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हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 12 नोव्हेंबर 2020

गौरांग...! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! हरि बोल...!

आप सभी का परिक्रमा में स्वागत है। आज परिक्रमा पता है ना कहां से कहां जाएगी प्रात:काल में घोषणा कि जाती है परिक्रमा के दौरान। मैं उम्मीद करता हूं कि मानसिक रूप से आध्यात्मिक रूप से आपकी आत्मा आजकल ब्रज में में निवास कर रही हैं। आपका मन में है ब्रज का ही ध्यान कर रहे हो।जप चर्चा काँन्फरन्स में उपस्थित प्रतिभागियों से प.पु. लोकनाथ स्वामी महाराज जी ने कहा "आप सुन लीजिए जप को थोड़ा हरि कथा जप बंद करिए थोड़ी देर के लिए।देवहूति माताजी जप करना शुरू ही है आपका। ऐका थोड! थांबा थोड! वागाळ घोड! हरि हरि! बद्री का आश्रम में आप सब ने दो रातें बिताई और आप सभी ने आपके बद्रीकाआश्रम में बद्रीनारायण का दर्शन किया। यह बद्री है यह वहां के वृक्ष है। वहाके कुछ वृक्ष बद्री वृक्ष कहलाते हैं। हरी हरी! वहां लक्ष्मी भी पहुंच जाती है भगवान तो पीछे छोड़े वैकुंठ में और स्वयं अकेले तपस्या करने के लिए बद्रीका आश्रम पहुंचे तो थे किंतु पीछे से लक्ष्मी भी आ गई अपने पति की सेवा में उनसे रहा नहीं गया। बद्रिकाश्रम में बद्री नामक वृक्षों के रूप में लक्ष्मी वहां निवास करती है और अपने पतिदेव को छाया प्रदान करती है और तप करती हैं। आज जब परिक्रमा बद्रिकाश्रम से बद्रीनाथ से केदारनाथ जाएगी, केदारनाथ से चरण पहाड़ी होते हुए कामवन पहुंचने वाली हैं। कामवन धाम की जय...!

भगवान जब बैकुंठ को त्याग कर तपस्या करने हेतु जब प्रस्थान किए तो ढूंढ रहे थे वह भूमि जहां वे तपस्या कर सके हैं। हिमालय में पहुंचे तो एक स्थान उनको बहुत पसंद आया वह बद्रीनाथ ही हैं। पसंद तो आया लेकिन उन्होंने यह भी देखा था की वहा शिव और पार्वती पहले से ही निवास कर रहे हैं। फिर नारायण युक्ति सोचते है कि शिव और पार्वती को कैसे यहां से निकाल सकते हैं। इस स्थान को हम प्राप्त कर लेंगे और हम यही रहेंगे। एक समय की बात है हो सकता है प्रात काल में हुआ होगा शिव और पार्वती तप्त कुंड में स्नान के लिए जा रहे थे आप को पता है। बद्रिकाश्रम का तप्त कुंड प्रसिद्ध है वहां जाने पर सभी यात्री प्रायः वही स्नान करते हैं। शिव और पार्वती स्नान के लिए जा रहे थे रास्ते में उन्होंने एक बालक को देखा। वह बालक अकेला ही है असहाय है, गरीब बेचारा, दुखी और उदासीन और निराश्रित। कोई आश्चर्य नहीं है कोई संभाल नहीं रहा है कोई खयाल नहीं कर रहा है आंसू भी बहा रहा है, रो रहा हैं। इस बालक को शिवजी और पार्वती दोनों ने भी देखा। पार्वती ने जब बालक को देखा तो उनको दया आयीं उन्होंने सोचा कि इस बालक को हमारे घर में रखते हैं और वैसा ही हुआ बालक को पार्वती जी घर में लेकर गयी और वहां रखी और दोनों पति पत्नी स्थान के लिए प्रस्थान किए और स्नान के उपरांत जब वे लौटे तो उन्होंने देखा कि सारे दरवाजे खिड़कियां बंद हैं।

