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12 सितंबर 2019 हरे कृष्ण हम प्रतिदिन प्रातः जब 10 अपराध बोलते हैं तो 10 अपराध कहने के पश्चात हम क्या करते हैं। गुरु महाराज पूछते हैं कि अंग्रेजी तथा रूसी भाषा में उसे किस प्रकार कहा जाता है। हिंदी में भी हम लगभग इसी प्रकार से कहते हैं कि सभी भक्तों को ध्यान पूर्वक जप करना चाहिए, जिससे कि जो जीवन का परम लक्ष्य है कृष्ण प्रेम की प्राप्ति हो,वो शीघ्र अति शीघ्र प्राप्त हो सके। आप जैसे जप करते हुए सो जाते हैं अथवा निद्रा ग्रस्त हो जाते हैं तो यहां पर महाराज स्लीपिंग और स्लिपी शब्दों का यूज करते हैं। स्लीपिंग का अर्थ है जब हम वास्तव में सो जाते हैं और स्लिपी का अर्थ है झपकी लेना। जब हम जप करते हैं तो झपकी लेते हैं तथा फिर पुनः जप करने लगते हैं, यह असावधानीपूर्वक जप करना है जो कि एक अपराध है। आप हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते हैं और कृष्ण को बुलाते हैं तो भगवान आपका संबोधन सुनकर आपके पास आते हैं परंतु तब तक भगवान वहां से चले जाते हैं क्योकि आप भगवान को रिसीव नहीं करते हैं। यानी आपका मन इधर-उधर भटकने लग जाता है या फिर आप सो जाते हैं। यद्यपि आपको यह कहना चाहिए कि हे प्रभु मैंने आपको बुलाया है, आप मेरे बुलाने से यहां आए हैं, मैं आपका बहुत आभारी हूं, मैं आपको धन्यवाद देता हूं, मैं आपको प्रणाम करता हूं। आप आइए यहां बैठिए, मैं आपके साथ कुछ बातें करना चाहता हूं, यद्यपि हमें ऐसा करना चाहिए परंतु हम ऐसा करने के बजाय भगवान को बुला तो लेते हैं,भगवान आते हैं वह हमारे दरवाजे पर खड़े रहते हैं और दरवाजा खटखटा रहे हैं और हम वहां से चले जाते हैं अर्थात तब तक हमारा मन कहीं और चला जाता है या हम सो जाते हैं अर्थात हम भगवान के आने पर उनका स्वागत नहीं करते हैं। आप सदैव जप करते रहिए परंतु वह जप बहुत ध्यान पूर्वक होना चाहिए। इस प्रकार जब आप जप करते हैं तो आपसे यह आशा की जाती है कि आप जप को ध्यानपूर्वक करें और हमें इस आशा पर खरा उतरना चाहिए। यदि आपको यह नहीं पता है कि जप कैसे करना चाहिए तो आपको इस विषय में पूछना चाहिए और जिज्ञासा करनी चाहिए। जप के कई अंग होते हैं इसके विषय में हमें जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। समाधि अंत की आठवीं अवस्था होती है परंतु जो पहली अवस्थाएं हैं हमें धीरे-धीरे उन में निपुण होना चाहिए भगवान ने भगवत गीता के छठे अध्याय में अष्टांग योग का संक्षिप्त वर्णन किया है, हमें भी इस अष्टांग योग का प्रयास करना चाहिए। जिससे कि हमें जो आठवीं अवस्था समाधि को प्राप्त करना है वह हो सके। कहने का तात्पर्य यह है कि जो अष्टांग योगी है वह परमात्मा पर अपना ध्यान लगाते हैं। हम जो भक्त हैं जपयोगी हैं वो राधा कृष्ण का ध्यान करते हैं। हमें भी इन अष्टांग योग का पालन करना चाहिए, जिनमें पहला है यम-नियम अर्थात विधि और निषेध। यम का अर्थ होता है निषेध जैसे कि मांसाहार नहीं करना चाहिए, शराब नहीं पीना चाहिए इत्यादि। जो जो चीजें हमें नहीं करने के लिए कहा गया है वह यम है। अगर हम वह करेंगे तो अंत में हमें यमराज लेने के लिए आएंगे, दूसरा होता है नियम अर्थात विधि। विधि का अर्थ होता है कि आप ऐसा कीजिए, आप ऐसा कीजिए तो किस प्रकार हमें करना चाहिए। उदाहरण के लिए जप कैसे करना चाहिए। यह एक विधि है या नियम है। यम नियम ,विधि निषेध,पाप पुण्य यह सभी इस प्रकार से सम्मिलित होते हैं। यम नियम से जो अगली अवस्था आती है वह है आसन। कल हमने आसन के विषय में चर्चा की थी कि आसन क्या होता है जप में कौन-कौन से आसन होते हैं जैसे सुखासन, पद्ममासन, वज्रासन इत्यादि जिनमें हम बैठ सकते हैं। आसन के पश्चात आता है प्राणायाम। प्राणायाम का अर्थ है सांस को नियंत्रित करना। उसके लिए हमें गहरी सांस लेकर महामंत्र का जप करना चाहिए, फिर पुनः गहरी सांस लीजिए और हरे कृष्ण महामंत्र का जप करिए। इसी तरीके से कोई भक्त एक ही सांस में दो, तीन या पांच बार महामंत्र बोलते हैं। इस प्रकार से हमें सांस को नियंत्रित करना चाहिए। गहरी सांस लीजिए, मंत्र बोलिए वह पुनः गहरी सांस लीजिए और मंत्र बोलिए तो इस प्रकार जब हम गहरी सांस लेकर जप करते हैं तो वहां एक रिदम होता है। जो हमारी नियंत्रित सांस है उससे हमारा मन नियंत्रण में रहता है। जब हम सांस को नियंत्रित करते हैं तो हमारा मन इधर-उधर नहीं भागता है वह भी नियंत्रण में रहता है। इस प्रकार गहरी सांस लेना भी सतोगुण का प्रभाव है यदि आप तेज-तेज सांस लेते हैं हांपते हुए तो वह रजोगुण का प्रभाव है। अगर आपको पता ही नहीं है कि कब आप सांस ले रहे हैं कब छोड़ रहे हैं कोई रिदम ही नहीं है तो यह तमोगुण का प्रभाव है। गहरी सांस लेने का हमारे शरीर पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है यदि आप अधिक मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं तो हमारे फेफड़ों में भी पर्याप्त मात्रा में हवा पहुंचती है, इस प्रकार से प्रॉपर ब्लड सरकुलेशन होता है और खून हमारे मस्तिष्क तक पहुंचता है और हमें ताजगी का अनुभव होता है। यदि हमने बहुत अधिक भोजन कर लिया है तो यह जो ब्लड है यह मस्तिष्क तक नहीं पहुंचता, क्योंकि वह उस भोजन को पचाने के लिए जाएगा। यही कारण है कि हमें भोजन करने के बाद नींद आती है। यह जो शरीर है यह एक मशीन है और हमें यह पता होना चाहिए कि यह मशीन किस प्रकार से चलती है। मन इसका एक मुख्य अंग है, हमारा जो शरीर है वह मन, बुद्धि ,अहंकार आदि से ही मिलकर बना है हमें पता होना चाहिए कि कौन-कौन से अंग क्या कार्य करते हैं। हमने यम, नियम आसन, प्राणायाम इन चार पर आज चर्चा की है। इससे अगला आता है प्रत्याहार। प्रत्याहार अत्याहार का उल्टा होता है जैसे कि रूप गोस्वामी कहते हैं कि "अत्याहार प्रयासस्य प्रजल्पा नियमाग्रह" और उनके विषय में वे कहते हैं "षड़भिर भक्ति विनश्यति" अर्थात 6 चीजें करने से हमारी भक्ति का विनाश हो जाता है। 6 चीजों में अत्याहार से प्रारंभ करते हैं, प्रत्याहार का अर्थ है अति अल्प आहार, अति का अर्थ है जरूरत से ज्यादा तथा आहार का अर्थ है भोजन, अर्थात हम जितनी जरूरत है उससे ज्यादा भोजन करते हैं तो यह अत्याहार होता है। इस प्रकार से जो अष्टांग योग का पांचवा अंग है वह प्रत्याहार है। प्रत्य का मतलब होता है उल्टा और आहार का मतलब होता है भोजन, यह अत्याहार का उल्टा है। आहार का मतलब केवल वह भोजन नहीं होता जो आप जीभ से खाते हैं यहां पर हमारी आंखें, कान आदि भी जो भोजन करते हैं उनका भी वर्णन है। भक्ति विनोद ठाकुर अपनी एक पुस्तक भक्तियालोक में वर्णन करते हैं किस-किस प्रकार से जो हमारी सभी इंद्रियां हैं उनके लिए भी अलग-अलग भोजन होता है जैसे कान के लिए भोजन होता है शब्द और शरीर के लिए जो भोजन है वह स्पर्श है, आंखों के लिए जो भोजन है वह रूप है, जीभ का भोजन रस है, नाक का भोजन गंध है। इस प्रकार से हमारी सारी इंद्रियां इस रूप में भोजन करती हैं। यह भक्ति योग का विज्ञान है और हम सभी जपयोगी हैं। हम जपयोग करते हैं तो हम जपयोगियों को भी प्रत्याहार करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि जब आप जप करते हैं तो प्रत्याहार करते हैं, बल्कि वह हमारे प्रत्याहार की तैयारी है। इस प्रकार से जब मैं कई बार बताता हूं कि आज के जप की तैयारी हमें 1 दिन पहले करनी चाहिए यानी प्रत्याहार हम जब एक दिन पहले करते हैं तो अगले दिन का जप हमारा ठीक प्रकार से होता है। प्रत्याहार का अर्थ है जो हमारी इंद्रिय विषयों का जो भोग है उसे कम करना चाहिए। जिसमें क्वालिटी वाइज तथा क्वांटिटी वाइज कमी होना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि हमें क्या श्रवण करना है और कितना। क्या हमें देखना है और कितना। जो भगवान कृष्ण के भक्त होते हैं भगवान के बारे में ही सुनते हैं, हमें हमारी इंद्रियों को नियंत्रण में करना चाहिए और उनका प्रयोग भगवान की सेवा में करना चाहिए। यह प्रत्याहार जो है वह हम बुद्धि की सहायता से कर सकते हैं क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति ही जप करते हैं, जप करना मूर्ख व्यक्तियों का काम नहीं है। जैसा कि भागवतम में कहते हैं "यज्ञे संकीर्तन प्राये यजन्ती ही सुमेधसा" अर्थात