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जप चर्चा, धर्मराज प्रभु जी द्वारा, 17 जनवरी 2022 हरे कृष्णा *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।* *चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम :।।* नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले श्रीमते लोकनाथ -स्वामिन् इति नामिने । नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे । जय श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥ सभी भक्तों के चरणों में दंडवत प्रणाम और गुरु महाराज जी के चरणों में दंडवत प्रणाम।आज मुझे इस जप चर्चा को करने की सेवा गुरु महाराज की ओर से पदमाली प्रभु जी द्वारा दी गई हैं, तो मैं उनका भी धन्यवाद करना चाहूंगा कपिल भगवान और माता देवहूति के बीच में जो संवाद हुआ हैं, वह बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और हम भक्तों के लिए उसमें बहुत कुछ हैं। हम भक्तों को उसमें बहुत सी शिक्षाएं प्राप्त होती हैं। जब माता देवहूति ने अपने पुत्र कपिल भगवान से पूछा कि हे पुत्र,मैं इस भौतिक जगत से बहुत आसक्त हूं या इस भौतिक जगत में, अपने घर परिवार में ही मेरी बहुत आसक्ति हैं। मैं इस भौतिक जगत का ही चिंतन करती रहती हूं। मेरी घर परिवार में,इस संसार में आसक्ति हैं। मैं इस आसक्ति से छूटना चाहती हूं।तो कपिल भगवान कहते हैं कि हे मां! आपको अगर इस आसक्ति से छूटना हैं,तो आपको एक अलग आसक्ति से आसक्त होना होगा। तो देवहूति माता कहती हैं कि, हे पुत्र! तुम कैसी बातें कर रहे हो? मैं तो पहले ही इन आसक्तियों से छूटना चाहती हूं और तुम कह रहे हो कि एक और आसक्ति से आसक्त होना होगा। तो कपिल भगवान कहते हैं कि आपने बिल्कुल सही सुना। अगर आपको इस संसार की भौतिक आसक्ति से अनासक्त होना हैं, तो आपको ऐसे साधुओं से आसक्त होना होगा जो बिल्कुल अनासक्त हैं, उनमें आसक्ति होने से इस भौतिक जगत की आसक्ति से पूर्ण रूप से छोटा जा सकता हैं। तो फिर देवहूति माता पूछती हैं कि फिर साधु ऐसे कौन है? ऐसे साधुओं के क्या लक्षण हैं? तब कपिल भगवान कहते हैं- 3.25.21 तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम् । अजातशत्रवः शान्ताः साधवः साधुभूषणाः ॥ २१ ॥ साधु के लक्षण हैं कि वह सहनशील, दयालु तथा समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता, वह शान्त रहता है, वह शास्त्रों का पालन करता है और उसके सारे गुण अलौकिक होते हैं। भगवान कहते हैं कि ऐसे तो साधुओं के बहुत सारे लक्षण हैं, फिर भी कुछ लक्षणों को भगवान बता रहे हैं। भगवान कहते हैं कि वह बहुत ही सहनशील हैं। उनके हृदय में अन्य जीवो के प्रति करुणा भरी हुई हैं। जो अन्य जीवो को अपना मित्र मानते हैं। उनके शत्रुओं ने कभी जन्म ही नहीं लिया हैं। जो सदैव शांत रहते हैं और जो शास्त्रों में बताए गए विधि-विधानो के अनुसार आचरण करते हैं और यही उनके आभूषण हैं।