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जप चर्चा 18 जनवरी 2022 श्रीमान राधेश्याम प्रभु जी हरे कृष्णा सर्वप्रथम मैं परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज जी के श्री चरणों में सादर दंडवत प्रणाम अर्पित करता हूँ एवं सम्मिलित हुए सब श्रद्धालु भक्त वृंद के श्री चरणों में भी दंडवत प्रणाम अर्पित करता हूँ | हम सबलोग रोज हरे कृष्णा जप ध्यान पूर्वक करना चाहते हैं और परम सिद्धि कृष्ण प्रेम को प्राप्त करना चाहते हैं | मैं आज दो विषयों के बारे में संक्षिप्त रूप मे बताऊंगा | ऐसा बताया गया है कि Attention Attraction Attachment Absorption Affection यह पांच है | अगर हम अपने नाम जप में इन पाँच की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं तो हम सही दिशा में है और हम जल्द ही जल्द कृष्ण प्रेम को जगायेंगे | Attraction का मतलब है किसी भी विषय के ऊपर हमारा थोड़ा भी आकर्षण का होना | उस विषय में हमारा मन ध्यान देता है यानी Attention | अगर Attraction नहीं है तो उसके ऊपर ध्यान नहीं बैठता | उदाहरण के लिए अगर मैं बैठकर नाम जप कर रहा हूँ और कुछ दूसरे विषय के ऊपर आकर्षण Attraction हो रहा है तो मेरा Attention उधर जाता है उसे ही कहते हैं Distraction | Distraction यानी Alternative Attraction | इस प्रकार के Attraction मे हरि नाम के ऊपर मन का ध्यान हटकर दूसरे विषय के ऊपर जाता है | इस तरह हमारे ध्यान को Attract करने वाले दो चीज़ें होती हैं -- एक है आँख के विषय और दूसरा है कान के विषय | यह दो चीजें हमें दूसरे Attraction प्रदान करती हैं | आप देख सकते हैं अगर मैं नाम जप रहा हूँ और अगर Phone की Beep करके कुछ आवाज आती है तो तुरंत Attraction उधर जाता है | क्योंकि कान में आवाज सुनाई दी और हमारा Attraction उधर गया | और Alternative Attraction आ गया | हरिनाम के ऊपर से ध्यान हट कर दूसरे विषय पर चला गया | इसलिए थोड़ा बहुत यदि हरि नाम के ऊपर Attraction हो उसके बाद उसके ऊपर Attention आता है | और हरि नाम के ऊपर Attraction आने के लिए प्रथम चीज है कि हमारे मन को भी कृष्ण को चाहना चाहिए | अगर मैं मन से किसी विषय को चाहता हूँ तो उसके लिए Logic Reason आदि चीजों की जरूरत भी नहीं पड़ती | अगर मन से मैं किसी चीज को पसंद करता हूँ उदाहरण के लिए पकोड़ा गुलाब जामुन और भजिया है उनके बारे में सोचते हैं क्योकि वो हमें पसंद है अगर हम किसी विषय को पसंद करते हैं तो उसकी तरफ मन आसानी से जाता है | मन में ही उसकी तरफ आकर्षण Attraction है | तो अभी हम बद्ध अवस्था में कृष्ण की ओर उतने आकर्षण का अनुभव नहीं कर पाते हैं उसका कारण क्या है? जैसे एक लोहे के ऊपर यदि जंग लगा हो, मिट्टी पड़ी हो तो चुंबक को निकट लाने के बावजूद भी आकर्षण नहीं होता है क्योंकि उसके ऊपर एक आवरण है | और मिट्टी और जंग को निकालने के बाद वो ठक कर के चुंबक से चिपक जाएगा | उसी प्रकार मनन की शुद्धिकरण करने के लिए कृष्ण की सहायता चाहिए, कृष्ण की सहायता के द्वारा ही हमारा शुद्धिकरण होता है | इसलिए हमें हमारे आचार्य गणों ने बताया है उपदेशामृत श्लोक ७ स्यात्कृष्णनामचरितादिसिताप्यविद्या पित्तोपतप्सरसनस्य न रोचिका नु किन्त्वादरादनुदिनं खलु सैव जुष्टा स्वाद्वी क्रमाद्भवति तद्गदमूलहन्त्री ॥ ७ ॥ अनुवाद कृष्ण का पवित्र नाम , चरित्र , लीलाएं तथा कार्यकाल सभी मिश्री के समान आध्यात्मिक रूप से मधुर हैं । यद्यपि अविद्या रूपी पीलिया रोग से ग्रस्त रोगी की जीभ किसी भी मीठी वस्तु का स्वाद नहीं ले सकती , लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि इन मधुर नामों का नित्य सावधानी पूर्वक कीर्तन करने से उसकी जीभ में प्राकृतिक स्वाद जागृत हो उठता है और उसका रोग धीरे - धीरे समूल नष्ट हो जाता है । रूप गोस्वामी पाद बताते हैं कि यदि आकर्षण ना होने के बावजूद भी हम बार-बार हरि नाम का जप करेंगे, प्रयत्न करेंगे, प्रयत्नशील होंगे, तो उससे भगवान हमारे ऊपर अनुकंपा दिखाकर हमारे चित्त में जो भी मल पड़ा है, उसको शुद्ध करते हैं और शुद्ध होने के कारण आकर्षण धीरे-धीरे बढ़ जाता है | जैसे मेरा भी अनुभव है | कॉलेज के दिनों में मुझे जॉन्डिस हुआ था | उस समय गन्ने का रस बहुत कड़वा लगता था लेकिन पीते पीते पीते पीते धीरे-धीरे गन्ने का रस मे मिठास आ गयी | मिठास तो उसमें पहले से है ही लेकिन हमारा चित्त उसमें लगने के बाद मिठास का असली अनुभव हमें प्राप्त होता है | ऐसा रूप गोस्वामी हमें बताते हैं | उसी पथ में हम लोग अभी लगे है ताकि धीरे-धीरे आकर्षण बढ़े | दूसरी चीज हमारे आकर्षण को क्या बढ़ाती है? नाम जप तो हम रोज कर रहे हैं इसलिए धीरे-धीरे भगवान कृपा करके चित्त शुद्ध करेंगे, धीरे-धीरे आकर्षण बढ़ेगा | दूसरी चीज आकर्षण बढ़ाने के लिए चैतन्य चरितामृत में बतायी गयी है आदि लीला 4.15 - 4.16 प्रेम रस नियस करिते आस्वादन । राग - मार्ग भक्ति लोके करिते प्रचारण ॥ 15 ।। रसिक शेखर कृष्ण परम - करुण एइ दुइ हेतु हैते इच्छार उद्गम || 16 || अनुवाद अवतार लेने की भगवान् की इच्छा दो कारणों से उत्पन्न हुई थी वे भगवत्प्रेम रस के माधुर्य का आस्वादन करना चाह रहे थे और वे संसार में भक्ति का प्रसार रागानुगा ( स्वयंस्फूर्त ) अनुरक्ति के स्तर पर करना चाहते थे । इस तरह वे परम प्रफुल्लित ( रसिकशेखर ) एवं परम करुणामय नाम से विख्यात हैं । चैतन्य चरितामृतम में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण के पास दो खास चीजें हैं जो जीव के हृदय में आकर्षण को जगाते हैं | एक है रसिक शेखर कृष्ण अर्थात कृष्ण beautiful, playful, sportive, naughty, joyful, cheerful है, ऐसा बताया गया है कि भगवान कृष्ण बहुत खूबसूरत हैं, वे अपनी माता यशोदा के साथ, वृंदावन वासियों के साथ बहुत शरारते करते हैं | वे त्रिभंग ललित के रूप में खड़े रहते हैं, नाचते हैं, गाते हैं | इन चीजों को देखकर भक्तों के हृदय में एक तरह का विस्मय उत्पन्न होता है, उनके अंदर भगवान से मिलने की उत्सुकता आती है | क्योंकि साधारणतः परमात्मा शंख चक्र गदा पद्म लेकर खड़े रहते हैं वे Neutral है, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण neutral नहीं है | वे वृंदावन में भक्तों के साथ बहुत Actively आदान प्रदान करते हैं | उनकी लीला कथा आदि हमें श्रवण करने से हमारे मन में एक प्रकार की उत्सुकता होती है कि इस व्यक्ति के साथ मुझे प्यार करना चाहिए, ये व्यक्ति बहुत अच्छे हैं | यदि हम दसवां स्कंध 15 वा अध्याय पढ़ेंगे तो उसमे बताया गया है कि जब भगवान श्री कृष्ण बलराम जी के साथ गोचरण लीला में वृंदावन में प्रवेश करते हैं तो उस समय कोयल कुहू करके भगवान का स्वागत करती है, बहुत सुंदर मधुर