जो बुद्धिमान व्यक्ति है वहीं इस संकीर्तन यज्ञ में सम्मिलित होता है। इस प्रकार से यदि आप हरि नाम के प्रबल साधक बनना चाहते हैं तो आप अवश्य ही बुद्धिमान हैं। हमें सही और गलत में भेद करना आना चाहिए कि क्या हमारे लिए उपयुक्त है और क्या अनुपयुक्त है। प्रत्याहार में हमारी मन व बुद्धि सम्मिलित होती है तब जो हमारी बुद्धि होती है वह हमारे मन को दिशा देती है कि आप ऐसा कीजिए और ऐसा मत कीजिए, यह करो यह मत करो, यह चर्चा करो और यह चर्चा मत करो। जिस प्रकार आप भगवान की तस्वीर देखकर आंखें बंद करते हैं तो वही तस्वीर एक बार फिर आपको दिखायी देती है तब हमें यह सोचना चाहिए कि भगवान यहीं है हमारी बुद्धि हमें यह बताती है कि अब आप भगवान का दर्शन करो। यहां भी हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है इसका ध्यान रखना चाहिए, यह सभी तैयारियां हैं कि किस प्रकार हम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार आदि से धारणा, ध्यान तथा समाधि की ओर अग्रसर होते हैं। समाधि हमारा अंतिम लक्ष्य होता है। यह जो हमारी तीन अवस्थाएं हैं धारणा, ध्यान व समाधि इन में हम और अधिक उतरते जाते हैं यदि हमारे जो पहले पांच अंग हैं वह सुदृढ़ हैं। धारणा का अर्थ होता है और अधिक मात्रा में फोकसड़ होना। क्योंकि जो हमारा मन है वह अनियंत्रण से बाहर निकल चुका है जो कि बुद्धि के द्वारा नियंत्रित हो चुका है जो कि भगवान कृष्ण के नाम रूप गुण व लीलाओं पर केंद्रित रहता है, इस प्रकार से यह धारणा होती है। आज की जप चर्चा को हम यहीं विराम देते हैं कल हम देखेंगे की धारणा में और क्या होता है व ध्यान तथा समाधि में क्या होता है? श्रील प्रभुपाद की जय

English

12TH SEPTEMBER (Part - 2) Bhakti Vinod Thakura explains that inattentive chanting is the cause of all the offences we commit. After reciting the ten offenses before we start chanting what do we say at the end? We say that the goal of life is to chant Hare Krishna every devotee who wishes to obtain the goal of life which is to attain Krsna should be chanting attentively. So that is the defect. We may be sleeping everyday during chanting. Sleeping or sleepy are two separate things. Sleeping is fully sleeping. You are in bed and sleeping. Sleepy means you are half asleep, getting up in between and trying to chant Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare sssssss….. That's sleepy which is half asleep. You are inattentive. It is an offence. When we say Hare Krishna Hare Krishna, that means we are calling Krsna. You called Him so he has come, but you are not there to receive Him. You called , but if you are sleepy, you are not there to receive the Lord. Thank you for responding to my appeal, my call. I called and You have come. I pay my obeisances to You. Please have a seat. Let's talk. Let's be here, I am going to take Your darsana. So instead of reciprocating or dealing with the Lord, like that, what happens when you are sleepy, you have called and He has come paying attention to you. He is at the door, ringing the doorbell. I am here! I am here! In the meantime you are off, you are out of station or you are sleeping or your mind has gone somewhere else even though you called Him. I am just saying that this is something that we do over again and again and again. So we have to do it right. You are not sure whether you are doing it appropriately, the way it is expected and desired, and if you are not sure you should enquire whether this is correct or wrong. There are so many aspects of chanting. Being in samadhi or fully absorbed. The level that we wish to attend. That's the final step of the ladder. We have to make sure that of all the previous