साधुओं को अलग से कुछ गहने पहनने की आवश्यकता नहीं हैं। यही उनके आभूषण हैं। अगर हम सहनशीलता के गुण की बात करते हैं तो हमें एक तो लगता हैं कि कोई हमें कुछ बोल रहा हैं और बदले में हम कुछ नहीं बोल रहे हैं,तो वह भी सहनशीलता हैं। लेकिन जब हम देखते हैं कि हमारे पीछे से कोई निंदा कर रहा हैं, तो हम भी फिर बुरा मान कर तलवार निकाल लेते हैं।हम भी गुस्सा करने लगते हैं। लेकिन यहां ऐसे लोगों की बात नहीं हो रही हैं। साधु तो ऐसे होते हैं, कि अगर कोई उनकी निंदा भी कर रहा हैं, तब भी बुरा नहीं मानते हैं। तब भी गुस्सा नहीं होते हैं।वह हर समय सहनशील रहते हैं या फिर ऐसा भी होता है कि उन्हें जब पता चलता हैं, कोई हमारी निंदा कर रहा हैं, तो वह बल्कि सामने वाले के अच्छे गुणों पर ही जोर देते हैं। यह साधु का लक्षण हैं। जैसे उपदेशामृत के पांचवें श्लोक में श्रील रूप गोस्वामी बताते हैं Noi 5 श्लोक ५ कृष्णोति यस्य गिरि तं मनसाद्रियेत दीक्षास्ति चेत्प्रणतिभिश्च भजन्तमीशम् । शुश्रूषया भजनविज्ञमनन्यमन्य निन्दादिशून्यहृदमीप्सितसङ्कलब्ध्या ।। ५ ।। अनुवाद मनुष्य को चाहिए कि जो भक्त भगवान कृष्ण के नाम का जप करता है , उसका मन से द करे ; उसे चाहिए कि वह उस भक्त को सादर नमस्कार करे , जिसने आध्यात्मिक दीक्षा ग्रहण कर ली है और जो अर्चाविग्रह के पूजन में लगा हुआ है एवं उसे चाहिए कि वह उस शुद्ध भक्त की संगति करे और श्रद्धा पूर्वक उसकी सेवा करे , जो अनन्य भक्ति में आगे बढ़ा हुआ है और जिसका हृदय दूसरों की आलोचना ( निंदा ) करने की प्रवृत्ति से सर्वथा विमुख है । रूप गोस्वामी भक्तों के तीन अलग-अलग लक्षण बताते हैं, जिसके जिव्हा पर भगवान कृष्ण का नाम हैं। उनको हमें मन से प्रणाम करना चाहिए और जिसने दीक्षा प्राप्त की हैं, उसको प्रणाम करना हैं और विशेषकर उसमें यह बताते हैं कि जो भगवान की अनन्य भक्ति में लगा हैं और निंदा से शुन्य हैं, उनको प्रणाम तो करना चाहिए,परंतु वरन उनकी सेवा भी करनी चाहिए।उनकी सेवा भी करनी चाहिए और उनका संग प्राप्त करना चाहिए।यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि ऐसे साधु तो बहुत हैं। जैसे मैं एक घटना बताता हूं। एक बार मैं ट्रेन में सफर कर रहा था। मेरे पास वेटिंग टिकट था। मेरे पास कंफर्म टिकट तो नहीं था, तो मैंने टीटी से निवेदन किया कि क्या मुझे कंफर्म टिकट मिल सकता हैं, क्योंकि रात भर सफर करना हैं।अगर मुझे कंफर्म टिकट नहीं मिलेगा तो परेशानी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि ठीक हैं, मैं टिकट तो दे दूंगा लेकिन आपको मेरे प्रश्न का उत्तर देना होगा। मैं भी सोच रहा था पता नहीं क्या प्रश्न होगा। उन्होंने पूछा कि क्या साधु लोग कभी युद्ध करते हैं या लड़ते हैं?