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*जप चर्चा* *दिनांक 1 जनवरी 2022* हरे कृष्ण!!! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 1070 स्थानों से भक्त सम्मिलित हैं। हैप्पी न्यू ईयर किन्तु केवल हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर कहने से हैप्पी नहीं हो जाते। हैप्पी न्यू ईयर कहना अथवा मनोकामना व्यक्त करना हैप्पी न्यू ईयर नही है। हम हरे कृष्ण भक्त केवल हैप्पी न्यू ईयर कहते ही नहीं हैं अपितु हम इसके साथ यह भी कहते अथवा बताते हैं कि हम नए साल में हैप्पी कैसे हो सकते हैं? श्रील प्रभुपाद के शब्दों में चैंट हरे कृष्ण एंड बी हैप्पी (हरे कृष्ण महामन्त्र का जप करो और प्रसन्न रहो)। आप भगवान् के नाम का उच्चारण करो , भगवान् को पुकारो - कृष्ण! कृष्ण! हेल्प, हेल्प, वी आर सफरिंग। हमें हैप्पी (प्रसन्न) बनाओ।आप हैप्पी हो, हमें भी हैप्पी( प्रसन्न) बनाइए। चैंट हरे कृष्ण ( हरे कृष्ण का जप करो), भगवतगीता को पढ़ो रीड भगवतगीता यू विल बी हैप्पी (भगवद्गीता पढ़ने से आप प्रसन्न हो जाएंगे।) और साथ साथ यह भी कहना होगा। डिस्ट्रीब्यूट भगवद्गीता एंड यू विल बी हैप्पी। भगवद्गीता के उपदेश अथवा संवाद को अधिक से अधिक लोगों के साथ शेयर करो। इससे आप प्रसन्न हो जाओगे। कृष्ण आपको सुखी बनाएंगे। उनके हाथ में सब चाबी हैं। वे ही नियंत्रक हैं। कृष्ण कहते हैं कि तुम मेरा नाम लो। हर्रेनामेव केवलम। साथ ही कृष्ण भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय में कहते हैं- *अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् | स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ||* ( श्रीमद भगवद्गीता १८.१५) अनुवाद:- सच्चे, भाने वाले,हितकर तथा अन्यों को क्षुब्ध न करने वाले वाक्य बोलना और वैदिक साहित्य का नियमित पारायण करना - यही वाणी की तपस्या है । स्वाध्याय करना, गीता का पाठ करना गीता के अध्याय पढ़ो अर्थात स्वाध्याय करो और उसका अभ्यास करो।स्वाध्यायाभ्यसनं। कृष्ण इसके विषय में कहते हैं कि यह तप है। वाङ्मयं तप उच्यते। स्वाध्याय करना, गीता का पाठ करना, सुनना व सुनाना यह जिव्हा का तप है। यह तप वाक्यम है अर्थात इसमें वाक्य है।इसमें जिव्हा का प्रयोग है। यह तप है। तप ही हमको शुद्ध बनाता है। ऋषभ उवाच *नार्य देहो देहभाजां नलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजा ये ।। तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ॥* ( श्रीमद् भागवतम 5.5.1) अनुवाद:- भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रो , इस संसार में समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन - रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने लिए वह अपने को तपस्या में लगाए । ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है तब उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है। जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है । तप ही हमें शुद्ध बनाता है, तप से शुद्धिकरण होता है, तप हमें शुद्ध करता है। तत्पश्चात फिर आनंद ही आनंद। सुख ही सुख। ब्रह्मसौख्यम वनन्तम। यह सुख / आनंद इतना सस्ता नहीं हैं। नॉट सो चीप। आप टेलीविजन ऑन करो और हा हा हा। इतना सस्ता नही हैं। वह जो टेलीविजन / दूरदर्शन का सुख है, वहीं दुख देता है। हरि! हरि! हमें इस सुख दुख के परे पहुंचना है। हरि हरि! सुखी रहिए। *ॐ सर्वे सुखिनःभवन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥* अनुवाद:- - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।" यह प्रार्थना, यह भावना, यह मनोकामना, वैष्णवों की होती है। सर्वे सुखिनःभवन्तु अर्थात सभी सुखी रहे लेकिन उसके साथ सुखी होने के उपाय भी बताने होंगे। श्रील प्रभुपाद का यह आंदोलन अंतरराष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत संघ वही कर रहा है। आप उसी आंदोलन के सदस्य हो। इसलिए आप जानते हो कि हम सुखी कैसे बन सकते हैं अथवा बना जा सकता है। हम कैसे सुखी हो सकते हैं, यह दुनिया अथवा यह सारा संसार कैसे सुखी हो सकता है, यह केवल कृष्ण भक्त ही जानते हैं या जिन्होंने भगवान् या भगवान् के भक्तों को सुना है। *एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: |स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 4.2) अनुवाद:- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है। वे अधिकारी हैं। वे बता सकते हैं। आप भी बता सकते हो। बताते जाइए। हरे कृष्ण! अब मेरे पास बहुत ही कम समय है। एक हमारे ही भक्त हैं जो गोपाल कृष्ण महाराज के शिष्य है और एक मोटिवेशनल स्पीकर हैं। मिस्टर बिंद्रा! हम आज उनसे भी कुछ सुनना चाहते हैं। एक प्रेजेंटेशन है जो आपको भगवत गीता के वितरण के लिए प्रेरित करेगा कि गीता भेंट में दो। इस प्रेजेंटेशन में उनका कुछ ऐसा ही संदेश है। कुछ क्षणों में आप उसको देखोगे व सुनोगे। यह नया वर्ष है और यह नए वर्ष का यह संदेश भी है। मैं भी कुछ कह रहा हूं और बिंद्रा जी भी कुछ कहेंगे और आप.. पता नहीं, समय तो इतना नहीं होगा लेकिन आप में से भी कुछ कहना चाहता है अर्थात सभी को प्रेरित करने के लिए आपके पास भी कुछ ऐसा वचन है तो आप में से एक दो व्यक्ति ऐसा बोल सकते हैं। नहीं तो वैसे, हमनें आज के लिए विश्वरूप दर्शन का विषय रखा था लेकिन नया वर्ष है इसलिए मैंने उसी में कुछ कह दिया। पांच दस मिनट तो उसी में बीत गए। अभी बिंद्रा जी को भी सुनना व देखना है। विश्वरूप/ विराट रूप को अब आप देखिए। आप इसे कैसे देखोगे? शास्त्र चक्षुः से अर्थात भगवत गीता का चश्मा या 11 अध्याय के चश्मे से इसे देखिए। ग्यारवें अध्याय को चश्मा बना लो और उससे देखो। वैसे भी कृष्ण ने कहा था कि मेरे सारे वैभव जो अभी अभी मैनें दसवें अध्याय में कहें थे - हे अर्जुन, उसको मैं दिखाना चाहता हूं लेकिन उन्होंने कहा *न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा |दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्र्वरम् ।।* ( श्रीमद् भगवद्गीता ११.८) अनुवाद:- किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते । अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखें दे रहा हूँ । अब मेरे योग ऐश्र्वर्य को देखो । मुझे तुम्हें दिव्य चक्षु देने होंगे तभी तुम देख पाओगे। उन्होंने अर्जुन को सही दृष्टि दे दी। उन्होंने उसके चश्मे को साफ किया। चश्मे को साफ करना होता है, नहीं तो सब धुंधला दिखता है या दिखता ही नहीं है। संस्कृत में चश्मे को उपनेत्रम कहा जाता है। उप मतलब पास, नेत्र मतलब आंखें। उपनेत्रम अर्थात आंखों के पास या जो चीजों अथवा वस्तुओं को पास में लाकर दिखा दे, वह उपनेत्रम कहलाता है। उसमें जैसा भी रंग होगा... कुछ लोग गॉगल्स भी पहनते हैं जिससे सारी दुनिया नीली, हरी या पीली दिखने लगती है। भगवान ने ऐसा चश्मा अथवा ऐसी दृष्टि अर्जुन को दे दी ताकि अर्जुन वह देख सके। भगवान् ने जैसे अर्जुन को दिखाया और अर्जुन ने देखा भी, अब उसको सुनकर, हम भी देख सकते हैं। देखने की विधि क्या है? हम कैसे देखते हैं? हम कानों से देखते हैं। आंखों से कुछ दिखता नहीं.., लेकिन वह तब दिखता है जब गुरुजन, आचार्यगण, हमें दृष्टि देते हैं, *ॐ अज्ञान-तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।* (श्री गुरु प्रणाम मन्त्र) अनुवाद:- मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने आने ज्ञान रूपी प्रकाश से मेरी आंखें खोल दीं। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ। आचार्यवृन्द हमारी आंखें खोलते हैं। हमारी आंखों का कुछ ऑपरेशन कराते है। पूरे विश्व भर में यह हरे कृष्ण आंदोलन आई आपरेशन कैंप हैं।