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हरे कृष्णा , श्री गुरु गौरांग जयते 8 मई 2020, पंढरपूर धाम. हरी हरी! श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। सभी भक्तवृन्द जो संसार भर से जप कर रहे हैं, संसार भर से वैसे भक्त जप तो करते ही हैं लेकिन हमारे साथ जैसे आप ज़ूम पर जप कर रहे हो, नासिकरोड के भक्त भी है, या फिर महालक्ष्मी भी है,७७७ स्थानों से भक्त जप कर हे। इष्टदेव जप कर रहे हो, जप करो । तो अब हमारे पास समय कम है क्योंकि इतने दिन हम कथा कर रहे थे तो उसका टाइम टेबल अलग था, जप भी थोड़ा जल्द शुरू होता था और कथा को भी हम और थोड़ा लंबा खींच रहे थे, वे दिन तो चले गए अभी, नये दिन या नया जमाना या अब हम पुनः पहले की तरह जप करेंगे और जप चर्चा करेंगे । कथा में थोड़ी सी लीला का उल्लेख भी होता है लेकिन जप चर्चा थोड़ा प्रवचन टाइप होता है । आज जप कॉन्फ्रेंस के प्रारंभ में हम चैट सेशन को बंद करना भूल गए तो फिर आप में से कुछ जपकर्ता उसका लाभ उठाना शुरू किए फिर हम को बंद करना पड़ा।लेकिन जो कुछ लिखना प्रारंभ कर रहे थे चैट सेशन में पिछले 7 दिवसीय कथा का अनुमोदन या फिर अपना हर्ष व्यक्त कर रहे थे, प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे अधिकतर, तो फिर मुझे विचार आया क्यों ना आप सभी से यह पूछा जाए या फिर उसका उत्तर दें कि कैसी रही कथा? यह एक.उत्तर होता है, यहां जो भक्त उपस्थित है उन सभी ने कहा हरिबोल! और हो सकता है आप सभी भक्त जो ज़ूम कॉन्फ्रेंस से इसमें सम्मिलित हुए है उन सभी ने भी कहां होगा या फिर सोचा होगा चलो हरि बोल कह ही देते हैं। लेकिन हम या मैं आप से जानना चाहता हूं कैसी रही कथा केवल हरि बोल, कथा अद्भुत थी या फिर बढ़िया रही, सुंदर रही.. लेकिन क्यों सुंदर रही?क्या बढ़िया रहा उस कथा में ? ऐसा कुछ हम सुनना चाहते हैं। आज पहले हम जप चर्चा करेंगे उसके उपरांत आपको समय देंगे थोड़ी देर के लिए अपने अनुभव साझा करने के लिए। देखते हैं कितना समय बचता है उस समय आप लिख लेना, अपने साक्षात्कार लिखो, आपके अनुभव, कैसी रही कथा उसके उत्तर में, कथा आपको अच्छी लगी तो क्यों लगी ? कौन सी कथा आपको अच्छी लगी? या कौन सी कथासे आप अधिक प्रभावित रहे, कथा का कौन सा भाग अविस्मरणीय लगा मतलब कभी उसको भूलोगे नहीं, ऐसे भी कुछ कथाएं बातें होती है सुनते सुनते कुछ बातें हमारी मन को आकृष्ट करती हैं और अपना प्रभाव डालती हैं और हमारे चित्त से चिपकी रहती हैं वह कथा या वह विचार, फिर हम उनको भूल नहीं पाते हैं। तो ऐसी कोई कथा आपने सुनी है या फिर कोई लीला या कुछ विचार, कि उसे आप नहीं भूले या फिर यह कथा से आपको कुछ मदद, ध्यानपूर्वक जप करने में आपको मदद होगी या फिर ऐसा भी कोई साक्षात्कार आप लिखिए और कैसी मदद होगी ध्यान पूर्वक जप करने में हरि हरि। या फिर कई सारे चरित्र अभी आप सुन रहे थे जैसे केवल सीता का ही चरित्र नहीं या फिर नरसिंह भगवान का, या फिर केवल रुकमणी का ही नहीं। याद है रुक्मणी का चरित्र कैसे वह सुना करती थी द्वारकाधीश की कथा, वह चरित्र के अंतर्गत है। और कई आचार्यों के चरित्र भी आपने सुने हैं क्या आप उससे भी लाभान्वित हुए। आचार्य के चरित्र पढ़ के ही या फिर सुनकर हम