Hindi

होली किस प्रकार मनाएँ मुझे पूर्ण विश्वास हैं कि कल आपने गौर पूर्णिमा महोत्सव अत्यन्त उल्लास मनाया होगा। आप चाहे जहाँ भी रहे हो आपने अवश्य ही गौर पूर्णिमा महोत्सव में हिस्सा लिया होगा। क्या आप खुश हैं ? क्या आपने आनन्द लिया ? इसके अलावा अन्य भारतीय तथा हिन्दू होली मना रहे थे जिसमें वे एक दूसरे पर रँग फेंकते हैं तथा पिचकारी से रंगीन पानी डालते हैं, परन्तु हरे कृष्ण भक्त होली को दूसरे प्रकार से मनाते हैं जिसमें वे कीर्तन तथा नृत्य करते हैं। नाम नाचे जीव नाचे नाचे प्रेमधन (हरीनाम चिन्तामणी) भक्तों के लिए हरीनाम नृत्य कर रहा था तथा कई जीव भी नृत्य कर रहे थे। यदि आप नृत्य करते हैं तो इसका अर्थ हैं कि आप प्रसन्न हैं। प्रसन्न लोग नृत्य करते हैं। कई बार पागल व्यक्ति भी नृत्य करते हैं तो उस सन्दर्भ में भी हम कीर्तन करके उन्मत्त हो जाते हैं तथा नृत्य करते हैं। यह होली का उत्सव राधा कृष्ण का , गोपियों तथा कृष्ण का अथवा उसमे कुछ गोप बालक भी सम्मिलित हो सकते हैं। वर्तमान में होली खेली जाती हैं परन्तु उन्हें इस बात का अन्दाज़ा नहीं होता हैं कि यह राधा - कृष्ण की एक लीला हैं। वे कृष्ण को भूल जाते हैं , वे राधा को भी भूल जाते हैं तथा स्वयं ही राधा - कृष्ण का स्वाँग करने लगते हैं। अतः जैसा कि श्री कृष्ण भगवद गीता में बताते हैं यही - धर्मस्य ग्लानीर अर्थात धर्म के मार्ग से पतन होना हैं। वे कृष्ण तथा राधा को इन सबसे बाहर ही रखते हैं। वे राधा - कृष्ण के बिना ही होली खेलते हैं। यही धर्मस्य ग्लानीर तथा अभ्युत्थानम अधर्मस्य हैं। भगवान शुद्ध धर्म को स्थापित करने के लिए अवतरित होते हैं। इस प्रकार इस शुद्ध होली के उत्सव को राधा कृष्ण विहीन एक सांसारिक आनन्द प्रदान करने वाला खेल बना दिया गया हैं। वे दोनों एक साथ मिल गए तथा इस जगत में गौरांग महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए। श्री कृष्ण चैतन्य , राधा कृष्ण नहीं अन्य। राधा कृष्ण आज होली पूर्णिमा के दिन अवतरित हुए तथा यह दिन गौर पूर्णिमा का दिन बन गया। तत्पश्चात हम प्रतिदिन होली खेल सकते थे। जब भगवान अवतरित हुए तो उन्होंने कृष्णप्रेम प्रदायते किया अर्थात उन्होंने स्वयं को हमें दे दिया , आओ मुझे ले लो। मैंने कल , गौर पूर्णिमा के प्रवचन में भी कहा था कि यह गौरांग महाप्रभु का अवतरण दिवस हैं। उस दिन बहुत से व्यक्ति जन्मदिन का उपहार लेकर आए। सीता ठकुरानी शांतिपुर से बहुत अधिक उपहार लेकर आई थी। भगवान ने अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में उपहार ग्रहण किये तथा उन्होंने सभी को एक उपहार दिया भी, जो वे स्वयं गोलोक से सभी के लिए लेकर आए थे। वह उपहार हैं : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस उपहार को स्वीकार कीजिए। वे भगवान जो राधा कृष्ण हैं वे आज होली के दिन होली खेलते हैं। कृष्ण चैतन्य ने हमें इसी होली के दिन राधा कृष्ण दिए। आप राधा कृष्ण को लीजिए। चैतन्य महाप्रभु ने हमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण महामंत्र दिया जिसका अर्थ हैं राधा कृष्ण को ले लो। ' आप मुझे लो तथा मेरी