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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 7 अक्टूबर 2021 884 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरे कृष्ण ! सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी कर कटावरी ठेवोनिया सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी तुळसीहार गळा कासे पितांबर आवडे निरंतर हेची ध्यान सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी मकर कुंडले तळपती श्रवणी कंठी कौस्तुभ मणी विराजित सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख पाहीन श्रीमुख आवडीने सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी ( अभंग - संत तुकाराम महाराज ) महाराष्ट्र में और पंढरपुर में भी आज आधिकारिक तौर पर आज मंदिर खुल रहे हैं । आज दर्शन प्रारंभ हुआ । जय ! श्री विट्ठल रुक्मिणी की जय ! अखियां प्यासी है । वैसे जगन्नाथपुरी में भी जैसे दर्शन बंद होते हैं यह कारण नहीं है कि लॉकडाउन की वजह से । जब स्नान यात्रा होती है स्नान यात्रा के समय से रथयात्रा तक दर्शन बंद होते हैं तो भक्त भगवान को याद करते हैं और बड़े उतावले होते हैं, उत्कंठित होते हैं दर्शन के लिए प्यासे होते हैं और फिर रथ यात्रा के 1 दिन पहले दर्शन खुलता है । नेत्र उत्सव होता है उस दिन । नेत्रों के लिए उत्सव । "तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख" "पाहीन श्रीमुख आवडीने" । तुकाराम महाराज भी कहे, वैसे आज दर्शन खुल रहे हैं पंढरपुर में भी । मुझे तो सुख है तुकाराम महाराज कह रहे हैं । संत तुकाराम महाराज की ! वे भी जगतगुरु रहे । "पाहीन श्रीमुख आवडीने" मैं श्रीमुख विट्ठल मुख या फिर रुकमणी मुख, श्रीमुख का दर्शन करना चाहता हूं कैसे ? "आवडीने" बड़े प्रेम से या दिल से और इसी में मुझे सुख प्राप्त होता है । "तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख" बस इसी में ही सुख मुझे प्राप्त होता है । मेरा सुख भगवान के दर्शन में है । हरि हरि !! तो बड़े भाग्य से हमें आज और भी कई सारे दर्शन हुए । कुछ लोग कहते रहते हैं; देखने की चीज है तो क्या करो ? बार बार देखो । हजार बार देखो तो यह संसार में क्या है देखने की चीज, देखने लायक, देखने योग्य या दर्शनीय कौन है ? बस भगवान ही है तो उनका दर्शन बार-बार करना चाहिए हजार बार करना चाहिए । हम आभारी हैं उन भक्तों के जिन्होंने अपने विग्रह के दर्शन हमें कराएं हमें मतलब मुझे ही नहीं, हजार, डेढ़ हजार, दो हजार भक्तों ने दर्शन किए । संभावना है कि इतने दर्शन आरती आपके विग्रह के कभी नहीं हुए होंगे या तो आप देखते हो आप दर्शन करते हो या आपके कोई अतिथियां रिश्तेदार हैं हो सकता है कि कभी उनका कोई दिलचस्पी ना हो । उनके भगवान के दर्शन के लिए । लेकिन आज आपके विग्रह का दर्शन कई भक्तों ने किए । इस दर्शन में जीवन का सार्थकता है । हरि हरि !! तो यह एक मंदिर है उसके साथ साथ घर एक मंदिर है । घर को मंदिर बनाओ ऐसे हम आपको स्मरण दिलाते रहते हैं । घर एक क्या है ? मंदिर है और घर को कुछ नाम भी दे सकते हो । गोकुलधाम या हरि धाम या कुंज बिहारी तो आपका घर एक तो आश्रम और गृहस्थ हो तो गृहस्थ आश्रम । आश्रम में जरूर रहना चाहिए । किसी ना किसी आश्रम में रहना चाहिए या तो ब्रह्मचारी या तो गृहस्थ या तो वानप्रस्थ या सन्यास । आप में से किसी भी आश्रम में नहीं रहते हैं तो आप चांडाल हो, आप योवन हो क्या क्या आप हो, आप असभ्य हो तो आश्रम में रहना चाहिए और आप जो गृहस्थ आश्रमी भक्त हो आपका आश्रम का मंदिर बनाया है अपने घर को मंदिर बनाया है । वैसे भी कहते हैं ... भवद्विधा भागवतास्तीर्थभूताः स्वयं विभो । तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तःस्थेन गदाभृता ॥ ( श्रीमद भागवतम् 1.13.10 ) अनुवाद:- हे प्रभु , आप जैसे भक्त , निश्चय ही , साक्षात् पवित्र स्थान होते हैं चूँकि आप भगवान् को अपने हृदय में धारण किए रहते हैं , अतएव आप समस्त स्थानों को तीर्थस्थानों में परिणत कर देते हैं । जहां भक्त रहते हैं जहां साधु रहते हैं उस स्थान को जहां वे रहते हैं उस स्थान को "तीर्थीकुर्वन्ति" उसको तीर्थ बनाते हैं । आप भी साधु हो या आप साध्वी हो या आपको साधु या साध्वी बनाने का यह सब प्रयास हो रहा है अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृत संघ का प्रयास ताकि आप साधु बनोगे, आप साध्वी बनोगे । तो साधु साध्वी जहां रहते हैं उस स्थान को "तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि" उस स्थान को तीर्थ बना देते हैं । अपने घर को मंदिर बनाओ, तीर्थ बनाओ, आश्रम बनाओ । विग्रह का होना वह फोटो भी हो सकता है वैसे हम तो विग्रह के दर्शन करा रहे हो लेकिन वेदी पर भगवान का चित्र भी हो सकता है । हरि हरि !! या यहां तक की ग्रंथ भी हो सकते हैं । कुछ भक्तों ने रखे थे, शायद रामलीला माताजी ने कुछ ग्रंथ भी रखे थे अपने वेदी पर । फिर तुलसी भी है, तुलसी महारानी की जय ! और घर में ग्रंथ भी है कभी आपके ग्रंथ भंडार का कभी-कभी दर्शन कर सकते हैं । अभी तो वेदी का दर्शन कर रहे हैं । जिस घर में भगवान है वेदी है तो वहां ग्रंथ भी होने चाहिए । तीर्थ स्थान में ग्रंथ भी होते हैं, शास्त्र होते हैं, तुलसी महारानी होती है । हरि हरि !! और हमारा जो धर्म है उसको हम किचन धर्म भी कहते हैं । हमारा धर्म का एक नाम है किचन धर्म । किचन का इतना महत्व है या इस धर्म के केंद्र में ही है या फिर जहां मंदिर है, विग्रह है तो वहां तो रसोईघर तो होना ही चाहिए । हरि हरि !! भगवान को भोग लगाने हैं । प्रतिमा नहीं है । किसी ने कमेंट भी लिखा "प्रतिमा नाई तुमि, साक्षात बृजेंद्र नंदन" वैसे यह चैतन्य चरितामृत में लिखा है । "प्रतिमा नाई" आप केवल प्रतिमा या मूर्ति नहीं हो । आप मूर्ति भी हो लेकिन आप साक्षात व्रजेंद्र नंदन आप स्वयं भगवान हो । यह जो विग्रह है यह स्वयं भगवान इस ग्रुप में आप इस विग्रह के रूप में आप स्वयं प्रकट हुए हो । तो स्वयं भगवान है तो फिर ... भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ ( भगवद् गीता 5.29 ) अनुवाद:- मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परं भोक्ता , समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से श लाभ करता है । भगवान भोक्ता है । "भुक्तं मधुरम, सुप्तं मधुरम" तो यह भगवान प्रतिमा नहीं है केवल मूर्ति नहीं है यह जड़ तो है नहीं चेतन है, चैतन्य की मूर्ति है, स्वयं भगवान है तो फिर उनको अब सुलाना खिलाना तो भी होगा । वैसे पहले खिलाना होगा फिर सुलाना होगा । "सुप्तं मधुरम" इनका सोना भी मधुर है । इनका "भुक्तं" खाना ही मधुर है तो यह लीला है खेलते हैं भगवान । खाने की लीला हे, सोने के लीला है कई सारी और भी लीलाएं हैं । इस प्रकार आप अपने घर को मंदिर तीर्थ बना सकते हो और वैसे भी कहा है जहां भगवान के विग्रह का स्थापना हुई है वह स्थान वैकुंठ है फिर आप वैकुंठ में रहोगे । ( नैन मंजरी नागपुर रहती है ) । फिर आप नागपुर में नहीं रहोगे आप वैकुंठ में रहोगे । भगवान के साथ रहोगे । हरि हरि !! इस प्रकार हम को अभ्यास भी करना है । हमें बैकुंठ जाना है हमको गोलोक जाना है तो हम को तैयार होना है । हमको अभ्यास करना है ताकि हम या हमें साधना करना है ताकि हम साधन सिद्ध हो और सिद्ध