तो मैंने कहा कि नहीं साधू तो वह है जो सहनशील हैं। वास्तविक साधु तो वह हैं, जो सहनशील हैं। जो तलवार निकाले वह कैसा साधु हो सकता हैं। तो उन्होंने कहा कि ठीक हैं। मैं आपको कंफर्म टिकट दे देता हूं। तो उन्होंने दे दिया लेकिन फिर मैं सोच रहा था कि मैं अपने गुरु में लगातार इन गुणों को देखता रहता हूं कि कितने लोग कितनी चीजें बोलते हैं लेकिन मैंने अपने गुरु महाराज को कभी भी किसी की निंदा करते हुए नहीं देखा हैं, उल्टा गुरु महाराज उनका गुणगान ही करते रहते हैं और ऐसे साधुओं का जब हम संग करते हैं,उनकी सेवा करते हैं, उनके बारे में स्मरण करते हैं तो हम भक्ति में लाभान्वित ही होते हैं। 20 साल पहले की बात हैं, जब मैं अरावड़े में था तब गुरु महाराज की मां भी इस भौतिक धरातल पर वहां पर मौजूद थी।उनका अंतिम समय था। तो गुरु महाराज जी वहां पर आकर अपनी मां से मिले और फिर पंढरपुर और सोलापुर में थे गुरु महाराज और कहा कि मैं पास में ही हूं।कुछ हो तो मुझे बुला लेना और फिर रामनवमी का उत्सव था, तो गुरु महाराज पहले पंढरपुर में आए थे, फिर सोलापुर में आए और फिर तब क्या हुआ कि रामनवमी भी हो गई,दशमी भी हो गई और एकादशी भी हो गई और एकादशी के दिन गुरु महाराज की माता ने कहा कि मैं अन्न,जल कुछ नहीं लूंगी। मैं निर्जल व्रत करूंगी।उनके साथ जो भी सेवा कर रहे थे, उनको उन्होंने यह कहा और एकादशी के दूसरे दिन हीं गुरु महाराज की मां उन्हें इतना स्मरण कर रही थी कि महाराज कहां हैं, हर समय महाराज महाराज, महाराज को बुला दो। तो मैं वहां उनके साथ,पास ही था तो मैं देख रहा था कि गुरु महाराज की मां हर समय महाराज का स्मरण कर रही हैं और महाराज का स्मरण करते करते उनकी माता ने अपनी देह को छोड़ दिया। तब गुरु महाराज ने मुझे फोन किया कि मां मैं तो चली गई,अब क्या करना हैं।आप आइए। तो इससे हमें देखने को मिलता हैं कि शुद्ध भक्तों का स्मरण करने मात्र से ही हमारे सारे भव बंधन टूट जाते हैं। एक बार की बात हैं, जब श्रील प्रभुपाद इस धरातल पर थे तो उनके शिष्या ने श्रील प्रभुपाद को एक पत्र लिखा था, तब श्रील प्रभुपाद भारत में थे और इनकी शिष्या विदेश में थी।तब उन्होंने प्रभुपाद को पत्र लिखा कि श्रील प्रभुपाद आप भारत में हैं और इतने समय से यहां पर आए नहीं हैं और हमें आपका विरह सता रहा हैं तब प्रभुपाद जी ने एक बहुत अच्छा उत्तर दिया कि यह बहुत अच्छी बात हैं कि एक शिष्य को अपने गुरु के विरह का अनुभव होना ही चाहिए। जब तक हमें अपने गुरु के विरह का अनुभव नहीं होता तब तक हम भगवान के विरह का अनुभव कैसे कर सकते हैं?तो मैं ऐसा सोच रहा था कि हमें प्रतिदिन जप चर्चा में गुरु महाराज का प्रातकाल: में दर्शन होता ही हैं। तो हम बद्ध जीव हैं। कभी-कभी हम हल्के में ले लेते हैं कि हमें तो गुरु महाराज का प्रतिदिन दर्शन होता ही हैं, कौन सी बड़ी बात हैं। इसे बहुत सस्ते में ले लेते हैं। लेकिन भगवान ने अब कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी हैं कि अब गुरु महाराज की