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जप चर्चा 6 दिसंबर जनवरी 2022 श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप हम थकते नहीं हैं भगवान को नमस्कार करने की बात जब आती है तो बारंबार प्रणाम है। वैसे हर क्षण ओम नमो भगवते वासुदेवाय और गीता का पाठ भी कर रहे हैं तो ओम नमो भगवते वासुदेवाय भगवत गीता का वितरण भी कर रहे हैं। कर रहे हो कि नहीं? इसीलिए भी जिन्होंने गीता का उपदेश सुनाया हमारे लिए हम कृतज्ञ हैं और इसीलिए भी अपना थैंक्यू कहो एक शुद्र जीव भगवान का जितना आभार मान सकता है । उन्होंने हमारे लिए जो कुछ किया है उसमें से भगवत गीता जैसी अमूल्य भेंट श्री कृष्ण ने दी है हम सबको और उन्हीं की व्यवस्था से गीता का वचन और गीता का सार हम तक पहुंच चुका है इसलिए भी बारम्बार प्रणाम है। कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में सैन्य निरीक्षण यह पहले अध्याय का शीर्षक है। सेटिंग द सीन जिसको आप कहते हो। यह देखो तैयारी हो रही है। ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.14) अनुवाद- दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये | माधव और पांडव भी वहां पधार रहे हैं। रथ में विराजमान और कृष्ण बने है पार्थ के सारथी, फिर अर्जुन ने कहा है शंख ध्वनि वगेरह भी हो चुकी हैं। पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय: | पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदर: || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.15) अनुवाद- अन्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्णने पाञ्चजन्य नामक तथा धनञ्जय अर्जुनने देवदत्त नामक शंख बजाया और भयानक कर्म करनेवाले वृकोदर भीमने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। पांचों पांडवों ने अपने-अपने शंख बजाए हैं। फिर अर्जुन ने कहा है इक्कीसवे श्लोक में यह हम बारंबार आपको सुनाते रहते हैं। अर्जुन उवाच सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेऽच्युत | यावदेतान्निरिक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् || कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.21, 22) अनुवाद- अर्जुन ने कहा – हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ | अर्जून कहते है कि कृष्ण मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़े करो | कृष्ण तुरंत ही अर्जुन के रथ को आगे बढ़ा रहे हैं| अर्जुन कह रही रहे हैं मैं देखना चाहता हूं, मेरे साथ, हम पांडवों के साथ युद्ध खेलने के लिए कौन पधार चुके हैं? हमारे साथ युद्ध कौन कर सकता है? अर्जुन का जोश देखिए| His blood is boiling. दिखा तो दो कौन मेरे साथ युद्ध खेलना चाहते हैं रथ को आगे बढ़ाओ| कृष्ण ने वैसा ही किया वे तो आदेश का पालन ही कर सकते हैं मालिक तो अर्जुन है और यह तो सारथी है| ड्राइवर रथ को आगे बढ़ाया और फिर कृष्ण ने कहा है भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति || || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.25) अनुवाद- भीष्म, द्रोण तथा विश्र्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो | देखो, देखो तुम देखना चाहते थे ना, देखो तो सही। भगवत गीता के प्रथम अध्याय श्लोक संख्या पच्चीस में कृष्ण ने कहा है। यह कुछ ही शब्द भगवान बोलने वाले हैं भगवत गीता के प्रथम अध्याय में। पहला अध्याय भी भगवद गीता ही है पर यह सॉन्ग ऑफ गॉड नहीं है। यह भगवान नहीं बोले हैं इसमें अधिकतर अर्जुन ही बोलने वाले हैं। आधा अध्याय तो सेटिंग द सीन तैयारी हो रही है और जब कृष्ण ने कहा और कृष्ण की कही हुई बातों ने अर्जुन के विचारों में क्रांति या बदलाव लाया है। और अर्जुन का जो जोश था युद्ध खेलने का दिखाओ कौन है जो मेरे साथ युद्ध खेलने वाला आगे बढ़ाओ रथ को किंतु जब जब कृष्ण ने कहा - देखो, देखो, देखो। देखना चाहते थे ना देखो। कौरव, कौरव उपस्थित हुए हैं। कृष्ण के कहने का आशय यह