Hindi
22nd July 2019
धोखेबाजों से स्वयं को बचाइए
हरे कृष्ण !
इस कांफ्रेंस में जप करने वाले आप सभी भक्तों को आशीर्वाद। आप सभी प्रातः कल के समय जप करने वाले साधक हरिनाम का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। हरिनाम का आशीर्वाद स्वयं भगवान के आशीर्वाद के समान हैं क्योंकि भगवान और उनका नाम दोनों अभिन्न हैं। इस प्रकार हम प्रातःकालीन समय में जप कर रहे हैं तथा हम सभी प्रत्येक दिन प्रातःकालीन समय में जप करके धनी तथा समृद्ध बन रहे हैं। इस संसार के व्यक्ति सुबह १० बजे से धन एकत्रित करना प्रारम्भ करते हैं परन्तु हम हरे कृष्ण भक्त प्रात:काल से ही हमारे धन को एकत्रित करना प्रारम्भ कर देते हैं , तथा समृद्ध बनते हैं। हमारा धन तो वास्तव में हरे कृष्ण महामंत्र हैं। इस प्रकार प्रतिदिन इस महामंत्र का जप करके हम और अधिक धनी तथा समृद्ध बनते हैं। जो बुद्धिमान व्यक्ति हैं वे इस संकीर्तन यज्ञ अथवा जप यज्ञ में सम्मिलित होते हैं, तथा जप करते हैं अतः आप सभी बुद्धिमान हैं , क्योंकि आप सभी जप कर रहे हैं। भगवद गीता में भगवन श्री कृष्ण कहते हैं :
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || (श्रीमद भगवद्गीता १८.६५ )
भगवान भगवद गीता के अंत में हमें यह चार बाते बताते हैं। इस प्रकार यह भगवद गीता का उपसंहार हैं। भगवान अर्जुन के माध्यम से हम सभी को इन चार बातों को करने का निर्देश दे रहे हैं। भगवद गीता वास्तव में तो हम सभी के लिए आप और मेरे लिए कही गई हैं , अर्जुन तो एक निमित्त मात्र हैं। भगवान हम सभी के लिए सोचते हैं तथा हमें इन चार बातों का पालन करवाना चाहते हैं। ये चार बातें निम्न प्रकार से हैं :
१ - मन मना : मेरा स्मरण कीजिये। भगवान चाहते हैं हैं कि हम उनका चिंतन करें।
२ - मद भक्त : मेरे भक्त बनिए।
३ - मद्याजी : मेरी आराधना करो।
४ - मां नमस्कुरु : मुझे नमस्कार करो।
यदि आप इन चार बातों का पालन करते हैं तो इसका परिणाम क्या होगा ? भगवान आगे कहते हैं , यदि आप इनका पालन करेंगे तो " मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे " अर्थात हम पुनः भगवद्धाम चले जाएंगे। हम पुनः अपने घर जा सकते हैं , जो हमारा सनातन स्थान हैं तथा वहां जाकर हम सदैव प्रसन्न रहेंगे। जहाँ भगवान रहते हैं , हम वहां जा सकते हैं यदि हम इन चार बातों का पालन करते हैं।
भगवान की सेवा करके , हम स्वयं की भी सेवा करते हैं। हम स्वयं का हित करते हैं। परन्तु यदि हम अन्यों को इन चार बातों के विषय में नहीं बताते हैं कि वे उनके भक्त बने , उनका चिंतन करें , उनकी आराधना करें , तथा अंततः भगवद्धाम चले जाएं , तो हम उन्हें धोखा देते हैं। इस प्रकार हमें सदैव स्वयं को भी इन विषयों का स्मरण रखना चाहिए तथा अन्यों को भी इनके विषय में बताना चाहिए। भगवान हम सभी से यही अपेक्षा करते हैं।
कल यहाँ नागपुर में रविवारीय उत्सव में मैंने अपने प्रवचन में बताया , जो श्रील प्रभुपाद समय समय पर बताते थे , " यह जगत धोखादेने वालों से तथा धोखा खाने वालों से भरा हुआ हैं। " सम्पूर्ण जगत इन दो प्रकार के व्यक्तियों से भरा हुआ हैं चाहे वे वृद्ध हो अथवा युवा, समृद्ध हो अथवा गरीब। कोई भी व्यक्ति इसका अपवाद नहीं हैं। वे सभी भगवान की माया के वशीभूत हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को धोखा दे रहा हैं। जो भगवान की वाणी नहीं सुनते हैं तथा उनके शरणागत नहीं हैं वे व्यक्ति या तो स्वयं धोखा खा रहे हैं अथवा अन्यों को धोखा दे रहे हैं। यदि हम भी किसी को भगवान की वाणी का सन्देश नहीं देते हैं तो हम भी उन्हें धोखा ही दे रहे हैं। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। आप उन्हें जगाइए।