अंदर से भी ताले या कुंडी लगाई गई हैऔर अंदर प्रवेश का कोई मार्ग ही नहीं है खूब दरवाजे खटखटा कर देखते हैं बेल बजाते हैं लेकिन वे जानते हैं। अंदर बालक है और उसकी करतूत होनी चाहिए। उसने ही बंद कर दिया है खिड़की दरवाजे। थोड़ा सोचने पर विचार विमर्श किया शिव पार्वती ने और उन्होंने सोचा कि यह बालक वे अनुभव भी कर रहे थे ये कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। माना कि यह बालक स्वयं भगवान ही हैं। उन्होंने हमारे घर पर कब्जा किया है, घेर लिया और वे यही रहना चाहते हैं। फिर शिव और पार्वती हिमालय के क्षेत्र में और अपने लिए दूसरा क्षेत्र ढुँढ ने के लिए निकले।ढुँढते ढुँढते उनको एक स्थली बहुत पसंद आयीं। उस स्थान का नाम केदारनाथ है और वहा शिव और पार्वती रहने लगे। अभी भी वही रहते हैं। एक है बद्री बद्रीनाथ और दूसरा केदार केदारनाथ। बद्रीनाथ...!केदारनाथ...! ये दो नाथ हिमालय में वास करते हैं। वही है बद्रीनाथ और केदारनाथ वृंदावन में भी ओरिजिनल(मूल) बद्रीनाथ ओरिजिनल(मूल) केदारनाथ हैं। उनका हम दर्शन कर रहे हैं। हरिद्वार भी है वृंदावन में। उस हरिद्वार को कुछ हरिद्वार कहते हैं या कुछ हरद्वार कहते हैं। हरि या बद्रीनारायण के जो भक्त हैं उनके लिए हरिद्वार प्रवेशद्वार ये प्रवेश द्वार है हरिनारायण या बद्रीनारायण के भक्तों के लिए वह प्रवेश द्वार हैं। वह कहेंगे यह हरिद्वार है और जो केदारनाथ जाना चाहते हैं शिव जी के भक्त हैं वह कहेगें हरद्वार। हरि और हर। कोई कहेगा हरिद्वार कोई कहेगा हरिद्वार। ये जो दो धाम बडे़ ही प्रसिद्ध हैं। बद्रीनाथ और केदारनाथ। इस केदारनाथ में ही केदार या शंकरजी ही बने थे शंकराचार्य। शंकरजी का ही अवतार रहे शंकराचार्य।हरि हरि!

उन्होंने भगवान के आदेशानुसार मायावाद का प्रचार और प्रसार किया। खूब शास्त्रार्थ किया।वे वेदवाद की स्थापना कर रहे थे सर्वत्र। करते करते अंततोगत्वा वे केदारनाथ पहुंचे और केदारनाथ में ही उम्र के 32 वर्ष की अवस्था में वह समाधिस्थ हुए। वैसे हिमालय में और चार धाम हैं। चार धाम की यात्रा हैं। बद्रीनाथ,रामेश्वर शिव जी का धाम है दक्षिण में और पूरब में है जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिकापुरी यह चार धाम की यात्रा प्रसिद्ध हैं।वैसेऔर भी चार धाम हिमालय में है वह है बद्रिकाश्रम धाम, केदारनाथ धाम, गंगोत्री और यमुनोत्री ये चार मिलकर हुए एक चार धाम कि यात्रा। गंगोत्री कि जय...! यमुनोत्री की जय...! वृंदावन में भी हैं।यमुनोत्री,गंगोत्री भी है, बद्रिकाश्रम भी है और केदारनाथ भी हैं।जब वृंदावन परिक्रमा करते हैं तो इन सारे धामों कि भी यात्रा हो जाती हैं। ऑल यात्रा इस वन यात्रा।ऑल इन वन टु इन वन आप कहते हो। रेडियो भी है ट्रांजिस्टर भी हैं। ब्रज मंडल परिक्रमा का ये वैशिष्ट्य हैं। ब्रज परिक्रमा करो तो सृष्टि में जितने भी तीरथ है, धाम है,उन सारे धाम की तीर्थ यात्रा की। ऐसे ब्रज मंडल की जय हो! बद्रीका आश्रम से फिर केदारनाथ जाते हैं। वहा इतनी सारी सिड़िया हैं पानी है हिमालय ही है। हिमालय के बारे में भगवान ने कहा हैं।

“महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।” (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10,श्लोक 25)

अनुवाद: -मैं महर्षियों में भृगु हूँ, वाणी में दिव्य ओंकार हूँ, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूँ |

स्थावराणां हिमालयः जितनी भी स्थिर स्थावर वस्तुएँ हैं।उन स्थावर वस्तुओं में अहम हिमालय: मैं हिमालय हुँ। भगवान ने कहा हिमालय मैं हूंँ। हिमालय का जो वैभव है उसमें जो स्थैर्य है इतना विशाल,ऊँचा हिमालय यह मैं हूंँ। भगवान का एक वैभव हैं। भगवत गीता के दसवें अध्याय में जहाँ भगवान अपने वैभवों का उल्लेख करते हैं। वहां पर सभी हाथियों में मैं एरावत हाथी हूंँ। नदियों में मैं गंगा हूंँ। ऐसा भी भगवान ने कहा है।हरि हरि!

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसुर्ययो:। प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु || (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7,श्लोक 8)

अनुवाद: -हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ |

चंद्रमा और सूरज मैं हूंँ। चंद्रमा और सूरज में जो प्रकाश है मैं हूंँ। भगवान कहते है यह वैभव हैं।ये भी हमको स्मरण दिलाता है हिमालय देखने पर भी हमें भगवान का स्मरण होना चाहिए।गंगा का दर्शन हुआ तो भगवान का दर्शन भगवान ने कहा है मैं हूंँ गंगा। भगवान बने हैं गंगा।हमें उनका स्मरण होना चाहिए।

भीमा आणि चंद्रभागा, तुझ्या चरणीच्या गंगा (संत जनाबाई लिखित भजन)

भगवान के चरणों से ही निकलती है गंगा या फिर सुनते हैं। भगवान जब अपने, अपने ही जीव जो इस संसार में मर रहे हैं। तकलीफें झेल रहे हैं, परेशान हैं। आधिदैविक,अध्यात्मिक, आदिभौतिक, कष्ट से पीड़ित है उनको जब भगवान देखते हैं मतलब हम कोई जब भगवान देखते हैं तो भगवान के दिल में भगवान का दिल द्रविभूत होता हैं। एक होता है घनीभूत। हमारे ह्रदय तो घनीभूत है पत्थर है लोहे से भी कठिन है हमारे दिल लेकिन भगवान का ह्रदय पिघलता हैं जब हमारी स्थिति को भगवान देखते है तो भगवान का पिघला हुआ वो दिल वह द्रविभूत आर्द्र

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता || (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10,श्लोक 11)

अनुवाद: -मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ |

दिल द्रवित होता है कंपीत होता है और वह द्रव फिर बहने लगता है तो यही तो है जो पवित्र नदियां है यह भगवान कि कृपा है या भगवान कि अनुकंपा हैं। भगवान ने करुणा की हैं।

गंगेच यमुना चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिंधु कावेरी जले स्मिन् सन्निधिं कुरु।।

अनुवाद: - हे गंगा यमुना गोदावरी सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी नदियों! (मेरे स्नान करने के) लिए इस जल में (आप सभी) पधारिये।

प्रार्थना भी करते हैं हे गंगे हे जमुने हे सरस्वती हे गोदावरी है नर्मदे हे कावेरी हे सिंधु! ये विशेष नदियां हैं।पवित्र नदियां हैं। हरि हरि! हम जहां निवास कर रहे हैं। यहा हम भी गंगा के तट पर हैं चंद्रभागा गंगा ही हैं। *भीमा आणि चंद्रभागा, तुझ्या चरणीच्या गंगा (संत जनाबाई लिखित भजन)

