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*जप चर्चा* *06 अक्टूबर 2021* *पंढरपुर धाम से* हरे कृष्ण ! आज 880 भक्त इस जप टॉप में उपस्थित हैं और उन्हीं स्थित लोकेशन, स्थानों में से हमने कुछ विग्रह के दर्शन किए। आपको अच्छे लगे दर्शन ? यू लाइक इट कई तो आंख बंद करके बैठे थे या सो रहे थे या उनको वे खुद ही अच्छे लगते हैं भगवान उनको अच्छे नहीं लगते या भगवान के साथ में कुछ कॉम्पिटिशन है या द्वेष है या अपनी ज्योत में ज्योत मिलाना या अपनी ऐसी इच्छा रखने वाले, मायावादी कृष्ण अपराधी, भगवान का दर्शन नही करना चाहते। उनको ब्रह्म पसंद होता है "अहम् ब्रह्मास्मि" मैं ब्रम्ह हूँ। लेकिन यह भी प्रार्थना है कि *हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥*( ईशोपिनषद) उपनिषद श्लोक संख्या 15 देख लो वहां भगवान के विग्रह से प्रार्थना है कहो या भगवान से प्रार्थना है मतलब यहां क्या ? *ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशस: श्रेय:। ज्ञान वैराग्ययोश चैव सन्नम भग इतिंगना।। (विष्णु पुराण 6.5.47) अनुवाद: - पराशर मुनि जो श्रील व्यास देव के पिता हैं श्री भगवान के बारे में कहते हैं कि छः ऐश्वर्य यथा धन बल यश रूप ज्ञान एवं वैराग्य परम पुरुषोत्तम भगवान में पूर्ण मात्रा में विद्यमान होते हैं अतः श्री भगवान सर्व आकर्षक हैं। श्रेय: मतलब सौंदर्य असीम सौंदर्य वाले जो हैं उनको भगवान कहते हैं। अर्थात यह भगवान को प्रार्थना है हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये आपका जो तेज है आप से उत्पन्न होने वाला जो प्रकाश है जिसको ब्रह्म ज्योति कहा है *वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् । ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते ॥* (श्रीमद भागवतम 1.2.11) अनुवाद - परम सत्य को जानने वाले विद्वान अध्यात्मवादी (तत्वविद) इस अद्वय तत्त्व को ब्रहा, परमात्मा या भगवान् के नाम से पुकारते हैं। उस प्रकाश को हटाइए, इट्स टू मच लाइट, इस लाइट को इस प्रकाश को इस ब्रह्म ज्योति को हटाइए या मिटाइए। मिटा तो नहीं सकते वह भी शाश्वत है सत्यस्यापिहितं मुखम् थोड़ा पर्दा हटाइए, यह ब्रह्म ज्योति के रूप में आप जो आच्छादित हो चुके हो या मेरे और आपके रूप के बीच में यह जो प्रकाश आ रहा है मैं आपका भक्त हूं ऐसी प्रार्थना है मुझे दर्शन दीजिए आपके चरण कमलों का दर्शन दीजिए आप के मुख् मंडल का दर्शन दीजिए आपके सर्वांग का दर्शन मैं करना चाहता हूं ऐसी प्रार्थना है ईशोपनिषद में, आप पढ़ लीजिएगा इसको समझ लीजिएगा हरि हरि! सुंदर दर्शन और भक्त भी अपने-अपने भगवान विग्रह के दर्शन औरों को दे सकते हैं। पद्म राधा ने तो दिया और और प्रेम आंजन सुभद्रा फ्रॉम वृंदावन उन्होंने तो पंचतत्व का दर्शन कराया। शायद पंच तत्वों का विग्रह का दर्शन तो बड़ा दुर्लभ है। वृंदावन में प्रेम सुधा माता जी के घर में पंच तत्व हैं उसका भी दर्शन हमने किया और कई सारे दर्शन हरि हरि ! हमको गौड़िय वैष्णव फ्रॉम बेंगलुरु से उन्होंने अपने विग्रह का दर्शन कराया, सुंदर दर्शन रहे। मैं सोच रहा था कभी-कभी ड्रेस कंपटीशन होता है ना बच्चों का कंपटीशन और प्राइस भी होते हैं बेस्ट ड्रेसिंग के लिए, ऐसा भी कभी हो सकता है यदि आप प्रस्तुत कर सकते हो। लेकिन