चरित्रवान बन जाए यह भी एक प्रार्थना है या फिर हमारी आंतरिक इच्छा होनी चाहिए। राम का चरित्र, राम भक्तों का चरित्र रामदास का मतलब कौन? कौन है रामदास हनुमान! हनुमान का चरित्र पढ़कर आप अच्छे ब्रह्मचारी बन जाओगे वैसे कुछ उस दास का चरित्र पढ़कर चरित्रवान होते हैं यहा में थोड़ी बातें विस्तार से कह रहा हूं मुझे और कुछ कहना तो था तो यह जप चर्चा हो गई। कथा ही हुई पिछले 7 दिनों में या फिर श्रवण उत्सव हो गया। तो आप ने कीर्तन किया, आपने श्रवण किया और साथ में आपने स्मरण भी किया होगा ही तो आपके लिए उसमें से कौन सी अविस्मरणीय या फिर श्नवणम कीर्तनम आपको आकर्षित लगा। वो चरित्र जिनका उल्लेख मुझे कल ही करना चाहिए था लेकिन समय का अभाव प्रभाव हम नहीं ले पाए या फिर थोड़ा कहना प्रारंभ किया था श्रीनिवासाचर्य जिनका कल आविर्भाव तिथि महोत्सव था श्रीनिवास आचार्य की जय!! तो श्रीनिवासाचार्य के माता-पिता वे नि संतान थे उनका कोई अपत्य नहीं था इसीलिए वे थोड़े दुखी थे, होते हैं ना सब पति पत्नी तो वहां भगवान से प्रार्थना भी कर रहे थे भगवान हमें पुत्र रत्न या फिर पुत्रीरत्न हो सकता है कि हमें प्राप्त हो और वह भक्त हो। तो वो एक समय जगन्नाथपुरी धाम आ चुके थे तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु से मिलकर उनके चरणों में उनसे प्रार्थना करना चाह रहे थे लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने उनसे कहा कि मेरे पास क्यों आए हो? जगन्नाथ के पास जाओ और फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभुने गोविंद दास चैतन्य महाप्रभु के निजी सेवक थे तथा जो वपु सेवा में थे वैसे थे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के गुरु भाई लेकिन गुरु महाराज जब नहीं रहे ईश्वरपुरी। ईश्वरपुरी ने कहा कि हे गोविंद तुम अभी जगन्नाथपुरी में जाओ और जो तुम्हारे भ्राताश्री श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की सेवा करो तो, वे श्रीनिवास की बात को कहेंगे जो जन्म में भी नहीं है गोविंद उनको लेकर गए श्रीनिवासाचार्य जो अभी जन्म में भी नहीं उनके माता-पिता को वह जगन्नाथ मंदिर लेकर गए फिर उन्होंने जगन्नाथ जी से प्रार्थना की फिर उनके आवास निवास की भी व्यवस्था की और फिर लौट आ गए। महाप्रभु के पास तब उन्होंने गोविंद को कहा कि मैं जानता था कि वे क्यों आए थे मेरे पास, इसीलिए मैंने उनको जगन्नाथ के पास भेजा और मैं जानता था कि वह क्या प्रार्थना करेंगे क्योंकि मैं कौन हूं मैं स्वयं ही जगन्नाथ हूं। जेई गोर सेई कृष्णा सेई जगन्नाथ तुम जाओ और श्रीनिवास के होने वाले माता-पिता उनसे जाकर मिलो और कहो जगन्नाथ स्वामी ने और मैंने भी उनकी जो प्रार्थना है उसे स्वीकार कर लिया है और उनको एक पुत्ररत्न जरूर प्राप्त होगा और उसका नाम होगा श्रीनिवास। