Hindi

भगवान का फ़ोन नंबर मिलाइये हरे कृष्ण ! आज हमारे साथ ५८० स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। आज हमारे साथ मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया से भी भक्त जप कर रहे हैं। इसके साथ ही साथ मैं आज कई नए चेहरे भी देख रहा हूँ। इन दिनों कई नए भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। हम उन सभी का स्वागत करते हैं। हम इससे प्रसन्न हैं कि वे हमारे साथ ' आइये ! एक साथ जप करें " नामक इस कांफ्रेंस में जप कर रहे हैं। आप जप कर रहे हैं , मैं भी जप कर रहा हूँ तथा इस प्रकार हम भगवान के संपर्क में रहते हैं। जैसा कि आप जानते हैं यह जप भगवान के लिए सम्बोधन हैं। जब हम ' हरे कृष्ण ' कहते हैं तब हम भगवान को पुकारते हैं। हे कृष्ण ! हे राधे ! इस प्रकार से हम भगवान का सम्बोधन करते हैं। इस महामंत्र के प्रत्येक १६ नामों में हम भगवान को पुकारते हैं अतः ये सभी १६ नाम सम्बोधन हैं। इस प्रकार प्रत्येक नाम के साथ हम भगवान को पुकारते तथा बुलाते हैं। इस प्रकार भगवान का सम्बोधन करके उन्हें पुकारने के पश्चात हमें भगवान को कुछ कहना , बताना चाहिए। अतः इस प्रकार भगवान के सम्बोधन के द्वारा हम उनके साथ आदान - प्रदान करते हैं तथा उनके संग में रहते हैं। जिस प्रकार कई बार माता - पिता तथा अभिभावक अपने बच्चों को कहते हैं , " आप कैसे हो ? यह हमें बताना , हमें पत्र लिखना आदि " उसी प्रकार भगवान भी यह आशा करते हैं कि हम उनके साथ संपर्क में रहें तथा जप के द्वारा हम उनका संग कर सकते हैं। अतः यह सर्वोत्तम कार्य हैं , जिसके द्वारा हम भगवान के संग में रहते हैं। ' हरे कृष्ण ' के जप की तुलना टेलीफोन नंबर मिलाने से की जाती हैं। प्रभुपाद कहते थे कि भगवान का टेलीफ़ोन नंबर १६ अंकों का हैं। इस प्रकार एक असाधारण व्यक्ति का फ़ोन नंबर भी असाधारण हैं क्योंकि यह परम पुरुष भगवान श्री कृष्ण का नंबर हैं, जो १६ अंकों का हैं तथा जब हम जप करते हैं तब हम इस नंबर को मिलाते हैं। जब जब भी हम इन १६ नामों का उच्चारण करते हैं तब तब हम भगवान के संग में रहते हैं तथा उनके साथ संवाद करने का प्रयास करते हैं। हमें भगवान को यह बताना चाहिए कि हमें उनका सन्देश भगवद गीता के रूप में , तथा विशेष रूप से श्रील प्रभुपाद के तात्पर्यों के द्वारा प्राप्त हो चूका हैं। श्रील प्रभुपाद की जय ! उन्होंने इसमें अपनी परिकल्पना से कुछ परिवर्तन नहीं किया हैं, अतः उनके तात्पर्यों के द्वारा स्वयं भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं। आप भगवान को यह बता सकते हैं , हाँ , हमें आपका सन्देश प्राप्त हो गया हैं। वह सन्देश जो आपने भगवद गीता के रूप में पीछे छोड़ा हैं। यह सन्देश मेरे लिए हैं। आपकी कृपा से मुझे यह सन्देश एक गुरु परम्परा द्वारा प्राप्त हुआ हैं। हे प्रभु ! मुझे आपके इस सन्देश की प्राप्ति हो गई हैं , इसके लिए मैं आपका अत्यंत आभारी हूँ। आपकी कृपा से मैं इस सन्देश को समझने में सक्षम हो पाया हूँ , अतः अब मैं आपके शरणागत हूँ तथा मैं पुनः मेरे घर , भगवद्धाम , आ रहा हूँ। हे नाथ ! मैं अब पुनः आपके पास आ रहा हूँ। तत्पश्चात ५०० वर्ष पूर्व कृष्ण स्वयं पुनः श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए। भगवान के प्रतिनिधियों तथा गौड़ीय वैष्णव परंपरा के माध्यम से हम श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की स्थिति को भगवान श्री कृष्ण के रूप में समझ पा रहे हैं। हम इसके लिए उनके आभारी हैं। हे प्रभु ! आप बार बार इस पृथ्वी पर अवतरित होते हैं इसके लिए आपका धन्यवाद। ५००० वर्ष पहले आप इस धराधाम पर अवतरित हुए थे , तत्पश्चात पुनः ५०० वर्ष पूर्व आप प्रकट हुए तथा हमें यह मन्त्र प्रदान किया जिसका हम जप कर रहे हैं। आपने व्यक्तिगत रूप से यह मन्त्र प्रदान किया हैं। अब मुझे भी इस मन्त्र की प्राप्ति हुई हैं। ' हरे कृष्ण ' महामंत्र का जप करना यही वास्तव में हमारा धर्म हैं। इस कलियुग में हरिनाम के जप द्वारा हम आध्यात्मिक सेवाएं संपन्न कर सकते हैं। मुझे भी अब इस उपहार की प्राप्ति हो चुकी हैं। मुझे भगवद गीता के रूप में तथा अब इस हरे कृष्ण महामंत्र के रूप में उपहार की प्राप्ति हुई हैं। अब मैं समझ चूका हूँ , " कलि कालेर धर्म , हरिनाम संकीर्तन " यह हरिनाम इस युग का धर्म हैं। इस प्रकार हम भगवान को यह बताते हैं तथा धन्यवाद देते हैं। हे प्रभु ! मैं इस महामंत्र के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। हम भगवान को यह बताते हुए धन्यवाद देते हैं कि अब हमें हरिनाम की महिमा का पता चल चूका हैं। शिक्षाष्टकम में हरिनाम की महिमा का