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*जप चर्चा*,
*पंढरपुर धाम*,
*20 जून 2021*
हरि हरि।
गौरंग, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।
हमारे साथ 785 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।आज का दिन विशेष है। आज रविवार है। सूर्य का दिन है। रवि मतलब सूर्य। आप जानते हो कि आज दिन में मेगा वेबीनार होगा। तो यह भी आज संपन्न होगा इसलिए आज एक विशेष दिन बन रहा है। इस महान दिन बनने का और भी कुछ कारण है। आज बलदेव विद्याभूषण प्रभु का तिरोभाव महोत्सव की जय। आज गंगा माता गोस्वामिनी का आविर्भाव दिवस या जन्मदिवस भी है।
आइए हम थोड़ा संस्मरण करते हैं। यह दोनों ही गौडीय वैष्णव संप्रदाय के आचार्य रहे। बलदेव विद्याभूषण वेदांत, गौडीय वेदांत आचार्य कहलाते थे। गंगा माता गोस्वामिनी भी आचार्या थी। हम भाग्यवान हैं कि हम उन्हीं की परंपरा से आज या कल जब भी हम जुड़े हैं। यह हमारा संबंध उनकी परंपरा से, श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभु की परंपरा से और गंगा माता गोस्वामिनी की परंपरा से हम जुड़े हैं। यह भाग्य की बात है या कहो उन्होंने हमको जोड़ा। उनकी भी कुछ भूमिका होगी। जो हम गौडीय संप्रदाय से जुड़े हैं। इस्कॉन से जुड़े हैं और इस्कॉन के वर्तमान वक्ता, आचार्य और गुरुवृंदो के साथ हम जुड़े हैं। यह उन्हीं की ही कृपा प्रसाद है। हरि हरि। बलदेव विद्याभूषण, नाम भी सुंदर है। एक तो बलदेव और विद्याभूषण।
*तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम् ।*
*अजातशत्रवः शान्ताः साधवः साधुभूषणाः ॥ २१ ॥*
(श्रीमद भगवतम 3.25.21)
तात्पर्य:
साधु के लक्षण हैं कि वह सहनशील, दयालु तथा समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता, वह शान्त रहता है, वह शास्त्रों का पालन करता है
और उसके सारे गुण अलौकिक होते हैं।
*साधवः साधुभूषणाः* साधु के अपने आभूषण होते हैं जिससे वे सुशोभित होते हैं। बलदेव विद्याभूषण, विद्या ही उनका आभूषण रहा। वह प्रकांड विद्वान रहे। जन्म की दृष्टि से देखा जाए, तो रेमुना में जन्मे थे। रेमुना के शिरचुर गोपीनाथ का मंदिर जहां विद्यमान है, वही उनका जन्म हुआ था और फिर वहां से वृंदावन पहुंच जाते हैं और विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के चरण आश्रित बन जाते हैं। फिर विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर से ही शिक्षित और दीक्षित भी होते हैं। यही बलदेव विद्याभूषण गोविंद भाष्य लिखने वाले हैं। वेदांत सूत्र के ऊपर उन्होंने भाष्य लिखा। उन्होंने क्यों और किस लिए लिखा? इसके पीछे एक इतिहास है। विशेष परिस्थिति उत्पन्न हुई थी। उन दिनों में यह लगभग 300 वर्ष पूर्व की बात है। वैसे सन 1706 में जयपुर के राजा का संदेश आता है या आमंत्रण आता है। विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के लिए आप जयपुर पधारिए, क्यों? क्योंकि जयपुर में गौडीय संप्रदाय के विग्रह है। गौडीय संप्रदाय के आचार्यों द्वारा सेवित विग्रह एक समय वृंदावन में थे। उनको जयपुर में स्थानांतरित किया गया था। उसमें राधा गोविंद, राधा दामोदर, राधा विनोद जैसे कई विग्रह राधा श्यामसुंदर, राधा गोपीनाथ है।
