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हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 5 नोव्हेंबर 2020 आज 859 स्थानो सें भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं क्या हुआ ब्रम्ह मुहूरत में सबको जगना चाहिए। जीव जागो। जीव जागो। का समय है। साधना परिक्रमा और दामोदरअष्टक करना है करवाना है तो हमको उत्साही होना चाहिए। उत्साहान्निश्चयाध्दैर्यात् तत्तत्कर्मप्रवर्तनात। सड्ंगत्यागात्सतो वृत्ते: षड्भिर्भक्ति: प्रसिध्यति।। (श्री उपदेशात्मक श्लोक 3) अनुवाद: - शुद्ध भक्ति को संपन्न करने में छह सिद्धांत अनुकूल होते हैं1) उत्साही बने रहना 2) निश्चय के साथ प्रयास करना 3) धैर्यवान होना 4) नियामक सिद्धांतों के अनुसार कर्म करना( यथा श्रवण कीर्तन तथा स्मरण करना) 5) अभक्तों की संगत छोड़ देना तथा 6) पूर्ववर्ती आचार्य के चरण चिन्हों पर चलना यह छह सिद्धांत निसंदेह शुद्ध भक्ति की पूर्ण सफलता के प्रति आश्वस्त करते हैं। न्निश्चयाध्दैर्यात् होना चाहिए। निश्चय पूर्ण होना चाहिये। हमें अपने अभ्यास, साधना को आगे बढ़ाना चाहिए। कार्तिक मास में साधना का विशेष महिमा है,फायदा हैं। कृष्ण-प्राप्ति हय याहा ह'ते कृष्ण प्राप्ति होगी। कृष्ण प्रेम प्राप्ति होंगी हरि हरि! आप सारे की परिक्रमा रिवाइंड कर रहे हो। कल परिक्रमा व्रजमंडल परिक्रमा की जय...! बैठे हो घर में और परिक्रमा करनी हैं वृंदावन में ऐसी सुविधा प्रभु की कृपा से हो चुकी हैं।उनके आभार मानीए जिन्होंने ऐसी व्यवस्था की हैं। घर बैठे बैठे आप लोग व्रज मंडल परिक्रमा कर सकते हो। इतना आसान करने के उपरांत भी अगर कोई परिक्रमा नहीं करें तो फिर और क्या किया जा सकता है? ईतना आसान कर दिया है हरि हरि! प्लीज जॉइन और औरों को भी परिक्रमा जाइन करवाइए हरि हरि! परिक्रमा मधुबन में थीं। मधुबन की जय...! मधुबन से परिक्रमा कल रास्ते में तालवन। तालवन की भी यात्रा हुई। कुमुदवन भी पार कर लिया और परिक्रमा पहुंच गई कुमुदवन और बहुलावन की सीमा पर कहो और फिर प्रात:काल में थे मधुवन में। मधुवन से परिक्रमा प्रारंभ और दो वनों कि यात्रा एक ही दिन में। वैसे कुछ एक दृष्टि से छोटे वन हैं। वैसे वह विशाल वन हैं महान वन हैं। अभी ऐसी परिस्थिति है ये लगता है कि दो छोटे वन है और हम पार कर लेते एक ही दिन में तालवन के बारे में तो आपने पढ़ा सुना होगा सुनाहीं होगा ताल वन में वैसे मैंने कल कहा ही था तालवन में वहा तो एक समय ताल वृक्ष ही ताल वृक्ष थें। ताल वन कैसा वन ताल वृक्षों का वन।ऐसे नाम दिए गए। कुमुद वन कुमुद के पुष्प जहा खिलते हैं। उस वन का नाम हुआ कुमुद वन। एक वन का नाम हुआ तालवन ऐसे नाम दिये गये। के काम्यवन खदिर वन ऐसे अलग अलग नाम पड़ गए। हरि हरि! भगवान ले गए अपने मित्रों को तालवन में और फल खिलाए आगे आप गधासुर ( धेनुका सुर) गधा ही था वह असुर अपने अलग-अलग रूप बना लेते हैं तो गधे के रुप में आया था वो असुर। बलराम ने वध किया हैं। हरि हरि! भगवान जब सभी स्थानोपर असुरों का वध करते हैं। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 8) अनुवाद: -भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | हमे उन लीलाओं का श्रवण जरूर करना चाहिए। उसका फायदा हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर समझाते है कि, उन असुरो में जो अवगुण था, दुर्गुण था। वैसा ही दुर्गुण अगर हममें है, होता ही हैं। हममें ऐसा छोटे अधिक मात्रा में दुर्गुण।