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने किया अभी तक गर्भाधान संस्कार भी नहीं हुआ है और गर्भ में भी नहीं है अभी तक यह बालक और उसका जन्म भी नहीं है श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने इसका नामकरण किया श्रीनिवास होगा इसका नाम और मैं तो रूप और सनातन से ग्रंथों की इसकी रचना कराऊंगा लेकिन यह ग्रंथों का प्रचार-प्रसार का कार्य वितरण का कार्य श्रीनिवास करेगा। जाकर बता दो तो फिर गोविंद ने ऐसे ही किया। वह लोग फिर अपने गांव लौटे फिर श्रीनिवास का जन्म हुआ तो फिर कल वहीं आविर्भाव तिथि उत्सव मना रहे थे। श्रीनिवास वहां धीरे-धीरे छोटे के बड़े हो गए। श्रीनिवास आचार्य फिर श्रीखंड नाम का एक धाम था वहां के नरहरि सरकार श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की एक परिकर रहा करते थे। वे अच्छे गायक थे किब नरहरि आदि करी चामर ढुलाय... चामर डुलारते थे जब चैतन्य महाप्रभु की आरती होती थी। तो नरहरी सरकार महात्मा थे। चैतन्य महाप्रभु उनके धाम से बहुत सारे महात्मा को पकड़ कर लाए थे वैसे चैतन्य महाप्रभु का ही अवतार नहीं हुआ तो गोलोक में जो नवद्वीप है उसे श्वेतद्विप कहते हैं वहां के असंख्य परीकर नित्य सिद्ध परिकर भी अवतरित हुए थे। चैतन्याभागवत में वैष्णव के अवतारों की बात हुई तो केवल संभवामि युगे युगे भगवान के अवतार की बातें नहीं होती भगवान के भक्त भी अवतार लेते हैं या फिर अवतार देते हैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु। तो ऐसे नरहरी सरकार का सानिध्य प्राप्त हुआ हमारे श्रीनिवास को तो वे भी हो गए श्रीनिवास आचार्य !श्रीनिवासाचार्य हो गए, वह श्रीनिवास आचार्य हो गए स्वयं। नरहरि सरकार श्रीनिवासाचार्य के शिक्षा गुरु थे। फिर आज का शिष्य कल का गुरु तो..थे शिष्य श्रीनिवास आचार्य फिर आचार्यों के गुरुजनों के सानिध्य में या उनके प्रशिक्षण से स्वयं ही हो गए फिर गुरु। गुरु मतलब भारी वजनदार और गुरु के विपरीत होता है लघु। एक होता है गुरु और दूसरा होता है लघु। लसावी मसावी माहितेका... तो लघु, लघु मतलब हल्का या फिर हलकट भी हो सकता है मराठी में हलकट, फिर हल्की बातें, तुच्छ बातें करता है, सुनता है। तो श्रीनिवास आचार्य स्वयं ही गुरु हो गए ।तो फिर नरहरि सरकार ने कहां जाओ और....। वह जानते थे की चैतन्य महाप्रभु अधिक समय इस संसार में नहीं रहेंगे उनके प्रकट लीला का समापन.... तो श्रीनिवासाचार्य जगन्नाथ पुरी की ओर प्रस्थान किए। क्या उद्देश्य था, वहां जाकर में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु से मिलूंगा, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मुझे दर्शन होगा , बड़े उत्कंठीत थे। कई लालायित थे, बड़ा ही लोभ था मन में चैतन्य महाप्रभु के दर्शन और सानिध्य का। किंतु श्रीनिवास आचार्य जब रास्ते में ही थे तब उनको समाचार मिला कि कुछ ही समय पहले श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अंतर्धान हो गए। हरि ! हरि ! फिर गदाधर पंडित से...जगन्नाथ पुरी जाऊंगा तो गदाधर पंडित से मे कथा... भागवत कथा का श्रवण करूंगा। करोगे...सोकर तो नहीं हो सकता, जगना होगा तभी सुन सकते हैं। तत्पश्चात वह गदाधर पंडित के पास गए, और उनसे निवेदन किया कि मुझे कथा सुनाइए.. मुझे कथा सुनाइए गदाधर पंडित ने कहा हां सुना तो सकता हूं ,लेकिन देखो मेरे पोथी का, जिस ग्रंथ का उपयोग करते थे पढ़ने के लिए, देखो उसका क्या हाल हुआ है। उनकी आंखों से आंसु बह बह के वह गीला होता था, हर रोज ..