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जप चर्चा, भक्तिप्रेम स्वामी महाराज व्दारा 25 जनवरी 2022 आज जप चर्चा में 857 स्थानों से भक्त उपस्थित हैं। *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया* *चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।* *वाच्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च ।* *पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* *नमो महा - वदान्याय कृष्ण - प्रेम - प्रदाय ते ।* *कृष्णाय कृष्ण - चैतन्य - नाम्ने गौर - त्विषे नमः ।।* (श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 19.53) अनुवाद " हे परम दयालु अवतार ! आप स्वयं कृष्ण हैं , जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए हैं । आपने श्रीमती राधारानी का गौरवर्ण धारण किया है और आप कृष्ण के शुद्ध प्रेम का उदारता से वितरण कर रहे हैं । हम आपको सादर नमस्कार करते हैं । हरे कृष्ण! चैतन्य महाप्रभु परम करुणामय अवतार हैं। उनका अपना मंत्र है *नमो महा - वदान्याय।* महा-वदान्याय.. सच्चे वरदाता हैं। क्यों? क्योंकि उन्होंने सबसे कीमती वस्तु दान की है। कीमती वस्तु क्या है?कृष्ण प्रेम प्रदाय ते।उन्होंने कृष्ण दिये और वो भी फ्री में दिया है, इसलिए उन्हें..*नमो महा - वदान्याय कृष्ण - प्रेम - प्रदाय ते।* किस प्रकार कृष्ण दे सकते हैं? क्योकि वे स्वयम कृष्ण है। *कृष्णाय कृष्ण - चैतन्य।* केवल शरीर का रंग अलग हैं,*गौर - त्विषे ।* यह चैतन्य महाप्रभु कृष्ण प्रेम देने के लिए आये है और इसीलिए उन्हें महा-वदान्याय कहा गया हैं। सच्चा दान हरिनाम हैं। यह हरिनाम गोलोक का प्रेम धन है गोलोक धाम का नाम चिंतामणि है, वहाँ की धूल भी चिंतामणि है वहां का धन हरिनाम है और यह हरिनाम फ्रि में बांटना चैतन्य महाप्रभु चाहते थें इसलिए उनका नाम महा-वदान्याय हैं और ये हरिनाम करने के लिए महाप्रभु कलीकाल में आए। महाप्रभु चाहते थे *परं विजयते श्री-कृष्ण-सड़्कीर्तनम्।* हरिनाम की परम विजय हो परंतु विजयते का अर्थ क्या है? जिस तरह हमारे देश में लोकसभा की 540 सीटें हैं कोई हरे कृष्ण पार्टी की परं विजय होने के लिए 540 सीटे उनकाे मिलनी चाहिए।हरिनाम की परं विजय के लिए हर व्यक्ति को हरिनाम ग्रहण करना चाहिए, यही चैतन्य महाप्रभु की इच्छा हैं। *पृथिवीते आछे यत नगरादि - ग्राम । सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।* ( चैतन्य भागवत अन्त्य - खण्ड ४.१.२६ ) अनुवाद:-पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं , उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा । सारे गाँव, सारे नगर मे हरिनाम संकीर्तन होना चाहिए। सारे नगर मे यदि होगा तो हम को तो करना ही है। श्रील प्रभुपाद लिखते हैं कि मेरे गुरुमहाराज श्रील भक्ति सिध्दांत सरस्वती ठाकुर की इच्छा है *ताँर इच्छा बलवान पाश्चात्येते थान थान* *होय जाते गौरांगेर नाम।* *पृथ्वीते नगरादि आसमुद्र नद नदी* *सकलेइ लोय कृष्ण नाम॥