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25.7.2019 हरे कृष्ण ! इस कांफ्रेंस में जप करने वाले आप सभी भक्तों को मेरा आशीर्वाद। आज ५५१ स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। मेरे आसपास भी यहाँ कुछ भक्त बैठकर जप कर रहे हैं। मैं आशा करता हूँ कि कल भी आपने इसी समय अपने स्थान पर जप किया होगा। चूँकि मैं यात्रा करता हूँ अतः मैं अपने निश्चित स्थान पर जप नहीं कर सकता हूँ। कल सुबह जब मैं ६:३० बजे मुंबई पहुँचा , तब तक मैंने अपना जप पूरा कर लिया था। पिछले ६ महीनों से हम इस कांफ्रेंस के माध्यम से एकसाथ जप कर रहे हैं अतः मैं आशा करता हूँ कि आपने , विशेष रूप से भारत के भक्तों ने , प्रतिदिन प्रातः काल जप करने की इस आदत को अंगीकार कर लिया होगा। अगले सप्ताह मैं विदेश की यात्रा पर जा रहा हूँ , मैं ४५ दिन वहीं रहुँगा। अतः मैं आशा करता हूँ कि आप तब भी इसी प्रकार प्रातःकाल के समय अपना जप पूरा करेंगे। मैं भी जिन भी देशों में रहूँगा वहाँ के समय क्षेत्र के अनुसार अपना जप प्रात: के समय में ही पूरा कर लूँगा। यद्यपि समय क्षेत्र में परिवर्तन होने के कारण हम इस जप सत्र को भारतीय समयानुसार सुबह के समय संपन्न नहीं कर पाएँगे तथापि मुझे इसके विषय में कुछ सुझाव मिल रहे हैं जहाँ आप देश , शहर, शिक्षा गुरु,मंदिर के अध्यक्ष अथवा भक्ति वृक्ष प्रमुख की अध्यक्षता में छोटे छोटे समूह बनाकर इस प्रकार की कांफ्रेंस के माध्यम से जप कर सकते हैं। मैं वहाँ पर इन जप सत्र को जारी रखुँगा अतः आप इन जप सत्रों को हिन्दी में भी पढ़ सकते हैं। जब भगवान स्वधाम जाने की तयारी कर रहे हैं , तब उद्धव को यह पता चला कि भगवान स्वधाम जा रहे हैं। तब उन्होंने भगवान को कहा कि नहीं आप मुझे यहाँ अकेले छोड़कर नहीं जा सकते , मैं भी आपके साथ चलूँगा। परन्तु भगवान चाहते थे कि उद्धव वहीं रहे। भगवान ने उन्हें कहा कि मैं भी यहीं रहूँगा। मैं यहाँ से जाऊँगा भी और नहीं भी जाऊँगा। भगवान ऐसा किस प्रकार ऐसा कर सकते हैं ? भगवान ने कहा कि मैं अपनी लीलाओं , विग्रह , नाम तथा वृन्दावन , द्वारका आदि धामों के माध्यम से यहाँ रहूँगा। भगवान द्वारिकाधीश ने उद्धव को यह समझाया। तब उद्धव मान गए और उन्होंने कहा कि ठीक हैं ! मैं यहीं रहूँगा तथा आपके नाम , रूप , गुण , लीलाओं , तथा धाम के माध्यम से आपका संग प्राप्त करूँगा। कुछ दिन पहले हमने सुना था जब ब्रह्मा सभी देवताओं की ओर से भगवान का सम्बोधन कर रहे थे। वे भगवान को उनके प्राकट्य, अपनी दिव्य लीलाएं संपन्न करने , असुरों का वध करने तथा ' धर्म संस्थापनाय ' (भगवद गीता 4.8) के लिए धन्यवाद दे रहे थे। ब्रह्मा भगवान को कहते हैं कि हे नाथ ! अब आप पुनः अपने धाम पधार सकते हैं क्योंकि इस जगत के जीवों को आपके नाम , रूप , गन और धाम के रूप में आपकी प्राप्ति हो गई हैं। आपके स्वधाम लौटने के पश्चात भी इस जगत के जीव श्रील व्यासदेव द्वारा रचित शास्त्रों में आपके नाम , रूप, गुण और लीलाओं के द्वारा