और सुख जाता था और फिर गीला हो जाता था । तो उसकी स्थिति पढ़ने और उसका उपयोग करने के योग्य नहीं रहा था वह पोथी । तो गदाधर पंडित कहे श्रीनिवास दूसरी नई पोथी लेकर आओ नया ग्रंथ लेकर आओ श्रीमद्भागवत का । तो शायद वह श्रीखंडी गए, श्रीखंड नामक जो स्थान है वहां उन्होंने नहीं नई लिपि या ग्रंथ या आवृत्ति प्राप्त तो किया और जगन्नाथ पुरी लौट रहे थे.. वहा मिलकर में गदाधर पंडित को ये पोथी दे दूंगा तो मुझे वे भागवत की कथा सुनाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तो जब पोथी के साथ टोटा गोपीनाथ मंदिर पहुंचे जहां गदाधर पंडित रहते थे तो क्या समाचार मिला ..एक और दुःखद समाचार" गदाधर पंडित नहीं रहे।" फिर सोच रहे थे चलो अब मैं वृंदावन जाता हूं वहा रूप और सनातन से मिलूंगा मैं। तो वे पहुंच गए मथुरा, मथुरा पहुंच गए तो वहां समाचार मिला कि कुछ ही समय पहले रूप और सनातन भी प्रस्थान कर चुके हैं इस जगत से। फिर श्रीनिवास आचार्य सोच रहे थे जीने से इस जीवन से कोई मतलब नहीं है। तो आत्महत्या के विचार कर रहे थे। तो रूप सनातन उनके स्वप्न में आकर उनको प्रोत्साहित करते हैं और जीते रहो बहुत कुछ तुमसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कार्य करवाना चाहते हैं ।यह आत्महत्या का विचार छोड़ दो । इस प्रकार वे वृंदावन में रहे और कल भी बता रहे थे.. आगे की शिक्षा उन्होंने जीव गोस्वामी से ग्रहण की और गोपाल भट्ट गोस्वामी से दीक्षा प्राप्त की, वह उनके दीक्षित शिष्य हुए । और फिर चैतन्य महाप्रभु ने जो कहा था रूप सनातन तो ग्रंथों की रचना करेंगे और श्रीनिवास क्या करेगा इन ग्रंथों की वितरण करेगा। तो जीव गोस्वामी ने वहीं सेवा दे दी श्रीनिवास आचार्य को । उनकी टीम थी , ऐसे कल भी बता रहे थे श्रीनिवास आचार्य, नरोत्तम दास ठाकुर और श्यामानंद पंडित। यह सारी पदवी जीव गोस्वामी ने ही दी थी , श्यामानंद या उनका पहले नाम दुखी कृष्ण था ,श्रीनिवास थे तो श्रीनिवास आचार्य हो गए और नरोत्तम ठाकुर। तो इन सबको जितने गौडीय ग्रंथ थे, उसकी प्रतिलिपि या कॉपीज थी सब बैलगाड़ी में डाल करके दिया गया तथा यह आज्ञा दी गई कि आप सभी जाओ इन ग्रंथों का वितरण करो या ग्रंथों में लिखी हुई जो बातें हैं, कथा है, इसका प्रचार करो। मुझे फिर याद आती है जैसे श्रील प्रभुपाद.. वहां जीव गोस्वामी थे जिन्होंने कहा तुम वृंदावन से बंगाल की ओर जाओ इन ग्रंथों को लेकर प्रचार करो सर्वत्र प्रचार करो। तो फिर श्रीला प्रभुपाद भी मुझे कहें तुम भी क्या करो वृंदावन से मायापुर जाओ, पदयात्रा करते हुए और बैलगाड़ी होनी चाहिए और उनके ग्रंथ होने चाहिए, श्रील प्रभुपाद और गौर निताई भी होने चाहिए। गौर निताई भी हमने प्राप्त किए, वृंदावन के मुख्य पुजारी के वह निजी विग्रह थे। उन्होंने हम को दे दिए गौर निताई, जिनको हमने भुवनेश्वर पहुंचा दिया वाया मायापुर। वे गौर निताई अभी इस्कॉन भुवनेश्वर के ऑल्टर पर है। उनको 1976 में हमने वृंदावन से मायापुर से भुवनेश्वर तक लेकर गए। इस सेवा के द्वारा श्रील प्रभुपाद ने इतिहास को पुनः दोहराया। जो जीव गोस्वामी ने आज्ञा दी श्रीनिवास इत्यादि आचार्यों को, तो श्रील प्रभुपाद मुझे और फिर उनके और भी शिष्य थे मेरे साथ.. जिसका नाम हमने रखा था भक्तिवेदांत स्वामी ट्रैवलिंग संकीर्तन पार्टी, बुलक कार्ट संकीर्तन पार्टी। श्रील प्रभुपाद की जय श्रीनिवास आचार्य की जय.