मीठी आवाज में भगवान का स्वागत करती है, और मोर नाच नाच कर भगवान का स्वागत करते हैं, और हिरन बहुत ही प्रेम अवलोकन के साथ भगवान का स्वागत करता है, और पेड़ फल और फूल इत्यादि को अपने डालियों के द्वारा भगवान को अर्पित करते हैं, भगवान से कहते हैं कि मैं इतना भाग्यशाली नहीं हूँ जितना भ्रमर भाग्यशाली है क्योंकि भ्रमर आपके साथ वन में जा रहा हैं लेकिन मैं नहीं आ पाऊंगा, पेड़ आंखों से आंसू बहाते हुए ऐसा कहते हैं इस प्रकार फूल और फलों को अर्पित करते हैं, और बहुत तेजी से बहने वाली यमुना मंद गति से बहना चालू कर देती है हालांकि वो यमराज की बहन है उनके अंदर एक बहुत वेग और जोश भी है | फिर भी कृष्ण के संपर्क में आने वाले भक्त सब मृदु स्वभाव के हो जाते हैं, यही श्री कृष्ण का स्वभाव है | कृष्ण के श्री चरणों की धूल ही प्राप्त करके यमुना भी एकदम कोमल हो जाती है | और यमुना कमल लेकर श्री कृष्ण की ओर चरण कमलों में सेवा के रूप में फेंकती हैं | इस प्रकार हम पढ़ते हैं कि वृंदावन के सभी प्राणी कृष्ण की ओर आकर्षित होते हैं | ऐसा पढ़ते हैं कि जब गाय के बछड़े दूध पी रहे होते हैं लेकिन जब कृष्ण की मुरली की आवाज सुनते हैं तो उनका दूध पीना रुक जाता है | मुंह से एक स्वादिष्ट चीज दूध अंदर जा रही है और कान से भी एक स्वादिष्ट चीज कृष्ण की मुरली की आवाज अंदर जा रही है | बछड़ा सोच रहा है दोनों में से किसे पहले पीउ | तो वो दूध को रोक देता है | क्योंकि उसे मुरली की आवाज का पान दूध से भी ज्यादा मीठा लगता है | ऐसी है कृष्ण की मुरली की आवाज | उसे सभी सुनना चाहते हैं | उस बछड़े की मां जो है, वह गाय घास खा रही है परंतु कृष्ण की मुरली की आवाज को सुनकर उसके कान खड़े हो जाते हैं वह भी मुरली की आवाज सुनना चाहती है घास उसके मुंह में ही रह जाती है अंदर नहीं जाती | उसी अवस्था में वह मुरली की आवाज सुनती हैं | पेड़ों में पंछी बैठकर आंख बंद करके ध्यान मुद्रा में बैठकर मुरली की आवाज सुन रहे हैं मानो वे पूर्व जन्म में योगी थे | आसमान में उड़ने वाले देवी देवता लोग जो जा रहे होते हैं, वह मुरली की आवाज सुनकर नीचे उतर आते हैं, वे कहते हैं चलो अभी वृंदावन में कुछ दिन रहते हैं, कृष्ण की मुरली की आवाज सुनते हैं, वे भी नीचे उतर आते हैं | ब्रह्मा जी अपने सत्यलोक में पूजा करने के लिए जा रहे होते हैं, मुरली की आवाज सुनकर पूजा नहीं कर पाते हैं, पूजा छोड़कर वृंदावन आ जाते हैं | योगी लोग जंगल में गुफा के अंदर बैठकर जो ध्यान करते हैं वे ओम का उच्चारण नहीं कर पाते हैं उनका मन विचलित हो जाता है वे ओम का उच्चारण बंद करके मुरली की आवाज सुनने के लिए आ जाते हैं | इस तरह यह कृष्ण का आकर्षण है, कृष्ण की और आकर्षण के बारे में हम पढ़ेंगे तो हमारे अंदर भी आकर्षण उत्सुकता बढ़ जाती है | हमें भी लगता है कि यह सब कितने भाग्यशाली हैं | गोपियां कह रही है कि देवता लोगों को भी कृष्ण की मुरली की आवाज सुनने के लिए अनुमति है, जानवर भी उनकी लीला में भाग ले रहे हैं, हम एकमात्र अभागी गोपियां हैं, हमें कृष्ण के साथ गोचरण लीला में जुड़ने के लिए अनुमति नहीं है, गोपियां अपने आप को अभागन कह रही हैं | और गोपिया कह रही है कि इस मुरली ने क्या भाग्य पाया है कि कृष्ण कभी इसे कमर में रखते है, कभी इसे बजाते है, हमेशा अपने हाथ में रखते है, सोते है तो भी इसे