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11 अक्टूबर 2019 हरे कृष्ण! आज मैं तिरुपति में हूं। आज सुबह तिरुपति मंदिर में मंगला आरती के पश्चात जी. बी. सी. भक्तों की प्रसन्नता के लिए श्रील प्रभुपाद के दिव्य ग्रंथों के वितरण का स्कोर घोषित किया गया था और आप सब की प्रसन्नता के लिए हमारे ज़ूम कॉन्फ्रेंस का आज का स्कोर अर्थात भक्तों की संख्या 520 है अर्थात इस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ 520 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आप में से कुछ भक्तों ने आज चैट पर मैसज में गोविंद! गोविंद! लिखा था। तिरुपति में यह प्रणाली है कि जब भी कोई भक्त भगवान बालाजी के सामने जाता है , तो वह उनको गोविंदा! गोविंदा! कह कर बुलाता है। यहां इस प्रकार से बोलने की एक विशेष पद्दति है। वे इस प्रकार 'गोविन्द' बोलकर भगवान को संबोधित करते हैं। इससे वे यह भी ऐलान या स्थापित करते हैं कि तिरुपति बाला जी भी गोविंद हैं। वे भगवान गोविंद हैं। यहां इस्कॉन तिरुपति में जो श्री विग्रह हैं, उनका नाम भी राधा गोविंद देव हैं। शायद भक्ति स्वरूप दामोदर महाराज ने या किसने यह नाम दिया है? यह तो मैं नहीं जानता लेकिन यह काफी उपयुक्त नाम है। बालाजी को तिरुपति में गोविंद कह कर संबोधित किया जाता है। इस्कॉन तिरुपति में हमारे विग्रह का नाम भी श्री श्री राधा गोविंद देव जी है। कल जब हम यहां तिरुपति में पहुंचे, रेवती रमन प्रभु, हमें मंदिर में आल्टर के सामने लेकर आए और काफी विशेष दर्शन करवाए। वहां पर हमारे आल्टर में बाला जी भगवान, नरसिंह देव, गिरिराज शिला भी है। वहां विशेष दर्शन तो श्री श्री राधा गोविंद देव और अष्ट सखी का था। काफी भरा भरा आल्टर है। रेवती रमन प्रभु ने मुझे इसका एक विशेष दर्शन करवाया। प्रायः सामान्य रूप से देखा जाता है कि साउथ इंडिया (दक्षिण भारत) के काफ़ी मंदिरों में लक्ष्मी नरसिंह देव के विग्रह होते हैं और एक नरसिंह देव की सेवा एक ही लक्ष्मी करती है। लेकिन यहाँ इस्कॉन तिरुपति में या वृंदावन में गोविंद जी, राधारानी व अन्य काफी सखियों के साथ आल्टर में विराजमान हैं। हम यहाँ अष्ट सखियों को हमारी आँखों के सामने देख सकते हैं। वृंदावन का यह भाव है कि वृंदावन में कृष्ण की सेवा में शत सहस्त्र लक्ष्मियाँ लगी हुई हैं। वहां हज़ारों- हजारों लक्ष्मियाँ मिलकर भगवान की सेवा किया करती हैं। जो भी गोपियां, सखियाँ और मंजरियां हैं, वे सभी लक्ष्मी देवी का विस्तार हैं, वे लक्ष्मी ही हैं।राधारानी, स्वयं महालक्ष्मी हैं। वे सारी लक्ष्मियाँ मिल कर अकेले कृष्ण की सेवा में लगी रहती हैं जबकि वैकुंठ में नारायण की सेवा में केवल एक लक्ष्मी होती है। यह राधा कृष्ण का अष्ट सखियों के साथ वृंदावन का दर्शन है, यह गोलोक का दर्शन है। सामान्यतया साउथ इंडिया (दक्षिण भारत) में राधा रानी, गोपियों, सखियों के दर्शन की प्रणाली नहीं है। साउथ इंडिया में राधारानी का दर्शन ही नहीं है। यहां लगभग हर मंदिर में एक कृष्ण के विग्रह के साथ एक लक्ष्मी का विग्रह है लेकिन राधा रानी या गोपियों के दर्शन नहीं हैं लेकिन चैतन्य महाप्रभु के आने के पश्चात गौड़ीय सम्प्रदाय ने इसे स्थापित किया है। चैतन्य महाप्रभु ने हमें राधा कृष्ण के दर्शन व राधा कृष्ण की सेवा दी है। यह गौड़ीय सम्प्रदाय का भाव है। परकीय भाव और स्वकीय भाव। द्वारका और वैकुण्ठ में स्वकीय भाव होता है और जैसा कि हम गाते हैं- परकीय भाव यंहा ब्रजते प्रचार। वृंदावन में परकीय भाव है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने इसकी स्थापना की है और इसे हमें प्रदान किया है। यहाँ साउथ इंडिया(दक्षिण भारत) में श्री सम्प्रदाय का अधिक प्रचार और प्रभाव है। श्री सम्प्रदाय में जैसे श्री रामानुज आचार्य,उडुपी में मध्वाचार्य का प्रचार है। उडुपी में लगभग सभी भक्त प्रायः केवल उडुपी कृष्ण ही कहते हैं कोई उडुपीवासी राधा कृष्ण नहीं कहता। वहाँ पर भी राधा रानी की सेवा नहीं होती है। वहां केवल कृष्ण की सेवा की जाती है। श्री सम्प्रदाय के रामानुज आचार्य केवल लक्ष्मी नारायण की सेवा करते हैं। मध्वाचार्य के अनुयायी केवल अकेले कृष्ण की सेवा करते हैं। इन दोनों सम्प्रदायों में अनुयायियों को राधा रानी की सेवा के बारे में नहीं बताया गया है। मॉरिशस से एक माताजी लिख कर प्रार्थना कर रही थी कि आज मैं शरद पूर्णिमा या रास डांस(नृत्य) के विषय में कुछ कहूँ। जब हम राधा गोविंद और अष्ट सखी के विषय में चर्चा कर रहे थे तब मेरे मन में विचार आया था कि यह जो दर्शन है लगभग रास लीला के पहले का ही दर्शन है। जहाँ पर कृष्ण और राधा रानी, अष्ट साखियों व अनंत अन्य साखियों के मध्य में विराजमान है। दिव्यद्वृन्दारण्य कल्पद्रुमाधः। श्रीमद् रत्नागार सिंहासनस्थौ। श्रीमद् राधा श्रीलगोविन्ददेवौ प्रेष्ठालीभिः सेव्यमानौ स्मरामि।। यह राधा गोविंद देव का प्रणाम मंत्र है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है कि राधाकृष्ण दोनों कहाँ पर है ? वृन्दअरण्य में यानी वृंदावन में हैं, वे ब्रज के वनों में हैं। वे वन दोनों तरफ से कल्प वृक्ष से भरे हुए हैं। उन असंख्य कल्पवृक्षों में से एक कल्पवृक्ष के नीचे राधा गोविंद देव विराजमान है। कहाँ पर विराजमान हैं ? रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ असंख्य गोपियां राधा कृष्ण की सेवा में आतुरता से लगी हुई हैं। यह लगभग रास लीला के पूर्व का दर्शन है। रास लीला प्रारंभ होने से पहले हमें यही दर्शन प्राप्त होता है कि वृंदावन के कल्पवृक्ष के नीचे रत्न जड़ित सिंहासन पर राधाकृष्ण विराजमान हैं और असंख्य गोपियाँ आतुरता से उनकी सेवा में लगी हुई हैं। जब हम रासलीला की बात करते हैं या रास लीला के पूर्व या रासलीला के बारे में जब ध्यान करते हैं तो यही सब बातें हमारे मन में आती हैं और हमें राधा कृष्ण का अनंत साखियों के साथ का दर्शन होता है। जब हम अष्ट सखी कहते हैं तो अष्ट सखियों में काफी सखियाँ या गोपियां मंजरियां व उनकी दिव्य लीलाएं,उनकी दिव्य वेशभूषा आती है। हर सखी, हर गोपी का