रूर जी का भाव मथुरा से वृंदावन की ओर आते हुए था। हमको यह हरि नाम ही इस लायक बनाएगा कि हम वास्तव में ब्रज/ वृंदावन में प्रवेश कर सकें। इस प्रकार से जप करने का कोई विशेष नियम नहीं है। जैसा कि चैतन्य महाप्रभु कहा करते थे 'खायते सोयते यथा तथा हरि नाम लोय'। आप किसी भी अवस्था में कहीं पर भी जप कर सकते हैं अर्थात आप खाते समय, सोते समय, यहां, वहां, जहां भी आप हैं, आप जप कर सकते हैं। मैं देख रहा हूं कि इस समय हमारे ग्रेटर नोएडा की कुछ माताएं रसोई में काम कर रही हैं और साथ में इस जपा कॉन्फ्रेंस को भी सुन रही हैं। इसी प्रकार से हमारी आनंद प्रदा माताजी जप भी कर रही हैं और उनको बीच बीच में नींद भी आ रही है। इससे पता चलता है कि महाप्रभु जैसा कहते हैं कि हम खाते सोते हुए कभी भी हरि नाम का जप कर सकते हैं। इसका कोई विशेष नियम या कानून नहीं है। (हँसते हुए..) नियम है भी और नहीं भी है। अमेरिका के न्यू जर्सी से हमारे श्रृंगार मूर्ति प्रभु इस समय कई सारे कपड़ों से लदे हुए जप कर रहे हैं क्योंकि इस समय वहां पर बहुत कड़ाके की ठंड पड़ती है। हार्दिक पटेल प्रभु भी अमेरिका से हैं लेकिन उन्होंने इतने अधिक कपड़े नहीं पहने हुए हैं। वह भी अमेरिका से हमारे साथ जप कर रहे हैं। मैं देख रहा हूं कि वातावरण के अनुसार कुछ भक्त बहुत अधिक कपड़े पहने हुए हैं और कुछ भक्त बहुत कम कपड़े पहने हुए हैं जैसे उड़ीसा के भक्त क्योंकि शायद वहाँ इसकी ज्यादा जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार से सुबह के समय मैं सभी लोगों को जप करते हुए चाहे वह कम कपड़े पहने हुए हो या अधिक कपड़े पहने हुए हो, मैं देख रहा हूं। रशिया में कुछ भक्त किसी गंतव्य स्थान पर जा रहे हैं। वे ड्राइविंग भी कर रहे हैं लेकिन साथ साथ वे जप भी कर रहे हैं। ऐसे कई दृश्य इस कांफ्रेंस के अंदर देखने को मिलते हैं जोकि और काफी आनंददायक और उत्साहवर्धक है। एक कुत्ता भी जप में भाग ले सकता है और एक बच्चा भी जप में भाग ले सकता है। हो सकता है कि कई हमारे बच्चे या बालक निश्चित रूप से सुबह जप नहीं करते हो लेकिन हमारे बच्चे दीपदान में बहुत बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। मायापुर से श्यामलता माताजी की पुत्री ललिता गोपी जो केवल 6 वर्ष की है, वह आज अपने मित्रों के साथ में दीपदान का आयोजन कर रही है यद्यपि वह केवल 6 वर्ष की है परंतु वह आज दामोदर अष्टक भी गाएगी। आज उसने अपने घर पर एक दीपदान का प्रोग्राम आयोजित किया है। हम ललिता गोपी को बधाई और आशीर्वाद देते हैं। हम उसका स्वागत करते हैं कि वह इतनी कम अवस्था में इस प्रकार से सुंदर दीपदान का आयोजन कर रही है । हमें अमरावती से एक बहुत बड़ी खबर प्राप्त हुई है। शायद आप भक्तों ने यह रिपोर्ट पढ़ी भी होगी। अमरावती के कुछ भक्त विभिन्न मंदिरों ,स्कूलों व जेलों में जा रहे हैं। कल वे भवानी मंदिर में गए थे और उन्होंने 600 लोगों से दीपदान करवाया और 800 