Hindi

26 जुलाई 2019 जप कांफ्रेंस में आप जिस प्रकार ध्यान पूर्वक जप करने का प्रयास कर रहे हैं इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। जब भी आप अपना जप प्रारंभ करते हैं उस समय आपको यह सोचना चाहिए कि आज इस समय हम जप करने बैठे हैं तो केवल हम जप ही करेंगे। अभी मैं केवल भगवान के विषय में चिंतन करूंगा आज मैं जब जप करने बैठा मुझे यह विचार आया कि आज जब मैं जप कर रहा हूं तो केवल मैं जप करूं और इन नामों को सुनू। जब मैं जप करूंगा तब मैं भगवान के विषय में और उनके भक्तों के विषय में चिंतन करूंगा यह एक उत्तम विचार है और इन विचारों को हमें जप करते समय ध्यान रखना चाहिए कि जब मैं जप कर रहा हूं तो मैं भगवान के इन पवित्र नाम का श्रवण करूंगा और इस महामंत्र के जिन नामों का में श्रवण कर रहा हूं, उनका चिंतन करूंगा। हरे कृष्ण महामंत्र का क्या अर्थ है इसमें हरे कौन है कृष्ण कौन है इसको सुनकर समझ कर जब मैं जप कर रहा हूं यह नाम जप अर्थपूर्ण है और यह नाम अर्थ हीन नहीं है। वे नाम अर्थ पूर्ण हैं इस प्रकार इस विचार के साथ जप करना उत्तम है। इस प्रकार जब हम जप करते हैं तब हमें दृढ़ निश्चय के साथ में यह प्रयास करना चाहिए। जिस समय हम जप कर रहे हैं उस समय भगवान का श्रवण और स्मरण करें जब आप कृष्ण कहते हैं तो आप कृष्ण का श्रवण करें और उसी समय आप कृष्ण का स्मरण करें। जैसा कि हम कहते हैं कि ध्यान पूर्वक जप कीजिए, सावधानीपूर्वक जप कीजिए इसका अर्थ यही है कि आप सचेत रहें और ध्यान के साथ में आप अपना जप करें आप में से कुछ भक्त जप करते समय बीच में सो रहे थे। यह ध्यान पूर्वक जप नहीं है ऐसा प्रतीत हो रहा था कि आप अत्यंत सावधानी के साथ में ध्यान लगाए हुए हैं परंतु वास्तव में ऐसा नहीं था आप अंधकार में थे यहां तक कि आप जप का श्रवण नहीं कर रहे थे, ऐसा नहीं कि आप जप का श्रवण नहीं कर रहे थे वास्तव में तो आप जप ही नहीं कर रहे थे क्योंकि आप उस समय सो रहे थे। आप स्वयं को उठाने का प्रयास भी सही ढंग से नहीं कर पा रहे थे, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बीच-बीच में लगभग एक-एक दो-दो मिनट के पश्चात आप अपने को उठा रहे थे और आप बैठे बैठे सो रहे थे यह उचित नहीं है आपको प्रत्येक क्षण सचेत रहना चाहिए, क्या मैं जगा हुआ हूं ? क्या मैं ध्यान पूर्वक जप कर रहा हूं ? यह प्रयास प्रत्येक क्षण होना चाहिए जिससे हम सावधानी के साथ जप कर सके इस प्रकार हम जप करते समय यदि बीच मे सो जाते हैं अथवा जब हम जप नहीं कर रहे हैं श्रवण नहीं कर रहे हैं यह भी एक प्रकार का व्यवधान है। जप में एक अन्य प्रकार भी है यदि जगे हुए हम जप कर रहे हैं परंतु हम श्रवण नहीं कर रहे हैं, तो यह होता है ऑटोमेटिकली हमारा जप चलता है परंतु हम उसका श्रवण नहीं करते हैं हम अपना ध्यान पूर्वक जप नहीं करते हैं हमारा मन इधर-उधर भटकता रहता है। इस प्रकार से हम जो कह रहे हैं उसका श्रवण नहीं करते हैं हमारा मन उस अवस्था में सचेत नहीं रह पाता है। हरे कृष्ण महामंत्र के अलावा अन्य किसी और बातों में लगा रहता है इस प्रकार से जप दो प्रकार का है: 1. असावधानीपूर्वक जप करना जब हम वास्तव में सो जाते हैं तो उस अवस्था में जप नहीं करते हैं तो श्रवण की कोई बात ही नहीं है 2. जागृत अवस्था जब हम जप करते हैं परंतु हमारा मन अन्य विचारों से भरा हुआ है, उस समय आप जप करते हैं परंतु आप श्रवण नहीं करते हैं। ऐसा हो सकता है आप कृष्ण के अतिरिक्त आप माया का श्रवण कर रहे हो अथवा अन्य किसी विचारों का चिंतन कर रहे हो। इस प्रकार से यह दो प्रकार है असावधानीपूर्वक जप करने का आपने सुना होगा जीव जागो जीव जागो गोरा चांद बोले ।