यह जो द्रवित होकर बह रहा है यह भगवान का स्मरण दिलाते हैं हम जब हिमालय में बद्रिकाश्रम गए हम जा रहे थे चलके पदयात्रा कर रहे थे हरिद्वार से हम पदयात्री ही हैं। यह देख रहे थे कि वहां विशाल रूप है हिमालय का विशाल बद्री विशाल भी कहते हैं हिमालय भी विशाल है उसका जो उत्तुंग शिखर है जब शिखर की ओर देखते हैं तो टोपी वाले वारकरी वगैरह महाराष्ट्र के हैं तो टोपी ऊपर देखते हुए टोपी फिर पीछे गिर सकती हैं। कितना ऊंचा पहाड़ है तो उस पहाड़ के सानिध्य में या बगल में हम जब वहां चल रहे थे तो वहां हम अनुभव कर रहे कर रहे थे और यह मेरा स्वयं का अनुभव है हम कितने तुच्छ हैं हम कितने छोटे हैं एक होता है महान और एक होता है लहार मराठी में उसे लहान (छोटा) कहते हैं। सर्वत्र हिमालय.. ही..हिमालय और शिखर बस पहाड़ ही पहाड़ जहां भी देखो पहाड़ ही पहाड़ उसके मध्य में हम चल रहे हैं। उसके आकार की दृष्टि से देखा जाए तो हम चिटी भी नहीं हैं। हम उसके आकार के हिसाब से देखा जाए तो हम तुच्छ हैं। नहीं के बराबर है हिमालय की तुलना में हम। हिमालय भी खड़ा है और आप बगल में जाकर खड़े हो जाओ सेल्फी खींचे तो इतने हम बड़े हैं ऐसा मैं अनुभव कर रहा था हम कितने शुद्र है,छोटे है, लहान है और उसके साथ कुछ नम्रता का भाव भी उत्पन्न हो रहा था और कोई गर्व है,अभिमान है,महान है, हम यह है, वह हैं। हिमालय के सामने तुम तो कुछ भी नहीं हो। नम्र बनने में फायदा कर रहा था वह हिमालय का दर्शन। हिमालय के सानिध्य का अनुभव हरि हरि!

यह भी अनुभव ऐसे हम कर रहे थे जैसे हम चल रहे थे बहुत ऊंचा है समुद्र तल (सी लेवल) से जो नापते हैं।एक किलोमीटर अब दो किलोमीटर समुद्र तल से तीन किलोमीटर समुद्र तल से कई हिमालय तो कई सारे किलोमीटर समुद्र सतह से ऊँचा हैं। हम जैसे ऊपर चल रहे थे यह मेरा थोड़ा निजी अनुभव रहा हम जो जा रहे थे बद्रिकाश्रम की तरह बद्रीनारायण की ओर जा रहे थे बद्री नारायण के दर्शन के लिए उत्कंठीत भी थे और वहां यह सारी परिस्थिति हैं। परिस्थिति में से भी गुजर रहे हैं ऊंचे, विशाल, उत्तुंग शिखर भी है हिमालय के। वैसे हिमालय भी भगवान का वैभव है और भी दो दर्शन वहा हो रहे हैं।जब हम ऊपर देखते है तो सूर्य का दर्शन। आकाश में सूर्य हैं बगल में देखो तो हिमालय है और नीचे देखो तो गंगा बह रही है वहां खाई में और भगवान ने कहा है यह तीनों मैं ही हूंँ। हिमालय मैं हूंँ, सूर्य मैं हूंँ और गंगा मैं हूंँ और जा कहां रहे हैं नारायण की ओर बद्रिकाश्रम जा रहे हैं।पदयात्रा करते हुए।जैसे हम आगे जा रहे थें। ऊपर चल रहे थे तो यही भी अनुभव हो रहा था हमारी जो भावना है हमारा जो कृष्णभावनाभावित है हम कुछ उच्च विचार के भी बन रहे थे उच्च विचार भी आ रहे थे हमारे भावना में भी कुछ विकास हो रहा था जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे चल रहे थे और जा रहे थे बद्रीनारायण की ओर।

हिमालय में हम जो नगण्य होते हैं।वैसे हम सोचते रहते है हम अग्रगण्य है, विशेष हैं। वैसे हम सोचते हैं कि हम अग्रगण्य है लेकीन हम नहीं के बराबर हैं।

तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना। अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः॥ ( श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला अध्याय 17 श्लोक 31)

अनुवाद: -स्वयं को मार्ग में पड़े हुए तृण से भी अधिक नीच मानकर, वृक्ष से भी अधिक सहनशील होकर, मिथ्या मान की भावना से सर्वथा शून्य रहकर दूसरों को सदा ही मान देने वाला होना चाहिए। ऐसी मनः स्थिति में ही वयक्ति हरिनाम कीर्तन कर सकता है।

