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युगधर्म - हरिनाम संकीर्तन आप सभी साधकों को हरे कृष्ण। आज का स्कोर हैं ३९०। चूँकि आज गौर पूर्णिमा हैं अतः मैं एक बड़ी संख्या की उम्मीद कर रहा था। मेरे आस पास लगभग १०० भक्त जप कर रहे हैंऔर भी कई प्रतियोगी अपने दल के साथ जप कर रहे हैं जिसमे भक्तों की संख्या और अधिक हैं। " गौर पूर्णिमा की हार्दिक बधाई " इस प्रकार के कई सन्देश आ रहे हैं। मैं भी आप सभी को गौर पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें प्रदान करता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि आप सभी के लिए केवल गौर पूर्णिमा का दिन ही आनंददायक नहीं रहे अपितु आप सदैव हरे कृष्ण का जप कीजिए जिससे आपका प्रत्येक दिन आनंद प्रदान करने वाला दिन बन सके। श्रील प्रभुपाद ने सम्पूर्ण विश्व को यह सन्देश दिया ' हरे कृष्ण का जप कीजिए तथा प्रसन्न रहिए। ' परन्तु ऐसा भी कहा जाता हैं कि इसके अन्यथा और कोई मार्ग नहीं हैं : हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम इव केवलं। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिर अन्यथा।। (चैतन्य चरितामृत आदिलीला - ७.२६) इसके अलावा और कोई मार्ग नहीं हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी इसी सन्देश को वाराणसी में पुनः प्रकाशानंद सरस्वती को कहा था। उस समय एक प्रकार से वाद - विवाद चल रहा था। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरिनाम की महिमा को स्थापित करना चाहते थे। न तो कोई उनके समान हैं और न ही कोई उनसे महान हैं। उन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा - हरेर नाम हरेर नाम इव केवलं। इसके अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं हैं , आप कृपया अपना मुंह बंद रखें। उस समय चैतन्य महाप्रभु ने प्रकाशानंद सरस्वती को यह भी कहा।, " मेरे गुरु महाराज ने मुझे कहा हैं " मुर्ख तुमि " तुम एक मुर्ख हो। तुम वेदों का अध्ययन करने में सक्षम नहीं हो। तुम हरे कृष्ण हरे कृष्ण के नामों का जप कर सकते हो। यह कलियुग हैं जहाँ हम वेदाध्ययन नहीं कर सकते हैं। आज गौर पूर्णिमा के दिन अवतरित हुए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मुख्य उद्देश्य इस हरिनाम का सम्पूर्ण जगत में प्रचार करना हैं तथा इसका सभी को वितरण करना हैं। इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना इस कलियुग का युग धर्म हैं। वे भगवान इसके विषय में प्रकाशानंद सरस्वती से वादविवाद कर रहे थे। अंततः सभी को परास्त करते हुए उन्होंने हरिनाम की महिमा को स्थापित किया। उन्होंने कहा परित्राणाय साधुनाम , विनाशाय च दुष्कृतां। धर्म संस्थापनार्थाय , सं भवामी युगे युगे।। (भगवद गीता ४.८) साधुओं का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए मैं प्रत्येक युग में अवतार लेता हूँ। मैं प्रत्येक युग में धर्म को स्थापित करने के लिए अवतार लेता हूँ। यह कलियुग हैं तथा कलीयुग में - कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा। अतः कलियुग का धर्म हैं हरे कृष्ण महामंत्र का जप तथा कीर्तन करना। जब वे प्रकाशानंद सरस्वती से चर्चा कर रहे थे , तब प्रकाशानंद सरस्वती के ६० , ००० शिष्य थे। मुझे यह नहीं पता कि उस स्थान पर उनमे से कितने उपस्थित थे। यदि सभी साठ हज़ार नहीं होंगे तो भी लगभग एक हज़ार शिष्य तो उस समय भी उपस्थित होंगे। तत्पश्चात चैतन्य महाप्रभु ने हरिनाम की महिमा में अपने व्यक्तिगत अनुभव बताए। उन्होंने अपने शुभ अनुभव , स्वयं के अनुभव तथा हरिनाम के अनुभवों का वर्णन किया। उन्होंने प्रकाशानंद सरस्वती को कहा : मुर्ख तुमी तोमार नाहिक वेदांताधिकार। ' कृष्ण मन्त्र ' जप सदा - एई मन्त्र सार।। (चैतन्य चरितामृत आदिलीला ७.