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भगवान मेरे लिए प्रकट हुए हैं आप अपने पड़ोसियों , मित्रों , भाइयों , भक्त मित्रों , को इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित कीजिए। उन्हें यह बताइये कि वे किस प्रकार इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हो सकते हैं। कल यद्यपि हमने कांफ्रेंस का आयोजन किया था परन्तु इसके होस्ट आप में से कई भक्त बन रहे थे तथा सभी आपको जप करते हुए देख रहे थे। आप भी इस प्रकार इसके होस्ट बन सकते हैं तथा आपके भक्ति वृक्ष तथा प्रचार के सदस्यों के साथ इस प्रकार की कांफ्रेंस का आयोजन कर सकते हैं। इस प्रकार आप भी होस्ट बन सकते हैं। कल जब आप मुझे नहीं देख पा रहे थे तब आप लिख रहे थे , "गुरु महाराज कहाँ हैं ? " उन समय मैं सोच रहा था कि आपको तथा हम सभी को यह सोचना चाहिए , " कृष्ण कहाँ हैं ? कृष्ण कहाँ हैं ? " गुरु महाराज को ढूंढना भी अच्छा हैं परन्तु कृष्ण को ढूंढना सर्वोत्तम हैं। तथा मैं चाहता हूँ कि आप कृष्ण की खोज करें। हे राधिके व्रज देवीके च ललिते हे नन्द सुनो कुतः (श्री षड्गोस्वामी अष्टक : श्लोक ८) वृन्दावन के षड गोस्वामी भी इसी भाव में थे , " कृष्ण कहाँ हैं ? कृष्ण कहाँ हैं ? " इसी भाव के साथ वे वृन्दावन में इधर - उधर सर्वत्र उन्हें ढूँढ रहे थे। वे यमुना के तटों पर तथा गोवर्धन पर्वत पर उन्हें खोज रहे थे , आप कहाँ हैं ? उसी प्रकार हमें भी कृष्ण की खोज करनी चाहिए। तब कृष्ण भी प्रत्युत्तर देंगे , " मैं यहाँ हूँ। मैं यहाँ हूँ। आप मुझे खोज रहे हैं , मैं यहाँ हूँ। " वे सर्वत्र हैं परन्तु जब हम जप करते हैं तथा इन नामों का उच्चारण करते हैं : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। तब भगवान कहते हैं कि ये मैं हूँ। यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण , मैं ही हूँ। ध्वनि के रूप में यह मैं हूँ। इसलिए हमें हरिनाम के रूप में भगवान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हरिनाम का जप कीजिए , उसका श्रवण कीजिए तथा स्मरण कीजिए। इस प्रकार भगवान का अनुभव कीजिए। मैं श्रीमद भगवतम का सप्तम स्कंध पढ़ रहा था , उसमे मैंने पढ़ा कि किस प्रकार प्रह्लाद महाराज की रक्षा करने के लिए , भगवान नरसिम्ह देव प्रह्लाद महाराज के लिए प्रकट हुए। उन्होंने प्रह्लाद महाराज को अपनी गोद में बिठाया तथा नरसिम्ह में जो सिंह हैं वे प्रह्लाद महाराज को प्रेम पूर्वक चाट रहे थे। इस प्रकार वे अपने स्नेह का प्रदर्शन कर रहे थे। तब मैं विचार कर रहा था कि भगवान प्रह्लाद महाराज के लिए प्रकट हुए , वे ध्रुव महाराज के लिए प्रकट हुए , वे इस भक्त के लिए तथा उस भक्त के लिए प्रकट हुए , तब मैं सोच रहा था कि मेरे विषय में क्या ? क्या वे मेरे लिए भी प्रकट होंगे। तथा वे क्यों मेरे लिए अथवा मेरे हित के लिए प्रकट नहीं हो रहे हैं ? मैंने ऐसी क्या गलती की हैं ? अतः इस प्रश्न का उत्तर बहुत बड़ा भी हो सकता हैं तथा संक्षेप में भी हो सकता हैं। भक्तिविनोद ठाकुर लिखते हैं : जीव जागो जीव जागो , गौराचान्द बोले। चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए तथा उन्होंने कहा , " हे बद्ध जीवों ! उठो। हे सोते हुए जीवों ! अब तो उठो। " तोमार लाइते आमी होइनु अवतार आमि विना बन्धु आर के आछे तोमार। उन्होंने कहा : तोमार ! तोमार लाइते आमी होइनु अवतार। मैं आपके लिए प्रकट हुआ हूँ। मैं आप में से प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रकट हुआ हूँ। भगवान आगे भी कहते हैं : आमि विना बन्धु आर के आछे तोमार अर्थात मेरे बिना आपका और कौन मित्र हैं ? क्या आपका कोई वास्तविक मित्र हैं ? क्या मेरे जैसा कोई अन्य मित्र हैं ?मैं आपका मित्र हूँ। मैं आपके लिए प्रकट हुआ हूँ। मैं आपका मित्र हूँ। उसी भजन में वे आगे कहते हैं : केनेछी औषदि माया नाशीबार लागी हरिनाम महामंत्र लहो तुमि मांगी। भगवान कहते हैं कि मैं एक औषधि के साथ आया हूँ। आपको एक बीमारी लगी हुई हैं। आप भवरोगी , मायारोगी हैं। इसलिए मैं एक औषधि लेकर आया हूँ। यह हरिनाम एक औषधि हैं। आप इसे लीजिए। इस प्रकार यह भजन हमें यह स्मरण तथा विश्वास दिलाता हैं, "भगवान मेरे लिए प्रकट हुए।" भगवान हम में से प्रत्येक के लिए प्रकट हुए हैं। इसलिए हरिनाम के रूप में भगवान का पूरा उपयोग लीजिए। भगवान प्रकट हुए , वे आप तक पहुंचे तथा उन्होंने आपको स्पर्श भी किया हैं। वे सदैव आपके साथ हैं। मैं यहाँ नाशिक में हूँ। यह मुंबई से सैकड़ों मिल दूर उसके उत्तर - पूर्व में स्थित हैं। मैं यहाँ कल पहुंचा था क्योंकि यहाँ श्री श्री राधा मदन गोपाल की स्थापना के ८ वर्ष पूर्ण हुए हैं। इसके लिए यहाँ एक विशाल उत्सव का आयोजन किया गया। इस उत्सव में लगभग ५००० भक्तों ने हिस्सा लिया। कल यहाँ अत्यंत भव्य पुष्पाभिषेक तथा कीर्तन मेला हुआ जो आज भी जारी रहेगा। परम पूज्य भक्तिचारु महाराज भी आज यहाँ पधार रहे हैं , अतः हम दोनों यहाँ के स्थानीय भक्तों के साथ इस कार्यक्रम में सम्मिलित होंगे। नाशिक एक धार्मिक स्थल हैं। यहाँ भगवान राम तथा चैतन्य महाप्रभु की लीलाएं हुई हैं , साथ ही साथ श्रील प्रभुपाद भी यहाँ पधारे थे। इसके विषय में हम कल चर्चा करेंगे। आज यहाँ दीक्षा समारोह भी हैं। मुझे उसके लिए भी तैयारी करनी हैं। अतः मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ। हरे कृष्ण !