सात प्रकार से वर्णन हैं , हरिनाम के माहात्म्य का वर्णन हैं , हरिनाम के जप द्वारा होने वाले ७ प्रकार के लाभों का वर्णन हैं। इस प्रकार अब मैं इस हरिनाम के जप की महिमा तथा लाभ को अधिक से अधिक मात्रा में समझ रहा हूँ। मुझे विश्वास हैं कि इससे मैं विजयी बनूँगा क्योंकि आपने ऐसा कहा हैं - परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम। इस हरिनाम का जप करने वाले साधकों की विजय हो तथा इस सम्पूर्ण संकीर्तन आंदोलन की विजय हो। इस संकीर्तन आंदोलन का प्रत्येक सदस्य यशस्वी हो तथा उसी सदैव विजय हो, ऐसा भगवान कहते हैं। आपकी कृपा और व्यवस्था के द्वारा मैं हरिनाम की महिमा, हरिनाम के लाभ, तथा हरिनाम के महत्त्व को अधिक से अधिक मात्रा में समझ पा रहा हूँ। आपने शिक्षाष्टकम में इस प्रकार एक सम्पूर्ण प्रगति का वर्णन किया हैं। जब कोई इस शिक्षाष्टकम के एक श्लोक से दूसरे पर जाता हैं और इस प्रकार क्रमशः आगे बढ़ता हैं तो उसके विचारों में परिवर्तन तथा क्रांति आती हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं जगन्नाथ पूरी में स्वरचित इस शिक्षाष्टकम का आस्वादन करते। वे सम्पूर्ण रात्री शिक्षाष्टकम पर चिंतन करते हुए व्यतीत करते। महाप्रभु प्रत्येक रात्री शिक्षाष्टकम के किसी एक श्लोक पर चिंतन करते उसका आस्वादन करते और इस प्रकार वे हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करते हुए आनंद की प्राप्ति करते। कृष्णदास कविराज गोस्वामी , चैतन्य चरितामृत में इसका विस्तार से वर्णन करते हैं। चैतन्य चरितामृत के अंतिम अध्याय में , अन्त्य लीला के २० वें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के शिक्षाष्टकम का वर्णन हैं। यह शिक्षाष्टकम सम्पूर्ण चैतन्य चरितामृत का सार अथवा उपसंहार हैं। इसीलिए शिक्षाष्टकम को अन्त्य लीला के अंतिम अध्याय में सम्पूर्ण चैतन्य चरितामृत के सार के रूप में प्रस्तुत किया गया हैं। हे मेरे प्रिय भगवान , चैतन्य महाप्रभु ! आप किस प्रकार से स्वयं द्वारा रचित शिक्षाष्टकम का आस्वादन करते थे। हम भी शिक्षाष्टकम के उन भावों का आस्वादन कर सकते हैं , जब हम इस ' हरे कृष्ण ' महामंत्र का जप करते हैं। इस प्रकार यह हम सभी के आज के विचारों के लिए आहार हैं। यह एक संकेत, प्रस्ताव, तथा अनुरोध हैं कि ' हरे कृष्ण ' का जप करते समय हमें इस प्रकार से चैतन्य महाप्रभु के समान सोचना चाहिए। इसलिए यह शिक्षाष्टकम एक प्रकार से विचारों की प्रक्रिया हैं। ये विचार पर्णरूपेण कृष्णभावनामृत से ओतप्रोत हैं। इस प्रकार हम जो चर्चा कर रहे हैं , वह एक क्रांति के समान हैं। महाप्रभु सम्पूर्ण रात्री गम्भीरा में व्यतीत करते। यह एक अत्यंत छोटा कमरा हैं , जिसे गम्भीरा कहते हैं। अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक , उस गम्भीर नामक छोटे से कमरे में रहते थे। वहाँ वे अकेले नहीं रहते थे अपितु स्वरुप दामोदर तथा रामानन्द राय भी उनके साथ वहाँ रहते। स्वरुप दामोदर ललिता हैं तथा रामानन्द राय विशाखा हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस प्रकार ललिता तथा विशाखा के साथ रह रहे थे। वे तीनों शिक्षाष्टकम के अर्थ, तथा तात्पर्यों पर चर्चा करते एवं उसका आस्वादन करते। हम जानते हैं कि शिक्षाष्टकम एक विषय हैं जिस पर भगवान चिंतन करते। इसके साथ ही साथ वे श्रीमद भागवतम, गोविन्द लीलामृत, जयदेव गोस्वमी द्वारा रचित गीत गोविन्द , बिल्वमंगल ठाकुर द्वारा रचित ' कृष्ण कर्णामृत' तथा चंडीदास ठाकुर के बंगाली भजनों का आस्वादन करते। इन सभी श्लोकों , भजनों में भगवान के नाम , रूप, लीलाओं, तथा धाम का वर्णन हैं , जो कृष्ण भावनामृत के विचारों के ओतप्रोत हैं। इस प्रकार भगवान इनका आस्वादन और चिंतन करते। मैं अपनी वाणी को यहीं विराम दूंगा क्योंकि मुझे भगवान के श्रृंगार दर्शन के लिए जाना हैं तथा आज मुझे भागवतम पर कक्षा देनी हैं। भगवान कहते हैं मेरा चिंतन करो , मेरा स्मरण करो। 'हरे कृष्ण ' के जप द्वारा हम भगवान का स्मरण कर सकते हैं। अतः हमें क्या सोचना चाहिए , किनका चिंतन करना चाहिए ? इसका उत्तर यह हैं : श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु शिक्षाष्टकम के श्लोकों, श्रीमद भागवतम, कृष्ण कर्णामृत, गीत गोविन्द आदि उन सभी शास्त्रों का चिंतन तथा मनन करते जिनमे भगवान के नाम , रूप , गुण तथा लीलाओं का वर्णन हैं। ' हरे कृष्ण ' का जप करते समय भी उसी प्रकार सोचना चाहिए , जिस प्रकार भगवान सोचते थे। सदा जीवन तथा उच्च विचार , चैतन्य महाप्रभु के विचारों का चिंतन कीजिए तथा सदैव उच्च स्थिति में रहिए। हरे कृष्ण !

English