रिकॉर्डिंग तो देख रहे हैं लेकिन प्रतिदिन दर्शन नहीं हो पा रहा हैं या फिर हमारे ऊपर जो कृपा दृष्टि डालते थे,जुम पर ही सही हमें देखते थे,वह नहीं हो पा रहा हैं। यह अलग ही अनुभव हैं। इसका अनुभव कुछ दिनों से नहीं हो रहा हैं। तो अगर भक्तों के मन में विरह का अनुभव या ऐसा भाव उत्पन्न होता हैं, तो यह बहुत अच्छी बात हैं, कि कब गुरु महाराज के दर्शन होंगे क्योंकि गुरु महाराज का विरह आएगा तभी हम अनुभव कर सकते हैं कि भगवान से विरह का क्या अनुभव होता हैं। इसलिए प्रभुपाद जी ने कहा कि यह बहुत अच्छी बात हैं। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि मैं तुम्हारा आध्यात्मिक पिता हूं और कृष्ण तुम्हारे आध्यात्मिक पति हैं।इसलिए दोनों का विरह होना बहुत जरूरी हैं। इसलिए श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी अपने मनह: शिक्षा में लिखते हैं कि हमारा गुरु के साथ एक विशेष संबंध स्थापित होना चाहिए ,जिससे हमें हर समय महसूस होना चाहिए कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वह गुरु की कृपा से कर रहा हूं।जिस प्रकार से प्रभुपाद ने यह स्थापित किया, यह हमें बताया कि क्योंकि मैं अपने गुरु महाराज जी की आज्ञा का पालन कर रहा हूं,इसलिए मुझे कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि वह मेरे साथ नहीं हैं।मुझे हमेशा महसूस होता हैं कि वह मेरे साथ हैं। जबकि उनके गुरु महाराज श्रील प्रभुपाद से पहले ही भगवद्धाम जा चुके थे। फिर भी प्रभुपाद जी कहते हैं कि मुझे ऐसा कभी भी अनुभव नहीं हुआ कि मेरे गुरु महाराज मुझसे दूर हैं या मेरे साथ नहीं हैं। मुझे हमेशा ऐसा लगा कि वह मेरे साथ हैं क्यों?क्योंकि उनकी वाणी का संग मिल रहा हैं। उन्होंने जो आदेश दिया था मैं उसका पालन कर रहा हूं। इसीलिए गुरु महाराज ने कहा कि मैं जप चर्चा कुछ समय तक नहीं कर पा रहा हूं फिर भी आप जपचर्चा में जरूर रहो। कुछ भक्तों को लगता हैं कि क्या फर्क पड़ता हैं? रिकॉर्डिंग तो हैं ही। लेकिन नहीं।गुरुमहाराज आज यहां हैं और हमें अपने आदेशो के द्वारा अपना संग प्रदान कर रहे हैं। बहुत साल पहले जब मैं बहुत ही नया था, अभी भी कुछ ज्यादा पुराना नहीं हुआ हूं,लेकिन कुछ साल पहले मैंने एक प्रभु जी से उस समय एक प्रश्न पूछा था तो एक प्रोग्राम हो रहा था वहां पर गुरु की तस्वीर लगी थी। तो मैंने पूछा कि भगवान की तस्वीर लगाने से ,भगवान का दर्शन करने से उन्हें प्रार्थना करने से भगवान वहां आ जाते हैं। तो क्या गुरु का भी दर्शन ऐसे, इस प्रकार से करने से, इस प्रकार से उनकी प्रार्थना करने से क्या वह सुनते हैं? क्या उनकी प्रतिमा रखकर उनको प्रार्थना करने से क्या वह स्वीकार करते हैं? उन्होंने कहा क्योंकि गुरु भगवान के प्रतिनिधि हैं, तो उनकी तस्वीर उससे भी प्रार्थना करने से वह स्वीकार करते हैं। एक वरिष्ठ भक्त बता रहे थे कि जब भी कठिनाई आती हैं, तो हम क्या करते हैं? भगवान से प्रार्थना करते हैं।