प्रेयसी राधा को भी लो इस प्रकार हम गौड़ीय वैष्णव भिन्न प्रकार से राधा कृष्ण को मध्य में रखकर होली मनाते हैं। ' हम जप तथा कीर्तन करते हैं , नृत्य करते हैं तथा इस प्रकार हम होली खेलते हैं। हमारे लिए प्रत्येक दिन होली हैं। हमें प्रत्येक दिन राधा कृष्ण का संग प्राप्त होता हैं। अतः हम उनके बहुत आभारी हैं। हम इसके बारे में क्या कह सकते हैं ? भगवान ने हमें हरे कृष्ण महामंत्र प्रदान किया हैं, अतः हमें उन्हें धन्यवाद देना चाहिए , " हे कृष्ण इस उपहार के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। " हमारे पास उनका धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं हैं। यह हरिनाम हमारे ऊपर उनकी अत्यंत करुणा हैं। हरी! हरी ! प्रभुपाद ने हमें यह उपहार दिया हैं तथा हमारे गुरु महाराज ने हमें यह उपहार दिया हैं। परन्तु सबसे पहले भगवान स्वयं यह उपहार लेकर आए थे। प्रभुपाद अथवा पिछले आचार्यों में इस मंत्र को अपने मन से सभी को प्रदान नहीं किया। हम इसके उत्पादक अथवा सर्जक नहीं हैं। हमने अद्भुत तथा इस संसार से परे उस उपहार के विषय में सुना। कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले जब अर्जुन तथा दुर्योधन भगवान कृष्ण से मिलने गए , उस समय भगवान ने उन्हें जो उपहार दिया , यह उपहार भी उसके समान हैं। भगवान ने उन्हें विकल्प दिया कि एक ओर मेरी चतुरंगी " नारायणी सेना " हैं वहीँ दूसरी ओर मैं स्वयं " द्वारिकाधीश " रहूँगा। आप दोनों निर्णय कर लीजिए कि आप दोनों को इनमे से क्या चाहिए ? क्या आपको पता हैं उन्होंने क्या माँगा होगा ? दुर्योधन भगवान की सेना को प्राप्त करके प्रसन्न था वहीं अर्जुन स्वयं कृष्ण को प्राप्त करके संतुष्ट था। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी हमें उसी प्रकार का उपहार दिया हैं। ऐसा नहीं हैं कि या तो आप यह उपहार लीजिए अथवा चले जाइए अपितु जिस प्रकार कृष्ण ने स्वयं को अर्जुन को दिया उसी प्रकार चैतन्य महाप्रभु ने भी स्वयं को हम सभी को प्रदान किया हैं। ऐसा नहीं हैं कि उन्होंने हमें कुछ सामान प्रदान किया हो परन्तु उन्होंने स्वयं को ही हमें उपहार रूप में प्रदान किया हैं। पूर्ण मुक्त नित्य सिद्ध , अभिनतत्व नाम नामिनो। वे भगवान जो सदैव पूर्ण हैं , वे तथा हरिनाम अभिन्न हैं। यही हरिनाम हमें गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रदान किया गया जो ५३३ वर्ष पूर्व कल , गौर पूर्णिमा के दिन प्रकट हुए थे। यदि हमें इस उपहार का मुल्य अथवा यह समझ में आ जाए कि यह उपहार वास्तव में क्या हैं तो वही कृष्ण का अनुभव तथा नाम का अनुभव होगा तथा उसीसे हम पूर्ण रूपेण हरिनाम का अनुभव कर पाएंगे। इसलिए भगवान को याद कीजिए तथा इस अनुपम उपहार के लिए उनका आभार व्यक्त कीजिए। कल जप सत्र के दौरान मैं रेल में यात्रा कर रहा होऊंगा , मैं कल नागपुर से नासिक जा रहा हूँ। एक समय हमने रेल में इस सत्र को संपन्न करने की कोशिश की थी तथा हम उसमे सफल रहे थे। अतः हम देखते हैं कल क्या होगा , यदि इंटरनेट ने साथ दिया तो हम इसका आयोजन कर पाएंगे। आप सभी से कल पुनः भेंट होगी। हरे कृष्ण !