आपका संग करते रहेंगे। इस प्रकार उद्धव और ब्रह्मा के वक्तव्यों द्वारा हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भगवान सर्वशक्तिमान तथा निर्धार्य हैं। वे प्रत्येक स्थान पर उपस्थित रहते हैं। हम जहाँ कहीं भी हैं , वहां हम उनकी उपस्थिति का आभास कर सकते हैं। चूँकि भगवान अत्यंत दयालु हैं अतः वे अत्यंत दूर होते हुए भी सबसे समीप हैं ,तथा इस प्रकार हम भगवान के पवित्र नामों द्वारा उनका संग प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए भगवान उद्धव को इस जगत में रखना चाहते थे। अपने धाम लौटने से तुरंत पहले भगवान ने उद्धव को उद्धव गीता सुनाई , जिसके माध्यम से भगवान चाहते थे कि उनके स्वधान लौटने के पश्चात उद्धव उनकी उपस्थिति का अनुभव करे और इस संसार के अन्य सभी जीवों को उसके विषय में बताये। भगवान उद्धव को बद्रिकाश्रम भेजना चाहते थे। बद्रिकाश्रम ही क्यों ? क्योंकि वहां कई भक्त और साधू आते हैं , वे वहीं रहते हैं। इसलिए भगवान चाहते थे कि उद्धव वहां जाकर उनकी ओर से उन साधुओं को प्रचार - प्रसार करे। पीढ़ी दर पीढ़ी सभी व्यक्ति भगवान का स्मरण करेंगे। भगवान ने उद्धव को और अधिक शक्ति प्रदान की जिससे वह ' बोधयन्तः परस्परम ' (भगवद गीता 10.9) कर सके और उद्धव साधकों , साधुओं , सामान्य व्यक्तियों को भगवान की शिक्षाओं के विषय में बता सके। इसलिए भगवान ने उद्धव को अपना विशेष और अतिरिक्त संग प्रदान किया था। " अनुग्राह्य भवयानी भूतानि " भागवतम में वर्णन आता हैं कि भगवान के शुद्ध भक्त , महाभागवत तथा उनके प्रतिनिधि इस सम्पूर्ण जगत में भ्रमण करते हैं जिससे वे अन्य दुःखी व्यक्तियों को अपनी यात्रा से संग लाभ प्रदान कर सके , जिस प्रकार उद्धव ने किया। मुझे भी इस प्रकार के लाभ की प्राप्ति हुई थी। आज सुबह जब मैं यहाँ जुहू आया तो मुझे स्मरण हुआ कि किस प्रकार मैं श्रील प्रभुपाद के संपर्क में आया था। श्रील प्रभुपाद के साथ मेरे संग की कई यादों का मुझे स्मरण हो रहा था। मैं इससे भावुक हो रहा था तथा श्रील प्रभुपाद को भगवान की ओर से मुझसे बातचीत करने के लिए बार बार धन्यवाद दे रहा था। जिस प्रकार भगवान ने उद्धव से बातचीत की उसी प्रकार श्रील प्रभुपाद ने मुझसे बात की , मुझे सही समझ प्रदान की तथा मेरी आँखों को खोला। श्रील प्रभुपाद ने मेरे लिए जो कुछ किया उसके लिए मैं उनको धन्यवाद दे रहा था कि किस प्रकार उन्होंने मुझे राधा रासबिहारी की सेवा करने का निर्देश दिया था। इसके साथ ही साथ आज मुझे कूर्म ब्राह्मण का भी स्मरण हो रहा था , वह एक गृहस्थ था और चैतन्य महाप्रभु उसके अतिथि बने थे। इस ब्राह्मण ने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का अतिथि सत्कार अत्यंत सावधानीपूर्वक और उत्तम ढंग से किया। चैतन्य महाप्रभु भी इससे अत्यंत प्रसन्न होकर इस ब्राह्मण को अपना अंग - संग प्रदान कर रहे थे। जब चैतन्य महाप्रभु अपने अगले गंतव्य के लिए प्रस्थान कर रहे थे तब इस ब्राह्मण ने कहा, " हे