लेकिन भक्त क्या करता है? भक्त तो सबसे पहले गुरु से प्रार्थना करता हैं, क्योंकि गुरु भगवान से प्रार्थना करेंगे कि यह जो मेरा शिष्य हैं, यह भक्ति में कमजोर हैं। कृपया इसे ऊपर उठाने के लिए आप इस पर और अधिक कृपा बरसाईए।अक्सर ऐसा पूछा जाता हैं कि गुरु महाराज तो शुद्ध भक्त हैं, तो आप उनके लिए प्रार्थना क्यों कर रहे हैं? उनके लिए प्रार्थना करने के लिए क्यों कहा जा रहा हैं, लेकिन हम भले क्या प्रार्थना कर सकते हैं,गुरु महाराज के लिए। वह तो शुद्ध भक्त हैं। लेकिन यहा इसमें यह समझने वाली बात हैं, जब ध्रुव महाराज अपनी माता सुरुचि के पास बहुत ही प्रताड़ित हुए, उन्हें क्या कहा गया था कि तुम्हें अगर अपने पिता की गोद में बैठना हैं, तो तुम्हें मेरी कोख से जन्म लेना होगा, मेरे पुत्र बनोगे तभी तो यह संभव हैं कि तुम अपने पिता की गोद में बैठ सकते हो।इसके लिए तुम्हें क्या करना होगा?इसमें तो नारायण भगवान ही कुछ कर सकते हैं। उन्हीं के पास जाओ। तो जब वह रोते-रोते अपनी मां के पास गए बहुत ही रो रहे थे।तो उनकी मां सुनिति ने कहा कि देखो पुत्र कभी भी तुम किसी के प्रति बदले की भावना मत रखना। लेकिन तुम एक काम कर सकते हो, जो तुम्हारी मां ने कहा उसका पालन करो।सुरुचि ने जो कहा उसका पालन करो।तुम जंगल में जाओ और जंगल में जाकर भगवान के लिए तपस्या करो और भगवान तुम्हें विशेष कृपा प्रदान करेंगे। तो वहां शास्त्र में प्रभुपाद जी ने कहा हैं कि कोई सोच सकता हैं कि यह कैसी मां हैं? अपने छोटे से 5 साल के बेटे को जंगल में भेज रही हैं। इसको क्या इतनी भी समझ नहीं हैं कि वहां शेर होंगे, जंगली जानवर होंगे। लेकिन नहीं। सुनिति उसे भेजने के बाद क्या कर रही हैं? उनके जंगल में जाने के बाद लगातार भगवान से ध्रुव महाराज के लिए प्रार्थना कर रही हैं। जबकि ध्रुव महाराज देखने में तो बालक थे लेकिन वे स्वयं महा भागवत ही हैं, कोई बालक नहीं हैं। लेकिन उनके लिए प्रार्थना कर करके सुनीति इतनी शुद्ध हो गई कि ध्रुव महाराज जब भगवद्धाम जा रहे थे,तो उन्होंने सोचा कि मेरी मां का क्या होगा?कुछ कहा नहीं,लेकिन केवल विचार किया और विष्णु दूत समझ गए और इशारा करके दिखाया। उन्होंने देखा कि उनकी मां भी भगवद्धाम जा रही हैं। तो प्रभुपाद ऐसा वहां लिखते हैं कि मेरा कोई शिष्य ऐसा शुद्ध भक्त बन गया तो वही मुझे भगवद्धाम लेकर जा सकता हैं। यह प्रभुपाद की विशेषता हैं। तो हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हम गुरु महाराज के लिए प्रार्थना करके हम उन्हें भगवद धाम जाने के लिए सहायता करेंगे। इस भाव से नहीं करना चाहिए। बल्कि इस भाव से करना चाहिए कि मैं उनके लिए प्रार्थना इसीलिए करूंगा कि मैं भी सिद्ध हो जाऊंगा और भगवान जब देखेंगे कि यह मेरे भक्तों के लिए प्रार्थना कर रहा हैं, तो भगवान मेरे ऊपर विशेष कृपा बरसाएंगे तो