यह कीर्तन हम करते हुए भी जा रहे थें। उस समय हम पदयात्रा का जो विग्रहरथ हैं। वह हरिद्वार में रखे थे और गौर सुंदर को सिर पर ढोके हम चलते जा रहे थे और कीर्तन हो रहा था हरि हरि! उनके बद्रिकाश्रम से फिर केदारनाथ फिर आगे बढ़ते हैं ब्रज मंडल में कामवन में प्रवेश के पहले एक पहाड़ी आ जाती है एक पहाड़ आता हैं वैसे यह पहाड़ भी हिमालय का ही अंग है केदारनाथ बद्रीनाथ हिमालय पर्वत। वृंदावन जाने वाले हो लोही बाजार और पंचक्रोशी वृंदावन देख कर लौटते हैं और सबसे कहते हैं। हा!हा!हमने वृंदावन देख लिया वृंदावन का दर्शन हुआ वृंदावन कि पंचक्रोशी परिक्रमा भी कि फिर मथुरा भी गए थोडे बगल वाले स्थान देखे लेकिन वैसे ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं तो यह जो क्षेत्र है बद्रीनाथ केदारनाथ यहां पहाड़ है अधिकतर लोगों को पता नहीं कि ब्रज मंडल में पहाड़ होते हैं वैसे गिरी गोवर्धन हो सकता है पहाड़ा होता है लेकिन गिरी गोवर्धन के अलावा पहाड़ की बात चल रही है तो ब्रह्मा विष्णु महेश भी पहाड़ के रूप में ब्रज में रहते हैं और यह जो बरसाने का पहाड़ हैं। राधा रानी की जय महारानी की जय जय राधा रानी जहां रहती है कीर्तिदा वृषभानु राजा जहा रहते है वह पहाड़ है ब्रह्मा। बरसाने का पहाड़ है ब्रम्हगिरी और नंदग्राम के ऊपर चढ़कर जाना होता हैं। नंदग्राम भी पहाड़ है और वह पहाड़ है शिव जी। नंदेश्वर महादेव का दर्शन भी है नंदग्राम में। यह दो हो गए। फिर रह गए हमारे विष्णु। ब्रह्मा विष्णु महेश।

विष्णु बने हैं गोवर्धन। ऐसे तीन पहाड़ प्रसिद्ध हैं गिरिराज गोवर्धन की जय...! तीन पहाड़ को आप देखते रहते हो लेकिन हिमालय भी वहा ब्रज मंडल में है या केदारनाथ है और फिर आगे बढ़ते हैं तो चरण पहाड़ी हैं। दूसरे के पहाड़ के शिखर पर चरण पहाड़ी भगवान के चरण चिन्हों का दर्शन।यहा तक पहुंचे ही हो तो करो दर्शन करो! भगवान के चरण चिन्हों का दर्शन करो। आपकी यात्रा सफल हो गई।परिक्रमा में क्यू जा रहे थें। भगवान को खोजने जा रहे थें। भगवान को ढूंढने जा रहे थें। जैसे गोपियां भगवान को खोज रही थी वैसे आप भी भगवान के चरणों का दर्शन करते हुए एक वन से दूसरे वन जा रहे थें।

गोपियों को भी खोजते खोजते पहले तो किस का दर्शन हुआ? चरण का दर्शन हुआ और चरण का दर्शन होते ही उनकी आशा की किरण हुई अभी तो चरण यहा है तो कृष्ण कुछ दूर नहीं होंगे। यही पास में होने चाहिए चरण चिन्ह तो यहां हैं। यहा से ही चलकर गए होंगे तो चरण पहाड़ी में चरण चिन्हों का दर्शन विशेष अनुभव हैं। हमारा विश्वास भी हो जाता हैं। हम निष्ठावान बनते हैं। हां..!हां..!भगवान हमें मिलने वाले हैं। भगवान का दर्शन होने वाला हैं। भगवान के चरणों का दर्शन है चरण पहाड़ी अपना माथा टेक के वहा मस्तक को उठाकर आगे बढ़ते है और कामवन में प्रवेश होता हैं। कामवन की जय...!वैसे हम वृंदावन में थें। बहुलावन के बाद फिर हम राधाकुंड आए तब वृंदावन में थें। गोवर्धन परिक्रमा कि तब हम वृंदावन में थे फिर आगे बढ़े बद्रिकाश्रम वगैरा तब हम वृंदावन में थें। आप ब्रज मंडल का और एक वन कामवन यह छठवां वन में आ पहुंचे हो।

काम वन की जय...! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...!