श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का यह भजन अत्यंत अर्थ पूर्ण है, आपने यह भजन सुना होगा इसमें भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं जीव जागो जीव जागो इसका अनुवाद इस प्रकार से है सोई हुई आत्मा अब तुम उठो क्योंकि गोरा चांद बोले भगवान चैतन्य महाप्रभु गोरा चंद्रा अब आपको बुला रहे हैं। ए सोई हुई आत्मा अब तुम उठो तो इस प्रकार से यह आत्मा को उठाता है इस प्रकार से भगवान गोरा चंद्रा आत्मा को बुलाते हैं कि हे आत्मा अब तुम उठो यह भजन एक प्रकार से हमें सचेत करने के लिए हमें उठाने के ऐ लिए कॉल के समान है। इसमें प्रथम अवस्था यह है अपने शरीर को उठाइए, अतः इस प्रकार आप कहते हैं कि हे शरीर अब तुम उठो जब शरीर निद्रा ग्रस्त है उस समय इसका अर्थ है कि कोई आपके दरवाजे पर खटखटाता है। हे प्रभु आप उठिए अब जपा कॉन्फ्रेंस का समय हो गया है आप उठिए और जप कीजिए और इस प्रकार से इस शरीर को उठाना है। जहां आप शरीर जागो कहते हैं जब यह शरीर उठ जाता है, तब आप अपनी जपमाला लेकर अपना जप करने बैठते हैं तो यह एक प्रकार की जागृत अवस्था है तब आप निंद्रा ग्रस्त नहीं हैं। परंतु यहां पर भी हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम सोए नहीं और दूसरी अवस्था यह है अब शरीर उठ चुका है तो अब हमें मन को जगाना है मन को हमें जागृत करना है, हो सकता है कि शरीर जगा रहे और मन अभी भी सोया हुआ हो तो इस अवस्था में होता है कि शरीर जगा हुआ हो और मन सोया हुआ हो तब आप जप तो करते हैं परंतु उसका श्रवण नहीं करते। मन अन्य विचारों से आवृत रहता है और वह इस महामंत्र को सुन नहीं पाता है। अंग्रेजी में ऐसा कहा जाता है कि एक बधिर व्यक्ति है जिसे कुछ सुनाई नहीं देता और यदि आप उससे कुछ कहे उसे समझ नहीं आएगा की उस से क्या कहा है। हमारा मुंह निरंतर हरे कृष्ण महामंत्र का जप करता रहता है परंतु हमारा मन उस बधिर व्यक्ति के कान के समान है जहां वह कुछ सुन नहीं रहा है, वह इधर उधर भटक रहा है। इस प्रकार हमें अपने मन को जागृत करना चाहिए, जब हम जप कर रहे हैं तो मन को उठाना चाहिए और इसमें हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण करना चाहिए। उसे कहना चाहिए कि जब मैं कृष्ण कह रहा हूं तब तुम कृष्ण का श्रवण करो और कृष्ण का चिंतन करो इस प्रकार से शरीर और मन को जगाने की दो अवस्थाएं हैं: पहली शरीर को जगाना और दूसरी अवस्था मन को जगाने की इस प्रकार आप मन को जगा कर रखिए उसे सचेत रखिए। जागृत अवस्था में रखे जिससे वह हरि नाम का श्रवण और चिंतन कर सके। मन के तीन प्रमुख कार्य होते हैं थिंकिंग, फीलिंग एंड विलिंग। जहाँ मन सबसे पहले सोचता है चिंतन करता है तत्पश्चात में फीलिंग करता है और वे उसके पश्चात भगवान की जो विल है जो इच्छा है वह कार्य करता है। कार्य पूर्ण करने के लिए मन को सदैव आप जागृत अवस्था में रखिए। इस प्रकार से हम इन बातों को पुनः दोहरा रहे हैं परंतु कभी-कभी यह दोहराना रिपीटेशन आवश्यक हो जाता है। हमें हमारे मन का परीक्षण करना चाहिए इस पर ध्यान रखना चाहिए तो वह कौन है जो हमारे इस मन का ध्यान रखेगा, मन का परीक्षण करेगा। वह बुद्धि होती है जो मन पर कंट्रोल रखती है और इसका परीक्षण करती है बुद्धि मन को देखती है कि यह मन अभी क्या कर रहा है, मन श्रवण कर रहा है, क्या हमारा मन इधर-उधर भटक तो नहीं रहा है इस प्रकार से बुद्धि मन का परीक्षण करती है। यदि हमारा मन इधर उधर भटक रहा है तो वहां से पुनः खींचकर जप पर लाकर उसको स्थिर करती है। इस प्रकार से आप जप करते हैं परंतु आप जप करते हुए श्रवण नहीं करते हैं, इसके फलस्वरूप आपको भगवान का चिंतन नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा कहते हैं श्रवणम,कीर्तनम,विष्णु स्मरनम जो श्रवण अथवा कीर्तन है उसका परिणाम होता है विष्णु स्मरणम । यदि आपका मन जब-जप नहीं कर रहा है तो उस अवस्था में आप कीर्तन तो करते हैं। आप हरे कृष्ण महामंत्र जप करते हैं परंतु आपका मन अन्य कई स्थान पर होने के कारण उसका श्रवण नहीं करता क्योंकि कीर्तन हो रहा है परंतु श्रवण नहीं हो रहा है इस कारण से विष्णु स्मरण नहीं होता है, मन अन्य कहीं व्यस्त रहता है, तब हमारी तीव्र बुद्धि (जो आध्यात्मिक बुद्धि है) जो भगवत प्रदत बुद्धि है उसका प्रयोग करके यह अवलोकन करना चाहिए कि हमारा मन कहां है, कहीं हमारा मन शॉपिंग मॉल, रसोई घर में तो नहीं यह ध्यान रखना चाहिए और मन जिस भी स्थान पर गया हुआ हो वहां से