देखिए वहां प्रसंग में प्रभुपाद जी एक विशेष बात बता रहे हैं प्रभुपाद जी बता रहे हैं कि सुनीति बार-बार ध्रुव से कह रही हैं, कि है ध्रुव मैं तो अकेली एक मां हूं, मैं तुम्हें क्या प्रेम दे सकती हूं। लेकिन भगवान क्या हैं? भगवान तुम्हें लाखो माता का प्रेम दे सकते हैं। मुझ एक मां के बदले तुम्हें अगर लाखों माता का प्रेम मिल सकता हैं तो तुम जाओ वहां पर,उनके लिए तपस्या करो और उन्हें प्रसन्न करो तो हम भी कितने भाग्यशाली हैं कि हमें ऐसी लाखों माता का प्रेम प्राप्त करवाने वाले ऐसे साधु गुरु महाराज का संग हमें प्राप्त हो रहा हैं, हमें प्राप्त हुआ है और होगा भी। इसलिए कितनी करुणा हैं। 3.25.21 तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम् । अजातशत्रवः शान्ताः साधवः साधुभूषणाः ॥ २१ ॥ साधु के लक्षण हैं कि वह सहनशील, दयालु तथा समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता, वह शान्त रहता है, वह शास्त्रों का पालन करता है और उसके सारे गुण अलौकिक होते हैं। यह शुद्ध भक्तों की विशेष करुणा हैं। वह स्वयं का जीवन न्यौछावर करके सभी जीवो को भगवान से जोड़ते हैं। जो भगवान लाखों माताओं का प्रेम देने वाले हैं।ऐसी चर्चा हम मीडिया में देखते हैं कि वह कहते हैं कि इस्कान वालों ने क्या किया। देखो माता-पिता से छुड़वा दिया।उनको पता नहीं हैं कि एक माता-पिता, घर छूडवा भी रहे हैं,तो लाखों माता-पिता का प्रेम देने वाले भगवान कृष्ण से जोड़ रहे हैं। मराठी में एक कहावत हैं कि जो गधा हैं उसको अगर गुड देंगे तो उसको क्या पता चलेगा कि उसकी क्या मिठास हैं। इसलिए हम जब अपने गुरु को या साधुओं के प्रति समर्पित होते हैं तो भगवान उससे विशेषतः प्रसन्न होते हैं। एक बार गौर गोविंद स्वामी महाराज से उनके शिष्य ने पूछा कि महाराज यह 16 माला करने का क्या लाभ होता हैं? तो उन्होंने कहा कि इतना ही याद रखो कि 16 माला करने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं।तो भगवान कैसे प्रसन्न होंगे जब भगवान देखते हैं कि श्रील प्रभुपाद जी का,अपने गुरु महाराज के आदेश का पालन करके सोलह माला का जप कर रहे हैं। इसलिए भगवान प्रसन्न हो जाएंगे। लोग सोचते हैं कि 16 माला ही क्यों?किस किताब में लिखा हैं कि सोलह माला करनी हैं। किसी किताब में नहीं लिखा हैं। यह भगवान ने प्रभुपाद जी से कहा कि आप ऐसा करवाइए। तो प्रभुपाद जी का प्रमाण, भागवत प्रमाण को हमें स्वीकार करना चाहिए।इसको करने से गुरु और वैष्णव प्रसन्न होंगे,जिससे कि भगवान प्रसन्न होंगे।कई लोग पूछते हैं कि हम तो आरती में भगवान की आरती गाते हैं, लेकिन आपके यहां तो गुरु का गुणगान होता हैं। वंदे गुरु श्री चरणारविंद, ऐसे क्यों होता हैं। तो ऐसा इसलिए होता हैं, क्योंकि गुरु को प्रसन्न करने से, गुरु के माध्यम से ही हम भगवान तक पहुंच सकते हैं। क्योंकि गुरु ही भगवान के प्रतिनिधि हैं।