७२) उन्होंने कहा , " तुम एक मुर्ख हो अतः तुम वेदांत सूत्र पढ़ने के अधिकारी नहीं हो। तुम इस कृष्ण मंत्र का जप करो जो सभी मन्त्रों का तथा वेदों का सार हैं। " उन्होंने कहा ' मुर्ख तुमी ' अर्थात तुम मुर्ख हो इसका अर्थ हैं कि आप सभी मुर्ख हो जिसमे मैं भी सम्मिलित हूँ। यही विचार हैं। गुरु के समक्ष हम सभी मुर्ख हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा , " मैंने अपने गुरु महाराज से यह महामंत्र ग्रहण किया हैं तथा इसी का जप करता हूँ। " उन्होंने कहा जब से वे इस मन्त्र का जप कर रहे हैं उन्हें कृष्ण का अनुभव , सम्पूर्ण अनुभव , वृन्दावन धाम का अनुभव , भगवान के नाम , रूप , गुण तथा लीलाओं का अनुभव होता हैं। एक कार्य जो वे तुरंत करना चाहते थे - वे वृन्दावन जाना चाहते थे , इस प्रकार नाम से धाम की प्राप्ति होती हैं। हमारे लिए इसमें बहुत अधिक समय लगेगा। हम यह हरिनाम स्वीकार करते हैं उसके पश्चात भी - बहु जन्म लगेंगे। इस भाग को उन्होंने प्रकाशानंद के साथ साझा किया , उन्होंने कहा कि जब वे जप, कीर्तन तथा नृत्य करते हुए पुनः नवद्वीप में आए तो सभी नगरवासी उनके शरीर में सात्विक विकार देखने लगे ,जैसे उनके शरीर में रोमांच हो रहा था , उनकी आँखों से अश्रु धारा बह रही थी, वे निरंतर नृत्य कर रहे थे तथा कभी कभी वे स्तब्ध हो जाते तो कभी कभी भूमि पर लोटने लगते थे। अतः उन सभी ने मुझे ' पागल ! पागल ! ' कहना प्रारम्भ कर दिया। यह पागल हो गया हैं , इसके सर में किसी अच्छे तेल से मालिश करो। तब मैं पुनः अपने गुरु के पास गया तथा उनसे कहा : किबा मन्त्र दिला गोसाईं , किबा तार बल। जपिते जपिते मन्त्र करीला पागल।। (चैतन्य चरितामृत १.७.८१) हे गुरु महाराज ! आपने मुझे यह कौनसा मन्त्र दिया हैं ? यह अत्यंत शक्तिशाली मन्त्र हैं। इसका जप करते करते मैं पागल हो गया हूँ। नाम्नां कारी बहुधा निज सर्वशक्ति (शिक्षाष्टकम श्लोक २) इस मन्त्र में सभी शक्तियां हैं , कौनसे मन्त्र में : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। भक्तिविनोद ठाकुर हरिनाम चिंतामणि में कहते हैं : नाम नाचे जीव नाचे नाचे प्रेमधन। जब भी हम हरिनाम का जप प्रारम्भ करते हैं वहां नृत्य प्रारम्भ हो जाता हैं। इसका अर्थ हैं राधारानी नृत्य करती हैं तथा कृष्ण भी नृत्य करते हैं। जीव नाचे का अर्थ हैं कि जीव भी इस नृत्य दल में सम्मिलित हो जाते हैं। नाचे प्रेम धन का अर्थ हैं कि यह हरिनाम रूपी धन भी नृत्य करता हैं। अतः जहाँ जप होता हैं वहां प्रत्येक व्यक्ति नृत्य करने लग जाता हैं। भगवान स्वयं नृत्य तथा कीर्तन करते हैं। जीव भी कीर्तन तथा नृत्य करता हैं। निःसंदेह यही पूर्णता हंक , यही हमारे साधना की परिपक्व अवस्था हैं जो पूर्णरूपेण भक्ति से भरी हुई हैं तथा सर्वोच्च मुक्ति हैं। जब यह उदित होती हैं तब : नाम नाचे जीव नाचे नाचे प्रेमधन होता हैं। एक समय श्रील प्रभुपाद ने कहा था कि हमारे जीवन का लक्ष्य राधा कृष्ण के नृत्य दल में सम्मिलित होना हैं। हरिनाम पर इस प्रकार और भी कई आचार्यों की टिकाएं हैं। वे कहते हैं कि जब हम महामंत्र का जप करते हैं तथा जब हरे कहते हैं जो कि राधारानी का नाम हैं तब कृष्ण प्रसन्न होते हैं। कोई मेरी राधा का नाम ले रहा हैं ऐसा सोचकर वे नृत्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। वे अत्यंत उल्लसित हो जाते हैं। जब साधक कृष्ण कहते हैं तो राधारानी जो भगवान कृष्ण से अधिक दूर नहीं हैं सोचती हैं , " ओह ! कोई मेरे कृष्ण का नाम ले रहा हैं। " तथा इससे वह प्रसन्न हो जाती हैं। जब हम हरे कहते हैं तो कृष्ण नृत्य करने लगते हैं तथा जब हम कृष्ण कहते हैं तो राधारानी नृत्य करती हैं। यही नाम नाचे का वास्तव में अनुभव हैं। नाम नाचे - नाम तथा रूप में कोई भेद नहीं हैं वे दोनों अभिन्न हैं। अभिन्नत्वात नाम नामिनो (पद्म पुराण) . जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण का जप करते हैं तो नाम नृत्य करता हैं , स्वयं राधा तथा कृष्ण नृत्य करते हैं तथा राधा - कृष्ण को नृत्य करते हुए देखकर सभी जीव भी नृत्य करने लगते हैं। निःसंदेह यह नाम सिद्धी की परिपक्व स्थिति हैं। जब हम भगवान के पवित्र नामों के जप करने में सिद्ध हो जाएंगे तब वही वास्तव में सिद्धि होगी। हम अभी केवल साधक हैं , सिद्ध नहीं हैं , सिद्ध बनने के लिए हमें बहुत अभ्यास करना होगा। अभ्यास करने के व्यक्ति उत्तम बन सकता हैं। अतः सबसे उपयुक्त हैं कि प्रतिदिन , हर समय जप कीजिए। इस प्रकार एक दिन हम इसमें अवश्य सिद्धि प्राप्त कर पाएंगे। आज गौर पूर्णिमा के दिन आप अपने जप को ध्यानपूर्वक करने का संकल्प ले सकते हैं। हमें हरिनाम में अपने विश्वास को बढ़ाना चाहिए क्योंकि हरिनाम में पूर्ण विश्वास न होना भी एक अपराध हैं। मैं आशा करता हूँ कि हरिनाम में आपका विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता रहे। मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ। मैं आज सुबह ८ बजे गौर पूर्णिमा उत्सव के उपलक्ष्य में कक्षा दूँगा , यदि आपके समय हो तथा यदि आपकी इसमें रूचि हो तो आप इसे फेसबुक पर देख सकते हैं। यह कक्षा हिन्दी में होगी। आज दिन के समय हम अपने मंदिर के प्रांगण में अनन्तशेष की स्थापना करेंगे। हम अनन्तशेष से प्रार्थना करेंगे कि वे इस मन्दिर को अपने दिव्य फणों पर टिका कर रखे। ठीक हैं ! हम इस सत्र को यहीं विराम देते हैं। हरे कृष्ण !