English

HOW TO CELEBRATE HOLI! I am sure you must have enjoyed the Gaur Purnima festival yesterday. Wherever you may have been, you must have taken part in Gaur Purnima festival. Are you happy? Enjoyed? Rest of the Indians and Hindus were enjoying Holi , throwing colours and using pichkaris. Hare Krishna devotees were enjoying Holi festival differently, by chanting and dancing. nama nace jiva nace nace premadhan. ( Harinama Cintamani) For the devotees, Harinama was dancing and Jiva was also dancing. You are dancing means that's the sign that you are happy. Happy people dance. Sometimes mad people also dance, but we are also becoming mad by chanting and we dance. This holy festival is a festival of Radha and Krsna or Gopis and Krsna or may be also of some cowherd boys. These days they play Holi, but people don't have any clue that this is Radha Krsna's pastimes. They forget Krsna. They forget Radha or they themselves become Radha and Krsna. So this is dharmasya glanir that Krsna talks about in Bhagavat Gita - declination of the religious principles. They keep Krsna and Radha out of the picture. They play Holi twithout Radha and Krsna. That is dharmasya glanir and abhyutthanam adharmasya. ( BG. 4.7) Lord appears to facilitate the rise in pure religion. So this pure spiritual activity holi is made into mundane play or mundane entertainment devoid of Radha and Krsna. My thought on Gaur Purnima day was that Radha and Krsna also play holi. They join together and they appeared together as Gauranga Mahaprabhu. sri krsna caitanya radha krsna nahi anya. Radha and Krsna appeared on Holi Purnima day and the day became Gaur Purnima. Then we could play holi every day. When the Lord appeared and krsna prema pradaya te. ( Gaur pranam mantra) He gave himself to us, take me. I also said yesterday , on the Gaur Purnima talk that it was the appearance of Gauranga. So many others came with a birthday gifts. Sita Thakurani had come from Santipur with lots of gifts. Lord received gifts on his birthday party and he also gave a gift. He was receiving some gifts and he was giving out the gift which he had brought from Goloka to everyone . That gift is HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE Take it , have it. The Lord who plays, Radha and Krsna they play holi, on Holi day. , Krsna Caitanya gave us Radha and Krsna on that same holi day. Take Radha and Krsna. Caitanya Mahaprabhu was giving us Hare Krsna , Hare Krsna which means take Radha and Krsna. ‘Take Me and take My Radha. So in this ways we, Gaudiya Vaisnavas play holi differently by keeping Radha and Krsna in the centre. We chant the holy names and dance and we play holi. For us everyday is also Holi. Everyday we get the association of Radha and Krsna. So we are very grateful. What can we say? The Lord has given us the gift of the holy name. So we should be saying ‘ Thank you Krsna for this gift.’ We have no words to express our gratitude. This holy name is just his causeless mercy. Hari! Hari! Prabhupada has given this gift, Guru Maharaja has given us this gift. But first the Lord brought the gift. Prabhupada or any of the previous acaryas have not produced this gift. We are not the producer or creator. We heard of this amazing or out of this world kind of gift. This gift is like, before the battle of Kurukshetra, Lord was approached by Arjuna as well as Duryodhana. Lord gave his choice to both of them - one share will be My army - Narayani Sena and other was Myself - Dwarkadhish.’ Choose. Guess who received which share. Duryodhan was happy getting army of the Lord and Arjuna was happy to have Krsna on his side. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu gave us the gift. It's not like you can take the gift and go away. Caitanya Mahaprabhu gave Himself , just like Arjuna received Krsna. He has given Himself to us. He has not given some item, but has given His whole self. purna mukta nitya suddha abhinnatvat nama namino. Lord who is full and complete that is the holy name. That was given to us by Gauranga yesterday as he made his appearance 533 years ago. If we could realise what is this gift or what is the value of this gift, that would be Krsna realisation or nama realisation then we would fully realise the holy name. This is Radha and Krsna. By chanting and chanting and chanting it will make us realise this holy name. Then we will realise this holy name is Krsna himself. So remember to think and thank the Lord for that. Tomorrow during the japa session time I will be in the train from Nagpur to Nasik. Once I tried in the train and it had worked. So let's see. Hopefully if the internet is favourable we will be able to connect. So see you tomorrow. Hare Krsna!