पुनः खींचकर महामंत्र के श्रवण पर टिकाना चाहिए। हो सकता है कि हमारे होठ तो जप कर रहे हो परंतु मन अन्य कहीं हो। इस प्रकार उस अवस्था में हम श्रवण नहीं करते हैं बुद्धि का यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण कार्य है। बुद्धि भगवान द्वारा प्रदान किया हुआ एक महत्वपूर्ण अंग है और मन भी एक महत्वपूर्ण अंग है जो भगवान ने दिया है। परंतु बुद्धि मन को कंट्रोल करती है इस प्रकार से जप करते समय विशेष रूप से हमें हमारी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए और इसके द्वारा हमें हमारे मन पर कंट्रोल करना चाहिए। उसे श्रवण पर केंद्रित करना चाहिए, अभी हमने जो कहा है यह साधन भक्ति है, जहां हम साधन भक्ति के अंतर्गत प्रतिदिन हमारी नियमित संख्या में जप करते हैं। जैसा कि बताया गया है ध्यान पूर्वक जप का परिणाम होता है भगवान स्मरण और यह एक ही दिन में नहीं होगा इसके लिए आपको अभ्यास करना चाहिए। ऐसा नहीं हो जब आप जप करने के लिए बैठे तो आप बीच-बीच में सो रहे हैं अथवा कभी-कभी स्वयं पुनः उठ रहे हैं और वापस से जप कर रहे हैं। यह अवस्था भी नहीं होनी चाहिए इसके साथ साथ ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप जगे हुए हैं जप कर रहे, हैं परंतु उसका श्रवण नहीं कर रहे हैं। हमें अपने उपकरण अथवा औजार की धार को तेज करना होगा, इन्हें हमें तीव्र बनाना होगा। तीव्र बुद्धि भी एक प्रकार से उपकरण है अथवा औजार है अथवा आप अपनी बुद्धि को तीव्र बनाइए। प्रतिदिन हमें इसकी धार को तेज करना चाहिए और भगवान से हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें वह बुद्धि प्रदान करें। इस प्रकार से जब आपकी बुद्धि तीव्र होगी तब आप बुद्धिमान होंगे, तब आप बुद्धि के द्वारा ध्यान पूर्वक श्रवण कर सकते हैं क्योंकि वह मन को कंट्रोल करेगी। जो आपकी अन्य आध्यात्मिक सेवाएं हैं उन्हें भी ठीक प्रकार से संपन्न कर पाएंगे और जब यह सभी कार्य बुद्धि के निरीक्षण में होंगे तो ऐसा कहा जाता है जेई कृष्ण भजे सेई बडो चतुर जो भगवान श्री कृष्ण का भजन करता है वास्तव में वही चतुर अथवा बुद्धिमान है। आपको भी इस प्रकार बुद्धिमान होना चाहिए जहां आप ध्यान पूर्वक, भक्ति पूर्वक प्रार्थना करते हुए भगवान के नाम का जप कर सके और चिंतन कर सके। हमें भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हम सभी को बुद्धि प्रदान करें, जिससे हम दिन प्रतिदिन और अधिक ध्यान पूर्वक जप कर सके तथा यह भी महत्वपूर्ण है साथ ही साथ अपराधों से बचना चाहिए। जिसके पास पर्याप्त बुद्धि नहीं है वह अपराध करेगा परंतु जो बुद्धिमान है जिसकी बुद्धि sharp है, तीव्र है वे अपराधों से बचा रहेगा और दिन प्रतिदिन ध्यान पूर्वक जप करता रहेगा। कुछ ही मिनटों पहले इस जप कॉन्फ्रेंस में जो भक्त जप कर रहे हैं, उनकी संख्या 600 से कुछ अधिक थी यह अच्छा स्कोर है। इसके लिए हम प्रसन्न है और यह जप के अंत के समय लगभग 650 तक पहुंच गया। ध्यान पूर्वक जप करते रहिए इसके विषय में चिंतन करते रहिए और भविष्य में इसके ऊपर फिर कभी चर्चा करेंगे। हम इस जप स्तर को यहीं विराम देते हैं, कल पुनःआपके साथ जप करेंगे। हरे कृष्ण

English

26th July 2019 I will only HEAR as I CHANT Hare Krishna, Hare Krishna! I wish you all well with your endeavor to chant with attention during this japa conference. So, ‘Hare Krishna Hare Krishna’ so, when you begin chanting, you have to ''Now, I am only going to chant’ thought like that. I was also thinking ‘I will only hear chanting, as I am now sitting and chanting during this session’. I want to only hear '' Hare Krishna, Hare Krishna" chanting, nothing else. And, then I also want to only think of Sri Krishna. Of course, you have to think of Sri Krishna’s devotees and like that. So, I had this thought at the beginning of chanting session this morning. I thought this is a good thought or this could be the thought every