English

8th May 2020 Glorious pastimes of Śrinivas Acarya Hare Krishna! Devotees chant from all over the world and few of them chant with us in this zoom conference. Chanting is taking place from 777 locations. Keep chanting. We have less time today. We were doing katha for many days which had different timings. We were starting japa early and extending the katha. Normal times are back again. Katha means a long talk which also includes the pastimes of the Lord but in the talk, there can only be brief description of the pastimes. The talk is more like a lecture. At the beginning of the japa session, we forgot to stop the chat session. As a result, few devotees took advantage of that. Devotees were appreciating the katha of the last 7 days. I was thinking to ask you how was the katha? Devotees over here are exclaiming Haribol! Haribol! Maybe the zoom conference participants also said Haribol. But I want to know what you liked in the katha. We will talk for some time today as well. You will be given some time for chatting after the japa talk. During that time, you can share your realisations on how the katha was and which katha you like the most and why. Which katha or pastime was most memorable which you will never forget. Which katha influenced you and remained in your consciousness. Which katha inspired you the most? If you have realised that hearing the kathas will help you to chant more attentively, you can write that down. Many characters were there in the katha such as Sita, Narasimha, Rukmini and many Acaryas. Do you remember Rukmini's character? How she would listen to the glories and pastimes of Dwarakadhisa. Hope to become virtuous after hearing these characters. This should be our prayer and desire. We can become a good brahmaćari after hearing about the character of Ramdas. Who is Ramdas? - Hanuman. Śravanotsava saptha took place. We chanted, heard and you would have done smaran. Which pastime was most memorable to you, you can write that after 10 minutes. I wanted to tell about Śrinivas ācārya yesterday on his appearance day. The parents of Śrinivas ācārya were childless. Hence they were unhappy. They were praying to the Lord for a son or daughter and that he or she should be a devotee. They wanted to offer this prayer to Caitanya Mahāprabhu at Jagannatha Puri. Govinda Das, the personal servant of Caitanya Mahāprabhu was engaged in vapu seva. He was Caitanya Mahāprabhu’s god brother. When their spiritual master, Isvara Puri was no more, he asked Govinda to go to Jagannatha Puri and render service unto Śri Krsna Caitanya Mahāprabhu. Govinda Das took Śrinivas ācārya's parents to Jagannatha temple. He made arrangements for their accommodation and then came back to Caitanya Mahāprabhu. Caitanya Mahāprabhu said to Govinda Das,'I know why they had come to Me and what they prayed for to Jagannatha Swami. How did He know? He is Jagannatha. 'Go and tell them that I have heard their prayers and they will get a son who will be known as Śrinivas'. There was neither garbhadan samskara performed yet nor the child was in the womb, but Caitanya Mahāprabhu named the child Śrinivas. He said Rupa Goswami and Sanatana Goswami will compose the scriptures and Śrinivas ācārya will distribute and preach. Yesterday was the day when Śrinivas ācārya was born. Then he grew up. There is a place called Shrikhand where Narahari Sarakara, a follower of Caitanya Mahāprabhu lived. narahari-ādi kori' cāmara dhulāya sañjaya-mukunda-bāsu-ghos-̣ ādi gāya Translation: Narahari Sarakara and other associates of Lord Caitanya fan Him with ćamaras, and devotees headed by Sanjaya Pandita, Mukunda Datta, and Vasu Ghosa sing sweet kirtana. (Verse 4 , Gaura Ārarti) Narahari Sarakara was a good singer and a great soul. Caitanya Mahāprabhu had appeared along with many