English

LORD HAS APPEARED FOR 'ME’ Remember your friends, next door neighbours, god brothers, devotee friends , inspire them to join the conference. Teach them how to do japa on the conference. Yesterday although we conducted the conference many of you were becoming the host instead of me and they were seeing you chanting. You could also become the host in such conference and get the devotees in your area, members of the congregation and Bhakti-vriksha members to chant with you. You can become the host. Some of you were writing, ‘ Where is Guru Maharaja?’ as you were not able to see me. Then I was thinking, I would like you to think or we should be thinking, “ Where is Krsna? Where is Krsna?” Looking for Guru Maharaja is okay , but I will like you to search for Krsna. he radhike braj devike ca lalite he nandsuno kutha ( Ref.??) Shad Goswamis of Vrindavan were always in this mood, ‘Where is Krsna? Where is Krsna?’ In that mood they were wandering, running all over Vrindavan hither and thither. Around the bank of Jamuna or on the top of Govardhan Hill, where are you ? So that's how we should be looking for Krsna. But then Krsna could also respond - ‘ I am here, I am here. You are looking for Me, I am here.‘ He is everywhere but if we are chanting, and we are uttering HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE And this is Me. This Hare Krishna, Hare Krishna, this is me. In the form of sound, it's Me. So we have to meditate on the holy name of the Lord. CHANT, HEAR and REMEMBER the holy name of the Lord. Realise the Lord. I was reading Srimad Bhagavatam seventh canto and read there how Lord Narasimha appeared for Prahlada Maharaja, to protect Prahlada Maharaja. Lord took Prahlada Maharaja on his lap and Narasimha - simha part of him was licking Prahlada Maharaja. He was expressing the affection. So then I was thinking Lord appears for Prahlada Maharaja, Lord appears for Dhruva Maharaja, He appears for this devotee and that devotee but what about me? Will He appear for me also? Or why is He not appearing for my sake or for me? What have I done wrong? So the answer to this question is that it is a big answer , but it could also be a short answer. Bhaktivinoda Thakur writes: jiva jago jiva Jago gauracanda bole Caitanya Mahaprabhu has appeared and He is calling “Oh! Living entity, wake up Oh! sleeping souls.” tomar late ami hoinu avatar ami vina bandhu ke ace tomar He is saying - tomar! tomar laite ami hoinu avatar. I have appeared for you. For each one of you I have appeared. Lord is also saying ami vina bandhu ke ache tomar. - Apart from me, besides Myself who is your friend? Do you have any real friend? Or friend like me? I am your friend. I have appeared. I am your friend. Then in that song he further says Kenechi aaushadhi maya nashibar lagi Harinaam mahamantra laho Tumi magi and the song continues and the Lord says, now I have come with a medicine. You are diseased. You are Bhavarogi - mayarogi. I have come with the medicine. This holy name is a medicine. Ask for this. So this song reminds us or convinces us , “Lord has appeared for my sake.” For each one of us Lord has appeared. As Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu and also has appeared as the holy name. So take full advantage of the Lord in the form of the holy name. Lord has appeared and reached you , has touched you. He is with you. I am here in Nasik. It is north-east of Mumbai, a few hundred miles from Mumbai. I arrived here yesterday for celebration of 8th Appearance day of Deities here. Sri Sri Radha Madana Gopal were installed eight years ago. So there was a grand celebrations. There were almost five thousand devotees in this festival. There was a big Pushpabhishek and Kirtana Mela yesterday and today also the celebrations will continue. HH Bhakti Charu Maharaja also will be arriving today, so together we will be celebrating along with the local devotees. Nasik is a big holy place. Rama’s pastimes and Caitanya Mahaprabhu's pastimes and Srila Prabhupad also had visited Nasik, so maybe we will talk about it tomorrow morning. Today also we have an initiation ceremony. I have to get ready. So we will stop here. Hare Krishna!

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