बढ़िया कैमरा और कैमरामैन भी हो लाइटिंग वगैरह ठीक से हो और कुछ विशेष श्रंगार भी करो अपने इष्ट देव का अपने विग्रह का और भेजिए और आन्यौर आन्यौर, मतलब और चाहिए और दर्शन और दर्शन, हम लोग प्रतीक्षा करेंगे और फिर उसका भी एक कलेक्शन हो सकता है। कुछ दिन पहले दो-चार दिन पहले हम डिटीज दर्शन करा रहे थे वह इस्कॉन मंदिर के विग्रहों के दर्शन थे। इस प्रकार एक और कलेक्शन बन सकता है। होम डीटीज, घर में आपके गृहस्थ आश्रम में आपके जो डीटीज हैं उसका भी कलेक्शन हो सकता है उसका भी एक संग्रह हो सकता है और वह जब कई सारे डीटीज संग्रहित हो जाएंगे तब हम आपके साथ शेयर कर सकते हैं उसके भी दर्शन आप कर सकते हैं या औरों को करा सकते हैं। प्रेजेंटेशन बन सकता है और एक दूसरों के विग्रह के श्रृंगार के दर्शन करोगे तो आपको भी आईडिया आएंगे या कुछ कंपटीशन का विचार आएगा। हमारे भगवान का श्रृंगार इससे भी और अधिक बढ़िया करना चाहते हैं या प्रेम से करना वैसे अधिक महत्वपूर्ण है हरि हरि ठीक है। फिर आप भेजिएगा और दर्शन विग्रह पद्ममालि के पास भेजो, जो ठीक वाले हैं उन्हीं का चयन वे करेंगे और उन्हीं का दर्शन सबको दे देंगे। अभी तक उदयपुर से कोई दर्शन नहीं हुआ शोलापुर का शायद हुआ है मॉरीशस से भी एक हुआ, थाईलैंड से नहीं हुआ। तपो दिव्यम या जो भी तैयार हैं ठीक है। सेंड मोर फोटोज कई एंगेल के साथ जूम इन जूम आउट के साथ, ओके तो कुछ प्रश्न उत्तर भी बाकी हैं 2 या 3 दिन पहले जब हम देवताओं के द्वारा की हुई गर्भ स्तुति प्रस्तुत की जा रही थी स्तुति का एकवचन समझाया था उसमें से आप में से कुछ भक्तों ने प्रश्न पूछे थे। एक प्रश्न साधना माताजी ने मुंबई से पूछा है - रोम छिद्रों को द्वार क्यों नहीं कहा जाता? गुरु महाराज- रोम छिद्र जानते हो हमारे शरीर में कई सारे रोम होते हैं रोमांच रोमावली होता है कई सारे छिद्र होते हैं उनका उल्लेख क्यों नहीं हुआ। एनीवे आपको बताना होगा 1 2 3 4 चल रहा था। एक क्या है वृक्ष है, दो, दो प्रकार के फल हैं, तीन प्रकार के गुण हैं, यह सब, इसी तरह शरीर में 9 द्वार हैं नॉ गेट्स हैं अब नहीं बताएंगे कौन से गेट, आपको बता चुके हैं। आपको याद है ? बता सकते हो कौन-कौन से 9 द्वार हैं। ओके प्रेम पद्मिनी रेडी है याद रखा है कुछ भक्त है या कुछ भक्तों ने लिख भी लिया था, अब भूल गए, शशि मुखी भी नोटबुक लेकर बैठी है। नव द्वार हैं हमारे पूर्व द्वार, दक्षिण द्वार, उत्तर द्वार, पश्चिम द्वार, चार दिशा में चार द्वार है। यह सब अब नहीं कहूंगा, प्रश्न है कि जो 9 द्वार हैं हमारे शरीर में, तो कई सारे छिद्र हैं आप देखो जहां जहां बाल हैं एक छिद्र है उन छिद्रों को यह 9 द्वार की जो सूची है, क्यों नहीं उस का समावेश किया। ऐसा कोई प्रश्न पूछना भी नहीं चाहिए था, लेकिन पूछ लिया एक तो 9 द्वार हैं जैसे घर होता है। शरीर को भी घर कहा है। *सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी | नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 5.13) अनुवाद- जब देहधारी जीवात्मा अपनी प्रकृति को वश में कर लेता है और मन से समस्त कर्मों का परित्याग कर देता है तब वह नौ द्वारों वाले नगर (भौतिक शरीर) में बिना कुछ किये कराये सुखपूर्वक रहता है | नवद्वारे पुरे देही, देही मतलब शरीर, शरीर