यह जो सुन लिया इसको देख भी लो! पढ भी लो! दिन में देखो और सुनो हरि हरि!ठीक है तो कुछ कुछ सूचनाएं हो गए हैं ठीक है तो आपकी यात्रा सफल हो...! अगर आप लिखना चाहते हो अभी भी चार्ट सेशन खुला है अपने विचार परिक्रमा के अनुभव आप लिख सकते हैं। साधना कार्ड में भी आपको लिखना हैं। लिखते रहो।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

English

12 NOVEMBER 2020

Vrajmandal parikrama Day 12

Witnessing Lords opulences generates humility in us.

Hare Krsna!

Devotees from 747 locations are chanting with us. Gauranga!

Gaura premanande Hari Hari bol!

Welcome all of you to the parikrama. Mentally your soul is residing in Vraja these days. Lord is in Vraja and you are contemplating Vraja. Yesterday we halted at Badrikashram. You had darshan of Badri Narayan. The trees of Badrikashram are called Badri. When Lord went to Badrikashram to perform penance, leaving Laxmi behind in Vaikuntha, she followed the Lord to serve Him. Laxmi stays there in the form of the leaves of Badri tree and provides shadow to the Lord.

Today we shall be going to Kedarnath from Badrinath and then to Kamyavan crossing Charanpahadi. We heard how on the request of Nārada, Lord left for penance. Lord came to the pious land of Badrinath. Then He saw that Lord Shiva and Pārvati are already residing there. But Vishnu had already chosen the place to be apt for the performance of penance for Him. Therefore, He thought of some trick.

One day, When Shiva and Pārvati were going for a bath in the natural geyser (tapt kunda) as I was describing yesterday, they found a small boy on the way crying alone, there was no caretaker around. Parvati felt mercy on the baby. They decided to give him shelter and they put the child in their house and locked him inside to keep him safe and protected. When they returned after taking a bath, they found the house to be locked from inside. They thought that it could be none other than Vishnu Himself as no ordinary child could do that with them. Accepted that as their fortune that Lord had chosen their house to stay and therefore they left Badrinath in search of a new place to reside. They found a beautiful place in the Himalayas to be very apt for them to stay and that place became Kedarnath. Shiva and Pārvati stay there in Kedarnath. The Badrinath and Kedarnath in Vrindavan are non different from the ones in Himalayas.

Haridwar is also there in Vrindavan. Some people call it Haridwar - those who are the devotees of Badri Narayan and desire to go to Badrinath whereas some call it Har-dwar - Those who desire to go to Kedarnath. Lord Shiva had himself appeared as Adi Shankaracharya, who preached Mayavada philosophy on the order of Lord and at the age of 32, he went to Kedarnath to perform penance. The 4 main pilgrimage places of India are in the extremes of the 4 directions. In North - Badrinath, West - Dwarika, South - Rameshwaram and in East - Jagannath Puri. There are also 4 pilgrimage places in the Himalayas. They are Badrinath, Kedarnath, Gangotri and Jamnotri. They are in Vrindavan also. When you go to Braj Mandal, you get the benefit of going to all the pilgrimage places in the world. All yatra in one yatra. Braj Mandal Parikrama is so great!

maharṣīṇāṁ bhṛgur ahaṁ girām asmy ekam akṣaram yajñānāṁ japa-yajño ’smi sthāvarāṇāṁ himālayaḥ

TRANSLATION

Of the great sages I am Bhṛgu; of vibrations I am the transcendental oṁ. Of sacrifices I am the chanting of the holy names [japa], and of immovable things I am the Himālayas. (Bg. 10.25)

The Lord is talking about His own opulences that among all the mountains, I am Himalaya. I am Airawat among the elephants.

pavanaḥ pavatām asmi rāmaḥ śastra-bhṛtām aham jhaṣāṇāṁ makaraś cāsmi srotasām asmi jāhnavī

TRANSLATION

Of purifiers I am the wind, of the wielders of weapons I am Rāma, of fishes I am the shark, and of flowing rivers I am the Ganges. (B.G. 10.31)

Lord says, He is Ganges among all the rivers.

raso ’ham apsu kaunteya prabhāsmi śaśi-sūryayoḥ praṇavaḥ sarva-vedeṣu śabdaḥ khe pauruṣaṁ nṛṣu

TRANSLATION

O son of Kuntī, I am the taste of water, the light of the sun and the moon, the syllable oṁ in the Vedic mantras; I am the sound in ether and ability in man. (B.G. 7.8)