गुरु सेवक भगवान हैं और भगवान सेव्य भगवान हैं। इसलिए सेवक भगवान के माध्यम से ही हम सेव्य भगवान तक पहुंच सकते हैं। यही सही तरीका हैं। और श्रील प्रभुपाद जी परंपरा के बारे में बताते हैं कि परंपरा से जुड़े रहना बहुत जरूरी हैं। इस परंपरा से अगर हम जुड़े रहेंगे तो भगवान तक पहुंच पाएंगे। बृहद भागवत में गोप कुमार की कथा आती हैं कि वहां पर जब उन्होंने गुरु से मंत्र प्राप्त किया तो गुरु अलग-अलग परिस्थिति में उनको मार्गदर्शन करते थे कि आपको ऐसे करना हैं,ऐसे जाना हैं। भगवद्धाम जाने तक गुरु जिम्मेदारी ले लेते हैं। फिर प्रभुपाद ने कहा कि जब तक मेरे सारे शिष्य भगवद्धाम नहीं जाएंगे तब तक मैं उन्हें बार-बार लेने आऊंगा। उसी प्रकार जो गुरु हैं, साधु हैं, उनका जीवन ही परोपकार के लिए हैं। जैसे हम कहते हैं ना जो नदी हैं, या वृक्ष हैं, वह क्या करते हैं? क्या कभी किसी ने वृक्ष को अपनी स्वयं का फल खाते देखा हैं?नहीं कभी नहीं। उसी प्रकार जो नदी हैं, नदी कभी भी अपना पानी नहीं पीती हैं। बल्कि दूसरों को पिलाती हैं। दूसरों के लिए कार्य करती हैं। उसी प्रकार गुरु या साधु दूसरों के लिए कार्य करते हैं। अन्य का उधार चाहते हैं। एक बार ब्रह्मा जी ने ऊपर से देखा कि उन्होंने जो ब्रह्मांड बनाया हैं, उसमें उन्होंने दो सूर्य देखे।तो उन्होंने सोचा कि मैंने तो दो सूर्य नहीं बनाए एक ही सूर्य बनाया था और उन्होंने देखा कि दो सूर्य ऐसे स्थान पर हैं, जो स्थान उनके अपना बनाया हुआ नहीं था। तो उन्हें पता चला कि वह दो सूर्य कौन थे। वह एक थे चैतन्य महाप्रभु और दूसरे थे नित्यानंद प्रभु *वन्दे श्री कृष्ण चैतन्य नित्यानन्दो सहोदितो।* *गौडोदये पुष्पवन्तो चित्रो शब्दो तमो नदौ।।* (चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.2) अनुवाद : मैं सूर्य तथा चंद्र के समान श्री कृष्ण चैतन्य तथा भगवान नित्यानंद दोनों को सादर प्रणाम करता हूं वह गौड़ के क्षितिज पर अज्ञान के अंधकार को दूर कराने तथा आश्चर्यजनक रूप से सब को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए एक साथ जुड़े हुए हैं । इसका अर्थ है कि गौड देश यानी कि बंगाल में दो चंद्र चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद प्रभु उदित हुए। किस लिए उदित हुए?हमारे अंदर जो अहंकार हैं, उसको मिटाने के लिए उदित हुए।दोनों चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद प्रभु गा रहे थे,भ्रमण कर रहे थे। तो उन्हें ब्रह्मा जी ने जब देखा वहां पर एक साधु का आश्रम था। तो महाप्रभु नित्यानंद प्रभु तो भगवान हैं। लेकिन हमें शिक्षा देने के लिए कि हमें साधु के पास जाना चाहिए और साधु के आश्रम में पहुंच गए।साधु वहां बैठे थे। दोनों ने दंडवत किया।भगवान ने दंडवत किया, जो की अनंत कोटि ब्रह्मांड के नायक हैं। जो कि जगतगुरु हैं। वही प्रणाम कर रहे हैं।तो प्रणाम करके उन साधु ने आशीर्वाद दिया कि आपको धन मिलेगा।