एक विशेष नाम, विशेष रूप और एक विशेष सेवा है। उन सबकी एक विशेष और विभिन्न प्रकार की वेश भूषा है, इन सबका वर्णन हमें प्राप्त है। ऐसा नहीं है कि ये सारी बातें केवल कोरी कल्पना है या किसी के मन की घटना है जिसे उन्होंने अपने मन से कुछ लिख और कह दिया है। ये सारी बातें शास्त्रों में वर्णित हैं। लक्ष्मी सहस्त्र शता सम्भराम सेवायमानम। यह जो ब्रह्मसंहिता का श्लोक है जिसमें कहा गया है कि हजारों गोपियां भगवान की सेवा में लगी हुई हैं। यह वास्तविकता है, यह कोई कोरी कल्पना नहीं है। हरि! हरि! जब हम सखियों, गोपियों, मंजरियों की बात करते हैं कि सबके कुछ विशेष नाम, रूप, सेवाएं , भाव हैं। कुछ सखियाँ उनमें से, उनके मनोभाव की हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुछ भगवान के बाएं तरह, कुछ अग्रगण्य होती हैं, कुछ किसी गोपीयों के समुदाय की मुखिया होती हैं, सबके अलग अलग मनोभाव हैं। राधा गोविंद देव, अष्टसखी के दर्शन करते हैं हम आल्टर में देखते हैं कि हमारी दाईं तरफ से यानी कि आरंभ जहाँ से होता है सबसे पहले वहां पर सखी सुदेवी है। उनके बगल में रंगदेवी है, फिर इंदुलेखा है फिर विशाखा है जो कि राधा रानी के बगल में खड़ी रहती है फिर दूसरी तरफ जब हम देखते हैं अपनी बाईं तरफ वहा गोविंद के बगल में ललिता है फिर चम्पकलता है, चित्रा है, तुंगविद्या है। इस प्रकार राधा गोविंद देव, अष्ट साखियों के बीच में विराजमान हैं।राधा गोविंद देव और अष्ट सखी का दर्शन, रास लीला के प्रारंभ का दर्शन है। जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तब जप के समय यह हमारे ध्यान का विषय बन सकता है कि वृंदावन में राधा कृष्ण, अष्टसखियों और अन्य हजारों सखियों और गोपियों के मध्य में हैं। ऐसा नहीं हैं कि वे सखियाँ, गोपियाँ, राधाकृष्ण के सामने या बगल में केवल वहां पर खड़ी ही रहती हैं बल्कि वहां पर वे उनकी आतुरता के साथ सेवा भी करती हैं व उनके साथ रास लीला में नृत्य भी करती हैं। जिस प्रकार से राधारानी और अन्य सखियाँ, गोपियां कृष्ण के साथ नृत्य करती हैं तो ये हमारे जप के समय ध्यान का विषय बन सकता है। हम जितना ज्यादा इस विषय वस्तु पर श्रवण करेंगे या जितना अधिक अध्ययन करेंगे, हम उतना ही अधिक ध्यान कर पाएंगे। यदि हम इसे अपना ध्यान का विषय बनाना चाहते हैं तो हमें ज़्यादा से ज़्यादा इस विषय में श्रवण और अध्ययन करना चाहिए। जितना अधिक हम इस बारे में अध्ययन करेंगे या सुनेंगे, उतनी ही हमें ध्यान में मदद होगी अर्थात हमनें जो अध्ययन किया है या सुना है,हम उसके विषय में ध्यान कर पाएंगे। अभी रायचूड़ से जयतीर्थ प्रभु ने अपने कुछ संस्मरण लिख कर काफी लंबा मैसज भेजा है। उन्होंने हमारी पिछली बार तिरुपति यात्रा के विषय पर कुछ अपना साक्षात्कार लिखा है। धन्यवाद! जयतीर्थ प्रभु। आज हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देंगे। गोविंद! गोविंद! गोविंद! राधा गोविंद देव की जय! हरे कृष्ण!

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