levels we are doing things correctly. I said yesterday that we could apply this ashtanga yoga of Patanjali, which Sri Krsna has explained in the sixth chapter of Bhagavad-gita. We should aim at that meditation because ours is mantra meditation. Ashtanga yogis maybe meditate on paramatma. Our meditation is on Radha Krsna. Like this meditation, - yam niyam. Do this! Don't do this! It means following the four regulative principles. Don't do this! No meat eating; no fish eating; no this; no that! This is yam. If you do that Yamraj will come. So that's yam and niyam - they are all positive rules that you are expected to do. There is vidhi and nishedh. Some prohibitions are there like, ‘Don't drink and drive' 'Drive on the right side' in India. So vidhi and nishedh. In English we say do's and don'ts. Or paap and punya. Yam niyam then there is asan. We were talking briefly yesterday, 'sit properly'. We are sitting in sukhasana or padmasana or vajrasana. These are the correct asanas for chanting. Yam niyam aasan, pranayam, which is controlling your breath. You take a deep breath and chant…. Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare … once, twice, thrice. Take a deep breath and chant one mantra, two mantras, sometimes some devotees manage five mantras in one breath. Create a rhythm. So breath control results in mind control. Breath control has a connection with mind control. They are closely related. This is in the mode of goodness. Take a deep breath and chant. There is passionate breath. You have a passion for different kinds of breaths. Your breathing is fast and the mind is also moving fast. Or there is ignorant breath. It may be deep. Our whole nervous system may be weak. Then the blood in the lung is reaching your brain. Then you feel fresh and alert. If the blood supply is not reaching the brain, maybe when we eat too much, the blood supply is going to the digestive system. All the blood is directed to wherever there is activity. So the blood supply to the brain is low then you are sleepy. Specially after a meal you feel sleepy right? After a full meal, isn't it? Because the blood is directed towards the action point which is the stomach. The body is a machine. We have to know how it functions. Part of that machine is the mind. It's a part of the machine. Our body is made up of the mind also. The body is made up of intelligence also. We have to understand our mind and intelligence and its functions. How do they function favourably for chanting. Anyway so this is breathing or pranayam. We should pay some attention to this. Yam niyam aasan pranayam and pratyahar. We know there is atyaharah. atyaharah prayasas ca prajalpo niyamagrahah jana-sangas ca laulyam ca sadbhir bhaktir vinasyati One’s devotional service is spoiled when he becomes too entangled in the following six activities: (1) eating more than necessary or collecting more funds than required; (2) overendeavoring for mundane things that are very difficult to obtain; (3) talking unnecessarily about mundane subject matters; (4) Practicing the scriptural rules and regulations only for the sake of following them and not for the sake of spiritual advancement, or rejecting the rules and regulations of the scriptures and working independently or whimsically; (5) associating with worldly-minded persons who are not interested in Krsna consciousness; and (6) being greedy for mundane achievements. ( NOI verse 2) So like this there is sadbhir bhaktir vinasyati - 6 things could destroy your devotional life. That statement in the Nectar of Instruction begins with atyaharah. atyaharah means ati aharah too much of eating. 