स्कूल के बच्चों से दीपदान करवाया। कल वे जेल में जाएंगे परंतु वहाँ उन्हें कोई गिरफ्तार नहीं करेगा अपितु उनका स्वागत किया जाएगा क्योंकि वहां पर जेल के सुपरिंटेंडेंट ने उन्हें बुलाया है। कल वे जेल के हजारों कैदियों से दीपदान करवाएंगे। जब वे भगवान दामोदर को दीपक अर्पित करेंगे तब एक प्रकार से इन कैदियों का जीवन प्रकाशित होगा। इस प्रकार से मेरे ज़ोन में कई मंदिर हैं, मैं चाहता हूं कि मुझे वहां से भी इसी प्रकार से खबरें मिले। मैं चाहता हूं कि नागपुर, अरावड़े, पंढरपुर, वियतमाल, नोएडा आदि मंदिरों के भी भक्त जगे और उठे और वे छोटे- बड़े स्कूलों, मंदिरों, जेलों और जहां कहीं भी जा सकते हैं, जाएं। इसकी कोई सीमा नहीं है,यह आकाशीय सीमा है। आप जितना प्रयास कर सकते हैं, उतना करने का प्रयास कीजिए। नई नई योजनाएं बनाइए कि आप किस प्रकार से इस कार्तिक मास में अधिक से अधिक लोगों को भगवान दामोदर की आरती/ दामोदर अष्टक व दीप दान करवा सकते हैं। जय दामोदर! भगवान दामोदर सर्व-आकर्षक हैं। आकृष्यति इति कृष्ण: अर्थात भगवान कृष्ण वह व्यक्ति हैं जो सबको अपनी और आकर्षित करते हैं। भगवान अपनी सुंदरता,अपने रूप माधुर्य, लीलाओं के द्वारा आकर्षित करते हैं। भगवान के विषय की हर चीज ही बहुत ही सुंदर है। वहीं सुंदर अद्भुत दामोदर सभी जीवों को अपनी और आकर्षित करेंगे। यदि हम जीवों को भगवान दामोदर देंगे, तब सभी जीव दीपदान करके भगवान दामोदर के प्रति आकृष्ट होंगे। इस प्रकार से वे भगवान दामोदर का दर्शन करेंगे, यशोदा मैया का दर्शन करेंगे। इस मास में भगवान दामोदर ने जो नटखट लीला की थी, उन सभी को उसका स्मरण होगा। बेंगलुरु मंदिर से हमारे बंशी मोहन प्रभु बता रहे हैं कि उन्होंने 750 भक्तों को दीपदान करवाया। वे सुबह गणेश मंदिर में गए जहाँ सैकड़ो की संख्या में भक्तों ने दीपदान किया। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु सनातन गोस्वामी से बात करते हुए बता रहे हैं कि भगवान की समस्त लीलाओं में अर्थात भगवान जितनी भी लीलाएं करते हैं या खेलते हैं, उसमें सबसे आकृष्ट करने वाली लीलाएं वे होती हैं जो भगवान अपनी नर-वपु रूप में खेलते हैं। सनातन गोस्वामी ने चैतन्य महाप्रभु से सुना कि भगवान विभिन्न अवतारों में जो लीलाएं करते हैं, उसमें सबसे सर्वोत्तम लीलाएं वह हैं जो कि भगवान अपने नर वपु में करते है जैसे कि भगवान ने दामोदर लीला मनुष्य के रूप में की। भगवान का वास्तविक रूप भी वैसा ही है यह सबसे आकर्षित करने वाली लीला है। जैसा हम जानते हैं कि केशव! धृत- नरहरिरूप, केशव! धृत- कुर्मशरीर! केशव! धृत- मीन शरीर! भगवान भिन्न-भिन्न अवतारों में विभिन्न विभिन्न रूप धारण करते हैं। भगवान कभी शूकर का रूप धारण करते हैं, कभी मीन का शरीर धारण करते हैं, तो कभी एक वराह के रूप में आते हैं। कभी आधे नर और आधे सिंह अर्थात नरसिंह के रूप में आते हैं। भगवान इतनी तरह से रूप धारण करते हैं लेकिन इसमें भगवान आदि