* (प्रभुपाद व्दारा लिखित भजनकृष्ण तब पुण्य हबे भाइ।) अनुवाद: -उनकी बलवती इच्छा से भगवान् गौरांग का नाम पाश्चात्य जगत के समस्त देशों में फैलेगा। पृथ्वी के समस्त नगरों व गाँवों में, समुद्रों, नदियों आदि सभी में रहनेवाले जीव कृष्ण का नाम लेंगे। मेरे गुरुमहाराज श्रील भक्ति सिध्दांत सरस्वती ठाकुर कि इच्छा हैं *पृथ्वीते नगरादि आसमुद्र नद नदी* *सकलेइ लोय कृष्ण नाम॥* केवल नगर नहीं है समस्त समुद्र, नदी, वन जंगल यहाँ पर जितने जीव है वह सभी हरिनाम लेंगे। यह है श्रील भक्ति सिध्दांत सरस्वती ठाकुर की इच्छा क्योंकि ये चैतन्य महाप्रभु की इच्छा हैं। ये हरिनाम की क्यों परम विजय होनी चाहिए क्योंकि हमें जो कुछ चाहिए वह सब यहीं से मिलता है महाप्रभु कहते हैं चैतन्य भागवत में वर्णन है। *प्रभु बोले 'कहिलाड एइ महामन्त्र।* *इहा गिया जप सभे'करिया निर्वन्ध।।* (श्रीचैतन्य भागवत मध्य खंड23.76) अनुवाद: - आप सब जाकर हरे कृष्ण इस महामंत्र का निर्वन्ध-पूर्वक अर्थात अभिनिवेश या गाढ़ मनोयोग पूर्वक जप करें। यह मंत्र नहीं है, यह महामंत्र हैं। 'कहिलाड एइ महामन्त्र यह जप सभी को निर्बंध संख्या पूर्वक करना चाहिए क्योंकि यह करने से सब मिलेगा तो दूसरा करने की जरूरत ही क्या है और जो करते हैं उनका ही नहीं, इससे सभी का भला होगा। अच्छा इतना अच्छा है तो कैसे करना है ? यह करने के लिए कोई विधि निषेध नहीं है कोई भी कर सकता है खाते समय, सोते समय, चलते समय कभी भी। शिक्षाष्टक मे चैतन्य महाप्रभु कहते हैं। *नाम्नामकारि बहुधा निज - सर्व - शक्तिस् तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः । एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः ।।* (श्री चैतन्य चरितामृत अंत्य लीला 20.16) अनुवाद: -" हे प्रभु , हे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् , आपके पवित्र नाम में जीव के लिए सर्व सौभाग्य निहित है , अत : आपके अनेक नाम हैं यथा कृष्ण तथा गोविन्द , जिनके द्वारा आप अपना विस्तार करते हैं । आपने अपने इन नामों में अपनी सारी शक्तियाँ भर दी हैं और उनका स्मरण करने के लिए कोई निश्चित नियम भी नहीं हैं । हे प्रभु , यद्यपि आप अपने पवित्र नामों की उदारतापूर्वक शिक्षा देकर पतित बद्ध जीवों पर ऐसी कृपा करते हैं , किन्तु मैं इतना अभागा हूँ कि मैं पवित्र नाम का जप करते समय अपराध करता हैं , अतः मुझ में जप करने के लिए अनुराग उत्पन्न नहीं हो पाता है । *नियमित: स्मरणे न काल:* नियमित स्मरण, भगवान का नाम लेने के लिए कोई काल आदि विचार कंडिशन नहीं है और जब भी समय मिलता है इस तरह नहीं सब काम छोड के नाम लो ऐसा नहीं है, काम के साथ-साथ करना पड़ता हैं। पाच दस आदमी साथ मे बैठते है तो क्या करना चाहिए? घर मे बैठ कर कीर्तन करना चाहिए। मृदंग करताल बजाते हुए कीर्तन करना चाहिए, मृदंग, करताल नही है तो ताली बजाते हुए करना चाहिए। कोई कठिन काम नहीं है, यह हरिनाम कैसे लेना चाहिए कोई कंडीशन नहीं है लेकिन हरिनाम चिंतामणि में भक्ति विनोद ठाकुर लिखते हैं।