time as we begin chanting. ‘Now I am only going to hear ''Hare Krishna, Hare Krishna" and as I hear, I chant and hear, and I am going to only think in relationship with what am I hearing’. What am I hearing? I am hearing '' Hare Krishna, Hare Krishna.” What does that mean, Hare Krishna Hare Krishna? So, there are meanings of ‘Hare’ and meaning of ‘Krishna’. So, these names are meaningful. So, we should begin our session of chanting like that; with a thought like that. Some kind of determination like that. So Gauranga, so we have to endeavor with great determination throughout our chanting session, our chanting time period, to make sure we are thinking. We are hearing Krishna and then we are thinking about Krishna and we have to make sure we are doing this as we say ‘Savadhani purvak japa, dhyana purvak japa’ chanting full of concentration, meditation. Some of you are sleeping also, I was noticing. So that wasn't with attention. You are looking like you are 'concentrating', or 'meditating', 'focused', but you are full of darkness, ignorance that you are focusing on. And you are not even aware that you are not hearing; of course, you are also not chanting as you are sleeping and you are not making endeavor also, to wake you up. Or you are making some endeavor from time to time after every one minute. Probably you are realizing that you are sleeping, sitting and sleeping, and chanting, and making some endeavor. But that endeavor has to be at every moment, every second, or fraction of a second. "Am I up? Am I awake? Am I hearing?" So, if we are sleeping from time to time or dozing off, that means we are not chanting, we are not hearing. But again, even if we are not sleeping, we are chanting. But then again, we may still not be hearing. We are doing "Hare Krishna Hare Krishna" and the chanting is going on and we may not be aware that I am sitting and chanting Hare Krishna. Some chanting is going on automatically as a routine, but we may not be hearing what we are chanting, so that is also another kind of sleeping. Our mind is asleep or our mind is busy thinking something, our mind is going elsewhere. Again, we are not listening, not hearing ‘Hare Krishna’. So, in this case, we are chanting but we are not attentive, our mind is not attentive. Our mind is busy elsewhere thinking of whatever. So, there are two levels of not hearing, one is; you are sleeping, so you are not chanting and then are not hearing. That is one. The other one is, you are not sleeping, you are awake. You are chanting, but your mind is preoccupied with something else. Some other thoughts and then you are not hearing your chanting. Chanting is going on, but you are not hearing Krishna, you are hearing something else, or you are hearing maya; or thinking or contemplating on some objects of senses, or a million things mind could think of other than Krishna. So many topics. Sahastrashaha. Take note of this. Two kinds of inattentiveness; while really sleeping and the other one is not sleeping but still not hearing; not being attentive because your mind is elsewhere. So, jīv jāgo, jīv jāgo, gauracānda bole kota nidrā jāo māyā-piśācīra kole You have heard this Bhaktivinoda Thakur’s song. Of course, that’s why he wrote this meaningful, thoughtful song. Also, what is Bhaktivinoda Thakur talking here in this song? He is saying, jīv jāgo, jīv jāgo Wake up sleeping soul, Wake up sleeping soul. Gauracānda bole Gauranga is calling, "Oh soul, wake up". So, here Gaurachandra is calling the soul, atma. So, there are two kinds of wake-up call. So first we have to wake our body up. 