आपको बहुत ही सुख समृद्धि मिलेगी उन्होंने कहा कि हमें ऐसा आशीर्वाद चाहिए कि हमारी मती, हमारा मन सदैव कृष्ण में लगा रहे। हमें केवल यही आशीर्वाद चाहिए। सच्चे साधु केवल ऐसा ही आशीर्वाद देते हैं। इसीलिए हम देखते हैं कि गुरु महाराज हमें हर समय भगवान की भक्ति में लगाए रखना चाहते हैं, इसलिए जपा टॉक भी शुरू किया। यह मेरा स्वयं का भी अनुभव हैं कि जब भी मैं गुरु महाराज को जपा टॉप में देखता हूं ,उनका दर्शन करता हूं तो एक अलग ही अनुभव होता हैं। हम गुरु महाराज से यही प्रार्थना करेंगे कि हमें उनका संग, उनकी सेवा मिलती रही हैं। उनके आदेशों का पालन करने के लिए विशेष शक्ति प्राप्त होती रहे,क्योंकि जब तक हम उनकी करुणा को नहीं समझेंगे कोई फायदा नहीं हैं। उन्होंने हमें जो एक स्थान दिया हैं, वहां पर रहकर हमें उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करेंगे तो भगवान जरूर प्रसन्न होंगे।हो सकता है कि हमें वह संग अच्छा लगे ना लगे लेकिन फिर भी जब हमें शक्ति प्रदान करते हैं तो हम वह कार्य आसानी से कर सकते हैं। तो थोड़ी देर पहले मैं जो बता रहा था कि जब हम संसार दावानल गाते हैं, इसका जो पहला पद हैं, जब हम इस पर विचार करते हैं तो हम समझ सकते हैं कि हम सारे संसार रूपी अग्नि में जल रहे हैं, एक बार की बात हैं, गुरु महाराज और मैं पंढरपुर से आ रहे थे।गुरु महाराज और मैं आगे बैठे थे और कुछ भक्त पीछे बैठे थे।केशव प्रभु को थोड़ी नींद आ रही थी,क्योंकि वह थके हुए थे। तो गुरु महाराज ने कहा कि केशव क्या हो रहा हैं? उन्होंने कहा कि गुरु महाराज थोड़ी ठंडी हवा लग रही थी इसलिए नींद आ गई। तो गुरु महाराज ने कहा कि आपको ठंडी हवा लग रही हैं? संसार दावानल भूल गए?इतनी गर्मी हैं। इतना सब जल रहा हैं। तो आप को ठंडक कैसे मिल रही हैं? तो गुरु महाराज हमें बार-बार याद दिलाते रहते हैं कि भौतिक जगत पूरा जल रहा हैं और केवल यह कहकर कि जल रहा हैं, हमको केवल डराते नहीं हैं। बल्कि हमें विशेष कृपा प्रदान करते हैं।एक समय मैं बहुत ही डरावना सपना देख रहा था।मैं गुरु महाराज से प्रार्थना कर रहा था और मेरा मन शांत हो गया। मैं समझ गया कि गुरु महाराज ने मेरी रक्षा की हैं।वैसे तो कुछ होने वाला नहीं था फिर भी मन हैं ना,स्वप्न में लगता है कि कुछ होने वाला हैं। यह विश्व भी एक स्वप्न हैं और स्वप्न से हमको असली स्थान पर ले जाने वाले हमारे गुरु महाराज जी हैं।इसलिए मैं आप सभी से प्रार्थना करता हूं कि मेरे लिए या मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए कि मैं गुरु महाराज की चरणों की सेवा में लगा रहा हूं और उनके आदेशों का पालन करता रहा हूं और यही मेरा जीवन हो। हरे कृष्ण। गुरु महाराज की जय। श्रील प्रभुपाद की जय। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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