great souls. Many nitya siddha associates had appeared along with Him from Goloka Navadvipa, which is also known as Svetadvipa. Caitanya Bhagavat mentions the appearances of devotees of the Lord. paritrāṇāya sādhūnāṁ vināśāya ca duṣkṛtām dharma-saṁsthāpanārthāya sambhavāmi yuge yuge Translation: To deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to reestablish the principles of religion, I Myself appear, millennium after millennium. (BG 4.8) The Lord does not appear alone. His devotees also appear. Śrinivas associated with Narahari Sarakara and thus he became Śrinivas ācārya. Narahari Sarakara was the Śikśa guru of Śrinivas Acārya. Today's disciple becomes guru of the future devotees . By association of his ācārya, he became a guru himself. Guru means heavy. Opposite to guru is laghu. Laghu means light, who keeps on speaking cheap things. Narahari Sarakara knew that Caitanya Mahāprabhu would not stay in this world for a long time. Śrinivas ācārya departed to Jagannatha Puri to meet Caitanya Mahāprabhu. He was very eager to meet the Lord. But when he reached there, he came to know that Caitanya Mahāprabhu had proceeded for his eternal abode. Then he thought that he would listen to katha from Gadadhar Pandit. He went to him. Gadadhar Pandit showed him his copy of Bhagavatam and said,'See what has happened to my copy of Bhagavatam.' The book got wet with his tears as he used to read and then dry up, only to get wet again during the next reading. The book had not remained suitable for use anymore. Gadadhar Pandit asked Śrinivas ācārya to bring a new Śrimad Bhāgavatam book. Śrinivas ācārya went to Śrikhand. He collected the new book and was returning to Jagannatha Puri to hear Śrimad Bhāgavatam from Gadadhar Pandit. When he reached Tota Gopinath temple, where Gadadhar Pandit lived, he got the news that Gadadhar Pandit had left the mortal world by then. Then he thought of going to Vrindavan to meet Rupa and Sanatana Goswami. When he reached Mathura, he got to know that both of them have left the world. Śrinivas ācārya wanted to commit suicide. Then Rupa and Sanatana Goswami appeared in his dream and asked him to give up such thoughts. Śrinivas ācārya started to live in Vrindavan and acquired more knowledge from Jīva Goswami. He took initiation from Gopala Bhatta Goswami. As Caitanya Mahāprabhu said, Jīva Goswami gave him service to distribute the books written by Rupa and Sanatana Goswami. Śrinivas Ācārya, Narottam Das Thakur and Syamananda Pandit were a team. He asked them to preach what has been written in the scriptures with a bullock cart filled with copies of the scriptures. I remember, just as Jīva Goswami asked Śrinivas ācārya to go to Bengal from Vrindavan to preach, in the same way Srila Prabhupada asked me to go to Mayapur from Vrindavan by padayatra with bullock carts, books and Gaura Nitai. We received Vrindavan Head Pujari's personal Deities of Gaura Nitai. We took Gaura Nitai to Bhubaneswar via Mayapur in 1976. They are still worshipped at ISKCON Bhubaneswar. Srila Prabhupada repeated the history of instructions given by Jīva Goswami to Śrinivas and other ācāryas. We had kept the name of that party 'Bhaktivedanta Swami Bullock Cart Sankirtana party'. Now you can write your realisations. I said one day, you should keep a diary and note down your realisations or maintain a sadhana card. It's a good habit. Your realisations will be published on Loksanga and Chant japa with Lokanath Swami Facebook page. It would be like guhyam ākhyāti pṛcchati. Your confidential thoughts or your memorable experiences could be shared. All of you can read that. You can ask Padmamali Prabhu how to join Loksanga. If you are not a member of Loksanga, you can't read the reports. Better do something. Śrila Prabhupada ki jai! Śrinivas Ācārya ki jai!