भगवान ! आप अकेले नहीं जा सकते। मैं भी आपके साथ चलूँगा। " जिस प्रकार उद्धव भी भगवान के साथ जाना चाहते थे। वह ब्राह्मण भगवान से निवेदन कर रहा था कि वे उसे भी अपने साथ ले जाए। आमार आज्ञा गुरु होइया तारो एइ देश जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 7.128) चैतन्य महाप्रभु ने उसे कहा, " नहीं , आप यहीं रहो। " आप अपने इसी ग्राम, नगर , समाज अथवा देश में रहो तथा जिस प्रकार कृष्ण ने उद्धव को गुरु की भूमिका अदा करने के लिए कहा उसी प्रकार आप भी यही रहते हुए गुरु बनो। यह चैतन्य महाप्रभु का अत्यंत विशेष निर्देश हैं। यद्यपि चैतन्य महाप्रभु ने यह निर्देश उस ब्राह्मण को दिया था तथापि हमें यह समझना चाहिए कि भगवान ऐसे निर्देश उन सभी को देते हैं जहाँ कहीं भी वे आतिथ्य स्वीकार करते हैं। भगवान उस व्यक्ति को भावुक बनाकर अपने साथ नहीं ले जाना चाहते थे। नहीं , आप यही रहिये और सभी को कृष्ण के विषय में बताइये तथा कृष्णभावनामृत का प्रचार कीजिए। भगवान के नाम , रूप , गुण, लीला तथा धाम का प्रचार - प्रसार कीजिए। इस प्रकार यह निर्देश हम सभी के लिए हैं। भगवान ने यह निर्देश उद्धव को , उस कूर्म ब्राह्मण को , कई गृहस्थों को तथा हमारी परम्परा में आने वाले सभी आचार्यों को दिया। एवं परम्परा प्राप्तं (भगवद गीता 4.2) यह निर्देश आप सभी के लिए हैं। उद्धव ने , हमारे आचार्यों ने , कूर्म ब्राह्मण ने उस भूमिका को सम्पन्न किया हैं। इसके साथ ही साथ कई शुद्ध भक्त तथा महाभागवत हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में भगवान् की इस वाणी का प्रचार किया तथा अन्यों को भी इसके विषय में बताया। जो भी यह करता हैं , भगवान उससे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। मैं केवल आप सभी को भगवान के निर्देश का स्मरण दिला रहा हूँ , तथा किस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने भी हमें यही निर्देश प्रदान किया हैं एवं इस हरिनाम का प्रचार करने की आज्ञा दी हैं। भारत भुमिते हइलो मनुष्य जन्म जार। जन्म सार्थक करि करो परोपकार।। (चैतन्य चरितामृत आदिलीला 9.41) जिनका जन्म भारत वर्ष में हुआ हैं उन्हें आपने जीवन सार्थक करना चाहिए। प्रभुपाद हमें सदैव श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के इस निर्देश का स्मरण दिलाते थे। प्रभुपाद बार बार इस श्लोक का उद्धरण देते थे। " करो परोपकार " वास्तव में परोपकार क्या हैं ? कृष्ण का प्रचार करना , किसी न किसी रूप में सभी को कृष्ण प्रदान करना , उन्हें प्रसाद देना, उन्हें श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें प्रदान करना , उन्हें हमारे उत्सवों में आमंत्रित करना, उन्हें इस कृष्ण भावनामृत में सम्मिलित करवाना , जब हम इस प्रकार उन्हें किसी न किसी रूप में कृष्ण प्रदान करते हैं तब हम परोपकार कर सकते हैं। आप भी गुरु बनिए अपने मित्रों , पड़ोसियों आदि को कृष प्रदान कीजिए तथा उनका जीवन सफल बनाइये। हरे कृष्ण !