निकट रखते है | तो मुरली गोपियों से कहती है कि हे गोपियों मुझे देखकर आप ईर्ष्यालु मत हो जाइए, मैं कारण बताती हूँ कि मुझे कृष्ण इतना क्यों पसंद करते हैं | देखो मेरे पास छुपा कर रखने के लिए कुछ भी नहीं है | जैसे वीणा और सितार है यह वाद्य यंत्र लंबे हैं और इसके एक सिरे पर काफी बड़ी जगह है इसके अंदर क्या है हमें नहीं पता, हो सकता है कुछ छुपा कर रखा हो अंदर | किन्तु मेरे पास छुपा कर रखने के लिए कुछ भी नहीं है | मुरली में अंदर से बाहर कोई भी देख सकता है | मुरली कहती है कि मैं सरल हूँ, निष्कपट हूँ, मेरे पास छुपा के रखने के लिए कुछ नहीं है, यही कारण है कि भगवान श्री कृष्ण मुझे पसंद करते हैं | इतना ही नहीं देखो बांस को लेकर उसमें छिद्र करके मुझे बनाया जाता है, उन छिद्रो को बनाते वक्त मैंने चिल्लाया नहीं रोया नहीं | इसी प्रकार जो भक्त भक्ति मार्ग में तकलीफों को झेलने के लिए तैयार है उसके लिए रस इंतजार कर रहा है | भक्तों के बीच में रहते समय कुछ लोगों में झगड़ा होता है, कुछ लोग भाग जाते हैं, सहन नहीं कर पाते हैं तो उनको यह रस नहीं मिलता है | उन्हें माया का रस मिलता है | माया के रस का अर्थ लात है | वे लोग लात ही खाते हैं | लेकिन जो लोग भगवान के भक्तों के झुंड में जुड़ कर रहते हैं, भगवान के श्री चरणों में रहते हैं, उन लोगों को आध्यात्मिक जगत प्राप्त होता है| मुरली कहती है कि छिद्रो के बाद भी में भगवान के साथ ही रही | कृष्ण वृंदावन में एक Ecofriendly environment में रहते हैं, पेड़ पौधों के बीच में रहते है, जानवर के बीच में रहते है, जंगल में रहते है, वृंदावन एक वन ही है | उसमे मुरली जंगल में बांस से बनती है भगवान की सरलता में भगवान की सेवा में बांस भी लग गया है बांस कहता है मैं बड़ा भाग्यशाली हूँ इसलिए भगवान के साथ रह पाता हूँ | इस तरह की लीलाओं को यदि हम पढ़ेंगे तो हमारे मन में कृष्ण के प्रति आकर्षण जरूर बढ़ेगा | इसलिए प्रभुपाद ने बोला कि मैंने आपको कृष्ण बुक दी है Krishna book is a solace for the devotees who are feeling separation from Krishna. जो लोग कृष्ण से विरह का अनुभव कर रहे हैं उन को तृप्त करने के लिए यह कृष्ण पुस्तक मैंने दी है ऐसा प्रभुपाद कहते है | ताकि हमारे में कृष्ण की अनुभूति बढ़े | कृष्ण त्रिभंग ललित रूप में क्यों खड़े हैं? अगर हम ऑफिस में जाते हैं तो सामान्य रूप से खड़े रहते हैं जैसे विष्णु शंख चक्र गदा पद्म लेकर खड़े रहते हैं जैसे प्रधानमंत्री पार्लियामेंट में रहते हैं उसी प्रकार भगवान विष्णु हैं | लेकिन जब वही प्रधानमंत्री घर में होते हैं तो अपनी मां के चरणों में झुकते हैं, या फिर आराम से बैठ कर बात करते हैं उसी प्रकार भगवान भी आराम से मुरली बजाते हैं | साथ ही साथ भगवान अपने पांव को जब ऐसे रखते हैं विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने कहा है कि विष्णु और रामचंद्र जी के पांव जमीन पर रहते हैं भगवान कृष्ण के पाव त्रिभंग ललित रूप में हमें दिखाई देते हैं भगवान के पैरों में जो 16 दिव्य चिन्ह हैं भगवान ने उन चिन्हों को activate कर दिया है | भगवान विष्णु और रामचंद्र के चरणों में हमें बहुत झुकना पड़ेगा उनके पास जाना पड़ेगा तभी हमें उनका लाभ मिलेगा परंतु भगवान कृष्ण त्रिभंग ललित रूप में अपने चरणों के चिन्हो के दर्शन हमें देते हैं