Lord says, "I am the glow in the moon and light in the sun." These are the opulences of the Lord. Seeing these, one should remember the Lord. When the Lord sees us, His children, suffering in this material world due to adhidaivika, adhyātmika and adhibhautika miseries, His heart melts. Our hearts are bull headed, hard as rocks. But the Lord is extremely merciful, His heart melts.

teṣām evānukampārtham aham ajñāna-jaṁ tamaḥ nāśayāmy ātma-bhāva-stho jñāna-dīpena bhāsvatā

TRANSLATION

To show them special mercy, I, dwelling in their hearts, destroy with the shining lamp of knowledge the darkness born of ignorance. (B.G. 10.11)

His molten heart flows as the rivers, which are a mercy of the Lord. These rivers availing are such an important source of mercy of the Lord.

Gange Ca Yamune Caiva Godavari Sarasvati Narmade Sindhu Kaaveri Jalesmin Sannidhim Kuru

TRANSLATION

O Holy Rivers Ganga and Yamuna, and also Godavari and Saraswati, O Holy Rivers Narmada, Sindhu and Kaveri; Please be Present in this Water and make it Holy.

Ganga, Yamuna, Saraswati, Godawari, Narmada, Sindhu and Kaveri are the 7 holy rivers. I am on the banks of Chandrabhaga river, which is non different from ganga.

Bhima aani chandrabhaga tuzya charanichya ganga (Yega yega vithabai … abhang by saint Janabai)

When we were walking to Badrikashram (in Himalayas) from Haridwar, we saw the gigantic form of the Himalayas. They are so high and strong. Such high mountains that your cap would fall watching its peak. While walking and seeing these great mountains, I was realising that how minute and insignificant (lahaan in Marathi) we are. We were walking in between those huge mountains. We weren't even like ants compared to those mountains. Along with this realisation, there was a feeling of humility which was developing in my heart. The Himalaya was helping me develop that realisation. And when we were walking higher on the altitude gradually, reaching much higher than the sea level, I personally realised that going towards Badri-Narayan, on the way on all sides were great Himalayas, above was the Sun and in the valleys was Ganges flowing at great speed. Lord says that all of these 3 is He Himself. Realising this, was also a great experience. Rising above the sea level, was also giving a rise in the consciousness. We usually have the feeling that we are special and significant. But we are extremely ordinary and insignificant.

trinad api sunichena taror api sahishnuna amanina manadena kirtaniyah sada harih

TRANSLATION

One should chant the holy name of the Lord in a humble state of mind, thinking oneself lower than the straw in the street; one should be more tolerant than a tree, devoid of all sense of false prestige, and should be ready to offer all respect to others. In such a state of mind one can chant the holy name of the Lord constantly. (3rd verse, Sri Siksastakam)

We were walking, performing kīrtana. We had left the bullock cart behind in Haridwar and carried Nitai Gaur Sundar on our heads. Well! in Braj Mandal Parikrama, Badrinath, Kedarnath are also mountains which are non different from great Himalayas. Usually people aren't aware of mountains in Braj Mandal except Govardhan. They think that they have seen everything in Vrindavan by just going to the 5- Kos Vrindavan. Brahma, Vishnu and Shiva reside in Vraja as mountains. Brahma became the 4 hills of Barsana.

Radharani ki jai! Maharani ki jai!

Shiva became the hill of Nandagram. We get the darshan of Nandeshwar Mahadeva in Nandagram. Vishnu became Giriraj Govardhan. Himalayas are present as well. Moving ahead, you will also find Charan-pahadi, the hill with imprints of the Lotus feet of the Lord. When the Gopīs were finding Krsna in the forest, they also found the lotus feet of the Lord first and then they started searching more vigorously thinking that the Lord is near by. We should also follow in the footsteps of the gopīs. When we go to Charanpahadi, the hill where we find the footprints of Krsna, we also should realise that the Lord will be found very soon.

Well after Bahulavan, when you came to Radhakund, you were in Vrindavan and now you will enter the 6th forest of Vrindavan, the Kamyavan. We will discuss that tomorrow. You should attend the session today. Also see what you have heard. We shall stop here. May your Braj Mandal Parikrama be successful!

Gaura premanande Hari Hari bol!

Russian