हमारे गौडीय के आचार्यों के विग्रह जयपुर में पहुंचे थे। तब जयपुर बना ही था, नव वृंदावन कहो। किंतु तब जयपुर में श्री संप्रदाय के रामानंदी प्रचारक पहुंचे थे और वह गौडीय वैष्णव आचार्यों को या भक्तों को विग्रह की आराधना नहीं करने दे रहे थे। कुछ विघ्न डाल रहे थे। वह कह रहे थे कि आपको अधिकार नहीं है, विग्रह की आराधना का अधिकार नहीं है क्योंकि आपका संप्रदाय जो है गौडीय संप्रदाय वह प्रमाणिक नहीं है, क्यों? आपका वेदांत सूत्र पर भाष्य कहां है? हमारा तो देखिए भाष्य है। हम रामानुजाचार्य संप्रदाय के हैं, श्री संप्रदाय के हैं। यह हमारा भाष्य है।
हमारा भाष्य रामानुज द्वारा लिखा हुआ है और मध्वाचार्य का भाष्य है और विष्णु स्वामी द्वारा लिखा हुआ वेदांत सूत्र का भाष्य है और निंबार्क द्वारा लिखा हुआ भाष्य है। कोई द्वैत सिद्धांत वाला है और कोई विशिष्ट अद्वैत सिद्धांत वाला है या द्वैत अद्वैत सिद्धांत वाला है। ऐसे उनके सिद्धांतों के नाम है। लेकिन आपका वेदांत सूत्र का भाष्य कहां है? इसीलिए आपको विग्रह की आराधना का अधिकार नहीं है इसलिए आप प्रमाणिक ही नहीं हो। राजा ने ही आमंत्रण भेजा था ,विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर को आप आइए और इस परिस्थिति को संभालिए। तो वह वृद्ध अवस्था को प्राप्त थे। उनके जाने की संभावना नहीं थी। तो उन्होंने बलदेव विद्याभूषण को जयपुर भेजा। जयपुर में बलदेव विद्याभूषण वेदांत सूत्र पर भाष्य लिखें। वे थोड़ी लिखें वैसे गोविंद ने, जो राधा गोविंद गौडीय वैष्णव के राधा गोविंद या रूप गोस्वामी के द्वारा सेवित राधा गोविंद। यह उन दिनों में रामानदी, राधा गोविंद को एक दूसरे से अलग किए थे। गोविंद के कहीं एक स्थान पर आराधना हो रही थी। तो राधा रानी की कोई दूसरे स्थान पर आराधना हो रही थी।
*राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ ।*
*चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥५५ ॥*
(आदि 1.5)
अनुवाद:
श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं ।
यह जो भाव है, राधा कृष्ण का घनिष्ट और माधुर्य संबंध है। यह ऊंचे भाव जो समझने का गौडीय वैष्णव को ही अधिकार है। उनके नासमझी के कारण राधा और गोविंद को अलग किए थे। बलदेव विद्याभूषण ने जयपुर में खूब प्रार्थना की राधा गोविंद को, खूब ध्यान किया। हरि हरि। खूब निवेदन किया ताकि कुछ उलझने सुलझ सके। गौडीय संप्रदाय के भक्तों के समक्ष जो समस्या खड़ी की गई थी, उसका कुछ उपाय हो। गोविंद गोविंद गोविंद गोविंद। फिर गोविंद ने दिव्य ज्ञान हृदय प्रकाशित किया। बलदेव विद्याभूषण को हृदय प्रांगण में वेदांत सूत्र के भाष्य को प्रकाशित किया। श्री गोविंद के विग्रह श्रुतलेख दे रहे थे और बलदेव विद्याभूषण लिखते जा रहे थे। जैसे श्रील व्यास देव कह रहे थे और गणेश जी लिखते जा रहे थे। वैसे ही यहां बलदेव विद्याभूषण लिखें। जैसे-जैसे प्रेरणा और स्फूर्ति भगवान दे रहे थे। तो उन्होंने वेदांत सूत्र एक विशेष ग्रंथ है। इसमें सूत्र होते हैं। इसका नाम ही है सूत्र। सूत्र मतलब सूत्र, बड़ा ही संक्षिप्त होता है।
*ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ : स्वराद तेने ब्रह्म हदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः ।*
*तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥१ ॥*
(श्रीमद भगवतम 1.1.1)
अनुवाद:
हे प्रभु , हे वसुदेव - पुत्र श्रीकृष्ण , हे सर्वव्यापी भगवान , मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ । मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता है , क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति , पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं । वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र है क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं । उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया । उन्हीं के कारण बड़े - बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं , जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है । उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रह्माण्ड , जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं , वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं । अत : मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ , जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं । मैं उनका ध्यान करता हूँ , क्योंकि वे ही परम सत्य हैं।
*जन्माद्यस्य यत:* एक सूत्र हो गया। वेदांत सूत्र में ऐसे 550 सूत्र हैं। वेदांत सूत्र में थोड़ा सावधान रहें। यह देखिए आपको वेदांत सूत्र दिखाते हैं, यह वेदांत सूत्र इतना महान है। जितने सारे ग्रंथ हैं, शास्त्र हैं उसमें वेदांत का नाम है। वेदांत जो उपनिषद का सार है कहो। हरि हरि। वेदों का सार है उपनिषद। उपनिषद का सार है, वेदों का अंत है। वेदांत सूत्र है। छोटे-छोटे सूत्र हैं। *अथातो ब्रह्म जिज्ञासा* आपने सुना होगा। वह वेदांत सूत्र ही है। पहला वेदांत सूत्र तो यही है, *अथातो ब्रह्म जिज्ञासा*। *जन्माद्यस्य यत:* द्वितीय है।
*शास्त्र योनित:* तृतीय है, कुछ अक्षर है। उसमें कोडिंग भाषा है इसलिए उसको समझने में कठिन होते हैं। यह सूत्र और भी कई सारे सूत्र हैं। नारद भक्ति सूत्र है। शांडिल्य सूत्र है। ऐसे कई सारे सूत्र हैं नामक ग्रंथ है। यह श्रील व्यास देव की रचना वेदांत सूत्र है। ऐसे गौडीय वैष्णव वेदांत सूत्र पर भाष्य नहीं लिख रहे थे। यह समझ के साथ कि वेदांत सूत्र भाष्य लिखा हुआ है। *भाष्यो अयम ब्रह्मसूत्रानाम* ऐसा पद्म पुराण में उल्लेख है। ग्रंथ राज श्रीमद्भागवत वेदांत सूत्र का भाष्य है। ऐसा पद्म पुराण में लिखा है और इसको सभी स्वीकार करते हैं। जिसको श्रील प्रभुपाद कहते थे कि यह वेदांत सूत्र का प्राकृतिक भाष्य है। तो जिन्होंने ब्रह्म सूत्र या व्यास सूत्र या वेदांत सूत्र सुना है, इस सूत्र के अलग-अलग नाम है। इसको श्रील व्यासदेव लिखे। उन्होंने ही इस वेदांत सूत्र समझने में कठिन होते हैं। सूत्र रूप में होते है।
बड़े सूक्ष्म और संक्षिप्त होते हैं। उसको थोड़ा खोल कर उसकी स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है। उसका खुलासा करके आए सुनाने की आवश्यकता होती है। श्रील व्यास देव ने वह स्पष्टीकरण दिया। विस्तार से उन सूत्रों को समझाया। कौन से ग्रंथ में? वह ग्रंथ है ग्रंथ राज श्रीमद् भागवत। वेदांत सूत्र का भाष्य श्री ग्रंथ राज श्रीमद् भागवत हुआ। गौडीय वैष्णव समझ रहे थे कि ग्रंथ राज श्रीमद्भागवत पहले से ही वेदांत सूत्र का भाष्य है। तो उन रामानंदियों के समाधान के लिए है या और कोई पूछता है, कहां है आपका भाष्य? तो बलदेव विद्याभूषण भाष्य लिखे। लिखे क्या गोविंद ही लिखवाए उनसे। तो उस भाष्य का नाम फिर गोविंद भाष्य दिया। तो बलदेव विद्याभूषण द्वारा रचित जो वेदांत सूत्र का भाष्य बना, जो गौडीय भाष्य बना गोविंद भाष्य है। बड़ा प्रसिद्ध भाष्य है और इसी को अचिंत्य भेदा भेद तत्त्व कहते है। जिसे सिद्ध किया है कि गोविंद भाष्य में अचिंत्य भेदा भेद का सिद्धांत पेश करा है।