कोई नियम नहीं है फिर भी हरिदास ठाकुर कहते हैं, "हे भगवान! कोई नियम नहीं है लेकिन आप मुझ पर कृपा कीजिए मेरा मन आपके भाव में लगे यही एक नियम है, मैं आपका नाम स्पष्ट और भाव से ले सकूं" किस से मांग रहे हैं नाम? भगवान के शरण में है, नाम भगवान के शरण में है और व्याकुल भाव से, व्याकुल क्रंदन, स्पष्ट रूप से स्पष्ट अक्षर और यह आदर के साथ लेना चाहिए। अक्षर का आदर करना चाहिए जिस प्रकार खाने का आदर करते हैं शब्द का आदर करना है, अक्षर का आदर करना है लिख कर शब्द का आदर, ठीक सेसुन कर तो हरिनाम का आदर करना है तो ठीक से सुनना है ठीक से सुनने के लिए पहले क्या करना चाहिए? ठीक से सुनने के लिए स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए। स्पष्ट उच्चारण नहीं होगा तो ठीक से सुन नहीं सकती तो ठीक से उच्चारण करना और सुनना यह बहुत जरूरी है अनुदिनम नियमीत यह स्पष्ट उच्चारण करने के लिए हमारी पूर्ववर्ती आचार्य ने बहुत ही अच्छे अच्छे सुझाव दिये। श्री श्री परम पूज्य लोकनाथ स्वामी गुरु महाराज ने एक पुस्तक लिखी है *संस्कृत उच्चारणम्* इतना उसमे सुंदर वर्णन किया है कि हरिनाम किस तरह उच्चारण करना चाहिए कृष्ण नाम में कृष्ण... इंग्लिश में पांच अक्षर में तीन अक्षर के बीच में बिंदी लगा दिया है एक बिंदी लगाए तो दूसरा अक्षर है इसका अर्थ है इंग्लिश में 26 अक्षर है संस्कृत में 50 अक्षर है तो 26 अक्षर के 50 अक्षर बनाने के लिए मार्क देना पड़ता है तो के.आर. एस. ए यह अक्षर एक नहीं है अलग है संस्कृत में अलग है और उच्चारण भी अलग-अलग है संस्कृत में मुर्धवर्ण है मुर्धवर्ण कखगघ ये कंठवर्ण है।चछजझ ये तालगुवर्ण है। टठडढ ये मुर्ध वर्ण यह है। तथदध ये दान्त वर्ण है और पफबभम ये पुष्टवर्ण है। महाराज जी ने इसमें सुंदर वर्णन किया है जब हम कृष्ण उच्चारण करते हैं मुर्धन श मुर्धन न इसमें बीच में ऋ यह सब मुर्ध वर्ण है इसलिए मुर्ध वर्ण उच्चारण करना चाहिए। यह मुर्ध कहां रहते हैं इसका वर्णन भी किया है यह पुस्तक आप पढ़िए यह मुर्ध हमारे ब्रह्मारंध्र मे रहते है जब हम जन्म लेते हैं तो जो नरम जगह रहती है उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं और जो भी इसका उच्चारण करते हैं ब्रह्मरंध्र में करते हैं महाराज जी ने इस पुस्तक में इतना सुंदर वर्णन किया है जब भक्त जप करते हैं तो वह मुर्धवर्ण उच्चारण करते हैं तो हमारे हरिनाम उच्चारण से फल हमें मिलता है क्योंकि हरिनाम करने से जिह्वा उस जगह पर स्पर्श करती है वह जो ब्रह्मरंध्र में भेद करना चाहते हैं। यह पुस्तक पढ़ने के पहले हरिनाम ऐसा उच्चारण करना चाहिए, ये हमे पता नहीं था। महाराज जी ने उस पुस्तक में इसका भी सुंदर वर्णन किया है | वैदिक शास्त्र में वर्णन किया है प्रणव है *ऊं* और हरे कृष्ण महामंत्र में *ऊं* शब्द है। ओ..म.. अक्षर का उच्चारण करते वक्त अ से शुरू करके म तक स्पर्श वर्ण का अंतिम अक्षर है, इस हरे कृष्ण महामंत्र के अंदर सब हैं। राम में म आता हैं। इस पुस्तक को आप पढ़ेंगे तो आपको बहुत लाभ होगा, हमें किस तरह उच्चारण करना चाहिए। ये हरिनाम करने के लिए सारे आचार्यों ने हमें सुझाव दिया है। आज लोचन दास ठाकुर जी का तिरोभाव हैं। उन्होंने हमें कहा है ये हरिनाम नाव की तरह है, नाम के लिए हमें नाव में आश्रय लेना चाहिए ,उन्होंने कहा हैं। हरिनामेर नौकाखानि श्रीगुरु काण्डारी। संकीर्तन कोरोयाल दुइ बाहु पासारि॥ अनुवाद:-स्वयं गुरुजी इसके नाविक हैं, जो हरिनाम संकीर्तन रूपी चप्पू (नाव चलाने वाला डण्डा) हाथ में लिए हुए हैं। इस घट पर जड़ अन्धा तथा कातर जो कोई भी क्यों न हो, उसे निःशुल्क ही पार कराया जाता है। इसलिए उन्होंने भजन में लिखा है। हरिनाम नाव की तरह है और गुरुदेव कंण्डारी की तरह है इसलिए उन्होंने गीत में लिखा हैं। के जाबे के जाबे भाइ भवसिन्धुपार। धन्य कलियुगेर चैतन्य अवतार॥1॥ अनुवाद:-अरे भाई! भवसागर से पार कौन जाएगा? यह कलियुग धन्य है क्योंकि स्वयं भगवान् श्रीचैतन्यमहाप्रभु अवतरित होकर हरिनामरूपी नाव लेकर अवतरित हुए। हे भाई साहब आप कौन जाना चाहते हैं भवसिंधु पार,वास्तव में कृष्ण भक्ति में कौन आते हैं? कृष्ण भक्ति में वही जाते हैं जो भवसिंधु पार करना चाहते हैं। इसका अर्थ क्या है? वह समझ गया है कि यह भौतिक जगत बहुत दु:ख पूर्ण हैं। प्रभुपाद कहते हैं जब कोई इस तरह भौतिक जगत मे हताश होता है, नही यह भौतिक जगत अच्छा नही है, हमें भगवत धाम वापस जाना चाहिए। वही व्यक्ति भगवत धाम जा सकता हैं। प्रभुपाद भागवद् गीता के भुमिका में लिखते हैं, भगवद् गीता का उद्देश्य क्या है? अंधकार में डूबे हुए मनुष्यों को प्रकाश में लाने के लिए भगवद् गीता हैं। इसीलिए भगवद् गीता हमें समझना चाहिए हम अंधकार में डूबे हुए हैं इसी तरह हमें भौतिक संसार में भवसिंधु भव अर्थात जिस तरह दुग्ध सागर है दूध का सागर उसी तरह नमक सागर है तो भवसिंधु का अर्थ क्या है जहाँ भव है, भव का अर्थ है होना, जन्म मृत्यु जरा व्याधि ,जन्म मृत्यु जरा व्याधि इस सिंधु में केवल जन्म मृत्यु जरा व्याधि, जन्म मृत्यु जरा व्याधि उसका नाम भव सिंधु है, कोई इस सिंधु में नहीं रहना चाहता, सभी पार होना चाहते हैं, कोई समझ नहीं पाता वह अलग बात है लेकिन अगर कोई बुद्धि से विचार करेंगे तो *के जाबे के जाबे भाइ भवसिन्धुपार।* *धन्य कलियुगेर चैतन्य अवतार॥* लोचन दास ठाकुर लिखते हैं कलयुग में चैतन्य महाप्रभु आए हैं और यह कलयुग साधारण कलयुग नही है धन्य कलयुग हैं। कलयुग के भी अंदर विभाग है धन्य कलयुग इसका मतलब है ब्रह्मा का एक दिन में एक हजार बार चतुरयुग होतें हैं, मतलब एक हजार बार कलयुग आते हैं जिस कलयुग में चैतन्य महाप्रभु आते हैं उस कलयुग का नाम है धन्य कल युग। चैतन्य महाप्रभु ब्रह्मा के 1 दिन में आते हैं। उसी कलयुग में हम भी आए हैं यदि हम अभी भी फायदा नहीं उठाएंगे तो हम स्वर्ग में जायेंगे अलग-अलग भोग करेंगे बाद मे यही आऐंगे और फिर हजार चतुरयुग प्रतीक्षा करनी पड़ेगी धन्य कलयुग के लिए। इसलिए हे भाई साहब!जो जो भव सिंधु पार होना चाहते हैं वह बहुत अच्छी बात है यहां एक तो धन्य कलयुग है और चैतन्य महाप्रभु भी साथ में है चैतन्य महाप्रभु किस प्रकार पार करा रहे हैं *आमार गौरांगेर घाटे अदान खेया बय।* *जड अन्ध आतुर अवधि पार हय॥2॥