Russian

Наставления после совместной джапа сессии 8 мая 2020. СЛАВНЫЕ ИГРЫ ШРИНИВАСА АЧАРЬИ Харе Кришна! Преданные воспевают во всем мире и некоторые из них воспевают с нами на этой конференции. Воспевание происходит из 777 мест. Продолжайте воспевать. У нас сегодня меньше времени. Мы занимались катхой в течение многих дней в различное время. Мы начинали джапу рано и увеличивали время катхи. Нормальные времена вернулись снова. Катха означает длинный разговор, который также включает в себя игры Господа, но в джапа толк может быть только краткое описание игр. Джапа толк больше похожа на лекцию. В начале джапа-сессии мы забыли остановить работу чата. В результате некоторые преданные воспользовались этим. Преданные ценили катху последних 7 дней. Я думал спросить вас, какова была катха? Преданные здесь говорили Харибол! Харибол! Возможно, участники зум-конференции сказали Харибол. Но я хочу знать, что вам понравилось в катхе. Мы поговорим и сегодня. После разговора о джапе вам дадут некоторое время для общения. В течение этого времени вы можете поделиться своими впечатлениями о том, какой была катха и какая катха вам нравится больше всего и почему. Какая катха или лила была самой запоминающейся, которую вы никогда не забудете. Какая катха повлияла на вас и осталась в вашем сознании. Какая катха вдохновила вас больше всего? Если вы поняли, что слушание катхи поможет вам более внимательно воспевать, вы можете записать это. В катхе было много персонажей, таких как Сита, Нарасимха, Рукмини и многие ачарьи. Вы помните характер Рукмини? Как она слушала славу и игры Дваракадхиша. Надеюсь стать добродетельным, услышав об этих персонажах. Это должно быть нашей молитвой и желанием. Мы можем стать хорошим брахмачари, услышав о характере Рамдаса. Кто такой Рамдас? - Хануман. Произошла шраванотсава сапта. Мы воспевали, слушали, и вы могли ощутить смаранам. Какая лила была наиболее запоминающейся для вас, вы можете написать это через 10 минут. Я хотел рассказать о Шринивасе ачарье вчера в день его явления. Родители Шриниваса ачарьи были бездетны. Следовательно, они были несчастны. Они молились Господу о сыне или дочери и о том, что он или она должны быть преданными. Они хотели предложить эту молитву Чайтанье Махапрабху в Джаганнатха Пури. Говинда Дас, личный слуга Чайтаньи Махапрабху, занимался вапу севой. Он был духовным братом Чайтаньи Махапрабху. Перед тем как их духовный учитель, Ишвара Пури, покинул этот мир, он попросил Говинду пойти в Джаганнатха Пури и служить Шри Кришне Чайтанье Махапрабху. Говинда Дас привел родителей Шриниваса ачарьи в храм Джаганнатхи. Он организовал их размещение и вернулся к Чайтанье Махапрабху. Чайтанья Махапрабху сказал Говинде дасу: «Я знаю, почему они пришли ко Мне и за что они молились Джаганнатхе Свами. Как он узнал? Он Джаганнатха. «Пойди и скажи им, что я услышал их молитвы, и у них будет сын, которого будут звать Шринивас». Пока не было проведено ни одной гарбхадана самскары и ребенок не был в утробе матери, но Чайтанья Махапрабху назвал ребенка Шринивасом. Он сказал, что Рупа Госвами и Санатана Госвами будут составлять Священные Писания, а Шринивас Ачарья будет распространять и проповедовать. Вчера был день рождения Шриниваса Ачарьи. Затем он вырос. Есть место под названием Шрикханд, где жил Нарахари Саракара, последователь Чайтаньи Махапрабху. нарахари-ади кори 'камара дхулая санджая-мукунда-басу-гхос-ади гая Перевод: Нарахари Саракара и другие спутники Господа Чайтаньи поклоняются Ему вместе с чамарами, а преданные во главе с Санджая Пандитом, Мукунда Даттой и Васу Гхосой воспевают сладкий киртан. (Стих 4, Гаура арарти) Нарахари Саракара был хорошим преданным и прекрасной душой. Чайтанья Махапрабху появился вместе со многими великими душами. Многие спутники нитья-сиддхи появились вместе с Ним с Голоки Навадвипы, также известной как Шветадвипа. Чайтанья Бхагавата упоминает о явлениях преданных Господа. паритра̄н̣а̄йа са̄дхӯна̄м̇ вина̄ш́а̄йа ча душкр̣та̄м дхарма-сам̇стха̄пана̄ртха̄йа самбхава̄ми йуге йуге Перевод Шрилы Прабхупады: Чтобы освободить праведников и уничтожить злодеев, а также восстановить устои религии, Я прихожу сюда из века в век. (Б.