यदी हम " जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश। " करते हैं तो हम उनकी सहायता करते हैं अन्यथा हम उन्हें धोखा ही देते हैं।
यह एक विशाल विषय हैं परन्तु हमें यह समझना चाहिए कि किस प्रकार यह धोखेबाजी चल रही हैं। इस जगत के व्यक्ति माया में हैं , हम भी एक दूसरे के इस माया के आवरण को और अधिक सुदृढ़ ही कर रहे हैं। हम किसी न किसी रूप में इस माया को ही प्रदान कर रहे हैं।
कई व्यक्ति ऐसा कहते हैं कि हम तो अपना कर्तव्य कर रहे हैं। "
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"
वे यह कहते हैं कि भगवान् ने ही कहा हैं कि आप अपने कर्तव्यों का पालन करो अतः मैं तो अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ। परन्तु क्या उन्हें वास्तव में यह समझ हैं कि उनका कर्तव्य क्या हैं ? क्या हमें यह समझ हैं कि हमारे बच्चों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य हैं ? हम उन मासूम बच्चों को धोखा दे रहे हैं। हम उन्हें विद्यालय भेजते हैं , उन्हें उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज भेज रहे हैं , क्या इससे हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता हैं ? यही अविद्या हैं। संक्षेप में हम इसे कहें तो यदि आप अपने बच्चों को कृष्ण नहीं दे रहे हैं तथा माया दे रहे हैं तो आप उन्हें धोखा दे रहे हैं।
यद्यपि आप भक्त हैं और आप अपने बच्चों को कृष्ण देते हैं। जैसा कि मैं देख रहा हूँ आप में से कई भक्त अपने बच्चों के साथ जप कर रहे हैं , आप उन्हें इस्कॉन मंदिर ले जाते हैं , उन्हें कृष्ण प्रसाद देते हैं , उन्हें प्रह्लाद स्कूल के माध्यम से आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं , परन्तु इतने से ही बात नहीं बनेगी। इसके अलावा भी कई अन्य कार्य हैं जो आपको करना चाहिए। मैं यह बात केवल आपको ही नहीं कह रहा हूँ , परन्तु वास्तव में तो मैं आपके माध्यम से यह सन्देश सम्पूर्ण जगत को देना चाहता हूँ, जिस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के माध्यम से इस भगवद गीता का सन्देश सम्पूर्ण विश्व को दे रहे थे।
मैं आपके इस कार्य के लिए आपको हतोत्साहित नहीं करना चाहता हूँ , मैं आपके प्रति कोई अपराध नहीं करना चाहता हूँ , यदि आप अपने बच्चों को, अपने मित्रों को , सम्बन्धियों को , पड़ोसियों को कृष्ण दे रहे हैं यदि उन्हें कृष्णभावनाभावित बना रहे हैं तो यह प्रशंसनीय हैं।
जैसा कि मैं कल शाम को रविवारीय उत्सव में चैतन्य महाप्रभु के वचन को बता रहा था , जहाँ महाप्रभु कहते हैं :
"जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश"
आप जिससे भी मिलते हैं , उन्हें कृष्ण के विषय में बताइए , उन्हें यह समझाइये कि भगवान का अस्तित्व हैं , वे विद्यमान हैं। येन केन प्रकारेण आप उन्हें कृष्ण के विषय में बताइये। आप उन्हें कृष्ण प्रसाद दीजिये , भगवद गीता प्रदान कीजिये , मंदिर बुलाइये , उन्हें पंढरपुर, वृन्दावन , मायापुर की यात्रा में लेकर जाइये। इस प्रकार आप अपने कर्तव्यों का पालन कर पाएंगे।