यह गधा का, धेनुकासुर गधा एक तो मंद होता हैं। डल हेडेड(नीरस, बोदा)होता है और मैथुनआनंद लूटना चाहता हैं। ऐसा चाहने वाला गधा होता हैं। गधनी के पीछे दौड़ता हैं दो तो हो गए। एक तो मंद होता है गधा मंद होता है और कामवासना बड़ी तीव्र होती है गधे की और कठिन परिश्रम गधे जैसा। गधा बहुत परिश्रम करता हैं। उग्र कर्म करता रहता है या करवाता हैं। मालिक उसका उससे करवाता हैं। बहुत बड़े बोझ लादकर तो जिस व्यक्ति में ऐसी प्रवृत्ति है जो व्यक्ति गधे ही हैं। दिखते तो मनुष्य जैसे लेकिन वह गधे ही होते हैं। जब हम उस असुर के यहां गधे का वध किया बलराम ने तो वे गधे में जो अवगुण थे वही अवगुण हम में भी हैं। इस लीला का श्रवण करने से भगवान ने उस गधे का, धेनुकासुर का वध किया उस लीला का श्रवण करने से हम में जो भी अवगुण है उस गधे जैसे। अवगुण है या दुर्गुण हम में हैं। अनर्थ हम में हैं। हम लाभान्वित होते हैं। हम उन दुर्गुणों से दूर होते हैं। याद रखिये ब्रज मंडल में कई सारे असुरों का वध होने वाला है एक के बाद एक,एक के बाद एक कृष्णकेली याने कृष्ण कि लीला है उनका श्रवण जरूर करना चाहिए। यहां व्रजमंडल दर्शन किताब में भी आप इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हो और सूची भी हैं। ताल वन से कुमुदवन चले या फिर हम पहुंच गए शंतनु कुंड कुमुद वन से भी आगे वहा पडाव होता हैं। शंतनु बिहारी भगवान का नाम है वह टिला है, मंदिर हैं। राधा शंतनु बिहारी वहा विहार करने वाले रामने वाले भगवान को शंतनु बिहारी गए थे। आज से प्रस्थान परिक्रमा का होगा और राधा कुंड की जय...! परिक्रमा राधाकुंड पहुंचने वाली हैं। रास्ते में बहुला वन से परिक्रमा आगे बड़ेगी बहुला वन ।राधा कुंड तो वृंदावन में हैं। ये पाचवा वन वृंदावन। मधुवन, तालवन, कुमुदवन,बहुलावन चार हुएऔर पाचवा वन है वृंदावन। परिक्रमा बहुत समय के लिए वृंदावन में रहेगी फिर परिक्रमा काम्यवन जायेगी।खादिर वन कि परिक्रमा के उपरांत पुन्हा वृंदावन में परिक्रमा प्रवेश करेगी और फिर जमुना पार करके अगले वन भद्रवन में परिक्रमा प्रवेश करने वाली हैं।शंतनु कुंड से जब हम राधा कुंड की ओर जाते हैं तो एक खेचरी ग्राम आता है यह पूतना का गाँव हैं।पूतना के जन्म स्थान का दर्शन होगा वहां पर पूतना का स्मरण किया जाएगा। ये भगवान ने जो असुर वध प्रारंभ किया तो पूतना से प्रारंभ हुआ। भगवान जब छह: दिन के ही थे तब छठी का उत्सव मनाया जा रहा था उसी दिन भगवान ने पूतना का वध किया और इस पुतना के दो भाई भी थें। एक बकासुर और दूसरा अघासुर व्हाट ए फैमिली? मैं कहता हूंँ क्या परिवार हैं? बहन पूतना और भाई बकासुर यह बक बक बक करने वाला बकासुर का वध किये है भगवान खदिरवन में और अघासुर अघ मतलब पाप भी होता है तो पापी असुर किसका वध किए भगवान वृंदावन में एक सरपोली नाम का गांव भी हैं। सरपोली उसका नाम वज्रनाभ जी ने हीं दिया होगा भगवान के पपौत्र। वृंदावन का पुनः निर्माण इत्यादि की स्थापना कर रहे थें। वे नामकरण भी कर रहे थें। शांडिल्य ऋषि ने उनको आदेश दिया था। ऐसा कार्य वे करें। ब्रजमंडल के गौरव की पुनः स्थापना करें और अलग-अलग स्थलिओं का नामकरण करें वहां पे संपन्न हुई लिला के अनुसार यहां अघासुर का वध किए जब भगवान वत्सपाल थे और वहां जब भगवान बछड़ों को चराते थे। हम आगे बढ़ेंगे खेचरी ग्राम अब मतलब आकाश होता है खे मतलब आकाश में चरी मतलब विचरण आकाश मार्ग से भ्रमण या आकाश में विचरण करने वाली ऐसा भी शक्ति सामर्थ्य असुरों को प्राप्त होती है ऐसी सिद्धियां आकाश में विचरण कर सकते हैं ऐसी वाली थी ये पुतना इसलिए उसे खेचरी कहते हैं तो ऐसे इस खिचरी ग्राम के कुछ ही दूरी पर मयूर वन भी है मयूरवन यहां भगवान कई मयुरो के साथ नृत्य किए वैसे गोपियों के साथ रासक्रिडा करते हैं भगवान तो इस मयुर वन में असंख्य मयूर एकत्रित हुए और भगवान उनके साथ नृत्य किए थे। मयूर भी अपने नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। डांसिंग लाइक पीकॉक नृत्य कैसा हो? मयूर जैसा हो हरि हरि! उसी समय में भगवान कि प्रतियोगिता भी चल रही हैं। मयूर भी नाच रहे हैं। कृष्ण भी नाच रहें हैं।