27th JULY 2019 DIAL THE PHONE NUMBER OF THE LORD! Hare Krishna! We are 580 so far. We also have devotees from Melbourne Australia chanting with us today. There are many more new faces. Few I noticed. Many more newcomers today or these days are chanting with us. So, they are welcome. We are happy that they are chanting with us on this ' let's chant together' conference. You are chanting, I am also chanting, this way we are keeping in touch with the Lord. Chanting is, as you know is address to the Lord. You know that, chanting 'Hare Krishna' is we are addressing the Lord. O Krishna! O Radhe! like that. We are addressing the Lord. All the sixteen names of maha mantra, each one as we pronounce or utter it is ‘sambodhan’ or address to the Lord. We are talking or addressing the Lord. We are supposed to be saying something to the Lord. So, by doing so, by addressing Lord, we are keeping in touch with the Lord, we are communicating with the Lord.' Keep in touch', we always say. We hear, 'get back to us' 'write to us' how you are doing - our parents say that to us or children. So, Lord also is expecting that we will keep in touch with Him & through chanting, as we chant that's the exact thing we are doing. We are keeping in touch with the Lord. Chanting of 'Hare Krishna' is compared to like dialling telephone number. Prabhupada used to say that, Lord has sixteen-digit number. Anyone else in this world doesn't have sixteen-digit number. So, it must be an extraordinary number of an extraordinary person & that is the Supreme Personality of Godhead Sri Krishna's number, which has the sixteen digits, which we dial as we chant. We are dialling or addressing all these sixteen names all the time, over again & again & again and keep in touch with the Lord. Try to have conversation or dialogue with the Lord. We should tell, ‘let the Lord know we have received His message' message in the form of Bhagavad-Gita, especially as it is explained by A.C.Bhaktivedanta Swami Prabhupada. Srila Prabhupada ki jai! He did not misinterpret or there is no speculation. Let Krishna speak through His purports. You can say to the Lord, yes, we received Your message. Message that You have left behind, in the form of Bhagavad-Gita. It was for me. By your mercy I have received it in a disciplic succession, in an unbroken chain of spiritual masters. I have received the message. I am very thankful O dear Lord. You made me understand the message. I am surrendering unto You & I am on the way back home. I am coming back. Then Krishna also again appeared as Chaitanya Mahaprabhu & with the help of Lord's representatives, Gaudiya Vaishnava parampara, we are also able to understand Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu's position as Krishna Himself. We are thankful to Him. Thank you Lord as You came again & again You were here five thousand years ago & You came five hundred years back again & You gave mantra that we are chanting. You personally delivered this mantra. That mantra has reached me. Chanting of the 'Hare Krishna' mahamantra is the dharma. He processed the activity, devotional service through this, in this age of Kali. I have received this gift. I have received Bhagavad-Gita as a gift & now I have received this gift in this form as ’Hare Krishna' mahamantra is a gift. I have understood, 'kali kaler dharma Harinaam sankirtan'. Harinama is the dharma for this age. We are letting Lord know our part & we are thanking Him also. We are grateful. My dear Lord, I have this mahamantra. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare Chanting. I am thinking & saying to the Lord that I have understood the glories of holy name. Siksastakam has seven different glories, of the holy name or mahatmaya of holy name or seven different kinds of benefits we derive from chanting. I am realizing more & more benefits of this chanting. I am confident that I will be victorious as You have said - Param vijayate Sri Krishna sankirtanam. Supreme victory to the chanters of the holy name & supreme victory to the entire sankirtan movement. All the members of the sankirtan movement should be supremely glorious & victorious. This is what He has said. By your grace & arrangements I am realizing glories of the holy name, benefits of the holy name, importance of the holy name more & more. You have invested, like that there is whole progression in Siksastakam. There is elevation or evolution as one goes from one Siksastakam verse to next to next & next. Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu He had been also contemplating, relishing His own compilation of Siksastakam in Jagannath Puri. Whole night He would spend in the meaning of Siksastakam. Sometimes He would spent one night on one verse of Siksastakam, get absorbed & get ecstatic & excited by chanting 'Hare Krishna Hare Krishna' & by thinking of various Siksastakam verses that He would spent, as Krishnadas Kaviraj Goswami has described in Chaitanya Charitamrita. The very last chapter of Chaitanya Charitamrita, in antya-lila in chapter twentieth it is described the Siksastakam , Lord Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu's siksha or instructions. Eight instructions. They must be & they are the essence of Chaitanya Charitamrita. That is why Siksastakam has been placed at the very end or as a conclusion of Chaitanya Charitamrita in antya-lila chapter twentieth of Siksastakam. Dear lord, Chaitanya Mahaprabhu how You have been relishing Your own Siksastakam. We could also do the same, that mood, the meaning, the purport of the Siksastakam we also relish as we chant 'Hare Krishna'. So, this is a food for thought for today for each one of us. It is also a hint, or suggestion or recommendation while chanting of 'Hare Krishna' mahamantra, we should be thinking like this. Or think like like Chaitanya Mahaprabhu. So, this Siksastakam is like a thought process. Thoughts & they are all fully Krishna conscious thoughts at different levels. The evolution that we are talking. Mahaprabhu would spend whole night at Gambhira. It is called Gambhira, it's a tiny place. Anant koti Brahmand Nayak was residing in a tiny room or space. He was also sharing that place with Swaroop Damodar & Ramanand Raya. Swaroop Damodar is Lalita & Ramanand Raya is Vishakha. Lord Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu was in association or proximity with Lalita & Vishakha. They are talking, discussing contemplating on Siksastakam. Meaning of the Siksastakam, purport of the Siksastakam. We know that Siksastakam is one topic which Lord used to think about, contemplate about. They also used to recite Srimad Bhagavatam, Govind Lilamrita, Jaydev Goswami's 'Geet-Govind' & Bilvamangal Thakur’s 'Krishna-Karnamrut', Chandidas Thakur's Bengali verses like this all different compilations & verses same quality, same evolution of Krishna conscious thoughts or the name the form, the abode of the Lord. This is what the Lord would be thinking about I have to conclude as there will be Deity greeting & I have to give Bhagavatam class so for that reason I have to wind it up. So, think of Me, remember Me as Lord says. Chant 'Hare Krishna', then we are reminded of the Lord. So, what do we think, what we should remember? So, this is what Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu used to think & remember all this topics from Siksastakam, Srimad Bhagvatam, Krishna Karnamrit & Geet-Govind & like that the scriptures which are full of glories of name, fame, past times. While chanting of 'Hare Krishna' we should think the way Lord used to think. Simply chanting & highly thinking, thinking like Chaitanya Mahaprabhu. So, stay high forever. Hare Krishna!

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