को घर कहां है। मेरे प्रश्न के उत्तर थोड़े लंबे हो जाते हैं घर में द्वार होते हैं या दीवारों में द्वार होते हैं फिर हो सकता है कोई छोटी-छोटी खिड़की है छोटे-छोटे छिद्र हैं। वह है कभी चूहे भी कुछ होल बना देते हैं या छिद्र उसकी गणना नहीं होती, आगे द्वार है या पीछे भी बैक गेट है। द्वार द्वार होते हैं और कुछ हो या छिद्र कुछ छोटी मोटी खिड़की हो सकती है। यहां केवल द्वारों का ही उल्लेख है और यह छिद्र अनेक हैं किन्तु उसकी ओर ध्यान नहीं दिया है या उसका उल्लेख नहीं हुआ है केवल द्वार का ही उल्लेख हुआ है वैसे यह छिद्र जो है रोम जो है स्किन में शामिल होते हैं। वैसे आठ प्रकार के आवरण या कवरिंग्स हैं उसमें त्वचा का उल्लेख हुआ है स्किन का उल्लेख हुआ है लेकिन त्वचा में जो छिद्र हैं उसका उल्लेख नहीं है। यह एक प्रश्न का उत्तर हुआ, दूसरा प्रश्न है तत्व विचार और रस विचार समझ में नहीं आया ? तत्व विचार और रस विचार", तत्व अर्थात हर चीज का तत्व होता है सिद्धांत होता है या लीला का भी तत्व होता है। एक लीला होती है जब लीला का वर्णन हम सुनते हैं जैसे रास क्रीडा रासलीला है, लीला का तत्व होता है। छोटा सा तत्व यह भी हो सकता है भगवान के दो प्रकार एक रूप को कहा है शास्त्र में "प्रकाश और दूसरा है, विलास, प्रकाश रूप और विलास रूप भगवान के रूपों के दो प्रकार बताए हैं यह तत्व की सिद्धांत कि चर्चा शुरू हो गई जब वे इन दोनों में विस्तार करते हैं तब विग्रह बन जाते हैं और फिर विलास विग्रह बन जाते हैं। जब भगवान एक के अनेक हो जाते हैं तब प्रकाश विग्रह कहलाते हैं, अर्थात प्रकाश विग्रह में भगवान अनेक तो होते हैं लेकिन वह सभी रूप एक दूसरे जैसे ही होते हैं जैसे रास क्रीडा में भगवान हर गोपी के साथ एक एक कृष्ण के सभी रूप एक जैसे या फिर भगवान द्वारका में पहुंचे विवाह हुए, 16108 उनकी रानियां रही, उनके महल रहे, उतने महलों में भगवान रहते थे लेकिन वे सारे रूप एक जैसे ही हैं। दिखने में फोटो खींचोगे वीडियो बनाओगे तो एक जैसे ही रूप होते हैं और फिर हर घर से हर महल से कहना चाहिए, रथ में विराजमान होकर पार्लियामेंट जा रहे हैं। संसद भवन द्वारका का मंदिर है द्वारका में जब आप गए होंगे, द्वारका जो मंदिर है वह पार्लियामेंट है और जिसको भेंट द्वारका कहते हैं। आईलैंड द्वारका , वहां भगवान के महल थे उसमें से कुछ एक आध महल बचा हुआ है बाकी भगवान जब अंतर्धान हुए तब सारे महल समुद्र में डूब गए। उन सारे महलों से भगवान एक एक रथ में विराजमान या अरुण होते हैं और सब16108 रथ पार्लियामेंट की तरफ जा रहे हैं और जब पार्लियामेंट पहुंचते हैं तब 16108 द्वारकाधीश एक हो जाते हैं और पार्लियामेंट में प्रवेश करते हैं और उनका पार्लियामेंट का कारोबार चलता है। इस प्रकार यह प्रकाश विग्रह है और फिर विलास विग्रह, इसमें भगवान नाना अवतार लेते हैं। *रामदिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन् नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु।कृष्ण: स्वयं समभवत्परम: पुमान् यो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।