कृष्ण भी नटराज हैं। बेस्ट ऑफ एक्टर्स बेस्ट ऑफ डांसर्स नंबर वन है कृष्ण। नटवर नागर! मयूरो नें निवेदन किया कि अब आपकी बारी हैं।भगवान नाचे नाचे और नाचे नाचते रहे। सारे मयूर भगवान के नृत्य से प्रसन्न हुए।मयूर अपने नृत्य के लिए प्रसिद्ध है उन्होंने अपने नृत्य के पश्चात भगवान से निवेदन किया कि आप भी नृत्य करो। भगवान ने उन मयूरों के नृत्य के पश्चात अत्यंत अद्भुत नृत्य किया। इससे वे सभी मयूर अत्यंत प्रसन्न हुए और वे भगवान को कुछ उपहार देना चाहते थे। मयूरों के पास उपहार देने के लिए क्या होता है? उनके पास में सबसे सुंदर वस्तु है वह है उनके पंख। इसलिए वे मयूर जोर-जोर से अपने पंखों को हिलाने लगे और कुछ पंख नीचे गिर गए तो इस प्रकार भगवान ने उस मयूरपंख को उठाया और अपने सिर पर धारण किया और इस प्रकार भगवान बन गए मयूर पुच्छधारी कृष्ण। तत्पश्चात हम बहुला वन जाते हैं वहां बहुला गाय की लीला है आप उसे पढ़ सकते हैं और श्रवण कर सकते हैं। और वहां से हम राधाकुंड जाते हैं। तो आज का परिक्रमा का पड़ाव राधा कुंड के तट पर रहेगा तो आप सभी भी आज राधाकुंड पर रहोगे क्योंकि आप भी घर से यह परिक्रमा कर रहे हो। परिक्रमा करते समय आपको कुछ असुविधा भी होती है क्योंकि वहां पर घर जैसी व्यवस्था नहीं हो पाती परंतु यही तो तपस्या है। परिक्रमा करना एक तपस्या है। तपस्या करके ही हम सुख प्राप्त कर सकते हैं। नायक देह देहभाजां नृलोके कष्टान्कामानर्हते विड्भुजां ये। तपो दिव्यं पुत्रकामेष्टि येन सत्त्वम् शुध्द्येद्यस्माध्दह्यसौखयं त्वनन्तम्।। (श्रीमद्भागवतम् स्कंध 5 अध्याय 5 श्लोक 1) अनुवाद: - भगवान ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा "हे पुत्रों, इस संसार के समस्त देश धारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इंद्रियतृप्ति के लिए ही दिन रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कुकर- सूकर भी करते कर लेते हैं।मनुष्य को चाहिए कि भर्ती का दिव्य पद प्राप्त करने के के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्वत जीवन का आनंद मिलता है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला हैं। इस प्रकार परिक्रमा में जो तपस्या हम करते हैं उससे हम परम सुख को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान कहते हैं। यत्करोषि यदश्रासि यज्जुहोषि ददाति यत्। यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्।। (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 27) अनुवाद: - हे कुंतीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो अर्थात तुम जो कुछ खाते हो जो तपस्या करते हो वह मुझे अर्पण करो। परिक्रमा में हम जो तपस्या करते हैं यह हम भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करते हैं। राधा कुंड की जय...! अंग्रेजी में ऐसा कहा जाता है कि यदि आपको असुविधा नहीं हो रही है तो आपको लाभ नहीं होगा। तो आपको तपस्या करनी चाहिए जिससे आपको लाभ मिले। पर जब आप तपस्या करेंगे इस प्रकार तभी अंततोगत्वा आपका वृंदावन में प्रवेश होगा। राधा कुंड की महिमा अनंत है। कल हम राधा कुंड के विषय में बता रहे थे। रूप गोस्वामी ने बताया है कि ब्रज मंडल में सर्वोच्च स्थान राधा कुंड है। उससे ऊंचा और कोई स्थान नहीं है। सभी गोपियों में राधारानी श्रेष्ठ है राधा रानी से और कोई श्रेष्ठ नहीं है। सभी भावों तथा रसों में माधुर्य रस सर्वोपरी है। इसी राधा कुंड के तट पर भगवान की माधुर्य लीला संपन्न होती है। चारों और मंदिर है और मध्य में है राधा कुंड। वहां इस राधा कुंड के आसपास अष्ट सखियों के कुंज