है कि तुम भी कौरव हो, कुरु वंशज हो और तुम्हारे साथ युद्ध खेलने वाले भी कौरव कुरु वंशज ही है। तुम एक ही परिवार के हो। उसी के साथ श्री कृष्ण ने अर्जुन के मन में या विचारों में ममता, अहम और ममता को जगाया है। एकत्रित हुए कुरुओं को देखो। जब देख ही लिया मतलब कृष्ण अर्जुन का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। देखो देखो यह तो तुम्हारे ही परिवार के सदस्य हैं। कोई चाचा है, कोई नाना है, कोई तुम्हारे चचेरे भाई हैं। तुम्हारे ही परिवार के हैं तुम्हारे ही तो लोग हैं और बस फिनिश। भगवान ने दो चार शब्द कहे इसे देखने के लिए कहा। एक दृष्टिकोण को दिया अर्जुन को वैसे अर्जुन भी देखने जा रहे थे लेकिन अर्जुन जब देख ही रहे हैं तो कृष्ण बता रहे हैं कि क्या देखना है। देखो देखो तुम्हारे परिवार के सदस्य है। ममता ममता कुछ जागृत किया है जगाया है। मेरे ही तो लोग हैं बस इसी के साथ अर्जुन ठंडे पड़ गए। न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे | न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.31) अनुवाद- हे कृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उससे किसी प्रकार की विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ | ऐसे विचार व्यक्त करने लगे अर्जुन। अभी-अभी इतना जोश था इतने दिनों, महीनों से तैयारी भी चल रही थी। वह आ चुके हैं। वहां पर डिनर पार्टी थोड़ी थी वह तो युद्ध खेलने के लिए आए थे। लेकिन अब कह रहें है नहीं नहीं। अर्जुन उवाच दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् | सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिश्रुष्यति || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.28) अनुवाद- अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध कि इच्छा रखने वाले मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है। वेपथुश्र्च शरीरे मे रोमहर्षश्र्च जायते | गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.29) अनुवाद- मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है| इस युद्ध को खेलेंगे तो जाति धर्म का क्या होगा? कुल धर्म का होगा? इस धर्म का क्या होगा? यह क्या होगा? वह क्या होगा? काफी भारी नुकसान होने वाला है। बहुत हानि होने वाली है। यहां कई सारे धर्मों की बात, जाति धर्म, कुल धर्म, यह धर्म, वह धर्म, ऐसी ड्यूटी, वैसी ड्यूटी। इसीलिए यह पहला अध्याय चल रहा है। कृष्ण अर्जुन के विचार सुन चुके हैं।उनको कई चिंता है। वह इसके बारे में उसके बारे में चिंतित है। इसलिए सबसे अंत में कृष्ण कहने वाले हैं सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 18.66) अनुवाद- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । पहले अध्याय में अर्जुन ने अपने विचार कहे । इस धर्म का क्या? उस धर्म का क्या? अलौकिक धर्म । यह धर्म, वह धर्म, यह ड्यूटी, परिवार के सदस्यों के प्रति । यह ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने अंत में निर्णय में कहा हैं। त्याग दो ठुकरा दो यह विचार और जहां तक धर्म की बात है तो धर्म क्या है? मेरी शरण में आओ। तुम्हारे अपने सब विचार छोड़ दो। मेरे विचार।मै क्या चाहता हूं? इस पर कभी विचार किया है? तुम अपने मनो धर्म से चल रहे हो। कृष्ण धर्म के बारे में क्या? कृष्ण धर्म, मेरा धर्म। अर्जुन बोलते जा रहे है, बोलते जा रहे है- युद्ध नहीं करूंगा, युद्ध नहीं करूंगा। यही बातवे बारंबार कह रहे हैं अलग-अलग शब्दों में या वचनों में कह रहे है। हर बात के साथ वह भगवान के विरोध में कहो या भगवान से भिन्न, भगवान का जो दृष्टिकोण है। भगवान का जो लक्ष्य है। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.8) अनुवाद- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | भागवत धर्म या कृष्ण धर्म की जो स्थापना करनी है उनको उन विचारों से, भगवान के विचारों से, भगवान के दृष्टिकोण से, भगवान के उद्देश्य से हर बार के साथअर्जुन हटते जा रहे हैं । अर्जुन तो सोच रहे होंगे कि मैं कितनी बड़ी बुद्धिमता की बात कर रहा हूं। इस बात को सुन कर के तो कृष्ण जरूर कहेंगे ओके ओके अर्जुन यू डोंट हैव टू फाइट, तुम्हें युद्ध करने की जरूरत नहीं है। क्या समय हुआ है चलो थोड़ा नाश्ता कर लेते। मॉर्निंग आवर्स है, लेकिन कृष्ण ऐसा होना नहीं देंगे। समझो जैसे कुछ दिन पहले किसी संवाद के अंतर्गत ग्यारहवें अध्याय में सब दिखाया है। करने वाला तो मैं ही हूँ। कर्ता कर्विता मराठी में कहते हैं कर्ता कर्विता। करने वाला, करवाने वाला तो मैं हूं। देखो मेरा विराट रूप, और देखो शत्रु सैन्य का क्या हाल हो रहा है? वे सभी मेरे मुख में प्रवेश कर रहे हैं। जलकर खाक राख हो रहे हैं । देख रहे हो ना, ऐसा ही होना है। इन लोगों का ऐसा ही भविष्य है। तुमको बस निमित्त बनना है। तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् | मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भाव सव्यसाचिन् || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 11.33) अनुवाद- अतःउठो! लड़ने के लिएतैयार होओ और यश अर्जित करो | अपने शत्रुओं को जीतकरसम्पन्न राज्य का भोग करो |ये सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं औरहे सव्यसाची! तुम तो युद्ध मेंकेवल निमित्तमात्र हो सकते हो| तुमको जो भी मैं दिखा रहा हूं इस विराट रूप में इस युद्ध का जो परिणाम है या भविष्य है। 18 दिनों के उपरांत ऐसे होगा देखो इस विराट रूप में विश्व रूप में। इस में कोई परिवर्तन नहीं होगा। युद्ध होकर ही रहेगा। तुम नहीं खेलोगे करोगे युद्ध तो कोई और खेलेगा लेकिन युद्ध तो होगा ही, लेकिन अच्छा है अर्जुन तुम ही तैयार हो जाओ। इस पहले अध्याय के अंत में अर्जुन कह कह के थक गए, मैं युद्ध नहीं करूंगा कई सारे कारण बता रहे थे। वह रथ में बैठ ही गए। सञ्जय उवाच एवमुक्तवार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् | विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 1.46) अनुवाद- संजय ने कहा – युद्ध भूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोकसंतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया | अर्जुन बैठ गए रथ में, युद्ध बैठकर होता है क्या? बैठकर तो बातें होती है। लेकिन फाइटिंग करनी होती है तो कोई बैठा होता है व्यक्ति तो कहते हैं उठाओ आ जाओ। फाइटिंग तो बैठकर नहीं होती है। किसी को थप्पड़ भी मारनी है तो यहाँ तो गोली चलेगी, तलवार चलेगी या बाण चलेंगे। अर्जुन बैठ गए मतलब यह सब कह-कह के अर्जुन तो थक गए। उनका जो सारा तर्क वितर्क लॉजिक रीजनिंग जो था सब ख़त्म हो चूका था। अब कुछ नहीं बचा अर्जुन बैठ गए। दूसरे अध्याय में अर्जुन का बहुत बुरा हाल हुआ है। संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् | विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 2.1) अनुवाद- संजय ने कहा – करुणा से व्याप्त, शोकयुक्त, अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर मधुसूदन कृष्ण ने ये शब्द कहे | अर्जुन आंसू बहा रहे हैं। अर्जुन शोक से व्याकुल है। पूरी माया में है अर्जुन। सारे संसार भर का अहम और मम से प्रभावित हुए हैं अर्जुन। ऐसे अर्जुन को कृष्णा द्वितीय अध्याय के द्वितीय श्लोक में आप सब भी यह याद कर सकते हो समय-समय पर मैं बताता रहता हूं। यह अध्याय- यह श्लोक में यह कहा है। कृष्ण का गीता का जो प्रवचन जो है वह द्वितीय अध्याय के द्वितीय श्लोक से शुरू होता है पहले अध्याय में कृष्ण का कोई उपदेश है, कुछ कहा हैं। अब आपको याद होना चाहिए। हाँ हाँ एक छोटी सी पंक्ति कृष्ण ने कही है अध्याय पहला और श्लोक संख्या क्या श्लोक संख्या 25 वें श्लोक में कृष्णा ने कहा है उतनी ही बात ही कृष्ण पहले अध्याय में कृष्ण बोले हैं कहे हैं। और कृष्ण का गीता का उपदेश संदेश द्वितीय अध्याय के द्वितीय श्लोक से प्रारंभ होने वाला है। कृष्ण बोलना जब शुरू करते हैं तो अर्जुन