ऐसा नहीं हैं कि हमारा कर्तव्य केवल हमारे बच्चों अथवा परिवार के प्रति ही हैं , हमारा कर्तव्य हमारे पड़ोसियों, सम्पूर्ण समाज , देश तथा विश्व के प्रति हैं तथा आप उन्हें कृष्ण प्रदान करके अपने इस कर्तव्य का पालन कर सकते हैं। यदि हम माया के वशीभूत हैं तो हम उन्हें अंततः किसी न किसी रूप में माया ही प्रदान करते हैं, तथा हमें उनके प्रति हमारे कर्तव्य का आभास भी नहीं होता हैं। इस प्रकार वास्तव में हम उन्हें धोखा ही देते हैं। उन्हें कृष्ण प्रदान करके आप अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकते हैं।
जैसा कि मैंने आपसे कहा था यह एक वृहद विषय हैं। इसका प्रारम्भ कहाँ से किया जाए यह भी हम नहीं बता सकते , मैं तो केवल इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ। आप इस विषय पर और अधिक चिंतन कर सकते हैं। हमें इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि हम किसी को धोखा नहीं दे रहे हैं , तथा कोई अन्य भी हमें धोखा नहीं दे रहा हैं। इस कलियुग में इसी प्रकार का माहौल हैं। जहाँ भगवान कहते हैं " योगी भव " अर्थात हे अर्जुन ! तुम योगी बनो। हम भी यही कहते हैं , अथवा हम कहते हैं " जप योगी भव " अर्थात आप जप योगी बनिये , परन्तु यह जगत भगवान की वाणी के विपरीत दुष्प्रचार करते हुए कहता हैं , " भोगी भव "। इस जगत में इसी मन्त्र का प्रचार चल रहा हैं। वे दिन रात चलचित्रों , विज्ञापनों के माध्यम से इसी मन्त्र का विस्तार करने में लगे हुए हैं। वे " भोगी भव " इस प्रकार कहकर इस मन्त्र का प्रचार नहीं करते हैं परन्तु वास्तव में तो वे इसी भाव का प्रचार करने में लगे हुए हैं। वे इस भोगी भव सिद्धांत को और विस्तृत रूप में उदाहरणों के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं , तथा अधिक से अधिक व्यक्तियों को माया प्रदान कर रहे हैं , एवं भोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।
भगवान भगवद गीता में कहते हैं :
ये ही संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आध्यातवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।
बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं। हे कुन्तीपुत्र ! ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता हैं , अतः चतुर व्यक्ति उनमें आनंद नहीं लेता। (भगवद गीता 5.22)
इस प्रकार भगवान यहाँ जिस विषय में बता रहे हैं , यदि आप उसका स्मरण रखें तथा अन्यों को भी इसके विषय में बताए , तो यह आपके द्वारा एक महान सेवा होगी। इससे सभी प्रसन्न होंगे। मैं भी यही करना चाहता हूँ , मैं सदैव सेवा करना चाहता था , तथा इस प्रकार भगवद गीता के सन्देश , चैतन्य महाप्रभु के सन्देश बताकर मैं आपकी सेवा कर रहा हूँ। इसके माध्यम में मैं इस अटल सत्य को सभी को बताता हूँ, जिससे वे प्रसन्न रह सकें।
राजनेता यह प्रचार करते हैं : "स्मार्ट शहर बनाइये और आप प्रसन्न रहेंगे। " यह भी एक धोखेबाजी हैं। आप भी सोच सकते हैं क्या यह सम्भव हैं कि स्मार्ट शहर बनाकर आप प्रसन्न रह सकते हैं। परन्तु ये मुर्ख , कृष्ण ऐसे व्यक्तियों को मुर्ख कहकर सम्बोधित करते हैं , ऐसा दुष्प्रचार करते हैं। जो कृष्ण के शरणागत नहीं होते हैं , वे कभी भी इस बात को नहीं समझ सकते हैं।