* ( ब्रम्ह संहिता 5.39) अनुवाद: -जिन्होंने श्रीराम, नृसिंह, वामन इत्यादि विग्रहों में नियत संख्या की कला रूप से स्थित रहकर जगत में विभिन्न अवतार लिए, परंतु जो भगवान श्रीकृष्ण के रूप में स्वयं प्रकट हुए, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूंँ। राम, नरसिंह, दिस एंड देट, लीला अवतार, शक्त्यावेश अवतार और यह सारे एक दूसरे जैसे नहीं दिखते हैं। नरसिंह भगवान एक रूप, दूसरे हैं वामन, और फिर हैं कूर्म, फिर मलच्छ, वराह, यह जो मूर्तियां हैं यह जो विग्रह हैं इनको विलास विग्रह कहते हैं। प्रकाश विग्रह और विलास विग्रह यह जो ज्ञान है इसको तत्व कहते हैं। यह तत्व विचार हुआ और उन अवतारों की जो लीलाएं कथाएं जो मधुर होती हैं रस भरी होती हैं उसको रस विचार कहते हैं या फिर वात्सल्य रस में यह लीला या माधुर्य रस वह जो रस है द्वादश रस हैं या भक्तिरसामृत सिंधु है या भगवान के संबंध की हर बात रसीली होती है। वे रसिक होते हैं रसास्वादन करते हैं यह सारा रस हुआ। भगवान का नाम भी मधुर है भगवान का रूप भी मधुर है भगवान की हर चीज "मधुराधिपते अखिलम मधुरम" भगवान के संबंध की हर बात मधुर है या मीठी है रसभरी है। यह रस विचार हुआ, इस विचार को फिलॉसफी कहो या तत्व विचार कहो यह तत्वज्ञान हुआ और हर एक का तत्व होता है और फिर नाम का भी तत्व है लीला का भी तत्व है और फिर वह लीला है, लीला का सारा वर्णन है और फिर इस का तत्व है। यह दोनों हम को समझना है। इसलिए कृष्ण ने कहा, *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.9) अनुवाद- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | मैं जन्म लेता हूं यह मेरी लीला है लेकिन मेरे जन्म का जो तत्व है उसको भी समझो “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः चौथे अध्याय में भगवान ने कहा है श्रीकृष्ण ने अपने प्रकृति की बात करने से पहले कहा, उस को समझो हरि हरि ! सोते समय या बच्चों को सुलाते समय हम कुछ कहानी बताते रहते हैं कोई बूढ़ी मां, दादा-दादी या नाना-नानी कुछ कहानी सुनाते रहते हैं उसमें थोड़ा कुछ हो सकता है लेकिन अधिकतर उसको तत्व नहीं होता, उसको सिद्धांत के साथ कही हुई कथा या लीला को नहीं सुनाते हरि हरि ! यह भेद है। आशा है यह क्लियर हो गया होगा क्या रस विचार है और क्या तत्व विचार है। अब अगला प्रश्न है वायु के नाम ठीक हैं मैंने उस दिन 10 प्रकार के वायु के नाम बताए थे जो शरीर में होते हैं यह जो वायु है वात है कुछ नाम तो मैंने कहे थे लेकिन सभी 10 नाम नहीं कहे थे। किसी ने प्रश्न पूछा कि वे 10 नाम क्या है? यह जो 10 प्रकार के वायु हैं इस पर एक पूरा सेमिनार हो सकता है इससे संबंधित जो ज्ञान है तत्व है विचार हैं या आपको हम नाम बताते हैं नाम के पहले वैसे श्रीमद्भागवत के कैंटों 3 अध्याय 6 और श्लोक संख्या 9 यदि हम इस प्रकार से कुछ रिफरेंस देते हैं उसका कोई आधार है तब अच्छा है इस प्रकार से हमको याद भी रखना चाहिए स्कंध तीसरा कहा है और तीन ऐड करो तो क्या हुआ 6 हुआ, अध्याय छठवां हुआ और तीन ऐड करो तो 9वां हुआ 9 वा श्लोक इस तरह से मैं भी कुछ करता रहता हूं। हर व्यक्ति को कुछ याद रखने के लिए ऐसी कुछ युक्ति होनी चाहिए। यहां पर हम आप को पर्दे पर स्क्रीन पर दिखाते हैं ठीक है आपको दिखाई दे रहा है यह अंग्रेजी में है यदि आप देख रहे हो तो अच्छा है मुझे तो यहां नहीं दिख रहा है। महालक्ष्मी दिख रहा है ठीक है, जैसे मैंने कहा ही था कि मैं