Г. 4.8) Господь не появляется один. Его преданные также появляются. Шринивас связался с Нарахари Саракарой, и поэтому он стал Шринивасом ачарьей. Нарахари Саракара был шикша гуру Шриниваса Ачарьи. Сегодняшний ученик становится гуру будущих преданных. Благодаря своему ачарье он сам стал гуру. Гуру значит тяжелый. В то же время гуру есть лагху. Лагху означает свет, который объясняет понятным языком. Нарахари Саракара знал, что Чайтанья Махапрабху не останется в этом мире надолго. Шринивас Ачарья отправился в Джаганнатха Пури, чтобы встретиться с Чайтаньей Махапрабху. Он очень хотел встретиться с Господом. Но когда он пришел туда, там он узнал, что Чайтанья Махапрабху отправился в свою вечную обитель. Затем он подумал, что послушает катху от Гададхара Пандита. Он пошел к нему. Гададхар Пандит показал ему свою копию Бхагаватам и сказал: «Посмотри, что случилось с моей копией Бхагаватам». Книга промокла от слез, когда он читал, а потом сушил, чтобы снова намочить во время следующего чтения. Книга больше не была пригодной для использования. Гададхара Пандит попросил Шриниваса Ачарью принести новую книгу «Шримад Бхагаватам». Шринивас Ачарья отправился в Шрикханд. Он взял новую книгу и возвращался в Джаганнатха Пури, чтобы услышать «Шримад Бхагаватам» от Гададхара Пандита. Когда он достиг храма Тота Гопинатхи, где жил Гададхара Пандит, он узнал о том, что Гададхара Пандит к тому времени покинул этот мир. Затем он подумал о том, чтобы поехать во Вриндаван, чтобы встретиться с Рупой и Санатаной Госвами. Когда он достиг Матхуры, он узнал, что они оба покинули мир. Шринивас Ачарья хотел покончить жизнь самоубийством. Затем Рупа и Санатана Госвами появились во сне и попросили его отказаться от таких мыслей. Шринивас Ачарья начал жить во Вриндаване и получил больше знаний от Дживы Госвами. Он получил посвящение от Гопала Бхатты Госвами. Как сказал Чайтанья Махапрабху, Джива Госвами дал ему возможность распространять книги, написанные Рупой и Санатаной Госвами. Шринивас Ачарья, Нароттам Дас Тхакур и Шьямананда Пандит были командой. Он попросил их проповедовать то, что было написано в Священных писаниях, с повозкой, заполненной копиями Священных Писаний. Я помню, как Джива Госвами попросил Шриниваса Ачарью поехать в Бенгалию из Вриндавана, чтобы проповедовать, точно так же, как Шрила Прабхупада попросил меня поехать в Маяпур из Вриндавана с падаятрой с повозками, книгами и Гаура Нитай. Мы получили личные Божества старшего пуджари Вриндавана, Гауры Нитай. Мы доставили Гауру Нитай в Бхубанешвар через Маяпур в 1976 году. Им все еще поклоняются в ИСККОН Бхубанешвар. Шрила Прабхупада повторил историю наставлений, данных Дживой Госвами Шринивасу и другим ачарьям. Мы запомнили это событие как «Бхактиведанта Свами Баллок Карт Санкиртана Пати». Теперь вы можете написать свои реализации. Однажды я сказал, что вы должны вести дневник и записывать свои реализации или вести карточку садханы. Это хорошая привычка. Ваши достижения будут опубликованы на Локсанге и Чант-джапе на странице Локанатха Свами в Facebook. Это было бы как гухйам акхйати пччхати. Ваши сокровенные мысли или ваши незабываемые моменты могут быть разделены. Все вы можете прочитать это. Вы можете спросить Падмамали Прабху, как присоединиться к Локсанге. Если вы не являетесь членом Loksanga, вы не можете читать отчеты. Лучше сделай что-нибудь. Шрила Прабхупада Ки Джай! Шринивас Ачарья ки джай! (Перевод Кришна Намадхан дас)