English

YUGADHARMA - HARINAMA SANKIRTANA! Hare Krishna to all the chanters. Today's score is 390 participants. I was expecting a bigger number being Gaur Purnima. Around me about 100 devotees are chanting. Many other participants are with bigger groups. There are lots of messages about 'Happy Gaur Purnima’. I also wish you Happy Gaur Purnima!! This wish for you to be happy is not only on Gaur Purnima , but every single day you could be happy by chanting Hare Krishna! Srila Prabhupad's message to the whole world is ‘chant Hare Krishna and be happy. But it's also said, there is no other way - harer nama harer nama harer namaiva kevalam kalau nasty eva nasty eva nasty eva gatir anyatha ( CC Adi 7.26) There is no other way. Sri Krsna Caitanya also repeated this message in Varanasi to Prakashananda Saraswati. The whole was debate going on . Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu attempted to establish the glories of the holy name. No one is equal to him and no one is above him. That Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu also said harer nama harer namaiva kevalam. There is no other way. You shut up. That time Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu also said to Prakashanands Saraswati, ‘My Guru Maharaja said to me murkh tumi… ‘ You are the fool. You are not competent to study the vedas. You are just fit for chanting Hare Krishna, Hare Krishna. This is the age of Kali and you cannot study the Vedas. The sole purpose of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu who appeared today on Gaur Purnima day was to share the holy name, propagate the holy name all over the world. To establish this chanting of Hare Krishna is the dharma for the age of Kali. That Lord was in debate with Prakashananda Saraswati. He successfully established the glories of the holy name defeating everybody. He said paritrāṇāya sādhūnāṁ vināśāya ca duṣkṛtām dharma-saṁsthāpanārthāya sambhavāmi yuge yuge ( BG. 4.8) To deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to reestablish the principles of religion, I Myself appear, millennium after millennium. I appear to establish Dharma in every age. This is the age of Kali and kalau nasty eva nasty eva nasty eva gatir anyatha. So religion for age of Kali is chanting of Hare Krishna. As he was talking to Prakashananda Saraswati, who had 60,000 disciples. I don't know how many were present at that time. There must be thousands if not sixty-thousand. Caitanya Mahaprabhu further explained his personal experience, his realisations of the glories of the holy name. His realisations - self realisation, god realisation , holy name realisations. He shared that with Prakashananda Saraswati. He said - mūrkha tumi, tomāra nāhika vedāntādhikāra ‘kṛṣṇa-mantra’ japa sadā, — ei mantra-sāra (CC Adi 7.72) “ ‘You are a fool,’ he said. ‘You are not qualified to study Vedānta philosophy, and therefore You must always chant the holy name of Kṛṣṇa. This is the essence of all mantras, or Vedic hymns. He said mūrkha tumi. You are fool. That means you are all fools, including myself. That's the idea. In front of Guru you are fool. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu said, ‘I received the holy name from my Guru Maharaja and I started chanting. He said as he started chanting the holy name, he had full realisation, Krsna realisation, Vrindavan dham realisation, nama, rupa ,guna ,dham, lila realisations. One thing he wanted to do immediately was to run to Vrindavan - from nama to dham. For us that takes a lot of time. We receive the holy name then bahu-janma. This part He has shared with Prakashananda Saraswati, that He returned chanting and chanting. ‘I returned to Nabadwip chanting and dancing, in a state of mind that all the people watching me saw my trembling body, shedding tears, singing, sometimes rolling on the ground, stunned and what not. So they all started calling me 'Pagal pagal’!! He has gone mad. Massage him with some special oil. Then Caitanya Mahaprabhu said, ‘I went back to my Guru Maharaja and asked him , kibā mantra dilā, gosāñi, kibā tāra bala japite japite mantra karila pāgala ( CC 1.7.81) My dear lord, what kind of mantra have you given Me? I have become mad simply by chanting this mahā-mantra! What kind of mantra have you given me Guru Maharaja ? What a powerful mantra. As I have been chanting,I have gone mad. namnam akari bahudha nija-sarva-saktis ( Siksastakam verse 2) This mantra has all the power, which mantra HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAM RAM HARE HARE Bhaktivinoda Thakura has said in Harinama Cintamani - nama nace jiva nace nace premadhan. When there is chanting the holy name begins dancing. It means Radharani is dancing and Krsna is dancing. Jiva nace means jiva joins this dancing party. Nace premadhan means this wealth of the Harinama is also dances. The holy name is dancing. So when there is chanting everybody is dancing. Lord begins dancing and Chanting. Jiva - the chanter begins chanting and dancing. Of course this is the perfection, topmost evolution, full of devotion . When it is aroused, this is what happens nama nace jiva nace nace premadhan. One time Prabhupada said that the goal of life is to join the dancing party of Radha and Krsna. There are also comments of the acaryas, commenting on the holy name. They say when we chant the mahamantra and when we say Hare which is Radharani's name then Krsna becomes very happy. Someone is chanting my Radha's name and He begins dancing. He becomes jubilant. As the chanter chants Krsna then Radharani who is not far from Krsna exclaims, “Oh! Someone is chanting my Krsna’s name and She becomes very happy . As we say Hare, Krishna begins dancing and as we say Krishna, Radha begins dancing. Then this is - nama nace . Nama nace - names and the forms are non-different. abhinnatvat nama namino. ( Padma Purana). As we chant Hare Krishna Hare Krishna , the name is dancing, Radha Krishna are dancing and the living entity, Jiva also begins dancing seeing my Radha and Krsna dancing. Of course this is the perfect stage - nama siddhi. When we attain the perfection in chanting the holy names of the Lord then this is siddhi or perfection. We are sadhakas,not siddhas as of yet which could only be achieved by practice. Practice makes man perfect. So better chant everyday, all the time of the day. Then one day we will attain perfection. On this occasion of Gaur Purnima day, take your chanting seriously. Let your faith in holy name increase, because not to have faith in the holy name is an offense. My best wishes for you - May your faith increase day by day. So we will stop here. I will be giving Gaur Purnima class at 8.00 am, if you have time and interest you can watch it on Facebook. Class will be in Hindi. During the day we will be installing Ananta Sesa at our new temple project site. We will be praying and begging Lord Ananta Sesa to hold the whole project on his transcendental hoods. Okay, we stop here. Hare Krishna!