उनके सारे चिन्ह जैसे वज्र कमल छतरी मछली दिव्य है | ब्रह्मा जी पद्म पुराण में कहते हैं कि उनके कुछ कुछ अवतारों में मैंने चार आठ बारह चिन्ह देखे हैं लेकिन कहीं भी मैंने कृष्ण के श्री चरणों को छोड़कर 16 चिन्ह नहीं देखे हैं सिर्फ कृष्ण के ही चरणों में 16 चिन्ह है | कृष्ण के श्री चरणों में 16 चिन्ह आसानी से प्राप्त होने के कारण सारे भक्त इन्ही श्री चरणों की ओर आकर्षित होते हैं | 10.31.7 तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् । फणिफणार्पितं ते पदाम्बुजं कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥ ७ ॥ आपके चरणकमल आपके शरणागत समस्त देहधारियों के विगत पापों को नष्ट करने वाले हैं । वे ही चरण गाँवों के पीछे पीछे चरागाहों में चलते हैं और लक्ष्मीजी के दिव्य धाम हैं । चूँकि आपने एक बार उन चरणों को महासर्प कालिय के फनों पर रखा था अतः अब आप उन्हें हमारे स्तनों पर रखें और हमारे हृदय की कामवासना को छिन्नभिन्न कर दें । गोपियां बताती है कि आपके श्री चरणों में शरणागत भक्तों के पूर्व जन्म का पहाड़ जैसे पाप कर्म का जो बौझ है उसे आप चुर चुर कर देते हैं और हम देखते हैं कि वही श्री चरण तृण को चरने वाली गायों के पांव के पीछे पीछे चलते हैं जब आप गोचारण लीला में जाते हो तब हम यह देख पाते हैं| और कालिया नाम के जहरीले सर्प के हजारों फनो के ऊपर यही चरण नाचते हैं और उस चरणों की धूलि को प्राप्त करके कालिया का चित्त शुद्ध हो जाता है उसका विष मिट जाता है और कालिया भी अपनी धर्म पत्नियों की तरह भगवान का भक्त बन जाता है | इस तरह भगवान के श्री चरणों की महत्ता बताई जाती है | अगर हम लोग कृष्ण की खूबसूरती, कृष्ण की शरारती, कृष्ण के श्री चरणों का महत्व, कृष्ण के श्री चरणों की धूल का महत्व इत्यादि और वृंदावन के माहौल के बारे में नियमित रूप से सुनते हैं तो धीरे-धीरे हमारा भगवान कृष्ण की और आकर्षण बढ़ता है | दो चीज हमें भगवान कृष्ण की ओर खींचती है | एक रसिक शेखर कृष्ण जिसके बारे में अभी तक मैंने वर्णन किया | इसी बात ने शुकदेव गोस्वामी को भी आकर्षित किया था | जब शुकदेव गोस्वामी जन्म लेते ही जंगल में चले गए थे, वे ज्ञानी पुरुष थे | कुछ स्त्रिया तालाब में नहा रही थी, वे कपड़े नहीं पहनी हुई थी फिर भी शुकदेव गोस्वामी तो उनके प्रति लेश मात्र भी आकर्षण नहीं हुआ क्योंकि इसका कारण था कि उनके ज्ञान चक्षु जागृत हो गए थे, वे सिर्फ आत्मा को ही देखते थे, हर दिशा में आत्म तत्व को ही देखते थे | कभी उन्होंने स्त्री पुरुष इत्यादि में फर्क नहीं देखा आत्मा और शरीर के बीच में फर्क देखते थे वे इस प्रकार के महात्मा पुरुष थे जो जन्म लेते ही जंगल की ओर चल पड़े | 1.2.2 सूत उवाच यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव । पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥२ ॥ श्रील सूत गोस्वामी ने कहा : मैं उन महामुनि ( शुकदेव गोस्वामी ) को सादर नमस्कार करता हूँ जो सबों के हृदय में प्रवेश करने में समर्थ हैं । जब वे यज्ञोपवीत संस्कार अथवा उच्च जातियों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठानों को सम्पन्न किये बिना संन्यास ग्रहण करने चले गये तो उनके पिता व्यासदेव उनके वियोग के भय से आतुर होकर चिल्ला उठे , " हे पुत्र , " उस समय जो वैसी ही वियोग की भावना में लीन थे , केवल ऐसे वृक्षों ने शोकग्रस्त पिता के शब्दों का प्रतिध्वनि के रूप में उत्तर दिया । इस श्लोक में सूत गोस्वामी अपने गुरु शुकदेव गोस्वामी का गुणगान कर रहे हैं | उन्होंने यज्ञोपवीत धारण नहीं किया है, उनका कोई संस्कार वगैरह भी नहीं हुआ है, जन्म लेते ही वे ज्ञानी पुरुष जंगल में पहुंच गए लेकिन जंगल में उन्होंने अद्भुत गीत सुना | वो गीत कृष्ण के बारे में था और वह गीत बहुत आकर्षक था | उस गीत को सुनने के कारण इनके अंदर आकर्षण जग गया था | वह क्या गीत था? 10.21.5 बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकार बिभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् । रन्ध्रान्वेणोरधरसुधयापूरयन्गोपवृन्दैर् वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद्गीतकीर्तिः ॥५ ॥ अपने सिर पर मोरपंख का आभूषण , अपने कानों में नीले कर्णिकार फूल , स्वर्ण जैसा चमचमाता पीला वस्त्र तथा वैजयन्ती माला धारण किये भगवान् कृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ नर्तक का दिव्य रूप प्रदर्शित करते हुए वृन्दावन के वन में प्रवेश करके अपने पदचिन्हों से इसे रमणीक बना दिया । उन्होंने अपने होंठों के अमृत से अपनी वंशी के छेदों को भर दिया और ग्वालबालों ने उनके यश का गान किया । भागवत के दशम स्कंध में यह गीत हैं | शुकदेव गोस्वामी हमें गोपियों के अंदर के भाव को बता रहे हैं | गोपियां कह रही है कि कृष्ण कितने खूबसूरत हैं, वे मोर पंख पहने हैं, वैजयंती माला पहने हैं, बहुत ही सुंदर चमकने वाले पीतांबर पहने हैं, उनके इर्द-गिर्द गाय बछड़े और गोप बालक हैं, हाथ में एक मुरली लेकर मुरली बजाते हुए मुरली के अंदर नाद को भर देते हैं, मुरली की आवाज को सुनकर भगवान के जंगल में प्रवेश करने के पहले वृंदावन के सभी लोग एकत्रित हो जाते हैं | गोपियां वर्णन करती हैं कि भगवान के निकट खड़े गोप बालक सब भगवान का गुणगान कर रहे है, ऐसे गीतों के द्वारा गीत कीर्ति गा रहे है, इस तरह गोपियों के द्वारा जो भगवान का वर्णन है वह जब शुकदेव गोस्वामी ने सुना तो वे एकदम आश्चर्यचकित हो गए | यहां एक चर्चा आती है कि शुकदेव गोस्वामी जंगल छोड़कर घर वापस क्यों लौट आए क्या उन्हे जंगल में शेर बाघ इत्यादि जानवरों से डर था? नहीं वह ज्ञानी पुरुष थे, ज्ञानी पुरुष को किसी का डर नहीं लगता | ज्ञानी लोग डरते नहीं है वे अभय होते हैं | क्या जंगल में उन्हें विवाह करने की इच्छा हुई? बिल्कुल नहीं उन्हें विवाह की इच्छा क्या किसी प्रकार की भी इच्छा नहीं हुई उनके अंदर दुनिया की कोई भी इच्छा नहीं थी | वे सभी जीवो को जीव के स्तर पर देखते थे | तो क्या जंगल में पढ़ाई लिखाई का अभाव था? यह बात भी नहीं थी शुकदेव गोस्वामी को वेदांत के ज्ञान का भी साक्षात्कार हो चुका था | वे मुक्त पुरुष थे मुक्त अवस्था मे थे इसलिए उन्हें ओर कुछ पढ़ने की आवश्यकता नहीं थी | तो फिर जंगल छोड़ कर घर वापस आने का क्या कारण था? क्या माता पिता के प्रति आसक्ति हो गई? क्या उन्हें माता-पिता की याद आ गई? क्या वे रोते हुए वापस आ गए? बिल्कुल नहीं आसक्तियों से पहले ही वे छूट चुके थे, वे इन सब आसक्तियों से ऊपर थे | एकमात्र कारण बताया गया है कि क्यों वह जंगल छोड़कर घर वापस लौट आए | 1.7.10 सूत उवाच आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे । कुर्वन्त्यहैतुकों भक्तिमित्थम्भूतगुणो हरिः ॥ १० ॥ जो आत्मा में आनन्द लेते हैं , ऐसे विभिन्न प्रकार के आत्माराम और विशेष रूप से जो आत्म - साक्षात्कार के पथ पर स्थापित हो चुके हैं , ऐसे आत्माराम यद्यपि समस्त प्रकार के भौतिक बन्धनों से मुक्त हो चुके हैं , फिर भी भगवान् की अनन्य भक्तिमय सेवा में संलग्न होने के इच्छुक रहते हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान् में दिव्य गुण हैं , अतएव वे मुक्तात्माओं सहित प्रत्येक व्यक्ति को आकृष्ट कर सकते हैं । एक ही कारण है कि भगवान कृष्ण सभी जीवो को अपनी और आकर्षित करते हैं, और खास करके जो आत्माराम पुरुष होते हैं जो लोग इस भौतिक दुनिया के भवसागर से ऊपर उठ गए हैं ब्रह्म भूत स्तर पर आ गए हैं | हम लोगों को जीव भूत कहा गया है क्योंकि हम पंचमहाभूत के शरीर के अंदर स्थित है और तीन गुणों के प्रभाव में आकर विषय भोगों को भोगने के कारण इस दुनिया में भटक रहे हैं लेकिन जो लोग गुनातीत हो गए हैं उनके अंदर किसी भी प्रकार का काम क्रोध मोह लोभ मद मत्सर का प्रभाव नहीं है वे लोग ब्रह्म भूत स्तर पर आ गए हैं | ब्रह्म भूत स्तर के बाद अंदर भगवान के प्रति आकर्षण जगता है | जैसे इस प्रकार के ज्ञानी पुरुषों के बारे में भगवान कृष्ण बताते हैं 2.71 “विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्र्चरति निःस्पृहः | निर्ममो निरहङकारः स शान्तिमधिगच्छति || ७१ ||” अनुवाद जिस व्यक्ति ने इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाओं का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाओं से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक को शान्ति प्राप्त कर सकता है | ज्ञानी पुरुष सभी इच्छाओं को त्याग कर इस दुनिया में निर इच्छा होकर चलता है वह कभी भी किसी भी विषय के ऊपर स्वामित्व नहीं जमाता है वह देह और देह से जुड़ी हुई पदार्थों में अहंकार नहीं रखता है | वह इन सब चीजों से ऊपर उठ जाता है वह शांत हो जाता है उसका मन एक शाम समुंद्र के समान हो जाता है | 2.70 ” आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् | तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी || ७० ||” अनुवाद जो पुरुष समुद्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओं के निरन्तर प्रवाह से विचलित नहीं होता और जो सदैव स्थिर रहता है, वही शान्ति प्राप्त कर सकता है, वह नहीं, जो ऐसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्ठा करता हो | जैसे समुद्र के अंदर नदियां आकर मिल जाती हैं लेकिन समुद्र विचलित नहीं होता हमेशा शांत अवस्था में रहता है | ज्ञानी पुरुष भी वैसे ही है शुकदेव गोस्वामी ऐसे ही थे लेकिन ऐसे समुद्र मे भी पूर्णिमा के दिन बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं | जिस प्रकार शुद्ध भक्तों का हृदय शांत है किंतु राधा वृंदावन चंद्र के पूर्णिमा जैसे सुंदर चेहरे को देखकर भक्तों के हृदय में प्रेम आवेश में लहरें उठती है, बहुत बड़ी बड़ी तेजी से लहरें उठती हैं | शुकदेव गोस्वामी के साथ भी यही हुआ, वे ज्ञानी पुरुष थे, वे विचलित नहीं होते थे, कोई स्त्री पुरुष का आकर्षण नहीं था किंतु भगवान के चेहरे का वर्णन सुनकर उनके अंदर भी भगवान के प्रति आकर्षण जग गया तो अभी तक मैंने आकर्षण के बारे में बताया | Attraction से Attention आता है | एक लकड़हारे ने यह गीत गाया था रसिक शेखर कृष्ण | तो दूसरे लकड़हारे ने गाया 3.2.23 अहो बकी यं स्तनकालकूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी । लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालुं शरणं व्रजेम ॥ २३ ॥ ओह , भला मैं उनसे अधिक दयालु किसी और की शरण कैसे ग्रहण करूँगा जिन्होंने उस असुरिनी ( पूतना ) को माता का पद प्रदान किया , यद्यपि वह कृतघ्न थी और उसने अपने स्तन से पिलाए जाने के लिए घातक विष तैयार किया था ? दूसरे विषय के बारे में आज मैं ज्यादा बोल नहीं पाया परंतु दूसरा विषय है जो की भगवान के प्रति आकर्षित करता है वह है भगवान की अनुकंपा, जीवो के हृदय में भगवान की अनुकंपा | भगवान का हृदय करुणा से भरा है | भगवान का ह्रदय अपने भक्तों को देखकर जल्दी द्रवित हो जाता है पिघल जाता है | इसको देखकर अनेक भक्त भगवान के प्रति आकर्षित होते हैं | इसमें पूतना का उदाहरण आता है पूतना जो राक्षसी थी और घोर चुड़ैल थी, स्तन मे विष लगा कर आई थी भगवान को मारने के लिए | ऐसी पूतना का भी उद्धार करके भगवान ने उसे धात्री का स्थान दिया | यह सुनकर शुकदेव गोस्वामी बेहोश होकर गिर पड़े इतने अधिक कृपालु परम दयालु कौन हो सकता है दुनिया में? तो प्रिय भक्तों आप अपने जीवन में देखेंगे कि दो चीज से आप कृष्ण के प्रति आकर्षित होंगे | पहली चीज के बारे में आज मैंने विस्तार पूर्वक बताया | और दूसरा कारण है कृष्ण की अनुकंपा को देखकर, कृष्ण की दया से हम आकर्षित होते हैं | कृष्ण की दया इस दुनिया में भी प्रकट होती है | सूर्य और चंद्र भगवान की दो आंखें हैं, दाहिने आँख से बारिश फल फूल मसाले सब कुछ भगवान तैयार करते हैं, बाये आँख से उसके अंदर 6 तरह के रस को भर देते हैं | Sweet, Sour, Bitter etc. यह दो आंखें भगवान की हमारी दुनिया की सुख सुविधाओं का कारण बनती है यह देख कर हमारे हृदय में भगवान के प्रति कृतज्ञता जग जाती है To see the compassionate nature of Krishna's creation यह दो बातें बहुत ही आवश्यक है भगवान की सृष्टि को देखकर भगवान के अनुकंपा को देखना और कृष्ण के अंदर पूतना के प्रति जो उन्होंने अनुकंपा दिखायी उसे देखना | यह दो चीज देखकर भगवान के अनुकंपा के प्रति हम बहुत आकर्षित होते हैं | Attraction से Attention आता है, Attention से Attachment आ जाता है, Attachment से Absorption आ जाता है, Absorption नाम जप में सबसे महत्वपूर्ण है, Absorption से पागल हो जाता है भक्त जिसे Affection बोलते हैं | ये पांच A बताए गए हैं हम जो शास्त्र पढ़ते हैं उसका मूलभूत उद्देश्य है कि हमारा हृदय द्रवित हो, ताकि हम नाम जप मे बाकी चीजों को भूल जाए, कृष्ण के श्री चरण ही हमारे लिए सब कुछ हो जाएंगे, नाम पुकारते समय मैं कृष्ण को पुकार रहा हूँ, राधा रानी को पुकार रहा हूँ, उनका आश्रय मांग रहा हूँ, उनसे प्रार्थना कर रहा हूँ, आप मुझे उठाइए मुझे उठा ले मुझे अपना बना लीजिए, मुझे अपने पास रखिए, कहीं दुनियादारी की चीजों में हम फस ना जाए | इस तरह की प्रार्थनात्मक भावना जब जगती हो हमारे ह्रदय में तब नाम जप में रुचि भी मिलेगी | जैसे फोम को पानी में डालने से वह पानी को चूस लेता है, उसी तरह मेरा हृदय भी पूरा कृष्ण के स्मरण में डूब जाएगा |

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