है। सुदेवी का कुंज , ललिता कुंज , विशाखा कुंज, चित्र सखी का कुंज और इस प्रकार अष्ट सखियों के कुंज है। तो वहां कुंज तथा कुंड दोनों है। वहां अलग-अलग कुंजों में अलग-अलग ऋतुएं निवास करती है। किसी एक कुंज में वर्षा ऋतु है तो दूसरे कुंज में शिशिर ऋतु है तीसरे कुंज में शरद ऋतु है और इस प्रकार सभी अलग-अलग कुंजो में अलग-अलग ऋतुएं निवास करती है। भगवान विविध प्रकार से यहां अपनी माधुर्य लीला संपन्न करते हैं। यहां भगवान झूले भी झूलते हैं। प्रतिदिन वहां झूलन यात्रा संपन्न होती है। यहां जलकेली भी होती है, यहां भगवान जलविहार करते हैं। राधा कुंड में भगवान स्नान करते हैं। यहां राधा रानी तथा गोपियां कृष्ण के साथ इस कुंड में स्नान करती है। इस प्रकार कई प्रकार के खेल तथा लीलाएं यहां संपन्न होती है। राधा कुंड में प्रतिदिन मध्याह्न के समय 10:30 बजे से लेकर 3:30 बजे तक दोपहर में यहां मध्याह्न लीला संपन्न होती है। भगवान की अष्टकालीय लीला में से जो मध्याह्न लीला है वह राधा कुंड में संपन्न होती है। वह लीला राधा कुंड में अथवा राधा कुंड के तट पर अथवा राधा कुंड के पास स्थित कुँजों में संपन्न होती है। राधा कुंड के तट पर हमारे षड गोस्वामी वृंद भी वहां निवास करते थे। रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधि भी वहां है। जब हम राधा कुंड पर निवास करते हैं तब 1 दिन की परिक्रमा हम राधा कुंड की करते हैं। जब हम राधा कुंड की परिक्रमा करते हैं तब वहां स्थित सारी लीला स्थलीओं का हमें दर्शन होता है। और हमें उन सभी लीला स्थलियों का वर्णन सुनने का अवसर प्राप्त होता है। राधा कुंड की जय...। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...!

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05 NOVEMBER 2020 Vrajmandal parikrama Day 6 Krishna's reciprocation to Peacocks & Bahula cow. Hare Krsna! Jai Śrī Rādhe! Devotees from 778 locations are Chanting with us. The numbers are dropping. This is not good. More people should join to get the benefit. We should be enthusiastic, determinant and patient. We have to increase our sādhana. This holy month of Kārtik is very auspicious and magnanimous to get Krsna prema, kṛṣṇa-prāpti hoy jāhā ha'te. You're all joining the Virtual Braja Mandal Parikrama sitting at home. Be thankful to those who have made this facility for all of us. If someone doesn't join even after the parikrama is made so easy then what to say? Keep joining the parikrama and let others also join. Well, yesterday the Parikrama started from Madhuban and crossed Tālavana and Kumudvana. And now it has reached the borders of Bahulāvana. It seems that these are small forests and we have crossed them in a single day but indeed they are great and powerful forests as they are a part of Vraja. First we crossed Tālavana, you all must have heard of Tālavana, a forest of Tāla trees. Similarly, Kumudvana is a forest of Kumud trees. The Lord took His friends to Tālavana and all have started eating the sweet juicy Tāla fruits. Then Gardhbasur, a demon who lived there in the form of a donkey, attacked them. He was killed and delivered by Lord Balarāma. paritrāṇāya sādhūnāṁ vināśāya ca duṣkṛtām dharma-saṁsthāpanārthāya sambhavāmi yuge yuge TRANSLATION To deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to reestablish the principles of religion, I Myself appear, millennium after millennium. (B.G. 