'Wake up body, wake up body, oh body wake up’. There is an alarm clock that rings, or someone knocks at the door, "Prabhu, time to get up. Time for japa session. Please get up, please get up". So, there's one waking up of the body. That’s nice. But then again, we sit down for chanting, and again we sleep. So, again we have to wake our body up. 'Wake up body, wake up body'. Okay, so now we are woken up, we are not in bed. We are in sitting posture with japa mala in hand and we have to make sure we are not sleeping again. So that waking up we have to do and so waking up body, waking up mind also. We have to wake up our mind. Mind maybe sleeping or mind may be just ignoring the call of Gauranga. Our mind may be just ignoring, ‘Hare Krishna Hare Krishna’ is going on, but as they say in English, it is falling on the deaf ear. Deaf person, whatever you say he just doesn’t listen, doesn't understand, because cannot understand, cannot hear, cannot listen. He is deaf. Our mind could also be deaf like that. Mouth is saying "Hare Krishna Hare Krishna." But that "Hare Krishna" utterance is falling on the deaf ears of mind. Mind is not hearing. Mind is sleeping or mind is busy or preoccupied. So, we have to wake up the mind also. Make mind aware, "This is the time, chanting is happening, this is chanting session, I am saying 'Hare Krishna Hare Krishna', so you take note of this, oh mind, and think of Krishna, oh mind." So, this waking up is at least at these two levels. Waking up the body, we have to make sure, body is awake. While we are sitting and chanting, we are not sleeping. And again, our mind is not sleeping, mind is not ignoring chanting, on the contrary, mind is absorbing, mind is absorbed in hearing and chanting. Mind is taking note and it is getting registered, this chanting, in the mind, or on the mind. And if that happens and we are thinking it will happen. Thinking, Feeling, Willing; these are the functions of the mind. If the mind has heard Hare Krishna, then mind will begin thinking and there will be some feelings and there will be willing. ''Krishna willing", ''Krishna's will", will be executed or you will think of Krishna. Hare Krishna, Gauranga! Anyway, we are repeating. Repetition is also sometimes necessary. We have to watch our mind. And who will watch the mind? The intelligence will watch the mind. Intelligence has to keep an eye on the mind. Is my mind hearing now or mind is not hearing? Or mind is gone elsewhere, gone here, gone there. Intelligence has to instruct the mind, drag the mind back and focus again or get mind busy again with hearing. Mouth is chanting, but you may not be hearing. Chanting is happening, but hearing is not happening, because your mind is not into hearing. śravaṇaṁ kīrtanaṁ, and then viṣṇoḥ smaraṇaṁ (SB 7.5.23) Remembrance is outcome or consequence of śravaṇaṁ kīrtanaṁ. So, while chanting, maybe our mouthis busy chanting. Maybe it is a routine thing, maybe it is going on. Kirtan is going but shravan is not happening because mind is not hearing, mind is elsewhere. So, intelligence, we will have to sharp intelligence. Divine intelligence, God has given intelligence we need, so that we could