ऑपरेशन के पश्चात दिखने लगता है। यह विराट रूप वाला जो ग्यारहवां अध्याय है, यह अध्याय अन्य अध्यायों से भिन्न है। एक अद्भुत दर्शन है। अन्य स्थानों या अन्य अध्यायों में तो ज्ञान की बातें हो रही थी। वैसे यहां भी ज्ञान हो रहा था। अर्जुन ज्ञान को सुनते सुनते ही उसको रिलाइज (अनुभव) कर रहे थे। उन्हें साक्षात्कार हो रहा था इसीलिए *अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते |इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ||* (श्रीमद् भगवद्गीता 10.8) अनुवाद:- मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूँ, प्रत्येक वस्तु मुझ ही से उद्भूत है | जो बुद्धिमान यह भलीभाँति जानते हैं, वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं। यह ज्ञान की बात कृष्ण ने कही। इस ज्ञान का विज्ञान कैसा हुआ अर्जुन उवाच *परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् | पुरुषं शाश्र्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् || आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा | असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ।।* ( श्रीमद् भगवद्गीता 10.12-13) अनुवाद:- अर्जुन ने कहा- आप परम भगवान्, परमधाम, परमपवित्र, परमसत्य हैं। आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं। नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं। जब अर्जुन ने कहा तब कृष्ण द्वारा कहे गए ज्ञान का विज्ञान हुआ। *शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 18.42) अनुवाद:- शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान,विज्ञान तथा धार्मिकता – ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्म करते हैं। दूसरे सभी अध्यायों मे ज्ञान और विज्ञान अर्थात नॉलेज एंड इट्स एप्लीकेशन दोनों वैसे चल रहे हैं लेकिन उसमें जो 11वां अध्याय है, उसको साइंटिस्ट भी देखने का प्रयास करते हैं। वे सारे संसार को देखने का प्रयास करते हैं। अस्ट्रोनाउंट्स बनते हैं, स्पूतनिक में बैठेते है। अपोलो 11, दिस वन, दैट वन.. बहुत पहले चल रहे थे। अभी नासा ने और अन्यों ने भी स्पेस स्टेशन खोलें है। वहीं से उनका देखने का प्रयास चलता रहता है। बड़े-बड़े टेलीस्कोप्स भी हैं, दूर दर्शक यंत्र हैं। उनकी मदद से यह साइंटिस्ट मंडली देखने का कुछ प्रयास कर रही है लेकिन ज्यादा कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा है। कुछ ज़्यादा नहीं दिख रहा हैं।डज लाइफ एग्जिस्ट। क्या मंगल पर , यहां पर या वहां पर जीव या प्राणी हैं या जीवन है? पानी भी है? मंगल पर पानी है? पानी है , पानी है,, पानी है। पिछले 2 सप्ताह से कहने लगे पानी है, हमने पानी को ढूंढ लिया है। वहां के लोग.. उनको कुछ साउंड भी सुनाई दे रही है। ये प्रत्यक्ष ज्ञान की बात है लेकिन उससे कुछ ज्यादा दिखता नहीं, अपनी इन्द्रियों की मदद से कुछ ज्यादा समझ में नहीं आता लेकिन भगवान दिखाना चाहेंगे, वही कर रहे हैं। भगवान स्वयं दिखा रहे हैं। *न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा |दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्र्वरम् ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 11.8) अनुवाद:- किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते । अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखें दे रहा हूँ । अब मेरे योग ऐश्र्वर्य को देखो । भगवान् ने अर्जुन से कहा कि तुम यह दिव्य चश्मा पहन लो और फिर देखो। तत्पश्चात जो अर्जुन ने सब कुछ देखा। पूरे विश्व को देखा। वह विराट रूप का दर्शन ग्यारवें अध्याय में है। देखते हैं, फिर कभी आपको सुनाना हो पाएगा। आज तो इस ग्यारवें अध्याय की कुछ भूमिका ही प्रस्तुत की जा सकी है। ठीक है। पदमाली, क्या तुम तैयार हो? हरि! हरि! सभी बने रहिए! कहीं मत जाइए। रिलैक्स।

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