हो के हम भगवत धाम लौटने के योग्य हम बन सकते हैं । हरि हरि !! तो कीर्तन भी तो होना ही चाहिए । "ये दिन गृहे , भजन देखि , गृहेते गोलोक भाय ।" भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं जिस दिन या जब जब मेरे घर में भजन होता है कीर्तन होता है "ये दिन गृहे , भजन देखि , गृहेते गोलोक भाय" मैं अनुभव करता हूं कि मेरा घर तो हो गया गोलोक हो गया गोकुल हो गया वैकुंठ हो गया । हरि हरि !! और इसी के साथ या तो आप सभी का वैसे मंदिर के साथ भी संबंध होना चाहिए । कभी कभी यह समस्या हो जाती है कि घर में जब मंदिर मनाया घर में विग्रह है फिर हम मंदिर जाना बंद कर देते हैं । ओ ! हमारा घर ही मंदिर है । यह भी ठीक नहीं है । मंदिर भी इस्कॉन टेंपल भी जाना चाहिए अनिवार्य है । अंतर क्या है वहां ? हमें सत्संग का लाभ होगा । हम को सत्संग, "आदौ श्रद्धा", "साधु संग" अनिवार्य है । साधु संत किस लिए ? ताकि हम उनसे "भजन क्रिया" को सीखेंगे या यहां तक की आप जो विग्रह आराधना कर रहे हो तो उसका भी आपका कुछ शिक्षण लेना चाहिए, सीखना चाहिए इसका विधि विधान । हो सकता है भविष्य में आपको कभी कुछ हल्का सा सेमिनार वगैरा भी करा सकते हैं इसी फोरम इसी मंच में । जापा टॉक के अंतर्गत तो हम अभी अभी कोई आरती वगैरा उतार रहे हैं तो हम लोग बिना सीखे समझे कुछ करते रहते हैं । लेकिन उसकी जो विधि है अर्चना पद्धति है वैसे आपका मापदंड विग्रह आराधना मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित विग्रह जो होते हैं उतना तो ऊंचा नहीं हो सकता । लेकिन कुछ मापदंड तो अनुरक्षण करने होंगे । सीखने समझने भी होंगे वह मापदंड वह पद्धति के अर्चना पद्धति विधि और निषेध भी । इसको आप भक्तिरसामृतसिंधु में भी आप कुछ पढ़ सकते हो अपराध जो हम करते हैं विग्रह के चरणों में कहो अपराध हो जाते हैं । फिर 32 प्रकार के वहां लिखे हैं रूप गोस्वामी या 10 नाम अपराध उल्लेख है भक्तिरसामृतसिंधू में । वहां पर 32 साल का लग अपराध जो हम कर बैठते हैं विग्रह के संबंध में या वैष्णव के संबंध में कुछ अपराध करते हैं जो सेवा के संबंध में कुछ अपराध होते हैं सेवा अपराध, नाम जप में कुछ अपराध होते हैं नाम अपराध । कुछ धाम के संबंध में कुछ हमसे गलतियां होती है तो धाम अपराध । यह कई सारे अपराध है इसको निषेध कहां है विधि निषेध ऐसा नहीं करना चाहिए । ऐसा करोगे कुछ गलतियां करोगे अपराध हो जाएगा । तो यह नाम अपराध फिर धाम अपराध, वैष्णव अपराध, विग्रह अपराध भी है तो उनको भी सीखना समझना होगा । ताकि हम विधिवत ... "श्रीश्री विग्रहाराधन नित्य नाना शृंगार-तन्मंदिर मार्जनादौ" वैसे मुख्य तो हमारे भाव, भक्ति और प्रेम ही है । फिर कुछ गलतियां होगई हमारी तो किर्तन तो जरूर करना चाहिए । विग्रह आराधना के समय श्रवण कीर्तन होना चाहिए या कीर्तन होना चाहिए तो फिर ... मन्त्रतस्तन्त्रतश्छिद्रं देशकालार्हवस्तुतः । सर्वं करोति निश्छिद्रमनुसङ्कीर्तनं तव ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 8.23.16 ) अनुवाद:- मंत्रों के उच्चारण तथा कर्मकांड के पालन में त्रुटियां हो सकती है । देश, काल, व्यक्ति तथा सामग्री के विषय में भी कमियां रह सकती हैं । किंतु भगवान् ! यदि आप के पवित्र नाम का कीर्तन किया जाए तो हर वस्तु दोष रहित बन जाती है । ऐसा भागवत में एक सिद्धांत कहा है । जब हम कीर्तन करते हैं विग्रह आराधना के साथ-साथ कीर्तन हो रहा है कुछ स्तुति हो रही है कुछ आरती का हम गान कर रहे हैं ऐसा करने से "सर्वं करोति निश्छिद्रम" हमारी आराधना में कोई त्रुटि या अभाव रहा "करोति निश्छिद्रम" कोई लूप हो उसको होल को भर देंगे या आपको