* अनुवाद: -अतः जो इस भवसागर से पार जाना चाहता है, वे सब मेरे गौरसुन्दर के घाट पर आ जाओ, जहाँ पर नामरूपी नौका तैयार खड़ी है। यह भवसागर चैतन्य महाप्रभु जिस घाट से पार करवाते हैं उस घाट का नाम है गौरांगेर घाट। आजकल आप देखेंगे गाड़ी में चलते वक्त टोलगेट रहते हैं, 500 साल पहले बंगाल में बहुत नदीयां थी, बहुत सारी नदीयां थी । नदी पार करने के लिए घाट रहते है। पहले सरकार का इतना वर्चस्व नहीं था तो जो वहा के रहने वाले लोग ही नाव चलाते थे सब के घाट के अलग-अलग नाम होते हैं जो व्यक्ति चलाते हैं उनके नाम से उस घाट का नाम रहता है घाट शे एक पार से दूसरे पार नाव से लेकर जाते हैं उसे घाट कहते हैं तो चैतन्य महाप्रभु इस घाट से सभी को पार कराते हैं इसलिए इस घाट का नाम गौरांगेर घाट हैं। *आमार गौरांगेर घाटे अदान खेया बय।* अदान अर्थात दान देना नहीं पड़ता चैतन्य महाप्रभु इस घाट से सभी को पार करा रहे हैं खेया बय अर्थात नाव चलाना ।अदान मतलब पार कराने के बाद दान नहीं लेते। *जड अन्ध आतुर अवधि पार हय॥* जड़ अंध आतुर तक पार हो जाते है | वास्तव में नाव में उठना सरल नहीं है | जो लोग मायापुर गए हैं मायापुर में कूलर घाट से नवदीप घाट जब जाते हैं स्वरूपगंज घाट जाते हैं नाव में उठना मुश्किल होता है और सब लोग उठ नहीं पाते है | आपको यह भी पता है कि जब चैतन्य महाप्रभु जा रहे थे तब शिवानंद के कुत्ते को नहीं ले रहे थे | तो नाव मे उठना मुश्किल है, नाव हिलती है, नाव में व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है | लेकिन महाप्रभु की नाव इतनी अच्छी है जड़ अंध आतुर अवधि अवधि अर्थात यहां तक, जड़ अर्थात जो चल नहीं पाते है, अंध अर्थात जो अंधे हैं, आतुर अर्थात जो रोग ग्रस्त हैं, ऐसे व्यक्ति भी पार हो सकते हैं उनके लिए स्ट्रेचर एंबुलेंस व्हीलचेयर सारी व्यवस्थाएं हैं | चैतन्य महाप्रभु ने इतनी अच्छी व्यवस्थाएं कर दी हैं कोई भी व्यक्ति के लिए नाव में चढ़ना असंभव नहीं है कोई समस्या नहीं है | महाप्रभु ने घाट में इतनी व्यवस्था कर दी है कि सब आसानी से पार हो सकते है | उस नाव का नाम क्या है? हरि नाम की नौका | हरिनाम उस नाव को लेकर जा रहा है और नाव को चलाने वाले श्री गुरुदेव है | उन्होंने संकीर्तन कराया है | भागवत में एक श्लोक है -- 11.20.17 नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभं प्लवं सुकल्पं गुरुकर्णधारम् । मयानुकूलेन नभस्वतेरितं पुमान्भवाब्धि न तरेत्स आत्महा ॥ १७ ॥ जीवन का समस्त लाभ प्रदान करने वाला मानव शरीर प्रकृति के नियमों द्वारा स्वतः प्राप्त होता है यद्यपि यह अत्यन्त दुर्लभ है । इस मानव शरीर की तुलना उस सुनिर्मित नाव से की जा सकती है , जिसका माँझी गुरु है और भगवान् के आदेश वे अनुकूल हवाएँ हैं , जो उसे आगे बढ़ाती हैं । इन सारे लाभों पर विचार करते हुए जो मनुष्य अपने जीवन का उपयोग संसाररूपी सागर को पार करने में नहीं करता उसे अपने ही आत्मा का हन्ता माना जाना चाहिए । यह मनुष्य शरीर सुलभम और सुदुर्लभम है | लभ दुर्लभ सुदुर्लभ है | लेकिन पता नहीं हमें कैसे मिला है? यह हमारा मनुष्य शरीर एक नाव की तरह है, कल्प अर्थात परिकल्पना, सुकल्प अर्थात बहुत सारी चिंता भावना करके वेल प्लानड करके भगवान ने इस मनुष्य शरीर को बहुत अच्छी तरीके से बनाया है और वहां साक्षात कर्णधार गुरु को भी दिया है, भगवान कितने कृपालु है | जीवात्मा भौतिक सागर में गिर गई है और वहां पर 84 लाख नाव आ गई है, इनमें से सबसे अच्छी नाव है मनुष्य शरीर रूपी नाव, और हमें सबसे अच्छी नाव मिल गई है | और केवल इतना ही