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25th July 2019 Give Krsna to others and make your life perfect We have been chanting for 6 months together, so I hope you must have developed the habit, practice of chanting in the early morning hours. Next week I will be travelling overseas for 45 days. So I am concerned how we can continue chanting. You can form groups, each country devotees or each city group counselee groups or bhakti vriksha member group. If you are temple president you can chant with temple devotees. Some kind of group formation. Someone can take leadership and lead the group. As we had been continuing, I would not be there, someone else would take that position. And you all can chant together. This was one suggestion, if you have some other suggestion you can share. So, when Lord was getting ready to leave this planet Uddhava came to know, he said ‘No no you have to take me also, I can't stay behind.’ But Lord wanted Uddhava to stay behind. Lord said, ‘I will stay behind, I will go and I will not go. How did Lord manage that? I will stay in form of My pastimes, My vigraha, My name, My abode at Dwarka and Vrindavan. Dwarkadhish made this proposal to Uddhava then Uddhava said ‘Ok I will stay behind and I will take advantage of your presence in form of Your name, in form of Your pastime, in form of Your abode, in form of Your qualities. Then Uddhava agreed to stay behind only when Lord stayed behind in some form. The other day also we had heard Brahma talking in association of all the demigods, on the behalf of all the demigods. He also thanked Lord for His appearance and performing pastimes of killing the demons, pastimes of protecting devotees and pastime of ‘dharma-saṁsthāpanārthāya ‘(BG 4.8). Brahma also said, ‘Lord You may leave now’ because this world has received You in form of Your names, form, quality and abode. Even if You go this world has taken note or Srila Vyasadev will be noting the description of Your form, Your pastime. So, world will be benefiting by presence of Your pastimes, Your name, Your form or Your abode. So, form presentation of Brahma or Uddhava we can say Lord is assessable, Lord is omnipotent. He is present everywhere. Wherever we are, we can feel His presence. We could access the Lord through His holy name and like Lord is so kind He is so far and He is so near. So, the Lord wanted Uddhava to stay in this world. Just before His departure Lord gave His personal association to Uddhava and recited Uddhava Gita, as Lord wanted Uddhava to continue to represent His presence in this world. Lord wanted Uddhava to go to Badrikashram. Why Badrikashram? Because many saints come there and reside there. So, Lord wanted Uddhava to talk to them, preach to them on behalf of the Lord. So preach and propagate. Generation after generation people will be reminded of the Lord. Lord further empowered Uddhava and kept him in the world so that he would do, ‘bodhayantaḥ parasparam’ (BG 10.9) with the people, sadhakas, practitioners, pilgrims, the seekers of truth will be benefited by the presence and teachings of Uddhava. So, Lord had given extra association to Uddhava. anugrahaya bhavayani bhutani. Bhagavatam says great devotees, mahabhagavats, representatives of the Lord they wander everywhere and travel everywhere for those who are suffering, they are benefited by the travelers and preachers like Uddhava. I was also benefited. As I arrived here in Juhu Hare Krsna today morning, I was reminded of me coming in contact with Srila Prabhupada. Many memories were arising and reminding my encounter with Srila Prabhupada. I was feeling very emotional and expressing my gratitude to Srila Prabhupada for talking to me on Lord’s behalf. As Lord talked to Uddhava, in my case Prabhupada talked to me, brought me to senses, opened my eyes. For all that Prabhupada did for me, I was thanking Srila Prabhupada for giving me instructions to serve Radha Rasabihari. Also, I am reminded of Kurma brahman, he was a grihasta and Caitanya Mahaprabhu had become his guest. He took such a nice care extending all hospitality towards Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Caitanya Mahaprabhu also extended & gave him all anga–sanga association. When Caitanya Mahaprabhu was ready to go to next nagar next gram, brahman said, “No Lord I want to come with you.” As Uddhava wanted to go. I want to come, take me along. āmāra ājñāya guru hañā tāra' ei deśa yāre dekha tāre kaha 'kṛṣṇa'-upadeśa (CC Madhya 7.128) Caitanya Mahaprabhu said, ‘no stay back’. You stay in this country or town village or community and you become guru as Lord Krsna wanted Uddhava to play role of a guru. Lord also wanted Kurma brahman to play role of guru. This was very famous prime instruction of Caitanya Mahaprabhu. This instruction was given to a brahman. But we understand Lord was giving such instructions to each and every host where Caitanya Mahaprabhu was being hosted. Lord did not allow that person to sentimentally get attached and come along. No, you stay behind and propagate or tell everyone about Krsna. Lords name, His pastimes, His abode, His glory has to spread. So, this is instructions to all of us. Lord instructed that to Uddhava, also to Kurma brahman and He was instructing like wise to so many residents or house holders and all the acarya’s coming in the parampara. evam parampara praptam (BG 4.2) This instruction is for all of you. Uddhava played that role, acarya’s played that role, Kurma brahman played that role. There is long list to pure devotees, mahabhagavats, they are also expected to play the role of propagating about the Lord to the people around them in their circle. Those who do this Lord is very pleased with them. I am just reminding what is Lord’s instruction for all of us, which Prabhupada also reminded us to propagate the holy name. and practice. bharat bhumite manusya haila janma yara janma sarthaka kare karo parupakara (Cc. Ādi 9.41) Those born in Bharta varsha make their life perfect. Prabhupada used to remind us this statement about Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Prabhupada used to quote this verse again and again so many times. Kare karo paropakar, and what is parupakara? Propagating about Krsna, giving them Krsna in differnt forms, giving them prasadam, give them Srila Prabhupada’s books. Invite them for festival, get them involved in Krsna conscious movement. Give them Krsna in this form or that form and as we do that that's called parupakara. You also become guru give Krsna to your friend your neighbors and make your life perfect. Hare Krsna

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