'Ati' means too much, too much of eating. Too much consumption. In the ashtanga yoga process the fifth step is pratyaharah which means countering. We have done atyaharah so now we have to do pratyaharah Aharah means eating. Aharah means not only that the tongue eats, but our eyes and our ears also eat. Srila Bhaktivinoda Thakur explains in his book Bhaktyaloka. All our senses have their own kind of food. Objects of senses are the food of the senses. shabda, sparsha, rupa, rasa, gandha, the shabda- sound, sparsha - touch, rupa- the form, gandha - the smell. So those are our senses. We are bhakti yogis. We are japa yogis. Japa is a yoga. Japa yogis have to work on pratyaharah. And that it may not necessarily be during chanting time only. There is a preparation for chanting. I have been saying this always, for tomorrow's chanting we have to prepare today. Whenever we are not chanting, we have to prepare for the next time for tomorrow,. Pratyaharah means minimising the consumption of the sense objects in quantity and quality. So this is pratyaharah. What to see what not to see, what to hear , what not to hear, how much to hear, what to speak and what not to speak. Krsna's devotees hear about Krsna.Like that all the senses could be employed in the service of the Lord. They are controlled when employed. So this is mind control, sense control. This has to be done. It's a part of pratyaharah. This of course is done with the help of the intelligence. Chanting is the activity of intelligent persons. krsna-varnam tvisakrsnam sangopangastra-parsadam yajñaih sankirtana-prayair yajanti hi su-medhasah Translation: In the Age of  Kali , intelligent persons perform congregational chanting to worship the incarnation of Godhead who constantly sings the name of Krsna. Although His complexion is not blackish, He is Krsna Himself. He is accompanied by His associates, servants, weapons and confidential companions. (CC Adi lila 3.52) If the chanter wishes to be a successful chanter of the holy name, he has to be intelligent. He has to discriminate right from wrong. This is right and this is wrong. This is the pratyaharah path. When the mind and senses are involved, intelligence has to keep an eye on the mind and senses. And intelligence has to give direction to the mind. Do this! Don't do this! Shut up! Intelligence should guide like that. As soon as we see a photo of Radha and Krsna, the intelligence tries to see the form which says, 'The Lord is standing before you. Here is the Lord of my heart.’ Intelligence has to do this. I have lot of discriminations, do - don't, quantity - quality is evaluated, ascertained. So these are all preparations. Yam, niyam, asan, pranayam, pratyahar dhyan, dharma, and samadhi. We are getting closer to samadhi, total absorption and meditation. After the 5th stage we are getting closer, till then it was all preparations. Final act of concentration, meditation is to retain, be more focused. By now the mind is free from contamination and is more under control, controlled by the divine intelligence. So it tries to retain Krsna, Krsna's form, Krsna's qualities and is focused on Them.

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