नहीं वहां कंडारी के रूप में गुरु भी मिल गए हैं | और इतना ही नहीं वहां पर अनुकूल हवा भी मिली है | अनुकूल हवा की क्या जरूरत है? नाव जब नदी पार होती है तब मशीन चलती है लेकिन नदी में पेट्रोल पंप नहीं मिल सकता इसलिए नाव पाल से हवा से चलती है तो नाव चलाने के लिए हवा चाहिए, पाल में हवा लगती है तो नाव चलती है तो यह माया अनुकूलेन है | ये हवा भगवान की कृपा है | हरि नाम, भगवत गीता, इस्कॉन, इस्कॉन की जितनी सुविधाएं हैं, भक्त संग है, सब अनुकूल वायु है | हम जब नाव में चढ़ते हैं, नाव में चढ़ने से नदी पार होने से हमें नाव के भीतर रहना है लेकिन हमें अनुकूल वायु का सहारा लेना पड़ता है अनुकूल वायु के सहारे से ही नाव पार होती है तो यह अनुकूल वायु है प्रभुपाद के ग्रंथ, हरि नाम, भक्तों का संग | हरि नाम उनमें से सबसे अच्छा है | इसलिए हवा के लिए पाल उठाना पड़ता है इसलिए लोचन दास ठाकुर कहते हैं, महाप्रभु नौका में आकर कहते हैं, हाथ उठाओ, हरि नाम करो तो पाल में हवा लगेगी, सबसे दो हाथ उठाकर संकीर्तन करवाया | सबसे हरे कृष्ण महामंत्र करवाया | इस चित्र मे नवदीप मंडल परिक्रमा है महाराज उसका नेतृत्व करते हैं | लोचन दास ठाकुर अंत में आक्षेप करके कहते हैं सब जीव होइलो पार प्रेमेर बातशे पड़ीया रहीलो लोचन आपनार दोषे बाताश शब्द हिंदी में नहीं है जिसका अर्थ होता है हवा | यहां अनुकूल वायु क्या है हरि नाम कृष्ण प्रेम | प्रेम हरि नाम है | सारे जीव हरि नाम रूपी हवा का सहारा लेकर इस भवसागर से पार हो जाते है | लोचन दास ठाकुर कितने विनम्र हैं | वे लिखते हैं कि मैं कितना दूर्भागा हूँ मैंने हरि नाम का सहारा नहीं लिया है मैं इधर ही पड़ा रह गया क्योंकि मैंने हरि नाम रूपी नाव का आश्रय नहीं लिया हरि नाम और कृष्ण प्रेम का आश्रय नहीं लिया यह मेरा ही दुर्भाग्य है क्योंकि महाप्रभु तो हरिनाम लेकर आएं बिना किसी दान के पार करवाएं | इसी प्रकार श्रील प्रभुपाद ने इस्कॉन बनाया सारी दुनिया में भ्रमण किया, लॉकडाउन के वक्त भी भक्त लोग ऑनलाइन में कितना प्रचार कर रहे हैं, 2 साल से महाराज ने यह दो घंटा की हरि कथा और जप, सुबह के कीमती समय में सब को एक साथ बैठा कर जप कराना और भक्त बनाना यही चैतन्य महाप्रभु और श्रील प्रभुपाद की शिक्षा है तो इतनी सुविधाएं हैं सारे आचार्य शिक्षा दे रहे हैं एक तरफ हरि नाम के महत्व का वर्णन भी कर रहे हैं और साथ में बैठकर हरि नाम भी करवा रहे हैं उसके बाद भी यदि हम यह फायदा नहीं उठाते हैं तो हम कितने दुर्भाग्यशाली हैं | महाप्रभु का भी यही आंदोलन है हरिनाम करो और हरिनाम दूसरे को कराओ और महाराज भी यही काम कर रहे हैं साथ में बैठकर कोई भी रूटीन में सुबह उठकर रोज एक साथ बैठकर जप कराना, हरि नाम का महत्व बताना ताकि हम अच्छे से हरि नाम कर सकें मैं सौभाग्यशाली हूं कि आज मुझे महाराज और उनके भक्तों की कृपा मिली है अंत में ये कुछ गाकर खत्म करता हूँ | हरि नाम प्रभु की जय पतित पावन श्रील प्रभुपाद की जय लोकनाथ स्वामी महाराज की जय समस्त भक्त वृंद की जय गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल

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