स्मार्ट शहर बनाकर आप इन्द्रिय भोग की और अधिक व्यवस्था कर रहे हैं , भगवान हमें यह समझा रहे हैं कि यदि हम इन्द्रिय विषयों के संपर्क में आएँगे तो उनका भोग करेंगे , परन्तु इसका परिणाम क्या होगा इसके लिए भगवान कहते हैं , " दुःखयोनय एव ते " अर्थात अंततः इसका परिणाम दुःख ही हैं। हमारे आनंद का कारण ही हमारे दुःख का कारण बनता हैं। यदि आप किसी हानिकारक पेय पदार्थ के प्रति आसक्त हैं , तथा यदि आपको आज वह आनंद प्रदान कर रहा हैं तो यही पेय पदार्थ आपके दुःख का कारण बनेगा , यह सत्य हैं। मैं आपको कुछ उदाहरण देना चाहता था परन्तु समय का अभाव हैं। जब आप किसी वस्तु का भोग करते हैं तो वही वस्तु अन्त में आपको दुःख प्रदान करेगी। वर्तमान में नेता , राजनेता , प्रधानमंत्री , तथा अन्य कई एजेंसियां इसी का प्रचार कर रही हैं , जहाँ वे आपको अर्धसत्य बताते हैं। वे केवल यह बताते हैं कि आप भोग कीजिये , परन्तु इसके पश्चात इससे होने वाले कष्ट के प्रति नहीं बताते हैं। हमें भगवान की वाणी का स्मरण रखना चाहिए कि हमें आनंद प्रदान करने वाली वस्तु ही हमारे दुःख का कारण बनेगी। इस भौतिक जगत में जब आप आनंद के लिए भुगतान करते हैं तो इसके साथ आपको कष्ट निःशुल्क मिलते हैं। आपको सुख के साथ दुःख भी प्राप्त होता हैं। इस जगत में सुख - दुःख को अलग अलग नहीं किया जा सकता हैं। इसलिए हमें भगवान की वाणी को सुनना चाहिए जहाँ वे कहते हैं , " योगी भव " , और इस जगत की वाणी को नहीं सुनना चाहिए। " भोगी भव " इस चेतना का हमें त्याग करना चाहिए। हमें भगवान की सेवा करनी चाहिए और इससे हम प्रसन्न रह सकते हैं।
इस प्रकार हमने इस विषय पर कुछ चर्चा की , अब आप इस पर और अधिक चिंतन कर सकते हैं। यह जगत धोखा देने वालों से भरा हुआ हैं , अतः आप सचेत रहिए , आप उनसे दूर रहिए। आप स्वयं को राजनेताओं , वैज्ञानिकों के इस दुष्प्रचार से बचाइए , वे अपने इस प्रचार द्वारा परिवार , समाज तथा देश को भ्रमित कर रहे हैं। हमें इस साम्राज्य का अंश नहीं बनना चाहिए। इसीलिए इस प्रकार के भौतिक प्रपंचों के मध्य श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने श्रील प्रभुपाद को शक्ति प्रदान की जिससे वे इस अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना कर सके। यह कृष्ण भावनामृत संघ हैं, माया भावनामृत संघ नहीं हैं। ये इस्कॉन मंदिर इस पृथ्वी पर वैकुण्ठ तथा गोलोक के समान हैं। ये मंदिर आध्यत्मिक संघ हैं। यहाँ भगवान की वाणी का , सत्य का प्रचार होता हैं। यहाँ के सदस्य आपस में इस सत्य की चर्चा करते हैं। इस संसार के अधिक से अधिक व्यक्ति इस संघ में सम्मिलित हो , जिससे वे इस जगत के भ्रामक प्रचार से बच सके। इस्कॉन सम्पूर्ण मानवता के लिए सर्वोच्च हित की बात करता हैं। यह भगवान का आंदोलन हैं , यह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आंदोलन हैं। यह आंदोलन धोखादेने वालों से मुक्त हैं , यहाँ प्रीतिलक्षणं हैं , जहाँ हम यह समझते हैं कि हम सभी आत्माएं हैं तथा हम एक दूसरे का हित चाहते हैं एवं उनकी सहायता तथा सेवा करते हैं।
मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ , भगवान के श्रृंगार आरती का समय हो रहा हैं। आप सभी से किसी अन्य दिन पुनः चर्चा करेंगे।