Russian

ЮГАДХАРМА - ХАРИНАМА САНКИРТАНА! Харе Кришна всем воспевающим. Сегодняшнее количество 390 участников. Я ожидал большего числа на Гаура Пурниму. Вокруг меня воспевают около 100 преданных. Многие другие участники воспевают большими группами. Приходит много сообщений с пожеланиями «Счастливой Гаура Пурнимы». Я также желаю вам счастливой Гаура Пурнимы! Я желаю вам быть счастливыми не только на Гаура Пурниму, вы каждый день можете быть счастливы, повторяя Харе Кришна! Послание Шрилы Прабхупады всему миру - повторяйте Харе Кришна и будьте счастливы. Но также сказано, что нет другого пути - харер нама харер нама харер намаива кевалам калау насти эва насти эва насти эва гатир анйатха В век Кали нет другого пути, нет другого пути, нет другого пути к постижению себя, кроме Повторения Святого Имени, Повторения Святого Имени, Повторения Святого Имени Господа Хари». (ЧЧ ади 17.21) Другого пути нет. Шри Кришна Чайтанья также повторил это послание в Варанаси Пракашананде Сарасвати. Между ними продолжалась дискуссия. Шри Кришна Чайтанья Махапрабху пытался укрепить славу Святого Имени. Никто не равен Святому Имени, и никто не выше Него это Верховная Личность Бога. Шри Кришна Чайтанья Махапрабху также сказал: харер нама харер намаива кевалам. Нет другого пути! А Вы молчите! Шри Кришна Чайтанья Махапрабху сказал Пракашанандам Сарасвати: «Мой Гуру Махарадж сказал мне муркх туми…» Ты - дурак. Ты не компетентен изучать веды. Ты годен только повторять Харе Кришна, Харе Кришна. Это век Кали, и ты не можешь изучать Веды. Единственная цель Шри Кришны Чайтаньи Махапрабху, который появился сегодня в день Гаура Пурнимы, состояла в том, чтобы делиться Святым Именем, распространять Святое Имя по всему миру. Утверждать, что повторение Харе Кришна - это дхарма для века Кали. Господь спорил с Пракашанандой Сарасвати. Он успешно установил славу Святого Имени, победив всех. Он сказал паритранайа садхунам винашайа ча душкртам дхарма-самстхапанартхайа самбхавами йуге йуге "Чтобы освободить праведников и уничтожить злодеев, а также восстановить устои религии, Я прихожу сюда из века в век." (БГ 4.8) Я устанавливаю Дхарму из века в век. Это век Кали и калау насти эва насти эва насти эва гатир анйатха . Поэтому религия для века Кали - это воспевание Харе Кришна. Когда он разговаривал с Пракашанандой Сарасвати, у которого было 60 000 учеников. Я не знаю, сколько их было в то время. Там должно быть были тысячи, если не шестьдесят тысяч. Чайтанья Махапрабху далее объяснил свой личный опыт, свое понимание Славы Святого Имени. Свое понимание - понимание себя, понимание Бога, понимание Святого Имени. Он поделился этим с Пракашанандой Сарасвати. Он сказал - муркха туми, томара нахика ведантадхикара ‘кршна-мантра’ джапа сада, - эи мантра-сара Ты глупец, — сказал он Мне, — Ты не способен изучать философию веданты и потому должен всегда повторять святое имя Кришны. В нем суть всех мантр и гимнов Вед (ЧЧ Ади 7.72) Он сказал муркха туми. Ты дурак. Это означает, что вы все дураки, включая меня. Такова идея. Перед Гуру ты дурак. Шри Кришна Чайтанья Махапрабху сказал: «Я получил святое имя от моего Гуру Махараджа и начал воспевать. Он сказал, что когда он начал повторять Святое Имя, у него было полное осознание, сознание Кришны, осознание Вриндаван-дхамы, осознание нама, рупа, гуна, лилы Вриндаван-дхамы. Единственное что Он хотел сделать немедленно - это бежать во Вриндаван - от намы к дхаме. У нас это занимает много времени. После того как мы получаем Святое Имя, затем - баху-джанма (баху — множество; джанма — рождений). Этим Он поделился с Пракашанандой Сарасвати, что