रूप अर्थात जो नर वपु रूप में आते हैं, वह लीला सर्वोत्कृष्ट व सर्वाकर्षक होती है जोकि सबसे ज्यादा आनंद दायक है। भगवान के कई सारे अवतार हैं। भागवतम में जैसे की कहा भी गया है एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान स्वयम्। भगवान मनुष्य के रूप में आते हैं जैसे रमादी मूर्ति शुक्ला आदि तिष्ठान। भगवान राम का रूप धारण करते हैं, वामन का रूप धारण करते हैं लेकिन वे कृष्ण भगवान , वे आदि भगवान हैं। कृष्णस्तु भगवान स्वयम् , भगवान अपने नर अवतारों में जो लीला करते हैं, उनमें भी भगवान कृष्ण जो लीला करते हैं अर्थात भगवान आदि स्वयं जो लीला करते हैं। वह सर्वोकृष्ट है। सबसे सुंदर सब प्रकार से सर्वोत्तम आकृष्ट करने वाली। उनकी लीलाओं के विषय में क्या कुछ कहा जाए। वे सबसे ज़्यादा आकर्षक हैं। भगवान स्वयं सब लीलाएँ करते हैं। भक्तिरसामृत सिंधु में श्रील रूप गोस्वामी लिखते हैं कि भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं सबसे अधिक आकर्षक हैं। वे सभी जीवों को आकृष्ट करती हैं। भगवान अपनी विभिन्न अवस्थाओं को धारण करते हैं जैसे कुमार अवस्था,किशोर अवस्था आदि। उन अवस्थाओं में भगवान विभिन्न प्रकार की बहुत आकर्षक लीलाएं करते हैं परंतु भगवान की बाल लीलाएं बहुत ही आकर्षक हैं, उसमें भी विशेषकर दामोदर लीला। वह हमारी चेतना को एक प्रकार से अटका देती है या इस तरह से जोड़ देती है कि जब हम उसके विषय में सुनते या पढ़ते हैं, हम एक तरह से विस्मित से हो जाते हैं। उसको पढ़कर बहुत ही आनंद मिलता है कि भगवान बाल लीलाएं किस प्रकार से कर रहे हैं। जैसा कि दामोदर अष्टकम में गाया गया है इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्। दामोदर अष्टकम के प्रथम या द्वितीय श्लोक में लीला बताई गई है लेकिन तृतीय श्लोक इस प्रकार से कहा गया है इतीद्दक्‌स्वलीला अर्थात भगवान इन लीलाओं के माध्यम से आनंद का कुंड, सरोवर या पूरा समुंद्र जैसा बना देते हैं। जिसमें भगवान के नित्य पार्षद या बृजवासी/ गोकुल वासी आनंद के इस कुंड में गोते लगाते व स्नान करते हैं और हमेशा भगवान की इस प्रकार की लीलाओं को गाते रहते हैं। जैसे माता यशोदा मक्खन निकालते हुए हमेशा भगवान की लीलाओं का स्मरण करते हुए उसको गाती रहती हैं। इसी प्रकार से अन्य बृजवासी व भगवान के अन्य पार्षद भी भगवान की लीलाओं का गान करते हैं। हम भी इन लीलाओं को पढ़ कर या भगवान को दीपदान करके उस अनुभूति या उस भाव को कुछ-हद तक ग्रहण कर उसका रसास्वादन कर सकते हैं जिस प्रकार से बृजवासी या भगवान के अंतरंग पार्षद रसास्वादन करते हैं। आप सभी भी पूरे दिन में दामोदर लीला के आनंद का रसास्वादन कर सकते हो। आपका शुभ प्रभात हो, शुभ शुभ मध्यकाल हो,शुभ रात्रि हो और आप भगवान का निरंतर स्मरण करते रहो। आप सभी दामोदर लीला में गोते लगाएं।यही मेरी आशा और आशीर्वाद भी है। हरे कृष्णा!

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