सेमिनार नहीं देने वाला हूं आप उसको पढ़ सकते हो। ऐसे स्क्रीन पर रहेगा या बाद में यह डाउनलोड कर सकते हैं। चैट बॉक्स में उसको अपलोड करेंगे और आप लोग उसको डाउनलोड कर लेना ताकि सदा के लिए ही है आपके पास रह सकता है यह अंग्रेजी में है या फिर हिंदी में भी मिलना चाहिए। हिंदी का यदि आपने भागवत सेट लिया हुआ है आप सभी के घरों में प्रभुपाद के ग्रंथ होने चाहिए "भागवतम सेट, चैतन्य चरित्रामृत सेट" एक वायु है प्राणवायु, आपने सुना होगा मेन एयर जो नासिका से आप लेते हो जो चलता रहता है और जिस पर हमारा जीवन टिका हुआ है। फिर अपान वायु है वह क्या कार्य करता है ? इन सारी वायु के अपने-अपने फंक्शंस हैं ऐसे बेकार के लिए ही हवा सर्कुलेट नहीं होती इस शरीर में, हर वायु का अपना कार्य है, महत्वपूर्ण कार्य है। यह हमारे नहीं होती तो जैसे इससे मिलते जुलते, अर्थराइटिस होता है ना, आप समझते हो शरीर थोड़ा-थोड़ा फ्रीज होने लगता है कई पार्ट हिलते भी नहीं है मतलब मर ही गए, इज़ डेड, वहां किसी विशेष हवा का फंक्शन या कार्य नहीं हो रहा है। इसीलिए अर्थराइटिस हुआ या कॉन्स्टिपेशन होता है और मल मूत्र विसर्जन में कठिनाई तब उसके लिए, यह अपान वायु है। समान है, उदान है, कूर्म है, देवदत्त है, हम जो मुंह खोलते हैं बंद करते हैं इसके पीछे भी एक वायु कार्य करती है। हमारी आंखें बंद होती हैं खुलती हैं इसके पीछे भी एक हवा है। वायु है वात है, दसवीं है धनञ्जय, सस्टेन स्थित कहो या मेंटेनेंस, यह धनंजय नाम की वायु से यह कार्य होता है। ओपनिंग एंड क्लोजिंग, क्लोजिंग के लिए यह कूर्म, कूर्म अंगनि वसा, जैसे कूर्म अपने हाथ पर खोल देता है फैलाता है और कभी-कभी खतरा है तो उसको सिकुड़ लेता है इसी तरह हमारे शरीर में भी ऐसे कई पार्ट हैं जिसका फंक्शन ओपनिंग क्लोजिंग वहां पर यह कूर्म वायु कार्य करती है। आप उसको देख लीजिए पढ़ लीजिए समझ लीजिए फिर आप समझा भी सकते हो भगवान ने यह सारी व्यवस्था की हुई है हमारे लिए, हम तो बस खाना ही जानते हैं खाने के बाद उसको पचाना है डाइजेशन है और फिर क्या क्या बहुत कुछ कितनी सारी एक्टिविटीज शरीर में होती रहती है निरंतर हम सोए तब भी, इस प्रकार की प्रकृति है भगवान जिस प्रकृति के अध्यक्ष हैं। *मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् |हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ||* (श्रीमद भगवद्गीता 9.10) अनुवाद- हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है | प्रकृति के सारे फंक्शन ऑटोमेटिक नहीं होते हैं कोई ना कोई करता है और वैसे देवताओं को भी भगवान ने नियुक्त किया है और हमारे कई सारे शरीर के जो अलग-अलग फंक्शन है उसका नियंत्रण देवता द्वारा भगवान करवाते हैं। वैसी सुव्यवस्था भगवान ने की हुई है। हरि हरि *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* चार्ट में भेजा हुआ है यह जो 10 वायु का ज्ञान है आप इसको मेंटेन भी कर सकते हो कुछ उसकी फाइल बनाओ कुछ स्टोर करो लिख लो याद रखो ताकि आपकी यह संपत्ति आपका यह ज्ञान आपकी संपत्ति बन जाए ऐड विक्रम योर प्रॉपर्टी हरि हरि ! एक अन्य प्रश्न है श्याम गोपाल प्रभु के द्वारा, वह पूछ रहे हैं कि जो प्रकृति के तीन गुण हैं जो हमें पोषित करते हैं उससे किस तरह पार जाया जा सकता