Russian

Джапа сессия 22.03.2019 КАК ПРАЗДНОВАТЬ ХОЛИ Я уверен, что вы, должно быть, наслаждались вчера фестивалем Гаура Пурнима. Где бы вы ни были, вы должны были принять участие в фестивале Гаура Пурнима. Вы счастливы? Наслаждались? Остальные индусы и хинди наслаждались Холи, красками и пичкарисом. Харе Кришна преданные наслаждались праздником Холи по-другому, воспевая и танцуя. nama nache jiva nache nachepremadhan. (Харинама Чинтамани) Для преданных, Харинама танцевал и Джива тоже танцевала. Вы танцуете, это признак того, что вы счастливы. Счастливые люди танцуют. Иногда безумные люди тоже танцуют, но и мы тоже становимся безумными, воспевая и танцуя. Этот священный праздник - это праздник Радхи и Кришны, или Гопи и Кришны, или, может быть, также пастушков. В эти дни они играют в Холи, но люди не имеют ни малейшего представления, что это игры Радхи Кришны. Они забывают Кришну. Они забывают Радху или сами становятся Радхой и Кришной. Итак, это dharmasya glanir, о котором Кришна говорит в Бхагават-Гите - отклонение от религиозных принципов. Для них Радха и Кришна вне поля зрения. Они играют Холи без Радхи и Кришны. Это дхармасйа гланир (упадок религии) и абхйуттханам адхармасйа (преобладание безбожия)(. (БГ 4.7) йада йада хи дхармасйа гланир бхавати бхарата абхйуттханам адхармасйа тадатманам срджамй ахам Всякий раз, когда религия приходит в упадок и воцаряется безбожие, Я Сам нисхожу в этот мир, о потомок Бхараты. Господь является что бы восстановить законы религии. Итак, эта чистая духовная деятельность холи, превращается в мирскую игру или мирские развлечения, лишенные Радхи и Кришны. В день Гаура Пурнимы я думал, что Радха и Кришна также играют в холи. Они объединились и явились как Гауранга Махапрабху. . sri krsna caitanya radha krsna nahi anya. Радха и Кришна появились в день Холи Пурнимы, и день стал Гаура Пурнима. Мы могли праздновать холи каждый день. Когда появился Господь и krsna prema pradaya te (способный дать чистую любовь к Кришне)(Гаура пранама мантра) Он отдал себя нам… возьмите меня. Я также сказал вчера, в разговоре о Гаура Пурниме, что это явление Гауранги. Так много преданных пришло с подарками. Сита Тхакурани приехала из Шантипура со множеством подарков. На свой день рождения Господь получал подарки, и также сделал подарок. Он получал подарки и подарил нам подарок, который он принес всем нам с Голоки. Этот подарок: Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе возьмите. Господь играет, Радха и Кришна играют в Холи, в день Холи. Кришна Чайтанья дал нам Радху и Кришну в этот же день, день Холи. Возьмите Радху и Кришну. Чайтанья Махапрабху дал нам Харе Кришна, Харе Кришна, что означает возьмите Радху и Кришну. «Возьми Меня и возьми Мою Радху». Таким образом, мы, Гаудия-вайшнавы, празднуем холи подругому, поставив Радху и Кришну в центре, мы повторяем Святые Имена, танцуем и воспеваем в праздник холи. Для нас каждый день – это Холи. Каждый день мы встречаемся с Радхой и Кришной. Мы очень благодарны. Что мы можем сказать… Господь дал нам этот дар - Святое Имя. Поэтому мы должны сказать: «Спасибо, спасибо, спасибо Кришна, за этот дар». У нас нет слов, чтобы выразить нашу благодарность. Это Святое Имя - просто его беспричинная милость. Хари! Хари! Прабхупада дал нам этот дар, Гуру Махарадж дал нам этот дар. Но сначала Господь принес его. Прабхупада или любой из предыдущих ачарьев не создавали этот дар. Мы не изготавливали не создавали и не делали этот подарок. Мы слышали об этом удивительном или необычном подарке. Этот дар подобен тому, как перед битвой на Курукшетре к Господу пришли Арджуна и Дурйодхана. Господь предложил сделать выбор им обоим – один может взять Мою армию - Нараяни Сена, а другой может взять Меня - Дваракадхиша. Угадайте, кто какой выбор сделал? Дурьодхан был счастлив получить армию Господа, а Арджуна был счастлив, что Кришна был на его стороне. Шри Кришна Чайтанья Махапрабху сделал нам подарок. Это не значит, что мы можем взять подарок и уйти. Чайтанья Махапрабху отдал Себя, точно так же, как Арджуна принял Кришну. Он отдал Себя нам. Он не дал какой-то предмет, но отдал всего Себя. пурнах шуддхха нитйа-мукто 'бхиннатван нама-наминох. Господь, который полон и совершенен- это Святое Имя. Этот дар дал нам Гауранга вчера, когда он появился 533 года назад. Если бы мы могли осознать, что это за дар или какова ценность этого дара, это было бы сознанием Кришны или сознанием намы, тогда мы бы полностью осознали Святое Имя. Это Радха и Кришна. Воспевание, воспевание и воспевание каждый день, поможет нам осознать Святое Имя. Тогда мы поймем, что это Святое Имя - сам Кришна. Поэтому не забудьте подумать и поблагодарить Господа за это. Завтра во время сеанса джапы я буду в поезде из Нагпура в Насик. Однажды я попробовал провести конференцию в поезде, и это получилось. Итак, посмотрим. Надеемся, что Интернет будет стабильным, тогда мы сможем подключиться. Так что увидимся завтра. Харе Кришна! - «Мы приглашаем вас присоединиться к нам в ИСККОН-Пандхарпуре к 70-й Вьяса Пудже Его Святейшества Локанатха Свами Махараджа, инаугурации Прабхупада Гхата и специальной ятры Пандхарпура, Араваде, Колхапура и Деху с 9 по 15 июля 2019 года».