माफ किया दिया जाएगा । मंत्रतः हो सकता है आप का उच्चारण ठीक नहीं है तंत्रतः मंत्र और तंत्र होते हैं उसकी विधि उसका विधि होती है, पद्धति होती है और काल होता है । कल देश होता है, समय होता है और स्थान होता है उसमें कोई त्रुटि हो सकती है समय की दृष्टि से, स्थान की दृष्टि से । वस्तुतः जिन वस्तुओं का हम उपयोग करते हैं भगवान की आराधना में । हो सकता है हम घी की बजाय डालडा उपयोग कर रहे हैं वह भी अच्छा नहीं है लेकिन अगर ऐसा कुछ गलती हो जाती है हमसे वस्तुतः और आजकल के आपके सब्जी में भी सारे रासायनिक के साथ यह सब आते हैं । दूध में दूध कम होता है पानी अधिक होता है । तो हो गई नहीं सारी त्रुटियां आ गई । "छिद्रम वस्तुतः" "देशकाल" "मंत्र तंत्र श्छिद्रं" । यह सारे चित्र सारी त्रुटियां कोई अभाव कुछ कमी इससे हम बचते हैं । क्या करने से ? "अनुसङ्कीर्तनं तव" आपका हम जब संकीर्तन करते हैं "अनुसङ्कीर्तनं" जो हम परंपरा में संकीर्तन सिखा है कीर्तन सीखा है फिर .. तृणाद् अपि सुनीचॆन तरोर् अपि सहिष्णुना । अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः ॥ ( चैतन्य चरितामृत अंत्यलीला 20.21 ) अनुवाद:- जो अपने आप को घास से भी तुच्छ मानता है, जो वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु है तथा जो निजी सम्मान न चाहकर अन्य को आदर देने के लिए सदैव तत्पर रहता है, वह सदैव भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन अत्यंत सुगमता से कर सकता है । वाला भी कीर्तन है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ यह मंत्र तो बहुउद्देश्यीय मंत्र है और कोई उचित मंत्र आप कोई नहीं जानते हो कई सारे मंत्र होते हैं । भगवान के जगाने के मंत्र है । भगवान को सुलाने के मंत्र है । भगवान को भोजन खिलाने का मंत्र है या तुलसी के पत्ते या मंजरी तोड़ते हैं तो उस समय वाले मंत्र है, कई सारे मंत्र है । तो अगर हमको याद नहीं है याद नहीं रहता या तो यह हरे कृष्ण महामंत्र तो बहुउद्देशीय हर स्थिति के लिए महामंत्र । महामंत्र भीतो महामंत्र हे ही या फिर साथ में ... नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 1.2.18 ) अनुवाद:- भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । यह भी कीर्तन है । शास्त्रों का अध्ययन या कोई पढ़ सकता है । बाकी सुन रहे हैं या विग्रह आराधना के समय आप कुछ प्रवचन सुन सकते हो, कुछ कथा सुन सकते हो, कीर्तन सुन सकते हो, नहीं तो आप स्वयं कहो और सुनो । हाथ में काम यह विग्रह आराधना का काम सेवा और मुंह में नाम तो यह नाम संकीर्तन का बहुत बड़ा रोल है तो हम कलयुग में हैं । कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति होको महान्गुणः । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 12.3.51 ) भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । और यह दोषों का भंडार है या दोष ही दोष कई प्रकार के दोष तो इन दोषों से मुक्त होना है तो "कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति होको महान्गुणः" लेकिन इस दोष से भरे हुए कलियुग या अवगुण से भरे हुए यह कलीयुग में, कलीयुग का एक महान गुण है और वो है "हरिनामानुकीर्तनं" या "अनुसङ्कीर्तनं तव" या "कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्" हम मुक्त होंगे दोषों से मुक्त होंगे । अपराधों से मुक्त होंगे । अपराध रहित हमारे सेवा या जो भी कार्यकलाप है अपराध रहित होने लगेंगे हम श्रवण कीर्तन जारी रखेंगे । हरि हरि !! ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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