है ? गुरु महाराज - *दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया |मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||* (श्रीमद भगवद्गीता 7.14) अनुवाद- प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है | किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वो सरलता से इसे पार कर जाते हैं। यह जो तीन गुण वाली माया है सत्व रज तम यह माया है मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते " जो भी कृष्ण की शरण में आते हैं वह माया से उठते हैं या तीन गुणों के प्रभाव से ऊपर पहुंचते हैं। *मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते | स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ||* (श्रीमद भगवद्गीता 14.26) अनुवाद- जो समस्त परिस्थितियों में अविचलित भाव से पूर्ण भक्ति में प्रवृत्त होता है, वह तुरन्त ही प्रकृति के गुणों को लाँघ जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर तक पहुँच जाता है | ब्रम्ह्भूयाय कल्पते ऐसा भी कृष्ण ने कहा है भक्ति के जो कृत्य हैं वह हम करते हैं भगवान की शरण लेते हैं और तीन गुणों के प्रभाव से बचते हैं और फिर *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* या फिर , *त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 2.45) अनुवाद- वेदों में मुख्यतया प्रकृति के तीनों गुणों का वर्णन हुआ है | हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो | समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिन्ताओं से मुक्त होकर आत्म-परायण बनो | वेदों में भी ऐसे कुछ कृत्य या विधि विधान बताए हैं वेदों में ही कर्मकांड है वेदों में ही ज्ञान कांड है इसको केवल विषेर भांड कहा है। कृष्ण ने भी भगवत गीता में कहा है निस्त्रैगुण्यो, *भुक्ति - मुक्ति - सिद्धि - कामी - सकलि अशान्त 'कृष्ण - भक्त - निष्काम , अतएव ' शान्त '* । (चै.च. मध्य19.149) अनुवाद " चूँकि भगवान् कृष्ण का भक्त निष्काम होता है , इसलिए वह शान्त होता है । सकाम कर्मी भौतिक भोग चाहते हैं , ज्ञानी मुक्ति चाहते हैं और योगी भौतिक ऐश्वर्य चाहते हैं ; अत : वे सभी कामी हैं और शान्त नहीं हो सकते । कर्मी नहीं बनना, ज्ञानी नहीं बनना, भक्त बनो फिर कामवासना से हम रहित हो जाएंगे और प्रेम से भर जाएंगे जब आप प्रेम से भर गए तब काम से मुक्त हुए कामी के सारे कृत्य हैं। “श्री भगवानुवाच *काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 3.37) अनुवाद- श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है। काम एष क्रोध एष, अगर हम रजोगुणी हैं तो रजोगुण से काम उत्पन्न होता है फिर काम से क्रोध उत्पन्न होता है तो जब हम इन शत्रुओं से बचेंगे यह षड रिपु हैं। काम से क्रोध लोभ , बहुत सारे यह सारे कार्य 3 गुण ही करवाते हैं। जब हम क्रोधित होते हैं तब रजोगुण हमें क्रोधी बनाता है। मात्सर्य हममें है तमोगुण के प्रभाव से मात्सर्य हम में होता है। औरों से मात्सर्य करते हैं। अतः भक्ति करो या नवधा भक्ति के कृत्यों को अपनाओ, श्रीप्रह्लाद उवाच *श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥* *पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥* (श्रीमद भागवतम 