ने तो शायद सोचा होगा कितनी बढ़िया-बढ़िया बातें मैंने कहीं। यह धर्म, वह धर्म उसका क्या होगा सामाजिक, पारिवारिक विचार और कृष्ण कहेंगे शाबाश, शाबाश अर्जुन मैं प्रसन्न हूं। ऐसी बुद्धिमता की तुमने बात की अर्जुन ने ऐसे सोचा होगा। लेकिन पता है कृष्ण क्या कह रहे हैं पहली बार जो कृष्ण का कमेंट है कृष्ण का अर्जुन के कही हुई बातें भगवत गीता के प्रथम अध्याय में अर्जुन बहुत बोले हैं। पहला अध्याय यह अर्जुन गीता है। पहले आधे अध्याय में तो अर्जुन का ही गीत है। अर्जुन कृष्ण को अपना संगीत सुना रहे हैं। इसको सुनकर कृष्ण अब कह रहे हैं - श्री भगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्| अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन|| (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 2.2) अनुवाद- श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! तुम्हारे मन में यह कल्मष आया कैसे? यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नहीं है, जो जीवन के मूल्य को जानता हो| इससे उच्चलोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है| अरे अरे यह कचरा विचार तुम्हारे मन कहां से आ रहे हैं। यह तो कूड़ा करकट है। यह नीच विचार है तुम जैसे आर्य को यह शोभा नहीं देते। ऐसी कुछ बातें तो सुनी है अर्जुन ने तो भी कुछ तो बातें सुनी एक आधा मिनट के लिए कृष्ण से बातें सुनी तो भी अर्जुन पहले तो रथ में बैठे थे और अब कह रहे है- संजय उवाच एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तपः | न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 2.9) अनुवाद- संजय ने कहा – इस प्रकार कहने के बाद शत्रुओं का दमन करने वाला अर्जुन कृष्ण से बोला, “हे गोविन्द! मैं युद्ध नहीं करूँगा,” और चुप हो गया | | मैं युद्ध नहीं करूँगा। मैं युद्ध नहीं करूंगा ऐसा कह कर शांत हो गए। अब सीरियस बात, गंभीर बात प्रारंभ होगी भगवत गीता के द्वितीय अध्याय के ग्यारहवें श्लोक से अब भगवान का उपदेश प्रारंभ होने वाला है। यह सब बातें सुनने के उपरांत अर्जुन कहने वाले हैं- अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव || (श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 18.73) अनुवाद- अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ | आपके वचन या उपदेश के अनुसार में युद्ध करूंगा। आई एम रेडी। आपने जो उपदेश मुझे सुनाया, कृपा प्रसाद जो मुझे प्राप्त हुआ उससे मेरा मोह नष्ट हो गया। कृष्ण ने कहा अर्जुन ने वैसा ही देखा जिसके साथ मोह, माया, भ्रम उत्पन्न हुआ और गीता के अंत में पूरी गीता सुनने के उपरांत अर्जुन अब कहने वाले हैं अब मैं स्थिर हो गया हूं। पहले डावांडोल स्थिति चल रही थी अब आपके कहे आदेशानुसार युद्ध करने के लिए मैं तैयार हूं। आई एम रेडी। उन्होंने कहा अगर आप रेडी है तो फिर आगे बात करने की आवश्यकता नहीं है तुम तैयार नहीं थे इसीलिए मैं सुना रहा था अगर अब तुम रेडी हो तो वंडरफुल, स्वागत है। शुरू करो, फिर गीता जयंती गीता का जन्म तो हो गया मोक्षदा एकादशी के दिन गीता का जन्म हो गया। गीता जयंती और बातें तो हो गई, अर्जुन ने जैसे कहा है कर के दिखाना हैं, दिखेंगे ही। और शुरुआत हो गई। ओके तो ऐसे संदेश को हमें भी समझना चाहिए और फिर समझ कर औरोंको समझा सकते हैं। श्रील प्रभुपाद ने जैसे समझाया है “भगवत गीता यथारूप” में लोगों की समझ के लिए समझाने के लिए। भगवत गीता वितरण करना है। पूरा पैकेज देंगे हम कुछ तो कह सकते। हर समय तो हम नहीं समझा सकते हैं पूरी बात या हमारी समझाई हुई बात लोग भूल भी सकते है। उन्हें पुनः स्मरण कराने के लिए भगवत गीता है तो उन्हें पुनः भगवत गीता यथारूप याद दिलाएगी इसीलिए गीता का वितरण करते रहो। अब सुनते हैं कल आपने कैसे किया, कितनी गीता का वितरण किया। निताई गौर प्रेमानंदे मॉरीशस में कर रहे हो गीता का वितरण कुसुम सरोवर हरि बोल

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