analyze the situation and take note that mind is not into listening. Mind is here, mind is in the shopping mall, mind is in the kitchen, mind is here, mind is there, mind is not hearing, and intelligence will have to take note of this and again drag the mind and engage mind in hearing. Chanting was happening, but hearing was not happening, because, mind was not hearing. Mechanically chanting, the lips were uttering. Mechanically chanting because we are not aware, conscious and then we are not thinking that utterance is happening. But then utterance was going on, kirtan was going on, but we are not hearing because mind was not there. So, intelligence is another faculty, another part of our being, another God given element. Mind is also one element and mind is controlled, governed, trained, tamed by intelligence factor. So, this is a job of intelligence to make sure chanting is happening, hearing is happening, and mind is also doing the thinking of Krishna. Intelligence has a big role, dominant role to play during the chanting session and throughout our life, day and night; the intelligence has a role play. Especially we have to use our intelligence to keep an eye on the mind that mind is not ignoring chanting but hearing, chanting and remembering Lord. Hari Hari. So, this is sadhana bhakti, every morning, every day. We chant our prescribed number of rounds on japa chanting. But this has to be done scientifically. The outcome of scientific or proper chanting is remembrance of the Lord or meditative chanting. So, this has to be practiced. Not that we are just sitting around. So, we are not sleeping part of the time, waking up occasionally from time to time or even if we are up, we are chanting but not hearing because you have no intelligence, you are not praying for intelligence, you have not sharpened your tool. Intelligence is also an element, a tool. We have to sharpen our tool. So, we have to have sharp intelligence and of course that sharpening can happen all day, all night. We sharpen our intelligence, develop, cultivate our intelligence, become intelligent, beg for intelligence from the Lord. Hari Hari! Nourish your intelligence, become intelligent and then use, employ, engage that sharp and divine intelligence during chanting session and during all activities, all other kinds of devotional services also that are to be performed under the supervision of the intelligence. So be intelligent. jei krishna bhaje sei bada chatur One who is serving Krishna, is very chatur, is very smart, very intelligent and you have to be that kind of intelligent person so that you could also chant with attention, with concentration, with devotion, with meditation. So, we pray, Lord give all of us that kind of intelligence. So, keep chanting with more and more concentration, attention and of course avoiding offences. If you are not intelligent, you will not avoid offences. Less intelligent people always commit offences. So, you also have to be very intelligent person to avoid offences; so that we could chant offencelessly. Few minutes ago, we had upto 650 participants. I am happy with the bigger number of participants. At least towards the end we had bigger number of participants. It’s nice. So, we will stop here and will continue talking and chanting in future. See you tomorrow. Hare Krishna!

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