7.5.23-24) अनुवाद- प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप, साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना, भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा , कर्मणा उनकी सेवा करना ) -शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है । हम साधक हैं। साधक बनके हम इस नवधा भक्ति को अपनाएंगे हम तीन गुणों से बचेंगे। तीन गुणों से उत्पन्न होने वाले काम, क्रोध, लोभ, मद, मात्सर्य इन से बचेंगे, *ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति | समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 18.54) अनुवाद- इस प्रकार जो दिव्य पद पर स्थित है, वह तुरन्त परब्रह्म का अनुभव करता है और पूर्णतया प्रसन्न हो जाता है | वह न तो कभी शोक करता है, न किसी वस्तु की कामना करता है | वह प्रत्येक जीव पर समभाव रखता है , उस अवस्था में वह मेरी शुद्ध भक्ति को प्राप्त करता है। फिर उस समय हम "न शोचति न काङ्क्षति", महत्वाकांक्षा नहीं होगी हमारी, भौतिक दृष्टि से ना शोक करेंगे, यह नहीं हुआ हाय हाय, हम वर्तमान काल में रहेंगे, कृष्ण के साथ रहेंगे और संसार की *यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः | समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.22) अनुवाद- जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, जो द्वन्द्व से मुक्त है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता तथा असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह कर्म करता हुआ भी कभी बँधता नहीं | जो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः मात्सर्य रहित होकर द्वंद से मुक्त होंगे, द्वंदतीत अवस्था है यही तो कृष्ण भावना मृत की अवस्था है। गुणातीत द्वंद्वातीत एक ही बात है। साधना का यह जीवन है यही साधन है तीनों गुणों से मुक्त होने का यही साधन है। प्रतिदिन फिर अभ्यास करना है। *चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् । तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।* (श्रीमद भगवद्गीता 6.34) अनुवाद- हे कृष्ण! चूँकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है, अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है | मन का चंचल यह गुण ही हमको विषय में लगाते हैं यह विषय फिर कामवासना के जो विषय हैं उसकी और मन दौड़ता है। *यतो यतो निश्र्चलति मनश्र्चञ्चलमस्थिरम् | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 6.26) अनुवाद- मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण करता हो, मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए | आत्मत्न्येव वशं नयेत् मन को विषय भूत करो, हरे कृष्ण में दोबारा लगाओ भगवान का दोबारा स्मरण, स्त्री पुरुष के रूपों की ओर मन हो रहा है तो कृष्ण के रूप की ओर ले चलो। इसलिए भी करना है विग्रह आराधना है। " हरे कृष्ण हरे कृष्ण तो है ही और फिर प्रसाद भी है, मन की शांति है ही, शांति मतलब सतोगुण तो है। हम सतोगुण तक तो पहुंच ही गए। ओम शांति शांति शांति ! कृष्ण भक्त निष्काम होता है इसलिए सदैव शांत होता है। हरि हरि ! हरे कृष्ण ! निताई गौर प्रेमानन्दे ! हरी हरी बोल!

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