4.8) We must hear the pastimes of the Lord killing the demons. It is beneficial for us. Śrīla Bhaktivinoda Thākura explains that every demon depicts some qualities which we should make sure that they are not in us. A donkey is dull headed, always longing for sexual pleasure and is over hard working. Most, if not all, of us have such bad qualities in us as well. We must pray to Lord Balarāma to free us of them. By hearing these pastimes, we can get free from such bad qualities. Daily Krsna and Balarāma would kill one or the other demon in Vraja. Therefore, you must listen to these different pastimes. You may also read the Braja Mandal Darshan book. Further the parikrama goes to Shāntanu Kunda. There the deity is Śrī Shāntanubihari. From there, the parikrama reaches Rādhā Kunda. Rādhā Kunda is in Vrindavan, the 5th forest. Vrindavan is the Largest of all 12 forests. Parikrama would stay in Vrindavan for some time and then proceed to Kāmavana, Khādirvana and then again Vrindavan. After crossing Yamuna, parikrama would enter Bhadravana. On the way to Rādhā Kunda, there's a village called Khechari grāma, a village of Putana. Krsna killed and delivered Putana when He was only 6 days old. Putana had two brothers, Bakāsura and Aghāsura. Bakāsura was killed in Khādirvana. Aghāsura was killed in Vrindavan, Agha means sinner. When Vajranābha, the great grandson of Śrī Krsna, was re-establishing the glorious places of Vraja on the instructions of Sage Shandilya, he named this village as Sarpoli where Aghāsura was killed. Lord killed Aghāsura when He was vatsapāla, Calf herder. Well, we are crossing this Khechari village of Putana. Khe means sky and Chari means one who travels. Therefore, One who travels through the sky routes is called Khechari. Further on the way, comes the Mayurvana. This forest has thousands of Peacocks. Peacocks are known for their beauty of dance. Krsna and His cowherd boy friends are dancing among the Peacocks. And then there is a competition between them. Krsna is Natavar-nāgar, best of actors and dancers. Everyone is enjoying so much. All the Peacocks were overwhelmed seeing Krsna dance so beautifully. They gifted Krsna with their feathers. Krsna wore those feathers on His head and since then He is known as Mayurpich dhari. Now the Parikrama moves further to Śrī Rādhā Kunda after Bahulāvana. The Parikrama shall stay here for next few days. Since you all are doing parikrama, therefore you must stay in Rādhā Kunda mentally. It may not be as comfortable as your home. But this austerity is penance. Doing parikrama is an austerity. nāyaṁ deho deha-bhājāṁ nṛloke kaṣṭān kāmān arhate viḍ-bhujāṁ ye tapo divyaṁ putrakā yena sattvaṁ śuddhyed yasmād brahma-saukhyaṁ tv anantam TRANSLATION Lord Ṛṣabhadeva told His sons: My dear boys, of all the living entities who have accepted material bodies in this world, one who has been awarded this human form should not work hard day and night simply for sense gratification, which is available even for dogs and hogs that eat stool. One should engage in penance and austerity to attain the divine position of devotional