получив приказ от своего Духовного Учителя Он стал постоянно повторять Святое Имя. "Я вернулся в Навадвипу, воспевая и танцуя, в таком состоянии, что все люди, наблюдающие за мной, видели разные симптомы, видели мое дрожащее тело, проливающиеся слезы, пение, иногда видели меня катающегося по земле, остолбеневшим и не только. Поэтому они все стали называть меня «Пагал Пагал» !! Он сошел с ума. Сделайте ему массаж специальным маслом. Затем Чайтанья Махапрабху сказал: «Я вернулся к своему Гуру Махараджу и спросил его: киба мантра дила, госани, киба тара бала джапите джапите мантра карила пагала (ЧЧАди 7.81) «Мой господин, что за мантру ты Мне дал? Я сошел с ума, повторяя эту маха-мантру». намнам акари бахудха ниджа-сарва-шактис (Шикша́штака, стих 2) Эта мантра обладает всей силой, какая мантра Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Бхактивинода Тхакур сказал в Харинама Чинтамани - nama nache jiva nache nache premadhan. Когда есть воспевание, Святое Имя начинает танцевать. Это означает, что Радхарани танцует, и Кришна танцует. джива наче означает, что джива присоединяется к этой танцевальной вечеринке. Nache premadhan означает – когда воспеваются Святые имена, все танцуют. Святое Имя танцует. Господь начинает петь и танцевать. Джива – воспевающий, начинает петь и танцевать. Конечно, это совершенство, высшая эволюция, полное предание. Когда оно пробуждается, происходит nama nache jiva nache nache premadhan. Однажды Прабхупада сказал, что цель нашей жизни - присоединиться к танцевальной вечеринке Радхи и Кришны. Есть также комментарии ачарьев, комментирующих Святое Имя. Они говорят, что когда мы повторяем Харе Кришна, Харе Кришна.. и произносим «Харе», как зовут Радхарани, тогда Кришна становится очень счастлив. «Кто-то повторяет имя Моей Радхи!, и Он начинает танцевать. Он становится ликующим. Когда воспевающий говорит Кришна, Радхарани, которая находится недалеко от Кришны, восклицает: «О! Кто-то повторяет имя моего Кришны!», и она становится очень счастливой. Когда мы говорим Харе, Кришна начинает танцевать, а когда мы говорим Кришна, Радха начинает танцевать. Тогда это - nama nache, nama nache – имя не отлично от формы. 'бхиннатван нама-наминох (Падма Пурана). Когда мы повторяем Харе Кришна Харе Кришна, Имя танцует, Радха и Кришна танцуют и живое существо, Джива также начинает танцевать, видя, как танцуют Радха и Кришна. Конечно, это высшая ступень - нама сиддхи. Когда мы достигаем совершенства в повторении святых имен Господа, тогда это сиддхи или совершенство. Мы - садхаки, а не сиддхи, сидхи можно достичь только практикой. Практика делает человека совершенным. Для нас лучше воспевать каждый день, весь день. Тогда однажды мы достигнем совершенства. По этому случаю дня Гаура Пурнимы, серьезно отнеситесь к своему воспеванию. Пусть ваша вера в Святое Имя возрастет, потому что не верить в Святое Имя - это оскорбление. Мои наилучшие пожелания вам - пусть ваша вера возрастает с каждым днем. Итак, мы остановимся здесь. Я буду вести класс Бхагаватам на Гаура Пурниму в 8.00, если у вас есть время и интерес, вы можете посмотреть его на Facebook. Класс будет на хинди. В течение дня мы будем устанавливать Ананта Шешу на нашем новом месте проекта храма. Мы будем молиться и просить Господа Ананта Шешу держать весь проект на Его трансцендентных капюшонах. Хорошо, мы остановимся здесь. Харе Кришна! - «Мы приглашаем вас присоединиться к нам в ИСККОН-Пандхарпуре к 70-й Вьяса Пудже Его Святейшества Локанатха Свами Махараджа, инаугурации Прабхупада Гхата и специальной ятры Пандхарпура, Араваде, Колхапура и Деху с 9 по 15 июля 2019 года»