service. By such activity, one’s heart is purified, and when one attains this position, he attains eternal, blissful life, which is transcendental to material happiness and which continues forever. (ŚB 5.5.1) We can get unlimited and eternal happiness by performing austerity and doing parikrama is true austerity. yat karoṣi yad aśnāsi yaj juhoṣi dadāsi yat yat tapasyasi kaunteya tat kuruṣva mad-arpaṇam TRANSLATION Whatever you do, whatever you eat, whatever you offer or give away, and whatever austerities you perform – do that, O son of Kuntī, as an offering to Me. (B.G. 9.27) The Lord says, "Whatever austerity you may perform, offer it to Me." Therefore, Whatever austerity you are performing in parikrama, offer it to Krsna. Do it for the pleasure of Krsna. It is said that, 'No Pain No Gain'. Only if you have done some austerity, then you may get an entrance in Śrī Vrindavan. Śrīla Rupa Goswami explains that Rādhā Kunda is the topmost place in this universe. Radharani is the best among all the gopīs. In all the moods of devotion, the mood of conjugal love is the best and topmost. The conjugal love pastimes of the Lord happens in Rādhā Kunda. Therefore, Rādhā Kunda is considered to be the best and topmost place among all the places in the universes. All the prime 8 Gopīs have their own 8 Kunjas on the bank of Rādhā Kunda. Each Kunja has its own qualities, different flowers, different seasons. There is a swinging festival and water sporting daily. Krsna along with Radharani and other Gopīs play in the waters of Rādhā Kunda. From 10:30 am to 3:30 pm (madhyan kāla, one among ashtha kālas), is the afternoon pastimes of Radha Krishna. They spend this time at Rādhā Kunda. They reside in different Kunjas. The six Goswami's used to relish the pastimes there. Raghunātha Dāsa Goswami has his samadhi there on the bank of Rādhā Kunda. Tomorrow will be Rādhā Kunda Parikrama. You will get to know more in detail then. We shall stop here now. Rādhā Kunda ki jai! Gaura premanande Hari Hari bol! There is a small announcement. We all are literally in Vrindavan. We are virtually doing the Parikrama and are also getting to hear this from the transcendental mouth of Guru Maharaj. Indeed we all are in Vrindavan but as you are all already aware that after the WHNF, we had announced that in this holy month of Kārtik, we will be making videos of people offering deepdaan and chanting the Mahā-mantra. This is a reminder for this service of making deep daan videos. Tell us your Kārtika oaths. Also after the polling for the timings of Braja Mandal Parikrama video, it has been finalised that the videos shall be released at 12 noon. There are many activities that you can do or have already pledged and are doing. You can share it here or 'Chant japa with Lokanath Swami' Facebook page. You can maintain a Kārtik Sādhana Card also, mentioning the number of videos made, whether you attended Braja Mandal Parikrama, number of rounds chanted, etc. Those who will join at least 25 days of parikrama, will get a certificate of attending parikrama. Hare Krsna!

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